भारत-न्यूज़ीलैंड गोलमेज बैठक
प्रिलिम्स के लिये:न्यूज़ीलैंड की भौगोलिक अवस्थिति, UPI, कार्बन क्रेडिट, वंदे भारत मिशन मेन्स के लिये:न्यूज़ीलैंड के साथ भारत के आर्थिक संबंध |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में भारत और न्यूज़ीलैंड के बीच उद्योग और उद्योग संघों की पहली गोलमेज संयुक्त बैठक नई दिल्ली में संपन्न हुई।
- इस बैठक की सह-अध्यक्षता वाणिज्य विभाग के अतिरिक्त सचिव और न्यूज़ीलैंड के उच्चायुक्त ने की।
प्रमुख बिंदु
- भारत और न्यूज़ीलैंड ने दोनों देशों की साझेदारी में अपार संभावनाएँ तथा पारस्परिक हित के क्षेत्रों में आर्थिक संबंधों को बढ़ावा देने हेतु सामंजस्य स्थापित करने की आवश्यकता पर सहमति व्यक्त की।
- साथ ही मुक्त व्यापार समझौते से परे कार्य करने और ऐसे अन्य क्षेत्रों का पता लगाने की आवश्यकता बल दिया जहाँ दोनों एक-दूसरे के पूरक हो सकते हैं।
- यह चर्चा वर्ष 1986 के द्विपक्षीय व्यापार समझौते के तहत गठित संयुक्त व्यापार समिति (Joint Trade Committee- JTC) के उद्देश्यों को आगे बढ़ाने पर केंद्रित थी।
- न्यूज़ीलैंड ने निजी क्षेत्रों के साथ व्यापार और सहयोग को सुविधाजनक बनाने पर ज़ोर दिया, जिसमें कुछ प्रमुख क्षेत्रों में यूनिफाइड पेमेंट इंटरफेस (UPI) प्रणाली को बढ़ावा देना, कार्बन क्रेडिट सहयोग एवं दोनों पक्षों के व्यवसायों को द्विपक्षीय लाभ हेतु गैर-टैरिफ उपायों पर अनुरोध जैसे मुद्दों पर काम करना शामिल है।
- दोनों देशों के बीच हवाई संपर्क बढ़ाने पर भी ज़ोर दिया गया।
न्यूज़ीलैंड:
- आधिकारिक नाम: न्यूज़ीलैंड/आओटियरोआ (माओरी)
- सरकार का रूप: संसदीय लोकतंत्र
- राजधानी: वेलिंगटन
- आधिकारिक भाषाएँ: अंग्रेज़ी, माओरी
- मुद्रा: न्यूज़ीलैंड डॉलर
- प्रमुख पर्वत शृंखलाएँ: दक्षिणी आल्प्स, कैकौरा पर्वतमालाएँ
- सर्वोच्च पर्वत शिखर: माउंट कुक (3,754 मीटर) - माओरी लोगों द्वारा "क्लाउड पियर्सर" कहा जाता है
- प्रमुख नदियाँ: वाइकाटो, क्लुरथा, रंगितिकी, वांगानुई, मनवातु, बुलर, राकिया, वेटाकी और वायाउ
- 2 मुख्य द्वीप: उत्तर और दक्षिण द्वीप - कुक स्ट्रेट द्वारा अलग किये गए
न्यूज़ीलैंड के साथ भारत के संबंध:
- ऐतिहासिक संबंध: भारत और न्यूज़ीलैंड के बीच लंबे समय से मैत्रीपूर्ण संबंध रहे हैं। ये संबंध 1800 के दशक से हैं, जब भारतीय 1850 के दशक में क्राइस्टचर्च में बसे थे।
- 1890 के दशक में पंजाब और गुजरात से बड़ी संख्या में अप्रवासी न्यूज़ीलैंड आए। वर्ष 1915 में गैलीपोली में एंज़ैक के साथ भारतीय सैनिकों ने लड़ाई लड़ी थी।
- राजनीतिक संबंध: भारत और न्यूज़ीलैंड के बीच सौहार्दपूर्ण एवं मैत्रीपूर्ण संबंध हैं जो राष्ट्रमंडल, संसदीय लोकतंत्र तथा अंग्रेज़ी भाषा के संदर्भ में निहित हैं।
- दोनों देश एक ही वर्ष में स्वतंत्र हुए और भारत का राजनयिक प्रतिनिधित्व वर्ष 1950 में एक व्यापार आयोग के उद्घाटन के साथ स्थापित किया गया, जिसे बाद में उच्चायोग के रूप में अद्यतन किया गया।
- दोनों देश निरस्त्रीकरण, वैश्विक शांति, उत्तर-दक्षिण वार्ता, मानवाधिकार, पारिस्थितिक संरक्षण और अंतर्राष्ट्रीय आतंकवाद का मुकाबला करने की अपनी प्रतिबद्धता में विश्वास रखते हैं।
- न्यूज़ीलैंड ने अक्तूबर 2011 में अधिसूचित अपनी "ओपनिंग डोर टू इंडिया" नीति में भारत को एक प्राथमिकता वाले देश के रूप में चिह्नित किया, जिसकी पुनःपुष्टि वर्ष 2015 में की गई थी।
- कोविड-19 महामारी के दौरान सहयोग: दोनों देशों ने महामारी के दौरान आवश्यक वस्तुओं, दवाओं और टीकों की आपूर्ति शृंखला की निरंतरता सुनिश्चित करके महामारी के खिलाफ लड़ाई में द्विपक्षीय रूप से बड़े पैमाने पर सहयोग किया।
- भारत और न्यूज़ीलैंड ने कोविड-19 के मद्देनज़र इन देशों में फँसे एक-दूसरे के नागरिकों को वापस लाने में भी मदद की।
- व्यापार संबंध: भारत सितंबर 2020 में समाप्त होने वाले वित्तीय वर्ष में कुल 1.80 बिलियन अमेरिकी डॉलर मूल्य के दो-तरफा व्यापार के साथ न्यूज़ीलैंड का 11वाँ सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार है।
- भारत के साथ-साथ शिक्षा और पर्यटन भी न्यूज़ीलैंड के विकास क्षेत्र हैं।
- न्यूज़ीलैंड में सर्वाधिक अंतर्राष्ट्रीय छात्रों के रूप में भारतीय छात्र ( महामारी पूर्व समय में 15000) दूसरे स्थान पर आते हैं।
- भारत मुख्य रूप से न्यूज़ीलैंड से वानिकी उत्पादों, लकड़ी की लुगदी, ऊन तथा खाद्य फल एवं मेवे का आयात करता है। भारत द्वारा न्यूज़ीलैंड को ज़्यादातर फार्मास्यूटिकल्स/दवाएँ, कीमती धातु और रत्न, कपड़ा तथा मोटर वाहन एवं गैर-बुने हुए परिधान व सहायक उपकरणों का निर्यात किया जाता है।
- भारत और न्यूज़ीलैंड के बीच मुक्त व्यापार समझौता (FTA) है।
- व्यापारिक गठबंधन: भारत-न्यूज़ीलैंड व्यापार परिषद (INZBC) और भारत न्यूज़ीलैंड व्यापार गठबंधन (INZTA) वे दो प्रमुख संगठन हैं जो भारत-न्यूज़ीलैंड व्यापार तथा निवेश संबंधों को बढ़ावा देने का कार्य कर रहे हैं।
- सांस्कृतिक संबंध: दीपावली, होली, रक्षाबंधन, बैसाखी, गुरुपर्व, ओणम, पोंगल, आदि सहित सभी भारतीय त्योहार पूरे न्यूज़ीलैंड में बहुत उत्साह के साथ मनाए जाते हैं।
- न्यूज़ीलैंड में भारतीय मूल के लगभग 2,50,000 व्यक्ति और NRI हैं, जिनमें से अधिकांश ने न्यूज़ीलैंड को अपना स्थायी निवास बना लिया है।
- नागरिक उड्डयन सहयोग: न्यूज़ीलैंड में बड़ी संख्या में प्रवासी भारतीय और दो-तरफा पर्यटन प्रवाह को देखते हुए दोनों देशों के बीच सीधा हवाई संपर्क द्विपक्षीय संबंधों के सभी पहलुओं के लिये एक गेम-चेंजर साबित हो सकता है।
- वंदे भारत मिशन के तहत दोनों देशों के बीच संचालित सीधी उड़ानों ने एयरलाइन्स के लिये व्यावसायिक रूप से सीधी साप्ताहिक उड़ान की संभावनाओं को सुदृढ़ किया है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रश्न. सूची I को सूची II से सुमेलित कीजिये और सूचियों के नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: (2009) सूची I सूची II (भौगोलिक विशेषता) (देश)
कूट: A B C D (a) 1 2 4 3 उत्तर: (b)
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स्रोत: पी.आई.बी.
प्री-डायबिटीज़ की जाँच
प्रिलिम्स के लिये:प्री-डायबिटीज़ की जाँच, ICMR, डायबिटीज़, WHO, NCD मेन्स के लिये:प्री-डायबिटीज़ की जाँच |
चर्चा में क्यों?
भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (Indian Council of Medical Research- ICMR) द्वारा वित्तपोषित एक अध्ययन के अनुसार, पाँच स्वस्थ व्यक्तियों में से एक में प्री-डायबेटिक का ग्लूकोज़ चयापचय होता है।
- शोधकर्त्ताओं ने प्री-डायबिटीज़ का पता लगाने के लिये कंटीन्यूअस ग्लूकोज़ मॉनीटर्स (CGM) का उपयोग किया। निरंतर ग्लूकोज़ मॉनीटरिंग पूरे दिन और रात स्वचालित रूप से रक्त ग्लूकोज़ के स्तर को ट्रैक करती है, जो भोजन, शारीरिक गतिविधि और दवाओं को संतुलित करने के बारे में अधिक सूचित निर्णय लेने में मदद कर सकती है।
अध्ययन की मुख्य विशेषताएँ:
- प्रसार:
- भारत में 101 मिलियन (11.4%) लोगों को डायबिटीज़/मधुमेह है और 136 मिलियन (15.3%) लोगों को प्री-डायबिटीज़ है।
- जब प्रीडायबिटीज़ के प्रचलन की बात आती है तो लगभग कोई ग्रामीण और शहरी विभाजन नहीं होता है।
- प्री-डायबिटीज़ का स्तर उन राज्यों में अधिक पाया गया जहाँ डायबिटीज़ का मौजूदा प्रसार कम था।
- रूपांतरण दर:
- भारत में प्री-डायबिटीज़ से डायबिटीज़ में परिवर्तन बहुत तेज़ी से हो रहा है। प्री-डायबिटीज़ से पीड़ित 60% से अधिक लोग अगले पाँच वर्षों में डायबिटीज़ में परिवर्तित हो सकते हैं।
- इसके अतिरिक्त भारत की लगभग 70% आबादी ग्रामीण क्षेत्रों में रहती है। अतः यदि मधुमेह की व्यापकता 0.5 से लेकर 1% तक के बीच भी बढ़ती है, तो इसके रोगियों की संख्या काफी बड़ी होगी।
सुझाव:
- प्री-डायबिटीज़ की ट्रैकिंग:
- भारत में प्रीडायबिटीज़ के जोखिम वाले व्यक्तियों की पहचान पारंपरिक रूप से ओरल ग्लूकोज़ टॉलरेंस टेस्ट पर निर्भर करती है। हालाँकि अध्ययन से पता चलता है कि प्री-डायबिटीज़ से पहले भी एक चरण होता है, जिसे इम्पेयर्ड ग्लूकोज़ होमोस्टेसिस कहा जाता है।
- ओरल ग्लूकोज़ टॉलरेंस टेस्ट (OGTT):
- OGTT एक ऐसा परीक्षण है जिसकी सहायता से भोजन करने के बाद शरीर द्वारा ग्लूकोज़ के प्रबंधन की जाँच की जाती है।
- यह परीक्षण मधुमेह और प्री-डायबिटीज़ का निदान करने में मदद करता है।
- यदि फास्टिंग वैल्यू 126 mg/dl से ऊपर है और दो घंटे के उपवास के बाद की वैल्यू ओरल ग्लूकोज़ टोलेरेंस टेस्ट में 200 mg/l से ऊपर होती है, तो इसे मधुमेह के रूप में परिभाषित किया जाता है।
- यदि फास्टिंग वैल्यू 100-125 के बीच है और दो घंटे की वैल्यू 140-199 के बीच है, तो रोगी को प्री-डायबिटिक चरण में वर्गीकृत किया जाता है। इसमें सामान्य के रूप से 100 से नीचे की वैल्यू तथा 140 से कम के दो घंटे की वैल्यू को चिह्नित किया गया है।
प्रारंभिक पहचान का महत्त्व:
- मधुमेह (डायबिटीज़) का शीघ्र पता लगाना महत्त्वपूर्ण है क्योंकि यह समय पर उपचार की अनुमति देता है और स्वास्थ जोखिम को कम करता है। हालाँकि CGM की लागत भारत में एक चुनौती है, जहाँ अनेक प्री-डायबिटीज़ रोगियों को आर्थिक बाधाओं का सामना करना पड़ सकता है।
- जबकि CGM पोषण और शर्करा के स्तर में सुधार कर सकते हैं लेकिन इसकी क्षमता एक चिंता का विषय है।
- विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुसार, मधुमेह वाले 50% से अधिक व्यक्ति अपनी स्थिति से अनजान हैं, यह सुलभ और लागत प्रभावी जाँच विधियों की आवश्यकता पर प्रकाश डालता है।
मधुमेह (डायबिटीज़):
- परिचय:
- डायबिटीज़ एक गैर-संचारी (Non-Communicable Disease) रोग है जो किसी व्यक्ति में तब पाया जाता है जब मानव अग्न्याशय (Pancreas) पर्याप्त इंसुलिन (एक हार्मोन जो रक्त शर्करा या ग्लूकोज़ को नियंत्रित करता है) का उत्पादन नहीं करता है या जब शरीर प्रभावी रूप से उत्पादित इंसुलिन का उपयोग करने में असफल रहता है।
- डायबिटीज़ के प्रकार:
- टाइप (Type)-1:
- इसे ‘किशोर-मधुमेह’ के रूप में भी जाना जाता है (क्योंकि यह ज़्यादातर 14-16 वर्ष की आयु के बच्चों को प्रभावित करता है), टाइप-1 मधुमेह तब होता है जब अग्न्याशय (Pancreas) पर्याप्त इंसुलिन का उत्पादन करने में विफल रहता है।
- इंसुलिन एक हार्मोन है जिसका उपयोग शरीर ऊर्जा उत्पन्न करने हेतु शर्करा (ग्लूकोज) को कोशिकाओं में प्रवेश करने के लिये करता है।
- यह मुख्य रूप से बच्चों और किशोरों में पाया जाता है। हालांँकि इसका प्रसार कम है और टाइप-2 की तुलना में बहुत अधिक गंभीर है।
- इसे ‘किशोर-मधुमेह’ के रूप में भी जाना जाता है (क्योंकि यह ज़्यादातर 14-16 वर्ष की आयु के बच्चों को प्रभावित करता है), टाइप-1 मधुमेह तब होता है जब अग्न्याशय (Pancreas) पर्याप्त इंसुलिन का उत्पादन करने में विफल रहता है।
- टाइप (Type)-2:
- यह शरीर के इंसुलिन का उपयोग करने के तरीके को प्रभावित करता है, जबकि शरीर अभी भी इंसुलिन निर्माण कर रहा होता है।
- टाइप-2 डायबिटीज़ या मधुमेह किसी भी उम्र में हो सकता है, यहांँ तक कि बचपन में भी। हालांँकि मधुमेह का यह प्रकार ज़्यादातर मध्यम आयु वर्ग और वृद्ध लोगों में पाया जाता है।
- गर्भावस्था के दौरान मधुमेह:
- यह गर्भावस्था के दौरान महिलाओं में तब होता है जब कभी-कभी गर्भावस्था के कारण शरीर अग्न्याशय में बनने वाले इंसुलिन के प्रति कम संवेदनशील हो जाता है। गर्भकालीन मधुमेह सभी महिलाओं में नहीं पाया जाता है और आमतौर पर बच्चे के जन्म के बाद यह समस्या दूर हो जाती है।
- टाइप (Type)-1:
- डायबिटीज़ के प्रभाव:
- लंबे समय तक बगैर उपचार या सही रोकथाम न होने पर मधुमेह गुर्दे, हृदय, रक्त वाहिकाएँ, तंत्रिका तंत्र और आँखें (रेटिना) आदि से संबंधित रोगों का कारण बनता है।
- ज़िम्मेदार कारक:
- मधुमेह में वृद्धि के लिये ज़िम्मेदार कारक हैं- अस्वस्थ आहार, शारीरिक गतिविधि की कमी, शराब का अत्यधिक सेवन, अधिक वज़न/मोटापा, तंबाकू का उपयोग आदि।
- संबंधित पहल:
- कैंसर, मधुमेह, हृदय रोग और स्ट्रोक की रोकथाम तथा नियंत्रण के लिये राष्ट्रीय कार्यक्रम (NPCDCS)
- विश्व मधुमेह दिवस
- वैश्विक मधुमेह कॉम्पैक्ट
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
जल जीवन मिशन
प्रिलिम्स के लिये:जल जीवन मिशन, विश्व स्वास्थ्य संगठन, अतिसार, विकलांगता समायोजित जीवन वर्ष, स्वयं सहायता समूह, सतत् विकास लक्ष्य-6 मेन्स के लिये:जल जीवन मिशन, इसका महत्त्व और अब तक का प्रदर्शन |
चर्चा में क्यों?
हाला ही में विश्व स्वास्थ्य संगठन ने एक अध्ययन के आधार पर जल जीवन मिशन के संभावित प्रभावों के बारे में बताया है जिसमें इसके सामजिक-आर्थिक लाभों की चर्चा की गई है।
प्रमुख बिंदु
- अतिसार/डायरिया के कारण होने वाली मौतों को रोकना:
- जल जीवन मिशन में डायरिया से होने वाली लगभग 4 लाख मौतों को रोकने की क्षमता है। इससे भारत के घर-घर पाइप की सहायता से पेयजल की सुविधा प्रदान करने के जीवन-रक्षक प्रभावों के बारे में पता चलता है।
- विकलांगता समायोजित जीवन वर्ष (Disability Adjusted Life Years- DALYs) से बचाव:
- जल जीवन मिशन डायरिया से जुड़े लगभग 14 मिलियन DALY से बचने में मदद करने के साथ ही प्रतिदिन लगभग 101 बिलियन अमेरिकी डॉलर और मुख्य रूप से महिलाओं द्वारा जल एकत्रित करने में खर्च किये जाने वाले 66.6 मिलियन घंटे की बचत कर सकता है।
- एक DALY से तात्पर्य एक वर्ष के बराबर पूर्ण स्वास्थ्य के नुकसान से है और यह किसी आबादी में बीमारी अथवा अन्य स्वास्थ्य समस्या के सामान्य मामलों के परिणामस्वरूप समय से पहले मौत और दिव्यांगता के साथ रहने वाले वर्षों का आकलन करने का एक तरीका है।
- लैंगिक समानता:
- नल के माध्यम से जल की उपलब्धता महिलाओं पर जल संग्रह करने के बोझ को कम करने के साथ ही उन्हें शिक्षा एवं रोज़गार के अधिक अवसर प्रदान कर लैंगिक समानता की प्राप्ति में योगदान दे सकती है।
जल जीवन मिशन:
- परिचय:
- वर्ष 2019 में शुरू किया गया यह मिशन वर्ष 2024 तक कार्यात्मक घरेलू नल कनेक्शन (FHTC) के माध्यम से प्रत्येक ग्रामीण परिवार को प्रति व्यक्ति प्रतिदिन 55 लीटर जल की आपूर्ति की परिकल्पना करता है।
- जल जीवन मिशन पेयजल हेतु एक जन आंदोलन बनना चाहता है, जिससे यह हर किसी की प्राथमिकता बन जाए।
- यह जल शक्ति मंत्रालय के अंतर्गत आता है।
- लक्ष्य:
- इस मिशन का लक्ष्य मौजूदा जल आपूर्ति प्रणालियों एवं जल कनेक्शन, जल गुणवत्ता निगरानी और परीक्षण के साथ-साथ सतत् कृषि की कार्यक्षमता सुनिश्चित करना है।
- यह संरक्षित जल के संयुक्त उपयोग को सुनिश्चित करता है। इसके साथ ही यह पेयजल स्रोत में वृद्धि, पेयजल आपूर्ति प्रणाली, ग्रे जल उपचार और पुन: उपयोग को भी सुनिश्चित करता है।
- विशेषताएँ:
- जल जीवन मिशन स्थानीय स्तर पर जल की एकीकृत मांग और आपूर्ति पक्ष प्रबंधन पर ध्यान केंद्रित करता है।
- वर्षा जल संचयन, भूजल पुनर्भरण और पुन: उपयोग के लिये घरेलू अपशिष्ट जल के प्रबंधन जैसे अनिवार्य तत्त्वों के रूप में स्रोत सतत् उपायों हेतु स्थानीय बुनियादी ढाँचे का निर्माण अन्य सरकारी कार्यक्रमों/योजनाओं के साथ अभिसरण में किया जाता है।
- यह मिशन जल के लिये सामुदायिक दृष्टिकोण पर आधारित है तथा मिशन के प्रमुख घटकों के रूप में व्यापक सूचना, शिक्षा और संचार शामिल हैं।
- कार्यान्वयन:
- जल समितियाँ ग्राम जल आपूर्ति प्रणालियों की योजना, क्रियान्वयन, प्रबंधन, संचालन और रखरखाव करती हैं।
- इनमें 10-15 सदस्य होते हैं, जिनमें कम-से-कम 50% महिला सदस्य एवं स्वयं सहायता समूहों के अन्य सदस्य, मान्यता प्राप्त सामाजिक और स्वास्थ्य कार्यकर्त्ता (आशा), आंँगनवाड़ी, शिक्षक आदि शामिल होते हैं।
- समितियाँ सभी उपलब्ध ग्राम संसाधनों को मिलाकर एक बारगी ग्राम कार्ययोजना तैयार करती हैं। योजना को लागू करने से पहले इसे ग्राम सभा द्वारा अनुमोदित किया जाता है।
- जल समितियाँ ग्राम जल आपूर्ति प्रणालियों की योजना, क्रियान्वयन, प्रबंधन, संचालन और रखरखाव करती हैं।
- वित्तपोषण:
- केंद्र और राज्यों के बीच वित्तपोषण स्वरूप हिमालयन तथा उत्तर-पूर्वी राज्यों के लिये 90:10, अन्य राज्यों के लिये 50:50 है, जबकि केंद्रशासित प्रदेशों के मामलों में शत-प्रतिशत योगदान केंद्र द्वारा किया जाता है।
JJM की प्रगति:
- अब तक 12.3 करोड़ (62%) ग्रामीण घरों में पाइप के पानी के कनेक्शन हैं, जो वर्ष 2019 के 3.2 करोड़ (16.6%) से अधिक है।
- पाँच राज्यों अर्थात् गुजरात, तेलंगाना, गोवा, हरियाणा, और पंजाब एवं 3 केंद्रशासित प्रदेशों- अंडमान एवं निकोबार द्वीप समूह, दमन दीव तथा दादरा नगर हवेली और पुद्दुचेरी में 100% नल के पानी के कनेक्शन हैं।
- निकट भविष्य में हिमाचल प्रदेश 98.87% उसके बाद बिहार 96.30% नल के पानी का कनेक्शन करने हेतु तैयार हैं।
जल जीवन मिशन (शहरी):
- वित्तीय वर्ष 2021-22 के केंद्रीय बजट में सतत् विकास लक्ष्य-6 (SDG-6) के अनुसार, सभी शहरों में कार्यात्मक नल के माध्यम से घरों में जल की आपूर्ति के सार्वभौमिक कवरेज प्रदान करने हेतु केंद्रीय आवास और शहरी मामलों के मंत्रालय के तहत जल जीवन मिशन (शहरी) योजना की घोषणा की गई है।
- यह जल जीवन मिशन (ग्रामीण) का पूरक है जिसके तहत वर्ष 2024 तक कार्यात्मक घरेलू नल कनेक्शन (FHTC) के माध्यम से सभी ग्रामीण घरों में प्रति व्यक्ति प्रतिदिन 55 लीटर जल की आपूर्ति की परिकल्पना की गई है।
- जल जीवन मिशन (शहरी) का उद्देश्य:
- नल और सीवर कनेक्शन तक पहुँच सुनिश्चित करना।
- जल निकायों का पुनरुत्थान।
- चक्रीय जल अर्थव्यवस्था की स्थापना।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रश्न. जल प्रतिबल (वाटर स्ट्रेस) का क्या मतलब है? भारत में यह किस प्रकार और किस कारण प्रादेशिकतः भिन्न-भिन्न है? (2019) |
स्रोत: द हिंदू
अनिवासी भारतीयों के लिये इलेक्ट्रॉनिक रूप से प्रेषित डाक मतपत्र प्रणाली
प्रिलिम्स के लिये:मुख्य चुनाव आयुक्त, अनिवासी भारतीय, इलेक्ट्रॉनिक रूप से प्रेषित डाक मतपत्र, जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951, चुनाव नियम, 1961 का संचालन मेन्स के लिये:NRI के लिये ETPB से संबंधित चुनौतियाँ |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में मुख्य चुनाव आयुक्त ने अनिवासी भारतीयों (NRI) के लिये डाक मतदान की सुविधा की आवश्यकता पर बल दिया। यह अनिवासी भारतीयों के लिये इलेक्ट्रॉनिक रूप से प्रेषित डाक मतपत्र (ETPB) हेतु चुनाव आयोग के प्रस्ताव पर प्रकाश डालता है, जिसे वर्तमान में सरकार की मंज़ूरी का इंतज़ार है।
- इस पहल का उद्देश्य 1.34 करोड़ से अधिक प्रवासी भारतीयों को प्रौद्योगिकी-संचालित पद्धति का उपयोग करके चुनावों में भाग लेने की अनुमति देना है।
इलेक्ट्रॉनिक रूप से प्रेषित डाक मतपत्र प्रणाली:
- परिचय:
- ETPBS एक ऐसी प्रणाली है जिसे उन व्यक्तियों के लिये दूरस्थ मतदान की सुविधा हेतु डिज़ाइन किया गया है जो किसी मतदान केंद्र पर व्यक्तिगत रूप से अपना वोट डालने में असमर्थ हैं।
- ETPBS मतदाताओं को इलेक्ट्रॉनिक रूप से अपने मतपत्र प्राप्त करने और वापस करने में सक्षम बनाने के लिये इलेक्ट्रॉनिक ट्रांसमिशन तथा डाक सेवाओं के उपयोग को जोड़ता है।
- ETPBS एक ऐसी प्रणाली है जिसे उन व्यक्तियों के लिये दूरस्थ मतदान की सुविधा हेतु डिज़ाइन किया गया है जो किसी मतदान केंद्र पर व्यक्तिगत रूप से अपना वोट डालने में असमर्थ हैं।
- सेवा मतदाताओं के लिये: इस प्रणाली के तहत पंजीकृत सेवा मतदाताओं को डाक मतपत्र इलेक्ट्रॉनिक रूप से भेजे जाते हैं।
- इसके बाद सेवा मतदाता ETPB (एक घोषणा पत्र और कवर के साथ) डाउनलोड कर सकता है, मतपत्र पर अपना जनादेश दर्ज कर सकता है और इसे साधारण डाक के माध्यम से निर्वाचन क्षेत्र के रिटर्निंग ऑफिसर को भेज सकता है।
- पोस्ट में एक प्रमाणित घोषणा पत्र शामिल होगा (जिसे एक नियुक्त वरिष्ठ अधिकारी की उपस्थिति में मतदाता द्वारा हस्ताक्षर करने के बाद प्रमाणित किया जाएगा)।
- सेवा मतदाताओं को ETPBS का उपयोग करने की अनुमति देने के लिये चुनाव संचालन नियम, 1961 को वर्ष 2016 में संशोधित किया गया था।
NRI के लिये ETPB से संबंधित चुनाव आयोग का प्रस्ताव:
- निर्वाचन आयोग (EC) ने वर्ष 2015 में विदेशी मतदाताओं तक ETPB की सुविधा का विस्तार करने के लिये जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 60 में संशोधन का प्रस्ताव पेश किया था।
- बाद में वर्ष 2020 में निर्वाचन आयोग ने कानून मंत्रालय को लिखित रूप से सूचित किया कि वह इस प्रस्ताव को लागू करने के लिये तकनीकी और प्रशासनिक रूप से तैयार है।
- निर्वाचन आयोग ने सुझाव दिया कि NRI के लिये ETPBS का उपयोग कुछ संशोधनों के साथ किया जा सकता है, जैसे कि उन्हें अपने मतपत्र ऑनलाइन डाउनलोड करने और उन्हें एक निर्दिष्ट समय-सीमा के भीतर डाक अथवा कूरियर द्वारा भेजने की अनुमति देना।
- निर्वाचन आयोग ने यह भी सुझाव दिया है कि अनिवासी भारतीयों (NRI) को भारत में एक प्रॉक्सी मतदाता नियुक्त करने की अनुमति दी जा सकती है, जो उनकी पहचान और सहमति की पुष्टि करने के बाद उनकी ओर से मतदान कर सकते हैं।
- निर्वाचन आयोग ने यह भी प्रस्ताव दिया है कि NRI को विदेशों में निर्दिष्ट मतदान केंद्रों पर मतदान करने का विकल्प दिया जा सकता है, जहाँ वे इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन अथवा पेपर बैलेट का उपयोग कर मतदान सकते हैं।
- हालाँकि यह प्रस्ताव अभी भी कानून मंत्रालय के पास लंबित है, इसका प्रमुख कारण डाक मतपत्रों की सुरक्षा और प्रामाणिकता से संबंधित चिंताएँ हैं।
अनिवासी भारतीयों के लिये ETPB से संबंधित चिंताएँ:
- योग्यता और सत्यापन: दूरस्थ मतदान में भाग लेने के लिये अनिवासी भारतीयों की पात्रता निर्धारित करना जटिल हो सकता है।
- चुनावी प्रक्रिया की अखंडता को बनाए रखने के लिये अनिवासी भारतीयों की पहचान, निवास की स्थिति और पात्रता को सत्यापित करने के लिये सटीक एवं विश्वसनीय तंत्र स्थापित करना महत्त्वपूर्ण है।
- समय की कमी और डाक में विलंबता: ETPBS के लिये मतदाता को मतपत्र इलेक्ट्रॉनिक रूप से प्राप्त होने के बाद निर्धारित समय-सीमा के अंदर डाक द्वारा भेजने की आवश्यकता होती है।
- हालाँकि कुछ देशों में डाक संबंधी विलंब या लॉजिस्टिकल संबंधी समस्याएँ हो सकती हैं जो मतपत्र को रिटर्निंग ऑफिसर तक समय पर पहुँचने से रोक सकती हैं। इससे कुछ मतदाताओं का मताधिकार छिन सकता है।
- सुरक्षा और गोपनीयता: ETPBS में इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों के माध्यम से संवेदनशील चुनावी डेटा का प्रसारण शामिल है, जो दुर्भावनापूर्ण उद्देश्य से लोगों द्वारा हैकिंग, छेड़छाड़ या अवरोधन का जोखिम उत्पन्न कर सकता है।
- इसके अतिरिक्त डाक मतपत्र वोट की गोपनीयता सुनिश्चित नहीं कर सकता है क्योंकि यह दूसरों द्वारा जाँच या जबरदस्ती के अधीन हो सकता है।
- कानूनी और तकनीकी चुनौतियाँ: ETPBS के लिये विदेशी मतदाताओं को इस प्रणाली के माध्यम से मतदान करने में सक्षम बनाने हेतु जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1950 और 1951 के साथ-साथ निर्वाचनों का संचालन नियम, 1961 में संशोधन की आवश्यकता है।
- इसके अतिरिक्त ETPBS को निर्वाचन आयोग, विदेश मंत्रालय, डाक विभाग तथा दूतावासों जैसे विभिन्न हितधारकों के बीच मज़बूत तकनीकी बुनियादी ढाँचे और समन्वय की आवश्यकता है।
प्रवासी भारतीय (Non-Resident Indians- NRI):
- परिचय:
- NRI का मतलब अनिवासी भारतीय से है, यह एक ऐसे भारतीय नागरिक के लिये इस्तेमाल किया जाने वाला शब्द है जो रोज़गार, शिक्षा या किसी अन्य उद्देश्य के कारण भारत से बाहर रहता है।
- विदेश मंत्रालय के अनुसार, दिसंबर 2020 तक 208 देशों में लगभग 1.34 करोड़ NRI हैं।
- NRI भी भारतीय चुनावों में मतदान करने के पात्र हैं यदि वे भारत में अपने संबंधित निर्वाचन क्षेत्रों में विदेशी मतदाताओं के रूप में पंजीकृत हैं।
- NRI का मतलब अनिवासी भारतीय से है, यह एक ऐसे भारतीय नागरिक के लिये इस्तेमाल किया जाने वाला शब्द है जो रोज़गार, शिक्षा या किसी अन्य उद्देश्य के कारण भारत से बाहर रहता है।
- NRI के लिये मानदंड:
- एक व्यक्ति को NRI माना जाता है यदि:
- वह वित्तीय वर्ष के दौरान 182 या उससे अधिक दिनों तक भारत में नहीं रहता है या;
- यदि वह उस वर्ष से पहले के 4 वर्षों के दौरान 365 दिनों से कम और उस वर्ष में 60 दिनों से कम समय हेतु भारत में रहा है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रश्न. अमेरिका एवं यूरोपीय देशों की राजनीति एवं अर्थव्यवस्था में भारतीय प्रवासियों को एक निर्णायक भूमिका निभानी है। उदाहरणों सहित टिप्पणी कीजिये। (मुख्य परीक्षा, 2020) |
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
आर्कटिक सागर की बर्फ का पिघलना
प्रिलिम्स के लिये:आर्कटिक प्रवर्द्धन, जलवायु परिवर्तन पर अंतर-सरकारी पैनल (IPCC), IndARC, अल्बीडो, ध्रुवीय जेट स्ट्रीम मेन्स के लिये:आर्कटिक वार्मिंग के कारण, आर्कटिक महासागर की बर्फ का पिघलना, भारत पर इसके प्रभाव |
चर्चा में क्यों?
नेचर जर्नल में हाल के एक अध्ययन से पता चलता है कि आने वाले दशकों में गर्मियों में आर्कटिक महासागर की बर्फ का पिघलना निश्चित है।
- ग्लोबल वार्मिंग (आर्कटिक प्रवर्द्धन) के कारण आर्कटिक महासागर की बर्फ के नुकसान ने वैश्विक जलवायु और पर्यावरण पर इसके प्रभाव को लेकर चिंताएँ बढ़ा दी हैं।
आर्कटिक महासागर की बर्फ से संबंधित नई खोज:
- महासागर की बर्फ में कमी आना:
- जलवायु परिवर्तन पर अंतर-सरकारी पैनल की रिपोर्ट में आर्कटिक महासागर की बर्फ के घटने की स्पष्ट तौर पर पुष्टि की गई है।
- वैश्विक उत्सर्जन के कारण 4.5 डिग्री सेल्सियस से अधिक तापमान होने के कारण वर्ष 2050 से पहले ही "महासागरीय-बर्फ मुक्त गर्मी (sea-ice free summer)" का अनुभव होने का अनुमान है।
- सैटेलाइट रिकॉर्ड की मानें तो आर्कटिक बर्फ के नुकसान की वार्षिक दर लगभग 13% है।
- जलवायु परिवर्तन पर अंतर-सरकारी पैनल की रिपोर्ट में आर्कटिक महासागर की बर्फ के घटने की स्पष्ट तौर पर पुष्टि की गई है।
- उत्सर्जन में अपर्याप्त कमी:
- द नेचर स्टडी स्पष्ट करती है कि किसी भी प्रकार का उत्सर्जन परिदृश्य गर्मियों में आर्कटिक महासागर के बर्फ के नुकसान को रोक नहीं सकता है।
- यदि उत्सर्जन में पर्याप्त कमी नहीं की जाती है, तो 2030 के दशक की शुरुआत में ही हम बर्फ मुक्त गर्मी का अनुभव कर सकते हैं।
- पिघलने की दर का सही आकलन न कर पाना:
- बर्फ पिघलने में मानव-प्रेरित कारकों का योगदान लगभग 90% है, शेष के लिये प्राकृतिक परिवर्तनशीलता उत्तरदायी है।
- IPCC द्वारा उपयोग किये गए जलवायु मॉडल सहित, पिघलने की गति को कम करके आँका गया।
- यदि इस आकलन को सही मायनों में संशोधित किया जाए तो वर्ष 2080 तक अगस्त और अक्तूबर माह में बर्फ मुक्त होने की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता।
आर्कटिक महासागर की बर्फ का महत्त्व:
- जलवायवीय प्रभाव:
- आर्कटिक महासागर का बर्फ वैश्विक जलवायु पैटर्न को प्रभावित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
- यह सूर्य के प्रकाश को परावर्तित करता है, जिससे पृथ्वी के ऊर्जा संतुलन तथा ठंडे ध्रुवीय क्षेत्रों को बनाए रखने में मदद मिलती है।
- समुद्री बर्फ एक बाधा के रूप में कार्य करती है जो ऊपर की ठंडी हवा को नीचे के गर्म पानी से अलग करके हवा को ठंडा रखती है।
- जैवविविधता और स्वदेशी समुदाय:
- समुद्री बर्फ में परिवर्तन जैवविविधता को प्रभावित करता है विशेष रूप से ध्रुवीय भालू और वालरस जैसे स्तनधारी प्राणियों को।
- शिकार, प्रजनन और प्रवासन के लिये समुद्री बर्फ पर निर्भर स्वदेशी आर्कटिक आबादी प्रभावित होती है।
- आर्थिक अवसर और प्रतिस्पर्द्धा:
- बर्फ का कम आवरण जहाज़ों के लिये रास्ता खोलता है और आर्कटिक में प्राकृतिक संसाधनों तक पहुँच की सुविधा प्रदान करता है।
- इस कारण क्षेत्र में प्रभाव और संसाधनों के दोहन के लिये देशों के बीच प्रतिस्पर्द्धा बढ़ती है।
- बर्फ का कम आवरण जहाज़ों के लिये रास्ता खोलता है और आर्कटिक में प्राकृतिक संसाधनों तक पहुँच की सुविधा प्रदान करता है।
आर्कटिक प्रवर्द्धन:
- परिचय:
- आर्कटिक प्रवर्द्धन उस घटना को संदर्भित करता है जहाँ सतह की वायु के तापमान में परिवर्तन और शुद्ध विकिरण संतुलन ध्रुवों पर विशेष रूप से आर्कटिक क्षेत्र में बड़े प्रभाव उत्पन्न करते हैं।
- कारण:
- यह पूर्व-औद्योगिक दौर से मानवजनित बलों या मानवीय गतिविधियों के कारण होने वाली ग्लोबल वार्मिंग का परिणाम है, जिससे पृथ्वी के औसत तापमान में 1.1 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि हुई है।
- आर्कटिक प्रवर्द्धन के प्राथमिक कारणों में आइस-ऐल्बीडो फीडबैक, लैप्स रेट फीडबैक, जल वाष्प फीडबैक और महासागर ताप प्रवाह शामिल हैं।
- ग्लोबल वार्मिंग के कारण आर्कटिक में समुद्री बर्फ का कम होना वार्मिंग प्रभाव को बढ़ाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
- समुद्री बर्फ और बर्फ में उच्च ऐल्बीडो होता है जो अधिकांश सौर विकिरण को दर्शाता है, जबकि जल तथा भूमि अधिक विकिरण को अवशोषित करते हैं जिससे तापमान में वृद्धि होती है।
- समुद्री बर्फ में कमी आर्कटिक महासागर को अधिक सौर विकिरण को अवशोषित करने की अनुमति देती है, जिससे वार्मिंग प्रभाव और अधिक बढ़ जाता है।
- लैप्स रेट वह रेट है जिस पर तापमान ऊँचाई और वार्मिंग के साथ घटता है जो आर्कटिक प्रवर्द्धन में योगदान देता है।
- समुद्री बर्फ और बर्फ में उच्च ऐल्बीडो होता है जो अधिकांश सौर विकिरण को दर्शाता है, जबकि जल तथा भूमि अधिक विकिरण को अवशोषित करते हैं जिससे तापमान में वृद्धि होती है।
- अध्ययनों से पता चलता है कि आइस-ऐल्बीडो फीडबैक और लैप्स रेट फीडबैक खाता क्रमशः ध्रुवीय प्रवर्द्धन का 40% और 15% है।
- परिणाम:
- ध्रुवीय जेट स्ट्रीम का कमज़ोर होना:
- कम समुद्री बर्फ ध्रुवीय जेट स्ट्रीम को कमज़ोर करती है, जिसके परिणामस्वरूप यूरोप में तापमान और हीटवेव की घटनाएँ बढ़ती हैं।
- उत्तर पश्चिम भारत में बेमौसम बारिश के कमज़ोर होने के पीछे यही कारण है।
- बर्फ का पिघलना:
- ग्रीनलैंड की बर्फ की चादर के पिघलने से समुद्र के स्तर में वृद्धि होती है, साथ ही पूर्ण रूप से पिघलने से समुद्र के स्तर में संभावित रूप से सात मीटर की वृद्धि हो सकती है।
- समुद्री जल की संरचना में परिवर्तन:
- लवणता और अम्लीकरण में परिवर्तन के साथ-साथ आर्कटिक महासागर और समुद्रों का गर्म होना, समुद्री एवं आश्रित प्रजातियों सहित यह जैवविविधता को प्रभावित करता है।
- जीवों को प्रभावित करना:
- आर्कटिक प्रवर्द्धन के कारण वर्षा में वृद्धि लाइकेन की उपलब्धता और पहुँच को प्रभावित करती है, जिससे आर्कटिक जीवों में भुखमरी और मृत्यु हो जाती है।
- गैसीय उत्सर्जन:
- पर्माफ्रॉस्ट के पिघलने से कार्बन और मीथेन निकलती है, जो ग्लोबल वार्मिंग हेतु ज़िम्मेदार ग्रीनहाउस गैसें हैं।
- यह लंबे समय तक सुप्त बैक्टीरिया और वायरस भी वातावरण में छोड़ सकता है, जिससे बीमारी के प्रकोप की संभावना होती है।
- ध्रुवीय जेट स्ट्रीम का कमज़ोर होना:
भारत पर प्रभाव:
- अत्यधिक वर्षा की घटनाएँ:
- अध्ययन में पाया गया कि बेरेंट-कारा समुद्री क्षेत्र में कम समुद्री बर्फ मानसून के उत्तरार्द्ध में सितंबर और अक्तूबर में अत्यधिक वर्षा की घटनाओं को जन्म दे सकती है।
- अरब सागर का गर्म होना:
- अरब सागर में उच्च तापमान के साथ-साथ समुद्री बर्फ के पिघलने के कारण वायु परिसंचरण में परिवर्तन से नमी और तीव्र वर्षा की घटनाओं में वृद्धि होती है।
- वर्ष 2014 में भारत ने आर्कटिक महासागर में परिवर्तनों के प्रभाव की निगरानी हेतु कोंग्सफर्डन फोजर्ड, स्वालबार्ड में दलदली जल के नीचे भारत की पहली वेधशाला IndARC को तैनात किया।
- अरब सागर में उच्च तापमान के साथ-साथ समुद्री बर्फ के पिघलने के कारण वायु परिसंचरण में परिवर्तन से नमी और तीव्र वर्षा की घटनाओं में वृद्धि होती है।
- भारतीय तट के साथ समुद्र के स्तर में वृद्धि:
- वर्ष 2021 में वैश्विक जलवायु की स्थिति' रिपोर्ट के अनुसार, भारतीय तट के साथ समुद्र का स्तर वैश्विक औसत दर से तेज़ी से बढ़ रहा है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न: ‘मीथेन हाइड्रेट’ के निक्षेपों के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों में से कौन-से सही हैं?
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1 और 2 उत्तर: (d) व्याख्या:
अतः विकल्प (d) सही है। मेन्स:प्रश्न. आर्कटिक की बर्फ और अंटार्कटिक के ग्लेशियरों का पिघलना किस तरह से अलग-अलग ढंग से पृथ्वी पर मौसम के स्वरूप और मनुष्य की गतिविधियों पर प्रभाव डालते हैं? स्पष्ट कीजिये। (2021) |