प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना का बीड मॉडल
प्रिलिम्स के लिये:प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना, बीड मॉडल मेन्स के लिये:प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना का किसानों के लिये महत्त्व |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में महाराष्ट्र सरकार ने प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना (PMFBY) के 'बीड मॉडल' के राज्यव्यापी कार्यान्वयन के लिये कहा।
प्रमुख बिंदु:
बीड मॉडल:
- बीड महाराष्ट्र का एक ज़िला है जो सूखाग्रस्त मराठवाड़ा क्षेत्र में स्थित है।
- 80-110 फॉर्मूला: इस मॉडल को 80-110 फॉर्मूला भी कहा जाता है।
- बीमा फर्म को सकल प्रीमियम के 110 प्रतिशत से अधिक के दावों पर विचार करने की आवश्यकता नहीं है। बीमाकर्त्ता को नुकसान (पुल राशि) से बचाने के लिये एकत्र किये गए प्रीमियम के 110 प्रतिशत से अधिक मुआवजे की लागत राज्य सरकार को वहन करनी होगी।
- हालाँकि यदि मुआवज़ा एकत्र किये गए प्रीमियम से कम है तो बीमा कंपनी राशि का 20% हैंडलिंग शुल्क के रूप में रखेगी और शेष राशि राज्य सरकार (प्रीमियम अधिशेष) को प्रतिपूर्ति करेगी।
इस मॉडल को लागू करने का कारण:
- राज्यों को लाभ:
- फंड का एक अन्य स्रोत: अधिकांश वर्षों में क्लेम-टू-प्रीमियम अनुपात कम होता है। बीड मॉडल में बीमा कंपनी के लाभ में कमी आने की उम्मीद है और राज्य सरकार को धन के दूसरे स्रोत तक पहुँच प्राप्त होगी।
- PMFBY के वित्तपोषण बोझ को कम करना: प्रतिपूर्ति की गई राशि से अगले वर्ष के लिये राज्य द्वारा PMFBY हेतु कम बजटीय प्रावधान हो सकता है, या एक वर्ष के फसल के नुकसान के मामले में राशि का भुगतान करने में मदद मिल सकती है।
- PMFBY में खामियाँ:
- वित्तीय संकट से जूझ रहे राज्यों ने PMFBY हेतु प्रीमियम बिल जमा करने के लिये वर्षों से असहमति जताई है, जिसके परिणामस्वरूप बीमाकर्त्ता समय पर किसानों के दावों का भुगतान नहीं कर रहे हैं।
- वर्ष 2020 में मध्य महाराष्ट्र के बीड ज़िले में सामान्य से कम मानसून की वर्षा ने बीमाकर्त्ताओं को खरीफ 2020 हेतु PMFBY के तहत ज़िले के किसानों को कवर करने से रोक दिया।
चुनौतियाँ:
- इस पर सवाल उठ रहा है कि राज्य सरकार अतिरिक्त राशि कैसे जुटाएगी और प्रतिपूर्ति की गई राशि को कैसे प्रशासित किया जाएगा।
- किसानों को इस मॉडल का कोई सीधा लाभ होता नहीं दिख रहा है।
प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना:
- PMFBY को वर्ष 2016 में लॉन्च किया गया था।
- यह फसल के खराब होने की स्थिति में एक व्यापक बीमा कवर प्रदान करती है जिससे किसानों की आय को स्थिर करने में मदद मिलती है।
- दायरा: सभी खाद्य और तिलहन फसलें तथा वार्षिक वाणिज्यिक/बागवानी फसलें जिनके लिये पिछली उपज के आँकड़े उपलब्ध हैं।
- प्रीमियम: सभी खरीफ फसलों के लिये किसानों द्वारा निर्धारित प्रीमियम का भुगतान 2% और सभी रबी फसलों के लिये 1.5% है। वार्षिक वाणिज्यिक और बागवानी फसलों के मामले में प्रीमियम 5% है।
- किसानों के हिस्से से अधिक प्रीमियम लागत पर राज्यों और भारत सरकार द्वारा समान रूप से सब्सिडी दी जाती है।
- हालाँकि भारत सरकार इस क्षेत्र को बढ़ावा देने के लिये पूर्वोत्तर राज्यों हेतु प्रीमियम सब्सिडी का 90% साझा करती है।
- PMFBY 2.0 (PMFBY को वर्ष 2020 के खरीफ सीज़न में नया रूप दिया गया था):
- पूरी तरह से स्वैच्छिक: वर्ष 2020 से पहले यह योजना उन किसानों के लिये वैकल्पिक थी, जिनके पास ऋण लंबित नहीं था लेकिन ऋणी किसानों हेतु यह अनिवार्य था। वर्ष 2020 से यह सभी किसानों हेतु वैकल्पिक है।
- केंद्रीय सब्सिडी की सीमा: कैबिनेट ने इस योजना के तहत असिंचित क्षेत्रों/फसलों के लिये 30% और सिंचित क्षेत्रों/फसलों हेतु 25% तक की प्रीमियम दरों के लिये केंद्र की प्रीमियम सब्सिडी को सीमित करने का निर्णय लिया।
- राज्यों को अधिक लचीलापन: सरकार ने राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों को PMFBY को लागू करने की छूट दी है और उन्हें किसी भी संख्या में अतिरिक्त जोखिम कवर/सुविधाओं का चयन करने का विकल्प दिया है।
- IEC गतिविधियों में निवेश: बीमा कंपनियों को सूचना, शिक्षा और संचार (IEC) गतिविधियों पर एकत्रित कुल प्रीमियम का 0.5% खर्च करना पड़ता है।
PMFBY के तहत प्रौद्योगिकी का उपयोग:
- फसल बीमा एप:
- यह किसानों को आसान नामांकन सुविधा प्रदान करता है।
- किसी भी घटना के 72 घंटे के भीतर फसल के नुकसान की सूचना देना आसान बनाना।
- नवीनतम तकनीकी उपकरण: फसल के नुकसान का आकलन करने के लिये उपग्रह इमेजरी, रिमोट-सेंसिंग तकनीक, ड्रोन, कृत्रिम बुद्धिमत्ता और मशीन लर्निंग का उपयोग किया जाता है।
- PMFBY पोर्टल: भूमि अभिलेखों के एकीकरण हेतु।
योजना का प्रदर्शन:
- इस योजना में प्रतिवर्ष के अनुसार औसतन 5.5 करोड़ से अधिक किसान आवेदन शामिल हैं।
- आधार सीडिंग (इंटरनेट बैंकिंग पोर्टल के माध्यम से आधार को लिंक करना) ने किसानों के खातों में सीधे दावा निपटान में तेज़ी लाने में मदद की है।
- एक उल्लेखनीय उदाहरण यह है कि राजस्थान में वर्ष 2019-20 में रबी सीज़न के दौरान टिड्डियों के हमले के कारण लगभग 30 करोड़ रुपए के मध्य-मौसम प्रतिकूलता के दावे किये गए हैं।
स्रोत- इंडियन एक्सप्रेस
स्कूल न जाने वाले बच्चों के आँकड़ों के संकलन के लिये ऑनलाइन मॉड्यूल
प्रिलिम्स के लिये:समग्र शिक्षा योजना, PRABANDH पोर्टल मेन्स के लिये:ऑनलाइन शिक्षा प्रणाली में सुधार के लिये महत्त्वपूर्ण योजनाएँ |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में शिक्षा मंत्रालय ने प्रत्येक राज्य/केंद्रशासित प्रदेश द्वारा चिह्नित, स्कूल न जाने वाले बच्चों (कोविड -19 महामारी के कारण) के आकँड़ों को संकलित करने के लिये एक ऑनलाइन मॉड्यूल विकसित किया है।
- एकत्रित आँकड़ों की समग्र शिक्षा योजना के PRABANDH पोर्टल पर विशेष प्रशिक्षण केंद्रों के साथ मैपिंग की जाएगी।
प्रमुख बिंदु:
मॉड्यूल के संदर्भ में:
- मॉड्यूल के माध्यम से सरकार 6-14 वर्ष के आयु वर्ग के बच्चों और सामाजिक तथा आर्थिक रूप से वंचित समूहों के बच्चों के आयु-उपयुक्त प्रवेश की सुविधा प्रदान करेगी।
- इसके अलावा 16-18 वर्ष आयु वर्ग के स्कूली बच्चों के लिये ओपन/डिस्टेंस लर्निंग मोड के माध्यम से उनकी शिक्षा जारी रखने के लिये सत्र 2021-22 में पहली बार वित्तीय सहायता प्रदान की जाएगी।
PRABANDH पोर्टल के संदर्भ में:
- PRABANDH (परियोजना मूल्यांकन, बजट, उपलब्धियाँ और डेटा हैंडलिंग सिस्टम) दक्षता बढ़ाने और स्कूली शिक्षा के लिये एक केंद्र प्रायोजित एकीकृत योजना- समग्र शिक्षा के कार्यान्वयन का प्रबंधन करने हेतु प्रौद्योगिकी का लाभ उठाने की दिशा में उठाया गया एक कदम है।
- यह अनुमोदन, विज्ञप्ति, वित्तीय स्थिति के संबंध में प्रणाली में पारदर्शिता और सटीकता के लिये है।
- साथ ही कार्यान्वयन के लिये वित्त की वास्तविक आवश्यकता का अधिक सटीक मूल्यांकन को सक्षम करने के लिये वित्तीय प्रबंधन प्रणाली को भी सुव्यवस्थित करता है।
समग्र शिक्षा (Samagra Shiksha):
प्रमुख प्रावधान:
- समग्र शिक्षा पूर्व-स्कूल से बारहवीं कक्षा तक शिक्षा के सभी स्तरों पर समावेशी और न्यायसंगत गुणवत्तापूर्ण शिक्षा सुनिश्चित करने के लिये एक सामूहिक योजना है।
- यह सर्व शिक्षा अभियान (SSA), राष्ट्रीय माध्यमिक शिक्षा अभियान (RMSA) और शिक्षक शिक्षा (TE) की तीन योजनाओं को समाहित करती है।
- योजना का केंद्र बिंदु अंग्रेज़ी के टी शब्द – टीचर्स और टेक्नोलॉजी का एकीकरण करके सभी स्तरों पर गुणवत्ता में सुधार लाना है।
विज़न:
- यह शिक्षा के लिये सतत् विकास लक्ष्य (SDG) अर्थात् SDG 4 (समावेशी और समान गुणवत्ता वाली शिक्षा सुनिश्चित करना तथा सभी के लिये आजीवन अवसरों को बढ़ावा देना) का पूरक है।
- इसका उद्देश्य बच्चों को मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा का अधिकार (RTE) अधिनियम, 2009 के कार्यान्वयन में राज्यों का समर्थन करना है।
- शिक्षा का अधिकार अधिनियम (RTE) भारत के संविधान के अनुच्छेद 21-A के तहत एक मौलिक अधिकार है।
- यह अधिनियम 6 से 14 वर्ष की आयु के प्रत्येक बच्चे के लिये शिक्षा को मौलिक अधिकार बनाता है और प्राथमिक विद्यालयों में न्यूनतम मानदंड निर्दिष्ट करता है।
वित्तीय स्वरूप:
- इस योजना को केंद्र प्रायोजित योजना के रूप में क्रियान्वित किया जा रहा है।
- केंद्र और राज्यों के बीच योजना के लिये वित्तीय पैटर्न वर्तमान में पूर्वोत्तर राज्यों और हिमालयी राज्यों के लिये 90:10 और अन्य सभी राज्यों तथा केंद्रशासित प्रदेशों (जहाँ विधानसभा है) के लिये 60:40 के अनुपात में है।
- जिन केंद्रशासित प्रदेशों में विधानसभा नहीं है उनके लिये 100% केंद्र प्रायोजित है।
डिजिटल शिक्षा पर ज़ोर:
- यह 5 वर्षों की अवधि में सभी माध्यमिक विद्यालयों में 'ऑपरेशन डिजिटल बोर्ड' को आगे बढ़ाएगा, जो शिक्षा में क्रांति लाएगा और प्रौद्योगिकी आधारित शिक्षण कक्षाएँ तथा फ़्लिप क्लासरूम आदि को सक्षम बनाएगा।
- UDISE+ तथा शगुन जैसी डिजिटल पहलों को मज़बूत किया जाएगा।
- इसके अलावा यह उच्च प्राथमिक से उच्च माध्यमिक स्तर तक के स्कूलों में ICT के बुनियादी ढाँचे को मज़बूत करेगा।
ऑनलाइन शिक्षा प्रणाली में सुधार के लिये अन्य महत्त्वपूर्ण योजनाएँ
- प्रधानमंत्री ई-विद्या कार्यक्रम:
- यह योजना डिजिटल/ऑनलाइन शिक्षा के लिये मल्टीमोड एक्सेस कार्यक्रम के रूप में शुरू की गई।
- स्टडी वेब्स ऑफ एक्टिव लर्निंग फॉर यंग एस्पायरिंग माइंड्स (SWAYAM):
- इसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि देश के प्रत्येक छात्र को सस्ती कीमत पर सर्वोत्तम गुणवत्ता वाली उच्च शिक्षा प्राप्त हो।
- स्कूली शिक्षा के लिये एकीकृत ऑनलाइन जंक्शन 'शगुन'
- यह भारत सरकार और सभी राज्यों तथा केंद्रशासित प्रदेशों में स्कूली शिक्षा एवं साक्षरता विभाग की विभिन्न गतिविधियों से संबंधित सभी ऑनलाइन पोर्टलों व वेबसाइटों के लिये एक जंक्शन बनाकर स्कूल शिक्षा प्रणाली में सुधार करने की एक व्यापक पहल है।
- शिक्षा के लिये एकीकृत ज़िला सूचना प्रणाली (UDISE) और UDISE+
- UDISE, प्रारंभिक और माध्यमिक शिक्षा के लिये 2012-13 में शुरू किया गया स्कूली शिक्षा पर सबसे बड़ी प्रबंधन सूचना प्रणाली में से एक है, जिसमें 1.5 मिलियन से अधिक स्कूल, 9.4 मिलियन शिक्षक और लगभग 250 मिलियन बच्चे शामिल हैं।
- UDISE+, UDISE का एक अद्यतन और उन्नत संस्करण है।
- निष्ठा (NISHTHA): शिक्षक प्रशिक्षण कार्यक्रम-
- इसका उद्देश्य एकीकृत शिक्षक प्रशिक्षण कार्यक्रम के माध्यम से प्रारंभिक स्तर पर सीखने के परिणामों में सुधार करना है।
- शिक्षा गुणवत्ता उन्नयन और समावेशन कार्यक्रम (EQUIP):
- यह पाँच वर्षों (2019-2024) में शिक्षा के क्षेत्र में रणनीतिक हस्तक्षेपों को लागू करके भारत की उच्च शिक्षा प्रणाली में परिवर्तन लाने के उद्देश्य से एक पंचवर्षीय योजना है।
- इसके अलावा यह उच्च शिक्षा में पहुँच, समावेशन, गुणवत्ता, उत्कृष्टता और रोज़गार क्षमता बढ़ाने के सिद्धांतों पर आगे बढ़ने के लिये तैयार है।
- राष्ट्रीय उच्चतर शिक्षा अभियान (RUSA):
- यह अक्तूबर 2013 में शुरू की गई एक केंद्र प्रायोजित योजना है जिसका उद्देश्य पूरे देश में उच्च शिक्षा संस्थानों को रणनीतिक वित्तपोषण प्रदान करना है।
स्रोत: द हिंदू
न्यूनतम समर्थन मूल्य
प्रिलिम्स के लियेन्यूनतम समर्थन मूल्य, कृषि लागत एवं मूल्य आयोग मेन्स के लियेन्यूनतम समर्थन मूल्य से संबंधित मुद्दे और उसमें सुधार हेतु उपाय |
चर्चा में क्यों?
फसल विविधीकरण को प्रोत्साहित करने के लिये केंद्र सरकार ने धान, दलहन और तिलहन (सभी अनिवार्य खरीफ फसलों के लिये) हेतु न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) में वृद्धि करने की घोषणा की है।
प्रमुख बिंदु
परिचय
- न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) वह दर है जिस पर सरकार किसानों से फसल खरीदती है और यह किसानों की उत्पादन लागत के कम-से-कम डेढ़ गुना अधिक होती है।
- ‘न्यूनतम समर्थन मूल्य’ किसी भी फसल के लिये वह ‘न्यूनतम मूल्य’ है, जिसे सरकार किसानों के लिये लाभकारी मानती है और इसलिये इसके माध्यम से किसानों का ‘समर्थन’ करती है।
MSP के तहत फसलें
- ‘कृषि लागत और मूल्य आयोग’ द्वारा सरकार को 22 अधिदिष्ट फसलों (Mandated Crops) के लिये ‘न्यूनतम समर्थन मूल्य’ (MSP) तथा गन्ने के लिये 'उचित और लाभकारी मूल्य' (FRP) की सिफारिश की जाती है।
- कृषि लागत एवं मूल्य आयोग (CACP) कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय का एक संलग्न कार्यालय है।
- अधिदिष्ट फसलों में 14 खरीफ फसलें, 6 रबी फसलें और दो अन्य वाणिज्यिक फसलें शामिल हैं।
- इसके अलावा लाही और नारियल के न्यूनतम समर्थन मूल्यों (MSPs) का निर्धारण क्रमशः सरसों और सूखे नारियल के न्यूनतम समर्थन मूल्यों (MSPs) के आधार पर किया जाता है।
MSP की सिफारिश संबंधी कारक
- किसी भी फसल के लिये न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) की सिफारिश करते समय ‘कृषि लागत एवं मूल्य आयोग’ द्वारा कृषि लागत समेत विभिन्न कारकों पर विचार किया जाता है।
- यह फसल के लिये आपूर्ति एवं मांग की स्थिति, बाज़ार मूल्य प्रवृत्तियों (घरेलू और वैश्विक), उपभोक्ताओं के लिये निहितार्थ (मुद्रास्फीति), पर्यावरण (मिट्टी तथा पानी के उपयोग) और कृषि एवं गैर-कृषि क्षेत्रों के बीच व्यापार की शर्तों जैसे कारकों पर भी विचार करता है।
तीन प्रकार की उत्पादन लागत
- CACP द्वारा राज्य और अखिल भारतीय दोनों स्तरों पर प्रत्येक फसल के लिये तीन प्रकार की उत्पादन लागतों का अनुमान लगाया जाता है।
- ‘A2’
- इसके तहत किसान द्वारा बीज, उर्वरकों, कीटनाशकों, श्रम, पट्टे पर ली गई भूमि, ईंधन, सिंचाई आदि पर किये गए प्रत्यक्ष व्यय को शामिल किया जाता है।
- ‘A2+FL’
- इसके तहत ‘A2’ के साथ-साथ अवैतनिक पारिवारिक श्रम का एक अधिरोपित मूल्य शामिल किया जाता है।
- ‘C2’
- यह एक अधिक व्यापक लागत है, क्योंकि इसके अंतर्गत ‘A2+FL’ में किसान की स्वामित्त्व वाली भूमि और अचल संपत्ति के किराए तथा ब्याज को भी शामिल किया जाता है।
- न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) की सिफारिश करते समय CACP द्वारा ‘A2+FL’ और ‘C2’ दोनों लागतों पर विचार किया जाता है।
- CACP द्वारा ‘A2+FL’ लागत की ही गणना प्रतिफल के लिये की जाती है।
- जबकि ‘C2’ लागत का उपयोग CACP द्वारा मुख्य रूप से बेंचमार्क लागत के रूप में किया जाता है, यह देखने के लिये कि क्या उनके द्वारा अनुशंसित MSP कम-से-कम कुछ प्रमुख उत्पादक राज्यों में इन लागतों को कवर करते हैं।
- केंद्र सरकार की आर्थिक मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति (CCEA) द्वारा MSP के स्तर और CACP द्वारा की गई अन्य सिफारिशों पर अंतिम निर्णय लेती है।
MSP में वृद्धि का महत्त्व
- इस वृद्धि के माध्यम से पोषक तत्त्वों से भरपूर पोषक-अनाज पर अतिरिक्त ध्यान केंद्रित किया गया है, जिससे उन क्षेत्रों में इसके उत्पादन को प्रोत्साहित किया जा सकेगा, जहाँ भूजल तालिका के लिये दीर्घकालिक प्रतिकूल प्रभाव के बिना चावल-गेहूँ आदि को उगाया जाना संभव नहीं है।
- पिछले कुछ वर्षों में तिलहन, दलहन और मोटे अनाज के पक्ष में MSP को फिर से संगठित करने के लिये कई महत्त्वपूर्ण प्रयास किये गए हैं, जिनका उद्देश्य मांग-आपूर्ति के असंतुलन को ठीक करने हेतु किसानों को सर्वोत्तम तकनीकों और कृषि पद्धतियों को अपनाकर इन फसलों की उपज को बढ़ाने के लिये प्रोत्साहित करना है।
बढ़ोतरी से संबंधित मुद्दे
- यह वृद्धि कृषि लागत को ध्यान में रखते हुए मामूली प्रतीत होती है - विशेष रूप से ट्रैक्टरों, सिंचाई पंपों और हार्वेस्टर कंबाइनों के लिये इस्तेमाल होने वाले डीज़ल की कीमत में हो रही बढ़ोतरी के कारण।
- कुछ फसलों की कीमतों में की गई वृद्धि, विशेष रूप से मक्का की कीमतों में की गई बढ़ोतरी मुद्रास्फीति के साथ संतुलित नहीं है।
- इसके अलावा सुनिश्चित खरीद की अनुपस्थिति के कारण किसानों के पास इन फसलों की खेती के लिये कोई प्रोत्साहन नहीं है।
- यह घोषणा ऐसे समय में हुई है जब किसान संघ किसानों के लिये सभी फसलों हेतु MSP की गारंटी देने और तीन विवादास्पद कृषि कानूनों को रद्द करने की मांग कर रहे हैं।
MSP संबंधी मुद्दे
- MSP के साथ प्रमुख समस्या गेहूँ और चावल को छोड़कर सभी फसलों की खरीद के लिये सरकारी मशीनरी की कमी है। गेहूँ और चावल को भारतीय खाद्य निगम PDS के तहत सक्रिय रूप से खरीदता है।
- चूँकि कई राज्य सरकारें संपूर्ण अनाज की खरीद करती हैं, ऐसे राज्यों में किसानों को अधिकतम लाभ होता है, जबकि कम खरीद करने वाले राज्यों के किसान प्रायः प्रतिकूल रूप से प्रभावित होते हैं।
- MSP आधारित खरीद प्रणाली बिचौलियों, कमीशन एजेंटों और AMPC अधिकारियों पर भी निर्भर है, जिससे छोटे किसानों तक पहुँचना मुश्किल हो जाता है।
समाधान
- CACP ने वर्ष 2018-19 के खरीफ विपणन सत्र के लिये अपनी मूल्य नीति रिपोर्ट में किसानों को 'MSP पर बेचने का अधिकार' प्रदान करने वाला एक कानून बनाने का सुझाव दिया था। ऐसा किसानों को प्रोत्साहित करने हेतु आवश्यक है।
- सरकार को कृषि और पशुपालन को बढ़ावा देना चाहिये, जिससे लोगों द्वारा प्रोटीन, विटामिन, खनिज और फाइबर से भरपूर खाद्य पदार्थों का सेवन किया जा सके।
- ऐसा करने का सही तरीका यह है कि धान और गेंहूँ के MSP को फ्रीज कर दिया जाए, इसके अलावा उनकी खरीद को प्रति किसान 10-15 क्विंटल प्रति एकड़ पर सीमित कर दिया जाए।
स्रोत: द हिंदू
एनविज़न मिशन: यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी
प्रिलिम्स के लिये:एनविज़न मिशन, शुक्र ग्रह, नासा द्वारा घोषित नवीनतम मिशन, पूर्व के मिशन मेन्स के लिये:शुक्र के अध्ययन का महत्त्व |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी (European Space Agency- ESA) ने शुक्र ग्रह (Venus) के लिये एक नए एनविज़न मिशन (EnVision mission) की घोषणा की है।
प्रमुख बिंदु:
संदर्भ:
- इस मिशन का नेतृत्व यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी (ESA) करेगी जिसमें राष्ट्रीय वैमानिकी एवं अंतरिक्ष प्रशासन (NASA) का भी योगदान होगा।
- इसे वर्ष 2030 तक लॉन्च किये जाने की संभावना है। इसे एरियन 6 रॉकेट द्वारा लॉन्च किया जाएगा। इस अंतरिक्षयान को शुक्र तक पहुँचने में लगभग 15 महीने लगेंगे और कक्षा की परिक्रमा पूरी करने में 16 महीने और लगेंगे।
उद्देश्य:
- इसका उद्देश्य शुक्र ग्रह के वायुमंडल और सतह का अध्ययन करना तथा इसके वायुमंडल में पाई जाने वाली गैसों की निगरानी करना एवं ग्रह की सतही संरचना का विश्लेषण करना है।
लाभ:
- एनविज़न मिशन शुक्र ग्रह के लिये ESA के नेतृत्व वाले वीनस एक्सप्रेस' (2005-2014) नामक दूसरे मिशन का अनुसरण करेगा जो वायुमंडलीय अनुसंधान पर केंद्रित है और ग्रह की सतह पर ज्वालामुखीय हॉटस्पॉट के बारे में पता करेगा।
अन्य मिशन:
- संयुक्त राज्य अमेरिका:
- नासा ने शुक्र के लिये दो नए रोबोटिक मिशन - डाविंसी प्लस (DAVINCI+) और वेरिटास (VERITAS) की घोषणा की है। इन्हें 2028-2030 के बीच लॉन्च किया जाएगा।
- इसके अलावा मेरिनर शृंखला 1962-1974, पायनियर वीनस 1 और वर्ष 1978 में पायनियर वीनस 2, वर्ष 1989 में मैगलन आदि भेजे गए।
- रूस:
- रूस द्वारा 1967-1983 में अंतरिक्षयानों की वेनेरा शृंखला और वर्ष 1985 में वेगास 1 तथा 2 भेजे गए।
- जापान:
- जापान का अकात्सुकी अंतरिक्षयान वर्ष 2015 से शुक्र ग्रह के वायुमंडल का अध्ययन कर रहा है।
भारतीय पहलें:
- भारत वर्ष 2024 में शुक्र के लिये शुक्रयान नामक एक नया ऑर्बिटर लॉन्च करने की योजना बना रहा है।
शुक्र के अध्ययन का महत्त्व:
- इससे यह जानने में मदद मिलेगी कि पृथ्वी जैसे ग्रहों का विकास कैसे होता है और पृथ्वी के आकार के एक्सोप्लैनेट (हमारे सूर्य के अलावा किसी अन्य तारे की परिक्रमा करने वाले ग्रह) पर कैसी स्थितियाँ मौजूद हैं।
- यह पृथ्वी की जलवायु की मॉडलिंग करने में मदद करेगा और यह जानने में मदद करेगा कि किसी ग्रह की जलवायु कितनी नाटकीय रूप से बदल सकती है।
- वैज्ञानिक शुक्र पर इसके सुदूर अतीत में जीवन के अस्तित्व के संबंध में अनुमान लगाते हैं और ऐसी संभावना व्यक्त की जाती है कि इसके बादलों की ऊपरी परतों में जहाँ तापमान कम होता है जीवन संभव हो सकता है।
- वर्ष 2020 में वैज्ञानिकों ने शुक्र के वातावरण में फॉस्फीन (केवल जैविक प्रक्रियाओं के माध्यम से उत्पादित एक रसायन) की उपस्थिति का पता लगाया।
डाविंसी प्लस (DAVINCI+):
- DAVINCI+ अर्थात् 'डीप एटमॉस्फियर वीनस इन्वेस्टिगेशन ऑफ नोबल गैस, केमिस्ट्री, एंड इमेजिंग' वर्ष 1978 के बाद से शुक्र ग्रह के वायुमंडल में अमेरिकी नेतृत्व वाला पहला मिशन है।
- इस मिशन के माध्यम से शुक्र के वायुमंडल तथा इसके गठन और विकास का विश्लेषण किया जाएगा।
- इसके अलावा इसका उद्देश्य शुक्र ग्रह पर उपस्थित नोबल गैसों, इसके रासायनिक संगठन, इमेजिंग प्लस (दृश्यों के माध्यम से शुक्र की आतंरिक सतह का परीक्षण) तथा वायुमंडलीय सर्वेक्षण करना है।
- यह भूगर्भीय विशेषता-टेसेरा (Eological Feature-Tesserae) की पहली उच्च रिज़ॉल्यूशन वाली तस्वीरों को भी प्राप्त करने का प्रयास करेगा।
- टेसेरा की तुलना पृथ्वी के महाद्वीपों से की जा सकती है। टेसेरा की उपस्थिति यह संकेत दे सकती है कि शुक्र पर पृथ्वी की तरह टेक्टोनिक प्लेट हैं।
वेरिटास (VERITAS):
- इस मिशन का विस्तृत नाम ‘वीनस एमिसिविटी, रेडियो साइंस, इनसार, टोपोग्राफी एंड स्पेक्ट्रोस्कोपी’ (Venus Emissivity, Radio Science, InSAR, Topography, and Spectroscopy) है।
- इस मिशन का उद्देश्य शुक्र ग्रह की सतह का अध्ययन करके यह पता लगाना है कि शुक्र ग्रह की विशेषताएँ पृथ्वी से अलग क्यों हैं।
- यह सतह की ऊँचाई की जाँच के लिये रडार का उपयोग करेगा और यह पुष्टि करने में सक्षम हो सकता है कि प्लेट टेक्टोनिक्स और ज्वालामुखी जैसी प्रक्रियाएँ अभी भी वहाँ सक्रिय हैं या नहीं।
- यह मिशन शुक्र की सतह से उत्सर्जन का भी मानचित्रण करेगा जो शुक्र पर मौज़ूद चट्टानों के प्रकार को निर्धारित करने में मदद कर सकता है।
- यह भी निर्धारित करेगा कि सक्रिय ज्वालामुखी वायुमंडल में जलवाष्प उत्सर्जित कर रहे हैं या नहीं।
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
UNGA का संकल्प 75/260: HIV/AIDS
प्रीलिम्स के लियेHIV/AIDS, संयुक्त राष्ट्र महासभा, HIV/AIDS निवारण एवं नियंत्रण अधिनियम, 2017, सतत् विकास लक्ष्य मेन्स के लियेHIV/AIDS रोकथाम मॉडल |
चर्चा में क्यों?
केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री ने HIV/AIDS की रोकथाम पर संयुक्त राष्ट्र महासभा (United Nations General Assembly- UNGA) के 75वें सत्र को संबोधित किया।
- UNGA का संकल्प 75/260 HIV/AIDS पर प्रतिबद्धता की घोषणा और HIV/AIDS पर राजनीतिक घोषणाओं के कार्यान्वयन से संबंधित है।
प्रमुख बिंदु
- HIV/AIDS रोकथाम मॉडल: भारत का अद्वितीय HIV निवारण मॉडल 'सामाजिक अनुबंध' (Social Contracting) की अवधारणा पर केंद्रित है, जिसके माध्यम से नागरिक समाज के समर्थन से 'लक्षित हस्तक्षेप कार्यक्रम (Targeted Interventions Program)' लागू किया जाता है।
- इस कार्यक्रम का उद्देश्य HIV की देखभाल के लिये व्यवहार परिवर्तन, संचार, आउटरीच, सेवा वितरण, परामर्श एवं परीक्षण तथा लिंकेज सुनिश्चित करना है।
- कानूनी ढाँचा: HIV/AIDS निवारण एवं नियंत्रण अधिनियम, 2017 संक्रमित और प्रभावित आबादी के मानवाधिकारों की रक्षा के लिये एक कानूनी और सक्षम ढाँचा प्रदान करता है।
- मुफ्त इलाज: भारत करीब 14 लाख लोगों को मुफ्त एंटी-रेट्रो-वायरल उपचार मुहैया करा रहा है।
- एंटी-रेट्रो-वायरल उपचार: यह दैनिक आधार पर दवाओं का एक संयोजन है जो वायरस को प्रजनन करने से रोकता है।
- यह उपचार CD-4 कोशिकाओं की रक्षा करने में मदद करती है और इस प्रकार रोग से लड़ने के लिए प्रतिरक्षा प्रणाली को पर्याप्त मज़बूत रखती है।
- यह HIV के संचरण के जोखिम को कम करने के अलावा एड्स (HIV के कारण संक्रमण से होने वाली स्थितियों का एक स्पेक्ट्रम) को रोकने में भी मदद करता है।
- राष्ट्रीय एड्स नियंत्रण कार्यक्रम:
- राष्ट्रीय एड्स नियंत्रण संगठन (NACO) ने राष्ट्रीय एड्स नियंत्रण कार्यक्रम के पहले चरण की शुरुआत (1992-1999) की थी।
- वर्ष 1992 में भारत का पहला राष्ट्रीय एड्स नियंत्रण कार्यक्रम (1992-1999) शुरू किया गया था और कार्यक्रम को लागू करने के लिये राष्ट्रीय एड्स नियंत्रण संगठन (NACO) का गठन किया गया था।
- NACO स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय का एक प्रभाग है।
- इसका गठन वर्ष 1992 में 35 HIV/AIDS रोकथाम और नियंत्रण समितियों के माध्यम से भारत में HIV/AIDS नियंत्रण कार्यक्रमों को नेतृत्त्व प्रदान करने के लिये किया गया था।
- भारत धीरे-धीरे HIV से पीड़ित लोगों को डोलटेग्रेविर (एक सुरक्षित और प्रभावोत्पादक एंटी-रेट्रो-वायरल दवा आहार) में परिवर्तित कर रहा है।
- माँ से बच्चे में HIV संक्रमण के उन्मूलन का लक्ष्य: इसके लिये वायरल लोड परीक्षण सुविधाओं को बढ़ाया गया है और HIV काउंसलिंग एवं जाँच एवं प्रारंभिक निदान के लिये समुदाय आधारित स्क्रीनिंग में तेज़ी लाई गई है।
सतत् विकास लक्ष्य (SDG) और HIV/AIDS: HIV प्रतिक्रिया से संबंधित कई SDG हैं:
- SDG 3: सभी आयु के लोगों में स्वास्थ्य, सुरक्षा और स्वस्थ जीवन को बढ़ावा देना।
- SDG 3.3: वर्ष 2030 तक एड्स को एक सार्वजनिक स्वास्थ्य खतरे के रूप में समाप्त करना।
- SDG 4: गुणवत्तापूर्ण शिक्षा, जिसमें व्यापक यौन और प्रजनन स्वास्थ्य (Sexual and Reproductive Health- SRH) शिक्षा तथा जीवन कौशल पर लक्ष्य शामिल हैं।
- SDG 5: लैंगिक समानता, जिसमें यौन और प्रजनन स्वास्थ्य एवं अधिकार (Sexual and Reproductive Health and Rights) पर लक्ष्य, हिंसा का उन्मूलन, हानिकारक लैंगिक मानदंड तथा प्रथाएँ शामिल हैं।
- SDG 10: भेदभाव के खिलाफ सुरक्षा का लक्ष्य और अपने अधिकारों का दावा करने तथा HIV सेवाओं तक पहुँच बढ़ाने के लिये लोगों के सशक्तीकरण सहित असमानताओं को कम करना।
- SDG 16: प्रमुख आबादी और HIV के साथ रहने वाले लोगों के खिलाफ कम हिंसा सहित शांति, न्याय और मज़बूत संस्थान।
अन्य पहलें:
- सनराइज़ परियोजना: स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय द्वारा वर्ष 2016 में भारत के उत्तर-पूर्वी राज्यों में विशेषकर ड्रग्स का इंजेक्शन लगाने वाले लोगों में बढ़ते HIV प्रसार से निपटने के लिये यह पहल शुरू की गई थी।
- लाल रिबन: लाल रिबन (Red Ribbon) HIV से पीड़ित लोगों के लिये जागरूकता और समर्थन का सार्वभौमिक प्रतीक है।
- विश्व एड्स दिवस से पहले और उसके दौरान जागरूकता बढ़ाने के लिए रिबन पहनना एक बेहतर तरीका है।
- 90-90-90: देश में HIV पॉज़िटिव लोगों में से 90 प्रतिशत लोग अपनी HIV स्थिति जान सकें, पॉज़िटिव HIV वाले 90 प्रतिशत लोगों तक स्वास्थ्य सुविधाएँ पहुँच सकें और इलाज तक पहुँच प्राप्त 90 प्रतिशत लोगों में इस वायरस के दबाव को कम किया जा सके।
- एड्स, तपेदिक और मलेरिया से लड़ने के लिये वैश्विक कोष (GFATM): वैश्विक कोष 21वीं सदी का एक साझेदारी संगठन है जिसे महामारी के रूप में एड्स, तपेदिक और मलेरिया की समाप्ति में तेज़ी लाने के लिये बनाया गया है।
ह्यूमन इम्यूनोडिफिसिएंसी वायरस (HIV)
- HIV शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली में CD-4, जो कि एक प्रकार का व्हाइट ब्लड सेल (T-Cells) होता है, पर हमला करता है। टी-कोशिकाएँ वे कोशिकाएँ होती हैं जो कोशिकाओं में विसंगतियों और संक्रमण का पता लगाने के लिये शरीर में घूमती रहती हैं।
- शरीर में प्रवेश करने के बाद HIV वायरस की संख्या में तीव्र वृद्धि होती है और यह CD-4 कोशिकाओं को नष्ट करने लगता है, इस प्रकार यह मानव प्रतिरक्षा प्रणाली (Human Immune System) को गंभीर रूप से नुकसान पहुँचाता है। एक बार जब यह वायरस शरीर में प्रवेश कर जाता है तो इसे कभी नहीं हटाया जा सकता है।
- HIV से संक्रमित व्यक्ति की CD-4 की संख्या में काफी कमी आ जाती है। एक स्वस्थ शरीर में CD-4 की संख्या 500-1600 के बीच होती है, लेकिन एक संक्रमित शरीर में यह संख्या 200 तक कम हो सकती है।
- कमज़ोर प्रतिरक्षा प्रणाली के कारण एक व्यक्ति में संक्रमण और कैंसर की संभावना अधिक रहती है। इस वायरस से संक्रमित व्यक्ति के लिये मामूली चोट या बीमारी से भी उबरना मुश्किल हो जाता है।
- समुचित उपचार से HIV के गंभीर प्रभाव को रोका जा सकता है।
स्रोत: पीआईबी
कृषि मशीनीकरण योजना पर उप-मिशन
प्रिलिम्स के लिये:कृषि वानिकी योजना पर उप-मिशन, सतत् कृषि के लिए राष्ट्रीय मिशन, राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन, राष्ट्रीय कृषि विकास योजना, एकीकृत बागवानी विकास हेतु मिशन, प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना, प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना, परंपरागत कृषि विकास योजना मेन्स के लियेकृषि मशीनीकरण योजना पर उप-मिशन का भारतीय कृषि हेतु महत्त्व |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में भारत सरकार ने कृषि मशीनीकरण पर उप-मिशन (SMAM) योजना के तहत कृषि मशीनीकरण की विभिन्न गतिविधियों के लिये धनराशि जारी की है।
प्रमुख बिंदु:
- कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय ने वर्ष 2014-15 में SMAM को लॉन्च किया।
- इसके तहत NER (पूर्वोत्तर क्षेत्र) राज्यों के अलावा अन्य राज्यों हेतु 40-50% की सीमा तक विभिन्न प्रकार के कृषि उपकरण और मशीनरी की खरीद हेतु सब्सिडी प्रदान की जाती है और NER राज्यों के लिये यह प्रति लाभार्थी 1.25 लाख रुपए तक 100% सीमित है।
- कृषि मंत्रालय ने एक बहुभाषी मोबाइल एप, 'सीएचसी (कस्टम हायरिंग सेंटर)- फार्म मशीनरी' भी विकसित किया है जो किसानों को उनके क्षेत्र में स्थित कस्टम हायरिंग सर्विस सेंटर से जोड़ता है।
लक्ष्य:
- लघु और सीमांत किसानों तथा उन दुर्गम क्षेत्रों में जहाँ कृषि हेतु विद्युत की उपलब्धता कम है, कृषि मशीनीकरण की पहुँच बढ़ाना।
उद्देश्य:
- लघु और खंडित भूमि जोत तथा व्यक्तिगत स्वामित्व की उच्च लागत के कारण उत्पन्न होने वाली प्रतिकूल अर्थव्यवस्थाओं को दूर करने के लिये 'कस्टम हायरिंग सेंटर' और 'हाई-वैल्यू मशीनों के हाई-टेक हब' को बढ़ावा देना।
- प्रदर्शन और क्षमता निर्माण गतिविधियों के माध्यम से हितधारकों के बीच जागरूकता पैदा करना।
- पूरे देश में स्थित नामित परीक्षण केंद्रों पर कृषि मशीनों का प्रदर्शन, परीक्षण और प्रमाणन सुनिश्चित करना।
अन्य संबंधित पहलें:
- कृषि वानिकी योजना पर उप-मिशन।
- सतत् कृषि के लिये राष्ट्रीय मिशन।
- राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन।
- राष्ट्रीय कृषि विकास योजना।
- एकीकृत बागवानी विकास हेतु मिशन।
- प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना।
- प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना।
- परंपरागत कृषि विकास योजना।
कृषि/कृषि मशीनीकरण:
- मशीनीकृत कृषि, कृषि कार्य को यंत्रीकृत करने के लिये कृषि मशीनरी का उपयोग करने की प्रक्रिया है।
- कृषि क्षेत्र में मशीनीकरण को बढ़ावा देने के लिये उन्नत कृषि उपकरण और मशीनरी आवश्यक इनपुट हैं।
कृषि मशीनीकरण का स्तर:
- भारत में लगभग 40-45% के साथ उत्तर प्रदेश, हरियाणा और पंजाब जैसे राज्यों में मशीनीकरण का स्तर बहुत अधिक है, लेकिन उत्तर-पूर्वी राज्यों में मशीनीकरण नगण्य है।
- कृषि यंत्रीकरण का यह स्तर अभी भी अमेरिका (95%), ब्राज़ील (75%) और चीन (57%) जैसे देशों की तुलना में कम है।
महत्त्व:
- यह उपलब्ध कृषि योग्य क्षेत्र की उत्पादकता को अधिकतम करने और ग्रामीण युवाओं के लिये कृषि को अधिक लाभदायक एवं आकर्षक पेशा बनाने हेतु भूमि, जल ऊर्जा संसाधनों, जनशक्ति तथा अन्य इनपुट जैसे बीज, उर्वरक, कीटनाशक आदि के उपयोग को अनुकूलित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
- यह कृषि क्षेत्र के सतत् विकास हेतु प्रमुख चालकों में से एक है।
नकारात्मक प्रभाव:
- कार्यबल कम होने के कारण कृषि रोज़गार कम हो जाता है।
- मशीनरी के प्रयोग से प्रदूषण बढ़ता है।
स्रोत-पीआईबी
राम प्रसाद बिस्मिल
प्रिलिम्स के लियेराम प्रसाद बिस्मिल मेन्स के लियेभारतीय स्वतंत्रता संग्राम की महत्त्वपूर्ण घटनाएँ और महत्त्वपूर्ण व्यक्तित्त्व |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में संस्कृति मंत्रालय ने स्वतंत्रता सेनानी राम प्रसाद बिस्मिल की जयंती को चिह्नित करने हेतु उत्तर प्रदेश के शाहजहाँपुर में एक विशेष समारोह का आयोजन किया।
प्रमुख बिंदु
जन्म
- उनका जन्म 11 जून, 1897 को उत्तर प्रदेश के शाहजहाँपुर जिले के एक गांव में मुरलीधर और मूलमती के घर हुआ था।
परिचय
- वे सबसे उल्लेखनीय भारतीय स्वतंत्रता सेनानियों में से थे, जिन्होंने अपनी अंतिम साँस तक ब्रिटिश औपनिवेशिक ताकतों का विरोध किया।
- वे दयानंद सरस्वती (1875) द्वारा स्थापित आर्य समाज में शामिल हुए। इसका उन पर गहरा प्रभाव पड़ा और उन्होंने प्रायः साम्राज्यवादी ताकतों के खिलाफ लड़ाई में कविता को अपने हथियार के रूप में इस्तेमाल किया।
- क्रांतिकारी विचार उनके दिमाग में सर्वप्रथम तब जन्मे जब उन्होंने भारतीय राष्ट्रवादी और आर्य समाज मिशनरी ‘भाई परमानंद’ को दी गई मौत की सजा के बारे में पढ़ा।
- इस समय वे 18 वर्ष के थे और उन्होंने अपनी कविता 'मेरा जन्म' के माध्यम से अपनी पीड़ा को व्यक्त किया।
- उनका मानना था कि हिंसा और रक्तपात के बिना स्वतंत्रता प्राप्त नहीं की जा सकती, जिसका अर्थ था कि उनके विचार महात्मा गांधी के 'अहिंसा' के आदर्शों क विपरीत थे।
स्वतंत्रता संग्राम में उनका योगदान
- संगठन
- उन्होंने एक स्कूल शिक्षक ‘गेंदा लाल दीक्षित’ के साथ मिलकर ‘मातृवेदी’ नामक संगठन का निर्माण किया।
- दोनों ही क्रांतिकारी विचारों को साझा करते थे और देश के युवाओं को ब्रिटिश सरकार से लड़ने के लिये संगठित करना चाहते थे।
- बिस्मिल, सचिंद्र नाथ सान्याल और जादूगोपाल मुखर्जी के साथ ‘हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन’ (HRA) के प्रमुख संस्थापकों में से एक थे।
- ‘हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन’ की स्थापना वर्ष 1924 में हुई थी और इसका संविधान मुख्य रूप से बिस्मिल द्वारा ही तैयार किया गया था।
- उन्होंने एक स्कूल शिक्षक ‘गेंदा लाल दीक्षित’ के साथ मिलकर ‘मातृवेदी’ नामक संगठन का निर्माण किया।
- प्रमुख मामले
- वे वर्ष 1918 के ‘मैनपुरी षडयंत्र’ में शामिल थे, जिसमें पुलिस ने बिस्मिल सहित कुछ अन्य युवाओं को ऐसी किताबें बेचते हुए पाया था, जो ब्रिटिश सरकार द्वारा प्रतिबंधित की गई थीं।
- उन्होंने 'देशवासियों के नाम' शीर्षक से एक पैम्फलेट प्रकाशित किया, जिसमें उनकी कविता 'मैनपुरी की प्रतिज्ञा' भी शामिल थी। अपनी पार्टी के लिये धन इकट्ठा करने हेतु उन्होंने सरकारी खजाने को भी लूटा।
- वह यमुना नदी में कूदकर गिरफ्तारी से बच निकले।
- वर्ष 1925 में बिस्मिल और उनके साथी चंद्रशेखर आजाद और अशफाकउल्ला खान ने लखनऊ के पास काकोरी में एक ट्रेन लूटने का फैसला किया।
- वे अपने प्रयास में सफल रहे लेकिन हमले के एक महीने के भीतर एक दर्जन से अधिक HRA सदस्यों के साथ उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया और काकोरी षड्यंत्र मामले के तहत मुकदमा चलाया गया।
- कानूनी प्रक्रिया 18 महीने तक चली। इसमें राम प्रसाद 'बिस्मिल’, अशफाक उल्ला खान, राजेंद्र लाहिड़ी तथा रोशन सिंह को मौत की सज़ा सुनाई गई और अन्य क्रांतिकारियों को उम्रकैद की सज़ा दी गई।
- वे वर्ष 1918 के ‘मैनपुरी षडयंत्र’ में शामिल थे, जिसमें पुलिस ने बिस्मिल सहित कुछ अन्य युवाओं को ऐसी किताबें बेचते हुए पाया था, जो ब्रिटिश सरकार द्वारा प्रतिबंधित की गई थीं।
- अन्य
- अहमदाबाद में भारतीय राष्ट्रीय काॅॅन्ग्रेस के वर्ष 1921 के अधिवेशन में भाग लिया।
- गोरखपुर सेंट्रल जेल में बंद रहने के दौरान बिस्मिल एक राजनीतिक कैदी के रूप में व्यवहार करने की मांग को लेकर भूख हड़ताल पर चले गए।
- लखनऊ सेंट्रल जेल में बिस्मिल ने अपनी आत्मकथा लिखी, जिसे हिंदी साहित्य में बेहतरीन कार्यों में से एक माना जाता है।
- मृत्यु
- 19 दिसंबर, 1927 को गोरखपुर जेल में उन्हें फाँसी दी गई।
- राप्ती नदी के तट पर उनका अंतिम संस्कार किया गया और बाद में इस स्थल का नाम बदलकर ‘राजघाट’ कर दिया गया।
स्रोत: पी.आई.बी.
अटलांटिक चार्टर
प्रिलिम्स के लियेअटलांटिक चार्टर, अटलांटिक चार्टर (1941), न्यू अटलांटिक चार्टर (2021) के बारे में तथ्यात्मक जानकारी मेन्स के लियेपुराने अटलांटिक चार्टर और नए अटलांटिक चार्टर (2021) में भारत के लिये अवसर |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में अमेरिका के राष्ट्रपति और ब्रिटेन के प्रधानमंत्री ने 80 वर्ष पुराने अटलांटिक चार्टर (Atlantic Charter) के एक नए संस्करण पर हस्ताक्षर किये।
प्रमुख बिंदु
अटलांटिक चार्टर (1941):
- अटलांटिक चार्टर अमेरिकी राष्ट्रपति फ्रैंकलिन डी. रूजवेल्ट और ब्रिटिश प्रधानमंत्री विंस्टन चर्चिल द्वारा 14 अगस्त, 1941 को (द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान) न्यूफाउंडलैंड में सरकार के दो प्रमुखों की बैठक के बाद जारी एक संयुक्त घोषणा थी।
- अटलांटिक चार्टर को बाद में वर्ष 1942 में संयुक्त राष्ट्र की घोषणा में संदर्भ द्वारा शामिल किया गया था।
- द्वितीय विश्व युद्ध एक ऐसा संघर्ष था जिसमें 1939-45 के वर्षों के दौरान विश्व के लगभग हर हिस्से को शामिल किया गया था।
- प्रमुख युद्धरत थे:
- एक्सिस शक्तियाँ: जर्मनी, इटली और जापान।
- सहयोगी: फ्राँस, ग्रेट ब्रिटेन, संयुक्त राज्य अमेरिका, सोवियत संघ और कुछ हद तक चीन।
- अटलांटिक चार्टर ने अमेरिका और ब्रिटिश युद्ध के उद्देश्यों का एक व्यापक विवरण प्रदान किया जैसे:
- वे संबंधित लोगों की स्वतंत्र सहमति के बिना कोई क्षेत्रीय परिवर्तन नहीं चाहते थे।
- वे सरकार चुनने के लोगों के अधिकार का सम्मान करते थे और चाहते थे कि संप्रभु अधिकार तथा स्वशासन से उन्हें जबरन वंचित कर दिया जाए।
- वे सभी राज्यों के लिये व्यापार और कच्चे माल तक समान पहुँच को बढ़ावा देने का प्रयास करेंगे।
- वे विश्वव्यापी सहयोग को बढ़ावा देने की आशा रखते थे ताकि श्रम मानकों, आर्थिक प्रगति और सामाजिक सुरक्षा में सुधार हो सके।
- "नाज़ी अत्याचार" (जर्मनी) का विनाश वे एक ऐसी शांति की तलाश करेंगे जिसके तहत सभी राष्ट्र अपनी सीमाओं के भीतर बिना किसी डर या इच्छा के सुरक्षित रूप से रह सकें।
- ऐसी शांति के तहत समुद्र मुक्त होना चाहिये।
न्यू अटलांटिक चार्टर (2021):
- नया चार्टर 604 शब्दों का एक घोषणापत्र है, जो 21वीं सदी में वैश्विक संबंधों के लिये एक भव्य विज़न पेश करने का प्रयास है, जैसा कि मूल रूप से अमेरिका के द्वितीय विश्व युद्ध में प्रवेश करने से कुछ महीने पहले लोकतंत्र और क्षेत्रीय अखंडता हेतु पश्चिमी प्रतिबद्धता की घोषणा की गई थी।
- यह सिद्धांतों को लेकर का एक बयान है जो एक वादा करता है कि UK और US अपनी उम्र की चुनौतियों का एक साथ सामना करेंगे। यह दोनों देशों से नियम-आधारित अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था का पालन करने का आह्वान करता है।
- नया चार्टर उभरती प्रौद्योगिकियों, साइबरस्पेस और सतत् वैश्विक विकास के संदर्भ में जलवायु परिवर्तन एवं जैव विविधता के संरक्षण की आवश्यकता पर केंद्रित है।
- यह पश्चिमी सहयोगियों से चुनाव सहित दुष्प्रचार या अन्य घातक प्रभावों के माध्यम से हस्तक्षेप का विरोध करने का आह्वान करता है।
- यह प्रतिज्ञा करता है कि जब तक परमाणु हथियार हैं तब तक उत्तर अटलांटिक संधि संगठन (North Atlantic Treaty Organisation- NATO) एक परमाणु गठबंधन बना रहेगा।
भारत के लिये अवसर:
- पुराने अटलांटिक चार्टर ने भारतीय राष्ट्रवाद को पश्चिम से अलग कर दिया, लेकिन नए चार्टर और पश्चिमी संस्थानों को फिर से शुरू किये जाने से अमेरिका तथा उसके सहयोगियों के साथ भारत की सहभागिता के उत्पादक चरण को आगे बढ़ाया जाना चाहिये।
- वर्ष 1941 में UK ने जोर देकर कहा कि चार्टर में उल्लिखित आत्मनिर्णय का सिद्धांत भारत पर लागू नहीं होता है।
- हालाँकि G-7 शिखर सम्मेलन 2021 में ऑस्ट्रेलिया और दक्षिण कोरिया (अतिथि के रूप में) के साथ भारत व दक्षिण अफ्रीका की उपस्थिति वैश्विक चुनौतियों से निपटने में पश्चिम के आधार को व्यापक बनाने की तत्काल अनिवार्यता को मान्यता देती है।
- भारत के साथ पश्चिमी परामर्श को संस्थागत बनाने का वर्तमान एंग्लो-अमेरिकन प्रयास लंबे समय से अपेक्षित सुधार है।
- भारतीय प्रधानमंत्री, जो G-7 शिखर सम्मेलन (2021) की चर्चा में शामिल हो रहे हैं, के पास भारत के भीतर सिकुड़ती लोकतांत्रिक स्वतंत्रताओं के बारे में धारणाओं को संबोधित करने और वैश्विक मुद्दों पर पश्चिमी लोकतंत्रों के साथ वास्तविक सहयोग की पेशकश करने के लिये दोनों के प्रति प्रतिबद्धता का संकेत देने का अवसर है।