डेली न्यूज़ (11 Aug, 2023)



भारतीय वेब ब्राउज़र डेवलपमेंट चैलेंज

प्रिलिम्स के लिये:

भारतीय वेब ब्राउज़र डेवलपमेंट चैलेंज, प्रमाणन प्राधिकरण नियंत्रक, सिक्योर सॉकेट लेयर, आत्मनिर्भर भारत

मेन्स के लिये:

भारतीय वेब ब्राउज़र डेवलपमेंट चैलेंज

चर्चा में क्यों?

हाल ही में इलेक्ट्रॉनिक्स एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय (Ministry of Electronics & Information Technology- MeitY) ने वैश्विक उपयोग हेतु एक स्वदेशी भारतीय वेब ब्राउज़र बनाने के लिये डेवलपर्स को आमंत्रित करने हेतु भारतीय वेब ब्राउज़र डेवलपमेंट चैलेंज (IWBDC) का शुभारंभ किया।

  • इस प्रतियोगिता की एक प्रमुख शर्त है कि ब्राउज़र का प्रारूप प्रमाणन प्राधिकरण नियंत्रक (सिक्योर सॉकेट्स लेयर प्रमाणपत्रों सहित डिजिटल हस्ताक्षरों के लिये ज़िम्मेदार भारत सरकार का प्राधिकरण) के अनुरूप होना चाहिये।

वेब ब्राउज़र

  • वेब ब्राउज़र www (वर्ल्ड वाइड वेब) को एक्सप्लोर करने के लिये एक एप्लीकेशन सॉफ्टवेयर है। यह सर्वर और क्लाइंट के बीच एक इंटरफेस प्रदान करता है और वेब दस्तावेज़ों तथा विभिन्न सेवाओं के निर्गमन लिये सर्वर का उपयोग करता है।
  • यह HTML बनाने के लिये एक कंपाइलर के रूप में काम करता है जिसका उपयोग वेब पेज को डिज़ाइन करने हेतु किया जाता है।
  • जब हम इंटरनेट पर कुछ भी खोजते हैं, तो ब्राउज़र HTML में लिखा एक वेब पेज लोड करता है, जिसमें टेक्स्ट, लिंक, इमेज और स्टाइलशीट तथा जावा स्क्रिप्ट फंक्शन जैसे अन्य आइटम शामिल होते हैं।
  • गूगल क्रोम, माइक्रोसॉफ्ट एज़, मोज़िला फायरफॉक्स और सफारी वेब ब्राउज़र के उदाहरण हैं।

भारतीय वेब ब्राउज़र डेवलपमेंट चैलेंज:

  • परिचय:
    • यह एक प्रकार की प्रतियोगिता है जिसमें सभी हिस्सा ले सकते हैं और यह देश के सभी क्षेत्रों से प्रौद्योगिकी के प्रति उत्साही नवप्रवर्तकों और डेवलपर्स को एक स्वदेशी वेब ब्राउज़र तैयार करने को प्रेरित एवं सशक्त बनाने का प्रयास करती है।
    • यह इनबिल्ट CCA इंडिया रूट सर्टिफिकेट, अत्याधुनिक और उन्नत कार्यक्षमता के साथ सुरक्षा एवं डेटा गोपनीयता सुरक्षा सुविधाएँ सहित स्वयं के ट्रस्ट स्टोर के साथ एक स्वदेशी वेब ब्राउज़र होगा।
    • IWBDC का नेतृत्व MeitY, CCA और C-DAC बंगलूरू द्वारा किया जाता है।
    • इस प्रतियोगिता का आयोजन और वित्तपोषण सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय के अनुसंधान एवं विकास प्रभाग तथा भारत के नेशनल इंटरनेट एक्सचेंज के सहयोग से किया जा रहा है।
  • उद्देश्य:
    • अच्छे यूज़र इंटरफ़ेस के साथ विभिन्न प्रकार के उपयोगकर्त्ताओं के लिये एक सुलभ और उपयोग करने में आसान ब्राउज़र उपलब्ध कराना।
    • इसके अलावा इस ब्राउज़र में क्रिप्टो टोकन का उपयोग करके दस्तावेज़ों पर डिजिटल हस्ताक्षर करने की क्षमता होनी चाहिये ताकि सुरक्षित लेन-देन और डिजिटल इंटरैक्शन को बढ़ावा दिया जा सके।
  • महत्त्व:
    • यह चैलेंज आत्मनिर्भर भारत की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम है, जिसे भारतीय वेब ब्राउज़र के विकास के माध्यम से भारत की डिजिटल संप्रभुता को मज़बूत करने के लिये डिज़ाइन किया जाना है।
    • यह उपयोगकर्त्ताओं के लिये इंटरनेट तक पहुँच प्राप्त करने के सबसे अहम साधन (वेब ब्राउज़र) पर केंद्रित है।

सिक्योर सॉकेट्स लेयर (SSL) सर्टिफिकेट:

  • परिचय:
    • यह एक डिजिटल प्रमाणपत्र है जो किसी वेबसाइट की पहचान को प्रमाणित करने के साथ ही एन्क्रिप्टेड/सुरक्षित कनेक्शन की सुविधा प्रदान करता है।
    • यह एक सुरक्षा प्रोटोकॉल है जो वेब सर्वर और वेब ब्राउज़र के बीच एक एन्क्रिप्टेड लिंक बनाता है।
    • ऑनलाइन लेन-देन को सुरक्षित रखने तथा ग्राहकों की निजी जानकारी को गोपनीय रखने के लिये कंपनियों और संगठनों के लिये अपनी वेबसाइट्स हेतु SSL सर्टिफिकेट अनिवार्य है।
  • ट्रस्ट में रूट प्रमाणन प्राधिकारियों की भूमिका:
    • हालाँकि भारत में कानूनी रूप से वैध रूट प्रमाणन प्राधिकरण है जिसे भारतीय रूट अधिप्रमाणन प्राधिकरण (Root Certifying Authority of India) कहा जाता है, जिसे CCA के तहत वर्ष 2000 में स्थापित किया गया था, लेकिन इसके द्वारा जारी प्रमाणपत्र लोकप्रिय वेब ब्राउज़र्स द्वारा व्यापक रूप से मान्यता प्राप्त नहीं हैं।
      • CCA ने देश में CA की सार्वजनिक कुंजी पर डिजिटल हस्ताक्षर करने के लिये IT अधिनियम की धारा 18 (b) के तहत RCAI की स्थापना की है।
      • RCAI इस अधिनियम के तहत निर्धारित मानकों के अनुसार संचालित होता है।
    • विदेशी अधिकारियों पर इस निर्भरता ने डिजिटल सुरक्षा और विदेशी मुद्रा बहिर्प्रवाह को लेकर  चिंताएँ बढ़ा दी हैं।
  • भारतीय SSL प्रणाली से जुड़ी समस्याएँ:
    • भारत में रूट प्रमाणन प्राधिकरण का अभाव है जिस पर गूगल क्रोम (Google Chrome), मोज़िला फायरफॉक्स (Mozilla Firefox) और माइक्रोसॉफ्ट एज (Microsoft Edge) जैसे प्रमुख ब्राउज़र विश्वास करते हैं।
      • इससे भारत सरकार और निजी वेबसाइट्स को विदेशी प्रमाणन प्राधिकारियों से SSL प्रमाणपत्र प्राप्त होने लगा है।
    • विभिन्न संघ और राज्य सरकार की वेबसाइट्स की मेज़बानी एवं रखरखाव के लिये ज़िम्मेदार CCA-अनुमोदित संगठन, राष्ट्रीय सूचना विज्ञान केंद्र (National Informatics Centre- NIC) से जुड़ी एक उल्लेखनीय घटना ने भारतीय प्रमाणन अधिकारियों में विश्वास के मुद्दों को रेखांकित किया।
      • वर्ष 2014 में NIC द्वारा फर्ज़ी प्रमाणपत्र जारी करने के मामले के बाद भारत के CCA पर ब्राउज़र और ऑपरेटिंग सिस्टम के विश्वास में कमी देखी गई थी।
    • SSL प्रमाणपत्र जारी करने के लिये NIC का प्राधिकरण रद्द कर दिया गया था, जबकि भारतीय प्रमाणन अधिकारियों में विश्वास बना रहा।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये:(2021)

डिजिटल हस्ताक्षर:

1. एक ऐसा इलेक्ट्रॉनिक अभिलेख है, जो इसे जारी करने वाले प्रमाणन प्राधिकारी की पहचान करता है।
2. इंटरनेट पर सूचना या सर्वर तक पहुँच के लिये किसी व्यक्ति की पहचान के प्रमाण के रूप में प्रयुक्त होता है।
3. इलेक्ट्रॉनिक दस्तावेज़ पर हस्ताक्षर करने की एक इलेक्ट्रॉनिक पद्धति है और सुनिश्चित करता है कि मूल अंश अपरिवर्तित है।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 3
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (c)

व्याख्या: 

  • डिजिटल हस्ताक्षर कोई अभिलेख नहीं है और प्रमाणन प्राधिकारी की पहचान डिजिटल प्रमाणपत्र से सुनिश्चित की जाती है, डिजिटल हस्ताक्षर से नहीं। अत: कथन 1 सही नहीं है।
  • डिजिटल हस्ताक्षर का उपयोग किसी संदेश के प्रेषक या दस्तावेज़ के हस्ताक्षरकर्त्ता की पहचान को प्रमाणित करने के लिये किया जाता है, न कि इंटरनेट पर किसी वेबसाइट या जानकारी तक पहुँचने के लिये उपयोगकर्त्ताओं की प्रामाणिकता के प्रमाण के रूप में काम करने के लिये। अत: कथन 2 सही नहीं है।
  • डिजिटल हस्ताक्षर, हस्ताक्षर का एक इलेक्ट्रॉनिक रूप है जो प्राप्तकर्त्ता को इस तथ्य पर विश्वास करने की अनुमति देता है कि एक ज्ञात प्रेषक ने संदेश भेजा है और पारगमन में इसमें कोई बदलाव नहीं किया गया है। अतः कथन 3 सही है।
  • इसलिये विकल्प (C) सही उत्तर है।

मेन्स:

प्रश्न: साइबर अपराध के विभिन्न प्रकारों और इस खतरे से लड़ने के आवश्यक उपायों की विवेचना कीजिये। (2020) 

प्रश्न: सरकारी कार्यकलापों के लिये सर्वरों की क्लाउड होस्टिंग बनाम स्वसंस्थागत मशीन-आधारित होस्टिंग के लाभों और सुरक्षा निहितार्थों पर चर्चा कीजिये। (2015)

प्रश्न: ‘आंगुलिक हस्ताक्षर’ (Digital Signature) क्या होता है? इसके द्वारा प्रमाणीकरण का क्या अर्थ है? ‘आंगुलिक हस्ताक्षर’ की प्रमुख विविध अंतस्थ विशेषताएँ बताइये। (2013)

स्रोत: पी.आई.बी.


भारत के कपास क्षेत्र का विकास

प्रिलिम्स के लिये:

राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन, न्यूनतम समर्थन मूल्य, कस्तूरी कॉटन इंडिया, कॉट-एली मोबाइल एप

मेन्स के लिये:

कपास क्षेत्र से जुड़े मुद्दे, प्रगति और विकास

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में केंद्रीय राज्य मंत्री, वस्त्र मंत्रालय ने कपास उत्पादक किसानों को सशक्त बनाने और कपास क्षेत्र को बढ़ावा देने के लिये उठाए गए महत्त्वपूर्ण कदमों पर प्रकाश डाला

कपास क्षेत्र के विकास से संबंधित भारत सरकार की पहलें:

  • राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन के तहत कपास विकास कार्यक्रम:
    • इसे वर्ष 2014-15 से कृषि और किसान कल्याण विभाग द्वारा 15 प्रमुख कपास उत्पादक राज्यों, यथा- असम, आंध्र प्रदेश, गुजरात, हरियाणा, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, ओडिशा, पंजाब, राजस्थान, तेलंगाना, तमिलनाडु, त्रिपुरा, उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल में कार्यान्वित किया जा रहा है।
    • इसका उद्देश्य प्रमुख कपास उत्पादक राज्यों में कपास उत्पादन और उत्पादकता में वृद्धि करना है।
    • इसके अंतर्गत प्रदर्शन, परीक्षण, पौधों के संरक्षण हेतु रसायनों का वितरण व संबद्ध प्रशिक्षण प्रदान करना शामिल है।
  • कपास के लिये न्यूनतम समर्थन मूल्य फॉर्मूला/सूत्र:
    • न्यूनतम समर्थन मूल्य की गणना करने के लिये उत्पादन लागत का 1.5 गुना (A2+FL) फॉर्मूला प्रस्तुत किया गया है।
    • यह कपास किसानों के आर्थिक हित और कपड़ा उद्योग के लिये कपास की उपलब्धता सुनिश्चित करता है।
    • इसके तहत किसानों की आय में वृद्धि करने के लिये MSP दरों में वृद्धि की जाती है।
    • कपास सीज़न 2022-23 के लिये उचित औसत गुणवत्ता (Fair Average Quality- FAQ) ग्रेड कपास के MSP में लगभग 6% की वृद्धि हुई, जिसे आगामी कपास सीज़न 2023-24 के लिये बढ़ाकर 9-10% किया गया है।
  • भारतीय कपास निगम (CCI):
    • इसका गठन कपास किसानों हेतु MSP संचालन के लिये एक केंद्रीय नोडल एजेंसी के रूप में किया गया है। यह विशेष तौर पर तब कार्य करता है, जब उचित औसत गुणवत्ता ग्रेड बीज कपास की कीमतें न्यूनतम समर्थन मूल्य दरों से नीचे गिर जाती हैं।
    • यह किसानों को संकटपूर्ण बिक्री से बचाता है।
  • ब्रांडिंग और ट्रेसबिलिटी:
    • एक ब्रांड नाम के साथ भारतीय कपास को बढ़ावा देने के लिये 'कस्तूरी कपास' (Kasturi Cotton) लॉन्च किया गया है।
    • इसका उद्देश्य भारतीय कपास की गुणवत्ता, ट्रेसबिलिटी और ब्रांडिंग सुनिश्चित करना है।
  • वृहद पैमाने पर प्रदर्शन परियोजना:
    • NFSM के तहत कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय द्वारा स्वीकृत।
    • यह कपास की बेहतर उत्पादकता सुनिश्चित के लिये सर्वोत्तम अभ्यास पर ध्यान केंद्रित करती है।
    • उच्च घनत्व रोपण प्रणाली (HDPS) और मूल्य शृंखला दृष्टिकोण जैसी नवीन तकनीकों पर ध्यान देना।
    • "कृषि-पारिस्थितिकी क्षेत्रों के लिये प्रौद्योगिकियों को लक्षित करना तथा कपास उत्पादकता को बेहतर बनाने हेतु सर्वोत्तम प्रथाओं का बड़े पैमाने पर प्रदर्शन" नामक परियोजना को मंज़ूरी देना।
  • वस्त्र सलाहकार समूह (TAG):
    • वस्त्र मूल्य शृंखला में हितधारकों के बीच समन्वय की सुविधा के लिये वस्त्र मंत्रालय द्वारा गठित।
    • यह उत्पादकता, कीमत, ब्रांडिंग और अन्य संबंधित मुद्दों का समाधान करता है।
  • कॉट-एली मोबाइल एप:
    • यह किसानों को उपयोगकर्त्ता के अनुकूल इंटरफेस के माध्यम से जानकारी प्रदान करने के लिये विकसित किया गया।
    • प्रमुख विशेषताएँ:
      • MSP दर जागरूकता।
      • निकटतम खरीद केंद्र।
      • भुगतान ट्रैकिंग।
      • सर्वोत्तम कृषि पद्धतियाँ।
  • कपास संवर्द्धन और उपभोग समिति (COCPC):
    • यह कपड़ा उद्योग के लिये कपास की उपलब्धता सुनिश्चित करती है।
    • या कपास परिदृश्य पर नज़र रखती है और उत्पादन एवं खपत के मामलों पर सरकार को सलाह देती है।

कपास के बारे में मुख्य तथ्य:

  • यह खरीफ फसल है जिसे परिपक्व होने में 6 से 8 महीने का समय लगता है।
  • यह सूखा प्रतिरोधी फसल है जो शुष्क जलवायु के लिये आदर्श मानी जाती है।
  • विश्व की 2.1% कृषि योग्य भूमि कपास के अंतर्गत है और यह विश्व की वस्त्र आवश्यकताओं में 27% का योगदान करता है।
  • तापमान: 21-30 डिग्री सेल्सियस के बीच।
  • वर्षा: लगभग 50-100 सेमी.।
  • मृदा का प्रकार: अच्छी अपवाह वाली काली कपास मृदा (Regur Soil)।
  • उदाहरण: दक्कन के पठार की मृदा।
  • उत्पाद: फाइबर, तेल और पशु चारा।
  • शीर्ष कपास उत्पादक देश: भारत> चीन> संयुक्त राज्य अमेरिका।
  • भारत में शीर्ष कपास उत्पादक राज्य: गुजरात> महाराष्ट्र> तेलंगाना > आंध्र प्रदेश> राजस्थान।
  • कपास की चार कृष्य प्रजातियाँ: गॉसिपियम अर्बोरियम (Gossypium arboreum), जी. हर्बेसम (G. herbaceum), जी. हिरसुटम (G. hirsutum) व जी.बारबडेंस (G. barbadense)
    • गॉसिपियम आर्बोरियम और जी. हर्बेसम को ‘ओल्ड-वर्ल्ड कॉटन’ या ‘एशियाटिक कॉटन’ के रूप में जाना जाता है।
    • जी. हिरसुटम को ‘अमेरिकन कॉटन’ या ‘अपलैंड कॉटन’ और जी. बारबडेंस को ‘इजिप्शियन कॉटन’ के रूप में भी जाना जाता है। ये दोनों नई वैश्विक कपास प्रजातियाँ हैं।
  • हाइब्रिड कॉटन: यह विभिन्न आनुवंशिक विशेषताओं वाले दो मूल पौधों के संक्रमण द्वारा बनाया गया कपास है। हाइब्रिड अक्सर प्रकृति में अनायास और बेतरतीब ढंग से निर्मित होते हैं जब खुले-परागण वाले पौधे अन्य संबंधित किस्मों के साथ स्वाभाविक रूप से पर-परागण करते हैं।
  • बीटी कॉटन: यह कपास की आनुवंशिक रूप से संशोधित कीट-प्रतिरोधी (Pest-Resistant) किस्म है।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. भारत में काली कपास मृदा की रचना निम्नलिखित में से किसके अपक्षयण से हुई है? (2021)

(a) भूरी वन मृदा
(b) विदरी (फिशर) ज्वालामुखीय चट्टान
(c) ग्रेनाइट और शिस्ट
(d) शेल और चूना-पत्थर

उत्तर: (b)

व्याख्या: 

  • काली मृदा, जिसे रेगुर मृदा या काली कपास मृदा भी कहा जाता है, कपास के उत्पादन के लिये आदर्श है। काली मृदा के निर्माण के लिये मूल चट्टान सामग्री के साथ-साथ जलवायु परिस्थितियाँ महत्त्वपूर्ण कारक हैं। काली मृदा उत्तर-पश्चिम दक्कन के पठार पर फैले दक्कन उद्भेदन/ट्रैप (बेसाल्ट) क्षेत्र की विशिष्टता है और लावा प्रवाह (विदर ज्वालामुखीय चट्टान) से बनी है।
  • दक्कन के पठार में महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, गुजरात, आंध्र प्रदेश और तमिलनाडु के कुछ हिस्से शामिल हैं। काली मृदा गोदावरी एवं कृष्णा की ऊपरी क्षेत्र और उत्तरी महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, गुजरात, आंध्र प्रदेश और तमिलनाडु के कुछ हिस्सों को भी कवर करती है।
  • रासायनिक दृष्टि से काली मृदा चूना, लोहा, मैग्नीशिया और एल्यूमिना से समृद्ध है। इसमें पोटाश भी होता है लेकिन फास्फोरस, नाइट्रोजन और कार्बनिक पदार्थ की कमी होती है। मृदा का रंग गहरे काले से लेकर भूरा तक होता है।

अत: विकल्प (b) सही उत्तर है।


प्रश्न. निम्नलिखित विशेषताएँ भारत के एक राज्य की विशिष्टताएँ हैंः (2011)

1- उसका उत्तरी भाग शुष्क एवं अर्द्धशुष्क है।
2- उसके मध्य भाग में कपास का उत्पादन होता है।
3- उस राज्य में खाद्य फसलों की तुलना में नकदी फसलों की खेती अधिक होती है।

उपर्युक्त सभी विशिष्टताएँ निम्नलिखित में से किस एक राज्य में पाई जाती हैं?

(a) आंध्र प्रदेश
(b) गुजरात
(c) कर्नाटक
(d) तमिलनाडु

उत्तर: (b)

  • गुजरात की स्थलाकृतिक विशेषताएँ अलग-अलग हैं, हालाँकि राज्य का एक बड़ा हिस्सा सूखे और शुष्क क्षेत्र से प्रभावित है। 8 कृषि-जलवायु क्षेत्रों में से पाँच प्रकृति में शुष्क से अर्द्ध-शुष्क हैं, जबकि शेष तीन प्रकृति में शुष्क उप-आर्द्र हैं।
  • राज्य में मृदा के प्रकारों में गहरी काली से मध्यम काली मृदा का प्रभुत्व है। राज्य में विभिन्न क्षेत्रों में औसत वर्षा 25 से 150 सेमी. तक होती है।
  • कुल उपलब्ध भूमि का 50% से अधिक का उपयोग कृषि के लिये किया जा रहा है। मुख्य खाद्य फसलें बाजरा, ज्वार, चावल और गेहूँ हैं।
  • राज्य की प्रमुख वाणिज्यिक फसलें या नकदी फसलें मूँगफली, तंबाकू और कपास, अलसी, गन्ना आदि हैं। अन्य महत्त्वपूर्ण नकदी फसलें इसबगोल (साइलियम हस्क/Psyllium Husk), जीरा, आम तथा केला हैं।
  • कपास (Cotton), अरंडी (Castor) और मूँगफली (Groundnut) के उत्पादन तथा उत्पादकता परिदृश्य में राज्य की उल्लेखनीय उपलब्धि है। कपास राज्य की एक महत्त्वपूर्ण फसल है जो 27.97 लाख हेक्टेयर में फैली हुई है।
  • अत: विकल्प (b) सही उत्तर है।

स्रोत: पी.आई.बी.


डीकार्बोनाइज़ेशन के लिये छोटे मॉड्यूलर रिएक्टर

प्रिलिम्स के लिये:

निम्न-कार्बन विद्युत संसाधन, डीकार्बोनाइज़ेशन, अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी, दुर्लभ मृदा तत्त्व, अंतर्राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी, परमाणु ऊर्जा अधिनियम, 1962

मेन्स के लिये:

डीकार्बोनाइज़ेशन के लिये छोटे मॉड्यूलर रिएक्टर

चर्चा में क्यों?

सौर और पवन ऊर्जा में वृद्धि के बावजूद कोयले की खपत में वृद्धि गहन डीकार्बोनाइज़ेशन सुनिश्चित करने के लिये छोटे मॉड्यूलर रिएक्टर जैसे निम्न कार्बन विद्युत संसाधनों की आवश्यकता को रेखांकित करती है।

  • समय और लागत में वृद्धि पारंपरिक परमाणु ऊर्जा संयंत्रों से संबंधित एक समस्या रही है। इसके विकल्प के रूप में कई देश पारंपरिक परमाणु ऊर्जा संयंत्रों के पूरक के लिये छोटे मॉड्यूलर रिएक्टर(अधिकतम 300 मेगावाट क्षमता वाले परमाणु रिएक्टर) विकसित करने पर विचार कर रहे हैं।

डीकार्बोनाइज़ेशन:

  • परिचय:
    • डीकार्बोनाइज़ेशन से आशय मानव गतिविधियों, विशेष रूप से कोयला, तेल और प्राकृतिक गैस जैसे जीवाश्म ईंधन के जलने से कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन को कम करने की प्रक्रिया से है।
  • आवश्यकता:
    • डीकार्बोनाइज़ेशन का वैश्विक प्रयास संयुक्त राष्ट्र सतत् विकास लक्ष्य 7 के अनुरूप है, जो सस्ती और धारणीय ऊर्जा तक पहुँच पर बल देता है।
    • हालाँकि विश्व के ऊर्जा आपूर्ति का 82% हिस्सा जीवाश्म ईंधन पर पर निर्भर करता है, यह देखते हुए विद्युत क्षेत्र में तत्काल डीकार्बोनाइज़ेशन काफी आवश्यक हो गया है।
    • सौर और पवन ऊर्जा में वृद्धि के बावजूद यूरोप में कोयले की खपत में वृद्धि गहन डीकार्बोनाइज़ेशन, ग्रिड स्थिरता और ऊर्जा सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिये निम्न कार्बन विद्युत संसाधनों की आवश्यकता को रेखांकित करती है।
  • डीकार्बोनाइज़ेशन की चुनौतियाँ:
    • स्वच्छ ऊर्जा संक्रमण चुनौतियाँ: कोयले से स्वच्छ ऊर्जा की ओर बदलाव, वैश्विक स्तर पर एक जटिल चुनौती बनी हुई है। विभिन्न देश इस बात से सहमत हैं कि केवल सौर और पवन ऊर्जा पर निर्भर रहना सभी के लिये विश्वसनीय एवं किफायती ऊर्जा तक पहुँच के लिये पर्याप्त नहीं होगा।
      • नवीकरणीय ऊर्जा वाली डीकार्बोनाइज़्ड विद्युत् प्रणालियों में कम-से-कम एक स्थिर विद्युत् स्रोत शामिल करने से ग्रिड/ढाँचे की विश्वसनीयता बढ़ती है तथा व्यय भी कम होता है, जो संतुलित ऊर्जा मिश्रण में योगदान प्रदान करता है।
    • महत्त्वपूर्ण खनिजों की मांग और जटिलताएँ: अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी (IEA) ने वर्ष 2030 तक लिथियम, निकल, कोबाल्ट एवं दुर्लभ मृदा तत्त्वों जैसे महत्त्वपूर्ण खनिजों की मांग में संभावित 3.5 गुना वृद्धि का अनुमान लगाया है, जो स्वच्छ ऊर्जा प्रौद्योगिकियों के लिये आवश्यक हैं।
      • हालाँकि यह मांग वृद्धि कई वैश्विक मुद्दों को उठाती है, जिसमें नवीन खदानों और प्रसंस्करण सुविधाओं को विकसित करने के लिये बड़े पूंजी निवेश भी शामिल हैं।
    • खनिज आपूर्ति शृंखला: चीन, इंडोनेशिया, अफ्रीका और दक्षिण अमेरिका जैसे देशों के तीव्र विकास, खनिज निष्कर्षण एवं प्रसंस्करण क्षमताओं ने पर्यावरणीय तथा सामाजिक भू-राजनीति में आपूर्ति जोखिम को प्रदर्शित किया है।
      • इसके कारण सतत् स्वच्छ ऊर्जा की उन्नति के लिये इन चुनौतियों का समाधान करना महत्त्वपूर्ण हो जाता है।

स्मॉल मॉड्यूलर रिएक्टर (SMR):

  • परिचय:
    • SMR उन्नत परमाणु रिएक्टर होते हैं जिनकी विद्युत क्षमता 300 मेगावाट (e) प्रति यूनिट तक होती है, जो पारंपरिक परमाणु ऊर्जा रिएक्टरों की उत्पादन क्षमता का लगभग एक-तिहाई है।
    • SMR बड़ी मात्रा में न्यून कार्बन वाली विद्युत का उत्पादन कर सकते हैं, जो इस प्रकार है:
      • स्मॉल: भौतिक रूप से यह पारंपरिक परमाणु ऊर्जा रिएक्टर की तुलना में बहुत छोटे होते हैं।
      • मॉड्यूलर: सिस्टम और घटकों को फैक्टरी में असेंबल करना और स्थापना के लिये एक इकाई के रूप में किसी स्थान पर ले जाना संभव बनाना।
      • रिएक्टर: ऊर्जा उत्पन्न करने हेतु ऊष्मा पैदा करने के लिये परमाणु विखंडन का उपयोग करना।
    • इनके डिज़ाइन में उन्नत सुरक्षा सुविधाएँ शामिल हैं, जो अनियंत्रित रेडियोधर्मी सामग्री के निकलने के जोखिम को कम करती हैं।
      • SMR को 90% से अधिक क्षमता कारकों के साथ 40-60 वर्षों तक संचालित करने के लिये डिज़ाइन किया गया है।

  • लाभ:
    • विश्वसनीय निम्न-कार्बन विद्युत स्रोत:
      • जैसा कि वर्ष 2050 तक विद्युत की मांग 80-150% तक बढ़ने का अनुमान है, SMR एक विश्वसनीय 24/7 कम कार्बन विद्युत स्रोत प्रदान कर सकता है जो आंतरायिक नवीकरण का पूरक है।
      • ग्रिड की विश्वसनीयता हासिल करने और डीकार्बोनाइज़्ड बिजली प्रणालियों में लागत को कम करने के लिये यह महत्त्वपूर्ण है।
    • भूमि अधिग्रहण के लिये कम चुनौतियाँ:
      • SMR कम खर्च वाला परमाणु ईंधन उत्पन्न करते हैं और इन्हें मौजूदा ब्राउनफील्ड साइट्स पर सुरक्षित रूप से संचालित किया जा सकता है, जिससे भूमि अधिग्रहण की चुनौतियाँ कम हो जाती हैं।
      • SMR को डिज़ाइन करना और निर्माण करना भी आसान है तथा क्रमिक विनिर्माण के माध्यम से लागत में कमी की संभावना है।
    • महत्त्वपूर्ण खनिजों के विकल्प:
      • स्वच्छ ऊर्जा में परिवर्तन के लिये लिथियम-आयन बैटरी जैसी प्रौद्योगिकियों हेतु महत्त्वपूर्ण खनिजों की आवश्यकता होती है, जो भू-राजनीतिक जोखिमों और पर्यावरणीय प्रभावों को लेकर चिंता पैदा करते हैं।
      • SMR एक विकल्प प्रदान करते हैं क्योंकि उन्हें कम-संवर्द्धित यूरेनियम की आवश्यकता होती है, जो महत्त्वपूर्ण खनिजों की तुलना में अधिक व्यापक रूप से वितरित है।
    • भारत की ऊर्जा रणनीति के साथ एकीकरण:
      • भारत जिसका लक्ष्य वर्ष 2070 तक शुद्ध-शून्य उत्सर्जन हासिल करना है, के लिये SMR एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं। चूँकि कोयला आधारित थर्मल पावर प्लांट और परिवर्तनीय नवीकरणीय ऊर्जा स्रोत ऊर्जा मिश्रण में महत्त्वपूर्ण योगदान देते हैं, SMR ऊर्जा सुरक्षा तथा ग्रिड स्थिरता को बढ़ा सकते हैं।
        • भारत का केंद्रीय विद्युत प्राधिकरण (Central Electricity Authority) विद्युत की मांग को पूरा करने में SMR को एक महत्त्वपूर्ण तत्त्व के रूप में देखता है, जबकि सार्वजनिक-निजी भागीदारी सहित निजी क्षेत्र में निवेश बढ़ाने के लिये महत्त्वपूर्ण है।

डीकार्बोनाइज़ेशन के लिये कम कार्बन वाले विद्युत संसाधनों को बढ़ावा देना:

  • यदि SMR को विद्युत क्षेत्र को डीकार्बोनाइज़िंग करने में सार्थक भूमिका निभानी है तो नागरिक उड्डयन क्षेत्र की तुलना में एक कुशल नियामक व्यवस्था (जिसमें अधिक कठोर सुरक्षा आवश्यक है) होना आवश्यक है।
  • इस उद्देश्य को प्राप्त किया जा सकता है यदि परमाणु ऊर्जा स्वीकार करने वाले सभी देश अपने संबंधित नियामकों को आपस में और अंतर्राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (International Atomic Energy Agency- IAEA) के साथ सहयोग करने का निर्देश दें ताकि वे अपनी नियामक आवश्यकताओं को सुसंगत बना सकें तथा मानक, सार्वभौमिक डिज़ाइन के आधार पर SMR के लिये वैधानिक अनुमोदन में तेज़ी ला सकें।
  • SMR तैनाती को सुविधाजनक बनाने के लिये भारत को निजी क्षेत्र की भागीदारी की अनुमति देने के लिये परमाणु ऊर्जा अधिनियम (Atomic Energy Act), 1962 में संशोधन करने की आवश्यकता है।
  • परमाणु ईंधन और अपशिष्ट पर सरकारी नियंत्रण बनाए रखते हुए एक स्वतंत्र नियामक बोर्ड को पूरे परमाणु ऊर्जा चक्र की निगरानी करनी चाहिये।
  • भारत-अमेरिका '123 समझौता' (India-US '123 Agreement') भारत को IAEA सुरक्षा उपायों के तहत SMR से उपयोग किये गए ईंधन को पुन: संसाधित करने का अवसर प्रदान करता है, जो संसाधन स्थिरता में योगदान देगा।
    • यह भारत को IAEA के सुरक्षा उपायों के तहत SMR से उपयोग किये गए ईंधन को पुन: संसाधित करने की सुविधा स्थापित करने की भी अनुमति देता है।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. एक नाभिकीय रिएक्टर में भारी जल का क्या कार्य होता है? (2011)

(a) न्यूट्रॉन की गति को कम करना
(b) न्यूट्रॉन की गति को बढ़ाना
(c) रिएक्टर को ठंडा करना
(d) नाभिकीय क्रिया को रोकना

उत्तर: (a)


मेन्स:

प्रश्न. ऊर्जा की बढ़ती हुई ज़रूरतों के परिप्रेक्ष्य में क्या भारत को अपने नाभिकीय ऊर्जा कार्यक्रम का विस्तार करना जारी रखना चाहिये? नाभिकीय ऊर्जा से संबंधित तथ्यों एवं भय की विवेचना कीजिये। (2018)

स्रोत: द हिंदू


डिजिटल कनेक्टिविटी इंफ्रास्ट्रक्चर प्रदाता प्राधिकरण

प्रिलिम्स के लिये:

भारतीय दूरसंचार नियामक प्राधिकरण, राष्ट्रीय डिजिटल संचार नीति, रेडियो एक्सेस नेटवर्क, ई-कॉमर्स, IoT, आयुष्मान भारत डिजिटल मिशन, स्मार्ट सिटीज़, डिजिटल इंडिया

मेन्स के लिये:

डिजिटल कनेक्टिविटी इंफ्रास्ट्रक्चर का महत्त्व

चर्चा में क्यों? 

भारतीय दूरसंचार नियामक प्राधिकरण (Telecom Regulatory Authority of India- TRAI) ने हाल ही में यूनिफाइड लाइसेंस (Unified License- UL) के तहत डिजिटल कनेक्टिविटी इंफ्रास्ट्रक्चर प्रदाता प्राधिकरण की शुरुआत पर सिफारिशें जारी कीं।

  • ये सिफारिशें राष्ट्रीय डिजिटल संचार नीति (National Digital Communications Policy- NDCP), 2018 के अनुरूप हैं, जो आर्थिक विकास को बढ़ावा देने और जीवन की गुणवत्ता में सुधार करने में डिजिटल बुनियादी ढाँचे की महत्त्वपूर्ण भूमिका को रेखांकित करती हैं।

TRAI की प्रमुख सिफारिशें:

  • DCIP प्राधिकरण का निर्माण: TRAI, लाइसेंस की एक नई श्रेणी डिजिटल कनेक्टिविटी इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोवाइडर (Digital Connectivity Infrastructure Provider- DCIP) प्राधिकरण के निर्माण की सिफारिश करता है।
    • यह प्राधिकरण सक्रिय और निष्क्रिय दोनों डिजिटल कनेक्टिविटी बुनियादी ढाँचे के निर्माण की अनुमति देता है।
    • DCIP प्राधिकरण एक स्टैंडअलोन लाइसेंस (Standalone License) नहीं है बल्कि यूनिफाइड लाइसेंस फ्रेमवर्क (Unified License Framework) के अंतर्गत आता है। इस कदम का उद्देश्य सक्रिय और निष्क्रिय DCI बनाने में विशेषज्ञता वाले अभिकर्त्ताओं के उद्भव को प्रोत्साहित करना है।
      • यूनिफाइड लाइसेंस सेवा-वार प्राधिकरण प्रदान करता है, जहाँ लाइसेंसधारी नेटवर्क स्थापित करने और सेवाएँ प्रदान करने के लिये उनका उपयोग करते हैं।
  • DCIP प्राधिकरण का प्रयोजन: प्रस्तावित DCIP प्राधिकरण का प्रयोजन व्यापक है, जिसमें वायरलाइन एक्सेस नेटवर्क (Wireline Access Network), रेडियो एक्सेस नेटवर्क (Radio Access Network- RAN), वाई-फाई सिस्टम (Wi-Fi Systems), ट्रांसमिशन लिंक (Transmission Links) इत्यादि जैसे विभिन्न घटकों के स्वामित्व, स्थापना, रखरखाव और संचालन को शामिल किया गया है।
    • हालाँकि इसमें मुख्य नेटवर्क तत्त्व (Elements) और स्पेक्ट्रम (Spectrum) शामिल नहीं हैं।
  • स्व-विनियमन और अनुपालन: सुरक्षा शर्तों, सेवा की गुणवत्ता (Quality of Service- QoS) तथा अन्य लाइसेंस दायित्वों का अनुपालन सुनिश्चित करने के लिये TRAI, DCIP एवं लाइसेंस प्राप्त संस्थाओं के बीच एक प्रिंसिपल-एजेंट संबंध का प्रस्ताव करता है।
  • बुनियादी ढाँचे को साझा करना: DCIP लाइसेंसधारियों को कुछ शर्तों के अधीन UL (Unified License) लाइसेंसधारियों और इंटरनेट सेवा प्रदाताओं (ISP) के साथ अपने बुनियादी ढाँचे को साझा करने की अनुमति है।
    • यह साझाकरण लागत में कमी के साथ कुशल सेवा वितरण को बढ़ावा देने के साथ सहयोग में वृद्धि करता है।
  • योग्य संस्थाओं तक पहुँच: DCIP लाइसेंसधारियों को टेलीग्राफ अधिनियम, 1885 के तहत वैध लाइसेंस वाली संस्थाओं के रूप में अधिसूचित संस्थाओं को सरकार द्वारा पट्टे/किराए/बिक्री के आधार पर DCI वस्तुओं, उपकरण और सिस्टम प्रदान करने की सिफारिश की जाती है।
    • इसका विस्तार उन DCIP लाइसेंसधारियों तक भी है, जिन्हें विद्युत अधिनियम के तहत लाइसेंस प्राप्त हुआ है, जो इस अधिकार के आधार पर अपने बुनियादी ढाँचे तक पहुँच को बढ़ावा देते हैं।

डिजिटल कनेक्टिविटी इंफ्रास्ट्रक्चर का महत्त्व: 

  • परिचय: 
    • डिजिटल बदलाव के इस आधुनिक युग में डिजिटल कनेक्टिविटी आर्थिक विकास के बुनियादी ढाँचे, सामाजिक प्रगति और तकनीकी नवाचार की आधारशिला के रूप में उभरी है, जिसे NDCP, 2018 में दर्शाया गया है।
    • TRAI की हालिया सिफारिशों का उद्देश्य जल, विद्युत और अग्नि सुरक्षा प्रणालियों जैसी अन्य आवश्यक सेवाओं के अनुरूप भवन विकास योजनाओं में DCI को एकीकृत करने के लिये एक रूपरेखा स्थापित करना है।
  • महत्त्व: 
    • संचार और सूचना प्रवाह को सुगम बनाना: डिजिटल कनेक्टिविटी ब्रॉडबैंड नेटवर्क और मोबाइल सेवाओं जैसे बुनियादी ढाँचे, भौगोलिक सीमाओं के पार त्वरित संचार को सक्षम बनाती है।
      • यह सूचना, विचारों और ज्ञान के आदान-प्रदान की सुविधा प्रदान करती है, जो शिक्षा, अनुसंधान एवं नवाचार के विकास में योगदान प्रदान करते हैं।
    • आर्थिक विकास की वृद्धि: डिजिटल कनेक्टिविटी व्यवसायों को वैश्विक बाज़ार तक पहुँच प्रदान करके आर्थिक विकास के लिये उत्प्रेरक का कार्य करती है।
      • ग्राहक ई-कॉमर्स, ऑनलाइन सेवाएँ और डिजिटल प्लेटफॉर्म तक पहुँचने और परिचालन को सुव्यवस्थित करने के लिये कनेक्टिविटी का लाभ उठाते हैं, जिससे व्यापार एवं आर्थिक गतिविधि में वृद्धि होती है।
    • डिजिटल सेवाओं को सशक्त बनाना: टेलीमेडिसिन, ई-गवर्नेंस और ऑनलाइन शिक्षा जैसी डिजिटल सेवाओं के लिये हाई-स्पीड इंटरनेट एवं विश्वसनीय कनेक्टिविटी की उपलब्धता आवश्यक है।
      • ये सेवाएँ पहुँच, दक्षता और समावेशिता में सुधार करती हैं, जिससे जीवन की समग्र गुणवत्ता में वृद्धि होती है।
    • नवाचार और उद्यमिता को बढ़ावा: डिजिटल कनेक्टिविटी अवसंरचना सहयोग, डेटा साझाकरण एवं दूरस्थ कार्य को सक्षम करके नवाचार को बढ़ावा देती है।
      • उद्यमी आर्थिक विविधीकरण में योगदान करते हुए नवोन्वेषी उत्पादों एवं सेवाओं को विकसित करने के साथ उन्हें लॉन्च करने के लिये ऑनलाइन प्लेटफॉर्म का लाभ उठा सकते हैं।
    • उद्योग परिवर्तन का समर्थन: विनिर्माण, कृषि एवं स्वास्थ्य सेवा जैसे उद्योग डिजिटल परिवर्तन के दौर से गुज़र रहे हैं, जो स्वचालन, IoT एवं डेटा एनालिटिक्स को लागू करने के लिये कनेक्टिविटी पर निर्भर हैं।
      • स्मार्ट फैक्टरियाँ, प्रिसिजन एग्रीकल्चर और टेलीमेडिसिन इस बात के कुछ उदाहरण हैं कि कैसे कनेक्टिविटी पारंपरिक क्षेत्रों में क्रांति ला रही है।
    • डिजिटल एवं सामाजिक विभाजन अंतराल को समाप्त करना: डिजिटल कनेक्टिविटी अवसंरचना पहले से वंचित या दूरदराज़ के क्षेत्रों को सूचना, शिक्षा तथा आर्थिक अवसरों तक पहुँच प्रदान करके डिजिटल विभाजन के अंतराल को समाप्त करने में सहायता प्रदान करती है।
      • साथ ही सामाजिक समावेशन में योगदान के साथ ही यह सुनिश्चित करते हुए असमानताओं को कम करता है ताकि समाज के सभी वर्ग तकनीकी प्रगति से लाभान्वित हो सकें।
    • न्यूनतम सरकार-अधिकतम शासन: यह डिजिटल इंडिया, मेक इन इंडिया, आयुष्मान भारत डिजिटल मिशन (ABDM) तथा स्मार्ट सिटी के विकास जैसी विभिन्न सरकारी पहलों के सुव्यवस्थित कार्यान्वयन को सक्षम बनाता है।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, के विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. G-20 के बारे में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजियेः (2023)

  1. G-20 समूह की मूल रूप से स्थापना वित्त मंत्रियों और केंद्रीय बैंक के गवर्नरों द्वारा अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक एवं वित्तीय मुद्दों पर चर्चा के मंच के रूप में की गई थी।
  2.  डिजिटल सार्वजनिक बुनियादी ढाँचा भारत की G-20 प्राथमिकताओं में से एक है।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1
(b) केवल 2
(c) 1 और 2 दोनों
(d)  न तो 1 और न ही 2

उत्तर: (c) 

स्रोत: पी.आई.बी.


कृषि-वानिकी एवं प्राकृतिक खेती को सशक्त बनाना

प्रिलिम्स के लिये:

राष्ट्रीय कृषि विकास योजना (RKVY), भारतीय प्राकृतिक कृषि पद्धति (BPKP), गुणवत्तापूर्ण रोपण सामग्री

मेन्स के लिये:

प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने के लिये सरकार की पहल

चर्चा में क्यों? 

कृषि-वानिकी पर उप-मिशन (SMAF) की पूर्ववर्ती केंद्र प्रायोजित योजना को राष्ट्रीय कृषि विकास योजना (RKVY) के ढाँचे के भीतर एक कृषि-वानिकी घटक के रूप में पुनर्गठित और शामिल किया गया है।

  • यह नवोन्मेषी दृष्टिकोण पर्यावरण-अनुकूल प्रथाओं के प्रति भारत की प्रतिबद्धता प्रदर्शित करता है, जिसमें प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देना भी शामिल है, जो एकीकृत कृषि और पशुपालन क्षेत्र में एक रसायन-मुक्त विधि है।

RKVY के अंर्तगत पुनर्गठित कृषि-वानिकी योजना की मुख्य विशेषताएँ:

  • केंद्रित दृष्टिकोण: 
    • संशोधित योजना कृषि-वानिकी के क्षेत्र में एक महत्त्वपूर्ण तत्त्व के रूप में गुणवत्तापूर्ण रोपण सामग्री (QPM) की उपलब्धता को बढ़ावा देने और सुनिश्चित करने पर ज़ोर देती है।
    • भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद- केंद्रीय कृषि-वानिकी अनुसंधान संस्थान (CAFRI) नर्सरी स्थापित करने, उत्पादन एवं QPM प्रमाणित करने के लिये तकनीकी सहायता, क्षमता निर्माण तथा मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु नोडल एजेंसी के रूप में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
      • इस योजना के अंर्तगत QPM के उत्पादन और प्रमाणीकरण को एक विशेष प्राथमिकता दी गई।
  • AICRP केंद्र: 
    • कृषि-वानिकी पर अखिल भारतीय समन्वित अनुसंधान परियोजना (AICRP) केंद्रों के ढाँचे के अंर्तगत CAFRI नवाचार को बढ़ावा देने, टिकाऊ प्रथाओं को विकसित करने एवं ज्ञान का प्रसार करने के लिये देश भर में स्थित अनुसंधान केंद्रों के साथ सहयोग करती है।
  • राज्य नोडल विभाग अथवा एजेंसियाँ: 
    • प्रभावी कार्यान्वयन के लिये प्रत्येक राज्य या केंद्रशासित प्रदेश एक निर्दिष्ट राज्य नोडल विभाग अथवा एजेंसी की पहचान करता है।
      • राज्य नोडल विभाग अथवा एजेंसी की ज़िम्मेदारी स्वतंत्र रूप से या विभिन्न संस्थानों और संस्थाओं के सहयोग से QPM के उत्पादन तथा उपलब्धता को सुनिश्चित करना है।
  • किसानों/SHG में निशुल्क वितरण: 
    • इस योजना के माध्यम से एकत्रित QPM (Quality Planting Material) को किसानों और स्वयं सहायता समूहों (SHG) के लिये या तो निशुल्क या संबंधित राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों द्वारा लिये गए निर्णयों के आधार पर सुलभ कराया जाता है।
  • प्रमुख घटक और गतिविधियाँ:
    • QPM उत्पादन के लिये नर्सरी की स्थापना।
    • गुणवत्तापूर्ण रोपण सामग्री के लिये टिशू कल्चर लैब
    • कौशल विकास एवं जागरूकता अभियान (आवंटन का 5% तक)।
    • अनुसंधान एवं विकास, मार्केट लिंकिंग (Market Linking)।
    • परियोजना प्रबंधन इकाई (PMU) और कृषि वानिकी तकनीकी सहायता समूह (TSG)।
    • स्थानीय पहल (स्वीकृत वार्षिक योजना का 2% तक)।

गुणवत्तापूर्ण रोपण सामग्री (QPM):

  • QPM राजस्व को बढ़ाने, प्रतिकूल पर्यावरणीय परिस्थितियों की अनुकूलन क्षमता में सुधार करने और गुणवत्ता वाले कच्चे माल की बाज़ारों की आवश्यकताओं की पूर्ति करने के लिये कृषि-वानिकी में एक आवश्यक निविष्टि (input) है।
    • रोपण सामग्री की गुणवत्ता उसकी उत्पत्ति, विविधता और स्टॉक/भंडारण की प्रामाणिकता, वनस्पति विकास एवं स्वास्थ्य स्थिति से निर्धारित होती है।
  • QPM प्रमाणीकरण यह सुनिश्चित करने की प्रक्रिया है कि रोपण सामग्री की गुणवत्ता निर्धारित मानकों को पूरा करती है और अभीष्ट/इच्छित उद्देश्य के लिये उपयुक्त है।

प्राकृतिक कृषि को बढ़ावा देने हेतु सरकारी पहल:

  • भारतीय प्राकृतिक कृषि पद्धति (BPKP) उप-योजना:
    • वर्ष 2019-2020 से परंपरागत कृषि विकास योजना (PKVY) के तहत शुरू की गई यह उप-योजना एकीकृत दृष्टिकोण के माध्यम से रसायन मुक्त खेती का समर्थन करती है जिसमें पशुधन और स्थानीय संसाधन शामिल हैं, इस उपयोजना में बायोमास रीसाइक्लिंग एवं मल्चिंग पर ज़ोर दिया गया है।
  • नमामि गंगे कार्यक्रम:
    • PKVY योजना के भाग के रूप में सरकार गंगा नदी के तट पर रसायन मुक्त जैविक खेती को बढ़ावा दे रही है। वर्ष 2017-18 से आयोजित इस पहल के तहत लगभग 1.23 लाख हेक्टेयर भूमि को कवर किया गया है।
  • गंगा कॉरिडोर का विस्तार:
    • वर्ष 2022-23 में सरकार ने बिहार, झारखंड, उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश राज्यों में गंगा नदी के तट पर 5 किमी. चौड़े कॉरिडोर में 1.48 लाख हेक्टेयर क्षेत्र के लिये रसायन मुक्त प्राकृतिक खेती को स्वीकृति दी है।

कृषि वानिकी पर उप-मिशन (SMAF) योजना:

  • वर्ष 2016-17 से कृषि, सहकारिता एवं किसान कल्याण विभाग (Department of Agriculture, Cooperation and Farmers Welfare- DAC & FW) द्वारा कार्यान्वित।
  • इसका उद्देश्य किसानों को जलवायु अनुकूलन और अतिरिक्त आय स्रोतों के लिये कृषि फसलों के साथ-साथ बहुउद्देश्यीय वृक्ष लगाने के लिये प्रोत्साहित करना है।
  • इस योजना के तहत लाभ प्राप्त करने के लिये किसानों को मृदा स्वास्थ्य कार्ड (Soil Health Card) की आवश्यकता होती है।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. स्थायी कृषि (पर्माकल्चर), पारंपरिक रासायनिक कृषि से किस तरह भिन्न है? (2021)

  1. स्थायी कृषि एकधान्य कृषि पद्धति को हतोत्साहित करती है, किंतु पारंपरिक रासायनिक कृषि में एकधान्य कृषि पद्धति की प्रधानता है।
  2.  पारंपरिक रासायनिक कृषि के कारण मृदा की लवणता में वृद्धि हो सकती है, किंतु इस तरह की परिघटना स्थायी कृषि में दृष्टिगोचर नहीं होती है।
  3.  पारंपरिक रासायनिक कृषि अर्द्धशुष्क क्षेत्रों में आसानी से संभव है, किंतु ऐसे क्षेत्रों में स्थायी कृषि इतनी आसानी से संभव नहीं है।
  4.  मल्च बनाने (मल्चिंग) की प्रथा स्थायी कृषि में काफी महत्त्वपूर्ण है, किंतु पारंपरिक रासायनिक कृषि में ऐसी प्रथा आवश्यक नहीं है।

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a)  केवल 1 और 3                   
(b)  केवल 1, 2 और 4
(c)  केवल 4                     
(d) केवल 2 और 3

उत्तर: (b) 


प्रश्न. निम्नलिखित में से कौन-सी मिश्रित खेती की प्रमुख विशषेता है? (2012)

(a) नकदी और खाद्य दोनों सस्यों की साथ-साथ खेती
(b) दो या दो से अधिक सस्यों को एक ही खेत में उगाना
(c) पशुपालन और सस्य-उत्पादन को एक साथ करना
(d) उपर्युक्त में से कोई नहीं

उत्तर: (c)


मेन्स:

प्रश्न. फसल विविधता के समक्ष वर्तमान चुनौतियाँ क्या हैं? उभरती प्रौद्योगिकियाँ फसल विविधता के लिये किस प्रकार अवसर प्रदान करती हैं? (2021)

प्रश्न. जल इंजीनियरी और कृषि विज्ञान के क्षेत्रें में क्रमशः सर एम. विश्वेश्वरैया और डॉ. एम. एस. स्वामीनाथन के योगदानों से भारत को किस प्रकार लाभ पहुँचा था? (2019)

स्रोत: पी.आई.बी.