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भारतीय अर्थव्यवस्था

नवीकरणीय ऊर्जा और भूमि उपयोग

  • 09 Sep 2021
  • 6 min read

प्रिलिम्स के लिये

नवीकरणीय ऊर्जा

मेन्स के लिये

नवीकरणीय ऊर्जा के लिये भूमि उपयोग संबंधी विभिन्न पहलू

चर्चा में क्यों?

हाल ही में ‘रिन्यूएबल एनर्जी एंड लैंड यूज़ इन इंडिया बाय मिड-सेंचुरी’ (Renewable Energy and Land Use in India by Mid-Century) नामक एक रिपोर्ट में सुझाव दिया गया है कि वर्तमान में सावधानीपूर्वक योजना बनाने से भविष्य के लाभ को अधिकतम किया जा सकता है और भारत के ऊर्जा ट्रांज़िशन की लागत को कम किया जा सकता है।

  • यह रिपोर्ट ‘इंस्टीट्यूट फॉर एनर्जी इकोनॉमिक्स एंड फाइनेंशियल एनालिसिस’ (IEEFA) द्वारा जारी की गई है, जो ऊर्जा बाज़ारों, प्रवृत्तियों और नीतियों से संबंधित मुद्दों की जाँच करता है।
  • इसका मिशन एक विविध, सतत् और लाभदायक ऊर्जा अर्थव्यवस्था में ऊर्जा ट्रांज़िशन को तीव्र करना है।

प्रमुख बिंदु

  • नवीकरणीय ऊर्जा के लिये भूमि उपयोग:
    • भारत नवीकरणीय ऊर्जा उत्पादन क्षमता स्थापित करने हेतु वर्ष 2050 तक भूमि के महत्त्वपूर्ण हिस्से का उपयोग करेगा।
      • अनुमान के मुताबिक, सौर ऊर्जा उत्पादन के लिये वर्ष 2050 तक लगभग 50,000-75,000 वर्ग किलोमीटर भूमि का उपयोग किया जाएगा और पवन ऊर्जा परियोजनाओं के लिये अतिरिक्त 15,000-20,000 वर्ग किलोमीटर भूमि का उपयोग किया जाएगा।
    •  यूरोप या अमेरिका के विपरीत भारत में बिजली उत्पादन के लिये कृषि, शहरीकरण, मानव आवास और प्रकृति संरक्षण जैसे भूमि के वैकल्पिक उपयोगों के साथ प्रतिस्पर्द्धा करनी पड़ती है।
  • सह-अस्तित्त्व:
    • उचित रूप से प्रबंधित नवीकरणीय ऊर्जा उत्पादन अन्य भूमि उपयोगों के साथ सह-अस्तित्व में भी हो सकता है और यह कोयला आधारित बिजली के विपरीत भूमि के स्वरूप में भी बदलाव नहीं करता है।
  • कार्बन उत्सर्जन:
    • अप्रत्यक्ष प्रभाव सहित परिणामी भूमि आवरण परिवर्तन से संभावित रूप से प्रति किलोवाट/घंटे (gCO2 / kwh) में 50 ग्राम कार्बन डाइऑक्साइड तक कार्बन का शुद्ध उत्सर्जन होगा।
    • कार्बन उत्सर्जन की मात्रा क्षेत्र, उसके विस्तार, सौर प्रौद्योगिकी दक्षता तथा सौर पार्कों में भूमि प्रबंधन के तरीके पर निर्भर करेगी। 
  • पारिस्थितिक तंत्र पर प्रभाव:
    • नवीकरणीय ऊर्जा हेतु भूमि उपयोग विभिन्न पारिस्थितिक तंत्रों पर दबाव डाल सकता है। आमतौर पर शून्य प्रभाव क्षेत्र, बंजर भूमि, अप्रयुक्त भूमि या बंजर भूमि का अर्थ है कि ऐसे क्षेत्रों का कोई मूल्य नहीं है।
      • बंजर भूमि के रूप में वर्गीकृत ओपन नेचुरल इकोसिस्टम (ONE), भारत की भूमि की सतह के लगभग 10% को कवर करता है।
      • बंजर भूमि के सबसे बड़े खंड राजस्थान, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश और गुजरात में पाए जाते हैं।
    • हालाँकि इनमें से कुछ भू-खंडों में "बड़े स्तनधारी जीवों का  घनत्व और विविधता उच्चतम" है और ये स्थानीय आबादी की आजीविका की पूर्ति करने में सहायक हैं।
      • इससे पहले सर्वोच्च न्यायालय ने राजस्थान और गुजरात में ग्रेट इंडियन बस्टर्ड के आवासों से गुज़रने वाली सौर ऊर्जा इकाइयों की सभी बिजली लाइनों को भूमिगत रखने का निर्देश दिया था, क्योंकि ओवरहेड ट्रांसमिशन लाइनें लुप्तप्राय प्रजातियों के लिये खतरा हो सकती हैं।
  • सुझाव:
    • पर्यावरणीय क्षति को कम करें:
      • पर्यावरणीय क्षति को कम करने के लिये उपयोग की गई भूमि के आकार, स्थान और मानव निवास, कृषि एवं प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण पर उसके प्रभाव तथा उसके प्रति अनुकूलन।
    • भूमि उपयोग को कम करना:
      • जल निकायों पर अपतटीय पवन, रूफटॉप सोलर को बढ़ावा देकर अक्षय ऊर्जा के लिये कुल भूमि उपयोग आवश्यकता को कम करना।
    • भूमि आकलन:
      • संभावित स्थलों की रेटिंग हेतु अनुचित क्षेत्रीयता को सीमित करके और पर्यावरण एवं सामाजिक मानकों को विकसित कर नवीकरणीय ऊर्जा उत्पादन के लिये भूमि की पहचान और मूल्यांकन।
      • अक्षय ऊर्जा परियोजनाओं के स्थान पर विचार करते समय नीति निर्माताओं और योजनाकारों को उच्च घनत्व वाले आवासीय वनों को इससे बाहर रखना चाहिये।
    • कृषि वैद्युत को प्रोत्साहन:
      • भारतीय कृषि वैद्युत क्षेत्र पर ध्यान देकर किसानों को लाभ प्रदान करना और कृषि वैद्युत को प्रोत्साहित करना, जहाँ फसल, मिट्टी एवं स्थितियाँ उपयुक्त हों और पैदावार को बनाए रखा जा सके या उसमें सुधार किया जा सके।
        • कृषि वैद्युत को फोटोवोल्टिक सेल द्वारा विद्युत ऊर्जा के उत्पादन के साथ भूमि के कृषि उपयोग को जोड़ती है।

स्रोत- डाउन टू अर्थ

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