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डेली न्यूज़

  • 13 May, 2020
  • 79 min read
अंतर्राष्ट्रीय संबंध

कश्मीर पर यूके की लेबर पार्टी की टिप्पणी

प्रीलिम्स के लिये:

लेबर पार्टी के घोषणापत्र में भारत

मेन्स के लिये:

लेबर पार्टी एवं भारतीय प्रवासियों के संबंधों का महत्त्व

चर्चा में क्यों?

ब्रिटेन की विपक्षी लेबर पार्टी के नव-निर्वाचित नेता कीर स्टारमर (Keir Starmer) द्वारा लेबर फ्रेंड्स ऑफ इंडिया (Labour Friends of India-LFI) समूह के साथ अपने पहले संवाद के दौरान कहा गया कि कश्मीर ‘भारत और पाकिस्तान के बीच ऐसा द्विपक्षीय मुद्दा है जिसे शांतिपूर्वक हल किया जा सकता था’।

प्रमुख बिंदु:

  • स्टारमर द्वारा ‘लेबर फ्रेंड्स ऑफ इंडिया’ के समहू के साथ अपने वक्तव्य में भारत के साथ मज़बूत व्यापारिक संबंध बनाने पर ज़ोर दिया गया।
  • कीर स्टारमर द्वारा इस बात पर बल दिया गया कि उनके नेतृत्त्व की लेबर पार्टी सरकार द्वारा भारत के साथ मज़बूत व्यापारिक संबंध कायम करने के अलावा वैश्विक मंच पर जलवायु परिवर्तन जैसे मुद्दों पर सहयोग करने के लिये दृढ़ संकल्पित होगी।

लेबर पार्टी का पूर्व रुख:

  • पिछले कुछ समय से भारतीय डायस्पोरा के साथ लेबर पार्टी के संबंध तनावपूर्ण रहे हैं।
  • इन संबंधों में तनाव की स्थिति विशेष रूप से तब ओर बढ़ी जब इसके प्रतिनिधियों द्वारा सितंबर 2019 में एक आपातकालीन नीति प्रस्ताव पारित कर अनुच्छेद 370 को रद्द करने के भारत के फैसले की आलोचना की। पार्टी द्वारा कहा गया कि कश्मीर के संबंध में वहाँ के लोगों को आत्मनिर्णय का अधिकार होना चाहिये।

लेबर पार्टी एवं भारतीय प्रवासियों के संबंधों का महत्त्व:

  • ब्रिटेन में भारतीय सबसे बड़े प्रवासी जातीय समुदाय के रूप में हैं, जिनकी संख्या 1.5 मिलियन से भी अधिक है।
  • ब्रिटेन की कुल आबादी में भारतीय का प्रतिशत 2.3 से भी अधिक है जो किसी भी पार्टी के लिये एक महत्त्वपूर्ण वोट बैंक हो सकता हैं।
  • वर्ष 2017 के आम चुनावों में ब्रिटेन में रहने वाले 50 प्रतिशत भारतीयों ने लेबर को वोट दिया था।

लेबर पार्टी के घोषणापत्र में भारत:

भारत की स्वंत्रता के पहले से ही, ब्रिटेन के कई ‘चुनाव घोषणा पत्रों’ में भारत से संबंधित मुद्दों को शामिल किया जाता रहा हैं। कुछ महत्त्वपूर्ण मुद्दे इस प्रकार हैं -

  • वर्ष 1945 में भारत की स्वंत्रता का मुद्दा लेबर पार्टी के ‘चुनावी घोषणापत्र’ में शामिल किया गया था जिसमें भारतीयों के लिये ज़िम्मेदार स्व-सरकार (Self-Government) प्रदान करने की बात शामिल थी।
  • वर्ष 1947 में क्लीमेंट रिचर्ड एटली (Clement Richard Attlee) ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बने जिनके द्वारा भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम,1947 पारित किया गया था।
  • वर्ष 2019 में जलियांवाला बाग हत्याकांड के लिए एक औपचारिक माफीनामा।

स्रोत: द इंडियन एक्सप्रेस


भारतीय राजव्यवस्था

आरोग्य सेतु एप और निजता संबंधी चिंताएँ

प्रीलिम्स के लिये

आरोग्य सेतु एप, निजता का अधिकार

मेन्स के लिये

निजता के अधिकार से संबंधित विभिन्न पक्ष 

चर्चा में क्यों?

हाल ही में इलेक्‍ट्रॉनिक्‍स एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय (Ministry of Electronics and Information Technology- MeitY) ने आरोग्य सेतु एप के संबंध में सरकारी एजेंसियों और तीसरे पक्ष के साथ इसके डेटा को साझा करने को लेकर दिशा-निर्देश जारी किये हैं।

प्रमुख बिंदु

  • उल्लेखनीय है कि कई विशेषज्ञों ने आरोग्य सेतु एप की प्रभावकारिता और सुरक्षा पर प्रश्नचिन्ह लगाए थे। साथ ही कानूनी विशेषज्ञों ने आरोग्य सेतु एप की गोपनीयता नीति पर भी चिंता ज़ाहिर की थी।
  • विशेषज्ञों का मत है कि सरकार को आरोग्य सेतु एप की डेटा संबंधित नीति को व्यक्तिगत डेटा संरक्षण कानूनों के साथ संलग्न करना चाहिये। उल्लेखनीय है कि वर्तमान में भारत का व्यक्तिगत डेटा संरक्षण बिल संसद द्वारा अनुमोदित किये जाने की प्रक्रिया में है।

COVID-19 और व्यक्तिगत डेटा का महत्त्व

  • इस संबंध में देश के IT सचिव अजय प्रकाश साहनी द्वारा जारी कार्यकारी आदेश के अनुसार, ‘COVID-19 महामारी को उचित ढंग से संबोधित करने के लिये स्वास्थ्य प्रतिक्रियाओं और नीतियों का निर्माण किया जाना आवश्यक है, जिसके लिये नीति निर्माताओं को आम लोगों के व्यक्तिगत डेटा की आवश्यकता होगी।’
    • विदित हो कि यहाँ, एक व्यक्ति से अभिप्राय उन लोगों से है जो या तो संक्रमित हैं या उनके लिये संक्रमित होने का उच्च जोखिम है अथवा जो संक्रमित व्यक्तियों के संपर्क में आए हैं।
  • अतः नीति निर्माण से संबंधित उद्देश्य की पूर्ति के लिये और यह सुनिश्चित करने के लिये कि एप के माध्यम से एकत्रित किये गए डेटा को उपयुक्त तरीके से इकट्ठा, संसाधित और साझा किया जाए, सरकार ने ये दिशा-निर्देश जारी किये हैं।
  • उल्लेखनीय है कि केंद्र, राज्य और केंद्र शासित प्रदेशों के विभिन्न मंत्रालयों और विभागों द्वारा सोशल डिस्टेंसिंग जैसे एहतियाती उपायों और संक्रमित व्यक्तियों के उपचार से संबंधित कई एडवाइज़री और बयान जारी किये हैं। ऐसे में इन सभी के प्रभावी कार्यान्वयन को सुनिश्चित करने के लिये केंद्र, राज्य और केंद्र शासित प्रदेशों के विभिन्न मंत्रालयों और विभागों के साथ आवश्यक डेटा को साझा करने की आवश्यकता है। 

किस प्रकार का डेटा एकत्र करेगा आरोग्य सेतु एप

  • आरोग्य सेतु एप के माध्यम से एकत्र किये गए डेटा को मुख्य तौर पर 4 श्रेणियों में विभाजित किया गया है- (1) जनसांख्यिकीय संबंधी डेटा (2) संपर्क संबंधी डेटा (3) स्व-मूल्यांकन संबंधी डेटा (4) स्थान संबंधी डेटा।
    • इन सभी को समग्र रूप से प्रतिक्रिया डेटा (Response Data) कहा जाता है।
  • जनसांख्यिकीय संबंधी डेटा में नाम, मोबाइल नंबर, आयु, लिंग, पेशे और यात्रा इतिहास जैसी सामान्य जानकारी एकत्रित की जाती हैं।
  • संपर्क संबंधी डेटा किसी अन्य व्यक्ति के संबंध में होता है जो एप के उपयोगकर्त्ता के संपर्क में आया है, इस प्रकार के डेटा में संपर्क की अवधि, व्यक्तियों के मध्य समीप दूरी और भौगोलिक स्थान आदि भी शामिल होते हैं।
  • स्व-मूल्यांकन संबंधी डेटा में एप के प्रयोगकर्त्ता द्वारा एप में मौजूदा स्व-मूल्यांकन परीक्षण (Self-Assessment Test) में दी गई प्रतिक्रियाओं को शामिल किया जाता है।
  • स्थान संबंधी डेटा में किसी व्यक्ति की भौगोलिक स्थिति का विवरण शामिल होता है।

आरोग्य सेतु एप


  • आरोग्य सेतु एप को सार्वजनिक-निजी साझेदारी (Public-Private Partnership) के माध्यम से तैयार एवं गूगल प्ले स्टोर पर लॉन्च किया गया है।
  • इस एप का मुख्य उद्देश्य COVID-19 से संक्रमित व्यक्तियों एवं उपायों से संबंधित जानकारी उपलब्ध कराना होगा।
  • यह एप 11 भाषाओं में उपलब्ध है और साथ ही इसमें देश के सभी राज्यों के हेल्पलाइन नंबरों की सूची भी दी गई है।
  • किसी व्यक्ति में कोरोनावायरस के जोखिम का अंदाज़ा लगाने के लिये आरोग्य सेतु एप द्वारा ब्लूटूथ तकनीक, एल्गोरिदम (Algorithm), आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) का प्रयोग किया जाता है।
  • एक बार स्मार्टफोन में इन्स्टॉल होने के पश्चात् यह एप नज़दीक के किसी फोन में आरोग्य सेतु के इन्स्टॉल होने की पहचान कर सकता है।

कौन प्राप्त कर सकता है यह डेटा

  • आरोग्य सेतु एप के संबंध में सरकार द्वारा जारी दिशा-निर्देशों के अनुसार, एप के  प्रतिक्रिया डेटा (Response Data) को एप के डेवलपर यानि राष्ट्रीय सूचना विज्ञान केंद्र (National Informatics Centre-NIC) द्वारा ऐसे मंत्रालय, विभागों और संस्थाओं के साथ साझा किया जाएगा, जहाँ नीति निर्माण के लिये इस प्रकार का डेटा एक आवश्यक घटक हो।
    • इसमें केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय, राज्य/केंद्र शासित प्रदेशों/स्थानीय सरकारों के स्वास्थ्य विभाग, राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण, राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण, केंद्र और राज्य सरकारों के अन्य मंत्रालय तथा विभाग और केंद्र/राज्य/स्थानीय सरकारों के अन्य सार्वजनिक स्वास्थ्य संस्थान आदि शामिल हैं।
  • जारी किये गए निर्देशों में तीसरे पक्ष के साथ भी डेटा साझा करने संबंधी नियमों का उल्लेख किया गया है। नियमों के अनुसार, ऐसा केवल तभी किया जाएगा जब यह COVID-19 के संबंध में प्रतिक्रियाओं और नीतियों के निर्माण में प्रत्यक्ष रूप से अनिवार्य हो।
  • इसके अतिरिक्त, COVID-19 से संबंधित अनुसंधान के लिये भी प्रतिक्रिया डेटा (Response Data) को भारतीय विश्वविद्यालयों या अनुसंधान संस्थानों और भारत में पंजीकृत अनुसंधान संस्थाओं के साथ साझा किया जा सकता है।

डेटा साझाकरण संबंधी नियम

  • सरकार द्वारा दिये गए निर्देशों के अनुसर मंत्रालयों, सरकारी विभागों और अन्य प्रशासनिक एजेंसियों के साथ जो प्रतिक्रिया डेटा (Response Data) साझा किया जाएगा वह डी-आइडेंटिफाईड (De-Identified) रूप में होना अनिवार्य है।  
    • डी-आइडेंटिफिकेशन (De-identification) का अभिप्राय किसी की व्यक्तिगत पहचान को प्रकट होने से रोकने के लिये प्रयोग की जाने वाली प्रक्रिया से है।
  • इसका अर्थ है कि जनसांख्यिकीय डेटा के अतिरिक्त प्रतिक्रिया डेटा (Response Data) से वह सभी सूचनाएँ हटा ली जाएंगी जो किसी व्यक्ति की पहचान को संभव बना सकती हैं।
  • इसके अतिरिक्त NIC जहाँ तक संभव हो सके डेटा के साझाकरण का दस्तावेज़ीकरण (Documentation) करेगा और उन एजेंसियों की सूची बनाएगा जिनके साथ इस प्रकार का डेटा साझा किया गया है।
  • डेटा साझाकरण के इन दस्तावेज़ों में डेटा साझा करने का समय, किस व्यक्ति के साथ डेटा साझा किया गया है, साझा किये गए डेटा की श्रेणी और डेटा साझा करने का उद्देश्य जैसी जानकारियाँ शामिल होंगी।
  • दिशा-निर्देशों के अनुसार, कोई भी संस्था 180 से अधिक दिनों के लिये आरोग्य सेतु से संबंधित किसी भी डेटा को अपने पास नहीं रख सकती है।

संबंधित चिंताएँ

  • इस एप को लेकर कई विशेषज्ञों ने निजता संबंधी चिंता ज़ाहिर की है। विशेषज्ञों के अनुसार, सरकार द्वारा ऐसी कोई विशेष गारंटी नहीं दी गई है, कि हालत सुधरने के पश्चात् उपयोगकर्त्ताओं से संबंधित व्यक्तिगत डेटा को नष्ट कर दिया जाएगा।
  • इलेक्ट्रॉनिक सर्विलांस के माध्यम से एकत्रित किये जा रहे डेटा के प्रयोग में लाए जाने से निजता के अधिकार का हनन होने के साथ ही सर्वोच्च न्यायलय के आनदेश का भी उल्लंघन होगा जिसमें निजता के अधिकार को संवैधानिक अधिकार बताया गया है।
  • विशेषज्ञों के अनुसार, तीसरे पक्ष के साथ डेटा साझा करने की नीति चिंता का सबसे महत्त्वपूर्ण विषय है, क्योंकि इससे उपयोगकर्त्ताओं के निजी डेटा के दुरुपयोग की संभावना और अधिक प्रबल हो गई है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस 


भारतीय राजव्यवस्था

राज्यसभा में बहुमत का महत्त्व

प्रीलिम्स के लिये:

संयुक्त बैठक का आयोजन

मेन्स के लिये:

राज्यसभा की भूमिका, राज्यसभा में बहुमत का महत्त्व

चर्चा मे क्यों?

वर्तमान सरकार के पास लोकसभा में बहुमत होने के बावजूद राज्यसभा में बहुमत नहीं है। ऐसी स्थिति ने राज्यसभा की कानून निर्माण में भूमिका को पुन: चर्चा के केंद्र में ला दिया है।

प्रमुख बिंदु:

  • भारतीय संविधान के अनुच्छेद 79 के अनुसार, संघ के लिये एक संसद होगी, जो राष्ट्रपति और दो सदनों से मिलकर बनेगी।
  • भारतीय संविधान, लोकसभा और राज्यसभा को कुछ अपवादों को छोड़कर कानून निर्माण की शक्तियों में समान अधिकार देता है।  

राज्यसभा का संगठन:

  • भारतीय संविधान का अनुच्छेद-80, राज्यसभा के गठन का प्रावधान करता है। राज्यसभा के सदस्यों की अधिकतम संख्या 250 हो सकती है, परंतु वर्तमान में यह संख्या 245 है। इनमें से 12 सदस्यों को राष्ट्रपति द्वारा साहित्य, विज्ञान, कला और समाज सेवा से संबंधित क्षेत्र के 12 सदस्यों को मनोनीत किया जाता है। 
  • यह एक स्थायी सदन है अर्थात् राज्यसभा का विघटन कभीं नहीं होता है। राज्यसभा के सदस्यों का कार्यकाल 6 वर्ष होता है। जबकि राज्यसभा के एक-तिहाई सदस्यों का चुनाव दूसरे वर्ष में किया जाता है। जो इसकी स्थायी प्रकृति को दर्शाता है।

राज्यसभा में बहुमत का महत्त्व:

  • संसद के दोनों सदनों के संगठन तथा संरचना में व्यापक अंतर होने के बावजूद राज्यसभा में सरकार के बहुमत की उपस्थिति से कानून निर्माण प्रक्रिया, प्रतिकूल रूप से प्रभावित नहीं हुई है। इसे निम्नलिखित उदाहरणों से समझ सकते हैं। 

बहुमत के अभाव के बावजूद विधेयकों का पास होना:

  • वर्ष 1952 के प्रथम आम चुनावों से पिछले 68 वर्षों के दौरान सरकार राज्यसभा में केवल 29 वर्षों के लिये बहुमत में रही जबकि शेष 39 वर्षों के लिये अल्पमत में रही है।
  • इसके बावजूद वर्ष 1952 से राज्यसभा ने 5,472 बैठकों में 3,857 विधेयकों को पारित किया है। राज्यसभा ने अपनी 68 वर्षों की इस लंबी यात्रा में विधान निर्माण बहुत कम मामलों में एक 'अवरोधनकारी सदन' की भूमिका निभाई है।

संयुक्त बैठक का आयोजन:

  • संसद का संयुक्त अधिवेशन बुलाने का प्रावधान संविधान के अनुच्छेद-108 में है। इस प्रावधान के तहत लोकसभा से पारित किसी सामान्य विधेयक को राज्यसभा की मंज़ूरी न मिलने की स्थिति में संयुक्त बैठक के जरिये उसे पारित किया जा सकता है।
  • अब तक संसद ने दोनों सदनों के बीच मतभेदों को हल करने के लिये केवल तीन संयुक्त बैठकों का आयोजन किया गया है।
  • प्रथम, संयुक्त बैठक का आयोजन वर्ष 1961 में किया गया था, जब तत्कालीन सरकार को राज्यसभा में बहुमत होने के बावजूद 'दहेज निषेध विधेयक (Dowry Prohibition Bill)- 1959 के मामले में हार का सामना करना पड़ा था।
  • द्वितीय, संयुक्त बैठक वर्ष 1978 में आयोजित की गई जब राज्यसभा द्वारा ‘बैंकिंग सेवा आयोग (निरसन) विधेयक’ (Banking Services Commission (Repeal) Bill)- 1977 को अस्वीकार कर दिया गया।
  • तृतीय, संयुक्त बैठक का आयोजन वर्ष 2002 में ‘आतंकवाद निरोधक विधेयक’  (Prevention of Terrorism Bill)- 2002 के राज्यसभा में पारित नहीं होने पर किया गया।

सरकार को बहुमत होने के बावजूद हार का सामना करना पड़ा:

  • राज्यसभा को कुछ मामलों में प्रतिगामी सदन (Regressive House) के रूप में देखा जा सकता है जब सरकार को राज्यसभा में बहुमत होने के बावजूद हार का सामना करना पड़ा। 
  • जब पूर्ववर्ती शासकों की प्रिवी पर्स को समाप्त करने वाले 24वें संविधान संशोधन विधेयक (Constitution (Twenty-fourth Amendment) Bill)-1970 को  लोकसभा द्वारा पारित करने के बावजूद, राज्यसभा द्वारा अस्वीकार कर दिया।
  • वर्ष 1989 में संविधान (64वाँ और 65वाँ संशोधन) विधेयक (Constitution (Sixty-fourth and Sixty-fifth Amendment) Bills); जिसमें स्थानीय सरकारों को सशक्त करने संबंधी प्रावधान शामिल थे, के संबंध में सरकार के पास बहुमत होने के बावजूद हार का सामना करना पड़ा।

संसद के दोनों सदनों के मध्य मतभेद:

  • दोनों सदनों के बीच सौहार्द की भावना में निम्नलिखित कुछ अवसरों पर मतभेद देखने को मिला:
  • वर्ष 1952 में राज्यसभा के सदस्यों को 'लोक लेखा समिति' (Public Accounts Committee) में शामिल नहीं करने के मामले; 
  • आयकर (संशोधन) विधेयक (Income Tax (Amendment) Bill)- 1953 को धन विधेयक के रूप में पेश करने के मामले;
  • ‘प्रमुख बंदरगाह न्यास विधेयक’ (Major Port Trust Bill)-1963 को राज्यसभा सदस्यों को शामिल किये बिना लोकसभा की चयन समिति को पेश करने के मामले पर;
  • वर्ष 1954, 1971, 1972 और 1975 में राज्यसभा के विघटित करने के लिये लोकसभा द्वारा प्रस्ताव पारित किये गए। हालाँकि इस प्रकार के प्रयास विफल रहे।

धन विधेयक के संबंध में भूमिका:

  • संविधान के अनुच्छेद 110(3) के अनुसार कोई विधेयक धन विधेयक है या नहीं, इसका निर्धारण लोकसभा अध्यक्ष करता है। राज्यसभा धन विधेयक को अधिकतम 14 दिनों के लिये अपने पास रख सकती है। 
  • इस अवधि में राज्यसभा धन विधेयक को संशोधन अथवा बिना संशोधन के साथ लोक सभा को लौटाने को बाध्य है। यद्यपि लोक सभा इन संशोधन प्रस्तावों को ठुकरा सकती है।
  • 'त्रावणकोर कोचीन विनियोग विधेयक'- 1956, आयकर विधेयक- 1961 जैसे कुछ अवसरों के समय राज्यसभा द्वारा धन में किये गए संशोधनों को लोक सभा द्वारा स्वीकार किया गया था। परंतु यहाँ ध्यान देने योग्य तथ्य यह है कि उस समय तात्कालिक सरकार को राज्यसभा में भी बहुमत प्राप्त था। 

महत्त्वपूर्ण विधेयकों पर व्यापक चर्चा: 

  • कुछ विधेयकों जैसे भ्रष्टाचार निरोधक विधेयक (Prevention of Corruption Bill)-1987 को पास करने में राज्यसभा द्वारा बहुत लंबा समय लिया गया क्योंकि वह इन विधेयकों पर व्यापक आम सहमति बनाना चाहती थी। 
  • हालाँकि कुछ मामलों में जैसे- 25 अगस्त, 1994 को सरकार का राज्यसभा में बहुमत नहीं होने के बावजूद एक दिन में पाँच संविधान संशोधन विधेयक पारित किये गए। राज्यसभा ने लोकसभा द्वारा पारित कई विधेयकों में संशोधन भी किये हैं तथा इन संशोधनों को लोकसभा द्वारा भी स्वीकार किया गया है।

वर्तमान सरकार में राज्यसभा की भूमिका:

  • वर्तमान सरकार को राज्यसभा में बहुमत नहीं होने के बावजूद जीएसटी, दिवाला और दिवालियापन संहिता, तीन तलाक, गैरकानूनी गतिविधियों, जम्मू-कश्मीर के पुनर्गठन, नागरिकता संशोधन आदि से संबंधित ऐतिहासिक कानून पारित किये गए हैं। उपर्युक्त विवरण से स्पष्ट है कि राज्यसभा में सदस्य संख्या कानून बनाने के संबंध में बड़ा मुद्दा नहीं है।

राज्यसभा की उत्पादकता:

  • सचिवालय विश्लेषण के अनुसार, वर्ष 1997 तक राज्यसभा की उत्पादकता 100% या उससे भी अधिक रही है। हालाँकि पिछले 23 वर्षों ने राज्यसभा में बढ़ती रुकावटों के कारण राज्यसभा की उत्पादकता में लगातार कमी देखी गई है। 
  • वर्ष 1998-2004 के दौरान राज्यसभा की उत्पादकता में 87% तक की कमी देखी गई है। वर्ष 2005-14 के दौरान राज्यसभा की उत्पादकता 76% रही जबकि वर्ष 2015-19 के दौरान उत्पादकता 61% देखी गई।
  • वर्ष 1978-2004 के दौरान सदन के कुल कार्यात्मक समय में राज्यसभा का हिस्सा 39.50% था। जिसमें लगातार कमी देखी गई है तथा यह वर्ष 2005-14 के दौरान घटकर 21.99% तथा वर्ष 2015 के बाद से घटकर 12.34% रह गया है।
  • राज्यसभा की उत्पादकता में गिरावट मुख्य रूप से प्रश्नकाल में व्यवधान, विधेयकों को बिना चर्चा के पारित करने के रूप में देखी गई है। 
  • हालाँकि राज्यसभा लघु अवधि की चर्चा, शून्य काल, बजट पर चर्चा, धन्यवाद प्रस्ताव आदि के तहत विचार-विमर्श के समय में लगातार वृद्धि देखी गई है। यह वर्ष 1978-2004 के दौरान 33.54% से बढ़कर वर्ष 2005-2014 के दौरान 41.42% तथा वर्ष 2015-19 के दौरान 46.59% हो गया है। इन प्रस्तावों पर चर्चा के समय में वृद्धि के बावजूद राज्यसभा की उत्पादकता में कमी देखी गई है। 

निष्कर्ष:

  • राज्यसभा एवं लोकसभा दोनों सदनों ने वर्ष 1952 के बाद से देश के सामाजिक-आर्थिक परिवर्तन लाने में रचनात्मक भागीदार की भूमिका निभाई है। दोनों सदनों की संरचना में व्यापक अंतर होने के बावजूद दोनों सदनों ने सहयोग और सहकारिता की भावना के आधार पर कार्य किया है। अत: राज्यसभा एक  'व्यवधानकारी' सदन न होकर एक ‘रचनात्मक’ सदन है।

स्रोत: द हिंदू


अंतर्राष्ट्रीय संबंध

वंदे भारत मिशन और प्रवासी भारतीय

प्रीलिम्स के लिये:

वंदे भारत मिशन, ओवरसीज़ सिटीज़नशिप ऑफ इंडिया, एच 1 बी वीज़ा

मेन्स के लिये:

ओवरसीज़ सिटीज़नशिप ऑफ इंडिया/ग्रीन कार्ड/एच 1 बी वीज़ा धारकों से संबंधित मुद्दे 

चर्चा में क्यों?

भारत सरकार द्वारा चलाए जा रहे ‘वंदे भारत मिशन’ (Vande Bharat Mission) के तहत ‘ओवरसीज़ सिटीज़नशिप ऑफ इंडिया’ (Overseas Citizen of India- OCI)/ग्रीन कार्ड (Green Card)/एच 1 बी (H-1B) वीज़ा धारकों को भारत आने में काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ कर रहा है।  

प्रमुख बिंदु:

  • उल्लेखनीय है कि एक हालिया सरकारी अधिसूचना के तहत, सभी मौजूदा भारतीय वीज़ा धारकों, और OCI कार्ड धारकों (जो भारत में नहीं हैं) को दी जाने वाली वीज़ा-मुक्त यात्रा सुविधा को अंतर्राष्ट्रीय हवाई यात्रा पर प्रतिबंध तक निलंबित कर दिया गया है।
  • COVID-19 के कारण अमेरिका में बेरोज़गारी दर में अभूतपूर्व वृद्धि देखी गई है और पिछले दो महीनों में 33 मिलियन से अधिक लोगों ने अपनी नौकरी खो दी है।
  • ध्यातव्य है कि अमेरिका में लोगों को अपनी नौकरी गंवाने के बाद उन्हें कानूनी रूप से 60 दिनों के भीतर अपने देश लौटना होता है। 
  • अप्रैल 2020 में H-1B वीज़ा धारकों (ज्यादातर भारतीयों) ने अपने प्रवास को 60 से बढ़ाकर 180 दिन करने हेतु व्हाइट हाउस में एक याचिका दायर की थी। हालाँकि, व्हाइट हाउस की ओर से इस पर अभी तक कोई फैसला नहीं किया गया है।
  • अपनी नौकरी खो चुके भारतीय या अन्य देशों के नागरिकों के पास घर वापस जाने के अलावा और कोई दूसरा विकल्प नहीं है।
  • उल्लेखनीय है कि कोरोनावायरस से जुड़े वैश्विक यात्रा प्रतिबंधों के बीच एयर इंडिया द्वारा चलाई जा रही विशेष उड़ानों में अमेरिका में कई भारतीयों को भारत की यात्रा करने से रोका जा रहा है क्योंकि इनके बच्चे जन्म से अमेरिकी नागरिक हैं।

वंदे भारत मिशन (Vande Bharat Mission):

  • कोरोनावायरस के कारण वैश्विक यात्रा पर प्रतिबंध होने से विदेश में फंसे भारतीय नागरिकों को वापस लाने हेतु ‘वंदे भारत मिशन’ चलाया गया है।
  • इस मिशन के तहत विदेशों में फंसे लगभग 1,5000 भारतीय नागरिकों को वापस भारत लाया जाएगा।
  • इसके लिये भारत सरकार द्वारा 7-13 मई तक 64 हवाई उड़ानों का संचालन किया जाएगा। 
  • इस मिशन के अंतर्गत कुछ ही लोगों को भारत वापस लौटने की अनुमति दी जाएगी जैसे- जिनके रोज़गार समाप्त हो गए हैं, जिनके वीजा समाप्त हो गए हैं और वर्तमान परिस्थितियों के कारण उत्पन्न समस्या से अपने परिवार के सदस्यों को खो दिया हो।
  • वर्ष 1990 में खाड़ी युद्ध के दौरान कुवैत से 1.7 लाख लोगों के निकासी ऑपरेशन के बाद यह मिशन अब तक का सबसे बड़ा निकासी ऑपरेशन हो सकता है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


सामाजिक न्याय

‘वैश्विक पोषण रिपोर्ट-2020'

प्रीलिम्स के लिये:

‘वैश्विक पोषण रिपोर्ट-2020', कुपोषण

मेन्स के लिये:

कुपोषण और खाद्य सुरक्षा से संबंधित प्रश्न 

चर्चा में क्यों?

हाल ही में जारी ‘वैश्विक पोषण रिपोर्ट-2020' (Global Nutrition Report 2020) के अनुसार, भारत विश्व के उन 88 देशों में शामिल है, जो संभवतः वर्ष 2025 तक ‘वैश्विक पोषण लक्ष्यों’ (Global Nutrition Targets) को प्राप्त करने में सफल नहीं हो सकेंगे।

मुख्य बिंदु:

  • पोषण लक्ष्य: वर्ष 2012 में विश्व स्वास्थ्य सभा (World Health Assembly) में माँ, शिशु और किशोर बच्चों में 6 पोषण लक्ष्यों की पहचान की गई, जिन्हें वर्ष 2025 तक प्राप्त किया जाना था।  
    1. 5 वर्ष से कम आयु के बच्चों में वृद्धिरोध या बौनापन (Stunting) के मामलों में 40% की कमी,
    2. 19-50 वर्ष की आयु की महिलाओं में एनीमिया (Anaemia) के मामलों में 50% की कमी,
    3. कम वज़न के शिशुओं के जन्म के मामलों में 30% की कमी को सुनिश्चित करना,
    4. बच्चों में मोटापे के मामलों में वृद्धि को पूरी तरह से रोकना,
    5. शिशु के जन्म के पहले 6 महीनों में अनन्य स्तनपान (जन्म के शुरुआती 6 माह में शिशु को केवल माँ का दूध) की दर को 50% तक बढ़ाना,
    6. बाल निर्बलता/दुबलापन (Child wasting) के मामलों में कमी लाना और इसे 5% से कम बनाए रखना।  

‘वैश्विक पोषण रिपोर्ट-2020’ और भारत:

  • वैश्विक पोषण रिपोर्ट के अनुसार, वर्तमान में जिन चार मानकों के आँकड़ों उपलब्ध हैं, भारत उनमें से किसी भी लक्ष्य को नहीं प्राप्त कर सकेगा।  
    • ये चार मानक 5 वर्ष से कम आयु के बच्चों में वृद्धिरोध, प्रजनन योग्य आयु (Reproductive Age) की महिलाओं में एनीमिया के मामले, बच्चों में मोटापा और अनन्य स्तनपान (Exclusive Breastfeeding) हैं।
  • इस रिपोर्ट के अनुसार, भारत कुपोषण के मामले में सबसे अधिक स्थानीय असमानता वाले देशों में से एक है।
  • हालाँकि पूर्व में भारत में बच्चों और किशोरों में कम वजन के मामलों की दर में कमी लाने में सफलता प्राप्त हुई थी।

कुपोषण (Malnutrition):

  • विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, कुपोषण किसी व्यक्ति में ऊर्जा और/या पोषक तत्त्वों की कमी, अधिकता अथवा असंतुलन को दर्शाता है।
  • सामान्य रूप से कुपोषण को तीन समूहों में विभाजित किया जा सकता है: 
  • अल्प-पोषण (Undernutrition): इसमें निर्बलता/दुबलापन (लंबाई के अनुपात में वज़न में कमी ), वृद्धिरोध (आयु के अनुपात में लंबाई में कमी) और वज़न में कमी शामिल है। 
  • सूक्ष्म पोषक तत्त्व संबंधी कुपोषण (Micronutrient-Related Malnutrition): इसमें शरीर में सूक्ष्म पोषक तत्त्वों की कमी (महत्वपूर्ण विटामिन और खनिजों की कमी) या अधिकता (Excess) शामिल है।
  • वजन की अधिकता: इसमें मोटापा या आहार संबंधी गैर-संचारी रोग (जैसे हृदय रोग, स्ट्रोक, मधुमेह और कुछ कैंसर) आदि शामिल हैं।

भारतीय बच्चों में कम वजन और कुपोषण:

  • वर्ष 2000 से लेकर वर्ष 2016 तक लड़कों में कम वज़न के मामलों की दर 66% से घटकर 58.1% तक पहुँच गई साथ ही इसी दौरान लड़कियों में कम वज़न के मामलों की दर 54.2% से घटकर 50.1% तक पहुँच गई थी। 
  • हालाँकि कम वज़न के मामलों में आई यह कमी अभी भी एशिया के औसत (लड़कों में 35.6% और लड़कियों में 31.8%) से काफी ज़्यादा है। 
  • इसके अतिरिक्त भारत में 37.9% बच्चों में वृद्धिरोध या बौनेपन और 20.8% में निर्बलता या दुबलेपन के मामले देखे गए है जबकि एशिया में यह औसत क्रमशः 22.7% और 9.4% है।

एनीमिया: 

  • रिपोर्ट के अनुसार, भारत में प्रजनन योग्य आयु की दो में से एक महिला में एनीमिया के मामले देखे गए है।  

मोटापा: 

  • भारतीयों में वजन बढ़ने और मोटापे के मामलों की दर में काफी वृद्धि (पुरुषों में17.8% और महिलाओं में 21.6%) देखी गई है, जिसके कारण लगभग हर 5 में से एक वयस्क इस समस्या से प्रभावित है।

कुपोषण और असमानता:

  • इस रिपोर्ट में कुपोषण और पक्षपात या अन्याय (Inequity) के बीच संबंधों पर विशेष ज़ोर दिया गया है।
    • इनमें भौगोलिक स्थिति, आयु, लिंग, जातीय असमानता, शिक्षा और आर्थिक आधार आदि प्रमुख हैं। 
  • रिपोर्ट के अनुसार, भोजन और स्वास्थ्य प्रणाली में व्याप्त पक्षपात पोषण परिणामों में असमानता को बढ़ाता है, जिससे समाज में अधिक पक्षपात को बढ़ावा मिल सकता है और इस तरह यह समाज में पक्षपात तथा असमानता के एक अंतहीन दुष्चक्र को जन्म देता है।   

भारत के संदर्भ में: 

  • इस रिपोर्ट में भारत की पहचान नाइजीरिया और इंडोनेशिया के साथ उन तीन सबसे खराब देशों में की गई है, जहाँ वृद्धिरोध के मामलों में सबसे अधिक असमानता देखी गई, इनमें विभिन्न समुदायों के बीच वृद्धिरोध के स्तर का अंतर लगभग चार गुना था। 
  • उत्तर प्रदेश राज्य में वृद्धिरोध के मामलों की दर 40% से अधिक थी, साथ ही उच्चतम आय वर्ग की तुलना में निम्नतम आय वर्ग के लोगों में ऐसे मामलों की दर दोगुने से भी अधिक थी।
  • वर्ष 2019 में ‘केंद्रीय सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय’ और संयुक्त राष्ट्र विश्व खाद्य कार्यक्रम (United Nations World Food Programme- WFP) के सहयोग से जारी ‘खाद्य एवं पोषण सुरक्षा विश्लेषण, भारत 2019’ (Food and Nutrition Security Analysis, India, 2019)  रिपोर्ट में भी भारत में कुपोषण के मामलों पर चिंताजनक आँकड़े जारी किये गए थे।
  • इस रिपोर्ट के अनुसार, देश में पिछड़े वर्गों से आने वाले लोगों में वृद्धिरोध के मामलों में सबसे अधिक वृद्धि (अनुसूचित जाति में 43.6%, अनुसूचित जनजाति में 42.5% और अन्य पिछड़ा वर्ग के लोगों में 38.6%) देखी गई थी।

आगे की राह:

  • पिछले कुछ वर्षों में भारत में कृषि उपज में भारी वृद्धि हुई है परंतु देश का प्रशासनिक तंत्र कुपोषण को समाप्त करने में सफल नहीं रहा है, इसका सबसे बड़ा कारण देश के विभिन्न क्षेत्रों में उन्नत किस्म के खाद्य पदार्थों की पहुँच में कमी, जागरूकता का अभाव और प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों की निष्क्रियता है।
  • देश के विकास में महिला की भूमिका को देखते हुए महिला सशक्तिकरण और जागरूकता के कार्यक्रमों में वृद्धि की जानी चाहिये।
  • ग्रामीण क्षेत्रों में एएनएम् (ANM) और अन्य स्थानीय कार्यकर्ताओं तथा आँगनबाड़ी केंद्रों के माध्यम से गर्भवती महिलाओं और बच्चों के लिये पोषक भोजन की पहुँच में वृद्धि की जानी चाहिये। सरकार द्वारा प्रस्तावित राष्ट्रीय शिक्षा नीति में आँगनबाड़ी केंद्रों की पहुँच में विस्तार की बात कही गई है जो इस दिशा में एक सकारात्मक कदम है।
  • प्रतिवर्ष देश में विभिन्न सरकारी खाद्य भंडार केंद्रों में उपयुक्त भंडारण संसाधनों या समन्वय के अभाव में बड़ी मात्रा में अनाज बर्बाद हो जाता है, अतः वितरण प्रणाली में सुधार के साथ-साथ भंडारण केंद्रों की नियमित जाँच कर उपयुक्त समाधान किये जाने चाहिये।
  • COVID-19 महामारी के बाद देश में एक बार पुनः ‘1 देश 1 राशनकार्ड’ की मांग तेज़ हुई है, इस कार्यक्रम के माध्यम से देश के विभिन्न क्षेत्रों में कार्य कर रहे प्रवासी मज़दूरों को सस्ती दरों पर पोषक तत्त्वों से युक्त अनाज उपलब्ध कराने में सहायता प्राप्त होगी।   

स्रोत: द हिंदू


भारतीय अर्थव्यवस्था

नवीन आर्थिक सिद्धांतों को लागू करने आवश्यकता

प्रीलिम्स के लिये:

वाशिंगटन सहमति

मेन्स के लिये:

भारत को नवीन आर्थिक मॉडल की आवश्यकता 

चर्चा में क्यों?

अर्थशास्त्रियों के अनुसार, COVID-19 महामारी के साथ 'वाशिंगटन सहमति' (Washington Consensus) प्रतिमान; जो व्यापक आर्थिक उदारीकरण पर बल देती है, की समाप्ति संभव है तथा वैश्विक अर्थव्यवस्थाएँ महामारी के बाद नवीन आर्थिक प्रतिमानों को अपना सकती है।

प्रमुख बिंदु:

  • COVID-19 महामारी, सभी देशों को अपने अर्थव्यवस्थाओं के मॉडलों पर पुनर्विचार करने का अवसर देता है।
  • यह महामारी देशों को अर्थव्यवस्था को अधिक लचीला तथा निष्पक्ष बनाने का बेहतर अवसर प्रदान करती है।

वाशिंगटन सहमति' (Washington Consensus):

पृष्ठभूमि:

  • वर्ष 1970 के दशक के उत्तरार्द्ध तक 'राज्य समर्थित अर्थव्यवस्था' के साथ जुड़ी अनेक सीमाओं से विश्व परिचित हुआ तथा बाज़ार आधारित अर्थव्यवस्थाओं अर्थात् निजी क्षेत्र को प्रोत्साहन देना प्रारंभ किया गया।
  • निजी क्षेत्र की भूमिका को बढ़ाने की दिशा में कई देशों द्वारा अर्थव्यवस्था में 'सरकार की न्यूनतम भूमिका' के तर्क के साथ अपनी आर्थिक नीतियों में व्यापक बदलाव का समर्थन किया गया।
  • 'वाशिंगटन सहमति' के माध्यम से देशों को उदारवादी विकास रणनीतियों को अपनाने पर बल दिया गया।
  • यह आम सहमति आर्थिक सुधार को निर्देशित करने वाली आर्थिक नीतियों का एक समूह है। इसमें वृहद आर्थिक स्थिरीकरण, व्यापार तथा निवेश के क्षेत्र में अर्थव्यवस्था को खोलना तथा घरेलू अर्थव्यवस्था के लिये भी बाज़ार आधारित शक्तियों का विस्तार करना आदि शामिल हैं।

‘वाशिंगटन सहमति’ नाम क्यों? 

  • 'वाशिंगटन सहमति' शब्द का प्रयोग सामान्यत: ‘अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (International Monetary Fund), विश्व बैंक (World Bank) और 'अमेरिकी डिपार्टमेंट ऑफ ट्रेज़री' के बीच आर्थिक सुधारों तथा उदारीकरण की सहमति के लिये प्रयुक्त किया जाता है। 
  • इस सहमति के माध्यम से इस बात पर ज़ोर दिया गया कि ‘वैश्विक दक्षिण’ (Global South) एशिया, अफ्रीका, दक्षिण अमेरिका के विकासशील देशों के लिये प्रयुक्त किया जाने वाला सामान्य शब्द) के विकास के लिये नव उदारवाद, मुक्त बाज़ार व्यवस्था तथा ‘राज्य का न्यूनतम हस्तक्षेप’ आवश्यक है।

नवीन आर्थिक प्रतिमान: 

  • ‘COVID-19 महामारी के बाद के चरण में हमें नवीन आर्थिक मॉडल; जो बॉटम-अप उपागम पर आधारित है, की आवश्यकता है। इस दिशा में निम्नलिखित तीन आर्थिक सिद्धांतों को लागू किया जाना चाहिये।

'इकॉनोमी ऑफ स्केल' के स्थान पर 'इकॉनोमी ऑफ स्कॉप' की आवश्यकता:

  • ‘इकॉनोमी ऑफ स्केल’ में कम लागत पर वृहद उत्पादन करके विश्व में आपूर्ति बढ़ाने पर बल दिया जाता है। परंतु इस प्रतिमान पर आधारित देशों का आर्थिक विकास, वैश्विक आपूर्ति श्रंखला में कहीं भी होने वाले आर्थिक नाकेबंदी के प्रति सुभेद्य होता है।
  • 'मेक इन इंडिया' पहल जिसे मुक्त व्यापार के समर्थकों द्वारा खारिज़ कर दिया गया था COVID-19 महामारी के कारण एक आवश्यकता बन गई है। 'मेक इन इंडिया' जैसी पहल आवश्यक वस्तुओं की आपूर्ति बनाए रखने तथा रोज़गार का सृजन करने के लिये आवश्यक है।

वैश्विक प्रणालीगत समस्याओं के समाधान के लिये स्थानीय प्रणालियों की आवश्यकता:

  • 'साझा संसाधनों की त्रासदी' (Tragedy of the Commons)-1968, यह वह स्थिति होती है जिसमें देश खुद के स्वार्थ की दिशा में कार्य करते हैं तथा साझा संसाधनों की बर्बादी की दिशा में कार्य करते हैं। यह सिद्धांत साझा संपत्तियों के निजीकरण पर बल देता है। वर्ष 1970 के दशक से यह सिद्धांत अर्थशास्त्र का प्रमुख स्कूल बन गया।
  • एलिनॉर ओस्ट्रोम, जिन्हें वर्ष 2008 में अर्थशास्त्र के लिये नोबेल पुरस्कार दिया गया था (62 पुरुषों के बाद पहली महिला अर्थशास्त्र पुरस्कार विजेता), ने ‘साझा संसाधनों की त्रासदी’ के लिये स्पष्टीकरण देते हुए तर्क दिया कि ‘साझा संसाधनों’ का प्रबंधन लाभकारी होता है यदि इन संसाधनों के निकटस्थ देश प्रबंधन में शामिल हैं।
  • 'साझा संसाधनों की त्रासदी' तब होती है जब बाहरी समूह अपनी शक्ति (राजनीतिक, आर्थिक या सामाजिक रूप से) के आधार पर व्यक्तिगत लाभ में वृद्धि करते हैं। अत: उसके द्वारा 'बॉटम अप' दृष्टिकोण का बहुत समर्थन किया गया तथा व्यक्तियों और समुदायों की भागीदारी पर बल दिया गया।

लोगों को सशक्त बनाना वास्तविक लोकतंत्र की मूलभूत आवश्यकता:

  • महात्मा गांधी ने कहा था भारत गाँवों में रहता है। गांधी के अनुसार वैश्विक गाँव की अवधारणा तब तक साकार नहीं होती जब तक स्थानीय गाँव तथा नगरों के मध्य संतुलन स्थापित नहीं होता है। लोगों को अपने अधिकारों तथा कर्तव्यों के प्रति अधिक जागरूक करने की आवश्यकता है। 

निष्कर्ष: 

  • COVID- 19 महामारी के संकट के बाद दुनिया में जो स्थिति बनी है उसे नए नज़रिये से देखने की आवश्यकता है। भारत को व्यापक आर्थिक सुधारों की ओर बढ़ते हुए आत्मनिर्भर भारत के निर्माण करने की आवश्यकता है। 

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


कृषि

कृषक कल्याण शुल्क का विरोध

प्रीलिम्स के लिये:

कृषक कल्याण शुल्क, कृषक कल्याण कोष

मेन्स के लिये:

कृषि विकास योजनाओं से संबंधित प्रश्न 

चर्चा में क्यों?

हाल ही में राजस्थान राज्य में किसानों और कृषि मंडियों से जुड़े हुए लोगों ने कृषि उत्पादों पर राज्य सरकार द्वारा 2% कृषक कल्याण शुल्क (Krishak Kalyan Fees) लगाए जाने का विरोध किया है।

मुख्य बिंदु:

  • ध्यातव्य है कि राजस्थान सरकार द्वारा वर्ष 2019 में ‘ईज़ ऑफ डूइंग फार्मिंग’ (Ease of Doing Farming) की पहल के तहत ‘कृषक कल्याण कोष’ की स्थापना की घोषणा की गई थी। 
  • 1 मई, 2020 को राजस्थान सरकार ने ‘राजस्थान कृषि उपज बाजार (संशोधन) अध्यादेश, 2020’ के माध्यम से ‘राजस्थान कृषि उपज मंडी अधिनियम, 1961’ की धारा-17 में परिवर्तन कर दिया था। 
  • इस अधिनियम में जोड़ी गई नई धारा 17A के तहत मंडी समितियों को सरकार द्वारा निर्धारित दर के अनुसार लाइसेंस धारकों से कृषि उपज की बिक्री और क्रय पर कृषक कल्याण शुल्क वसूल करने का निर्देश दिया गया।
  • मंडियों द्वारा एकत्र कृषक कल्याण शुल्क को इस अधिनियम की धारा-19A के तहत स्थापित ‘कृषक कल्याण कोष’ में जमा किया जाएगा।    

कृषक कल्याण शुल्क लगाने का उद्देश्य: 

  • राजस्थान सरकार के अनुसार, कृषक कल्याण कोष की स्थापना के बाद इस कोष के लिये किसी स्थायी आर्थिक स्रोत की व्यवस्था नहीं थी, अतः कृषि उपज पर लगाया गया यह 2% शुल्क इस कोष के लिये स्थायी राजस्व स्रोत के रूप में काम करेगा।
  • हाल ही में राज्य सरकार ने ‘प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना’ (Pradhan Mantri Fasal Bima Yojana- PMFBY) के तहत राज्य के हिस्से की भरपाई के लिये ‘कृषक कल्याण कोष’ पर 2000 रुपए करोड़ ऋण लिया था, जिसके माध्यम से पिछले 20-25 दिनों में किसानों को 2200 रुपए तक का बीमा लाभ दिया गया है।
  • सरकार के अनुसार, कृषक कल्याण शुल्क के रूप में प्राप्त फंड का प्रयोग कृषि कल्याण के लिये ही किया जाएगा।

कृषक कल्याण शुल्क की समस्याएँ:

  • राजस्थान में पहले ही कृषि उपज पर 1.6% मंडी उपकर (Mandi Cess) लागू है, ऐसे में कृषक कल्याण शुल्क के रूप में 2% अतिरिक्त कर लगने से कुल कर बढ़कर 3.6% हो जाएगा जो अन्य राज्यों से बहुत अधिक है।
  • कृषक कल्याण शुल्क के कारण कृषि उपज की कीमत में वृद्धि को देखते हुए खरीदार कम बोली लगाएंगे जिससे किसानों को अपनी कृषि उपज पर कम धन प्राप्त होगा।
  • कुछ किसानों के अनुसार, मंडियों में कृषि उपज की कीमत पहले से ही ‘न्यूनतम समर्थन मूल्य’ (Minimum Support Price- MSP) से कम हैं, ऐसे में 2% अतिरिक्त कर से किसानों का नुकसान और भी बढ़ जाएगा। 
  • अतिरिक्त कर से बचने के लिये किसान मंडियों से बाहर कृषि उपज बेचने का प्रयास करेंगे जिससे कालाबाज़ारी जैसी गतिविधियों को बढ़ावा मिलेगा और आगे चलकर किसानों को ही इसका नुकसान झेलना पड़ेगा।

निष्कर्ष:

आज भी देश की आधी से अधिक आबादी अपनी आजीविका के लिये कृषि पर निर्भर करती है। पिछले कुछ वर्षों में देश में कृषि के क्षेत्र में नई तकनीकों और वैज्ञानिक प्रयोगों को बड़े पैमाने पर शामिल न करने से किसानों की आय में कमी आई है। राजस्थान सरकार द्वारा कृषि क्षेत्र के विकास हेतु कृषक कल्याण कोष की स्थापना एक सराहनीय पहल है परंतु किसानों से अतिरिक्त शुल्क लेने से इसका प्रत्यक्ष प्रभाव किसानों की आय पर पड़ेगा, विशेषकर जब COVID-19 के कारण देश में कृषि उत्पादों की बिक्री प्रभावित हुई है। ऐसे में सरकार को किसानों के पक्ष को सुनकर तथा अन्य पहलुओं को देखते हुए इस मामले पर निर्णय करना चाहिये।

स्रोत: द इंडियन एक्सप्रेस


विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

‘रीस्टार्ट’

प्रीलिम्स के लिये:

राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी दिवस

मेन्स के लिये:

COVID-19 के उपचार में विज्ञान और प्रौद्योगिकी का महत्त्व 

चर्चा में क्यों?

हाल ही में 12 मई, 2020 को विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग (Department of Science & Technology-DST) के एक सांविधिक निकाय ‘प्रौद्योगिकी विकास बोर्ड’ (Technology Development Board-TDB) तथा ‘भारतीय उद्योग परिसंघ’ (Confederation of Indian Industry-CII) के द्वारा ‘राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी दिवस’ (National Technology Day) के अवसर पर एक सम्मेलन का आयोजन किया गया है।

प्रमुख बिंदु:

  • ‘राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी दिवस’ के अवसर पर डिजिटल सम्मेलन ‘रीबूट द इकॉनमी थ्रू साइंस, टेक्नोलॉजी एंड रिसर्च ट्रांसलेशंस’ Rebooting the Economy through Science, Technology, and Research Translations’-RESTART) का आयोजन किया गया।
  • सम्मेलन में COVID-19 महामारी के कारण पटरी से उतरी भारतीय,अर्थव्यवस्था को विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के माध्यम से फिर से मज़बूती प्रदान करने पर विचार किया गया।
  • सम्मेलन में डिजिटल बी-2-बी लाउंज के माध्यम से उन कंपनियों की एक वर्चुअल प्रदर्शनी का उद्घाटन किया गया जिनकी प्रौद्योगिकियों को ‘प्रौद्योगिकी विकास बोर्ड’ द्वारा सहयोग प्रदान किया गया है।
  • सम्मेलन के दौरान देश में COVID 19 जैसी महामारी पर विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्रालय द्वारा किये गए कार्यों की सराहना की गई।
  • अत्यधिक कम समय में, इस संकट से बचने के लिये दवा की खोज के प्रयासों, टीके, नैदानिक उपकरण, और अन्य चिकित्सा उपकरणों, के साथ ही साथ इलेक्ट्रॉनिक स्वास्थ्य रिकॉर्ड को संरक्षित करने के तरीके इत्यादि में सर्वोत्तम चिकित्सा प्रगति और नवाचारों के तरीकों को विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्रालय द्वारा प्रकट किया गया है। जिनमें राष्ट्र परीक्षण किट, सुरक्षात्मक उपकरण, श्वसन उपकरण आदि शामिल है।
  • सम्मेलन में COVID-19 से  संबंधित प्रौद्योगिकी क्षमताओं के आकलन के लिये सरकार द्वारा गठित COVID-19 ‘टास्क फोर्स' के बारे में भी लोगों को बताया गया। 
  • सम्मेलन में ‘मेक इन इंडिया’ कार्यक्रम की सराहना की गई। जिसके तहत वैज्ञानिक संस्थान और स्टार्टअप्स, COVID-19 परीक्षण, मास्क, सैनिटाइज़र, व्यक्तिगत सुरक्षा उपकरण (पीपीई) और वेंटिलेटर विकसित करने के लिये एक साथ सामने आए हैं। 
  • ‘ग्लोबल इकोनॉमिक लीडरशिप’ (Global Economic Leadership) तथा ‘ग्लोबल इनोवेशन एंड टेक्नोलॉजी अलायंस’ (Global Innovation & Technology Alliance-GITA) प र आयोजित इस सत्र में कोविड-19 की चुनौती से निपटने में वैश्विक सहयोग के महत्त्व पर बल दिया गया। 

राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी दिवस:

  • प्रत्येक वर्ष 11 मई को ‘राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी दिवस’ के रूप में मनाया जाता है।
  • 11 मई को ‘राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी दिवस के रूप में मनाने का ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य यह है कि 11 मई, 1998 को भारत ने पोखरण में  सफलतापूर्वक परमाणु परीक्षण करके एक बड़ी तकनीकी सफलता हासिल की थी।
  • भारत के पहले स्वदेशी विमान "हंसा -3" का परीक्षण भी 11 मई के दिन ही बंगलूरू में किया गया था।
  • भारत ने इसी दिन त्रिशूल मिसाइल का सफल फायरिंग परीक्षण भी किया। 
  • अतः वर्ष 1999 से इस दिन को राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी दिवस के रूप में मनाया जा रहा है।

स्रोत: पीआईबी


विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

मेलामाइन की जाँच हेतु नई तकनीक

प्रीलिम्स के लिये

डेयरी उत्पाद, मेलामाइन 

मेन्स के लिये

खाद्य पदार्थों में मिलावट से संबंधित मुद्दे

चर्चा में क्यों?

बंगलुरु स्थित इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस (Indian Institute of Science-IISc) के शोधकर्त्ताओं ने दूध और डेयरी उत्पादों (Dairy Products) में मेलामाइन (Melamine) की उपस्थिति का पता लगाने के लिये कम लागत वाली एक तकनीक विकसित की है।

प्रमुख बिंदु

  • मेलामाइन (Melamine) एक कार्बन आधारित रसायन होता है, जिसे दूध और डेयरी उत्पादों में मिलावट करने के लिये प्रयोग किया जाता है। उल्लेखनीय है कि दूध और डेयरी उत्पादों में मेलामाइन (Melamine) की मिलावट करने से गुर्दे संबंधी बीमारियाँ हो सकती हैं और गुर्दा पूर्णतः खराब भी हो सकता है।
  • शोधकर्त्ताओं के अनुसार, वर्तमान में मेलामाइन की उपस्थिति का पता लगाने के लिये उपयोग की जाने वाली तकनीकें काफी अधिक समय की मांग करती हैं और इनका प्रयोग करने के लिये सामान्यतः महंगे और परिष्कृत उपकरणों और उच्च प्रशिक्षित कर्मियों की आवश्यकता होती है।
  • उल्लेखनीय है कि IISc के शोधकर्त्ताओं द्वारा विकसित की गई तकनीक के माध्यम से पानी और दूध में मेलामाइन का पता लगाने की प्रक्रिया को काफी तेज़ किया जा सकता है।
  • शोध के दौरान शोधकर्त्ताओं ने मेलामाइन की सांद्रता (Concentrations) की रेंज का पता लगाने के लिये नई तकनीक का प्रयोग किया और यह पाया कि यह तकनीक पानी और दूध में मेलामाइन के 0.1 भाग प्रति मिलियन (Parts Per Million-PPM) तक का पता लगाने में सक्षम है।
  • शोधकर्त्ताओं के अनुसार, इस शोध का परिणाम ज्ञात करने में उन्हें मात्र 4 मिनट का समय लगा। 
  • इस शोध के दौरान शोधकर्त्ताओं द्वारा ऐसे इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों का उपयोग किया गया जो कि कम लागत पर आसानी से उपलब्ध थे, जैसे नैनो कणों (Nanoparticles) को रोशन करने के लिये सामान्य यूवी एलईडी (UV LED) का प्रयोग किया गया, वहीं फ्लोरेसेंस (Fluorescence) का पता लगाने के लिये PIN फोटोडायोड (PIN Photodiode) का प्रयोग किया गया है।
  • इस तकनीक में आसानी से लेड और पारा जैसे अन्य पदार्थों का पता लगाने के लिये परिवर्तन किये जा सकते हैं।
  • शोधकर्त्ताओं का अनुमान है कि भविष्य में इस तकनीक को पर्यावरण और खाद्य गुणवत्ता परीक्षण के लिये एक स्क्रीनिंग उपकरण के रूप में प्रयोग किया जाएगा।

भारत में दूध उत्पादन

  • उल्लेखनीय है कि भारत वर्षों से निरंतर विकास के साथ विश्व स्तर पर डेयरी उत्पादों का प्रमुख उत्पादक और उपभोक्ता रहा है।
  • आँकड़ों के अनुसार, वर्ष 2018-19 में भारत में तकरीबन 187 मिलियन टन दूध का उत्पादन किया गया था।
  • भारत में दूध उत्पादन की महत्ता का एक मुख्य कारण यह भी है कि दूध किसानों को काफी आसानी से नकदी उपलब्ध कराता है, जबकि फसलों के कारण किसानों को वर्ष में केवल 2-3 बार ही पैसा मिलते हैं।

मेलामाइन (Melamine) 

  • विदित है कि मेलामाइन (Melamine) एक कार्बन आधारित रसायन होता है जो आमतौर पर नाइट्रोजन से समृद्ध सफेद क्रिस्टल (White Crystals) के रूप में पाया जाता है।
  • व्यापक तौर पर मेलामाइन (Melamine) का प्रयोग प्लास्टिक, गोंद, काउंटरटॉप्स (Countertops) और व्हाइटबोर्ड आदि बनाने के लिये किया किया जाता है।
  • ध्यातव्य है कि कई बार दूध के व्यापारी दूध की मात्रा को बढ़ाने के उद्देश्य से उसमें पानी मिला देते हैं, जिससे दूध में प्रोटीन की मात्रा काफी कम हो जाती है। 
    • इस प्रोटीन की मात्रा को संतुलित करने के लिये दूध व्यापारियों द्वारा दूध में मेलामाइन मिलाया जाता है। 
  • उल्लेखनीय है कि वर्ष 2007 में चीन से निर्यातित कुछ खाद्य पदार्थों में मेलामाइन पाया गया था, जिसके कारण अमेरिका में कई जानवरों की मृत्यु हो गई थी, क्योंकि उन खाद्य पदार्थों का प्रयोग जानवरों के भोजन बनाने हेतु किया गया था।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


जैव विविधता और पर्यावरण

जलवायु संकट और ऊर्जा

प्रीलिम्स के लिये:

राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी दिवस, मानव विकास सूचकांक

मेन्स के लिये:

जलवायु संकट और ऊर्जा से संबंधित मुद्दे

चर्चा में क्यों?

नेहरू विज्ञान केंद्र, मुंबई (Nehru Science Centre, Mumbai) द्वारा आयोजित एक ऑनलाइन व्याख्यान में ‘जलवायु संकट के संदर्भ में ऊर्जा की जरूरतों से निपटने के बारे में’ (Dealing With Energy Needs In The Context Of Climate Crisis) चर्चा की गई। 

प्रमुख बिंदु:

  • 22 वर्ष पहले हुए परमाणु परीक्षण की याद में ‘राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी दिवस’ मनाया जाता है। इसका उद्देश्य भारतीय वैज्ञानिकों और इंजीनियरों की वैज्ञानिक एवं तकनीकी उपलब्धियों का स्मरण करना है।
  • व्याख्यान में ‘मानव विकास सूचकांक’ (Human Development Index-HDI) और विश्व भर में प्रति व्‍यक्ति ऊर्जा खपत के बीच सह संबंधों के बारे में भी चर्चा की गई। 
  • HDI तथा ऊर्जा संबंधी आँकड़ों के अनुसार, उच्च गुणवत्ता वाला जीवन व्यतीत कर रहे देशों (उच्च HDI वाले देश) की प्रति व्‍यक्ति ऊर्जा खपत उच्चतम है।

  • दुनिया भर में जलवायु परिवर्तन के बारे में अध्ययनरत शोधकर्त्ता इस बारे में विचार कर रहे हैं कि पर्यावरण के लिये गंभीर खतरा बन चुकी कार्बन-डाई-ऑक्साइड के उत्सर्जन को कैसे रोका जाए।
  • ‘जलवायु परिवर्तन पर अंतर-सरकारी पैनल’ (Intergovernmental Panel on Climate Change- IPCC) की एक रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2100 में तापमान में वृद्धि को 1.5℃ से नीचे रखने हेतु वर्ष 2030 तक ग्रीन हाउस गैस (Green House Gas- GHG) के उत्सर्जन में 45% की कटौती करनी होगी, साथ ही GHG को वर्ष 2010 के स्तर से नीचे और वर्ष 2050 तक स्पष्ट  रूप से शून्य तक करने की ज़रूरत है।

जलवायु परिवर्तन पर अंतर-सरकारी पैनल

(Intergovernmental Panel on Climate Change- IPCC):

  • IPCC की स्थापना संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम और विश्व मौसम संगठन द्वारा वर्ष 1988 में की गई थी।
  • यह जलवायु परिवर्तन पर नियमित वैज्ञानिक आकलन, इसके निहितार्थ और भविष्य के संभावित जोखिमों के साथ-साथ, अनुकूलन और शमन के विकल्प भी उपलब्ध कराता है।
  • IPCC का मुख्यालय ज़िनेवा में स्थित है तथा वर्तमान में इसके 195 सदस्य हैं।
  • दूसरे शब्दों में कहें तो हमारे पास दुनिया भर के अनेक देशों की विकास आकांक्षाओं को सुनिश्चित करते हुए कार्बन डाईऑक्‍साइड के उत्सर्जन में गहन कटौती करने हेतु केवल 10 वर्ष का समय ही शेष है।
  • उक्त लक्ष्य को हासिल करने के लिये विश्व को त्वरित गति से लागू की जाने योग्य प्रौद्योगिकियों का लाभ का उठाते हुए कदम उठाने होंगे। इन्हीं परिस्थितियों में परमाणु ऊर्जा की आवश्यकता उत्पन्न होती है, जो ‘शून्य उत्सर्जन’ का लक्ष्य सुगमता से हासिल कर सकती है। 
  • परमाणु ऊर्जा के योगदान से डिकार्बनाइज़िग या कार्बन की गहनता में अपार कमी लाने संबंधी लागत में कमी लाई जा सकती है। 
  • डिकार्बनाइज़िग का आशय कार्बन की गहनता में कमी लाना है अर्थात प्रति इकाई उत्पादित बिजली के उत्सर्जन में कमी लाना है। 
  • कम कार्बन वाले ऊर्जा स्रोत- विशेषकर सौर, हाइड्रो और परमाणु के साथ बायोमास जैसी नवीकरणीय ऊर्जा की हिस्सेदारी को बढ़ाकर शून्य उत्सर्जन के लक्ष्‍य को काफी हद तक प्राप्त किया जा सकता हैं। 

भारत की स्थिति:

  • जलवायु संबंधी समस्याओं के बढ़ने के साथ ही भारत जैसे विकासशील देश को एक ऐसी चुनौती का सामना करना पड़ता है, जहाँ ‘ऊर्जा सुरक्षा और जलवायु सुरक्षा’ जैसे मामलों के बीच अंतर्विरोध उत्पन्न हो जाते हैं। 
  • भारत को कार्बन की गहनता में कमी लाने हेतु नवीकरणीय ऊर्जा में 30 गुना वृद्धि, परमाणु ऊर्जा में 30 गुना वृद्धि और तापीय ऊर्जा को दोगुना करने की आवश्यकता है जिससे 70% ऊर्जा कार्बन मुक्त होगी।

भारतीय परमाणु ऊर्जा 

  • वर्तमान में देश की ऊर्जा संबंधी आवश्यकताओं को पूरा करने हेतु 49180 मेगावाट की क्षमता के साथ 66 इकाइयाँ (परिचालित, योजनाधीन, निर्माणाधीन और स्वीकृत परियोजनाओं सहित) हैं।
  • ऊर्जा उत्पादन के दौरान उत्पन्न होने वाले परमाणु अपशिष्‍ट का प्रबंधन एक बड़ी समस्या है।
  • भारत ‘परमाणु पुनर्चक्रण प्रौद्योगिकी’ की नीति को अपनाता है। ‘परमाणु पुनर्चक्रण प्रौद्योगिकी’ के तहत ऊर्जा उत्पादन हेतु एक बार उपयोग किये जा चुके- यूरेनियम, प्लूटोनियम इत्यादि जैसे परमाणु ईंधन को वाणिज्यिक उद्योगों द्वारा संसाधन सामग्री के रूप में पुन: उपयोग करने हेतु पुनर्चक्रित किया जाता है।
  • भारत में 99% से अधिक परमाणु अपशिष्‍ट का पुन: उपयोग किया जाता है।

अन्य देशों की स्थिति:

  • वर्ष 2030 तक जापान ने कार्बन-डाई-ऑक्साइड में कमी लाने हेतु अपनी कुल ऊर्जा खपत का 20- 22% परमाणु ऊर्जा से सृजित करने हेतु योजना तैयार किया है।
  • जर्मनी और जापान जैसे देश पहले से ही क्रमशः वर्ष 2020 एवं वर्ष 2030 तक GHG उत्सर्जन में कटौती करने की योजना बना रहे हैं साथ ही नवीकरणीय ऊर्जा के उत्पादन पर अत्यधिक धनराशि का भी आवंटन किया है।

आगे की राह:

  • अनेक देशों द्वारा ऊर्जा दक्षता के क्षेत्र में सक्रिय प्रयास किये जाने के बावजूद कार्बन-डाइ-ऑक्साइड का उत्सर्जन पिछले वर्षों की तुलना में अभी भी अधिक है।
  • विभिन्न देशों द्वारा अपने HDI के आधार पर कार्बनडाई ऑक्साइड के उत्सर्जन को नियंत्रित करने हेतु विचार-विमर्श किया जाना चाहिये।
  • बिजली उत्पादन में कार्बन की गहनता में कमी करना साथ ही मध्यम HDI वाले देशों को गैर-जीवाश्म बिजली की खपत पर भी ध्यान केंद्रित करना होगा।
  • कम HDI वाले देशों को अपने नागरिकों को स्वच्छ ऊर्जा के सस्ते स्रोत प्रदान करने में सक्षम होना चाहिये।
  • आज जरूरत इस बात की है कि मानव जीवन की गुणवत्ता बढ़ाने के साथ-ही-साथ जलवायु संकट पर नियंत्रण रखने के बीच संतुलन कायम किया जाए। 

स्रोत: पीआईबी


विविध

Rapid Fire (करेंट अफेयर्स): 13 मई, 2020

फखरुद्दीन अली अहमद 

राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने राष्ट्रपति भवन में पूर्व भारतीय राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद की जयंती के अवसर पर उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की। 13 फरवरी, 1905 को दिल्ली में जन्मे फखरुद्दीन अली अहमद को भारत के पाँचवे राष्ट्रपति (हालाँकि कार्यकाल के अनुसार वे छठे राष्ट्रपति थे) के रूप में जाना जाता है। वर्ष 1928 में इंगलैंड से विधि में डिग्री प्राप्त करने के पश्चात् फखरुद्दीन अली अहमद वापस भारत लौट आए और पंजाब उच्च न्यायालय में वकील के तौर पर नामांकित हुए। कुछ समय पश्चात् उन्होंने अपने गृह राज्य असम के गोवाहाटी उच्च न्यायालय में वकील के तौर पर कार्य करना प्रारंभ किया और जल्द ही वे अपनी प्रतिभा की बदौलत उच्चतम न्यायालय में बतौर वरिष्ठ अधिवक्ता के रूप में कार्य करने लगे। वर्ष 1931 में फखरुद्दीन अली अहमद ने अखिल भारतीय कॉन्ग्रेस पार्टी की प्राथमिक सदस्यता ग्रहण कर ली।  वर्ष 1938 में जब असम में कॉन्ग्रेस पार्टी की सरकार बनी तो फखरुद्दीन अली अहमद को वित्त एवं राजस्व मंत्रालय का कार्यभार सौंपा गया। उल्लेखनीय है कि उन्होंने भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में भी बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया और कई अवसरों पर जेल भी गए। वर्ष 1952 में फखरुद्दीन अली अहमद को राज्यसभा की सदस्यता प्राप्त हुई और वे संसद पहुँच गए। 24 अगस्त, 1974 को फखरुद्दीन अली अहमद ने भारत के पाँचवें राष्ट्रपति के रूप में पद एवं गोपनीयता की शपथ ग्रहण की। बतौर राष्ट्रपति उनका कार्यकाल उनकी मृत्यु के दिन यानि 11 फरवरी, 1977 तक चला और इसी दिन राष्ट्रपति भवन में हृदयाघात (Heart Attack) के कारण उनकी मृत्यु हो गई। 

‘FIR आपके द्वारा’ पहल 

हाल ही में मध्यप्रदेश सरकार ने ‘FIR आपके द्वार’ (FIR Aapke Dwar) पहल की शुरुआत की है। इस पहल के तहत पीड़ितों को ‘प्राथमिकी’ अथवा ‘प्रथम सूचना रिपोर्ट’ (First Information Report-FIR) दर्ज कराने के लिये पुलिस स्टेशन नहीं जाना होगा, बल्कि पुलिस अधिकारी स्वयं पीड़ितों के घर आकर FIR दर्ज करेंगे। इस पहल को पायलट प्रोजेक्ट के तौर पर राज्य के 23 पुलिस स्टेशनों में शुरू किया गया है, इसमें ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्र शामिल हैं। इस योजना में लोगों की शिकायतों को दर्ज करने के लिये हेड कांस्टेबल तैनात किये गए हैं, जो फर्स्ट रिस्पांस व्हीकल (First Response Vehicle-FRV) के माध्यम से मौके पर ही अपेक्षाकृत कम गंभीर प्रकृति के अपराधों के लिये FIR दर्ज करेंगे। हालाँकि गंभीर अपराध के मामलों में उन्हें अपने वरिष्ठ अधिकारियों से सलाह लेना होगी। उल्लेखनीय है कि इस पायलट प्रोजेक्ट के तहत दर्ज की गई पहली FIR भोपाल में एक वाहन चोरी से संबंधित थी। किसी भी अपराध के संबंध में पुलिस द्वारा दर्ज की गई सूचना प्राथमिकी अथवा ‘प्रथम सूचना रिपोर्ट’ (FIR) कहा जाता है। विदित हो कि भारत में FIR और इसकी वैधता को दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा 154 के तहत परिभाषित किया गया है। भारत में किसी भी व्यक्ति द्वारा शिकायत के रूप में FIR दर्ज की जा सकती है। 

2020-21 में शून्य रह सकती है भारत की वृद्धि दर: मूडीज़

मूडीज़ इन्वेस्टर्स सर्विस (Moody's Investors Service) ने मौजूदा वित्त वर्ष के लिये भारत की आर्थिक वृद्धि दर के अनुमान को घटाकर शून्य कर दिया है। मूडीज़ के अनुसार, इस वर्ष भारत की GDP काफी कम रह सकती है और कोरोनावायरस (COVID-19) महामारी के कारण देश की अर्थव्यवस्था पर संकट और गहराता जा रहा है। उल्लेखनीय है कि COVID-19 के प्रभाव के कारण दुनिया भर की रेटिंग एजेंसियों ने भारतीय अर्थव्यवस्था को लेकर चिंता ज़ाहिर की है। हालाँकि मूडीज़ का अनुमान है कि आगामी वितीय वर्ष (2021-22) में भारतीय अर्थव्यवस्था की वृद्धि दर में बढ़ोतरी होगी और यह 6.6 प्रतिशत पर पहुँच जाएगी। ध्यातव्य है कि दुनिया भर में कोरोनावायरस संक्रमण के आँकड़े दिन-प्रति-दिन बढ़ते जा रहे हैं और इस वायरस के कारण मरने वाले लोगों की संख्या भी तेज़ी से बढ़ती जा रही है। वहीं कोरोनावायरस के प्रसार को रोकने के लिये लागू किये गए लॉकडाउन के कारण विश्व की लगभग सभी आर्थिक और गैर-आर्थिक गतिविधियाँ रुक गई हैं, जिससे भारत समेत संपूर्ण विश्व की अर्थव्यवस्था पर गहरा प्रभाव पड़ा है। ध्यातव्य है कि इस आर्थिक संकट से उबरने के लिये सरकार और RBI द्वारा काफी प्रयास किये जा रहे हैं, जिसके तहत सरकार ने हाल ही में 20 लाख करोड़ के आर्थिक पैकेज की घोषणा भी की हैं।

‘प्रवासी राहत मित्र’ एप

हाल ही में उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने ‘प्रवासी राहत मित्र’ एप की शुरुआत की है। इस एप की शुरुआत मुख्य रूप से कोरोनावायरस के कारण देशव्यापी लॉकडाउन के पश्चात् दूसरों राज्यों से उत्तरप्रदेश में लौट रहे प्रवासी मज़दूरों के लिये की गई है। इस एप का उद्देश्य राज्य में वापस लौट रहे प्रवासी मज़दूरों को सरकार द्वारा घोषित विभिन्न योजनाओं का लाभ प्राप्त करने में मदद करना है। साथ ही इस एप के माध्यम से मज़दूरों के स्वास्थ्य की निगरानी करने में भी सहायता मिलेगी। साथ ही इस एप के माध्यम से प्रवासी मज़दूरों को उनके कौशल के अनुरूप रोज़गार तथा आजीविका के साधन प्राप्त करने में भी मदद मिलेगी। इस एप में व्यक्ति की आवश्यक जानकारी जैसे कि नाम, शैक्षिक योग्यता, अस्थायी और स्थायी पता, बैंक खाता विवरण, COVID-19 संबंधित स्क्रीनिंग की स्थिति और पेशेवर अनुभव आदि ली जाएंगी।


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