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डेली न्यूज़

  • 11 Mar, 2021
  • 54 min read
भारतीय अर्थव्यवस्था

रेलवे किराये का समायोजन

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में रेलवे की संसदीय स्थायी समिति ने माल और यात्री किराये दोनों के तार्किक समायोजन का सुझाव दिया है।

प्रमुख बिंदु: 

समिति का अवलोकन:

  • सामाजिक सेवा दायित्व:
    • समिति ने रेलवे को कथित रूप से सामाजिक सेवा दायित्वों के कारण यात्री सेवाओं में होने वाले नुकसान पर चिंता व्यक्त की है, गौरतलब है कि सामाजिक सेवा दायित्वों में लागत से कम कीमत के टिकटों के किराये का निर्धारण शामिल है।
    • रेलवे को यात्री परिवहन में एक वर्ष में लगभग 35,000-38,000 करोड़ रुपए की हानि होती है।
  • Covid-19 का प्रभाव:
    • Covid-19 महामारी के दौरान रेलवे परिचालन के निलंबन के कारण यात्री सेवाओं से प्राप्त राजस्व में और अधिक गिरावट देखी गई है।
  • परिचालन अनुपात:
    • समिति ने रेलवे परिचालन अनुपात (Operating Ratio) में नियमित रूप से गिरावट को रेखांकित किया है।
    • OR यह दर्शाता है कि रेलवे को एक रुपया कमाने के लिये कितना धन खर्च करना पड़ता है। यह रेलवे के वित्तीय स्वास्थ्य का आकलन करने में सहायता करता है।
    • उदाहरण के रूप में वित्तीय वर्ष 2019-20 के लिये 98.36% का परिचालन अनुपात, यह दर्शाता है कि रेलवे को 100 रुपए कमाने के लिये 98.36 रुपए खर्च करने पड़े।
      • वित्तीय वर्ष 2020-21 के लिये रेलवे परिचालन अनुपात 131.4% होने का अनुमान है।
      • साथ ही वित्तीय वर्ष 2021-22 हेतु रेलवे द्वारा 96.15% परिचालन अनुपात का लक्ष्य रखा गया है। 

रेलवे के परिचालन में चुनौतियाँ

  • भारतीय रेलवे की कुछ प्रमुख चुनौतियाँ निम्नलिखित हैं: नौकरशाही, सार्वजनिक सेवा दायित्व की गलत धारणा के साथ जटिल संरचना, विकृत निवेश  प्राथमिकताएँ, प्रमुख मार्गों पर क्षमता की कमी, तनावपूर्ण टर्मिनल, तर्कहीन यात्री और माल ढुलाई किराया।
  • भारतीय रेलवे का माल ढुलाई भाड़ा विश्व में सबसे अधिक है। किराये में हुई इस वृद्धि ने  उपभोक्ताओं को माल ढुलाई के लिये रेल के बदले रोडवेज़ जैसे अन्य विकल्पों को अपनाने के लिये प्रेरित किया है, जो कि उनके लिये अधिक सुविधाजनक है।
  • रेलवे की सबसे बड़ी चुनौती यह है कि माल ढुलाई से अर्जित लाभ का उपयोग यात्री और अन्य कोच सेवाओं के नुकसान की भरपाई के लिये किया जाता है, जिससे माल तथा यात्री व्यवसाय दोनों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।

समिति का सुझाव:

  • सामाजिक सेवा दायित्वों पर पुनर्विचार और COVID-19 के दौरान निलंबित सेवाओं को पुनः शुरू करना।
  • यात्री किराये का समायोजन:  
    • माल ढुलाई पर अधिक किराये के बोझ को कम करने के लिये यात्री किराये का "विवेकपूर्ण समायोजन" करना।
  • किराये को मांग और बाज़ार से जोड़ना:
    • समिति ने यात्री किराये और माल भाड़े की दर दोनों को मांग-सह-बाज़ार चालित होने तथा भिन्न खंडों/क्षेत्रों के लिये इनके अलग-अलग निर्धारण का सुझाव दिया है।
  • ग्राहकों को बनाए रखना:
    • चूँकि एक प्रतिस्पर्द्धी बाज़ार में परिवहन की मांग प्रत्यास्थ (Elastic) होती है, रेलवे को इस तथ्य के प्रति सजग रहना चाहिये कि किराये में किसी भी वृद्धि को अन्य परिवहन माध्यमों से प्रतिस्पर्द्धा के आधार पर एक निश्चित सीमा तक सीमित किया जाना चाहिये।
    • ग्राहक आधार को बनाए रखने और राजस्व बढ़ाने के लिये माल ढुलाई तथा यात्री परिवहन व्यवसाय दोनों में रेलवे की परिचालन दक्षता का अधिक-से-अधिक लाभ उठाना होगा।
  • नियोजन और प्रबंधन को मज़बूत बनाना:
    • रेलवे को विभिन्न तरीकों/स्रोतों से पर्याप्त गैर-किराया राजस्व अर्जित करने के लिये अपने नियोजन, प्रबंधन और मौद्रिक तंत्र को मज़बूत करना चाहिये।
      • उदाहरण: सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों, भूमि पट्टे, पार्किंग, स्क्रैप की बिक्री, विज्ञापनों और प्रचार आदि से प्राप्त लाभांश।

हालिया प्रयास: 

  • राष्ट्रीय रेल योजना का मसौदा:
    • देश की कुल माल ढुलाई प्रणाली में रेलवे की हिस्सेदारी को बढ़ाने और रेलवे में क्षमता की कमी को दूर करने के प्रयास के लिये भारतीय रेलवे द्वारा दिसंबर 2020 में राष्ट्रीय रेल योजना का मसौदा जारी किया गया है।
  • समर्पित माल ढुलाई गलियारा:
    • यह एक उच्च गति और उच्च क्षमता वाला रेलवे कॉरिडोर है जो विशेष रूप से माल ढुलाई, या दूसरे शब्दों में माल और वस्तुओं के परिवहन के लिये समर्पित है।
  • निजी यात्री गाड़ियों के संचालन के लिये नीति:
    • जुलाई 2020 में भारतीय रेलवे ने 151 नई ट्रेनों के माध्यम से निजी कंपनियों को अपने नेटवर्क पर यात्री गाड़ियों के संचालन की अनुमति देने की प्रक्रिया शुरू की।
  • आदर्श स्टेशन योजना:
    • इस योजना का उद्देश्य भारत के उपनगरीय स्टेशनों को आदर्श स्टेशनों में अपग्रेड करना है।
  • रेलवे बोर्ड का पुनर्गठन और विभिन्न रेलवे अधिकारी संवर्गों का विलय:
    • वर्ष 2019-20 में सरकार ने भारतीय रेलवे के पुनर्गठन को मंज़ूरी दी, जिसमें बोर्ड की क्षमता (सदस्यों की संख्या) में कमी के साथ-साथ विभिन्न संवर्गों का भारतीय रेलवे प्रबंधन सेवा नामक केंद्रीय सेवा में विलय शामिल था।

आगे की राह: 

  • दैनिक आधार पर या बार-बार रेलवे सेवा का उपयोग करने वाले यात्रियों/उपभोक्ताओं के बैंक खाते में प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण के माध्यम से सब्सिडी प्रदान की जा सकती है, जैसा कि कई अन्य सरकारी योजनाओं के मामले में किया जाता है। इससे यह सुनिश्चित हो सकेगा कि यात्री टिकट की पूरी कीमत चुकाएँ और सरकार के लिये सब्सिडी का बोझ केवल उन वर्गों तक सीमित किया जा सके जिन्हें इसकी सबसे अधिक ज़रूरत है।
  • देश के बढ़ते परिवहन बाज़ार में परिवर्तन के साथ एक एकीकृत मल्टी-मोडल 'संपूर्ण यात्रा' सेवा एक प्रमुख मांग होगी। रेलवे की यात्री परिवहन व्यापार रणनीति के लिये अंतर-शहरी यात्री परिवहन श्रेणी को विशेष रूप से लक्षित किये जाने की आवश्यकता है क्योंकि वर्तमान में इसके कोर व्यवसाय के तहत दैनिक रूप से लगभग 4,000 ट्रेनों का संचालन किया जाता है। इस तरह की सेवाओं की आपूर्ति में व्यापक कमी को संबोधित करते हुए उन्हें आधुनिक प्री-बोर्ड और ऑन-बोर्ड सुविधा के साथ पर्याप्त रूप से अपग्रेड और त्वरित बनाया जाना चाहिये। 

स्रोत: द हिंदू


अंतर्राष्ट्रीय संबंध

उइगर मुस्लिम

चर्चा में क्यों?

हाल ही में तुर्की में कई सौ उइगर मुस्लिम महिलाओं ने चीन के साथ तुर्की के प्रत्यर्पण समझौते के विरुद्ध अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के अवसर पर विरोध प्रदर्शन किया और चीन के शिनजियांग प्रांत में बड़े पैमाने पर बने शिविरों को जल्द-से-जल्द बंद करने की मांग की।

  • इससे पहले वर्ष 2020 में अमेरिका के हाउस ऑफ रिप्रेज़ेंटेटिव्स ने उइगर मुसलमानों के उत्पीड़न के लिये ज़िम्मेदार चीनी अधिकारियों पर प्रतिबंध लगाने हेतु एक कानून को मंज़ूरी दी थी।

Uighur-Muslims

प्रमुख बिंदु

उइगर मुस्लिम

  • उइगर मुख्य रूप से मुस्लिम अल्पसंख्यक तुर्क जातीय समूह हैं, जिनकी उत्पत्ति मध्य एवं पूर्वी एशिया से मानी जाती है।
    • उइगर अपनी स्वयं की भाषा बोलते हैं, जो कि काफी हद तक तुर्की भाषा के समान है और उइगर स्वयं को सांस्कृतिक एवं जातीय रूप से मध्य एशियाई देशों के करीब पाते हैं।
  • उइगर मुस्लिमों को चीन में आधिकारिक तौर पर मान्यता प्राप्त 55 जातीय अल्पसंख्यक समुदायों में से एक माना जाता है।
  • हालाँकि चीन उइगर मुस्लिमों को केवल एक क्षेत्रीय अल्पसंख्यक के रूप में मान्यता देता है और यह अस्वीकार करता है कि वे स्वदेशी समूह हैं।
  • वर्तमान में उइगर जातीय समुदाय की सबसे बड़ी आबादी चीन के शिनजियांग क्षेत्र में रहती है।
    • उइगर मुस्लिमों की एक महत्त्वपूर्ण आबादी पड़ोसी मध्य एशियाई देशों जैसे- उज़्बेकिस्तान, किर्गिज़स्तान और कज़ाखस्तान में भी रहती है।
    • शिनजियांग तकनीकी रूप से चीन के भीतर एक स्वायत्त क्षेत्र है और यह क्षेत्र खनिजों से समृद्ध है तथा भारत, पाकिस्तान, रूस और अफगानिस्तान सहित आठ देशों के साथ सीमा साझा करता है।

उइगरों का उत्पीड़न

  • पिछले कुछ दशकों में चीन के शिनजियांग प्रांत की आर्थिक समृद्धि में काफी बढ़ोतरी हुई है और इसी के साथ इस प्रांत में चीन के हान समुदाय के लोगों की संख्या में भी काफी वृद्धि हुई है, जो कि इस क्षेत्र में बेहतर रोज़गार कर रहे हैं जिसके कारण उइगर मुस्लिमों के समक्ष आजीविका एवं अस्तित्व का संकट उत्पन्न हो गया है।
    • इसी वजह से वर्ष 2009 में दोनों समुदायों के बीच हिंसा भी हुई, जिसके कारण शिनजियांग प्रांत की राजधानी उरुमकी में 200 से अधिक लोग मारे गए, जिनमें से अधिकतर चीन के हान समुदाय से संबंधित थे। 
  • दशकों से शिनजियांग प्रांत के उइगर मुस्लिम, आतंकवाद और अलगाववाद संबंधी झूठे आरोपों के कारण उत्पीड़न, ज़बरन नज़रबंदी, गहन जाँच, निगरानी और यहाँ तक ​​कि गुलामी जैसे तमाम तरह के दुर्व्यवहारों का सामना कर रहे हैं।
    • चीन ने अपने शिविरों और प्रशिक्षण केंद्रों में हज़ारों उइगर मुस्लिमों को ज़बरन कैद कर रखा है, हालाँकि चीन इन शिविरों को ‘शैक्षिक केंद्र’ के रूप में प्रस्तुत करता रहा है, उसका कहना है कि यहाँ उइगरों को ‘चरमपंथी विचारों’ और ‘कट्टरपंथीकरण’ से बाहर निकलने तथा पेशेवर कौशल प्रदान करने का कार्य किया जा रहा है।
  • चीन का दावा है कि उइगर समूह एक स्वतंत्र राज्य स्थापित करना चाहते हैं और पड़ोसी क्षेत्रों के साथ उइगरों समुदाय के सांस्कृतिक संबंधों के कारण चीन के प्रतिनिधियों को भय है कि कुछ बाहरी शक्तियाँ शिनजियांग प्रांत में अलगाववादी आंदोलन को जन्म दे सकती हैं।

चीन की प्रत्यर्पण संधि

  • दिसंबर 2020 में चीन ने तुर्की के साथ एक प्रत्यर्पण संधि को मंज़ूरी दी थी, जिसका उद्देश्य आतंकवादियों सहित अंतर्राष्ट्रीय अपराधियों पर कार्रवाई हेतु न्यायिक सहयोग को मज़बूत करना था।
    • प्रत्यर्पण किसी देश द्वारा अपनाई जाने वाली औपचारिक प्रक्रिया है जो किसी व्यक्ति को दूसरे देश में अभियोजन के लिये आत्मसमर्पण करने या प्रार्थी देश के अधिकार क्षेत्र में अपराध करने वाले व्यक्ति पर अभियोग चलाने की अनुमति प्रदान करती है।
  • यह प्रत्यर्पण समझौता ऐसे समय पर किया गया, जब तुर्की और चीन के बीच आर्थिक एवं वित्तीय संबंध काफी मज़बूत हो रहे हैं। 
    • चीन, तुर्की के लिये कोरोना वायरस वैक्सीन का प्रमुख आपूर्तिकर्त्ता है। 
  • 1990 के बाद से तुर्की में उइगर प्रवासी और अधिक जीवंतता के साथ प्रदर्शनों, सम्मेलनों एवं बैठकों आदि के माध्यम से विश्व का ध्यान अपनी ओर आकर्षित कर रहे हैं। 
  • उइगर मुस्लिमों से संबंधित चिंताएँ 
    • यदि तुर्की संधि की पुष्टि करता है, तो यह संधि तुर्की में उइगर मुस्लिमों और उनकी संस्कृति पर काफी प्रतिकूल प्रभाव डालेगी, क्योंकि इससे उइगर प्रवासियों का आंदोलन कमज़ोर हो जाएगा। 
    • यह संधि उइगर अल्पसंख्यकों का उत्पीड़न करने और उनके विरुद्ध मुकदमा चलाने के लिये चीन को एक नया उपकरण प्रदान करेगी।

भारत का पक्ष

  • भारत सरकार ने उइगर मुस्लिमों पर हो रहे अत्याचारों और उनके उत्पीड़न को लेकर अभी तक कोई विशिष्ट एवं औपचारिक प्रतिक्रिया नहीं दी है।

आगे की राह

  • सभी देशों को उइगर मुस्लिमों को लेकर अपनी स्थिति पर पुनर्विचार करना चाहिये और शिनजियांग प्रांत में मुस्लिमों के साथ हो रहे उत्पीड़न को रोकने के लिये चीन से तत्काल आग्रह करना चाहिये।
  • चीन को अपने पेशेवर प्रशिक्षण केंद्रों को बंद करना चाहिये और धार्मिक एवं राजनीतिक कैदियों को जेलों व शिविरों से रिहा करना चाहिये। चीन को सही मायने में बहुसंस्कृतिवाद की अवधारणा को अपनाना चाहिये और उइगरों तथा चीन के अन्य धार्मिक अल्पसंख्यकों को चीन के सामान्य नागरिक की तरह स्वीकार करना चाहिये। 

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


आंतरिक सुरक्षा

डीज़ल इलेक्ट्रिक पनडुब्बियों हेतु ‘एयर इंडिपेंडेंट प्रोपल्शन’ प्रणाली

चर्चा में क्यों?

रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (DRDO) ने एयर इंडिपेंडेंट प्रोपल्शन (AIP) प्रणाली का अंतिम विकास परीक्षण किया है, जो डीज़ल इलेक्ट्रिक पनडुब्बियों के लिये महत्त्वपूर्ण है।

प्रमुख बिंदु:

एयर इंडिपेंडेंट प्रोपल्शन (AIP) प्रणाली:

  • पनडुब्बियाँ अनिवार्य रूप से दो प्रकार की होती हैं: पारंपरिक और परमाणु।
  • पारंपरिक पनडुब्बियाँ डीज़ल-इलेक्ट्रिक इंजन का उपयोग करती हैं, जिससे उन्हें ईंधन दहन के लिये वायुमंडलीय ऑक्सीजन प्राप्त करने हेतु लगभग दैनिक रूप से समुद्री सतह पर आने की आवश्यकता होती है।
  • यदि कोई पनडुब्बी ‘एयर इंडिपेंडेंट प्रोपल्शन (AIP) प्रणाली’ से लैस है तो पनडुब्बी को सप्ताह में केवल एक बार ऑक्सीजन लेने की आवश्यकता होगी।
  • स्वदेश में विकसित AIP जो ‘नौसेना सामग्री अनुसंधान प्रयोगशाला’ (NMRL) के प्रमुख मिशनों में से एक है, को नौसेना के लिये DRDO की महत्त्वाकांक्षी परियोजनाओं में से एक माना जाता है।
    • इस परियोजना का उद्देश्य भारत की स्कॉर्पीन श्रेणी की पनडुब्बी आईएनएस कलवरी को वर्ष 2023 तक इस प्रौद्योगिकी से जोड़ना है।

AIP के लाभ:

  • AIP प्रणाली आधारित पनडुब्बियों को बहुत कम बार समुद्री सतह पर आने की आवश्यकता होती है, इस प्रकार उनकी घातकता और गोपनीयता कई गुना बढ़ जाती है
  • डीज़ल-इलेक्ट्रिक पनडुब्बियों को अपनी बैटरी चार्ज करने के लिये अक्सर सतह पर आने की आवश्यकता होती है, इस प्रकार उनके पानी के नीचे रुकने का समय कम होता है।
    • ‘एयर इंडिपेंडेंट प्रोपल्शन’ तकनीक डीज़ल जनरेटर को सतह की वायु पर कम निर्भर बनाने में मदद करती है।
  • हालाँकि अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर विभिन्न प्रकार की AIP प्रणाली हैं, NMRL का फ्यूल सेल आधारित AIP अद्वितीय है क्योंकि पनडुब्बी पर ही हाइड्रोजन उत्पन्न होता है।

फ्यूल सेल आधारित AIP प्रणाली:

  • फ्यूल सेल आधारित AIP में एक इलेक्ट्रोलाइटिक फ्यूल सेल हाइड्रोजन और ऑक्सीजन के संयोजन द्वारा ऊर्जा मुक्त करता है, केवल पानी के साथ अपशिष्ट उत्पाद उत्पन्न होने से समुद्री प्रदूषण कम होता है।
  • यह फ्यूल सेल अत्यधिक ईंधन कुशल होता है और इसमें गतिमान भाग नहीं होते हैं, इससे पनडुब्बी में कम ध्वनि उत्सर्जन होता है।

नौसेना सामग्री अनुसंधान प्रयोगशाला:

  • नौसेना सामग्री अनुसंधान प्रयोगशाला (NMRL) डीआरडीओ के तहत काम करने वाली प्रयोगशालाओं में से एक है, जिसमें बुनियादी अनुसंधान के साथ-साथ कई क्षेत्रों (धातुकर्म, पॉलिमर, सिरेमिक, कोटिंग, जंग और विद्युत सुरक्षा, समुद्री जैव प्रौद्योगिकी, पर्यावरण विज्ञान) में अनुप्रयोग-उन्मुख प्रौद्योगिकी के विकास पर ध्यान केंद्रित किया जाता है।
  • उद्देश्य: 
    • नौसेना पनडुब्बी और ईंधन सेल प्रौद्योगिकियों के लिये एयर इंडिपेंडेंट प्रोपल्शन (AIP) प्रणाली विकसित करना।
    • भारतीय नौसेना के लिये सभी श्रेणियों की सामग्री और प्रौद्योगिकियों हेतु वैज्ञानिक समाधान प्रदान करना।
    • भारतीय नौसेना हेतु रणनीतिक सामग्रियों पर अनुसंधान परियोजनाएँ शुरू करना।

परमाणु पनडुब्बियाँ बनाम पारंपरिक पनडुब्बियाँ:

  • पारंपरिक पनडुब्बियों और परमाणु पनडुब्बियों के बीच मुख्य अंतर बिजली उत्पादन प्रणाली है। परमाणु पनडुब्बियाँ (जैसे- आईएनएस अरिहंत, आईएनएस अकुला) इस कार्य हेतु परमाणु रिएक्टरों का प्रयोग करती हैं और पारंपरिक पनडुब्बियाँ (जैसे प्रोजेक्ट -75 और प्रोजेक्ट -75I क्लास सबमरीन) डीज़ल-इलेक्ट्रिक इंजन का उपयोग करती हैं।
  • हालाँकि परमाणु ऊर्जा संचालित पनडुब्बियों को गहरे समुद्र में संचालन के लिये महत्त्वपूर्ण माना जाता है, पारंपरिक डीज़ल-इलेक्ट्रिक पनडुब्बियाँ तटीय सुरक्षा और तट के करीब संचालन के लिये महत्त्वपूर्ण हैं।

स्रोत- इंडियन एक्सप्रेस


जैव विविधता और पर्यावरण

स्वतंत्र पर्यावरण नियामक

चर्चा में क्यों?

हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय (Supreme Court) ने सरकार से ग्रीन क्लीयरेंस (Green Clearance) की निगरानी के लिये "स्वतंत्र पर्यावरण नियामक" (Independent Environment Regulator) की स्थापना नहीं करने के कारणों को स्पष्ट करने के लिये कहा है।

प्रमुख बिंदु

सर्वोच्च न्यायालय का आदेश:

  • सर्वोच्च न्यायालय ने लाफार्ज उमियम माइनिंग प्राइवेट लिमिटेड बनाम यूनियन ऑफ इंडिया (Lafarge Umiam Mining Private Limited v. Union of India Case), 2011 जिसे आमतौर पर ‘लाफार्ज माइनिंग केस‘ (Lafarge Mining Case) के रूप में जाना जाता है, मामले की सुनवाई के दौरान ग्रीन क्लीयरेंस की स्वतंत्र निगरानी सुनिश्चित करने के लिये  पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम, 1986 के तहत एक राष्ट्रीय पर्यावरण नियामक संस्था की स्थापना का आदेश दिया था।

नियामक के कार्य:

  • मूल्यांकन और अनुमोदन:
    • यह नियामक परियोजनाओं का स्वतंत्र, वस्तुनिष्ठ और पारदर्शी मूल्यांकन तथा पर्यावरणीय स्वीकृति प्रदान करेगा।
  • निगरानी और कार्यान्वयन:
    • यह नियामक पर्यावरणीय स्वीकृति हेतु निर्धारित शर्तों के कार्यान्वयन की निगरानी के साथ-साथ इन शर्तों का उल्लंघन करने वालों पर जुर्माना भी लगाएगा। ऐसी शक्तियों का प्रयोग करते हुए नियामक राष्ट्रीय वन नीति (National Forest Policy), 1988 को विधिवत लागू करेगा।

वर्तमान मुद्दे:

  • पर्यावरण प्रभाव आकलन (2006) से संबंधित:
    • क्षमता का अभाव:
      • राष्ट्रीय स्तर पर पर्यावरणीय मंज़ूरी एक विशेषज्ञ मूल्यांकन समिति (Expert Appraisal Committee) द्वारा दी जाती है। यह समिति बिना किसी नियामक क्षमता के तदर्थ आधार पर कार्य करती है।
      • राज्य स्तरीय मूल्यांकन समितियाँ विनियामक सहायता के अभाव में इस मंज़ूरी की देखरेख करती हैं।
    • विशेषज्ञता का अभाव:
      • इन समितियों के सदस्यों और अध्यक्षों में विशेषज्ञता की कमी के कारण इनके द्वारा किये जाने वाले पर्यावरणीय प्रभाव आकलन पर प्रश्नचिह्न लगाया जाता रहा है।
    • उचित विधान का अभाव:
      • प्रभावी विधायी शक्ति और संस्थागत क्षमता के बिना विशेषज्ञ मूल्यांकन समिति और राज्य स्तरीय समितियों को दाँत रहित की संज्ञा दी गई है।
  • विनियमन और बढ़ती लागत:
    • एक ही चीज़ के लिये बहुत सारी मंज़ूरियों की अवश्यकता होती है, जिनमें से कोई भी मंज़ूरी पर्यावरण या समुदायों के अधिकारों की रक्षा के लिये नहीं होती। ऐसी उच्च लागत वाली मंज़ूरियों से उद्योग पर बोझ बढ़ता है।
    •  नियमों तथा नियामकों की बहुलता उद्योगों और सरकार के बीच असंगत तत्त्वों की वृद्धि में सहायक होती है।

आवश्यकता:

  • निष्पक्ष निर्णय:
    • संपूर्ण पर्यावरणीय विनियामक प्रक्रिया की देखरेख करने के लिये एक स्वतंत्र निकाय का अभाव निर्णय लेने में राजनीतिक हित को जन्म दे सकता है।
  • उचित अनुपालन:
    • पर्यावरणीय प्रभाव आकलन मानदंडों के अनुपालन की निगरानी जैसी प्रमुख चिंताओं से एक नियामक द्वारा उचित मानक स्थापित करके निपटा जा सकता है।
  • क्षमता और स्वतंत्रता:
    • भारत में वर्तमान पर्यावरण विनियमन संस्थागत तंत्र में नियामक क्षमता तथा स्वतंत्रता का अभाव है।
  • विनियामक स्तर पर होने वाली देरी को रोकना:
    • विनियामक स्तर पर होने वाली देरी को कम करना भी महत्त्वपूर्ण है। यह एक विश्वसनीय स्वतंत्र नियामक की मदद से संभव हो सकता है लेकिन पर्यावरण संरक्षण के लिये नियामक प्रक्रिया और मानकों में कठोरता का एक इष्टतम स्तर महत्त्वपूर्ण हो सकता है।

अस्थायी समाधान:

  • सर्वोच्च न्यायालय के अनुसार, जब तक एक स्वतंत्र नियामक स्थापित नहीं किया जाता है, तब तक पर्यावरण मंत्रालय को मान्यता प्राप्त संस्थानों का एक पैनल तैयार करना चाहिये, ताकि परियोजनाओं का तत्काल पर्यावरणीय प्रभाव आकलन किया जा सके।

आगे की राह

  • मानकों के निर्धारण, निगरानी और प्रवर्तन की स्वतंत्रता एक प्रभावी नियामक निकाय की महत्त्वपूर्ण विशेषताएँ हैं। एक स्वतंत्र नियामक की स्थापना पर्यावरण कानूनों में सुधार से पहले किया जाना चाहिये।
  • पर्यावरणीय विनियमन हेतु द्वितीय स्तर का सुधार अति आवश्यक है जिससे पर्यावरण के साथ-साथ सामुदायिक अधिकारों की भी रक्षा होगी तथा ऐसे मामलों में उद्योगों की स्थापना में लगने वाले समय एवं लागत दोनों में कमी होगी।
  • अतः वर्तमान में पुरातन कानूनों को हटाकर कानून की बहुलता को कम और नियामक प्रक्रिया को सुव्यवस्थित करने की ज़रूरत है।

स्रोत: द हिंदू


शासन व्यवस्था

वैक्सीन पासपोर्ट

चर्चा में क्यों?

दुनिया भर की सरकारें कोरोना वायरस से सुरक्षित लोगों की पहचान कर अर्थव्यवस्था को पुनः शुरू करने के लिये वैक्सीन पासपोर्ट (Vaccine Passports ) के संभावित उपयोग पर विचार कर रही  हैं।

प्रमुख बिंदु:

वैक्सीन पासपोर्ट के बारे में: 

  • वैक्सीन पासपोर्ट एक ई-सर्टिफिकेट है जो नौकरियों और कोविड -19 के परीक्षण स्थिति के रिकॉर्ड को संग्रहीत करता है
    • इसे स्मार्टफोन एप या अन्य डिजिटल प्रारूपों में रखा जा सकता है।
    • जब लोग एक देश से दूसरे देश में प्रवेश करते हैं अर्थात् सीमाओं के पार जाते हैं तो इसमें उपलब्ध जानकारियों का निरीक्षण सुरक्षा चौकियों पर किया जा सकता है
  • यह विचार टीकाकरण (Vaccination) के प्रमाण पर आधारित है जिसकी आवश्यकता महामारी से पहले भी कई देशों को थी।
    • कई अफ्रीकी देशों के यात्रियों को अमेरिका या भारत में यात्रा करने हेतु प्रमाण प्रस्तुत करने की आवश्यकता होती है कि उन्हें पीत ज्वर (Yellow Fever) जैसे रोगों का टीका लगाया गया है या नहीं।
  • फरवरी 2021 में इज़राइल इस प्रमाणन प्रणाली (Certification System) की शुरुआत करने वाला पहला देश बन गया, जो ऐसे लोगों को अपने यहाँ आने की अनुमति देता है जिन्हें कोविड-19 की रोकथाम हेतु टीका लगाया गया है।

वैक्सीन पासपोर्ट का कार्य

  • यह देशों में टीकाकरण रिकॉर्ड को डिजिटल करेगा।
  • यह इस बात का प्रमाण प्रस्तुत करता है कि वैक्सीन पासपोर्ट धारक को कोविड -19 का टीका लगाया गया है और वह सुरक्षित है।

वैक्सीन पासपोर्ट के संभावित लाभार्थी:

  • इसका प्राथमिक लाभ पर्यटन और आतिथ्य उद्योगों को मिलेगा ये दोनों क्षेत्र कोविड -19 के समय सबसे ज़्यादा प्रभावित हुए हैं।
  • अंतर्राष्ट्रीय हवाई यात्री, जो संक्रमण के फैलने के कारण बड़े पैमाने पर पीड़ित हुए हैं।

समान पहल: कई गैर-लाभकारी संगठन अंतर्राष्ट्रीय यात्रा हेतु अपने स्वयं के संस्करण (Versions) जारी कर रहे हैं:

  • IATA ट्रैवल पास: एयरलाइनों का प्रतिनिधित्व करने वाली वैश्विक व्यापार संस्था (इंटरनेशनल एयर ट्रांसपोर्ट एसोसिएशन) आईएटीए ट्रैवल पास नामक एक एप विकसित कर रही है जिसे टीकाकरण के प्रमाण और इसकी वैधता की जांँच करने हेतु  एक साझा मंच के साथ एयरलाइंस और अन्य विमानन उद्योग हितधारकों को प्रदान किया जाएगा।
  • कॉमन पास: गैर-लाभकारी कॉमन प्रोजेक्ट, कॉमन पास नामक एक एप को विकसित करने का प्रयास कर रहा है, जिसमें एक यात्री का टीकाकरण रिकॉर्ड शामिल होता है।

संस्थागत टीका पासपोर्ट से संबंधित चिंताएँ

  • WHO का रुख:
    • विश्व स्वास्थ्य संगठन (World Health Organisation-WHO) कोविड -19 टीकाकरण के साक्ष्यों को अंतर्राष्ट्रीय यात्रा हेतु आवश्यक किये जाने के  खिलाफ है।
    • कोविड-19 के प्रसार को कम करने में टीकाकरण की प्रभावकारिता अभी भी पूरी तरह से ज्ञात नहीं  हैं।
  • एकरूपता का अभाव: क्रियान्वयन में प्रमुख कठिनाई आवश्यक क्षेत्राधिकार में एकरूपता का अभाव तथा टीकाकरण के साक्ष्य जारी करने में होगी।
  • टीकों की अपर्याप्तता: यात्रियों के उच्च टीकाकरण से उन लोगों के लिये टीकों के अभाव की स्थिति उत्पन्न हो सकती है जिन्हें कोविड-19 संक्रमण का उच्च जोखिम बना हुआ है।
    • यात्रा हेतु टीकाकरण को अनिवार्य बनाना सीमित वैक्सीन आपूर्ति की समान वैश्विक पहुँच में बाधा उत्पन्न करेगा और समाजों तथा समग्र वैश्विक स्वास्थ्य के लिये टीकाकरण के लाभों को अधिकतम करने की संभावना को कम कर देगा।
  • भेदभाव और असमानता:  विशेषज्ञों का तर्क है कि वैक्सीन पासपोर्ट यात्रा में असमानता को बढ़ावा देगा । इन डिजिटल पासपोर्टों की वजह से भेदभाव और असमानता बढ़ने से सामाजिक आर्थिक समूहों के मध्य टकराव की स्थिति उत्पन्न हो सकती है।
    • अमीर देश जो पहले ही दवा कंपनियों से लाखों खुराक खरीद चुके हैं, इस दौड़ में आगे हैं, जबकि गरीब देशों को टीकाकरण शुरू करने हेतु महीनों इंतज़ार करना पड़ सकता है।
    • इसका मतलब है कि यदि वैक्सीन पासपोर्ट को अनिवार्य किया जाता है, तो निम्न-आय वाले राष्ट्र इसका लाभ प्राप्त करने में पीछे रह जाएंगे। 
    • इससे वह युवा पीढ़ी बाहर हो जाएगी जो टीकाकरण की कतार में शामिल है।
  • गोपनीयता से संबंधित चिंता: ये मुख्य रूप से डिजिटल प्रमाण पत्र हैं जिन्हें किसी विशेष सेवा प्रदाता द्वारा टीकाकरण के प्रमाण की जांँच हेतु उपयोग किया जाता है, इस बात की संभावना है कि इसका उपयोग अधिकारियों द्वारा इनके धारकों की गतिविधियों को ट्रैक करने के लिये किया जाएगा।

स्रोत: इडियन एक्सप्रेस


शासन व्यवस्था

नए SMS स्क्रबिंग मानदंड निलंबित

चर्चा में क्यों?

हाल ही में भारतीय दूरसंचार नियामक प्राधिकरण (Telecom Regulatory Authority of India-TRAI) द्वारा दूरसंचार सेवा प्रदाताओं (TSPs) की लघु संदेश सेवा या एसएमएस (Short Message service or SMS) स्क्रबिंग प्रक्रिया को सात दिनों के लिये अस्थायी रूप से निलंबित कर दिया गया।

  • ट्राई द्वारा यह कदम एसएमएस-आधारित कई बैंकिंग और ई-कॉमर्स प्लेटफाॅर्मों सेवाओं के क्रियान्वयन के बाद लिया गया है जो हाल में  दूरसंचार सेवा प्रदाताओं (TSP) द्वारा एसएमएस विनियमन (SMS Regulation) के दूसरे चरण को लागू किये जाने के बाद प्रभावित हुए हैं 

प्रमुख बिंदु:

दूरसंचार वाणिज्यिक संचार ग्राहक वरीयता विनियमन, 2018: 

  • इसे स्पैम (Spam) की समस्या से प्रभावी ढंग से निपटने हेतु जारी किया गया था।
  • ये  नियम हर पंजीकृत एसएमएस सामग्री को उपभोक्ताओं को भेजने से पूर्व टेलीकॉम कंपनियों द्वारा अनिवार्य रूप से सत्यापित किये जाने पर बल देते हैं। 
    • ट्राई के मानदंडों के अनुसार, सभी एसएमएस सामग्री को अब उपयोगकर्त्ताओं के डिवाइस पर भेजने से पूर्व सत्यापित किया जाएगा। स्क्रबिंग के रूप में जानी जाने वाली इस प्रक्रिया को काफी विलंब के बाद हाल ही में लागू किया गया था। 
    • प्रमुख संस्थाओं हेतु नए ट्राई नियम, जो ग्राहकों को एसएमएस भेजने की अनुमति देंगे, उसके लिये प्रेषकों का पंजीकरण (Registration of Senders), टेलीमार्केटर (Telemarketers), हेडर (Headers), सामग्री (Content), टेम्प्लेट (Templates), सहमति टेम्प्लेट (Consent Templates) और सब्सक्राइबर वरीयता (Subscriber Preference) की आवश्यकता होगी।
  • ये नियम गैर-पंजीकृत प्रेषकों को वाणिज्यिक संदेश भेजने से रोकते हैं, वहीँ दूसरी ओर   पंजीकृत कंपनियों के ग्राहकों को धोखाधड़ी वाले संदेश भेजने से रोकते हैं।
  • ट्राई द्वारा एक फ्रेमवर्क जारी किया गया है जिसके तहत टेल्कोस/टेलीकॉम कंपनियों द्वारा एक वितरित खाता प्रौद्योगिकी (Distributed Ledger Technology) या ब्लॉकचेन (Blockchain) का उपयोग किया जाएगा ताकि उपयोगकर्त्ता के डिवाइस पर भेजे जाने से पहले हर वाणिज्यिक एसएमएस के प्रेषक की जानकारी और सामग्री को सत्यापित किया जा सके।
    • ब्लॉकचेन मुख्यतः गैर-परित्याग (Non-Repudiation) और गोपनीयता (Confidentiality) सुनिश्चित करेगा। इसके तहत केवल अधिकृत लोगों को ही ग्राहकों के विवरण संबंधी सूचना तक पहुँच प्राप्त होगी और वह भी तब जब सेवा प्रदान करने के लिये ऐसा करना आवश्यक हो।
    • TRAI के अनुसार, पुरानी तकनीक और प्लेटफॉर्म ने सब्सक्राइबर की घोषित प्राथमिकता का उल्लंघन कर सस्ती और अविश्वसनीय सूचनाएँ प्रदान की हैं।

हालिया मुद्दा

  • कुछ TSPs द्वारा स्क्रबिंग मानदंडों को लागू किया गया, लेकिन कुछ कंपनियों द्वारा उन्हें नहीं अपनाया गया जिससे उपभोक्ता महत्त्वपूर्ण संदेश प्राप्त करने में विफल रहे।  
    • TSPs द्वारा TRAI नियमों का पालन करते हुए अवांछित वाणिज्यिक संचार के मुद्दों को हल करने हेतु कंटेंट स्क्रबिंग की नियत प्रक्रिया को सक्रिय किया गया।
    • दूरसंचार सेवा प्रदाताओं द्वारा एक-दूसरे के साथ अपने कंटेंट टेम्पलेट को पंजीकृत करने के उद्देश्य से प्रमुख संस्थाओं के साथ संचार व्यवस्था सुनिश्चित की गई।

ब्लॉकचेन टेक्नोलॉजी:

  •  ब्लॉकचेन एक साझा, अपरिवर्तनीय खाता-बही (Shared, Immutable Ledger) है जो एक व्यापार नेटवर्क में लेन-देन को रिकॉर्ड करने और परिसंपत्तियों को ट्रैक करने की प्रक्रिया को सुविधाजनक बनाती है।
    • कोई संपत्ति मूर्त ( घर, कार, नकदी, भूमि) या अमूर्त (बौद्धिक संपदा, पेटेंट, कॉपीराइट, ब्रांडिंग) हो सकती है।
  • वस्तुतः किसी भी मूल्य की ऐसी वस्तु को ब्लॉकचेन नेटवर्क पर ट्रैक कर इसमें शामिल किया जा सकता है, जिसमें सभी जोखिम शामिल होते हैं और सभी की लागत में कटौती शामिल होती है।
  • ब्लॉकचेन तकनीक का प्रारंभिक और प्राथमिक उपयोग क्रिप्टोकरेंसी (जैसे बिटकॉइन) के लेन-देन की निगरानी हेतु किया गया था। हालांकि पिछले वर्षों में इसके कुछ अन्य उपयोग देखे गए हैं।
    • आंध्र प्रदेश और तेलंगाना सरकार द्वारा ब्लॉकचेन प्रौद्योगिकी की सहायता से भूमि रिकॉर्ड को एकत्र किया जाता है।
    • चुनाव आयोग (EC) के अधिकारी दूरदराज़ के क्षेत्रों में वोटिंग करने हेतु ब्लॉकचेन तकनीक के  उपयोग किये जाने की क्षमता तलाश रहे हैं।

भारतीय दूरसंचार नियामक प्राधिकरण:

  • इसे दूरसंचार सेवाओं हेतु शुल्क निर्धारण/संशोधन सहित दूरसंचार सेवाओं को विनियमित करने के लिये संसद के एक अधिनियम (भारतीय दूरसंचार नियामक प्राधिकरण अधिनियम, 1997) द्वारा स्थापित किया गया था।
  • यह एक निष्पक्ष और पारदर्शी नीति हेतु वातावरण प्रदान करता है जो सभी को एक समान  अवसर प्रदान करता है और प्रतिस्पर्द्धा को सुगम बनाता है।
  • ट्राई अधिनियम में संशोधन कर ट्राई से सहायक और विवाद कार्यों के समाधान करने के उद्देश्य से दूरसंचार विवाद निपटान और अपीलीय न्यायाधिकरण (Telecommunications Dispute Settlement and Appellate Tribunal- TDSAT) की स्थापना की गई।
    • TDSAT की स्थापना विभिन्न लाइसेंसधारियों के मध्य, दो या दो से अधिक सेवा प्रदाताओं के मध्य, एक सेवा प्रदाता और उपभोक्ताओं के समूह के मध्य किसी भी विवाद के निपटान और ट्राई के किसी भी निर्देश, निर्णय या आदेश के खिलाफ अपील सुनने और उसके निपटान हेतु की गई थी।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


शासन व्यवस्था

मंत्री समूह: मीडिया रणनीति

चर्चा में क्यों?

एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया ने सरकार की मीडिया रणनीति पर मंत्री समूह (GoM) की रिपोर्ट को किसी भी आलोचना के प्रति सरकार के ‘कठोर रवैये’ के एक उदाहरण के रूप में चिह्नित किया।

  • वर्ष 2020 में गठित इस मंत्री समूह (GoM) में कुल पाँच कैबिनेट मंत्री एवं चार राज्य मंत्री शामिल हैं।

एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया

  • एडिटर्स गिल्ड की स्थापना वर्ष 1978 में प्रेस स्वतंत्रता की रक्षा करने और समाचार पत्रों एवं पत्रिकाओं के संपादकीय मानकों में बढ़ोतरी के दोहरे उद्देश्यों के साथ की गई थी।

प्रमुख बिंदु

मीडिया रणनीति पर मंत्री समूह (GoM) की सिफारिशें:

  • मंत्री समूह ने अपनी रिपोर्ट में वर्तमान सरकार के लिये ऐसे ‘सहायक एवं तटस्थ’ पत्रकारों की पहचान करने की बात की है, जिन्होंने महामारी के दौरान अपनी नौकरी खो दी है, ताकि उनकी सेवाओं का उपयोग कर सरकार की छवि को सकारात्मक रूप में प्रस्तुत किया जा सके।
    • इसके अलावा सरकार को अपनी दीर्घकालिक रणनीति के हिस्से के रूप में पत्रकारिता संस्थानों के साथ जुड़ाव को बढ़ाना चाहिये, क्योंकि वर्तमान छात्र भविष्य के पत्रकार हैं।
  • विदेशी मीडिया और अनिवासी भारतीयों के साथ जुड़ाव: 
    • सरकार के वैश्विक आउटरीच को बढ़ाने के हिस्से के रूप में विदेशी मीडिया पत्रकारों के साथ नियमित रूप से वार्ता की जानी चाहिये, ताकि सरकार का परिप्रेक्ष्य अंतर्राष्ट्रीय मंच पर सही ढंग से प्रस्तुत किया जा सके।
    • अनिवासी भारतीय (NRIs) समुदाय के साथ संचार की एक प्रभावी प्रणाली स्थापित की जानी चाहिये, ताकि विदेशों में फैलाई जा रही नकारात्मक धारणाओं के विरुद्ध वे अपनी आवाज़ उठा सकें।
  • सरकार द्वारा किये गए कार्यों की जानकारी देना
    • सरकार द्वारा किये गए प्रमुख कार्यों और आम लोगों के जीवन में आए प्रमुख बदलावों से संबंधित सकारात्मक कहानियों का व्यापक प्रसार किया जाना चाहिये।
      • इसके अलावा नकारात्मक कहानियों के खंडन व स्थानीय लोगों से जुड़ाव के लिये स्थानीय भाषा में विज्ञापनों आउटरीच कार्यक्रमों के प्रसार की व्यवस्था की जानी चाहिये।
    • सरकारी पत्रिका, न्यू इंडिया समाचार की प्रतियाँ कम-से-कम 6 लाख लोगों को वितरित की जानी चाहिये, इसके अलावा पत्रिका का ई-संस्करण तकरीबन 8 करोड़ लोगों तक पहुँचाया जाना चाहिये।
    • अलग-अलग मंत्रालयों को अलग-अलग आउटरीच लक्ष्य दिया जाना चाहिये।
  • सोशल मीडिया का प्रयोग
    • समूह ने अपनी रिपोर्ट में आम जनता तक सरकार की पहुँच को सकारात्मक रूप से बढ़ाने के लिये ट्विटर और गूगल जैसे प्लेटफाॅर्मों के प्रयोग का आह्वान किया है। 
  • झूठी धारणाओं से मुकाबला
    • रिपोर्ट में ऐसे 50 लोगों की पहचान करने की बात की गई है, जिन्होंने सरकार को नकारात्मक रूप से प्रभावित किया है, वहीं ऐसे 50 लोगों को प्रोत्साहित करने की बात की गई है, जिन्होंने सरकार के कार्य को सही परिप्रेक्ष्य में प्रस्तुत किया है।

Message-and-the-medium

एडिटर्स गिल्ड की चिंता

  • मंत्री समूह (GoM) द्वारा प्रस्तुत यह रिपोर्ट किसी भी प्रकार की आलोचना और प्रेस की जाँच के विरुद्ध सरकार के बढ़ते कठोर रवैये को इंगित करती है।
    • रिपोर्ट में दिये गए सुझाव, सरकार की धारणा से अलग सोच वाले लेखकों एवं पत्रकारों की निगरानी और उनके लक्ष्यीकरण की संभावना को बढ़ाते हैं।
  • एडिटर्स गिल्ड ने कहा कि GoM द्वारा प्रस्तुत रिपोर्ट मीडिया में सरकार की धारणा को नियंत्रित करने के लिये एक उपकरण प्रदान करती है। 
  • रिपोर्ट में दिये गए सबसे चिंताजनक सुझावों में ‘बिना तथ्यों के सरकार के विरुद्ध बोलने एवं लिखने अथवा फेक न्यूज़ फैलाने वाले लोगों के विरुद्ध कार्यवाही करने का सुझाव शामिल है, क्योंकि इससे सरकार अपने विरोधियों पर आसानी से कार्यवाही करने में सक्षम हो जाएगी।
    • यह सुझाव सरकार की किसी भी प्रकार की आलोचना को रोकने के इरादे से प्रस्तुत किया गया एक उपकरण प्रतीत होता है, क्योंकि रिपोर्ट में कहीं भी फेक न्यूज़ को परिभाषित नहीं किया गया है।

आगे की राह

  • प्रायः यह माना जाता है कि पत्रकारों समेत देश के सभी नागरिकों के लिये अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता संबंधी बुनियादी संवैधानिक मूल्य की रक्षा करना सरकार का प्राथमिक दायित्व है, इसके अलावा सरकार के लिये मीडिया में विचारों की बहुलता हेतु अपनी प्रतिबद्धता प्रकट करना भी आवश्यक है।
  • स्वतंत्रता को प्रभावित किये बिना मीडिया में आम लोगों के विश्वास को बहाल करने के लिये फेक न्यूज़ जैसी गंभीर समस्या का मुकाबला करने हेतु सार्वजनिक शिक्षा, मज़बूत कानून और टेक कंपनियों के एकीकृत प्रयासों की आवश्यकता होगी।
  • दूसरी ओर मीडिया के लिये भी यह महत्त्वपूर्ण है कि वह सत्यता एवं सटीकता, पारदर्शिता, स्वतंत्रता, निष्पक्षता जैसे बुनियादी सिद्धांतों का अनुसरण करते रहे, ताकि आम जनता के बीच मीडिया की विश्वसनीयता पुनः बहाल की जा सके।

स्रोत: द हिंदू


सामाजिक न्याय

ग्रामीण विकास पर संसदीय स्थायी समिति

चर्चा में क्यों?

हाल ही में ग्रामीण विकास पर संसदीय स्थायी समिति (Parliamentary Standing Committee) ने कहा कि  केंद्र सरकार को गरीब वरिष्ठ नागरिकों, विधवाओं और विकलांगों के लिये दी जाने वाली पेंशन की राशि में वृद्धि करनी चाहिये।

प्रमुख बिंदु

संसदीय स्थायी समिति द्वारा इंगित मुद्दे:

  • समिति ने कहा कि इससे पहले भी उसने अपनी रिपोर्ट में पेंशन बढ़ाने का प्रस्ताव रखा था, लेकिन सरकार ने राशि बढ़ाने में ढिलाई दिखाई है।
  • इस समिति ने समाज के गरीब और दलित वर्ग तक राष्ट्रीय सामाजिक सहायता कार्यक्रम (National Social Assistance Programme) की पहुँच सीमित रहने पर सरकार की आलोचना की।
    • इस योजना के विभिन्न घटकों के तहत 200 रुपए से लेकर 500 रुपए प्रतिमाह तक की अल्प सहायता राशि दी जाती है।
  • बेरोज़गारी भत्ते के प्रावधान के समुचित कार्यान्वयन में राज्य सरकारों के दृष्टिकोण के बारे में बताया गया।
  • मनरेगा योजना (MGNREGA Scheme) के कार्यान्वयन में उत्पन्न मुद्दों को हल करने के लिये ग्रामीण विकास विभाग (Department of Rural Development) पर दबाव डाला गया।

Littile Support

समिति द्वारा बताए गए मनरेगा योजना से संबंधित मुद्दे:

  • कार्य आपूर्ति में कमी: यह स्थिति उस समय उत्पन्न हुई जब कोविड-19 महामारी के कारण आर्थिक संकट के दौरान मनरेगा के तहत काम की मांग में वृद्धि हुई थी।
  • फंड देने में देरी: यह इस योजना को हतोत्साहित करने वाला एक बहुत बड़ा पहलू है, जो योजना की अंतर्निहित भावना के अनुरूप नहीं है।
  • विभिन्न राज्यों में अलग-अलग मज़दूरी: समिति ने उल्लेख किया कि यह कैसे संभव है कि ग्रामीण इच्छुक लोगों को सौ दिनों की गारंटी वाले काम के प्रावधान वाली एक योजना में अवधि और विस्तार के भुगतान के तौर-तरीके देश में अलग-अलग हैं।
    • यह समान कार्य के लिये समान वेतन के संवैधानिक प्रावधान के विरुद्ध है।

राष्ट्रीय सामाजिक सहायता कार्यक्रम:

  • यह ग्रामीण विकास मंत्रालय द्वारा प्रशासित एक कल्याणकारी कार्यक्रम है।
  • इस कार्यक्रम को ग्रामीण क्षेत्रों के साथ-साथ शहरी क्षेत्रों में भी लागू किया जा रहा है।
  • इस कार्यक्रम को पहली बार 15 अगस्त, 1995 को केंद्र प्रायोजित योजना के रूप में शुरू किया गया था। इसे वर्ष 2016 में केंद्र प्रायोजित योजनाओं के “कोर ऑफ कोर” (Core of Core) योजनाओं के अंतर्गत लाया गया था।
  • इस योजना के वर्तमान में पाँच घटक हैं:
    • इंदिरा गांधी राष्ट्रीय वृद्धावस्था पेंशन योजना।
    • राष्ट्रीय पारिवारिक लाभ योजना।
    • अन्नपूर्णा योजना।
    • इंदिरा गांधी राष्ट्रीय विधवा पेंशन योजना।
    • इंदिरा गांधी राष्ट्रीय विकलांगता पेंशन योजना।
  • राष्ट्रीय मातृत्व लाभ योजना (National Maternity Benefit Scheme),  राष्ट्रीय सामाजिक सहायता कार्यक्रम का हिस्सा थी, जिसे बाद में ग्रामीण विकास मंत्रालय से स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय के अंतर्गत स्थानांतरित कर दिया गया।

स्रोत: द हिंदू


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