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डेली न्यूज़

  • 14 Sep, 2021
  • 39 min read
शासन व्यवस्था

कोयला आधारित हाइड्रोजन उत्पादन हेतु टास्क फोर्स

प्रिलिम्स के लिये:

ब्लैक हाइड्रोजन, कोयला गैसीकरण मिशन, नीति आयोग, प्राकृतिक गैस, सीसीयूएस

मेन्स के लिये:

कोयला आधारित हाइड्रोजन उत्पादन के लाभ

चर्चा में क्यों?

हाल ही में केंद्र सरकार ने कोयला आधारित हाइड्रोजन उत्पादन (ब्लैक हाइड्रोजन) हेतु रोडमैप तैयार करने के लिये एक टास्क फोर्स और विशेषज्ञ समिति का गठन किया।

यह टास्क फोर्स ‘कोयला गैसीकरण मिशन’ और ‘नीति आयोग’ के साथ समन्वय के लिये भी उत्तरदायी है।

प्रमुख बिंदु

  • कोयला आधारित हाइड्रोजन उत्पादन:
    • परिचय:
      • कोयला (हाइड्रोकार्बन ईंधन में से एक) इलेक्ट्रोलिसिस के माध्यम से प्राकृतिक गैस और नवीकरणीय ऊर्जा के अलावा हाइड्रोजन बनाने के महत्त्वपूर्ण स्रोतों में से एक है।
      • हालाँकि कोयले के माध्यम से हाइड्रोजन निकालने के दौरान कार्बन उत्सर्जन के डर के कारण हाइड्रोजन उत्पादन में कोयले को प्रोत्साहित नहीं किया गया है।
        • भारत में लगभग 100% हाइड्रोजन उत्पादन प्राकृतिक गैस (ग्रे हाइड्रोजन) के माध्यम से होता है।
    • लाभ:
      • कोयले से उत्पादित हाइड्रोजन की लागत सस्ती और आयात के प्रति कम संवेदनशील हो सकती है।
    • चुनौतियाँ:
      • कोयले से हाइड्रोजन के उत्पादन में उच्च उत्सर्जन के संदर्भ में चुनौतियाँ उत्पन्न होंगी और सीसीयूएस (कार्बन कैप्चर, उपयोग और भंडारण) एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाएगा।
        • कोयले से हाइड्रोजन प्रक्रिया के दौरान बनने वाले कार्बन मोनोऑक्साइड और कार्बन डाइऑक्साइड को पर्यावरण की दृष्टि से टिकाऊ तरीके (CCS एवं CCUS) से संग्रहीत किया जाना।
  • हाइड्रोजन अर्थव्यवस्था:
    • यह एक ऐसी अर्थव्यवस्था है जो वाणिज्यिक ईंधन के रूप में हाइड्रोजन पर निर्भर करती है और देश की ऊर्जा सेवाओं में बड़ा योगदान करेगी।
    • हाइड्रोजन एक शून्य-कार्बन ईंधन है और इसे ईंधन का विकल्प व स्वच्छ ऊर्जा का एक प्रमुख स्रोत माना जाता है। इसका उत्पादन सौर और पवन जैसे ऊर्जा के नवीकरणीय स्रोतों से किया जा सकता है।
    • यह भविष्य के ईधन के रूप में परिकल्पित है जहांँ हाइड्रोजन का उपयोग वाहनों, ऊर्जा भंडारण और लंबी दूरी के परिवहन के लिये ईंधन के रूप में किया जाता है। हाइड्रोजन अर्थव्यवस्था का उपयोग करने के विभिन्न मार्गों में हाइड्रोजन उत्पादन, भंडारण, परिवहन और उपयोग शामिल हैं।
    • वर्ष 1970 में जॉन बोक्रिस (John Bockris) द्वारा 'हाइड्रोजन अर्थव्यवस्था' शब्द का प्रयोग किया गया था। उन्होंने उल्लेख किया कि एक हाइड्रोजन अर्थव्यवस्था वर्तमान हाइड्रोकार्बन आधारित अर्थव्यवस्था का स्थान ले सकती है, जिससे एक स्वच्छ वातावरण निर्मित हो सकता है।

  • वर्तमान परिदृश्य:
    • हाइड्रोजन की वर्तमान वैश्विक मांग 70 मिलियन मीट्रिक टन है, जिसमें से अधिकांश का उत्पादन जीवाश्म ईंधन से किया जा रहा है, इसमें 76% प्राकृतिक गैस से , 23% कोयले से तथा शेष जल की इलेक्ट्रोलिसिस प्रक्रिया के माध्यम से हाइड्रोजन का उत्पादन होता है।
    • इसके परिणामस्वरूप लगभग 830 मीट्रिक टन/वर्ष CO2 का उत्सर्जन होता है, जिसमें से केवल 130 मीट्रिक टन/वर्ष को ही कैप्चर कर उर्वरक उद्योग में उपयोग किया जा रहा है।
    • वर्तमान में उत्पादित अधिकांश हाइड्रोजन का उपयोग तेल शोधन (33%), अमोनिया (27%), मेथनॉल उत्पादन (11%), इस्पात उत्पादन (3%) और अन्य के लिये किया जाता है।
  • संबंधित पहलें:

स्रोत: पी.आई.बी.


विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

तेजस-एमके-2 और AMCA

प्रिलिम्स के लिये

वैमानिकी विकास एजेंसी, LCA ‘तेजस-एमके-2’

मेन्स के लिये

रक्षा प्रोद्योगिकी के क्षेत्र में भारत की उपलब्धियाँ

चर्चा में क्यों?

‘वैमानिकी विकास एजेंसी’ (ADA) के मुताबिक, LCA ‘तेजस-एमके-2’ को वर्ष 2022 तक लॉन्च कर दिया जाएगा और यह वर्ष 2023 की शुरुआत में अपनी पहली उड़ान भरेगा। वहीं ‘एडवांस मीडियम कॉम्बैट एयरक्राफ्ट’ (AMCA) को वर्ष 2024 तक लॉन्च किया जाएगा और यह वर्ष 2025 में अपनी पहली उड़ान भरेगा।

  • साथ ही नौसेना के विमानवाहक पोतों से उड़ान भरने के लिये दो इंजन वाले डेक-आधारित लड़ाकू जेट के विकास का कार्य भी जल्द ही पूरा कर लिया जाएगा।
  • ‘वैमानिकी विकास एजेंसी’ रक्षा मंत्रालय का एक स्वायत्त निकाय है।

प्रमुख बिंदु

  • LCA ‘तेजस-एमके-2’
    • यह 4.5 जनरेशन का विमान है, जिसका इस्तेमाल भारतीय वायुसेना द्वारा किया जाएगा।
    • यह ‘मिराज-2000’ श्रेणी के विमानों का प्रतिस्थापन है।
      • इसमें बड़ा इंजन मौजूद है और यह 6.5 टन पेलोड ले जा सकता है।
    • इस प्रौद्योगिकी को प्रारंभ से ही ‘हल्के लड़ाकू विमान’ (LCA) में प्रयोग के लिये विकसित किया गया है।
      • LCA कार्यक्रम को 1980 के दशक में भारत के पुराने मिग-21 लड़ाकू विमानों को प्रतिस्थापित करने हेतु शुरू किया गया था।
      • LCA को ‘वैमानिकी विकास एजेंसी’ (ADA) द्वारा डिज़ाइन और विकसित किया जा रहा है तथा राज्य के स्वामित्व वाली ‘हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड’ (HAL) इस परियोजना की प्रमुख भागीदार है।
    • इसका उत्पादन वर्ष 2025 के आसपास शुरू होने की संभावना है।

तेजस के संस्करण

  • तेजस ट्रेनर: वायु सेना के पायलटों को प्रशिक्षण देने के लिये 2-सीटर ऑपरेशनल कन्वर्ज़न ट्रेनर।
  • LCA नौसेना: भारतीय नौसेना के लिये ट्विन और सिंगल-सीट वाहक-सक्षम।
  • LCA तेजस नेवी MK2: यह LCA नेवी संस्करण का फेज़-2 है।
  • LCA तेजस Mk-1A: यह LCA तेजस Mk-1 में उच्च थ्रस्ट इंजन (वायु सेना) के साथ एक उन्नत संस्करण है।
  • LCA तेजस Mk-2: Mk-1A का एक उन्नत संस्करण Mk-2 है जो उच्च गतिशीलता प्रदान करता है।
  • उन्नत मध्यम युद्धक विमान (AMCA):
    • परिचय:
      • यह पाँचवीं पीढ़ी का विमान है जिसे भारतीय वायु सेना में शामिल किया जाएगा।
      • यह एक स्टील्थ विमान है, जो हल्के युद्धक विमान के विपरीत स्टील्थ तकनीकी पर आधारित अधिक तीव्र गति से कार्य करने वाला विमान है।
        • लो रडार क्रॉस-सेक्शन (Low Radar Cross-Section) प्राप्त करने के लिये इसका आकार अद्वितीय है, इस युद्धक विमान को आंतरिक हथियारों से सुसज्जित किया जा सकता है।
        • बाहरी हथियारों को हटाने के बाद भी इसमें लगे आंतरिक हथियारों में महत्त्वपूर्ण अभियानों को पूर्ण करने की क्षमता विद्यमान है।
    • रेंज:
      • विभिन्न माध्यमों में इसकी कुल रेंज 1,000 किमी. से लेकर 3,000 किमी. तक होगी।
    • प्रकार और इंजन:
      • इसके दो प्रकार (Mk-1 और Mk-2) हैं। AMCA Mk-1 में LCA Mk-2 के समान एक आयातित इंजन लगा होगा, वहीं AMCA Mk-2 में एक स्वदेशी इंजन होगा।
    • निर्माण:
      • विमान का निर्माण और उत्पादन एक विशेष प्रयोजन वाहन (SPV) के माध्यम से होगा, जिसमें निजी उद्योग की भी भागीदारी होगी।

स्रोत: द हिंदू


जैव विविधता और पर्यावरण

पर्माफ्रॉस्ट पर ग्लोबल वार्मिंग का प्रभाव

प्रिलिम्स के लिये:

आर्कटिक, पर्माफ्रॉस्ट, ग्रीनहाउस गैस

मेन्स के लिये:

पर्माफ्रॉस्ट के पिघलने से उत्पन्न पर्यावरणीय चिंताएंँ

चर्चा में क्यों?

IPCC की नवीनतम रिपोर्ट के अनुसार, ग्लोबल वार्मिंग के बढ़ने से आर्कटिक पर्माफ्रॉस्ट में कमी आएगी और उसके पिघलने से मीथेन एवं कार्बन डाइऑक्साइड जैसी ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन होने की संभावना है।

प्रमुख बिंदु

  • पर्माफ्रॉस्ट:
    • पर्माफ्रॉस्ट अथवा स्थायी तुषार भूमि वह क्षेत्र है जो कम-से-कम लगातार दो वर्षों से शून्य डिग्री सेल्सियस (32 डिग्री F) से कम तापमान पर जमी हुई अवस्था में है।
    • ये स्थायी रूप से जमे हुए भूमि-क्षेत्र मुख्यतः उच्च पर्वतीय क्षेत्रों और पृथ्वी के उच्च अक्षांशों (उत्तरी एवं दक्षिणी ध्रुवों के निकट) में पाए जाते हैं।
    • पर्माफ्रॉस्ट विश्व का लगभग 15% भूमि क्षेत्र को कवर करता है।
    • यद्यपि ये भूमि-क्षेत्र जमे हुए होते हैं लेकिन आवश्यक रूप से हमेशा ये बर्फ से ढके नहीं होते।
    • पर्माफ्रॉस्ट के बड़े हिस्सों वाले भू-दृश्यों (Landscapes) को अक्सर टुंड्रा कहा जाता है। टुंड्रा शब्द एक फिनिश (Finnish) शब्द है जो एक वृक्ष रहित मैदानी (Treeless Plain) क्षेत्र को संबोधित करता है। उच्च अक्षांशों और ऊंँचाई पर स्थित क्षेत्र को टुंड्रा कहा जाता है, जहांँ पर्माफ्रॉस्ट की एक बहुत पतली सक्रिय परत होती है।
  • पर्माफ्रॉस्ट के पिघलने के संबंध में चिंताएंँ:
    • बुनियादी ढाँचे पर प्रभाव:
      • यह उन देशों के बुनियादी ढाँचे को प्रभावित करेगा जहांँ सड़कों या इमारतों का निर्माण पर्माफ्रॉस्ट पर किया गया है।
    • ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन:
      • पर्माफ्रॉस्ट के कारण कार्बनिक पदार्थ जमकर ज़मीन में दब जाते हैं।
        • यदि पर्माफ्रॉस्ट पिघलना शुरू हो जाती है, तो यह सामग्री विखंडित होकर सूक्ष्मजीवों के लिये उपलब्ध हो जाएगी।
      • कुछ सूक्ष्मजीव वातावरण में कार्बन डाइऑक्साइड का उत्सर्जन करते हैं और अन्य जीव मीथेन का, जो कार्बन डाइऑक्साइड की तुलना में ग्रीनहाउस गैस के रूप में लगभग 25 से 30 गुना अधिक शक्तिशाली है।
    • कार्बन स्टोरहाउस/भंडारण से कार्बन उत्सर्जक में परिवर्तन:
      • कुछ पर्माफ्रॉस्ट क्षेत्र कार्बन स्टोरहाउस से ऐसे स्थानों में परिवर्तित हो गए हैं जो कार्बन के शुद्ध उत्सर्जक हैं।
    • वनाग्नि की घटनाओं में वृद्धि:
      • इस वर्ष रूस में वनाग्नि की घटना देखी गई जिसका कुल क्षेत्रफल पुर्तगाल के आकार के बराबर था। आमतौर पर आग लगने के बाद अगले 50 से 60 वर्षों में वनों के पुनर्स्थापन की उम्मीद की जाती है। यह पारिस्थितिकी तंत्र में कार्बन स्टॉक को पुनर्स्थापित करता है।
      • लेकिन टुंड्रा में पीट वह जगह है जहाँ कार्बनिक पदार्थ होते हैं और इसे जमा होने में बहुत लंबा समय लगता है। इसलिये यदि पीट को जलाया जाता है और वातावरण में छोड़ा जाता है, तो उस कार्बन स्टॉक को ज़मीनी स्तर पर बहाल करने में सदियों लगेंगे।
    • नए बैक्टीरिया या वायरस उत्पन्न होना:
      • न केवल मानव जीवन के लिये बल्कि वायरस और बैक्टीरिया के विकास या वृद्धि हेतुः भी पर्यावरण अब हिमयुग की तुलना में बहुत अधिक उपयुक्त है।
      • इसलिये नए बैक्टीरिया या वायरस के उभरने की संभावनाओं को नज़रअंदाज नहीं किया जा सकता है।
  • उठाए जाने वाले कदम:
    • तीव्र जलवायु परिवर्तन को रोकना: जलवायु परिवर्तन को कम करने और पर्माफ्रॉस्ट को बचाने के लिये अनिवार्य है कि अगले दशक में वैश्विक CO2 उत्सर्जन को 45% तक कम किया जाए और 2050 तक पूर्णतः समाप्त किया जाए।
    • धीमी गति से क्षरण: वैज्ञानिक पत्रिका ‘नेचर’ ने इसके कटाव को रोकने के लिये आर्कटिक पिघलने से सबसे बुरी तरह प्रभावित ‘जैकबशवन ग्लेशियर’ (ग्रीनलैंड) के सामने 100 मीटर लंबा बाँध बनाने का सुझाव दिया।
    • कृत्रिम हिमखंडों का आपसी संयोजन: एक इंडोनेशियाई वास्तुकार ने अपनी परियोजना के लिये पुरस्कार जीता है, उसके अनुसार इसमें आर्कटिक को रिफ्रीज़ करना, उसमें पिघले हुए ग्लेशियरों से पानी इकट्ठा करना, ‘डिसेलिनेट’ करना और बड़े
      • ‘हेक्सागोनल’ बर्फ ब्लॉक बनाने के लिये इसे फिर से जमा करना शामिल है।
    • उनकी मोटाई बढ़ाना: कुछ शोधकर्त्ता अधिक बर्फ के निर्माण के लिये एक समाधान प्रस्तावित करते हैं। उनके प्रस्ताव में ग्लेशियर के नीचे से पवन ऊर्जा द्वारा संचालित पंपों के माध्यम से बर्फ को ऊपरी शिखरों पर फैलाने हेतु इसे इकट्ठा करना शामिल है, ताकि यह जम जाए, इस प्रकार यह इसकी स्थिरता को मज़बूती प्रदान करता है।
    • लोगों को जागरूक करना: टुंड्रा और उसके नीचे का पर्माफ्रॉस्ट हमसे बहुत दूर हो सकते हैं, लेकिन हम कहीं भी रहते हों, हमारे द्वारा किये जाने वाले रोज़मर्रा के कार्य जलवायु परिवर्तन में योगदान करते हैं।
      • अपने कार्बन फुटप्रिंट को कम करके, ऊर्जा-कुशल उत्पादों में निवेश करके और जलवायु-अनुकूल व्यवसायों, कानून एवं नीतियों का समर्थन कर हम दुनिया के पर्माफ्रॉस्ट को संरक्षित करने और हमेशा गर्म होने वाले ग्रह के दुष्चक्र को टालने में मदद कर सकते हैं।

स्रोत- इंडियन एक्सप्रेस


भारतीय अर्थव्यवस्था

प्रतिभूतियों के लिये ‘T+1’ निपटान प्रणाली

प्रिलिम्स के लिये

भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड, ‘T+1’ और ‘T+2’ निपटान प्रणालियाँ

मेन्स के लिये

‘T+1’ निपटान प्रणाली के लाभ

चर्चा में क्यों?

हाल ही में ‘भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड’ (SEBI) ने स्टॉक एक्सचेंजों को शेयरों के लेन-देन को पूरा करने हेतु ‘T+2’ के स्थान पर ‘T+1’ प्रणाली को एक विकल्प के रूप में शुरू करने की अनुमति दी है।

  • इसे तरलता बढ़ाने के उद्देश्य से वैकल्पिक आधार पर प्रस्तुत किया गया है।
  • ‘भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड’, 1992 में ‘भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड अधिनियम, 1992’ के प्रावधानों के अनुसार स्थापित एक वैधानिक निकाय है।

निपटान प्रणाली

  • प्रतिभूति उद्योग में ‘निपटान अवधि’ का आशय व्यापार की तारीख (जब बाज़ार में आदेश निष्पादित किया जाता है) और निपटान तिथि (जब व्यापार को अंतिम रूप दिया जाता है) के बीच के समय से होता है।
  • निपटान अवधि के अंतिम दिन खरीदार प्रतिभूति का धारक बन जाता है।

प्रमुख बिंदु

  • ‘T+1’ प्रणाली
    • यदि स्टॉक एक्सचेंज ‘स्क्रिप’ के लिये ‘T+1’ निपटान प्रणाली का विकल्प चुनता है, तो उसे अनिवार्य रूप से न्यूनतम 6 महीने तक इसे जारी रखना होगा।
      • ‘स्क्रिप’ कानूनी निविदा का एक विकल्प है, जो धारक को बदले में कुछ प्राप्त करने का अधिकार देता है।
    • इसके बाद यदि वह ‘T+2’ प्रणाली पर वापस जाना चाहता है, तो बाज़ार को एक माह का अग्रिम नोटिस देकर ऐसा कर सकता है। कोई भी ट्रांज़िशन (‘T+1’ से ‘T+2’ या इसके विपरीत) न्यूनतम अवधि के अधीन होगा।
  • ‘T+1’ बनाम ‘T+2’ प्रणाली
    • ‘T+2’ प्रणाली के तहत यदि कोई निवेशक शेयर बेचता है, तो व्यापार का निपटान आगामी दो कार्य दिवसों (T+2) के भीतर होता है और व्यापार को संभालने वाले मध्यस्थों को तीसरे दिन पैसा मिलता है तथा वह निवेशक के खाते में चौथे दिन पैसे हस्तांतरित करेगा।
      • अतः इस प्रणाली में निवेशक को तीन दिन बाद पैसा मिलता है।
    • ‘T+1’ प्रणाली में व्यापार का निपटान एक ही कार्य दिवस में हो जाता है और निवेशक को अगले दिन पैसा मिल जाएगा।
      • ‘T+1’ प्रणाली में हस्तांतरण हेतु बाज़ार सहभागियों को व्यापक पैमाने पर परिचालन या तकनीकी परिवर्तनों की आवश्यकता नहीं होगी और न ही यह विखंडन या निकासी अथवा निपटान पारिस्थितिकी तंत्र के लिये जोखिम का कारण बनेगा।
  • ‘T+1’ निपटान प्रणाली के लाभ:
    • कम निपटान समय: एक छोटा चक्र न केवल निपटान समय को कम करता है बल्कि उस जोखिम को संपार्श्विक बनाने के लिये आवश्यक पूंजी को भी कम करता है और मुक्त करता है
    • अस्थिर व्यापार में कमी: यह किसी भी समय बकाया अनसेटल्ड ट्रेडों की संख्या को भी कम कर सकता है तथा इस प्रकार यह क्लियरिंग कॉर्पोरेशन के लिये अनसेटल्ड एक्सपोज़र को 50% तक कम कर देता है।
      • निपटान चक्र जितना संकीर्ण होगा, प्रतिपक्ष दिवाला/दिवालियापन के लिये व्यापार के निपटान को प्रभावित करने हेतु समय चक्र उतना ही कम होगा।
    • अवरुद्ध पूंजी में कमी: इसके अतिरिक्त व्यापार के जोखिम को कवर करने के लिये सिस्टम में अवरुद्ध पूंजी, किसी भी समय शेष अनसुलझे ट्रेडों की संख्या के अनुपात में कम हो जाएगी।
    • प्रणालीगत जोखिमों में कमी: एक छोटा निपटान चक्र प्रणालीगत जोखिम को कम करने में मदद करेगा।
  • विदेशी निवेशकों की चिंताएँ:
    • विदेशी निवेशकों ने विभिन्न भौगोलिक टाइम ज़ोन से परिचालन से जुड़े मुद्दों (सूचना प्रवाह प्रक्रिया और विदेशी मुद्रा समस्याओं) पर चिंता व्यक्त की है।
    • T+1 प्रणाली के तहत दिन के अंत में उन्हें डॉलर के संदर्भ में भारत में अपने नेट एक्सपोज़र (Net Exposure) को हेज या बाधित करना भी मुश्किल होगा।

स्रोत : इंडियन एक्सप्रेस


भारतीय अर्थव्यवस्था

IRDAI (ट्रेड क्रेडिट इंश्योरेंस) दिशा-निर्देश, 2021

प्रिलिम्स के लिये:

फैक्टरिंग विनियमन, ट्रेड क्रेडिट इंश्योरेंस, एमएसएमई

मेन्स के लिये:

ट्रेड क्रेडिट इंश्योरेंस का कवरेज एवं लाभ

चर्चा में क्यों?

हाल ही में भारतीय बीमा नियामक और विकास प्राधिकरण (IRDAI) ने व्यापार ऋण बीमा (Trade Credit Insurance) के लिये संशोधित दिशा-निर्देश जारी किये हैं।

प्रमुख बिंदु

  • व्यापार ऋण बीमा :
    • परिचय:
      • व्यापार ऋण बीमा व्यवसायों को वस्तुओं और सेवाओं के गैर-भुगतान के जोखिम से बचाता है।
      • यह आमतौर पर खरीदारों के एक पोर्टफोलियो को कवर करता है तथा एक चालान या कई चालानों के सहमति प्रतिशत की क्षतिपूर्ति करता है जिसे लंबे समय तक डिफाॅल्ट या दिवाला/दिवालियापन के परिणामस्वरूप धन संशाधित नहीं किया गया हो।
      • यह व्यापार को सुविधाजनक बनाकर किसी देश के आर्थिक विकास में योगदान देता है और भुगतान जोखिमों के कारण होने वाले व्यापार घाटे का समाधान कर आर्थिक स्थिरता में सुधार लाने में मदद करता है।
    • कवरेज:
      • यह वस्तुओं और सेवाओं के विक्रेताओं या आपूर्तिकर्त्ताओं, फैक्टरिंग कंपनियों (फैक्टरिंग विनियमन अधिनियम, 2011में परिभाषित) एवं बैंकों तथा वित्तीय संस्थानों को जारी किया जा सकता है।
      • बैंकों एवं वित्तीय संस्थानों और फैक्टरिंग कंपनियों को खरीदार से भुगतान प्राप्त न होने के कारण, वाणिज्यिक या राजनीतिक जोखिमों, खरीदे या भुनाए गए बिलों और चालानों के विरुद्ध होने वाले नुकसान को कवर करता है।
        • वाणिज्यिक जोखिमों में खरीदार की दिवाला या विस्तारित चूक, अनुबंध की शर्तों के अधीन डिलीवरी के बाद खरीदार द्वारा अस्वीकृति और शिपमेंट से पहले अस्वीकृति एवं संग्रहकर्त्ता बैंक की विफलता के कारण भुगतान की प्राप्ति न होना शामिल है।
        • राजनीतिक जोखिम कवर केवल भारत के बाहर के खरीदारों के मामले में उपलब्ध है और इसमें खरीदार के देश तथा भारत के बीच युद्ध की घटना एवं शत्रुता, गृहयुद्ध, विद्रोह, क्रांति, अशांति या खरीदार के देश में अन्य गड़बड़ी शामिल होगी।
    • प्रयोज्यता:
      • ये दिशा-निर्देश बीमा अधिनियम, 1938 के तहत पंजीकृत सामान्य बीमा कारोबार करने वाले सभी बीमाकर्ताओं पर लागू होंगे।
      • हालाँकि ECGC लिमिटेड (पूर्व में एक्सपोर्ट क्रेडिट गारंटी कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड) को इन दिशा-निर्देशों के आवेदन से छूट दी गई है।
  • उठाए गए कदम के लाभ:
    • यह सामान्य बीमा कंपनियों को देश में व्यवसायों के जोखिम का प्रबंधन करने, नए बाज़ारों तक पहुँच प्रदान करने और व्यापार वित्तपोषण पोर्टफोलियो से जुड़े गैर-भुगतान जोखिम के प्रबंधन में मदद करेगा।
    • यह सामान्य बीमा कंपनियों को इन उद्यमों की उभरती बीमा जोखिम ज़रूरतों को ध्यान में रखते हुए सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों (MSMEs) हेतु व्यवसायों को बेहतर बनाने के लिये अनुकूलित कवर के साथ व्यापार ऋण बीमा की पेशकश करने में सक्षम करेगा।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


अंतर्राष्ट्रीय संबंध

क्लाइमेट एक्शन एंड फाइनेंस मोबिलाइज़ेशन डायलॉग

प्रिलिम्स के लिये

क्लाइमेट एक्शन एंड फाइनेंस मोबिलाइज़ेशन डायलॉग, पेरिस समझौता

मेन्स के लिये

‘भारत-अमेरिका जलवायु और स्वच्छ ऊर्जा एजेंडा-2030’ के तहत लॉन्च की गई पहलों का महत्त्व तथा भारत के लिये अवसर

चर्चा में क्यों?

हाल ही में अमेरिकी राष्ट्रपति के विशेष दूत (जलवायु) ने भारत के केंद्रीय पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्री के साथ दोनों देशों के बीच ‘क्लाइमेट एक्शन एंड फाइनेंस मोबिलाइज़ेशन डायलॉग’ (CAFMD) शुरू किया है।

  • यद्यपि भारत ने अब तक ‘नेट ज़ीरो’ लक्ष्य हेतु प्रतिबद्धता नहीं ज़ाहिर की है, किंतु भारत सदी के अंत तक वैश्विक तापमान को 2 डिग्री सेल्सियस से नीचे रखने हेतु अपनी प्रतिबद्धता की दिशा में काम कर रहा है।

प्रमुख बिंदु

  • क्लाइमेट एक्शन एंड फाइनेंस मोबिलाइज़ेशन डायलॉग’
    • यह अप्रैल 2021 में ‘लीडर्स समिट ऑन क्लाइमेट’ में लॉन्च किये गए ‘भारत-अमेरिका जलवायु और स्वच्छ ऊर्जा एजेंडा-2030’ साझेदारी का हिस्सा है।
    • यह दोनों देशों को जलवायु परिवर्तन के क्षेत्र में सहयोग को नवीनीकृत करने के साथ ही इससे संबंधित वित्तीय पहलुओं को संबोधित करने और पेरिस समझौते के तहत परिकल्पित अनुदान एवं रियायती वित्त के रूप में जलवायु वित्त प्रदान करने का अवसर देगा।
    • साथ ही यह प्रदर्शित करने में भी मदद करेगा कि किस प्रकार दुनिया राष्ट्रीय परिस्थितियों और सतत् विकास प्राथमिकताओं को ध्यान में रखते हुए समावेशी एवं लचीले आर्थिक विकास के साथ तेज़ी से जलवायु कार्रवाई को संरेखित कर सकती है।
  • CAFM के स्तंभ:
    • जलवायु कार्रवाई स्तंभ:
    • अगले दशक में उत्सर्जन को कम करने के तरीकों को देखते हुए इसमें संयुक्त प्रस्ताव होंगे।
    • वित्त स्तंभ:
    • इसके माध्यम से अमेरिका भारत में 450 गीगावाट नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता को लागू करने तथा पूंजी को आकर्षित करने और सक्षम वातावरण को बढ़ाने में सहयोग करेगा एवं नवीन स्वच्छ ऊर्जा प्रौद्योगिकियों का प्रदर्शन तथा द्विपक्षीय स्वच्छ ऊर्जा निवेश व व्यापार को बढ़ावा देगा।
    • अनुकूलन और लचीलापन:
    • दोनों देश जलवायु जोखिमों को मापने और प्रबंधित करने के लिये क्षमता निर्माण में सहयोग करेंगे।
  • भारत के लिये अवसर:
    • ऊर्जा संक्रमण (Energy Transition) में निवेश करने हेतु कभी भी बेहतर समय नहीं रहा। अक्षय ऊर्जा पहले से कहीं ज़्यादा सस्ती है।
    • वास्तव में विश्व में कहीं और की तुलना में भारत में सोलर फार्म बनाना सस्ता है।
    • वैश्विक स्तर पर निवेशक अब स्वच्छ ऊर्जा की ओर बढ़ रहे हैं और महामारी के सबसे बुरे दौर के बाद ऊर्जा संक्रमण पहले से नकारात्मक रूप से प्रभावित हो रहा है तथा अब एक वर्ष में निवेश किये गए 8.4 बिलियन अमेरिकी डाॅलर के महामारी पूर्व की स्थिति के रिकॉर्ड को तोड़ने के लिये तैयार है।
    • अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी का अनुमान है कि यदि भारत स्वच्छ ऊर्जा के अवसर का लाभ उठाता है, तो यह बैटरी और सौर पैनलों हेतु विश्व का सबसे बड़ा बाज़ार बन सकता है।
      • वर्तमान में भारत की स्थापित बिजली क्षमता वर्ष 2021-22 तक 476 GW होने का अनुमान है जिसके वर्ष 2030 तक कम-से-कम 817 GW तक बढ़ने की उम्मीद है।

स्रोत: द हिंदू


विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

युद्ध क्षेत्र में रोबोट

प्रिलिम्स के लिये:

रेक्स एमके II, गाजा पट्टी, वैकल्पिक स्मार्ट वॉल

मेन्स के लिये:

युद्ध क्षेत्र में रोबोट के उपयोग से उत्पन्न चुनौतियाँ

चर्चा में क्यों?

हाल ही में इज़रायल एयरोस्पेस इंडस्ट्रीज़ (IAI) ने रिमोट कंट्रोल आधारित सशस्त्र रोबोट 'रेक्स एमके II’ (REX MK II) का अनावरण किया, जो युद्ध क्षेत्रों में गश्त करने, घुसपैठियों को ट्रैक करने तथा हमला/ फायरिंग करने में सक्षम है।

  • युद्ध क्षेत्र में रोबोट के उपयोग के साथ-साथ इसमें नैतिक दुविधाओं से निपटना शामिल है।
  • समर्थकों का कहना है कि ऐसी अर्द्ध-स्वायत्त मशीनें सेनाओं को अपने सैनिकों की रक्षा करने की अनुमति देती हैं, जबकि आलोचकों को डर है कि यह जीवन-या-मृत्यु का निर्णयन करने वाले रोबोटों की तरफ एक और खतरनाक कदम है।

प्रमुख बिंदु

  • REX MK II के बारे में:
    • यह रोबोट स्थलीय सैनिकों के लिये खुफिया जानकारी इकट्ठा कर सकता है, घायल सैनिकों को ले जा सकता है एवं युद्ध क्षेत्र के अंदर और बाहर रक्षा सामग्री की आपूर्ति कर सकता है तथा आस-पास के लक्ष्यों पर हमला कर सकता है।
    • इज़रायली सेना वर्तमान में गाजा पट्टी के साथ सीमा पर गश्त करने के लिये जगुआर नामक एक छोटे लेकिन उसके अनुरूप वाहनों का उपयोग कर रही है।
    • संयुक्त राज्य अमेरिका, ब्रिटेन और रूस सहित अन्य सेनाओं द्वारा मानव रहित स्थलीय वाहनों का तेज़ी से उपयोग किया जा रहा है।
      • उनके कार्यों में लॉजिस्टिक सपोर्ट, खदानों का समापन और हथियारों से फायरिंग करना शामिल है।
      • अमेरिका-मेक्सिको (USA-Mexico Border) सीमा पर भौतिक और सशस्त्र गश्त के विकल्प के तौर पर उन्नत निगरानी तकनीक वाली एक वैकल्पिक स्मार्ट वॉल (Alternative Smart Wall) के निर्माण का प्रस्ताव रखा गया है।
  • युद्ध में रोबोट के उपयोग के पक्ष में तर्क:
    • कोई शारीरिक सीमा नहीं: यह स्वतः संचालक (Autonomous) रोबोट है, क्योंकि इसकी मानव शरीर की तरह कोई शारीरिक सीमाएँ नहीं हैं, यह नींद या भोजन के बिना कार्य करने में सक्षम है, उन चीजों को समझ और कर सकता है जिसे लोग नहीं करते हैं और उन तरीकों से आगे बढ़ता है जो मनुष्य नहीं कर सकते।
      • रोबोटिक सेंसर की एक विस्तृत शृंखला मानव संवेदी क्षमताओं की तुलना में युद्ध के मैदानों के अवलोकन हेतु बेहतर ढंग से सुसज्जित है।
    • सेना को परिचालन से संबंधित लाभ: रोबोट के निम्नलिखित लाभ हो सकते हैं: तेज़, सस्ता, बेहतर मिशन संचालक, लंबी दूरी, अधिक दृढ़ता, अधिक सहनशक्ति, उच्च परिशुद्धता; तेज़ी से लक्ष्य से जुड़ना तथा रासायनिक और जैविक हथियारों से सुरक्षित।
    • कठिन परिस्थितियों में कार्य करने की क्षमता: लक्ष्य के पहचान की कम संभावना की स्थिति में रोबोट को खुद को बचाने की ज़रूरत नहीं है।
      • स्वायत्त सशस्त्र रोबोटिक वाहनों (Autonomous Armed Robotic Vehicles) को एक प्रमुख अभियान के रूप में आत्म-संरक्षण की आवश्यकता नहीं होती है।
      • एक कमांडिंग ऑफिसर के आदेश के बिना, यदि आवश्यक हो और उपयुक्त हो, तो उनका उपयोग आत्म-बलिदान (Self-Sacrificing) के रूप में किया जा सकता है।
    • मानव जीवन के नुकसान को कम करना: मानव जीवन के नुकसान को कम करना युद्ध की नैतिकता के मूल सिद्धांतों में से एक है, जिसे रोबोट के उपयोग से पूरा किया जा सकता है।
  • युद्ध में रोबोट के प्रयोग के विरुद्ध तर्क:
    • युद्ध लागत में कमी आना: रोबोट सैनिकों के उपयोग से युद्ध की लागत कम हो जाएगी, जिससे भविष्य के युद्धों की संभावना बढ़ जाएगी।
    • लक्ष्यीकरण में त्रुटियाँ: ऐसे हथियार चिंताजनक हैं क्योंकि लड़ाकों और नागरिकों के बीच अंतर करने या आस-पास के नागरिकों को हमलों से होने वाले नुकसान के बारे में उन पर भरोसा नहीं किया जा सकता है।
    • युद्ध अभिसमयों की अनदेखी: मशीनें मानव जीवन के मूल्य को नहीं समझ सकती हैं, जो मानव गरिमा को कम करती है और मानवाधिकार कानूनों का उल्लंघन करती है।
    • मशीनों द्वारा अत्याचार करने और युद्ध के बुनियादी नियमों का उल्लंघन करने की आशंका है, जैसे- हेग कन्वेंशन और अन्य घोषणाएँ यह बताती हैं कि युद्ध कैसे लड़ा जाना चाहिये।
    • नियमित जोखिम: अन्य देशों और आतंकवादियों के लिये प्रौद्योगिकी के प्रसार जैसे जोखिम हमेशा बने रहेंगे।
    • साथ ही रोबोटिक मशीनें साइबर-सुरक्षा हमलों या हैकिंग के लिये प्रवृत्त होती हैं और उनका उपयोग उनके ही लोगों के विरुद्ध किया जा सकता है।
  • भारत में सुरक्षा प्रबंधन:
    • CIBMS परियोजना: भारत सरकार ‘व्यापक एकीकृत सीमा प्रबंधन प्रणाली’ (CIBMS) परियोजना के माध्यम से तकनीकी समाधान पर ज़ोर दे रही है। इसका उद्देश्य मौजूदा प्रणालियों के साथ प्रौद्योगिकी को एकीकृत करना है, ताकि सीमा पर बेहतर पहचान और अवरोधन की सुविधा प्रदान की जा सके।
    • नेशनल काउंटर रोग ड्रोन दिशा-निर्देश, 2019: इसका उद्देश्य ड्रोन के कारण परमाणु ऊर्जा संयंत्रों और सैन्य ठिकानों जैसे प्रमुख प्रतिष्ठानों की संभावित सुरक्षा चुनौतियों से निपटना है।
  • आगे की राह
    • आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, मशीन लर्निंग आदि द्वारा प्रेरित तकनीकी क्रांति ने उद्योगों और आर्थिक क्षेत्रों में दक्षता, उत्पादकता एवं अनुकूलन बढ़ाने की आवश्यकता को जन्म दिया है।
    • हालाँकि युद्ध में रोबोटिक्स की तैनाती से पहले गहन शोध किये जाने की आवश्यकता है, ताकि कम-से-कम मानवीय नुकसान के साथ अवसरों को अधिकतम किया जा सके।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


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