भूगोल
दामोदर घाटी कमान क्षेत्र
प्रीलिम्स के लिये:दामोदर नदी, दामोदर घाटी निगम मेन्स के लिये:दामोदर नदी घाटी प्रबंधन, नदी प्रबंधन केस स्टडी |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में भारत सरकार, पश्चिम बंगाल सरकार और ‘विश्व बैंक’ के मध्य पश्चिम बंगाल के ‘दामोदर घाटी कमान क्षेत्र’ (Damodar Valley Command Area- DVCA) में सिंचाई सेवाओं तथा बाढ़ प्रबंधन के लिये 145 मिलियन डॉलर के एक ऋण समझौते पर अनुबंध किया गया।
प्रमुख बिंदु:
- इस परियोजना से पश्चिम बंगाल के पाँच ज़िलों के लगभग 2.7 मिलियन किसानों को बेहतर सिंचाई सेवाओं का लाभ मिलेगा तथा इस क्षेत्र में प्रतिवर्ष आने वाली बाढ़ के बेहतर प्रबंधन में मदद मिलेगी।
- परियोजना की कुल लागत 413.8 मिलियन डॉलर है। जिसमें से 145 मिलियन डॉलर
- ‘विश्व बैंक’ द्वारा, 145 मिलियन डॉलर ‘एशियाई अवसंरचना निवेश बैंक’ (Asian Infrastructure Investment Bank- AIIB) और 123.8 मिलियन डॉलर का पश्चिम बंगाल सरकार द्वारा वित्तपोषण किया जा रहा है।
- विश्व बैंक द्वारा दिया जा रहा ऋण, 6 वर्ष की ‘अनुग्रह अवधि’ (Grace Period) और 23.5 वर्षों की ‘परिपक्वता अवधि’ (Maturity Period) के लिये है।
दामोदर नदी:
- दामोदर नदी हुगली नदी की एक सहायक नदी है। यह झारखंड और पश्चिम बंगाल से होकर पश्चिम से पूर्व दिशा में बहती है।
- नदी का उद्गम झारखंड के छोटा नागपुर पठार की पहाड़ियों में होता है। नदी की कुल लंबाई लगभग 541 किलोमीटर है, जिसका आधा हिस्सा झारखंड में तथा आधा पश्चिम बंगाल में है।
- बोकारो, बराकर और कोनार इसकी महत्त्वपूर्ण सहायक नदियाँ हैं।
दामोदर नदी के प्रबंधन की आवश्यकता:
- दामोदर नदी को बंगाल का शोक (Sorrow of Bengal) कहा जाता था।
- इस नदी के कारण अपवाह क्षेत्र में निश्चित अंतराल के बाद बाढ़ देखने को मिलती थी जबकि मामूली बाढ़ का अनुभव प्रतिवर्ष होता था।
- दामोदर नदी द्वारा लाए गए अवसाद के कारण हुगली नदी में अवसादन की समस्या पैदा होती थी तथा कोलकाता बंदरगाह भी इससे प्रभावित होता था।
दामोदर घाटी परियोजना:
- अमेरिका की 'टेनेसी घाटी प्राधिकरण' (Tennesse Valley Authority- TVA) के आधार पर ‘दामोदर घाटी परियोजना’ के तहत वर्ष 1948 में ‘दामोदर घाटी निगम’ (Damodar Valley Corporation- DVC) की स्थापना की गई थी।
- मूल परियोजना में सात प्रमुख बांधों का निर्माण किया जाना था। लेकिन DVC द्वारा केवल चार बांधों (तिलैया, मैथन, कोनार और पंचेत) का निर्माण किया।
परियोजना से लाभ:
- दामोदर घाटी परियोजना इस क्षेत्र के आर्थिक विकास में प्रमुख भूमिका निभाती है। परियोजना से मुख्य लाभ निम्नलिखित हैं:
- झारखंड और पश्चिम बंगाल के बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों में बाढ़ नियंत्रण;
- 5 लाख हेक्टेयर से अधिक भूमि पर सिंचाई की सुविधा;
- विभिन्न बांध स्थलों पर पनबिजली का उत्पादन;
- मृदा अपरदन को रोकना;
- क्षेत्र में औद्योगिक आधार की मजबूती प्रदान की;
- मत्स्यन तथा पर्यटन गतिविधियों को बढ़ावा देना;
- मलेरिया जैसी मच्छर जनित रोगों पर नियंत्रण;
परियोजना से उत्पन्न समस्याएँ:
- दामोदर घाटी परियोजना का मुख्य उद्देश्य क्षेत्र में बाढ़ नियंत्रण करना था परंतु अभी तक इस लक्ष्य को पूरी तरह प्राप्त नहीं किया गया है।
- क्षेत्र में वनों की कटाई तथा बांध क्षेत्रों में वनों के डूबने के वन क्षेत्र में लगातार कमी हुई है। वनीकरण की कमी के कारण जलाशयों में गाद की समस्या बढ़ गई है।
- DVC के तहत स्थापित बांधों से पनबिजली का उत्पादन तापीय विद्युत उत्पादन की तुलना में कम है क्योंकि बाढ़-नियंत्रण बांधों को हर साल मानसून से पहले बाढ़ तथा भारी मात्रा में अवसादों के कारण संयंत्रों को बंद करना पड़ता है।
विश्व बैंक के साथ किये गए नवीन अनुबंध का महत्त्व:
- DVC की स्थापना को 60 वर्ष से अधिक समय हो गया है, तथा इसे फिर से आधुनिक बनाए जाने की आवश्यकता है। नवीन प्रोजेक्ट के माध्यम से DVC बुनियादी संरचना को सुधारने में मदद मिलेगी।
- निचला दामोदर घाटी क्षेत्र काफी समय से बाढ़ प्रभावित रहने वाला क्षेत्र है। यहाँ औसतन 33,500 हेक्टेयर फसल क्षेत्र और 461,000 लोग प्रतिवर्ष बाढ़ से प्रभावित होते हैं। अत: नवीन प्रोजेक्ट बाढ़ के नियंत्रण में मदद करेगा।
निष्कर्ष:
- DVC 'एकीकृत क्षेत्रीय विकास’ (Integrated Regional Development) योजना का एक महत्त्वपूर्ण उदाहरण है। बेहतर प्रबंधन और दूरदर्शिता के साथ इसकी दक्षता में सुधार किया जा सकता है। दामोदर घाटी कमान क्षेत्र (DVCA) पर हस्ताक्षरित नवीन अनुबंध से दामोदर घाटी क्षेत्र का कायाकल्प करने में मदद मिलेगी।
स्रोत: पीआईबी
अंतर्राष्ट्रीय संबंध
पंचेन लामा की रिहाई की मांग
प्रीलिम्स के लियेपंचेन लामा, दलाई लामा मेन्स के लियेतिब्बती स्वतंत्रता आंदोलन |
चर्चा में क्यों?
अमेरिका ने चीन से तिब्बती बौद्ध धर्म के 11वें ‘पंचेन लामा' (Panchen Lama) को छोड़ने का आग्रह किया है, जिन्हें चीनी अधिकारियों द्वारा वर्ष 1995 में मात्र 6 वर्ष की उम्र में कैद कर लिया गया था।
प्रमुख बिंदु
- ध्यातव्य है कि वर्ष 1995 में दलाई लामा (Dalai Lama) द्वारा एक युवा तिब्बती लड़के गेदुन चोकेई न्यीमा (Gedhun Choekyi Nyima) को 11वें पंचेन लामा के रूप में चुना गया था।
- इस घोषणा के कुछ दिनों पश्चात् ही 11वें ‘पंचेन लामा' समेत उनका पूरा परिवार रहस्यमय ढंग से गायब हो गया और इसके पश्चात् उन्हें कभी नहीं देखा गया।
पृष्ठभूमि
- जैसा कि उल्लेख किया गया है कि वर्ष 1995 में एक युवा तिब्बती लड़के को पंचेन लामा के रूप में चुना गया और इसके कुछ समय बाद वे रहस्यमय ढंग से गायब हो गए।
- दलाई लामा द्वारा नियुक्त पंचेन लामा के गायब होने के कुछ समय पश्चात् चीनी अधिकारियों द्वारा एक अन्य छह वर्षीय लड़के को आधिकारिक रूप से पंचेन लामा के रूप में नामित कर दिया गया।
- तिब्बती लोगों, दलाई लामा, संयुक्त राष्ट्र और विभिन्न मानवाधिकार संगठनों द्वारा चीन सरकार के इस कदम की कड़ी निंदा की गई और दलाई लामा द्वारा नामित छह वर्षीय पंचेन लामा को वर्ष 1995 के बाद कभी नहीं देखा गया।
- तिब्बती लोगों का मत है कि यदि 11वें पंचेन लामा अभी जीवित हैं तो वह विश्व के सबसे कम उम्र के राजनीतिक कैदी हैं।
- चीनी अधिकारियों द्वारा 11वें पंचेन लामा की नियुक्ति की निंदा करते हुए 14वें दलाई लामा ने इस कदम को अनुचित करार दिया था।
पंचेन लामा
- उल्लेखनीय है कि पंचेन लामा तिब्बत में सबसे महत्त्वपूर्ण धार्मिक नेताओं में से एक है और इनका स्थान तिब्बती बौद्ध धर्म में दलाई लामा के पश्चात् आता है।
- ‘पंचेन’ शीर्षक का अर्थ महान विद्वान होता है, और इस शब्द का विकास संस्कृत के शब्द ‘पंडित’ (Pandita) और तिब्बती शब्द चेन-पो (Chen-Po) जिसका अर्थ है ‘महान’ से हुआ है।
- पंचेन लामा (Panchen Lama) वंशावली की शुरुआत वर्ष 1385 में हुई थी, जब सबसे पहले तिब्बती ‘पंचेन लामा’ ने जन्म लिया था, और तिब्बती बौद्ध पुनर्जन्म (अवतार) में विश्वास रखते हैं इसीलिये तिब्बती मान्यताओं के अनुसार, पंचेन लामा का निर्बाध पुनर्जन्म हो रहा है।
- परंपरागत रूप से ताशी लूनपो मठ (Tashi Lhunpo Monastery) के मठाधीशों को उनकी विद्वता के कारण पंचेन के रूप में जाना जाता था।
- 17वीं शताब्दी में 5वें दलाई लामा ने अपने शिक्षक और ताशी लूनपो मठ के तत्कालीन मठाधीश लोबसांग चोकेई ग्यालत्सेन (Lobsang Choekyi Gyaltsen) को पंचेन लामा के रूप में चुना और यह घोषणा की कि वे बार-बार एक बच्चे के रूप में पुनर्जन्म लेंगे तथा यह अटूट वंशावली इसी प्रकार चलती रहेगी।
- बौद्ध मान्यताओं में दलाई लामा की ही तरह ‘पंचेन लामा’ को भी बुद्ध का ही एक अवतार माना जाता है। पंचेन लामा को अमिताभ, यानी बुद्ध के असीम प्रकाश वाले दैवीय स्वरूप का अवतार माना जाता है। वहीं दलाई लामा उनके अवालोकीतेश्वरा स्वरूप का अवतार माना जाते है।
- ध्यातव्य है कि सदियों से दलाई लामा और पंचेन लामा के मध्य एक महत्त्वपूर्ण संबंध रहा है। दलाई लामा, पंचेन लामा के एक आध्यात्मिक गुरु के रूप में कार्य करते हैं और पंचेन लामा नए दलाई लामा की खोज में अनिवार्य भूमिका अदा करते हैं।
लामा
- लामा, बौद्ध धर्म का एक शीर्षक है जिसका अर्थ ‘श्रेष्ठ’ से है, इसे आधिकारिक तौर पर केवल कुछ चुनिंदा तिब्बती बौद्ध भिक्षुओं को दिया जाता है, जो आध्यात्मिकता के उच्चतम स्तर को प्राप्त करते हैं। अधिकांश लामाओं को विभिन्न अवतारों का पुनर्जन्म माना जाता है और पदानुक्रम में उनके स्थान इन पुनर्जन्म की पहचानों द्वारा निर्धारित किये जाते हैं।
पंचेन लामा और चीन की चिंता
- चीन की चिंता की एक मुख्य वजह नए दलाई लामा के चुनाव को लेकर भी है। दरअसल, वर्तमान दलाई लामा (जो 14वें दलाई लामा हैं) की बढ़ती उम्र को देखते हुए उनके उत्तराधिकारी के चयन की बात की जा रही है, हालाँकि दलाई लामा द्वारा अभी तक अपने उत्तराधिकारी के बारे में कोई भी औपचारिक घोषणा नहीं की गई है।
- बौद्ध मान्यताओं के अनुसार, पंचेन लामा नए दलाई लामा की खोज में महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा करते हैं।
- दरअसल, इस संबंध में चीन की चिंता इस बात को लेकर है कि शायद दलाई लामा अपना उत्तराधिकारी भारत से और संभवतः अरुणाचल प्रदेश से ही चुनें, फलस्वरूप तिब्बती स्वतंत्रता आंदोलन का नेतृत्त्व एक नए व्यक्ति के हाथ आ जाएगा। चीन को खतरा है कि इससे आंदोलन को नया नेतृत्व मिल जाएगा जो भविष्य में उसके समक्ष मुश्किलें पैदा करेगा।
- इसीलिये चीन ने पहले ही आधिकारिक तौर पर पंचेन लामा की घोषणा कर दी है और ऐसी आशा है कि वह 15वें दलाई लामा की घोषणा भी इसी प्रकार करेगा।
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
शासन व्यवस्था
COVID-19 से मुकाबले के लिये विश्व बैंक की आर्थिक सहायता
प्रीलिम्स के लियेCOVID-19, विश्व बैंक, प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना मेन्स के लियेCOVID-19 से मुकाबले में विभिन्न संस्थानों की भूमिका |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में भारत सरकार और विश्व बैंक (World Bank) ने COVID-19 महामारी से प्रभावित गरीब और संवेदनशील परिवारों को सामाजिक-आर्थिक सहायता प्रदान करने में भारत के प्रयासों का समर्थन करने हेतु 1 बिलियन डॉलर के प्रस्ताव पर हस्ताक्षर किये हैं।
प्रमुख बिंदु
- विश्व बैंक का यह वित्त पोषण मुख्यतः दो चरणों में संपन्न होगा, पहले चरण के तहत वित्तीय वर्ष 2020 के लिये 750 मिलियन डॉलर का तात्कालिक आवंटन किया जाएगा, वहीं दूसरे चरण के तहत 250 मिलियन डॉलर की दूसरी किश्त वित्तीय वर्ष 2021 के लिये उपलब्ध कराई जाएगी।
- ध्यातव्य है कि इस समझौते पर भारत सरकार की ओर से वित्त मंत्रालय के आर्थिक मामलों के विभाग के अतिरिक्त सचिव और विश्व बैंक की ओर से भारत के निदेशक जुनैद अहमद द्वारा हस्ताक्षर किये गए।
- आर्थिक मामलों के विभाग के अतिरिक्त सचिव के अनुसार, मौजूदा और भविष्य के संकटों का सामना करने के लिये कमज़ोर और संवेदनशील वर्गों हेतु एक मज़बूत सामाजिक सुरक्षा प्रणाली काफी महत्त्वपूर्ण है।
- विश्व बैंक के वित्त पोषण का पहला चरण ‘प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना’ (Pradhan Mantri Garib Kalyan Yojana-PMGKY) के माध्यम से पूरे देश में लागू किया जाएगा।
- पहले चरण के तहत सार्वजनिक वितरण प्रणाली (Public Distribution System- PDS) और प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण (Direct Benefit Transfers-DBT) जैसे पहले से मौजूद राष्ट्रीय कार्यक्रमों का उपयोग करके आम लोगों को बड़े पैमाने पर नकद हस्तांतरण और खाद्य लाभ आदि प्रदान किये जाएंगे।
- साथ ही इस चरण के तहत COVID-19 राहत प्रयासों में शामिल आवश्यक श्रमिकों के लिये मज़बूत सामाजिक सुरक्षा प्रदान करने तथा संवेदनशील समूहों, विशेष रूप से प्रवासियों और अनौपचारिक श्रमिकों को लाभांवित करने का कार्य भी किया जाएगा।
- वहीं दूसरे चरण में वित्त पोषण के माध्यम से सामाजिक सुरक्षा के लिये किये जा रहे प्रोत्साहनों को और मज़बूत किया जाएगा, जिससे आम लोगों और संवेदनशील वर्ग को लाभ प्रदान करने और अर्थव्यवस्था को पुनः पटरी पर लाने में मदद मिलेगी।
- इस घोषणा के बाद COVID-19 से लड़ने के लिये विश्व बैंक द्वारा भारत को दी गई मदद की राशि 2 बिलियन डॉलर तक पहुँच गई है। बीते महीने भी विश्व बैंक ने भारत के स्वास्थ्य क्षेत्र को तत्काल सहायता प्रदान करने के लिये 1 बिलियन डॉलर के समर्थन की घोषणा की गई थी।
क्यों महत्त्वपूर्ण है यह वित्त पोषण कार्यक्रम?
- इस वित्त पोषण के माध्यम से सामाजिक सुरक्षा प्रदान करना एक महत्त्वपूर्ण निवेश है क्योंकि आँकड़ों के अनुसार, भारत की लगभग आधी आबादी प्रतिदिन 3 डॉलर से भी कम कमाती है, जिसके कारण वे गरीबी रेखा के काफी करीब हैं।
- आँकड़ों के मुताबिक, भारत की 90 प्रतिशत से अधिक कार्यशील जनसंख्या अनौपचारिक क्षेत्र में कार्यरत है, जिन्हें अवकाश और सामाजिक बीमा जैसे कार्यस्थल आधारित सामाजिक सुरक्षा लाभ तक प्राप्त नहीं होते हैं।
- उल्लेखनीय है कि 9 मिलियन से अधिक प्रवासी मज़दूर और कामगार, जो प्रत्येक वर्ष कार्य और एक अच्छे सामाजिक जीवन की तलाश में राज्य की सीमाओं को पार करते हैं, वे भी अधिक मौजूदा समय में गंभीर जोखिम का सामना कर रहे हैं, क्योंकि भारतीय राज्यों में अधिकांश सहायता कार्यक्रमों का लाभ राज्य की सीमा के भीतर मौजूदा निवासियों को ही मिलते हैं।
- ध्यातव्य है कि COVID-19 महामारी के कारण दुनिया भर के विभिन्न देशों में सोशल डिस्टेंसिंग और लॉकडाउन जैसे उपायों को लागू करना अनिवार्य हो गया है।
- जहाँ एक ओर इनके माध्यम से कोरोनावायरस के तीव्र प्रसार को रोका जा सका है, वहीं इसका प्रतिकूल प्रभाव विभिन्न देशों की अर्थव्यवस्था और आम लोगों की नौकरी पर देखने को मिला है।
- भारत भी इस प्रवृत्ति का अपवाद नहीं और भारत में भी ये प्रतिकूल प्रभाव देखने को मिले हैं। अतः मौजूदा समय में नकद हस्तांतरण और खाद्य सुरक्षा संबंधी लाभ गरीबों और संवेदनशील वर्गों के लिये काफी महत्त्वपूर्ण हैं।
आगे की राह
- उल्लेखनीय है कि COVID-19 महामारी ने भारत की सामाजिक सुरक्षा प्रणाली में मौजूद विभिन्न खामियों को उजागर किया है, ऐसे में आवश्यक है कि इस अवसर का लाभ उठाते हुए हम अपनी सामाजिक सुरक्षा प्रणाली सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणाली को मज़बूत करने की दिशा में प्रयास करें।
- यह कार्यक्रम भारत सरकार के प्रयासों को एक अधिक समेकित वितरण मंच का निर्माण करने की दिशा में सहायता प्रदान करेगा, जिससे राज्य की सीमाओं के पार ग्रामीण और शहरी आबादी को लाभ प्रदान किया जा सकेगा।
स्रोत: पी.आई.बी.
कृषि
कृषि से संबंधित राहत उपायों की घोषणा
प्रीलिम्स के लिये:प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना, ‘टॉप’ टू ‘टोटल’ योजना, आवश्यक वस्तु अधिनियम में संशोधन मेन्स के लिये:कृषि सुधार |
चर्चा में क्यों?
वित्त मंत्री ने COVID-19 महामारी आर्थिक पैकेज के रूप में कृषि, मत्स्य पालन और खाद्य प्रसंस्करण के लिये कृषि अवसंरचना को मज़बूत करने तथा कृषि शासन संबंधी सुधारों के लिये अहम उपायों की घोषणा की है।
प्रमुख बिंदु:
- प्रधानमंत्री द्वारा 12 मई, 2020 को भारत की जीडीपी के 10% के बराबर, 20 लाख करोड़ रुपये के विशेष आर्थिक पैकेज की घोषणा की गई थी। इसी दिशा में वित्त मंत्री द्वारा कृषि क्षेत्र में सुधारों संबंधी आर्थिक पैकेज की घोषणा की गई।
- कृषि संबंधी आर्थिक पैकेज में मुख्यत: 11 उपायों की घोषणा की गई है, जिसमें से 8 उपाय कृषि बुनियादी ढाँचागत सुविधाओं को बेहतर बनाने से संबंधित है जबकि 3 उपाय प्रशासनिक एवं शासन संबंधी सुधारों से संबंधित हैं।
फार्म-गेट अवसंरचना (Farm-Gate Infrastructure):
- किसानों के लिये कृषि द्वार (फार्म-गेट) अवसंरचना के विकास के लिये 1 लाख करोड़ रुपये का ‘कृषि आधारभूत अवसंरचना कोष’ के निर्माण की घोषणा की गई।
- फार्म-गेट और एकत्रीकरण बिंदुओं (प्राथमिक कृषि सहकारी समितियों, किसान उत्पादक संगठनों, कृषि उद्यमियों, स्टार्ट-अप आदि) पर मौजूद ‘कृषि आधारभूत अवसंचना परियोजनाओं’ के वित्तपोषण के लिये 1,00,000 करोड़ रुपए की राशि उपलब्ध कराई जाएगी।
सूक्ष्म खाद्य उपक्रमों (Micro Food Enterprises- MFE) का औपचारिक क्षेत्र में प्रवेश:
- MFE को औपचारिक क्षेत्र में प्रवेश की दिशा में 10,000 करोड़ रुपए की सहायता राशि के साथ 'वैश्विक पहुँच वाली वोकल फॉर लोकल’ (Vocal for Local with Global Outreach) योजना शुरू की जाएगी। इससे ऐसे उद्यमियों को फायदा होगा जिनको खाद्य मानकों को हासिल करने, ब्रांड खड़ा करने और विपणन के लिये तकनीकी उन्नयन की ज़रूरत है।
प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना (Pradhan Mantri Matsya Sampada Yojana- PMMSY):
- ‘समुद्री और अंतर्देशीय मत्स्यन और जलकृषि’ (Marine, Inland fisheries and Aquaculture) के एकीकृत, सतत और समावेशी विकास के लिये ‘प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना’ शुरू की जाएगी। योजना के लिये 20,000 हजार करोड़ रुपए योगदान की घोषणा की गई।
राष्ट्रीय पशु रोग नियंत्रण कार्यक्रम (National Animal Disease Control Program):
- ‘खुरपका मुंहपका रोग’ (Foot and Mouth Disease- FMD) और ब्रुसेलोसिस के लिये ‘राष्ट्रीय पशु रोग नियंत्रण कार्यक्रम’ 13,343 करोड़ रुपये के कुल परिव्यय के साथ शुरू किया गया। इस कार्यक्रम को आगे और अधिक आर्थिक सहायता राशि प्रदान की जाएगी।
पशुपालन बुनियादी ढाँचा विकास कोष
(Animal Husbandry Infrastructure Development Fund):
- डेयरी प्रसंस्करण, मूल्यवर्द्धन एवं पशुचारा आधारित आधारभूत अवसंरचना क्षेत्र में निजी निवेश बढ़ाने के उद्देश्य से 15,000 करोड़ रुपए का ‘पशुपालन बुनियादी ढाँचा विकास कोष’ स्थापित किया जाएगा। विशिष्ट उत्पादों के निर्यात हेतु संयंत्र स्थापित करने वाली इकाइयों को इस कोष के माध्यम से प्रोत्साहित किया जाएगा।
औषधीय या हर्बल खेती को प्रोत्साहन (Promotion of Herbal Cultivation):
- अगले दो वर्षों में 4,000 करोड़ रुपए के परिव्यय से हर्बल खेती के तहत 10,00,000 हेक्टेयर क्षेत्र को कवर किया जाएगा। औषधीय पौधों के लिये क्षेत्रीय मंडियों का नेटवर्क स्थापित किया जाएगा।
- ‘राष्ट्रीय औषधीय पादप बोर्ड’ (National Medicinal Plants Board) गंगा के किनारे 800 हेक्टेयर क्षेत्र में ‘औषधि गलियारा’ विकसित कर औषधीय पौधे लगाएगा।
मधुमक्खी पालन संबंधी पहल (Beekeeping Initiatives):
- 500 करोड़ रुपए की सहायता राशि के माध्यम से मधुमक्खी पालन क्षेत्र में अनेक योजनाओं को प्रारंभ किया जाएगा।
‘टॉप’ टू ‘टोटल’ (TOP to TOTAL):
- ‘खाद्य प्रसंस्करण उद्योग मंत्रालय’ (Ministry of Food Processing Industries-MOFPI) द्वारा संचालित 'ऑपरेशन ग्रीन्स'; जो वर्तमान में टमाटर, प्याज और आलू (Tomatoes, Onions and Potatoes-TOP) को कवर करता है, को सभी फलों एवं सब्जियों तक विस्तृत किया जाएगा।
- योजना के माध्यम से फसलों के परिवहन तथा भंडारण पर 50% सब्सिडी प्रदान की जाएगी। योजना को अगले 6 महीनों के लिये प्रायोगिक रूप में शुरू किया जाएगा तथा बाद में इसे आगे बढ़ाया एवं विस्तारित किया जाएगा।
कृषि क्षेत्र में शासन एवं प्रशासन संबंधी सुधार:
- ‘आवश्यक वस्तु अधिनियम में संशोधन’ (Amendment in Essential Commodities Act):
- सरकार द्वारा 'आवश्यक वस्तु अधिनियम'-1955 में संशोधन किया जाएगा। अनाज, खाद्य तेल, तिलहन, दलहन, प्याज, आलू सहित कृषि खाद्य पदार्थों को नियंत्रण से मुक्त किया जाएगा। केवल असाधारण परिस्थितियों जैसे- राष्ट्रीय आपदा, कीमतों में अत्यधिक वृद्धि, अकाल आदि की स्थिति में भंडारण की सीमा पर प्रतिबंध लगाया जाएगा। इसके अलावा भंडारण सीमा संबंधी नियम ‘मूल्य श्रृंखला इकाइयों’ के भागीदारों पर लागू नहीं होगा।
- कृषि विपणन सुधार (Agricultural Marketing Reform):
- किसान को लाभकारी मूल्य पर अपनी उपज को बेचने के लिये पर्याप्त विकल्प उपलब्ध कराने; निर्बाध अंतरराज्यीय व्यापार; कृषि उत्पादों की ई-ट्रेडिंग के लिये एक रूपरेखा बनाने की दिशा में केंद्रीय विपणन कानून का निर्माण किया जाएगा।
- कृषि उपज मूल्य निर्धारण और गुणवत्ता का आश्वासन (Agricultural Yield Pricing and Quality Assurance):
- सरकार किसानों को उचित और पारदर्शी तरीके से कृषि समूहों, बड़े खुदरा विक्रेताओं, निर्यातकों आदि के साथ जुड़ने में सक्षम बनाने के लिये एक सुविधाजनक कानूनी संरचना का निर्माण करेगी।
निष्कर्ष:
- COVID-19 महामारी के तहत घोषित आर्थिक पैकेज में कृषि संबंधी उन सुधारों को शामिल किया गया है जिनकी मांग लगातार की जा रही थी। सुधारों के बाद किसान अपना उत्पाद न केवल किसानों को अपितु किसी को और किसी भी स्थान पर बेच सकता है।
- आर्थिक पैकेज न केवल कृषि अवसंरचना में सुधार करने में मदद करेगा अपितु व्यापारी तथा कृषि प्रसंस्करण इकाइयों को देश के भीतर कृषि-उपज की किसी भी मात्रा को स्वतंत्र रूप से खरीद, स्टॉक और स्थानांतरित करने में सक्षम बनाएगा।
स्रोत: पीआईबी
भारतीय अर्थव्यवस्था
नकद लाभ हस्तांतरण में JAM की भूमिका
प्रीलिम्स के लिये:JAM ट्रिनिटी मेन्स के लिये:नकद लाभ हस्तांतरण में JAM की भूमिका |
चर्चा में क्यों?
हाल में COVID-19 महामारी के दौरान सरकार द्वारा सुभेद्य वर्गों को आर्थिक सहायता राशि 'जन धन योजना' (Jan Dhan Yojana) के तहत खोले गए बैंक खातों के माध्यम से प्रदान की गई।
प्रमुख बिंदु:
- जनधन-आधार-मोबाइल (Jandhan-Aadhaar-Mobile- JAM) अर्थात JAM ट्रिनिटी भारत की एक महत्त्वाकांक्षी अवसंरचना है।
- आर्थिक सर्वेक्षण- 2015 में JAM को 'हर आँख से आँसू पोंछने' (Wiping Every Tear from Every Eye) वाली योजना के रूप में वर्णित किया है।
JAM (जैम) क्या है?
- जन-धन, आधार और मोबाइल नंबर को संयुक्त रूप से JAM कहा जाता है। इसका उद्देश्य सुरक्षित और बिना किसी बाधा के डिजिटल भुगतान तंत्र का विकास करना है।
JAM के फायदे:
- JAM ने वित्तीय समावेशन को बढ़ावा दिया है तथा इससे गरीब लोग भी बैंकिंग सेवाओं का उपयोग कर पा रहे हैं।
- सरकार को सब्सिडी का बोझ घटाने और लीकेज़ ख़त्म होने से राहत मिल रही है। वह ज़रुरतमंदों तक संसाधनों को तेज़ी से एवं सुरक्षित तरीके से पहुँचा पा रही है।
JAM के अर्थ में अस्पष्टता:
- वास्तव में JAM का क्या मतलब है, इसमें व्यावहारिक दृष्टि से अस्पष्टता है।
- JAM के वर्ष 2015 के मूल सूत्र में, JAM ट्रिनिटी के दो संभावित प्रकारों का उल्लेख किया गया था:
- मोबाइल बैंकिंग आधारित;
- पोस्ट ऑफिस भुगतान आधारित;
- दूसरे विकल्प अर्थात ‘पोस्ट ऑफिस आधारित भुगतान’ प्रणाली में बहुत कम वृद्धि देखी गई है क्योंकि इसमें शायद निजी लाभ की पर्याप्त गुंजाइश नहीं थी।
- इसलिये ‘आधार-सक्षम मोबाइल बैंकिंग सेवाओं’ को सर्वोच्च प्राथमिकता दी गई।
भुगतान आधारित बैंकिंग अवसंरचना का लगातार बना रहना:
- जनवरी 2017 में ‘राष्ट्रीय भारत परिवर्तनकारी संस्थान’ (National Institution for Transforming India- NITI) आयोग ने अनुमान लगाया कि मोबाइल बैंकिंग के अलावा अन्य सभी नकद धन हस्तांतरण के तरीके निकट भविष्य में शीघ्र ही समाप्त हो जाएंगे तथा सभी क्रेडिट कार्ड, एटीएम मशीन, पीओएस मशीन पूरी तरह से अप्रासंगिक हो जाएगी।
JAM ट्रिनिटी को लेकर विवाद क्यों?
- वर्तमान में इस बात को लेकर भ्रम की स्थिति बनी हुई है कि यदि सरकार सभी को नकद हस्तांतरण करना चाहती है तो वह आधार आधारित JAM ट्रिनिटी के अलावा अन्य कौन-सा विकल्प हो सकता है।
- COVID-19 महामारी के दौरान जब गरीबों को नकद हस्तांतरण करने का समय आया तो JAM बहुत कम उपयोग में आया।
- गरीब लोग अभी भी मोबाईल आधारित बैंकिंग सेवाओं का बहुत कम लाभ ले पाते हैं वे अभी भी पुरानी पोस्ट-ऑफिस आधारित सेवाओं के माध्यम से लाभ प्राप्त करते हैं।
- लोग लॉकडाउन के दौरान भी लोग लाभ प्राप्त करने के लिये लंबी कतारों में ‘सामाजिक दूरी’ नियमों की लगातार अवहेलना करते नजर आए।
JAM ट्रिनिटी में प्रमुख त्रुटियाँ:
जन-धन योजना में अपारदर्शिता:
- प्रथम, जन-धन योजना के बैंक खातों की तुलना में मनरेगा के तहत जॉब-कार्ड की सूची कहीं अधिक पारदर्शी और सुव्यवस्थित है।
- जब वर्ष 2014-15 में जन-धन योजना के तहत बैंक खातों के एक लक्ष्य को पूरा करने के लिये व्यापक पैमाने पर बैंक खाते खोले गए।
- इस दौरान बैंकों द्वारा सभी बैंकिंग मानदंड की सही से जाँच नहीं की गई, जैसे:
- बिना सहमति के खाते खोलना;
- डुप्लिकेट खातों की संख्या में वृद्धि,
- आधार नंबर को बिना सुरक्षा उपायों के उपयोग करना।
- बाद में JDY खातों (मार्च, 2017 में 40% से जनवरी, 2020 में 19% तक) की एक बड़ी संख्या 'निष्क्रिय' हो गई क्योंकि ग्राहक या तो इन खातों का प्रयोग करने में असमर्थ थे या अनिच्छुक थे।
- अभी तक यह स्पष्ट नहीं हो पाया है कि कितने JDY के खातों का आज भी परिचालन हो रहा है ताकि इसका पता लग सके कि इन खातों के माध्यम से किया गया धन हस्तांतरण सही समय में प्राप्तकर्त्ता तक पहुँच जाएगा।
जन-धन योजना के तहत महिला खातों संबंधी समस्या:
- महिलाओं के JDY खातों में नकद हस्तांतरण में उनकी बड़ी संख्या के अपवर्जन की संभावना है।
- येल यूनिवर्सिटी द्वारा किये गए एक अध्ययन के अनुसार, केवल आधे से कम गरीब वयस्क महिलाओं के पास एक JDY खाता है।
- मनरेगा तथा सामाजिक सुरक्षा पेंशन कार्यक्रमों के माध्यम से अपवर्जन त्रुटियों को कम किया जा सकता है।
नगरीय-ग्रामीण लाभार्थी संबंधी समस्या:
- JDY दृष्टिकोण में अन्य त्रुटियाँ भी हो सकती हैं। मनरेगा के तहत जॉब कार्ड ग्रामीण श्रमिकों के लिये हैं जबकि JDY खाते सभी के लिये हैं।
- JDY लाभार्थी मनरेगा लाभार्थियों की तुलना में बेहतर आर्थिक स्थिति में होते हैं।
- JDY खाते गरीब और गैर-गरीब परिवारों दोनों को समान रूप से शामिल करते हैं।
निष्कर्ष:
डिजिटलीकरण को बढ़ावा देने व ‘डिजिटल डिवाइड’ को दूर करने के लिये इंटरनेट का उपयोग और डिजिटल साक्षरता एक-दूसरे पर परस्पर निर्भर है, अतः डिजिटल इन्फ्रास्ट्रक्चर के निर्माण के साथ-साथ डिजिटल कौशल प्रदान करने पर सरकार को ध्यान देना चाहिये। इससे दूरस्थ स्थानों पर रहने वाले गरीब लोग भी JAM ट्रिनिटी जैसी योजनाओं का लाभ उठा सकेंगे।
स्रोत: द हिंदू
आंतरिक सुरक्षा
टूर ऑफ ड्यूटी
प्रीलिम्स के लिये:टूर ऑफ ड्यूटी मेन्स के लिये:टूर ऑफ ड्यूटी का महत्त्व |
चर्चा में क्यों?
भारतीय सेना द्वारा सामान्य नागरिकों को तीन साल के लिये सेना में शामिल करने के संबंधित एक प्रस्ताव पर विचार किया जा रहा है। इस विचाराधीन प्रस्ताव को ‘टूर ऑफ ड्यूटी’(Tour of Duty) से संबोधित किया गया है।
प्रमुख बिंदु:
- यदि इस प्रस्ताव को मंज़ूरी मिल जाती है तो यह अपनी तरह का पहला प्रस्ताव होगा जो देश के आम नागरिकों को भी सेना में शामिल होने का अवसर प्रदान करेगा।
- इस प्रस्ताव के अनुसार, नागरिकों द्वारा सेना में शामिल होना पूर्णत: स्वैच्छिक होगा। इसके अलावा चयन मानदंडों में किसी भी प्रकार की कोई कमी नहीं की जाएगी।
- प्रस्ताव के पारित होने से ऐसी उम्मीद की जा रही है कि इसके परिणामस्वरूप सेना के वेतन और पेंशन खर्च में भारी कमी होगी तथा इस प्राप्त धनराशि का उपयोग सेना के आधुनिकीकरण के लिये किया जा सकेगा।
- सेना के वेतन और पेंशन बिल में पिछले कुछ वर्षों में तेज़ी से बढ़ोतरी हुई है, जो बजट आवंटन का 60% है।
- पिछले पाँच वर्षों में, रक्षा बजट में 68% वृद्धि, रक्षा वेतन में 75% की वृद्धि तथा रक्षा पेंशन में 146% की वृद्धि हुई है।
- ‘टूर ऑफ ड्यूटी का उद्देश्य युवाओं को एक 'इंटर्नशिप /अस्थायी अनुभव' (Internship/Temporary Experience) प्रदान करना है। इसके लिये ‘टूर ऑफ ड्यूटी’ की रैंक या फिर किसी अन्य अधिकारी रैंक के लिये किसी आकर्षक विच्छेद पैकेज ( Attractive Severance Packages), पुनर्वास पाठ्यक्रम (Resettlement Courses), पेशेवर नकदी प्रशिक्षण अवकाश (Professional Encashment Training Leave), पूर्व सैनिकों की स्थिति (Ex-Servicemen Status) तथा पूर्व-सैनिकों की अंशदायी स्वास्थ्य योजना (Ex-Servicemen Contributory Health Scheme-ECHS) इत्यादि की आवश्यकता नहीं होगी।
‘शार्ट सर्विस कमीशन’ तथा ‘टूर ऑफ ड्यूटी’ में तुलना:
- शार्ट सर्विस कमीशन (Short Service Commission- SSC) के द्वारा सेना में आने पर न्यूनतम 10 वर्ष की अवधि के लिये सेवा प्रदान करनी होती है जबकि टूर ऑफ ड्यूटी में यह अवधि 3 वर्ष के लिये होगी।
- विश्लेषण करने पर ज्ञात होता है कि, ‘टूर ऑफ ड्यूटी’ के एक अधिकारी के लिये तीन साल की अवधि के लिये प्री-कमीशन प्रशिक्षण, वेतन, भत्ते, ग्रेच्युटी, प्रस्तावित विच्छेद पैकेज, छुट्टी का भुगतान और अन्य लागतों की संचयी अनुमानित लागत लगभग 5.12 करोड़ रुपए है जबकि शॉर्ट सर्विस कमीशन (SSC) के अधिकारी पर संचयी अनुमानित लागत 83 6.83 करोड़ रुपए है।
- शॉर्ट सर्विस कमीशन में समग्र लागत ओर अधिक हो जाती है क्योंकि, शॉर्ट सर्विस कमीशन के 50-60% अधिकारी स्थायी आयोग का चयन करते हैं तथा 54 वर्षों तक सेवा में रहते हैं जो बाद में पेंशन का भी लाभ प्राप्त करते हैं।
- ‘टूर ऑफ ड्यूटी’ के द्वारा चयनित लोगों के लिये इसी तरह की लागत 80-85 लाख रुपए आकलित की गई है।
प्रस्ताव के लाभ:
- यह योजना उन लोगों को एक सुनहरा अवसर प्रदान करेगी जो सेना में पूर्ण कैरियर नहीं चाहते लेकिन वर्दी की इच्छा रखते हैं।
- ‘टूर ऑफ ड्यूटी’ में चयनित उम्मीदवार को अपने उन साथियों की तुलना में अधिक वेतन प्राप्त होगा जिन्होंने कॉर्पोरेट क्षेत्र में अपना कैरियर शुरू किया था।
- तीन वर्ष की सेवा की समाप्ति के के बाद कॉर्पोरेट क्षेत्र में वापसी करने पर उन्हें तुलनात्मक रूप से अधिक वेतन दिया जाएगा।
- सेना को उम्मीद है कि ‘टूर ऑफ ड्यूटी’ के द्वारा भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान सहित सर्वश्रेष्ठ कॉलेजों के युवाओं को सेना में आकर्षित किया जा सकेगा।
- प्रस्ताव में इस योजना को प्रोत्साहित करने के लिये कई कदम उठाए गए हैं जैसे- तीन वर्ष तक कर-मुक्त आय और अधिकारियों को तीन वर्ष के कार्यकाल पूर्ण होने पर लगभग एकमुश्त 5-6 लाख रुपए प्रदान किये जाएंगे और साथ ही अन्य रैंक के लिये 2-3 लाख रुपए प्रदान किये जायेंगे।
- प्रस्ताव में कहा गया है कि इसके माध्यम से राष्ट्र और कॉरपोरेट्स जगत दोनों को प्रशिक्षित, अनुशासित, आत्मविश्वासी, मेहनती और प्रतिबद्ध पुरुषों और महिलाओं से लाभान्वित होने की संभावना है।
स्रोत: द हिंदू
भारतीय अर्थव्यवस्था
COVID-19 के कारण भारतीय अंतर्राष्ट्रीय व्यापार में गिरावट
प्रीलिम्स के लिये‘दक्षिण एशिया आर्थिक फोकस’ रिपोर्ट, COVID-19, मेन्स के लियेअंतर्राष्ट्रीय व्यापार पर COVID-19 का प्रभाव, |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में ‘केंद्रीय व्यापार और उद्यम मंत्रालय’ (Ministry of Commerce and Industry) द्वारा जारी आँकड़ों के अनुसार, COVID-19 और इसके नियंत्रण हेतु लागू लॉकडाउन से वैश्विक व्यापार के प्रभावित होने के कारण अप्रैल (वर्ष 2020) माह में भारत में वस्तुओं के निर्यात और आयात में भारी गिरावट देखने को मिली है।
प्रमुख बिंदु:
- केंद्रीय व्यापार और उद्यम मंत्रालय द्वारा जारी आँकड़ों के अनुसार, अप्रैल माह में भारत से होने वाली वस्तुओं के निर्यात में 60.3% की गिरावट देखी गई, साथ ही इस दौरान अन्य देशों से होने वाले आयात में भी 58.7% की कमी हुई है।
-
अप्रैल माह में देश के व्यापार में आई इस गिरावट के कारण 6.8 बिलियन अमेरिकी डॉलर का व्यापार घाटा दर्ज किया गया।
इससे पूर्व मार्च 2020 में भी भारतीय वस्तुओं के निर्यात में 34.6% और आयात में 28.7% की गिरावट देखी गई थी।
- अप्रैल माह में भारत से निर्यात होने वाले 30 प्रमुख उत्पादों में मात्र दो उत्पादों-लौह अयस्क (17.5%) और दवाइयों (0.25%) के निर्यात में सकारात्मक वृद्धि देखने को मिली थी परंतु इस दौरान सभी प्रमुख उत्पादों के आयात में वृद्धि नकारात्मक ही रही।
- अप्रैल माह में मुख्य रूप से सोने, कीमती पत्थरों, इलेक्ट्रॉनिक सामान, मशीनरी और कोयला आदि के आयात में भारी गिरावट देखने को मिली।
वैश्विक व्यापार में गिरावट:
- विश्व व्यापार संगठन (World Trade Organization- WTO) के अनुमान के अनुसार, COVID-19 महामारी और इसके नियंत्रण हेतु विश्व के कई देशों में लागू लॉकडाउन के कारण वर्ष 2020 में अंतर्राष्ट्रीय वस्तु व्यापार में 13%-32% की गिरावट देखी जा सकती है।
- एशियन डेवलपमेंट बैंक (The Asian Development Bank- ADB) के अनुमान के अनुसार, वित्तीय वर्ष 2020-21 में दक्षिण एशिया की जीडीपी में 142 बिलियन से 218 बिलियन अमेरिकी डॉलर (लगभग 3.9-6%) की गिरावट देखी जा सकती है।
- ADB के अनुमान के अनुसार, दक्षिण एशिया की जीडीपी में आई इस गिरावट का मुख्य कारण भारत, पाकिस्तान और बांग्लादेश जैसे देशों में COVID-19 के नियंत्रण हेतु लागू सख्त लॉकडाउन है।
भारतीय व्यापार में आई गिरावट का कारण:
- विशेषज्ञों के अनुसार, COVID-19 के कारण देश में लागू राष्ट्रव्यापी लॉकडाउन से स्थानीय बाज़ारों में उत्पादों की खपत में कमी आई है साथ ही वैश्विक स्तर पर उत्पादों और सेवाओं की मांग में गिरावट से भारतीय निर्यात को गंभीर क्षति हुई है।
- विश्व बैंक (World Bank) द्वारा हाल ही में जारी ‘दक्षिण एशिया आर्थिक फोकस’ (South Asia Economic Focus) रिपोर्ट में भारतीय सेवा क्षेत्र में भी भारी अंतर्राष्ट्रीय गिरावट का अनुमान लगाया था।
- वर्तमान में विश्व के अधिकांश देशों में COVID-19 के कारण उत्पन्न हुई अनिश्चितता से वैश्विक स्तर पर उद्यमों और अन्य व्यावसायिक गतिविधियों में भारी गिरावट आई है।
गिरावट का प्रभाव:
- सेंटर फॉर मॉनीटरिंग इंडियन इकोनॉमी (Center For Monitoring Indian Economy- CMIE) द्वारा जारी आँकड़ों के अनुसार, मई के पहले सप्ताह तक भारत की बेरोज़गारी दर में 27% की वृद्धि देखी गई थी।
- CMIE के सर्वे के अनुसार, अप्रैल माह में लगभग 121.5 मिलियन लोगों को अपना रोज़गार गँवाना पड़ा था।
- WTO से जुड़े अर्थशास्त्रियों के अनुसार, वर्तमान में वैश्विक व्यापार में आई यह गिरावट वर्ष 2008-09 की आर्थिक मंदी से भी गंभीर हो सकती है।
- हालाँकि सरकार ने हाल ही में उद्यमों को वित्तीय सहायता के साथ आने वाले दिनों में लॉकडाउन में ढील देने की बात कही है परंतु विशेषज्ञों के अनुसार, सरकार के प्रयासों के बाद भी मई माह में वस्तुओं के आयात और निर्यात गिरावट बनी रहेगी।
आगे की राह:
- विशेषज्ञों के अनुसार, हाल ही में दवा और खाद्य जैसी ‘अतिआवश्यक’ वस्तुओं के व्यापार को पुनः शुरू किया गया है परंतु स्थितियों को सामान्य होने में समय लग सकता है।
- भारत में इंजीनियरिंग क्षेत्र की अधिकांश निर्यात इकाइयाँ ‘सूक्ष्म,लघु और मध्यम उद्यम’ (Micro, Small and Medium Enterprises- MSME) श्रेणी की हैं और वर्तमान में ऐसी कंपनियों के अस्तित्त्व के लिये खतरा उत्पन्न हो गया है।
- अतः सरकार द्वारा ऐसी कंपनियों को तरलता में सहायता के साथ ही अन्य सहयोग जैसे-विद्युत् और पानी के शुल्क में माफी तथा श्रमिकों का वेतन देने में भी सहायता प्रदान करनी चाहिये।
- साथ ही सरकार को शीघ्र ही ऐसी कंपनियों की सभी बकाया राशि और रिफंड जारी करने चाहिये जिससे निर्यातकों को इस आपदा से निपटने में सहायता प्राप्त हो सके।
स्रोत: लाइव मिंट
आंतरिक सुरक्षा
डिफेंस टेस्टिंग इंफ्रास्ट्रक्चर योजना
प्रीलिम्स के लिये:परियोजना के मुख्य प्रावधान मेन्स के लिये:परियोजना का महत्त्व |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में घरेलू रक्षा क्षेत्र तथा अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी में विनिर्माण को बढ़ावा देने के उद्देश्य से रक्षा मंत्रायल द्वारा बुनियादी ढाँचे को अत्याधुनिक एवं उन्नत करने के लिये 400 करोड़ रुपए की रक्षा परीक्षण अवसंरचना योजना (Defence Testing Infrastructure Scheme-DTIS) को मंज़ूरी प्रदान की गई है।
योजना के प्रमुख बिंदु:
- डिफेंस टेस्टिंग इंफ्रास्ट्रक्चर योजना की अवधि पाँच वर्षों के लिये होगी।
- योजना में निज़ी उद्योगों की साझेदारी के साथ 6- 8 नई परीक्षण सुविधाएँ (Test Facilities) स्थापित करने की परिकल्पना की गई है।
- परियोजना लागत का कुल 75% केंद्र सरकार द्वारा वहन किया जाएगा जबकि अन्य 25% का वहन ‘विशेष प्रयोजन वाहन’ (Special Purpose Vehicle-SPV) के द्वारा किया जाएगा, जिसके घटक भारतीय निजी संस्थाएँ एवं राज्य सरकारें होंगी।
विशेष प्रयोजन वाहन (SPV)-
- यह एक प्रायोजक कंपनी होती है जो प्रारंभिक पूंजी और संपत्ति प्रदान करती है
- तकनीकी रूप से SPV एक लिमिटेड कंपनी होती है जिसे कंपनी अधिनियम, 2013 के प्रावधानों के तहत स्थापित किया जाता है।
- इसका स्वामित्व सार्वजनिक, निजी या संयुक्त हो सकता है।
- योजना के तहत एसपीवी को कंपनी अधिनियम, 2013 के तहत पंजीकृत किया जाएगा।
- इस योजना के तहत विशेष प्रयोजन वाहन को यह अधिकार होगा कि वह स्व-स्थायी तरीके से उपयोगकर्ता शुल्क एकत्र करके तथा योजना के अंतर्गत शामिल सभी परिसंपत्तियों का संचालन और रखरखाव सुनिश्चित करे।
- इस योजना के तहत परीक्षण किये गए उपकरण/प्रणाली को उपयुक्त मान्यता के अनुसार प्रमाणिकता प्रदान की जाएगी।
परियोजना का महत्त्व:
- सरकार के ‘मेक इन इंडिया’ कार्यक्रम को गति मिलेगी ।
- स्वदेशी रक्षा उत्पादन को बढ़ावा मिलेगा, फलस्वरूप सैन्य उपकरणों के आयात पर देश की निर्भरता कम होगी।
- परियोजना आत्मनिर्भर भारत की संकल्पना में एक महत्त्वपूर्ण कड़ी साबित होगी।
स्रोत: पीआईबी
विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी
हल्का कार्बन फोम
प्रीलिम्स के लिये:लीथियम-आयन बैटरी, हल्का कार्बन फोम मेन्स के लिये:हल्का कार्बन फोम के अनुप्रयोग, ई क्रांति |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में, सीएसआईआर-एडवांस्ड मैटेरियल्स एंड प्रोसेस रिसर्च इंस्टीट्यूट, भोपाल (CSIR-Advanced Materials and Processes Research Institute, Bhopal) के वैज्ञानिकों (इंस्पायर फैकल्टी अवार्ड के प्राप्तकर्त्ता सहित) ने एक तरह का ‘हल्का कार्बन फोम (Lightweight Carbon Foam)’ विकसित किया है।
पृष्ठभूमि:
- वर्तमान में, बड़े पैमाने पर ऊर्जा-भंडारण क्षेत्र में उच्च ऊर्जा घनत्व और लंबे चक्र जीवन के कारण लिथियम आयन (ली-आयन) बैटरी का प्रभुत्त्व है।
- ऊर्जा घनत्व ऊर्जा की वह मात्रा है जिसे किसी पदार्थ या प्रणाली के दिये गए द्रव्यमान में संग्रहीत किया जा सकता है, अर्थात यह ऊर्जा के भंडारण का एक उपाय है।
- हालाँकि, ली-आयन बैटरी के संबंध में सुरक्षा जोखिम, सीमित संसाधन आपूर्ति, उच्च लागत और रीसाइक्लिंग बुनियादी ढाँचे की कमी जैसे मुद्दे जुड़े हैं।
- परिणामस्वरूप, लेड-एसिड बैटरी अभी भी सबसे विश्वसनीय, किफायती और पर्यावरण के अनुकूल विकल्पों में से एक है।
- लेड-एसिड बैटरी रिचार्जेबल बैटरी के सबसे पुराने प्रकारों में से एक है, जिसका आविष्कार वर्ष 1859 में फ्राँसिसी भौतिक विज्ञानी गैस्टन प्लांट ने किया था।
- हालाँकि, लेड-एसिड बैटरियाँ अधिक भार, जंग का लग जाना, खराब थर्मल स्थिरता और एक आयाम में इलेक्ट्रोलाइट्स के प्रसार की समस्या से ग्रस्त हैं, जो अंततः ऊर्जा उत्पादन की शक्ति को प्रभावित करता है।
- उपरोक्त मुद्दों से निपटने के लिये साथ ही पर्यावरणीय चिंताओं देखते हुए, आर्थिक और उच्च ऊर्जा घनत्व के साथ एक वैकल्पिक बैटरी प्रणाली के विकास की आवश्यकता थी।
- इस प्रकार यह हल्का कार्बन फोम लेड एसिड बैटरी की जगह ले सकता है। लेड एसिड बैटरी काफी वजनी, विनाशन क्षमता और कम तापीय स्थायित्त्व वाली होतीहै।
प्रमुख बिंदु:
- विशेषताएँ:
-
विकसित हल्का कार्बन फोम का घनत्व बहुत कम और उच्च छिद्रिल (High Porosity) है।
- यह कार्बन फोम किफायती और जल में अघुलनशील होगा।
- यह फोम, लेड एसिड बैटरी में लेड-ग्रिड की जगह ले सकता है।
-
- उपयोग:
- यह ऊर्जा इलेक्ट्रॉनिक (Electronic) में हीट सिंक्स (Heat Sinks), एयरोस्पेस में इलेक्ट्रोमैग्नेटिक इंटरफेरेंस शिल्डिंग (Electromagnetic Interference Shielding), हाइड्रोजन भंडारण और लेड एसिड बैटरी एवं जल शुद्धिकरण प्रणाली के लिये इलेक्ट्रोड के रुप में भी उपयोगी हो सकता है।
- इंस्पायर फैलोशिप के तहत विकसित कार्बन फोम दूषित जल से आर्सेनिक, तेल और अन्य धातुओं को अलग करने में काफी किफायती भी होगा।
- लाभ:
- कार्बन फोम बनाने में लगने वाला कच्चा माल आसानी से सभी जगह उपलब्ध है और इसे बनाने के लिये किसी महँगे उपकरण की भी ज़रूरत नहीं है।
- यह कार्बन फोम गैर-विषाक्त तथा बनाने में आसान होता है।
- यह फोम विनाशन अवरोधक है।
- इसमें काफी सतही क्षेत्र के साथ बेहतरीन विद्युतीय और तापीय संवाहकता है।
- ऐसी सामग्री का वैसे दूरस्थ इलाकों में बिना किसी खतरे की आशंका के उपयोग किया जा सकता है जहाँ बिजली आपूर्ति कम होती है।
स्रोत: PIB
विविध
Rapid Fire (करेंट अफेयर्स): 16 मई, 2020
संस्कृति पर्व पत्रिका
हाल ही में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से ‘संस्कृति पर्व पत्रिका’ के विशेषांक ‘भारत 1946-2020, नोआखाली से दिल्ली तक’ (India 1946-2020 From Noakhali to Delhi) के ई-संस्करण का लोकार्पण किया है। ‘संस्कृति पर्व पत्रिका’ के इस विशेषांक में भारत रत्न मदन मोहन मालवीय जी का अंतिम वक्तव्य, जो 1946 के कल्याण विशेषांक में छपा था, उसे पुनः प्रकाशित किया गया है। इस अवसर पर अमित शाह ने कहा कि धर्म, अध्यात्म और दर्शन के साथ-साथ अपने वास्तविक इतिहास की स्थापना बहुत ज़रूरी है और संस्कृति पर्व पत्रिका इस लक्ष्य की दिशा में महत्त्वपूर्ण कार्य कर रही है। देश मे विगत कुछ समय में ऐसी घटनाएँ हुई हैं जिनके कारण यह विशेषांक विशेष वाचनीय है। उल्लेखनीय है कि ‘संस्कृति पर्व पत्रिका’ भारतीय संस्कृति, दर्शन, साहित्य एवं अध्यात्म के विषयों पर केंद्रित है, और इसका प्रकाशन बीते दो वर्षों से अनवरत किया जा रहा है।
आत्मनिर्भर गुजरात सहाय योजना
हाल ही में गुजरात सरकार ने ‘आत्मानिभर गुजरात सहाय योजना’ (Atmanirbhar Gujarat Sahay Yojna-AGSY) की शुरुआत की है। इस योजना के तहत, निम्न मध्यम आय वर्ग के लोग 2 प्रतिशत वार्षिक ब्याज दर पर बैंकों से 1 लाख रुपए का गारंटी-मुक्त ऋण प्राप्त कर सकते हैं। इस योजना का प्रमुख उद्देश्य आम जनमानस के समक्ष COVID -19 के कारण उत्पन्न चुनौतियों का सामना करने में मदद करना है। वहीं राज्य सरकार इस योजना के तहत ऋण देने वाले बैंकों को 6 प्रतिशत ब्याज का भुगतान करेगी। इस योजना का सामान्य लक्ष्य इस संकटपूर्ण स्थिति में निम्न और मध्य आय वर्ग के लोगों तथा छोटे व्यापारियों की सहायता करना है। इस संबंध में सरकार द्वारा जारी दिशा-निर्देशों के अनुसार, योजना के तहत दिये गए ऋण की अवधि तीन वर्ष की होगी और किस्त का भुगतान ऋण प्राप्ति के 6 महीने बाद शुरू होगा। इस योजना की सूचना देते हुए राज्य के मुख्यमंत्री ने कहा कि ‘इस योजना के तहत ऋण आवेदन के आधार पर प्रदान किया जाएगा, जिसमें किसी भी प्रकार की गारंटी की आवश्यकता नहीं होगी।
रॉबर्टो एज़ेवेडो
बीते दिनों कोरोनावायरस (COVID-19) महामारी के बीच विश्व व्यापार संगठन (World Trade Organization- WTO) के महानिदेशक (Director-General) रॉबर्टो एज़ेवेडो (Roberto Azevêdo) ने अपने इस्तीफे की घोषणा कर दी है। रॉबर्टो एज़ेवेडो के अनुसार, वे 31 अगस्त, 2020 को इस्तीफा दे देंगे। विदित हो कि रॉबर्टो एज़ेवेडो ने ऐसे समय में अपने इस्तीफे की घोषणा की है जब संपूर्ण विश्व कोरोना महामारी का सामना कर रहा है और अनुमान के अनुसार, आने वाले समय में इस वायरस के प्रभावस्वरूप वैश्विक अर्थव्यवस्था में अभूतपूर्व गिरावट आ सकती है। रॉबर्टो एज़ेवेडो के अनुसार, WTO सभी देशों को विश्व के जंगल कानून से दूर रखता है और मौजूदा स्थिति को देखते हुए यह कहा जा सकता है कि वर्ष 2021 विश्व व्यापार संगठन (WTO) के लिये काफी चुनौतीपूर्ण हो सकता है। रॉबर्टो एज़ेवेडो विश्व व्यापार संगठन (WTO) के छठे महानिदेशक हैं और इनकी उनकी नियुक्ति 1 सितंबर, 2013 को 4 वर्ष के कार्यकाल के लिये की गई थी। किंतु फरवरी 2017 में उन्हें दोबारा WTO के महानिदेशक के रूप में नियुक्त कर दिया और उनका दूसरा कार्यकाल सितंबर 2021 में समाप्त होने वाला था।
‘इवेंटबोट’ मैलवेयर
भारतीय कंप्यूटर इमरजेंसी रिस्पांस टीम (Indian Computer Emergency Response Team- CERT-In) ने देश में तेज़ी से फैल रहे ‘इवेंटबोट’ (EventBot) नामक एक मैलवेयर को लेकर चेतावनी जारी की है। इस संबंध में CERT-In द्वारा जारी चेतावनी के अनुसार, यह वायरस लोगों की बैंकिंग संबंधित जानकारियाँ चुराने के उद्देश्य से काफी तेज़ी से फैल रहा है। ‘इवेंटबोट’ एक प्रकार का ट्रोज़न मैलवेयर है, जो थर्ड-पार्टी एप्लीकेशन के प्रयोग से उपयोगकर्त्ता के सिस्टम में पहुँच सकता है। ध्यातव्य है कि ट्रोज़न एक ऐसा मैलवेयर अथवा वायरस होता है जो प्रथम दृष्टया तो वैध लगता है, किंतु असल में इसका निर्माण उपयोगकर्त्ता के सिस्टम को नुकसान पहुँचाने के लिये किया जाता है। यह मैलवेयर उपयोगकर्त्ता के मैसेज भी पढ़ सकता है, जिसके अर्थ है कि यह टू फैक्टर ऑथेंटिकेशन (Two Factor Authentication) को काफी आसानी से बायपास कर सकता है। ‘मैलवेयर; किसी कंप्यूटर को नुकसान पहुँचाने के उद्देश्य से निर्मित किया जाने वाला एक प्रकार का सॉफ्टवेयर होता है, जो कंप्यूटर से संवेदनशील जानकारी चुरा सकता है और धीरे-धीरे कंप्यूटर को धीमा कर सकता है।