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डेली न्यूज़

  • 15 Jul, 2021
  • 66 min read
शासन व्यवस्था

संकल्प से सिद्धि: मिशन वन धन

प्रिलिम्स के लिये:

ट्राईफेड

मेन्स के लिये:

आदिवासियों के सशक्तीकरण के लिये भारत सरकार की पहलें

चर्चा में क्यों?

हाल ही में जनजातीय मामलों के मंत्री ने भारतीय जनजातीय सहकारी विपणन विकास परिसंघ- ट्राइफेड (TRIFED) द्वारा जारी 'संकल्प से सिद्धि-मिशन वन धन' (Sankalp Se Siddhi-Mission Van Dhan) के तहत विभिन्न पहलों की समीक्षा की।

ट्राइफेड (TRIFED):

  • TRIFED का गठन वर्ष 1987 में जनजातीय कार्य मंत्रालय के तत्त्वावधान में राष्ट्रीय नोडल एजेंसी के रूप में किया गया।
  • इसका उद्देश्य जनजातीय लोगों का सामाजिक-आर्थिक विकास, आर्थिक कल्याण को बढ़ावा देना, ज्ञान, उपकरण और सूचना के साथ जनजातीय लोगों का सशक्तीकरण एवं क्षमता निर्माण करना है। यह मुख्य रूप से दो कार्य करता है पहला- लघु वन उपज ( Minor Forest Produce (MFP) विकास, दूसरा- खुदरा विपणन एवं विकास (Retail Marketing and Development)।

प्रमुख बिंदु:

'संकल्प से सिद्धि' के संदर्भ में:

  • 'संकल्प से सिद्धि' पहल, जिसे 'मिशन वन धन' के रूप में भी जाना जाता है, को केंद्र सरकार द्वारा भारत की आदिवासी आबादी के लिये एक स्थायी आजीविका सुनिश्चित  करने के प्रधानमंत्री के उद्देश्य के अनुरूप वर्ष 2021 में प्रस्तुत किया गया था।
  • इस मिशन के माध्यम से TRIFED का उद्देश्य विभिन्न मंत्रालयों और विभागों की योजनाओं के अभिसरण के माध्यम से अपने संचालन का विस्तार करना तथा विभिन्न आदिवासी विकास कार्यक्रमों को मिशन मोड में लॉन्च करना है।
  • इस मिशन के माध्यम से कई वन धन विकास केंद्रों (VDVKs), हाट, बाज़ारों, मिनी TRIFOOD इकाइयों, सामान्य सुविधा केंद्रों, TRIFOOD पार्कों, पारंपरिक उद्योगों के उत्थान के लिये फंड की योजना (Scheme of Fund for Regeneration of Traditional Industries- SFURTI), समूहों, ट्राइब्स इंडिया रिटेल स्टोर, ई-कॉमर्स की स्थापना, ट्राइफूड एवं जनजातियों के लिये मंच और भारतीय ब्रांडों को लक्षित किया जा रहा है।
  • TRIFED आदिवासियों के सशक्तीकरण के लिये कई उल्लेखनीय कार्यक्रमों को लागू कर रहा है।
    • विगत दो वर्षों में न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) के माध्यम से लघु वनोपज (MFP) के विपणन के लिये तंत्र और MFP हेतु मूल्य शृंखला के विकास ने जनजातीय पारिस्थितिकी तंत्र को बड़े पैमाने पर प्रभावित किया है।
    • ऐसे कठिन परिस्थिति के दौरान ट्राइफेड (TRIFED) ने भी आदिवासी अर्थव्यवस्था में सीधे तौर पर 3000 करोड़ रुपए की सरकारी राहत राशि के रूप में सहायता प्रदान की। 
    • वन धन आदिवासी स्टार्टअप्स भी इसी योजना का एक घटक है, जो आदिवासी संग्रहकर्त्ताओं तथा  वनवासियों एवं घर में रहने वाले आदिवासी कारीगरों के लिये रोज़गार सृजन का एक स्रोत बनकर उभरा है।

ट्राइफेड निम्नलिखित पहलों से जुड़ा है:

  • वन धन विकास योजना:
    • वन धन योजना को 'लघु वनोपज (MFP) हेतु न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) के एक घटक रूप में वर्ष 2018 में शुरू किया गया था।
    • यह जनजातीय संग्रहकर्त्ताओं हेतु आजीविका सृजन को लक्षित करने वाली तथा उन्हें उद्यमियों में स्थानांतरित करने के लिये एक पहल है।
    • इसके तहत मुख्य रूप से वनाच्छादित जनजातीय ज़िलों में वन धन विकास केंद्रों (VDVK) के स्वामित्व वाले जनजातीय समुदाय को स्थापित करना है।
    • वन धन विकास केंद्रों का लक्ष्‍य आदिवासियों के  कौशल उन्‍नयन और उन्हें क्षमता निर्माण प्रशिक्षण प्रदान करना तथा प्राथमिक प्रसंस्करण एवं मूल्‍य संवर्द्धन सुविधा स्‍थापित करना है।
  • लघु वनोत्पाद हेतु न्यूनतम समर्थन मूल्य:
    • ‘न्यूनतम समर्थन मूल्य के माध्यम से लघु वनोत्पाद के विपणन हेतु तंत्र एवं लघु वनोत्पाद के लिये मूल्य शृंखला विकास’ योजना, वन उपज संग्रहकर्त्ताओं हेतु न्यूनतम समर्थन मूल्य की व्यवस्था करती है। 
    • यह योजना लघु वनोत्पाद संग्रहकर्त्ताओं, जो कि मुख्य तौर पर अनुसूचित जनजाति के सदस्य हैं, के लिये  सामाजिक सुरक्षा के उपाय हेतु कार्य करती है।
    • इस योजना के तहत संग्रहण, प्राथमिक प्रसंस्करण, भंडारण, पैकेजिंग, परिवहन आदि जैसे संग्रहकर्त्ताओं के प्रयासों हेतु उचित मौद्रिक रिटर्न सुनिश्चित करने के उद्देश्य से एक प्रणाली का भी गठन किया गया है।
    • लघु वनोत्पाद में पौधीय मूल के सभी गैर-काष्ठ उत्पाद जैसे- बाँस, बेंत, चारा, पत्तियाँ, गम, वेक्स, डाई, रेज़िन और कई प्रकार के खाद्य जैसे- मेवे, जंगली फल, शहद, लाख, रेशम आदि शामिल हैं।
  • टेक फॉर ट्राइबल्स:
    • टेक फॉर ट्राइबल्स अर्थात् आदिवासियों हेतु तकनीकी कार्यक्रम का उद्देश्य प्रधानमंत्री वन धन योजना (Pradhan Mantri Van Dhan Yojana- PMVDY) के तहत नामांकित वनोपज संग्रहकर्त्ताओं के क्षमता निर्माण एवं उद्यमिता कौशल संवर्द्धन द्वारा 5 करोड़ जनजातीय उद्यमियों को लाभ पहुँचाना है।
    • यह कार्यक्रम गुणवत्ता प्रमाणपत्रों और विपणन योग्य उत्पादों के साथ व्यवसाय संचालन को सक्षम बनाकर जनजातीय उद्यमियों की उच्च सफलता दर सुनिश्चित करेगा।
  • ट्राइफूड योजना (TRIFOOD Scheme):
    • इस योजना को अगस्त 2020 में लॉन्च किया गया था और यह लघु वनोत्पाद के मूल्यवर्द्धन को बढ़ावा देती है।
    • ट्राइफूड पार्क, लघु वनोपज के साथ-साथ उस क्षेत्र के जनजातीय लोगों द्वारा एकत्र किये गए खाद्यान्न से भी प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थ का उत्पादन करेंगे।
  • गाँव एवं डिजिटल कनेक्ट पहल:  
    • इस पहल की शुरुआत यह सुनिश्चित करने के लिये की गई थी कि मौजूदा योजनाएँ और पहल आदिवासियों तक पहुँचती हैं अथवा नहीं। इसके तहत ट्राइफेड के क्षेत्रीय अधिकारियों ने देश भर में उल्लेखनीय जनजातीय आबादी वाले चिह्नित गाँवों का दौरा किया तथा विभिन्न कार्यक्रमों एवं पहलों के कार्यान्वयन का पर्यवेक्षण किया।

स्रोत: पी.आई.बी.


शासन व्यवस्था

नई सौर परियोजनाएँ: एनटीपीसी

प्रिलिम्स के लिये:

जलवायु परिवर्तन पर राष्ट्रीय कार्ययोजना, राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान, नेशनल थर्मल पावर कॉरपोरेशन लिमिटेड, राष्ट्रीय सौर मिशन, अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन

मेन्स के लिये:

नई सौर परियोजनाएँ तथा उनका महत्त्व

चर्चा में क्यों?

हाल ही में ‘नेशनल थर्मल पावर कॉरपोरेशन लिमिटेड’ (NTPC) रिन्यूएबल एनर्जी लिमिटेड (REL) ने देश का  पहला  ‘ग्रीन हाइड्रोजन मोबिलिटी प्रोजेक्ट’ स्थापित करने हेतु केंद्रशासित प्रदेश लद्दाख के साथ एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किये।

  • NTPC REL गुजरात के कच्छ के रण में एक सौर पार्क भी स्थापित करेगी जहाँ से यह अल्ट्रा-मेगा अक्षय ऊर्जा पावर पार्क (UMREPP) योजना के तहत व्यावसायिक स्तर पर हरित हाइड्रोजन भी उत्पन्न करेगी।
    • नवीकरणीय स्रोतों से उत्पादित हाइड्रोजन को हरित हाइड्रोजन कहा जाता है।

अल्ट्रा-मेगा अक्षय ऊर्जा पावर पार्क (UMREPP) योजना:

  • यह मौजूदा सौर पार्क योजना के तहत अल्ट्रा मेगा रिन्यूएबल एनर्जी पावर पार्क (UMREPPs) विकसित करने की एक योजना है।
    • यह योजना वर्ष 2014 में नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय (MNRE) द्वारा शुरू की गई थी।
    • सौर पार्क योजना भी देश के विभिन्न राज्यों में सौर पार्क स्थापित करने के लिये MNRE की एक योजना है। यह सौर पार्क स्थापित करने हेतु भारत सरकार द्वारा वित्तीय सहायता प्रदान करने का प्रस्ताव करती है।
  • UMREPP का उद्देश्य परियोजना विकासकर्त्ता को अग्रिम भूमि उपलब्ध कराना तथा अक्षय ऊर्जा आधारित सौर/पवन/हाइब्रिड सहित भंडारण प्रणालियों के साथ विद्युत पार्क विकसित करने के लिये पारेषण बुनियादी ढाँचे की सुविधा प्रदान करना है।

प्रमुख बिंदु:

ग्रीन हाइड्रोजन मोबिलिटी प्रोजेक्ट:

  • NTPC REL ने इस क्षेत्र में शुरुआत के लिये 5 हाइड्रोजन बसें चलाने की योजना बनाई है और कंपनी लेह में एक सौर संयंत्र तथा एक हरित हाइड्रोजन उत्पादन इकाई स्थापित करेगी।
  • यह लेह को हरित हाइड्रोजन आधारित गतिशीलता परियोजना लागू करने वाला देश का पहला शहर बना देगा। यह सही मायने में ज़ीरो एमिशन मोबिलिटी होगी।
  • यह प्रधानमंत्री के 'कार्बन न्यूट्रल' लद्दाख के दृष्टिकोण के अनुरूप भी है।
  • यह लद्दाख को अक्षय स्रोतों और हरित हाइड्रोजन पर आधारित कार्बन मुक्त अर्थव्यवस्था विकसित करने में मदद करेगा।

भारत का सबसे बड़ा सोलर पार्क:

  • NTPC REL गुजरात के कच्छ के रण में 4.75 गीगावाट अक्षय ऊर्जा पार्क स्थापित करेगा। यह भारत का सबसे बड़ा सोलर पार्क होगा, जिसका निर्माण देश की सबसे बड़ी विद्युत उत्पादक कंपनी करेगी।
    • गुजरात में कच्छ क्षेत्र, जो देश का सबसे बड़ा नमक का रेगिस्तान है और यहाँ भारत के दो सबसे बड़े कोयले से चलने वाले बिजली संयंत्र हैं, अब अपनी उपलब्धियों में एक और नाम जोड़ देगा।

एनटीपीसी की अन्य प्रमुख परियोजनाएँ  :

  • हाल ही में एनटीपीसी ने आंध्र प्रदेश के सिम्हाद्री ताप विद्युत संयंत्र के जलाशय पर भारत का सबसे बड़ा 10 मेगावाट का फ्लोटिंग सोलर भी चालू किया है। इसके अतिरिक्त 15 मेगावाट की क्षमता वाले सयंत्र को अगस्त, 2021 तक चालू किया जाएगा।
  • इसके अलावा तेलंगाना स्थित रामागुंडम ताप विद्युत संयंत्र के जलाशय पर 100 मेगावाट की फ्लोटिंग सोलर परियोजना कार्यान्वयन के अग्रिम चरण में है।

अन्य सौर ऊर्जा पहलें:

राष्ट्रीय ताप विद्युत निगम लिमिटेड (NTPC)

  • एनटीपीसी लिमिटेड विद्युत मंत्रालय के तहत एक केंद्रीय सार्वजनिक क्षेत्र का उपक्रम (Public Sector Undertaking- PSU) है।
    • एनटीपीसी आरईएल (NTPC REL), एनटीपीसी (NTPC) की 100 % हिस्सेदारी वाली कंपनी है।
  • भारत की सबसे बड़ी विद्युत कंपनी, एनटीपीसी की स्‍थापना वर्ष 1975 में भारत के विद्युत विकास में तेज़ी लाने के लिये की गई थी।
  • इसका उद्देश्य नवाचार द्वारा संचालित किफायती, कुशल और पर्यावरण के अनुकूल तरीके से विश्वसनीय बिजली तथा संबंधित समाधान प्रदान करना है।
  • मई 2010 में इसे महारत्न कंपनी (Maharatna company) घोषित किया गया।
  • यह नई दिल्ली में स्थित है।

स्रोत: पी.आई.बी.


अंतर्राष्ट्रीय संबंध

सेंट क्वीन केटेवन के अवशेष: जॉर्जिया

प्रिलिम्स के लिये

सेंट क्वीन केटेवन, सेंट ऑगस्टीन चर्च

मेन्स के लिये

भारत-जॉर्जिया संबंध

चर्चा में क्यों?

हाल ही में भारत ने 17वीं सदी की सेंट क्वीन केटेवन के पवित्र अवशेषों का एक हिस्सा जॉर्जिया की सरकार को उपहार में दिया है।

  • ये अवशेष भारत के विदेश मंत्री की जॉर्जिया की पहली यात्रा के अवसर पर उपहार में दिये गए हैं।
  • जॉर्जिया रणनीतिक रूप से एक महत्त्वपूर्ण देश है, जो पूर्वी यूरोप और पश्चिमी एशिया के इंटरसेक्शन पर स्थित है।

प्रमुख बिंदु

सेंट क्वीन केटेवन के विषय में

  • रानी केटेवन पूर्वी जॉर्जिया के एक राज्य काखेती से थीं।
  • ऐसा माना जाता है कि वर्ष 1624 में शिराज (आधुनिक ईरान) में इस्लाम में परिवर्तित न होने के कारण उनकी हत्या कर दी गई थी।
  • उनके अवशेषों के कुछ हिस्सों को 1627 में ऑगस्टीन भिक्षुओं द्वारा गोवा लाया गया था।
  • क्वीन केटेवन के यही अवशेष भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण (ASI) द्वारा वर्ष 2005 में गोवा में सेंट ऑगस्टीन चर्च के खंडहर में खोजे गए थे।
  • जॉर्जिया के लोगों की कई ऐतिहासिक, धार्मिक और आध्यात्मिक भावनाएँ सेंट क्वीन केटेवन से जुड़ी हुई हैं।

सेंट ऑगस्टीन चर्च

  • सेंट ऑगस्टीन चर्च गोवा में स्थित एक खंडहर चर्च परिसर है।
  • इस चर्च का निर्माण कार्य वर्ष 1602 में ऑगस्टीन भिक्षुओं द्वारा पूरा किया गया था, जो वर्ष 1587 में गोवा पहुँचे थे।
  • वर्ष 1835 में गोवा की पुर्तगाली सरकार द्वारा अपनाई गई नवीन दमनकारी नीतियों के तहत गोवा में कई धार्मिक पवित्र स्थानों में धार्मिक गतिविधियों को बंद कर दिया गया और इसका प्रभाव सेंट ऑगस्टीन चर्च पर भी पड़ा।
  • इसके परिणामस्वरूप यह परिसर वह वर्ष 1842 में खंडहर में परिवर्तित हो गया।
  • यह गोवा के चर्चों और मठों का एक हिस्सा है, जो कि यूनेस्को का विश्व धरोहर स्थल है।

भारत-जॉर्जिया संबंध:

  • ऐतिहासिक पृष्ठभूमि: ऐसा माना जाता है कि भारत के पंचतंत्र की दंतकथाओं ने जॉर्जियाई लोक कथाओं को प्रभावित किया है।
    • मध्ययुगीन काल में मिशनरियों, यात्रियों और व्यापारियों द्वारा उन संपर्कों को और मज़बूत किया गया था।
  • हाल की यात्रा: भारत, जॉर्जिया में और अधिक निवेश करने को तैयार था, जो ईज ऑफ डूइंग सूचकांक में उच्च स्थान पर है।
    • जॉर्जिया ने यूरोपीय संघ की सदस्यता के लिये भी आवेदन किया है, जिसे अगर स्वीकार कर लिया जाता है तो यह भारत को यूरोप के लिये एक और प्रवेश द्वार तथा काकेशस में कदम जमाने का अवसर देगा।
  • रूस और जॉर्जिया के बीच शत्रुतापूर्ण संबंधों को देखते हुए इस यात्रा का राजनीतिक महत्त्व भी है।
    • भारत ने रूस को स्पष्ट संकेत दे दिया है कि वह रूस के विदेश मंत्री की हाल की पाकिस्तान यात्रा से खुश नहीं है।

काकेशस (Caucasus):

  • यह पर्वत प्रणाली और क्षेत्र, काला सागर (पश्चिम) एवं कैस्पियन सागर (पूर्व) के बीच स्थित है तथा रूस, जॉर्जिया, अज़रबैजान एवं आर्मेनिया के कब्ज़े में है।

Georgia

स्रोत: द हिंदू


भारतीय राजनीति

दल-बदल विरोधी कानून में परिवर्तन की आवश्यकता

प्रिलिम्स के लिये

दल-बदल विरोधी कानून, गैर-सरकारी विधेयक, दसवीं अनुसूची

मेन्स के लिये 

दल-बदल विरोधी कानून तथा हाल ही में प्रस्तावित परिवर्तन, गैर-सरकारी सदस्य

चर्चा में क्यों?

गोवा विधानसभा में विपक्ष के नेता दल-बदल विरोधी कानून (Anti-Defection Law) से जुड़े विभिन्न मुद्दों के समाधान हेतु केंद्र सरकार को सिफारिश करने के लिये एक गैर-सरकारी सदस्य के प्रस्ताव को पेश करने के लिये तैयार हैं।

प्रमुख बिंदु 

दल-बदल विरोधी कानून के बारे में :

  • दसवीं अनुसूची ( जिसे ‘दल-बदल विरोधी कानून’ के नाम से जाना जाता था) को  वर्ष 1985 में 52वें संविधान संशोधन के माध्यम से पारित किया गया तथा यह किसी अन्य राजनीतिक दल में दल-बदल के आधार पर निर्वाचित सदस्यों की अयोग्यता का प्रावधान निर्धारित करती है।
  • दल-बदल विरोधी कानून के तहत अयोग्यता के आधार इस प्रकार हैं: 
    • यदि एक निर्वाचित सदस्य स्वेच्छा से किसी राजनीतिक दल की सदस्यता को छोड़ देता है। 
    • यदि वह पूर्व अनुमति प्राप्त किये बिना अपने राजनीतिक दल या ऐसा करने के लिये अधिकृत किसी व्यक्ति द्वारा जारी किसी भी निर्देश के विपरीत सदन में मतदान करता है या मतदान से दूर रहता है।
      • उसकी अयोग्यता के लिये पूर्व शर्त के रूप में ऐसी घटना के 15 दिनों के भीतर उसकी पार्टी या अधिकृत व्यक्ति द्वारा मतदान से मना नहीं किया जाना चाहिये।
    • यदि कोई निर्दलीय निर्वाचित सदस्य किसी राजनीतिक दल में शामिल हो जाता है।
    • यदि छह महीने की समाप्ति के बाद कोई मनोनीत सदस्य किसी राजनीतिक दल में शामिल हो जाता है।
  • 1985 के अधिनियम के अनुसार, एक राजनीतिक दल के निर्वाचित सदस्यों के एक-तिहाई सदस्यों द्वारा 'दलबदल' को 'विलय' माना जाता था।
    • लेकिन 91वें संविधान संशोधन अधिनियम, 2003 ने इसे बदल दिया और दल-बदल विरोधी कानून में एक राजनीतिक दल को किसी अन्य राजनीतिक दल में या उसके साथ विलय करने की अनुमति दी गई है, बशर्ते कि उसके कम-से-कम दो-तिहाई सदस्य विलय के पक्ष में हों।
  • इस प्रकार अयोग्य सदस्य उसी सदन की एक सीट के लिये किसी भी राजनीतिक दल के लिये चुनाव लड़ सकते हैं।
  • दल-बदल के आधार पर अयोग्यता संबंधी प्रश्नों पर निर्णय के लिये उसे सदन के सभापति या अध्यक्ष के पास भेजा जाता है, जो कि 'न्यायिक समीक्षा' के अधीन होता है।

दल-बदल विरोधी कानून से संबंधित मुद्दे:

  • प्रतिनिधि लोकतंत्र को कमज़ोर करना: दलबदल विरोधी कानून के लागू होने के पश्चात् सांसद या विधायक को पार्टी के निर्देशों का पूर्ण रूप से पालन करना होता है।
    • यह उन्हें किसी भी मुद्दे पर अपने निर्णय के अनुरूप वोट देने की स्वतंत्रता नहीं देता है जिससे प्रतिनिधि लोकतंत्र कमज़ोर होता है।
  • विधायिका को कमज़ोर करना: एक निर्वाचित विधायक या सांसद की मुख्य भूमिका नीति, विधेयक/बिल और बजट की जाँच करना और निर्णय लेना है।
    • इसके विपरीत सांसद किसी भी वोट का समर्थन या विरोध करने के लिये पार्टी के समर्थन में सिर्फ एक संख्या बनकर रह जाता है।
  • संसदीय लोकतंत्र को कमज़ोर करना: संसदीय रूप में सरकार प्रश्नों और प्रस्तावों के माध्यम से प्रतिदिन जवाबदेह होती है और उसे किसी भी समय लोकसभा के अधिकांश सदस्यों का समर्थन खो देने पर हटाया जा सकता है।
    • दल-बदल विरोधी कानून के चलते विधायकों को मुख्य रूप से राजनीतिक दल के प्रति जवाबदेह बनाकर जवाबदेही की इस शृंखला को तोड़ा गया है। 
    • इस प्रकार दल-बदल विरोधी कानून संसदीय लोकतंत्र की अवधारणा के खिलाफ काम कर रहा है।
  • अध्यक्ष की विवादास्पद भूमिका: कई उदाहरणों में अध्यक्ष (आमतौर पर सत्ताधारी दल से) ने अयोग्यता पर निर्णय लेने में देरी की है।
    • सर्वोच्च न्यायालय ने इस फैसले को रोकने की कोशिश की है कि अध्यक्ष (स्पीकर) को तीन महीने में मामले का फैसला करना है, लेकिन यह स्पष्ट नहीं है कि अगर स्पीकर ऐसा नहीं करता है तो क्या होगा।
  • विभाजन की कोई मान्यता नहीं: 91वें संवैधानिक संशोधन 2004 के कारण दल-बदल विरोधी कानून ने दल-बदल विरोधी शासन को एक अपवाद बनाया।
  • इसके अनुसार यदि किसी दल के दो-तिहाई सदस्य 'विलय' के लिये सहमत हों तो इसे दल-बदल नहीं माना जाएगा।
    • हालाँकि यह संशोधन एक विधायक दल में 'विभाजन' को मान्यता नहीं देता है बल्कि इसके बजाय 'विलय' को मान्यता देता है।

प्रस्तावित परिवर्तन:

  • एक विकल्प यह है कि ऐसे मामलों को सीधे उच्च न्यायालय या सर्वोच्च न्यायालय को एक स्पष्ट निर्णय हेतु भेजा जाए, जो कि 60 दिनों की अवधि के भीतर दिया जाना चाहिये।
  • दूसरा विकल्प यह है कि अगर किसी पार्टी या पार्टी नेतृत्व के संबंध में कोई मतभेद है, तो उसे इस्तीफा देने और लोगों को नया जनादेश का अधिकार हो।
  • इन परिवर्तनों में एक निर्वाचित प्रतिनिधि के लिये लोगों के प्रति जवाबदेह और ज़िम्मेदार होने की आवश्यकता की परिकल्पना की गई है।

आगे की राह:

  • अंतर-पार्टी लोकतंत्र को मज़बूत करना: यद्यपि सरकार की स्थिरता एक मुद्दा है जो कि लोगों के अपने दलों से अलग होने के कारण है, इसके लिये पार्टियों के आंतरिक लोकतंत्र को मज़बूत करना होगा।
  • राजनीतिक दलों को विनियमित करना: भारत में राजनीतिक दलों को नियंत्रित करने वाले कानून की प्रबल आवश्यकता है। इस तरह के कानून में राजनीतिक दलों को आरटीआई के तहत लाया जाना चाहिये, साथ ही पार्टी के भीतर लोकतंत्र को मज़बूत करना चाहिये।
  • निर्णायक शक्तियों से अध्यक्ष को राहत देना: सदन के अध्यक्ष का दल-बदल के मामले में अंतिम प्राधिकारी होना शक्तियों के पृथक्करण के सिद्धांत को प्रभावित करता है।
    • इस संदर्भ में इस शक्ति को उच्च न्यायपालिका या चुनाव आयोग (दूसरी एआरसी रिपोर्ट द्वारा अनुशंसित) को हस्तांतरित करने से दल-बदल के खतरे को रोका जा सकता है।
  • दल-बदल विरोधी कानून के दायरे को सीमित करना: प्रतिनिधि लोकतंत्र को दल-बदल विरोधी कानून के हानिकारक प्रभाव से बचाने के लिये कानून का दायरा केवल उन कानूनों तक सीमित किया जा सकता है, जहाँ सरकार की हार से विश्वास की हानि हो सकती है।

स्रोत- इंडियन एक्सप्रेस


भारतीय अर्थव्यवस्था

मुद्रास्फीति डेटा: जून 2021

प्रिलिम्स के लिये

थोक मूल्य सूचकांक, उपभोक्ता मूल्य सूचकांक, मुद्रास्फीति, कोर मुद्रास्फीति

मेन्स के लिये

थोक मूल्य- मुद्रास्फीति में बढ़ोतरी के कारण और उसके प्रभाव

चर्चा में क्यों?

हाल ही में ‘उद्योग एवं आंतरिक व्यापार संवर्द्धन विभाग’ के तहत आर्थिक सलाहकार कार्यालय ने जून, 2021 के लिये ‘थोक मूल्य सूचकांक’ (WPI) जारी किया है।

प्रमुख बिंदु

थोक मूल्य- मुद्रास्फीति:

  • थोक कीमतों में मुद्रास्फीति जून 2021 में भी उच्च स्तर (12.07 प्रतिशत) पर रही, जो कि मई 2021 में अपने रिकॉर्ड स्तर 12.94 पर पहुँच गई थी।

कारण

  • जून 2021 में मुद्रास्फीति की उच्च दर मुख्य रूप से ‘बेस इफेक्ट’ के निम्न रहने के कारण रही।
    • बेस इफेक्ट: इसका आशय दो डेटा बिंदुओं के बीच तुलना के लिये अलग-अलग संदर्भ बिंदु चुनने के कारण तुलना के परिणाम पर पड़ने वाले प्रभाव से है।
  • खनिज तेल जैसे- पेट्रोल, डीज़ल, नेफ्था, फर्नेस ऑयल आदि की कीमतों में वृद्धि।
  • बीते वर्ष के इसी माह की तुलना में विनिर्मित उत्पादों जैसे- धातु, खाद्य उत्पाद, रासायनिक उत्पाद आदि की लागत में वृद्धि।
    • उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (CPI) पर आधारित खुदरा मुद्रास्फीति जून 2021 में 6.26 प्रतिशत पर थी।

प्रभाव

  • थोक मूल्य-मुद्रास्फीति का खुदरा मूल्य मुद्रास्फीति (CPI मुद्रास्फीति) के स्तर पर भी प्रभाव पड़ेगा, जो कि अंततः मौद्रिक नीति को प्रभावित करेगा। 
    • मौद्रिक नीति केंद्रीय बैंक द्वारा निर्धारित व्यापक आर्थिक नीति होती है। इसमें मुद्रा आपूर्ति और ब्याज दर का प्रबंधन शामिल होता है तथा इसका उपयोग देश की सरकार द्वारा मुद्रास्फीति, खपत, विकास और तरलता जैसे व्यापक आर्थिक उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिये किया जाता है।

थोक मूल्य सूचकांक (WPI)

  • यह थोक व्यवसायों द्वारा अन्य व्यवसायों को बेचे जाने वाले सामानों की कीमतों में बदलाव को मापता है।
  • इसे वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय के आर्थिक सलाहकार कार्यालय द्वारा प्रकाशित किया जाता है। 
  • यह भारत में सबसे अधिक इस्तेमाल किया जाने वाला मुद्रास्फीति संकेतक (Inflation Indicator) है। 
  • इस सूचकांक की सबसे प्रमुख समस्या यह है कि आम जनता थोक मूल्य पर उत्पाद नहीं खरीदती है।
  • वर्ष 2017 में अखिल भारतीय WPI के लिये आधार वर्ष को 2004-05 से संशोधित कर 2011-12 कर दिया गया था।

उपभोक्ता मूल्य सूचकांक

  • यह खुदरा खरीदार के दृष्टिकोण से मूल्य में हुए परिवर्तन को मापता है तथा इसे राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (National Statistical Office- NSO) द्वारा जारी किया जाता है।
  • यह उन वस्तुओं और सेवाओं जैसे- भोजन, चिकित्सा देखभाल, शिक्षा, इलेक्ट्रॉनिक्स आदि की कीमत में अंतर की गणना करता है, जिसे भारतीय उपभोक्ता उपयोग के लिये खरीदते हैं।
  • इसके कई उप-समूह हैं जिनमें खाद्य और पेय पदार्थ, ईंधन तथा प्रकाश, आवास एवं कपड़े, बिस्तर व जूते शामिल हैं।
  • इसके निम्नलिखित चार प्रकार हैं:
    • औद्योगिक श्रमिकों (Industrial Workers- IW) के लिये CPI 
    • कृषि मज़दूर (Agricultural Labourer- AL) के लिये CPI
    • ग्रामीण मज़दूर (Rural Labourer- RL) के लिये CPI
    • CPI (ग्रामीण/शहरी/संयुक्त)
    • इनमें से प्रथम तीन के आँकड़े श्रम और रोज़गार मंत्रालय में श्रम ब्यूरो (labor Bureau) द्वारा संकलित किये जाते हैं, जबकि चौथे प्रकार की CPI को सांख्यिकी एवं कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय (Ministry of Statistics and Programme Implementation) के अंतर्गत केंद्रीय सांख्यिकी संगठन (Central Statistical Organisation-CSO) द्वारा संकलित किया जाता है।
  • सामान्य तौर पर CPI के लिये आधार वर्ष 2012 है। हालाँकि औद्योगिक श्रमिकों हेतु CPI (CPI-IW) आधार वर्ष 2016 है।
  • मौद्रिक नीति समिति (Monetary Policy Committee) मुद्रास्फीति (रेंज 4+/-2% के भीतर) को नियंत्रित करने के लिये CPI डेटा का उपयोग करती है। भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) ने अप्रैल 2014 में  CPI को मुद्रास्फीति के अपने प्रमुख उपाय के रूप में अपनाया था।

उपभोक्ता मूल्य सूचकांक बनाम थोक मूल्य सूचकांक

  • थोक मूल्य सूचकांक (WPI) का उपयोग उत्पादक स्तर पर मुद्रास्फीति का पता लगाने के लिये किया जाता है और CPI उपभोक्ता स्तर पर कीमतों के स्तर में बदलाव को मापता है।
  • WPI सेवाओं की कीमतों में परिवर्तन को शामिल नहीं करता है, जबकि CPI में सेवाओं की कीमतों को शामिल किया जाता है।

मुद्रास्फीति

  • मुद्रास्फीति का तात्पर्य दैनिक या सामान्य उपयोग की अधिकांश वस्तुओं और सेवाओं जैसे- भोजन, कपड़े, आवास, मनोरंजन, परिवहन आदि की कीमतों में वृद्धि से है।
  • मुद्रास्फीति समय के साथ वस्तुओं और सेवाओं के औसत मूल्य परिवर्तन को मापती है।
  • मुद्रास्फीति किसी देश की मुद्रा की क्रय शक्ति में कमी का संकेत है।
    • यह अंततः आर्थिक विकास में मंदी का कारण बन सकती है।
  • हालाँकि उत्पादन वृद्धि सुनिश्चित करने के लिये अर्थव्यवस्था में मुद्रास्फीति के एक संतुलित स्तर की आवश्यकता होती है।
  • भारत में मुद्रास्फीति को प्रमुख रूप से दो मुख्य सूचकांकों (WPI और CPI) द्वारा मापा जाता है, जो क्रमशः थोक एवं खुदरा स्तर पर मूल्य में परिवर्तन को मापते हैं।

कोर मुद्रास्फीति

  • यह वस्तुओं और सेवाओं की लागत में बदलाव को दर्शाता है, लेकिन इसमें खाद्य तथा ईंधन की लागतों को शामिल नहीं किया जाता है, क्योंकि उनकी कीमतें बहुत अधिक अस्थिर होती हैं।
    • कोर मुद्रास्फीति = हेडलाइन मुद्रास्फीति - (खाद्य और ईंधन) मुद्रास्फीति।

स्रोत: द हिंदू


कृषि

विशेष पशुधन क्षेत्र पैकेज

प्रिलिम्स के लिये 

आर्थिक मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति, पशुपालन, पशुपालन बुनियादी ढाँचा विकास कोष, डेयरी इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट फंड, डेयरी सहकारी समिति, किसान उत्पादक संगठन, राष्ट्रीय गोकुल मिशन, डेयरी विकास के लिये राष्ट्रीय कार्यक्रम, राष्ट्रीय पशुधन मिशन, पशुधन जनगणना एवं एकीकृत नमूना सर्वेक्षण

मेन्स के लिये 

पशुपालन

चर्चा में क्यों?

हाल ही में आर्थिक मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति (Cabinet Committee on Economic Affairs- CCEA) ने विशेष पशुधन क्षेत्र पैकेज के कार्यान्वयन को मंज़ूरी दी है।

प्रमुख बिंदु 

पैकेज के विषय में:

  • उद्देश्य: पशुधन क्षेत्र में विकास को बढ़ावा देना और इस क्षेत्र में लगे 10 करोड़ किसानों के लिये पशुपालन (Animal Husbandry) को अधिक लाभकारी बनाना।
  • कुल राशि: इस क्षेत्र में लगभग 55,000 करोड़ रुपए के बाहरी निवेश का लाभ उठाने के लिये केंद्र सरकार अगले पाँच वर्षों में पशुधन विकास पर 9,800 करोड़ रुपए खर्च करेगी।
    • इसमें राज्य सरकारों, राज्य सहकारी समितियों, वित्तीय संस्थानों, बाहरी वित्तपोषण एजेंसियों और अन्य हितधारकों द्वारा निवेश शामिल है।

योजनाओं का विलय:

  • वर्ष 2021-22 से शुरू होने वाले इस पैकेज को अगले पाँच वर्षों के लिये पशुपालन और डेयरी विभाग की योजनाओं के विभिन्न घटकों को संशोधित तथा पुन: व्यवस्थित करके डिज़ाइन किया गया है।
  • विभाग की सभी योजनाओं को तीन व्यापक श्रेणियों में मिला दिया जाएगा:
    • विकास कार्यक्रम: इसमें राष्ट्रीय गोकुल मिशन (Rashtriya Gokul Mission), डेयरी विकास के लिये राष्ट्रीय कार्यक्रम (National Programme for Dairy Development), राष्ट्रीय पशुधन मिशन (National Livestock Mission) और पशुधन जनगणना एवं एकीकृत नमूना सर्वेक्षण (Livestock Census and Integrated Sample Survey) उप-योजनाओं के रूप में शामिल हैं।
    • रोग नियंत्रण कार्यक्रम: इसका नाम बदलकर पशुधन स्वास्थ्य और रोग नियंत्रण (Livestock Health and Disease Control) कर दिया गया है, जिसमें वर्तमान पशुधन स्वास्थ्य एवं रोग नियंत्रण योजना तथा राष्ट्रीय पशु रोग नियंत्रण कार्यक्रम (National Animal Disease Control Programme) शामिल हैं।
    • इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट फंड: पशुपालन बुनियादी ढाँचा विकास कोष (Animal Husbandry Infrastructure Development fund) और डेयरी इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट फंड (Dairy Infrastructure Development Fund) का विलय कर दिया गया है तथा डेयरी गतिविधियों में लगे डेयरी सहकारी समितियों (Dairy Cooperative) एवं किसान उत्पादक संगठनों (Farmer Producer Organization) को समर्थन करने वाली वर्तमान योजना भी इस तीसरी श्रेणी में शामिल है।

प्रभाव:

  • राष्ट्रीय गोकुल मिशन स्वदेशी नस्लों के विकास और संरक्षण में मदद करेगा तथा ग्रामीण गरीबों की आर्थिक स्थिति में सुधार करने में भी योगदान देगा।
  • राष्ट्रीय डेयरी विकास कार्यक्रम (NPDD) योजना का लक्ष्य लगभग 8900 मिल्क कूलर स्थापित करना है, जिससे 8 लाख से अधिक दुग्ध उत्पादकों को लाभ मिलेगा और प्रतिदिन 20 लाख लीटर दूध अतिरिक्त रूप से खरीदा जाएगा।
    • NPDD के तहत जापान इंटरनेशनल कोऑपरेशन एजेंसी (JICA) से वित्तीय सहायता उपलब्ध होगी, जिससे 4500 गाँवों में नए बुनियादी ढाँचे को मज़बूती के साथ तैयार किया जा सकेगा।

भारत में पशुपालन:

  • बड़ी संख्या में किसान अपनी आजीविका के लिये पशुपालन पर निर्भर हैं। यह लगभग 55% ग्रामीण आबादी की आजीविका का समर्थन करता है।
  • आर्थिक सर्वेक्षण-2021 के अनुसार, कुल कृषि और संबद्ध क्षेत्र में पशुधन का योगदान सकल मूल्यवर्द्धन (स्थिर कीमतों पर) पर 24.32 प्रतिशत (2014-15) से बढ़कर 28.63% (2018-19) हो गया है।
  • भारत में दुनिया का सर्वाधिक पशुधन मौजूद है।
    • 20वीं पशुधन गणना के अनुसार, देश में पशुधन की कुल जनसंख्या 535.78 मिलियन है, जो पशुधन गणना-2012 की तुलना में 4.6% अधिक है।

राष्ट्रीय पशुधन मिशन (NLM):

  • NLM को वित्तीय वर्ष 2014-15 में लॉन्च किया गया था और यह पशुधन उत्पादन प्रणालियों तथा सभी हितधारकों की क्षमता निर्माण में मात्रात्मक एवं गुणात्मक सुधार सुनिश्चित करने का प्रयास करता है।
  • इस योजना को अप्रैल 2019 से श्वेत क्रांति- राष्ट्रीय पशुधन विकास योजना की उप-योजना के रूप में लागू किया जा रहा है।
  • मिशन को निम्नलिखित चार उप-मिशनों में व्यवस्थित किया गया है:
    • पशुधन विकास पर उप-मिशन।
    • उत्तर-पूर्वी क्षेत्र में सुअर विकास पर उप-मिशन।
    • चारा विकास पर उप-मिशन।
    • कौशल विकास, प्रौद्योगिकी हस्तांतरण और विस्तार पर उप-मिशन।

स्रोत: द हिंदू


शासन व्यवस्था

राष्ट्रीय आयुष मिशन

प्रिलिम्स के लिये:

आयुष क्षेत्र संबंधी नए पोर्टल

मेन्स के लिये:

राष्ट्रीय आयुष मिशन

चर्चा में क्यों?

सरकार ने राष्ट्रीय आयुष मिशन (NAM) को केंद्र प्रायोजित योजना के रूप में वर्ष 2026 तक जारी रखने का निर्णय लिया है।

  • परियोजना की कुल लागत 4,603 करोड़ रुपए है, जिसमें से 3,000 करोड़ रुपए केंद्र सरकार द्वारा और शेष राज्य सरकारों द्वारा वहन किया जाएगा।
  • हाल ही में आयुष क्षेत्र संबंधी नए पोर्टल भी लॉन्च किये गए थे।

‘आयुष’ का अर्थ:

  • स्वास्थ्य देखभाल और उपचार की पारंपरिक एवं गैर-पारंपरिक प्रणालियाँ जिनमें आयुर्वेद (Ayurveda), योग (Yoga), प्राकृतिक चिकित्सा, यूनानी (Unani), सिद्ध (Siddha), सोवा-रिग्पा (Sowa-Rigpa) व होम्योपैथी (Homoeopathy) आदि शामिल हैं। 
  • भारतीय चिकित्सा पद्धतियों की सकारात्मक विशेषताओं अर्थात् उनकी विविधता और लचीलापन; अभिगम्यता; सामर्थ्य, आम जनता के एक बड़े वर्ग द्वारा व्यापक स्वीकृति; तुलनात्मक रूप से कम लागत तथा बढ़ते आर्थिक मूल्य के कारण उनके स्वास्थ्य सेवा प्रदाता बनने की काफी संभावनाएँ हैं, साथ ही लोगों के बड़े हिस्से को उनकी आवश्यकता है।

प्रमुख बिंदु:

शुरुआत:

  • इस मिशन को सितंबर 2014 में स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय के तहत आयुष विभाग द्वारा 12वीं योजना के दौरान राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों के माध्यम से कार्यान्वयन के लिये शुरू किया गया था।
  • वर्तमान में इसे आयुष मंत्रालय द्वारा लागू किया गया है।

इसके संबंध में:

  • इस योजना में भारतीयों के समग्र स्वास्थ्य को बढ़ावा देने के लिये आयुष क्षेत्र का विस्तार शामिल है।
  • यह मिशन देश में विशेष रूप से कमज़ोर और दूर-दराज़ के क्षेत्रों में आयुष स्वास्थ्य सेवाएँ/शिक्षा प्रदान करने के लिये राज्य/केंद्रशासित प्रदेशों की सरकारों के प्रयासों का समर्थन कर स्वास्थ्य सेवाओं में अंतराल को संबोधित करता है।

राष्ट्रीय आयुष मिशन के घटक

  • अनिवार्य घटक:
    • आयुष (AYUSH) सेवाएँ
    • आयुष शैक्षणिक संस्थान
    • आयुर्वेद, सिद्ध एवं यूनानी तथा होमियोपैथी (ASU&H) औषधों का गुणवत्ता नियंत्रण
    • औषधीय पादप/पौधे
  • नम्य घटक:
    • योग एवं प्राकृतिक चिकित्सा सहित आयुष स्वास्थ्य केंद्र 
    • टेली-मेडिसिन
    • सार्वजनिक निजी भागीदारी सहित आयुष में नवाचार
    • सूचना, शिक्षा तथा संचार (Information, Education and Communication- IEC) कार्यकलाप
    • स्वैच्छिक प्रमाणन स्कीम: परियोजना आधारित

अपेक्षित परिणाम:

  • आयुष सेवाओं एवं दवाओं की बेहतर उपलब्धता एवं प्रशिक्षित श्रमबल प्रदान कर बेहतर स्वास्थ्य सुविधाओं के माध्यम से आयुष स्वास्थ्य सेवाओं तक बेहतर पहुँच।
  • बेहतर सुविधाओं से व्यवस्थित अनेकों आयुष शिक्षण संस्थानों के माध्यम से आयुष शिक्षा में सुधार करना।
  • आयुष स्वास्थ्य सेवा प्रणालियों का इस्तेमाल करते हुए लक्षित सार्वजनिक स्वास्थ्य कार्यक्रमों के माध्यम से संचारी/गैर-संचारी रोगों को कम करने पर ध्यान केंद्रित करना

केंद्रीय योजनाएँ

  • केंद्रीय योजनाओं को दो भागों- केंद्रीय क्षेत्रक योजना (Central Sector Schemes) और केंद्र प्रायोजित योजना (Centrally Sponsored Schemes) में विभाजित किया है।

केंद्रीय क्षेत्रक योजनाएँ (CSS) :

  • इन योजनाओं का 100 प्रतिशत वित्तपोषण केंद्र सरकार द्वारा किया जाता है।
  • इनका कार्यान्वयन भी केंद्रीय तंत्र द्वारा ही किया जाता है।
  • ये योजनाएँ मुख्य रूप से संघ सूची में उल्लेखित विषयों पर बनाई जाती हैं।
  • उदाहरण: भारतनेट, नमामि गंगे-राष्ट्रीय गंगा योजना आदि।

केंद्र प्रायोजित योजनाएँ:

  • ये केंद्र सरकार की ऐसी योजनाएँ हैं जिनमें केंद्र और राज्यों दोनों की वित्तीय भागीदारी होती है।
  • केंद्र प्रायोजित योजनाओं को ‘कोर ऑफ कोर स्कीम’, ‘कोर स्कीम’ और ‘वैकल्पिक स्कीमों’ में विभाजित किया गया है।
    • वर्तमान में 6 ‘कोर ऑफ कोर स्कीम्स’ हैं, जबकि 23 कोर स्कीम्स हैं।
  • इनमें से अधिकांश योजनाओं में राज्यों की विशिष्ट वित्तीय भागीदारी निर्धारित हैं। उदाहरण के लिये मनरेगा (महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी अधिनियम) के मामले में राज्य सरकारों को 25% व्यय वहन करना पड़ता है।

छह ‘कोर ऑफ कोर स्कीम्स’ में शामिल हैं

स्रोत: पी.आई.बी.


जैव विविधता और पर्यावरण

अपमार्जकों द्वारा जल प्रदूषण

प्रिलिम्स के लिये:

अपमार्जक, जल प्रदूषण

मेन्स के लिये:

अपमार्जक/डिटर्जेंट द्वारा जल प्रदूषण से हानियाँ

चर्चा में क्यों?

अपमार्जक/डिटर्जेंट से होने वाला जल प्रदूषण वैश्विक संदर्भ में एक बड़ी चिंता का विषय बन गया है।

  • भारत में प्रति व्यक्ति डिटर्जेंट की खपत प्रतिवर्ष लगभग 2.7 किलोग्राम है।
    • यह फिलीपींस और मलेशिया में लगभग 3.7 किलोग्राम और संयुक्त राज्य अमेरिका में 10 किलोग्राम है।

जल प्रदूषण:

  • जल प्रदूषण तब होता है जब हानिकारक पदार्थ जैसे-रसायन या सूक्ष्मजीवों द्वारा धारा, नदी, झील, महासागर, जलभृत या पानी के अन्य निकायों को दूषित किया जाता है, जो पानी की गुणवत्ता को खराब करते हैं और इसे मनुष्यों या पर्यावरण के लिये विषाक्त बनाते हैं।
  • जल विशिष्ट रूप से प्रदूषण की चपेट में है। इसे एक "सार्वभौमिक विलायक" के रूप में जाना जाता है, पृथ्वी पर जल किसी भी अन्य तरल पदार्थ की तुलना में अधिक पदार्थों के विलीनीकरण में सक्षम है।
  • जल प्रदूषण के कुछ कारण सीवेज का पानी, औद्योगिक अपशिष्ट, कृषि स्रोत, थर्मल और विकिरण प्रदूषण, समुद्री प्रदूषण, आक्रामक प्रजातियाँ, भूमिगत जल प्रदूषण आदि हैं।

नोट:

  • बिंदु स्रोत: जब प्रदूषकों को एक विशिष्ट स्थान से छोड़ा जाता है जैसे- औद्योगिक अपशिष्टों को ले जाने वाली पाइप सीधे जल निकाय में छोड़ी जाती है तो यह बिंदु स्रोत प्रदूषण का प्रतिनिधित्व करती है।
  • गैर-बिंदु स्रोत: इसमें फैलने वाले स्रोतों से या बड़े क्षेत्र से प्रदूषकों का निर्वहन शामिल है, जैसे कि कृषि क्षेत्रों, चराई भूमि, निर्माण स्थलों, परित्यक्त खानों और गड्ढों आदि से अपवाह।

प्रमुख बिंदु   

अपमार्जक (Detergent) :

  • अपमार्जक (Detergent) ऐसे पृष्‍ठ संक्रियक (Surfactant) या पृष्‍ठ संक्रियक पदार्थों का मिश्रण है जिनके तनु विलयन में सफाई करने की क्षमता होती है। अपमार्जक साबुन के समान होता है।
    • पृष्‍ठ संक्रियक जिसे सतह-सक्रिय एजेंट भी कहा जाता है, एक अपमार्जक जैसे पदार्थ को जब एक तरल में मिश्रित किया जाता है, तो वह इसके पृष्ठ तनाव को कम कर देता है, जिससे इसके फैलाव और गीलेपन की अवस्था में वृद्धि होती है।
    • पृष्ठ तनाव एक तरल का सतही गुण है जो इसे अपने अणुओं के एकत्रित होने के कारण बाह्य बल का विरोध करने की अनुमति देता है।
  • वे साबुन की तुलना में कठोर जल में अधिक घुलनशील होते हैं क्योंकि कठोर जल में डिटर्जेंट का सल्फोनेट, कैल्शियम और अन्य आयनों को उतनी आसानी से नहीं बांधता जितना साबुन में कार्बोक्सिलेट यह कार्य करता है।

अपमार्जक और प्रदूषण :

  • नोनीलफेनॉल का जैव-संचयन:
    • अपमार्जक में पाए जाने वाले एक खतरनाक रसायन नोनीलफेनॉल (Nonylphenol) को जल निकायों और खाद्य शृंखलाओं में प्रवेश करने के लिये जाना जाता है। यह जैव-संचयन (Bio-accumulation) करता है और गंभीर पर्यावरणीय एवं स्वास्थ्य जोखिम उत्पन्न कर सकता है।
    • यह मानव  दुग्ध, रक्त और मूत्र में पाया जाता है तथा यह कृन्तकों में प्रजनन एवं विकासात्मक प्रभावों से जुड़ा है।
  • जैव निम्नीकरण का निषेध :
    • कई कपड़े धोने वाले डिटर्जेंट में लगभग 35 प्रतिशत से 75 प्रतिशत फॉस्फेट लवण होते हैं​। फॉस्फेट विभिन्न प्रकार के जल प्रदूषण की समस्याओं को उत्पन्न करने का कारण बन सकते हैं।
    • उदाहरण: फॉस्फेट कार्बनिक पदार्थों के जैव निम्नीकरण को रोकता है। गैर-बायोडिग्रेडेबल पदार्थों को सार्वजनिक या निजी अपशिष्ट जल उपचार द्वारा समाप्त नहीं किया जा सकता है।
      • जैव-निम्नीकरण या बायोडिग्रेडेशन (Biodegradation) वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा सूक्ष्मजीवों द्वारा कार्बनिक पदार्थों को छोटे यौगिकों में तोड़ दिया जाता है।
    • कुछ फॉस्फेट-आधारित अपमार्जक भी यूट्रोफिकेशन का कारण बन सकते हैं। फॉस्फेट-संवर्द्धन से जल निकाय में शैवाल और अन्य पौधों का प्रस्फुटन हो सकता है।
      • यूट्रोफिकेशन (Eutrophication): जब एक जल निकाय खनिजों और पोषक तत्त्वों से अत्यधिक समृद्ध हो जाती है जो शैवाल या शैवाल के अत्यधिक विकास को प्रेरित करती है। इस स्थिति में उपलब्ध जलीय ऑक्सीजन कम हो जाती जिससे अन्य जीवों की मृत्यु हो जाती है।
      • बेल्जियम में वर्ष 2003 से घरेलू अपमार्जक के रूप में उपयोग के लिये फॉस्फेट को प्रतिबंधित कर दिया गया है।
  • ऑक्सीजन की मात्रा को कम करने वाले पदार्थ:
    • डिटर्जेंट में ऑक्सीजन कम करने वाले पदार्थ भी होते हैं (यानी एक रासायनिक यौगिक जो आसानी से ऑक्सीजन परमाणुओं को स्थानांतरित करता है) जो मछलियों और अन्य समुद्री जानवरों को गंभीर नुकसान पहुँचा सकता है।
  • श्लेष्म का विनाश:
    • जल में डिटर्जेंट सांद्रता 15 पीपीएम (Parts per Million) के करीब होने पर अधिकांश मछलियाँ मर जाती हैं, जबकि जल में 5 पीपीएम डिटर्जेंट सांद्रता मछलियों के अंडों को नुकसान पहुँचता है।डिटर्जेंट बाहरी श्लेष्म (Mucus) परतों को नष्ट करने में सक्षम होता है जो मछली को बैक्टीरिया और परजीवी से बचाते हैं, इससे गलफड़ों को गंभीर नुकसान होता है।
  • पानी को गंदा करता है:
    • डिटर्जेंट के कुछ मानवजनित हानिकारक घटक हैं जैसे- शाकनाशी, कीटनाशक तथा भारी धातु (जस्ता, कैडमियम और सीसा) जो कि पानी के खराब होने के कारक हैं। इससे प्रकाश अवरुद्ध होता है एवं पौधों का विकास बाधित होता है।
    • पानी का गंदापन मछलियों की कुछ प्रजातियों के श्वसन तंत्र को अवरुद्ध कर देता है। ये ज़हरीले जल निकाय कुछ घातक मानव या पशु रोगों के कारण बनते हैं।
  • इंसानों के लिये खतरनाक:
    • डिटर्जेंट में संदिग्ध कार्सिनोजेन्स (Carcinogen) और ऐसे तत्त्व होते हैं जो पूरी तरह से बायोडिग्रेड नहीं होते हैं।
      • कार्सिनोजेन एक ऐसा घटक है जो मनुष्यों में कैंसर पैदा करने की क्षमता रखता है।
  • भारतीय पहल:
    • इकोमार्क स्कीम (ECOMARK Scheme): सरकार ने यह योजना पर्यावरण अनुकूल उत्पादों की लेबलिंग को लेकर शुरू की है।
    • यह योजना राष्ट्रीय आधार पर संचालित है और घरेलू तथा अन्य उपभोक्ता उत्पादों के लिये मान्यता एवं लेबलिंग प्रदान करती है, जो उस उत्पाद हेतु भारतीय मानकों की गुणवत्ता आवश्यकताओं के साथ-साथ कुछ पर्यावरणीय मानदंडों को पूरा करते हैं।
    • इकोमार्क योजना में विभिन्न उत्पाद श्रेणियाँ जैसे- साबुन और डिटर्जेंट, पेंट, खाद्य पदार्थ आदि शामिल हैं।

जैवसंचय बनाम जैव-आवर्द्धन

(Bioaccumulation vs Biomagnification): 

  • जैवसंचय तब होता है जब किसी जीव या प्रजाति के भीतर रसायनों की सांद्रता बढ़ जाती है। यह उस स्थिति में हो सकता है जब जीवों द्वारा ज़हरीले पदार्थ निगल लिये जाते हैं। जीवों के लिये इन विषाक्त पदार्थों का उत्सर्जन करना बहुत कठिन होता है, इसलिये ये उनके ऊतकों में जमा हो जाते हैं।
  • जैव-आवर्द्धन वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा शिकारियों के भीतर ज़हरीले रसायन बनते हैं। यह प्रायः संपूर्ण खाद्य शृंखला में होता है और सभी जीवों को प्रभावित करता है परंतु शृंखला में शीर्ष पर रहने वाले जानवर अधिक प्रभावित होते हैं।

Bioaccumulation

स्रोत: डाउन टू अर्थ


शासन व्यवस्था

न्यायपालिका के लिये अवसंरचनात्मक सुविधाएँ

प्रिलिम्स के लिये:

ग्राम न्यायालय, ग्राम न्यायालय अधिनियम, केंद्र प्रायोजित योजना, न्याय वितरण और कानूनी सुधार के लिये राष्ट्रीय मिशन

मेन्स के लिये:

केंद्र प्रायोजित योजनाएँ

चर्चा में क्यों?

हाल ही में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने न्यायपालिका हेतु बुनियादी सुविधाओं के विकास के लिये केंद्र प्रायोजित योजना (CSS) को आगामी पाँच वर्षों यानी वर्ष 2026 तक जारी रखने की मंज़ूरी दे दी है।

  • इस योजना के कार्यान्वयन के लिये ग्राम न्यायालय योजना तथा  न्याय वितरण और कानूनी सुधार के लिये राष्ट्रीय मिशन के ज़रिये मिशन मोड में 50 करोड़ रुपए आवंटित किये जाएंगे।

न्याय वितरण और कानूनी सुधार के लिये राष्ट्रीय मिशन

  • शुरुआत: इसे जून 2011 में केंद्र सरकार द्वारा अनुमोदित किया गया था।
  • उद्देश्य: प्रणाली में देरी को कम करके न्याय तक पहुँच बढ़ाना तथा संरचनात्मक परिवर्तनों के माध्यम से जवाबदेही को बढ़ाना। 

प्रमुख बिंदु

केंद्र प्रायोजित योजना के विषय में:

  • इस योजना का प्रचालन वर्ष 1993-94 से न्यायपालिका के लिये बुनियादी सुविधाओं के विकास हेतु  किया जा रहा है।
  • योजना को जारी रखने के इस प्रस्ताव से ज़िला और अधीनस्थ न्यायालयों के न्यायिक अधिकारियों के लिये 3800 कोर्ट हॉल तथा 4000 आवासीय इकाइयों, 1450 वकील हॉल, 1450 शौचालय परिसर एवं  3800 डिजिटल कंप्यूटर कक्षों के निर्माण में मदद मिलेगी।
  • यह देश में न्यायपालिका के कामकाज़ और प्रदर्शन को बेहतर बनाने में मदद करेगा तथा नए भारत के लिये बेहतर अदालतों के निर्माण की दिशा में एक नया कदम होगा।
  • उन्नत "न्याय विकास-2.0" (Nyaya Vikas-2.0) वेब पोर्टल और मोबाइल एप्लीकेशन का उपयोग पूर्ण तथा चालू परियोजनाओं की जियो-टैगिंग द्वारा सीएसएस न्यायिक बुनियादी ढाँचा परियोजनाओं की भौतिक एवं वित्तीय प्रगति की निगरानी के लिये किया जाता है।

ग्राम न्यायालय:

  • भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में न्याय प्रणाली की त्वरित और आसान पहुँच सुनिश्चित करने हेतु ग्राम न्यायालय अधिनियम, 2008 के तहत ग्राम न्यायालय स्थापित किये गए हैं।
  • यह अधिनियम 2 अक्तूबर, 2009 को लागू हुआ था।
  • अधिकार क्षेत्र:
    • संबंधित उच्च न्यायालय के परामर्श से राज्य सरकार द्वारा अधिसूचित किसी निर्दिष्ट क्षेत्र पर ग्राम न्यायालय का अधिकार क्षेत्र होता है।
    • ग्राम न्यायालय अपने विशिष्ट अधिकार क्षेत्र में किसी भी स्थान पर एक मोबाइल न्यायालय के रूप में कार्य कर सकते हैं।
    • उनके पास अपराधों पर फौजदारी (क्रिमिनल) और दीवानी (सिविल) दोनों क्षेत्राधिकार होते हैं।
  • निगरानी:
    • ग्राम न्यायालय पोर्टल, राज्यों को ग्राम न्यायालयों के कामकाज की ऑनलाइन निगरानी करने में मदद करता है।

भारत में न्यायपालिका से संबंधित मुद्दे:

  • देश में न्यायाधीश-जनसंख्या अनुपात बहुत अधिक प्रशंसनीय नहीं है।
    • जबकि अन्य देशों में यह अनुपात लगभग 50-70 न्यायाधीश प्रति मिलियन व्यक्ति है, जबकि भारत में यह 20 न्यायाधीश प्रति मिलियन व्यक्ति है।
  • महामारी के बाद से अदालती कार्यवाही भी आभासी रूप से संचालित होने लगी है, पहले न्यायपालिका में प्रौद्योगिकी की भूमिका ज़्यादा नहीं थी।
  • न्यायपालिका में पदों को आवश्यकतानुसार शीघ्रता से नहीं भरा जाता है।
    • उच्च न्यायपालिका के लिये कॉलेजियम द्वारा सिफारिशों में देरी के कारण न्यायिक नियुक्ति की प्रक्रिया में देरी हो रही है।
    • निचली न्यायपालिका के लिये राज्य आयोग/उच्च न्यायालयों द्वारा की गई भर्ती में देरी भी खराब न्यायिक व्यवस्था का एक कारण है।
  • अदालतों द्वारा अधिवक्ताओं को बार-बार स्थगन दिये जाने से न्याय प्रदान करने में अनावश्यक देरी होती है।

आगे की राह:

  • CSS योजना संपूर्ण देश में ज़िला और अधीनस्थ न्यायालयों के न्यायाधीशों/न्यायिक अधिकारियों के लिये सुसज्जित कोर्ट हॉल और आवास की उपलब्धता में वृद्धि करेगी।
  • डिजिटल कंप्यूटर रूम की स्थापना से डिजिटल क्षमताओं में भी सुधार होगा और भारत के डिजिटल इंडिया विज़न के हिस्से के रूप में डिजिटलीकरण की शुरुआत को बढ़ावा मिलेगा।
  • इससे न्यायपालिका के समग्र कामकाज और प्रदर्शन में सुधार करने में मदद मिलेगी। यह ग्राम न्यायालयों को निरंतर सहायता, आम आदमी को उसके दरवाज़े पर त्वरित, पूर्ण और किफायती न्याय प्रदान करने के लिये भी प्रोत्साहन देगी।

स्रोत: पी.आई.बी.


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