भारतीय विरासत और संस्कृति
भारत में मार्शल आर्ट के रूप
प्रिलिम्स के लिये:भारत में मार्शल आर्ट। मेन्स के लिये:भारतीय विरासत और संस्कृति। |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में कश्मीर में एक मौलवी ने थांग-टा, (एक मार्शल लॉ) प्रथा को बचाने के लिये कदम उठाया। थांग टा एक मार्शल आर्ट तकनीक है जो मणिपुर राज्य में अत्यधिक प्रचलित है।
भारत में विभिन्न मार्शल आर्ट रूप
थांग टा – मणिपुर:
- ह्यूएन लैंगलॉन मणिपुर की एक भारतीय मार्शल आर्ट है।
- मैतेई भाषा में, ह्यूएन का अर्थ युद्ध है जबकि लैंगलॉन या लैंगलोंग का अर्थ जाल, ज्ञान या कला होता है।
- ह्यूएन लैंगलॉन में दो मुख्य घटक होते हैं:
- थांग-टा (सशस्त्र युद्ध)
- सरित सरक (निहत्थे युद्ध)
- ह्यूएन लैंगलॉन के प्राथमिक हथियार थांग (तलवार) और टा (भाला) हैं। अन्य हथियारों में ढाल और कुल्हाड़ी शामिल हैं।
लाठी खेला - पश्चिम बंगाल:
- लाठी लड़ने के लिये तथा भारत में मार्शल आर्ट में इस्तेमाल किया जाने वाला एक प्राचीन लकड़ी का हथियार है।
- पंजाब और बंगाल राज्य में मार्शल आर्ट में लाठी या छड़ी का उपयोग किया जाता है।
- लाठी खेल में अपनी उपयोगिता के लिये विशेष रूप से भारतीय गाँवों में लोकप्रिय है।
- एक अभ्यासी को लाठियाल के रूप में जाना जाता है।
गतका – पंजाब:
- गतका एक पारंपरिक मार्शल आर्ट रूप है जो सिख गुरुओं से जुड़ा हुआ है।
- यह तलवार और लाठी लड़ने के कौशल और आत्म-नियंत्रण को आत्मसात करता है।
- माना जाता है कि गतका की उत्पत्ति तब हुई थी जब 6वें सिख गुरु हरगोबिंद ने मुगल काल के दौरान आत्मरक्षा के लिये 'कृपाण' को अपनाया था।
- दो या दो से अधिक अभ्यासियों के बीच लड़ाई की एक शैली गतका घातक शास्त्र विद्या का टोंड-डाउन संस्करण है। गतका में शास्त्री विद्या की तेज़ तलवारों की जगह लकड़ी के डंडे (सोती) और ढाल ने ले ली है।
- इसे युद्ध तकनीक माना जाता है।
- 10वें गुरु गोबिंद सिंह ने सभी को आत्मरक्षा के लिये हथियारों का इस्तेमाल करना अनिवार्य कर दिया था।
- यह पहले गुरुद्वारों, नगर कीर्तन और अखाड़ों तक ही सीमित था, लेकिन अब यह वर्ष 2008 में गतका फेडरेशन ऑफ इंडिया (GFI) के गठन के बाद खेल श्रेणी में शामिल है।
- आज इसका उपयोग आत्मरक्षा और युद्ध कौशल दिखाने के लिये किया जाता है और यह सभी धर्मों और समुदायों के लोगों के लिये खुला है।
कलारीपयट्टू - केरल
- कलारीपयट्टू मानव शरीर के प्राचीन ज्ञान पर आधारित एक मार्शल आर्ट है।
- इसकी उत्पत्ति तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व से दूसरी शताब्दी ईस्वी के दौरान केरल में हुई थी। यह अब केरल और तमिलनाडु के कुछ हिस्सों में प्रचलित है।
- जिस स्थान पर इस मार्शल आर्ट का अभ्यास किया जाता है उसे 'कलारी' कहा जाता है। यह एक मलयालम शब्द है जो एक प्रकार के व्यायामशाला को दर्शाता है। कलारी का शाब्दिक अर्थ है 'खलिहान' या 'युद्धक्षेत्र'। कलारी शब्द सबसे पहले तमिल संगम साहित्य में युद्ध के मैदान और युद्ध क्षेत्र दोनों का वर्णन करता है।
- इसे अस्तित्व में सबसे पुरानी युद्ध प्रणालियों में से एक माना जाता है।
- इसे आधुनिक कुंग-फू का जनक भी माना जाता है।
मल्लखंब- मध्य प्रदेश
- मल्लखंब एक पारंपरिक खेल है, जिसकी उत्पत्ति भारतीय उपमहाद्वीप में हुई हैै। इसमें एक जिमनास्ट एक ऊर्ध्वाधर स्थिर या लटकते लकड़ी के खंभे, बेंत या रस्सी से लटककर योग या जिमनास्टिक आसन और कुश्ती की क्रियाओं का प्रदर्शित करता है।
- मल्लखंब नाम मल्ला शब्द से उत्पन्न हुआ है, जिसका अर्थ है पहलवान और खम्ब, जिसका अर्थ है पोल। शाब्दिक अर्थ "कुश्ती पोल", यह शब्द पहलवानों द्वारा उपयोग किये जाने वाले पारंपरिक प्रशिक्षण कार्यान्वयन को संदर्भित करता है।
- मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र इस खेल के आकर्षण के केंद्र रहे हैं।
सिलंबम - तमिलनाडु:
- सिलंबम (Silambam) एक मार्शल आर्ट है जिसमे हथियारों के उपयोग की अनुमति होती है। यह तमिलनाडु में बहुत प्रसिद्ध है।
- सिलंबम में हथियारों की एक विस्तृत शृंखला का उपयोग किया जाता है।
- सिलंबम कला में सांप, बाघ और चील जैसे जानवरों की गति शामिल है। फुटवर्क्स का उपयोग इन कला रूपों की एक बहुत ही प्रमुख विशेषता है।
- भगवान मुरुगा (भगवान शिव के पुत्र, जिन्हें कार्तिकेय भी कहा जाता है) और ऋषि अगस्त्य द्वारा इस मार्शल आर्ट शैली का निर्माण किया गया।
मुष्टि युद्ध- वाराणसी:
- यह मूल रूप से लड़ने की एक निहत्थे (बिना हथियारों के) लड़ने की तकनीक है।
- मार्शल आर्ट की यह तकनीक मूल रूप से उत्तर प्रदेश के वाराणसी शहर की है।
- इस मार्शल आर्ट में हाथ, पैर, घुटने और कोहनी का प्रयोग बहुत प्रमुख है।
- मार्शल आर्ट की यह तकनीकी सिखाती है कि हथियारों और गोला-बारूद के इस्तेमाल के बिना खुद को कैसे बचाया जाए।
- मार्शल आर्ट की इस तकनीक में पूर्ण शारीरिक और मानसिक समन्वय की आवश्यकता होती है।
काठी सामू - आंध्र प्रदेश:
- काठी सामू (Kathi Samu) आंध्र प्रदेश की एक बहुत प्रसिद्ध प्राचीन मार्शल आर्ट है।
- मार्शल आर्ट की इस तकनीक में विभिन्न प्रकार की तलवारों का प्रयोग प्रचलित है।
- 'गरदी' उस स्थान को दिया गया नाम है, जहाँ काठी सामू का आयोजन किया जाता है।
- कोठी सामू में, छड़ी की लड़ाई जिसे 'वैरी' के नाम से जाना जाता है, तलवार की लड़ाई के अग्रगामी के रूप में एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
- तलवार कौशल के अन्य आवश्यक घटकों में 'गरेजा' शामिल है, जिसमें एक व्यक्ति चार तलवारें रखता है (प्रत्येक हाथ में दो)।
स्काय – कश्मीर:
- स्काय एक मार्शल आर्ट है जो कश्मीर से संबंधित है।
- यह एक तरह की तलवारबाजी है।
- सशस्त्र वर्ग द्वारा एक घुमावदार एकधारी तलवार और एक ढाल का उपयोग किया जाता है।
- सशस्त्र वर्ग प्रत्येक हाथ में एक तलवार का उपयोग कर सकता है।
- पैर, घूँसे, ताले और चॉप का प्रयोग निहत्थी तकनीक के दौरान प्रयोग किये जाते हैं।
- स्काय में विभिन्न दृष्टिकोणों का उपयोग किया जाता है। ‘सिंगल’ और ‘डबल’ तलवारों के लिये फ्रीहैंड और तलवार दोनों तकनीक का प्रयोग किया जाता है।
पाइका अखाड़ा– ओडिशा:
- पैका अखाड़ा जिसे पाइका अखाड़ा भी कहा जाता है, "योद्धा विद्वान" हेतु एक ओडिया नाम है।
- इसका उपयोग ओडिशा में एक किसान मिलिशिया प्रशिक्षण स्कूल के रूप में किसानों को सैन्य प्रशिक्षण प्रदान करने हेतु किया गया था।
- इसका उपयोग पारंपरिक शारीरिक व्यायाम को करने के लिये किया जाता है।
- इस प्रदर्शन कला में लयबद्ध हावभाव और ढोल की थाप के साथ तालमेल बिठाने वाले हथियारों का उपयोग किया जाता है।
स्रोत- पी.आई.बी
शासन व्यवस्था
क्षेत्रीय परिषद
प्रिलिम्स के लिये:क्षेत्रीय परिषदें, इसकी संरचना, उद्देश्य और कार्य। मेन्स के लिये:सहकारी संघवाद, राज्य पुनर्गठन अधिनियम 1956। |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में गृहमंत्री ने दीव में पश्चिमी क्षेत्रीय परिषद की 25वीं बैठक की अध्यक्षता की।
प्रमुख बिंदु
- ग्रामीण क्षेत्रों में बैंकिंग सेवाओं में सुधार।
- महिलाओं और बच्चों के खिलाफ बलात्कार और यौन अपराधों के मामलों की निगरानी तथा निराकरण के लिये फास्ट ट्रैक कोर्ट का कार्यान्वयन।
- गहरे समुद्रों में समुद्री मछुआरों की पहचान का सत्यापन।
- गहरे समुद्रों में बड़े पैमाने पर बचाव अभियान के लिये तटीय राज्यों द्वारा स्थानीय आपातकालीन योजना का विकास और सार्वजनिक खरीद में वरीयता के माध्यम से मेक इन इंडिया पहल को प्रोत्साहित करना।
- सीमा, सुरक्षा, बुनियादी ढांँचा परिवहन और पश्चिमी राज्यों एवं उद्योगों से संबंधित विभिन्न मुद्दे।
क्षेत्रीय परिषद
- परिचय:
- क्षेत्रीय परिषदें वैधानिक (संवैधानिक नहीं) निकाय हैं।
- ये संसद के एक अधिनियम, यानी राज्य पुनर्गठन अधिनियम 1956 द्वारा स्थापित किये गए हैं।
- इस अधिनियम ने देश को पाँच क्षेत्रों- उत्तरी, मध्य, पूर्वी, पश्चिमी और दक्षिणी में विभाजित किया तथा प्रत्येक क्षेत्र के लिये एक क्षेत्रीय परिषद प्रदान की।
- इन क्षेत्रों का निर्माण करते समय कई कारकों को ध्यान में रखा गया है जिनमें शामिल हैं:
- देश का प्राकृतिक विभाजन,
- नदी प्रणाली और संचार के साधन,
- सांँस्कृतिक व भाषायी संबंध
- आर्थिक विकास, सुरक्षा एवं कानून व्यवस्था की आवश्यकता।
- उपर्युक्त क्षेत्रीय परिषदों के अलावा, संसद के एक अलग अधिनियम वर्ष 1971 के उत्तर-पूर्वी परिषद अधिनियम द्वारा एक उत्तर-पूर्वी परिषद बनाई गई थी।
- इसके सदस्यों में असम, मणिपुर, मिजोरम, अरुणाचल प्रदेश, नागालैंड, मेघालय, त्रिपुरा और सिक्किम शामिल हैं।
- ये सलाहकार निकाय हैं जो केंद्र और राज्यों के सीमा विवादों, भाषाई अल्पसंख्यकों, अंतर-राज्यीय परिवहन या राज्यों के पुनर्गठन से जुड़े मामलों के बीच आर्थिक और सामाजिक योजना के क्षेत्र में सामान्य हित के किसी भी मामले के संबंध में सिफारिशें करते हैं।
- संरचना:
- उत्तरी क्षेत्रीय परिषद: इसमें हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, पंजाब, राजस्थान राज्य, राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली और संघ राज्य क्षेत्र चंडीगढ़, जम्मू और कश्मीर तथा लद्दाख शामिल हैं।
- मध्य क्षेत्रीय परिषद: इसमें छत्तीसगढ़, उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश राज्य शामिल हैं।
- पूर्वी क्षेत्रीय परिषद: इसमें बिहार, झारखंड, उड़ीसा और पश्चिम बंगाल राज्य शामिल हैं।
- पश्चिमी क्षेत्रीय परिषद: इसमें गोवा, गुजरात, महाराष्ट्र राज्य और संघ राज्य क्षेत्र दमन-दीव तथा दादरा एवं नगर हवेली शामिल है।
- दक्षिणी क्षेत्रीय परिषद: इसमें आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, कर्नाटक, केरल, तमिलनाडु, राज्य और संघ राज्य क्षेत्र पुद्दुचेरी शामिल हैं।
- संगठनात्मक ढाँचा
- अध्यक्षः केन्द्रीय गृह मंत्री इन सभी परिषदों के अध्यक्ष होता है।
- उपाध्यक्ष– प्रत्येक क्षेत्रीय परिषद में शामिल किये गए राज्यों के मुख्यमंत्री, रोटेशन से एक समय में एक वर्ष की अवधि के लिये उस अंचल के आंचलिक परिषद के उपाध्यक्ष के रूप में कार्य करते हैं।
- सदस्य: मुख्यमंत्री और प्रत्येक राज्य से राज्यपाल द्वारा यथा नामित दो अन्य मंत्री और परिषद में शामिल किये गए संघ राज्य क्षेत्रों से दो सदस्य।
- सलाहकार: प्रत्येक क्षेत्रीय परिषदों के लिये योजना आयोग (अब नीति आयोग) द्वारा नामित एक, मुख्य सचिव और जोन में शामिल प्रत्येक राज्य द्वारा नामित एक अन्य अधिकारी/विकास आयुक्त होते हैं।
- उद्देश्य:
- राष्ट्रीय एकीकरण को साकार करना।
- तीव्र राज्यक संचेतना, क्षेत्रवाद तथा विशेष प्रकार की प्रवृत्तियों के विकास को रोकना।
- केंद्र एवं राज्यों को विचारों एवं अनुभवों का आदान-प्रदान करने तथा सहयोग करने के लिये सक्षम बनाना।
- विकास परियोजनाओं के सफल एवं तीव्र निष्पादन के लिये राज्यों के बीच सहयोग के वातावरण की स्थापना करना।
- परिषदों के कार्य:
- आर्थिक और सामाजिक नियोजन के क्षेत्र में सामान्य हित का कोई भी मामला;
- सीमा विवाद, भाषाई अल्पसंख्यकों या अंतर-राज्यीय परिवहन से संबंधित कोई भी मामला;
- राज्य पुनर्गठन अधिनियम के तहत राज्यों के पुनर्गठन से संबंधित या उससे उत्पन्न कोई भी मामला।
यू.पी.एस.सी. सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQs)निम्नलिखित में से किस निकाय/किन निकायों का संविधान में उल्लेख नहीं है? (2013)
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1 और 2 उत्तर: (d) |
स्रोत :पी.आई.बी.
भारतीय राजनीति
एक उम्मीदवार एक निर्वाचन क्षेत्र
प्रिलिम्स के लिये:एक उम्मीदवार एक निर्वाचन क्षेत्र, चुनाव आयोग, जनप्रतिनिधित्व अधिनियम। मेन्स के लिये:दो निर्वाचन क्षेत्रों हेतु एक उम्मीदवार के चुनाव लड़ने से संबंधित मुद्दा। |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में मुख्य चुनाव आयुक्त ने कानून और न्याय मंत्रालय से एक उम्मीदवार के एक ही सीट से चुनाव लड़ने संबंधी प्रावधान के लिये कहा हैै।
- इसने एग्जिट पोल और ओपिनियन पोल पर प्रतिबंध लगाने की भी सिफारिश की थी और कहा कि चुनाव की पहली अधिसूचना के दिन से लेकर उसके सभी चरणों में चुनाव पूरा होने तक ओपिनियन पोल के परिणामों के संचालन और प्रसार पर कुछ प्रतिबंध होना चाहिये।
प्रमुख बिंदु
पृष्ठभूमि:
- जन प्रतिनिधित्व अधिनियम (RPA), 1951 की धारा 33 (7) के अनुसार, एक उम्मीदवार अधिकतम दो निर्वाचन क्षेत्रों से चुनाव लड़ सकता है।
- वर्ष 1996 तक अधिक निर्वाचन क्षेत्रों की अनुमति दी गई थी जब दो निर्वाचन क्षेत्रों में अधिकतम सीमा निर्धारित करने हेतु आरपीए में संशोधन किया गया था।
- वर्ष 1951 के बाद से कई राजनेतिक पार्टियों द्वारा एक से अधिक सीटों पर चुनाव लड़ने के लिये इस कारक का उपयोग कभी-कभी प्रतिद्वंद्वी के वोट को विभाजित करने हेतु, कभी देश भर में अपनी पार्टी की शक्ति का दावा प्रस्तुत करने के लिये, कभी निर्वाचन क्षेत्रों के आस-पास के क्षेत्र में अपनी पार्टी का प्रभाव स्थापित करने हेतु किया गया। उम्मीदवार की पार्टी और सभी दलों ने धारा 33(7) का दुरुपयोग किया है।
मुद्दा:
- अधिनियम मे विभिन्न धाराओं मे द्वंद:
- चूंँकि कोई भी उम्मीदवार दो निर्वाचन क्षेत्रों का प्रतिनिधित्व नहीं कर सकता है, इसलिये इस प्रणाली का विचार अतार्किक और विडंबनापूर्ण प्रतीत होता है।
- आरपीए की धारा 33 (7) के पीछे विडंबना यह है कि यह एक ऐसी स्थिति की ओर ले जाता है जहांँ इसे उसी अधिनियम की एक अन्य धारा – विशेष रूप से, धारा 70 से द्वंद की स्थिति पैदा करता हैा
- जहाँ 33 (7) उम्मीदवारों को दो सीटों से चुनाव लड़ने की अनुमति देता है, धारा 70 उम्मीदवारों को लोकसभा / राज्य विधानसभा में दो निर्वाचन क्षेत्रों का प्रतिनिधित्व करने से रोकता है।
- उपचुनाव सरकारी वित्तीयन पर अतिरिक्त बोझ:
- एक निर्वाचन क्षेत्र का त्याग करने के बाद, आम चुनाव के तुरंत बाद एक उपचुनाव स्वतः शुरू हो जाता है।
- उदाहरण के लिये, वर्ष 2014 में, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा वडोदरा और वाराणसी दोनों सीटें जीतने के बाद, उन्होंने वडोदरा में अपनी सीट खाली कर दी, जिससे वहांँ उपचुनाव कराना पड़ा।
- एक उपचुनाव के कारण लाखों करदाताओं के धन को खर्च करने की आवश्यकता पड़ती है, जिसे आसानी से टाला जा सकता था।
- वर्ष 1994 से पहले, जब उम्मीदवार तीन सीटों से भी चुनाव लड़ सकते थे, तो वित्तीय बोझ और भी भारी था।
- एक निर्वाचन क्षेत्र का त्याग करने के बाद, आम चुनाव के तुरंत बाद एक उपचुनाव स्वतः शुरू हो जाता है।
- मतदाता रुचि खो देते हैं:
- बार-बार चुनाव न केवल अनावश्यक और महंगे हैं, बल्कि इससे मतदाताओं की चुनावी प्रक्रिया में रुचि भी कम होगी।
- निरपवाद रूप से, उप-चुनाव में सबसे अधिक संभावना है कि कुछ दिन पहले के पहले चुनाव की तुलना में कम मतदाता मतदान करेंगे।
दो सीटों पर चुनाव लड़ने के पक्ष में तर्क:
- एक उम्मीदवार, दो निर्वाचन क्षेत्र प्रणाली "राजनीति के साथ-साथ उम्मीदवारों के लिये व्यापक विकल्प" प्रदान करती है।
- इस प्रावधान को खत्म करने से चुनाव लड़ने वाले उम्मीदवारों के अधिकारों का उल्लंघन होगा है , साथ ही राजनीति में उम्मीदवारों की कमी हो सकती है।
चुनाव आयोग की सिफारिशें :
- चुनाव आयोग ने धारा 33 (7) में संशोधन करने की सिफारिश की ताकि एक उम्मीदवार को केवल एक सीट से चुनाव लड़ने की अनुमति मिल सके।
- इसने वर्ष 2004, 2010, 2016 और वर्ष 2018 में ऐसा किया।
- एक ऐसी प्रणाली विकसित की जानी चाहिये जिसमें यदि कोई उम्मीदवार दो निर्वाचन क्षेत्रों से चुनाव लड़ता है और दोनों में जीत हासिल करता है, तो उसे किसी एक निर्वाचन क्षेत्र में बाद के उपचुनाव कराने का वित्तीय भार वहन करना होगा।
- यह राशि विधानसभा चुनाव के लिये 5 लाख रुपए और लोकसभा चुनाव के लिये 10 लाख रुपए होगी।
एग्जिट एंड ओपिनियन पोल:
- एक ओपिनियन पोल चुनाव से संबंधित कई मुद्दों पर मतदाताओं के विचारों को इकट्ठा करने के लिये एक चुनाव पूर्व सर्वेक्षण है।
- वहीं दूसरी ओर, एक्जिट पोल लोगों द्वारा मतदान करने के तुरंत बाद आयोजित किया जाता है और राजनीतिक दलों और उनके उम्मीदवारों के समर्थन का आकलन करता है।
चुनाव आयोग का तर्क:
- दोनों प्रकार के चुनाव विवादास्पद हो सकते हैं यदि उन्हें संचालित करने वाली एजेंसी को पक्षपाती माना जाता है।
- इन सर्वेक्षणों के अनुमान प्रश्नों की पसंद, शब्दों, समय और तैयार किये गए नमूने की प्रकृति से प्रभावित हो सकते हैं।
- राजनीतिक दल अक्सर आरोप लगाते हैं कि कई राय और एग्जिट पोल उनके प्रतिद्वंद्वियों द्वारा प्रेरित और प्रायोजित होती हैं,और एक चुनाव में मतदाताओं द्वारा चुने गए विकल्पों पर विकृत प्रभाव डाल सकते हैं एवं केवल सार्वजनिक भावना या विचारों को प्रतिबिंबित करने से रोक सकते हैं।
आगे की राह:
- "एक व्यक्ति, एक वोट" वह कहावत है जो भारतीय लोकतंत्र का संस्थापक सिद्धांत रहा है। शायद यह उस सिद्धांत को संशोधित और विस्तारित करने का समय है।
विगत वर्षों के प्रश्न:निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये:
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (a) केवल 1 उत्तर: (d) व्याख्या:
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स्रोत : इंडियन एक्सप्रेस
जैव विविधता और पर्यावरण
अंटार्कटिका की बर्फ में माइक्रोप्लास्टिक्स
प्रिलिम्स के लिये:माइक्रोप्लास्टिक्स, अंटार्कटिका, ग्लोबल वार्मिंग। मेन्स के लिये:अंटार्कटिका में माइक्रोप्लास्टिक खोजने के निहितार्थ। |
चर्चा में क्यों?
वैज्ञानिकों ने पहली बार अंटार्कटिका में ताजा गिरी हुई बर्फ में माइक्रोप्लास्टिक (चावल के दाने से छोटे प्लास्टिक के टुकड़े) पाए गए हैं, जो बर्फ के पिघलने में तेज़ी लाकर जलवायु को प्रभावित कर सकते हैं।
- पिछले अध्ययनों में पाया गया है कि माइक्रोप्लास्टिक का पर्यावरण पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है, जीवों में विकास, प्रजनन और सामान्य जैविक क्रियाओं पर विपरीत प्रभाव पड़ता है, साथ ही साथ इनका मनुष्यों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
- अंटार्कटिका में ताजा गिरी हुई बर्फ मेंं माइक्रोप्लास्टिक्स की खोज दुनिया के सबसे दूरस्थ क्षेत्रों में भी प्लास्टिक प्रदूषण की सीमा को उजागर करती है।
खोज के निष्कर्ष:
- शोधकर्ताओं ने अंटार्कटिका में रॉस आइस शेल्फ में 19 विभिन्न स्थलों से बर्फ के नमूने एकत्र किये और उन सभी में प्लास्टिक के कणों की खोज की गई।
- 13 अलग-अलग प्रकार के प्लास्टिक पाए गए, जिनमें सबसे आम पॉलीइथाइलीन टेरेफ्थेलेट है, जिसका इस्तेमाल आमतौर पर शीतल पेय की बोतलें और कपड़े बनाने के लिये किया जाता है। माइक्रोप्लास्टिक के संभावित स्रोतों की जाँच की गई।
- प्रति लीटर पिघली हुई बर्फ में औसतन 29 माइक्रोप्लास्टिक कण होते हैं, जो कि आसपास के रॉस सागर और अंटार्कटिक समुद्री बर्फ में पहले बताई गई समुद्री सांद्रता से अधिक मात्रा में पाए गए हैं ।
- माइक्रोप्लास्टिक्स ने वायु के माध्यम से हज़ारों किलोमीटर की यात्रा की हो, हालांँकि यह संभावना है कि अंटार्कटिका में मनुष्यों की उपस्थिति ने माइक्रोप्लास्टिक 'पदचिह्न' स्थापित किया है।
खोज का महत्त्व:
- स्थानीय और व्यापक दोनों प्रभाव:
- माइक्रोप्लास्टिक में भारी धातु, शैवाल जैसे हानिकारक पदार्थ उनकी सतहों पर चिपक सकते हैं।
- अर्थात् ये हानिकारक प्रजातियों के लिये मार्ग प्रदान कर सकते हैं अन्यथा दूरस्थ और संवेदनशील क्षेत्रों तक नहीं पहुंँच पाएंगे।
- मनुष्य के अंदर वायु, जल और भोजन के माध्यम से माइक्रोप्लास्टिक जाते हैै। मानव शरीर में माइक्रोप्लास्टिक के उच्च स्तर में हानिकारक प्रभाव पैदा करने की क्षमता होती है, जिसमें कोशिकाओ की मृत्यु एवं एलर्जी शामिल हैं।
- ग्लोबल वार्मिंग और अन्य आपदाओं का कारक:
- माइक्रोप्लास्टिक भी ग्लोबल वार्मिंग के प्रभाव को बढ़ा सकता है। दुनिया भर में परमाफ्रास्ट, हिमशिखर और ग्लेशियर पहले से ही तेज़ी से पिघल रहे हैं और वैज्ञानिकों का कहना है कि इन स्थानों पर जमा गहरे रंग के माइक्रोप्लास्टिक सूर्य की रोशनी को अवशोषित करके तथा स्थानीय ताप वृद्धि कर स्थिति को बदतर बना सकते हैं।
- स्वच्छ स्नोपैक, परमाफ्रास्ट और ग्लेशियर सूर्य के प्रकाश को बहुत अधिक प्रतिबिंबित कर सकते हैं, लेकिन अन्य प्रदूषणकारी कण जैसे कि ब्लैक कार्बन, हिमालय के हिमक्षेत्रों और ग्लेशियरों पर पाए गए हैं अतः वैज्ञानिकों का मानना है कि वे बर्फ के पिघलने में तेज़ी लाते हैं।
- दुनिया भर में पर्वत श्रृंखलाओं पर तेज़ी से पिघलने वाले ग्लेशियर खतरनाक होते जा रहे हैं, जिससे भूस्खलन और हिमस्खलन हो रहा है एवं हिमनद झीलें अपने किनारों को तोड़ रही हैं।
- ग्लेशियरों के तेज़ी से पिघलनेऔर निवर्तन से दुनिया भर के पर्वतीय क्षेत्रों में जल आपूर्ति और कृषि के लिये भी खतरा पैदा हो गया है।
माइक्रोप्लास्टिक्स :
- परिचय:
- माइक्रोप्लास्टिक प्लास्टिक के वे कण होते हैं, जिनका व्यास 5 मिमी. से कम होता है।
- इसमें वे छोटे कण होते हैं जिन्हें व्यावसायिक उपयोग के लिये डिज़ाइन किया जाता है और माइक्रोफाइबर कपड़ों और अन्य वस्त्रों के निर्माण में प्रयोग किया जाता है, जैसे व्यक्तिगत देखभाल उत्पादों, प्लास्टिक छर्रों और प्लास्टिक फाइबर में पाए जाने वाले माइक्रोबीड्स
- सौंदर्य प्रसाधनों और व्यक्तिगत देखभाल उत्पादों के अलावा, अधिकांश माइक्रोप्लास्टिक्स प्लास्टिक के बड़े टुकड़ों के खंडन के परिणाम होते हैं जिन्हें पुनर्नवीनीकरण नहीं किया जा सकता है साथ ही ये सभी जैव अपघटनीय पदार्थों की श्रेणी मे आते हैं।
- माइक्रोप्लास्टिक कछुओं और पक्षियों सहित जलीय जीवों को नुकसान पहुंँचाता है। यह पाचन तंत्र को अवरुद्ध करता है, और खाने के व्यवहार को बदल देता है। इसके बाद, यह समुद्री जानवरों में वृद्धि और प्रजनन उत्पादन को कम कर देता है।
- भारत द्वारा शुरू की गई पहलें:
- एकल-उपयोग प्लास्टिक का उन्मूलन: वर्ष 2019 में भारत के प्रधानमंत्री ने दिल्ली शहरी क्षेत्र में तत्काल प्रतिबंध के साथ वर्ष 2022 तक देश में सभी एकल-उपयोग वाले प्लास्टिक को खत्म करने का संकल्प लिया।
- महत्त्वपूर्ण नियम: प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन नियम, 2016 में कहा गया है कि प्लास्टिक कचरे के पृथक्करण, संग्रहण, प्रसंस्करण और निपटान हेतु बुनियादी ढाँचे की स्थापना के लिये प्रत्येक स्थानीय निकाय को ज़िम्मेदार होना चाहिये।
- अन-प्लास्टिक कलेक्टिव (Un-Plastic Collective): अन-प्लास्टिक कलेक्टिव (UPC) यूएनईपी-इंडिया, भारतीय उद्योग परिसंघ और डब्ल्यूडब्ल्यूएफ-इंडिया द्वारा शुरू की गई एक स्वैच्छिक पहल है।
- यह हमारे ग्रह के पारिस्थितिक और सामाजिक स्वास्थ्य पर प्लास्टिक के कारण उत्पन्न होने वाले खतरों को कम करने का प्रयास करता है।
- विस्तारित उत्पादक उत्तरदायित्व (EPR):
- EPR एक नीतिगत दृष्टिकोण है जिसके तहत उत्पादकों को उपभोक्ता के बाद के उत्पादों के उपचार या निपटान करने हेतु एक महत्त्वपूर्ण ज़िम्मेदारी वित्तीय और/या भौतिक रूप में दी जाती है।
यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्षों के प्रश्न:प्रश्न: पर्यावरण में छोड़े जाने वाले 'माइक्रोबीड्स' को लेकर इतनी चिंता क्यों है? (2019) (a) उन्हें समुद्री पारिस्थितिक तंत्र के लिये हानिकारक माना जाता है। उत्तर: (a) |
स्रोत: द हिंदू
अंतर्राष्ट्रीय संबंध
भारत-रूस संबंध
प्रिलिम्स के लिये:ब्रह्मोस मिसाइल, इन्द्र अभ्यास, कामोव-226, एस-400 ट्रायम्फ। मेन्स के लिये:भारत-रूस संबंधों के बदलते रुझान। |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में भारत और रूस ने अपने राजनयिक संबंधों की 75वीं वर्षगाँठ मनाई।
भारत-रूस संबंधों के विभिन्न पहलू :
- ऐतिहासिक पृष्ठभूमि:
- भारत और रूस के संबंध काफी पुराने हैं। अक्बतूर 2000 में "भारत-रूस सामरिक साझेदारी घोषणा" पर हस्ताक्षर करने के बाद से, भारत-रूस संबंधों ने राजनीतिक, सुरक्षा, रक्षा, व्यापार और अर्थव्यवस्था, विज्ञान और प्रौद्योगिकी, तथा संस्कृति सहित द्विपक्षीय संबंधों के लगभग सभी क्षेत्रों में सहयोग के बढ़े हुए स्तरों के साथ एक गुणात्मक रूप से नया स्वरूप देखा गया है।
- शीत युद्ध के दौरान, भारत और सोवियत संघ के बीच एक मज़बूत रणनीतिक, सैन्य, आर्थिक और राजनयिक संबंध थे। सोवियत संघ के विघटन के बाद, रूस को भारत के साथ अपने घनिष्ठ संबंध विरासत में मिले, जिसके परिणामस्वरूप दोनों देशों ने एक विशेष सामरिक संबंध साझा किया।
- हालांँकि, पिछले कुछ वर्षों में खासकर पोस्ट-कोविड परिदृश्य में संबंधों में भारी गिरावट आई है। इसका सबसे बड़ा कारण रूस के चीन और पाकिस्तान के साथ घनिष्ठ संबंध हैं, जिन्होंने पिछले कुछ वर्षों में भारत के लिए कई भू-राजनीतिक मुद्दों का कारण बना दिया है।
- राजनीतिक संबंध:
- भारत के प्रधानमंत्री और रूसी संघ के राष्ट्रपति के बीच वार्षिक शिखर सम्मेलन भारत और रूस के बीच रणनीतिक साझेदारी में सर्वोच्च संस्थागत वार्ता तंत्र है।
- प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने वर्ष 2018 में रूसी संघ के सोची शहर में अपना पहला अनौपचारिक शिखर सम्मेलन आयोजित किया।
- वर्ष 2019 में, राष्ट्रपति पुतिन ने PM नरेंद्र मोदी को रूस के सर्वोच्च सम्मान - “ऑर्डर ऑफ सेंट एंड्रयू द एपोस्टल” प्रदान किया। रूस और भारत के बीच एक विशेषाधिकार प्राप्त रणनीतिक साझेदारी के विकास और रूसी और भारतीय लोगों के बीच मैत्रीपूर्ण संबंधों के विकास में उनके विशिष्ट योगदान के लिये प्रधानमंत्री को यह समान प्रदान किया गया था।
- दो अंतर-सरकारी आयोग की वार्षिक बैठक होती है - पहला व्यापार, आर्थिक, वैज्ञानिक, तकनीकी और सांस्कृतिक सहयोग (IRIGC-TEC) पर, और दूसरा सैन्य-तकनीकी सहयोग (IRIGC-MTC) पर।
- व्यापारिक संबंध:
- दोनों देश वर्ष 2025 तक द्विपक्षीय निवेश को 50 अरब अमेरिकी डॉलर और द्विपक्षीय व्यापार को 30 अरब अमेरिकी डॉलर तक बढ़ाने का ज़ोर दे रहे हैं।
- वित्त वर्ष 2020 के दौरान द्विपक्षीय व्यापार 8.1 बिलियन अमेरिकी डॉलर का था।
- 2013 से 2016 तक दोनों देशों के बीच व्यापार प्रतिशत में बड़ी गिरावट आई थी। हालाँकि, यह 2017 से बढ़ा और 2018 और 2019 में भी लगातार वृद्धि देखी गई।
- रक्षा और सुरक्षा संबंध:
- भारत-रूस सैन्य-तकनीकी सहयोग एक क्रेता-विक्रेता ढांँचे से विकसित हुआ है जिसमें उन्नत रक्षा प्रौद्योगिकियों और प्रणालियों के संयुक्त अनुसंधान, विकास और उत्पादन शामिल हैं।
- दोनों देश नियमित रूप से त्रि-सेवा अभ्यास 'इंद्र' आयोजित करते हैं।
- भारत और रूस के बीच संयुक्त सैन्य कार्यक्रमों में शामिल हैं:
- ब्रह्मोस क्रूज मिसाइल कार्यक्रम
- 5वीं पीढ़ी का लड़ाकू जेट कार्यक्रम
- सुखोई एसयू-30एमकेआई कार्यक्रम
- इल्यूशिन/एचएएल सामरिक परिवहन विमान
- KA-226T ट्विन-इंजन यूटिलिटी हेलीकॉप्टर
- कुछ युद्धपोत
- भारत द्वारा रूस से खरीदे/पट्टे पर लिये गए सैन्य हार्डवेयर में शामिल हैं:
- एस-400 ट्रायम्फ
- मेक इन इंडिया पहल के तहत भारत में बनेगी 200 कामोव Ka-226
- टी-90एस भीष्म
- आईएनएस विक्रमादित्य विमान वाहक कार्यक्रम
- रूस अपने पनडुब्बी कार्यक्रमों में भारतीय नौसेना की सहायता करने में भी बहुत महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है:
- भारतीय नौसेना की पहली पनडुब्बी, 'फॉक्सट्रॉट क्लास' रूस से ली गई थी।
- भारत अपने परमाणु पनडुब्बी कार्यक्रम के लिये रूस पर निर्भर है।
- भारत द्वारा संचालित एकमात्र विमानवाहक पोत आईएनएस विक्रमादित्य भी मूल रूप से रूस का है।
- भारत द्वारा संचालित चौदह पारंपरिक पनडुब्बियों में से नौ रूी की हैं।
भारत और रूस के बीच संबंधों के अन्य महत्त्वपूर्ण क्षेत्र:
- परमाणु संबंध:
- परमाणु ऊर्जा के शांतिपूर्ण उपयोग के क्षेत्र में रूस भारत का महत्त्वपूर्ण भागीदार है। यह भारत को एक मतभेद रहित अप्रसार रिकॉर्ड के साथ उन्नत परमाणु प्रौद्योगिकी वाले देश के रूप में मान्यता देता है।
- कुडनकुलम परमाणु ऊर्जा संयंत्र (KKNPP) भारत में बनाया जा रहा है।
- भारत और रूस दोनों बांग्लादेश में रूपपुर परमाणु ऊर्जा परियोजना को स्थापित कर रहे हैं।
- अंतरिक्ष अन्वेषण:
- दोनों पक्ष बाहरी अंतरिक्ष के शांतिपूर्ण उपयोग में सहयोग करते हैं जिसमें उपग्रह प्रक्षेपण, ग्लोनास नेविगेशन प्रणाली (GLONASS navigation system), रिमोट सेंसिंग और बाह्य अंतरिक्ष के अन्य सामाजिक अनुप्रयोग शामिल हैं।
- 19वें द्विपक्षीय शिखर सम्मेलन के दौरान मानव अंतरिक्ष उड़ान कार्यक्रम के क्षेत्र में संयुक्त गतिविधियों पर एक समझौता ज्ञापन इसरो और रोस्कोसमोस द्वारा किये गए।
- विज्ञान और तकनीक:
- IRIGC-TEC के तहत कार्य कर रहे विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी पर कार्य समूह, एकीकृत दीर्घकालिक कार्यक्रम (ILTP) और बुनियादी विज्ञान सहयोग कार्यक्रम द्विपक्षीय विज्ञान और प्रौद्योगिकी सहयोग हेतु तीन मुख्य संस्थागत तंत्र हैं, जबकि दोनों देशों की विज्ञान अकादमियांँ अंतर-अकादमी आदान-प्रदान हेतु इसे बढ़ावा देती हैं।
- इस क्षेत्र में कई नई पहलों में भारत-रूस ब्रिज़ टू इनोवेशन, टेलीमेडिसिन में सहयोग, पारंपरिक ज्ञान डिजिटल लाइब्रेरी (TKDL) का निर्माण और विश्वविद्यालयों के रूस इंडिया नेटवर्क (RIN) शामिल हैं।
- सांस्कृतिक संबंध:
- प्रमुख विश्वविद्यालयों और स्कूलों सहित लगभग 20 रूसी संस्थान में नियमित रूप से लगभग 1500 रूसी छात्रों को हिंदी पढ़ाई जाती हैं।
- हिंदी के अलावा, रूसी संस्थानों में तमिल, मराठी, गुजराती, बंगाली, उर्दू, संस्कृत और पाली जैसी भाषाओं को पढ़ाया जाता है।
- भारतीय नृत्य, संगीत, योग और आयुर्वेद कुछ अन्य रुचियों में से हैं जिनका रूस के लोग रूचि रखते हैं।
भारत के लिये रूस का महत्त्व:
- चीन को संतुलित करना: पूर्वी लद्दाख के सीमावर्ती क्षेत्रों में चीनी आक्रमण ने भारत-चीन संबंधों को एक मोड़ पर ला दिया, इससे यह भी प्रदर्शित हुआ कि रूस चीन के साथ तनाव को कम करने में योगदान दे सकता है।
- लद्दाख के विवादित क्षेत्र में गलवान घाटी में घातक झड़पों के बाद रूस ने रूस, भारत और चीन के विदेश मंत्रियों के बीच एक त्रिपक्षीय बैठक आयोजित की।
- आर्थिक जुड़ाव के उभरते नए क्षेत्र: हथियार, हाइड्रोकार्बन, परमाणु ऊर्जा और हीरे जैसे सहयोग के पारंपरिक क्षेत्रों के अलावा, आर्थिक जुड़ाव के नए क्षेत्रों के उभरने की संभावना है - खनन, कृषि-औद्योगिक और उच्च प्रौद्योगिकी, जिसमें रोबोटिक्स, नैनोटेक, और बायोटेक।
- रूस के सुदूर पूर्व और आर्कटिक में भारत के पदचिन्हों का विस्तार होना तय है। कनेक्टिविटी प्रोजेक्ट्स को भी बढ़ावा मिल सकता है।
- आतंकवाद का मुकाबला: भारत और रूस अफगानिस्तान के बीच की खाई को पाटने हेतु कार्य कर रहे हैं और दोनों देशों द्वारा अंतर्राष्ट्रीय आतंकवाद पर व्यापक सम्मेलन को जल्द से जल्द अंतिम रूप देने का आह्वान किया गया है।
- बहुपक्षीय मंचों पर समर्थन: इसके अतिरिक्त रूस संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) और परमाणु आपूर्तिकर्त्ता समूह (NSG) की स्थायी सदस्यता के लिये भारत की उम्मीदवारी का समर्थन करता है।
- रूस का सैन्य निर्यात: रूस भारत के लिये सबसे बड़े हथियार निर्यातकों में से एक रहा है। यहाँ तक कि पिछले पाँच वर्षों (2011-2015) की तुलना में पिछले पाँच साल की अवधि में भारत के हथियारों के आयात में रूस की हिस्सेदारी 50% से अधिक गिर गई।
- वैश्विक हथियारों के व्यापार पर नज़र रखने वाले स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट के अनुसार, पिछले 20 वर्षों में भारत ने रूस से 35 बिलियन अमेरिकी डॉलर के हथियार आयात किये हैं।
आगे की राह
- समय पर रखरखाव सहायता प्रदान करने के लिये रूस: भारतीय सेना के साथ सेवा में रूसी हार्डवेयर की बड़ी सूची के लिये पुर्जों की समय पर आपूर्ति और समर्थन भारत की ओर से एक प्रमुख मुद्दा रहा है।
- इसे संबोधित करने के लिये रूस ने वर्ष 2019 में हस्ताक्षरित एक अंतर-सरकारी समझौते के बाद इसे संबोधित करने के लिये अपनी कंपनियों को भारत में संयुक्त उद्यम स्थापित करने की अनुमति देते हुए विधायी परिवर्तन किये हैं।
- इस समझौते को समयबद्ध तरीके से लागू करने की ज़रूरत है।
- एक दूसरे के महत्त्व को स्वीकार करना: रूस आने वाले दशकों तक भारत के लिये एक प्रमुख रक्षा भागीदार बना रहेगा।
- दूसरी ओर, रूस और चीन वर्तमान में एक अर्द्ध-गठबंधन में हैं। रूस बार-बार दोहराता है कि वह खुद को किसी के कनिष्ठ साझेदार के रूप में नहीं देखता है। इसलिये रूस चाहता है कि भारत एक संतुलक की तरह काम करे।
- संयुक्त सैन्य उत्पादन: दोनों देश इस बात पर चर्चा कर रहे हैं कि वे तीसरे देशों को रूसी मूल के उपकरणों और सेवाओं के निर्यात के लिए भारत को उत्पादन आधार के रूप में उपयोग करने में कैसे सहयोग कर सकते हैं।
स्रोत- इंडियन एक्सप्रेस
भारतीय अर्थव्यवस्था
यू.एस. मानदंडों के साथ भारतीय पेटेंट व्यवस्था का टकराव
प्रिलिम्स के लिये:विशेष रिपोर्ट 301, IPR, दोहा घोषणा, प्राथमिकता निगरानी सूची, भारतीय पेटेंट अधिनियम। मेन्स के लिये:भारत के IPR से संबंधित मुद्दे, भारतीय पेटेंट अधिनियम। |
चर्चा में क्यों?
अमेरिकी व्यापार प्रतिनिधि ने अपनी वार्षिक विशेष 301 रिपोर्ट में भारत में IP चुनौतियों को उजागर किया।
- रिपोर्ट में कॉपीराइट और पायरेसी से लेकर ट्रेडमार्क जालसाजी और व्यापार रहस्यों तक के कई मुद्दों पर प्रकाश डाला गया है, जिसमें कहा गया है कि भारत IP के संरक्षण और प्रवर्तन के संबंध में दुनिया की सबसे चुनौतीपूर्ण प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं में से एक है।
- इसने छह अन्य देशों- अर्जेंटीना, चिली, चीन, इंडोनेशिया, रूस और वेनेज़ुएला के साथ भारत को अपनी प्राथमिकता निगरानी सूची में बनाए रखने का फैसला किया है।
- यू.एस. व्यापार कानून ("विशेष 301") के लिये देशों में बौद्धिक संपदा संरक्षण और बाज़ार पहुंँच प्रथाओं की वार्षिक समीक्षा की आवश्यकता है।
- व्यापार भागीदार जो वर्तमान में आईपी अधिकारों के संबंध में सबसे महत्वपूर्ण चिंताओं को प्रस्तुत करते हैं, उन्हें या तो प्राथमिकता निगरानी सूची या निगरानी सूची में रखा जाता है।
भारतीय पेटेंट व्यवस्था:
- पेटेंट आविष्कार के लिये दिये गए अधिकारों का एक विशेष सेट है, जो एक उत्पाद या प्रक्रिया हो सकती है जो कुछ करने का एक नया तरीका प्रदान करती है या किसी समस्या का एक नया तकनीकी समाधान प्रदान करती है।
- भारतीय पेटेंट 1970 के भारतीय पेटेंट अधिनियम द्वारा शासित होते हैं। अधिनियम के तहत पेटेंट दिये जाते हैं यदि आविष्कार निम्नलिखित मानदंडों को पूरा करता है:
- यह नया होना चाहिये।
- इसमें आविष्कारशील कदम होना चाहिये या यह स्पष्ट नहीं होना चाहिये।
- यह औद्योगिक अनुप्रयोग के लिये सक्षम होना चाहिये।
- इसे पेटेंट अधिनियम 1970 की धारा 3 और 4 के प्रावधानों के अनुरूप नहीं होना चाहिये।
- भारत ने बौद्धिक संपदा अधिकारों से संबंधित अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्थाओं के साथ धीरे-धीरे खुद को जोड़ लिया है।
- 1 जनवरी, 1995 को विश्व व्यापार संगठन की सदस्यता के बाद यह बौद्धिक संपदा अधिकार के व्यापार संबंधी पहलुओं (TRIPS) समझौते का एक पक्ष बन गया।
- इसके बाद इसने ट्रिप्स का अनुपालन करने हेतु अपने आंतरिक पेटेंट कानूनों में संशोधन किया गया, विशेष रूप से वर्ष 2005 में जब इसने कानून में फार्मास्युटिकल उत्पाद पेटेंट को शामिल किया गए।
- IPR से संबंधित अन्य कन्वेंशन:
- भारत कई बौद्धिक संपदा अधिकारों (IPR) से संबंधित कन्वेंशन/सम्मेलनों का भी एक हस्ताक्षरकर्त्ता देश है जिसमें बर्न कन्वेंशन जो कॉपीराइट, बुडापेस्ट संधि, औद्योगिक संपत्ति के संरक्षण हेतु पेरिस कन्वेंशन और पेटेंट सहयोग संधि (PCT) शामिल हैं जो विभिन्न पेटेंट से संबंधित मामलों को नियंत्रित करता है।
- मूल भारतीय पेटेंट अधिनियम ने दवा उत्पादों को पेटेंट संरक्षण प्रदान नहीं किया ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि दवाएँ कम कीमत पर जनता के लिये उपलब्ध हों।
- यह न्यायविद राजगोपाल आयंगर की अध्यक्षता में 1959 के आयोग की सिफारिशों पर आधारित था।
- ट्रिप्स का अनुपालन करने के लिये वर्ष 2005 के संशोधन के बाद फार्मास्यूटिकल्स के पेटेंट संरक्षण को फिर से पेश किया गया था।
USTR द्वारा चिह्नित किये गए भारतीय मुद्दे:
- पेटेंट के मुद्दे "भारत में विशेष रूप से चिंता का विषय बने हुए हैं", पेटेंट निरस्तीकरण के खतरे को उजागर करते हुए पेटेंट वैधता के अनुमान की कमी और संकीर्ण पेटेंट योग्यता मानदंड विभिन्न क्षेत्रों में कंपनियों को प्रभावित करते हैं।
- भारतीय पेटेंट अधिनियम की धारा 3 (डी) के संबंध में संकीर्ण पेटेंट योग्यता मानदंड का मुद्दा फिर से उठाया गया था, रिपोर्ट में कहा गया था कि फार्मास्युटिकल क्षेत्र में संयुक्त राज्य अमेरिका पेटेंट-योग्य विषय वस्तु पर प्रतिबंध की निगरानी करना जारी रखता है।
भारतीय पेटेंट अधिनियम की धारा 3 और धारा 3 (डी):
- धारा 3 अधिनियम के तहत आविष्कार के रूप में योग्य नहीं होने से संबंधित है।
- भारतीय पेटेंट अधिनियम 1970 (2005 में संशोधित) की धारा 3 (डी) एक ज्ञात पदार्थ के नए रूपों को शामिल करने वाले आविष्कारों को पेटेंट देने की अनुमति नहीं देती है, जब तक कि यह प्रभावकारिता के संबंध में गुणों में महत्त्वपूर्ण रूप से भिन्न न हो।
- या किसी ज्ञात पदार्थ से संबंधित किसी नई संपत्ति या नए उपयोग की खोज मात्र,
- या किसी ज्ञात प्रक्रिया, मशीन या उपकरण के केवल उपयोग के लिये जब तक कि ऐसी ज्ञात प्रक्रिया के परिणामस्वरूप एक नया उत्पाद न हो,
- या कम से कम एक नए अभिकारक" को पेटेंट कानून के तहत संरक्षण के लिये पात्र होने से रोकता है।,
- धारा 3 (डी) पेटेंट की "एवरग्रीनिंग" के रूप में जानी जाने वाली चीज़ों को रोकती है।
- यह एक कॉर्पोरेट, कानूनी, व्यावसायिक और तकनीकी रणनीति है, जिसे एक ऐसे अधिकार क्षेत्र में दी गई पेटेंट की अवधि को विस्तृत करने / बढ़ाने के लिये उपयोग किया जाता है, जिसकी अवधि समाप्त होने वाली है ताकि नए पेटेंट निर्मित कर उनसे रॉयल्टी बरकरार रखी जा सके।
- समिति की रिपोर्ट के अनुसार, धारा 3 (डी) केवल नवीन और वास्तविक आविष्कारों का पेटेंट कराकर सामान्य प्रतिस्पर्द्धा की अनुमति देती है।
- नोवार्टिस बनाम भारत संघ (2013) मामले में मौलिक निर्णय ने धारा 3 (डी) की वैधता को बरकरार रखा।
नोवार्टिस बनाम भारत संघ का अर्द्ध-निर्णय:
- इस मामले में दवा कंपनी नोवार्टिस ने कैंसर की दवा ग्लीवेक के अंतिम रूप के लिये पेटेंट दाखिल किया था, जिसे सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती दी गई थी।
- सर्वोच्च न्यायालय ने माना कि ग्लीवेक एक ज्ञात दवा का केवल बीटा क्रिस्टलीय रूप था, अर्थात्, आई मैटिनिब मेसाइलेट और प्रभावकारिता के संबंध में गुणों में अधिक भिन्न नहीं था। इसलिये इसे भारत में पेटेंट नहीं कराया जा सका।
- फैसले में यह भी कहा गया है कि धारा 3 ट्रिप्स समझौते और दोहा घोषणा का अनुपालन करती है।
- ट्रिप्स समझौते और सार्वजनिक स्वास्थ्य पर दोहा घोषणा को नवंबर 2021 में विश्व व्यापार संगठन के सदस्य राज्यों द्वारा अपनाया गया था।
- यह घोषणा "विकासशील और सबसे कम विकसित देशों को प्रभावित करने वाली सार्वजनिक स्वास्थ्य समस्याओं की गंभीरता" को पहचानती है और इन समस्याओं के समाधान के लिये ट्रिप्स को व्यापक राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय कार्रवाई का हिस्सा बनने की आवश्यकता पर बल देती है।
- घोषणा में कहा गया है कि समझौते की व्याख्या की जा सकती है और इसे सार्वजनिक स्वास्थ्य की रक्षा के लिये विश्व व्यापार संगठन के सदस्यों के अधिकार के समर्थन में और विशेष रूप से सभी के लिये दवाओं तक पहुँच को बढ़ावा देने के लिये लागू किया जाना चाहिये।
- इन लचीलेपन में अनिवार्य लाइसेंस देने का अधिकार और ऐसे लाइसेंस के आधार शामिल हैं,
- यह निर्धारित करने का अधिकार कि "राष्ट्रीय आपातकाल या सार्वजनिक स्वास्थ्य संकटों सहित अत्यधिक तात्कालिकता की अन्य परिस्थितियाँ क्या हैं" और बौद्धिक संपदा अधिकारों की समाप्ति के लिये अपना स्वयं का शासन स्थापित करने का अधिकार भी शामिल है।
- ट्रिप्स समझौते और सार्वजनिक स्वास्थ्य पर दोहा घोषणा को नवंबर 2021 में विश्व व्यापार संगठन के सदस्य राज्यों द्वारा अपनाया गया था।
- अनिवार्य लाइसेंसिंग एक राज्य द्वारा जनहित में लागू किया जा सकता है, पेटेंट मालिक के अलावा कंपनियों को सहमति के बिना पेटेंट उत्पाद का उत्पादन करने की इजाजत देता है।
आगे की राह
- भारत को धारा 3 (डी) के तहत पेटेंट योग्यता मानदंड से समझौता नहीं करना चाहिये क्योंकि एक संप्रभु देश के रूप में इसकी मौजूदा सामाजिक-आर्थिक स्थितियों के अनुरूप पेटेंट के अनुदान पर सीमाएँ निर्धारित करने की लचीलापन है।
- यह जेनेरिक दवा निर्माताओं की वृद्धि और जनता की सस्ती दवाओं तक पहुँच सुनिश्चित करता है।
- भारत को द्विपक्षीय वार्ता के माध्यम से वृद्धिशील आविष्कारों की अयोग्यता के संबंध में अमेरिका के साथ अपने मतभेदों को सुलझाना चाहिये।
- विश्व व्यापार संगठन के सदस्य देश 'एवरग्रीनिंग' को कम करने वाले आविष्कार और पेटेंट योग्यता की कठोर परिभाषाओं को अपनाकर और लागू करके ट्रिप्स समझौते में उपलब्ध नीतिगत स्थान का पूरा उपयोग करते हैं और यह सुनिश्चित करते हैं कि पेटेंट केवल तभी प्रदान किये जाते हैं जब वास्तविक नवाचार हुआ हो।
- धारा 3 (डी) के माध्यम से, भारत अंतरराष्ट्रीय पेटेंट दायित्वों और सामाजिक-आर्थिक कल्याण और सार्वजनिक स्वास्थ्य की रक्षा और बढ़ावा देने के लिये अपनी प्रतिबद्धताओं को संतुलित करने का प्रयास करता है।