जनहित प्रतिरक्षा दावा कार्यवाही
प्रिलिम्स के लिये:सीलबंद कवर कार्यवाही, जनहित प्रतिरक्षा दावा कार्यवाही। मेन्स के लिये:सीलबंद कवर कार्यवाही पर सर्वोच्च न्यायालय की टिप्पणियाँ |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने न्यायालयों में सीलबंद कवर कार्यवाही के उपयोग और एक मलयालम चैनल के प्रसारण प्रतिबंध मामले पर निर्णय सुनाया।
- न्यायालय ने मीडिया में आवाज़ों को दबाने एवं संवैधानिक अधिकारों को कम करने तथा निष्पक्ष सुनवाई की प्रक्रियात्मक गारंटी हेतु सरकार की आलोचना की।
- न्यायालय ने सीलबंद कवर (मोहरबंद लिफाफा) के उपयोग को बदलने हेतु जनहित प्रतिरक्षा दावा कार्यवाही के लिये एक वैकल्पिक प्रक्रिया भी तैयार की।
सीलबंद कवर कार्यवाही:
- सीलबंद कवर कार्यवाही का उपयोग अक्सर संवेदनशील या गोपनीय जानकारी जैसे राष्ट्रीय सुरक्षा मामलों या ऐसे मामलों में किया जाता है जहाँ साक्ष्यों के प्रकटीकरण में शामिल व्यक्तियों की गोपनीयता से समझौता हो सकता है।
- ऐसे मामलों में दस्तावेज़ या साक्ष्य न्यायालय में सीलबंद लिफाफे में प्रस्तुत किये जाते हैं और केवल न्यायाधीश एवं एक नामित न्यायिक अधिकारी को सीलबंद लिफाफे की सामग्री की जाँच करने की अनुमति होती है।
- मामले के पक्षकारों की सीलबंद कवर की सामग्री तक पहुँच नहीं होती है और न्यायालय अपने निर्णयन हेतु केवल सीलबंद कवर में निहित जानकारी पर भरोसा करते है।
- सीलबंद कवर कार्यवाही संवेदनशील जानकारी या व्यक्तियों की गोपनीयता की रक्षा करने के साथ न्यायिक प्रक्रिया में पारदर्शिता की आवश्यकता को संतुलित करने का एक साधन है।
- हालाँकि, सीलबंद कवर के उपयोग ने संवैधानिक अधिकारों एवं कानून के तहत निष्पक्ष सुनवाई की प्रक्रियात्मक गारंटी को कम कर दिया है।
जनहित प्रतिरक्षा दावा कार्यवाही:
- परिचय:
- सर्वोच्च न्यायालय ने गोपनीयता के लिये राज्य के दावों से निपटने के दौरान सीलबंद कवर कार्यवाही हेतु "विकल्प" के रूप में "कम प्रतिबंधात्मक" जनहित प्रतिरक्षा (PII) दावा कार्यवाही को विकसित किया।
- PII की कार्यवाही एक "गुप्त बैठक" होगी, लेकिन राज्य के PII के दावे को अनुमति देने या खारिज़ करने का एक तर्कपूर्ण आदेश खुले न्यायालय में घोषित करने का प्रावधान है।
- प्रक्रिया - न्यायमित्र (एमिकस क्यूरी) की भूमिका:
- न्यायालय द्वारा न्यायमित्र (एमिकस क्यूरी), जिसका अर्थ "न्यायालय का मित्र" है, की नियुक्ति की जाएगी, जो जनहित प्रतिरक्षा दावों में शामिल पक्षों के बीच एक सेतु के रूप में कार्य करेगा।
- न्यायालय द्वारा नियुक्त न्यायमित्र को राज्य द्वारा रोके जाने की माँग की गई है, जिसके लिये उन्हें दस्तावेज़ों को प्रदान किया जाएगा और कार्यवाही से पूर्व आवेदक तथा उनके अधिवक्ता के साथ बातचीत करने की अनुमति दी जाएगी ताकि उनके मामले का पता लगाया जा सके।
- जनहित प्रतिरक्षा कार्यवाही शुरू होने के पश्चात् न्यायमित्र, आवेदक या उनके अधिवक्ता के साथ बातचीत नहीं करेगा जिसके लिये अधिवक्ताओं ने दस्तावेज़ को रोके जाने की माँग की है।
- न्यायमित्र "अपनी क्षमता के अनुसार आवेदक के हितों का प्रतिनिधित्त्व करेगा" और किसी अन्य व्यक्ति के साथ दस्तावेज़ पर चर्चा नहीं करने की शपथ से बाध्य होगा।
- न्यायालय द्वारा न्यायमित्र (एमिकस क्यूरी), जिसका अर्थ "न्यायालय का मित्र" है, की नियुक्ति की जाएगी, जो जनहित प्रतिरक्षा दावों में शामिल पक्षों के बीच एक सेतु के रूप में कार्य करेगा।
- त्रुटियाँ/दोष :
- चूँकि संविधान का अनुच्छेद 145 विशेष रूप से अनिवार्य करता है कि सर्वोच्च न्यायालय के सभी निर्णय स्वतंत्र रूप से दिये जाएं, PII के अनुसार गुप्त बैठक की कार्यवाही इस संवैधानिक आदेश के विरुद्ध हो सकती है।
- सर्वोच्च न्यायालय की प्रतिक्रिया: जबकि न्यायालय ने यह माना कि जनहित प्रतिरक्षा कार्यवाही एक गुप्त बैठक में होगी, उसने स्पष्ट रूप से कहा कि न्यायालय को स्वतंत्र रूप से निर्णय देने या खारिज़ करने के लिये एक तर्कपूर्ण आदेश पारित करने की आवश्यकता है।
- इसके अतिरिक्त सीलबंद कवर कार्यवाही न्याय के प्राकृतिक मानदंडों के साथ-साथ पारदर्शी व प्रत्यक्ष न्याय के सिद्धांतों का उल्लंघन करती है तथा PII के दावों का भी न्याय के इन मानकों पर प्रभाव पड़ता है।
- चूँकि संविधान का अनुच्छेद 145 विशेष रूप से अनिवार्य करता है कि सर्वोच्च न्यायालय के सभी निर्णय स्वतंत्र रूप से दिये जाएं, PII के अनुसार गुप्त बैठक की कार्यवाही इस संवैधानिक आदेश के विरुद्ध हो सकती है।
सीलबंद कवर कार्यवाही पर सर्वोच्च न्यायालय अन्य टिप्पणियाँ:
- पी. गोपालकृष्णन बनाम केरल राज्य मामला (2019):
- सर्वोच्च न्यायालय ने फैसला सुनाया कि भले ही जाँच जारी हो तथा दस्तावेज़ों से नई जानकारी मिल सकती हो, अभियुक्तों के लिये इसका प्रकटीकरण कानूनी रूप से आवश्यक है।
- INX मीडिया मामला (2019):
- एक पूर्व केंद्रीय मंत्री को जमानत देने से इंकार करने के दिल्ली उच्च न्यायालय के फैसले को सर्वोच्च न्यायालय ने प्रवर्तन निदेशालय (ED) द्वारा सीलबंद कवर में उपलब्ध कराए गए सबूतों पर आधारित होने के कारण चुनौती दी थी।
- इस कार्रवाई का आधार निष्पक्ष परीक्षण था।
- एक पूर्व केंद्रीय मंत्री को जमानत देने से इंकार करने के दिल्ली उच्च न्यायालय के फैसले को सर्वोच्च न्यायालय ने प्रवर्तन निदेशालय (ED) द्वारा सीलबंद कवर में उपलब्ध कराए गए सबूतों पर आधारित होने के कारण चुनौती दी थी।
- Cdr अमित कुमार शर्मा बनाम भारत संघ मामला (2022):
- सर्वोच्च न्यायालय के अनुसार, "प्रभावित पक्ष को प्रासंगिक जानकारी का प्रगटीकरण न करना और निर्णायक प्राधिकरण को सीलबंद कवर में इसका प्रगटीकरण करना एक अनुचित उदाहरण प्रस्तुत करता है।"
स्रोत: द हिंदू
पश्चिमी विक्षोभ से भारत की गेहूँ की फसल को खतरा
प्रिलिम्स के लिये:खाद्य मुद्रास्फीति, गेहूँ, खाद्य फसलें मेन्स के लिये:खाद्य उत्पादन में मौसम का प्रभाव, खाद्यान्न सुरक्षा |
चर्चा में क्यों?
प्रमुख गेहूँ उत्पादक राज्यों में पश्चिमी विक्षोभ के प्रभाव के कारण फरवरी माह के दौरान पारा में असामान्य वृद्धि और मार्च के दौरान व्यापक वृष्टि, तेज़ पवनों और ओलावृष्टि सहित हालिया खराब मौसम की स्थिति ने किसानों को उपज, उत्पादन और गेहूँ फसल की गुणवत्ता में संभावित गिरावट के बारे में चिंतित कर दिया है।
भारत में गेहूँ की फसल पर असामयिक वृष्टि और पवनों का प्रभाव
- असामयिक वृष्टि और पवनों का प्रभाव:
- भारत मौसम विज्ञान विभाग (IMD) ने बताया कि 40-50 किलोमीटर प्रति घंटे के बीच तूफानी पवनों के साथ वृष्टि, फसल के लिये हानिकारक हो सकती है, खासकर अगर वे पकने और कटाई के चरण के करीब होती हैं। दुर्भाग्य से, फसल के नष्ट होने और खेतों में जलभराव के उदाहरण सामने आए हैं, जो कटाई के लिये तैयार गेहूँ की फसल को अधिक क्षति पहुँचा सकते हैं।
- उत्पादन पर प्रभाव:
- शोधकर्त्ताओं के अनुसार, हाल ही में हुई असामयिक वृष्टि से कृषि वर्ष 2022-23 में भारत का गेहूँ उत्पादन 102.9 मीट्रिक टन होने की संभावना है, जो केंद्र सरकार के 112 मीट्रिक टन के अनुमान से कम है। हालाँकि, केंद्र को यह आशा है कि हाल के प्रतिकूल मौसम की स्थिति के कारण उत्पादन में मामूली कमी के बावजूद इस फसल मौसम में बढ़े हुए रकबे और बेहतर उपज के कारण गेहूँ का उत्पादन 112 मीट्रिक टन के करीब रहेगा।
- मूल्य और खाद्यान्न सुरक्षा पर प्रभाव:
- यदि भारत का गेहूँ उत्पादन अनुमान से कम हो जाता है तो इससे घरेलू बाज़ार में गेहूँ और गेहूँ आधारित उत्पादों की कीमतों में बढ़ोतरी हो सकती है।
- इसके अतिरिक्त, गेहूँ के उत्पादन में किसी भी गिरावट से संभावित खाद्यान्न सुरक्षा समस्या उत्पन्न हो सकती है।
गेहूँ:
- परिचय:
- चावल के बाद यह भारत में दूसरी सबसे महत्त्वपूर्ण अनाज की फसल है।
- यह देश के उत्तर और उत्तर-पश्चिमी भाग में मुख्य खाद्य फसल है।
- गेहूँ एक रबी फसल है जिसे परिपक्व होने के लिये शीत मौसम और तेज़ धूप की आवश्यकता होती है।
- हरित क्रांति की सफलता ने रबी फसलों, विशेषकर गेहूँ के विकास में योगदान दिया।
- तापमान:
- तेज़ धूप के साथ 10-15°C (बुवाई के समय) और 21-26°C (पकने और कटाई के समय) के बीच।
- आवश्यक वर्षा:
- लगभग 75-100 से.मी.
- मृदा के प्रकार:
- अच्छी तरह से शुष्क उपजाऊ दोमट और चिकनी दोमट (गंगा-सतलुज मैदान और दक्कन की काली मृदा क्षेत्र)।
- शीर्ष गेहूँ उत्पादक राज्य:
- उत्तर प्रदेश, पंजाब, हरियाणा, मध्य प्रदेश, राजस्थान, बिहार, गुजरात।
- भारत में गेहूँ उत्पादन और निर्यात की स्थिति:
- चीन के बाद भारत विश्व का दूसरा सबसे बड़ा गेहूँ उत्पादक देश है। लेकिन यह वैश्विक गेहूँ व्यापार का 1% से भी कम है। गरीबों के लिये सब्सिडी वाले खाद्यान उपलब्ध कराने में इसका बहुत योगदान है।
- इसके शीर्ष निर्यात बाज़ार बांग्लादेश, नेपाल और श्रीलंका, संयुक्त अरब अमीरात (UAE) हैं।
- सरकारी पहल:
- मैक्रो मैनेजमेंट मोड ऑफ एग्रीकल्चर, राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन और राष्ट्रीय कृषि विकास योजना गेहूँ की खेती को प्रोत्साहित करने हेतु सरकारी पहलें हैं।
पश्चिमी विक्षोभ:
- भारत मौसम विज्ञान विभाग (India Meteorological Department-IMD) के अनुसार, पश्चिमी विक्षोभ ऐसे तूफान हैं जो कैस्पियन या भूमध्य सागर में उत्पन्न होते हैं तथा उत्तर-पश्चिम भारत में गैर-मानसूनी वर्षा के लिये ज़िम्मेदार होते हैं।
- इन्हें भूमध्य सागर में उत्पन्न होने वाले एक ‘बहिरूष्ण उष्णकटिबंधीय तूफान’ के रूप में चिह्नित किया जाता है, जो एक निम्न दबाव का क्षेत्र है तथा उत्तर-पश्चिम भारत में अचानक वर्षा, हिमपात एवं कोहरे के लिये ज़िम्मेदार हैं।
- पश्चिमी विक्षोभ (Western Disturbances- WD) उत्तरी भारत में वर्षा, हिमपात और कोहरे से संबंधित है। WD भूमध्य सागर और/या अटलांटिक महासागर से नमी प्राप्त करता है।
- WD के कारण शीत ऋतु में मानसून पूर्व वर्षा होती है, जो उत्तरी उपमहाद्वीप में रबी फसल के विकास के लिये महत्त्वपूर्ण है।
- WD हमेशा अच्छे मौसम के अग्रदूत नहीं होते हैं। कभी-कभी WDs बाढ़, फ्लैश फ्लड, भूस्खलन, धूल भरी आँधी, ओलावृष्टि और शीत लहर जैसी चरम मौसमी घटनाओं का कारण बन सकते हैं जो लोगों की जान ले लेते हैं, बुनियादी ढाँचे को नष्ट कर देते हैं और आजीविका को प्रभावित करते हैं।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रश्न . निम्नलिखित फसलों पर विचार कीजिये:
(a) केवल 1 और 4 उत्तर : C |
स्रोत: द हिंदू
उभरते बाज़ारों और विकासशील अर्थव्यवस्थाओं के ऋण में बढ़ोत्तरी
प्रिलिम्स के लिये :संप्रभु ऋण, बाह्य वाणिज्यिक ऋण। मेन्स के लिये :ऋण संकट में योगदान करने वाले कारक, देशों पर संप्रभु ऋण का प्रभाव। |
चर्चा में क्यों?
ग्रीन एंड इनक्लूसिव रिकवरी (DRGR) परियोजना हेतु ऋण राहत रिपोर्ट में कहा गया है कि उभरते बाज़ारों और विकासशील अर्थव्यवस्थाओं (EDME) का संप्रभु ऋण वर्ष 2008 से 2021 के बीच 1.4 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर से 178% बढ़कर 3.9 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर हो गया, जो कि ग्लोबल साउथ में बढ़ते ऋण संकट का संकेत है।
- ऋण राहत प्रदान करने हेतु बनाए गए G20 के "कॉमन फ्रेमवर्क" में त्रुटियाँ पहचानी गई हैं, क्योंकि यह निजी और वाणिज्यिक लेनदारों सहित सभी लेनदारों को पटल पर लाने तथा ऋण राहत को विकास एवं जलवायु लक्ष्यों से जोड़ने में विफल रहा है।
नोट: उभरती हुई बाज़ार अर्थव्यवस्था एक विकासशील राष्ट्र की अर्थव्यवस्था है जो वैश्विक बाज़ारों के साथ बढ़ती जा रही है। उभरती बाज़ार अर्थव्यवस्थाओं के रूप में वर्गीकृत देशों में भारत, मैक्सिको, रूस, पाकिस्तान, सऊदी अरब, चीन और ब्राज़ील जैसे विकसित बाज़ार की कुछ विशेषताएँ (लेकिन सभी नहीं) शामिल हैं।
ऋण संकट के कारक और प्रभाव:
- EDME निम्न कारणों से कमजोर आर्थिक विकास का अनुभव कर रहे हैं:
- कोविड-19 महामारी से धीमी रिकवरी,
- खाद्यान और ऊर्जा की उच्च कीमतें, और
- रूस-युक्रेन संघर्ष
- बढ़ते जलवायु प्रभाव
- मज़बूत होता अमेरिकी डॉलर और कई EMDE के मुद्राओं का मूल्यह्रास
- कमज़ोर देशों पर प्रभाव:
- जलवायु परिवर्तन की चपेट में आने वाले देश सबसे महत्त्वपूर्ण ऋण संकट का सामना करते हैं।
- उच्च ऋण सेवा भुगतान से देशों को ऋण चुकाने के लिये अपने विदेशी भंडार के प्रमुख हिस्से को खर्च करना होता है।
- EDME को तत्काल ऋण राहत प्रदान करने से उनके ऋण भार में कमी होने के साथ इन्हें कम कार्बन उत्सर्जन एवं सामाजिक रूप से समावेशी भविष्य को सुनिश्चित करने में मदद मिलेगी।
प्रस्तावित समाधान:
- इस रिपोर्ट में कॉमन फ्रेमवर्क में सुधार पर बल देने के साथ इस मुद्दे को हल करने हेतु तीन स्तंभों को प्रस्तावित किया गया है।
- पहले स्तंभ के रूप में किसी संकटग्रस्त देश को ऋण स्थिरता प्राप्त करने हेतु प्रेरित करने और विकास तथा जलवायु लक्ष्यों को प्राप्त करने में इसकी मदद करने के लिये सार्वजनिक संस्थाओं द्वारा ऋण में महत्त्वपूर्ण कटौती किया जाना शामिल है।
- दूसरे स्तंभ के रूप में निजी और वाणिज्यिक ऋणदाताओं द्वारा सार्वजनिक ऋणदाताओं की तरह ही ऋण में कटौती किया जाना शामिल है।
- शेष ऋण के लिये, सरकार को निजी लेनदारों हेतु एक प्रत्याभूत निधि द्वारा समर्थित नए बाॅण्ड जारी करने चाहिये।
- अंतिम स्तंभ उन देशों के लिये है जो ऋण संकट के ज़ोखिम के अंतर्गत नहीं आते हैं और जिन्हें अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय संस्थान ऋण प्रदान कर सकते हैं।
- ऋण पुनर्संरचना: रिपोर्ट के अनुसार 61 देश जो ऋण संकट के उच्च ज़ोखिम में हैं, उन्हें 812 बिलियन अमेरिकी डॉलर के ऋण को पुनर्गठित करने की आवश्यकता है।
- इसमें यह भी बताया गया है 55 सबसे अधिक ऋणग्रस्त देशों के लिये अगले पाँच वर्षों में कम से कम 30 बिलियन अमेरिकी डॉलर का ऋण निलंबित कर दिया जाना चाहिये।
G20 कॉमन फ्रेमवर्क:
- ऋण सेवा निलंबन पहल (Debt Service Suspension Initiative- DSSI) से परे ऋण उपचार हेतु कॉमन फ्रेमवर्क वर्ष 2020 में G20 द्वारा समर्थित एक पहल है, जिसमें पेरिस क्लब भी शामिल है, जो संरचनात्मक तरीके से अस्थिर ऋण तथा कम आय वाले देशों का समर्थन करता है।
- फ्रेमवर्क का उद्देश्य कम आय वाले देशों (LIC) की ऋण भेद्यता को दूर करने हेतु एक समन्वित और व्यापक दृष्टिकोण प्रदान करना है, जो कि सबसे गंभीर ऋण चुनौतियों का सामना कर रहे हैं तथा जो कोविड-19 महामारी के कारण और अधिक गंभीर हो गई है।
नोट: DRGR प्रोजेक्ट बोस्टन यूनिवर्सिटी ग्लोबल डेवलपमेंट पॉलिसी सेंटर, हेनरिक-बॉल-स्टिफ्टंग और लंदन के SOAS यूनिवर्सिटी के सेंटर फॉर सस्टेनेबल फाइनेंस के बीच एक सहयोग है।
स्रोत: डाउन टू अर्थ
चीन-ताइवान संघर्ष
प्रिलिम्स के लिये:चीन-ताइवान संघर्ष, दक्षिण चीन सागर, ताइवान संबंध अधिनियम, वन चाइना पॉलिसी। मेन्स के लिये:ताइवान का महत्त्व, ताइवान मुद्दे पर भारत का रुख, भारत की एक्ट ईस्ट फॉरेन पॉलिसी। |
चर्चा में क्यों?
चीन ने घोषणा की है कि वह ताइवान की स्वतंत्रता प्राप्त करने के किसी भी प्रयास या किसी विदेशी हस्तक्षेप के खिलाफ लड़ने के लिये तैयार है।
- संयुक्त राज्य अमेरिका में ताइवान के राष्ट्रपति की यात्रा के जवाब में चीन ने ताइवान के "सील ऑफ" का अनुकरण करते हुए सैन्य अभ्यास किया।
- बड़े पैमाने पर अन्य देशों द्वारा मान्यता प्राप्त ताइवान खुद को एक संप्रभु देश के रूप में देखता है। हालाँकि चीन इसे एक अलग राज्य मानता है और द्वीप को अपने नियंत्रण में लाने के लिये दृढ़ संकल्पित है।
विवाद का बिंदु:
- पृष्ठभूमि:
- चिंग राजवंश (Qing Dynasty) के दौरान ताइवान चीन के नियंत्रण में आ गया था, लेकिन वर्ष 1895 में चीन-जापान के पहले युद्ध में चीन की हार के बाद इसे जापान को दे दिया गया था।
- वर्ष 1945 में जापान के द्वितीय विश्व युद्ध हारने के बाद चीन ने ताइवान पर नियंत्रण कर लिया, लेकिन राष्ट्रवादियों और कम्युनिस्टों के बीच गृहयुद्ध के कारण राष्ट्रवादियों को 1949 में ताइवान से पलायन करना पड़ा।
- चियांग काई-शेक के नेतृत्व में कुओमिन्तांग पार्टी ने कई वर्षों तक ताइवान पर शासन किया था और यह यहाँ अभी भी एक प्रमुख राजनीतिक दल है। चीन, ताइवान पर एक चीनी प्रांत के रूप में दावा करता है लेकिन ताइवान का तर्क है कि यह कभी भी पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना (PRC) का हिस्सा नहीं था।
- वर्तमान में चीन के राजनयिक दबाव के कारण केवल 13 देशों ने ही ताइवान को एक संप्रभु देश के रूप में मान्यता दी है।
- अमेरिका, ताइवान की स्वतंत्रता का समर्थन करता है और ताइपे के साथ संबंध बनाए रखने के साथ उसे हथियार भी बेचता है लेकिन आधिकारिक तौर पर इसने PRC’s की "वन चाइना पॉलिसी" का समर्थन किया है।
- विवाद की पृष्ठभूमि:
- 1950 के दशक में PRC ने ताइवान के नियंत्रण वाले द्वीपों पर बमबारी की, जिससे अमेरिका ने ताइवान के क्षेत्रों की रक्षा के लिये फॉर्मोसा (ताइवान का पुराना नाम) संकल्प पारित किया था।
- 1995-96 में चीन द्वारा ताइवान के आसपास के समुद्र में मिसाइलों का परीक्षण किया जाना, वियतनाम युद्ध के बाद इस क्षेत्र में अमेरिका की सक्रियता का प्रमुख कारण बना था।
- अद्यतन विकास:
- राष्ट्रपति त्साई के वर्ष 2016 में निर्वाचन के साथ ही ताइवान में स्वतंत्रता के तीव्र समर्थन के चरण की शुरुआत हुई जिसे वर्ष 2020 में इनके पुनः निर्वाचन के साथ और भी बल मिला।
- स्वतंत्रता-समर्थक समूहों को चिंता है कि इनकी आर्थिक निर्भरता इनके लक्ष्यों में बाधा बन सकती है जबकि ताइवान और साथ ही चीन के कुछ समूहों को उम्मीद है कि लोगों से लोगों के बीच संपर्क बढ़ने से अंततः स्वतंत्रता-समर्थक समूहों का प्रभाव कमज़ोर होगा।
- पारिस्थितियों में असंतुलन के बावजूद भी ताइवान अपनी स्वतंत्रता को बरकरार रखने में सक्षम रहा है। जैसे-जैसे ताइवान आर्थिक रूप से विकसित होता जा रहा है, ऐसे में संभव है कि चीन और ताइवान के बीच तनाव बढ़ेगा ही, जिस कारण इस क्षेत्र में परिस्थितियों की सूक्ष्म निगरानी करना महत्त्वपूर्ण हो जाएगा।
ताइवान का सामरिक महत्त्व:
- ताइवान चीन, जापान और फिलीपींस के निकट पश्चिमी प्रशांत महासागर में सामरिक रूप से एक महत्त्वपूर्ण स्थान पर स्थित है। इसका स्थान दक्षिणपूर्व एशिया और दक्षिण चीन सागर के लिये एक प्राकृतिक प्रवेश द्वार है जो वैश्विक व्यापार तथा सुरक्षा हेतु आवश्यक हैं।
- ताइवान अर्द्धचालक सहित उच्च तकनीकी इलेक्ट्रॉनिक्स का एक प्रमुख उत्पादक है और यहाँ विश्व की कुछ सबसे बड़ी प्रौद्योगिकी कंपनियाँ भी स्थित है।
- ताइवान विश्व के 60% से अधिक अर्द्धचालक और इसके सबसे उन्नत किस्म के 90% का उत्पादन करता है।
- ताइवान के पास एक अत्याधुनिक और सक्षम सेना है जिसका उद्देश्य अपनी संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता की रक्षा करना है।
- एशिया-प्रशांत क्षेत्र और उससे आगे शक्ति संतुलन को प्रभावित करने की क्षमता के साथ ताइवान क्षेत्रीय और वैश्विक भू-राजनीति का एक प्रमुख केंद्र है।
ताइवान में अमेरिका का निहितार्थ:
- ताइवान का कई द्वीपों पर नियंत्रण है, जो अमेरिका के लिये अनुकूल क्षेत्र है और अमेरिका चीन की विस्तारवादी योजनाओं के खिलाफ लाभ उठाने के रूप में इसका उपयोग करना चाहता है।
- अमेरिका का ताइवान के साथ आधिकारिक राजनयिक संबंध नहीं हैं, लेकिन द्वीप की रक्षा करने के साधन प्रदान करने हेतु अमेरिकी कानून (ताइवान संबंध अधिनियम, 1979) से बाध्य है।
- यह ताइवान के लिये अब तक की सबसे बड़ी हथियार डील है तथा एक 'सामरिक अस्पष्टता' नीति का पालन करता है।
ताइवान मुद्दे पर भारत का रुख:
- भारत-ताइवान संबंध:
- भारत की ‘एक्ट ईस्ट’ विदेश नीति के एक अंग के रूप में भारत ने ताइवान के साथ व्यापार और निवेश के साथ-साथ विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी, पर्यावरणीय मुद्दों और लोगों के पारस्परिक संपर्क के क्षेत्र में गहन सहयोग विकसित करने का प्रयास किया है।
- औपचारिक राजनयिक संबंध नहीं होने के बावजूद भारत एवं ताइवान ने वर्ष 1995 से एक दूसरे की राजधानियों में प्रतिनिधि कार्यालय बनाए हुए हैं जो वास्तविक दूतावासों के रूप में कार्य करते हैं। इन कार्यालयों ने उच्चस्तरीय यात्राओं की सुविधा प्रदान की है तथा दोनों देशों के बीच आर्थिक और सांस्कृतिक संबंधों को बढ़ाने में मदद की है।
- वन चाइना पॉलिसी:
- भारत वन चाइना पॉलिसी का पालन करता है जो ताइवान को चीन के हिस्से के रूप में मान्यता देता है।
- हालाँकि भारत को यह भी उम्मीद है कि चीन जम्मू और कश्मीर जैसे क्षेत्रों पर भारत की संप्रभुता को मान्यता देगा।
- भारत ने हाल ही में वन चाइना पॉलिसी के पालन का ज़िक्र करना बंद कर दिया है। यद्यपि ताइवान के साथ भारत के संबंध चीन के साथ अपने संबंधों के कारण प्रतिबंधित हैं, वह ताइवान को एक महत्त्वपूर्ण आर्थिक भागीदार तथा सामरिक सहयोगी के रूप में देखता है।
- ताइवान के साथ भारत के बढ़ते संबंधों को क्षेत्र में चीन के बढ़ते प्रभाव का मुकाबला करने के कदम के रूप में देखा जा रहा है।
आगे की राह
- रूस की अर्थव्यवस्था की तुलना में, चीनी अर्थव्यवस्था विश्व अर्थव्यवस्था में कहीं अधिक एकीकृत है। इसलिये, यदि चीन ताइवान पर आक्रमण करने की योजना बना रहा है, तो विशेष रूप से निकटतम यूक्रेन संकट को ध्यान में रखते हुए चीन बहुत सावधान रहेगा।
- चाहे कुछ भी हो, ताइवान पर चीन के आक्रमण के पश्चात एशिया की अलग तरीके से पहचान होगी, इसलिये ताइवान का मुद्दा सिर्फ नैतिकता से अधिक और एक सफल लोकतंत्र का विनाश करने के बारे में है।
- इसके अतिरिक्त, जिस तरह चीन अपनी महत्त्वाकांक्षी परियोजना चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा (CPEC) के माध्यम से पाकिस्तान के कब्ज़े वाले कश्मीर (PoK) में अपनी भागीदारी बढ़ा रहा है, उसी तरह भारत वन चाइना पॉलिसी पर पुनर्विचार कर सकता है और ताइवान के साथ अपने संबंधों को चीन की मुख्य भूमि से अलग मान सकता है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्ष के प्रश्नप्रश्न. "चीन अपने आर्थिक संबंधों और सकारात्मक व्यापार अधिशेष को एशिया में संभाव्य सैनिक शक्ति हैसियत को विकसित करने के लिये उपकरणों के रूप में इस्तेमाल कर रहा है"। इस कथन के प्रकाश में उसके पड़ोसी के रूप में भारत पर इसके प्रभाव की चर्चा कीजिये। (2017) |