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डेली न्यूज़

  • 14 Apr, 2021
  • 45 min read
जैव विविधता और पर्यावरण

डेन्यूब स्टर्जन

चर्चा में क्यों? 

विश्व वन्यजीव कोष (World Wildlife Fund- WWF) द्वारा जारी एक रिपोर्ट के अनुसार, डेन्यूब नदी के निचले क्षेत्र विशेष रूप से बुल्गारिया,रोमानिया, सीरिया और यूक्रेन में डेन्यूब स्टर्जन (मछली की एक प्रजाति) की अवैध बिक्री के कारण इसे विश्व की सर्वाधिक संकटग्रस्त प्रजाति माना गया है।

  • डेन्यूब नदी, वोल्गा नदी के बाद यूरोप की दूसरी सबसे लंबी नदी है। इसका उद्गम पश्चिमी जर्मनी के ब्लैक फॉरेस्ट पर्वत (Black Forest Mountain) से होता  है जो लगभग 2,850 किमी. तक प्रवाह के बाद  काला सागर में मिल जाती है।

Danube-Sturgeon

प्रमुख बिंदु: 

 डेन्यूब स्टर्जन के बारे में:

  • डायनासोर के समय से लेकर लगभग 200 मिलियन वर्षों तक स्टर्जन प्रजाति मौजूद रही है। इसकी प्रजातियों की लंबाई आठ मीटर तक होती हैं। यह 100 वर्षों से अधिक समय तक जीवित रह सकती है।
  • स्टर्जन को ‘जीवित जीवाश्म’ (Living Fossils) कहा जाता है क्योंकि अपनी उत्पत्ति के बाद से इस प्रजाति में अत्यधिक सूक्ष्म स्तर पर परिवर्तन हुए हैं। 
    • जीवित जीवाश्म  ऐसे जीवधारी होते हैं जिनमें प्रारंभिक भूगर्भीय काल से अब तक कोई परिवर्तन न हुआ हो और उनके निकट संबंधी विलुप्त हो गए हों। 
    • स्टर्जन के अलावा, हॉर्सशू क्रैब (Horseshoe Crab) और जिन्कगो या जिन्को के वृक्ष (Ginkgo Trees) जीवित जीवाश्म के उदाहरण हैं।
  • WWF के अनुसार, स्टर्जन (Sturgeons) मछलियाँ लंबे समय तक जीवित रहती हैं, देर से परिपक्व होती हैं और एक लंबे समयांतराल के बाद अंडे देती हैं। इन्हें  पर्यावरण और मानवीय दबाव से उबरने में एक लंबा समय लगता है, जिस कारण ये  नदी और अन्य पारिस्थितिक मापदंडों के स्वास्थ्य हेतु एक प्रमुख संकेतक के रूप में कार्य करती हैं।

निवास स्थान:

  • उत्तरी गोलार्द्ध में स्टर्जन और पैडलफिश (Paddle Fishes) की 27 प्रजातियाँ पाई जाती हैं। जहाँ कुछ प्रजातियाँ केवल मीठे जल में में पाई जाती हैं वहीं अधिकांश प्रजातियाँ ऐसी हैं जो ताज़े जल में विचरण करती हैं लेकिन अपने जीवन का अधिकांश समय  समुद्री या खारे जल के वातावरण में बिताती हैं।
  • डेन्यूब स्टर्जन अधिकांशतः काला सागर में निवास करती हैं तथा अंडे देने के लिये  डेन्यूब और अन्य प्रमुख नदियों की ओर पलायन करती हैं।

खतरा/संकट:

  • अतिदोहन और अवैध शिकार (कमज़ोर मत्स्य प्रबंधन और फिशिंग पर प्रतिबंध लगाने वाले कानूनों के अपर्याप्त प्रवर्तन के कारण इसमें वृद्धि हुई है)।
  • बाँधों द्वारा प्रवासन मार्गों का अवरुद्ध होना।
  • प्राकृतिक आवासों का क्षरण अथवा क्षति।
  • प्रदूषण।

संरक्षण स्थिति: 

  • IUCN रेड लिस्ट: डेन्यूब नदी में स्टर्जन की 6 प्रजातियाँ पाई जाती  हैं। उनमें से पाँच गंभीर रूप से संकटग्रस्त (Critically Endangered) प्रजाति के रूप में सूचीबद्ध हैं।
  • CITES: परिशिष्ट- II 

वर्ल्ड वाइल्डलाईफ फंड फॉर नेचर:

  • यह एक प्रमुख वैश्विक  संरक्षण संगठन है जो  100 से अधिक देशों में कार्य करता है।

स्थापना:

  • इसकी स्थापना वर्ष 1961 में की गई थी तथा इसका मुख्यालय स्विट्ज़रलैंड के ग्लैंड में स्थित है।

मिशन:

  • प्रकृति का संरक्षण करने और पृथ्वी पर जीवन की विविधता को बनाए रखने के लिये  सर्वाधिक दबाव वाले खतरों को कम करने की दिशा में कार्य करना।

WWF कीमहत्त्वपूर्ण पहले:

काला सागर: 

black-sea

  • काला सागर एक अंतर्देशीय समुद्र  है जो सुदूर-दक्षिणपूर्वी यूरोप और एशिया महाद्वीप के पश्चिमी किनारों तथा तुर्की के मध्य स्थित है।
  • यह बोस्पोरस जलडमरूमध्य (Bosporus Strait) इसके बाद यह मारमरा सागर (Marmara Sea), डारडेनेल्स जलडमरूमध्य (Dardanelles Strait) तथा दक्षिण में एजियन सागर (Aegean Sea) और क्रीट सागर (Sea of Crete) के माध्यम से भूमध्य सागर से जुड़ा हुआ है। 
  • कर्च जलडमरूमध्य (Strait of Kerch) के द्वारा यह आज़ोव सागर (Sea of Azov) से भी जुड़ता है।

सीमावर्ती देश:

  • रोमानिया, बुल्गारिया, यूक्रेन, रूस, जॉर्जिया और तुर्की।

स्रोत: डाउन टू अर्थ


विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

राष्ट्रीय सुपरकंप्यूटिंग मिशन

चर्चा में  क्यों?

राष्ट्रीय सुपरकंप्यूटिंग मिशन (National Supercomputing Mission) का दूसरा चरण सितंबर 2021 तक पूरा हो जाएगा, जिसमें भारत की कुल संगणन (Computational) क्षमता 16 पेटाफ्लॉप्स होगी।

प्रमुख बिंदु

राष्ट्रीय सुपरकंप्यूटिंग मिशन के विषय में:

  • लॉन्च: मार्च 2015 में सात वर्षों की अवधि (वर्ष 2015-2022) के लिये 4,500 करोड़ रुपए की अनुमानित लागत से ‘राष्ट्रीय सुपरकंप्यूटिंग मिशन’ की घोषणा की गई थी। इस मिशन के अंतर्गत 70 से अधिक उच्च प्रदर्शन वाले सुपरकंप्यूटरों के माध्यम से एक विशाल सुपरकंप्यूटिंग ग्रिड स्थापित कर देश भर के राष्ट्रीय शैक्षणिक संस्थानों और R&D संस्थाओं को सशक्त बनाने की परिकल्पना की गई है।
  • कार्यान्वयन: इस मिशन को 'विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग' (विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्रालय) तथा 'इलेक्ट्रॉनिक्स एवं  सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय' (MeitY) द्वारा 'सेंटर फॉर डेवलपमेंट ऑफ एडवांस्ड कंप्यूटिंग' (C-DAC) और 'भारतीय विज्ञान संस्थान' (IISc) बंगलूरू के माध्यम से कार्यान्वित किया जा रहा है।
  • विशेषताएँ:
    • यह भारत के स्वामित्व वाले सुपर कंप्यूटरों की संख्या में सुधार करने का भी एक प्रयास है।
    • इन सुपरकंप्यूटरों को 'राष्ट्रीय ज्ञान नेटवर्क' (National Knowledge Network- NKN) के विस्तार के माध्यम से 'राष्ट्रीय सुपरकंप्यूटर ग्रिड’ के साथ जोड़ा जाएगा। NKN एक उच्च गति के नेटवर्क के माध्यम से शैक्षणिक संस्थानों और आर एंड डी प्रयोगशालाओं को जोड़ता है।
  • NSM के अंतर्गत अगले पाँच वर्षों में 20,000 व्यक्तियों को प्रशिक्षित किया जाएगा, जो सुपरकंप्यूटरों की जटिलताओं के समाधान तथा उन्हें प्रबंधित करने में सक्षम होंगे।

NSM की प्रगति:

  • NSM के प्रथम चरण में ‘परम शिवाय’ (Param Shivay) को  IIT-BHU, ‘परम शक्ति’ (Param Shakti) को आईआईटी-खड़गपुर, ‘परम ब्रह्म’ (Param Brahma) को ‘इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस एजुकेशन एंड रिसर्च’ (IISER)- पुणे में और ‘परम संगणक’ को जवाहरलाल नेहरू सेंटर फॉर एडवांस्ड रिसर्च में स्थापित किया गया।
  • हाल ही में ‘परम सिद्धि’ (Param Siddhi) को विश्व के सबसे शक्तिशाली सुपर कंप्यूटरों की शीर्ष 500 सूची में 63वाँ स्थान दिया गया। इसे NSM के अंतर्गत विकसित किया गया था।

हालिया विकास:

  • अक्तूबर 2020 में C-DAC ने IIT के साथ-साथ IISc, राष्ट्रीय कृषि-खाद्य जैव प्रौद्योगिकी संस्थान और NIT, तिरुचिरापल्ली के साथ समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किये, जिसके अंतर्गत इन संस्थानों में उच्च शक्ति कंप्यूटिंग (High Power Computing- HPC) प्रणाली स्थापित की जा रही है।
  • अब तक 4,500 से अधिक लोगों को HPC में प्रशिक्षित किया गया है और आगे का प्रशिक्षण आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस में चार IITs (खड़गपुर, मद्रास, गोवा और पलक्कड़) में स्थापित NSM के विशेष केंद्रों में आयोजित किया जाएगा।

चुनौतियाँ:

  • NSM ने देश में 70 से अधिक उच्च प्रदर्शन वाले सुपरकंप्यूटरों के माध्यम से एक विशाल सुपरकंप्यूटिंग ग्रिड स्थापित करने की परिकल्पना की है, लेकिन मिशन के शुरुआती वर्षों के दौरान वित्तपोषण की विषमता ने सुपर कंप्यूटर के निर्माण की गति को धीमा कर दिया।

इस मिशन के लिये आवंटित 4,500 करोड़ रुपए में से केवल 16.67% का ही शुरू के चार वर्षों के दौरान खर्च किया गया था।

वैश्विक परिदृश्य:

  • विश्व स्तर पर अधिकतम सुपरकंप्यूटरों के साथ चीन दुनिया में शीर्ष स्थान रखता है। इसके बाद अमेरिका, जापान, फ्रांँस, जर्मनी, नीदरलैंड, आयरलैंड और यूनाइटेड किंगडम जैसे देशों का स्थान है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


अंतर्राष्ट्रीय संबंध

उत्तरी आयरलैंड में हिंसा

चर्चा में क्यों?

उत्तरी आयरलैंड, यूनाइटेड किंगडम (UK) में हालिया वर्षों के दौरान हिंसा की सबसे खराब स्थिति देखी गई है। 23 वर्ष पहले हुए एक शांति समझौते ने काफी हद तक उत्तरी आयरलैंड की समस्याओं को समाप्त कर दिया था, परंतु वर्तमान में  एक बार फिर उत्तरी आयरलैंड के कई हिस्सों में सांप्रदायिक हिंसा देखी जा रही है।

Great-Britain

प्रमुख बिंदु:

ऐतिहासिक संघर्ष:

  • भौगोलिक रूप से उत्तरी आयरलैंड, आयरलैंड का तथा राजनीतिक रूप से UK का हिस्सा है।
  • कई शताब्दियों तक ब्रिटेन के कब्जे में रहने के बाद लगभग 100 वर्ष पहले आयरलैंड में विद्रोह हुआ। जिसके बाद वर्ष 1920-21 में आयरलैंड का बँटवारा हुआ। तब ब्रिटेन ने आयरलैंड की 32 काउंटी में से रोमन कैथोलिक-बहुमत वाली केवल 26 काउंटी को ही स्वतंत्रता प्रदान की जबकि प्रोटेस्टेंट बहुमत वाली शेष छह काउंटी पर आज भी ब्रिटेन का कब्ज़ा है।
  • उत्तरी आयरलैंड के कैथोलिक अल्पसंख्यकों ने प्रोटेस्टेंट-बहुमत वाले राज्य में भेदभाव का अनुभव किया।
  • 1960 के दशक में एक कैथोलिक नागरिक अधिकार आंदोलन ने बदलाव की मांग की लेकिन उसे सरकार और पुलिस की कठोर प्रतिक्रिया का सामना करना पड़ा।
  • शांति बनाए रखने के लिये वर्ष 1969 में ब्रिटिश सेना को तैनात किया गया।
    • यह स्थिति आयरिश रिपब्लिकन विद्रोहियों के बीच संघर्ष में बदल गई, जो दक्षिणी आयरलैंड के साथ एकजुट होना चाहते थे।
  • तीन दशकों के संघर्ष के दौरान बम विस्फोट और गोलीबारी में 3,600 से अधिक लोग (अधिकांश नागरिक) मारे गए। जिनमे से अधिकांश उत्तरी आयरलैंड से थे।

विवाद की समाप्ति:

  • 1990 के दशक तक गुप्त वार्ता के बाद आयरलैंड, ब्रिटेन और संयुक्त राज्य अमेरिका द्वारा राजनयिक प्रयासों की मदद से सभी पक्षों को शांति समझौते के लिये तैयार किया गया ।
  • 10 अप्रैल, 1998 को हस्ताक्षरित ‘गुड फ्राइडे समझौता’ दो समझौतों का समूह है जिसने 1960 के दशक से जारी उत्तरी आयरलैंड संघर्ष की अधिकांश हिंसक झड़पों को समाप्त कर दिया। 1990 के दशक में यह समझौता उत्तरी आयरलैंड शांति प्रक्रिया में एक प्रमुख मील का पत्थर साबित हुआ और इसने उत्तरी आयरलैंड में कैथोलिक-प्रोटेस्टेंट साझा सत्ता सरकार की स्थापना की।
  • इसके तहत उत्तरी आयरलैंड की अंतिम स्थिति को समाप्त कर दिया गया तथा कहा गया कि यह तब तक ब्रिटिश के नियंत्रण में रहेगा जब तक कि बहुमत की इच्छा हो, लेकिन पुनर्मूल्यांकन के आधार पर भविष्य में जनमत संग्रह से भी इनकार नहीं किया गया।
  • अब जबकि शांति प्रक्रिया काफी हद तक समाप्त हो गई है, ‘आयरिश रिपब्लिकन आर्मी’ नामक छोटे समूह ने सुरक्षा बलों पर कई बार हमले किये हैं जिसके परिणामस्वरूप सांप्रदायिक हिंसा की विभिन्न घटनाएँ सामने आई हैं।
  • शक्ति के विभाजन की व्यवस्था में विफलता के कारण वर्तमान में भी सरकार को दोनों पक्षों पर भरोसा नहीं है।

मूल समस्या के रूप में ब्रेक्ज़िट:

  • उत्तरी आयरलैंड ने यूरोपीय संघ (EU) से ब्रिटेन के अलग होने की प्रक्रिया ‘ब्रेक्ज़िट’ को मूल समस्या बताया है।
  • उत्तरी आयरलैंड और आयरलैंड के बीच एक खुली आयरिश सीमा है, जहाँ स्वतंत्र रूप से लोगों तथा सामानों की आवाजाही होती है। इस तरह उत्तरी आयरलैंड में रहने वाले लोगों को आयरलैंड और ब्रिटेन दोनों में ही अपना घर महसूस होता है।
  • ब्रिटेन की सरकार ने ब्रेक्ज़िट की प्रक्रिया पर ज़ोर दिया है इसके माध्यम से ब्रिटेन को यूरोपीय संघ के आर्थिक ढाँचे से बाहर कर दिया था इसके फलस्वरूप व्यापार में कई बाधाओं का सामना करना पड़ रहा है।
  • यूरोपीय संघ से बाहर होने पर अब ब्रिटेन को व्यापार पर नए अवरोध और जाँच प्रक्रियाओं का निर्माण करना पड़ा है। लेकिन ब्रिटेन और यूरोपीय संघ ने इस बात पर सहमति जताई कि उत्तरी आयरलैंड की सीमा पर ऐसा नहीं होगा जिसका मूल कारण  शांति प्रक्रिया है।
  • ब्रिटिश संघवादियों ने चिंता व्यक्त की है कि अगर ऐसा होता रहा तो उत्तरी आयरलैंड में ब्रिटेन की स्थिति कमज़ोर हो सकती है। इससे उत्तरी आयरलैंड और आयरलैंड के एक होने का खतरा भी उत्पन्न हो सकता है।

वर्तमान हिंसा के कारण:

  • ब्रेक्ज़िट और कोरोना:
    • 31 दिसंबर, 2020 ब्रिटेन, यूरोपीय संघ से अलग हो गया और नई व्यापार व्यवस्था जल्द ही उत्तरी आयरलैंड के उन संघवादियों के लिये एक अड़चन बन गई जो ब्रिटेन में रहना चाहते हैं।
    • कोरोना वायरस महामारी के कारण प्रारंभिक व्यापार खामियाँ पहले से भी अधिक गहरी हो गईं तथा व्यापारिक स्थितियाँ और खराब हो गईं।
  • पहचान का संकट:
    • “जहाँ कुछ लोगों की पहचान ब्रिटिश के रूप में है और वे ब्रिटेन का हिस्सा बने रहना चाहते हैं  वहीं, कुछ लोग स्वयं को आयरलैंड का निवासी मानते हैं और वे पड़ोसी आयरलैंड गणराज्य का हिस्सा बनना चाहते हैं जो की यूरोपीय संघ का सदस्य है।” यह तथ्य भी हिंसा का एक प्रमुख कारण है।

स्रोत- इंडियन एक्सप्रेस


भारतीय राजव्यवस्था

मुख्य निर्वाचन आयुक्त

चर्चा में क्यों?

हाल ही में राष्ट्रपति ने चुनाव आयुक्त सुशील चंद्रा को मुख्य निर्वाचन आयुक्त (Chief Election Commissioner- CEC) नियुक्त किया।

  • उन्होंने सुनील अरोड़ा का स्थान लिया है।

प्रमुख बिंदु

भारत निर्वाचन आयोग के बारे में:

  • भारत निर्वाचन आयोग (Election Commission of India- ECI) भारत में संघ और राज्य चुनाव प्रक्रियाओं के संचालन के लिये एक स्वायत्त संवैधानिक प्राधिकरण (Constitutional Authority) है।
    • इसकी स्थापना 25 जनवरी, 1950 को संविधान के अनुसार की गई थी (जिसे राष्ट्रीय मतदाता दिवस के रूप में मनाया जाता है)। आयोग का सचिवालय नई दिल्ली में स्थित है।
  • यह भारत में लोकसभा, राज्यसभा और राज्य विधानसभाओं, देश के राष्ट्रपति एवं उपराष्ट्रपति के चुनावों का संचालन करता है।
    • इसका राज्यों में पंचायतों और नगरपालिकाओं के चुनावों से कोई संबंध नहीं है। भारत का संविधान में इसके लिये एक अलग राज्य निर्वाचन आयोग (State Election Commission) का प्रावधान है।

संवैधानिक प्रावधान:

  • भारतीय संविधान का भाग XV (अनुच्छेद 324-329): यह चुनावों से संबंधित हैं, और यह इनसे संबंधित  मामलों के लिये एक अलग आयोग की स्थापना करता है।
  • अनुच्छेद 324: निर्वाचन आयोग में चुनावों के संदर्भ में निहित दायित्व हैं- अधीक्षण, निर्देशन और नियंत्रण।
  • अनुच्छेद 325: धर्म, जाति या लिंग के आधार पर किसी भी व्यक्ति विशेष को मतदाता सूची में शामिल न करने और इनके आधार पर मतदान के लिये अयोग्य नहीं ठहराने का प्रावधान।
  • अनुच्छेद 326: लोकसभा एवं प्रत्येक राज्य की विधानसभा के लिये निर्वाचन वयस्क मताधिकार के आधार पर होगा।
  • अनुच्छेद 327: विधायिका द्वारा चुनाव के संबंध में संसद में कानून बनाने की शक्ति।
  • अनुच्छेद 328: किसी राज्य के विधानमंडल को उनके चुनाव के लिये कानून बनाने की शक्ति।
  • अनुच्छेद 329:  निर्वाचन संबंधी मामलों में न्यायालयों के हस्तक्षेप का वर्जन।

ECI की संरचना:

  • निर्वाचन आयोग में मूलतः केवल एक चुनाव आयुक्त का प्रावधान था, लेकिन राष्ट्रपति की एक अधिसूचना के ज़रिये 16 अक्तूबर, 1989 को इसे तीन सदस्यीय बना दिया गया।
  • इसके बाद कुछ समय के लिये इसे एक सदस्यीय आयोग बना दिया गया और 1 अक्तूबर, 1993 को इसका तीन सदस्यीय आयोग वाला स्वरूप फिर से बहाल कर दिया गया। तब से निर्वाचन आयोग में एक मुख्य चुनाव आयुक्त और दो चुनाव आयुक्त होते हैं।
    • मुख्य निर्वाचन अधिकारी IAS रैंक का अधिकारी होता है।

आयुक्तों की नियुक्ति और कार्यकाल:

  • मुख्य निर्वाचन आयुक्त और अन्य निर्वाचन आयुक्तों की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा की जाती है।
  • इनका कार्यकाल 6 वर्ष या 65 वर्ष की आयु (दोनों में से जो भी पहले हो) तक होता है।
  • इन्हें भारत के सर्वोच्च न्यायालय (Supreme Court- SC) के न्यायाधीशों के समकक्ष दर्जा प्राप्त होता है और समान वेतन एवं भत्ते मिलते हैं।

निष्कासन:

  • वे कभी भी इस्तीफा दे सकते हैं या उन्हें उनके कार्यकाल की समाप्ति से पहले भी हटाया जा सकता है।
  • मुख्य चुनाव आयुक्त को संसद द्वारा सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश को हटाने की प्रक्रिया के समान ही पद से हटाया जा सकता है।

निष्कासन की प्रक्रिया

  • उच्च न्यायालयों और सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों, मुख्य चुनाव आयुक्त, नियंत्रक और महालेखा परीक्षक (Comptroller and Auditor General- CAG) को दुर्व्यवहार या पद के दुरुपयोग का आरोप सिद्ध होने पर या अक्षमता के आधार पर संसद द्वारा अपनाए गए प्रस्ताव के माध्यम से ही पद से हटाया जा सकता है।
  • निष्कासन के लिये दो-तिहाई सदस्यों के विशेष बहुमत की आवश्यकता होती है और इसके लिये सदन के कुल सदस्यों का 50 प्रतिशत से अधिक मतदान होना चाहिये।
  • न्यायाधीशों, CAG, CEC को हटाने के लिये संविधान में 'महाभियोग' शब्द का उपयोग नहीं किया गया है।
  • ‘महाभियोग’ शब्द का प्रयोग केवल राष्ट्रपति को हटाने के लिये किया जाता है जिसके लिये संसद के दोनों सदनों में उपस्थित सदस्यों की कुल संख्या के दो-तिहाई सदस्यों के विशेष बहुमत की आवश्यकता होती है और यह प्रक्रिया किसी अन्य मामले में नहीं अपनाई जाती।

सीमा:

  • संविधान ने निर्वाचन आयोग के सदस्यों की योग्यता (कानूनी, शैक्षिक, प्रशासनिक या न्यायिक) निर्धारित नहीं की है।
  • संविधान ने चुनाव आयोग के सदस्यों का कार्यकाल निर्दिष्ट नहीं किया है।
  • संविधान ने सेवानिवृत्त चुनाव आयुक्तों को सरकार द्वारा किसी और नियुक्ति से वंचित नहीं किया है।

ECI की शक्तियाँ और कार्य:

  • प्रशासनिक:
  • संसद के परिसीमन आयोग अधिनियम के आधार पर पूरे देश में निर्वाचन क्षेत्र की सीमाओं का निर्धारण करना।
  • समय-समय पर मतदाता सूची तैयार करना और सभी पात्र मतदाताओं का पंजीकरण करना।
  • राजनीतिक दलों को मान्यता देने और उन्हें चुनाव चिन्ह आवंटित करने के लिये।
  • यह राजनीतिक दलों और उम्मीदवारों के लिये चुनाव में ‘आदर्श आचार संहिता’ जारी करता है, ताकि कोई अनुचित कार्य न करे या सत्ता में मौजूद लोगों द्वारा शक्तियों का दुरुपयोग न किया जाए।
  • सलाहकार क्षेत्राधिकार और अर्द्ध-न्यायिक कार्य:
  • निर्वाचन के बाद अयोग्य ठहराए जाने के मामले में आयोग के पास संसद और राज्य विधानसभाओं के सदस्यों की बैठक हेतु सलाहकार क्षेत्राधिकार भी है।
  • ऐसे सभी मामलों में आयोग की राय राष्ट्रपति के लिये बाध्यकारी है, किंतु ऐसे मामले पर राज्यपाल अपनी राय दे सकता है।
  • आयोग के पास किसी उम्मीदवार को अयोग्य घोषित करने की शक्ति है, जो समय के भीतर और कानून द्वारा निर्धारित तरीके से अपने चुनावी खर्चों का लेखा-जोखा करने में विफल रहा है।

Election-Commission-of-India

स्रोत: द हिंदू


अंतर्राष्ट्रीय संबंध

कज़ाखस्तान के रक्षा मंत्री की यात्रा

चर्चा में क्यों?

हाल ही में भारत और कज़ाखस्तान गणराज्य (Republic of Kazakhstan) के रक्षा मंत्रियों के बीच नई दिल्ली में द्विपक्षीय वार्ता आयोजित की गई ।

  • इससे पहले सितंबर 2020 में मॉस्को (रूस) में शंघाई सहयोग संगठन (Shanghai Cooperation Organisation) के रक्षा मंत्रियों की बैठक के दौरान इनके बीच वार्ता हुई थी।

प्रमुख बिंदु

वार्ता के मुख्य बिंदु

  • दोनों पक्षों ने रक्षा औद्योगिक क्षेत्र में सहयोग की संभावना पर विचार करने पर सहमति व्यक्त की।
    • प्रशिक्षण, रक्षा अभ्यास और क्षमता निर्माण समेत विभिन्न क्षेत्रों में द्विपक्षीय रक्षा सहयोग को और अधिक मज़बूत करने पर भी विमर्श किया गया।
  • लेबनान में तैनात संयुक्त राष्ट्र अंतरिम सुरक्षा बल (UNIFIL) में कज़ाखस्तानी सैनिकों को भारतीय बटालियन के साथ तैनात करने के लिये दिये गए अवसर हेतु कज़ाखस्तान ने भारत को धन्यवाद दिया।
    • UNIFIL की स्थापना संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने वर्ष 1978 में लेबनान से इज़रायल की वापसी की पुष्टि करने, अंतर्राष्ट्रीय शांति और सुरक्षा बहाल करने तथा लेबनान सरकार की इस क्षेत्र पर नियंत्रण करने में सहायता के उद्देश्य से की थी।
  • वार्षिक संयुक्त सैन्य अभ्यास काज़िंद (KAZIND) का मूल्यांकन किया गया।

भारत-कज़ाखस्तान के बीच रक्षा सहयोग:

  • भारत-कज़ाखस्तान के बीच रक्षा सहयोग  की शुरुआत जुलाई 2015 में भारतीय प्रधानमंत्री की कज़ाखस्तान यात्रा के दौरान हस्ताक्षरित रक्षा और सैन्य तकनीकी सहयोग पर एक समझौते के तहत हुई है।
    • इस समझौते में संयुक्त प्रशिक्षण, सैन्य अभ्यास, सैन्य-तकनीकी सहयोग, संयुक्त राष्ट्र शांति व्यवस्था और खुफिया सूचनाओं का आदान-प्रदान करना शामिल है।
      • UNIFIL, लेबनान में भारतीय बटालियन के एक हिस्से के रूप में तैनाती हेतु कज़ाख सशस्त्र बल यूनिट ने अप्रैल-मई 2018 में भारत में प्रशिक्षण लिया।

भारत के लिये कज़ाखस्तान का महत्त्व:

  • कज़ाखस्तान भारत के लिये अपनी भू-रणनीतिक अवस्थिति, आर्थिक क्षमता (विशेष रूप से ऊर्जा संसाधनों के संदर्भ में) और बहु-जातीय तथा धर्मनिरपेक्ष संरचना के कारण विशेष महत्त्व रखता है।
  • चीन के साथ लंबी सीमाओं के साथ-साथ रूस और एशिया के बीच भू-राजनीतिक अवस्थिति कज़ाखस्तान को प्रमुख रणनीतिक महत्त्व प्रदान करती है।
    • कज़ाखस्तान पश्चिम में कैस्पियन सागर, उत्तर में रूस, पूर्व में चीन और दक्षिण में किर्गिस्तान, तुर्कमेनिस्तान तथा उज़्बेकिस्तान से घिरा हुआ है।
  • कज़ाखस्तान भारत को चीन के साथ भू-रणनीतिक संतुलन हासिल करने में मदद कर सकता है। भारत का प्रमुख उद्देश्य इस क्षेत्र में चीन के वन बेल्ट वन रोड (OBOR) पहल के आर्थिक प्रभाव को कम करना है।
  • NSTC सेंट पीटर्सबर्ग में 12 सितंबर 2000 को सदस्य देशों के बीच परिवहन सहयोग को बढ़ावा देने के उद्देश्य से ईरान, रूस और भारत द्वारा स्थापित एक बहु उद्देशीय परिवहन समझौता है, जिसे बाद में ग्यारह नए सदस्यों को शामिल करने के लिये संशोधित किया गया।
  • कज़ाखस्तान वैश्विक परमाणु सुरक्षा के संदर्भ में प्रमुख देश बन चुका है और इसने नागोर्नो-काराबाख, ईरान, यूक्रेन और सीरिया के संघर्ष में शांति व्यवस्था बहाली के दिशा में अपेक्षित परिणाम प्राप्त किये हैं।

Kazakhstan

भारत-कज़ाखस्तान संबंध 

ऐतिहासिक पृष्ठभूमि: 

  • भारत और कज़ाखस्तान के संबंध अत्यधिक प्राचीन और ऐतिहासिक हैं जो 2000 वर्षों से अधिक समय से चले आ रहे हैं। 
  • दोनों देशों के मध्य व्यापार का एक निरंतर और नियमित प्रवाह रहा है तथा सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण,  विचारों और संस्कृति के आदान-प्रदान की निरंतरता है।
    • भारत से मध्य एशिया में बौद्ध धर्म का प्रसार तथा  मध्य एशिया से भारत में सूफी विचारों का प्रसार ऐसे ही दो उदाहरण हैं।

राजनीतिक संबंध:

  • भारत,  कज़ाखस्तान की स्वतंत्रता को मान्यता देने वाले शुरूआती देशों में से एक था।
  • दोनों देशों के मध्य फरवरी 1992 में राजनयिक संबंध स्थापित किये गए थे।
  • वर्ष 2009 से भारत और कज़ाखस्तान दोनों एक-दूसरे के रणनीतिक साझेदार हैं।

बहुपक्षीय मंचों पर सहयोग:

  • दोनों ही देश एक दूसरे को विभिन्न बहुपक्षीय मंचों जैसे- CICA, SCO और संयुक्त राष्ट्र के संगठनों  में सक्रिय रूप से सहयोग करते हैं।
  • भारत ने कज़ाखस्तान की पहल ‘एशिया में सहभागिता और विश्वास निर्माण उपायों’ (Conference on Interaction and Confidence-Building Measures in Asia- CICA) का समय-समय पर समर्थन किया गया है और CICA की  निर्माण  प्रक्रिया सक्रिय रूप से भाग लिया है।
  • कज़ाखस्तान संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (United Nations Security Council- UNSC) में भारत की स्थायी सदस्यता का समर्थन करता है और वर्ष 2021-22 में भारत की अस्थायी सदस्यता हेतु अपने समर्थन को आगे बढ़ाता है। 

व्यापार और अर्थव्यवस्था:

  • वर्ष 1993 में स्थापित भारत-कज़ाखस्तान अंतर-सरकारी आयोग (India-Kazakhstan Inter-Governmental Commission- IGC) दोनों देशों के मध्य व्यापार, आर्थिक, वैज्ञानिक, तकनीकी, औद्योगिक और सांस्कृतिक सहयोग विकसित करने हेतु एक  सर्वोच्च द्विपक्षीय संस्थागत तंत्र है। 
    • संबंधित मंत्रियों की सह-अध्यक्षता में भारत की ओर से  पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस मंत्रालय तथा कज़ाखस्तान की और से ऊर्जा मंत्रालय इस आयोग  हेतु  नोडल मंत्रालय के रूप में कार्य करते हैं।
  • दोनों देशों के मध्य काउंटर टेररिज़्म, व्यापार और आर्थिक सहयोग, रक्षा और सैन्य तकनीकी सहयोग, सूचना प्रौद्योगिकी, हाइड्रोकार्बन, कपड़ा, चाय ऋण एवं अंतरिक्ष सहयोग, स्वास्थ्य एवं परिवहन, कनेतर-सरकारी आयोग, India-Kazakhstan Inter-Governmental Commission 
  • कज़ाखस्तान, मध्य एशिया में भारत का सबसे बड़ा व्यापार और निवेश भागीदार है। 

अंतरिक्ष सहयोग:

  • वर्ष 2017 में भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (Indian Space Research Organization- ISRO) ने 103 अन्य उपग्रहों के साथ अल-फराबी कज़ाख नेशनल यूनिवर्सिटी द्वारा निर्मित 1.7 किलोग्राम वज़न का  नैनो सैटेलाइट "अल -फराबी -1" (Al-Farabi-1) को लॉन्च किया गया।
  • मई 2018 में इसरो के एक प्रतिनिधिमंडल ने कज़ाख रक्षा एक्सपो ’KADEX’ (Kazakh Defence Expo ‘KADEX) में हिस्सा लिया था। 

नागरिक परमाणु सहयोग:

  • वर्ष 2008 में भारत को परमाणु आपूर्तिकर्त्ता समूह (Nuclear Suppliers Group- NSG) देशों के साथ असैन्य परमाणु सहयोग की अनुमति देने तथा  भारत को विशिष्ट छूट प्राप्त करने में कज़ाखस्तान द्वारा भारत का समर्थन किया गया।  

भारतीय तकनीकी और आर्थिक सहयोग (ITEC):

  • भारत के विदेश मंत्रालय द्वारा प्रायोजित आईटीईसी कार्यक्रम के तहत विभिन्न विशेष क्षेत्रों में कज़ाखस्तान को क्षमता निर्माण में सहायता प्रदान करता है।

दूतावास संबंधी सहयोग: 

  • भारत और कज़ाखस्तान के मध्य राजनयिक और आधिकारिक पासपोर्ट धारकों हेतु वीजा मुक्त प्रवेश (Visa Free Entry) पर एक समझौता हुआ है।
  • भारत सरकार द्वारा फरवरी 2018 से कज़ाखस्तान नागरिकों हेतु ई-वीजा सुविधा (E-Visa Facility) का विस्तार किया गया है।
  • 1 जनवरी, 2019 से कज़ाखस्तान द्वारा भारत के यात्रियों हेतु इलेक्ट्रॉनिक वीज़ा (Electronic Visa) सुविधा भी शुरू की गई है।

आगे की राह: 

  • मध्य एशिया का हिस्सा होने के कारण,कज़ाखस्तान भारत के लिये  रणनीतिक रूप से अत्यधिक महत्त्वपूर्ण  है। भारत को मध्य एशिया के साथ घनिष्ठ संबंध स्थापित करने हेतु  अपने आर्थिक संसाधनों का अधिक कुशलता के साथ उपयोग करने की आवश्यकता है।
  • भारत-कज़ाखस्तान के मध्य स्थापित मज़बूत संबंध नई दिल्ली (भारत ) को पाकिस्तान को दरकिनार कर संसाधन संपन्न क्षेत्र नूर-सुल्तान (कज़ाखस्तान) तक पहुँच प्रदान करता है, जो भारत की विकासशील अर्थव्यवस्था में एक महत्त्वपूर्ण पूरक भूमिका निभा सकता है। 

स्रोत: पी आई बी


भूगोल

अंटार्कटिका का डूम्सडे ग्लेशियर

चर्चा में?

हाल ही में स्वीडन यूनिवर्सिटी ऑफ गोथेनबर्ग (Sweden’s University of Gothenburg) के शोधकर्त्ताओं द्वारा थ्वाइट्स ग्लेशियर (Thwaites Glacier) जिसे  ‘डूम्सडे ग्लेशियर' (Doomsday Glacier) के नाम से भी जाना जाता है, के नीचे से डेटा प्राप्त करने में सफलता प्राप्त की है।

  • शोधकर्त्ताओं ने पाया है कि ग्लेशियर में गर्म पानी की आपूर्ति पहले की तुलना में बढ़ गई है जो बर्फ के पिघलने की दर को और अधिक तीव्र कर सकता है।

प्रमुख बिंदु:

डूम्सडे ग्लेशियर:  

  • इसे थ्वाइट्स ग्लेशियर के नाम से भी जाना जाता है। यह 120 किलोमीटर चौड़ा तथा तेज़ी से गतिशील है। पिछले कुछ वर्षों में इसके पिघलने की दर में तेज़ी आई है 
  • इसका आकार 1.9 लाख वर्ग किमी. है जिसमे विश्व जल स्तर को आधा मीटर से अधिक बढ़ाने हेतु पर्याप्त जल विद्यमान है।
    • अध्ययन में पाया गया है कि पिछले 30 वर्षों में ग्लेशियर के बर्फ की लगभग दोगुनी मात्रा पिघल चुकी है।
  • वर्तमान में थ्वाइट्स ग्लेशियर के पिघलने से प्रति वर्ष वैश्विक समुद्र तल के स्तर में 4 प्रतिशत की वृद्धि हो रही है। 
  • ऐसे अनुमान है कि थ्वाइट्स ग्लेशियर 200-900 वर्षों  में पूर्णत: समुद्र में समा जाएगा।
  • अंटार्कटिका के लिये थ्वाइट्स अत्यधिक महत्त्वपूर्ण  है क्योंकि यह अपने पीछे मौज़ूद स्वतंत्र रूप से समुद्र में बहने वाले ग्लेशियरों को भी आगे बढ़ने से रोकता है।
  • थवाइट्स ग्लेशियर पर मंडराते खतरे के कारण इसे अक्सर  'डूम्सडे' भी कहा जाता है जिसका अर्थ है ‘चेतावनी’ या ‘खतरा’ कभी-कभी इसे तबाही भी कहा जाता है।

पूर्व अध्ययन: 

  • ग्लेशियर में छिद्र: वर्ष 2019 के दौरान किये गए एक अध्ययन में इस ग्लेशियर में तेज़ी से बढ़ने वाली गुहा/कैविटी की खोज की गई थी, जिसका आकार  मैनहट्टन (Manhattan) के क्षेत्र के  लगभग दो-तिहाई के बराबर था।
    • ग्लेशियर के नीचे मौज़ूद गर्म जल के कारण ग्लेशियर में कैविटी का आकार बढ़ रहा है।
  • भू-संपर्क रेखा/ग्राउंडिंग लाइन पर गर्म जल की उपस्थिति:
    • वर्ष 2020 में, न्यूयॉर्क विश्वविद्यालय (NYU) के शोधकर्त्ताओं द्वारा ग्लेशियर के नीचे एक महत्त्वपूर्ण  बिंदु पर गर्म जल का पता लगाया गया। NYU द्वारा किये गए अध्ययन में, वैज्ञानिकों ने ग्लेशियर के एक स्थान पर 600 मीटर गहरा और 35 सेमी चौड़ा गड्ढा खोदा तथा ग्लेशियर की सतह के नीचे पानी को मापने हेतु आइसफिन (Icefin) नामक एक महासागर-संवेदी उपकरण तैनात किया गया।
    • अध्ययन से प्राप्त परिणाम: 
      • NYU द्वारा किये गए अध्ययन में  थ्वाइट्स के ‘भू-संपर्क क्षेत्र/ग्राउंडिंग ज़ोन’ या ‘भू-संपर्क रेखा/ग्राउंडिंग लाइन’ पर हिमांक बिंदु से केवल दो डिग्री अधिक तापमान पर जल की उपस्थित दर्ज़ की गई।
      • ग्राउंडिंग लाइन एक ग्लेशियर के नीचे वह स्थान होता है जिस पर आधार शैल पर स्थित बर्फ तथा स्वयं महासागर की सतह पर बर्फ के टुकड़े के बीच संक्रमण होता है। इस रेखा की अवस्थिति एक ग्लेशियर के पीछे हटने की दर का संकेतक है।
      • जब ग्लेशियर पिघलते हैं तो उनके भार में कमी आती है जिस कारण वे उसी आधार पर ही तैरते हैं जहाँ वे स्थित होते हैं। इस स्थिति में, ग्राउंडिंग लाइन पीछे हट जाती है। यह समुद्री जल में ग्लेशियर के अधिक भाग की स्थिति का सूचक है,  ग्राउंडिंग लाइन के अधिक पीछे हटने पर  ग्लेशियर और तेज़ी से पिघल जाएगा।
      • ग्राउंडिंग लाइन के पीछे हटने के परिणामस्वरूप ग्लेशियर में तीव्रता से प्रसार होगा और वे पहले की तुलना में अधिक पतले हो जाएंगे।

स्वीडन के गोथेनबर्ग अध्ययन (नए अध्ययन) के निष्कर्ष:

  • नए अध्ययन के विषय में: स्वीडन के गोथेनबर्ग अध्ययन में  थ्वाइट्स ग्लेशियर के निकट जाकर अवलोकन करने हेतु एक पनडुब्बी का उपयोग किया।।
    • इस पनडुब्बी का नाम "रन" (Ran) था, जिसके द्वारा ग्लेशियर के नीचे जाने वाली समुद्र की धाराओं की उग्रता, तापमान, लवणता और ऑक्सीजन आदि को मापा गया।
    • इसके परिणामस्वरूप शोधकर्त्ता थ्वाइट्स के तैरते हुए हिस्से के नीचे बहने वाली समुद्री धाराओं का नक्शा बनाने  में सफल हो सके।
  • खोज: शोधकर्त्ताओं ने गर्म पानी के तीन प्रवाहों की पहचान की, जिन पर पूर्व में हानिकारक प्रभावों को कम करके आँका गया था।
    • शोधकर्त्ताओं ने पाया कि पाइन द्वीप खाड़ी (Pine Island Bay) से बहते पानी का पूर्व दिशा से गहरा संबंध है, एक ऐसा संबंध जिसे पहले सतही पानी के एक गर्त/रिज (Ridge) से अवरुद्ध माना जाता था।
      • पाइन द्वीप खाड़ी पश्चिम अंटार्कटिका की एक जल निकासी प्रणाली है।
    • अध्ययन में तीन चैनलों में से एक में गर्म जल धारा को भी देखा गया, जो गर्म उत्तर से ग्लेशियर की ओर गर्म जल को लाती है।
    • उन्होंने पाया कि समुद्र के तल की ज्यामिति से प्रभावित बर्फ के शेल्फ गुहा में पानी के अलग-अलग रास्ते थे।

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आगे की राह

  • अध्ययन से पता चलता है कि गर्म जल चारों ओर से ग्लेशियर के पिनिंग पॉइंट (Pinning Point) तक पहुँच रहा है, जिसका प्रभाव सीबेड से जुड़ी बर्फ और स्थिर बर्फ की चादरों पर पड़ रहा है। यह थ्वाइट्स की स्थिति को और अधिक चिंताजनक बना सकता जिसकी बर्फ की चादरें पहले से ही कम हो रही हैं।
  • थ्वाइट्स ग्लेशियर में होने वाले परिवर्तन को जानने के लिये डेटा एकत्र करना आवश्यक है। यह डेटा भविष्य में बर्फ के पिघलने की दर को मापने में मदद करेगा।
  • इसमें नई तकनीक की मदद से सुधार किया जा सकता है और वैश्विक पर समुद्र स्तर में होने वाली भारी अनिश्चितता को कम किया जा सकता है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


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