क्या जन धन बैंक खातों का प्रयोग सक्रियतापूर्वक किया जाता है?
संदर्भ
उल्लेखनीय है कि प्रधानमंत्री जन-धन योजना (Pradhan Mantri Jan Dhan Yojana -PMJDY) की शुरुआत 28 अगस्त 2014 को हुई थी| इस योजना के तहत देश के आर्थिक रूप से पिछड़े तबकों, ग्रामीणों तथा उन सभी व्यक्तियों को जिनका डिजिटलिकरण के इस दौर में भी बैंक में कोई खाता नहीं है, विकास की मुख्यधारा से जोड़ने का एक सक्रिय प्रयास किया गया था|
प्रमुख बिंदु
- वस्तुतः प्रधानमंत्री जन-धन योजना एक अत्यधिक महत्त्वाकांक्षी योजना है| इस योजना के अंतर्गत भारत के प्रत्येक व्यक्ति (इनमें करोड़ों की संख्या में गरीब व्यक्तियों के साथ-साथ आर्थिक रूप से बहिष्कृत व्यक्ति भी शामिल हैं) को बैंक खाता उपलब्ध कराया गया है|
- जैसा की हम सभी जानते हैं कि इस योजना को आरंभ हुए तकरीबन ढाई वर्ष बीत गए है, ऐसी स्थिति में एक मात्र प्रश्न यह ही नहीं उठता है कि क्या इन खातों का सही तरीके से प्रयोग हुआ अथवा नहीं| बल्कि प्रश्न यह है कि यदि इनका प्रयोग हुआ भी है तो यह प्रयोग कितना सक्रिय था?
जन-धन योजना से पूर्व भारत की स्थिति
- जन धन योजना के आने से पूर्व भारत में वित्तीय बहिष्करण की स्थिति अपने व्यापक स्वरूप में व्याप्त थी |
- इस संबंध में विश्व बैंक द्वारा प्रस्तुत आँकड़ों के अनुसार, वित्तीय समावेशन के दृष्टिकोण से वर्ष 2011 के अंत में भारत की तकरीबन 65% आबादी वित्तीय बहिष्करण की शिकार थी|
- इसके विपरीत 2011 के ही आँकड़ों के अनुसार, चीन की मात्र 35% आबादी ही वित्तीय बहिष्करण की समस्या से जूझ रही थी|
- इस अनुमान के फलतः भारत में वित्तीय बहिष्करण की समस्या के समाधान हेतु कईं प्रयास किये गए| इन उपायों में वर्ष 1969 और 1980 में बैंकों का राष्ट्रीयकरण और 100,000 शाखाओं और 1.1 मिलियन कर्मचारी युक्त एक विस्तृत शाखा नेटवर्क का निर्माण करना शामिल था|
जन धन योजना के पश्चात् भारत की स्थिति
- प्रधानमंत्री जन-धन योजना की वेबसाइट से प्राप्त आँकड़े जन-धन योजना के पश्चात् देश में बैंक खातों की संख्या में होने वाली वृद्धि और प्रधानमंत्री जन-धन खातों में होने वाली बचतों (savings) को दर्शाते हैं|
- ध्यातव्य है कि 76% खातों में एक बार ही लेन-देन हुआ है| हालाँकि इस आधार पर यह नहीं कहा जा सकता है कि इन खातों का उपयोग एक ही बार हुआ या खाताधारकों ने खाते का प्रयोग सक्रियतापूर्वक नहीं किया|
- उल्लेखनीय है कि प्रधानमंत्री जन-धन खातों को सरकारी लाभ के कार्यक्रमों जैसे-एल.पी.जी. सब्सिडी के हस्तांतरण हेतु भी प्रयोग किया गया|
- प्रधानमंत्री जन-धन योजना के प्रथम चरण में खोले गए 3000 खातों के एक समूह के विषय में दो वर्षों के आँकड़ों का निरीक्षण किया गया| आपको बता दें कि इस निरीक्षण कार्य की समाप्ति विमुद्रीकरण से कुछ समय पूर्व ही हुई थी|
- इस अध्ययन में, सक्रिय लेनदेन (जैसे-नकद जमा, ए.टी.एम. से हुई धन की निकासी) और निष्क्रिय लेनदेन (जैसे-ब्याज ऋण अथवा एल.पी.जी. हस्तांतरण) के मध्य अंतर करने के लिये लेनदेन का विवरण देखा गया|
- इसमें भी अधिक ध्यान सक्रिय लेनदेन पर ही केन्द्रित किया गया क्योंकि इनके लिये खाताधारक की भागीदारी की आवश्यकता होती है तथा यह खातों के उचित प्रयोग को भी प्रदर्शित करता है|
- प्रधानमंत्री जन-धन योजना के खाताधारकों के द्वारा प्रति खाता लेनदेन की गति शुरुआत में तो मंद थी परन्तु समय के साथ-साथ इसमें वृद्धि दर्ज की गई|
- एक तिमाही में प्रति खाता 0.61 सक्रिय लेनदेन के स्तर से बढ़कर सातवीं तिमाही में प्रति खाता 1.12 सक्रिय लेनदेन के स्तर पर आ गया| यह समस्त वर वृद्धि सक्रियता में 100% वृद्धि को प्रदर्शित करती है|
- ध्यातव्य है कि सक्रिय लेनदेन खाताधारकों द्वारा किये जाते हैं तथा यह सम्पूर्ण लेनदेनों का 45% होते हैं|
- इस अध्ययन में, उन खातों का भी परीक्षण किया गया जिन्हें एल.पी.जी. या अन्य किसी और प्रकार की सब्सिडी प्रदत्त नहीं की गई थी| प्रसन्नता की बात यह है कि समय के साथ इन खातों की संख्या में भी वृद्धि देखी गई|
- यद्यपि खातों का उपयोग लेनदेन प्रक्रियाओं के लिये किया गया था, तथापि समय के साथ-साथ खातों की जमा राशि में भी वृद्धि दर्ज की गई| इससे यह प्रदर्शित होता है कि प्रधानमंत्री जन धन योजना खातों का प्रयोग बचत राशि के लिये भी किया जा सकता है|
निष्कर्ष
जैसा की हम सभी जानते है कि प्रधानमंत्री जन-धन योजना का मुख्य दृष्टिकोण यह है कि किसी भी वस्तु की अधिकता ही समावेशी विकास में अहम भूमिका का निर्वाह कर सकती हैं| इसका तात्पर्य यह है कि यदि अधिक से अधिक लोगों को बैंक खाता मुहैया कराया जाता है तो वे निश्चित ही उसका प्रयोग करेंगे| भारत में आज कईं प्रकार के कार्ड को स्वैप करने के लिये बैंकों की शाखाएँ, ए.टी.एम नेटवर्क, पॉइंट ऑफ़ सेल और मोबाइल एप उपलब्ध हैं परन्तु इन सबके बावजूद भी ऐसे बहुत से लोग हैं जिनके आज आज भी बैंक में कोई खाता नहीं मौजूद नहीं हैं| हालाँकि यदि इन लोगों के विषय में गंभीरता से विचार किया जाए तो स्पष्ट होता है कि ये वे लोग हैं जो बचत तो करना चाहते हैं परन्तु चूँकि ये सभी औपचारिक वित्तीय व्यवस्था का उपयोग करने में सक्षम नहीं हैं इसलिये नहीं कर पा रहे हैं| इसके कई कारण हो सकते हैं यथा; सामाजिक प्रथाओं के चलते, या फिर उच्च लेनदेन लागत के कारण| वस्तुतः कारण चाहे जो भी हो, भारत सरकार को इस दिशा में ओर अधिक गंभीरता से विचार करने की आवश्यकता है| ताकि विकास की राह में सभी को साथ लेकर चला जा सकें|