डेली न्यूज़ (15 Jul, 2024)



भारत में लाइटहाउस पर्यटन को प्रोत्साहन

प्रिलिम्स के लिये:

मैरीटाइम इंडिया विज़न (MIV) 2030, ऋग्वेद, यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल, लाइटहाउस, मामल्लपुरम, सागरमाला पहल

मेन्स के लिये:

लाइटहाउस पर्यटन को को प्रोत्साहन, मैरीटाइम इंडिया विज़न (MIV) 2030, विकास और संधारणीय पर्यटन प्रथाएँ

स्रोत: पी.आई.बी. 

चर्चा में क्यों?  

केंद्रीय पत्तन, पोत परिवहन और जलमार्ग मंत्री ने केरल के विझिनजाम में दीप स्तंभ और दीपपोत महानिदेशालय (Directorate General of Lighthouses and Lightships) द्वारा आयोजित हितधारकों की बैठक के दौरान भारत में मैरीटाइम इंडिया विज़न (MIV) 2030 और मैरीटाइम अमृत काल विज़न 2047 के तहत लाइटहाउस पर्यटन को बढ़ावा देने की योजना की घोषणा की।

लाइटहाउस क्या है?

  • परिचय: लाइटहाउस/दीपस्तंभ एक प्रकार का टावर, इमारत या अन्य प्रकार की संरचना है जिसे लैंप और लेंस की प्रणाली से प्रकाश उत्सर्जित करने के लिये डिज़ाइन किया गया है तथा इनका उपयोग नाविकों एवं स्थानीय मछुआरों हेतु नौचालन सहायता के रूप में किया जाता है। लाइटहाउस खतरनाक समुद्री तटों, परिसंकटमय रेतिले क्षेत्र, चट्टानों आदि को चिह्नित करने के साथ-साथ बंदरगाहों में सुरक्षित प्रवेश भी उपलब्‍ध कराते हैं।
    • वर्तमान में भारत के जलीय क्षेत्र के समुद्री तट और द्वीपों पर अब तक 194 दीपस्तंभों की स्थापना और रखरखाव का कार्य किया जा रहा है।
  • ऐतिहासिक भूमिका:
    • पौराणिक संबंध: ‘मनु’ को बाढ़ से बचाए जाने संबंधी कथाएँ समुद्र और नौवहन के संबंध में भारत के प्रारंभिक ज्ञान को उजागर करती है। 
    • 7वीं शताब्दी ई. में, पल्लव राजा नरसिंहवर्मन-I ने जहाज़ों के नौचालन हेतु लकड़ी की आग का उपयोग करते हुए मामल्लपुरम (महाबलीपुरम) में एक लाइटहाउस की स्थापना की। 

महत्त्वपूर्ण आधुनिक लाइटहाउस:

लाइटहाउस

विवरण

इमेज 

तांगसेरी लाइटहाउस, कोल्लम, केरल

यह केरल में अंग्रेज़ों द्वारा निर्मित सबसे ऊँचा लाइटहाउस है। इसे सफेद और लाल रंग से रंगा गया है जो इसे आकर्षक बनाता है।

महाबलीपुरम लाइटहाउस, तमिलनाडु

यह औपनिवेशिक काल का प्राचीन  लाइटहाउस है जो पल्लव वंश के महेंद्र पल्लव द्वारा बनवाए गए प्राचीन लाइटहाउस के समीप स्थित है। हालाँकि यह क्रियाशील नहीं है किंतु पर्यटक के लिये खुला है।

कौप बीच लाइटहाउस, उडुपी, कर्नाटक

मूलतः इसका निर्माण वर्ष 1901 में अंग्रेज़ों ने किया था और विगत कुछ वर्षों में इसमें कई सुधार किये गए हैं जिसमें विभिन्न लाइटिंग उपकरण संस्थापित किये गए।

विझिनजाम लाइटहाउस, कोवलम, केरल

वर्ष 1925 में कोलाचल में एक लाइट बीकन स्थापित किया गया था और उसके पश्चात् 1960 में विझिनजाम में एक डे मार्क बीकन प्रदान किया गया। एक प्रमुख लाइटहाउस निर्माण वर्ष 1972 में पूरा हुआ था। यह भारत के प्राचीनतम और सबसे अद्भुत लाइटहाउस में से एक है।

अगुआड़ा किला लाइटहाउस, गोवा

यह पुर्तगाली द्वारा निर्मित एक सुव्यवस्थित रूप से संरक्षित संरचना है जो गोवा में स्थित प्रमुख स्थलों में से एक। यहाँ से समुद्र का अद्भुत नज़ारा देखा जा सकता है जो इसे पर्यटकों के लिये एक महत्त्वपूर्ण स्थल बनाता है।

चंद्रभागा, ओडिशा

यह लाइटहाउस कोणार्क मंदिर के समीप स्थित है सुपर साइक्लोन (1999), फैलिन (2013) और फानी (2019) जैसे भीषण चक्रवातों का सामना किया है।

टिप्पणी: तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व में, टॉलेमी द्वितीय ने प्राचीन दुनिया के सात अजूबों में से एक, अलेक्जेंड्रिया के प्रसिद्ध फारोस (अलेक्जेंड्रिया का लाइटहाउस) का निर्माण करवाया था।

  • उच्च गुणवत्ता वाले केदान पत्थर की ईंटों से बना यह टॉवर पिघले हुए सीसे में जड़ा हुआ था, जिसे 1600 वर्षों तक संचालित किया गया था। 13वीं शताब्दी ईस्वी में, एक भयंकर भूकंप के कारण यह क्षतिग्रस्त हो गया।

भारत में आधुनिक लाइटहाउस की क्या भूमिका है?

  • आधुनिक लाइटहाउस जहाज़ों का दिशा प्रदर्शित करने, बंदरगाहों को चिह्नित करने और सिग्नल भेजने में सहायता करते हैं, जो जीपीएस तकनीक के लिये मूल्यवान आधार के रूप में काम करते हैं।
  • वर्ष 2008 के मुंबई आतंकवादी हमलों के बाद, तटीय निगरानी के लिये लाइटहाउसों को अत्याधुनिक राडार से लैस किया गया था।
  • भारत सरकार ने मछुआरों और लाइटहाउस के बीच संचार की सुविधा के लिये स्वचालित पहचान प्रणाली (AIS) की स्थापना की।
  • नेविगेशन के लिये समुद्री सहायता अधिनियम 2021 का उद्देश्य लाइटहाउस के ऐतिहासिक और सांस्कृतिक मूल्य में वृद्धि करना है।
  • गोवा में इंडियन लाइटहाउस फेस्टिवल जैसे आयोजन इन संरचनाओं की विरासत और पर्यटन क्षमता को प्रदर्शित करते हैं। कई लाइटहाउस अब पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र हैं, जो ऐतिहासिक अंतर्दृष्टि और आश्चर्यजनक दृश्य प्रस्तुत करते हैं।

आधुनिक नौवहन सहायक उपकरण

  • लाइट वेसल्स (Light Vessels): ऐसी परिस्थितियों में जहाँ लाइटहाउस बनाना संभव नहीं होता, इन फ़्लोटिंग लाइट वेसल्स का इस्तेमाल अलग-अलग उथले जल या जल के नीचे के खतरों की पहचान करने के लिये किया जाता है। वे रोशनी और ऑप्टिकल उपकरणों का उपयोग करके जहाज़ के झुकाव को  रोकती है।
  • प्लव (Buoys): प्लव नाविकों को नेविगेशनल दिशाएँ प्रदान करते हैं। आरंभ में एसिटिलीन गैस का उपयोग करते हुए, वे अब सौर फोटोवोल्टिक मॉड्यूल द्वारा संचालित इलेक्ट्रिक लाइट पर काम करते हैं।
  • एम. एफ. रेडियो बीकन (M.F Radio Beacons): वर्ष 1955-60 के बीच स्थापित, इन्हें समुद्री स्थिति में बेहतर सटीकता के लिये डिफरेंशियल ग्लोबल पोजिशनिंग सिस्टम (DGPS) द्वारा प्रतिस्थापित किया गया था।
  • रैकन्स (Racons): ये रडार ट्रांसपोंडर बीकन जहाज़ के रडार को एक विशिष्ट कूट सिग्नल भेजते हैं, जो रेंज, दिशा और पहचान संबंधी डेटा प्रदान करते हैं।

भारत में लाइटहाउस पर्यटन को बढ़ावा देने के क्या लाभ हैं?

  • सांस्कृतिक विरासत: लाइटहाउस ऐतिहासिक और सांस्कृतिक मूल्य प्रदान करते हैं, जिससे वे शैक्षणिक केंद्र के रूप में कार्य करते हैं, साथ ही गोवा के ऐतिहासिक किले अगुआड़ा में आयोजित भारत का प्रथम लाइटहाउस महोत्सव "भारतीय प्रकाश स्तंभ उत्सव" जैसे कार्यक्रम भारत की समृद्ध समुद्री विरासत का उत्सव मनाते हैं, जो ऐतिहासिक लाइटहाउस के प्रति जागरूकता तथा प्रशंसा को बढ़ावा देते हैं, जिन्हें पूर्व में वृहद् स्तर पर नज़रअंदाज़ किया गया है।
    • नौवहन के लिये नौचालन के लिये सामुद्रिक सहायता अधिनियम, 2021 के तहत, कुछ प्रकाशस्तंभों को विरासत स्थल के रूप में नामित किया जा सकता है, जिससे उनकी भूमिका नौवहन सहायता से आगे बढ़कर सांस्कृतिक और शैक्षिक उद्देश्यों तक विस्तारित हो जाएगी।
    • लाइटहाउस विजिट करने से व्यापार, विजय और यात्रा में उनकी सदियों पुरानी भूमिका की झलक मिलती है। लाइटहाउस समुद्र के किनारे सूर्यास्त का आनंद लेने और समुद्री इतिहास के बारे में जानने के लिये अद्वितीय सुविधाजनक स्थान प्रदान करते हैं।
  • आर्थिक विकास: लाइटहाउस और लाइटशिप महानिदेशालय ने पर्यटन विकास में संभावित निवेश के लिये 75 लाइटहाउस की पहचान की है, जो आस-पास के क्षेत्रों को आर्थिक लाभ प्रदान करते हैं।
    • यह पहल सार्वजनिक-निजी भागीदारी (PPP) के माध्यम से निवेश क्षमता पर प्रकाश डालती है, जिससे निजी संस्थाओं को इन स्थलों को पर्यटन स्थलों के रूप में विकसित करने में निवेश करने के लिये प्रोत्साहित किया जाता है।
    • पर्यटन बढ़ने से तटीय क्षेत्रों में पर्यटकों की संख्या में वृद्धि कर सकती है, जिससे स्थानीय विक्रेताओं, रेस्तरां और सेवा प्रदाताओं को लाभ होगा।
  • पर्यावरण जागरूकता: विरासत लाइटहाउस पर ध्यान पर्यावरण-अनुकूल पर्यटन प्रथाओं को बढ़ावा देता है,जो पर्यटकों को आकर्षित करते हुए तटीय वातावरण की रक्षा कर सकते हैं।
    • इस पहल का उद्देश्य लाइटहाउस को बहुआयामी पर्यटन स्थलों में बदलना है, जो पारंपरिक सागरीय तट पर्यटन से परे विविध अनुभव प्रदान करते हैं।

लाइटहाउस और लाइटशिप महानिदेशालय

  • बंदरगाह, जहाज़रानी और जलमार्ग मंत्रालय के तहत लाइटहाउस तथा लाइटशिप महानिदेशालय, भारतीय तट के साथ समुद्री नेविगेशन में सहायता प्रदान करता हैइसका मुख्यालय नोएडा में है, क्षेत्रीय मुख्यालय 9 ज़िलों (गांधीधाम, जामनगर, मुंबई, गोवा, कोचीन, चेन्नई, विशाखापत्तनम, कोलकाता और पोर्ट ब्लेयर) में है।
  • इसका उद्देश्य लाइटहाउस, हल्के जहाज़ों, प्लव (Buoys) और बीकन जैसे दृश्य सहायता के साथ-साथ डीजीपीएस तथा रैकन्स(RACONs) जैसे रेडियो सहायता के माध्यम से भारतीय जल में सुरक्षित नेविगेशन सुनिश्चित करना है। 
  • निदेशालय इंटरैक्टिव नेविगेशन नियंत्रण के लिये पोत यातायात सेवाएँ भी प्रदान करता है। यह लाइटहाउस अधिनियम 1927 के अनुसार समुद्री नेविगेशन के लिये सामान्य सहायता बनाए रखने के लिये ज़िम्मेदार है, जबकि स्थानीय सहायता समुद्री राज्य सरकार संगठनों द्वारा बनाए रखी जाती है। 
    • निदेशालय स्थानीय लाइटों के रखरखाव के लिये तकनीकी सहायता प्रदान करता है, साथ ही यदि वित्तीय बाधाओं या तकनीकी कर्मियों की कमी के कारण अंतर्राष्ट्रीय मानकों को पूरा नहीं किया जाता है तो निदेशालय रखरखाव की ज़िम्मेदारी ले सकता है।

मैरीटाइम इंडिया विज़न (MIV), 2030 क्या है?

  • मैरीटाइम इंडिया विज़न, 2030 (जिसे नवंबर, 2020 में मैरीटाइम इंडिया समिट में प्रधानमंत्री द्वारा जारी किया गया था) भारत में समुद्री क्षेत्र से संबंधित दस वर्ष की रणनीति है। इसका उद्देश्य जलमार्ग, जहाज़ निर्माण उद्योग और क्रूज पर्यटन को उन्नत बनाना है। 
  • मैरीटाइम इंडिया विज़न 2030 के तहत वैश्विक समुद्री क्षेत्र में भारत की स्थिति को मज़बूत बनाने के क्रम में आवश्यक विषयों पर प्रकाश डाला गया है। इसके द्वारा सागरमाला पहल का स्थान लिया जाएगा। इसका उद्देश्य भारत में जलमार्गों को बढ़ावा देना तथा क्रूज पर्यटन को प्रोत्साहित करना है।  
    • MIV 2030 के तहत 4 प्रमुख क्षेत्रों में हस्तक्षेपों की पहचान की गई है: ब्राउनफील्ड क्षमता में वृद्धि, विश्व स्तरीय मेगा पोर्ट विकसित करना, दक्षिण भारत में ट्रांसशिपमेंट हब का विकास करना और बुनियादी ढाँचे का आधुनिकीकरण करना। 
    • भारत का लक्ष्य अगले 5 से 10 वर्षों में विश्व निर्यात में 5% हिस्सेदारी हासिल करना है, जिसके लिये निर्यात में उचित वृद्धि की आवश्यकता है। इसे प्राप्त करने के लिये भारतीय बंदरगाहों के संदर्भ में ईज़ ऑफ डूइंग बिजनेस (EoDB) में सुधार पर ध्यान देने की आवश्यकता है। इसके तहत प्रमुख
      • 200 से अधिक बंदरगाहों की कनेक्टिविटी परियोजनाओं, मशीनीकरण, प्रौद्योगिकी अपनाने, परिवहन समय में कमी, लागत में कमी, तटीय शिपिंग को बढ़ावा देना और पोर्टलैंड औद्योगिकीकरण के माध्यम से लाॅजिस्टिक दक्षता एवं लागत प्रतिस्पर्द्धात्मकता को बढ़ाना।
    • MIV 2030 का उद्देश्य शासन तंत्र में सुधार करना, मौजूदा कानूनों में संशोधन करना, समुद्री एवं तटरक्षक एजेंसी (MCA) को मज़बूत करना तथा समुद्री क्षेत्र में सतत् विकास का समर्थन करने हेतु PPP अपनाना और राजकोषीय सहायता एवं वित्तीय अनुकूलन को बढ़ावा देना शामिल है।
    • भारत का लक्ष्य शिक्षा, अनुसंधान एवं प्रशिक्षण पर ध्यान केंद्रित करते हुए समुद्री क्षेत्र में अग्रणी राष्ट्र बनना है। वर्तमान में विश्व के नाविकों में 10-12% की भागीदारी वाले भारत को फिलीपींस जैसे देशों से बढ़ती प्रतिस्पर्द्धा का सामना करना पड़ रहा है।
      • इस क्षेत्र के तहत मुख्य हस्तक्षेपों में अनुसंधान तथा नवाचार को बढ़ावा देना, शिक्षा एवं प्रशिक्षण में सुधार करना और नाविकों तथा बंदरगाह क्षमता के विकास हेतु अनुकूल वातावरण का निर्माण करना शामिल है।
    • भारत का लक्ष्य वर्ष 2030 तक अपनी राष्ट्रीय ऊर्जा का 40% नवीकरणीय स्रोतों से प्राप्त करना है और इस क्रम में भारत में सुरक्षित, कुशल एवं टिकाऊ बंदरगाहों हेतु अंतर्राष्ट्रीय समुद्री संगठन के लक्ष्यों के साथ समन्वित होने की आवश्यकता है।
      • MIV 2030 के तहत सुरक्षित, धारणीय एवं हरित बंदरगाहों में अग्रणी के रूप में भारत की स्थिति को बढ़ाने के लिये प्रमुख हस्तक्षेपों की पहचान की गई है, जिसमें नवीकरणीय ऊर्जा का उपयोग बढ़ाना, वायु उत्सर्जन को कम करना, जल उपयोग को अनुकूलित करना, अपशिष्ट प्रबंधन में सुधार करना, शून्य दुर्घटना सुरक्षा कार्यक्रम को लागू करना तथा एक केंद्रीकृत निगरानी प्रणाली की स्थापना करना शामिल है।हस्तक्षेपों में राष्ट्रीय लॉजिस्टिक्स पोर्टल (समुद्री) का निर्माण करना, समुद्री हितधारकों से संबंधित प्रक्रियाओं का डिजिटलीकरण करना, डिजिटल-आधारित स्मार्ट बंदरगाहों का निर्माण करना तथा प्रणालीगत-संचालित दृष्टिकोणों के माध्यम से बंदरगाह के प्रदर्शन की निगरानी करना शामिल है।

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्रश्न. भारत में लाइटहाउस के ऐतिहासिक महत्त्व को बताते हुए समुद्री नौवहन में उसकी भूमिका पर चर्चा कीजिये। लाइटहाउस पर्यटन को बढ़ावा देने से इस विरासत को संरक्षित करने के साथ भारत की अर्थव्यवस्था में किस प्रकार योगदान मिल सकता है?


जलवायु अनुकूल कृषि

प्रिलिम्स के लिये:

जलवायु-अनुकूल कृषि, FAO, जलवायु परिवर्तन, जलवायु-अनुकूल कृषि पर राष्ट्रीय नवाचार (NICRA), भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR), कृषि वानिकी

मेन्स के लिये:

जलवायु-अनुकूल कृषि, जलवायु-अनुकूल कृषि पर राष्ट्रीय नवाचार (NICRA)

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

चर्चा में क्यों?

हाल ही में केंद्र सरकार जलवायु की दृष्टि से संवेदनशील ज़िलों में स्थित 50,000 गाँवों में जलवायु-अनुकूल कृषि (Climate Resilient Agriculture- CRA)) को बढ़ावा देने के लिये एक रूपरेखा का अनावरण करने की योजना बना रही है।

जलवायु अनुकूल कृषि (CRA) क्या है?

  • परिचय:
    • खाद्य एवं कृषि संगठन (Food and Agriculture Organization- FAO)) के अनुसार, जलवायु अनुकूल कृषि को "जलवायु और चरम मौसम में परिवर्तन के प्रभावों का पूर्वानुमान लगाने तथा उसके लिये तैयारी करने, साथ ही उसके अनुकूल होने, उसे आत्मसात करने एवं उससे उबरने की कृषि प्रणाली की क्षमता" के रूप में परिभाषित किया जाता है।
  • कृषि पर जलवायु परिवर्तन का प्रभाव:
    • भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (Indian Council of Agricultural Research- ICAR) की एक नेटवर्क परियोजना, जलवायु-अनुकूल कृषि पर राष्ट्रीय नवाचार (National Innovations on Climate Resilient Agriculture- NICRA) ने कृषि और किसानों पर जलवायु परिवर्तन के प्रभाव का अध्ययन किया।
    • अध्ययनों से संकेत मिलता है कि अनुकूलन उपायों की अनुपस्थिति में, जलवायु परिवर्तन अनुमानों से वर्ष 2020-2039 की अवधि के लिये सिंचित चावल की पैदावार में 3%, वर्षा आधारित चावल की पैदावार में 7 से 28%, गेहूँ की पैदावार में 3.2-5.3%, मक्का की पैदावार में 9-10% की कमी आने की संभावना है और सोयाबीन की पैदावार में 2.5-5.5% की वृद्धि होने की संभावना है।
    • सूखे जैसी चरम घटनाएँ खाद्य और पोषक तत्त्वों की खपत को प्रभावित करती हैं, गरीबी को बढ़ाती हैं, पलायन को बढ़ावा देती हैं, ऋणग्रस्तता बढ़ाती हैं तथा किसानों की जलवायु परिवर्तन के अनुकूल होने की क्षमता को कम करती हैं।
  • CRA पद्धति:
    • कृषि वानिकी: कृषि वानिकी में फसलों के साथ-साथ पौंधों की खेती भी शामिल है, जिससे मृदा स्वास्थ्य में सुधार, मृदा अपरदन में कमी तथा जैवविविधता को बढ़ाने में मदद मिल सकती है।
      • यह पद्धति मृदा में नमी बनाए रखने में मदद करती है तथा किसानों को अनेक लाभ प्रदान करती है।
    • मृदा एवं जल संरक्षण: कंटूर बंडिंग, कृषि तालाब और चेक डैम जैसी तकनीकें मृदा में नमी बनाए रखने, मृदा अपरदन को कम करने तथा भू-जल पुनर्भरण को बढ़ाने में मदद कर सकती हैं।
      • ये पद्धतियाँ किसानों को सूखे और जल की कमी से निपटने में भी मदद कर सकती हैं, जो जलवायु परिवर्तन के कारण लगातार बढ़ती जा रही हैं।
    • सतत् कृषि: फसल विविधीकरण, जैविक कृषि और एकीकृत कीट प्रबंधन जैसी पद्धतियाँ रासायनिक इनपुट के उपयोग को कम करने तथा मृदा स्वास्थ्य में सुधार करने में मदद करती हैं।
    • पशुधन प्रबंधन: पशुधन प्रबंधन पद्धतियाँ, जैसे स्टाल-फीडिंग और मिश्रित फसल, पशुधन प्रणालियों की उत्पादकता तथा लचीलेपन में सुधार कर सकती हैं।
      • इन प्रथाओं से प्राकृतिक संसाधनों जैसे चरागाह भूमि पर दबाव भी कम होता है, जो जलवायु परिवर्तन के कारण दुर्लभ होते जा रहे हैं।

जलवायु अनुकूल कृषि हेतु सरकार द्वारा क्या कदम उठाए गए हैं?

  • सरकार जलवायु-अनुकूल कृषि पर राष्ट्रीय नवाचार (NAPCC) का क्रियान्वयन कर रही है, जो देश में जलवायु कार्रवाई के लिये नीतिगत ढाँचा प्रदान करती है।
  • राष्ट्रीय सतत् कृषि मिशन (National Mission for Sustainable Agriculture- NMSA) NAPCC के अंतर्गत भारतीय कृषि को अधिक लचीला बनाने के लिये चलाए जा रहे मिशनों में से एक है।
    • NMSA को तीन प्रमुख घटकों अर्थात् वर्षा आधारित क्षेत्र विकास (Rainfed Area Development- RAD), खेत जल प्रबंधन (On Farm Water Management- OFWM) और मृदा स्वास्थ्य प्रबंधन (Soil Health Management- SHM) के लिये अनुमोदित किया गया था।
    • इसके बाद चार नए कार्यक्रम शुरू किये गए, जिनके नाम हैं मृदा स्वास्थ्य कार्ड (SHC), परंपरागत कृषि विकास योजना (PKVY), पूर्वोत्तर क्षेत्र में जैविक मूल्य शृंखला विकास मिशन (MOVCDNER) और प्रति बूंद अधिक फसल।
    • इसके अतिरिक्त पुनर्गठित राष्ट्रीय बाँस मिशन (National Bamboo Mission- NBM) अप्रैल 2018 में शुरू किया गया।
  • भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) ने जलवायु अनुकूल कृषि पद्धतियों को बढ़ावा देने के लिये वर्ष 2011 में राष्ट्रीय जलवायु अनुकूल कृषि नवाचार (National Innovations in Climate Resilient Agriculture- NICRA) नामक एक प्रमुख नेटवर्क परियोजना शुरू की।
    • यह एक बहु-क्षेत्रीय, बहु-स्थानीय कार्यक्रम है जिसका मूल उद्देश्य जलवायु परिवर्तन और परिवर्तनीयता को संबोधित करना तथा समग्र देश में हितधारकों की विभिन्न आवश्यकताओं को पूरा करना है।
    • कृषि और जलवायु परिवर्तन से संबंधित कई पहलुओं पर नीतिगत जानकारी प्रदान करने के अतिरिक्त अनुसंधान, प्रदर्शन तथा क्षमता निर्माण इसके तीन प्रमुख घटक हैं।
    • जलवायु अनुकूल कृषि पर ICAR की प्रमुख उपलब्धियों में 1888 जलवायु उपयुक्त फसल किस्मों का विकास, 650 ज़िलों के लिये ज़िला कृषि आकस्मिकता योजनाओं (District Agriculture Contingency Plans- DACP) का विकास आदि शामिल हैं।
  • सरकार ने लघु भू-धारकों सहित किसानों को जलवायु संबंधी जोखिमों से बचाने के लिये वर्ष 2016 के खरीफ सीज़न से उपज आधारित प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना (PMFBY) के सहित पुनर्गठित मौसम आधारित फसल बीमा योजना (RWBCIS) की शुरुआत की है।
    • इस योजना का उद्देश्य अप्रत्याशित प्राकृतिक आपदाओं, मौसम की प्रतिकूल घटनाओं के कारण फसल हानि/क्षति से पीड़ित किसानों को वित्तीय सहायता प्रदान करके कृषि क्षेत्र में सतत् उत्पादन को बढ़ावा देना है ताकि किसानों की आय में स्थिरता लाई जा सके।

जलवायु अनुकूल कृषि से संबंधित प्रमुख चुनौतियाँ क्या हैं?

  • विकासशील देश जलवायु जोखिमों के प्रति अधिक संवेदनशील हैं क्योंकि वे प्रमुख रूप से कृषि पर निर्भर हैं तथा जोखिम प्रबंधन के लिये आवश्यक प्रौद्योगिकियों का अभाव है। उदाहरण हेतु भारत में 65% जनसंख्या कृषि और संबद्ध गतिविधियों में लगी हुई है।
    • जोखिमों को कम करने और अनुकूलन उपायों के अभाव के कारण ये गरीब किसान निम्न आय, उच्च ऋण तथा गरीबी के चक्र से उबर नहीं पाते हैं।
  • वर्तमान में MSP व्यवस्था कुछ फसलों पर केंद्रित है जिसमें अन्य फसलों के लिये पर्याप्त सहायता नहीं दी जाती है जिसके परिणामस्वरूप फसलों का विविधीकरण कम होता है।
  • विशेष रूप से उत्तरी भारत में भू-जल पर अत्यधिक निर्भरता से सतत् कृषि के क्षेत्र में किये गए प्रयासों की प्रभावशीलता कम होती है।
  • कृषि क्षेत्र का देश के ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में लगभग 14% योगदान है और सिंथेटिक नाइट्रोजन उर्वरकों के उपयोग से नाइट्रस ऑक्साइड उत्सर्जन दर में उल्लेखनीय वृद्धि होती है।
  • भारत की कृषि उत्पादकता अन्य प्रमुख उत्पादकों की तुलना में अपेक्षाकृत कम है, जहाँ प्रति हेक्टेयर चावल की औसत उपज लगभग 2.5 टन है जबकि चीन में प्रति हेक्टेयर औसतन लगभग 6.5 टन है।
  • जलवायु परिवर्तन नीति का सबसे चुनौतीपूर्ण राजनीतिक पहलू ग्राम पंचायतों या स्थानीय स्वशासी निकायों द्वारा अपर्याप्त मान्यता है, जिसके कारण ज़मीनी स्तर पर नीतिगत पहल का अभाव है।

आगे की राह 

  • विकासशील देशों पर जलवायु परिवर्तन के प्रतिकूल प्रभाव को तकनीकी उन्नति, मौसम विज्ञान और डेटा विज्ञान जैसे एकीकृत दृष्टिकोणों के माध्यम से कम किया जा सकता है।
    • जलवायु और मौसम संबंधी घटनाओं से किसानों की रक्षा के लिये राष्ट्रीय जलवायु अनुकूल कृषि नवाचार (NICRA) योजना को सभी जोखिम-संवेदनशील गाँवों में लागू किया जाना चाहिये।
  • फसलों के विविधीकरण की आवश्यकता है जो कृषि पारिस्थितिकी तंत्र को जलवायु परिवर्तन के अनुकूल बनाने में सक्षम बनाएगी।
    • फसल विविधता खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने, मृदा की उर्वरता बढ़ाने, कीटों को नियंत्रित करने और उपज स्थिरता लाने में भी मदद करती है।
  • ड्रिप सिंचाई के दायरे में न केवल उच्च मूल्य वाली बागवानी फसलों अपितु अन्य फसलों को भी शामिल किया जाना चाहिये।
  •  सरकार को भू-जल निष्कर्षण के संदर्भ में बिजली सब्सिडी पर सावधानीपूर्वक पुनर्विचार करना चाहिये, क्योंकि भू-जल स्तर में कमी आने में इसकी प्रमुख भूमिका होती है। 
    • सिंचाई कार्यक्रम को अनुकूलित करने, जल को संरक्षित करने तथा पर्यावरणीय प्रभाव को कम करने वाले उपकरणों का उपयोग किया जाना चाहिये।
  • चूँकि जैविक खेती में ग्रीनहाउस गैसों को कम करने की क्षमता होती है, इसलिये संबंधित मंत्रालय द्वारा जलवायु परिवर्तन के अनुकूल जैविक खेती को बढ़ावा देना चाहिये।
    • जैविक खेती में नाइट्रोजन उर्वरक का उपयोग प्रतिबंधित होने से नाइट्रस ऑक्साइड का उत्सर्जन कम होता है।
  • कृषि विज्ञान केंद्रों (KVK) के बुनियादी ढाँचे के साथ तकनीकी सुविधाओं में सुधार की आवश्यकता है। उन्हें स्थानीय भाषाओं में जानकारी प्रदान करने के लिये तकनीकी नवाचारों का उपयोग करना चाहिये। ये परिवर्तन मौजूदा KVK को नया रूप देने के साथ उन्हें जलवायु संबंधी चुनौतियों का सामना करने के लिये सुसज्जित करेंगे।
  • जलवायु-अनुकूल फसल किस्मों को अपनाने और उनका प्रसार करने के क्रम में सार्वजनिक निवेश बढ़ाने की आवश्यकता है। इन फसलों में तापमान तथा वर्षा के उतार-चढ़ाव के प्रति सहनशीलता अधिक होने के साथ जल और पोषक तत्त्वों का अनुकूल उपयोग सुनिश्चित होगा।
    • कृषि नीति के तहत फसल उत्पादकता में सुधार को प्राथमिकता देने के साथ जलवायु परिवर्तन से उत्पन्न जोखिमों से निपटने हेतु सुरक्षा संजाल तैयार किया जाना चाहिये।
  • जलवायु परिवर्तन के क्षेत्र में प्रशासन द्वारा किये गए प्रयासों से तब वांछित परिणाम नहीं मिल सकते हैं जब तक कि स्थानीय शासन को कृषि नीति-निर्माण में शामिल नहीं किया जाता है।
    • चूँकि पंचायतें कई सरकारी योजनाओं से धन प्राप्त कर सकती हैं, इसलिये इस संदर्भ में जागरूकता लाभप्रद होगी।
    • जलवायु के प्रति सर्वोत्तम अनुकूलनीय पद्धतियों को अपनाने वाले गाँवों हेतु राष्ट्रीय या क्षेत्रीय स्तर पर रैंकिंग प्रणाली शुरू करने से ऐसी पद्धतियों को अपनाने को प्रोत्साहन मिल सकता है।

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्रश्न: जलवायु-अनुकूल कृषि पद्धतियों को अपनाने से संबंधित प्रमुख चुनौतियों को बताते हुए इन चुनौतियों के समाधान हेतु उपाय बताइए?

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. जलवायु-अनुकूल कृषि (क्लाइमेट-स्मार्ट एग्रीकल्चर) के लिये भारत की तैयारी के संदर्भ में, निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये:

  1. भारत में 'जलवायु-स्मार्ट ग्राम (क्लाइमेट-स्मार्ट विलेज)' दृष्टिकोण, अंतर्राष्ट्रीय अनुसंधान कार्यक्रम-जलवायु परिवर्तन, कृषि एवं खाद्य सुरक्षा (सी० सी० ए० एफ० एस०) द्वारा संचालित परियोजना का एक भाग है।
  2. सी० सी० ए० एफ० एस० परियोजना, अंतर्राष्ट्रीय कृषि अनुसंधान हेतु परामर्शदात्री समूह (सी० जी० आइ० ए० आर०) के अधीन संचालित किया जाता है, जिसका मुख्यालय फ्राँस में है।
  3. भारत में स्थित अंतर्राष्ट्रीय अर्धशुष्क उष्णकटिबंधीय फसल अनुसंधान संस्थान (आइ० सी० आर० आइ० एस० ए० टी०), सी० जी० आइ० ए० आर० के अनुसंधान केंद्रों में से एक है।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-से सही हैं?

(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 1 और 3
(d) 1, 2 और 3 

उत्तर: (d)


Q. 'जलवायु-अनुकूली कृषि के लिये वैश्विक सहबंध' (ग्लोबल एलायन्स फॉर क्लाइमेट-स्मार्ट एग्रीकल्चर)

(GACSA) के संदर्भ में, निम्नलिखित में से कौन-सा/से कथन सही है/हैं?

  1. GACSA, वर्ष 2015 में पेरिस में हुए जलवायु शिखर सम्मेलन का एक परिणाम है।
  2. GACSA में सदस्यता से कोई बंधनकारी दायित्व उत्पन्न नहीं होता।
  3. GACSA के निर्माण में भारत की साधक भूमिका थी।

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1 और 3
(b) केवल 2
(c) केवल 2 और 3
(d) 1,2 और 3

उत्तर: (b)


मेन्स:

प्रश्न: एकीकृत कृषि प्रणाली (IFS) कृषि उत्पादन को बनाए रखने में किस सीमा तक सहायक है? (2019)