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सामाजिक न्याय

भिक्षावृत्ति

  • 15 Apr 2021
  • 9 min read

चर्चा में क्यों?

हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय (Supreme Court) ने केंद्र और चार राज्यों से भिक्षावृत्ति के प्रावधानों को निरस्त करने के लिये निर्देश देने की मांग करने वाली याचिका पर अपनी प्रतिक्रिया दर्ज करने को कहा है।

प्रमुख बिंदु

भिक्षावृत्ति को गैर-आपराधिक करने के पक्ष में तर्क:

  • इस सन्दर्भ में हाल के निर्णय: दिल्ली उच्च न्यायालय ने कहा कि बॉम्बे भिक्षावृत्ति रोकथाम अधिनियम, 1959 के प्रावधान, जो दिल्ली राजधानी क्षेत्र में भिक्षावृत्ति को आपराधिक बनता है, संवैधानिक सुरक्षा के प्रावधानों के विपरीत है।
  • जीवन के अधिकार के विरुद्ध: भिक्षावृत्ति के कृत्य को आपराधिक बनाने वाले कानूनों ने लोगों को अपराध करके पेट भरने या भूखा रहकर कानून मानने के बीच दुविधा में डाल दिया, जो संविधान के अनुच्छेद 21 के जीवन जीने के अधिकार का उल्लंघन है।
  • सामाजिक सुरक्षा प्रदान करने की सरकार की बाध्यता: यह सरकार का दायित्व है कि वह सभी लोगों को सामाजिक सुरक्षा प्रदान कर इसे सुनिश्चित करें, जिससे संविधान के राज्य के नीति निर्देशक तत्वों (DPSP) के अनुसार सभी के पास बुनियादी सुविधाएँ हों।
    • भिखारियों की उपस्थिति इस बात का प्रमाण है कि राज्य अपने सभी नागरिकों को बुनियादी सुविधाएँ देने में विफल रहा है।
    • इसलिये अपनी विफलता पर काम करने और लोगों के भिक्षावृत्ति की जाँच करने के बजाय, इसका अपराधीकरण करना तर्कहीन है और यह भारतीय संविधान की प्रस्तावना में उल्लेखित समाजवादी दृष्टिकोण के विरुद्ध है।

याचिका में सुझाव:

  • फास्ट फॉरवर्ड भिखारी पुनर्वास विधान: याचिका में दावा किया गया है कि भिखारी उन्मूलन एवं पुनर्वास विधेयक (Abolition of Begging and Rehabilitation of Beggars Bill), 2018 को लोकसभा में पेश किया गया था, लेकिन अब तक यह विधेयक पारित नहीं हुआ है और इसे लंबी संसदीय प्रक्रिया में शामिल कर दिया गया है।
    • मौजूदा मनाने कानूनों के कारण हज़ारों गरीबों को कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है।
    • विधायी प्रक्रिया को तेज़ी से आगे बढ़ाया जाना चाहिये।
  • कुछ प्रावधान को समाप्त करें: याचिका में बॉम्बे प्रिवेंशन ऑफ बेगिंग एक्ट, 1959; पंजाब प्रिवेंशन ऑफ बेगरी एक्ट, 1971; हरियाणा प्रिवेंशन ऑफ बेगिंग एक्ट, 1971 और बिहार प्रिवेंशन ऑफ बेगिंग एक्ट, 1951 के कुछ धाराओं को छोड़कर सभी प्रावधानों को "गैरकानूनी और शून्य" घोषित करने के निर्देश दिये गए हैं।
  • इसमें देश के किसी भी हिस्से में प्रचलित अन्य ऐसे ही सभी अधिनियमों को अवैध घोषित करने की भी मांग की गई है।

बॉम्बे भिक्षावृत्ति रोकथाम अधिनियम, 1959:

  • भारत में भिक्षावृत्ति की रोकथाम और नियंत्रण के लिये कोई संघीय कानून नहीं है, कई राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों ने अपने स्वयं के कानूनों के आधार के रूप में बॉम्बे अधिनियम का उपयोग किया है।
  • इस अधिनियम में भिक्षावृत्ति की परिभाषा में ऐसे किसी भी व्यक्ति को शामिल किया गया है जो गाना गाकर, नृत्य करके, भविष्य बताकर, कोई सामान देकर या इसके बिना भीख मांगता है या कोई चोट, घाव आदि दिखाकर, बीमारी बताकर भीख मांगता है।
  • इसके अलावा जीविका का कोई दृश्य साधन न होने और सार्वजनिक स्थान पर इधर-उधर भीख मांगने की मंशा से घूमना भी भिक्षावृत्ति में शामिल है।
  • यह अधिनियम पुलिस को बिना वारंट व्यक्तियों को गिरफ्तार करने की शक्ति देता है। इस कानून में भिक्षावृत्ति करते हुए पकड़े जाने पर पहली बार में तीन साल तक के लिये और दूसरी बार में दस साल तक के हिरासत में रखने का प्रावधान है।
    • यह कानून भिखारियों के गोपनीयता और गरिमा का उल्लंघन करता है और उन्हें अपने फिंगरप्रिंट देने के लिये बाध्य करता है।
  • इस अधिनियम में भिखारियों के परिवारों को हिरासत में लेने और उनके पाँच साल से अधिक उम्र के बच्चों को अलग रखने का अधिकार दिया गया है।
  • इसके साथ ही पकड़े गए व्यक्ति के आश्रितों को भी पंजीकृत संस्था में भेजा जा सकता है। यहाँ यह भी ध्यान देने वाली बात है कि इन संस्थाओं को भी कई प्रकार की शक्तियाँ प्राप्त हैं, जैसे-संस्था में लाए गए व्यक्ति को सजा देना, कार्य करवाना आदि। इन नियमों का पालन न करने पर व्यक्ति को जेल भी भेजा जा सकता है।

भारत में भिखारियों की संख्या:

  • भारत में जनगणना 2011 के अनुसार भिखारियों की कुल संख्या 4,13,670 (2,21,673 पुरुष और 1,91,997 महिलाएँ) है जो पिछली संख्या (जनगणना 2001) से ज़्यादा है।
  • भिक्षावृत्ति के मामले में पश्चिम बंगाल शीर्ष पर है और उत्तर प्रदेश तथा बिहार क्रमशः दूसरे एवं तीसरे नंबर पर हैं। लक्षद्वीप में वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार केवल दो भिखारी हैं।
  • केंद्र शासित प्रदेशों में नई दिल्ली में भिखारियों की संख्या सबसे अधिक (2,187) है और उसके बाद चंडीगढ़ में (121) है।
  • पूर्वोत्तर राज्यों में असम में सबसे ज़्यादा (22,116) और मिज़ोरम में सबसे कम (53) भिखारियों की संख्या है।

आगे की राह

  • सामाजिक-आर्थिक विश्लेषण के आधार पर एक केंद्रीय कानून बनाया जाना चाहिये। इस संदर्भ में 2016 में केंद्र सरकार ने पहला प्रयास ‘The Persons in Destitution (Protection, Care, Rehabilitation) Model Bill, 2016’ लाकर किया था। इस पर फिर से काम किये जाने की आवश्यकता है।
  • बिहार सरकार की मुख्यमंत्री भिक्षावृत्ति निवारण योजना (Bhikshavriti Nivaran Yojana) एक अनुकरणीय योजना है।
    • इस योजना के अंतर्गत व्यक्तियों को हिरासत में लेने की जगह उन्हें सामुदायिक घरों में रखने की व्यवस्था है।
    • इसके अंतर्गत पुनर्वास केंद्रों की स्थापना की गई है, जिसमें उपचार, पारिवारिक सुदृढीकरण और व्यावसायिक प्रशिक्षण की सुविधाएँ उपलब्ध हैं।
  • संगठित तौर पर चलने वाले भिक्षावृत्ति रैकेट्स को मानव तस्करी और अपहरण जैसे अपराधों के साथ जोड़ कर देखा जाना चाहिये।  

स्रोत: द हिन्दू

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