चर्चा में क्यों ? यूएसटीआर (United States Trade Representative) ने अपनी ‘2018 स्पेशल 301 रिपोर्ट’ जारी कर दी है। इसमें भारत को पुनः ‘प्राथमिकता निगरानी सूची’ में रखा गया है। अंतर्राष्ट्रीय मानवतावादी संगठन ‘डॉक्टर्स विदाउट बॉर्डर्स’ ने इस कदम को 'एंटी पब्लिक हेल्थ' करार दिया है।
प्रमुख बिंदु
इस रिपोर्ट के अंतर्गत, अमेरिका अपने व्यापारिक भागीदारों का बौद्धिक संपदा की रक्षा और प्रवर्तन संबंधी ट्रैक रिकॉर्ड पर आकलन करता है।
भारत को हमेशा फार्मास्युटिकल्स पेंटेंट प्रदान करने और दवाओं को सस्ता रखने के लिये नीतिगत निर्णय लेने के बीच संतुलन बनाए रखने संबंधी प्रयासों के कारण आलोचनात्मक नज़रिये से देखा जाता है।
इस वर्ष की रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत ‘प्राथमिकता निगरानी सूची’ में बना हुआ है क्योंकि उसने लंबे समय से उपस्थित और नई चुनौतियों से संबंधित बौद्धिक संपदा फ्रेमवर्क में अपेक्षानुसार सुधार नहीं किया है। इस कारण अमेरिका के बौद्धिक संपदा अधिकार धारकों के हित नकारात्मक रूप से प्रभावित हुए हैं।
दिलचस्प बात यह है कि इस सूची में कनाडा, चीन, अर्जेंटीना, कोलंबिया और रूस भी शामिल हैं।
कनाडा G7 समूह का एकमात्र ऐसा देश है जिसे इस सूची में शामिल किया गया है।
‘प्राथमिकता निगरानी सूची’ वर्गीकरण इंगित करता है कि इसमें शामिल देशों में बौद्धिक संपदा संबंधी सुरक्षा, प्रवर्तन और बाज़ार पहुँच की समस्याएँ विद्यमान हैं।
रिपोर्ट में कहा गया है कि अमेरिकी कारोबारियों को भारत में विभिन्न प्रकार की समस्याओं का सामना करना पड़ता है। यहाँ नवाचार करने वालों के लिये पेटेंट मिलना और उसे कायम रखना चुनौतीपूर्ण कार्य है।
भारत में विशेषकर फार्मास्यूटिकल्स के क्षेत्र में प्रवर्तन संबंधित समस्या विद्यमान है।
रिपोर्ट में ‘नई और उभरती चिंताओं’ को भी इंगित किया गया है। इसमें कहा गया है कि भारत का बहुपक्षीय मंचों पर बौद्धिक संपदा अधिकारों से संबंधित मामलों में पक्ष स्पष्ट नहीं है जो भारत की नवाचार और रचनात्मकता में अभिवृद्धि संबंधी नीतियों पर संशय पैदा करता है।
रिपोर्ट में भारत को बौद्धिक संपदा सुरक्षा और प्रवर्तन के संबंध में सबसे चुनौतीपूर्ण बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में से एक मानते हुए कहा गया है कि भारत को लंबे समय से उपस्थित पेटेंट के मामलों का निस्तारण करना होगा, क्योंकि इनसे नवाचार उद्योग प्रभावित हो रहा है।
रिपोर्ट में कहा गया है बाज़ार पहुँच संबंधी बाधाओं की पहचान और उनका निवारण बेहद आवश्यक है, क्योंकि इनके कारण अमेरिकियों के हित प्रभावित हो रहे हैं।
जालीपन के मुद्दे पर इस रिपोर्ट का कहना है कि वित्त वर्ष 2017 में अमेरिकी सीमा पर जब्त किये गए सभी नकली फार्मास्यूटिकल्स के मूल्य का नब्बे प्रतिशत चार अर्थव्यवस्थाओं (चीन, डोमिनिकन गणराज्य, हॉन्गकॉन्ग और भारत) के माध्यम से भेजा गया था।
रिपोर्ट के अनुसार, चीन और भारत वैश्विक स्तर पर वितरित नकली दवाओं के प्रमुख स्रोत हैं। एक अनुमान के मुताबिक भारतीय बाज़ार में बेची जाने वाली 20 प्रतिशत दवाएँ नकली हैं, जो मरीजों के स्वास्थ्य के लिये गंभीर खतरा पैदा कर सकती हैं।
हालाँकि, भारत को सार्वजनिक स्वास्थ्य मोर्चे पर ‘डॉक्टर्स विदाउट बॉर्डर्स’ से समर्थन प्राप्त हुआ है।
इस संगठन के अनुसार, अमेरिका ने इस रिपोर्ट के माध्यम से अनुचित तरीके से भारत जैसे देशों को निशाना बनाया है, क्योंकि यह दवाओं तक हर किसी की पहुँच में सुधार करने हेतु अंतर्राष्ट्रीय व्यापार नियमों के तहत कानूनी उपायों का उपयोग करके वैश्विक स्तर पर कोलंबिया, मलेशिया और अन्य देशों को सस्ती और गुणवत्तायुक्त जेनेरिक दवाओं की आपूर्ति करता है।
यह रिपोर्ट अमेरिका द्वारा अपनाई जा रही उसी नीति का हिस्सा है जिसके तहत वह अन्य देशों पर दबाव बनाकर अपनी फार्मास्यूटिकल्स कंपनियों को उन देशों में पेटेंट अधिकार दिलाने का प्रयास कर रहा है, ताकि मरीज़ों तक सस्ती दवाएँ आसानी से न पहुँच पाएँ।
संगठन का कहना है कि अमेरिका को भारत जैसे देशों, जो कि सस्ती दवाओं की आपूर्ति द्वारा अपने नागरिकों की देखभाल करने की कोशिश कर रहे हैं, को दोषी ठहराने के बजाय उनके साथ मिलकर ज़रूरतमंद लोगों तक दवाओं की आपूर्ति बढ़ाने हेतु प्रयास करना चाहिये।