भारतीय अर्थव्यवस्था
विश्व आर्थिक स्थिति और संभावनाएँ रिपोर्ट, 2024
प्रिलिम्स के लिये:संयुक्त राष्ट्र, मुद्रास्फीति, हेडलाइन मुद्रास्फीति, अल नीनो, शुद्ध-शून्य-उत्सर्जन, कृत्रिम बुद्धिमत्ता, लॉस एंड डैमेज फंड (हानि और क्षति कोष) मेन्स के लिये:विश्व आर्थिक स्थिति और संभावनाएँ, वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद पर जलवायु परिवर्तन का प्रभाव |
स्रोत: डाउन टू अर्थ
चर्चा में क्यों?
वर्ष 2024 के लिये विश्व आर्थिक स्थिति और संभावना रिपोर्ट(World Economic Situation and Prospects report) नामक संयुक्त राष्ट्र (United Nations-UN) की हालिया रिपोर्ट में वर्ष 2024 में वैश्विक मुद्रास्फीति में गिरावट का अनुमान लगाया गया है, लेकिन विशेष रूप से विकासशील देशों में खाद्य मुद्रास्फीति (food inflation) में एक साथ वृद्धि की चेतावनी दी गई है।
- इस घटना के निहितार्थ, जलवायु संबंधी चुनौतियों और भू-राजनीतिक तनावों के साथ मिलकर, खाद्य सुरक्षा, गरीबी उन्मूलन और आर्थिक विकास के लिये खतरा पैदा करते हैं।
वर्ष 2024 के लिये विश्व आर्थिक स्थिति और संभावना रिपोर्ट की मुख्य विशेषताएँ क्या हैं?
- वैश्विक जीडीपी वृद्धि:
- रिपोर्ट में वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद (global gross domestic product - GDP) की वृद्धि में गिरावट का अनुमान लगाया गया है, जो वर्ष 2023 में अनुमानित 2.7% से घटकर वर्ष 2024 में 2.4% हो जाएगी।
- विकासशील अर्थव्यवस्थाएँ, विशेष रूप से, महामारी से उत्पन्न नुकसान से उबरने के लिये संघर्ष कर रही हैं, जिनमें से कई को उच्च ऋण और निवेश की कमी का सामना करना पड़ रहा है।
- यह अनुमान लगाया गया है कि कई कम आय वाले और कमज़ोर राष्ट्र आगामी वर्षों में केवल मध्यम विकास का अनुभव करेंगे।
- इसके कारण लगातार उच्च ब्याज दरें, बढ़ते भू-राजनीतिक संघर्ष, कम अंतर्राष्ट्रीय व्यापार और जलवायु संबंधी आपदाओं में वृद्धि हैं।
- भारत का दृष्टिकोण:
- दक्षिण एशिया में वर्ष 2023 में अनुमानित 5.3% की वृद्धि हुई और 2024 में 5.2% की वृद्धि का अनुमान है, भारत में अधिक विस्तार से प्रेरित है, जो दुनिया में सबसे तेज़ी से बढ़ती बड़ी अर्थव्यवस्था बनी हुई है।
- घरेलू मांग और विनिर्माण तथा सेवाओं में वृद्धि से समर्थित, वर्ष 2024 में भारत की विकास दर 6.2% होने का अनुमान है।
- मुद्रास्फीति:
- वैश्विक मुद्रास्फीति, जो पिछले दो वर्षों में एक प्रमुख चिंता का विषय रही है, कम होने के संकेत दिख रही है।
- वैश्विक हेडलाइन मुद्रास्फीति वर्ष 2022 में 8.1% से गिरकर 2023 में अनुमानित 5.7% हो गई और वर्ष 2024 में घटकर 3.9% होने का अनुमान है।
- हेडलाइन मुद्रास्फीति एक अर्थव्यवस्था के भीतर कुल मुद्रास्फीति को मापती है, जिसमें खाद्य और ऊर्जा की कीमतें जैसी वस्तुएँ शामिल होती हैं।
- मुद्रास्फीति में गिरावट का कारण अंतर्राष्ट्रीय कमोडिटी कीमतों में जारी नरमी और संयुक्त राष्ट्र द्वारा मौद्रिक सख्ती के कारण मांग में कमी है।
- वैश्विक हेडलाइन मुद्रास्फीति वर्ष 2022 में 8.1% से गिरकर 2023 में अनुमानित 5.7% हो गई और वर्ष 2024 में घटकर 3.9% होने का अनुमान है।
- हालाँकि खाद्य मूल्य मुद्रास्फीति गंभीर बनी हुई है, जिससे विशेष रूप से विकासशील देशों में खाद्य असुरक्षा और गरीबी बढ़ रही है।
- अनुमान है कि वर्ष 2023 में 238 मिलियन लोगों ने तीव्र खाद्य असुरक्षा का अनुभव किया, जो वर्ष 2022 से 21.6 मिलियन की वृद्धि है।
- कमज़ोर स्थानीय मुद्राएँ, जलवायु संबंधी झटके और अंतर्राष्ट्रीय कीमतों से स्थानीय कीमतों तक सीमित अंतरण खाद्य मुद्रास्फीति में इस निरंतर वृद्धि का कारण होंगे।
- अल नीनो का पुनरुत्थान जलवायु पैटर्न को बाधित कर सकता है, जिससे अत्यधिक और अपर्याप्त वर्षा दोनों ही खाद्य उत्पादन को प्रभावित कर सकती हैं।
- अनुमान है कि वर्ष 2023 में 238 मिलियन लोगों ने तीव्र खाद्य असुरक्षा का अनुभव किया, जो वर्ष 2022 से 21.6 मिलियन की वृद्धि है।
- वैश्विक मुद्रास्फीति, जो पिछले दो वर्षों में एक प्रमुख चिंता का विषय रही है, कम होने के संकेत दिख रही है।
- जलवायु परिवर्तन:
- वर्ष 2023 में चरम मौसम की स्थिति का सामना करना पड़ा, जिससे दुनिया भर में विनाशकारी जंगल की आग, बाढ़ और सूखा पड़ा।
- इन घटनाओं का प्रत्यक्ष आर्थिक प्रभाव पड़ता है जैसे बुनियादी ढाँचे, कृषि और आजीविका को नुकसान।
- अध्ययनों में जलवायु परिवर्तन के कारण महत्त्वपूर्ण आर्थिक नुकसान का अनुमान लगाया गया है।
- ग्रीनलैंड बर्फ शेल्फ ढहने जैसी घटनाओं को देखते हुए, अनुमान है कि वर्ष 2100 तक वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद में 10% की कमी हो सकती है।
- शमन के बिना, मॉडल 2100 तक औसत वैश्विक आय में संभावित 23% की कमी का संकेत देते हैं।
- IPCC का अनुमान है कि अकेले तापमान के प्रभाव के कारण वर्ष 2100 तक वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद में 10 से 23% की हानि होगी।
- वर्ष 2023 में चरम मौसम की स्थिति का सामना करना पड़ा, जिससे दुनिया भर में विनाशकारी जंगल की आग, बाढ़ और सूखा पड़ा।
- निवेश:
- आर्थिक अनिश्चितताओं, उच्च ऋण बोझ तथा बढ़ती ब्याज़ दरों के कारण वैश्विक निवेश संवृद्धि कम रहने की उम्मीद है।
- विकसित देश हरित ऊर्जा तथा डिजिटल बुनियादी ढाँचे जैसे सतत् क्षेत्रों को प्राथमिकता देते हैं।
- विकासशील देश पूंजी के बाह्य प्रवाह तथा प्रत्यक्ष विदेशी निवेश में कमी का सामना कर रहे हैं।
- भू-राजनीतिक तनाव क्षेत्रीय निवेश प्रवाह को प्रभावित करते हैं जिससे आर्थिक अनिश्चितताओं तथा बढ़ती ब्याज दरों के बीच कम वैश्विक निवेश वृद्धि में योगदान होता है।
- ऊर्जा क्षेत्र में, विशेष रूप से स्वच्छ ऊर्जा में निवेश बढ़ रहा है किंतु यह वृद्धि वर्ष 2050 तक शुद्ध-शून्य-उत्सर्जन लक्ष्य को पूरा करने के के अनुरूप नहीं है।
- रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2050 तक ऊर्जा परिवर्तन एवं बुनियादी ढाँचे के लिये 150 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर की आवश्यकता होगी जिसमें मात्र वैश्विक ऊर्जा क्षेत्र के लिये वार्षिक रूप से 5.3 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर की आवश्यकता होगी।
- इसके बावजूद जलवायु वित्त आवश्यकताओं को पूरा करने में अक्षम रहा है जो बड़े पैमाने पर विस्तार की महत्त्वपूर्ण आवश्यकता पर बल देता है।
- रिपोर्ट में लॉस एंड डैमेज फंड के प्रभावी संचालन तथा जलवायु आपदाओं का सामना करने वाले कमज़ोर देशों की सहायता के लिये वित्तपोषण प्रतिबद्धताओं को बढ़ाने का आह्वान किया गया है।
- आर्थिक अनिश्चितताओं, उच्च ऋण बोझ तथा बढ़ती ब्याज़ दरों के कारण वैश्विक निवेश संवृद्धि कम रहने की उम्मीद है।
- श्रम बाज़ार:
- वैश्विक श्रम बाज़ार कोविड-19 महामारी के बाद विकसित तथा विकासशील देशों के बीच भिन्न रुझान प्रदर्शित करता है।
- विकसित देश:
- वर्ष 2023 में बेरोज़गारी दर में कमी, विशेष रूप से अमेरिका में 3.7% तथा यूरोपीय संघ में 6.0%, के साथ एक उल्लेखनीय सुधार दर्ज किया गया और साथ ही नाममात्र वेतन में वृद्धि के साथ वेतन असमानता में कमी आई।
- हालाँकि वास्तविक आय हानि और श्रम की कमी संबंधी चुनौतियाँ बनी रहीं।
- विकासशील देश:
- विभिन्न बेरोज़गारी रुझान के साथ मिश्रित प्रगति हुई (उदाहरनार्थ: चीन, ब्राज़ील, तुर्की, रूस में संबद्ध क्षेत्र में गिरावट दर्ज की गई)।
- निरंतर बने रहने वाले मुद्दों में अनौपचारिक रोज़गार, लैंगिक अंतर एवं उच्च युवा बेरोज़गारी शामिल है।
- वैश्विक स्तर पर वर्ष 2023 में महिला श्रम बल की भागीदारी में 47.2% (वर्ष 2013 में 48.1% की तुलना में) की गिरावट आई ।
- विकसित देश:
- वैश्विक रोज़गार पर आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) का प्रभाव:
- एक-तिहाई वैश्विक कंपनियाँ अब जेनरेटिव AI का उपयोग करती हैं, जिनमें से 40% AI निवेश का विस्तार करने की योजना बना रही हैं।
- AI कम-कुशल नौकरियों की मांग को कम कर सकता है, जिसका महिलाओं और कम आय वाले देशों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है। इसके अलावा, AI आधारित व्यवसायों में एक महत्त्वपूर्ण लैंगिक अंतर है।
- वर्ष 2022 में चैट-जीपीटी (ChatGPT) की शुरुआत के बाद से, AI अपनाने में तेज़ी से प्रगति हुई है।
- AI कम-कुशल नौकरियों की मांग को कम कर सकता है, जिसका महिलाओं और कम आय वाले देशों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है। इसके अलावा, AI आधारित व्यवसायों में एक महत्त्वपूर्ण लैंगिक अंतर है।
- एक-तिहाई वैश्विक कंपनियाँ अब जेनरेटिव AI का उपयोग करती हैं, जिनमें से 40% AI निवेश का विस्तार करने की योजना बना रही हैं।
- वैश्विक श्रम बाज़ार कोविड-19 महामारी के बाद विकसित तथा विकासशील देशों के बीच भिन्न रुझान प्रदर्शित करता है।
- व्यापार:
- वर्ष 2023 में वैश्विक व्यापार वृद्धि में 0.6% तक गिरावट दर्ज की गई और वर्ष 2024 में इसमें 2.4% तक का सुधार होने का अनुमान है।
- रिपोर्ट वैश्विक व्यापार में बाधा डालने वाले कारकों के रूप में उपभोक्ता खर्च में वस्तुओं से सेवाओं की ओर बदलाव, बढ़ते भू-राजनीतिक तनाव, आपूर्ति शृंखला में व्यवधान एवं महामारी के लंबे समय तक बने रहने वाले प्रभावों की ओर इशारा करती है।
- वर्ष 2023 में वैश्विक व्यापार वृद्धि में 0.6% तक गिरावट दर्ज की गई और वर्ष 2024 में इसमें 2.4% तक का सुधार होने का अनुमान है।
- अंतर्राष्ट्रीय वित्त और ऋण:
- बढ़ता विदेशी ऋण और बढ़ी हुई ब्याज दरें विकासशील देशों की अंतर्राष्ट्रीय पूंजी बाज़ारों तक अभिगम में बाधा डालती हैं।
- आधिकारिक विकास सहायता और प्रत्यक्ष विदेशी निवेश में गिरावट कम आय वाले देशों के लिये वित्तीय बाधाओं को बढ़ाती है।
- ऋण स्थिरता एक गंभीर चिंता का विषय बन गई है, जिससे बढ़ते वित्तीय बोझ को प्रभावी ढंग से प्रबंधित करने के लिये ऋण पुनर्गठन और राहत प्रयासों की आवश्यकता होती है।
- बहुपक्षवाद और सतत् विकास:
- वर्ष 2024 की WESP रिपोर्ट, विशेष रूप से जलवायु कार्रवाई, सतत् विकास वित्तपोषण और निम्न व मध्यम आय वाले देशों की ऋण स्थिरता चुनौतियों का समाधान करने जैसे क्षेत्रों में मज़बूत वैश्विक सहयोग की आवश्यकता पर ज़ोर देती है।
- यह रिपोर्ट जटिल वैश्विक आर्थिक परिदृश्य से निपटने और संयुक्त राष्ट्र-अनिवार्य सतत् विकास लक्ष्यों (SDG) को प्राप्त करने में बहुपक्षवाद की महत्त्वपूर्ण भूमिका को रेखांकित करती है।
भूगोल
रॉक ग्लेशियर
प्रिलिम्स के लिये:झेलम, रॉक ग्लेशियर, ग्लेशियल झील में बाढ़, भूस्खलन, थर्मोकार्स्ट, बटगाइका क्रेटर मेन्स के लिये:रॉक ग्लेशियरों के संभावित परिणाम, हिमनद गतिशीलता को प्रभावित करने वाले कारक, हिमनदों के पीछे हटने का प्रभाव |
स्रोत: डाउन टू अर्थ
चर्चा में क्यों?
एक हालिया अध्ययन ने कश्मीर हिमालय के झेलम बेसिन में 100 से अधिक सक्रिय पर्माफ्रॉस्ट संरचनाओं की उपस्थिति पर प्रकाश डाला है। ये संरचनाएँ, जिन्हें रॉक ग्लेशियर के रूप में जाना जाता है, क्षेत्र के जल विज्ञान पर महत्त्वपूर्ण प्रभाव डालती हैं और जलवायु के गर्म होने पर संभावित जोखिम उत्पन्न करती हैं।
रॉक ग्लेशियर क्या है?
- परिचय:
- रॉक ग्लेशियर एक प्रकार की भू-आकृति हैं जिसमें चट्टान के टुकड़े और बर्फ का मिश्रण होता है।
- रॉक ग्लेशियर आमतौर पर पहाड़ी क्षेत्रों में बनते हैं जहाँ पर्माफ्रॉस्ट, रॉक मलबे और बर्फ का संयोजन होता है।
- पर्माफ्रॉस्ट एक स्थायी रूप से जमी हुई परत है जो पृथ्वी की सतह पर या उसके नीचे मौजूद होती है। यह मिट्टी, बजरी और रेत से बना होता है जो आमतौर पर बर्फ से एक साथ जुड़ा रहता है।
- एक सामान्य परिदृश्य में पहले से मौजूद ग्लेशियर जो आगे बढ़ने पर मलबा और चट्टानें इकट्ठा करता है, एक सामान्य घटना है। यदि ग्लेशियर पिघलता है, तो मलबे से ढकी बर्फ अंततः चट्टानी ग्लेशियर में परिवर्तित हो सकती है।
- ये चट्टानी ग्लेशियर तीव्र ढलान वाले अत्यधिक ऊँचाई वाले क्षेत्रों में पाए जाते हैं।
- नग्न आँखों से चट्टानी ग्लेशियर मुख्यतः सतह की तरह दिखते हैं, उनकी सही पहचान के लिये भू-आकृति विज्ञान संबंधी दृष्टिकोण की आवश्यकता होती है।
- वर्गीकरण:
- उनमें बर्फ और गति है या नहीं, इसके आधार पर उन्हें सक्रिय या अवशेष के रूप में जाना जाता है। अवशेष चट्टानी ग्लेशियर अधिक स्थिर और निष्क्रिय होते हैं, जबकि सक्रिय चट्टानी ग्लेशियर अधिक गतिशील व खतरनाक होते हैं।
- महत्त्व:
- रॉक ग्लेशियर पर्माफ्रॉस्ट पर्वत के महत्त्वपूर्ण संकेतक हैं, जो स्थायी रूप से स्थिर भूमि है जिसके अंतर्गत कई ऊँचाई वाले क्षेत्र आते हैं।
- रॉक ग्लेशियर के अपने जमे हुए कोर में वृहद मात्रा में जल संग्रहित होता है जो जल की कमी और हिमनदों के खिसकने की स्थिति में एक मूल्यवान संसाधन हो सकता है।
क्षेत्र पर सक्रिय रॉक ग्लेशियरों के संभावित प्रभाव क्या हैं?
- ग्लेशियर लेक आउटबर्स्ट फ्लड/हिमनद झील विच्छेद बाढ़ (Glacial lake outburst floods- GLOF):
- These are sudden and catastrophic floods that occur when a glacial lake bursts its natural or artificial dam, releasing large volumes of water and debris downstream. ये आकस्मिक और विनाशकारी बाढ़ जैसी स्थितियाँ उत्पन्न होती हैं, जो तब होती हैं जब एक हिमनद झील का प्राकृतिक या कृत्रिम बाँध टूट जाता है, जिससे भारी मात्रा में जल तथा मलबा निचले क्षेत्र की ओर विनाशकारी रूप से प्रवाहित हो जाता है।
- सक्रिय रॉक ग्लेशियर ढालों या हिमनद झीलों के बाँधों को अस्थिर करके GLOF के खतरे को बढ़ाते हैं।
- हिमनद झीलों, जैसे चिरसर और ब्रैमसर झील के निकटवर्ती रॉक ग्लेशियर, GLOF के खतरे को बढ़ाते हैं।
- These are sudden and catastrophic floods that occur when a glacial lake bursts its natural or artificial dam, releasing large volumes of water and debris downstream. ये आकस्मिक और विनाशकारी बाढ़ जैसी स्थितियाँ उत्पन्न होती हैं, जो तब होती हैं जब एक हिमनद झील का प्राकृतिक या कृत्रिम बाँध टूट जाता है, जिससे भारी मात्रा में जल तथा मलबा निचले क्षेत्र की ओर विनाशकारी रूप से प्रवाहित हो जाता है।
- भू-स्खलन:
- भूस्खलन (Landslide) एक भूवैज्ञानिक घटना है जिसमें शैल, मिट्टी और मलबे के एक भाग का नीचे की ओर खिसकना या संचलन करना शामिल होता है।
- भूस्खलन प्राकृतिक और मानव-निर्मित, दोनों ही ढलानों पर हो सकते हैं तथा वे प्रायः भारी वर्षा, भूकंप, ज्वालामुखीय गतिविधियों, मानव गतिविधियों (जैसे– निर्माण या खनन) और भूजल स्तर में परिवर्तन जैसे कारकों के संयोजन से उत्पन्न होते हैं।
- सक्रिय रॉक ग्लेशियर ढलान की स्थिरता को कमज़ोर करके या पिघलकर जल मुक्त करने से भू-स्खलन का कारण बनते हैं जो फिसलती हुई सतह के स्खलन में योगदान देता है।
- पिघलती पर्माफ्रॉस्ट इन क्षेत्रों को अस्थिर बनाती है, जिससे आस-पास की बस्तियों और महत्त्वपूर्ण बुनियादी ढाँचे के लिये खतरा उत्पन्न हो जाता है।
- उदाहरण के लिये क्यूबेक में नुनाविक क्षेत्र कई वर्ष पूर्व मुख्यतः पर्माफ्रॉस्ट मैदान पर बसाया गया था। पिछले दशकों में ग्लोबल वार्मिंग के कारण निचली स्तरों में बर्फ पिघलनी शुरू हो गई, जिससे भू-स्खलन की आवृत्ति और अन्य खतरे बढ़ गए।
- थर्मोकार्स्ट:
- यह एक प्रकार का भू-भाग है जो बर्फ से समृद्ध पर्माफ्रॉस्ट के पिघलने से बनने वाली दलदली खोखली और छोटी-छोटी चट्टानों (कटक) की अनियमित सतहों का रूप है।
- सक्रिय रॉक ग्लेशियरों से तालाबों अथवा झीलों जैसी थर्मोकार्स्ट संरचनाओं का निर्माण हो सकता है जो संबद्ध क्षेत्र के जल-विज्ञान (Hydrology), पारिस्थितिकी तथा कार्बन चक्र को प्रभावित कर सकते हैं।
- जम्मू-कश्मीर के कुलगाम शहर के समीप जल निकायों की उपस्थिति भूमिगत पर्माफ्रॉस्ट के अस्तित्व का सुझाव देती है जो 'थर्मोकार्स्ट झीलों' के समान है जिनके परिणामस्वरूप भविष्य में जोखिम की स्थिति उत्पन्न हो सकती है।
- पृथ्वी की सतह के नीचे हिम के पिघलने से सतह के ढहने का खतरा अधिक होता है। जिसके परिणामस्वरूप सिंकहोल्स, टेकरी (Hummocks), गुफाओं तथा सुरंगों की उत्पत्ति हो सकती है जो जोखिमपूर्ण हो सकता है।
- बटागाइका क्रेटर थर्मोकार्स्ट का एक उदाहरण है, यह विश्व का सबसे बड़ा पर्माफ्रॉस्ट क्रेटर है जो सखा गणराज्य, रूस में स्थित है।
- यह एक प्रकार का भू-भाग है जो बर्फ से समृद्ध पर्माफ्रॉस्ट के पिघलने से बनने वाली दलदली खोखली और छोटी-छोटी चट्टानों (कटक) की अनियमित सतहों का रूप है।
कश्मीर हिमालय की झेलम बेसिन:
- झेलम द्रोणी/बेसिन का अपवाह ऊपरी झेलम नदी से होता है जिसका उद्गम कश्मीर घाटी में पीर पंजाल शृंखला के तल पर स्थित अनंतनाग के वेरिनाग में एक झरने से होता है, यह नदी पाकिस्तान में प्रवेश करने से पहले श्रीनगर एवं वुलर झील से होकर गुजरती है।
- सिंधु नदी की एक सहायक नदी के रूप में झेलम नदी भारतीय उपमहाद्वीप में बड़ी नदी प्रणाली में योगदान देती है।
- यह नदी जम्मू-कश्मीर से होकर पाकिस्तान में प्रवाहित होती है जहाँ यह चिनाब नदी में मिल जाती है।
- पंजाब की पाँच नदियों में झेलम सबसे बड़ी तथा सबसे पश्चिमी नदी है।
- इसकी प्राथमिक सहायक नदी किशनगंगा (नीलम) नदी है। कुन्हार नदी इसकी एक अन्य महत्त्वपूर्ण सहायक नदी है जो कंघान घाटी में कोहाला पुल के माध्यम से पाक अधिकृत कश्मीर एवं पाकिस्तान को जोड़ती है।
आगे की राह
- यह अध्ययन हिमालय क्षेत्र में जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को समझने तथा उन्हें कम करने में पर्माफ्रॉस्ट अनुसंधान की महत्त्वपूर्ण भूमिका पर प्रकाश डालता है।
- सक्रिय रॉक ग्लेशियरों की जलीय क्षमता पर आगे के अध्ययन के लिये संसाधन आवंटित करना, जल की कमी का सामना करने वाले क्षेत्रों में स्थायी उपयोग के लिये संग्रहीत जल का दोहन करने के तरीकों की खोज करना।
- संभावित आपदाओं के बारे में समुदायों और अधिकारियों को सचेत करने के लिये पहचाने गए सक्रिय रॉक ग्लेशियरों वाले क्षेत्रों में प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली को विकसित एवं कार्यांवित करें।
- ग्लेशियरों से रॉक ग्लेशियरों में संक्रमण से उत्पन्न विशिष्ट चुनौतियों पर विचार करते हुए, पर्माफ्रॉस्ट अध्ययन के निष्कर्षों को क्षेत्रीय और राष्ट्रीय जलवायु परिवर्तन अनुकूलन योजनाओं में एकीकृत करें।
- पर्माफ्रॉस्ट क्षरण से जुड़े जोखिमों के बारे में स्थानीय समुदायों, योजनाकारों और नीति निर्माताओं के बीच जागरूकता बढ़ाने की आवश्यकता है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न1. सिंधु नदी प्रणाली के संदर्भ में निम्नलिखित चार नदियों में से तीन उनमें से एक में मिलती हैं, जो अंततः सीधे सिंधु में मिलती हैं। निम्नलिखित में से कौन-सी ऐसी नदी है जो सीधे सिंधु से मिलती है? (2021) (a) चिनाब उत्तर: (d) प्रश्न. पृथ्वी ग्रह पर अधिकांश मीठे पानी में बर्फ का आवरण और हिमनद मौजूद हैं। शेष मीठे पानी में से सबसे अधिक अनुपात किस रूप में मौजूद है? (2013) (a) वातावरण में नमी और बादलों के रूप में पाया जाता है। उत्तर: C
अतः विकल्प (c) सही उत्तर है। मेन्स:प्रश्न1. क्रायोस्फीयर वैश्विक जलवायु को कैसे प्रभावित करता है? (2017) |
भारतीय अर्थव्यवस्था
GST संबंधी चुनौतियों का समाधान
प्रिलिम्स के लिये:वस्तु एवं सेवा कर, आर्थिक सुधार वक्र, राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय, इनपुट टैक्स क्रेडिट, 101वाँ संविधान संशोधन अधिनियम, 2016 मेन्स के लिये:भारत में GST से संबंधित वर्तमान प्रमुख चुनौतियाँ, GST परिषद |
स्रोत: द हिंदू
चर्चा में क्यों?
हालिया वस्तु एवं सेवा कर (Goods and Services Tax- GST) राजस्व डेटा एक चिंताजनक परिदृश्य उजागर करता है जिसके अनुसार भारतीय राज्यों में उपभोग वृद्धि एक समान नहीं है जिससे राष्ट्रीय आर्थिक सुधार में संभावित असंगति का पता चलता है।
हाल के GST से संबंधित आँकड़ों के प्रमुख निष्कर्ष क्या हैं?
- कुल GST संग्रह: वर्ष 2022-23 की तुलना में वर्ष 2023-24 के प्रथम नौ महीनों में इसमें 11.7% की वृद्धि दर्ज की गई।
- केंद्रीय GST की तुलना में राज्य GST संग्रह उच्च दर (15.2%) से बढ़ा जो राज्यों में मौजूद विविध उपभोग/खपत स्वरूप का सुझाव देता है।
- राज्यों के बीच असमानताएँ: मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र तथा कर्नाटक जैसे कुछ राज्यों में राज्य GST राजस्व में उल्लेखनीय वृद्धि (17% से 18.8%) दर्ज की गई जबकि गुजरात, पश्चिम बंगाल एवं आंध्र प्रदेश जैसे अन्य राज्यों में एकल-अंकीय वृद्धि हुई।
- सबसे कम निजी उपभोग विस्तार: राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (National Statistical Office- NSO) का अनुमान है कि वर्तमान वर्ष के लिये निजी अंतिम उपभोग व्यय (Private Final Consumption Expenditure- PFCE) की वृद्धि केवल 4.4% होगी जो वर्ष 2002-03 (महामारी के समय के अतिरिक्त) के बाद से सबसे धीमी है।
- PFCE को निवासी परिवारों और परिवारों की सेवा करने वाले गैर-लाभकारी संस्थानों (Non-Profit Institutions Serving Households- NPISH) द्वारा वस्तुओं एवं सेवाओं की अंतिम खपत पर किये गए व्यय के रूप में परिभाषित किया गया है, इसमें आर्थिक क्षेत्र के भीतर अथवा बाह्य व्यय दोनों शामिल हैं।
वस्तु एवं सेवा कर क्या है?
- परिचय: GST एक मूल्य वर्द्धित कर प्रणाली है जो भारत में वस्तुओं और सेवाओं की आपूर्ति पर लगाया जाता है।
- यह एक व्यापक अप्रत्यक्ष कर है जिसे 1 जुलाई, 2017 को 101वें संविधान संशोधन अधिनियम, 2016 के माध्यम से 'एक राष्ट्र एक कर' के नारे के साथ भारत में लागू किया गया था।
- कर स्लैब: नियमित करदाताओं के लिये प्राथमिक GST स्लैब वर्तमान में 0% (शून्य-रेटेड), 5%, 12%, 18% और 28% हैं।
- कुछ GST दरें हैं जिनका आमतौर पर कम उपयोग किया जाता है, जैसे– 3% और 0.25%।
- GST के लाभ:
- सरलीकृत कर व्यवस्था: GST ने कई अप्रत्यक्ष करों को प्रतिस्थापित कर दिया, जिससे अनुपालन आसान हो गया और व्यवसायों के लिये कागज़ी कार्रवाई कम हो गई।
- पारदर्शिता में वृद्धि: ऑनलाइन GST पोर्टल कर प्रशासन को सरल बनाता है और प्रणाली में पारदर्शिता को बढ़ावा देता है।
- कर का बोझ कम होना: व्यापक करों के समाप्त होने से कीमतें कम होने से उपभोक्ताओं को लाभ होता है।
- आर्थिक विकास को बढ़ावा: कर बाधाओं को दूर करके और दक्षता में सुधार करके, GST से उच्च आर्थिक विकास तथा रोज़गार सृजन में योगदान की उम्मीद है।
- GST परिषद: GST परिषद एक संवैधानिक निकाय है जो भारत में GST के कार्यान्वयन से संबंधित मुद्दों पर सिफारिशें करने के लिये ज़िम्मेदार है।
- संशोधित संविधान के अनुच्छेद 279A (1) के अनुसार, GST परिषद का गठन राष्ट्रपति द्वारा किया गया था।
भारत में GST से संबंधित वर्तमान प्रमुख चुनौतियाँ क्या हैं?
- जटिलता और अनुपालन बोझ: भारत में GST में कई कर स्लैब के साथ एक जटिल संरचना है, जिससे अनुपालन आवश्यकताओं में वृद्धि हुई है।
- यह जटिलता व्यवसायों, विशेषकर छोटे उद्यमों के लिये विविध नियमों को समझने और उनका पालन करने में एक चुनौती पेश करती है।
- प्रौद्योगिकी और बुनियादी ढाँचे की तैयारी: GST का सफल कार्यान्वयन काफी हद तक मज़बूत तकनीकी बुनियादी ढाँचे पर निर्भर करता है। व्यवसायों के बीच तकनीकी तत्परता की कमी और प्रौद्योगिकी को अपनाने में असमानता जैसे मुद्दे GST नेटवर्क के निर्बाध कामकाज में बाधा बन सकते हैं।
- इनपुट टैक्स क्रेडिट (ITC) सत्यापन: सरकारी अधिकारियों ने हाल ही में GST बकाया की चोरी में शामिल 29,000 से अधिक फर्जी फर्मों की पहचान की है और उनका भंडाफोड़ किया है।
- सभी राज्यों में एकाधिक पंजीकरण: कई राज्यों में काम करने वाले व्यवसायों को GST अनुपालन के लिये प्रत्येक राज्य में अलग-अलग पंजीकरण करना होगा।
- पंजीकरण की यह बहुलता प्रशासनिक बोझ बढ़ाती है और अखिल भारतीय उपस्थिति वाले व्यवसायों के लिये अनुपालन लागत बढ़ाती है, जिससे लॉजिस्टिक चुनौतियों में योगदान होता है।
आगे की राह
- कर संरचना को सरल और तर्कसंगत बनाना: कर स्लैब की संख्या को कम करके GST कर संरचना को सरल बनाना।
- अधिक स्पष्ट और एकसमान कर प्रणाली, व्यवसायों के लिये अनुपालन को आसान बनाएगी तथा कर दायित्वों की स्पष्ट समझ को बढ़ावा देगी।
- अनुपालन प्रक्रियाओं को सुव्यवस्थित करना: व्यवसायों पर प्रशासनिक बोझ को कम करने के लिये अनुपालन प्रक्रियाओं को सरल और सुव्यवस्थित करने की दिशा में काम करने की आवश्यकता है। इसमें रिटर्न फाइलिंग प्रक्रियाओं में सामंजस्य स्थापित करना, समय पर रिफंड सुनिश्चित करना और टैक्स फाइलिंग के लिये उपयोगकर्त्ता के अनुकूल इंटरफेस लागू करना शामिल हो सकता है।
- कर चोरी-रोधी उपायों पर ध्यान देना: विशेष रूप से नकली चालान और धोखाधड़ी गतिविधियों के माध्यम से कर चोरी को रोकने के उपायों को मज़बूत करने की आवश्यकता है।
- संदिग्ध लेनदेन की पहचान करने के लिये उन्नत डेटा एनालिटिक्स और प्रौद्योगिकी का उपयोग करना तथा धोखाधड़ी प्रथाओं को रोकने के लिये गैर-अनुपालन हेतु कड़े दंड लागू करना।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न1. निम्नलिखित मदों पर विचार कीजिये: (2018)
उपर्युक्त मदों में से कौन-सी वस्तु/वस्तुएँ जीएसटी (वस्तु एवं सेवा कर) के अंतर्गत छूट प्राप्त है/हैं? (a) केवल 1 उत्तर: (c) प्रश्न2. 'वस्तु एवं सेवा कर (गुड्स एंड सर्विसेज़ टैक्स/GST)' के क्रियान्वित किये जाने का/के सर्वाधिक संभावित लाभ क्या है/हैं? (2017)
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1 उत्तर: (a) प्रश्न. वस्तु एवं सेवा कर (राज्यों को क्षतिपूर्ति) अधिनियम, 2017 के तर्काधार की व्याख्या कीजिये। कोविड-19 ने कैसे वस्तु एवं सेवा कर क्षतिपूर्ति निधि को प्रभावित किया है और नए संघीय तनावों को उत्पन्न किया है? ( 2020) प्रश्न. उन अप्रत्यक्ष करों को गिनाइये जो भारत में वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) में सम्मिलित किये गए हैं। भारत में जुलाई 2017 से क्रियान्वित जीएसटी के राजस्व निहितार्थों पर भी टिप्पणी कीजिये। ( 2019) प्रश्न. संविधान (101वाँ संशोधन) अधिनियम, 2016 की मुख्य विशेषताओं की व्याख्या कीजिये। क्या आपको लगता है कि यह "करों के प्रपाती प्रभाव को दूर करने और वस्तुओं तथा सेवाओं के लिये सामान्य राष्ट्रीय बाज़ार प्रदान करने" हेतु पर्याप्त रूप से प्रभावी है? (2017) प्रश्न. भारत में माल व सेवा कर (GST) प्रारंभ करने के मूलाधार की विवेचना कीजिये। इस व्यवस्था को लागू करने में विलंब के कारणों का समालोचनात्मक वर्णन कीजिये। (2013) |