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अंतर्राष्ट्रीय संबंध

केंद्र द्वारा तटीय विनियमन क्षेत्र के मानदंडों में छूट का प्रस्ताव

  • 20 Apr 2018
  • 3 min read

चर्चा में क्यों?
हाल ही में पर्यावरण एवं वन मंत्रालय की वेबसाइट पर सार्वजनिक किये गए भारत के तटीय विनियमन क्षेत्र (coastal regulation zone) योजना में प्रस्तावित संशोधन वाले मसौदे पर केंद्र द्वारा  भारत के तटों को पर्यटन और औद्योगिक आधारभूत संरचना से जोड़ने तथा उन्हें अधिक सुलभ बनाने के लिये विकास की विभिन्न योजनाओं हेतु राज्यों को काफी छूट दी गई है।

प्रमुख बिंदु

  • सीआरजेड 2011, भारत के 7000 किलोमीटर लंबी तटरेखा के निकट क्षेत्रों को संदर्भित करता है जहाँ इमारतों, पर्यटन सुविधाओं, औद्योगिक परियोजनाओं, आवासीय सुविधाओं आदि को अत्यधिक विनियमित किया जाता है।
  • यह मुख्यतः उच्च ज्वार रेखा (एचटीएल) से भूमि की ओर लगभग 500 मीटर तक शुरू होता है।
  • जनसंख्या और पारिस्थितिकीय संवेदनशीलता के आधार पर, क्षेत्र के बुनियादी ढाँचें के विकास के लिये अलग-अलग छूट के साथ विभिन्न क्षेत्रों में विभाजित किया गया है।
  • सीआरजेड-2011 में पारिस्थितिक रूप से संवेदनशील क्षेत्रों को शामिल किया गया है और मौजूदा कानूनों के अनुसार रक्षा गतिविधियों, रणनीतिक और दुर्लभ सार्वजनिक उपयोगी परियोजनाओं को छोड़कर पर्यटन गतिविधियों और बुनियादी ढाँचे के विकास के लिये इस पर कुछ सीमाएं हैं।
  • नई सीआरजेड 2018 की अधिसूचना के अनुसार, प्रकृति के निशान और पारिस्थितिकी पर्यटन गतिविधियों (nature trails and eco-tourism activities) को सीआरजेड-2011 क्षेत्रों के तहत  अनुमति दी जा सकती है, बशर्ते वे राज्य-अनुमोदित तटीय क्षेत्र प्रबंधन योजनाओं के अनुरूप हों।
  • वर्तमान सीआरजेड कानून 2011 'तटीय क्षेत्र' (coastal zone) को ऐसे क्षेत्र के रूप में परिभाषित करता है जो ज्वार प्रभावित क्षेत्रों (tidal-influenced bodies) जैसे कि खाड़ी, क्रीक, नदियों, बैकवाटर, लैगून और तालाब आदि में एचटीएल से 100 मीटर की दूरी तक स्थित होता है और  समुद्र से जुड़े हुआ होता हैं ।
  • जबकि प्रस्तावित सीआरजेड 2018 तटीय क्षेत्र के दायरे में 50 मीटर तक की छूट देता है।
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