सामाजिक न्याय
मानसिक स्वास्थ्य संबंधित मुद्दे
प्रिलिम्स के लिये:विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस, किरण हेल्पलाइन मेन्स के लिये:मानसिक स्वास्थ्य का अर्थ, संबंधित चुनौतियाँ और इस संबंध में सरकार द्वारा किये गए प्रयास |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय ने मानसिक स्वास्थ्य के मुद्दों के प्रति न्यायपालिका की संवेदनशीलता बनाए रखने की आवश्यकता पर ज़ोर देते हुए कहा कि किसी व्यक्ति के मानसिक स्वास्थ्य को ‘वन-साइज़-फिट-फॉर-ऑल’ के दृष्टिकोण से नहीं देखा जाना चाहिये।
- सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि एक व्यक्ति विभिन्न तरह के खतरों का सामना करता है, जिसमें शारीरिक और भावनात्मक (प्यार, दुख व खुशी) दोनों शामिल हैं, जो कि मानव मन एवं भावनाओं की बहुआयामी प्रकृति के अनुसार अलग-अलग तरह से व्यवहार करते हैं।
- विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस प्रतिवर्ष 10 अक्तूबर को मनाया जाता है।
प्रमुख बिंदु
- मानसिक स्वास्थ्य:
- विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुसार, मानसिक स्वास्थ्य का आशय ऐसी स्थिति से है, जिसमें एक व्यक्ति अपनी क्षमताओं को एहसास करता है, जीवन में सामान्य तनावों का सामना कर सकता है, उत्पादक तरीके से कार्य कर सकता है और अपने समुदाय में योगदान देने में सक्षम होता है।
- शारीरिक स्वास्थ्य की तरह मानसिक स्वास्थ्य भी जीवन के प्रत्येक चरण अर्थात् बचपन और किशोरावस्था से वयस्कता के दौरान महत्त्वपूर्ण होता है।
- चुनौतियाँ:
- उच्च सार्वजनिक स्वास्थ्य भार: भारत के नवीनतम राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य सर्वेक्षण 2015-16 के अनुसार, पूरे देश में अनुमानत: 150 मिलियन लोगों को मानसिक स्वास्थ्य देखभाल की आवश्यकता है।
- संसाधनों का अभाव: भारत में प्रति 100,000 जनसंख्या पर मानसिक स्वास्थ्य कर्मचारियों की संख्या का अनुपात काफी कम है जिनमें मनोचिकित्सक (0.3), नर्स (0.12), मनोवैज्ञानिक (0.07) और सामाजिक कार्यकर्ता (0.07) शामिल हैं।
- स्वास्थ्य सेवा पर जीडीपी का 1 प्रतिशत से भी कम वित्तीय संसाधन आवंटित किया जाता है जिसके चलते मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुंँच में सार्वजनिक बाधा उत्पन्न हई है।
- अन्य चुनौतियाँ: मानसिक बीमारी के लक्षणों के प्रति जागरूकता का अभाव, इसे एक सामाजिक कलंक के रूप में देखना और विशेष रूप से बूढ़े एवं निराश्रित लोगों में मानसिक रोग के लक्षणों की अधिकता, रोगी के इलाज हेतु परिवार के सदस्यों में इच्छा शक्ति का अभाव इत्यादि के कारण सामाजिक अलगाव की स्थिति उत्पन्न होती है।
- इसके परिणामस्वरूप उपचार में एक बड़ा अंतर देखा गया है। उपचार में यह अंतर किसी व्यक्ति की वर्तमान मानसिक बीमारी को और अधिक खराब स्थिति में पहुँचा देता है।
- पोस्ट-ट्रीटमेंट गैप: मानसिक रूप से बीमार व्यक्तियों के उपचार के बाद उनके उचित पुनर्वास की आवश्यकता होती है जो वर्तमान में मौजूद नहीं है।
- गंभीरता में वृद्धि: आर्थिक मंदी के दौरान मानसिक स्वास्थ्य समस्याएँ बढ़ जाती हैं, इसलिये आर्थिक संकट के समय विशेष ध्यान देने की आवश्यकता होती है।
- सरकार द्वारा उठाए गए कदम:
- संवैधानिक प्रावधान: सर्वोच्च न्यायालय ने संविधान के अनुच्छेद-21 के तहत स्वास्थ्य सेवा को मौलिक अधिकार के रूप में स्वीकार किया है।
- राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य कार्यक्रम (NMHP): मानसिक विकारों के भारी बोझ और मानसिक स्वास्थ्य के क्षेत्र में योग्य पेशेवरों की कमी को दूर करने के लिये सरकार वर्ष 1982 से राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य कार्यक्रम (NMHP) को लागू कर रही है।
- वर्ष 2003 में दो योजनाओं को शामिल करने हेतु इस कार्यक्रम को सरकार द्वारा पुनः रणनीतिक रूप से तैयार किया गया, जिसमें राजकीय मानसिक अस्पतालों का आधुनिकीकरण और मेडिकल कॉलेजों/सामान्य अस्पतालों की मानसिक विकारों से संबंधित इकाइयों का उन्नयन करना शामिल था।
- मानसिक स्वास्थ्यकर अधिनियम, 2017: यह अधिनयम प्रत्येक प्रभावित व्यक्ति को सरकार द्वारा संचालित या वित्तपोषित मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं और उपचार तक पहुँच की गारंटी देता है।
- अधिनयम ने आईपीसी की धारा 309 (Section 309 IPC) के उपयोग को काफी कम कर दिया है और केवल अपवाद की स्थिति में आत्महत्या के प्रयास को दंडनीय बनाया गया है।
- किरण हेल्पलाइन: वर्ष 2020 में सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय ने चिंता, तनाव, अवसाद, आत्महत्या के विचार और अन्य मानसिक स्वास्थ्य चिंताओं का सामना कर रहे लोगों को सहायता प्रदान करने के लिये 24/7 टोल-फ्री हेल्पलाइन 'किरण' शुरू की थी।
आगे की राह
- भारत में मानसिक स्वास्थ्य की स्थिति सरकार द्वारा सक्रिय नीतिगत हस्तक्षेप और संसाधन आवंटन की मांग करती है।
- मानसिक स्वास्थ्य के प्रति कलंक को कम करने के लिये हमें समुदाय/समाज को प्रशिक्षित और संवेदनशील बनाने के उपायों की आवश्यकता है।
- जब मानसिक बीमारी वाले रोगियों को सही देखभाल प्रदान करने की बात आती है, तो हमें रोगियों के लिये मानसिक स्वास्थ्य देखभाल हस्तक्षेप की आवश्यकता होती है, हमें सेवाओं और कर्मचारियों की पहुँच को बढ़ाने के लिये नए मॉडल की आवश्यकता है।
- ऐसा ही एक मॉडल- ‘अक्रेडिटेड सोशल हेल्थ एक्टिविस्ट’ (आशा) स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय द्वारा शुरू किया गया है।
- भारत को मानसिक स्वास्थ्य और इससे संबंधित मुद्दों के बारे में शिक्षित करने और जागरूकता पैदा करने के लिये निरंतर धन की आवश्यकता है।
- स्वच्छ मानसिकता अभियान जैसे अभियानों के माध्यम से लोगों को मानसिक स्वास्थ्य के बारे में जानने के लिये प्रेरित करना समय की मांग है।
स्रोत: द हिंदू
शासन व्यवस्था
ग्लोबल ड्रग पॉलिसी इंडेक्स 2021
प्रिलिम्स के लिये:ग्लोबल ड्रग पॉलिसी इंडेक्स, ‘वॉर ऑन ड्रग्स’ मेन्स के लिये:वैश्विक दवा संबंधी नीतियाँ एवं इनका कार्यान्वयन |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में ‘हार्म रिडक्शन कंसोर्टियम’ द्वारा ‘ग्लोबल ड्रग पॉलिसी इंडेक्स’ का उद्घाटन संस्करण जारी किया गया।
- यह दवा नीतियों और उनके कार्यान्वयन का एक ‘डेटा-संचालित वैश्विक विश्लेषण’ है जो ऐसे समय में आया है जब भारत सरकार ‘नारकोटिक्स ड्रग्स एंड साइकोट्रोपिक पदार्थ अधिनियम, 1985 के प्रावधानों की समीक्षा कर रही है।
- ‘हार्म रिडक्शन कंसोर्टियम’ नेटवर्क का एक वैश्विक कंसोर्टियम है जिसका लक्ष्य वैश्विक रूप से ‘वॉर ऑन ड्रग्स’ को चुनौती देना, नुकसान कम करने वाली सेवाओं तक पहुँच बढ़ाना और नुकसान में कमी के लिये संसाधनों को बढ़ाने की वकालत करना है।
प्रमुख बिंदु
- सूचकांक के बारे में: यह एक अनूठा उपकरण है जो राष्ट्रीय स्तर की दवा नीतियों का दस्तावेज़ीकरण, माप और तुलना करता है।
- यह प्रत्येक देश को स्कोर और रैंकिंग प्रदान करता है जो दर्शाता है कि उनकी दवा नीतियाँ और कार्यान्वयन मानव अधिकारों, स्वास्थ्य और विकास के संयुक्त राष्ट्र सिद्धांतों के साथ कितना संरेखित है।
- यह सूचकांक दवा नीति के क्षेत्र में एक आवश्यक जवाबदेही और मूल्यांकन तंत्र प्रदान करता है।
- यह दुनिया के सभी क्षेत्रों को कवर करने वाले 30 देशों के प्रदर्शन का मूल्यांकन करता है।
- रिपोर्ट के मुख्य निष्कर्ष:
- दमन और दंड आधारित दवा नीतियों के आधार पर वैश्विक नेतृत्व ने कुल मिलाकर बहुत कम (केवल 48/100) औसत स्कोर के साथ अंक प्राप्त किये हैं और केवल शीर्ष रैंकिंग वाला देश (नॉर्वे) 74/100 तक पहुँच गया है।
- दवा नीति के कार्यान्वयन पर नागरिक समाज के विशेषज्ञों के मानक और अपेक्षाएँ हर देश में अलग-अलग होती हैं।
- असमानता वैश्विक दवा नीतियों में गहराई तक व्याप्त है, शीर्ष क्रम के 5 देशों ने सबसे निचले क्रम के 5 देशों की तुलना में 3 गुना अधिक अंक प्राप्त किये हैं।
- यह आंशिक रूप से ‘वॉर ऑन ड्रग्स’ दृष्टिकोण की औपनिवेशिक विरासत के कारण है।
- नशीली दवाओं से संबंधित नीतियाँ सामाजिक-आर्थिक स्थिति में हाशिये पर पड़े लोगों को उनके लिंग, जातीयता, यौन अभिविन्यास के आधार पर असमान रूप से प्रभावित करती हैं।
- राज्य की नीतियों और उन्हें ज़मीनी स्तर पर कैसे लागू किया जाता है, के बीच व्यापक असमानताएँ हैं।
- कुछ अपवादों को छोड़कर औषधि नीति प्रक्रियाओं में नागरिक समाज और प्रभावित समुदायों की सार्थक भागीदारी अत्यंत सीमित है।
- भारत का प्रदर्शन:
- रैंकिंग:
- 30 देशों में भारत का स्थान 18वाँ है। इसका कुल स्कोर 46/100 है।
- स्कोर:
- अत्यधिक सज़ा और प्रतिक्रियाओं के प्रावधान के आधार पर इसका स्कोर 63/100 है।
- स्वास्थ्य और हानि में कमी के मामले में 49/100 है।
- आपराधिक न्याय प्रतिक्रिया की आनुपातिकता में 38/100 है।
- दर्द और पीड़ा से राहत के लिये अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर नियंत्रित पदार्थों की उपलब्धता और पहुँच में 33/100 है।
- रैंकिंग:
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
भारतीय अर्थव्यवस्था
LEADS रिपोर्ट 2021
प्रिलिम्स के लिये:LEADS रिपोर्ट मेन्स के लिये:लॉजिस्टिक्स से संबंधित मुद्दे |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय ने लॉजिस्टिक्स इज़ अक्रॉस डिफरेंट स्टेट्स (LEADS) रिपोर्ट (सूचकांक) 2021 जारी की है।
प्रमुख बिंदु
- परिचय:
- LEADS रिपोर्ट का उद्देश्य राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों (UT) के लॉजिस्टिक्स प्रदर्शन का आकलन करना और उन क्षेत्रों की पहचान करना है जहाँ वे लॉजिस्टिक्स प्रदर्शन में सुधार कर सकते हैं।
- इसे 2018 में लॉन्च किया गया था।
- राज्यों को सड़क, रेल और वेयरहाउसिंग जैसे प्रमुख बुनियादी ढाँचे की गुणवत्ता और क्षमता के साथ-साथ कार्गो की सुरक्षा, टर्मिनल सेवाओं की गति तथा नियामक अनुमोदन सहित लॉजिस्टिक्स के संचालन में आसानी के आधार पर रैंक प्रदान किया गया है।
- रिपोर्ट की संरचना तीन आयामों के साथ की गई है जो सामूहिक रूप से लॉजिस्टिक्स सुविधा को प्रभावित करते हैं- अवसंरचना, सेवाएँ और संचालन तथा नियामक इकोसिस्टम जिन्हें 17 मापदंडों में वर्गीकृत किया गया है।
- LEADS रिपोर्ट का उद्देश्य राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों (UT) के लॉजिस्टिक्स प्रदर्शन का आकलन करना और उन क्षेत्रों की पहचान करना है जहाँ वे लॉजिस्टिक्स प्रदर्शन में सुधार कर सकते हैं।
- आवश्यकता:
- विकसित देशों के 7-8% की तुलना में भारत की लॉजिस्टिक्स लागत सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का 13-14% है।
- सरकार का लक्ष्य अगले 5 वर्षों में लॉजिस्टिक्स लागत में 5% की कमी लाना है।
- भारत में अनुमानित लॉजिस्टिक्स लागत वर्तमान में लगभग 14% है, जो विश्व स्तर पर 8-10% की तुलना में काफी अधिक है।
- व्यवसायों के साथ-साथ नागरिकों के लिये आसान और सशक्तीकरण लाने हेतु कुशल लॉजिस्टिक्स महत्त्वपूर्ण था।
- दूसरी लहर के दौरान पूरे देश में तरल मेडिकल ऑक्सीजन सहित आवश्यक आपूर्ति करके कोविड-19 के खिलाफ हमारी लड़ाई में लॉजिस्टिक्स ने बहुत योगदान दिया।
- राज्यों की रैंकिंग:
- शीर्ष प्रदर्शक:
- गुजरात, हरियाणा और पंजाब क्रमश: LEADS 2021 इंडेक्स में शीर्ष प्रदर्शन करने वाले के रूप में उभरे हैं।
- यह लगातार तीसरा साल है जब गुजरात रैंकिंग में शीर्ष पर बना हुआ है।
- केंद्रशासित प्रदेशों में दिल्ली शीर्ष स्थान पर है।
- गुजरात, हरियाणा और पंजाब क्रमश: LEADS 2021 इंडेक्स में शीर्ष प्रदर्शन करने वाले के रूप में उभरे हैं।
- उत्तर-पूर्वी राज्य और हिमालयी क्षेत्र:
- जम्मू और कश्मीर शीर्ष स्थान पर है, उसके बाद सिक्किम तथा मेघालय हैं।
- शीर्ष प्रदर्शक:
- सुझाव:
- राज्यों द्वारा राज्य स्तरीय लॉजिस्टिक्स नीति और लॉजिस्टिक्स मास्टर प्लान तैयार करना, लॉजिस्टिक्स के लिये सिंगल-विंडो क्लीयरेंस सिस्टम का उपयोग करना, शिकायत निवारण तंत्र की स्थापना और स्टेट स्किलिंग इंफ्रास्ट्रक्चर के माध्यम से लॉजिस्टिक्स में स्किलिंग को सक्षम बनाया जाना चाहिये।
- संबंधित पहलें:
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
भारतीय अर्थव्यवस्था
तकनीकी वस्त्रों का बढ़ता निर्यात
प्रिलिम्स के लिये:राष्ट्रीय तकनीकी वस्त्र मिशन, तकनीकी वस्त्र, राष्ट्रीय तकनीकी वस्त्र मिशन मेन्स के लिये:तकनीकी वस्त्र के भविष्य की संभावनाएँ एवं चुनौतियाँ |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में केंद्रीय वाणिज्य और उद्योग मंत्री ने तीन वर्षों में तकनीकी वस्त्रों (Technical Textile) के निर्यात में मौजूदा 2 बिलियन अमेरिकी डॉलर से 10 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पाँच गुना वृद्धि का लक्ष्य रखा है।
प्रमुख बिंदु
- तकनीकी वस्त्र:
- तकनीकी वस्त्र कार्यात्मक वस्त्र होते हैं जो ऑटोमोबाइल, सिविल इंजीनियरिंग और निर्माण, कृषि, स्वास्थ्य देखभाल, औद्योगिक सुरक्षा, व्यक्तिगत सुरक्षा इत्यादि सहित विभिन्न उद्योगों में अनुप्रयोग होते हैं।
- तकनीकी वस्त्र उत्पाद की मांग किसी देश के विकास और औद्योगीकरण पर निर्भर करती है।
- प्रयोग के आधार पर 12 तकनीकी वस्त्र खंड हैं: एग्रोटेक, मेडिटेक, बिल्डटेक, मोबिल्टेक, क्लोथेक, ओईटेक, जियोटेक, पैकटेक, हॉमटेक, प्रोटेक, इंडुटेक और स्पोर्टेक।
- उदाहरण: मोबिलटेक (Mobiltech) वाहनों में सीट बेल्ट और एयरबैग, हवाई जहाज़ की सीट जैसे उत्पादों को संदर्भित करता है। जियोटेक (Geotech) जो कि संयोगवश सबसे तेज़ी से उभरता हुआ खंड है, का उपयोग मृदा आदि को जोड़े रखने में किया जाता है।
- तकनीकी वस्त्र कार्यात्मक वस्त्र होते हैं जो ऑटोमोबाइल, सिविल इंजीनियरिंग और निर्माण, कृषि, स्वास्थ्य देखभाल, औद्योगिक सुरक्षा, व्यक्तिगत सुरक्षा इत्यादि सहित विभिन्न उद्योगों में अनुप्रयोग होते हैं।
- तकनीकी वस्त्र परिदृश्य:
- भारत में तकनीकी वस्त्रों के विकास ने विगत पाँच वर्षों में गति प्राप्त की है, जो वर्तमान में प्रति वर्ष 8% की दर से बढ़ रहा है।
- आगामी पाँच वर्षों के दौरान इस वृद्धि को 15-20% के दायरे में लाने का लक्ष्य है।
- मौजूदा विश्व बाज़ार 250 अरब अमेरिकी डॉलर (18 लाख करोड़ रुपए) का है और इसमें भारत की हिस्सेदारी 19 अरब अमेरिकी डॉलर है।
- भारत इस बाज़ार (8% शेयर) में 40 बिलियन अमेरिकी डॉलर के साथ एक महत्त्वाकांक्षी भागीदार है।
- सबसे बड़े भागीदारों में यूएसए, पश्चिमी यूरोप, चीन और जापान (20-40%) हैं।
- भारत में तकनीकी वस्त्रों के विकास ने विगत पाँच वर्षों में गति प्राप्त की है, जो वर्तमान में प्रति वर्ष 8% की दर से बढ़ रहा है।
- चुनौतियाँ:
- जागरूकता की कमी:
- तकनीकी वस्त्रों के लाभ के संदर्भ में अभी भी देश की अधिकांश आबादी में जागरूकता की कमी है।
- कुशल कार्यबल का विकास:
- तकनीकी वस्त्रों को श्रमिकों से अलग और उच्च स्तर के कौशल की आवश्यकता होती है जो वर्तमान में घरेलू उद्योग में अनुपस्थित है।
- अनुसंधान एवं विकास की कमी:
- भारतीय तकनीकी वस्त्र उद्योग जिन प्रमुख मुद्दों का सामना कर रहा है उनमें से एक उत्पाद विविधीकरण की कमी है।
- तकनीकी वस्त्रों का आयात:
- भारत चीन से सस्ते उत्पादों और अमेरिका व यूरोप से हाई-टेक उपकरणों से युक्त तकनीकी वस्त्रों की एक महत्त्वपूर्ण मात्रा का आयात करता है। यह दर्शाता है कि भारतीय तकनीकी वस्त्र उद्योग में उच्च तकनीक वाले उत्पादों के निर्माण के पैमाने और क्षमता का अभाव है।
- जागरूकता की कमी:
- अवसर:
- विनिर्माण क्षेत्र में वृद्धि:
- तकनीकी वस्त्र मुख्य रूप से ऑटोमोबाइल, निर्माण, विमानन आदि जैसे विभिन्न विनिर्माण उद्योगों में उपयोग किया जाता है।
- विनिर्माण क्षेत्र भारतीय अर्थव्यवस्था के लिये विकास का एक स्तंभ रहा है, जिसमें कई उद्योगों ने पिछले एक दशक में दोहरे अंकों में वृद्धि दर्ज की है।
- आगामी दशक में ऑटोमोबाइल क्षेत्र के 12% की दर से बढ़ने की संभावना है और वर्ष 2025 में अनुमानित 75 मिलियन वाहनों के उत्पादन की उम्मीद है।
- तकनीकी वस्त्र मुख्य रूप से ऑटोमोबाइल, निर्माण, विमानन आदि जैसे विभिन्न विनिर्माण उद्योगों में उपयोग किया जाता है।
- स्वास्थ्य देखभाल और स्वच्छता का बढ़ता महत्त्व:
- देश में प्रदूषण और बीमारियों के लगातार बढ़ते खतरे के साथ लोग धीरे-धीरे अधिक स्वच्छ और स्वस्थ जीवनशैली की ओर बढ़ रहे हैं जिसमें वाइप्स, फेस मास्क, डायपर, डेंटल फ्लॉस, ईयरबड्स, सैनिटरी नैपकिन आदि जैसे उत्पादों का उपयोग शामिल है।
- विभिन्न तकनीकी वस्त्र से संबंधित उत्पादों का अलग- अलग रूपों में उपयोग किया जाता है।
- देश में प्रदूषण और बीमारियों के लगातार बढ़ते खतरे के साथ लोग धीरे-धीरे अधिक स्वच्छ और स्वस्थ जीवनशैली की ओर बढ़ रहे हैं जिसमें वाइप्स, फेस मास्क, डायपर, डेंटल फ्लॉस, ईयरबड्स, सैनिटरी नैपकिन आदि जैसे उत्पादों का उपयोग शामिल है।
- खेलों पर बढ़ता केंद्रण:
- खेल उपकरण, कृत्रिम टर्फ और कंपोज़िट, खेल वस्त्र एवं सक्रिय वस्त्र, खेल के जूते आदि के रूप में तकनीकी वस्त्रों का उपभोग होता है।
- बढ़ती फिटनेस और खेलों का आयोजन तकनीकी वस्त्रों के लिये एक बड़ा अवसर प्रदान करते हैं।
- खेल उपकरण, कृत्रिम टर्फ और कंपोज़िट, खेल वस्त्र एवं सक्रिय वस्त्र, खेल के जूते आदि के रूप में तकनीकी वस्त्रों का उपभोग होता है।
- रक्षा और सुरक्षा खर्च में वृद्धि:
- रक्षा और सुरक्षा पर सरकार के बढ़ते केंद्रण के कारण तकनीकी वस्त्र उपकरण जैसे- बुलेटप्रूफ जैकेट, हाई एल्टीट्यूड (High Altitudes) वाले वस्त्र, दस्ताने, जूते आदि की मांग में वृद्धि हुई है।
- विनिर्माण क्षेत्र में वृद्धि:
- तकनीकी वस्त्र से संबंधित पहलें:
- राष्ट्रीय तकनीकी वस्त्र मिशन:
- इसे फरवरी 2020 में 194 मिलियनअमेरिकी डॉलर के कुल परिव्यय के साथ अनुमोदित किया गया था ताकि भारत को तकनीकी वस्त्रों में वैश्विक नेता के रूप में स्थान दिया जा सके।
- वस्त्र उद्योग के लिये उत्पादन-संबद्ध प्रोत्साहन (PLI) योजना:
- इसका उद्देश्य उच्च मूल्य के मानव निर्मित रेशों (Man-Made Fibre-MMF) से बने कपड़े, परिधानों और तकनीकी वस्त्रों के उत्पादन को बढ़ावा देना है।
- तकनीकी वस्त्र के लिये हार्मोनाइज़्ड सिस्टम ऑफ नॉमेनक्लेचर (HSN) कोड:
- वर्ष 2019 में भारत सरकार ने निर्माताओं को वित्तीय सहायता और अन्य प्रोत्साहन प्रदान कर आयात एवं निर्यात डेटा की निगरानी में मदद करने के लिये तकनीकी वस्त्र क्षेत्र के 207 उत्पादों को हार्मोनाइज़्ड सिस्टम ऑफ नॉमेनक्लेचर (Harmonised System of Nomenclature-HSN) कोड प्रदान किया।
- स्वचालित मार्ग के तहत 100% FDI:
- भारत सरकार स्वचालित मार्ग के तहत 100% प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) की अनुमति देती है। अंतर्राष्ट्रीय तकनीकी वस्त्र निर्माताओं जैसे- अहलस्ट्रॉम, जॉनसन एंड जॉनसन आदि ने पहले ही भारत में परिचालन शुरू कर दिया है।
- टेक्नोटेक्स इंडिया:
- यह वस्त्र मंत्रालय द्वारा फेडरेशन ऑफ इंडियन चैंबर्स ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री (फिक्की/FICCI) के सहयोग से आयोजित एक प्रमुख कार्यक्रम है और इसमें वैश्विक तकनीकी वस्त्र मूल्य शृंखला के हितधारकों की भागीदारी के साथ प्रदर्शनियाँ, सम्मेलन एवं सेमिनार का आयोजन किया जाता है।
- संशोधित प्रौद्योगिकी उन्नयन निधि योजना (ATUFS):
- इसका उद्देश्य निर्यात में सुधार करना और अप्रत्यक्ष रूप से वस्त्र उद्योग क्षेत्र में निवेश को बढ़ावा देना है।
- ATUFS के तहत तकनीकी सलाहकार निगरानी समिति (TAMC) के मार्गदर्शन में कपड़ा और तकनीकी वस्त्र उत्पादों के निर्माण से संबंधित संस्थाओं को प्रौद्योगिकी उन्नयन और CIS की पेशकश की जाती है।
- राष्ट्रीय तकनीकी वस्त्र मिशन:
आगे की राह
- लोगों को तकनीकी वस्त्रों के बारे में शिक्षित करने के लिये सरकार और उद्योग को एक ठोस बुनियादी ढाँचे का निर्माण करने की आवश्यकता है। इसके तहत स्कूलों और कॉलेजों में तकनीकी वस्त्रों के बारे में बुनियादी जानकारी प्रदान करना, रोड शो और सेमिनार जैसे जागरूकता कार्यक्रम आयोजित करना, डिजिटल एवं सोशल मीडिया के माध्यम से प्रचार किया जा सकता है।
- सरकार तकनीकी वस्त्र उद्योग की आवश्यकताओं के साथ संरेखित करने के लिये अपनी जनशक्ति विकास योजनाओं को संशोधित कर सकती है।
- युवा और महत्त्वाकांक्षी उद्यमियों को इस अवसर का लाभ उठाना चाहिये और तकनीकी वस्त्रों के अनुसंधान और विकास में निवेश करने के साथ-साथ आगामी वर्षों में इसका लाभ उठाना चाहिये।
स्रोत: द हिंदू
अंतर्राष्ट्रीय संबंध
पाकिस्तान द्वारा वायु मार्ग की स्वतंत्रता का उल्लंघन
प्रिलिम्स के लिये:भारत-पाकिस्तान संबंध, शिकागो कन्वेंशन, अंतर्राष्ट्रीय नागरिक उड्डयन संगठन मेन्स के लिये:अंतर्राष्ट्रीय नागरिक उड्डयन संगठन द्वारा प्रदत्त फ्रीडम ऑफ द एयर |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में भारत ने बजट एयरलाइन गो फर्स्ट (जिसे पहले GoAir के नाम से जाना जाता था) द्वारा संचालित श्रीनगर और शारजाह (UAE) के बीच सीधी उड़ान सेवा शुरू की है। इस विमान को पाकिस्तानी हवाई क्षेत्र से गुज़रना था।
- हालाँकि उड़ान को पाकिस्तान में प्रवेश करने की अनुमति नहीं दी गई और गंतव्य तक पहुँचने के लिये उड़ान को लंबा रास्ता तय करना पड़ा।
- इससे पाकिस्तान द्वारा वायु मार्ग की प्राथमिक स्वतंत्रता का उल्लंघन करने की चिंता बढ़ गई है।
प्रमुख बिंदु
- फ्रीडम ऑफ द एयर:
- वायुमार्ग की स्वतंत्रता (The freedom of air) का अर्थ है कि कोई देश किसी विशेष देश की एयरलाइनों को दूसरे देश के हवाई क्षेत्र का उपयोग करने और/या वहाँ उतरने का विशेषाधिकार देता है।
- वायु मार्ग शासन की स्वतंत्रता वर्ष 1944 के शिकागो कन्वेंशन से निर्गत है।
- कन्वेंशन के हस्ताक्षरकर्ताओं ने ऐसे नियम निर्धारित करने का निर्णय लिया जो अंतर्राष्ट्रीय वाणिज्यिक विमानन के लिये मौलिक निर्माण प्रक्रिया (Building Blocks) के रूप में कार्य करेंगे।
- यह कन्वेंशन नौ वायु मार्गों की स्वतंत्रता प्रदान करता है, लेकिन केवल पहली पाँच स्वतंत्रताओं/फ्रीडम को अंतर्राष्ट्रीय नागरिक उड्डयन संगठन (ICAO) द्वारा आधिकारिक तौर पर मान्यता दी गई है।
- पहला अधिकार: यह अधिकार एक राष्ट्र द्वारा दूसरे राष्ट्र या राष्ट्रों को लैंडिंग किये बिना अपने क्षेत्र में उड़ान भरने के लिये दिया जाता है।
- गो फर्स्ट (GoFirst) विमान (भारतीय वाहक) उड़ान के लिये पाकिस्तान (द्वितीयक देश) के हवाई क्षेत्र का उपयोग कर रही थी और इस विमान को संयुक्त अरब अमीरात (तीसरे देश) में उतरना था।
- दूसरा अधिकार: गैर-यातायात उद्देश्यों के लिये एक राष्ट्र द्वारा दूसरे राष्ट्र या राष्ट्रों को अपने क्षेत्र में उतरने के लिये अनुसूचित अंतर्राष्ट्रीय हवाई सेवाओं के संबंध में अधिकार या विशेषाधिकार प्राप्त है।
- इसका आशय है कि नई दिल्ली से न्यूयॉर्क जाने वाली एयर इंडिया की एक फ्लाइट ब्रिटिश हवाई अड्डे पर उतर सकती है ताकि यात्रियों को सवार किये या उतारे बिना ईंधन भरा जा सके।
- तीसरा अधिकार: पहले राष्ट्र के क्षेत्र में वाहक के गृह राष्ट्र से आने वाले यातायात को कम करना।
- चौथा अधिकार: पहले राष्ट्र के क्षेत्र में मालवाहक के गृह राज्य हेतु नियत यातायात के तहत उड़ान भरना।
- पाँचवाँ अधिकार: पहले राष्ट्र के क्षेत्र में तीसरे राष्ट्र से आने या जाने वाले यातायात को रोकना और उड़ान भरना।
- पहला अधिकार: यह अधिकार एक राष्ट्र द्वारा दूसरे राष्ट्र या राष्ट्रों को लैंडिंग किये बिना अपने क्षेत्र में उड़ान भरने के लिये दिया जाता है।
- भारत के विकल्प:
- पाकिस्तान द्वारा हवाई क्षेत्र से उड़ान भरने से इनकार करना एक उल्लंघन है और शिकागो सम्मेलन द्वारा निर्धारित सिद्धांतों के खिलाफ है।
- इससे पहले भी ऐसे कई मामले सामने आए हैं जहाँ पाकिस्तान ने अपने हवाई क्षेत्र में प्रवेश से इनकार किया है।
- भारत इस मुद्दे को अंतर्राष्ट्रीय नागरिक उड्डयन संगठन (ICAO) के समक्ष रख सकता है।
- पाकिस्तान द्वारा हवाई क्षेत्र से उड़ान भरने से इनकार करना एक उल्लंघन है और शिकागो सम्मेलन द्वारा निर्धारित सिद्धांतों के खिलाफ है।
अंतर्राष्ट्रीय नागरिक उड्डयन संगठन (ICAO):
- यह संयुक्त राष्ट्र (United Nations-UN) की एक विशिष्ट एजेंसी है, जिसे वर्ष 1944 में स्थापित किया गया था, जिसने शांतिपूर्ण वैश्विक हवाई नेविगेशन के लिये मानकों और प्रक्रियाओं की नींव रखी।
- अंतर्राष्ट्रीय नागरिक उड्डयन संबंधी अभिसमय/कन्वेंशन पर 7 दिसंबर, 1944 को शिकागो में हस्ताक्षर किये गए। इसलिये इसे शिकागो कन्वेंशन भी कहते हैं।
- शिकागो कन्वेंशन ने वायु मार्ग के माध्यम से अंतर्राष्ट्रीय परिवहन की अनुमति देने वाले प्रमुख सिद्धांतों की स्थापना की और ICAO के निर्माण का भी नेतृत्व किया।
- इसका एक उद्देश्य अंतर्राष्ट्रीय हवाई परिवहन की योजना एवं विकास को बढ़ावा देना है ताकि दुनिया भर में अंतर्राष्ट्रीय नागरिक विमानन की सुरक्षित तथा व्यवस्थित वृद्धि सुनिश्चित हो सके।
- भारत इसके 193 सदस्यों में से है।
- इसका मुख्यालय मॉन्ट्रियल, कनाडा में है।
स्रोत : इंडियन एक्सप्रेस
अंतर्राष्ट्रीय संबंध
अफगानिस्तान पर क्षेत्रीय सुरक्षा वार्ता: दिल्ली
प्रिलिम्स के लिये:राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद,अफगानिस्तान पर दिल्ली क्षेत्रीय सुरक्षा वार्ता मेन्स के लिये:अफगानिस्तान पर दिल्ली क्षेत्रीय सुरक्षा वार्ता की ज़रूरत तथा उद्देश्य, अफगानिस्तान में भारत के हित |
चर्चा में क्यों?
आने वाले दिनों में भारत 'अफगानिस्तान पर दिल्ली क्षेत्रीय सुरक्षा वार्ता' की मेजबानी करेगा।
- बैठक राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (NSAs) के स्तर पर होगी और इसकी अध्यक्षता भारत के एनएसए अजीत डोभाल करेंगे।
प्रमुख बिंदु:
- बैठक के बारे में:
- आमंत्रित प्रतिभागी: भारत के शीर्ष सुरक्षा प्रतिष्ठान, राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद सचिवालय ने व्यक्तिगत बैठक आयोजित करने का बीड़ा उठाया है।
- इसके लिये अफगानिस्तान के पड़ोसियों जैसे- पाकिस्तान, ईरान, ताजिकिस्तान,उज़्बेकिस्तान, रूस और चीन सहित अन्य प्रमुख देशों को निमंत्रण भेजे गए थे।
- बैठक की ज़रूरत: अमेरिकी सेना की वापसी और तालिबान द्वारा अफगानिस्तान पर कब्ज़ा करने के बाद भारत इस क्षेत्र में सुरक्षा को लेकर चिंतित है।
- उद्देश्य: इस संदर्भ में भारत ने देश की वर्तमान स्थिति और भविष्य के दृष्टिकोण पर क्षेत्रीय हितधारकों एवं महत्त्वपूर्ण शक्तियों का एक सम्मेलन आयोजित करने के लिये यह पहल की है।
- भारत का हित: यह बैठक अफगानिस्तान पर भविष्य की कार्रवाई तय करने के लिये भारत की कोशिश हो सकती है।
- यह बैठक भारत के सुरक्षा हितों की रक्षा के लिये दुनिया के साथ सक्रिय रूप से जुड़ने की आवश्यकता को भी दर्शाती है।
- प्रतिभागियों की प्रतिक्रिया: मध्य एशियाई देशों के साथ-साथ रूस और ईरान ने भी भागीदारी की पुष्टि की है।
- इस संबंध में उत्साहजनक प्रतिक्रिया अफगानिस्तान में शांति और सुरक्षा को बढ़ावा देने के लिये क्षेत्रीय प्रयासों में भारत की भूमिका से जुड़े महत्त्व की अभिव्यक्ति है।
- पाकिस्तान और चीन का इनकार: पाकिस्तान के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार ने माना है कि वह बैठक में शामिल नहीं होंगे।
- चीन ने भी समय की कमी के कारण क्षेत्रीय सुरक्षा बैठक में भाग नही लेने का फैसला किया है, लेकिन द्विपक्षीय चैनलों के माध्यम से भारत के साथ चर्चा जारी रखने के लिये तैयार है।
- भारत का मानना है कि पाकिस्तान द्वारा इस बैठक में भाग लेने से इनकार करना अफगानिस्तान को अपने संरक्षित देश के रूप में देखने की पाकिस्तान की मानसिकता को दिखाता है।
- आमंत्रित प्रतिभागी: भारत के शीर्ष सुरक्षा प्रतिष्ठान, राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद सचिवालय ने व्यक्तिगत बैठक आयोजित करने का बीड़ा उठाया है।
राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद सचिवालय:
- भारत ने 1999 में एक राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद (NSC) का गठन किया, जहाँ राष्ट्रीय सुरक्षा के सभी पहलुओं पर इसके द्वारा विचार-विमर्श किया जाता है।
- एनएससी(NSC) प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में सर्वोच्च निकाय के रूप में कार्य करता है।
- NSC में त्रि-स्तरीय संरचना शामिल है- रणनीतिक नीति समूह (SPG), राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार बोर्ड (NSAB) और राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद सचिवालय।
- गृह, रक्षा, विदेश और वित्त मंत्री इसके सदस्य हैं और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार इसके सचिव के रूप में कार्य करते हैं।
- अफगानिस्तान में भारत के हित:
- सामरिक लाभ: अफगानिस्तान में भारत की रणनीति एक ऐसी सरकार को बनने से रोकने की है जो पाकिस्तान को रणनीतिक लाभ और आतंकी समूहों के लिये एक सुरक्षित स्थान प्रदान करे।
- सॉफ्ट पावर रणनीति: भारत ने अफगानिस्तान में 'सॉफ्ट पावर' रणनीति को आगे बढ़ाने का विकल्प चुना है तथा रक्षा और सुरक्षा के बजाय नागरिक क्षेत्र में पर्याप्त योगदान देने को प्राथमिकता दी है।
- विकासात्मक परियोजनाएँ: भारत निर्माण, बुनियादी ढाँचे, मानव पूंजी निर्माण और खनन क्षेत्रों में विशेष रूप से सक्रिय है।
- इसके अलावा सहयोग के लिये दूरसंचार, स्वास्थ्य, फार्मास्यूटिकल्स और सूचना प्रौद्योगिकी तथा शिक्षा आदि क्षेत्रों में भी संलग्न है।
- आर्थिक सहायता: दो द्विपक्षीय समझौतों के ढाँचे के भीतर भारत ने अफगानिस्तान को 2 बिलियन अमेरिकी डॉलर से अधिक की सहायता देने का वादा किया है। वर्ष 2017 के अंत तक निवेश पहले ही 3 बिलियन अमेरिकी डॉलर को पार कर चुका है।
- इस प्रकार भारत अफगानिस्तान की स्थिरता और आर्थिक तथा सामाजिक विकास में सबसे बड़े निवेशकों में से एक है।
- संपर्क परियोजनाएँ: भारत 600 किलोमीटर लंबे बामियान-हेरात रेल लिंक के निर्माण पर भी सहमत हो गया है जो हाजीगक खानों को हेरात से जोड़ेगा।
- इसके अलावा भारत चाबहार के ईरानी बंदरगाह का विकास कर रहा है जो डेलाराम-ज़ारंज राजमार्ग के माध्यम से अफगानिस्तान से जुड़ेगा।
- यदि अफगानिस्तान में शांति स्थापित हो जाती है, तो यह एशिया के मध्य में संपर्क गलियारे के रूप में एक प्रमुख व्यापारिक केंद्र बन सकता है।
- अफगानिस्तान पर भारत का दृष्टिकोण:
- भारत अफगानिस्तान में तालिबान की नई सरकार से सीधे तौर पर निपटने के लिये तैयार नहीं है।
- भारत ने दोहराया कि अफगानिस्तान को निम्नलिखित का ध्यान रखना चाहिये:
- अपनी धरती को आतंक के लिये सुरक्षित पनाहगाह न बनने दें।
- प्रशासन समावेशी होना चाहिये।
- अल्पसंख्यकों, महिलाओं और बच्चों के अधिकारों की रक्षा की जानी चाहिये।
- अफगानिस्तान शांति प्रक्रिया का नेतृत्व, स्वामित्व और नियंत्रण अफगान लोगों द्वारा किया जाना चाहिये।
आगे की राह
- रूसी समर्थन: हाल के वर्षों में रूस ने तालिबान के साथ संबंध विकसित किये हैं। तालिबान के साथ किसी भी तरह के सीधे जुड़ाव में भारत को रूस के समर्थन की आवश्यकता होगी।
- चीन के साथ संबंध: भारत को अफगानिस्तान में राजनीतिक समाधान और स्थायी स्थिरता प्राप्त करने के उद्देश्य से चीन के साथ बातचीत करनी चाहिये।
- तालिबान से जुड़ना: तालिबान से बात करने से भारत निरंतर विकास सहायता या अन्य प्रतिज्ञाओं के बदले में विद्रोहियों से सुरक्षा गारंटी लेने के साथ-साथ पाकिस्तान से तालिबान की स्वायत्तता का पता लगाएगा।