डेली न्यूज़ (13 Jun, 2023)



राज्य विधानमंडल में राज्यपाल की भूमिका

प्रिलिम्स के लिये:

राज्यपाल, अनुच्छेद 153, पुंछी आयोग, न्यायिक समीक्षा, अध्यक्ष, सर्वोच्च न्यायालय, नबाम रेबिया और बामंग फेलिक्स बनाम डिप्टी स्पीकर केस, पुरुषोत्तम नंबुदिरी बनाम केरल राज्य

मेन्स के लिये:

राज्यपाल से संबंधित संवैधानिक प्रावधान, सर्वोच्च न्यायालय का रुख और राज्यपाल की विधेयकों पर अनुमति रोकने की शक्ति के संबंध में आयोगों की सिफारिशें

चर्चा में क्यों?  

हाल ही में भारत के कई राज्यों में विधेयकों के पारित होने के संबंध में मुख्यमंत्रियों और राज्यपालों के बीच बातचीत को लेकर मुद्दे सामने आए हैं। मुख्यमंत्रियों ने चिंता व्यक्त की है कि राज्यपालों ने उनकी सहमति के लिये प्रस्तुत विधेयकों पर कार्रवाई करने में देरी की है।

  • यह स्थिति लोकतंत्र के कामकाज़ और विधायी प्रक्रिया में बाधा डालने के संभावित परिणामों के बारे में महत्त्वपूर्ण प्रश्न उठाती है।

राज्यपाल से संबंधित संवैधानिक प्रावधान:

  • भारतीय संविधान के अनुच्छेद 153 के तहत प्रत्येक राज्य के लिये एक राज्यपाल का प्रावधान किया गया है। एक व्यक्ति को दो या दो से अधिक राज्यों के राज्यपाल के रूप में नियुक्त किया जा सकता है।
    • राज्यपाल को राष्ट्रपति द्वारा अपने हस्ताक्षर एवं मुहर सहित अधिपत्र द्वारा नियुक्त किया जाता है और वह राष्ट्रपति के प्रसादपर्यंत पद धारण करता है (अनुच्छेद 155 और 156)
  • अनुच्छेद 161 में कहा गया है कि राज्यपाल के पास क्षमा आदि की और कुछ मामलों में दंडादेश के निलंबन, परिहार या लघुकरण की शक्ति है।
    • सर्वोच्च न्यायालय द्वारा यह निर्णय दिया गया था कि किसी बंदी को क्षमा करने की राज्यपाल की संप्रभु शक्ति वास्तव में स्वयं उपयोग किये जाने के बजाय राज्य सरकार के साथ आम सहमति से प्रयोग की जाती है।
    • सरकार की सलाह राज्य प्रमुख (राज्यपाल) पर बाध्यकारी है।
  • कुछ विवेकाधीन शक्तियों के अतिरिक्त राज्यपाल को उसके अन्य सभी कार्यों में सहायता करने और सलाह देने के लिये मुख्यमंत्री की अध्यक्षता में एक मंत्रिपरिषद का गठन किये जाने का प्रावधान है। (अनुच्छेद 163)
    • विवेकाधीन शक्तियों में शामिल हैं:
  • अनुच्छेद 200: 
    • भारतीय संविधान का अनुच्छेद 200 किसी राज्य की विधानसभा द्वारा पारित विधेयक को सहमति के लिये राज्यपाल के समक्ष प्रस्तुत करने की प्रक्रिया को रेखांकित करता है, जो या तो सहमति दे सकता है, सहमति को रोक सकता है या राष्ट्रपति के विचार के लिये विधेयक को आरक्षित कर सकता है।
    • राज्यपाल सदन या सदनों द्वारा पुनर्विचार का अनुरोध करने वाले संदेश के साथ विधेयक को वापस भी कर सकता है।
      • पुरुषोत्तम नंबुदिरी बनाम केरल राज्य के मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने निर्णय सुनाया कि राज्यपाल की सहमति के लिये लंबित विधेयक सदन के भंग होने पर व्यपगत नहीं होता है।
        • न्यायालय ने अनुच्छेद 200 और 201 में समय-सीमा की अनुपस्थिति से यह निष्कर्ष निकाला कि निर्माताओं का इरादा राज्यपाल की सहमति की प्रतीक्षा करने वाले बिलों के समाप्त होने का जोखिम नहीं था।
    • अनुच्छेद 200 का दूसरा प्रावधान राज्यपाल को किसी विधेयक को राष्ट्रपति को संदर्भित करने का विवेकाधिकार देता है यदि वह मानता है कि इसके पारित होने से उच्च न्यायालय की शक्तियों का उल्लंघन होगा। राष्ट्रपति की सहमति की प्रक्रिया अनुच्छेद 201 में उल्लिखित है।
      • शमशेर सिंह मामले में न्यायालय ने माना कि राष्ट्रपति के विचारार्थ विधेयकों को आरक्षित रखने की राज्यपाल की शक्ति विवेकाधीन प्राधिकार का एक उदाहरण है।  
  • अनुच्छेद 201: 
    • इसमें कहा गया है कि जब कोई विधेयक राष्ट्रपति के विचार के लिये आरक्षित होता है, तो राष्ट्रपति विधेयक पर सहमति दे सकता है या उस पर रोक लगा सकता है।
    • राष्ट्रपति राज्यपाल को विधेयक पर पुनर्विचार के लिये सदन या राज्य के विधानमंडल के सदनों को वापस करने का निर्देश भी दे सकता है।
  • अनुच्छेद 361: 
    • संविधान के अनुच्छेद 361 के तहत राज्यपाल को अपनी शक्तियों द्वारा किये गए किसी भी कार्य हेतु न्यायालयी कार्यवाही से पूर्ण छूट प्राप्त है। 

भारत में विधेयकों पर राज्यपाल द्वारा अनुमति रोके जाने के हाल के उदाहरण:  

  • अप्रैल 2020 में छत्तीसगढ़ के राज्यपाल ने वर्ष 2019 में राज्य विधानसभा द्वारा पारित एक विधेयक पर सहमति रोक दी, जिसमें छत्तीसगढ़ लोकायुक्त अधिनियम, 2001 की धारा 8(5) में संशोधन करने की मांग की गई थी।
  • सितंबर 2021 में तमिलनाडु विधानसभा ने एक प्रस्ताव पारित किया जिसमें केंद्र सरकार और राष्ट्रपति से आग्रह किया गया है कि सदन में लाए गए विधेयकों पर राज्यपाल की सहमति के लिये एक समय-सीमा निर्धारित की जाए। तमिलनाडु के राज्यपाल ने राष्ट्रीय पात्रता सह प्रवेश परीक्षा (NEET) से छूट वाले विधेयक को काफी विलंब के बाद राष्ट्रपति को भेजा।
  • फरवरी 2023 में केरल में राज्यपाल द्वारा लोकायुक्त संशोधन विधेयक और केरल विश्वविद्यालय संशोधन विधेयक को स्वीकृति नहीं देने की सार्वजनिक रूप से की गई घोषणा की वजह से अजीब स्थिति उत्पन्न हो गई है।
  • राज्यपाल ने इन विधेयकों की संवैधानिकता और वैधता पर आपत्ति जताई है।

विधेयकों पर अनुमति रोकने की राज्यपाल की शक्ति के संबंध में सर्वोच्च न्यायालय का पक्ष और आयोगों की सिफारिशें:

  • सर्वोच्च न्यायालय का पक्ष: नबाम रेबिया और बामंग फेलिक्स बनाम उपाध्यक्ष मामले में सर्वोच्च न्यायालय के फैसले ने स्पष्ट किया कि अनुच्छेद 200 के तहत राज्यपाल का विवेकाधिकार यह तय करने तक सीमित है कि किसी विधेयक को राष्ट्रपति के विचार हेतु आरक्षित किया जाना चाहिये या नहीं।
    • न्यायालय ने यह भी रेखांकित किया कि अनुच्छेद 163(2) को अनुच्छेद 163(1) के साथ पढ़ा जाना चाहिये, यह सुझाव देते हुए कि केवल ऐसे मामले जो स्पष्ट रूप से राज्यपाल को स्वायत्तता से कार्य करने की अनुमति देते हैं, न्यायिक चुनौती के दायरे से बाहर हैं।
    • इसलिये अनिश्चित काल हेतु विधेयक पर सहमति रोकना असंवैधानिक है और इस संबंध में राज्यपाल की कार्रवाई या निष्क्रियता न्यायिक समीक्षा के अधीन हो सकती है।
  • पुंछी आयोग (2010): इस आयोग ने यह सुझाव दिया कि एक ऐसी समय-सीमा का निर्धारण किया जाना आवश्यक है जिसके भीतर राज्यपाल विधेयक के संबंध में सहमति जताने अथवा इसे राष्ट्रपति के विचारार्थ आरक्षित रखने का निर्णय ले सके।
  • राष्ट्रीय संविधान कार्यकरण समीक्षा आयोग (National Commission to Review the Working of the Constitution- NCRWC): इस आयोग ने चार महीने की एक समय-सीमा निर्धारित की जिसके भीतर राज्यपाल को निर्णय ले लेना चाहिये कि विधेयक को अनुमति देनी है या इसे राष्ट्रपति के विचार के लिये आरक्षित रखना है
    • जैसा कि अनुच्छेद 200 में वर्णित है, इसने संविधान में निर्दिष्ट मामलों को छोड़कर, विधेयक के एक भाग के प्रति सहमति को विचारार्थ रखने और राष्ट्रपति के विचार के लिये किसी विधेयक को आरक्षित करने की राज्यपाल की शक्ति को खत्म करने का भी सुझाव दिया था

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, पिछले वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. निम्नलिखित में से कौन-सी किसी राज्य के राज्यपाल को दी गईं विवेकाधीन शक्तियाँ हैं?(2014) 

  1. भारत के राष्ट्रपति को राष्ट्रपति शासन अधिरोपित करने के लिये रिपोर्ट भेजना
  2. मंत्रियों की नियुक्ति करना
  3. राज्य विधानमंडल द्वारा पारित कतिपय विधेयकों को भारत के राष्ट्रपति के विचार के लिये आरक्षित करना
  4. राज्य सरकार के कार्य संचालन के लिये नियम बनाना

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 1 और 3
(c) केवल 2, 3 और 4
(d) 1, 2, 3 और 4

उत्तर: (b)


मेन्स:

प्रश्न. क्या उच्चतम न्यायालय का निर्णय (जुलाई 2018) दिल्ली के उपराज्यपाल और निर्वाचित सरकार के बीच राजनीतिक कशमकश को निपटा सकता है? परीक्षण कीजिये। (2018) 

प्रश्न. राज्यपाल द्वारा विधायी शक्तियों के प्रयोग की आवश्यक शर्तों का विवेचन कीजिये। विधायिका के समक्ष रखे बिना राज्यपाल द्वारा अध्यादेशों के पुन: प्रख्यापन की वैधता की विवेचना कीजिये।(2022) 

स्रोत: द हिंदू


UCB हेतु RBI का विनियमन

प्रिलिम्स के लिये:

शहरी सहकारी बैंक (UCB), भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI),  प्राथमिकता प्राप्त क्षेत्र ऋण (PSL), सहकारिता मंत्रालय, बहु-राज्य सहकारी समिति अधिनियम, 2002, बैंकिंग विनियम अधिनियम, 1949, बैंकिंग कानून (सहकारी समिति) अधिनियम, 1955, पर्यवेक्षी कार्रवाई ढाँचा (SAF)

मेन्स के लिये:

भारत में सहकारी बैंकों द्वारा सामना किये जाने वाले मुद्दे, PSB की तर्ज पर UCB का पुनरुद्धार, कृषि में सहकारी संस्कृति को बढ़ावा देने हेतु सहकारी बैंकों की आवश्यकता

चर्चा में क्यों?

भारतीय रिज़र्व बैंक ने 1,514 शहरी सहकारी बैंकों को सुदृढ़ करने हेतु चार प्रमुख उपायों को अधिसूचित किया है, जिसमें उन्हें प्राथमिकता प्राप्त क्षेत्र के ऋण लक्ष्यों को पूरा करने के लिये दो वर्ष का और समय देना शामिल है। 

RBI द्वारा किये गए प्रमुख उपाय: 

  • चार प्रमुख उपाय: 
    • UCB को पिछले वित्तीय वर्ष में शाखाओं की कुल संख्या के 10% (अधिकतम 5 शाखाओं) तक RBI  की पूर्व अनुमति के बिना नई शाखाएँ खोलने की अनुमति देना।
    • शहरी सहकारी बैंकों को वाणिज्यिक बैंकों के समान एकमुश्त निपटान करने की अनुमति प्रदान करना।
    • 31 मार्च, 2026 तक प्राथमिकता प्राप्त क्षेत्र ऋण (Priority Sector Lending- PSL) लक्ष्यों को प्राप्त करने हेतु UCB के लिये समय-सीमा का विस्तार करना।
      • वित्त वर्ष 2022-23 के दौरान PSL की कमी को पूरा करने के बाद अतिरिक्त जमा, यदि कोई हो, को भी UCB को वापस कर दिया जाएगा।
    • RBI और सहकारी क्षेत्र के बीच बेहतर समन्वय एवं आवश्यक संवाद की सुविधा के लिये एक नोडल अधिकारी की नियुक्ति।
  • संभावित प्रभाव: 
    • ये पहलें PSL लक्ष्यों को प्राप्त करने में कठिनाइयों का सामना कर रहे शहरी सहकारी बैंकों को और मज़बूती प्रदान करेंगी।
    • सहकारिता मंत्रालय सहकारी समितियों को मज़बूत करने और उन्हें अन्य आर्थिक संस्थाओं के समान दर्जा प्रदान करने के लिये प्रतिबद्ध है।

भारत में सहकारी बैंक:

  • यह साधारण बैंकिंग व्यवसाय से निपटने के लिये सहकारी आधार पर स्थापित एक संस्था है। एक सहकारी बैंक शुरू करने के लिये जमा और ऋण के साथ-साथ शेयरों की बिक्री के माध्यम से धन जुटाया जाता है।
  • ये सहकारी ऋण समितियाँ हैं जिनमें समुदाय के सदस्य एक-दूसरे को अनुकूल शर्तों पर ऋण प्रदान करते हैं। 
  • वे संबंधित राज्य के सहकारी समिति अधिनियम या बहु-राज्य सहकारी समिति (MSCS) अधिनियम, 2002 के तहत पंजीकृत होती हैं।
  • सहकारी बैंकों को निम्नलिखित द्वारा प्रशासित किया जाता है: 
  • मोटे तौर पर इन्हें शहरी और ग्रामीण सहकारी बैंकों के रूप में विभाजित किया गया है। 

शहरी सहकारी बैंक (Urban Cooperative banks- UCB): 

  • शहरी सहकारी बैंक (UCB) पद को औपचारिक रूप से परिभाषित नहीं किया गया है, परंतु इससे तात्पर्य शहरी और अर्द्ध-शहरी क्षेत्रों में स्थित प्राथमिक सहकारी बैंकों से है।
  • शहरी सहकारी बैंक (UCBs), प्राथमिक कृषि ऋण समितियाँ (PACS), क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक (RRBs) और स्थानीय क्षेत्र के बैंकों (LABs) को अलग-अलग बैंकों के रूप में माना जा सकता है क्योंकि वे स्थानीय क्षेत्रों में काम करते हैं।
  • वर्ष 1996 तक इन बैंकों को केवल गैर-कृषि उद्देश्यों के लिये धन उधार देने की अनुमति थी। यह भेद वर्तमान में नहीं है।
  • ये बैंक परंपरागत रूप से समुदायों और स्थानीय कार्यसमूहों पर केंद्रित थे क्योंकि वे अनिवार्य रूप से छोटे उधारकर्त्ताओं और व्यवसायों को उधार देते थे। वर्तमान में उनके संचालन का दायरा काफी विस्तृत हो गया है।

हाल के विकास:

  • जनवरी 2020 में RBI ने UCBs के लिये पर्यवेक्षी एक्शन फ्रेमवर्क (SAF) को संशोधित किया।
  • जून 2020 में केंद्र सरकार ने सभी शहरी और बहु-राज्य सहकारी बैंकों को RBI की प्रत्यक्ष निगरानी में लाने के लिये एक अध्यादेश को मंज़ूरी दी।
  • वर्ष 2022 में RBI ने UCBs के वर्गीकरण के लिये 4 स्तरीय नियामक ढाँचे की घोषणा की है।
    • टियर 1: सभी यूनिट शहरी सहकारी बैंक और आय अर्जक शहरी सहकारी बैंक (जमा आकार के बावजूद) तथा अन्य सभी यूसीबी जिनके पास 100 करोड़ रुपए तक जमा हैं।
    • टियर 2: 100 करोड़ रुपए से 1,000 करोड़ रुपए के बीच जमा राशि वाले यूसीबी।
    • टियर 3: 1,000 करोड़ रुपए से 10,000 करोड़ रुपए के बीच जमा राशि वाले यूसीबी।
    • टियर 4: 10,000 करोड़ रुपए से अधिक की जमा राशि वाले यूसीबी।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. भारत में 'शहरी सहकारी बैंकों' के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2021)

  1. राज्य सरकारों द्वारा स्थापित स्थानीय मंडलों द्वारा उनका पर्यवेक्षण और विनियमन किया जाता है।
  2. वे इक्विटी शेयर और अधिमान शेयर जारी कर सकते हैं।
  3. उन्हें वर्ष 1966 में एक संशोधन के द्वारा बैंककारी विनियमन अधिनियम, 1949 के कार्य क्षेत्र में लाया गया था।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? 

(a) केवल 1  
(b) केवल 2 और 3  
(c) केवल 1 और 3  
(d) 1, 2 और 3  

उत्तर: (b) 


मेन्स: 

प्रश्न. हाल के वर्षों में सहकारी परिसंघवाद की संकल्पना पर अधिकाधिक बल दिया जाता रहा है। विद्यमान संरचना में असुविधाओं और सहकारी परिसंघवाद किस सीमा तक इन सुविधाओं का हल निकाल लेगा, इस पर प्रकाश डालिये। (2015) 

प्रश्न. "गाँवों में सहकारी समिति को छोड़कर, ऋण संगठन का कोई भी अन्य ढाँचा उपयुक्त नहीं होगा।" -अखिल भारतीय ग्रामीण ऋण सर्वेक्षण। भारत में कृषि वित्त की पृष्ठभूमि में इस कथन की चर्चा कीजिये। कृषि वित्त प्रदान करने वाली वित्तीय संस्थाओं को किन बाध्यताओं और कसौटियों का सामना करना पड़ता है? ग्रामीण सेवार्थियों तक बेहतर पहुँच और सेवा के लिये प्रौद्योगिकी का किस प्रकार इस्तेमाल किया जा सकता है? (2014) 

स्रोत: बिज़नेस स्टैण्डर्ड


कर अंतरण

प्रिलिम्स के लिये:

कर हस्तांतरण, वित्त आयोग, अनुच्छेद 280(3)(a), मिलियन-प्लस सिटीज़ चैलेंज फंड, राजकोषीय संघवाद

मेन्स के लिये:

कर अंतरण, इसका महत्त्व और इसके संवैधानिक आदेश

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में केंद्र सरकार ने जून 2023 में राज्य सरकारों को कर अंतरण (Tax Devolution) की तीसरी किस्त के रूप में 1,18,280 करोड़ रुपए जारी किये, जबकि सामान्य मासिक अंतरण 59,140 करोड़ रुपए है।

  • यह राज्यों को पूंजीगत व्यय में तेज़ी लाने, उनके विकास/कल्याण संबंधी व्यय को वित्तपोषित करने और प्राथमिकता वाली परियोजनाओं/योजनाओं के लिये संसाधन उपलब्ध कराने में सक्षम बनाएगा।
  • उत्तर प्रदेश को सबसे अधिक (21,218 करोड़) रुपए प्राप्त हुए, उसके बाद बिहार (11,897 करोड़ रुपए), मध्य प्रदेश, पश्चिम बंगाल और राजस्थान का स्थान रहा।

कर अंतरण: 

  • परिचय: 
    • कर अंतरण केंद्र सरकार और राज्य सरकारों के बीच कर राजस्व के वितरण को संदर्भित करता है। यह संघ तथा राज्यों के बीच उचित एवं न्यायसंगत तरीके से कुछ करों की आय को आवंटित करने के लिये स्थापित एक संवैधानिक तंत्र है।
    • भारत के संविधान के अनुच्छेद 280(3)(a) में कहा गया है कि वित्त आयोग (FC) की ज़िम्मेदारी संघ और राज्यों के बीच करों की शुद्ध आय के विभाजन के संबंध में सिफारिशें करना है।
  • 15वें वित्त आयोग की प्रमुख सिफारिशें: 
    • केंद्रीय करों में राज्यों का हिस्सा (ऊर्ध्वाधर अंतरण):
      • वर्ष 2021-26 की अवधि के लिये केंद्रीय करों में राज्यों की हिस्सेदारी 41% करने की सिफारिश की गई है, जो कि वर्ष 2020-21 के बराबर है। 
        • यह वर्ष 2015-20 की अवधि के लिये 14वें वित्त आयोग द्वारा अनुशंसित 42% हिस्सेदारी से कम है। 
        • केंद्र के संसाधनों से नवगठित केंद्रशासित प्रदेशों जम्मू-कश्मीर और लद्दाख के लिये 1% का समायोजन प्रदान करना है।
    • क्षैतिज विचलन (राज्यों के बीच आवंटन): 
      • क्षैतिज विचलन हेतु इसने जनसांख्यिकीय प्रदर्शन के लिये 12.5%, आय के लिये 45%, जनसंख्या तथा क्षेत्र दोनों के लिये 15%, वन एवं पारिस्थितिकी के लिये 10% और कर एवं वित्तीय प्रयासों के लिये 2.5% के अधिभार का सुझाव दिया है।
    • राज्यों को राजस्व घाटा अनुदान: 
      • राजस्व घाटे को राजस्व या वर्तमान व्यय और राजस्व प्राप्तियों के बीच अंतर के रूप में परिभाषित किया जाता है, जिसमें कर एवं गैर-कर शामिल हैं।
      • इसने वित्त वर्ष 2026 को समाप्त पाँच साल की अवधि में लगभग 3 ट्रिलियन रुपए के हस्तांतरण के बाद राजस्व घाटे के अनुदान की सिफारिश की है। 
    • प्रदर्शन आधारित प्रोत्साहन और राज्यों को अनुदान: ये अनुदान चार मुख्य विषयों के इर्द-गिर्द घूमते हैं।
      • पहला, सामाजिक क्षेत्र है, जहाँ इसने स्वास्थ्य और शिक्षा पर ध्यान केंद्रित किया है।
      • दूसरा, ग्रामीण अर्थव्यवस्था है, जहाँ इसने कृषि और ग्रामीण सड़कों के रखरखाव पर ध्यान केंद्रित किया है।
        • ग्रामीण अर्थव्यवस्था देश में एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है क्योंकि इसमें देश की दो-तिहाई आबादी, कुल कार्यबल का 70% और राष्ट्रीय आय का 46% योगदान शामिल है।
      • तीसरा, शासन और प्रशासनिक सुधार जिसके तहत इसने न्यायपालिका, सांख्यिकी और आकांक्षी ज़िलों एवं ब्लॉकों के लिये अनुदान की सिफारिश की है।
      • चौथा, इसने विद्युत क्षेत्र के लिये एक प्रदर्शन-आधारित प्रोत्साहन प्रणाली विकसित की है जो अनुदान से संबंधित नहीं है लेकिन राज्यों के लिये एक महत्त्वपूर्ण, अतिरिक्त ऋण सीमा प्रदान करती है।
    • स्थानीय सरकारों को अनुदान: 
      • नगरपालिका सेवाओं और स्थानीय सरकारी निकायों के लिये अनुदान के साथ इसमें नए शहरों के ऊष्मायन और स्थानीय सरकारों को स्वास्थ्य अनुदान के लिये प्रदर्शन-आधारित अनुदान शामिल हैं।
      • शहरी स्थानीय निकायों हेतु अनुदान में मूल अनुदान केवल दस लाख से कम आबादी वाले शहरों/कस्बों के लिये प्रस्तावित हैं। मिलियन-प्लस शहरों हेतु 100% अनुदान मिलियन-प्लस सिटीज़ चैलेंज फंड (MCF) के माध्यम से प्रदर्शन से जुड़े हैं।
        • MCF राशि इन शहरों की वायु गुणवत्ता में सुधार और शहरी पेयजल आपूर्ति, स्वच्छता एवं ठोस अपशिष्ट प्रबंधन हेतु सेवा स्तर के बेंचमार्क को पूरा करने के प्रदर्शन से संबंधित है।

राजकोषीय संघवाद को बनाए रखने में वित्त आयोग की भूमिका: 

  • कर आय का वितरण:  
    • वित्त आयोग केंद्र सरकार और राज्य सरकारों के बीच करों की शुद्ध आय के वितरण की सिफारिश करता है।
    • यह राजकोषीय क्षमताओं और राज्यों की ज़रूरतों को ध्यान में रखते हुए कर राजस्व का उचित एवं समान बँटवारा सुनिश्चित करता है।
  • राज्यों के बीच करों का आवंटन:  
    • वित्त आयोग वित्तीय मदद की आवश्यकता वाले राज्यों को सहायता अनुदान के सिद्धांतों और मात्रा का निर्धारण करता है।
    • यह राज्यों की वित्तीय ज़रूरतों का आकलन करता है और राज्यों के समेकित कोष से धन आवंटित करने के उपायों की सिफारिश करता है।
  • स्थानीय सरकारों के संसाधनों में वृद्धि:  
    • वित्त आयोग राज्य में पंचायतों और नगर पालिकाओं के संसाधनों के पूरक हेतु राज्य के समेकित कोष को बढ़ाने के उपाय सुझाता है।
  • सहकारी संघवाद:  
    • वित्त आयोग सरकार के सभी स्तरों के साथ व्यापक परामर्श करके सहकारी संघवाद के विचार को बढ़ावा देता है।
    • यह आँकड़े एकत्रण और निर्णय लेने में भागीदारी दृष्टिकोण सुनिश्चित करने हेतु केंद्र सरकार, राज्य सरकारों एवं अन्य हितधारकों के साथ परामर्श में शामिल है।
  • सार्वजनिक व्यय और राजकोषीय स्थिरता:  
    • वित्त आयोग की सिफारिशों का उद्देश्य सार्वजनिक व्यय की गुणवत्ता में सुधार करना और राजकोषीय स्थिरता को बढ़ावा देना है।
    • संघ और राज्य सरकारों की वित्तीय स्थिति का मूल्यांकन करके यह आयोग राजकोषीय प्रबंधन, संसाधन आवंटन और व्यय प्राथमिकताओं हेतु मार्गदर्शन प्रदान करता है। 

पंद्रहवाँ वित्त आयोग 

  • वित्त आयोग, एक संवैधानिक निकाय है, यह संविधान के प्रावधानों और वर्तमान मांगों के अनुसार राज्यों के बीच एवं संघीय सरकार तथा राज्यों के बीच कर राजस्व के वितरण हेतु विधि और सूत्रों का निर्धारण करता है।
  • संविधान के अनुच्छेद 280 के तहत भारत के राष्ट्रपति द्वारा पाँच वर्ष अथवा उससे पहले के अंतराल पर एक वित्त आयोग का गठन किया जाना आवश्यक है।
  • एन.के. सिंह की अध्यक्षता में नवंबर 2017 में भारत के राष्ट्रपति द्वारा 15वें वित्त आयोग का गठन किया गया था।
  • इसकी सिफारिशें वर्ष 2021-22 से 2025-26 तक पाँच वर्ष की अवधि को कवर करेंगी। 

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रश्न. निम्नलिखित पर विचार कीजिये: (2023) 

  1. जनांकिकीय निष्पादन
  2. वन और पारिस्थितिकी
  3. शासन सुधार
  4. स्थिर सरकार
  5. कर एवं राजकोषीय प्रयास

समस्तर कर-अवक्रमण के लिये पंद्रहवें वित्त आयोग ने उपर्युक्त में से कितने को जनसंख्या क्षेत्रफल और आय के अंतर के अलावा निकष के रूप में प्रयुक्त किया?  

(a) केवल दो
(b) केवल तीन 
(c) केवल चार
(d) पाँचों 

उत्तर: (b) 

स्रोत: द हिंदू


न्यूरोटेक्नोलॉजी और नैतिकता

प्रिलिम्स के लिये:

संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक और सांस्कृतिक संगठन, न्यूरोटेक्नोलॉजी, डीप ब्रेन स्टिमुलेशन, सतत् विकास, पार्किंसंस रोग  

मेन्स के लिये:

न्यूरोटेक्नोलॉजी से संबंधित नैतिक चिंताएँ

चर्चा में क्यों?  

संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक और सांस्कृतिक संगठन (यूनेस्को) मस्तिष्क-तरंग डेटा एकत्र करने वाले न्यूरोटेक उपकरणों के नैतिक प्रभावों को संबोधित करने के लिये पेरिस, फ्राँस में एक अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन आयोजित कर रहा है।

  • इस सम्मेलन का उद्देश्य विचार की व्यक्तिगत स्वतंत्रता, गोपनीयता और मानवाधिकारों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिये एक वैश्विक नैतिक ढाँचा स्थापित करना है।
  • न्यूरोटेक्नोलॉजी की बढ़ती क्षमता के साथ न्यूरोलॉजिकल समस्याओं को दूर करने के लिये व्यक्तिगत पहचान और गोपनीयता पर इसके प्रभाव के बारे में चिंताएँ जाहिर की गई हैं।

न्यूरोटेक्नोलॉजी:  

  • न्यूरोटेक्नोलॉजी को विधियों और उपकरणों के संयोजन के रूप में परिभाषित किया गया है जो तंत्रिका तंत्र के साथ तकनीकी घटकों के सीधे संबंध को सक्षम बनाता है। ये तकनीकी घटक इलेक्ट्रोड, कंप्यूटर या कृत्रिम बुद्धिमत्ता आधारित अंग हैं।
  • ये या तो मस्तिष्क से संकेतों को रिकॉर्ड करते हैं और उन्हें तकनीकी नियंत्रण आदेशों में "अनुवाद" करते हैं या विद्युत या ऑप्टिकल उत्तेजनाओं को लागू करके मस्तिष्क गतिविधि में हेर-फेर करते हैं।
    • इस तकनीक ने हमारे जीवन की गुणवत्ता में सुधार करने वाली बायोइलेक्ट्रॉनिक दवा से लेकर मानव चेतना की हमारी अवधारणा में क्रांति लाने वाली मस्तिष्क इमेजिंग तक अनेक चुनौतियों का सामना करने में मदद की है।
  • न्यूरोटेक्नोलॉजी मस्तिष्क को समझने, उसकी प्रक्रियाओं की कल्पना करने और यहाँ तक कि उसके कार्यों को नियंत्रित, मरम्मत या सुधारने के लिये विकसित सभी तकनीकों को शामिल करती है।

न्यूरोटेक्नोलॉजी से संबंधित नैतिक चिंताएँ:  

  • गोपनीयता के मुद्दे: न्यूरोटेक्नोलॉजी का उपयोग संभावित रूप से किसी व्यक्ति के विचारों, भावनाओं और मानसिक स्थिति के बारे में अत्यधिक व्यक्तिगत एवं संवेदनशील जानकारी प्रकट कर सकता है।
    • कृत्रिम बुद्धिमत्ता के साथ मिलकर इसकी परिणामी क्षमता मानव गरिमा, विचार की स्वतंत्रता, स्वायत्तता, (मानसिक) गोपनीयता एवं भलाई की धारणाओं हेतु आसानी से खतरा बन सकती है।
  • संज्ञानात्मक वृद्धि और असमानता: संज्ञानात्मक क्षमताओं को बढ़ाने के उद्देश्य से न्यूरोटेक्नोलोजी निष्पक्षता और समानता के बारे में चिंता उत्पन्न करती है।
    • यद्यपि ये प्रौद्योगिकियाँ केवल कुछ विशेषाधिकार प्राप्त लोगों हेतु उपलब्ध होती हैं या मौजूदा सामाजिक असमानताओं को बढ़ा देती हैं, तो यह कुछ व्यक्तियों या समूहों के लिये अनुचित लाभ का कारण बन सकती हैं, जिससे समाज में "संज्ञानात्मक विभाजन" की स्थिति उत्पन्न हो सकती है।
  • मनोवैज्ञानिक और भावनात्मक प्रभाव: मस्तिष्क गतिविधि में अवांछनीय परिवर्तन करने या उस तक पहुँचने की क्षमता व्यक्तियों पर मनोवैज्ञानिक और भावनात्मक प्रभाव के संबंध में नैतिक चिंताएँ उत्पन्न करती है।
    • उदाहरण के लिये गहरी मस्तिष्क उत्तेजना/डीप ब्रेन स्टिमुलेशन या न्यूरोफीडबैक तकनीकों के किसी व्यक्ति की मानसिक भलाई, व्यक्तिगत पहचान या स्वायत्तता पर अनपेक्षित परिणाम या दुष्प्रभाव हो सकते हैं।

डीप ब्रेन स्टिमुलेशन (DBS):

  • यह एक न्यूरोसर्जिकल प्रक्रिया है जिसमें न्यूरोस्टिमुलेटर नामक चिकित्सा उपकरण का आरोपण शामिल है, जो मस्तिष्क के विशिष्ट क्षेत्रों में विद्युत आवेगों को वितरित करता है।
    • DBS लक्षित मस्तिष्क क्षेत्रों में विद्युत संकेतों को बदलकर कार्य करता है, साथ ही तंत्रिका गतिविधि को प्रभावी ढंग से "रीसेट" या सामान्य करता है।
  • DBS का उपयोग मुख्य रूप से न्यूरोलॉजिकल स्थितियों जैसे कि पार्किंसंस रोग, आवश्यक कंपकंपी, डायस्टोनिया और मिर्गी एवं जुनूनी-बाध्यकारी विकार (Obsessive-Compulsive Disorder- OCD) के कुछ मामलों के इलाज हेतु किया जाता है।
  • पार्किंसंस रोग एक पुराना, अपक्षयी स्नायविक विकार है जो केंद्रीय तंत्रिका तंत्र को प्रभावित करता है।

न्यूरोटेक्नोलॉजी से संबंधित नैतिक चिंताओं के निराकरण के उपाय: 

  • सूचित सहमति: रोगियों में जोखिमों, लाभों और न्यूरोलॉजिकल हस्तक्षेपों के संभावित परिणामों की व्यापक समझ सुनिश्चित करना आवश्यक है।
    • स्वास्थ्य सेवा प्रदाताओं को रोगियों के साथ पारदर्शी और गहन चर्चा करनी चाहिये, उन्हें उपचार विकल्पों के बारे में सूचित निर्णय लेने हेतु आवश्यक जानकारी प्रदान करनी चाहिये।
  • नैतिक समीक्षा बोर्ड: स्वतंत्र और बहु-विषयक नैतिक समीक्षा बोर्ड स्थापित करने से न्यूरोलॉजी अनुसंधान और हस्तक्षेपों के नैतिक निहितार्थों का मूल्यांकन करने में मदद मिल सकती है।
    • इन बोर्डों में प्रस्तावित हस्तक्षेपों के संभावित लाभों, जोखिमों और नैतिक प्रभावों का आकलन करने में सक्षम स्वास्थ्य पेशेवरों, नैतिकतावादियों, कानूनी विशेषज्ञों को शामिल किया जाना चाहिये।
  • गोपनीयता बनाए रखना: रोगी की गोपनीयता की रक्षा करना न्यूरोलॉजी में सबसे प्रमुख है।
    • ब्रेन-कंप्यूटर इंटरफेस और डीप ब्रेन स्टिमुलेशन जैसी तकनीकों की प्रगति के साथ ठोस गोपनीयता प्रोटोकॉल को लागू करना तथा यह सुनिश्चित करना महत्त्वपूर्ण है कि मरीज़ों की संवेदनशील जानकारी सुरक्षित हो।
  • समतावादी भावना और पहुँच: वित्तीय बाधाओं, भौगोलिक प्रतिबंधों अथवा सामाजिक असमानताओं के कारण न्यूरोलॉजिकल उपचार और हस्तक्षेपों तक पहुँच प्रतिबंधित हो सकती है।
    • समता की भावना को बढ़ावा देने के प्रयास किये जाने चाहिये और यह सुनिश्चित करना चाहिये कि ये हस्तक्षेप उन सभी व्यक्तियों के लिये सुलभ हों जो सामाजिक-आर्थिक स्थिति की परवाह किये बिना उनसे लाभान्वित हो सकते हैं। 

यूनेस्को (UNESCO):  

  • परिचय:  
    • यूनेस्को संयुक्त राष्ट्र की एक विशेष एजेंसी है। इसका उद्देश्य शिक्षा, विज्ञान और संस्कृति में अंतर्राष्ट्रीय सहयोग के माध्यम से शांति स्थापित करना है।
      • इसका मुख्यालय पेरिस, फ्राँस में है। 
  • सदस्य:  
    • संगठन में 193 सदस्य और 12 संबद्ध सदस्य हैं।
      • यूनेस्को ने घोषणा की है कि संयुक्त राज्य अमेरिका संगठन में फिर से शामिल होने और बकाया राशि में 600 मिलियन अमेरिकी डॉलर से अधिक का निपटान करने का इरादा रखता है।
    • संयुक्त राष्ट्र की सदस्यता के साथ यूनेस्को की सदस्यता का अधिकार रखती है।
      • जो राज्य संयुक्त राष्ट्र के सदस्य नहीं हैं, उन्हें सामान्य सम्मेलन के दो-तिहाई बहुमत से कार्यकारी बोर्ड की सिफारिश पर यूनेस्को में शामिल कराया जा सकता है। 
  • उद्देश्य: 
    • सभी के लिये गुणवत्तापूर्ण शिक्षा और उन्हें उम्र भर सीखने हेतु प्रेरित करना।
    • सतत् विकास के लिये नीति एवं विज्ञान संबंधी ज्ञान का उपयोग करना।
    • उभरती सामाजिक और नैतिक चुनौतियों को संबोधित करना।
    • सांस्कृतिक विविधता, परस्पर संवाद एवं शांति की प्रवृत्ति को प्रोत्साहित करना।
    • संचार एवं सूचना के माध्यम से समावेशी ज्ञान से युक्त समाज का निर्माण करना।
    • विश्व के प्राथमिकता वाले क्षेत्रों जैसे ‘अफ्रीका’ एवं ‘लैंगिक समानतापर ध्यान केंद्रित करना।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रश्न. यूनेस्को के मैकब्राइड आयोग के लक्ष्य और उद्देश्य क्या हैं? इस पर भारत की क्या स्थिति है? (2016)

स्रोत: डाउन टू अर्थ