लखनऊ शाखा पर IAS GS फाउंडेशन का नया बैच 23 दिसंबर से शुरू :   अभी कॉल करें
ध्यान दें:

डेली न्यूज़

  • 11 Jan, 2022
  • 35 min read
शासन व्यवस्था

आधुनिक तकनीक का उपयोग कर रक्षा भूमि का सर्वेक्षण

प्रिलिम्स के लिये:

डिजिटल इंडिया, आजादी का अमृत महोत्सव।

मेंन्स के लिये:

भूमि सर्वेक्षण में उभरती आधुनिक तकनीकों की भूमिका

चर्चा में क्यों?

हाल ही में रक्षा मंत्रालय ने प्रभावी भूमि उपयोग और योजना बनाने तथा अतिक्रमणों को रोकने के लिये देश भर में 4,900 क्षेत्रों में फैली लगभग 18 लाख एकड़ रक्षा भूमि का सर्वेक्षण किया है।

प्रमुख बिंदु

  • परिचय:
    • यह एक उल्लेखनीय उपलब्धि है क्योंकि आजादी के बाद पहली बार नवीनतम सर्वेक्षण तकनीक का उपयोग करके और विभिन्न राज्य सरकारों के राजस्व अधिकारियों के सहयोग से बड़ी संख्या में पूरी रक्षा भूमि का सर्वेक्षण किया गया है।
  • आधुनिक तकनीक का उपयोग:
    • सर्वेक्षण में इलेक्ट्रॉनिक टोटल स्टेशन (ETS) और डिफरेंशियल ग्लोबल पोजिशनिंग सिस्टम (DGPS) जैसी आधुनिक सर्वेक्षण तकनीकों का उपयोग किया गया है। 
      • ETS को इलेक्ट्रॉनिक दूरी मापन (Electronic Distance Measurement- EDM) के साथ एकीकृत किया गया है ताकि ऊर्ध्वाधर और क्षैतिज कोण एवं उपकरण से ढलान की दूरी को एक विशेष बिंदु तक मापने के लिये तथा डेटा को एकत्र करने व त्रिभुज गणना करने हेतु एक ऑन-बोर्ड कंप्यूटर हो।
      • DGPS, GPS नेविगेशन का एक उन्नत रूप है जो मानक GPS की तुलना में अधिक सटीक स्थिति प्रदान करता है।
    • विश्वसनीय, मजबूत और समयबद्ध परिणामों के लिये ड्रोन इमेजरी (Drone imagery) और सैटेलाइट इमेजरी (Satellite Imagery) आधारित सर्वेक्षणों का उपयोग किया गया।
      • राजस्थान में पहली बार लाखों एकड़ रक्षा भूमि के सर्वेक्षण के लिये ड्रोन इमेजरी आधारित सर्वेक्षण तकनीक का उपयोग किया गया था।
      • इसके अलावा कुछ रक्षा भूमि क्षेत्रों के लिये पहली बार सैटेलाइट इमेजरी आधारित सर्वेक्षण किया गया था।
    • भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र (Bhabha Atomic Research Centre- BARC) के सहयोग से डिजिटल एलिवेशन मॉडल (Digital Elevation Model- DEM) का उपयोग कर पहाड़ी क्षेत्र में रक्षा भूमि के बेहतर दृश्य के लिये 3डी मॉडलिंग तकनीक भी शुरू की गई है।
      • एक डिजिटल एलिवेशन मॉडल (Digital Elevation Model- DEM) पेड़ों, इमारतों और सतह की किसी भी अन्य वस्तुओं को छोड़कर पृथ्वी की नग्न सतह की स्थलाकृतिकयों को  दर्शाता है।
  • इस उपलब्धि का महत्त्व:
    • लगभग 18 लाख एकड़ रक्षा भूमि के सर्वेक्षण की यह विशाल पहल केद्र सरकार की ‘डिजिटल इंडिया’ पहल के अनुरूप कम समय में भूमि सर्वेक्षण हेतु उभरती प्रौद्योगिकियों का लाभ उठाने का एक अनूठा उदाहरण है।
    • आज़ादी के 75 वर्षों बाद इस अभ्यास को आयोजित करने से यह ‘आज़ादी का अमृत महोत्सव’ के तहत आयोजित होने वाले समारोहों का भी हिस्सा बन जाता है।
  • भूमि सर्वेक्षण हेतु क्षमता निर्माण:
    • नवीनतम सर्वेक्षण प्रौद्योगिकियों के क्षेत्र में रक्षा संपदा अधिकारियों के क्षमता निर्माण हेतु ‘राष्ट्रीय रक्षा संपदा प्रबंधन संस्थान’ में भूमि सर्वेक्षण और भौगोलिक सूचना प्रणाली (GIS) मानचित्रण पर एक उत्कृष्टता केंद्र (CoE) भी स्थापित किया गया है।
    • इस उत्कृष्टता केंद्र का लक्ष्य एक शीर्ष सर्वेक्षण संस्थान का निर्माण करना है, जो केंद्र और राज्य सरकार के विभागों के अधिकारियों को विभिन्न स्तरों पर प्रशिक्षण देने में सक्षम है।

स्रोत: पी.आई.बी.


भारतीय अर्थव्यवस्था

चीन को विकासशील देश का टैग: विश्व व्यापार संगठन

प्रिलिम्सलिम्स के लिये:

विकासशील देश की स्थिति, विश्व व्यापार संगठन, S&DT, अनुचित व्यापार अभ्यास, USTR।

मेन्स के लिये:

विकासशील देश और विकसित देश विश्व व्यापार संगठन में टैग और इसका महत्त्व, चीन की वर्तमान स्थिति का विश्लेषण।

चर्चा में क्यों?

हाल ही में चीन को विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) में 'विकासशील देश' का दर्जा मिला है।

  • यह कई देशों के फैसले के खिलाफ चिंताजनक और एक विवादास्पद मुद्दा बन गया है।
  • इससे पहले वर्ष 2019 में दक्षिण कोरियाई सरकार ने विश्व व्यापार संगठन में भविष्य की बातचीत से विकासशील देश के रूप में कोई विशेष वरीयता नहीं लेने का फैसला किया।

World-Trade-Organization

प्रमुख बिंदु 

  • परिचय:
    • विश्व व्यापार संगठन ने 'विकसित' और 'विकासशील' देशों को परिभाषित नहीं किया है और इसलिये सदस्य देश यह घोषणा करने के लिये स्वतंत्र हैं कि वे 'विकसित' हैं या 'विकासशील'।
      • हालाँकि अन्य सदस्य विकासशील देशों के लिये उपलब्ध प्रावधानों का उपयोग करने के सदस्य के निर्णय को चुनौती दे सकते हैं।
    • विश्व व्यापार संगठन के पास विकासशील राष्ट्र की उचित परिभाषा का अभाव है, हालाँकि इसके 164 सदस्यों में से दो-तिहाई खुद को विकासशील के रूप में वर्गीकृत करते हैं।
    • जैसा कि विश्व व्यापार संगठन के सदस्य खुद को विकासशील राष्ट्र घोषित कर सकते हैं, यह चीन जैसे देश को वैश्विक व्यापार में अपने प्रभुत्व का विस्तार करने के लिये लाभ प्रदान करता है, जबकि वह खुद को विकासशील के रूप में वर्गीकृत करता है और इस तरह विशेष और विभेदित उपचार (S&DT) प्राप्त करता है।
  • चीन का मामला:
    • विश्व बैंक के अनुसार, चीन की प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि के कारण वह एक उच्च मध्यम आय वाला देश बन गया है और देश के अनुचित व्यापार प्रथाओं के कथित उपयोग को देखते हुए, कई देशों ने चीन से विकासशील देशों को उपलब्ध लाभों की मांग करने से परहेज करने का आह्वान किया है या एक विकासशील देश के रूप में वर्गीकरण को न करने को कहा है।
      • चीन की कुछ अनुचित व्यापार प्रथाओं में राज्य के उद्यमों के लिये संदर्भात्मक व्यवहार, डेटा प्रतिबंध और बौद्धिक संपदा अधिकारों के अपर्याप्त प्रवर्तन शामिल हैं।
    • यह असंगत प्रतीत होता है कि दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था जो वर्ष 2021 में वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की एक-चौथाई वृद्धि के लिये ज़िम्मेदार है, खुद को सबसे बड़ा विकासशील देश मानती है।

विश्व बैंक द्वारा देशों का वर्गीकरण

  • विश्व बैंक दुनिया की अर्थव्यवस्थाओं को चार आय समूहों- निम्न, निम्न-मध्यम, उच्च-मध्यम और उच्च आय वाले देशों में वर्गीकृत करता है।
  • वर्गीकरण को प्रत्येक वर्ष 1 जुलाई को अद्यतन किया जाता है और यह पिछले वर्ष के वर्तमान अमेरिकी डाॅलर में प्रति व्यक्ति सकल राष्ट्रीय आय (GNI) पर आधारित होता है।
    • GNI किसी देश के लोगों और व्यवसायों द्वारा अर्जित की गई कुल राशि होती है।
  • विश्व बैंक ने अपने नवीनतम वर्गीकरण (2020-21) में भारत को निम्न-मध्यम आय वाले देश के रूप में वर्गीकृत किया है।
  • उठाई गई चिंताएँ:
    • विश्व व्यापार संगठन में एक 'विकासशील देश' के रूप में चीन की स्थिति एक विवादास्पद मुद्दा बन गई है, जिसमें कई देशों ने WTO मानदंडों के तहत विकासशील देशों के लिये आरक्षित लाभ प्राप्त करने वाले उच्च-मध्यम आय वाले राष्ट्र पर चिंता जताई है।
    • यूरोपियन संघ (ईयू) ने अक्तूबर 2021 में आयोजित चीन की व्यापार नीति की नवीनतम समीक्षा पर एक बयान में कहा कि चीन के लिये नेतृत्त्व करने का एक तरीका उन लाभों का दावा करने से बचना होगा जो चल रही वार्ता में एक विकासशील देश के अनुरूप होंगे तथा संयुक्त राज्य अमेरिका व्यापार प्रतिनिधि ने भी इसी तरह का एक बयान जारी किया।
      • ऑस्ट्रेलिया ने भी सिफारिश की थी कि चीन "एस एंड डीटी (S&DT) तक अपनी पहुँच" को छोड़ दे, विश्व बैंक के अनुसार, चीन की प्रति व्यक्ति आय वर्ष 2020 में 10,435 अमेरिकी डॉलर जबकि भारत की 1,928 अमेरिकी डॉलर थी।
      • भारत ने चीन के इस दावे पर भी सवाल उठाया है कि वह एक विकासशील देश है, क्योंकि विश्व बैंक की परिभाषा के अनुसार, उसकी प्रति व्यक्ति आय एक उच्च मध्यम आय वाले देश की है।
    • इसके अलावा अल्प-विकसित देशों को लेकर चिंता ज़ाहिर की गई है, जबकि बांग्लादेश संभावित रूप से प्रति व्यक्ति जीडीपी के मामले में भारत को पीछे छोड़ने के बाद इस टैग को खो सकता है।
  • विकासशील देश की स्थिति के लाभ:
    • कुछ विश्व व्यापार संगठन समझौते विकासशील देशों को S&DT प्रावधानों के माध्यम से विशेष अधिकार देते हैं, जो विकासशील देशों को समझौतों को लागू करने हेतु लंबी समय-सीमा प्रदान कर सकते हैं और यहाँ तक ​​कि ऐसे देशों के लिये व्यापार के अवसर बढ़ाने की प्रतिबद्धता भी व्यक्त कर सकते हैं।
      • S&DT विकासशील और गरीब देशों को प्रतिबद्धताओं को लागू करने हेतु लंबी ट्रांजिशन अवधि सहित कुछ लाभों की अनुमति देता है।
      • यह विकासशील देशों के लिये व्यापारिक अवसरों को बढ़ाने के उपाय भी प्रदान करता है, जिसके तहत सभी विश्व व्यापार संगठन के सदस्यों को विकासशील देशों के व्यापार हितों की रक्षा करने की आवश्यकता होती है, साथ ही विकासशील देशों को विश्व व्यापार संगठन के काम करने, विवादों को संभालने और तकनीकी मानकों को लागू करने की क्षमता प्राप्त करने में सहायता प्रदान करता है।
    • विश्व व्यापार संगठन के समझौते प्रायः समय के साथ कुछ उद्योगों के लिये सरकारी समर्थन में कमी लाने और विकासशील देशों हेतु अधिक उदार लक्ष्य निर्धारित करने और विकसित देशों की तुलना में इन लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिये अधिक समय देने के उद्देश्य से लागू होते हैं।
    • यह वर्गीकरण अन्य देशों को तरजीही उपचार या विशेष सुविधा प्रदान करने की भी अनुमति देता है।

नोट:

  • ऐसे समय में जब विकसित राष्ट्र विश्व व्यापार संगठन-सुधारों को आगे बढ़ा रहे हैं जो S&DT प्रावधानों को कमज़ोर कर देगा, भारत ने संकेत दिया है कि वह विकासशील दुनिया के लिये S&DT के संरक्षण हेतु संघर्ष करेगा।
  • भारत पहले ही कह चुका है कि यह विषय चर्चा के लिये खुला है कि किस देश को विकासशील माना जाना चाहिये।
  • चीन का पक्ष:
    • चीन ने लगातार यह सुनिश्चित किया है कि वह "दुनिया की सबसे बड़ी विकासशील अर्थव्यवस्था" है, लेकिन उसने हाल ही में संकेत दिया है कि वह विकासशील देश होने के कई लाभों को छोड़ने के लिये तैयार हो सकता है।
    • इसने कथित तौर पर सूचित किया है कि वह अत्यधिक ‘फिशिंग’ पर अंकुश लगाने के लिये ‘फिशिंग’ सब्सिडी में कटौती करने के उद्देश्य से विकासशील देशों को उपलब्ध सभी छूटों को वापस ले सकता है।

आगे की राह

  • विश्व व्यापार संगठन को जल्द से जल्द एक विकासशील राष्ट्र को स्पष्ट रूप से परिभाषित करना चाहिये ताकि केवल ऐसे राष्ट्र ही S&DT का दावा कर सकें।
  • बहुपक्षीय व्यापार प्रणाली को मज़बूत करने के लिये दृष्टिकोण का उद्देश्य एक ऐसी प्रक्रिया को अपनाना है जिसमें प्रत्येक राष्ट्र अपने राष्ट्रीय हितों को ध्यान में रखते हुए S&DT लाभों का दावा करने के लिये अंततः विकासशील राष्ट्र की स्थिति से वापसी की रणनीति बनाता है।

स्रोत- इंडियन एक्सप्रेस


सामाजिक न्याय

‘सार्वभौमिक सुगम्यता’ संबंधी दिशानिर्देश

प्रिलिम्स के लिये:

भारत में सार्वभौमिक सुगम्यता हेतु नवीन सामंजस्यपूर्ण दिशानिर्देश और मानक 2021, केंद्रीय लोक निर्माण विभाग (CPWD), अनुच्छेद 14,  विकलांग व्यक्तियों के अधिकार पर संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन, 'सुलभ भारत अभियान', विकलांगता और इसके प्रकार।

मेन्स के लिये:

विकलांग लोगों से संबंधित मुद्दे और इससे जुड़ी पहलें।

चर्चा में क्यों?

हाल ही में केंद्रीय लोक निर्माण विभाग (CPWD) ने ‘भारत में सार्वभौमिक सुगम्यता हेतु नवीन सामंजस्यपूर्ण दिशानिर्देश और मानक’ (2021) जारी किये हैं।

  • नए नियमों के तहत योजना के डिज़ाइन से अधिक कार्यान्वयन पर ध्यान देने की परिकल्पना की गई है।
  • इसके अलावा ‘सार्वभौमिक सुगम्यता’ संबंधी नए दिशा-निर्देशों के तहत मौजूदा पारितंत्र के विभिन्न पहलुओं को शामिल किया गया है।
  • इससे पहले वर्ष 2021 में सूचना और प्रसारण मंत्रालय ने नए सुगम्यता’ मानकों हेतु मसौदा दिशानिर्देश जारी किये थे।

केंद्रीय लोक निर्माण विभाग

  • भारत का केंद्रीय लोक निर्माण विभाग (CPWD), सार्वजनिक क्षेत्र के कार्यों हेतु उत्तरदायी केंद्र सरकार का एक प्रमुख प्राधिकरण है।
  • यह आवास और शहरी मामलों के मंत्रालय (MoHUA) के अंतर्गत आता है।
  • यह इमारतों, सड़कों, पुलों, फ्लाईओवर, स्टेडियम, सभागारों, प्रयोगशालाओं, बंकरों, सीमा पर बाड़ लगाने, सीमा सड़कों (पहाड़ी सड़कों) आदि जैसी जटिल संरचनाओं के निर्माण से संबंधित है।
  • इसकी स्थापना लॉर्ड डलहौजी ने वर्ष 1854 में की थी।

प्रमुख बिंदु 

  • नए दिशा-निर्देशों के बारे में:
    • ये दिशा-निर्देश वर्ष 2016 में जारी दिव्यांग व्यक्तियों और बुजुर्ग व्यक्तियों के लिये बाधा मुक्त वातावरण के निर्माण हेतु सामंजस्यपूर्ण दिशा-निर्देशों और अंतरिक्ष मानकों का संशोधन है।
    • पूर्ववर्ती दिशा-निर्देश एक बाधा मुक्त वातावरण निर्मित करने से संबंधित थे लेकिन नए  दिशा-निर्देश सार्वभौमिक पहुंँच पर केंद्रित हैं।
      • सार्वभौमिक पहुंँच की स्थिति उस स्थिति/डिग्री को संदर्भित करती है जिस तक पर्यावरण, उत्पाद और सेवाएंँ विकलांग लोगों के लिये सुलभता के साथ उपलब्ध हो सकें।
      • दिव्यांग लोगों के लिये "निर्मित वातावरण" से भौतिक बाधाओं को दूर करने के प्रयास का वर्णन करने हेतु बाधा मुक्त वातावरण शब्द का उपयोग किया जाता है। 
    • ये दिशा-निर्देश केवल दिव्यांग व्यक्तियों (Persons with Disabilities- PwD) के लिये ही नहीं हैं, बल्कि सरकारी भवनों के निर्माण से लेकर मास्टर-प्लानिंग के तहत शहरों तक, योजना परियोजनाओं में शामिल लोगों के लिये भी हैं।
    • नोडल मंत्रालय: आवास और शहरी मामलों का मंत्रालय (MoHUA)।
  • दिव्यांग लोगों के लिये संवैधानिक और कानूनी ढांँचा:
    • अनुच्छेद 14: राज्य भारत के राज्यक्षेत्र के भीतर किसी व्यक्ति को कानून के समक्ष समानता या कानूनों के समान संरक्षण से वंचित नहीं करेगा।
      • इस संदर्भ में दिव्यांग व्यक्तियों को संविधान के समक्ष समान अधिकार प्राप्त होने चाहिये।
    • संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन दिव्यांग व्यक्तियों का अधिकार: भारत संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन, दिव्यांग व्यक्तियों के अधिकार का एक हस्ताक्षरकर्त्ता देश है, जो वर्ष 2007 में लागू हुआ था।
      • कन्वेंशन एक मानव अधिकार के रूप में पहुँच को मान्यता देता है तथा विकलांग व्यक्तियों तक पहुँच सुनिश्चित करने के लिये उपयुक्त उपायों को अपनाने हेतु हस्ताक्षर करता है।
    • सुगम्य भारत अभियान: यह सुगम्य भारत अभियान के रूप में भी जाना जाता है और विकलांग व्यक्तियों को विकास के लिये समान अवसर प्राप्त करने हेतु सार्वभौमिक पहुँच प्राप्त करने में सक्षम बनाता है।
      • अभियान बुनियादी ढाँचे, सूचना और संचार प्रणालियों में महत्त्वपूर्ण बदलाव करके पहुँच को बढ़ाने का प्रयास करता है।
    • विकलांग व्यक्तियों के अधिकार अधिनियम, 2016: भारत सरकार ने विकलांग व्यक्तियों के अधिकार अधिनियम, 2016 को अधिनियमित किया, जो विकलांग व्यक्तियों से संबंधित प्रमुख और व्यापक कानून है।
      • अधिनियम विकलांग व्यक्तियों के लिये सेवाओं के संबंध में केंद्र और राज्य सरकारों की ज़िम्मेदारियों को परिभाषित करता है।
      • यह अधिनियम विकलांग व्यक्तियों के खिलाफ सभी प्रकार के भेदभाव को दूर करके एक बाधा मुक्त वातावरण बनाने की भी सिफारिश करता है जहाँ वे एक सामान्य व्यक्ति को मिलने वाले विकास लाभों को साझा कर सके।
  • अन्य संबंधित पहलें:

दिव्यांगता (Disability) 

  • परिचय:
    • दिव्यांगता कुछ विशेष रूप से विकलांग लोगों से जुड़ा एक शब्द है यह एक ऐसी स्थिति को जो उसे अपने आस-पास के अन्य लोगों की तरह ही काम करने से रोकती है।
  • दिव्यांगता के प्रकार:
    • बौद्धिक अक्षमता: एक बौद्धिक अक्षमता (आईडी) वाले व्यक्ति में कम बुद्धि या तर्कसंगत क्षमता की कमी देखी जाती है जो कि बुनियादी दिन-प्रतिदिन की गतिविधियों के लिये उनके कौशल में कमी के रूप में प्रदर्शित होती है। 
    • स्नायविक और संज्ञानात्मक विकार: लोगों के जीवनकाल में इस प्रकार की विकलांगता  मस्तिष्क की खराब चोट या मल्टीपल स्केलेरोसिस से होती है।
      • मल्टीपल स्केलेरोसिस में शरीर की कोशिकाओं पर उसकी प्रतिरक्षा प्रणाली द्वारा हमला किया जाता है, जिससे शरीर और उसके मस्तिष्क के बीच संचार में समस्या पैदा हो जाती है।
    • शारीरिक अक्षमताः यह दिव्यांगता लोगों में पाई जाने वाली सबसे आम प्रकार की अक्षमता है।
      • ये मुद्दे संचार प्रणाली से लेकर तंत्रिका तंत्र और श्वसन तंत्र संबंधी हो सकते हैं।
      • सेरेब्रल पाल्सी एक ऐसी विकलांगता है जो मस्तिष्क क्षति के कारण होती है और इसके परिणामस्वरूप चलने में समस्या होती है। ऐसी दिव्यांगता के लक्षण जन्म से ही देखे जा सकते हैं।
    • मानसिक विकलांगता: किसी व्यक्ति में इस तरह के विकार व्यक्ति में चिंता विकार, अवसाद या विभिन्न प्रकार के फोबिया को जन्म देते हैं।

स्रोत: द हिंदू


शासन व्यवस्था

इंडिया स्किल्स 2021

प्रिलिम्स के लिये:

इंडियास्किल्स 2021, नेशनल स्किल डेवलपमेंट कॉरपोरेशन (NSDC)।

मेन्स के लिये:

युवाओं को कुशल बनाने की आवश्यकता, उनसे संबंधित चुनौतियाँ और अब तक की प्रमुख पहल।

चर्चा में क्यों?

देश की सबसे बड़ी कौशल प्रतियोगिता इंडिया स्किल्स 2021 नेशनल्स (IndiaSkills 2021 Nationals) का हाल ही में समापन हुआ।

चर्चा में क्यों?

  • परिचय:
    • यह कौशल के उच्चतम मानकों को प्रदर्शित करने के लिये डिज़ाइन की गई है तथा युवा लोगों को राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अपनी प्रतिभा दिखाने हेतु एक मंच प्रदान करती है।
    • भारत कौशल प्रतियोगिता हर दो वर्ष में राज्य सरकारों और उद्योग के सहयोग से आयोजित की जाती है।
    • इसमें जमीनी स्तर तक पहुँचने और प्रभाव डालने की क्षमता है।
  • प्रतिभागी:
    • 30 राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों (यूटी) ने प्रतियोगिता में भाग लिया तथा वर्ष 2021 में 54 कौशलों में अपने कौशल का प्रदर्शन किया, जिसमें सात नए कौशल शामिल थे।
      • कौशल क्षेत्रों में सौंदर्य चिकित्सा, साइबर सुरक्षा, पुष्प विज्ञान, रोबोट प्रणाली एकीकरण, क्लाउड कंप्यूटिंग, जल प्रौद्योगिकी, पेंटिंग और सजावट, स्वास्थ्य और सामाजिक देखभाल, अन्य शामिल हैं। 
  • नोडल एजेंसी:
    • राष्ट्रीय कौशल विकास निगम (NSDC), कौशल विकास और उद्यमिता मंत्रालय (MSDE) के मार्गदर्शन में काम कर रहा है।
      • NSDC 2011 से वर्ल्ड स्किल्स इंटरनेशनल प्रतियोगिताओं में भारत की भागीदारी का नेतृत्त्व कर रहा है।
  • राज्यों का प्रदर्शन:
    • ओडिशा चार्ट में सबसे ऊपर है, उसके बाद महाराष्ट्र और केरल हैं।
      • इंडियास्किल्स 2021 नेशनल्स के विजेताओं को अक्तूबर 2022 में चीन के शंघाई में होने वाली वर्ल्डस्किल्स इंटरनेशनल प्रतियोगिता में देश का प्रतिनिधित्त्व करने का मौका मिलेगा।
  • कौशल विकास की आवश्यकता:
    • अकुशल श्रम बल:
      • यूएनडीपी की मानव विकास रिपोर्ट-2020 के अनुसार, भारत में वर्ष 2010-2019 की अवधि में केवल 21.1% श्रम शक्ति ही कुशल (Skilled) थी।
        • यह निराशाजनक परिणाम नीतिगत कार्रवाइयों में सामंजस्य की कमी, समग्र दृष्टिकोण की अनुपस्थिति और एकल रूप से कार्य करने के कारण है।
    • बढ़ती बेरोजगारी से निपटना:
      • वर्ष 2020 में भारत की बेरोज़गारी दर अब तक के उच्चतम स्तर पर पहुंँच गई थी।
        • इसके लिये कई कारक ज़िम्मेदार थे, जिनमें कोरोनावायरस महामारी के कारण लगने वाला लॉकडाउन भी शामिल है।
    • अर्थव्यवस्था में सहयोग की संभावना:
      • जनवरी 2021 में जारी वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम की रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2030 तक अपस्किलिंग में निवेश संभावित रूप से  वैश्विक अर्थव्यवस्था में  6.5 ट्रिलियन अमेरिकी डाॅलर और भारत की अर्थव्यवस्था में 570 बिलियन अमेरिकी डाॅलर तक बढने की संभावना है।
      • भारत में अपस्किलिंग के माध्यम से दूसरी सबसे बड़ी अतिरिक्त रोज़गार क्षमता है, क्योंकि भारत वर्ष 2030 तक 2.3 मिलियन नौकरियों को जोड़ने की क्षमता रखता है, जबकि अमेरिका 2.7 मिलियन नौकरियों के साथ पहले स्थान पर है।

संबंधित पहल/योजनाएँ:

स्रोत: पी.आई.बी.


आंतरिक सुरक्षा

स्वदेशी विमान वाहक

प्रिलिम्स के लिये:

विमान वाहक, INS विक्रांत, INS विक्रमादित्य, INS विशाल

मेन्स के लिये:

आंतरिक सुरक्षा हेतु विमान वाहक का महत्त्व।

चर्चा में क्यों?

हाल ही में ‘स्वदेशी विमान वाहक-1’ (IAC), जिसे भारतीय नौसेना में प्रवेश करने के बाद INS विक्रांत कहा जाएगा, ने समुद्री परीक्षणों का एक और चरण शुरू किया है।

  • INS विक्रांत भारत में बनने वाला सबसे बड़ा और सबसे जटिल युद्धपोत है।

Indigenous-Aircraft-Carrier

प्रमुख बिंदु

  • विमान वाहक के विषय में:
    • विमानवाहक पोत ‘एक बड़ा जहाज़ है, जो सैन्य विमानों को एक स्थान से दूसरे स्थान तक ले जाता है और इसमें जहाज़ों के लिये ‘एयर बेस’ मौजूद होती है।
      • ये ‘एयर बेस’ एक पूर्ण-लंबाई वाली उड़ान डेक से लैस होते हैं, जो विमान को ले जाने, हथियार तैनात करने और पुनर्प्राप्त करने में सक्षम बनाते हैं।
    • ये युद्ध और शांति के समय में नौसेना के बेड़े की कमान के रूप में कार्य करते हैं।
    • एक वाहक युद्ध समूह में विमान वाहक और उसके अनुरक्षक शामिल होते हैं, जो एक साथ एक समूह का निर्माण करते हैं। 
      • द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान इंपीरियल जापानी नौसेना ने पहली बार बड़ी संख्या में वाहक को एक टास्क फोर्स में इकट्ठा किया था जिसे किडो बुटाई के नाम से जाना जाता था।
      • इस टास्क फोर्स का इस्तेमाल पर्ल हार्बर अटैक के दौरान किया गया था।
  • भारत में विमान वाहक:
    • आईएनएस विक्रांत (सेवामुक्त): आईएनएस विक्रांत से शुरुआत, जिसने वर्ष 1961 से 1997 तक भारत की सेवा की।
      • भारत ने वर्ष 1961 में यूनाइटेड किंगडम से विक्रांत का अधिग्रहण किया और इस वाहक ने पाकिस्तान के साथ 1971 के युद्ध में एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई जिसके कारण बांग्लादेश का जन्म हुआ।
      • वर्ष 2014 में आईएनएस विक्रांत का मुंबई में भंजन हुआ।
    • आईएनएस विराट (सेवामुक्त): आईएनएस विक्रांत के बाद सेंटौर-श्रेणी का वाहक एचएमएस (हर मेजेस्टीज शिप) हर्मीस आया, जिसे भारत में आईएनएस विराट के रूप में नाम दिया गया और इसने वर्ष 1987 से 2016 तक भारतीय नौसेना में सेवा प्रदान कीं।
    • आईएनएस विक्रमादित्य:
      • यह भारतीय नौसेना का सबसे बड़ा विमानवाहक पोत और रूसी नौसेना के सेवामुक्त एडमिरल गोर्शकोव/बाकू से परिवर्तित युद्धपोत है।
      • INS विक्रमादित्य एक संशोधित कीव-श्रेणी का विमानवाहक पोत है जिसे नवंबर 2013 में कमीशन किया गया था।
    • INS विक्रांत:
      • INS विक्रांत की विरासत को सम्मान देने हेतु पहले IAC को INS विक्रांत के रूप में नामित किया जाएगा।
      • इसे कोचीन शिपयार्ड लिमिटेड में बनाया गया है।
      • वर्तमान में इसका समुद्री परीक्षण चल रहा है और इसका परिचालन वर्ष 2023 में शुरू होने की संभावना है।
      • इसके निर्माण ने भारत को अत्याधुनिक विमान वाहक बनाने की क्षमता वाले चुनिंदा देशों में शामिल किया है।
      • संचालन के तौर-तरीके: भारतीय नौसेना के अनुसार, यह युद्धपोत मिग-29K लड़ाकू जेट, कामोव-31 हेलीकॉप्टर, MH-60R बहु-भूमिका हेलीकॉप्टर और स्वदेशी रूप से निर्मित उन्नत हल्के हेलीकॉप्टर (ALH) का संचालन करेगा।
  • विमान वाहक का महत्त्व:
    • वर्तमान में अधिकांश विश्व शक्तियाँ अपने समुद्री अधिकारों और हितों की रक्षा के लिये तकनीकी रूप से उन्नत विमान वाहक का संचालन या निर्माण कर रही हैं।
    • दुनिया भर में तेरह नौसेनाएँ अब विमान वाहक पोत संचालित करती हैं। कुछ के नाम निम्नलिखित हैं:
      • निमित्ज़ क्लास, US
      • गेराल्ड आर फोर्ड क्लास, US
      • क्वीन एलिजाबेथ क्लास, UK
      • एडमिरल कुज़नेत्सोव, रूस
      • लिओनिंग, चीन
      • INS विक्रमादित्य, भारत
      • चार्ल्स डी गॉल, फ्रांस
      • कैवोर, इटली
      • जुआन कार्लोस, स्पेन
      • यूएसएस अमेरिका, US
    • भारत के लिये एयरक्राफ्ट कैरियर एक निवारक नौसैनिक क्षमता प्रदान करता है जो न केवल आवश्यक है बल्कि एक रणनीतिक आवश्यकता भी है।
      • ऐसा इसलिये है क्योंकि भारत की ज़िम्मेदारी का क्षेत्र अफ्रीका के पूर्वी तट से लेकर पश्चिमी प्रशांत महासागर तक है
  • भावी प्रयास:
    • वर्ष 2015 से नौसेना देश के लिये तीसरा विमानवाहक पोत बनाने की मंजूरी मांग रही है, जिसे अगर मंजूरी मिल जाती है तो यह भारत का दूसरा स्वदेशी विमान वाहक (आईएसी-2) बन जाएगा।
    • INS विशाल नाम के इस प्रस्तावित वाहक को 65,000 टन के विशाल पोत के रूप में उभारना  है, जो आईएसी-1 और INS विक्रमादित्य से काफी बड़ा है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


close
एसएमएस अलर्ट
Share Page
images-2
images-2