प्रारंभिक परीक्षा
प्रिलिम्स फैक्ट्स: 15 सितंबर, 2020
- 15 Sep 2020
- 13 min read
प्रसाद योजना
PRASHAD Scheme
केंद्रीय पर्यटन मंत्रालय ने स्वदेश दर्शन (Swadesh Darshan) और प्रसाद (PRASHAD) योजनाओं के तहत देश के विभिन्न बौद्ध स्थलों पर पर्यटन से संबंधित बुनियादी ढाँचा एवं सुविधाओं का विकास किया है।
स्वदेश दर्शन योजना:
- केंद्रीय पर्यटन मंत्रालय ने वर्ष 2014-15 में पर्यटन स्थलों के थीम आधारित एकीकृत विकास के लिये ‘स्वदेश दर्शन योजना’ की शुरूआत की थी।
- देश में बौद्ध स्थलों की पहचान स्वदेश दर्शन योजना के तहत 15 विषयगत सर्किटों में से एक के रूप में की गई है।
- स्वदेश दर्शन योजना के तहत बौद्ध स्थलों के विकास के लिये 353.73 करोड़ रुपए की कुल 5 परियोजनाओं को मंज़ूरी दी गई है।
प्रसाद (PRASHAD) योजना:
- केंद्रीय पर्यटन मंत्रालय ने वर्ष 2014-2015 में तीर्थस्थल संरक्षण एवं आध्यात्मिक विकास के लिये ‘प्रसाद’ (Pilgrimage Rejuvenation and Spiritual, Heritage Augmentation Drive- PRASHAD) परियोजना की शुरूआत की है।
- बुनियादी ढाँचे के विकास के लिये विभिन्न परियोजनाओं को भी प्रसाद योजना के तहत शुरू किया गया है।
- प्रसाद (PRASHAD) योजना के तहत 918.92 करोड़ रुपए की कुल 30 परियोजनाओं को मंज़ूरी दी गई है।
आइकाॅनिक टूरिस्ट साइट्स:
- केंद्रीय पर्यटन मंत्रालय ने बोधगया, अजंता एवं एलोरा में बौद्ध स्थलों को आइकाॅनिक टूरिस्ट साइट्स (Iconic Tourist Sites) के रूप में विकसित करने के लिये भी पहचान की है।
बौद्ध स्थलों को बढ़ावा देने के लिये किये जा रहे आधिकारिक प्रयास:
- केंद्रीय पर्यटन मंत्रालय की विभिन्न योजनाओं के तहत पर्यटन संबंधी बुनियादी ढाँचे के विकास के अतिरिक्त भारत एवं विदेशी पर्यटन बाज़ारों में विभिन्न बौद्ध स्थलों को बढ़ावा देने पर भी ज़ोर दिया जा रहा है।
- ‘भारतीय पर्यटन कार्यालय’ नियमित रूप से विदेशी पर्यटन बाज़ारों में कई यात्राओं एवं पर्यटन मेलों के साथ-साथ भारत के बौद्ध स्थलों को बढ़ावा देने वाली प्रदर्शनियों में भाग लेता है।
- केंद्रीय पर्यटन मंत्रालय ने अतुल्य भारत वेबसाइट पर बौद्ध स्थलों का प्रदर्शन किया है और एक वेबसाइट www.indiathelandofbuddha.in भी विकसित की है। केंद्रीय पर्यटन मंत्रालय भारत के बौद्ध गंतव्य एवं दुनिया भर के प्रमुख पर्यटन बाज़ारों के रूप में प्रचार करने के उद्देश्य से क्रमिक वर्ष में बौद्ध कॉन्क्लेव का आयोजन करता है।
बौद्ध सर्किट में स्वदेश दर्शन के तहत स्वीकृत परियोजनाएँ:
- बौद्ध सर्किट में स्वदेश दर्शन के तहत स्वीकृत परियोजनाओं की मुख्य सूची निम्नलिखित है:
- लखनऊ सर्किल के शाक्य पिपरावा (Sakyas Piprahwa) के मठ, साइट एवं स्तूप
- लखनऊ सर्किल में श्रावस्ती (Sravasti)
- सारनाथ सर्किल का प्राचीन बौद्ध स्थल
- सारनाथ सर्किल का चौखंडी स्तूप (Chaukhandi Stupa)
- सारनाथ सर्किल के बौद्ध अवशेष एवं कुशीनगर स्थित महापरिनिर्वाण मंदिर
आध्यात्मिक पर्यटन:
- स्वदेश दर्शन एवं प्रसाद (PRASAD) योजनाओं के तहत केंद्रीय पर्यटन मंत्रालय आध्यात्मिक पर्यटन को बढ़ावा दे रहा है।
- आध्यात्मिक सर्किट की पहचान स्वदेश दर्शन योजना के तहत 15 विषयगत सर्किटों में से एक के रूप में की गई है।
- स्वदेश दर्शन योजना के तहत आध्यात्मिक सर्किट के विकास के लिये 764.85 करोड़ रुपए की कुल 13 परियोजनाओं को मंज़ूरी दी गई है।
- इसके अलावा धार्मिक एवं आध्यात्मिक स्थलों पर बुनियादी ढाँचे के विकास के लिये भी परियोजनाएँ शुरू की गई हैं।
शुक्र के वातावरण में फॉस्फीन गैस की खोज
The discovery of phosphine gas in the atmosphere of Venus
16 सितंबर, 2020 को शुक्र के वातावरण में फॉस्फीन गैस (Phosphine Gas) की खोज के बारे में खगोलविदों की एक अंतर्राष्ट्रीय टीम की एक घोषणा ने शुक्र ग्रह पर जीवन की उपस्थिति की संभावना को बढ़ाया है।
प्रमुख बिंदु:
- औद्योगिक प्रक्रियाओं में उत्पादित होने के अलावा फॉस्फीन एक रंगहीन किंतु गंधयुक्त गैस है जो केवल बैक्टीरिया (जो ऑक्सीजन की अनुपस्थिति में भी जीवित रहते हैं) की कुछ प्रजातियों द्वारा बनाई जाती है।
- ‘नेचर एस्ट्रोनॉमी’ (Nature Astronomy) में प्रकाशित एक लेख में वैज्ञानिकों ने शुक्र ग्रह के वातावरण में फॉस्फीन गैस के अंश मिलने की सूचना दी है।
- वास्तव में यह खोज वर्ष 2017 में की गई थी और वैज्ञानिकों ने इसे सार्वजनिक करने का निर्णय लेने से पहले पिछले तीन वर्षों में अपने डेटा की कई बार जाँच की।
खोज की महत्ता:
- यह पृथ्वी से दूर किसी अन्य ग्रह पर जीवन की संभावना के लिये अभी तक का सबसे विश्वसनीय प्रमाण है।
- वैज्ञानिकों के अनुसार, चंद्रमा या मंगल ग्रह पर पानी की खोज की तुलना में शुक्र ग्रह पर की गई यह खोज अधिक महत्त्वपूर्ण है।
शुक्र ग्रह पर जीवन की संभावना या असंभावना?
- शुक्र ग्रह का तापमान बहुत अधिक है और इसका वातावरण अत्यधिक अम्लीय है, ये दो विशेषताएँ शुक्र ग्रह पर जीवन की संभावना को असंभव बना देती हैं।
शुक्रायण (Shukrayaan):
- आने वाले समय में भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन ‘शुक्रायण’ (Shukrayaan) के नाम से एक वीनस मिशन या शुक्र मिशन की योजना बना रहा है।
शुक्र ग्रह:
- शुक्र ग्रह को पृथ्वी की जुड़वाँ बहन (Sister Planet) के नाम से भी जाना जाता है।
- शुक्र सौरमंडल का सबसे चमकीला ग्रह है।
- इसे भोर का तारा (Morning Star) और सांझ का तारा (Evening Star) कहा जाता है।
- यह सूर्य से दूसरा सबसे निकटतम ग्रह है।
- मैगलन अंतरिक्ष यान (Magellon Spacecraft) को राडार मैपिंग मिशन के तहत शुक्र ग्रह पर वर्ष 1989 में भेजा गया था।
मेकेदातु परियोजना
Mekedatu Project
केंद्र सरकार द्वारा मेकेदातु परियोजना (Mekedatu Project) के निर्माण हेतु मंज़ूरी देने के लिये कर्नाटक सरकार का एक प्रतिनिधि मंडल (मुख्यमंत्री के नेतृत्त्व में) केंद्र सरकार के पास भेजा जाएगा।
प्रमुख बिंदु:
- वर्ष 2017 में राज्य सरकार द्वारा अनुमोदित 9,000 करोड़ रुपए की यह परियोजना केंद्रीय जल संसाधन मंत्रालय से अनुमोदन प्राप्त कर चुकी है किंतु इसे केंद्रीय पर्यावरण एवं वन मंत्रालय से अभी मंज़ूरी नहीं मिली है क्योंकि तमिलनाडु सरकार ने इस परियोजना के खिलाफ उच्चतम न्यायालय में याचिका दायर की है।
मेकेदातु परियोजना:
- मेकेदातु परियोजना एक प्रकार की ‘मेकेदातु संतुलन भंडार’ (Mekedatu Balancing Reservoir) है जिसे पीने के पानी के लिये भंडारण करने हेतु प्रस्तावित किया गया है।
- इस परियोजना का निर्माण कर्नाटक के रामनगरम ज़िले के कनकपुरा के पास किया जाएगा।
- मेकेदातु परियोजना एक गुरुत्त्व बांध है जो मेकेदातु में 67.16 टीएमसी जल संग्रहित करेगा। इसमें से 4.75 टीएमसी जल की आपूर्ति पेयजल के उद्देश्य से बंगलुरु को की जाएगी।
- यह परियोजना कर्नाटक और तमिलनाडु के बीच विवाद का एक प्रमुख कारण है क्योंकि इसे कावेरी नदी पर बनाया जा रहा है जो दोनों राज्यों के लिये पानी के सबसे महत्त्वपूर्ण स्रोतों में से एक है।
- इस परियोजना के निर्माण से कावेरी वन्यजीव अभयारण्य की 50 वर्ग किमी. की वन भूमि जलमग्न हो जाने की संभावना है।
सरोगेट साइरस
Surrogate Sires
वैश्विक खाद्य असुरक्षा से निपटने के लिये पहली बार वैज्ञानिकों ने ऐसे जानवर तैयार किये हैं जो व्यवहार्य रूप से ‘सरोगेट साइरस’ (Surrogate Sires) के रूप में कार्य कर सकते हैं। अर्थात् नर जानवर जो केवल दाता जानवरों के आनुवंशिक लक्षणों को ले जाने वाले शुक्राणु पैदा करते हैं।
प्रमुख बिंदु:
- गौरतलब है कि बढ़ती वैश्विक आबादी हेतु खाद्य उत्पादन को बढ़ावा देने के लिये पशुधन में सुधार करना एक दीर्घकालिक लक्ष्य है।
- शोधकर्ताओं ने चूहों, सूअरों, बकरियों एवं मवेशियों की संख्या बढ़ाने के लिये क्रिस्पर-कैस 9 (CRISPR-Cas9) का उपयोग किया जिनमें नर प्रजनन क्षमता के लिये विशिष्ट जीन की कमी थी।
क्रिस्पर-कैस 9 (CRISPR-Cas9):
- क्रिस्पर-कैस 9 (CRISPR-Cas9) एक ऐसी तकनीक है जो वैज्ञानिकों को अनिवार्य रूप से डीएनए काटने और जोड़ने की अनुमति देती है, जिससे रोग के लिये आनुवंशिक सुधार की उम्मीद बढ़ जाती है।
- क्रिस्पर (Clustered Regualarly Interspaced Short Palindromic Repeats) डीएनए के हिस्से हैं, जबकि कैस-9 (CRISPR-ASSOCIATED PROTEIN9-Cas9) एक एंजाइम है। हालाँकि, इसके साथ सुरक्षा और नैतिकता से संबंधित चिंताएँ जुड़ी हुई हैं।
- वैज्ञानिकों के अनुसार, इससे पशुधन में वांछनीय विशेषताओं जैसे- चरम मौसम के प्रति अनुकूलन, बीमारियों के प्रति प्रतिरोधात्मक क्षमता का विकास आदि, का प्रसार और तेज़ हो सकता है। इससे विकासशील देशों में किसानों को लाभ होगा।
- हालाँकि मौजूदा सरकारी नियम इन जीन-संपादित (Gene-edited) जानवरों के खाद्य श्रृंखला में इस्तेमाल होने से रोकते हैं।