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अंतर्राष्ट्रीय संबंध

भारत-अमेरिका व्यापार संबंध

  • 24 Nov 2021
  • 15 min read

यह एडिटोरियल 23/11/2021 को ‘इंडियन एक्सप्रेस’ में प्रकाशित “The Push US-India Trade Needs” लेख पर आधारित है। इसमें ‘भारत-अमेरिका व्यापार नीति मंच’ के पुनरुद्धार और दोनों देशों के लिये द्विपक्षीय व्यापार के क्षेत्र में सहयोग करने के अवसरों के संबंध में चर्चा की गई है।

संदर्भ

पिछले दो दशकों में दुनिया के सबसे पुराने लोकतंत्र और सबसे बड़े लोकतंत्र—अमेरिका और भारत, के बीच की साझेदारी व्यापक रूप से सुदृढ़ हुई है। रणनीतिक सहयोग से लेकर दोनों देशों के लोगों के बीच गहरे होते संबंधों से दोनों देशों को प्रभावशाली लाभ प्राप्त हुए हैं।

इसी अवधि में दोनों देशों के बीच व्यापार और निवेश की मात्रा में भी भारी वृद्धि हुई है, हालाँकि दोनों देशों के बीच के गहन रणनीतिक और सांस्कृतिक संरेखण की तुलना में इन्हें कम ही माना जा सकता है।

हाल ही में भारत के केंद्रीय वाणिज्य और उद्योग मंत्री ने वर्ष 2017 के बाद पहली बार व्यापार नीति फोरम (Trade Policy Forum- TPF) के लिये अपने अमेरिकी समकक्ष से मुलाकात की।

यह बैठक बाइडेन प्रशासन के अंतर्गत भारत और अमेरिका के लिये पहला अवसर था, जहाँ व्यापार संबंधों को बाधित करने वाले बाज़ार पहुँच संबंधी कुछ जटिल मुद्दों को सुलझाने की कोशिश की गई।

भारत-अमेरिका व्यापार और TPF का पुनरुद्धार

  • भारत-अमेरिका व्यापार संबंध: संयुक्त राज्य अमेरिका उन कुछ देशों में से एक है जिनके साथ भारत व्यापार अधिशेष की स्थिति रखता है। संयुक्त राज्य अमेरिका के लिये भारत सेवाओं के आयात का छठा सबसे बड़ा आपूर्तिकर्त्ता है।     
    • भारत का वृहत उपभोक्ता आकार और आर्थिक विकास की दिशा में प्रगति, इसे संयुक्त राज्य अमेरिका के निर्यातकों के लिये एक आवश्यक बाज़ार बनाता है। 
    • डोनाल्ड ट्रम्प प्रशासन के दौरान दोनों पक्ष एक ‘मिनी ट्रेड डील’ पर सहमत होने के निकट पहुँच गए थे, जहाँ भारत कुछ उत्पादों पर से टैरिफ हटा देता और बदले में उसे पुनः अमेरिका के ‘सामान्यीकृत वरीयता प्रणाली’ (Generalized System of Preferences- GSP) कार्यक्रम में शामिल कर लिया जाता।    
      • लेकिन बाइडेन प्रशासन नए व्यापार समझौतों के प्रति अभी तक उदासीन ही नज़र आया है। 
  • व्यापार के विस्तार के प्रयास: भारत-अमेरिका ट्रेड पॉलिसी फोरम की शुरुआत से पहले ‘यूएस चैंबर ऑफ कॉमर्स’ ने एक व्यापक द्विपक्षीय व्यापार समझौते के लिये आधार तैयार करने हेतु तत्काल कार्रवाई का आह्वान किया था।     
    • भारत में भी आर्थिक साझेदारी को आगे बढ़ाने को लेकर एक सकारात्मक माहौल है, जहाँ प्रमुख क्षेत्रों में ‘एफडीआई कैप’ बढ़ाने और पूर्वव्यापी कर कानून को निरस्त किये जाने की हाल की पहलों से निवेशकों के भरोसे को बल मिला है और भारत के उदारीकरण के पथ को लेकर आशा प्रकट की गई है।   
    • भारत सरकार ने सुधार के प्रति अपने समर्पण का संकेत दिया है और अमेरिका के साथ एक व्यापार समझौते का स्पष्ट रूप से समर्थन किया है। 
  • TPF से परस्पर लाभ की स्थिति: अन्य देशों के साथ ही अमेरिका भी उपभोक्ता व्यय में वृद्धि को प्रबंधित करने, मुद्रास्फीति के दबाव को कम करने और व्यापक रणनीतिक उद्देश्यों के साथ वैश्विक आपूर्ति शृंखला को संरेखित करने का प्रयास कर रहा है।  
    • व्यापार का विस्तार उपभोक्ता मूल्यों को कम कर सकता है और उसके आर्थिक सुधार को अधिकाधिक स्थिर/स्थायी बना सकता है। 
    • दूसरी ओर, भारत भी मूल्य शृंखलाओं को आगे बढ़ाने और महत्त्वाकांक्षी विकास लक्ष्यों तक पहुँचने का प्रयास कर रहा है।
  • व्यापार नीति फोरम (TPF) का महत्त्व: 
    • यद्यपि इस फोरम से किसी बड़ी सफलता के मिलने की संभावना नहीं है, लेकिन यह बाइडेन काल में एक मज़बूत द्विपक्षीय व्यापार संबंध निर्माण का महत्त्वपूर्ण अवसर प्रदान कर सकता है।   
      • अमेरिका, भारत के सबसे महत्त्वपूर्ण साझेदारों में से एक है और दोनों देशों के बीच निकटता बढ़ी है।
      • चीन को लेकर दोनों देशों की साझा चिंताओं ने व्यापार संबंधों में मौजूद तनाव के बावजूद मज़बूत रक्षा एवं रणनीतिक संबंधों को बल दिया है। 
    • व्यापार नीति फोरम भारत के लिये एक बाज़ार अभिगम्यता पैकेज के सृजन का अवसर प्रदान करता है, जो अमेरिका के साथ व्यापार तनाव को कम करेगा और इससे बाइडेन प्रशासन को ‘धारा 232’ के तहत टैरिफ को हटाने का राजनीतिक आवरण प्राप्त होगा। यह अंततः भारतीय कंपनियों को लाभान्वित करेगा।    
    • भारत ने वर्ष 2025 तक 5 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था के रूप में विकसित होने, हाई-टेक मैन्युफैक्चरिंग हब बनने और वर्ष 2030 तक 500 गीगावाट अक्षय ऊर्जा स्थापित करने का लक्ष्य रखता है। 
      • ये ऐसे लक्ष्य हैं जिन्हें अमेरिकी पूंजी, निवेश और अमेरिकी बाज़ार तक निरंतर पहुँच के साथ बेहतर तरीके से हासिल किया जा सकता है।

संबद्ध चुनौतियाँ

  • टैरिफ अधिरोपण: वर्ष 2018 में अमेरिका ने भारत से आने वाले कुछ इस्पात उत्पादों पर 25% और कुछ एल्यूमीनियम उत्पादों पर 10% का टैरिफ अधिरोपित किया था।    
  • भारत ने जून, 2019 में अमेरिकी आयात के 28 उत्पादों (लगभग 1.2 बिलियन डॉलर मूल्य के) पर टैरिफ बढ़ाकर जवाबी कार्रवाई की।    
  • हालाँकि, धारा 232 टैरिफ लागू होने के बाद अमेरिका को इस्पात निर्यात में वर्ष-दर-वर्ष 46% की गिरावट आई है। 
  • आत्मनिर्भरता को संरक्षणवाद समझा जाना: ‘आत्मनिर्भर भारत अभियान’ से यह भ्रमित छवि बनी है कि भारत तेज़ी से एक संरक्षणवादी अर्थव्यवस्था बनता जा रहा है।   
  • अमेरिका की ‘सामान्यीकृत वरीयता प्रणाली’ (GPS) से बहिर्वेशन: अमेरिका ने GPS कार्यक्रम के तहत भारतीय निर्यातकों को प्राप्त शुल्क-मुक्त लाभ को वापस लेने (जून 2019 से प्रभावी) का निर्णय लिया।   
  • नतीजतन, 5.6 बिलियन डॉलर मूल्य के भारतीय निर्यात को प्राप्त विशेष शुल्क व्यवहार को समाप्त कर दिया गया, जिससे फार्मास्यूटिकल्स, वस्त्र, कृषि उत्पाद और मोटरवाहन पार्ट्स जैसे भारत के निर्यात-उन्मुख क्षेत्र प्रभावित हुए हैं।    

आगे की राह

  • वार्ताएँ आयोजित करना: चार वर्षों बाद जब पहले अमेरिका-भारत ‘व्यापार नीति फोरम’ की शुरुआत हुई है, यद्यपि इन प्रारंभिक चर्चाओं के माध्यम से कोई विशिष्ट व्यापार सौदे की संभावना नहीं है, किंतु दोनों सरकारें इसी प्रकार की वार्ता के माध्यम से वास्तविक प्रगति दर्ज कर सकती हैं। इसमें मुख्यतः दो आयाम शामिल हैं: 
    • लंबे समय से चली आ रही अड़चनों और विवादों को दूर करना और इनका समाधान प्राप्त करना।  
    • 21वीं सदी की आवश्यकताओं के अनुरूप व्यापार ढाँचे का निर्माण करना, जो आर्थिक गलियारे में विकास और नवाचार को प्रेरित करने वाले प्रमुख क्षेत्रों सहित दोनों देशों के सर्वोत्कृष्ट को एक साथ ला सकता है। 
  • टैरिफ हटाने की पहल: किसी संभावित समझौते की दिशा में पहला कदम यह होगा कि भारत स्वयं पहल करे और अपने प्रतिशोधी शुल्क को हटाने पर एकतरफा रूप से विचार करे। यह व्यापार वार्ता में एक रचनात्मक पक्ष बनने की भारत की इच्छा का प्रतिनिधित्व करेगा।   
    • भले ही अमेरिका की ओर से किसी प्रतिबद्धता के बिना भारत द्वारा टैरिफ हटाना बस एक बेहतर कदम ही होगी, लेकिन यह अंततः द्विपक्षीय व्यापार संबंधों के लिये फायदेमंद सिद्ध होगा।
  • चीन का मुकाबला करना: रणनीतिक दृष्टिकोण से, भारत के लिये चीन का मुकाबला करने का एक उपाय यही है कि भारत अपने उन भागीदारों के साथ व्यापार संबंधों को गहन करे जो भारत के विकास का समर्थन करने के लिये प्रतिबद्धता रखते हैं।   
    • अमेरिका के साथ एक समझौता भारत के लिये रणनीतिक और आर्थिक दोनों रूप से लाभप्रद होगा। 
      • चूँकि अमेरिकी कंपनियाँ अपनी कुछ विनिर्माण गतिविधियों को चीन से बाहर स्थानांतरित करने पर विचाररत हैं, एक जीवंत व्यापार रणनीति, उत्पादन-संबद्ध प्रोत्साहन (PLI) योजनाओं को पूरकता प्रदान कर सकती है, और विनिर्माण एवं निर्यात दोनों को बढ़ावा देने में मदद कर सकती है।  
  • डिजिटल विकास को सुगम बनाना: डिजिटल क्षेत्र (जो 100 बिलियन डॉलर से अधिक के द्विपक्षीय व्यापार का प्रतिनिधित्व करता है) में विकास को बढ़ावा देने के लिये दोनों पक्षों को कई मूलभूत मुद्दों—डिजिटल सेवा कर, सीमा-पार डेटा प्रवाह, साझा सेलुलर मानक आदि को संबोधित करने की आवश्यकता होगी।  
    • यह महत्त्वपूर्ण है कि डिजिटल सेवा कर के मामले में भारत उभरते वैश्विक समझौतों के साथ अनुकूलता लाए, जिससे व्यापार में तेज़ी आएगी।  
    • इसके साथ ही, भारत और अमेरिका को एक एकीकृत दूरसंचार पारितंत्र में कार्यान्वयन के लिये 5G मानकों पर सहमति बनानी चाहिये।  
  • स्वास्थ्य क्षेत्र में सहयोग: स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र में अमेरिका-भारत सहयोग वैश्विक स्वास्थ्य संरचना के लिये सर्वप्रमुख प्रभावशाली कदम होगा। 
    • वैश्विक महामारी से बाहर निकलते दोनों देशों के लिये यह अनूठा अवसर है कि वे ऐसे स्वास्थ्य पहल के लिये आगे बढ़ें जो भारतीय बाज़ार की बाधाओं को दूर करे, जिससे अमेरिकी कामगारों और भारतीय रोगियों दोनों को हानि पहुँचती है।     
    • इस क्षेत्र के विकास को सुगम बनाने और अनुसंधान एवं विकास में निवेश को बढ़ावा देने के लिये यह आवश्यक है कि:
      • सरकारें अभिनव चिकित्सा उत्पादों पर बाज़ार आधारित दृष्टिकोण अपनाएँ 
      • सुनिश्चित करें कि सार्वजनिक खरीद नीतियाँ विदेशी फर्मों के साथ भेदभाव नहीं करेंगी  
      • चिकित्सा उपकरणों और फार्मास्यूटिकल्स के अनुमोदन में तेज़ी लाने के लिये नियामक संरचनाओं को संरेखित करें ताकि महत्त्वपूर्ण और जीवन रक्षक उपचार त्वरित गति से बाज़ार तक पहुँच सकें।

निष्कर्ष

भू-राजनीतिक उतार-चढ़ाव के इस दौर में दुनिया के दो सबसे बड़े लोकतंत्रों का एक साथ आना विवेकपूर्ण होगा। अमेरिका-भारत ट्रेड पॉलिसी फोरम के माध्यम से व्यापार और निवेश संबंधों को मज़बूत करना इस दिशा में एक महत्त्वपूर्ण आरंभिक कदम हो सकता है।

बढ़ते सांस्कृतिक और रणनीतिक संरेखण की ही तरह बेहतर व्यापार साझेदारी दोनों देशों को महामारी के बाद के परिदृश्य में बेहतर ढंग से आगे बढ़ने में मदद करेगी।

अभ्यास प्रश्न: भारत और अमेरिका के द्विपक्षीय व्यापार संबंधों में विद्यमान समस्याओं और उनके व्यापार संबंधों को बढ़ावा देने के लिये आवश्यक उपायों की चर्चा कीजिये।

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