भारतीय अर्थव्यवस्था
विश्व व्यापार संगठन: संकट
- 29 Aug 2019
- 18 min read
इस Editorial में The Hindu, The Indian Express, Business Line आदि में प्रकाशित लेखों का विश्लेषण किया गया है। इस आलेख में विश्व व्यापार संगठन के संकट तथा इस संगठन के विरोध में अमेरिकी नीति की चर्चा की गई है। आवश्यकतानुसार यथास्थान टीम दृष्टि के इनपुट भी शामिल किये गए हैं।
संदर्भ
अमेरिका ने विश्व व्यापार संगठन (World Trade Organization- WTO) पर भेदभाव का आरोप लगाते हुए चेतावनी दी है कि यदि उसके साथ उपयुक्त व्यवहार नहीं किया गया तो वह इस संगठन से बाहर निकल जाएगा। अमेरिका का मानना है WTO ने कई देशों को विकासशील देश होने का दावा करने का अवसर प्रदान किया है, जबकि ये देश पर्याप्त आर्थिक विकास कर चुके हैं तथा विकासशील देशों की स्थिति से ऊपर उठ चुके हैं। इस तरह WTO एक गंभीर अस्तित्व के संकट का सामना कर रहा है। हालाँकि WTO को विभिन्न तबकों से चुनौतियाँ दी जा रही हैं, लेकिन इसे सबसे बड़ा खतरा अमेरिका (इसके पूर्व समर्थकों में से एक) से उत्पन्न हो रहा है और जबकि अमेरिकी राष्ट्रपति ने तो WTO को अब तक का सबसे खराब व्यापार सौदा करार दिया है।
पृष्ठभूमि
- अमेरिकी व्यापार प्रतिनिधि (U.S. Trade Representative- USTR) को दिये गए एक ज्ञापन में, यह इंगित किया गया था कि WTO के 164 सदस्यों में से लगभग दो-तिहाई ने स्वयं को विकासशील देशों के रूप में वर्गीकृत कर रखा है और कई समृद्ध अर्थव्यवस्थाएँ विकसित अर्थव्यवस्था के बजाय विकासशील अर्थव्यवस्था होने का दावा करती हैं।
- WTO में स्वयं को विकासशील देशों के रूप में वर्गीकृत करके अमेरिका का अनुचित लाभ उठाने के लिये भारत और चीन को विशेष रूप से कटघरे में खड़ा किया गया था।
- विकासशील देश का दर्जा विभिन्न देशों के बीच मुक्त और निष्पक्ष व्यापार के लिये निर्धारित WTO नियमों से आंशिक छूट लेने का अवसर प्रदान करता है।
- यह चीन और भारत जैसे देशों को अन्य देशों से आयात पर उच्च शुल्क (टैरिफ) लगाने और अपने घरेलू हितों की रक्षा के लिये स्थानीय उत्पादकों को अधिक सब्सिडी प्रदान करने की अनुमति देता है।
- विकसित देश इसे अपने उत्पादकों के लिये प्रतिकूल और अनुचित मानते हैं, जिन्हें चीन जैसे देशों को विकासशील देश होने के चलते मिलने वाले लाभ के कारण एक सापेक्षिक हानि की स्थिति में धकेल दिया गया है।
- चीन जैसे देशों ने अपने विकासशील देश के दर्जे को उपयुक्त करार दिया है क्योंकि उनकी प्रति व्यक्ति आय निम्न है।
विकासशील देश होने के मायने
विकासशील देश का आशय उन देशों से है जो अपने आर्थिक विकास के पहले चरण से गुज़र रहे हैं तथा जहाँ लोगों की प्रति व्यक्ति आय विकसित देशों की अपेक्षा काफी कम है। इन देशों में जनसंख्या काफी अधिक होती है जिसके कारण इन्हें गरीबी और बेरोज़गारी जैसी चुनौतियों का भी सामना करना पड़ता है। विश्व व्यापार संगठन के तहत विकासशील सदस्य देशों को WTO द्वारा मंज़ूर विभिन्न बहुपक्षीय व्यापार समझौतों की प्रतिबद्धताओं (Commitments) से अस्थायी छूट प्राप्त करने की अनुमति होती है। WTO ने इसकी शुरुआत अपने प्रारंभिक दौर में इस उद्देश्य से की थी कि इसके माध्यम से गरीब सदस्य देशों को कुछ राहत दी जा सके ताकि वे नए वैश्विक व्यापार परिदृश्य में स्वयं को आसानी से समायोजित कर सकें। हालाँकि WTO औपचारिक रूप से अपने किसी भी सदस्य देश को विकासशील देश या किसी अन्य प्रकार की श्रेणी में वर्गीकृत नहीं करता है, बल्कि सभी सदस्य देशों को इस बात की स्वयं घोषणा करने की अनुमति दी गई है। WTO से मिली इस स्वतंत्रता के कारण ही उसके 164 सदस्य देशों में से दो-तिहाई ने खुद को विकासशील देश के रूप में वर्गीकृत किया है।
कैसे मिलता है भारत और चीन को लाभ?
विश्व व्यापार संगठन की स्थापना एक ऐसे अंतर्राष्ट्रीय व्यापार निकाय के रूप में की गई थी जिसका कार्य आयात-निर्यात शुल्क और सब्सिडी जैसी बाधाओं को कम करके राष्ट्रों के बीच अंतर्राष्ट्रीय व्यापार को बढ़ावा देना था। अब तक WTO के तहत कई व्यापार समझौतों की पुष्टि की गई है। हालाँकि कई बार विकासशील देश होने के कारण भारत और चीन जैसे देशों को इन व्यापार समझौतों के पूर्ण कार्यान्वयन से छूट मिलती है। उदाहरण के लिये भारत खाद्य सुरक्षा का तर्क देते हुए भारतीय किसानों को भारी मात्रा में सब्सिडी देता है। साथ ही स्थानीय उत्पादकों को बढ़ावा देने के उद्देश्य से संरक्षणवादी नीति जैसे आयात शुल्क का भी प्रयोग करता है।
WTO: विवाद निपटान का संकट
WTO की विवाद निपटान प्रक्रिया संकट से गुज़र रही है। हाल के दिनों में WTO के कई फैसले अमेरिका के प्रतिकूल रहे। इसके कारण अमेरिकी अधिकारियों को यह दावा करने का अवसर मिला कि अमेरिका का उत्पीड़न किया जा रहा है और WTO के नियम उसकी राष्ट्रीय संप्रभुता का उल्लंघन कर रहे हैं। उदाहरण के लिये WTO के अपीलीय निकाय (Appellate Body- AB) की जुलाई 2019 की हालिया रिपोर्ट ने निर्णय दिया है कि अमेरिका ने चीन के विरुद्ध कुछ व्यापार अवरोधों (Trade Barriers) को लागू करने में WTO के नियमों का उल्लंघन किया है। यदि अमेरिका इन व्यापार अवरोधों को नहीं हटाता है तो चीन अमेरिकी निर्यात के विरुद्ध प्रतिबंध लगा सकता है। WTO में अपीलीय निकाय की रिपोर्ट अंतिम और बाध्यकारी होती है तथा इसे चुनौती नहीं दी जा सकती। अमेरिका यदि चीन को व्यापार प्रतिबंध लगाने का विकल्प नहीं देना चाहता है तो उसे WTO के निकाय का अनुपालन करना होगा। अमेरिकी प्रशासन को WTO का यह निर्णय पसंद नहीं आया, इसी कारण उसने WTO पर अमेरिका की राष्ट्रीय संप्रभुता का अतिक्रमण करने का आरोप लगाया है। उसने WTO की विवाद निपटान प्रणाली पर न्यायिक "अतिरेक" (Overreach) का भी आरोप लगाया है। अपने कथित उत्पीड़न के प्रतिशोध के रूप में अमेरिका द्वारा पिछले कुछ वर्षों से WTO के अपीलीय निकाय में सदस्यों की नियुक्ति को अवरुद्ध किया जा रहा है और इसका गंभीर प्रभाव WTO की विवाद निपटान प्रणाली पर पड़ रहा है। WTO की विवाद निपटान प्रणाली में किसी भी व्यापार विवाद को आरंभ में संबंधित सदस्य देशों के बीच परामर्श के माध्यम से निपटाने की कोशिश की जाती है। यदि यह उपाय सफल नहीं होता है तो मामला एक विवाद पैनल (Dispute Panel) के पास जाता है। विवाद पैनल का निर्णय अंतिम होता है, लेकिन उसके निर्णय के खिलाफ अपील अपीलीय निकाय (AB) के समक्ष की जा सकती है। अपीलीय निकाय द्वारा विवाद पैनल के निर्णयों की समीक्षा की जाती है। लेकिन अपीलीय निकाय द्वारा रिपोर्ट प्रस्तुत किये जाने के पश्चात् यह अंतिम होती है तथा सदस्य देशों पर बाध्यकारी होती है। WTO प्रणाली के अनुसार, AB में सात सदस्य होने चाहिये जो WTO के सदस्य देशों के बीच आम सहमति से नियुक्त किये जाते हैं। WTO के विवाद पैनल से किसी भी अपील को AB के सात सदस्यों में से तीन द्वारा सुना जाता है। इन सात सदस्यों को चार वर्ष के कार्यकाल के लिये नियुक्त किया जाता है। एक बार जब किसी AB सदस्य का कार्यकाल पूरा हो जाता है तो AB की सदस्य क्षमता को सात बनाए रखने के लिये एक नए सदस्य की नियुक्ति की आवश्यकता होती है।
अमेरिका द्वारा नियुक्ति में अवरोध: वर्ष 2017 के बाद से अमेरिका द्वारा अपीलीय निकाय में नए सदस्यों की नियुक्ति में अवरोध पैदा किया जा रहा है। AB के चार सदस्यों का कार्यकाल पूरा हो चुका है और उनके स्थान पर नए सदस्यों की नियुक्ति नहीं हो सकी है। वर्तमान में AB में केवल तीन सदस्य बचे हैं और यदि कोई नया सदस्य नियुक्त नहीं किया गया तो दिसंबर 2019 तक इसमें केवल एक सदस्य शेष रह जाएगा। यह परिदृश्य AB को निष्क्रिय कर देगा और WTO विवाद निपटान तंत्र को खतरे में डाल देगा।
अमेरिकी रणनीतियाँ और इसके प्रभाव
अमेरिका वैश्विक व्यापार प्रणाली में व्यवधान पैदा करने के लिये दोतरफा रणनीति का उपयोग कर रहा है। एक तरफ वह WTO के नियमों का उल्लंघन कर बड़ी संख्या में व्यापार विवादों को सामने ला रहा है, तो दूसरी तरफ AB सदस्यों की नियुक्ति में व्यवधान डाल रहा है जिससे विवाद निपटान प्रणाली बाधित हो रही है। ये व्यापार संघर्ष और अनिश्चितताएँ वैश्विक व्यापार को भारी नुकसान पहुँचा रही हैं। इस वर्ष अप्रैल में जारी WTO के आँकड़ों से पता चलता है कि अंतर्राष्ट्रीय वस्तु व्यापार (Merchandise Trade) की वृद्धि दर में प्रत्यक्ष रूप से गिरावट आ रही है। मात्रा के संदर्भ में वर्ष 2017 में दर्ज 4.6 प्रतिशत की अच्छी वार्षिक (Year-on-Year) वृद्धि दर के बाद वैश्विक वस्तु व्यापार की वृद्धि दर वर्ष 2018 में 3 प्रतिशत तक की गिरावट आई है तथा वर्ष 2020 में इसके सिर्फ 2.6 प्रतिशत तक रहने का अनुमान है।
विश्व व्यापार संगठन
(World Trade Organization)
- विश्व व्यापार संगठन (World Trade Organization) विश्व में व्यापार संबंधी अवरोधों को दूर कर वैश्विक व्यापार को बढ़ावा देने वाला एक अंतर-सरकारी संगठन है, जिसकी स्थापना वर्ष 1995 में मराकेश संधि के तहत की गई थी।
- इसका मुख्यालय जिनेवा में है। वर्तमान में विश्व के 164 देश इसके सदस्य हैं।
- 29 जुलाई, 2016 को अफगानिस्तान इसका 164वाँ सदस्य बना था।
- सदस्य देशों का मंत्रिस्तरीय सम्मलेन इसके निर्णयों के लिये सर्वोच्च निकाय है, जिसकी बैठक प्रत्येक दो वर्षों में आयोजित की जाती है।
विश्व व्यापार संगठन की प्रासंगिकता
वर्ष 1995 में WTO के अस्तित्व में आने के बाद से विश्व में व्यापक परिवर्तन आया है जिनमें से कई परिवर्तन गहन संरचनात्मक प्रकृति के रहे हैं। नई प्रौद्योगिकियों ने हमारे जीने, संवाद और व्यापार करने के तरीकों को बदल दिया है। वर्ष 1995 में विश्व की 0.8 प्रतिशत से भी कम आबादी इंटरनेट का उपयोग कर रही थी, जबकि जून 2019 में यह संख्या लगभग 57 प्रतिशत है। संचार प्रौद्योगिकियों और कंटेनराइज़ेशन (वस्तु परिवहन का सुगम साधन) ने लागत को कम कर दिया है तथा देश से आयात-निर्यात होने वाले घटकों की मात्रा में वृद्धि की है जिससे उत्पादन श्रृंखला के अंतर्राष्ट्रीयकरण में वृद्धि हुई है। उदाहरण के लिये आईफोन (iPhone) में लगभग 14 मुख्य घटक होते हैं जिनका निर्माण 7-8 बहुराष्ट्रीय कंपनियों (40 से अधिक देशों में उनकी शाखाओं में) द्वारा किया जाता है। वर्ष 1995 से अब तक वस्तुओं का समग्र व्यापार लगभग चौगुना हो गया है, जबकि WTO के सदस्य देशों के आयात शुल्क में औसतन 15 प्रतिशत की गिरावट आई है। विश्व व्यापार का आधा से अधिक हिस्सा अब शुल्क-मुक्त है (WTO, 2015)। अंतर्राष्ट्रीय व्यापार में वृद्धि दर विश्व जीडीपी में वृद्धि दर से अधिक हो गई है तथा व्यापार में यह वृद्धि लोगों के जीवन स्तर में सुधार के साथ जुड़ी रही है। वर्तमान में WTO अपने सदस्य देशों के बीच वैश्विक व्यापार प्रवाह के 98 प्रतिशत से अधिक भाग को नियंत्रित करता है। इसके अतिरिक्त WTO मुक्त व्यापार समझौते के क्रियान्वयन की निगरानी करता है, वैश्विक व्यापार तथा आर्थिक नीतियों पर अनुसंधान करता है, साथ ही विभिन्न देशों के मध्य व्यापार को लेकर होने वाले विवादों के लिये विवाद निवारण तंत्र का कार्य भी करता है। इस बात पर गौर करने की बजाय कि WTO ने कितनी मात्रा में व्यापार का सृजन किया है तथा शुल्क में कितनी कमी की है, एक अन्य दृष्टिकोण पर ध्यान दिया जाना चाहिये कि WTO के कारण प्रत्येक वर्ष 340 बिलियन डॉलर मूल्य के व्यापार के नुकसान में कमी आई है।
निष्कर्ष
वर्ष 1995 में विश्व व्यापार संगठन की स्थापना के पश्चात् से अब तक इस संगठन ने अंतर्राष्ट्रीय व्यापार को बढ़ाने तथा विभिन्न देशों के मध्य विवादों को सुलझाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है। हालाँकि समय-समय पर इस संगठन पर भेदभाव के आरोप लगते रहे हैं किंतु ये आरोप प्रायः विकासशील देशों और कम विकसित देशों द्वारा लगाए जाते रहे हैं। ऐसा कम ही देखने को मिला है जब किसी विकसित देश ने भेदभाव के आरोप लगाए हों। वर्तमान में ऐसे ही आरोप अमेरिका द्वारा लगाए जा रहे हैं। यह ध्यान देने योग्य है कि WTO की स्थापना एक लंबी वार्ता के बाद हुई थी तथा तत्कालीन समय में अमेरिका जैसे विकसित देशों के प्रभुत्त्व और प्रभाव के कारण कई नियम इन देशों के पक्ष में निर्मित हुए जिसमें कृषि सब्सिडी का मुद्दा भी शामिल है। WTO का उद्देश्य व्यापारिक बाधाओं को दूर करना रहा है और यह विचार प्रमुख रूप से आर्थिक रूप से विकसित देशों के लिये लाभकारी है जिससे लंबे समय तक विकासशील देशों और कम विकसित देशों को नुकसान होता रहा है। मौजूदा वक्त में ऐसे देश जो WTO के निर्माण में शामिल रहे हैं, अब इस व्यवस्था पर प्रश्नचिह्न लगा रहे हैं। भले ही WTO के कुछ मुद्दे विकासशील देशों के विरोध में हों फिर भी इस संगठन ने वैश्विक व्यापार में वृद्धि तथा विभिन्न देशों के आर्थिक विकास में सहयोग दिया है। मौजूदा समय में अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर नियम आधारित व्यवस्था का होना बेहद आवश्यक है ताकि व्यापारिक अराजकता को रोका जा सके और अंतर्राष्ट्रीय व्यापार एवं आर्थिक विकास में वृद्धि हेतु सहयोग दिया जा सके।
प्रश्न: विश्व व्यापार संगठन मौजूदा समय में किस समस्या का सामना कर रहा है? इस संकट के लिये अमेरिका की नीतियाँ किस सीमा तक ज़िम्मेदार हैं? चर्चा कीजिये।