कृषि
पूर्वोत्तर में केसर की खेती
प्रिलिम्स के लिये:केसर, करेवा मेन्स के लिये:भारत में केसर की खेती की संभावना |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में सिक्किम के दक्षिणी भाग यांगयांग में केसर के पौधों में पुष्पों का विकास प्रारंभ हो गया है। यहाँ केसर की खेती केंद्र सरकार द्वारा पूर्वोत्तर क्षेत्र में केसर की खेती की अनुकूलता का पता लगाने के लिये शुरु की गयी एक परियोजना के अंतर्गत हो रही है।
प्रमुख बिंदु
- केसर:
- केसर एक पौधा है जिसके सूखे वर्तिकाग्र (फूल के धागे जैसे भाग) का उपयोग केसर का मसाला बनाने के लिये किया जाता है।
- माना जाता है कि पहली शताब्दी ईसा पूर्व के आस पास मध्य एशियाई प्रवासियों द्वारा कश्मीर में केसर की खेती शुरू की गई थी।
- यह पारंपरिक कश्मीरी व्यंजनों के साथ जुड़ा हुआ है और क्षेत्र की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत का प्रतिनिधित्व करता है।
- यह बहुत कीमती और महंगा उत्पाद है।
- प्राचीन संस्कृत साहित्य में केसर को 'बहुकम (Bahukam)’ कहा गया है।
- केसर की खेती विशेष प्रकार की ‘करेवा’ (Karewa)’ मिट्टी में की जाती है।
- महत्त्व:
- यह स्वास्थ्य, सौंदर्य प्रसाधन और औषधीय प्रयोजनों के लिये उपयोग किया जाता है।
- यह पारंपरिक कश्मीरी व्यंजनों के साथ जुड़ा हुआ है और क्षेत्र की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत का प्रतिनिधित्व करता है।
- मौसम:
- भारत में, केसर की खेती जून और जुलाई के महीनों के दौरान और अगस्त और सितंबर में कुछ स्थानों पर की जाती है।
- यह अक्तूबर में पुष्प पल्लवित होना शुरू करता है।
- केसर की कृषि हेतु आवश्यक दशाएँ:
- समुद्र तल से 2000 मीटर की ऊँचाई केसर की खेती के लिये अनुकूल होती है।
- मृदा: यह कई अलग-अलग मृदा के प्रकारों में बढ़ता है लेकिन यह Calcareous (वह मिट्टी जिसमें प्रचुर मात्रा में कैल्शियम कार्बोनेट होता है), मिट्टी में 6 और 8 pH मान वाली और अच्छी तरह से सूखी मिट्टी में केसर सबसे अच्छा पनपता है।
- जलवायु: केसर की खेती के लिये एक स्पष्ट गर्मी और सर्दियों वाली जलवायु की आवश्यकता होती है, जिसमें गर्मियों में तापमान 35 या 40 डिग्री सेल्सियस से अधिक नहीं होता हो तथा सर्दियों में लगभग 15 डिग्री सेल्सियस होता हो।
- वर्षा: इसके लिये पर्याप्त वर्षा की आवश्यकता होती है जो प्रतिवर्ष 1000-1500 मिमी. होती है।
- भारत में केसर उत्पादन क्षेत्र:
- केसर उत्पादन लंबे समय तक जम्मू और कश्मीर केंद्रशासित प्रदेश में एक सीमित भौगोलिक क्षेत्र तक ही सीमित रहा है।
- पंपोर क्षेत्र, जिसे आमतौर पर कश्मीर के केसर के कटोरे के रूप में जाना जाता है, केसर उत्पादन में मुख्य योगदानकर्त्ता है।
- कश्मीर का पंपोर केसर, भारत में विश्व स्तर पर महत्त्वपूर्ण कृषि विरासत प्रणालियों (Globally Important Agricultural Heritage systems) की मान्यता प्राप्त साइटों में से एक है।
- केसर का उत्पादन करने वाले अन्य ज़िले बडगाम, श्रीनगर और किश्तवाड़ हैं।
- हाल ही में कश्मीरी केसर को भौगोलिक संकेतक (जीआई) टैग का दर्जा मिला।
- भारत में उत्पादन और मांग:
- भारत में लगभग 6 से 7 टन केसर की खेती होती है जबकि मांग 100 टन की है।
- विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्रालय (Ministry of Science and Technology) के माध्यम से विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग (Department of Science and Technology) केसर की बढ़ती मांग को पूरा करने के लिये अब पूर्वोत्तर (सिक्किम, मेघालय और अरुणाचल प्रदेश) के कुछ राज्यों में इसकी खेती को प्रोत्साहित कर रहा है। कश्मीर और पूर्वोत्तर के कुछ क्षेत्रों के बीच जलवायु और भौगोलिक परिस्थितियों में एक बड़ी समानता है। इस परियोजना को सिक्किम के ‘बॉटनी और हॉर्टिकल्चर विभाग’ के सहयोग से लागू किया गया है।
- लाभ
- केसर उत्पादन के विस्तार से भारत में वार्षिक मांग को पूरा करने में मदद मिलेगी।
- यह आयात कम करने में मदद करेगा।
- यह कृषि में विविधता भी लाएगा और किसानों को पूर्वोत्तर में नए अवसर प्रदान करेगा।
- अन्य पहल:
- केंद्र सरकार द्वारा वर्ष 2010 में नलकूपों और फव्वारा सिंचाई सुविधाओं के निर्माण में सहायता प्रदान करने के लिये राष्ट्रीय केसर मिशन को मंज़ूरी दी गई थी, जो केसर उत्पादन के क्षेत्र में बेहतर फसलों के उत्पादन में मदद करेगा।
- हाल ही में, हिमालय जैवसंपदा प्रौद्योगिकी संस्थान (CSIR-Institute of Himalayan Bioresource Technology) और हिमाचल प्रदेश सरकार ने संयुक्त रूप से दो मसालों (केसर और हींग) के उत्पादन में वृद्धि करने का फैसला किया है।
- इस योजना के तहत, IHBT निर्यातक देशों से केसर की नई किस्मों को लाएगा तथा भारतीय परिस्थितियों के अनुसार इसको मानकीकृत (Standardized) करेगा।
आगे की राह:
- राष्ट्रीय केसर मिशन और पूर्वोत्तर के लिये केसर उत्पादन के विस्तार जैसे प्रयासों से कृषि क्षेत्र में विविधता लाने में मदद मिलेगी। यह कृषि क्षेत्र में आत्मनिर्भर भारत अभियान को भी लागू करेगा।
करेवा (Karewa):
- करेवा कश्मीर घाटी में पाए जाने वाली झील निक्षेप (मृदा) है।
- यह जम्मू-कश्मीर में पीरपंजाल श्रेणियों की ढालों में 1,500 से 1,850 मीटर की ऊँचाई पर मिलता है।
हिमालय जैवसंपदा प्रौद्योगिकी संस्थान (IHBT):
- इसकी स्थापना भारत सरकार द्वारा सितंबर, 1942 में एक स्वायत्त निकाय के रूप में की गई थी।
- हिमालय जैवसंपदा प्रौद्योगिकी संस्थान द्वारा संपूर्ण भारत में CSIR की मौजूदगी में 38 राष्ट्रीय प्रयोगशालाओं, 39 दूरस्थ केंद्रों, 3 नवोन्मेषी कॉम्प्लेक्सों और 5 यूनिटों के सक्रिय नेटवर्क का संचालन किया जा रहा है।
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
अंतर्राष्ट्रीय संबंध
एससीओ का 20वाँ सम्मेलन
प्रिलिम्स के लिये:शंघाई सहयोग संगठन, अंतर्राष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण परिवहन कॉरिडोर, चाबहार बंदरगाह, अश्गाबात समझौता मेन्स के लिये:SCO परिषद के सदस्य देशों के प्रमुखों का 20वाँ सम्मेलन |
चर्चा में क्यों?
10 नवंबर, 2020 को वीडियो कॉन्फ्रेंस के माध्यम से शंघाई सहयोग संगठन (SCO) के सदस्य देशों के प्रमुखों का 20वाँ सम्मेलन आयोजित किया गया। इसकी अध्यक्षता रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने की।
प्रमुख बिंदु:
- इस सम्मेलन में भारतीय प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्त्व प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने किया।
- इसके अतिरिक्त SCO सचिवालय के महासचिव, एससीओ क्षेत्रीय आतंकरोधी तंत्र के कार्यकारी निदेशक के साथ-साथ 4 पर्यवेक्षक देशों- अफगानिस्तान, बेलारूस, ईरान और मंगोलिया के राष्ट्रपतियों ने भी इस बैठक में भाग लिया।
- वर्चुअल माध्यम से यह पहला SCO सम्मेलन है और वर्ष 2017 में भारत के इस संगठन के पूर्णकालिक सदस्य बनने के बाद तीसरा सम्मेलन है।
भारत का पक्ष:
- COVID-19 और बहुपक्षीय सुधार: प्रधानमंत्री ने COVID-19 महामारी के बाद विश्व में सामाजिक एवं आर्थिक विषमताओं से निपटने के लिये तत्काल प्रभाव से बहुपक्षीय सुधार की आवश्यकता को रेखांकित किया।
- भारत, संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) के अस्थायी सदस्य के रूप में 1 जनवरी, 2021 से वैश्विक प्रशासन व्यवस्था में अपेक्षित बदलाव के लिये ‘बहुपक्षीय सुधार’ (Reformed Multilateralism) की थीम पर अपना ध्यान केंद्रित करेगा।
- क्षेत्रीय शांति एवं सुरक्षा: प्रधानमंत्री ने क्षेत्रीय शांति, सुरक्षा एवं विकास के प्रति भारत की दृढ़ता को पुनः दोहराया और आतंकवाद, हथियारों तथा नशीले पदार्थों की अवैध तस्करी तथा मनी लॉन्ड्रिंग की चुनौतियों का उल्लेख किया।
- गौरतलब है कि भारत के सैनिक संयुक्त राष्ट्र संघ के लगभग 50 शांति मिशनों में शामिल हो चुके हैं।
- भारत का औषधि उद्योग COVID-19 के दौरान 150 से अधिक देशों को आवश्यक दवाओं की आपूर्ति कर रहा है।
- सांस्कृतिक एवं ऐतिहासिक संबंध: प्रधानमंत्री ने SCO के अंतर्गत आने वाले भौगोलिक क्षेत्र में भारत के मज़बूत सांस्कृतिक एवं ऐतिहासिक संबंधों को रेखांकित किया और अंतर्राष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण परिवहन काॅरिडोर, चाबहार बंदरगाह तथा अश्गाबात समझौते जैसे क्षेत्रीय संपर्क को बढ़ावा देने वाले समझौतों के प्रति भारत की प्रतिबद्धता दोहराई।
- क्षेत्रीय अखंडता एवं संप्रभुता: पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर में चीन की बुनियादी ढाँचा परियोजनाओं के संदर्भ में प्रधानमंत्री ने SCO के सदस्यों से ‘क्षेत्रीय अखंडता’ एवं ‘संप्रभुता’ का सम्मान करने का आग्रह किया।
- SCO से संबंधित सांस्कृतिक पहल: SCO को लेकर भारत में शुरू की गयी पहलों में भारत के राष्ट्रीय संग्रहालय द्वारा साझी बौद्ध विरासत पर पहली प्रदर्शनी का आयोजन, वर्ष 2021 में भारत में ‘SCO फूड फेस्टिवल’ का आयोजन और साहित्यिक प्रयास के क्रम में 10 क्षेत्रीय भाषाओं का रूसी एवं चीनी भाषा में अनुवाद शामिल है।
- इस सम्मेलन में भारत ने सदस्य देशों के समक्ष नवाचार एवं स्टार्टअप्स के लिये ‘विशिष्ट कार्य समूह’ (Special Working Group) के गठन तथा पारंपरिक दवाओं पर एक उप-समूह के गठन का भी प्रस्ताव रखा।
उल्लेखनीय है कि SCO समिट की अगली नियमित बैठक 30 नवंबर, 2020 को वर्चुअल प्रारूप में होनी है जिसकी मेज़बानी भारत करेगा।
चीन का पक्ष:
- इस सम्मेलन में चीनी राष्ट्रपति ने कहा कि शंघाई सहयोग संगठन के सदस्यों को आपसी विश्वास को और अधिक मज़बूत करना चाहिये तथा बातचीत एवं परामर्श के माध्यम से विवादों व मतभेदों को हल करना चाहिये, साथ ही आतंकवादी, अलगाववादी और चरमपंथी ताकतों से दृढ़ता से निपटना चाहिये।
- गौरतलब है कि चीनी राष्ट्रपति के इस वक्तव्य को विश्लेषक पूर्वी लद्दाख में भारत और चीन के बीच छह महीने से अधिक समय से सीमा गतिरोध की पृष्ठभूमि के परिप्रेक्ष्य में देख रहे हैं।
- SCO के देशों को किसी भी तरीके से अपने आंतरिक मामलों में बाहरी शक्तियों के दखल का पूरी तरह विरोध करना चाहिये।
- चीन के इस वक्तव्य को अक्तूबर 2020 में जापान के टोक्यो में संपन्न हुई क्वाड (Quad) विदेश मंत्रियों की बैठक के परिप्रेक्ष्य में देखा जा रहा है, जो 'मुक्त, खुले और समृद्ध' भारत-प्रशांत क्षेत्र के लिये समर्थन हेतु भारत-अमेरिका-जापान-ऑस्ट्रेलिया देशों को एक मंच पर लाता है।
- ‘चतुर्भुज सुरक्षा संवाद’ (Quadrilateral Security Dialogue) अर्थात् क्वाड भारत, अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया के बीच अनौपचारिक रणनीतिक वार्ता मंच है।
- चीन के इस वक्तव्य को अक्तूबर 2020 में जापान के टोक्यो में संपन्न हुई क्वाड (Quad) विदेश मंत्रियों की बैठक के परिप्रेक्ष्य में देखा जा रहा है, जो 'मुक्त, खुले और समृद्ध' भारत-प्रशांत क्षेत्र के लिये समर्थन हेतु भारत-अमेरिका-जापान-ऑस्ट्रेलिया देशों को एक मंच पर लाता है।
स्रोत: पीआईबी
भूगोल
धारचूला क्षेत्र में भूकंपीय सांद्रता
प्रिलिम्स के लिये:भूकंप, केंद्रीय भूकंपीय अंतराल, विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग, वाडिया हिमालय भू-विज्ञान संस्थान मेन्स के लिये:हिमालयी क्षेत्र में भूकंप के कारण |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में, वाडिया हिमालय भूविज्ञान संस्थान (Wadia Institute of Himalayan Geology) के वैज्ञानिकों ने धारचूला (Dharchula) क्षेत्र और कुमाऊँ हिमालय के आसपास के क्षेत्रों में सूक्ष्म तथा मध्यम तीव्रता के भूकंपों की बड़ी सक्रियता का पता लगाया है।
- WIHG भारत सरकार के विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग (Department of Science and Technology) के तहत स्थित एक स्वायत्त संस्थान है।
मुख्य बिंदु
- स्थान:
- उत्तराखंड के धारचूला को चीन सीमा पर स्थित लिपुलेख से जोड़ने वाली नई कैलाश मानसरोवर सड़क से करीब 45 किमी. दूर पृथ्वी के निचले हिस्से में बड़ी गतिविधि का पता चला है।
- हिमालय, देश में सबसे अधिक विवर्तनिक और भूकंपीय रूप से सक्रिय क्षेत्रों में से एक है, फिर भी इस इलाके को केंद्रीय भूकंपीय अंतराल (Central Seismic Gap) क्षेत्र या गैप (Gap) के रूप में जाना जाता है।
- गैप एक शब्द है जिसका उपयोग विवर्तनिक गतिविधि (Tectonic Activity) वाले क्षेत्र को दर्शाने के लिये किया जाता है।
- कार्यप्रणाली (Methodology):
- सघन भूकंपों के कारण इस क्षेत्र की सही-सही जाँच और मैपिंग शुरू की गई।
- पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय (Ministry of Earth Sciences) के सहयोग से कुमाऊँ हिमालय क्षेत्र में उपसतह विन्यास की जाँच करने के लिये काली नदी घाटी के किनारे 15 ब्रॉडबैंड भूकंपीय स्टेशनों का एक भूकंपीय नेटवर्क स्थापित किया गया है।
- परिणाम:
- भूगर्भीय तनाव के कारण भूकंपीय गतिविधियाँ रिकॉर्ड की गईं। इसलिये भविष्य में इस क्षेत्र में उच्च तीव्रता के भूकंप की भी संभावना है।
- वर्षों से यहाँ भूकंप के झटके महसूस किये जा रहे हैं। यहाँ कई छोटे भूकंप आए हैं और भूगर्भीय तनाव बढ़ता जा रहा है।
- इस क्षेत्र में एक उच्च तीव्रता के भूकंप की संभावना है। हालाँकि भूकंप आने के बारे में सटीक भविष्यवाणी करना संभव नहीं है।
स्रोत: इंडियन इक्सप्रेस
अंतर्राष्ट्रीय संबंध
आर्मेनिया और अज़रबैजान के बीच शांति समझौता
प्रिलिम्स के लियेआर्मेनिया और अज़रबैजान की भौगोलिक स्थिति, नागोर्नो-काराबाख की भौगोलिक अवस्थिति मेन्स के लियेआर्मेनिया और अज़रबैजान के मध्य विवाद की पृष्ठभूमि और रूस की भूमिका, इस विवाद का भारत पर प्रभाव |
चर्चा में क्यों?
आर्मेनिया, अज़रबैजान और रूस ने विवादित क्षेत्र नागोर्नो-काराबाख (Nagorno-Karabakh) में चल रहे सैन्य संघर्ष को समाप्त करने के लिये एक शांति समझौते पर हस्ताक्षर किये हैं।
प्रमुख बिंदु
- वर्ष 1991 में सोवियत संघ के विघटन के बाद शुरू हुए इस विवाद के कारण अब तक हज़ारों लोगों को अपनी जान गँवानी पड़ी है और इसके कारण बड़ी संख्या में लोग विस्थापित हुए हैं, इसी कारण इस विवाद को बीते कुछ वर्षों का सबसे गंभीर विवाद माना जाता है।
- आर्मेनिया और अज़रबैजान के बीच सैन्य संघर्ष को समाप्त करने के उद्देश्य से किये गए इस समझौते पर आर्मेनिया, अज़रबैजान और रूस (तीनों देशों) के प्रतिनिधियों ने हस्ताक्षर किये हैं।
- हालाँकि सितंबर माह में संघर्ष की शुरुआत के बाद से दोनों देशों के बीच युद्धविराम को लेकर कई समझौते किये गए हैं, किंतु इनमें से कोई भी सफल नहीं हो पाया है।
नया शांति समझौता
- शांति समझौते के मुताबिक दोनों देश सीमा पर अपनी यथास्थिति बनाए रखेंगे यानी वे उस क्षेत्र से आगे नहीं बढ़ेंगे, जहाँ उनकी सेनाएँ अभी मौजूद हैं।
- समझौते के इस प्रावधान से अज़रबैजान को काफी लाभ होगा, क्योंकि उसने सितंबर माह (जब संघर्ष की शुरुआत हुई थी) की तुलना में 15-20 प्रतिशत से अधिक क्षेत्र प्राप्त कर लिया है।
- सभी प्रकार के सैन्य अभियानों को निलंबित कर दिया गया है और रूस की शांति सेना को विवादित क्षेत्र नागोर्नो-काराबाख तथा इस क्षेत्र को आर्मेनिया से जोड़ने वाले लाचिन कॉरिडोर में तैनात किया जाएगा। लगभग 2000 सैनिकों वाली यह शांति सेना पाँच वर्ष की अवधि के लिये इस क्षेत्र में तैनात की जाएगी।
- शरणार्थी और आंतरिक रूप से विस्थापित लोग इस क्षेत्र और आस-पास के क्षेत्रों में वापस लौट सकेंगे तथा दोनों पक्ष युद्धबंदियों का भी आदान-प्रदान करेंगे।
- इस कार्य के लिये नखचिवन (Nakhchivan) से अज़रबैजान तक एक नया कॉरिडोर शुरू किया जाएगा, जो कि रूस के नियंत्रण में होगा।
समझौते की आलोचना
- इस नए शांति समझौते के प्रावधान के कारण आर्मेनिया को काफी नुकसान का सामना करना पड़ेगा, यही कारण है कि इस शांति समझौते को लेकर आर्मेनिया की संसद में विरोध भी प्रकट किया जा रहा है।
- कई जानकार इस शांति समझौते को आर्मेनिया और अज़रबैजान के बीच शुरू हुए सैन्य संघर्ष में अज़रबैजान की जीत के रूप में देख रहे हैं।
रूस का पक्ष
- आर्मेनिया और अज़रबैजान के बीच लंबे समय से चल रहे इस विवाद में रूस की भूमिका अस्पष्ट है, क्योंकि रूस ने दोनों ही देशों के साथ संबंध स्थापित किये हुए हैं और वह दोनों देशों को हथियारों की आपूर्ति भी करता है।
- आर्मेनिया में रूस का एक सैन्य अड्डा है, साथ ही आर्मेनिया, रूस के नेतृत्व वाले ‘सामूहिक सुरक्षा संधि संगठन’ (CSTO) का सदस्य भी है।
- इस संधि के मुताबिक, यदि आर्मेनिया पर किसी भी देश द्वारा हमला किया जाता है तो रूस, आर्मेनिया को सैन्य सहायता प्रदान करेगा, हालाँकि इस संधि के तहत विवादित क्षेत्र नागोर्नो-काराबाख को शामिल नहीं किया गया है।
- इस तरह रूस के हित दोनों ही देशों के साथ जुड़े हुए हैं, इस दृष्टि से रूस के लिये यह शांति समझौता काफी महत्त्वपूर्ण माना जा सकता है।
आर्मेनिया-अज़रबैजान विवाद और जातीयता की भूमिका
- वर्ष 1918 में आर्मेनिया और अज़रबैजान रूसी साम्राज्य से स्वतंत्र हुए और वर्ष 1921 में वे सोवियत गणराज्य का हिस्सा बन गए।
- 1920 के दशक के प्रारंभ में दक्षिण काकेशस में सोवियत शासन लागू किया गया और तत्कालीन सोवियत सरकार ने तकरीबन 95 प्रतिशत अर्मेनियाई आबादी वाले नागोर्नो-करबाख क्षेत्र को अज़रबैजान के भीतर एक स्वायत्त क्षेत्र बना दिया।
- यद्यपि स्वायत्त क्षेत्र बनने के बाद भी इस क्षेत्र को लेकर दोनों देशों (आर्मेनिया और अज़रबैजान) के बीच संघर्ष जारी रहा, हालाँकि सोवियत शासन के दौरान दोनों देशों के बीच संघर्ष रोक दिया गया।
- लेकिन जैसे ही सोवियत संघ के पतन की शुरुअत हुई,आर्मेनिया और अज़रबैजान पर उसकी पकड़ भी कमज़ोर होती गई। इसी दौरान वर्ष 1988 में अज़रबैजान की सीमा के भीतर होने के बावजूद नागोर्नो-काराबाख की विधायिका ने आर्मेनिया में शामिल होने का प्रस्ताव पारित किया।
- वर्ष 1991 में सोवियत संघ का विघटन हो गया और नागोर्नो-काराबाख स्वायत्त क्षेत्र ने एक जनमत संग्रह के माध्यम से स्वयं को स्वतंत्र घोषित कर दिया, वहीं अज़रबैजान ने इस जनमत संग्रह को मानने से इनकार कर दिया।
- सोवियत संघ के विघटन के साथ ही रणनीतिक रूप से महत्त्वपूर्ण इस क्षेत्र को लेकर आर्मेनिया और अज़रबैजान के बीच भी युद्ध की शुरुआत हो गई।
- उल्लेखनीय है कि आर्मेनिया और अज़रबैजान दोनों ही समय-समय पर एक-दूसरे के ऊपर नागोर्नो-काराबाख स्वायत्त क्षेत्र में जातीय नरसंहार का आरोप लगाते रहे हैं।
- अधिकतर जानकार जातीय तनाव को आर्मेनिया और अज़रबैजान के बीच इस संघर्ष का मुख्य कारण मानते हैं। जहाँ एक ओर अज़रबैजान का दावा है कि विवादित नागोर्नो-काराबाख क्षेत्र इतिहास में उसके नियंत्रण में था, वहीं आर्मेनियाई लोगों का मानना है कि यह क्षेत्र पूर्व में आर्मेनियाई साम्राज्य का एक हिस्सा था।
- वर्तमान में इस क्षेत्र के जातीय तनाव को इस बात से समझा जा सकता है कि यह क्षेत्र मुस्लिम-बहुल अज़रबैजान का हिस्सा है और यहाँ बहुसंख्यक आर्मेनियाई ईसाई आबादी निवास करती है।
नागोर्नो-काराबाख क्षेत्र
- पश्चिमी एशिया और पूर्वी यूरोप में फैले हुए नागोर्नो-काराबाख को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अज़रबैजान के एक हिस्से के रूप में मान्यता प्राप्त है, किंतु इस क्षेत्र का अधिकांश हिस्सा आर्मेनियाई अलगाववादियों द्वारा नियंत्रित किया जाता है।
- यह दक्षिण-पश्चिमी अज़रबैजान में स्थित एक पहाड़ी क्षेत्र है, जो कि तकरीबन 4,400 वर्ग किलोमीटर (1,700 वर्ग मील) तक फैला हुआ है।
- आर्मेनिया और अज़रबैजान के बीच विवादित नागोर्नो-काराबाख स्वायत्त क्षेत्र आर्मेनिया की अंतर्राष्ट्रीय सीमा से केवल 50 किलोमीटर (30 मील) दूर स्थित है।
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
भारतीय अर्थव्यवस्था
भारत की वित्तीय प्रणाली का डिजिटलीकरण
प्रिलिम्स के लिये:RuPay कार्ड, भारतीय राष्ट्रीय भुगतान निगम, केंद्रीय सतर्कता आयोग, केंद्रीय जाँच ब्यूरो, भारत का नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक मेन्स के लिये:भारत की वित्तीय प्रणाली का डिजिटलीकरण |
चर्चा में क्यों:
हाल ही में केंद्रीय वित्त मंत्री ने ‘भारतीय बैंक संघ’ (Indian Banks’ Association- IBA) की 73वीं सामान्य वार्षिक बैठक में कहा कि बैंकों को ऋण देने से नहीं बचना चाहिये, खासकर जब अर्थव्यवस्था बड़ी चुनौतियों का सामना कर रही है।
प्रमुख बिंदु:
- केंद्रीय वित्त मंत्री ने कहा कि ऋणदाता संस्थानों को सभी भारतीय ग्राहकों के लिये सबसे पहले रुपे कार्ड (Rupay Card) की पेशकश करनी चाहिये, गैर-डिजिटल भुगतान को हतोत्साहित करना चाहिये और 31 मार्च, 2021 तक ग्राहक के आधार नंबर के साथ प्रत्येक बैंक खाते को जोड़ना चाहिये।
- RuPay भारत में अपनी तरह का पहला घरेलू डेबिट और क्रेडिट कार्ड भुगतान नेटवर्क है।
- यह नाम रुपे (Rupee) और पेमेंट (Payment) दो शब्दों से मिलकर बना है जो इस बात पर ज़ोर देता है कि यह डेबिट और क्रेडिट कार्ड भुगतानों के लिये भारत की स्वयं की पहल है।
- इस कार्ड का उपयोग सिंगापुर, भूटान, संयुक्त अरब अमीरात (UAE), बहरीन और सऊदी अरब में लेन-देन के लिये भी किया जा सकता है।
- जनवरी 2020 तक 600 मिलियन से अधिक RuPay कार्ड धारक थे।
- भारतीय बैंकों को केंद्रीय सतर्कता आयोग (CVC) के तहत प्रशिक्षण भी दिया जा रहा है ताकि वे तीन ‘C’ [केंद्रीय सतर्कता आयोग (CVC), केंद्रीय जाँच ब्यूरो (Central Bureau of Investigation) और भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (Comptroller and Auditor General of India)] के साथ सामंजस्य स्थापित कर सकें। यह उन्हें विवेकपूर्ण जोखिम लेने और बिना किसी डर के उधार देने में सक्षम बनाएगा।
क्रेडिट विस्तार और वित्तीय प्रणाली में अधिक बैंकों का प्रवेश:
- हाल ही में मुख्य आर्थिक सलाहकार कृष्णमूर्ति वी सुब्रमण्यम ने वित्तीय प्रणाली में अधिक-से-अधिक प्रतिस्पर्द्धा सुनिश्चित करने के साथ-साथ क्रेडिट प्रसार के लिये अधिक बैंकों के प्रवेश की ज़रूरत का उल्लेख किया था।
- भारत में लगभग 500-600 बैंक हैं जिनमें क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक भी शामिल हैं, जबकि संयुक्त राज्य अमेरिका के पास भारत की एक-चौथाई जनसंख्या होने के बावजूद कुल 26,000 बैंक हैं।
- यद्यपि केवल आधा दर्जन बड़े बैंक ही अमेरिकी वित्तीय प्रणाली पर हावी हैं, छोटे बैंक अधिकतर MSME के ऋणदाता के रूप में कार्य करते हैं। इस प्रकार ये बैंक अमेरिकी अर्थव्यवस्था में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
- उल्लेखनीय है कि विश्व के शीर्ष 100 में केवल एक भारतीय बैंक (SBI) शामिल है, जबकि चीन के 18 बैंक हैं।
वित्तीय समावेशन:
- भारत में वित्तीय समावेशन में हाल के वर्षों में तेज़ी से प्रगति देखी गई है किंतु इसे और आगे बढ़ाने की ज़रूरत है।
- वित्तीय समावेशन कम आय वाले लोग और समाज के वंचित वर्ग को वहनीय कीमत पर भुगतान, बचत, ऋण आदि सहित वित्तीय सेवाएँ पहुँचाने का प्रयास है। इसे ‘समावेशी वित्तपोषण’ भी कहा जाता है।
- वित्तीय समावेशन का मुख्य उद्देश्य उन प्रतिबंधों को दूर करना है जो वित्तीय क्षेत्र में भाग लेने से लोगों को बाहर रखते हैं और बिना किसी भेदभाव के उनकी विशिष्ट आवश्यकताओं को पूरा करने के लिये वित्तीय सेवाओं को उपलब्ध कराना है।
वित्तीय समावेशन से संबंधित भारत सरकार की पहल:
- जैम (JAM) ट्रिनिटी: [जनधन-आधार-मोबाइल]
- आधार, प्रधानमंत्री जनधन योजना और मोबाइल संचार में वृद्धि ने नागरिकों तक सरकारी सेवाओं के पहुँचने का तरीका बदल दिया है।
- एक अनुमान के अनुसार, अब तक लगभग 42 करोड़ जनधन बैंक खाते खोले जा चुके हैं।
- व्यक्तिगत पहचान की अवधारणा में महत्त्वपूर्ण बदलाव के साथ आधार न केवल एक सुरक्षित और आसानी से सत्यापन योग्य प्रणाली है, बल्कि वित्तीय समावेशन की प्रक्रिया में यह एक महत्त्वपूर्ण टूल है।
- आधार, प्रधानमंत्री जनधन योजना और मोबाइल संचार में वृद्धि ने नागरिकों तक सरकारी सेवाओं के पहुँचने का तरीका बदल दिया है।
- ग्रामीण और अर्द्ध-शहरी क्षेत्रों में वित्तीय सेवाओं का विस्तार:
- भारतीय रिज़र्व बैंक और नाबार्ड ने ग्रामीण क्षेत्रों में वित्तीय समावेशन को बढ़ावा देने की दिशा में कार्य किया है।
- डिजिटल पेमेंट को बढ़ावा:
- भारतीय राष्ट्रीय भुगतान निगम (National Payments Corporation of India-NPCI) द्वारा यूनिफाइड पेमेंट इंटरफेस को मज़बूत करने के साथ ही पूर्व की तुलना में डिजिटल भुगतान को सुरक्षित बनाया गया है।
- आधार सक्षम भुगतान प्रणाली, आधार सक्षम बैंक खाते किसी भी समय या स्थान पर माइक्रो एटीएम का उपयोग करने में सक्षम बनाते हैं।
- ऑफलाइन लेन-देन में सक्षम बनाने वाले प्लेटफॉर्म ‘अवसंरचनात्मक पूरक सेवा डेटा’ (Unstructured Supplementary Service Data-USSD) के कारण भुगतान प्रणाली को और अधिक सुलभ बनाया गया है , जिससे सामान्य मोबाइल हैंडसेट पर भी इंटरनेट के बिना मोबाइल बैंकिंग सेवाओं का उपयोग करना संभव हो जाता है।
- वित्तीय साक्षरता:
- भारतीय रिज़र्व बैंक ने ‘वित्तीय साक्षरता’ नामक एक परियोजना शुरू की है जिसका उद्देश्य केंद्रीय बैंक और सामान्य बैंकिंग अवधारणाओं के बारे में विभिन्न लक्षित समूहों जिनमें स्कूल और कॉलेज जाने वाले बच्चे, महिलाएँ, ग्रामीण और शहरी गरीब और वरिष्ठ नागरिक शामिल हैं, को वित्तीय जानकारी उपलब्ध कराना है।
- भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (Securities and Exchange Board of India-SEBI) और नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ सिक्योरिटीज़ मार्केट्स (National Institute of Securities Markets-NISM’s) ने ‘पॉकेट मनी’ नामक एक प्रमुख कार्यक्रम लॉन्च किया है, जिसका उद्देश्य स्कूली छात्रों में वित्तीय साक्षरता बढ़ाना है।
भारतीय बैंक संघ
(Indian Banks’ Association):
- इसका गठन वर्ष 1946 में हुआ था।
- यह भारत में कार्यरत बैंकिंग प्रबंधन का एक प्रतिनिधि निकाय है अर्थात् भारतीय बैंकों और मुंबई में स्थित वित्तीय संस्थानों का एक संघ है।
- IBA का गठन भारतीय बैंकिंग के विकास, समन्वय एवं मज़बूती के लिये किया गया था।
- यह नई प्रणालियों के कार्यान्वयन एवं सदस्यों के बीच मानकों को अपनाने सहित विभिन्न तरीकों से सदस्य बैंकों की सहायता करता है।
- वर्ष 1946 में प्रारंभिक तौर पर भारत में 22 बैंकों का प्रतिनिधित्त्व करने वाले एक निकाय के रूप में वर्तमान में IBA, भारत में कार्यरत 237 बैंकिंग कंपनियों का प्रतिनिधित्त्व करता है।