नोएडा शाखा पर IAS GS फाउंडेशन का नया बैच 16 जनवरी से शुरू :   अभी कॉल करें
ध्यान दें:

डेली न्यूज़

  • 11 Apr, 2025
  • 31 min read
शासन व्यवस्था

हिरासत में यातना और पुलिस सुधार की आवश्यकता

प्रिलिम्स के लिये:

हिरासत में यातना, मानवाधिकार, हिरासत में मौतें, अनुच्छेद 21, IPC, CrPC

मेन्स के लिये:

हिरासत में यातना और हिरासत में मौतें, प्रौद्योगिकी, हिरासत में मौतों से बचने के उपाय, भारत में पुलिस व्यवस्था और पुलिस सुधार

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

चर्चा में क्यों?

लोकनीति-CSDS और NGO, कॉमन कॉज़ द्वारा संयुक्त रूप से जारी भारत में पुलिसिंग की स्थिति रिपोर्ट (SPIR) 2023, रिपोर्ट में हिरासत में यातना तथा बलपूर्वक तरीकों के प्रति पुलिस कर्मियों के आंतरिक दृष्टिकोण पर प्रकाश डाला गया है। 

  • ये अंतर्दृष्टि दुर्व्यवहार को रोकने तथा संवैधानिक अधिकारों को बनाए रखने के क्रम में संस्थागत पुलिस सुधारों की तत्काल आवश्यकता पर केंद्रित है।

पुलिस द्वारा हिरासत में किये जाने वाले व्यवहार पर CSDS सर्वेक्षण के मुख्य निष्कर्ष क्या हैं?

  • हिरासत में हिंसा की स्वीकार्यता: 63% पुलिस कर्मियों ने बलात्कार और हत्या जैसे  गंभीर अपराधों के संदिग्धों के विरुद्ध हिंसा को उचित ठहराया।
    • यहाँ तक ​​कि चोरी जैसे छोटे अपराधों के लिये भी 30% लोग थर्ड डिग्री पद्धति का समर्थन करते हैं।
  • यातना का संस्थागत समर्थन: 42% पुलिस कर्मियों ने आतंकवाद के मामलों में यातना का समर्थन किया तथा 28% ने हिस्ट्रीशीटरों के मामले में इसका समर्थन किया। 
    • 25% पुलिस कर्मियों ने यौन उत्पीड़न या बाल अपहरण जैसे मामलों में भीड़ द्वारा न्याय को उचित ठहराया जबकि 22% ने "खतरनाक अपराधियों" की न्यायेतर हत्या का समर्थन किया।
    • जबकि 74% का मानना ​​था कि खतरनाक अपराधियों से निपटने के दौरान भी विधिक प्रक्रियाओं का पालन किया जाना चाहिये, केवल 41% ने गिरफ्तारी प्रोटोकॉल का लगातार पालन करने की बात स्वीकार की। 
      • केरल में सबसे अधिक इसके अनुपालन के पक्ष में थे, जहाँ 94% लोगों ने कहा कि गिरफ्तारी के दौरान हमेशा विधिक मानदंडों का पालन किया जाए।
  • अनिवार्य रिपोर्टिंग के प्रति दुविधा: 39% पुलिस कर्मियों ने हिरासत में यातना की अनिवार्य रिपोर्टिंग का समर्थन किया, जबकि 41% ने केवल चुनिंदा मामलों में ही इसका समर्थन किया, जो सशर्त जवाबदेहिता को दर्शाता है। 
    • स्टेशन स्तर के अधिकारी वरिष्ठों की तुलना में रिपोर्टिंग के प्रति अधिक सहायक थे।
  • सुधार की तत्परता: 79% पुलिस कर्मियों ने मानवाधिकार प्रशिक्षण और यातना-विरोधी तंत्र का समर्थन किया। यदि कानूनी रूप से संरक्षित हों तो 75% से अधिक पुलिस कर्मी हिरासत में हिंसा की रिपोर्ट करने के समर्थन में थे और 79% ने साक्ष्य-आधारित पूछताछ तकनीक का समर्थन किया, जो सुधार और जवाबदेहिता के क्रम में मज़बूत आंतरिक मांग को दर्शाता है।
  • विधिक सुरक्षा बनाम वास्तविकता: अनुच्छेद 21 के तहत विधिक सुरक्षा और डीके बसु बनाम पश्चिम बंगाल राज्य, 1997 मामले में सर्वोच्च न्यायालय के दिशानिर्देशों के बावजूद, हिरासत मानदंडों का नियमित रूप से उल्लंघन किया जाता है। 
  • मजिस्ट्रेटों की निष्क्रियता, अप्रभावी चिकित्सा जाँच और NHRC की सीमित शक्तियों से संस्थागत अंतराल पर प्रकाश पड़ता है जबकि हिरासत में मौत के मामलों में शून्य दोषसिद्धि (वर्ष 2018-2022) सोचनीय विषय है।

हिरासत में यातना क्या है?

पढ़ने के लिये यहां क्लिक करें: हिरासत में यातना

हिरासत में यातना के विरुद्ध अंतर्राष्ट्रीय संधियाँ क्या हैं?

पढ़ने के लिये यहां क्लिक करें: हिरासत में यातना के खिलाफ अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन

भारत में पुलिस सुधार की आवश्यकता क्यों है?

  • अत्यधिक कार्यभार एवं जनशक्ति की कमी: भारत में प्रति 1,00,000 लोगों पर केवल 155.78 पुलिसकर्मी हैं, जो संयुक्त राष्ट्र के मानक 222 से काफी कम है। पश्चिम बंगाल (39.42%), मिज़ोरम (35.06%), हरियाणा (32%) जैसे राज्यों में उच्च रिक्ति दर इस बोझ को और अधिक बढ़ा देती है।
    • अधिकारी प्रतिदिन 16–18 घंटे कार्य करते हैं, जिनमें से 83.8% अत्यधिक तनाव की रिपोर्ट करते हैं, जिससे कुशलता, प्रतिक्रिया समय और मामलों की गुणवत्ता प्रभावित होती है।
    • वे वीआईपी सुरक्षा और चुनावी ड्यूटी जैसे कई दायित्वों का निर्वहन भी करते हैं, अक्सर कम वेतन और बहुत कम विश्राम के साथ, जिससे तनाव, थकान और भ्रष्टाचार की संभावनाएँ बढ़ जाती हैं।
  • राजनीतिकरण और कमज़ोर जवाबदेहिता: पुलिस की स्वायत्तता प्राय: राजनीतिक हस्तक्षेप के कारण प्रभावित होती है। 'स्टेटस ऑफ पोलिसिंग इन इंडिया रिपोर्ट' के अनुसार, दिल्ली के 72% पुलिस अधिकारियों ने स्वीकार किया कि उन्हें जाँच के दौरान राजनीतिक दबाव का सामना करना पड़ा।
    • पत्रकारों, कार्यकर्त्ताओं और अल्पसंख्यकों के विरुद्ध देशद्रोह जैसे कानूनों का दुरुपयोग कानून के शासन और जनता के विश्वास को कमज़ोर करता है। 
    • प्रदर्शनों के दौरान अत्यधिक बल प्रयोग (जैसे CAA-NRC, 2023 में किसान आंदोलन, पहलवानों का विरोध) तथा वर्ष 2017 से 2022 के बीच हुईं 669 हिरासत में मौतें सुरक्षा तंत्र के बढ़ते सैन्यीकरण को दर्शाती हैं और गंभीर मानवाधिकार संबंधी चिंताएँ उत्पन्न करती हैं।
  • अपर्याप्त प्रशिक्षण: अधिकांश राज्यों में उचित प्रशिक्षण बुनियादी ढाँचे का अभाव है, जैसा कि CAG द्वारा उजागर किया गया है, प्रशिक्षित कर्मियों का अनुपात कम है। हथियार प्रशिक्षण पुराना हो चुका है, और पुलिस को साइबर अपराध जाँच या फोरेंसिक विज्ञान जैसी आधुनिक तकनीकों में शायद ही कभी प्रशिक्षित किया जाता है।
    • भारत में प्रति 0.1 मिलियन लोगों पर केवल 0.33 फोरेंसिक विशेषज्ञ हैं, जबकि विकसित देशों में यह संख्या 20-50 है, जिससे वैज्ञानिक जाँच में बाधा उत्पन्न होती है। 
    • सीमित लैंगिक संवेदनशीलता प्रशिक्षण घरेलू हिंसा, यौन उत्पीड़न और तस्करी के मामलों में न्याय वितरण को और कमज़ोर करता है।
  • पुराना ढाँचा: अनेक थानों में आधुनिक निगरानी उपकरणों और डिजिटल केस प्रबंधन प्रणाली की कमी है। वर्ष 2022 तक औसतन प्रत्येक 11 पुलिसकर्मियों पर केवल एक कंप्यूटर उपलब्ध था, जबकि कुछ राज्यों में प्रत्येक 30 अधिकारियों पर मात्र एक कंप्यूटर ही था।
    • पुलिस बल अभी भी पुराने हथियारों और मैनुअल रिकॉर्ड-कीपिंग पर निर्भर हैं, जिससे साइबर अपराध, आतंकवाद और अन्य उभरते खतरों से प्रभावी ढंग से निपटना कठिन हो रहा है।
  • जन विश्वास की कमी और लैंगिक असंतुलन: केरल की जनमैत्री तथा महाराष्ट्र की मोहल्ला समिति जैसी सामुदायिक पुलिसिंग अपवाद हैं, न कि सामान्य परिपाटी। इस कारण स्थानीय स्तर पर जनसहभागिता सीमित रह जाती है।
    • दलितों और अल्पसंख्यकों जैसे हाशिये पर पड़े समुदाय प्राय: पुलिस को भेदभावपूर्ण और अस्वीकार्य मानते हैं, जिससे विश्वास और सहयोग कम हो जाता है।
    • महिलाओं के विरुद्ध बढ़ते अपराधों, रिपोर्टिंग में हतोत्साहन तथा लिंग आधारित हिंसा के प्रति प्रतिक्रिया की संवेदनशीलता और प्रभावशीलता पर प्रभाव पड़ने के बावजूद पुलिस बल में महिलाओं की संख्या केवल 11.75% है।

पुलिस प्रणाली में सुधार के लिये क्या कदम उठाए जाने चाहिये?

  • कार्यभार कम करना : त्वरित भर्ती और अधिक वित्तपोषण के माध्यम से पुलिस की कमी को दूर करना। 
    • प्रकाश सिंह केस, 2006 में सर्वोच्च न्यायालय के निर्देशों के अनुसार, 2 वर्ष का निश्चित न्यूनतम कार्यकाल, कार्यकुशलता में सुधार लाएगा और राजनीतिक हस्तक्षेप को कम करेगा।
  • स्वायत्तता और गैर-राजनीतिकरण सुनिश्चित करना: राष्ट्रीय पुलिस आयोग की सिफारिश के अनुसार, पुलिस को राजनीतिक हस्तक्षेप से सुरक्षा प्रदान करने हेतु राज्य सुरक्षा आयोग (State Security Commission - SSC) की स्थापना की जानी चाहिये।
  • बुनियादी ढाँचे का आधुनिकीकरण: बेहतर अपराध नियंत्रण के लिये AI-संचालित पुलिसिंग, बिग डेटा विश्लेषण और ड्रोन निगरानी को अपनाना।
    • CCTV नेटवर्क, फोरेंसिक प्रयोगशालाओं, GPS-सक्षम वाहनों और बॉडी कैमरों में निवेश करने के लिये पुलिस बलों के आधुनिकीकरण (MPF) योजना का विस्तार करना।
    • पद्मनाभैया समिति के अनुसार साइबर अपराध इकाइयों को मज़बूत करना और जवाबदेही बढ़ाने के लिये पुलिस थानों में नाइट-विज़न CCTV पर NHRC के 2021 के निर्देश को लागू करना।
  • विशेषज्ञता और कार्यात्मक प्रभाग: मलिमथ समिति के अनुसार, जाँच और कानून-व्यवस्था संबंधी कर्त्तव्यों को अलग किया जाना चाहिये तथा जटिल मामलों के लिये एक विशेष अपराध जाँच संवर्ग का गठन किया जाना चाहिये।
    • इसने यह भी सिफारिश की कि वरिष्ठ पुलिस अधिकारी के समक्ष दिये गए इकबालिया बयान को साक्ष्य के रूप में स्वीकार किया जाएगा, तथा इसमें जबरदस्ती के विरुद्ध सुरक्षा उपाय भी शामिल किये जाएंगे। 
  • सामुदायिक पुलिस व्यवस्था और विश्वास निर्माण: मॉडल पुलिस अधिनियम (2006) और NHRC के दिशा-निर्देशों के अनुसार सामुदायिक पुलिस व्यवस्था के मॉडल को अपनाना। जनमैत्री सुरक्षा (केरल) और मोहल्ला समितियों (महाराष्ट्र)  जैसी सफल पहलों को बढ़ावा देना।
    • संवेदनशील मामलों को संभालने के लिये पुलिस थानों में सामाजिक कार्यकर्त्ताओं और मनोवैज्ञानिकों की नियुक्ति करना। विश्वास बनाने के लिये नियमित रूप से जनता और पुलिस के मध्य संवाद (खासकर हाशिए पर पड़े समुदायों में) को बढ़ावा देना।
  • लिंग संवेदीकरण: पुलिस में महिलाओं के लिये 33% आरक्षण लागू करना, प्रत्येक ज़िले में पूर्णतः महिला पुलिस थाने तथा सभी थानों में महिलाओं की उपस्थिति सुनिश्चित करना। 
    • लिंग संवेदीकरण प्रशिक्षण को अनिवार्य बनाएँ तथा प्रतिधारण में सुधार के लिये सहायक सुविधाएँ प्रदान करना।
  • न्यायिक समन्वय और सुधार: FRI का डिजिटलीकरण, पुलिस रिकॉर्ड को ई-कोर्ट से जोड़ना, तथा मलिमथ समिति की सिफारिश के अनुसार विचाराधीन मामलों को तेज़ी से निपटाना। 
    • विलंब को कम करने तथा समय पर न्याय सुनिश्चित करने के लिये संपर्क अधिकारी नियुक्त करना तथा दलील सौदेबाजी का विस्तार करना।
  • क्षमता निर्माण: फोरेंसिक, मानवाधिकार और प्रौद्योगिकी पर ध्यान केंद्रित करते हुए प्रशिक्षण को आधुनिक बनाने के लिये एक पुलिस प्रशिक्षण सलाहकार परिषद (PTAC) की स्थापना करना। सॉफ्ट स्किल और नागरिक इंटरफेस मॉड्यूल शामिल करना। 
    • छात्रवृत्ति के माध्यम से उच्च शिक्षा को प्रोत्साहित करना तथा व्यावसायिक विकास के लिये CBI, NIA और IB के साथ क्रॉस-एजेंसी प्रशिक्षण को सक्षम बनाना।

निष्कर्ष

भारत में उत्तरदायी, पेशेवर और जन-केंद्रित पुलिस व्यवस्था बनाने के लिये पुलिस सुधार बहुत ज़रूरी हैं। लंबे समय से लंबित सिफरिशों को लागू करना, स्वायत्तता सुनिश्चित करना, तकनीक का लाभ उठाना कानून प्रवर्तन को बदल सकता है। लोकतांत्रिक मूल्यों की रक्षा, न्याय सुनिश्चित करने और कानून के शासन को बनाए रखने के लिये एक सुधारित पुलिस बल आवश्यक है।

दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न:

भारत में पुलिस सुधार क्यों आवश्यक हैं? पुलिस व्यवस्था में सुधार के लिये प्रमुख उपाय सुझाएँ।

 UPSC सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ) 

प्रश्न 1 मृत्यु दंडादेशों के लघूकरण में राष्ट्रपति के विलंब के उदाहरण न्याय प्रत्याख्यान (डिनायल) के रूप में लोक वाद-विवाद के अधीन आए हैं। क्या राष्ट्रपति द्वारा ऐसी याचिकाओं को स्वीकार करने/अस्वीकार करने के लिये एक समय सीमा का विशेष रूप से उल्लेख किया जाना चाहिए ? विश्लेषण कीजिये। (2014)

प्रश्न 2 भारत में राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग (एन.एच.आर.सी.) सर्वाधिक प्रभावी तभी हो सकता है, जब इसके कार्यों को सरकार की जवाबदेही को सुनिश्चित करने वाले अन्य यांत्रिकत्वों (मकैनिज्म) का पर्याप्त समर्थन प्राप्त हो। उपरोक्त टिप्पणी के प्रकाश में, मानव अधिकार मानकों की प्रोन्नति करने और उनकी रक्षा करने में, न्यायपालिका और अन्य संस्थाओं के प्रभावी पूरक के तौर पर, एन.एच.आर.सी. की भूमिका का आकलन कीजिये। (2014)


अंतर्राष्ट्रीय संबंध

अमेरिका-चीन टैरिफ वृद्धि 2025

प्रारंभिक परीक्षा के लिये:

अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष, विश्व व्यापार संगठन, सेमीकंडक्टर, दुर्लभ मृदा तत्त्व, भारत-अमेरिका कॉम्पैक्ट पहल

मुख्य परीक्षा के लिये:

वैश्विक व्यापार संघर्ष और उभरती अर्थव्यवस्थाओं पर उनका प्रभाव, भारत की व्यापार नीति और बाह्य क्षेत्र सुधार

स्रोत: TH

चर्चा में क्यों? 

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा चीनी आयात पर 145% तक की बढ़ोतरी के जवाब में चीन ने अमेरिकी वस्तुओं पर टैरिफ 84% से बढ़ाकर 125% कर दिया है। इससे पहले, राष्ट्रपति ट्रंप ने भारत सहित अधिकांश देशों के लिये पारस्परिक टैरिफ को 90 दिनों के लिये स्थगित करने की घोषणा की थी, लेकिन चीन को इससे बाहर रखा था।

  • अमेरिका और चीन के बीच इन जवाबी कदमों से वैश्विक आर्थिक स्थिरता को लेकर चिंताएँ बढ़ गई हैं।

अमेरिका और चीन के बीच टैरिफ में वृद्धि के क्या कारण रहे?

  • अमेरिका: वर्ष 2024 में चीन के साथ 295 बिलियन अमेरिकी डॉलर का अमेरिकी व्यापार घाटा अमेरिकी टैरिफ बढ़ोतरी के पीछे एक प्रमुख कारण बना हुआ है।
    • अमेरिका ऐसे घाटे को वैश्विक व्यापार में हानि का संकेत मानता है तथा चीन के अधिशेष को अनुचित और रणनीतिक रूप से जोखिमपूर्ण मानता है।
    • अमेरिका ने चीन पर बौद्धिक संपदा की चोरी और जबरन प्रौद्योगिकी हस्तांतरण का आरोप लगाया है, जो निष्पक्ष प्रतिस्पर्द्धा को विकृत करता साथ ही उसने अपने घरेलू उद्योगों की रक्षा के लिये टैरिफ बढ़ा दिये हैं।
  • चीन: चीन ने अमेरिका द्वारा चीनी आयात पर टैरिफ बढ़ाकर 145% करने के बाद प्रतिक्रिया व्यक्त की है। यह कदम दोनों देशों के बीच चल रहे व्यापार विवाद का हिस्सा है।
  • आपूर्ति शृंखला सुरक्षा: दोनों राष्ट्रों का लक्ष्य आपसी निर्भरता को कम करना है, विशेष रूप से अर्द्धचालक, दुर्लभ मृदा तत्त्व और इलेक्ट्रिक वाहन (EV) घटकों जैसे महत्त्वपूर्ण वस्तुओं में।
  • अमेरिका चीन पर अपनी निर्भरता कम कर रहा है, चिप्स एक्ट और भारत (भारत-अमेरिका कॉम्पैक्ट पहल) तथा वियतनाम के साथ साझेदारी जैसे कदमों का उद्देश्य आपूर्ति शृंखलाओं को जोखिम मुक्त करना तथा उनमें विविधता लाना है।

  • भू-राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता: अमेरिका-चीन तनाव व्यापार से परे है, जो ताइवान, दक्षिण चीन सागर और तकनीकी प्रभुत्व (कृत्रिम बुद्धिमत्ता, क्वांटम) पर रणनीतिक संघर्षों में निहित है। 
  • तीसरे देशों के माध्यम से टैरिफ चोरी: चीनी कंपनियाँ अमेरिकी टैरिफ से बचने के लिये वियतनाम और मलेशिया जैसे देशों के माध्यम से माल भेजती हैं। 
    • इससे चीन से परे व्यापक व्यापार तनाव पैदा हो गया है, क्योंकि अमेरिका क्षेत्रीय मध्यस्थों के माध्यम से अपने बाज़ारों तक गुप्त पहुँच को रोकना चाहता है।

अमेरिका और चीन के बीच पूर्ण पैमाने पर व्यापार युद्ध के जोखिम क्या हैं?

  • मंदी का जोखिम: अमेरिका और चीन संयुक्त रूप से वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद (अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) 2024 अनुमान) में लगभग 43% हिस्सेदारी रखते हैं।
    • एक साथ आर्थिक सुस्ती या मंदी वैश्विक विकास की गति को धीमा कर देगी। विश्व व्यापार संगठन (WTO) ने चेतावनी दी है कि अमेरिका-चीन व्यापार युद्ध वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद में 7% तक की गिरावट ला सकता है। 
    • टैरिफ को लेकर अनिश्चितता भी निवेश को कमज़ोर कर रही है तथा बाज़ार में अस्थिरता की स्थिति उत्पन्न हो रही है। 
    • भारी टैरिफ व्यवस्था से रोज़मर्रा की वस्तुओं की कीमतें बढ़ने, मुद्रास्फीति को बढ़ावा मिलने तथा उपभोक्ता व्यय सीमित होने का जोखिम होता है, जिसके चलते वैश्विक मंदी का खतरा बढ़ सकता है।
  • उत्पाद डंपिंग जोखिम: अमेरिकी बाज़ार तक पहुँच कम होने के कारण, चीन स्टील और सौर पैनलों जैसी अधिशेष वस्तुओं को सब्सिडी वाले मूल्यों पर अन्य बाज़ारों में भेज सकता है।
  • यह यूरोपीय संघ, ब्रिटेन और भारत जैसे क्षेत्रों के स्थानीय उद्योगों पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकता है, जिससे रोजगार और मजदूरी पर असर पड़ सकता है तथा व्यापारिक विवादों और संरक्षणवाद में वृद्धि हो सकती है।
  • सामरिक संसाधनों का शस्त्रीकरण: गैलियम, जर्मेनियम और लिथियम जैसे दुर्लभ मृदा तत्त्वों पर चीन की पकड़ अमेरिका-चीन तनाव को एक तकनीकी शीत युद्ध में बदल सकती है, जिससे वैश्विक आपूर्ति शृंखलाएँ संकट में पड़ सकती हैं।
  • भारत के लिये, यह विशेष रूप से इलेक्ट्रॉनिक्स और नवीकरणीय ऊर्जा क्षेत्रों में 'मेक इन इंडिया' अभियान के मार्ग में बाधा उत्पन्न कर सकता है।
  • वैश्विक आपूर्ति शृंखलाओं में बाधा: चीन में विनिर्मित उत्पादों या अमेरिका द्वारा विकसित तकनीकों (जैसे, सॉफ्टवेयर, चिप्स) पर निर्भर देशों को सीमा पार आर्थिक अस्थिरताओं का सामना करना पड़ सकता है।
  • रीशोरिंग और नियर-शोरिंग जैसी पहलें महंगी और समय-साध्य होती हैं।
  • भू-राजनीतिक ध्रुवीकरण: वैश्विक विभाजन देशों को किसी एक पक्ष का समर्थन करने के लिये विवश कर सकता है, जिससे बहुपक्षीय सहयोग कमजोर पड़ सकता है तथा वैश्विक आर्थिक शासन व्यवस्था बिखर सकती है।

अमेरिका-चीन व्यापार युद्ध के भारत पर क्या प्रभाव होंगे?

  • आपूर्ति शृंखला में व्यवधान: भारत में इलेक्ट्रॉनिक्स, ऑटो पार्ट्स और फार्मास्यूटिकल्स मुख्य रूप से चीनी घटकों पर निर्भर हैं।
  • टैरिफ के कारण लागत में वृद्धि या शिपमेंट में देरी के कारण भारत में गैजेट, वाहन महंगे हो सकते हैं या उन्हें प्राप्त करना कठिन हो सकता है।
  • फार्मास्युटिकल क्षेत्र में जोखिम: भारतीय दवाओं में प्रयुक्त होने वाले लगभग 70% सक्रिय फार्मास्युटिकल घटक (API) चीन से आयात किये जाते हैं।

  • टैरिफ से जुड़ी लागत वृद्धि या आपूर्ति बाधाएँ दवाओं की कीमतें बढ़ा सकती हैं और भारत के स्वास्थ्य सेवा और फार्मा निर्यात को प्रभावित कर सकती हैं।

  • GDP और मुद्रास्फीति पर प्रभाव: वैश्विक मांग की सुस्ती भारत की आर्थिक वृद्धि को प्रभावित कर सकती है। इसका उदाहरण वर्ष 2018 के अमेरिका-चीन व्यापार युद्ध के दौरान देखा गया, जब भारत की GDP वृद्धि दर वर्ष 2017-18 के 8.3% से घटकर वर्ष 2019-20 में 4.2% पर आ गई थी।

  • महंगे आयात के कारण मुद्रास्फीति बढ़ सकती है, जिससे घरेलू खर्च और व्यावसायिक लागत प्रभावित होगी।

  • निर्यात के नए अवसर: अमेरिका द्वारा चीन पर उच्च टैरिफ लगाए जाने के चलते, वस्त्र और चमड़ा जैसे भारतीय उद्योगों के पास प्रतिस्पर्धात्मक बढ़त हासिल करने तथा अमेरिकी बाज़ार में अपनी हिस्सेदारी बढ़ाने का अच्छा अवसर है।

अमेरिका-चीन व्यापार संघर्ष के प्रभाव को कम करने के लिये क्या किया जा सकता है?

  • वैश्विक कार्यवाहियाँ: विश्व व्यापार संगठन का अपीलीय निकाय वर्ष 2019 से पंगु हो गया है। G-20 और क्वाड देशों के बीच आम सहमति बनाकर इसे पुनर्जीवित करना बड़े पैमाने पर टैरिफ विवादों को कानूनी रूप से मध्यस्थता करने के लिये महत्त्वपूर्ण है।
    • दक्षिणी देशों को दक्षिण-दक्षिण व्यापार गलियारों (जैसे, भारत-अफ्रीका-आसियान) में निवेश करके अमेरिका-चीन धुरी पर अपनी निर्भरता कम करनी होगी।
    • यदि यूरोप एशिया के साथ अपने संबंधों को मजबूत करता है, तो दीर्घावधि में वैश्विक व्यापार अमेरिकी प्रभुत्व से विकेंद्रित हो सकता है।
    • एशिया-प्रशांत आर्थिक सहयोग और ब्रिक्स जैसे मंचों को एकतरफावाद की तुलना में आर्थिक तनाव कम करने और सहयोग को प्राथमिकता देनी चाहिये।
  • राष्ट्रीय स्तर पर कार्रवाई: भारत को भारत-यूरोपीय संघ मुक्त व्यापार समझौता (FTA), भारत-यूके FTA और भारत-GCC FTA जैसे समझौतों को शीघ्रता से आगे बढ़ाना चाहिये, ताकि अमेरिका-चीन व्यापार युद्ध से उत्पन्न आपूर्ति संबंधी झटकों से भारतीय निर्यात को सुरक्षित रखा जा सके।
  • चीनी आयात पर अत्यधिक निर्भरता को रोकने के लिये सेमीकंडक्टर, इलेक्ट्रॉनिक्स, APIs और सौर मॉड्यूल में उत्पादन सह प्रोत्साहन योजनाओं और मेक इन इंडिया को मजबूत करना।
  • PM गति शक्ति और इन्वेस्ट इंडिया प्लेटफॉर्म के तहत भूमि, श्रम, रसद और अनुपालन को आसान बनाकर चीन से बाहर निकलने की इच्छुक आपूर्ति शृंखलाओं को आकर्षित करने के लिये भारत को एक पसंदीदा चीन+1 गंतव्य के रूप में स्थापित करना।
  • आपूर्ति शृंखलाओं के गैर-राजनीतिकरण को बढ़ावा देने और विकासशील देशों के व्यापार अधिकारों की रक्षा के लिये क्वाड, ब्रिक्स, जी-20 और शंघाई सहयोग संगठन (SCO) जैसे मंचों का उपयोग करना।
  • भारतीय निर्यातकों के लिये टैरिफ परिवर्तनों, पुनः मार्गित वस्तुओं तथा पूर्व चेतावनी प्रणालियों की निगरानी के लिये एक राष्ट्रीय व्यापार निगरानी संस्था की स्थापना करना।

दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न:

प्रश्न: वर्ष 2025 में अमेरिका और चीन के बीच टैरिफ में वृद्धि के चलते भारत की अर्थव्यवस्था एवं वैश्विक व्यापार पर संभावित प्रभावों का विश्लेषण कीजिये। साथ ही, इन चुनौतियों को कम करने हेतु भारत द्वारा उठाए जा सकने वाले संभावित कदमों पर प्रकाश डालिये।

 UPSC सिविल सेवा परीक्षा, पिछले वर्ष के प्रश्न (PYQs)  

मेन्स  

प्रश्न. चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा (CPEC) को चीन की बड़ी 'वन बेल्ट वन रोड' पहल के मुख्य उपसमुच्चय के रूप में देखा जाता है। CPEC का संक्षिप्त विवरण दीजिये और उन कारणों का उल्लेख कीजिये जिनकी वजह से भारत ने खुद को इससे दूर किया है। (2018)

प्रश्न. चीन और पाकिस्तान ने आर्थिक गलियारे के विकास हेतु एक समझौता किया है। यह भारत की सुरक्षा के लिये क्या खतरा है? समालोचनात्मक चर्चा कीजिये। (2014)

प्रश्न. "चीन एशिया में संभावित सैन्य शक्ति की स्थिति विकसित करने के लिये अपने आर्थिक संबंधों और सकारात्मक व्यापार अधिशेष का उपयोग उपकरण के रूप में कर रहा है"। इस कथन के आलोक में भारत पर पड़ोसी देश के रूप में इसके प्रभाव की चर्चा कीजिये। (2017)


close
एसएमएस अलर्ट
Share Page
images-2
images-2