भारतीय अर्थव्यवस्था
प्रधानमंत्री गति शक्ति योजना
- 14 Oct 2021
- 7 min read
प्रिलिम्स के लिये:प्रधानमंत्री गति शक्ति योजना, राष्ट्रीय अवसंरचना पाइपलाइन, औद्योगिक गलियारा, मेक इन इंडिया मेन्स के लिये:प्रधानमंत्री गति शक्ति योजना का महत्त्व और संबंधित चुनौतियाँ |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में भारत सरकार ने लॉजिस्टिक्स लागत को कम करने के लिये समन्वित और बुनियादी अवसंरचना परियोजनाओं के निष्पादन हेतु महत्त्वाकांक्षी गति शक्ति योजना या ‘नेशनल मास्टर प्लान फॉर मल्टी-मॉडल कनेक्टिविटी प्लान’ लॉन्च किया है।
प्रमुख बिंदु
- योजना के विषय में:
- उद्देश्य: ज़मीनी स्तर पर काम में तेज़ी लाना, लागत में कमी करना और रोज़गार पैदा करने पर ध्यान देने के साथ-साथ आगामी चार वर्षों में बुनियादी अवसंरचना परियोजनाओं की एकीकृत योजना और कार्यान्वयन सुनिश्चित करना।
- गति शक्ति योजना के तहत वर्ष 2019 में शुरू की गई 110 लाख करोड़ रुपए की ‘राष्ट्रीय अवसंरचना पाइपलाइन’ को समाहित किया जाएगा।
- लॉजिस्टिक्स लागत में कटौती के अलावा इस योजना का उद्देश्य कार्गो हैंडलिंग क्षमता को बढ़ाना और व्यापार को बढ़ावा देने हेतु बंदरगाहों पर टर्नअराउंड समय को कम करना है।
- इसका लक्ष्य 11 औद्योगिक गलियारे और दो नए रक्षा गलियारे (एक तमिलनाडु में और दूसरा उत्तर प्रदेश में) बनाना भी है। इसके तहत सभी गाँवों में 4G कनेक्टिविटी का विस्तार किया जाएगा। साथ ही गैस पाइपलाइन नेटवर्क में 17,000 किलोमीटर की क्षमता जोड़ने की योजना बनाई जा रही है।
- यह वर्ष 2024-25 के लिये सरकार द्वारा निर्धारित महत्त्वाकांक्षी लक्ष्यों को पूरा करने में मदद करेगा, जिसमें राष्ट्रीय राजमार्ग नेटवर्क की लंबाई को 2 लाख किलोमीटर तक विस्तारित करना, 200 से अधिक नए हवाई अड्डों, हेलीपोर्ट और वाटर एयरोड्रोम का निर्माण करना शामिल है।
- एकीकृत दृष्टिकोण: यह बुनियादी अवसंरचना से संबंधित 16 मंत्रालयों को एक साथ लाने पर ज़ोर देता है।
- यह लंबे समय से चली आ रही समस्याओं जैसे- असंबद्ध योजना, मानकीकरण की कमी, मंज़ूरी संबंधी चुनौतियाँ दूर करने के साथ-साथ समय पर बुनियादी अवसंरचना की क्षमता के निर्माण एवं उपयोग में मदद करेगा।
- गति शक्ति डिजिटल प्लेटफॉर्म: इसमें एक अम्ब्रेला प्लेटफॉर्म का निर्माण शामिल है, जिसके माध्यम से विभिन्न मंत्रालयों/विभागों के बीच वास्तविक समय पर समन्वय के माध्यम से बुनियादी अवसंरचना परियोजनाओं का निर्माण कर उन्हें प्रभावी तरीके से लागू किया जा सकता है।
- अपेक्षित परिणाम:
- यह योजना मौजूदा और प्रस्तावित कनेक्टिविटी परियोजनाओं की मैपिंग में मदद करेगी।
- साथ ही इसके माध्यम से देश में विभिन्न क्षेत्रों और औद्योगिक केंद्रों को जोड़ने संबंधी योजना भी स्पष्ट हो सकेगी।
- एक समग्र एवं एकीकृत परिवहन कनेक्टिविटी रणनीति ‘मेक इन इंडिया’ का समर्थन करेगी और परिवहन के विभिन्न तरीकों को एकीकृत करेगी।
- इससे भारत को विश्व की व्यापारिक राजधानी बनने में मदद मिलेगी।
- उद्देश्य: ज़मीनी स्तर पर काम में तेज़ी लाना, लागत में कमी करना और रोज़गार पैदा करने पर ध्यान देने के साथ-साथ आगामी चार वर्षों में बुनियादी अवसंरचना परियोजनाओं की एकीकृत योजना और कार्यान्वयन सुनिश्चित करना।
- एकीकृत बुनियादी अवसंरचना के विकास की आवश्यकता:
- समन्वय एवं उन्नत सूचना साझाकरण की कमी के कारण मैक्रो नियोजन और माइक्रो कार्यान्वयन के बीच एक व्यापक अंतर मौजूद है, क्योंकि विभाग प्रायः अलगाव की स्थिति में कार्य करते हैं।
- एक अध्ययन के अनुसार, भारत में लॉजिस्टिक लागत सकल घरेलू उत्पाद का लगभग 13% है, जो कि विकसित देशों की तुलना में काफी अधिक है।
- इस उच्च लॉजिस्टिक लागत के कारण भारत के निर्यात प्रतिस्पर्द्धात्मकता बहुत कम हो जाती है।
- यह विश्व स्तर पर स्वीकार किया जाता है कि सतत् विकास के लिये गुणवत्तापूर्ण बुनियादी अवसंरचना का निर्माण काफी महत्त्वपूर्ण है, जो विभिन्न आर्थिक गतिविधियों के माध्यम से व्यापक पैमाने पर रोज़गार पैदा करता है।
- यह योजना का कार्यान्वयन ‘राष्ट्रीय मुद्रीकरण पाइपलाइन’ (NMP) के साथ समन्वय स्थापित कर किया जाएगा।
- ‘राष्ट्रीय मुद्रीकरण पाइपलाइन’ को मुद्रीकरण हेतु एक स्पष्ट ढाँचा प्रदान करने और संभावित निवेशकों को बेहतर रिटर्न की प्राप्ति के लिये संपत्तियों की एक सूची निर्मित करने हेतु शुरू की गई है।
- संबद्ध चिंताएँ:
- लो क्रेडिट ऑफ-टेक: हालाँकि सरकार ने बैंकिंग क्षेत्र की मज़बूती के लिये कई सुधार किये और दिवाला एवं दिवालियापन संहिता ने खराब ऋणों पर लगभग 2.4 लाख करोड़ रुपए की वसूली की थी, फिर भी ऋण लेने की प्रवृत्ति में गिरावट संबंधी चिंताएँ हैं।
- मांग में कमी: कोविड-19 के बाद के परिदृश्य में निजी मांग और निवेश की कमी देखी गई है।
- संरचनात्मक समस्याएँ: भूमि अधिग्रहण में देरी और मुकदमेबाज़ी के मुद्दों के कारण देश में वैश्विक मानकों की तुलना में परियोजनाओं के कार्यान्वयन की दर बहुत धीमी है।
- इसके अतिरिक्त भूमि प्रयोग और पर्यावरण मंज़ूरी के मामले में विलंब, अदालत में लंबे समय तक चलने वाले मुकदमे आदि अवसंरचना परियोजनाओं में देरी के कुछ प्रमुख कारण हैं।
- लो क्रेडिट ऑफ-टेक: हालाँकि सरकार ने बैंकिंग क्षेत्र की मज़बूती के लिये कई सुधार किये और दिवाला एवं दिवालियापन संहिता ने खराब ऋणों पर लगभग 2.4 लाख करोड़ रुपए की वसूली की थी, फिर भी ऋण लेने की प्रवृत्ति में गिरावट संबंधी चिंताएँ हैं।
आगे की राह
- PM गति शक्ति सही दिशा में उठाया गया एक कदम है। हालाँकि इसे उच्च सार्वजनिक व्यय से उत्पन्न संरचनात्मक और व्यापक आर्थिक स्थिरता संबंधी चिंताओं को दूर करने की आवश्यकता है।
- इस प्रकार आवश्यक है कि यह पहल एक स्थिर और पूर्वानुमेय नियामक एवं संस्थागत ढाँचे पर आधारित हो।