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डेली न्यूज़

  • 15 Apr, 2021
  • 55 min read
भारतीय विरासत और संस्कृति

पारंपरिक नववर्ष आधारित त्योहार

चर्चा में क्यों?

भारत के उपराष्ट्रपति ने लोगों को ‘चैत्र शुक्लादि, गुड़ी पड़वा, उगादि, चेटीचंड, वैसाखी, विसु, पुथंडु और बोहाग बिहू’ त्योहारों पर शुभकामनाएँ दीं।

  • वसंत ऋतु के ये त्योहार भारत में पारंपरिक नववर्ष की शुरुआत के प्रतीक हैं।

प्रमुख बिंदु:

चैत्र शुक्लादि:

  • यह विक्रम संवत के नववर्ष की शुरुआत को चिह्नित करता है जिसे वैदिक [हिंदू] कैलेंडर के रूप में भी जाना जाता है।
  • विक्रम संवत उस दिन से संबंधित है जब सम्राट विक्रमादित्य ने शकों को हराया और एक नए युग का आह्वान किया।
  • उनकी देखरेख में खगोलविदों ने चंद्र-सौर प्रणाली के आधार पर एक नया कैलेंडर बनाया जिसका अनुसरण भारत के उत्तरी क्षेत्रों में अभी भी किया जाता है।
  • यह चैत्र (हिंदू कैलेंडर का पहला महीना) माह के ‘वर्द्धित चरण’ (जिसमें चंद्रमा का दृश्य पक्ष हर रात बड़ा होता जाता है) का पहला दिन होता है।

गुड़ी पड़वा और उगादि:

  • ये त्योहार कर्नाटक, आंध्र प्रदेश और महाराष्ट्र सहित दक्कन क्षेत्र में लोगों द्वारा मनाए जाते हैं।
  • दोनों त्योहारों के समारोहों में आम प्रथा है कि उत्सव का भोजन मीठे और कड़वे मिश्रण से तैयार किया जाता है।
  • दक्षिण में बेवु-बेला नामक गुड़ (मीठा) और नीम (कड़वा) परोसा जाता है, जो यह दर्शाता है कि जीवन सुख और दुख दोनों का मिश्रण है।
  • गुड़ी महाराष्ट्र के घरों में तैयार की जाने वाली एक गुड़िया है।
    • गुड़ी बनाने के लिये बाँस की छड़ी को हरे या लाल ब्रोकेड से सजाया जाता है। इस गुड़ी को घर में या खिड़की/दरवाजे के बाहर सभी को दिखाने के लिये प्रमुखता से रखा जाता है।
  • उगादि के लिये घरों में दरवाजे आम के पत्तों से सजाए जाते हैं, जिन्हें कन्नड़ में तोरणालु या तोरण कहा जाता है।

चेटी चंड:

  • सिंधी ‘चेटी चंड’ को नववर्ष के रूप में मनाते हैं। चैत्र माह को सिंधी में 'चेत' कहा जाता है।
  • यह दिन सिंधियों के संरक्षक संत उदयलाल/झूलेलाल की जयंती के रूप में मनाया जाता है।

नवरेह:

  • यह कश्मीर में मनाया जाने वाला चंद्र नववर्ष है।
    • संस्कृत के शब्द 'नववर्ष'से 'नवरेह' शब्द की व्युत्पत्ति हुई है।
  • यह चैत्र नवरात्रि के पहले दिन आयोजित किया जाता है।
  • इस दिन कश्मीरी पंडित चावल के एक कटोरे के दर्शन करते हैं, जिसे धन और उर्वरता का प्रतीक माना जाता है।

बैसाखी:

  • इसे हिंदुओं और सिखों द्वारा मनाया जाने वाला बैसाखी भी कहा जाता है।
  • यह हिंदू सौर नववर्ष की शुरुआत का प्रतीक है।
  • यह वर्ष 1699 में गुरु गोविंद सिंह के खालसा पंथ के गठन की याद दिलाता है।
  • बैसाखी वह दिन था जब औपनिवेशिक ब्रिटिश साम्राज्य के अधिकारियों ने एक सभा में जलियाँवाला बाग हत्याकांड को अंजाम दिया था, यह औपनिवेशिक शासन के खिलाफ भारतीय आंदोलन की एक घटना थी।

विशु:

  • यह एक हिंदू त्योहार है जो भारत के केरल राज्य, कर्नाटक में तुलु नाडु क्षेत्र, केंद्रशासित प्रदेश पांडिचेरी का माहे ज़िला, तमिलनाडु के पड़ोसी क्षेत्र और उनके प्रवासी समुदाय में मनाया जाता है।
  • यह त्योहार केरल में सौर कैलेंडर के नौवें महीने, मेदाम के पहले दिन को चिह्नित करता है।
  • यह हमेशा ग्रेगोरियन कैलेंडर में अप्रैल के मध्य में 14 या 15 अप्रैल को हर वर्ष आता है।

पुथांडू:

  • इसे पुथुवरुडम या तमिल नववर्ष के रूप में भी जाना जाता है, यह तमिल कैलेंडर वर्ष का पहला दिन है और पारंपरिक रूप से एक त्योहार के रूप में मनाया जाता है।
  • इस त्योहार की तारीख तमिल महीने चिथिरई के पहले दिन के रूप में हिंदू कैलेंडर के सौर चक्र के साथ निर्धारित की जाती है।
  • इसलिये यह ग्रेगोरियन कैलेंडर में हर वर्ष 14 अप्रैल को आता है।

बोहाग बिहू:

  • बोहाग बिहू या रोंगाली बिहू, जिसे हतबिहु (सात बिहू) भी कहा जाता है, असम के उत्तर-पूर्वी भारत और अन्य भागों में मनाया जाने वाला एक पारंपरिक आदिवासी जातीय त्योहार है।
  • यह असमिया नववर्ष की शुरुआत का प्रतीक है।
  • यह आमतौर पर अप्रैल के दूसरे सप्ताह में आता है, ऐतिहासिक रूप से यह फसल के समय को दर्शाता है।

स्रोत-पीआईबी


जैव विविधता और पर्यावरण

‘इंडियन राइनो विज़न’ 2020

चर्चा में क्यों?

हाल ही में ‘इंडियन राइनो विज़न’ 2020 (Indian Rhino Vision 2020- IRV2020) के तहत असम स्थित मानस नेशनल पार्क (Manas National Park) में दो गैडों (Rhinos) को स्थानांतरित  करने के साथ IRV2020 अपने लक्ष्य के और अधिक करीब पहुँच गया है।  

  • IRV2020 के तहत गैडों के स्थानांतरण का यह आठवाँ दौर था।   

प्रमुख बिंदु: 

इंडियन राइनो विज़न’ 2020 के बारे में:

  • इसे वर्ष 2005 में शुरू किया गया। भारतीय राइनो विज़न 2020 के तहत वर्ष 2020 तक भारतीय राज्य असम में स्थित सात संरक्षित क्षेत्रों में फैले एक सींग वाले गैंडों की आबादी को बढ़ाकर कम-से-कम 3,000 से अधिक करने का एक महत्त्वाकांक्षी प्रयास था।
  • सात संरक्षित क्षेत्रों में  काज़ीरंगा (Kaziranga), पोबितोरा (Pobitora), ओरांग  नेशनल पार्क (Orang National Park), मानस नेशनल पार्क (Manbs National Park), लोखोवा वन्यजीव अभयारण्य (Laokhowa Wildlife Sanctuary), बुराचौरी वन्यजीव अभयारण्य (Burachapori Wildlife Sanctuary) और डिब्रू सैखोवा वन्यजीव अभयारण्य (Dibru Saikhowa Wildlife Sanctuary) शामिल हैं।
  • IRV2020 का उद्देश्य एक क्षेत्र से दूसरे क्षेत्र में जंगली जीवों का हस्तांतरण करना है।  इसके तहत काज़ीरंगा नेशनल पार्क जैसे सघन गैडों की आबादी वाले क्षेत्र से मानस नेशनल पार्क, जहाँ  आबादी कम है, में गैंडों को हस्तांतरण किया जाना है। 
  • यह अंतर्राष्ट्रीय राइनो फाउंडेशन (International Rhino Foundation), असम वन विभाग (Assam’s Forest Department), बोडोलैंड टेरिटोरियल काउंसिल (Bodoland Territorial Council), वर्ल्ड वाइड फंड- इंडिया (World Wide Fund - India) और यूएस फिश एंड वाइल्डलाइफ सर्विस (US Fish and Wildlife Service) सहित विभिन्न संगठनों के मध्य  एक सहयोगात्मक प्रयास है।

कार्यक्रम का प्रदर्शन:

  • गैंडों की आबादी को बढ़ाकर 3,000  करने के लक्ष्य को लगभग प्राप्त  कर लिया गया है, लेकिन योजनाबद्ध तरीके से चार संरक्षित क्षेत्रों में हस्तांतरित जीवों में से केवल एक क्षेत्र में ही उनकी आबादी को दोबारा से देखा जा रहा है ।
    • काजीरंगा नेशनल पार्क, ओरांगा नेशनल पार्क और पोबितोरा के अलावा चार संरक्षित क्षेत्रों में एक-सींग वाले गैंडों (Greater one-Rorned Rhino) के  प्रसार की योजना को क्रियान्वित नहीं किया जा सका।
  • मानस नेशनल पार्क में गैंडों के हस्तांतरण ने इसे वर्ष 2011 में  विश्व विरासत स्थल का दर्जा दिलाने में मदद की है।
  • पूरे असम  में वन्यजीव अपराध से निपटने हेतु वानिकी, स्थानीय और राष्ट्रीय सरकारी अधिकारियों के सयुक्त प्रयासों के परिणामस्वरूप वर्ष 2018 और 2019 में गैंडों के अवैध शिकार में कमी देखी गई है।

एक-सींग वाले गैंडे के बारे में: 

  • एशिया में राइनो की तीन प्रजातियाँ एक-सींग वाला गैंडा (Greater One-Horned Rhino),  जावन (Javan) और  सुमात्रन (Sumatran) पाई जाती हैं।
  • गैंडों के  सींग के लिये इनका शिकार करना और इनके निवास स्थान की क्षति एशिया में गैंडों के अस्तित्व के लिये दो सबसे बड़े खतरे हैं।
  • राइनो रेंज़ के पाँच देशों (भारत, भूटान, नेपाल, इंडोनेशिया और मलेशिया) ने इन प्रजातियों के संरक्षण और सुरक्षा के लिये न्यू डेल्ही डिक्लेरेशन ऑन एशियन राइनोज़ (The New Delhi Declaration on Asian Rhinos), 2019  पर हस्ताक्षर किये हैं।
  • संरक्षण स्थिति: 
    • जावा और सुमात्रन राइनो गंभीर रूप से संकटग्रस्त (Critically Endangered) श्रेणी में शामिल तथा एक-सींग वाला गैंडा (भारतीय गैंडा) है, IUCN की रेड लिस्ट में सुभेद्य श्रेणी में शामिल है।
    • गैंडो की तीनों प्रजातियों को परिशिष्ट I (CITES) के तहत सूचीबद्ध किया गया है।
    • एक-सींग वाले गैंडे को वन्यजीव संरक्षण अधिनियम 1972 की अनुसूची I के तहत सूचीबद्ध किया गया है।
  • एक-सींग वाले गैंडे का निवास स्थान: 

स्रोत: द हिंदू


भारतीय इतिहास

जलियाँवाला बाग हत्याकांड

चर्चा में क्यों?

हाल ही में प्रधानमंत्री ने जलियाँवाला बाग हत्याकांड (Jallianwala Bagh Massacre) की 102वीं वर्षगांठ पर शहीदों को श्रद्धांजलि अर्पित की।

  • भारतीय राष्ट्रीय अभिलेखागार (National Archives of India) के 130वें स्थापना दिवस के अवसर पर जलियाँवाला बाग हत्याकांड की शताब्दी को चिह्नित करने के लिये एक प्रदर्शनी “जलियाँवाला बाग” का उद्घाटन किया गया था।

प्रमुख बिंदु

जलियाँवाला बाग हत्याकांड के विषय में:

  • 13 अप्रैल, 1919 को जलियाँवाला बाग में आयोजित एक शांतिपूर्ण बैठक में शामिल लोगों पर ब्रिगेडियर जनरल रेगीनाल्ड डायर ने गोली चलाने का आदेश दिया था, जिसमें हज़ारों निहत्थे पुरुष, महिलाएँ और बच्चे मारे गए थे।

जलियाँवाला बाग हत्याकांड के लिये उत्तरदायी कारक:

  • अप्रैल 1919 का नरसंहार एक ऐसी घटना थी जिसके पीछे कई कारक काम कर रहे थे।
  • भारत में तत्कालीन ब्रिटिश सरकार प्रथम विश्व युद्ध (1914–18) के दौरान राष्ट्रीय गतिविधियों को रोकने लिये कई दमनकारी कानून लाई।
  • अराजक और क्रांतिकारी अपराध अधिनियम (Anarchical and Revolutionary Crimes Act), 1919 जिसे रॉलेट एक्ट या काला कानून (Rowlatt Act or Black Act) के नाम से भी जाना जाता है, को 10 मार्च 1919 को पारित किया गया। सरकार को अब किसी व्यक्ति को जो देशद्रोही गतिविधियों में लिप्त था और जिससे देशव्यापी अशांति फैलने का डर था, बिना मुकदमा चलाए कैद करने का अधिकार मिल गया।
  • 13 अप्रैल, 1919 को सैफुद्दीन किचलू और डॉ. सत्यपाल की रिहाई का अनुरोध करने के लिये जलियाँवाला बाग में लगभग 10,000 पुरुषों, महिलाओं और बच्चों की भीड़ जमा हुई।
    • हिंदू-मुस्लिम एकता के प्रतीक दोनों प्रमुख नेताओं को रॉलेट एक्ट के खिलाफ शांतिपूर्ण विरोध करने पर गिरफ्तार करके शहर से बाहर भेज दिया गया था।
  • ब्रिगेडियर- जनरल डायर ने अपने सैनिकों के साथ घटनास्थल पर पहुँचकर सभा को घेर लिया और वहाँ से बाहर जाने के एकमात्र मार्ग को अवरुद्ध कर अपने सिपाहियों को प्रदर्शनकारियों पर गोली चलाने के लिये कहा।

जलियाँवाला बाग हादसे के बाद की स्थिति:

  • भविष्य में किसी भी विरोध प्रदर्शन को रोकने के लिये सरकार ने पंजाब में मार्शल लॉ लागू कर दिया, जिसमें सार्वजनिक झंडे और अन्य अपमान शामिल थे। इस घटना की खबर सुनकर भारतीयों में नाराजगी बढ़ गई और पूरे उपमहाद्वीप में ब्रिटिश सरकार के खिलाफ विरोध-प्रदर्शन शुरू हो गएँ।
  • बंगाली कवि और नोबेल पुरस्कार विजेता रवींद्रनाथ टैगोर ने वर्ष 1915 में अपनी नाइटहुड की उपाधि को त्याग दिया।
  • महात्मा गांधी ने कैसर-ए-हिंद की उपाधि वापस कर दी, जिसे इन्हें बोअर युद्ध (Boer War) के दौरान अंग्रेज़ों द्वारा दिया गया था।
  • 14 अक्तूबर, 1919 को भारत सरकार ने डिसऑर्डर इन्क्वायरी कमेटी (Disorders Inquiry Committee) के गठन की घोषणा की। यह समिति लॉर्ड विलियम हंटर की अध्यक्षता के चलते उनके नाम पर हंटर कमीशन (Hunter Commission) के नाम से जानी जाती है। इसमें भारतीय भी सदस्य थे।
    • मार्च 1920 में प्रस्तुत अंतिम रिपोर्ट में समिति ने सर्वसम्मति से डायर के कृत्यों की निंदा की और उसे अपने पद से इस्तीफा देने का निर्देश दिया।
  • भारतीय राष्ट्रीय कॉन्ग्रेस ने अपनी गैर-आधिकारिक समिति नियुक्त की जिसमें मोतीलाल नेहरू, सी. आर. दास, अब्बास तैयब जी, एम. आर. जयकर और गांधी को शामिल किया गया था।
  • महात्मा गांधी ने जल्द ही अपने पहले बड़े अहिंसक सत्याग्रह अभियान, असहयोग आंदोलन (Non Cooperation Movement- 1920-22) को शुरू किया, जो 25 वर्ष बाद भारत के ब्रिटिश शासन को समाप्त करने की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम साबित हुआ।

स्रोत: पी.आई.बी.


शासन व्यवस्था

खाद्य उत्पादन में ज़ूनोसिस के जोखिम को कम करना

चर्चा में क्यों?

विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO), विश्व पशु स्वास्थ्य संगठन और संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम ने सरकारों को खाद्य उत्पादन एवं विपणन शृंखलाओं के माध्यम से मनुष्यों में ज़ूनोटिक रोगजनकों के संचरण के जोखिम को कम करने के लिये नए दिशा-निर्देश दिये हैं।

  • इसके परिणामों की भयावहता को देखते हुए कोविड-19 ने इस नए खतरे पर ध्यान आकर्षित किया है।

प्रमुख बिंदु:

ज़ूनोसिस:

  • ज़ूनोसिस एक संक्रामक रोग है जो जानवर से मनुष्यों में संचरित होता है। 
  • ज़ूनोटिक पैथोजंस बैक्टीरिया, वायरल या परजीवी हो सकते हैं।
  • वे सीधे संपर्क या भोजन, पानी और पर्यावरण के माध्यम से मनुष्यों में फैल सकते हैं।

चिंताएँ:

  • पशु विशेष रूप से जंगली जानवर मनुष्यों में संचारित सभी उभरते संक्रामक रोगों के 70% से अधिक का स्रोत होते हैं, जिनमें से कई ‘नोवल वायरस’ के प्रसार का कारण होते हैं।
  • अधिकांश उभरते संक्रामक रोग, जैसे-लासा बुखार, मारबर्ग रक्तस्रावी बुखार, निप्प वायरल संक्रमण और अन्य वायरल रोगों की उत्पत्ति वन्यजीवों से ही होती है।
  • पारंपरिक खाद्य बाज़ारों में जीवित जानवरों, विशेष रूप से जंगली जानवरों तथा उनके मांस की बिक्री की अनुमति देने से गंभीर समस्याएँ उत्पन्न होती हैं, इनके संभावित जोखिमों का ठीक से मूल्यांकन नहीं किया जा सकता है।
    • इस तरह का वातावरण जानवरों से उत्पन्न वायरस के प्रसार के लिये अवसर प्रदान करता है, जिसमें कोरोनावायरस भी शामिल है।

WHO दिशा-निर्देश:

  • पारंपरिक खाद्य बाज़ारों में जीवित तथा मृत जंगली जानवरों की बिक्री को निलंबित करने के लिये आपातकालीन नियम स्थापित करना।
  • जंगली जानवरों से ज़ूनोटिक सूक्ष्मजीवों के संचरण के जोखिमों को नियंत्रित करने के लिये नियमों के माध्यम से जोखिम का आकलन करना और जंगली जानवरों को पकड़ना।
  • यह सुनिश्चित करना कि खाद्य निरीक्षकों को पर्याप्त रूप से प्रशिक्षित किया गया है कि वे विभिन्न व्यवसाय उपभोक्ताओं के स्वास्थ्य की रक्षा के लिये नियमों का अनुपालन करते हैं और उन्हें इसका जवाबदेह ठहराया जाता है।
  • ज़ूनोटिक रोगजनकों के लिये निगरानी प्रणाली को मज़बूत बनाना।

भारतीय परिदृश्य:

ज़ूनोटिक बीमरियाँ:

  • भारत ऐसे शीर्ष भौगोलिक हॉटस्पॉटों में से एक है, जहाँ ज़ूनोटिक रोग एक प्रमुख सार्वजनिक स्वास्थ्य समस्या है, जिसके कारण रुग्णता और मृत्यु दर में वृद्धि होती है।
  • भारत में प्रमुख सार्वजनिक स्वास्थ्य ज़ूनोटिक रोगों में रेबीज़, ब्रुसेलोसिस, टोक्सोप्लाज़मोसिज़, सिस्टीकोर्सिस, इचिनेकोकोसिस, जापानी एन्सेफेलाइटिस (JE), प्लेग, लेप्टोस्पायरोसिस, स्क्रब टाइफस, निपा, ट्रायपैनोसोमियासिस, कैसानूर फारेस्ट रोग (KFD), क्रीमियन कांगो हीमोरेजिक फीवर (CCHF) शामिल हैं।

चुनौतियाँ:

  • बड़ी मानव आबादी और जानवरों के साथ इसके लगातार संपर्क।
  • गरीबी: आजीविका के साधन के रूप में पशु पालन पर निर्भरता में वृद्धि से मानव-पशु संपर्क उन्हें इस श्रेणी की बीमारियों के जोखिम में डालता है
  • जागरूकता में कमी: जनसंख्या का बड़ा हिस्सा बुनियादी स्वच्छता दिनचर्या का पालन करने से अनभिज्ञ है।
  • एंटीमाइक्रोबियल रेज़िस्टेंस (AMR): AMR तब होता है, जब कोई सूक्ष्मजीवी जो पहले एंटीबायोटिक से प्रभावित होता है, धीरे-धीरे उसके प्रति प्रतिरोधक क्षमता पैदा कर ले और एंटीबायोटिक उस पर बेअसर हो जाए।
  • उचित टीकाकरण कार्यक्रमों की कमी, शहरों में झुग्गी-बस्तियों की निगरानी में कमी और नैदानिक सुविधाओं की कमी निवारक और एहतियाती दृष्टिकोण को और अधिक कठिन बना देती है।

उठाए गए कदम:

  • राष्ट्रीय रोग नियंत्रण केंद्र के तहत निम्नलिखित कार्यक्रम शुरू किये गए हैं:
    • एकीकृत रोग निगरानी कार्यक्रम (IDSP)।
    • नेशनल प्रोग्राम फॉर कंटेनमेंट एंटीमाइक्रोबियल रेज़िस्टेंस।
    • राष्ट्रीय वायरल हेपेटाइटिस निगरानी कार्यक्रम।
    • सार्वजनिक स्वास्थ्य महत्त्व के ज़ूनोटिक रोगों की रोकथाम और नियंत्रण के लिये अंतर-क्षेत्रीय समन्वय को मज़बूत करना।
    • राष्ट्रीय रेबीज़ नियंत्रण कार्यक्रम।
    • लेप्टोस्पायरोसिस की रोकथाम और नियंत्रण के लिये कार्यक्रम।
    • इसके अलावा विशेषज्ञों ने देश में एक स्वास्थ्य ढाँचे की आवश्यकता को रेखांकित किया है। 

स्रोत-डाउन टू अर्थ


शासन व्यवस्था

नगालैंड के स्थानीय नागरिकों का रजिस्टर (RIIN)

चर्चा में क्यों?

हाल ही में नगा जनजातियों के एक शीर्ष निकाय, नगा होहो (Naga Hoho) द्वारा  नगालैंड के स्थानीय नागरिकों का रजिस्टर (Register of Indigenous Inhabitants of Nagaland-  RIIN) तैयार करने के संबंध नगालैंड राज्य सरकार को आगाह किया गया है। RIIN को असम के राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (National Register of Citizens) का ही एक रूप माना जा रहा है।

Nagaland

पृष्ठभूमि:

  • राज्य सरकार द्वारा वर्ष 2019 में RIIN के  अध्ययन, परीक्षण और कार्यान्वयन के संदर्भ में सिफारिश करने हेतु तीन सदस्यीय समिति का गठन किया गया था।
  • RIIN हेतु गठित समिति द्वारा निम्नलिखित कार्यों का निर्धारण किया जाना था:
    • स्थानीय निवासी होने के लिये पात्रता मानदंड।
    • स्थानीय होने के दावों को प्रमाणित करने के लिये प्राधिकरण।
    • स्थानीय निवासी के रूप में पंजीकरण का स्थान।
    • स्थानीय निवासी होने के दावों का आधार।
    • दस्तावेजों की प्रकृति जो स्थानीय होने के प्रमाण के रूप में स्वीकार्य होंगे।
  • हालांँकि, समुदाय आधारित और चरमपंथी संगठनों के विरोध के बाद इस कार्य को निलंबित कर दिया गया था।
  • तब से नगालैंड सरकार जुलाई 2019 में शुरू की गई RIIN प्रक्रिया, जिसका उद्देश्य बाह्य लोगों द्वारा राज्य में नौकरी और सरकारी योजनाओं का लाभ प्राप्त करने हेतु नकली स्वदेशी प्रमाण पत्रों प्रस्तुत किये जाने पर अंकुश लगाना था, को पुन: शुरू करने का प्रयास कर रही है। 

नगालैंड के स्थानीय नागरिकों का रजिस्टर (RIIN):

  • RIIN को आधिकारिक अभिलेखों/रिकार्ड्स के आधार पर स्थानीय निवासियों की ग्राम-वार और वार्ड-वार सूची की मदद से एक विस्तृत सर्वेक्षण के बाद तैयार किया जाएगा। साथ ही, इसे प्रत्येक ज़िला प्रशासन की निगरानी में तैयार किया जाएगा।
  • एक बार RIIN का कार्य पूर्ण होने के बाद, राज्य के स्थानीय निवासियों बच्चों के जन्म के अलावा किसी को भी नया स्वदेशी निवासी प्रमाण-पत्र जारी नहीं किया जाएगा। स्थानीय निवासियों के बच्चों के जन्म प्रमाण के साथ ही उन्हें स्थानीय निवासी का प्रमाण पत्र जारी किया जाएगा। तदनुसार RIIN डेटाबेस को समय-समय पर अपडेट किया जाएगा।
  • RIIN को इनर-लाइन परमिट (Inner-Line Permit) प्राप्त करने के हेतु ऑनलाइन प्रणाली के साथ भी एकीकृत किया जाएगा। इनर-लाइन परमिट एक अस्थायी दस्तावेज़ है जो नगालैंड में प्रवेश और यात्रा करने वाले गैर-निवासियों को जारी किया जाता  है।
  • इस समग्र प्रणाली या प्रक्रिया की निगरानी नगालैंड के आयुक्त द्वारा की जाएगी। इसके अलावा, राज्य सरकार सचिव रैंक के अधिकारियों को नोडल अधिकारी के रूप में नामित करेगी।

नगाओं की चिंता: 

  • यदि RIIN के लिये पहचान प्रक्रिया के तहत 1 दिसंबर, 1963 (नगालैंड को राज्य का दर्जा मिलने की तिथि) को स्थानीय निवासियों के निर्धारण हेतु अंतिम तिथि के रूप में लागू किया जाता है तो इस तिथि के बाद नगालैंड में प्रवेश करने वाले नगा RIIN की सूची से बाहर हो जाएंगे। इसके चलते भयावह परिणाम सामने आ सकते हैं।
  • संपत्ति का नुकसान:
    • भारत के असम, मणिपुर, अरुणाचल प्रदेश और म्याँमार में रहने वाली नगा जनजातियाँ अपने पूर्वजों की पैतृक भूमि पर अपने दावे को वैध ठहराती रही हैं।
    • हज़ारों नगा ऐसे हैं जिन्होंने नगालैंड में ज़मीनें खरीदी, अपने घर बनाए और दशकों से यहाँ रहे हैं।
    • 1 दिसंबर, 1963 से पहले के अभिलेखों  जैसे- भूमि का पट्टाकरण, भूमि कर तथा हाउस टैक्स का भुगतान या मतदाता सूची में नामांकन आदि का अभाव के रूप कई प्रक्रियात्मक विसंगतियां उन नगा परिवारों में भी देखने को मिल सकती हैं जिन्हें तथाकथित रूप से नगालैंड का विशुद्ध नगा समुदाय माना जाता है।
  • अवैध प्रवासी: 
    • गैर-स्थानिक नगाओं (Non-Indigenous Nagas) में इस बात की आशंका बनी हुई है कि उन्हें राज्य में “अवैध आप्रवासी” (Illegal Immigrants) घोषित किया जा सकता है तथा उनकी भूमि ज़ब्त हो सकती  है। इससे एक साथ, एकजुट और स्वतंत्र रूप से रहने के नगा लोगों की धारणा/विचार पर नकरात्मक प्रभाव पड़ेगा।

नगा: 

  • नगा, मुख्य तौर पर पहाड़ी क्षेत्रों में रहने वाले लोग होते हैं जिनकी आबादी लगभग 2. 5 मिलियन (नगालैंड में 1.8 मिलियन, मणिपुर में 0.6 मिलियन और अरुणाचल प्रदेश में 0.1 मिलियन) है। ये भारतीय राज्य- असम और बर्मा (म्याँमार) के मध्य सुदूर पहाड़ी क्षेत्रों में रहते हैं।
  • नगा, केवल एक जनजाति नहीं है, बल्कि एक जातीय समुदाय है, जिसमें नगालैंड और उसके आसपास के क्षेत्रों की कई जनजातियाँ शामिल हैं।
  • नगा समुदाय,  इंडो-मंगोलॉयड समूह से संबंधित है।
  • कुछ  प्रमुख नगा जनजातियों में  एओस (Aos), अंगामिस (Angamis), चांग्स (Changs), चकेसांग (Chakesang) , काबूस (Kabuis), कचरिस (Kacharis),  कोन्याक (Konyaks), कूकी (Kuki) लोथस (Lothas), माओ (Maos) , मिकीर्स (Mikirs), रेंगमास (Rengmas), टैंकहुल्स (Tankhuls), और ज़ीलियांग (Zeeliang) आदि शामिल हैं।

आगे की राह: 

  • नागालैंड पहले से ही अस्थिर क्षेत्र है जहांँ सशस्त्र बल (विशेषाधिकार) अधिनियम 1958 (Armed Forces Special Powers Act-AFSPA) लागू है, अत: ऐसी स्थिति में राज्य सरकार के लिये RIIN को त‍ैयार करने में खासा सावधानी बरतने काफी आवश्यक है। साथ ही RIIN को एक ऐसे साधन के रूप में प्रयोग करने से बचा जाना चाहिये, जिससे राज्य के मूल निवासियों की पहचान पर कोई भी संकट उत्पन्न हो।
  • ज्ञात हो कि असम में NRC के प्रयोग के अत्यंत विभाजनकारी परिणाम सामने आए थे। असम और नगालैंड राज्यों में जो कुछ भी घटित होता  है उसका अन्य पूर्वोत्तर राज्यों पर भी प्रभाव पड़ता है। अत: ऐसी स्थिति में RIIN को त‍ैयार करने में भावनात्मक राजनीतिक मुद्दों को एक आधार बनाने से बचा जाना चाहिये।

स्रोत: द हिंदू


जैव विविधता और पर्यावरण

नेशनल मिशन ऑन सस्टेनिंग हिमालयन ईकोसिस्टम

चर्चा में क्यों?

वैज्ञानिकों ने नेशनल मिशन ऑन सस्टेनिंग हिमालयन ईकोसिस्टम (National Mission on Sustaining Himalayan Ecosystem- NMSHE) का समर्थन करते हुए कहा है कि यह कार्यक्रम लेह क्षेत्र में सतत् और जलवायु अनुरूप कृषि को सक्षम बनाने के लिये किसानों को उपलब्ध वैज्ञानिक जानकारी देता है।

प्रमुख बिंदु :

परिचय:

  • NMSHE कार्यक्रम को वर्ष 2010 में शुरु किया गया था परंतु सरकार द्वारा औपचारिक रूप से वर्ष 2014 में इसे अनुमोदित किया गया था ।
  • यह विभिन्न क्षेत्रों में एक बहु-आयामी, क्रॉस-कटिंग मिशन है ।
  • यह जलवायु परिवर्तन के बेहतर प्रबंधन द्वारा देश के सतत विकास में योगदान देता है, जो इसके संभावित प्रभावों और हिमालय के उन क्षेत्रों, जिन पर भारत की आबादी का एक महत्त्वपूर्ण अनुपात जीविका के लिये निर्भर है, को आवश्यक अनुकूल दशाएँ प्रदान करता है।

राज्य विस्तार :

  • ग्यारह राज्य: हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, सिक्किम, अरुणाचल प्रदेश, नगालैंड, मणिपुर, मिज़ोरम, त्रिपुरा, मेघालय, असम और पश्चिम बंगाल।
  • दो केंद्रशासित प्रदेश: जम्मू- कश्मीर और लद्दाख।

उद्देश्य:

  • हिमालयी  पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं की  स्थिति का लगातार पता लगाने के लिये एक स्थायी राष्ट्रीय क्षमता  विकसित करना और उचित नीति उपायों तथा समयबद्ध कार्रवाई कार्यक्रमों के लिये नीति निर्माण निकायों को सक्षम बनाना है।
  • राष्ट्रीय स्तर पर हिमालयी पारिस्थितिकी तंत्र की स्वास्थ्य स्थिति का लगातार आकलन करने के लिये उपयुक्त प्रबंधन और नीतिगत उपायों को विकसित करना।
  • इसमें विभिन्न क्षेत्रों के हिमालयी ग्लेशियर एवं  जल विज्ञान संबद्ध परिणामों को   प्राकृतिक खतरों की भविष्यवाणी और प्रबंधन का अध्ययन करना शामिल हैं।

हिमालय:

  • परिचय:
    • हिमालय दुनिया की सबसे ऊँची और नवीन वलित पर्वत शृंखला  है।
    • इसकी भूगर्भीय संरचना नवीन, मुलायम और मोड़दार है क्योंकि हिमालयी उत्थान एक सतत् प्रक्रिया है, जो उसे दुनिया के उच्च भूकंप-संभावित क्षेत्रों में से एक बनाती है। भारतीय भूकंपीय ज़ोनिंग एक सतत्  प्रक्रिया है जो भूकंप की घटना संबंधी अधिक-से-अधिक आँकड़े प्राप्त होने पर बदलती रहती है।
    • यह भारत को अपने उत्तर-मध्य और पूर्वोत्तर सीमांत के साथ चीन (तिब्बत) से अलग करता है।
  • क्षेत्रफल:
    • भारतीय हिमालय लगभग 5 लाख वर्ग किमी. (देश के कुल भौगोलिक क्षेत्र का लगभग 16.2%) क्षेत्र में फैला हुआ है जो देश की उत्तरी सीमा बनाता है।
    • इस क्षेत्र को भारतीय उपमहाद्वीप के सर्वाधिक भू-भाग में जल की उपलब्धता के लिये उत्तरदायी माना जाता है। गंगा और यमुना जैसी पवित्र मानी जाने वाली कई नदियाँ हिमालय से निकलती हैं।
  • पर्वत श्रेणी:
    • हिमालय समानांतर पर्वत श्रेणी की एक शृंखला है जो उत्तर-पश्चिम से लेकर दक्षिण-पूर्व दिशा तक फैली हुई है। इन श्रेणियों को अनुदैर्ध्य घाटियों द्वारा अलग किया जाता है। उनमें शामिल है:
      • ट्रांस-हिमालय या पार हिमालय
      • महान हिमालय या हिमाद्रि
      • लघु हिमालय या हिमाचल
      • शिवालिक या बाह्य हिमालय
      • पूर्वी पहाड़ी या पूर्वांचल

जलवायु परिवर्तन पर राष्ट्रीय कार्ययोजना (NAPCC) 

परिचय:

  • इसे वर्ष 2008 में प्रधानमंत्री-जलवायु परिवर्तन परिषद नामक समिति द्वारा शुरू किया गया था।
  • पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (MoEFCC) NAPCC का समन्वय मंत्रालय है।

उद्देश्य:

  • इसका उद्देश्य जनता के प्रतिनिधियों, सरकार की विभिन्न एजेंसियों, वैज्ञानिकों, उद्योग और समुदायों को जलवायु परिवर्तन से उत्पन्न खतरे और इनसे मुकाबला करने के उपायों के बारे में जागरूक करना है।

मिशन या लक्ष्य:

NAPCC

  • राष्ट्रीय कार्ययोजना में प्रमुख रूप से आठ राष्ट्रीय मिशन शामिल हैं, जो जलवायु परिवर्तन में महत्त्वपूर्ण लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिये बहुआयामी, दीर्घकालिक और एकीकृत रणनीतियों का प्रतिनिधित्व करते हैं।
    • राष्ट्रीय सौर मिशन: वर्ष  2010 में इस मिशन की शुरुआत सौर ऊर्जा के उपयोग को बढ़ावा देने के लिये की गई ।
    • विकसित ऊर्जा दक्षता के लिये राष्ट्रीय मिशन: इस पहल की शुरुआत वर्ष 2009 में की गई जिसका उद्देश्य अनुकूल नियामक और नीतिगत व्यवस्था द्वारा ऊर्जा दक्षता के लिये बाज़ार को मज़बूत करना और ऊर्जा दक्षता के क्षेत्र में नवीन और स्थायी व्यापार मॉडल को बढ़ावा देने की परिकल्पना करना  है।
    • सुस्थिर निवास पर राष्ट्रीय मिशन: 2011 में अनुमोदित, इसका उद्देश्य इमारतों में ऊर्जा दक्षता में सुधार, ठोस कचरे के प्रबंधन और सार्वजनिक परिवहन में बदलाव के माध्यम से शहरों का  विकास करना है।
    • राष्ट्रीय जल मिशन: राष्‍ट्रीय जल मिशन इस प्रकार आयोजित किया जाएगा ताकि जल संरक्षण, जल के अपव्यय को कम करने और राज्‍यों तथा राज्‍यों के बीच जल का अधिक समीकृत वितरण सुनिश्चित करने हेतु समेकित जल संसाधन प्रबंधन सुनिश्‍चित किया जा सके।
    • सुस्थिर हिमालयी पारिस्थितिक तंत्र हेतु राष्ट्रीय मिशन: हिमालय की रक्षा करने के उद्देश्य से इसने सरकारी और गैर-सरकारी एजेंसियों के बीच समन्वय में आसानी के लिये हिमालयी पारिस्थितिकी पर काम करने वाले संस्थानों और नागरिक संगठनों को चिह्नित किया है।
    • हरित भारत हेतु राष्ट्रीय मिशन: 20 फरवरी, 2014 को केंद्र सरकार द्वारा राष्ट्रीय ग्रीन इंडिया मिशन को एक केंद्र प्रायोजित योजना के रूप में शामिल करने के पर्यावरण एवं वन मंत्रालय के प्रस्ताव को स्वीकृति प्रदान की गई। इसका उद्देश्य जलवायु परिवर्तन से सुरक्षा  प्रदान करना अर्थात् अनुकूलन और शमन उपायों के संयोजन से भारत के कम होते वन आवरण को बहाल करना तथा जलवायु परिवर्तन के खतरे से निपटने के लिये तैयारी करना है। 
    • सतत कृषि के लिये राष्ट्रीय मिशन: इसे 2010 में शुरू किया गया था। यह विशेष रूप से एकीकृत खेती, जल उपयोग दक्षता, मृदा स्वास्थ्य प्रबंधन और संसाधन संरक्षण पर ध्यान केंद्रित करते हुए वर्षा आधारित क्षेत्रों में कृषि उत्पादकता को बढ़ाने के लिये तैयार किया गया है।
    • जलवायु परिवर्तन हेतु रणनीतिक ज्ञान पर राष्ट्रीय मिशन: यह एक गतिशील और जीवंत ज्ञान प्रणाली का निर्माण करता है जो राष्ट्र के विकास लक्ष्यों पर समझौता न करते हुए जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों का प्रभावी ढंग से जवाब देने के लिये राष्ट्रीय नीति और कार्रवाई को सूचित और समर्थित करता है।

स्रोत-पीआईबी


सामाजिक न्याय

भिक्षावृत्ति

चर्चा में क्यों?

हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय (Supreme Court) ने केंद्र और चार राज्यों से भिक्षावृत्ति के प्रावधानों को निरस्त करने के लिये निर्देश देने की मांग करने वाली याचिका पर अपनी प्रतिक्रिया दर्ज करने को कहा है।

प्रमुख बिंदु

भिक्षावृत्ति को गैर-आपराधिक करने के पक्ष में तर्क:

  • इस सन्दर्भ में हाल के निर्णय: दिल्ली उच्च न्यायालय ने कहा कि बॉम्बे भिक्षावृत्ति रोकथाम अधिनियम, 1959 के प्रावधान, जो दिल्ली राजधानी क्षेत्र में भिक्षावृत्ति को आपराधिक बनता है, संवैधानिक सुरक्षा के प्रावधानों के विपरीत है।
  • जीवन के अधिकार के विरुद्ध: भिक्षावृत्ति के कृत्य को आपराधिक बनाने वाले कानूनों ने लोगों को अपराध करके पेट भरने या भूखा रहकर कानून मानने के बीच दुविधा में डाल दिया, जो संविधान के अनुच्छेद 21 के जीवन जीने के अधिकार का उल्लंघन है।
  • सामाजिक सुरक्षा प्रदान करने की सरकार की बाध्यता: यह सरकार का दायित्व है कि वह सभी लोगों को सामाजिक सुरक्षा प्रदान कर इसे सुनिश्चित करें, जिससे संविधान के राज्य के नीति निर्देशक तत्वों (DPSP) के अनुसार सभी के पास बुनियादी सुविधाएँ हों।
    • भिखारियों की उपस्थिति इस बात का प्रमाण है कि राज्य अपने सभी नागरिकों को बुनियादी सुविधाएँ देने में विफल रहा है।
    • इसलिये अपनी विफलता पर काम करने और लोगों के भिक्षावृत्ति की जाँच करने के बजाय, इसका अपराधीकरण करना तर्कहीन है और यह भारतीय संविधान की प्रस्तावना में उल्लेखित समाजवादी दृष्टिकोण के विरुद्ध है।

याचिका में सुझाव:

  • फास्ट फॉरवर्ड भिखारी पुनर्वास विधान: याचिका में दावा किया गया है कि भिखारी उन्मूलन एवं पुनर्वास विधेयक (Abolition of Begging and Rehabilitation of Beggars Bill), 2018 को लोकसभा में पेश किया गया था, लेकिन अब तक यह विधेयक पारित नहीं हुआ है और इसे लंबी संसदीय प्रक्रिया में शामिल कर दिया गया है।
    • मौजूदा मनाने कानूनों के कारण हज़ारों गरीबों को कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है।
    • विधायी प्रक्रिया को तेज़ी से आगे बढ़ाया जाना चाहिये।
  • कुछ प्रावधान को समाप्त करें: याचिका में बॉम्बे प्रिवेंशन ऑफ बेगिंग एक्ट, 1959; पंजाब प्रिवेंशन ऑफ बेगरी एक्ट, 1971; हरियाणा प्रिवेंशन ऑफ बेगिंग एक्ट, 1971 और बिहार प्रिवेंशन ऑफ बेगिंग एक्ट, 1951 के कुछ धाराओं को छोड़कर सभी प्रावधानों को "गैरकानूनी और शून्य" घोषित करने के निर्देश दिये गए हैं।
  • इसमें देश के किसी भी हिस्से में प्रचलित अन्य ऐसे ही सभी अधिनियमों को अवैध घोषित करने की भी मांग की गई है।

बॉम्बे भिक्षावृत्ति रोकथाम अधिनियम, 1959:

  • भारत में भिक्षावृत्ति की रोकथाम और नियंत्रण के लिये कोई संघीय कानून नहीं है, कई राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों ने अपने स्वयं के कानूनों के आधार के रूप में बॉम्बे अधिनियम का उपयोग किया है।
  • इस अधिनियम में भिक्षावृत्ति की परिभाषा में ऐसे किसी भी व्यक्ति को शामिल किया गया है जो गाना गाकर, नृत्य करके, भविष्य बताकर, कोई सामान देकर या इसके बिना भीख मांगता है या कोई चोट, घाव आदि दिखाकर, बीमारी बताकर भीख मांगता है।
  • इसके अलावा जीविका का कोई दृश्य साधन न होने और सार्वजनिक स्थान पर इधर-उधर भीख मांगने की मंशा से घूमना भी भिक्षावृत्ति में शामिल है।
  • यह अधिनियम पुलिस को बिना वारंट व्यक्तियों को गिरफ्तार करने की शक्ति देता है। इस कानून में भिक्षावृत्ति करते हुए पकड़े जाने पर पहली बार में तीन साल तक के लिये और दूसरी बार में दस साल तक के हिरासत में रखने का प्रावधान है।
    • यह कानून भिखारियों के गोपनीयता और गरिमा का उल्लंघन करता है और उन्हें अपने फिंगरप्रिंट देने के लिये बाध्य करता है।
  • इस अधिनियम में भिखारियों के परिवारों को हिरासत में लेने और उनके पाँच साल से अधिक उम्र के बच्चों को अलग रखने का अधिकार दिया गया है।
  • इसके साथ ही पकड़े गए व्यक्ति के आश्रितों को भी पंजीकृत संस्था में भेजा जा सकता है। यहाँ यह भी ध्यान देने वाली बात है कि इन संस्थाओं को भी कई प्रकार की शक्तियाँ प्राप्त हैं, जैसे-संस्था में लाए गए व्यक्ति को सजा देना, कार्य करवाना आदि। इन नियमों का पालन न करने पर व्यक्ति को जेल भी भेजा जा सकता है।

भारत में भिखारियों की संख्या:

  • भारत में जनगणना 2011 के अनुसार भिखारियों की कुल संख्या 4,13,670 (2,21,673 पुरुष और 1,91,997 महिलाएँ) है जो पिछली संख्या (जनगणना 2001) से ज़्यादा है।
  • भिक्षावृत्ति के मामले में पश्चिम बंगाल शीर्ष पर है और उत्तर प्रदेश तथा बिहार क्रमशः दूसरे एवं तीसरे नंबर पर हैं। लक्षद्वीप में वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार केवल दो भिखारी हैं।
  • केंद्र शासित प्रदेशों में नई दिल्ली में भिखारियों की संख्या सबसे अधिक (2,187) है और उसके बाद चंडीगढ़ में (121) है।
  • पूर्वोत्तर राज्यों में असम में सबसे ज़्यादा (22,116) और मिज़ोरम में सबसे कम (53) भिखारियों की संख्या है।

आगे की राह

  • सामाजिक-आर्थिक विश्लेषण के आधार पर एक केंद्रीय कानून बनाया जाना चाहिये। इस संदर्भ में 2016 में केंद्र सरकार ने पहला प्रयास ‘The Persons in Destitution (Protection, Care, Rehabilitation) Model Bill, 2016’ लाकर किया था। इस पर फिर से काम किये जाने की आवश्यकता है।
  • बिहार सरकार की मुख्यमंत्री भिक्षावृत्ति निवारण योजना (Bhikshavriti Nivaran Yojana) एक अनुकरणीय योजना है।
    • इस योजना के अंतर्गत व्यक्तियों को हिरासत में लेने की जगह उन्हें सामुदायिक घरों में रखने की व्यवस्था है।
    • इसके अंतर्गत पुनर्वास केंद्रों की स्थापना की गई है, जिसमें उपचार, पारिवारिक सुदृढीकरण और व्यावसायिक प्रशिक्षण की सुविधाएँ उपलब्ध हैं।
  • संगठित तौर पर चलने वाले भिक्षावृत्ति रैकेट्स को मानव तस्करी और अपहरण जैसे अपराधों के साथ जोड़ कर देखा जाना चाहिये।  

स्रोत: द हिन्दू


विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

HGCO19: mRNA वैक्सीन कैंडिडेट

चर्चा में क्यों?

भारत के mRNA आधारित कोविड -19 वैक्सीन कैंडिडेट, (HGCO19) को इसके नैदानिक ​परीक्षण के लिये अतिरिक्त सरकारी धन प्राप्त हुआ है।

प्रमुख बिंदु:

HGCO19:

  • नोवल mRNA टीका कैंडिडेट, HGCO19 को पुणे स्थित बायोटेक्नोलॉजी कंपनी जीनोवा (Gennova) बायोफार्मा फार्मास्यूटिकल्स लिमिटेड ने अमेरिका के HDT बायोटेक कारपोरेशन के सहयोग से विकसित किया है।
  • HGCO19 ने पहले से ही कृंतक और गैर-मानव प्राइमेट मॉडल में सुरक्षा, प्रतिरक्षा, तटस्थता एंटीबॉडी गतिविधि का प्रदर्शन किया है।
  • जीनोवा (Gennova) ने  HGCO19 के लिये चरण 1/2 नैदानिक ​​परीक्षणों हेतु स्वयंसेवकों के नामांकन की पहल की है।

पारंपरिक टीके बनाम mRNA टीका

  • टीके शरीर में रोग उत्पन्न करने वाले जीवों (वायरस या बैक्टीरिया) द्वारा उत्पन्न प्रोटीन को पहचानने और उन पर प्रतिरोधक क्षमता विकसित करते है।
  • पारंपरिक टीके  रोग उत्पन्न करने वाले जीवों की लघु या निष्क्रिय खुराक से या इनके द्वारा उत्पन्न प्रोटीन से बने होते हैं, जिन्हें प्रतिरक्षा प्रणाली की प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के लिये शरीर में टीकाकरण के माध्यम से प्रवेश कराया जाता है।
  • mRNA टीका वह विधि है जो शरीर में वायरल प्रोटीनों को स्वयं से उत्पन्न करने के लिये प्रेरित करता है।
    • वे mRNA या messenger RNA का उपयोग करते हैं, यह अणु अनिवार्य रूप से डीएनए निर्देशों के लिये कार्रवाई में भाग लेता है। कोशिका के अंदर mRNA का उपयोग प्रोटीन बनाने के लिये टेम्पलेट के रूप में विकसित किया जाता है।

mRNA टीकों की कार्यप्रणाली:

  • mRNA वैक्सीन का उत्पादन करने के लिये वैज्ञानिक mRNA के एक सिंथेटिक संस्करण का उत्पादन करते हैं जैसा कि एक वायरस अपने संक्रामक प्रोटीन के निर्माण के लिये  उपयोग करता है।
  • इस mRNA को मानव शरीर में पहुँचाया जाता है, जिसकी कोशिकाएँ इसे उस वायरल प्रोटीन के निर्माण के निर्देश के रूप में ग्रहण करती हैं और इसलिये वायरस के कुछ अणुओं का निर्माण स्वयं करती हैं।
  • ये एकल प्रोटीन होते हैं, इसलिये वे वायरस निर्माण के लिये एकत्रित नहीं हो पाते हैं।
  • प्रतिरक्षा प्रणाली तब इन वायरल प्रोटीनों का पता लगाती है और उनके लिये एक प्रतिरोधक क्षमता  उत्पन्न करना शुरू कर देती है।

mRNAआधारित टीकों के उपयोग के लाभ:

  • mRNA टीके को सुरक्षित माना जाता है क्योंकि यह मानक सेलुलर तंत्र द्वारा गैर-संक्रामक, प्रकृति में गैर-एकीकृत संचरण के लिये जाना जाता है।
  • वे अत्यधिक प्रभावशाली होते है क्योंकि उनकी अंतर्निहित क्षमता के कारण वे कोशिका द्रव्य के अंदर प्रोटीन संरचना में स्थानांतरित हो जाते है ।
  • इसके अतिरिक्त, mRNA टीके पूरी तरह से सिंथेटिक हैं और उनके विकास के लिये  किसी जीव (अंडे या बैक्टीरिया) की आवश्यकता नहीं होती है। इसलिये उन्हें स्थायी रूप से सामूहिक टीकाकरण के लिये उनकी "उपलब्धता" और "पहुँच" सुनिश्चित करने के लिये आसानी से निर्मित किया जा सकता है।

मिशन कोविड सुरक्षा 

  • मिशन COVID सुरक्षा भारत के लिये स्वदेशी, सस्ती और सुलभ वैक्सीन के विकास को सक्षम बनाने हेतु भारत का लक्षित प्रयास है. जो कि भारत सरकार के ‘आत्मनिर्भर भारत’ मिशन की दृष्टि से भी काफी महत्त्वपूर्ण होगा।
  • केंद्र सरकार ने इसकी घोषणा तीसरे आर्थिक प्रोत्साहन पैकेज के दौरान की थी।
  • यह मिशन नैदानिक परीक्षण, वैक्सीन उत्पादन और बाज़ार तक उसकी पहुँच आदि स्तरों में मदद करके त्वरित उत्पाद विकास के लिये सभी उपलब्ध और वित्तपोषित संसाधनों को समेकित करेगा।
  • इस मिशन का नेतृत्त्व जैव प्रौद्योगिकी विभाग (DBT) द्वारा किया जाएगा और इसका कार्यान्वयन जैव प्रौद्योगिकी उद्योग अनुसंधान सहायता परिषद (BIRAC) की एक समर्पित मिशन कार्यान्वयन इकाई द्वारा किया जाएगा।

जैव प्रौद्योगिकी उद्योग अनुसंधान सहायता परिषद (BIRAC)

  • जैव प्रौद्योगिकी उद्योग अनुसंधान सहायता परिषद (BIRAC) सार्वजनिक क्षेत्र का एक गैर-लाभकारी उपक्रम है।
  • इसे जैव प्रौद्योगिकी विभाग (DBT) द्वारा राष्ट्रीय स्तर पर प्रासंगिक उत्पाद विकास आवश्यकताओं को संबोधित करते हुए रणनीतिक अनुसंधान और नवाचार करने के लिये उभरते जैव प्रौद्योगिकी उद्यम को मज़बूत और सशक्त बनाने के लिये एक इंटरफेस एजेंसी के रूप में स्थापित किया गया है।

स्रोत-पीआईबी


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