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डेली न्यूज़

  • 13 Aug, 2021
  • 60 min read
भारतीय अर्थव्यवस्था

कराधान का संप्रभु अधिकार

प्रिलिम्स के लिये:

कराधान कानून (संशोधन) विधेयक, 2021, अनुच्छेद 265

मेन्स के लिये:

कराधान के संप्रभु अधिकार की आवश्यकता एवं महत्त्व

चर्चा में क्यों?

हाल ही में भारत सरकार ने लोकसभा में कराधान कानून (संशोधन) विधेयक, 2021 पेश किया, जो भारतीय संपत्ति के अप्रत्यक्ष हस्तांतरण पर कर लगाने हेतु वर्ष 2012 के पूर्वव्यापी कानून का उपयोग करके की गई कर मांगों को वापस लेने का प्रयास करता है।

  • सरकार ने कराधान के अपने संप्रभु अधिकार को स्थापित करने की आवश्यकता पर बल दिया है।

प्रमुख बिंदु

संप्रभुता:

  • राजनीतिक सिद्धांत के आधार पर संप्रभुता की परिभाषा, राज्य की निर्णय लेने की प्रक्रिया और व्यवस्था के रखरखाव में अंतिम पर्यवेक्षक या अधिकार है।
  • फ्राँसीसी संप्रभुता के माध्यम से उत्पन्न, इस शब्द को मूल रूप से सर्वोच्च शक्ति के बराबर समझा गया था।
  • संवैधानिक संप्रभुता का तात्पर्य है कि संविधान संप्रभु और सर्वोच्च है।

भारत में कराधान का संप्रभु अधिकार:

  • भारत में संविधान सरकार को व्यक्तियों और संगठनों पर कर लगाने का अधिकार देता है, लेकिन यह स्पष्ट करता है कि कानून के अधिकार के अलावा किसी को भी कर लगाने या चार्ज करने का अधिकार नहीं है।
    • किसी भी कर को विधायिका या संसद द्वारा पारित कानून (अनुच्छेद 265) द्वारा समर्थित होना चाहिये।

भारत में कराधान:

  • कर सरकार का समर्थन करने हेतु व्यक्तियों या संपत्ति के मालिकों पर लगाया गया एक आर्थिक भार है, जो विधायी प्राधिकरण द्वारा भारित भुगतान है और यह कि एक स्वैच्छिक भुगतान या दान नहीं है, बल्कि योगदान है, जो विधायी प्राधिकरण के अनुसार सटीक है।
  • भारत में कर केंद्र, राज्य और स्थानीय सरकारों के आधार पर त्रि-स्तरीय प्रणाली के अंतर्गत आते हैं व संविधान की सातवीं अनुसूची संघ एवं राज्य सूची के तहत कराधान के अलग-अलग प्रावधान करती है।
  • समवर्ती सूची के तहत कोई अलग प्रावधान नहीं है, जिसका अर्थ है कि संघ और राज्यों के पास कराधान की कोई समवर्ती शक्ति नहीं है।

राज्यों की संप्रभुता की सीमा:

  • राज्य के कराधान उपायों को चुनौती देने के लिये दो सबसे अधिक इस्तेमाल की जाने वाली द्विपक्षीय निवेश सधियों (BIT) का प्रावधान हैं- स्वामित्व, निष्पक्ष और न्यायसंगत उपचार प्रावधान।
  • कर भेदभावपूर्ण नहीं होना चाहिये।

आगे की राह:

  • भारत को अपने अंतर्राष्ट्रीय कानून के दायित्वों के प्रति सचेत रहते हुए सद्भावपूर्वक और आनुपातिक तरीके से कार्य करते हुए विनियमित करने के अपने अधिकार का प्रयोग करना चाहिये।
  • निवेशक-राज्य विवाद निपटान (ISDS) न्यायाधिकरण ऐसे नियामक उपायों में हस्तक्षेप नहीं करते हैं। संक्षेप में यह बहस कभी नहीं थी कि क्या भारत के पास कर का एक संप्रभु अधिकार है, लेकिन क्या यह संप्रभु अधिकार कुछ सीमाओं के अधीन है। इसका उत्तर 'हाँ' है क्योंकि अंतर्राष्ट्रीय कानून के तहत कर का संप्रभु अधिकार पूर्ण रूप से प्राप्त नहीं है।

स्रोत-इंडियन एक्सप्रेस


आंतरिक सुरक्षा

अवैध प्रवासियों का मुद्दा

प्रिलिम्स के लिये:

रोहिंग्या प्रवासी, संयुक्त राष्ट्र

मेन्स के लिये: 

रोहिंग्याओं  के अवैध प्रवास को रोकने हेतु सरकार द्वारा उठाए गए कदम

चर्चा में क्यों?   

हाल ही में गृह मंत्रालय ने कुछ रिपोर्ट्स के आधार पर लोकसभा में जानकारी दी है कि कुछ रोहिंग्या प्रवासी अवैध गतिविधियों में लिप्त हैं।

  • देश के विभिन्न हिस्सों में अवैध रूप से रह रहे रोहिंग्याओं की वर्तमान स्थिति के बारे में पूछे गए सवालों पर यह प्रतिक्रिया आई।

रोहिंग्या

  • रोहिंग्या लोग एक स्टेटलेस (Stateless), इंडो-आर्यन जातीय समूह हैं जो रखाइन राज्य, म्याँमार में रहते हैं।
  • इन्हें संयुक्त राष्ट्र (UN) द्वारा विश्व में सबसे अधिक सताए गए अल्पसंख्यकों में से एक के रूप में वर्णित किया गया है।
  • रोहिंग्या शरणार्थी संकट रोहिंग्या लोगों द्वारा म्याँमार में लंबे समय से हिंसा और भेदभाव का सामना करने का कारण है। 
  • म्याँमार में भेदभाव और हिंसा से बचने के लिये अल्पसंख्यक रोहिंग्या मुसलमान दशकों से बौद्ध-बहुल देश से पड़ोसी बांग्लादेश और भारत सहित अन्य देशों में प्रवास कर रहे हैं।

प्रमुख बिंदु

मुद्दे और चिंताएंँ:

  • राष्ट्रीय सुरक्षा के लिये खतरा:
    • भारत में रोहिंग्याओं के अवैध अप्रवास का जारी रहना और उनका भारत में लगातार रहना, राष्ट्रीय सुरक्षा पर गंभीर प्रभाव डालता है तथा सुरक्षा के लिये गंभीर खतरा पैदा करता है।
  • हितों का टकराव:
    • यह उन क्षेत्रों में स्थानीय आबादी के हितों को प्रभावित करता है जो बड़े पैमाने पर अप्रवासियों के अवैध रुप से प्रवेश का सामना करते हैं। 
  • राजनैतिक अस्थिरता:
    • यह राजनीतिक अस्थिरता को भी बढ़ाता है जब नेता राजनीतिक सत्ता हथियाने के लिये अभिजात वर्ग द्वारा प्रवासियों के खिलाफ देश के नागरिकों की धारणा को लामबंद करना शुरू करते हैं।
  • उग्रवाद का उदय:
    • अवैध प्रवासियों के रूप में माने जाने वाले मुस्लिमों के खिलाफ लगातार होने वाले हमलों ने कट्टरपंथ का मार्ग प्रशस्त किया है।
  • मानव तस्करी:
    • हाल के दशकों में सीमाओं पर महिलाओं और मानव तस्करी की घटनाओं में काफी वृद्धि देखी गई है। 
  • कानून व्यवस्था में गड़बड़ी:
    • अवैध और राष्ट्रविरोधी गतिविधियों में लिप्त अवैध प्रवासियों द्वारा देश की कानून व्यवस्था और अखंडता को कमज़ोर किया जाता है।

सरकार द्वारा उठाए गए कदम:

  • केंद्र ने राज्य सरकारों और केंद्रशासित प्रदेशों के प्रशासन को निर्देश जारी किये थे, जिसमें उन्हें अवैध प्रवासियों की त्वरित पहचान हेतु उचित कदम उठाने के लिये कानून प्रवर्तन और खुफिया एजेंसियों को संवेदनशील बनाने की सलाह दी गई थी।
  • विदेशी नागरिकों के अधिक समय तक रुकने और अवैध प्रवास की समस्या के निपटान हेतु समेकित निर्देश भी जारी किये गए हैं।

मौजूदा कानूनी ढाँचा:

  • पासपोर्ट (भारत में प्रवेश) अधिनियम, 1920:
    • इस अधिनियम ने सरकार को भारत में प्रवेश करने वाले व्यक्तियों को अपने पास पासपोर्ट रखने के लिये नियम बनाने का अधिकार दिया।
    • इसने सरकार को बिना पासपोर्ट के प्रवेश करने वाले किसी भी व्यक्ति को भारत से हटाने की शक्ति भी प्रदान की।
  • विदेशी अधिनियम, 1946:
    • इसने विदेशी अधिनियम, 1940 की जगह सभी विदेशियों से निपटने हेतु व्यापक अधिकार प्रदान किये।
    • इस अधिनियम ने सरकार को बल प्रयोग सहित अवैध प्रवासियों को रोकने के लिये आवश्यक कदम उठाने का अधिकार दिया।
    • 'बर्डन ऑफ प्रूफ' की अवधारणा व्यक्ति के पास है, न कि इस अधिनियम द्वारा दिये गए अधिकारियों के पास जो अभी भी सभी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में लागू है। इस अवधारणा को सर्वोच्च न्यायालय की संविधान पीठ ने बरकरार रखा है।
    • इस अधिनियम ने सरकार को ट्रिब्यूनल स्थापित करने का अधिकार दिया, जिसमें सिविल कोर्ट के समान अधिकार होंगे।
    • फॉरेनर्स (ट्रिब्यूनल) ऑर्डर, 1964 में हालिया संशोधन (2019) ने सभी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों के ज़िला मजिस्ट्रेटों को यह तय करने के लिये ट्रिब्यूनल स्थापित करने का अधिकार दिया कि भारत में अवैध रूप से रहने वाला व्यक्ति विदेशी है या नहीं।
  • विदेशियों का पंजीकरण अधिनियम, 1939:
    • FRRO के तहत पंजीकरण एक अनिवार्य आवश्यकता है जिसके तहत सभी विदेशी नागरिकों (ओवरसीज़ सिटीज़न ऑफ इंडिया को छोड़कर) को भारत आने के 14 दिनों के भीतर एक लंबी अवधि के वीज़ा (180 दिनों से अधिक) पर भारत आने हेतु पंजीकरण अधिकारी के समक्ष खुद को पंजीकृत करना आवश्यक है।
    • भारत आने वाले पाकिस्तानी नागरिकों को ठहरने की अवधि की परवाह किये बिना आगमन के 24 घंटों के भीतर पंजीकरण कराना आवश्यक है।
  • नागरिकता अधिनियम, 1955:
    • यह भारतीय नागरिकता का अधिग्रहण और निर्धारण संबंधी प्रक्रिया निर्धारित करता है।
    • इसके अलावा संविधान ने भारत के प्रवासी नागरिकों, अनिवासी भारतीयों और भारतीय मूल के व्यक्तियों के लिये नागरिकता संबंधी अधिकार प्रदान किये हैं।

अवैध प्रवासी बनाम शरणार्थी

अवैध प्रवासी बनाम शरणार्थी

  • वैध यात्रा दस्तावेज़ों के बिना देश में प्रवेश करने वाले विदेशी नागरिकों को अवैध प्रवासी माना जाता है।

शरणार्थी

  • वर्ष 1951 के ‘यूएन कन्वेंशन ऑन द स्टेटस ऑफ रिफ्यूजीज़’ और वर्ष 1967 के प्रोटोकॉल के तहत शरणार्थी शब्द किसी भी ऐसे व्यक्ति से संबंधित है, जो अपने मूल देश से बाहर है और नस्ल, धर्म, राष्ट्रीयता, किसी विशेष सामाजिक समूह की सदस्यता या राजनीतिक राय के कारण उत्पीड़न के डर से लौटने में असमर्थ या अनिच्छुक है।
    • ज्ञात हो कि भारत ‘यूएन कन्वेंशन ऑन द स्टेटस ऑफ रिफ्यूजीज़’ तथा वर्ष 1967 के प्रोटोकॉल का हस्ताक्षरकर्त्ता नहीं है।
  • ‘स्टेटलेस’ व्यक्ति भी इस अर्थ में शरणार्थी हो सकते हैं, जहाँ मूल देश (नागरिकता) को 'पूर्व निवास स्थान का देश' माना जाता है।

आगे की राह

  • वर्ष 1951 के शरणार्थी कन्वेंशन और वर्ष 1967 के प्रोटोकॉल का हस्ताक्षरकर्त्ता नहीं होने के बावजूद भारत दुनिया में सबसे अधिक शरणार्थी वाले देशों में एक है।
  • हालाँकि यदि भारत में शरणार्थियों के संबंध में घरेलू कानून होता, तो यह पड़ोस में किसी भी दमनकारी सरकार को उनकी आबादी को सताने और उन्हें भारत की ओर आने से रोक सकता था।
  • इसके अलावा राष्ट्रीय शरणार्थी कानूनों की अनुपस्थिति ने शरणार्थियों और आर्थिक प्रवासियों के बीच अंतर को कम कर दिया है, जिसके कारण प्रायः वास्तविक शरण चाहने वालों को भी सहायता से इनकार कर दिया जाता है।
  • अपने घरेलू शरणार्थी कानूनों को लागू करने के बाद भारत को वर्ष 1951 के शरणार्थी कन्वेंशन और वर्ष 1967 के प्रोटोकॉल पर हस्ताक्षर करने के लिये भी विचार करना चाहिये।
  • यदि भारत ‘दक्षिण एशिया क्षेत्रीय सहयोग संघ’ (सार्क) में अन्य देशों को शरणार्थियों को लेकर एक सार्क कन्वेंशन या घोषणा पर विचार के लिये प्रोत्साहित करने की पहल करे तो बेहतर होगा, जिसमें सदस्य राज्य वर्ष 1951 के शरणार्थी कन्वेंशन और वर्ष 1967 के प्रोटोकॉल की पुष्टि करने के लिये सहमत हों।

स्रोत: पी.आई.बी.


अंतर्राष्ट्रीय संबंध

बेलारूस के खिलाफ लगाए गए प्रतिबंध

प्रिलिम्स के लिये

बेलारूस की भौगौलिक अवस्थिति

मेन्स के लिये

बेलारूस पर प्रतिबंधों का लक्ष्य और प्रभाव

चर्चा में क्यों?

बेलारूस के राष्ट्रपति ‘अलेक्जेंडर लुकाशेंको’ पर दबाव बढ़ाने के लिये ब्रिटेन, अमेरिका और कनाडा ने बेलारूस पर नए व्यापार, वित्तीय और विमानन प्रतिबंध अधिरोपित किये हैं।

Belarus

प्रमुख बिंदु

पृष्ठभूमि

  • यूरोप के सबसे अधिक समय तक शासन करने वाले शासक, बेलारूस के राष्ट्रपति ‘अलेक्जेंडर लुकाशेंको’ ने सोवियत संघ के पतन (वर्ष 1991) के कारण पैदा हुई अराजकता के बीच वर्ष 1994 में पदभार ग्रहण किया था।
  • इन्हें अक्सर यूरोप के ‘अंतिम तानाशाह’ के रूप में वर्णित किया जाता है, उन्होंने सोवियत साम्यवाद के तत्त्वों को संरक्षित करने का प्रयास किया है।
    • वह 26 वर्ष से सत्ता में हैं और देश की अर्थव्यवस्था का अधिकांश हिस्सा सरकार के नियंत्रण में है तथा विरोधियों के खिलाफ सेंसरशिप एवं पुलिस कार्रवाई का उपयोग कर रहे हैं।
  • वर्ष 2020 में हुए चुनावों में ‘अलेक्जेंडर लुकाशेंको’ को विजेता घोषित किया गया था, जिसके बाद राजधानी मिन्स्क में विरोध प्रदर्शन शुरू हो गए और सरकार द्वारा प्रदर्शनकारियों के खिलाफ हिंसक कार्रवाई की गई।
    • आर्थिक अस्थिरता और चुनाव की निष्पक्षता पर संदेह को लेकर सरकार के खिलाफ आम लोगों में व्यापक गुस्सा है।

प्रतिबंध

  • इन प्रतिबंधों का उद्देश्य बेलारूस की सरकार और राष्ट्रपति ‘अलेक्जेंडर लुकाशेंको’ के सहयोगियों पर यथासंभव ध्यान केंद्रित करना तथा पश्चिमी देशों की कंपनियों को बेलारूस के साथ व्यापार करने से हतोत्साहित करना है।
  • नवीनतम प्रतिबंध बेलारूस को किसी भी प्रकार की निगरानी एवं सैन्य प्रौद्योगिकी के निर्यात को प्रतिबंधित करते हैं।
  • साथ ही इसके तहत आंशिक रूप से बेलारूस से पोटाश उर्वरक, पेट्रोल और पेट्रोल आधारित उत्पादों के आयात पर भी प्रतिबंध लगाया गया है।
  • यूरोपीय संघ, ब्रिटेन और कनाडा के मामलों में ये प्रतिबंध वित्तीय व्यापार जैसे- राज्य से संबंधित संस्थाओं का बीमा या पुनर्बीमा आदि पर भी रोक लगाते हैं।
  • यूरोपीय संघ और अमेरिका ने बेलारूस के तंबाकू उद्योग पर भी प्रतिबंध लगा दिया है, जो कि सिगरेट तस्करी के व्यापार में महत्त्वपूर्ण योगदान देता है।
    • वर्ष 2019 में लिथुआनिया में तस्करी की जाने वाली 90% से अधिक सिगरेट बेलारूस से आई थी।
  • पश्चिमी देशों ने बेलारूस के कुछ नागरिकों को ‘ब्लैक लिस्ट’ में डाल दिया है।

प्रभाव:

  • बेलारूस के पोटाश क्षेत्र को लक्षित करना एक रणनीतिक कदम था क्योंकि यह  कनाडा के बाद उर्वरक का दूसरा सबसे बड़ा निर्यातक देश है, जिसकी वर्ष 2019 में विश्व पोटाश निर्यात में  21% हिस्सेदारी रही है।
    • लेकिन लगाए गए प्रतिबंध यूरोपीय संघ को निर्यातित कुल पोटाश निर्यात का केवल 15% हिस्सा ही कवर करते हैं।
  • इसके अलावा रूस की बेलारूस के व्यापार में  49.2% की हिस्सेदारी है और बेलारूस वहांँ से पुनः रूसी सीमा के पार अपने स्वीकृत माल का निर्यात कर सकता है।
  • दोहरे उपयोग वाली वस्तुओं, निगरानी और अवरोधन माल तथा प्रौद्योगिकी एवं सिगरेट निर्माण में उपयोग किये  जाने वाले सामानों पर प्रतिबंधों का प्रभाव नगण्य होगा।

रूस के लिये संभावनाएँ/अवसर:

  • चूंँकि रूसी राष्ट्रपति पुतिन के लुकाशेंको (Lukashenko) के साथ तनावपूर्ण संबंध हैं और प्रतिबंध रूस को एक कमज़ोर राज्य के नियंत्रण में बेलारूस के लुकाशेंको पर अपनी शर्तों को लागू करने का एक अवसर है, जिसे रूस ने दशकों से आर्थिक रूप से समर्थन दिया है।

बेलारूस का रुख:

  • यूके, अमेरिका और कनाडा पर बेलारूसी लोगों की इच्छा की अनदेखी करने और शासन परिवर्तन हेतु ‘शीत युद्ध की स्थिति को नियोजित करने का आरोप लगाया।

आगे की राह: 

  • बेलारूस के राष्ट्रपति को एक वैध सरकार का गठन सुनिश्चित करने की आवश्यकता है जो देश की महत्त्वपूर्ण समस्याओं का समाधान कर सके।
  • उन्हें इस संकट के शांतिपूर्ण समाधान हेतु विपक्ष से वार्ता के लिये पेशकश करनी होगी।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस 


अंतर्राष्ट्रीय संबंध

समुद्री सुरक्षा पर संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की बैठक

प्रिलिम्स के लिये:

संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद, सागर,  बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव 

मेन्स के लिये:

समुद्री सुरक्षा के संदर्भ में संयुक्त राष्ट्र समुद्री कानून संधि का महत्त्व एवं समुद्री सुरक्षा की  दिशा में भारत के प्रयास

चर्चा में क्यों?

हाल ही में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) ने समुद्री सुरक्षा पर पहली बार अध्यक्षीय वक्तव्य (Presidential Statement) को अपनाया है।

प्रमुख बिंदु 

समुद्री सुरक्षा पर वक्तव्य:

  • महासागरों के वैध उपयोग और तटीय समुदायों की सुरक्षा पर ज़ोर देते हुए इस बात की पुष्टि की गई  कि  अन्य वैश्विक उपकरणों के मध्य समुद्री सुरक्षा पर अंतर्राष्ट्रीय कानून वर्ष 1982 की  संयुक्त राष्ट्र समुद्री कानून संधि (UN Convention on the Law of the Sea-UNCLOS) में परिलक्षित होता है जो महासागरों में अवैध गतिविधियों का मुकाबला करने हेतु एक कानूनी ढांँचा प्रदान करती है।
  • नौपरिवहन की स्वतंत्रता सुनिश्चित करते हुए सदस्य देशों को अंतर्राष्ट्रीय जहाज़ और बंदरगाह सुविधा सुरक्षा कोड तथा समुद्री जीवों की सुरक्षा के लिये अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन के अध्याय XI-2 को लागू करने और अंतर्राष्ट्रीय समुद्री संगठन (IMO) के साथ कार्य करने हेतु सुरक्षित नौपरिवहन को बढ़ावा देने के लिये कहा गया।
  • सदस्य राज्यों को अन्य शर्तों के अनुसार अंतर्राष्ट्रीय संगठित अपराध और उसके प्रोटोकॉल के विरुद्ध वर्ष 2000 के संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन का समर्थन करने, उसे स्वीकार करने और  लागू करने पर भी विचार करना चाहिये।

संयुक्त राष्ट्र समुद्री कानून संधि (UNCLOS)

  • 'लॉ ऑफ द सी ट्रीटी', (Law of the Sea Treaty) जिसे औपचारिक रूप से संयुक्त राष्ट्र समुद्री कानून संधि (UNCLOS) के रूप में जाना जाता है, को वर्ष 1982 में  विश्व के सागरों और महासागरों पर देशों के अधिकार व ज़िम्मेदारियों का निर्धारण करने हेतु अपनाया गया था।
  • यह कन्वेंशन बेसलाइन से 12 समुद्री मील की दूरी को प्रादेशिक समुद्र सीमा के रूप में और 200 समुद्री मील की दूरी को विशिष्ट आर्थिक क्षेत्र सीमा के रूप में परिभाषित करता है।
  • भारत वर्ष 1982 में UNCLOS का हस्ताक्षरकर्त्ता देश बना।

अंतर्राष्ट्रीय पोत और पोर्ट सुविधा सुरक्षा (ISP ) कोड 

  • ISPS कोड जहाज़ों और बंदरगाह सुविधाओं की सुरक्षा बढ़ाने के उपायों का एक समूह है। इसे 9/11 के हमलों के बाद जहाज़ों और बंदरगाह सुविधाओं हेतु कथित खतरों के जवाब में विकसित किया गया था।
  • समुद्री जीवों की सुरक्षा के लिये अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन के अध्याय XI-2 में ISPS कोड निहित है।

अंतर्राष्ट्रीय समुद्री संगठन (IMO)

  • अंतर्राष्ट्रीय समुद्री संगठन (IMO) संयुक्त राष्ट्र (UN) की एक विशेष संस्था हैI यह एक अंतर्राष्ट्रीय मानक-निर्धारण प्राधिकरण है जो मुख्य रूप से अंतर्राष्ट्रीय शिपिंग की सुरक्षा में सुधार करने और जहाज़ों द्वारा होने वाले प्रदूषण को रोकने हेतु उत्तरदायी है।
  • वर्ष 1959 में भारत IMO में शामिल हुआ। IMO वर्तमान में भारत को 'अंतर्राष्ट्रीय समुद्री व्यापार में सबसे अधिक रुचि' वाले 10 राज्यों में सूचीबद्ध करता है।

अंतर्राष्ट्रीय संगठित अपराध के खिलाफ संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन (UNTOC)

  • UNTOC  को पलेर्मो कन्वेंशन (Palermo Convention) के रूप में भी जाना जाता है क्योंकि इसे वर्ष 2000 में इटली के पलेर्मो में अपनाया गया था तथा यह वर्ष 2003 में लागू हुआ। भारत वर्ष 2002 में UNTOC में शामिल हुआ।
  • संगठित अपराध के खिलाफ एक अंतर्राष्ट्रीय  कन्वेंशन रखने के पीछे का विचार यह था कि यदि अपराध सीमा को पार करते हैं, तो इनके लिये एक प्रवर्तन कानून (Enforcement  Law) भी होना चाहिये।
  • भारत का पक्ष: भारत ने समुद्री सुरक्षा के लिये पाँच बुनियादी सिद्धांत सामने रखे हैं।
    • बिना किसी बाधा के वैध व्यापार स्थापित करना।
    • इस संदर्भ में ‘सागर’ (क्षेत्र में सभी के लिये सुरक्षा और विकास) विज़न पर प्रकाश डाला जा सकता है।
  • समुद्री विवादों का निपटारा शांतिपूर्ण और अंतर्राष्ट्रीय कानून के आधार पर ही होना चाहिये।
    • इसी समझ और परिपक्वता के चलते भारत ने अपने पड़ोसी देश बांग्लादेश के साथ अपनी समुद्री सीमा के मुद्दे का समाधान किया।
  • उत्तरदायी समुद्री संपर्क को प्रोत्साहित किया जाना चाहिये।
    • चीन के बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव का संदर्भ देते हुए भारत ने माना कि "समुद्री संपर्क" हेतु संरचनाएँ बनाते समय, देशों को "वित्तीय स्थिरता" और मेज़बान देशों की क्षमता को बनाए रखना चाहिये।
  • गैर-राज्य अभिकर्त्ताओं और प्राकृतिक आपदाओं से उत्पन्न समुद्री खतरों का सामूहिक रूप से मुकाबला करने की आवश्यकता है।
    • हिंद महासागर में भारत की भूमिका एक शुद्ध सुरक्षा प्रदाता की रही है।
  • समुद्री पर्यावरण और समुद्री संसाधनों का संरक्षण करना।
    • प्लास्टिक कचरे और तेल रिसाव से बढ़ते प्रदूषण पर प्रकाश डालना।

अमेरिका का पक्ष:

  • दक्षिण चीन सागर या किसी भी महासागर में संघर्ष के कारण सुरक्षा और वाणिज्य हेतु गंभीर वैश्विक परिणाम उत्पन्न होंगे।
  • इसने इस बात पर प्रकाश डाला कि चीन इस क्षेत्र के कृत्रिम द्वीपों पर सैन्य ठिकाने बना रहा है, जिस पर ब्रुनेई, मलेशिया, फिलीपींस, ताइवान और वियतनाम भी दावा करते हैं।
  • अमेरिका ने पाँच वर्ष पहले UNCLOS के तहत गठित मध्यस्थ न्यायाधिकरण द्वारा सर्वसम्मति से दिये गए और कानूनी रूप से बाध्यकारी निर्णय का भी उल्लेख किया, जिसे चीन ने अवैध रूप से खारिज़ कर दिया।

UNCLOS

चीन का पक्ष:

  • चीन ने माना कि चीन और आसियान देशों के संयुक्त प्रयासों से दक्षिण चीन सागर में स्थिति सामान्य रूप से स्थिर बनी हुई है।
  • परोक्ष रूप से क्वाड (अमेरिका, भारत, जापान, ऑस्ट्रेलिया) का जिक्र करते हुए कुछ देश एशिया प्रशांत क्षेत्र में विशेष क्षेत्रीय रणनीतियों का अनुसरण कर रहे हैं।
    • यह समुद्री संघर्षों को और तेज़ कर सकता है तथा संबंधित देशों की संप्रभुता एवं सुरक्षा हितों को कमज़ोर करने के साथ ही क्षेत्रीय शांति तथा स्थिरता को कमज़ोर कर सकता है।
  • इसके अलावा चीन, अमेरिका की आलोचना करता है कि दक्षिण चीन सागर के मुद्दे पर उसे  गैर-ज़िम्मेदाराना टिप्पणी नहीं करनी चाहिये, क्योंकि अमेरिका खुद UNCLOS में शामिल नहीं हुआ है।

रूस का पक्ष:

  • रूस ने दक्षिण चीन सागर या हिंद-प्रशांत का उल्लेख नहीं किया।
  • यह संयुक्त राष्ट्र चार्टर में निहित अंतर्राष्ट्रीय कानून के प्रमुख मानदंडों और सिद्धांतों के सख्त पालन को बढ़ावा देता है, जैसे कि संप्रभुता का सम्मान, आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप न करना और बातचीत के माध्यम से विवादों का निपटारा करना।

UK का पक्ष:

  • UK के पास एक स्वतंत्र, खुला और सुरक्षित हिंद-प्रशांत का विज़न है। 
  • इस संदर्भ में ब्रिटेन की विदेश, सुरक्षा, रक्षा और विकास नीति की हालिया एकीकृत समीक्षा ने हिंद-प्रशांत के महत्त्व को निर्धारित किया है।

फ्राँस का पक्ष:

  • इसने माना कि समुद्री क्षेत्र नई पीढ़ी की चुनौतियों के लिये एक रंगमंच के रूप में उभरा है और इस मुद्दे से निपटने हेतु UNSC के सदस्यों के बीच अधिक सहयोग का आग्रह किया।
  • जैसे कि जलवायु परिवर्तन का मुकाबला करना और सुरक्षा को लेकर इसके परिणाम विशेष रूप से प्राकृतिक आपदाओं के संदर्भ में।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

GSLV-F10 की विफलता: इसरो का ‘EOS-03’ उपग्रह मिशन

प्रिलिम्स के लिये 

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन, ‘EOS-03’ उपग्रह मिशन, पृथ्वी अवलोकन उपग्रह

मेन्स के लिये

‘EOS-03’ उपग्रह मिशन की विफलता के कारण और इसके प्रभाव

चर्चा में क्यों?

हाल ही में ‘भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन’ (ISRO) को एक महत्त्वपूर्ण ‘पृथ्वी अवलोकन उपग्रह’ (EOS-03) के लॉन्च के दौरान नुकसान का सामना करना पड़ा जब इसे ले जाने वाले GSLV रॉकेट में लिफ्ट-ऑफ के दौरान लगभग पाँच मिनट में ही कुछ तकनीकी खराबी आ गई।

पृथ्वी अवलोकन उपग्रह

  • पृथ्वी अवलोकन उपग्रह, रिमोट सेंसिंग तकनीक से लैस उपग्रह होते हैं, जो कि पृथ्वी की भौतिक, रासायनिक और जैविक प्रणालियों के बारे में जानकारी संग्रह करते हैं।
  • कई पृथ्वी अवलोकन उपग्रहों को ‘सन-सिंक्रोनस’ ऑर्बिट में तैनात किया जाता है।
  • इसरो द्वारा लॉन्च किये गए अन्य पृथ्वी अवलोकन उपग्रहों में रिसोर्ससैट-2, 2A, कार्टोसैट-1, 2, 2A, 2B, रिसैट-1 और 2, ओशनसैट-2, मेघा-ट्रॉपिक्स, सरल और स्कैटसैट-1, इन्सैट-3DR, 3D शामिल हैं।

प्रमुख बिंदु

‘EOS-03’ के विषय में:

  • यह उपग्रह प्रतिदिन पूरे देश की चार से पाँच बार इमेजिंग करने में सक्षम था।
  • इसे एक GSLV रॉकेट (GSLV-F10) के माध्यम से लॉन्च किया जा रहा था, जिसमें एक नया पेलोड कैरियर शामिल है, जिसे वायुगतिकीय ड्रैग को कम करने के लिये डिज़ाइन किया गया है और इस प्रकार यह अधिक पेलोड ले जाता है।
  • यह रॉकेट उपग्रह को ‘जियोस्टेशनरी ट्रांसफर ऑर्बिट’ तक ले जाने वाला था, जहाँ से उपग्रह की अपनी प्रणोदन प्रणाली इसे ‘‘जियोस्टेशनरी ऑर्बिट’ में निर्देशित कर देती, जो पृथ्वी की सतह से लगभग 36,000 किलोमीटर दूर है।
    • ‘जियोस्टेशनरी ट्रांसफर ऑर्बिट’ एक गोलाकार कक्षा है, जो भूमध्य रेखा से लगभग 35,900 किमी. ऊपर स्थित है।
    • इस ऑर्बिट में कोई वस्तु घूर्णन करती हुई पृथ्वी के सापेक्ष स्थिर दिखाई देती है।

महत्त्व

  • ‘EOS-03’ पृथ्वी-अवलोकन उपग्रहों की नई जनरेशन का हिस्सा है और देश के बड़े हिस्से की लगभग वास्तविक समय की छवियाँ प्रदान करने में सक्षम था।
    • इन छवियों का उपयोग बाढ़ एवं चक्रवात जैसी प्राकृतिक आपदाओं, जल निकायों, फसलों, वनस्पति और वन आवरण की निगरानी के लिये किया जा सकता है।
  • EOS-03 को EOS-02 से पहले भेजा जाना था, जो कि कोविड-19 महामारी के कारण विलंबित हो गया है।
    • EOS-02 को इस वर्ष मार्च-अप्रैल के आसपास लॉन्च किया जाना था, लेकिन अब इसे सितंबर-अक्तूबर के लिये पुनर्निर्धारित किया गया है।
    • EOS-02 को ISRO के नए SSLV (स्मॉल सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल) रॉकेट के माध्यम से लॉन्च किया जाना था।
    • SSLVs इसरो की वर्तमान रॉकेट रेंज का विस्तार है, जिसमें  और GSLVs शामिल हैं तथा यह छोटे वाणिज्यिक उपग्रहों के प्रक्षेपण की बढ़ती मांग को पूरा करता है।

EOS-01

  • नवंबर 2020 में ISRO ने EOS-01 लॉन्च किया था, जो नए पृथ्वी अवलोकन उपग्रहों की शृंखला में पहला उपग्रह है।
    • इसे भारत की तीसरी पीढ़ी के प्रक्षेपण यान- ‘पोलर सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल’ (PSLV) द्वारा लॉन्च किया गया था।
  • यह कृषि, वानिकी और आपदा प्रबंधन सहायता में अनुप्रयोगों के लिये अभिप्रेत है।

जियोसिंक्रोनस सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल (GSLV)

  • GSLV एक अंतरिक्ष प्रक्षेपण यान है, जिसे इसरो द्वारा डिज़ाइन, विकसित और संचालित किया जाता है ताकि उपग्रहों एवं अन्य अंतरिक्ष वस्तुओं को जियोसिंक्रोनस ट्रांसफर ऑर्बिट में लॉन्च किया जा सके।
    • जियोसिंक्रोनस उपग्रहों को उसी दिशा में कक्षा में प्रक्षेपित किया जाता है जिस दिशा में पृथ्वी घूम रही है और उनका झुकाव किसी भी ओर हो सकता है।
  • GSLV में ‘ध्रुवीय उपग्रह प्रक्षेपण यान’ (PSLV) की तुलना में कक्षा में भारी पेलोड l;ए जाने की क्षमता है।
  • यह स्ट्रैप-ऑन मोटर्स के साथ तीन चरणों वाला लॉन्चर है।

GSLV-F10 की विफलता

कारण:

  • तरल ईंधन स्ट्रैप-ऑन बूस्टर रॉकेट को ज़मीन से ऊपर उठाने के लिये आवश्यक अतिरिक्त बल प्रदान करके उपग्रह का प्रक्षेपण शुरू करते हैं।
  • फिर पहले चरण में ठोस ईंधन का अनुसरण करके दूसरे चरण में तरल ईंधन चरण का प्रयोग किया जाता है। ये दो चरण अपेक्षित रूप से संचालित होते हैं।
  • उसके बाद रॉकेट का महत्त्वपूर्ण तीसरा चरण था, जो स्वदेश निर्मित क्रायोजेनिक अपर स्टेज (CUS) का उपयोग करता है, यह प्रज्वलित होने में विफल रहा।
    • क्रायोजेनिक चरण "अत्यंत कम तापमान पर प्रणोदकों के उपयोग और संबंधित थर्मल और संरचनात्मक समस्याओं के कारण ठोस या पृथ्वी-भंडारण योग्य तरल प्रणोदक चरणों की तुलना में तकनीकी रूप से एक बहुत ही जटिल प्रणाली है"।

भविष्य के मिशनों पर प्रभाव:

  • यह दूसरा प्रक्षेपण था जिसे इसरो ने वर्ष 2021 के लिये प्रतीक्षा में रखा था, जिसे मूल रूप से मार्च 2020 तक निर्धारित होने के बाद कई बार देरी का सामना करना पड़ा था।
    • इसरो ने फरवरी में एक मिशन सफलतापूर्वक लॉन्च किया था, जो ब्राज़ील का पृथ्वी अवलोकन उपग्रह अमेज़ोनिया-1 और 18 सह-यात्री उपग्रह थे।
  • इस विफलता ने वर्ष 2017 से इसरो द्वारा लगातार 16 सफल प्रक्षेपणों की शृंखला को तोड़ा है।
  • वर्ष 2020-21 के लिये उपग्रहों की योजना बनाई गई थी, जिसमें OCEANSAT-3, GISAT-2, RISAT-2A आदि शामिल हैं, इन मिशनों की अनुमानित लागत 701.5 करोड़ रुपए है।
  • गगनयान और चंद्रयान-3 जैसे मिशन GSLV Mk-III पर लॉन्च किये जाएंगे, जीएसएलवी रॉकेट का एक अधिक उन्नत संस्करण है जिसे अंतरिक्ष में अधिक भारी पेलोड ले जाने के लिये डिज़ाइन किया गया है।
  • यह निसार मिशन के लिये चिंता का एक बड़ा कारण है, जो संयुक्त पृथ्वी-अवलोकन उपग्रह के लिये नासा और इसरो के बीच अपनी तरह का पहला सहयोग है।
    • NISAR जो कि 12 दिनों के चक्र में पूरी पृथ्वी की निगरानी के लिये दो सिंथेटिक एपर्चर रडार (SAR) का उपयोग करेगा, अब तक का सबसे महत्वपूर्ण मिशन है जिसमें GSLV Mk-II रॉकेट शामिल है।

स्रोत- इंडियन एक्सप्रेस


भारतीय अर्थव्यवस्था

ओपन एकरेज लाइसेंसिंग प्रोग्राम

प्रिलिम्स के लिये 

ओपन एकरेज लाइसेंसिंग पॉलिसी, हाइड्रोकार्बन एक्सप्लोरेशन एंड लाइसेंसिंग पॉलिसी

मेन्स के लिये

सरकार द्वारा अन्वेषण एवं लाइसेंसिंग नीति में किये गए सुधार

चर्चा में क्यों?

घरेलू हाइड्रोकार्बन उत्पादन को बढ़ावा देने हेतु पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस मंत्रालय ने लचीले ओपन एकरेज लाइसेंसिंग प्रोग्राम (OALP) के तहत नीलामी के छठे चरण की शुरुआत की।

  • इससे पूर्व, आर्थिक मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति (CCEA) ने तेल एवं गैस के घरेलू अन्वेषण तथा उत्पादन को बढ़ाने के लिये अन्वेषण एवं लाइसेंसिंग क्षेत्र में सुधारों पर नीतिगत ढाँचे को मंज़ूरी दी थी।

प्रमुख बिंदु

परिचय :

  • मार्च 2016 में पूर्ववर्ती न्यू एक्सप्लोरेशन लाइसेंसिंग पॉलिसी (NELP) के स्थान पर हाइड्रोकार्बन एक्सप्लोरेशन एंड लाइसेंसिंग पॉलिसी (HELP) को मंज़ूरी दी गई थी तथा जून 2017 में ओपन एकरेज लाइसेंसिंग पॉलिसी (OALP) के साथ-साथ नेशनल डेटा रिपोजिटरी (NDR) को भारत में अन्वेषण और उत्पादन (E&P) गतिविधियों में तेजी लाने के लिये प्रमुख संचालक के रूप में लॉन्च किया गया था। 
  • OALP के तहत कंपनियों को उन क्षेत्रों के अन्वेषण की अनुमति है, जिनमें वे तेल और गैस का पता लगाना चाहती हैं। 
  • कंपनियाँ वर्ष भर किसी भी क्षेत्र के अन्वेषण हेतु अपनी रुचि को प्रकट कर सकती हैं लेकिन ऐसी सुविधा वर्ष में तीन बार दी जाती है। फिर मांगे गए क्षेत्रों की बोली लगाने की पेशकश की जाती है।
  • यह पूर्व नीति से अलग नीति है इसमें जहाँ एक तरफ सरकार ने क्षेत्रों की पहचान की वहीं दूसरी तरफ उन्हें बोली लगाने की पेशकश की।

नीति की आवश्यकता :

  • भारत दुनिया की तीव्र उभरती प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं में से एक है तथा अमेरिका और चीन के बाद पेट्रोलियम उत्पादों का तीसरा सबसे बड़ा उपभोक्ता है।
  • भारत अपनी ऊर्जा ज़रूरतों को पूरा करने के लिये कच्चे तेल के आयात पर अत्यधिक निर्भर है।
  • कच्चे तेल का शुद्ध आयात 2006-07 के दौरान के 111.50 मीट्रिक टन से बढ़कर 2015-16 के दौरान 202.85 मीट्रिक टन हो गया है। 
    • इसके आधार पर भारत ने 2022 तक कच्चे तेल के आयात पर निर्भरता को 10 प्रतिशत तक कम करने का लक्ष्य रखा है।

लाभ :

  • अन्वेषण में वृद्धि:
    • ओपन एकरेज लाइसेंसिंग पॉलिसी (OALP) नीलामी प्रक्रिया के बाद हाइड्रोकार्बन एक्सप्लोरेशन एंड लाइसेंसिंग पॉलिसी (HELP) के सफल रोल-आउट से भारत में एक्सप्लोरेशन रकबे में वृद्धि हुई है।
  • लालफीताशाही को हटाना :
    • OALP ने लालफीताशाही को दूर करने में मदद की है तथा अन्वेषण और उत्पादन क्षेत्र में एक बड़ी छलांग लगाई है।

मुद्दे:

  • निवेशकों को आकर्षित करने में विफल:
    • नई नीति इस क्षेत्र के प्रमुख खिलाड़ियों की रुचि को आकर्षित करने में विफल रही है।
  • भारी दायित्व:
    • यह अपस्ट्रीम तेल और गैस उत्पादन की देखरेख करता है।
    • OALP हाइड्रोकार्बन महानिदेशालय (DGH) को उस क्षेत्र को स्वीकार करने के लिये विवेकाधीन शक्तियाँ प्रदान करता है जिसके लिये EOI जमा किया गया है या जो उचित मूल्यांकन के बाद क्षेत्र को परिवर्तित/संशोधित करता है।
    • हालाँकि इस तरह के विवेक के प्रयोग का आधार OALP के तहत प्रदान नहीं किया गया है।

हाइड्रोकार्बन अन्वेषण और लाइसेंसिंग नीति (HELP):

  • हाइड्रोकार्बन अन्वेषण और लाइसेंसिंग नीति (HELP), जो रेवेन्यू शेयरिंग कॉन्ट्रैक्ट मॉडल पर आधारित है, भारतीय एक्सप्लोरेशन एंड प्रोडक्शन (E&P) सेक्टर में 'ईज़ऑफ डूइंग बिज़नेस' को बेहतर बनाने की दिशा में एक बड़ा कदम है।
  • इसकी मुख्‍य विशेषताओं में राजस्‍व साझा करने हेतु समझौता, अन्‍वेषण के लिये एकल लाइसेंस, परंपरागत और गैर-परंपरागत हाइड्रोकार्बन संसाधनों का उत्‍पादन, मार्केटिंग व मूल्‍य निर्धारित करने की आज़ादी शामिल है।
  • बोली के चौथे राउंड के बाद उदारीकृत नीति शर्तों के तहत बोली के अगले चरण को शुरू किया जा रहा है, जो श्रेणी I बेसिन में प्रतिबद्ध संचालित कार्यक्रम के लिये उच्च भार के साथ अधिकतम उत्पादन पर केंद्रित है तथा न्यून अन्वेषण वाले श्रेणी-II और श्रेणी-III बेसिन के लिये किसी राजस्व हिस्सेदारी हेतु बोलियों की आवश्यकता नहीं होगी।
  • श्रेणी-I बेसिन में पहले से ही उत्पादन कर रहे भंडार और क्षेत्र हैं, जबकि श्रेणी- II बेसिन ऐसे हैं जिनके पास वाणिज्यिक उत्पादन लंबित आकस्मिक भंडार हैं। श्रेणी- III बेसिन वे हैं जिनके पास संभावित संसाधन हैं जो अन्वेषण हेतु प्रतीक्षा कर रहे हैं।

आगे की राह:

  • सरकार को कराधान और उपकर को युक्तिसंगत बनाने पर विचार करना चाहिये।
  • साथ ही सरकार को उनकी चिंताओं को समझने के लिये विभिन्न हितधारकों से परामर्श करना चाहिये।
  • बेहतर तकनीक लाने के लिये इस क्षेत्र के निजी और विदेशी खिलाड़ियों को प्रोत्साहित किया जाना चाहिये।

स्रोत: पी.आई.बी


जैव विविधता और पर्यावरण

तेल रिसाव

प्रिलिम्स के लिये 

नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ ओशन टेक्नोलॉजी, तेल रिसाव, बायोरेमेडिएशन तंत्र तकनीक

मेन्स के लिये

तेल रिसाव का जलीय जीवों एवं पर्यावरण पर प्रभाव, तेल रिसाव की घटनाओं को रोकने हेतु प्रयास

चर्चा में क्यों?

एक नए अध्ययन के अनुसार, यह पुष्टि की गई है कि कनाडा के आर्कटिक क्षेत्र के ठंडे समुद्री जल में पोषक तत्त्वों के साथ उत्तेजक बैक्टीरिया (बायोरेमेडिएशन) तेल रिसाव के बाद डीज़ल और अन्य पेट्रोलियम तेल को विघटित करने में मदद कर सकते हैं।

प्रमुख बिंदु

तेल रिसाव :

  • तेल रिसाव पर्यावरण में कच्चे तेल, गैसोलीन, ईंधन या अन्य तेल उत्पादों के अनियंत्रित रिसाव को संदर्भित करता है। 
  • तेल रिसाव की घटना भूमि, वायु या पानी को प्रदूषित कर सकती है, हालाँकि इसका उपयोग सामान्य तौर पर समुद्र में तेल रिसाव के संदर्भ में किया जाता है।

प्रमुख कारण : 

  • मुख्य रूप से महाद्वीपीय चट्टानों पर गहन पेट्रोलियम अन्वेषण एवं उत्पादन तथा जहाज़ों में बड़ी मात्रा में तेल के परिवहन के परिणामस्वरूप तेल रिसाव एक प्रमुख पर्यावरणीय समस्या बन गया है।
  • तेल रिसाव जो नदियों, खाड़ियों और समुद्र में होता है, अक्सर टैंकरों, नावों, पाइपलाइनों, रिफाइनरियों, ड्रिलिंग क्षेत्र तथा भंडारण सुविधाओं से जुड़ी दुर्घटनाओं के कारण होता है, लेकिन सामान्य नौकायान और प्राकृतिक आपदाएँ भी इसे प्रभावित करती हैं। 

पर्यावरणीय प्रभाव

  • स्वदेशी लोगों के लिये खतरा:
    • समुद्री भोजन पर निर्भर रहने वाली स्वदेशी आबादी हेतु तेल प्रदूषण स्वास्थ्य के लिये खतरा बन गया है।
  • जलीय जीवों के लिये हानिकारक:
    • समुद्र की सतह पर तेल जलीय जीवों के कई रूपों के लिये हानिकारक है क्योंकि यह पर्याप्त मात्रा में सूर्य के प्रकाश को सतह में प्रवेश करने से रोकता है और यह घुलित ऑक्सीजन के स्तर को भी कम करता है।
  • अतिताप (Hyperthermia):
    • कच्चा तेल पक्षियों के पंखों और फर के इन्सुलेट और जलरोधक गुणों को नष्ट कर देता है और इस प्रकार तेल से लिपटे पक्षी व समुद्री स्तनधारी की मृत्यु अतिताप (शरीर का  तापमान सामान्य स्तर से अधिक) के कारण हो सकती है।
  • विषाक्त:
    • इसके अलावा अंतर्ग्रहण तेल प्रभावित जानवरों के लिये विषाक्त हो सकता है और उनके आवास व प्रजनन दर को नुकसान पहुँचा सकता है।
  • मैंग्रोव के लिये खतरा:
    • खारे पानी के दलदल और मैंग्रोव अक्सर तेल रिसाव से पीड़ित होते हैं।

आर्थिक प्रभाव:

  • पर्यटन:
    • यदि समुद्र तटों और आबादी वाली तटरेखाओं को दूषित कर दिया जाता है, तो पर्यटन और वाणिज्य बुरी तरह प्रभावित हो सकते हैं।
  • बिजली संयंत्र:
    • बिजली संयंत्र और अन्य उपयोगिताएँ जो समुद्र के पानी को खींचने या निकालने पर निर्भर करती हैं, तेल रिसाव से गंभीर रूप से प्रभावित होती हैं।
  • मछली पकड़ना: 
    • वाणिज्यिक उद्देश्य से मछली पकड़ने (Commercial Fishing) में कमी द्वारा तेल रिसाव की घटनाओं को रोका जा सकता है।

उपचार:

  • बायोरेमेडिएशन:
    • बायोरेमेडिएशन के ज़रिये समुद्र में फैले तेल को साफ करने के लिये बैक्टीरिया का इस्तेमाल किया जा सकता है। विशिष्ट जीवाणुओं का उपयोग हाइड्रोकार्बन जैसे विशिष्ट संदूषकों को बायोरेमेडिएट करने के लिये किया जा सकता है, जो तेल और गैसोलीन में मौजूद होते हैं।
    • पैरापरलुसीडिबाका, साइक्लोक्लास्टिकस, ओईस्पिरा, थैलासोलिटस ज़ोंंगशानिया और इसी प्रकार के अन्य बैक्टीरिया का उपयोग करने से कई प्रकार के दूषित पदार्थों को हटाने में मदद मिल सकती है।
  • कंटेनमेंट बूम्स
    • तेल के प्रसार को रोकने और इसकी रिकवरी, हटाने के लिये फ्लोटिंग बैरियर, जिन्हें ‘बूम’ के नाम से जाना जाता है, का उपयोग किया जा सकता है।
  • स्कीमर:
    • ये पानी की सतह पर मौजूद तेल को भौतिक रूप से अलग करने के लिये उपयोग किये जाने वाले उपकरण हैं।
  • सोरबेंट्स
    • विभिन्न प्रकार के सोरबेंट्स (जैसे- पुआल, ज्वालामुखी राख और पॉलिएस्टर-व्युत्पन्न प्लास्टिक की छीलन) जो पानी से तेल को अवशोषित करते हैं, का उपयोग किया जाता है।
  • डिस्पेरिंग एजेंट
    • ये ऐसे रसायन होते हैं, जिनमें तेल जैसे तरल पदार्थों को छोटी बूँदों में तोड़ने का काम करने वाले यौगिक मौजूद होते हैं। वे समुद्र में इसके प्राकृतिक फैलाव को तेज़ करते हैं।

भारत में संबंधित कानून:

  • वर्तमान में भारत में तेल रिसाव और इसके परिणामी पर्यावरणीय क्षति को कवर करने वाला कोई कानून नहीं है लेकिन ऐसी स्थितियों से निपटने हेतु भारत के पास वर्ष 1996 की राष्ट्रीय तेल रिसाव आपदा आकस्मिक योजना ( National Oil Spill Disaster Contingency Plan- NOS-DCP) है।
    • यह दस्तावेज़ रक्षा मंत्रालय द्वारा वर्ष 1996 में जारी किया गया था। इसे अंतिम बार मार्च 2006 में अपडेट किया गया।
    • यह भारतीय तटरक्षक बल को तेल रिसाव के सफाई कार्यों में सहायता के लिये  राज्य के विभागों, मंत्रालयों, बंदरगाह प्राधिकरणों और पर्यावरण एजेंसियों के साथ समन्वय करने का अधिकार देता है।
  • वर्ष 2015 में भारत ने बंकर तेल प्रदूषण क्षति, 2001 (बंकर कन्वेंशन) के लिये नागरिक दायित्व पर अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन की पुष्टि की। कन्वेंशन तेल रिसाव से होने वाले नुकसान के लिये पर्याप्त, त्वरित और प्रभावी मुआवज़ा सुनिश्चित करता है।

स्रोत: डाउन टू अर्थ 


अंतर्राष्ट्रीय संबंध

फोरम ऑफ द इलेक्शन मैनेजमेंट बॉडीज़ ऑफ साउथ एशिया (FEMBoSA)

प्रिलिम्स के लिये 

FEMBoSA की 11वीं वार्षिक बैठक, भारत निर्वाचन आयोग, कोविड-19, दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन

मेन्स के लिये

FEMBoSA का संक्षिप्त परिचय एवं इसके उद्देश्य

चर्चा में क्यों?

हाल ही में भारत निर्वाचन आयोग ने वर्ष 2021 के लिये फोरम ऑफ इलेक्शन मैनेजमेंट बॉडीज़ ऑफ साउथ एशिया (FEMBoSA) की 11वीं वार्षिक बैठक का उद्घाटन किया।

प्रमुख बिंदु

बैठक के बारे में :

  • आयोजन : बैठक की मेज़बानी भूटान के चुनाव आयोग द्वारा वर्चुअल मोड में की गई थी।
    • बैठक में शामिल राष्ट्र : भारत सहित अफगानिस्तान, बांग्लादेश, भूटान, मालदीव, नेपाल और श्रीलंका के प्रतिनिधिमंडल ने इस बैठक में भाग लिया।
  • अध्यक्षता: भारत के चुनाव आयोग ने 2021-22 के लिये भूटान के चुनाव आयोग को फोरम ऑफ इलेक्शन मैनेजमेंट बॉडीज़ ऑफ साउथ एशिया (FEMBoSA) की ज़िम्मेदारी सौंपी।
    • भारत का चुनाव आयोग इस फोरम का वर्तमान अध्यक्ष है।
  • थिम्पू संकल्प : वर्तमान महामारी की स्थिति के दौरान अध्यक्ष के कार्यकाल को दो साल तक बढ़ाने के लिये FEMBoSA सदस्यों द्वारा सर्वसम्मति से एक प्रस्ताव अपनाया गया था।
    • इससे पूर्व अध्यक्ष का कार्यकाल एक वर्ष का था।
  • बैठक का विषय (थीम) : 'चुनावों में प्रौद्योगिकी का उपयोग'।
  • चुनाव का डिजिटलीकरण: उन्नत तकनीकी का चुनाव प्रबंधन पर अधिक प्रभाव पड़ता है।
    • चुनावों को अधिक सहभागी, सुलभ और पारदर्शी बनाने के लिये प्रौद्योगिकी का व्यापक रूप से उपयोग किया जाता है।
    • यह कोविड-19 महामारी के दौरान और अधिक महत्त्वपूर्ण हो गया है क्योंकि यह एक-दूसरे व्यक्ति के संपर्क को कम करने में मदद कर रहा है।

FEMBoSA के बारे में :

  • स्थापना :
    • फोरम की स्थापना वर्ष 2012 में दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन (SAARC) देशों के चुनाव प्रबंधन निकायों (EMB) के प्रमुखों के तीसरे सम्मेलन में की गई थी।
      • सार्क में आठ सदस्य देश शामिल हैं:  अफगानिस्तान, बांग्लादेश, भूटान, भारत, मालदीव, नेपाल, पाकिस्तान और श्रीलंका।
  • लक्ष्य:
    • फोरम का लक्ष्य सार्क के चुनाव प्रबंधन निकायों (EMB) के सामान्य हितों के संबंध में आपसी सहयोग को बढ़ाना है। 
  • उद्देश्य:
    • सार्क देशों के चुनाव प्रबंधन निकायों के बीच संपर्क को बढ़ावा देना।
    • एक-दूसरे से सीखने की दृष्टि से अनुभव साझा करना।
    • स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव कराने की दिशा में चुनाव प्रबंधन निकायों की क्षमताओं को बढ़ाने में एक-दूसरे का सहयोग करना। 
  • महत्त्व :
    • FEMBoSA लोकतांत्रिक विश्व के एक बहुत बड़े हिस्से का प्रतिनिधित्व करता है और यह चुनाव प्रबंधन निकायों का एक सक्रिय क्षेत्रीय सहयोग संघ है।
    • सुनहरे मोतियों वाला इसका लोगो पारदर्शिता, निष्पक्षता, लोकतंत्र और सहयोग के शाश्वत मूल्यों का प्रतीक है।

भारत निर्वाचन आयोग (ECI)

  • ECI भारत में संघ और राज्य चुनाव प्रक्रियाओं के संचालन के लिये ज़िम्मेदार एक स्वायत्त संवैधानिक निकाय है।
  • यह देश में लोकसभा, राज्यसभा, राज्य विधानसभाओं, राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति के चुनाव का संचालन करता है।
  • निर्वाचन आयोग की स्थापना 25 जनवरी, 1950 को संविधान के अनुसार की गई थी।

संवैधानिक प्रावधान:

  • भारतीय संविधान का भाग XV चुनावों से संबंधित है और इन मामलों के लिये एक आयोग की स्थापना करता है।
  • संविधान के अनुच्छेद 324 से 329 तक चुनाव आयोग और सदस्यों की शक्तियों, कार्य, कार्यकाल, पात्रता आदि से संबंधित हैं।
    • अनुच्छेद 324 चुनावों के पर्यवेक्षण, निर्देशन और नियंत्रण के लिये चुनाव आयोग की नियुक्ति का प्रावधान करता है।

संरचना:

  • मूल रूप से आयोग में केवल एक निर्वाचन आयुक्त था लेकिन चुनाव आयुक्त संशोधन अधिनियम 1989 के बाद इसे एक बहु-सदस्यीय निकाय बना दिया गया है।
  • आयोग में वर्तमान में एक मुख्य निर्वाचन आयुक्त (CEC) और दो निर्वाचन आयुक्त (EC) हैं।
  • निर्वाचन आयोग का सचिवालय नई दिल्ली में स्थित है।

स्रोत: पीआईबी


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