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UNCAT और हिरासत में यातना

  • 21 Mar 2025
  • 15 min read

प्रिलिम्स के लिये:

UNCAT 1984, मानवाधिकार, अनुच्छेद 21, आपराधिक न्याय प्रणाली, NHRC, UDHR, नागरिक और राजनीतिक अधिकारों पर अंतर्राष्ट्रीय अनुबंध, विधि आयोग। 

मेन्स के लिये:

UNCAT और भारत द्वारा इसका अनुसमर्थन करने की आवश्यकता, हिरासत में यातना से बचने के उपाय।

स्रोत: द हिंदू

चर्चा में क्यों?

हिरासत में यातना के खतरों के संबंध में तहव्वुर राणा की अमेरिकी अपील और संजय भंडारी को प्रत्यर्पित करने से ब्रिटेन के उच्च न्यायालय के इनकार ने यातना और अन्य क्रूर, अमानवीय या अपमानजनक उपचार या दंड (UNCAT) 1984 के खिलाफ संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन की पुष्टि करने और यातना विरोधी कानून पारित करने में भारत की विफलता फिर से चर्चा का विषय बन गई है।

UNCAT क्या है?

  • परिचय: यह विश्व में यातना और अन्य क्रूर, अमानवीय या अपमानजनक उपचार या दंड को रोकने के लिये एक अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार संधि है।
    • इसे संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा 10 दिसंबर, 1984 को अपनाया गया तथा 26 जून, 1987 को लागू किया गया ।
  • यातना की परिभाषा: UNCAT के अनुच्छेद 1 में यातना को, किसी सार्वजनिक अधिकारी की भागीदारी या सहमति से, सूचना प्राप्त करने, दंड देने या धमकी देने जैसे उद्देश्यों के लिये जानबूझकर गंभीर शारीरिक या मानसिक पीड़ा पहुँचाने के रूप में परिभाषित किया गया है।
  • सार्वभौमिक अधिकार क्षेत्र: अनुच्छेद 5 राज्यों को यातना के आरोपी व्यक्तियों पर मुकदमा चलाने या उन्हें प्रत्यर्पित करने की आवश्यकता पर बल देता है, चाहे अपराध कहीं भी किया गया हो या अपराधी की राष्ट्रीयता कुछ भी हो।
  • राज्य के दायित्व: UNCAT के पक्षकार राज्यों के लिये यह आवश्यक है कि वे:
    • यातना पर पूर्णतः प्रतिबंध लगाएँ (अनुच्छेद 2), युद्ध या अन्य आपात स्थितियों में भी।
    • व्यक्तियों के प्रत्यर्पण या निर्वासन पर रोक लगाना (गैर-वापसी का अधिकार) उन देशों में जहाँ उन्हें यातना दिये जाने का खतरा हो (अनुच्छेद 3)
    • घरेलू कानून के तहत यातना को अपराध घोषित किया जाएगा (अनुच्छेद 4)।
    • यातना के आरोपों की शीघ्र एवं निष्पक्ष जाँच करना (अनुच्छेद 12)।
    • यातना के पीड़ितों को निवारण और मुआवजा प्रदान करना (अनुच्छेद 14)।
  • यातना (टॉर्चर) के विरुद्ध समिति (CAT.): CAT (अनुच्छेद 17), स्वतंत्र विशेषज्ञों का एक निकाय है जिसे कन्वेंशन के कार्यान्वयन की निगरानी का कार्य सौंपा गया है।
  • UNCAT के लिये वैकल्पिक प्रोटोकॉल (OPCAT): वर्ष 2002 में अपनाया गया यह प्रोटोकॉल अंतर्राष्ट्रीय और राष्ट्रीय निकायों द्वारा नियमित रूप से हिरासत में लिये गए लोगों के दौरों के लिये एक निवारक तंत्र का निर्माण करता है।
  • भारत और UNCAT: भारत ने वर्ष 1997 में UNCAT पर हस्ताक्षर किये थे लेकिन अभी तक इसका अनुसमर्थन नहीं किया है।

हिरासत में यातना क्या है?

और पढ़ें..: हिरासत में यातना

भारत को UNCAT का अनुसमर्थन करने की आवश्यकता क्यों है?

  • प्रत्यर्पण का सुदृढ़ीकरण: इससे वित्तीय मामलों के भगोड़े व्यक्तियों को प्रत्यर्पित करने में मदद मिलेगी, जिन्हें अक्सर ब्रिटेन और अमेरिका जैसे देशों से संरक्षण प्राप्त होता है और साथ ही निष्पक्ष आपराधिक न्याय प्रणाली के लिये भारत की प्रतिष्ठा में भी वृद्धि होगी।
  • हिरासत में यातना का निवारण: NHRC के अनुसार भारत में हिरासत में होने वाली स्थिति "अनियंत्रित" है, जिसमें केवल वर्ष 2019 में 1,731 हिरासत में मौतें दर्ज की गई थी।
    • UNCAT का अनुसमर्थन करने के लिये भारत को यातना की रोकथाम करने के उपायों का क्रियान्वन करना होगा।
  • संवैधानिक दायित्व: भारतीय संविधान का अनुच्छेद 21 प्राण  और दैहिक स्वतंत्रता के अधिकार की गारंटी देता है, जिसमें यातना से सुरक्षा भी शामिल है।
    • आरडी उपाध्याय केस, 1999 में सर्वोच्च न्यायालय ने निर्णय किया कि हिरासत में यातना मूल अधिकारों का उल्लंघन है और इससे मानव की गरिमा प्रभावित होती है  तथा न्यायालयों द्वारा यथार्थवादी विधियों से इसका निवारण किया जाना चाहिये।
  • जवाबदेही सुनिश्चित करना: UNCAT के अंतर्गत यातना की जाँच, अभियोजन किये जाने और उसे अपराध घोषित किये जाने का प्रावधान किया गया है तथा भारत द्वारा इसका अनुसमर्थन करने पर देश की विधिक ढाँचे में इनका कार्यान्वन किया जाएगा।
    • प्रकाश सिंह केस, 2006 में सर्वोच्च न्यायालय ने सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को पुलिस कदाचार के खिलाफ स्वतंत्र निगरानी और नागरिक निवारण के लिये पुलिस शिकायत प्राधिकरण स्थापित करने का आदेश दिया था।
  • सुभेद्य समुदायों की सुरक्षा: दलितों, अल्पसंख्यकों और शरणार्थियों सहित उपांतिकीकृत समुदाय हिरासत में हिंसा से असमान रूप से प्रभावित होते हैं। 
    • UNCAT का अनुसमर्थन करने से सभी आधारों (धर्म, जाति, नस्ल और जातीयता) पर यातना को प्रतिबंधित किया जाएगा तथा युद्ध अथवा आपात स्थितियों में भी मानवीय गरिमा को अक्षुण्ण रखा जाएगा।

UNCAT का अनुसमर्थन न करने से भारत की वैश्विक स्थिति पर क्या प्रभाव पड़ेगा?

  • प्रत्यर्पण अनुरोधों पर प्रभाव: विभिन्न मामलों के भगोड़े व्यक्ति भारत में यातना-रोधी कानूनों के अभाव के कारण प्रत्यर्पण से बच जाते हैं, जिससे भारत की आपराधिक न्याय प्रणाली की प्रभावशीलता पर प्रभाव पड़ रहा है।
    • इस विधिक अभाव के कारण अंतर्राष्ट्रीय अपराध और आतंकवाद की रोकथाम करने की भारत की क्षमता कमज़ोर होती है।
  • सॉफ्ट पावर पर प्रभाव: हिरासत में यातना की समस्या से निपटने में भारत की विफलता से मानवाधिकारों के प्रति प्रतिबद्ध एक लोकतांत्रिक राज्य के रूप में इसकी विश्वसनीयता प्रभावित होती है।
    • अमेरिका के ग्वांतानामो बे उदाहरण से यह स्पष्ट होता है कि राज्य की हिरासत में यातना से किस प्रकार किसी राष्ट्र की नैतिक सत्ता की अपूरणीय क्षति होती है।

यातना-रोधी विधि के लिये क्या अनुशंसाएँ की गई हैं?

  • राज्य सभा समिति (2010): यातना निवारण विधेयक, 2010 पर राज्य सभा समिति ने एक व्यापक यातना-विरोधी विधि की अनुशंसा की, जिसे व्यापक राजनीतिक और सार्वजनिक समर्थन प्राप्त हुआ।
  • भारतीय विधि आयोग: अपनी 273वीं रिपोर्ट (2017) में आयोग ने UNCAT के अनुसमर्थन और UNCAT का क्रियान्वन किये जाने हेतु एक विधि निर्माण की अनुशंसा की, जिसमें यातना को अपराध घोषित किये जाने की आवश्यकता पर बल दिया गया।
    • इसमें सरकार के विचारार्थ यातना निवारण विधेयक का मसौदा भी प्रस्तुत किया गया।
  • सर्वोच्च न्यायालय:
    • डी.के. बसु बनाम पश्चिम बंगाल राज्य मामला, 1997: इसमें हिरासत में यातना की रोकथाम किये जाने तथा गिरफ्तारी और नज़रबंदी में पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिये दिशा-निर्देश निर्धारित किये गए।
      • सर्वोच्च न्यायालय ने निर्णय किया, मामले की जाँच करना और आरोपी से पूछताछ करना पुलिस का अधिकार है, लेकिन जानकारी प्राप्त करने के लिये थर्ड डिग्री यातना का उपयोग किये जाने की अनुमति नहीं है।
      • लोक सेवकों द्वारा हिरासत में हिंसा के मामलों में, राज्य भी उनके कार्यों के लिये उत्तरदायी होगा।
    • उत्तर प्रदेश राज्य बनाम राम सागर यादव मामला, 1985: हिरासत में यातना से संबंधित मामलों में साक्ष्य का भार पुलिस अधिकारी पर होता है।
    • नंबी नारायणन मामला, 2018: गलत अभियोजन और हिरासत में दुर्व्यवहार के कारण होने वाले मनोवैज्ञानिक आघात पर प्रकाश डाला गया।
  • राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (NHRC): NHRC ने सलाह दी कि ज़िला मजिस्ट्रेट और पुलिस अधीक्षकों को हिरासत में यातना की घटनाओं की रिपोर्ट 24 घंटे के भीतर अपने सेक्रेटरी जनरल को देनी चाहिये। 
    • ऐसा न करना घटना को छिपाने का प्रयास माना जा सकता है।   
  • अंतर्राष्ट्रीय दायित्व: संविधान के अनुच्छेद 51(c) और 253 में अंतर्राष्ट्रीय संधियों का पालन करना आवश्यक है।

भारत में हिरासत में यातना का समाधान कैसे कर सकता है?

  • कानूनी सुधार: UNCAT मानकों के अनुरूप दंड और पीड़ित को मुआवज़ा देने के साथ एक सख्त यातना निवारण कानून बनाना, तथा यातना समाप्त करने के लिये भारत की प्रतिबद्धता को सुदृढ़ करने के लिये UNCAT का अनुसमर्थन करना।
  • संस्थागत जवाबदेही: हिरासत में हिंसा के मामलों में पुलिस के खिलाफ त्वरित, पारदर्शी कार्यवाही करना और पुलिस रिमांड की आवश्यकता वाले संवेदनशील मामलों के लिये ज़िला स्तर पर विशेष टीमों का गठन करना।
  • क्षमता निर्माण: पुलिस को मानवाधिकारों, नैतिक पूछताछ और हिरासत में यातना के कानूनी परिणामों के बारे में प्रशिक्षित किया जाना चाहिये। मजिस्ट्रेटों को रिमांड मूल्यांकन और प्राकृतिक न्याय के बारे में शिक्षित करना।
    • हितों के टकराव को रोकने और यातना के मामलों को कम करने के लिये पुलिस में अलग कानून प्रवर्तन और जाँच शाखा की स्थापना की जानी चाहिये।
  • न्यायिक निगरानी: मजिस्ट्रेट को जाँच की निगरानी करनी चाहिये, कानूनी अनुपालन सुनिश्चित करना चाहिये। हिरासत में हिंसा की जाँच के लिये स्वतंत्र निकाय का निर्माण किया जाना चाहिये।

निष्कर्ष

UNCAT का अनुमोदन करने में भारत की विफलता उसके मानवाधिकार रिकॉर्ड को कमज़ोर करती है, प्रत्यर्पण अनुरोधों को बाधित करती है, और हिरासत में यातना जारी रखने की अनुमति देती है। संवैधानिक मूल्यों को बनाए रखने, कमज़ोर समुदायों की रक्षा करने तथा मानवाधिकारों और न्याय के लिये प्रतिबद्ध एक लोकतांत्रिक राष्ट्र के रूप में भारत की वैश्विक विश्वसनीयता बढ़ाने के लिये यातना-विरोधी कानून बनाना, जवाबदेही और न्यायिक निगरानी को मज़बूत करना आवश्यक है।

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्रश्न: भारत में हिरासत में हिंसा और उससे जुड़ी चुनौतियों से निपटने के लिये कानूनी और संस्थागत सुधारों की आवश्यकता पर चर्चा कीजिये।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

मेन्स:

प्रश्न. यद्यपि मानवाधिकार आयोगों ने भारत में मानव अधिकारों के संरक्षण में काफी हद तक योगदान दिया है, फिर भी वे ताकतवर और प्रभावशालियों के विरुद्ध अधिकार जताने में असफल रहे हैं। इनकी संरचनात्मक और व्यावहारिक सीमाओं का विश्लेषण करते हुए सुधारात्मक उपायों के सुझाव दीजिये। (2021)

प्रश्न. भारत में राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग (एन.एच.आर.सी.) सर्वाधिक प्रभावी तभी हो सकता है, जब इसके कार्यों को सरकार की जवाबदेही को सुनिश्चित करने वाले अन्य यांत्रिकत्वों (मकैनिज़्म) का पर्याप्त समर्थन प्राप्त हो। उपरोक्त टिप्पणी के प्रकाश में, मानव अधिकार मानकों की प्रोन्नति करने और उनकी रक्षा करने में, न्यायपालिका और अन्य संस्थाओं के प्रभावी पूरक के तौर पर, एन.एच.आर.सी. की भूमिका का आकलन कीजिये। (2014)

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