शासन व्यवस्था
प्रधानमंत्री किसान संपदा योजना
प्रिलिम्स के लिये:प्रधानमंत्री किसान संपदा योजना, आत्मनिर्भर भारत अभियान, प्रधानमंत्री सूक्ष्म खाद्य उद्योग उन्नयन योजना, ऑपरेशन ग्रीन्स मेन्स के लिये:खाद्य प्रसंस्करण को बढ़ावा देने हेतु सरकार द्वारा उठाए गए कदम |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में खाद्य प्रसंस्करण उद्योग मंत्रालय (MoFPI) ने प्रधानमंत्री किसान संपदा योजना (PMKSY) के संबंध में कुछ जानकारी साझा की है।
- इससे पहले MoFPI ने आत्मनिर्भर भारत अभियान के तहत प्रधानमंत्री सूक्ष्म खाद्य उद्योग उन्नयन योजना’ (Pradhan Mantri Formalisation of Micro food processing Enterprises- PMFME) की शुरुआत की थी।
- भारत में खाद्य प्रसंस्करण उद्योग के प्रमुख उप-खंड हैं- डेयरी, फल और सब्जियाँ, पोल्ट्री एवं मांस प्रसंस्करण, मत्स्य पालन, खाद्य खुदरा आदि।
प्रमुख बिंदु:
संदर्भ:
- वर्ष 2016 में MoFPI ने "कृषि-समुद्री प्रसंस्करण और कृषि-प्रसंस्करण समूहों का विकास" या संपदा (SAMPADA) नामक एक अम्ब्रेला योजना शुरू की थी, जिसे वर्ष 2016-20 की अवधि के लिये 6,000 करोड़ रुपए के आवंटन के साथ लागू करने का प्रस्ताव था।
- वर्ष 2017 में सरकार ने संपदा योजना का नाम बदलकर प्रधानमंत्री किसान संपदा योजना (PMKSY) कर दिया।
- यह एक केंद्रीय क्षेत्रक अम्ब्रेला स्कीम है।
उद्देश्य:
- कृषि के पूरक हेतु।
- प्रसंस्करण और संरक्षण क्षमता निर्माण के लिये।
- प्रसंस्करण के स्तर को बढ़ाने की दृष्टि से मौजूदा खाद्य प्रसंस्करण इकाइयों का आधुनिकीकरण और विस्तार करना।
- अपव्यय में कमी हेतु अग्रणी मूल्य जोड़ने के लिये।
घटक:
- मेगा फूड पार्क
- एकीकृत कोल्ड चेन और मूल्य संवर्द्धन अवसंरचना
- कृषि-प्रसंस्करण समूहों के लिये अवसंरचना
- बैकवर्ड और फॉरवर्ड लिंकेज का निर्माण
- खाद्य प्रसंस्करण और संरक्षण क्षमताओं का निर्माण/विस्तार
- खाद्य सुरक्षा और गुणवत्ता आश्वासन अवसंरचना
- मानव संसाधन संस्थान
- ऑपरेशन ग्रीन्स
सहायता अनुदान:
- MoFPI खाद्य प्रसंस्करण/संरक्षण उद्योगों की स्थापना के लिये उद्यमियों को सहायता अनुदान के रूप में अधिकतर क्रेडिट लिंक्ड वित्तीय सहायता (पूंजीगत सब्सिडी) प्रदान करता है।
- देश में आधारिक संरचना, रसद परियोजनाओं और खाद्य प्रसंस्करण इकाइयों की स्थापना के लिये विभिन्न योजनाओं के तहत निवेशकों को पात्र परियोजना लागत के 35% से 75% तक की अधिकतम निर्दिष्ट सीमा के अधीन सहायता अनुदान प्रदान किया जाता है।
लाभ:
- PMKSY की घटक योजनाओं के तहत देश भर में स्वीकृत परियोजनाओं के पूरा होने पर लगभग 34 लाख किसानों को लाभ प्राप्त होने का अनुमान है।
- एक मूल्यांकन अध्ययन में नाबार्ड (राष्ट्रीय कृषि और ग्रामीण विकास बैंक) ने वर्ष 2020 में अनुमान लगाया कि इस योजना के तहत कैप्टिव परियोजनाओं के परिणामस्वरूप फार्म-गेट की कीमतों में 12.38% की वृद्धि हुई है और प्रत्येक परियोजना से 9500 से अधिक किसानों को लाभ होने का अनुमान है।
अन्य संबंधित पहलें
- 100% FDI:
- खाद्य उत्पादों के विनिर्माण में स्वचालित मार्ग (Automatic Route) के माध्यम से 100% प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (Foreign Direct Investment- FDI) तथा भारत में उत्पादित और/या निर्मित खाद्य उत्पादों के संबंध में ई-कॉमर्स के माध्यम से खुदरा व्यापार करने के लिये सरकार से अनुमोदन के तहत 100% FDI की अनुमति दी गई है।
- खाद्य प्रसंस्करण कोष:
- खाद्य प्रसंस्करण परियोजनाओं को सस्ते ऋण प्रदान करने के लिये राष्ट्रीय कृषि और ग्रामीण विकास बैंक (National Bank for Agriculture and Rural Development- NABARD) के साथ मिलकर 2000 करोड़ रुपए का एक विशेष कोष बनाया गया है।
- PSL के तहत वर्गीकरण:
- खाद्य एवं कृषि आधारित प्रसंस्करण इकाइयों और कोल्ड चेन अवसंरचना को प्राथमिकता प्राप्त क्षेत्र ऋण (Priority Sector Lending- PSL) के लिये कृषि गतिविधि के रूप में वर्गीकृत किया गया है।
- राजकोषीय उपाय:
- नई खाद्य प्रसंस्करण इकाइयों के लिये लाभ पर आयकर में 100% छूट जैसे राजकोषीय उपायों, FPO द्वारा 100 करोड़ रुपए के वार्षिक टर्नओवर से प्राप्त लाभ से 100 प्रतिशत आयकर छूट को कृषि के बाद फसल मूल्य संवर्द्धन जैसी गतिविधियों के लिये अनुमति दी गई है।
- कम GST:
- अधिकांश खाद्य उत्पादों के लिये कम वस्तु एवं सेवा कर (GST) दरें तय की गई हैं।
- ऑपरेशन ग्रीन्स:
- कृषक उत्पादक संगठनों (FPO), कृषि-लॉजिस्टिक्स, प्रसंस्करण सुविधाओं को बढ़ावा देने के लिये 500 करोड़ रुपए के परिव्यय के साथ टमाटर, प्याज और आलू (TOP) फसल मूल्य शृंखला के एकीकृत विकास हेतु एक नई केंद्रीय क्षेत्र योजना "ऑपरेशन ग्रीन्स" शुरू की गई है।
- PM FME:
- मौजूदा सूक्ष्म खाद्य प्रसंस्करण उद्यमों के उन्नयन के लिये वित्तीय, तकनीकी और व्यावसायिक सहायता प्रदान करने हेतु अखिल भारतीय केंद्र प्रायोजित प्रधानमंत्री सूक्ष्म खाद्य प्रसंस्करण उद्यम योजना (PM FME योजना) का औपचारिककरण।
- PLI योजना:
- केंद्रीय क्षेत्र की यह योजना "खाद्य प्रसंस्करण उद्योग के लिये उत्पादन से जुड़ी प्रोत्साहन योजना (PLISFPI)" भारत के प्राकृतिक संसाधन बंदोबस्ती के अनुरूप वैश्विक खाद्य निर्माण का समर्थन करने और 10,900 करोड़ रुपए के परिव्यय के साथ अंतर्राष्ट्रीय बाज़ारों में खाद्य उत्पादों के भारतीय ब्रांडों का समर्थन करने हेतु है।
स्रोत: पीआईबी
भारतीय अर्थव्यवस्था
वार्षिक सार्वजनिक उद्यम सर्वेक्षण
प्रिलिम्स के लिये:वार्षिक सार्वजनिक उद्यम सर्वेक्षण मेन्स के लिये:वार्षिक सार्वजनिक उद्यम सर्वेक्षण का महत्त्व एवं CPSE |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में वित्त मंत्रालय के सार्वजनिक उद्यम विभाग (DPE) द्वारा 60वाँ सार्वजनिक उद्यम (Public Enterprises-PE) सर्वेक्षण 2019-20 जारी किया गया था।
- यह केंद्रीय सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों (CPSE) को लेकर सूचना का एकमात्र सबसे बड़ा स्रोत है और सूचित नीति निर्माण के आधार पर कार्य करता है।
- सरकार ने सार्वजनिक उद्यम विभाग (DPE) को भारी उद्योग मंत्रालय से फिर से वित्त मंत्रालय को आवंटित कर दिया है।
प्रमुख बिंदु
सार्वजनिक उद्यमों (PE) के सर्वेक्षण के बारे में:
- पीई सर्वेक्षण संपूर्ण CPSE विश्व को शामिल करता है। यह विभिन्न वित्तीय और भौतिक मानकों पर सभी CPSE के लिये आवश्यक सांख्यिकीय डेटा प्राप्त करता है।
- पीई सर्वेक्षण CPSE को पाँच क्षेत्रों में विभाजित करता है, अर्थात्:
- कृषि
- खनन और अन्वेषण
- विनिर्माण, प्रसंस्करण और उत्पादन
- सेवाएँ
- निर्माणाधीन उद्यम
- लोक उद्यम विभाग (DPE) ने दूसरी लोकसभा की प्राक्कलन समिति की 73वीं रिपोर्ट (1959-60) की सिफारिशों पर वित्तीय वर्ष 1960-61 से सार्वजनिक उद्यम सर्वेक्षण जारी करना शुरू किया।
DPE और CPSEs के बारे में:
- DPE सभी केंद्रीय सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों (CPSE) के लिये नोडल विभाग है और CPSE से संबंधित नीति तैयार करता है।
- DPE के अनुसार, CPSE का मतलब उन सरकारी कंपनियों से है, जो सांविधिक निगमों के अलावा हैं, जिनमें इक्विटी में 50% से अधिक हिस्सेदारी केंद्र सरकार के पास है।
- इन कंपनियों की सहायक कंपनियाँ, यदि भारत में पंजीकृत हैं, तो उन्हें CPSE के रूप में भी वर्गीकृत किया गया है।
- यह विभागीय रूप से संचालित सार्वजनिक उद्यमों, बैंकिंग संस्थानों और बीमा कंपनियों को कवर नहीं करता है।
- CPSE को महारत्न, नवरत्न और मिनीरत्न नाम से 3 श्रेणियों में वर्गीकृत किया गया है।
- वर्तमान में 10 महारत्न, 14 नवरत्न और 74 मिनीरत्न CPSE हैं।
CPSEs का वर्गीकरण
श्रेणी
- महारत्न
- नवरत्न
- मिनीरत्न
शुरुआत
- CPSEs के लिये महारत्न योजना मई, 2010 में शुरू की गई थी, ताकि मेगा CPSEs को अपने संचालन का विस्तार करने और वैश्विक दिग्गजों के रूप में उभरने के लिये सशक्त बनाया जा सके।
- नवरत्न योजना वर्ष 1997 में शुरू की गई थी ताकि उन CPSEs की पहचान की जा सके जो अपने संबंधित क्षेत्रों में तुलनात्मक लाभ प्राप्त करते हैं और वैश्विक खिलाड़ी बनने के अभियान में उनका समर्थन करते हैं।
- मिनीरत्न योजना की शुरुआत वर्ष 1997 में सार्वजनिक क्षेत्र को अधिक कुशल एवं प्रतिस्पर्द्धी बनाने और लाभ कमाने वाले सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों को अधिक स्वायत्तता तथा शक्तियों का प्रत्यायोजन प्रदान करने के नीतिगत उद्देश्य के अनुसरण में की गई थी।
मानदंड
महारत्न:
- कंपनियों को नवरत्न का दर्जा प्राप्त होना चाहिये।
- कंपनी को भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (Security Exchange Board of India- SEBI) के नियामकों के अंतर्गत न्यूनतम निर्धारित सार्वजनिक हिस्सेदारी (Minimum Prescribed Public Shareholding) के साथ भारतीय शेयर बाज़ार में सूचीबद्ध होना चाहिये।
- विगत तीन वर्षों की अवधि में औसत वार्षिक व्यवसाय (Average Annual Turnover) 25,000 करोड़ रुपए से अधिक होना चाहिये।
- पिछले तीन वर्षों में औसत वार्षिक निवल मूल्य (Average Annual Net Worth) 15,000 करोड़ रुपए से अधिक होना चाहिये।
- पिछले तीन वर्षों का औसत वार्षिक शुद्ध लाभ (Average Annual Net Profit) 5,000 करोड़ रुपए से अधिक होना चाहिये।
- कंपनियों की व्यापार के क्षेत्र में अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार में महत्त्वपूर्ण उपस्थिति होनी चाहिये।
- उदाहरण: भारत हेवी इलेक्ट्रिकल्स लिमिटेड, भारत पेट्रोलियम कॉर्पोरेशन लिमिटेड, कोल इंडिया लिमिटेड, गेल (इंडिया) लिमिटेड आदि।
नवरत्न:
- मिनीरत्न श्रेणी- I और अनुसूची 'A' के तहत आने वाली CPSEs, जिन्होंने पिछले पाँच वर्षों में से तीन में समझौता ज्ञापन प्रणाली के तहत 'उत्कृष्ट' या 'बहुत अच्छी' रेटिंग प्राप्त की है और छह प्रदर्शन मापदंडों में 60 या उससे अधिक का समग्र स्कोर प्राप्त किया हो। ये छह मापदंड हैं:
- शुद्ध पूंजी और शुद्ध लाभ।
- उत्पादन की कुल लागत के सापेक्ष मैनपॉवर पर आने वाली कुल लागत।
- मूल्यह्रास के पहले कंपनी का लाभ, वर्किंग कैपिटल पर लगा टैक्स और ब्याज।
- ब्याज भुगतान से पहले लाभ और कुल बिक्री पर लगा कर।
- प्रति शेयर कमाई।
- अंतर-क्षेत्रीय प्रदर्शन।
- उदाहरण: भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड, हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड आदि।
मिनीरत्न:
- मिनीरत्न श्रेणी- I: मिनीरत्न कंपनी श्रेणी 1 का दर्जा प्राप्त करने के लिये आवश्यक है कि कंपनी ने पिछले तीन वर्षों से लगातार लाभ प्राप्त किया हो तथा तीन साल में एक बार कम-से-कम 30 करोड़ रुपए का शुद्ध लाभ अर्जित किया हो।
- उदाहरण (श्रेणी- I): भारतीय विमानपत्तन प्राधिकरण, एंट्रिक्स कॉर्पोरेशन लिमिटेड आदि।
- मिनीरत्न श्रेणी- II : CPSE द्वारा पिछले तीन साल से लगातार लाभ अर्जित किया गया हो और उनकी निवल संपत्ति सकारात्मक हो, वे मिनीरत्न- II का दर्जा पाने के लिये पात्र हैं।
- उदाहरण (श्रेणी- II): भारतीय कृत्रिम अंग निर्माण निगम (ALIMCO ), भारत पंप्स एंड कंप्रेसर्स लिमिटेड (BPCL) आदि।
- मिनीरत्न CPSE को सरकार के किसी भी ऋण पर ऋण/ब्याज के पुनर्भुगतान में चूक नहीं करनी चाहिये।
- मिनीरत्न CPSE कंपनियाँ बजटीय सहायता या सरकारी गारंटी पर निर्भर नहीं होंगी।
केंद्रीय सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों की भूमिका:
- भारत में CPSE का व्यावसायिक दक्षता और सामाजिक उत्तरदायित्व का दोहरा उद्देश्य है।
- सरकारी आय में योगदान के अलावा वे अपने कॉर्पोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व (CSR) गतिविधियों के माध्यम से सामाजिक दायित्वों का निर्वहन करते हैं।
- CPSE के विचार की कल्पना निम्नलिखित सभी समस्याओं के समाधान के लिये की गई थी:
- बेरोज़गारी
- ग्रामीण-शहरी असमानता
- अंतर-क्षेत्रीय और अंतर-वर्गीय असमानताएँ
- तकनीकी पिछड़ापन
- CPSE ने सार्वजनिक क्षेत्र को आत्मनिर्भर आर्थिक विकास के लिये एक उपकरण के रूप में विकसित करने की परिकल्पना की है।
- भारत को आज़ादी मिलने से पहले उसके पास केवल कुछ CPSE थे।
- इनमें रेलवे, पोस्ट और टेलीग्राफ, पोर्ट ट्रस्ट, आयुध कारखाने आदि शामिल थे।
- अधिकांश CPSE स्वतंत्रता के बाद स्थापित किये गए थे जब निजी क्षेत्र में बड़े पूंजी गहन उद्यमों के लिये सीमित क्षमता थी।
- चुनौती: इन उद्यमों हेतु चुनौती उनके लिये अपने संवैधानिक और सामाजिक दायित्वों का निर्वहन करते हुए निवेश पर उचित रिटर्न सुनिश्चित करने की आवश्यकता से उत्पन्न होती है।
आत्मनिर्भर भारत अभियान- CPSE द्वारा योगदान:
- सार्वजनिक क्षेत्र के केंद्रीय उपक्रमों (CPSE) ने भारत सरकार के 'आत्मनिर्भर भारत' एजेंडा को पूरा करने की दिशा में आत्मनिर्भर भारत अभियान के हिस्से के रूप में कई पहलें की हैं।
- इन पहलों में नीतिगत सुधार, रणनीतिक भागीदारी, प्रशासनिक कार्रवाई, परिचालन में बदलाव और क्षमता निर्माण शामिल हैं।
- CPSE द्वारा की गई पहलों को निम्नलिखित पाँच व्यापक श्रेणियों में विभाजित किया जा सकता है:
- सरकार के बड़े रणनीतिक उद्देश्यों का समर्थन करने के लिये स्थानीय क्षमता को बढ़ाना।
- सहक्रियाओं का पता लगाने के लिये CPSE के बीच सहयोग को बढ़ावा देना।
- घरेलू फर्मों/MSMEs की अधिक भागीदारी के लिये एक मंच प्रदान करना।
- दीर्घकालिक स्थिरता सुनिश्चित करने के लिये आयात निर्भरता को युक्तिसंगत बनाना।
- स्वदेशी प्रौद्योगिकी का विकास और CPSE के लिये प्रौद्योगिकी हस्तांतरण को बढ़ावा देना।
स्रोत: पीआईबी
अंतर्राष्ट्रीय संबंध
मॉरीशस के अगलेगा द्वीप समूह में भारतीय बेस
प्रिलिम्स के लियेअगलेगा द्वीप, स्ट्रिंग ऑफ पर्ल्स, सागर पहल मेन्स के लियेभारत और मॉरीशस के बीच व्यापक आर्थिक सहयोग तथा साझेदारी समझौता |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में मॉरीशस ने एक रिपोर्ट का खंडन किया है कि उसने भारत को अगलेगा (Agalega) के दूरस्थ द्वीप पर एक सैन्य अड्डा बनाने की अनुमति दी है।
- इससे पूर्व एक समाचार प्रसारक द्वारा यह बताया गया था कि अगलेगा द्वीप पर एक भारतीय सैन्य अड्डे के लिये एक हवाई पट्टी और दो जेटी निर्माणाधीन हैं।
प्रमुख बिंदु
पृष्ठभूमि:
- वर्ष 2015 में भारत ने अगलेगा द्वीप समूह के विकास के लिये मॉरीशस के साथ एक समझौते पर हस्ताक्षर किये।
- यह बाहरी द्वीप में अपने हितों की रक्षा करने में मॉरीशस रक्षा बलों की क्षमताओं को बढ़ाने के लिये समुद्री और हवाई संपर्क में सुधार हेतु बुनियादी ढाँचे की स्थापना तथा उन्नयन के लिये प्रदान करता है।
- हालाँकि तब से ट्रांसपोंडर सिस्टम और निगरानी बुनियादी ढाँचे को स्थापित करने में भारतीय नौसेना और तटरक्षकों के हितों के बारे में रिपोर्टें बढ़ रही हैं, जिसके कारण कुछ स्थानीय विरोध हुए हैं।
अगलेगा परियोजना:
- इस परियोजना में एक जेटी का निर्माण, पुनर्निर्माण और रनवे का विस्तार तथा अगलेगा द्वीप पर एक हवाई अड्डे के टर्मिनल का निर्माण शामिल है।
- 87 मिलियन अमेरिकी डाॅलर की इन परियोजनाओं को भारत द्वारा वित्तपोषित किया जाता है।
- परियोजना में एक नया हवाई अड्डा, बंदरगाह, लाॅजिस्टिक और संचार सुविधाएँ तथा संभावित परियोजना से संबंधित कोई अन्य सुविधाएँ शामिल होंगी।
- अगलेगा द्वीप दक्षिण-पश्चिमी हिंद महासागर में मॉरीशस से 1,122 किमी. उत्तर में स्थित है।
- इसका कुल क्षेत्रफल 27 वर्ग मील (70 वर्ग किमी.) है।
महत्त्व:
- भारत की उपस्थिति को मज़बूत करना:
- यह दक्षिण-पश्चिम हिंद महासागर में भारत की उपस्थिति को मज़बूत करेगा तथा इस क्षेत्र में अपनी शक्ति प्रदर्शन की आकांक्षाओं को सुविधाजनक बनाएगा।
- भारत दक्षिण-पश्चिम हिंद महासागर में और एक खुफिया पोस्ट के रूप में हवाई तथा सतही समुद्री गश्त दोनों की सुविधा के लिये नए आधार को आवश्यक मानता है।
- भू-आर्थिक:
- एक "केंद्रीय भौगोलिक बिंदु" के रूप में मॉरीशस हिंद महासागर में वाणिज्य और कनेक्टिविटी के लिये महत्त्व रखता है।
- अफ्रीकी संघ, हिंद महासागर रिम एसोसिएशन और हिंद महासागर आयोग के सदस्य के तौर पर भी मॉरीशस की भौगोलिक अवस्थिति बहुत महत्त्वपूर्ण है।
- 'छोटे विकासशील द्वीपीय देश' (SIDS) के संस्थापक सदस्य के रूप में इसे एक महत्त्वपूर्ण पड़ोसी के रूप में देखा गया है।
- सुरक्षित विदेश व्यापार :
- भारत का 95% व्यापार मात्रात्मक रूप में तथा 68% व्यापार मूल्य के रूप में हिंद महासागर से होता है।
- भारत की कच्चे तेल की आवश्यकता का लगभग 80% हिंद महासागर के माध्यम से समुद्र द्वारा आयात किया जाता है। इसलिये हिंद महासागर में उपस्थिति भारत के लिये महत्त्वपूर्ण है।
- चीन का सामना:
- चीन के 'स्ट्रिंग ऑफ पर्ल्स' का मुकाबला करने, जो कि हमारे रणनीतिक हितों के लिये खतरा साबित हो सकता है, के लिये भारत को हिंद महासागर के बड़े क्षेत्र में उपस्थिति दर्ज करना बेहद ज़रूरी हो गया है।
- क्षेत्र में सभी के लिये सुरक्षा और विकास:
- इस परियोजना को सागर पहल (Security and Growth for All in the Region-SAGAR) के तहत अपने पड़ोसी की विकास यात्रा में योगदान करने के भारत के प्रयासों के एक भाग के रूप में देखा जा सकता है।
- इस परियोजना को भारत और उसके पड़ोसियों के बीच सहयोग बढ़ाने के तरीके के रूप में देखा जा सकता है।
- मॉरीशस के सुरक्षा ढाँचे को बढ़ाना:
- यह परियोजना अपने बुनियादी ढाँचे में उन्नयन के माध्यम से मॉरीशस सुरक्षा बलों की क्षमताओं को बढ़ाएगी।
चुनौतियाँ:
- विपक्ष का विरोध :
- मॉरीशस में विपक्ष परियोजना में पारदर्शिता को लेकर चिंता जताता रहा है।
- मॉरीशस सरकार ने परियोजना को पर्यावरण लाइसेंस प्रक्रिया (EIA clearances) में छूट प्रदान की है।
- स्थानीय लोगों का विरोध :
- वर्ष 1965 में मॉरीशस की स्वतंत्रता से पूर्व ब्रिटेन ने चागोस द्वीपों को मॉरीशस से अलग कर दिया और यहाँ के निवासियों को ज़बरन स्थानांतरित कर दिया। यहाँ के स्थानीय लोग ऐसी घटनाओं को लेकर चिंतित है।
- फ्राँस, चीन, अमेरिका और यूके जैसी सभी प्रमुख सैन्य शक्तियों के हिंद महासागर में नौसैनिक अड्डे हैं, जिससे यह आशंका पैदा हो रही है कि उनके शांतिपूर्ण द्वीप क्षेत्र का भी सैन्यीकरण किया जाएगा।
- चीन केंद्रित नीतियाँ:
- हिंद महासागर के उत्तरी हिस्से में चीन की तेज़ी से बढ़ती उपस्थिति के साथ-साथ इस क्षेत्र में चीनी पनडुब्बियों और जहाज़ों की तैनाती भारत के लिये एक चुनौती है।
- अति-उत्साही सुरक्षा नीति:
- अपने पड़ोसियों के प्रति भारत की एक अति-उत्साही सुरक्षा-संचालित नीति ने अतीत में मदद नहीं की है।
- मॉरीशस के प्रति भारत को अपने दृष्टिकोण में जलवायु परिवर्तन, सतत् विकास और नीली अर्थव्यवस्था जैसी कुछ सामान्य चुनौतियों पर पुनर्विचार करना चाहिये।
अन्य हालिया घटनाक्रम:
- जुलाई 2021 में भारत और मॉरीशस के प्रधानमंत्रियों ने संयुक्त रूप से मॉरीशस में एक सर्वोच्च न्यायालय भवन का उद्घाटन किया।
- फरवरी 2021 में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने भारत और मॉरीशस के बीच व्यापक आर्थिक सहयोग और भागीदारी समझौते (CECPA) पर हस्ताक्षर करने को मंज़ूरी दी।
- भारत और मॉरीशस ने 100 मिलियन अमेरिकी डाॅलर के रक्षा ऋण समझौते पर हस्ताक्षर किये।
- मॉरीशस को एक डोर्नियर विमान और एक उन्नत हल्का हेलीकॉप्टर ध्रुव पट्टे पर मिलेगा जो इसकी समुद्री सुरक्षा क्षमताओं का निर्माण करेगा।
- दोनों पक्षों ने चागोस द्वीप समूह विवाद पर भी चर्चा की, जो संयुक्त राष्ट्र (UN) के समक्ष संप्रभुता और सतत् विकास का मुद्दा था।
- वर्ष 2019 में भारत ने इस मुद्दे पर मॉरीशस की स्थिति के समर्थन में संयुक्त राष्ट्र महासभा में मतदान किया। भारत उन 116 देशों में से एक था, जिसने इस द्वीप समूह पर ब्रिटेन के "औपनिवेशिक प्रशासन" को समाप्त करने के लिये वोटिंग की मांग की थी।
- भारत द्वारा मॉरीशस को 1,00,000 कोविशील्ड के टीके प्रदान किये गए हैं।
आगे की राह
- अन्य देशों द्वारा संचालित सैन्य ठिकानों के विपरीत भारतीय ठिकाने सॉफ्ट बेस पर आधारित हैं, जिसका अर्थ है कि स्थानीय लोग किसी भी भारतीय-निर्मित परियोजना के माध्यम से आगे बढ़ सकते हैं। इसलिये स्थानीय सरकारें अपनी संप्रभुता को कम किये बिना अपने डोमेन पर अधिक नियंत्रण प्राप्त करती हैं।
- भारत को प्रभावित सभी पक्षों के डर को दूर करते हुए अधिक प्रेरक तरीके से खुद को एक विश्वसनीय और दीर्घकालिक साझेदार के रूप में पेश करने की ज़रूरत है।
- मॉरीशस में पंजीकृत कंपनियाँ भारत में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) का सबसे बड़ा स्रोत हैं, जिससे भारत के लिये अपनी द्विपक्षीय कर संधि को उन्नत करना महत्त्वपूर्ण हो जाता है, नवीनतम अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्थाओं को अपनाना जो कि बहुराष्ट्रीय कंपनियों को कृत्रिम रूप से मुनाफे को कम कर वाले देशों में स्थानांतरित करने से रोकती हैं।
- जैसा कि भारत दक्षिण-पश्चिमी हिंद महासागर में सुरक्षा सहयोग के लिये एक एकीकृत दृष्टिकोण प्रस्तुत करता है जिसमें मॉरीशस का स्वाभाविक रूप से एक अत्यंत महत्त्वपूर्ण स्थान है, इसलिये भारत की नेबरहुड फर्स्ट पॉलिसी (Neighbourhood First policy) में सुधार करना आवश्यक हो गया है।
स्रोत : द हिंदू
जैव विविधता और पर्यावरण
विश्व जैव ईंधन दिवस
प्रिलिम्स के लियेविश्व जैव ईंधन दिवस, जैव ईंधन, बायोमेथेनेशन मेन्स के लियेजैव ईंधन को बढ़ावा देने हेतु सरकार की पहल |
चर्चा में क्यों?
‘विश्व जैव ईंधन दिवस’ प्रतिवर्ष 10 अगस्त को मनाया जाता है।
प्रमुख बिंदु
विश्व जैव ईंधन दिवस
- यह पारंपरिक जीवाश्म ईंधन के विकल्प के रूप में गैर-जीवाश्म ईंधन के महत्त्व के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिये मनाया जाता है।
- ‘संयुक्त राष्ट्र विकास औद्योगिक संगठन’ और ‘वैश्विक पर्यावरण सुविधा (एक वित्तीय तंत्र) के सहयोग से ‘नवीन एवं नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय’ ने इस अवसर पर निम्नलिखित दो योजनाएँ शुरू की हैं:
- इंटरेस्ट सबवेंशन योजना।
- जैविक अपशिष्ट स्ट्रीम्स का GIS आधारित इन्वेंटरी टूल।
- जैव ईंधन कार्यक्रम भारत सरकार की आत्मनिर्भर भारत पहल के लिये भी महत्त्वपूर्ण है।
इतिहास
- यह दिवस ‘सर रुडोल्फ डीज़ल’ के सम्मान में मनाया जाता है। वह डीज़ल इंजन के आविष्कारक थे और जीवाश्म ईंधन के विकल्प के तौर पर वनस्पति तेल के प्रयोग की संभावना की भविष्यवाणी करने वाले पहले व्यक्ति थे।
वर्ष 2021 की थीम
- यह बेहतर पर्यावरण के लिये जैव ईंधन को बढ़ावा देने पर आधारित है।
आयोजन
- पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस मंत्रालय द्वारा वर्ष 2015 से इसका आयोजन किया जा रहा है।
महत्त्व
- कोई भी हाइड्रोकार्बन ईंधन, जो किसी कार्बनिक पदार्थ (जीवित या किसी एक समय पर जीवित सामग्री) से कम समय (दिन, सप्ताह या महीनों) में उत्पन्न होता है, उसे जैव ईंधन माना जाता है।
- जैसे- इथेनॉल, बायोडीज़ल, ग्रीन डीज़ल और बायोगैस आदि।
- जैव ईंधन कच्चे तेल पर निर्भरता को कम करने और स्वच्छ वातावरण को बढ़ावा देने में मदद करता है।
- यह ग्रामीण क्षेत्रों के लिये अतिरिक्त आय और रोज़गार सृजन में भी मदद करेगा।
- यह न केवल भारत की ग्रामीण ऊर्जा ज़रूरतों को पूरा करने में मदद करेगा, बल्कि परिवहन की बढ़ती मांगों को भी पूरा करेगा।
- जैव ईंधन के उपयोग से कार्बन उत्सर्जन में कमी आएगी और 21वीं सदी की ऊर्जा आवश्यकताओं को पूरा किया जा सकेगा।
इंटरेस्ट सबवेंशन योजना
- यह अपशिष्ट से ऊर्जा संबंधी बायोमेथेनेशन परियोजनाओं और अभिनव व्यापार मॉडल के लिये वित्तीय सहायता प्रदान करता है।
- औद्योगिक जैविक अपशिष्ट-से-ऊर्जा जैव-मीथेनेशन परियोजनाएँ आमतौर पर पूंजी गहन और वित्तीय रूप से परिचालन लागतों (जैसे- अपशिष्ट उपलब्धता) एवं राजस्व, विशेष रूप से बायोगैस यील्ड तथा इसके उपयोग, दोनों के प्रति ही संवेदनशील होती हैं।
- ऐसी परियोजनाओं में नवाचार का उद्देश्य समग्र ऊर्जा उत्पादन में सुधार करना होता है, जिससे ऊर्जा उत्पादन की लागत को कम-से-कम किया जा सके, लेकिन स्थापना चरण में प्रारंभिक परियोजना लागत अधिक हो सकती है फिर भी राजस्व में वृद्धि एवं परियोजना के जीवनकाल में परिचालन लागत कम होती है।
- यह ऋण योजना लाभार्थियों को ऐसी परियोजनाओं के सामने आने वाले ऋण घटक पर ब्याज़ के वित्तीय बोझ को कम करने के लिये वित्तीय सहायता प्रदान करती है।
जैविक अपशिष्ट स्ट्रीम्स का GIS आधारित इन्वेंटरी टूल
- यह टूल पूरे भारत में उपलब्ध शहरी और औद्योगिक जैविक कचरे एवं उनकी ऊर्जा उत्पादन क्षमता के ज़िला स्तर का अनुमान प्रदान करता है।
- GIS (भौगोलिक सूचना प्रणाली) टूल SMEs (लघु एवं मध्यम उद्यम) और परियोजना डेवलपर्स को ऊर्जा परियोजनाओं के लिये नए अपशिष्ट से ऊर्जा परियोजना स्थापित करने में सक्षम बनाएगा और देश में अपशिष्ट से ऊर्जा उत्पादन क्षेत्र में बायोमेथेनेशन के तीव्र विकास की सुविधा प्रदान कर सकता है।
बायोमेथेनेशन
- बायोमेथेनेशन का आशय ऐसी प्रकिया से है जिसके द्वारा कार्बनिक पदार्थों को अवायवीय परिस्थितियों में सूक्ष्मजैविक रूप से बायोगैस में परिवर्तित किया जाता है।
- इसमें सूक्ष्मजीवों के तीन मुख्य शारीरिक समूह शामिल हैं: किण्वन बैक्टीरिया, कार्बनिक अम्ल ऑक्सीकरण बैक्टीरिया और मिथेनोजेनिक आर्किया।
- सूक्ष्मजीव, जैव रासायनिक रूपांतरणों के कैस्केड के माध्यम से मीथेन और कार्बन डाइऑक्साइड को कार्बनिक पदार्थों में विघटित कर देते हैं।
जैव ईंधन को बढ़ावा देने हेतु सरकार की पहल
- जैव ईंधन का सम्मिश्रण: जैव ईंधन के सम्मिश्रण को बढ़ावा देने के लिये इथेनॉल मिश्रित पेट्रोल (EBP) कार्यक्रम, इथेनॉल के लिये प्रशासनिक मूल्य तंत्र,तेल विपणन कंपनियों (OMC) के लिये खरीद प्रक्रिया को सरल बनाना, उद्योग (विकास और विनियमन) अधिनियम, 1951 के प्रावधानों में संशोधन आदि कुछ पहलें की गई हैं।
- इंटरनेशनल सेंटर फॉर जेनेटिक इंजीनियरिंग एंड बायोटेक्नोलॉजी (ICGEB) के शोधकर्त्ता जैव ईंधन उत्पादन के लिये साइनोबैक्टीरियम (Cyanobacterium) का उपयोग करने हेतु एक विधि विकसित कर रहे हैं।
- हाल ही में केंद्र सरकार ने भी अधिशेष चावल को इथेनॉल में बदलने की अनुमति दी है।
- प्रधानमंत्री जी-वन योजना, 2019 : इस योजना का उद्देश्य दूसरी पीढ़ी (2G) के इथेनॉल उत्पादन हेतु वाणिज्यिक परियोजनाओं की स्थापना के लिये एक पारिस्थितिकी तंत्र का निर्माण करना और इस क्षेत्र में अनुसंधान तथा विकास को बढ़ावा देना है।
- गोबर-धन (Galvanizing Organic Bio-Agro Resources Dhan - GOBAR-DHAN) योजना: यह खेतों में मवेशियों के गोबर और ठोस कचरे को उपयोगी खाद, बायोगैस और बायो-सीएनजी में बदलने और इस प्रकार गाँवों को साफ रखने व ग्रामीण परिवारों की आय बढ़ाने पर केंद्रित है।
- रिपर्पज़ यूज़्ड कुकिंग ऑयल (Response Used Cooking Oil): इसे भारतीय खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण (FSSAI) द्वारा लॉन्च किया गया था तथा इसका उद्देश्य एक ऐसा पारिस्थितिक तंत्र विकसित करना है जो प्रयुक्त कुकिंग आयल को बायो-डीज़ल में संग्रह व रूपांतरण करने में सक्षम हो।
- जैव ईंधन पर राष्ट्रीय नीति, 2018 : इस नीति द्वारा गन्ने का रस, चीनी युक्त सामग्री जैसे- चुकंदर, मीठा शर्बत सोरघम, स्टार्च युक्त सामग्री तथा मानव उपभोग हेतु अनुपयुक्त क्षतिग्रस्त अनाज, जैसे- गेहूँ, टूटे चावल और सड़े हुए आलू का उपयोग करके एथेनॉल उत्पादन हेतु कच्चे माल के दायरे का विस्तार किया गया है।
आगे की राह
- भारत जैसे देश में परिवहन में जैव ईंधन के उपयोग को बढ़ावा देने से कच्चे तेल के आयात बिल को कम करने में मदद मिलेगी।
- एक बड़ी कृषि अर्थव्यवस्था बनने हेतु भारत के पास बड़ी मात्रा में कृषि अवशेष उपलब्ध हैं, इसलिये देश में जैव ईंधन के उत्पादन की गुंजाइश बहुत अधिक है। जैव ईंधन नई नकदी फसलों के रूप में ग्रामीण और कृषि विकास में मदद कर सकता है।
- शहरों में उत्पन्न होने वाले अपशिष्ट और नगरपालिका कचरे का उपयोग सुनिश्चित कर स्थायी जैव ईंधन उत्पादन के प्रयास किये जाने चाहिये। एक अच्छी तरह से डिज़ाइन और कार्यान्वित जैव ईंधन नीति भोजन एवं ऊर्जा दोनों प्रदान कर सकती है।
- एक समुदाय आधारित बायोडीज़ल वितरण कार्यक्रम जो स्थानीय अर्थव्यवस्थाओं को लाभ पहुँचाता है, फीडस्टॉक को विकसित करने वाले किसानों से लेकर अंतिम उपभोक्ता तक ईंधन का उत्पादन और वितरण करने वाला एक स्वागत योग्य कदम होगा।
स्रोत: पी.आई.बी.
सामाजिक न्याय
बुजुर्गों के लिये जीवन का गुणवत्ता सूचकांक
प्रिलिम्स के लियेप्रधानमंत्री आर्थिक सलाहकार परिषद, सकल घरेलू उत्पाद, राष्ट्रीय बुजुर्ग नीति मेन्स के लियेबुजुर्गों के जीवन की गुणवत्ता की स्थिति एवं चुनौतियाँ, बुजुर्गों से संबंधित पहल |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में प्रधानमंत्री आर्थिक सलाहकार परिषद (EAC-PM) ने बुजुर्गों के लिये जीवन का गुणवत्ता सूचकांक जारी किया।
- देश में कुल आबादी के प्रतिशत के रूप में बुजुर्गों की हिस्सेदारी वर्ष 2001 में लगभग 7.5 प्रतिशत थी, जो बढ़कर वर्ष 2026 तक लगभग 12.5 प्रतिशत हो जाएगी तथा वर्ष 2050 तक 19.5 प्रतिशत से अधिक होने की उम्मीद है।
- प्रधानमंत्री आर्थिक सलाहकार परिषद (EAC-PM) एक गैर-संवैधानिक, गैर-सांविधिक, स्वतंत्र निकाय है, जिसका गठन भारत सरकार, विशेष रूप से प्रधानमंत्री को आर्थिक और संबंधित मुद्दों पर सलाह देने के लिये किया गया है।
प्रमुख बिंदु
परिचय :
- EAC-PM के अनुरोध पर इंस्टीट्यूट फॉर कॉम्पिटिटिवनेस द्वारा यह सूचकांक तैयार किया गया है, जो ऐसे मुद्दों पर प्रकाश डालता है जिनका अक्सर बुजुर्गों के सामने आने वाली समस्याओं में उल्लेख नहीं किया जाता है।
- भारतीय प्रतिस्पर्द्धा आयोग, भारत में केंद्रित एक अंतर्राष्ट्रीय पहल है, जो प्रतिस्पर्द्धा और रणनीति पर अनुसंधान व ज्ञान के निकाय के विस्तार एवं उद्देश्यपूर्ण प्रसार के लिये समर्पित है।
- यह रिपोर्ट भारतीय राज्यों में आयु बढ़ने के क्षेत्रीय पैटर्न की पहचान करने के साथ-साथ देश में आयु बढ़ने की समग्र स्थिति का भी आकलन करती है।
- आयु एक सतत्, अपरिवर्तनीय, सार्वभौमिक प्रक्रिया है, जो गर्भाधान से शुरू होकर व्यक्ति की मृत्यु तक होती है।
- हालाँकि जिस आयु में किसी के उत्पादक योगदान में गिरावट आती है तथा वह आर्थिक रूप से निर्भर हो जाता है, उसे सामान्यत: जीवन के वृद्ध चरण की शुरुआत के रूप में माना जा सकता है।
- राष्ट्रीय बुजुर्ग नीति, 60+ आयु वर्ग के लोगों को बुजुर्ग के रूप में परिभाषित करती है।
- यह निष्पक्ष रैंकिंग के माध्यम से राज्यों के बीच स्वस्थ प्रतिस्पर्द्धा को बढ़ावा देगी तथा उन स्तंभों और संकेतकों पर प्रकाश डालेगी जिनमें वे सुधार कर सकते हैं।
सूचकांक के स्तंभ और उप-स्तंभ:
- चार स्तंभ:
- वित्तीय कल्याण, सामाजिक कल्याण, स्वास्थ्य प्रणाली और आय सुरक्षा
- आठ उप-स्तंभ:
- आर्थिक सशक्तीकरण, शैक्षिक उद्देश्यों की प्राप्ति और रोजगार, सामाजिक स्थिति, शारीरिक सुरक्षा, बुनियादी स्वास्थ्य, मनोवैज्ञानिक कल्याण, सामाजिक सुरक्षा तथा पर्यावरण को सक्षम बनाना।
प्रमुख निष्कर्ष:
- राज्यवार रैंकिंग:
- राजस्थान और हिमाचल प्रदेश क्रमशः वृद्ध और अपेक्षाकृत वृद्ध राज्यों में शीर्ष स्कोरर हैं।
- वृद्ध राज्य 5 मिलियन से अधिक की वृद्ध आबादी वाले राज्यों को संदर्भित करता है, जबकि अपेक्षाकृत वृद्ध राज्य 5 मिलियन से कम की वृद्ध आबादी वाले राज्यों को संदर्भित करता है।
- चंडीगढ़ और मिज़ोरम केंद्रशासित प्रदेश और उत्तर-पूर्वी राज्यों की श्रेणी में शीर्ष स्कोरर हैं।
- राजस्थान और हिमाचल प्रदेश क्रमशः वृद्ध और अपेक्षाकृत वृद्ध राज्यों में शीर्ष स्कोरर हैं।
- स्तंभवार प्रदर्शन:
- स्वास्थ्य प्रणाली स्तंभ का अखिल भारतीय स्तर पर उच्चतम राष्ट्रीय औसत 66.97 है, जिसके बाद सामाजिक कल्याण स्तंभ का स्कोर 62.34 है।
- वित्तीय कल्याण का स्कोर 44.7 है, जो शिक्षा प्राप्ति और रोज़गार स्तंभ में 21 राज्यों के निम्न प्रदर्शन से कम है, यह सुधार की संभावना को प्रदर्शित करता है।
- राज्यों ने आय सुरक्षा स्तंभ में विशेष रूप से खराब प्रदर्शन किया है क्योंकि आधे से अधिक राज्यों का आय सुरक्षा में राष्ट्रीय औसत से कम स्कोर है, जो सभी स्तंभों में सबसे कम है।
चुनौतियाँ:
- महिलाओं की अधिक आयु प्रत्याशा:
- जनसंख्या में लोगों की सामान्य आयु के उभरते मुद्दों में से एक "महिलाओं की अधिक आयु प्रत्याशा" है, जिसके परिणामस्वरूप वृद्धावस्था के कुल प्रतिशत में महिलाओं का अनुपात पुरुषों की तुलना में अधिक होता है।
- आय सुरक्षा:
- भारत में विश्व स्तर पर सबसे कमज़ोर सामाजिक सुरक्षा तंत्र है क्योंकि यह अपने सकल घरेलू उत्पाद (GDP) का केवल 1% पेंशन पर खर्च करता है।
- अर्थव्यवस्था में बुजुर्गों का एकीकरण:
- वर्तमान वृद्ध व्यक्ति की विशिष्ट ज़रूरतों, प्रेरणाओं और वरीयताओं को पूरा करने तथा सक्रिय आयु को बढ़ावा देने के साथ उन्हें समाज में योगदान करने का मौका देने की आवश्यकता है।
- स्वास्थ्य देखभाल और सेवाएँ:
- स्वस्थ आयु में वृद्धि सुनिश्चित करने के लिये अच्छा स्वास्थ्य समाज के मूल में है। जैसे-जैसे भारत में वृद्ध लोगों की जीवन प्रत्याशा बढ़ती है, हमें यह सुनिश्चित करने की आवश्यकता है कि लोग अधिक आयु तक जीवित रहें, स्वस्थ जीवन जिएँ, जो वृद्ध व्यक्तियों, उनके परिवारों और समाज के लिये अधिक महत्त्वपूर्ण है।
संबंधित प्रयास:
- सीनियर केयर एजिंग ग्रोथ इंजन (SAGE): सेज पोर्टल (SAGE Portal) विश्वसनीय स्टार्टअप्स के माध्यम से वरिष्ठ नागरिकों की देखरेख में उपयोगी उत्पादों तथा सेवाओं को प्रदान करने वाला ‘वन-स्टॉप एक्सेस’ होगा।
- वृद्ध व्यक्तियों के लिये एकीकृत कार्यक्रम (IPOP): योजना का मुख्य उद्देश्य आश्रय, भोजन, चिकित्सा देखभाल और मनोरंजन के अवसर आदि जैसी बुनियादी सुविधाएँ प्रदान करके वृद्ध व्यक्तियों के जीवन की गुणवत्ता में सुधार करना है।
- राष्ट्रीय वयोश्री योजना (RVY): इसका उद्देश्य गरीबी रेखा से नीचे (BPL) की श्रेणी के वरिष्ठ नागरिकों को शारीरिक सहायता और जीवन यापन के लिये आवश्यक उपकरण प्रदान करना है, जो कम दृष्टि, श्रवण दोष, दाँतों की हानि तथा चलने में अक्षमता जैसी आयु से संबंधित अक्षमताओं से पीड़ित हैं।
- इंदिरा गांधी राष्ट्रीय वृद्धावस्था पेंशन योजना: इस योजना के तहत भारत सरकार द्वारा निर्धारित मानदंडों के अनुसार 60 वर्ष और उससे अधिक आयु के व्यक्तियों और गरीबी रेखा से नीचे (BPL) जीवन यापन करने वाले परिवारों से संबंधित व्यक्तियों को वित्तीय सहायता प्रदान की जाती है। इसमें 60-79 वर्ष आयु वर्ग के व्यक्तियों को 200 रुपए प्रतिमाह तथा 80 वर्ष और उससे अधिक आयु के व्यक्तियों को 500 रुपए प्रतिमाह की केंद्रीय सहायता प्रदान करने का प्रावधान है।
- प्रधानमंत्री वय वंदना योजना (PMVVY): यह वरिष्ठ नागरिकों के लिये एक पेंशन योजना है, जिसके तहत मासिक, त्रैमासिक, अर्द्ध-वार्षिक या वार्षिक आधार पर 10 वर्षों की अवधि के लिये गारंटीड रिटर्न की व्यवस्था की गई है। यह विशेष रूप से उन लोगों के लिये उपलब्ध है जिनकी आयु 60 वर्ष और उससे अधिक है।
- वयोश्रेष्ठ सम्मान: 1 अक्तूबर को अंतर्राष्ट्रीय वृद्धजन दिवस (International Day of Older Person) पर वरिष्ठ नागरिकों की सराहनीय सेवा करने वाले संस्थानों और वरिष्ठ नागरिकों को उनकी उत्तम सेवाओं तथा उपलब्धियों के लिये यह राष्ट्रीय सम्मान प्रदान किया जाता है।
- माता-पिता और वरिष्ठ नागरिकों का भरण-पोषण तथा कल्याण (MWPSC) अधिनियम, 2007: इसका मुख्य उद्देश्य माता-पिता और वरिष्ठ नागरिकों तथा उनके कल्याण के लिये आवश्यकता-आधारित रखरखाव या देखभाल सुनिश्चित करना है।
वैश्विक प्रयास (Global Initiatives):
- स्वस्थ आयु में वृद्धि का दशक (2020-2030): स्वस्थ आयु में वृद्धि के दशक को 73वें विश्व स्वास्थ्य सभा (विश्व स्वास्थ्य संगठन की निर्णय लेने वाली संस्था) द्वारा 2020 में समर्थन दिया गया था।
- सतत् विकास के लिये एजेंडा 2030 किसी को पीछे नहीं छोड़ने और यह सुनिश्चित करने हेतु तत्पर है कि सतत् विकास लक्ष्य (SDG) समाज के सभी वर्गों के लिये हर आयु में वृद्ध व्यक्तियों सहित सबसे कमज़ोर लोगों का समावेश करेगा।
आगे की राह
- भारत को अक्सर एक युवा समाज के रूप में चित्रित किया जाता है, जिसके परिणामस्वरूप जनसांख्यिकीय लाभांश प्राप्त होता है। लेकिन हर देश जो जनसांख्यिकीय परिवर्तन की प्रक्रिया से गुजरता है, की तरह भारत में भी आयु बढ़ने के कारण समस्या उत्पन्न हो सकती है।
- वृद्ध व्यक्तियों के कल्याण और देखभाल के लिये हमें पहले से मौजूद सामाजिक समर्थन प्रणालियों/पारंपरिक सामाजिक संस्थानों जैसे- परिवार तथा रिश्तेदारी, पड़ोसियों से बेहतर संबंध, सामुदायिक संबंध व सामुदायिक भागीदारी को पुनर्जीवित करने पर ध्यान देना चाहिये और परिवार के लोगों को बुजुर्गों के प्रति संवेदनशीलता दिखानी चाहिये।
स्रोत: पी.आई.बी.
भारतीय अर्थव्यवस्था
सामान्य बीमा व्यवसाय (राष्ट्रीयकरण) संशोधन विधेयक, 2021
प्रिलिम्स के लियेसामान्य बीमा व्यवसाय (राष्ट्रीयकरण) अधिनियम, 1972, पूंजी रिडेम्पशन मेन्स के लियेसामान्य बीमा व्यवसाय (राष्ट्रीयकरण) संशोधन विधेयक, 2021 का महत्त्व एवं चुनौतियाँ |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में संसद के दोनों सदनों द्वारा सामान्य बीमा व्यवसाय (राष्ट्रीयकरण) संशोधन विधेयक, 2021 पारित किया गया।
यह सामान्य बीमा व्यवसाय (राष्ट्रीयकरण) अधिनियम, 1972 में संशोधन है।
प्रमुख बिंदु
विधेयक के प्रमुख प्रावधान:
- सरकारी शेयरधारिता सीमा:
- यह एक निर्दिष्ट बीमाकर्त्ता को 51 प्रतिशत से कम इक्विटी पूंजी रखने के लिये केंद्र सरकार की अनिवार्य आवश्यकता को समाप्त करेगा।
- सामान्य बीमा व्यवसाय की परिभाषा:
- यह सामान्य बीमा व्यवसाय को अग्नि, समुद्री या विविध बीमा व्यवसाय के रूप में परिभाषित करता है।
- यह परिभाषा कुछ व्यवसायों को पूंजी से छूट तथा वार्षिक लेने-देन की स्थिति से बाहर करता है।
- पूंजी रिडेम्पशन (Capital Redemption) बीमा में लाभार्थी द्वारा समय-समय पर प्रीमियम का भुगतान करने के बाद बीमाकर्त्ता द्वारा एक विशिष्ट तिथि पर राशि का भुगतान शामिल होता है।
- वार्षिकी पॉलिसी के तहत बीमाकर्त्ता लाभार्थी को समयावधि में भुगतान करता है।
- सरकार से नियंत्रण का हस्तांतरण:
- यह उस तारीख से निर्दिष्ट बीमाकर्त्ताओं पर लागू नहीं होगा जिस दिन केंद्र सरकार बीमाकर्त्ता का नियंत्रण छोड़ देती है। यहाँ नियंत्रण का अर्थ है:
- एक निर्दिष्ट बीमाकर्त्ता के अधिकांश निदेशकों को नियुक्त करने की शक्ति।
- इसके प्रबंधन या नीतिगत निर्णयों पर अधिकार होना।
- यह उस तारीख से निर्दिष्ट बीमाकर्त्ताओं पर लागू नहीं होगा जिस दिन केंद्र सरकार बीमाकर्त्ता का नियंत्रण छोड़ देती है। यहाँ नियंत्रण का अर्थ है:
- केंद्र सरकार को प्राप्त अधिकार :
- यह केंद्र सरकार को निर्दिष्ट बीमा कंपनियों के कर्मचारियों की सेवा के नियमों और शर्तों को अधिसूचित करने का अधिकार देता है।
- यह प्रावधान करता है कि इस संबंध में केंद्र सरकार द्वारा तैयार की गई योजनाओं को बीमाकर्त्ता द्वारा अपनाया गया माना जाएगा।
- बीमाकर्त्ता का निदेशक मंडल इन योजनाओं को बदल सकता है या नई नीतियाँ बना सकता है।
- इसके अतिरिक्त ऐसी योजनाओं के तहत केंद्र सरकार की शक्तियाँ बीमाकर्त्ता के निदेशक मंडल को हस्तांतरित की जाएंगी।
- निदेशकों के दायित्व:
- यह विशिष्ट प्रावधान करता है कि एक निर्दिष्ट बीमाकर्त्ता का निदेशक, जो पूर्णकालिक निदेशक नहीं है, केवल कुछ कृत्यों के लिये उत्तरदायी होगा, जिसमें शामिल कार्य हैं:
- स्व विवेकाधिकार, बोर्ड प्रक्रियाओं के माध्यम से ज़िम्मेदार होगा।
- उसकी सहमति या असहमति से या जहाँ उसने परिश्रमपूर्वक कार्य नहीं किया।
- यह विशिष्ट प्रावधान करता है कि एक निर्दिष्ट बीमाकर्त्ता का निदेशक, जो पूर्णकालिक निदेशक नहीं है, केवल कुछ कृत्यों के लिये उत्तरदायी होगा, जिसमें शामिल कार्य हैं:
महत्त्व:
- निजी पूंजी:
- यह सामान्य बीमा व्यवसाय में अधिक निजी पूंजी लाएगा और ग्राहकों को अधिक उत्पाद उपलब्ध कराने के लिये अपनी पहुँच में सुधार करेगा।
- बेहतर दक्षता:
- यह कदम निजी भागीदारी के लिये और अधिक क्षेत्रों को खोलने तथा दक्षता में सुधार करने की सरकार की रणनीति का हिस्सा है।
- बीमा पैठ में बढ़ोतरी:
- यह पॉलिसीधारकों के हितों को बेहतर ढंग से सुरक्षित करने के लिये बीमा पैठ और सामाजिक सुरक्षा को बढ़ाएगा तथा अर्थव्यवस्था के तेज़ी से विकास में योगदान देगा।
चिंताएँ:
- मजदूरों पर असर :
- यह देश में बीमा क्षेत्र और सामान्य बीमा कंपनी से जुड़े श्रमिकों को प्रभावित करेगा।
- पूर्ण निजीकरण (Total Privatisation):
- इससे सामान्य बीमा कंपनियों का पूर्ण निजीकरण हो सकता है जिससे 30 करोड़ पॉलिसीधारक असुरक्षा में पड़ जाएंगे।
- सरकार का नुकसान:
- पेशकश किये जा रहे शेयरों के अनुपात में लाभांश के रूप में सरकार को भी नुकसान होगा।
- पेंशन सुरक्षा:
- सार्वजनिक क्षेत्र की चार साधारण बीमा कंपनियों के पेंशनभोगी तब अपने भविष्य की पेंशन की सुरक्षा को लेकर चिंतित थे, जब केंद्र सरकार ने उनमें से एक का निजीकरण कर दिया।
- पेंशन फंड कर्मचारियों के योगदान पर निर्भर है ताकि पेंशन ट्रस्ट पेंशनभोगियों को भुगतान कर सके।
सामान्य बीमा व्यवसाय (राष्ट्रीयकरण) अधिनियम, 1972
- यह अधिनियम भारत में सामान्य बीमा व्यवसाय करने वाली सभी निजी कंपनियों का राष्ट्रीयकरण करने के लिये अधिनियमित किया गया था। इसके तहत ‘भारतीय सामान्य बीमा निगम’ (GIC) की स्थापना गई।
- GIC एक भारतीय राष्ट्रीयकृत पुनर्बीमा कंपनी है।
- अधिनियम के तहत राष्ट्रीयकृत कंपनियों के व्यवसायों को ‘भारतीय सामान्य बीमा निगम’ की चार सहायक कंपनियों में पुनर्गठित किया गया था:
- नेशनल इंशोरेंस
- न्यू इंडिया एशोरेंस
- यूनाइटेड इंशोरेंस
- यूनाइटेड इंडिया इंशोरेंस
- बाद में 2002 में इन चार सहायक कंपनियों का नियंत्रण GIS से केंद्र सरकार को हस्तांतरित करने के लिये अधिनियम में संशोधन किया गया, जिससे वे स्वतंत्र कंपनियाँ बन गईं।
- वर्ष 2000 से GIC विशेष रूप से पुनर्बीमा व्यवसाय कर रहा है।
स्रोत: द हिंदू
भारतीय अर्थव्यवस्था
उपभोक्ता विवाद निवारण आयोगों में रिक्तियाँ
प्रिलिम्स के लिये:राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग मेन्स के लिये:उपभोक्ता विवाद से संबंधित मुद्दे |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय ने राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग और राज्य उपभोक्ता विवाद निवारण आयोगों में रिक्त पदों को भरने में देरी पर नाराज़गी व्यक्त की है।
- इसने केंद्र और राज्यों को आठ सप्ताह के भीतर प्रक्रिया पूरी करने का निर्देश दिया।
प्रमुख बिंदु
संदर्भ:
- न्यायालय ज़िलों और राज्य उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग के अध्यक्ष और सदस्यों / कर्मचारियों की नियुक्ति में निष्क्रियता तथा पूरे भारत में अपर्याप्त बुनियादी ढाँचे पर एक स्वत: संज्ञान मामले की सुनवाई कर रहा था।
- इसने इस बात पर प्रकाश डाला कि विवादों के निवारण में देरी के कारण रिक्तियाँ उपभोक्ताओं को नुकसान पहुँचा रही हैं।
- न्यायालय ने केंद्र से उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 2019 को लेकर विधायी प्रभाव अध्ययन पर चार सप्ताह में एक रिपोर्ट प्रस्तुत करने को भी कहा।
- दो सप्ताह में यह तीसरी बार है जब सर्वोच्च न्यायालय ने भारत में न्यायालयों, न्यायाधिकरणों और विवाद समाधान निकायों में रिक्तियों के संबंध में अपनी चिंता व्यक्त की है।
राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग के बारे में:
- राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग (NCDRC) भारत में एक अर्द्ध-न्यायिक आयोग है जिसे 1988 में उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 के तहत स्थापित किया गया था।
- इसका प्रधान कार्यालय नई दिल्ली में है।
- आयोग का नेतृत्व भारत के सर्वोच्च न्यायालय के एक वर्तमान या सेवानिवृत्त न्यायाधीश द्वारा किया जाता है।
- 1986 के उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम ने राष्ट्रीय (राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग), राज्य और ज़िला स्तरों पर एक त्रिस्तरीय उपभोक्ता विवाद निवारण तंत्र का प्रावधान किया।
- उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 2019 केंद्रीय उपभोक्ता संरक्षण प्राधिकरण (CCPA) की स्थापना करता है जिसका प्राथमिक उद्देश्य उपभोक्ताओं के अधिकारों को बढ़ावा देना, उनकी रक्षा करना और उन्हें लागू करना होगा।
विधायी प्रभाव अध्ययन के बारे में:
- विधायी प्रभाव अध्ययन या आकलन तय समय की अवधि में समाज पर कानून (बनाए और लागू किये जा रहे) के प्रभाव का अध्ययन है।
- यह विधायी प्रस्तावों और सरकारी नीतियों के स्वीकृत व अधिनियमित होने से पहले तथा बाद में उनके संभावित प्रभावों का आकलन करने की एक विधि है।
- उदाहरण के लिये मुकदमेबाज़ी पर इसका क्या प्रभाव पड़ेगा, किस प्रकार की जनशक्ति की आवश्यकता है, किस प्रकार के बुनियादी ढाँचे की आवश्यकता है।
- यह निर्धारित करने के लिये कि कौन सी नीति सर्वोत्तम परिणाम देती है, यह विभिन्न नीति डिज़ाइनों के साथ उनकी तुलना करती है।
- कानून बनने के बाद संसद की ज़िम्मेदारी खत्म नहीं होती है। इसे इस बात की पुष्टि करनी होती है कि कानून के इच्छित उद्देश्यों और ज़रूरतों को हासिल किया गया है या नहीं।