भारतीय अर्थव्यवस्था
एयर इंडिया का निजीकरण
- 30 Jan 2020
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इस Editorial में The Hindu, The Indian Express, Business Line आदि में प्रकाशित लेखों का विश्लेषण किया गया है। इस लेख में एयर इंडिया के निजीकरण को लेकर सरकार द्वारा लिये गए हालिया निर्णय के विभिन्न पहलुओं पर चर्चा की गई है। आवश्यकतानुसार, यथास्थान टीम दृष्टि के इनपुट भी शामिल किये गए हैं।
संदर्भ
केंद्र सरकार अपने पहले प्रयास की विफलता के पश्चात् एक बार पुनः लगातार घाटे और कर्ज के बोझ से दबी एयर इंडिया के रणनीतिक विनिवेश अथवा निजीकरण की प्रक्रिया को शुरू कर रही है। ज्ञात हो कि इससे पूर्व वर्ष 2018 में भी सरकार ने एयर इंडिया के विनिवेश का प्रयास किया था, किंतु विभिन्न कारणों से एयर इंडिया की खरीद के लिये सरकार को कोई भी खरीदार नहीं मिल सका, जिसके कारण सरकार का प्रयास विफल हो गया। अब एक बार पुनः सरकार कुछ बदलावों के साथ नए प्रस्ताव को लेकर आई है, उम्मीद है कि नए प्रस्ताव के माध्यम से सरकार को एयर इंडिया का खरीदार मिल सकेगा। विदित हो कि विश्व स्तर पर कई एयरलाइनों का निजीकरण सफल भी रहा है, जैसे- केन्या एयरवेज़ और सामोआ की पोल्नेसियन ब्लू का 20 वर्ष पहले निजीकरण किया गया था। इन दोनों एयरलाइनों से कई वर्षों तक लाभ प्राप्त हुआ तथा इन्होंने संबंधित देश में पर्यटन क्षेत्र के विकास में अमूल्य योगदान दिया। किंतु निजीकरण का प्रयास सदैव ही सफल नहीं रहा है, कई बार सरकारों को असफलता का सामना भी करना पड़ता है।
एयर इंडिया
- एयर इंडिया की शुरुआत 15 अक्तूबर, 1932 को जहाँगीर रतनजी दादाभाई टाटा (JRD Tata) द्वारा की गई थी। जे.आर.डी. टाटा की अगुवाई वाली टाटा संस (Tata Sons) की विमानन शाखा ने हवाई मेल भेजने के लिये इंपीरियल एयरवेज़ से कॉन्ट्रैक्ट लेने के पश्चात् टाटा एयर सर्विसेज़ (Tata Air Services) की स्थापना की थी।
- वर्ष 1938 में टाटा एयर सर्विसेज़ का नाम बदलकर टाटा एयरलाइंस कर दिया गया। टाटा एयरलाइंस ने वर्ष 1939 से 1945 तक चले द्वितीय विश्वयुद्ध (World War II) के दौरान महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा की।
- द्वितीय विश्वयुद्ध के समापन के पश्चात् 29 जुलाई, 1946 को टाटा एयरलाइंस एक सूचीबद्ध कंपनी बन गई और इसका नाम बदलकर एयर इंडिया कर दिया गया। वर्ष 1947 में स्वतंत्रता के पश्चात् भारत सरकार ने वर्ष 1948 में एयर इंडिया के 49 प्रतिशत हिस्सेदारी का अधिग्रहण कर लिया।
- वर्ष 1953 में भारत सरकार ने वायु निगम अधिनियम (Air Corporations Act) के माध्यम से एयर इंडिया की अधिकांश हिस्सेदारी का अधिग्रहण कर लिया और इसे ‘एयर इंडिया इंटरनेशनल लिमिटेड’ नया नाम दिया गया। हालाँकि जे.आर.डी. टाटा वर्ष 1977 तक ‘एयर इंडिया इंटरनेशनल लिमिटेड’ के अध्यक्ष बने रहे।
एयर इंडिया की वित्तीय स्थिति
- वर्तमान में एयर इंडिया के बेड़े में कुल 121 विमान और एयर इंडिया एक्सप्रेस के बेड़े में कुल 25 विमान मौजूद हैं। इसमें एयर इंडिया के 4 बोइंग 747-400 जंबोजेट विमानों को शामिल नहीं किया गया है, क्योंकि एयर इंडिया के खरीदार को ये बोइंग विमान नहीं दिये जाएंगे। इसके अलावा एयर इंडिया के पास बिल्डिंग्स के रूप में कुछ अचल संपत्ति भी है, जिसे सरकार अपने पास बरकरार रखेगी।
- आँकड़ों के अनुसार, वर्ष 2018-19 में संसाधनों के अल्प-उपयोग और ईंधन की कीमतों में बढ़ोतरी के कारण एयर इंडिया को कुल 8,556.35 करोड़ रुपए के नुकसान का सामना करना पड़ा था, जो कि एयर इंडिया का अब तक का सर्वाधिक नुकसान था। मौजूदा समय में एयर इंडिया पर कुल 60,074 करोड़ रुपए का ऋण है।
एयर इंडिया के निजीकरण का नया प्रस्ताव
- नए प्रस्ताव के अनुसार, सरकार एयर इंडिया और एयर इंडिया एक्सप्रेस लिमिटेड में अपनी 100 प्रतिशत हिस्सेदारी बेचेगी। साथ ही सरकार एयर इंडिया-SATS (एयर इंडिया और SATS लिमिटेड, सिंगापुर का संयुक्त उपक्रम) में अपनी 50 प्रतिशत हिस्सेदारी को भी बेचेगी। वहीं वर्ष 2018 में सरकार ने एयर इंडिया की मात्र 76 प्रतिशत हिस्सेदारी बेचने का प्रस्ताव किया था, जो कि सरकार के प्रयास की विफलता का मुख्य कारण था।
- एयर इंडिया के खरीदार को कुल ऋण में से 23,286.50 करोड़ रुपए के ऋण का भी अधिग्रहण करना होगा, जबकि वर्ष 2018 में यह 33,392 करोड़ रुपए था।
- सरकार ने एयर इंडिया के निजीकरण को लेकर जो नया प्रस्ताव पारित किया है, उसमें एयर इंडिया के कर्मचारियों के रोज़गार संबंधी मुद्दे को संबोधित नहीं किया गया है। एयर इंडिया और एयर इंडिया एक्सप्रेस में वर्तमान में कुल 17,984 कर्मचारी हैं जिसमें से 9,617 स्थायी कर्मचारी हैं।
निर्णय का प्रभाव
- विशेषज्ञों के अनुसार, यदि एयर इंडिया का संचालन किसी निजी संस्था के पास जाता है तो संस्था का प्राथमिक उद्देश्य एयर इंडिया को घाटे से बाहर निकलना होगा, जिससे एयर इंडिया कुछ ऐसे मार्गों पर संचालन बंद कर देगी जहाँ कंपनी को नुकसान का सामना करना पड़ रहा है। इसका प्रभाव एयर इंडिया के यात्री किराए पर पड़ सकता है।
- एयर इंडिया के निजीकरण से कंपनी में कार्यरत मौजूदा कर्मचारियों के रोज़गार पर भी प्रभाव देखने को मिल सकता है, जिसके कारण एयर इंडिया के विभिन्न कर्मचारी संघों ने सरकार के इस कदम का विरोध किया है।
- एयर इंडिया में कार्यरत मौजूदा कर्मचारियों के अलावा सेवानिवृत्त कर्मचारियों को मिलने वाली पेंशन तथा अन्य सुविधाएँ भी एक बड़ा मुद्दा है।
निजीकरण का अर्थ
- निजीकरण का तात्पर्य ऐसी प्रक्रिया से है जिसमें किसी विशेष सार्वजनिक संपत्ति अथवा कारोबार का स्वामित्व सरकारी संगठन से स्थानांतरित कर किसी निजी संस्था को दे दिया जाता है। अतः यह कहा जा सकता है कि निजीकरण के माध्यम से एक नवीन औद्योगिक संस्कृति का विकास संभव हो पाता है।
- यह भी संभव है कि सार्वजनिक क्षेत्र से निजी क्षेत्र को संपत्ति के अधिकारों का हस्तांतरण बिना विक्रय के ही हो जाए। तकनीकी दृष्टि से इसे अविनियमन (Deregulation) कहा जाता है। इसका आशय यह है कि जो क्षेत्र अब तक सार्वजनिक क्षेत्र के रूप में आरक्षित थे उनमें अब निजी क्षेत्र के प्रवेश की अनुमति दे दी जाएगी।
- वर्तमान में यह आवश्यक हो गया है कि सरकार स्वयं को ‘गैर सामरिक उद्यमों’ के नियंत्रण, प्रबंधन और संचालन के बजाय शासन की दक्षता पर केंद्रित करे। इस दृष्टि से निजीकरण का महत्त्व भी बढ़ गया है।
निजीकरण का लाभ
"व्यापार राज्य का व्यवसाय नहीं है", इस अवधारणा के परिप्रेक्ष्य में निजीकरण से कार्य निष्पादन में बेहतरीन संभावना होती है।
- निजीकरण के माध्यम से सार्वजनिक कंपनियों को बाज़ार के अनुरूप दक्षता प्राप्त करने में मदद मिलेगी। निजीकरण से सरकारी क्षेत्र के उद्यमों से सरकारी नियंत्रण भी सीमित होता है और इससे कंपनियों को अपेक्षित निगमित शासन (Corporate Governance) की प्राप्ति होगी।
- निजीकरण के परिणामस्वरूप, सार्वजानिक कंपनियों के शेयरों की पेशकश छोटे निवेशकों और कर्मचारियों को किये जाने से शक्ति और प्रबंधन का विकेंद्रीकरण हो सकेगा।
- निजीकरण का पूंजी बाज़ार पर लाभकारी प्रभाव होगा। निवेशकों को बाहर निकलने के सरल विकल्प मिलेंगे, मूल्यांकन और कीमत निर्धारण के लिये अधिक उत्कृष्ट नियम स्थापित करने में सहायता मिलेगी तथा निजीकृत कंपनियों को अपनी परियोजनाओं अथवा उनके विस्तार के लिये निधियाँ जुटाने में सहायता मिलेगी।
निष्कर्ष
वर्ष 2012 से अब तक सरकार एयर इंडिया को बचाने के लिये लगभग 30,500 करोड़ रुपए का निवेश कर चुकी है, किंतु इसके बावजूद एयर इंडिया वर्ष-दर-वर्ष नुकसान का सामना कर रही है। ऐसी स्थिति में एयरलाइन, उसमें कार्यरत कर्मचारियों की नौकरी और करदाताओं के पैसों को बचाने के लिये निजीकरण ही सबसे बेहतर विकल्प दिखाई दे रहा है। आवश्यक है कि निर्णय से संबंधित विभिन्न हितधारकों के हितों को ध्यान में रखकर आवश्यक विकल्पों की खोज की जाए।
प्रश्न: एयर इंडिया के निजीकरण को लेकर सरकार के हालिया निर्णय के आलोक में निजीकरण के विभिन्न पहलुओं पर चर्चा कीजिये।