लोक उद्यम विभाग

प्रिलिम्स के लिये

लोक उद्यम विभाग, महारत्न, नवरत्न, मिनीरत्न, प्राक्कलन समिति, सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यम, 

मेन्स के लिये

सार्वजनिक उद्यम विभाग के कार्य तथा इसे वित्त मंत्रालय के दायरे में लाने के निर्णय का महत्त्व 

चर्चा में क्यों?

हाल ही में सरकार ने सार्वजनिक उद्यम विभाग (Department of Public Enterprises-DPE) को भारी उद्योग मंत्रालय के दायरे से हटाकर पुनः वित्त मंत्रालय के दायरे में ला दिया है।

  • वित्त मंत्रालय में अब छह विभाग होंगे जबकि DPE के मूल मंत्रालय, भारी उद्योग और सार्वजनिक उद्यम मंत्रालय को अब केवल भारी उद्योग मंत्रालय कहा जाएगा।

प्रमुख बिंदु

सार्वजनिक उद्यम विभाग के विषय में:

  • लोक उद्यम विभाग सभी केंद्रीय सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों (Central Public Sector Enterprises-CPSEs) का नोडल विभाग है और CPSEs से संबंधित नीतियाँ तैयार करता है।
    • CPSEs ऐसी कंपनियाँ हैं जिनमें केंद्र सरकार या अन्य CPSEs की प्रत्यक्ष हिस्सेदारी 51% या उससे अधिक है।
  • यह विशेष रूप से, CPSEs में निष्पादकता सुधार एवं मूल्यांकन, स्वायत्तता तथा वित्तीय शक्तियों के प्रत्यायोजन और कार्मिक प्रबंधन के बारे में नीतिगत दिशानिर्देश तैयार करता है। 
  • इसके अलावा यह केंद्रीय सरकारी उद्यमों से संबंधित बहुत से क्षेत्रों के संबंध में सूचना एकत्र करता है और उसका रखरखाव भी करता है
  • DPE को वित्त मंत्रालय में स्थानांतरित किये जाने से CPSEs के पूंजीगत व्यय, परिसंपत्ति मुद्रीकरण और वित्तीय स्वास्थ्य की कुशल निगरानी में मदद मिलेगी।

पृष्ठभूमि:

  • तीसरी लोकसभा (1962-67) की प्राक्कलन समिति (Estimates Committee) ने अपनी रिपोर्ट में, एक केंद्रीकृत समन्वय इकाई स्थापित करने की आवश्यकता पर बल दिया था, जो सार्वजनिक उद्यमों के प्रदर्शन का निरंतर मूल्यांकन भी कर सके
  • जिसके परिणामस्वरूप वर्ष 1965 में वित्त मंत्रालय के अंतर्गत सार्वजनिक उद्यम ब्यूरो (Bureau of Public Enterprises-BPE) की स्थापना हुई।
  • वर्ष 1985 में, BPE को उद्योग मंत्रालय का हिस्सा बनाया गया था। मई 1990 में BPE को एक पूर्ण विभाग बनाया गया जिसे लोक उद्यम विभाग (Department of Public Enterprises- DPE) के रूप में जाना जाता है।

प्रमुख कार्य:

  • सभी लोक उद्यमों (Public Sector Enterprises- PSEs) को प्रभावित करने वाले सामान्‍य नीति संबंधी मामलों का समन्‍वय।
  • लोक उद्यमों का पुनर्गठन करने या बंद करने तथा उनके लिये तंत्र से संबंधित सलाह देना।
  • पुनरुद्धार से संबंधित सलाह देना।
  • स्‍वैच्छिक सेवानिवृत्ति योजना के अंतर्गत केंद्रीय सरकारी लोक उद्यमों में कर्मचारियों को परामर्श, प्रशिक्षण एवं उनका पुनर्वास
  • 'रत्‍न' का दर्जा देने सहित केंद्रीय सरकारी लोक उद्यमों का अन्य प्रकार का वर्गीकरण
    • CPSEs को 3 श्रेणियों में वर्गीकृत किया गया है- महारत्न, नवरत्न और मिनीरत्न। वर्तमान में 10 महारत्न, 14 नवरत्न और 74 मिनीरत्न CPSEs हैं।

CPSEs का वर्गीकरण

श्रेणी

  • महारत्न
  • नवरत्न
  • मिनीरत्न

शुरुआत

  • CPSEs के लिये महारत्न योजना मई, 2010 में शुरू की गई थी, ताकि मेगा CPSEs को अपने संचालन का विस्तार करने और वैश्विक दिग्गजों के रूप में उभरने के लिये सशक्त बनाया जा सके।
  • नवरत्न योजना वर्ष 1997 में शुरू की गई थी ताकि उन CPSEs की पहचान की जा सके जो अपने संबंधित क्षेत्रों में तुलनात्मक लाभ प्राप्त करते हैं और वैश्विक खिलाड़ी बनने के उनके अभियान में उनका समर्थन करते हैं।
  • मिनीरत्न योजना की शुरूआत वर्ष 1997 में सार्वजनिक क्षेत्र को अधिक कुशल एवं प्रतिस्पर्द्धी बनाने और लाभ कमाने वाले सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों को अधिक स्वायत्तता तथा शक्तियों का प्रत्यायोजन प्रदान करने के नीतिगत उद्देश्य के अनुसरण में की गई थी।

मानदंड

महारत्न:

  • कंपनियों को नवरत्न का दर्जा प्राप्त होना चाहिये।
  • कंपनी को भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (Security Exchange Board of India- SEBI) के नियामकों के अंतर्गत न्यूनतम निर्धारित सार्वजनिक हिस्सेदारी (Minimum Prescribed Public Shareholding) के साथ भारतीय शेयर बाज़ार में सूचीबद्ध होनी चाहिये।
  • विगत तीन वर्षों की अवधि में औसत वार्षिक व्यवसाय (Average Annual Turnover) 25,000 करोड़ रुपए से अधिक होना चाहिये।
  • पिछले तीन वर्षों में औसत वार्षिक निवल मूल्य (Average Annual Net Worth) 15,000 करोड़ रुपए से अधिक होना चाहिये।
  • पिछले तीन वर्षों का औसत वार्षिक शुद्ध लाभ (Average Annual Net Profit) 5,000 करोड़ रुपये से अधिक होना चाहिये।
  • कंपनियों की व्यापार के क्षेत्र में अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार में महत्वपूर्ण उपस्थिति होनी चाहिये।
  • उदाहरण: भारत हेवी इलेक्ट्रिकल्स लिमिटेड, भारत पेट्रोलियम कॉर्पोरेशन लिमिटेड, कोल इंडिया लिमिटेड, गेल (इंडिया) लिमिटेड, आदि।

नवरत्न:

  • मिनीरत्न श्रेणी - I और अनुसूची 'A' के तहत आने वाली CPSEs, जिन्होंने पिछले पाँच वर्षों में से तीन में समझौता ज्ञापन प्रणाली के तहत 'उत्कृष्ट' या 'बहुत अच्छी' रेटिंग प्राप्त की है और छह प्रदर्शन मापदंडों में 60 या उससे अधिक का समग्र स्कोर प्राप्त किया हो। ये छह मापदंड हैं:
    • शुद्ध पूंजी और शुद्ध लाभ
    • उत्पादन की कुल लागत के सापेक्ष मैनपॉवर पर आने वाली कुल लागत
    • मूल्यह्रास के पहले कंपनी का लाभ, वर्किंग कैपिटल पर लगा टैक्स और ब्याज
    • ब्याज भुगतान से पहले लाभ और कुल बिक्री पर लगा कर
    • प्रति शेयर कमाई
    • अंतर-क्षेत्रीय प्रदर्शन
  • उदाहरण: भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड, हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड, आदि।

मिनीरत्न:

  • मिनीरत्न श्रेणी- 1: मिनीरत्न कंपनी श्रेणी 1 का दर्जा प्राप्त करने के लिये आवश्यक है कि कंपनी ने पिछले तीन वर्षों से लगातार लाभ प्राप्त किया हो तथा तीन साल में एक बार कम से कम 30 करोड़ रुपए का शुद्ध लाभ अर्जित किया हो।
    • उदाहरण (श्रेणी- I): भारतीय विमानपत्तन प्राधिकरण, एंट्रिक्स कॉर्पोरेशन लिमिटेड, आदि।
  • मिनीरत्न श्रेणी- 2 : CPSE द्वारा पिछले तीन साल से लगातार लाभ अर्जित किया हो और उसकी निवल संपत्ति सकारात्मक हो, वे मिनीरत्न- II का दर्जा देने के लिये पात्र हैं।
    • उदाहरण (श्रेणी- II): भारतीय कृत्रिम अंग निर्माण निगम (ALIMCO ), भारत पंप्स एंड कंप्रेसर्स लिमिटेड (BPCL), आदि।
  • मिनीरत्न  CPSE को सरकार के किसी भी ऋण पर ऋण / ब्याज भुगतान के पुनर्भुगतान में चूक नहीं करनी चाहिये।
  • मिनीरत्न CPSE कंपनियाँ बजटीय सहायता या सरकारी गारंटी पर निर्भर नहीं होंगे।

प्राक्कलन समिति

परिचय :

  • इसे प्रथम बार 1920 के दशक में ब्रिटिश काल के दौरान स्थापित किया गया था लेकिन स्वतंत्र भारत की पहली प्राक्कलन समिति वर्ष 1950 में स्थापित की गई थी।
  • यह समिति बजट में शामिल अनुमानों की जाँच करती है तथा सार्वजनिक व्यय में 'अर्थनीति' का सुझाव देती है।
  • संसद की अन्य वित्तीय समितियों में शामिल हैं - लोक लेखा समिति और सार्वजनिक उपक्रमों की समिति।

सदस्य:

  • इसमें 30 सदस्य होते हैं तथा ये सभी सदस्य लोकसभा से होने चाहिये।
  • सदस्यों को लोकसभा सदस्यों द्वारा प्रत्येक वर्ष आनुपातिक प्रतिनिधित्व के सिद्धांतों द्वारा एकल संक्रमणीय मत के माध्यम स्वीकृत किया जाता है, ताकि सभी दलों को इसमें उचित प्रतिनिधित्त्व मिल सके।
  • किसी मंत्री को प्राक्कलन समिति के सदस्य/अध्यक्ष के रूप निर्वाचित नहीं किया जा सकता है।
  • इसके अध्यक्ष की नियुक्ति लोकसभा अध्यक्ष द्वारा सत्तारूढ़ दल या गठबंधन के सदस्यों में से की जाती है।

कार्य:

  •  यह समिति व्यय में मितव्ययिता और दक्षता की रिपोर्ट करने का प्रयास करती है। 
  • यह सुझाव देती है कि नीति या प्रशासनिक ढाँचे में क्या परिवर्तन किये जा सकते हैं तथा मितव्ययिता एवं दक्षता लाने के लिये किन वैकल्पिक नीतियों पर विचार किया जा सकता है।
    • इस समिति का कार्य वित्तीय वर्ष के दौरान निरंतर चलता रहता है तथा यह परीक्षण की प्रक्रिया के दौरान सदन को रिपोर्ट करती रहती है।
    • इसी कारण इस समिति को 'सतत् अर्थव्यवस्था समिति' भी कहा जाता है। 

स्रोत : इंडियन एक्सप्रेस


ज़िका वायरस रोग

प्रिलिम्स के लिये:

ज़िका वायरस रोग

मेन्स के लिये:

स्वास्थ्य के क्षेत्र में सरकार की विभिन्न पहलें

चर्चा में क्यों?

हाल ही में केरल में पहली बार ज़िका वायरस रोग (ZVD) का मामला सामने आया था।

प्रमुख बिंदु:

परिचय:

  • ज़िका वायरस एक मच्छर जनित फ्लेविवायरस है जिसे पहली बार वर्ष 1947 में युगांडा में बंदरों में पहचाना गया था। इसे बाद में वर्ष 1952 में युगांडा तथा संयुक्त गणराज्य तंजानिया में मनुष्यों में पहचाना गया।

प्रसार:

  • ZVD मुख्य रूप से एडीज़ मच्छर (AM) द्वारा प्रसारित वायरस के कारण होता है।
    • यह वही मच्छर है जिसके कारण डेंगू, चिकनगुनिया और पीत ज्वर होता है।
  • ज़िका वायरस गर्भावस्था के दौरान माँ से भ्रूण में, यौन संपर्क, रक्त और रक्त उत्पादों के आधान तथा अंग प्रत्यारोपण के माध्यम से भी फैलता है।

लक्षण:

  • इसके लक्षण आमतौर पर हल्के होते हैं और इसमें बुखार, शरीर पर दाने, कंजंक्टिवाइटिस (Conjunctivitis), मांसपेशियों एवं जोड़ों में दर्द, अस्वस्थता या सिरदर्द शामिल है। ज़िका वायरस संक्रमण वाले अधिकांश लोगों में लक्षण विकसित नहीं होते हैं।
  • गर्भावस्था के दौरान ज़िका वायरस के संक्रमण के कारण शिशुओं का जन्म माइक्रोसेफली (Microcephaly) (सामान्य सिर के आकार से छोटा) और अन्य जन्मजात विकृतियों के साथ हो सकता है, जिन्हें जन्मजात ज़िका सिंड्रोम के रूप में जाना जाता है।

उपचार:

  • ज़िका के लिये कोई टीका या दवा उपलब्ध नहीं है। इससे निपटने के लिये शुरुआत में ही लक्षणों पर ध्यान केंद्रित किया जाना चाहिये। बुखार तथा दर्द से निजात पाने के लिये रिहाइड्रेशन एवं एसिटामिनोफेन (Acetaminophen) पर ध्यान केंद्रित किया जाता है।

संबंधित सरकारी कार्यक्रम/पहल:

  • एकीकृत रोग निगरानी कार्यक्रम: इसका उद्देश्य  प्रयोगशालाओं एवं सूचना संचार प्रौद्योगिकी के समन्वय के साथ प्रशिक्षित त्‍वरित प्रतिक्रियात्‍मक टीम (RRT) के माध्यम से प्रारंभिक विकसित चरण में प्रकोप का पता लगाने और प्रतिक्रिया व्यक्त  करने एवं महामारी संभावित रोगों को नियंत्रित करने के लिये विकेंदीकृत रोग निगरानी प्रणाली को बनाए रखना/सुदृढ़ करना है।
  • राष्ट्रीय वेक्टर जनित रोग नियंत्रण कार्यक्रम: भारत में छह वेक्टर जनित रोगों अर्थात् मलेरिया, डेंगू, लिम्फेटिक फाइलेरिया, कालाजार, जापानी इंसेफेलाइटिस और चिकनगुनिया की रोकथाम व नियंत्रण के लिये केंद्रीय नोडल एजेंसी।
  • राष्ट्रीय बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम (RBSK): यह राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के तहत एक पहल है जिसका उद्देश्य माइक्रोसेफली (जन्म दोषों की निगरानी हेतु प्रणाली) की निगरानी करना है।

डेंगू

  • डेंगू का प्रसार मच्छरों की कई जीनस एडीज़ (Genus Aedes) प्रजातियों मुख्य रूप से एडीज़ इजिप्टी (Aedes aegypti) द्वारा होता है।
  • इसके लक्षणों में बुखार, सिरदर्द, मांसपेशियों और जोड़ों में दर्द और खसरे के समान त्वचा पर लाल चकत्ते शामिल हैं। 
  • डेंगू के टीके CYD-TDV या डेंगवाक्सिया (CYD-TDV or Dengvaxia) को लगभग 20 देशों में स्वीकृत प्रदान की गई है। 

चिकनगुनिया

  • चिकनगुनिया मच्छर जनित वायरस के कारण होता है।
  • यह एडीज़ एजिप्टी (Aedes Aegypti) और एडीज़ एल्बोपिक्टस (Albopictus Mosquitoes) मच्छरों द्वारा फैलता है।
  • इसके लक्षणों में अचानक बुखार, तेज़ जोड़ों का दर्द, अक्सर हाथों और पैरों में दर्द, साथ ही  इसमें सिरदर्द, मांसपेशियों में दर्द, शरीर में सूजन या दाने हो सकते हैं।
  • चिकनगुनिया के उपचार के लिये कोई विशिष्ट एंटीवायरल दवा नहीं है।
  • न ही कोई वाणिज्यिक चिकनगुनिया (Commercial Chikungunya) टीका है।

पीत ज्वर (Yellow Fever)

  • पीत ज्वर मच्छरों से फैलने वाली बीमारी है। यह पीलिया (Jaundice) जैसी होती है, इसीलिये इसे पीत/पीला (Yellow) के नाम से भी जाना जाता है।
  • पीत ज्वर के लक्षणों में बुखार, सिरदर्द, पीलिया, मांसपेशियों में दर्द, मतली, उल्टी और थकान शामिल हैं।
  • पीत-ज्वर को सामान्यतः ‘17D’ भी कहा जाता है। आमतौर पर यह टीका (Vaccine) सुरक्षित माना जाता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुसार, पीत ज्वर को एक अत्यंत प्रभावी टीके की सिर्फ एक खुराक द्वारा रोका जाता है, जो सुरक्षित और सस्ती होने के साथ-साथ इस बीमारी के खिलाफ निरंतर प्रतिरक्षा एवं जीवन भर सुरक्षा प्रदान करने के लिये पर्याप्त है।
  • हालाँकि इसके संबंध में किये गए अनुसंधानों एवं कुछ रिपोर्टों से प्राप्त जानकारी के मुताबिक, पीत ज्वर संबंधी टीकाकरण के बाद शरीर के कई तंत्रों के खराब होने या सही से काम न करने की बातें सामने आई हैं, यहाँ तक कि इसके कारण कुछ लोगों की मृत्यु तक हो गई है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


भारत का कोविड -19 आपातकालीन प्रतिक्रिया पैकेज: चरण II

प्रिलिम्स के लिये:

केंद्र प्रायोजित योजनाएँ, जीनोम अनुक्रमण, ई-संजीवनी

मेन्स के लिये:  

कोविड-19 जैसी आपातकालीन स्वास्थ्य चुनौतियों से निपटने हेतु कानूनी प्रावधान व सरकरी प्रयास 

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने आपातकालीन प्रतिक्रिया और स्वास्थ्य देखभाल प्रणालियों को बढ़ावा देने हेतु  23,123 करोड़ रुपए के  पैकेज की घोषणा की है।

  • इसमें 20,000 अतिरिक्त आईसीयू (गहन देखभाल इकाई) बिस्तरों के लिये धन और देश में कोविड -19 की संभावित तीसरी लहर से पहले सभी ज़िलों में बाल चिकित्सा इकाइयों की स्थापना शामिल है।

प्रमुख बिंदु: 

पृष्ठभूमि:

  • चरण I का पैकेज: मार्च 2020 में जब देश कोविड-19 महामारी की पहली लहर का सामना कर रहा था, तब 15,000 करोड़ रुपए की एक केंद्रीय क्षेत्र की योजना “भारत कोविड-19 आपात प्रतिक्रिया और स्वास्थ्य प्रणाली तैयारी पैकेज” ("India Covid-19 Emergency Response and Health Systems Preparedness Package) की घोषणा की गई थी।
    • इसका उद्देश्य स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय (MoHFW) तथा राज्यों/ केंद्रशासित प्रदेशों के प्रयासों को गति देने एवं महामारी के प्रबंधन हेतु स्वास्थ्य प्रणाली की गतिविधियों को प्रोत्साहन देना था। 
  • फरवरी 2021 के मध्य से देश एक दूसरी लहर का अनुभव कर रहा है जो ग्रामीण, शहरों के बाहर और आदिवासी क्षेत्रों में फैल गई है।

 चरण II का पैकेज:

  • पैकेज के दूसरे चरण में केंद्रीय क्षेत्र ( Central Sector- CS) और केंद्र प्रायोजित योजनाओं  ( Centrally Sponsored Schemes- CSS) के घटक शामिल हैं।
    • केंद्र सरकार केंद्रीय क्षेत्र की योजनाओं को पूरी तरह से वित्तपोषित करती है, जबकि केंद्र प्रायोजित योजनाओं को केंद्र और राज्यों द्वारा संयुक्त रूप से वित्तपोषित किया जाता है।
  • इसे 1 जुलाई, 2021 से 31 मार्च, 2022 तक लागू किया जाएगा।

उद्देश्य:

  • इसमें सभी 736 ज़िलों में बाल चिकित्सा इकाइयों के लिये धन और 20,000 आईसीयू बिस्तरों की स्थापना शामिल है, जिनमें से 20% “हाइब्रिड” यानी वयस्कों और बच्चों दोनों हेतु होंगे।
    • कोविड-19 की तीसरी लहर से बच्चों के पहले से ज़्यादा प्रभावित होने की आशंका है।
  • इसका उद्देश्य ऑक्सीजन के परिवहन की सुविधाओं और दवाओं की कमी सहित दूसरी लहर के दौरान देखी गई समस्याओं को दुबारा होने से रोकना है।
  • केंद्र अपने अस्पतालों, अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थानों और राष्ट्रीय महत्त्व के अन्य संस्थानों को कोविड-19 प्रबंधन के लिये 6,688 बिस्तरों के पुनर्निमाण हेतु सहायता प्रदान करेगा।
  • राष्ट्रीय रोग नियंत्रण केंद्र (National Centre for Disease Control) को जीनोम अनुक्रमण (Genome sequencing) मशीनें उपलब्ध कराई जाएंगी।
  • यह पैकेज राष्ट्रीय टेलीमेडिसिन प्लेटफॉर्म और ई-संजीवनी के विस्तार के लिये भी प्रदान किया जाएगा, जिसमे  दैनिक परामर्श को वर्तमान के 50,000 से बढ़ाकर 5 लाख कर कर दिया जाएगा।
  • राज्यों को एक दिन में कम-से-कम 21.5 लाख परीक्षण करने और 8,800 एम्बुलेंस जोड़ने के लिये सहायता प्रदान की जाएगी।

स्रोत: पी.आई.बी.


खतरनाक रसायनों के कारण मौतें

प्रिलिम्स के लिये

विश्व स्वास्थ्य संगठन, खतरनाक रसायन

मेन्स के लिये

खतरनाक रसायनों के कारण होने वाली मौतें और इन्हें रोकने हेतु सरकार द्वारा किये गए प्रयास

चर्चा में क्यों?

विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के नवीनतम अनुमानों के मुताबिक, दुनिया भर में खतरनाक रसायनों के संपर्क में आने से होने वाली मौतों की संख्या में वर्ष 2019 से वर्ष 2016 के बीच 29% की वृद्धि हुई है।

  • आँकड़ों के अनुसार, वर्ष 2016 में खतरनाक रसायनों के संपर्क में आने से 1.56 मिलियन लोगों की मृयु हुई थी, जो कि वर्ष 2019 में बढ़कर दो मिलियन तक पहुँच गई। अनजाने में रसायनों के संपर्क में आने के कारण प्रतिदिन 4,270 से 5,400 लोगों की मौत हुई थी। 
  • यह अनुमान और आँकड़े ‘बर्लिन फोरम ऑन केमिकल्स एंड सस्टेनेबिलिटी: एम्बिशन एंड एक्शन वर्ड 2030’ में आयोजित मंत्रिस्तरीय वार्ता के दौरान ‘विश्व स्वास्थ्य संगठन’ के महानिदेशक द्वारा जारी किये गए हैं।

प्रमुख बिंदु

खतरनाक रसायन 

  • खतरनाक रसायन का आशय एक ऐसे रसायन से है, जिसमें मानव या पशु स्वास्थ्य, पर्यावरण, या संपत्ति को नुकसान पहुँचाने में सक्षम गुण मौजूद हैं।
  • इन्हें प्रायः कार्यस्थल में कच्चे माल, सॉल्वैंट्स, सफाई एजेंट, उत्प्रेरक और कई अन्य कार्यों के लिये प्रयोग किया जाता हैं।
  • इन्हें आमतौर पर स्वास्थ्य एवं संपत्ति पर इनके जोखिम स्तर के अनुसार वर्गीकृत किया जाता है। खतरनाक रसायनों को निम्नानुसार वर्गीकृत किया गया है:
    • ज्वलनशील या विस्फोटक (उदाहरण: पेट्रोलियम, टीएनटी, प्लास्टिक विस्फोटक)।
    • त्वचा, फेफड़ों और आँखों के लिये संक्षारक (उदाहरण: एसिड, अल्काई, पेंट और धुँआ)।
    • ज़हरीले रसायन (उदाहरण: कार्बन मोनोऑक्साइड, हाइड्रोजन सल्फाइड, साइनाइड, भारी धातु)।
  • ये रसायन हवा में, उपभोक्ता उत्पादों में, कार्यस्थल पर, पानी में या मिट्टी में मौजूद होते हैं।
  • ये मानसिक, व्यावहारिक और तंत्रिका संबंधी विकार, मोतियाबिंद या अस्थमा सहित कई बीमारियों का कारण बन सकते हैं।

सर्वाधिक मौतों के लिये ज़िम्मेदार रसायन:

  • सीसा विषाक्तता:
    • वर्ष 2019 में यह लगभग आधी मौतों हेतु ज़िम्मेदार रसायन था।
    • लेड के संपर्क में आने से हृदय रोग (cardiovascular diseases- CVD), गुर्दे की पुरानी बीमारियांँ और प्रारंभिक बौद्धिक अक्षमता (Idiopathic Intellectual Disability) की समस्याएँ उत्पन्न होती हैं ।
    • विभिन्न कारणों से पेंट में लेड/सीसा मिलाया जाता है जैसे- रंग को गढ़ा करने, जंग की समस्या के समाधान हेतु तथा रंग के सुखाने के समय को कम करने के लिये।
    • भारत सहित सिर्फ 41% देशों का सीसारहित पेंट के उत्पादन, आयात, बिक्री और उपयोग पर कानूनी रूप से बाध्यकारी नियंत्रण है।
    • वर्ष 2020 में यूनिसेफ (UNICEF) ने भी बच्चों के स्वास्थ्य पर सीसा प्रदूषण के प्रभाव को लेकर चिंता जताई थी।
      • वैश्विक स्तर पर लगभग 800 मिलियन लोगों के रक्त में लेड का स्तर अनुमेय मात्रा (Permissible Quantity) के बराबर या अधिक है (5 माइक्रोग्राम प्रति डेसीलीटर (µg/dL)।
  • कण और कार्सिनोजेन्स:
    • पार्टिकुलेट्स (धूल, धुएंँ और गैस) के व्यावसायिक संपर्क से होने वाली ‘क्रॉनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिज़ीज़’ (Chronic Obstructive Pulmonary Disease- COPD) तथा कार्सिनोजेन्स (आर्सेनिक, एस्बेस्टस व बेंजीन) के संपर्क में आने से कैंसर से होने वाली मौतों के प्रमुख कारण हैं।

विकलांगता-समायोजित जीवन वर्षों (Disability Adjusted Life Year-DALY) में कमी: 

  • वर्ष 2019 में 53 मिलियन विकलांगता-समायोजित जीवन वर्ष कम हुए है। यह वर्ष 2016 के बाद से 19% से अधिक की वृद्धि है।
    • WHO के अनुसार, एक DALY को "स्वस्थ" जीवन का एक खोया वर्ष (Lost Year) माना जाता है। इन DALYs के योग को वर्तमान स्वास्थ्य स्थिति और एक आदर्श स्वास्थ्य स्थिति के बीच अंतर के रूप में माना जाता है, जहाँ पूरी आबादी बीमारी और विकलांगता से मुक्त एक मानक आयु तक जीवित रहती है।
  • लेड/शीशे के संपर्क में आने के कारण वर्ष 2016 से विकलांगता-समायोजित जीवन-वर्षों में 56% की वृद्धि हुई है।
  • विकलांगता-समायोजित जीवन वर्ष (Disability-Adjusted Life Years- DALYs) समय से पहले मृत्यु के कारण खोए हुए जीवन के वर्षों की संख्या और बीमारी या चोट के कारण विकलांगता के साथ रहने वाले वर्षों की एक भारित माप है।

उठाए गए कदम    

कई अंतर्राष्ट्रीय रासायनिक सम्मेलन कुछ खतरनाक रसायनों के उत्पादन, उपयोग और व्यापार को निषेध या प्रतिबंधित भी कर रहे हैं।

  • स्थायी कार्बनिक प्रदूषकों (POP) पर स्टॉकहोम कन्वेंशन: मानव स्वास्थ्य और पर्यावरण को POP (यानी ज़हरीले रसायनों) के हानिकारक प्रभावों से बचाने के लिये एक वैश्विक संधि है।
    • भारत ने इस समझौते की पुष्टि की है और इसे स्वीकार किया है।
  • अंतर्राष्ट्रीय व्यापार में कुछ खतरनाक रसायनों और कीटनाशकों के लिये पूर्व सूचित सहमति प्रक्रिया के बारे में रॉटरडैम कन्वेंशन।
    • भारत ने 2005 में इस कन्वेंशन की पुष्टि की।
  • खतरनाक अपशिष्टों और उनके निपटान की सीमापारीय गतिविधियों के नियंत्रण पर बेसल कन्वेंशन
    • भारत ने कन्वेंशन की पुष्टि की। 
  • रासायनिक हथियार सम्मेलन (CWC) एक हथियार नियंत्रण संधि है जो राष्ट्र संघ द्वारा रासायनिक हथियारों के विकास, उत्पादन, अधिग्रहण, भंडारण, प्रतिधारण, हस्तांतरण या उपयोग को प्रतिबंधित करती है।
    •  भारत एक हस्ताक्षरकर्त्ता और कन्वेंशन का पक्षकार है।
  • पारे (Mercury) पर मिनामाता कन्वेंशन मानव स्वास्थ्य और पर्यावरण को पारे तथा इसके यौगिकों के प्रतिकूल प्रभावों से बचाने के लिये एक वैश्विक संधि है।
    • भारत सहित 140 से अधिक देशों ने कन्वेंशन की पुष्टि की है।
  • नारकोटिक ड्रग्स और साइकोट्रोपिक पदार्थ (NDPS) की अवैध तस्करी के विरुद्ध संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन/समझौता- यह समझौता दवाओं की तस्करी के विरूद्ध व्यापक उपाय प्रदान करता है जिसमें हवाला और मूल रसायनों को दूसरे रूप में बदलने (डायवर्ज़न ऑफ प्रीकर्सर केमिकल्स) के विरुद्ध प्रावधान भी शामिल हैं।
    • भारत इसके हस्ताक्षरकर्त्ताओं में से एक है।
  • वर्ष 1990 में कार्यस्थल पर रसायनों के उपयोग में सुरक्षा से संबंधित रसायन कन्वेंशन अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) द्वारा प्रख्यापित किया गया था तथा 4 नवंबर, 1993 को लागू हुआ था।
  • अंतर्राष्ट्रीय रसायन प्रबंधन के लिये सामरिक दृष्टिकोण (SAICM) विश्व भर में रासायनिक सुरक्षा को बढ़ावा देने के लिये एक नीतिगत ढाँचा है।

आगे की राह

  • व्यापक कानून की आवश्यकता: रासायनिक उपयोग, उत्पादन और सुरक्षा को विनियमित करने के लिये देशों में एक व्यापक कानून की आवश्यकता है।
  • इस संदर्भ में भारत को ध्यान देने की आवश्यकता है क्योंकि देश की राष्ट्रीय रासायनिक नीति 2012 से लंबित है।
  • रासायनिक पदार्थों के उपयोग को कम करना या हटाना: खतरनाक रसायनों को संभालने, भंडारण, परिवहन और उपयोग करते समय अत्यधिक सावधानी बरतनी चाहिये। 
    • खतरनाक रसायनों से खुद को बचाने के लिये उपयोगकर्त्ता को सुरक्षात्मक वस्त्रों और व्यक्तिगत सुरक्षा उपकरण अपनाने की ज़रूरत है।

स्रोत: डाउन टू अर्थ


युवा और खाद्य प्रणाली

प्रिलिम्स के लिये

विश्व खाद्य सुरक्षा समितिम MAYA रोडमैप, ARYA कार्यक्रम, खाद्य और कृषि संगठन, संयुक्त राष्ट्र, 

मेन्स के लिये

वैश्विक स्तर पर युवाओं की स्थिति, खाद्य प्रणाली में युवाओं के जुड़ाव की आवश्यकता

चर्चा में क्यों?

युवाओं और कृषि पर संयुक्त राष्ट्र (United Nations- UN) की एक नई रिपोर्ट में वैश्विक खाद्य सुरक्षा एवं पोषण के भविष्य को सुरक्षित करने हेतु कृषि-खाद्य प्रणालियों को युवाओं के लिये अधिक आकर्षक बनाने की तत्काल आवश्यकता को रेखांकित किया गया है।

  • विश्व खाद्य सुरक्षा समिति (Committee on World Food Security-CFS) द्वारा 'प्रमोटिंग यूथ इंगेजमेंट एंड एम्प्लॉयमेंट इन एग्रीकल्चर एंड फूड सिस्टम’ शीर्षक से यह रिपोर्ट तैयार की गई है।
  • विश्व खाद्य सुरक्षा समिति (CFS) सभी हितधारकों के लिये खाद्य एवं पोषण सुरक्षा सुनिश्चित करने हेतु साथ कार्य करने के लिये एक समावेशी अंतर्राष्ट्रीय एवं अंतर-सरकारी मंच है। ‘विश्व खाद्य सुरक्षा समिति’ की मेज़बानी संयुक्त राष्ट्र (UN) के ‘खाद्य और कृषि संगठन’ (FAO) द्वारा की जाती है।

प्रमुख बिंदु

वैश्विक स्तर पर युवाओं की स्थिति 

  • आँकड़ों के मुताबिक, वर्ष 2019 में 15 से 24 वर्ष तक के युवाओं का कुल आबादी में 16 प्रतिशत का प्रतिनिधित्व था।
  • इस मामले में मध्य और दक्षिण एशिया (361 मिलियन) पहले स्थान पर है, जिसके बाद पूर्वी एवं दक्षिण-पूर्व एशियाई क्षेत्र (307 मिलियन) तथा उप-सहारा अफ्रीकी क्षेत्र (211 मिलियन) शामिल हैं।
  • अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) का अनुमान है कि वर्ष 2015 और वर्ष 2030 के बीच अफ्रीकी महाद्वीप के 440 मिलियन युवा श्रम बाज़ार में प्रवेश करेंगे।

प्रमुख निष्कर्ष

  • खाद्य प्रणालियाँ सबसे बड़ी नियोक्ता: रिपोर्ट के मुताबिक, खाद्य प्रणालियाँ विकासशील देशों में सबसे बड़ी नियोक्ता हैं, किंतु इसके बावजूद वे सार्थक काम या पर्याप्त आजीविका के अवसर प्रदान करने में सक्षम नहीं हैं, साथ ही विभिन्न पीढ़ियों की ज़रूरतों और अधिकारों के बीच संतुलन बनाए रखने में भी सक्षम नहीं हैं।
    • खाद्य प्रणाली उत्पादन, प्रसंस्करण, भंडारण, वितरण, विपणन, पहुँच, खरीद, खपत, खाद्य हानि और अपशिष्ट के साथ-साथ सामाजिक, आर्थिक एवं पर्यावरणीय परिणामों सहित इन गतिविधियों के आउटपुट से जुड़ी गतिविधियों का एक जटिल वेब है।
  • अधिक रोज़गार के अवसर: कोविड-19 ने पूरे विश्व के श्रम बाज़ारों को प्रभावित किया है, जिससे युवाओं के रोज़गार पर अधिक प्रभाव पड़ा है। वैश्विक स्तर पर वयस्कों (Adult) के  3.7% की तुलना में वर्ष 2020 में युवाओं (Youth) के रोज़गार में 8.7% की गिरावट आई है।
    • यदि कृषि-खाद्य प्रणाली को युवाओं के लिये अधिक आकर्षक एवं न्यायसंगत बनाया जाए तो यह रोज़गार के और अधिक अवसर प्रदान कर सकती है।
  • विकासशील देशों पर ध्यान केंद्रित करने का महत्त्व: विश्व में लगभग 1.2 अरब युवा हैं जो बहुत कम आमदनी पर जीवन निर्वहन करते हैं जैसे- अफ्रीका में जहाँ 70% से अधिक युवा प्रतिदिन 2 अमेरिकी डॉलर या उससे कम पर निर्वाह करते हैं।
  • सतत् विकास लक्ष्यों को प्राप्त करना: सतत् कृषि-खाद्य प्रणालियों में युवा जुड़ाव और रोज़गार एक साथ साकार होने वाले लक्ष्य हैं  तथा सतत् विकास लक्ष्यों एवं आर्थिक कल्याण की उपलब्धि के साधन हैं।
  • युवा जलवायु परिवर्तन, सामाजिक और आर्थिक असमानताओं तथा राजनीतिक जोखिमों को वहन करते हुए भविष्य की खाद्य प्रणालियों के निर्माण के लिये अग्रिम पंक्ति में हैं।

अनुशंसाएँ:

  • खाद्य प्रणालियों में युवा जुड़ाव और रोज़गार को मज़बूत करने के लिये दृष्टिकोण, पहल और नीतियों को अधिकारों, इक्विटी, एजेंसी तथा मान्यता के स्तंभों पर आधारित होने की आवश्यकता है।
  • युवा केंद्रित सामाजिक सुरक्षा कार्यक्रमों, श्रम कानूनों और विनियमों तथा संसाधनों (भूमि, वन, मत्स्य पालन आदि), वित्त, बाज़ार, डिजिटल प्रौद्योगिकियों, ज्ञान एवं सूचना तक युवाओं की पहुँच में सुधार करना।
  • युवा नेतृत्व वाली स्टार्ट-अप पहलों का समर्थन करना भी महत्त्वपूर्ण है जिसके लिये एक सहायक नीति वातावरण की आवश्यकता होती है।
  • संसाधनों, ज्ञान और अवसरों का पुनर्वितरण युवाओं हेतु रोज़गार के अवसर पैदा करने में योगदान दे सकता है, साथ ही स्थायी कृषि-खाद्य प्रणालियों का समर्थन कर सकता है।

भारतीय परिदृश्य

 युवाओं की संख्या:

  • भारत की जनसंख्या में युवाओं (18-29 वर्ष) की कुल संख्या 22% है जो 261 मिलियन से अधिक है।
  • सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय के अनुसार, भारतीय जनसंख्या की औसत आयु वर्ष 2021 में लगभग 28 वर्ष है तथा वर्ष 2031 तक यह 31 वर्ष हो जाएगी।
  • भारत भी जनसांख्यिकीय लाभांश (Demographic Dividend) के चरण से गुज़र रहा है।
  • मुश्किल से 5% युवा कृषि में लगे हुए हैं, हालांँकि 60% से अधिक ग्रामीण लोग अपनी आजीविका को  पूरी तरह या आंशिक रूप से खेती और इससे संबंधित गतिविधियों से प्राप्त करते हैं।
    • जाहिर है आधुनिक युवा कृषि कार्यों में रुचि नहीं ले रहे हैं तथा इस पेशे को छोड़ रहे हैं।

संबंधित पहलें:

  • MAYA रोडमैप, 2018: ‘मोटीवेटिंग एंड अट्रेक्टिंग यूथ इन एग्रीकल्चर’ (Motivating and Attracting Youth in Agriculture- MAYA) को  नई दिल्ली में एक सम्मेलन में तैयार किया गया था।
    • MAYA रोड मैप में युवाओं को आर्थिक विकास, सामाजिक सम्मान, खेती और संबद्ध गतिविधियों में आधुनिक तकनीकों के अनुप्रयोग हेतु कई प्रकार के अवसर प्रदान करने की परिकल्पना की गई है।
  • ARYA (अट्रेक्टिंग एंड रिटेनिंग यूथ इन एग्रीकल्चर): इस कार्यक्रम की शुरुआत भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (Indian Council of Agricultural Research- ICAR) द्वारा की गई है। इसके उद्देश्य निम्नलिखित हैं:
    • ग्रामीण क्षेत्रों में युवाओं को विभिन्न कृषि संबद्ध सेवा क्षेत्रों में शामिल करने हेतु  प्रोत्साहित करना और उन्हें सशक्त बनाना।
    • संसाधन और पूंजी गहन गतिविधियों जैसे- प्रसंस्करण, मूल्य संवर्द्धन तथा विपणन हेतु नेटवर्क समूह स्थापित करने के लिये युवाओं, कृषकों को सक्षम करना।
  • किसानों के लिये राष्ट्रीय नीति, 2007: इस नीति के तहत ऐसे उपायों को शुरू करना जो युवाओं को खेती, कृषि उत्पादों के प्रसंस्करण के प्रति आकर्षित करने और बनाए रखने में मदद कर सकें, ताकि यह युवाओं के लिये बौद्धिक एवं आर्थिक रूप से फायदेमंद साबित हो।

स्रोत: डाउन टू अर्थ


OIC के प्रस्ताव को भारत ने खारिज किया

प्रिलिम्स के लिये

इस्लामिक सहयोग संगठन

मेन्स के लिये

इस्लामिक सहयोग संगठन और उसके सदस्य देशों के साथ भारत के संबंध

चर्चा में क्यों?

हाल ही में विदेश मंत्रालय ने भारत और पाकिस्तान के बीच वार्ता में सहयोग के लिये ‘इस्लामिक सहयोग संगठन’ (OIC) के प्रस्ताव को खारिज कर दिया है।

  • इससे पूर्व दिसंबर 2020 में भारत ने ‘इस्लामिक सहयोग संगठन’ द्वारा देश की कश्मीर नीति की आलोचना को भी खारिज कर दिया था।

‘इस्लामिक सहयोग संगठन’ (OIC) 

  • कुल 57 देशों की सदस्यता के साथ यह संयुक्त राष्ट्र (UN) के बाद दूसरा सबसे बड़ा अंतर-सरकारी संगठन है।
  • यह संगठन दुनिया भर में मुस्लिम जगत की सामूहिकता का प्रतिनिधित्व करता है। यह दुनिया के विभिन्न देशों के लोगों के बीच अंतर्राष्ट्रीय शांति और सद्भाव की भावना को बढ़ावा देने के साथ ही दुनिया के मुस्लिम समुदायों के हितों की रक्षा एवं संरक्षण का प्रयास करता है।
    • भारत इस संगठन का सदस्य नहीं है।
  • इसका गठन सितंबर 1969 में मोरक्को के रबात में हुए ऐतिहासिक शिखर सम्मेलन के दौरान किया गया था।
  • मुख्यालय: जेद्दाह (सऊदी अरब)

OIC

प्रमुख बिंदु

‘इस्लामिक सहयोग संगठन’ का पक्ष

  • संगठन ने भारत और पाकिस्तान के बीच एक बैठक की व्यवस्था करने की पेशकश की और साथ ही विदेश मंत्रियों की OCI परिषद के प्रस्तावों के अनुरूप जम्मू-कश्मीर में एक प्रतिनिधिमंडल भेजने का भी प्रस्ताव रखा है।
    • पश्चिम एशिया तथा सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात, बहरीन, कतर, इंडोनेशिया और बांग्लादेश सहित इस्लामी संगठन के विभिन्न प्रमुख देशों के साथ भारत के बेहतर संबंधों की पृष्ठभूमि में पाकिस्तान बार-बार ‘इस्लामिक सहयोग संगठन’ के मंच का प्रयोग कर कश्मीर मुद्दे को उठा रहा है।

भारत की प्रतिक्रिया

  • OIC को सावधान रहना चाहिये कि उसके मंच का प्रयोग भारत के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप करने या पक्षपातपूर्ण और एकतरफा प्रस्तावों के माध्यम से भारत विरोधी प्रचार को बढ़ावा देने के लिये न किया जाए।

भारत और OIC   

एक संगठन के रूप में OIC के साथ भारत के संबंध:

  • वर्ष 2018 में IOC के विदेशी मंत्रियों की बैठक (45वीं) में मेज़बान बांग्लादेश ने यह सुझाव दिया था कि भारत में भी 10% से ज़्यादा मुस्लिम आबादी है और इसलिये  भारत को भी इस संगठन में पर्यवेक्षक (Observer) के तौर पर शामिल कर लेना चाहिये लेकिन पाकिस्तान ने इसका विरोध किया।
  • वर्ष 2019 में भारत को IOC की इस बैठक के उद्घाटन सत्र में बतौर ‘गेस्ट ऑफ़ ऑनर’ आमंत्रित किया गया।
    •  पहली बार इस प्रकार के निमंत्रण को भारत के लिये एक कूटनीतिक जीत के रूप में देखा गया, विशेष रूप से ऐसे समय में जब पुलवामा हमले के बाद पाकिस्तान के साथ तनाव बढ़ गया था।

OIC द्वारा भारत की नीतियों की आलोचना :

  • इस्लामिक सहयोग संगठन (OIC) प्रायः कश्मीर के मुद्दे पर पाकिस्तान के रुख का समर्थन करता रहा है और संगठन द्वारा जम्मू-कश्मीर में कथित भारतीय ‘अत्याचार’ की आलोचना करते हुए कई बयान जारी किये गए हैं।
    • वर्ष 2018 में OIC के महासचिव ने जम्मू-कश्मीर में भारतीय कब्ज़े वाले कश्मीर में भारतीय सुरक्षा बलों द्वारा कथित निर्दोष कश्मीरियों की हत्या की कड़ी निंदा की थी।
    • महासचिव ने अपने बयान में ‘प्रदर्शनकारियों पर प्रत्यक्ष गोलीबारी’ को एक ‘आतंकवादी कृत्य’ के रूप में वर्णित किया था और ‘कश्मीर समस्या के उचित व स्थायी समाधान के लिये अंतर्राष्ट्रीय समुदाय से भूमिका निभाने का आह्वान किया था।
  • इस्लामिक सहयोग संगठन (OIC) ने नागरिकता (संशोधन) अधिनियम, 2019 और बाबरी मस्जिद विवाद पर सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय की भी आलोचना की है।
  • इसके अलावा संगठन ने भारत में ‘बढ़ते इस्लामोफोबिया’ को लेकर भी भारत सरकार की आलोचना की है।

भारत की प्रतिक्रिया:

  • भारत ने हमेशा यह सुनिश्चित किया है कि केंद्रशासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर सहित भारत के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप करने का OIC के पास कोई अधिकार नहीं है,  क्योंकि जम्मू-कश्मीर भारत का एक अभिन्न और अविभाज्य हिस्सा है।

OIC सदस्य देशों के साथ भारत के संबंध:

  • व्यक्तिगत रूप से भारत के लगभग सभी सदस्य देशों के साथ अच्छे संबंध हैं।
  • हाल के वर्षों में भारत ने UAE और सऊदी अरब के साथ संबंधों में विशेष रूप से उल्लेखनीय सुधार किया है।
    • अबू धाबी (UAE) के शहज़ादे (Crown Prince) वर्ष 2017 में 68वें गणतंत्र दिवस समारोह में विशेष मुख्य अतिथि थे।
  • OIC में भारत के दो करीबी पड़ोसी देश बांग्लादेश और मालदीव भी शामिल हैं।
    • भारतीय राजनयिकों का कहना है कि दोनों देश निजी तौर पर स्वीकार करते हैं कि वे कश्मीर पर भारत के साथ अपने द्विपक्षीय संबंधों को जटिल नहीं बनाना चाहते हैं।

स्रोत: द हिंदू


मंत्रिपरिषद

प्रिलिम्स के लिये:

अनुच्छेद 74, अनुच्छेद 75, अनुच्छेद 77, अनुच्छेद 78, अनुच्छेद 88, कैबिनेट मंत्री, राज्य मंत्री और उप मंत्री

मेन्स के लिये:  

मंत्रिपरिषद की कार्यप्रणाली

चर्चा में क्यों?

हाल ही में प्रधानमंत्री ने अपने मंत्रिपरिषद (Council Of Ministers-COM) का विस्तार तथा उसमें फेरबदल किया। प्रधानमंत्री की मंत्रिपरिषद में वर्तमान में 77 मंत्री हैं, जिनमें लगभग 50% मंत्री नए हैं।

प्रमुख बिंदु 

परिचय :

  • संविधान के अनुच्छेद 74 में मंत्रिपरिषद के गठन के बारे में उल्लेख किया गया है जबकि अनुच्छेद 75 मंत्रियों की नियुक्ति, उनके कार्यकाल, ज़िम्मेदारी, शपथ, योग्यता और मंत्रियों के वेतन एवं भत्ते से संबंधित है।
  •  मंत्रिपरिषद में मंत्रियों की तीन श्रेणियाँ होती हैं, अर्थात् कैबिनेट मंत्री, राज्य मंत्री और उप मंत्री। इन सभी मंत्रियों में  शीर्ष स्थान पर प्रधानमंत्री होता है।
    •  कैबिनेट मंत्री: ये केंद्र सरकार के महत्त्वपूर्ण मंत्रालयों जैसे-गृह, रक्षा, वित्त, विदेश मामलों आदि के प्रमुख होते हैं।
      • कैबिनेट केंद्र सरकार के महत्त्वपूर्ण मामलों में नीति निर्धारण निकाय है।
    •  राज्य मंत्री: इन्हें या तो मंत्रालयों/विभागों का स्वतंत्र प्रभार दिया जा सकता है या कैबिनेट मंत्रियों से संबद्ध किया जा सकता है।
    • उप मंत्री:  ये कैबिनेट मंत्रियों या राज्य मंत्रियों से संबंधित होते हैं तथा उनके प्रशासनिक, राजनीतिक और संसदीय कर्तव्यों में उनकी सहायता करते हैं।
  • कभी-कभी मंत्रिपरिषद में एक उप प्रधानमंत्री भी शामिल हो सकता है। उप प्रधानमंत्री की नियुक्ति अधिकतर राजनीतिक कारणों से की जाती है।

संवैधानिक प्रावधान:

  • अनुच्छेद 74 (राष्ट्रपति की सहायता और उसे सलाह देने के लिये मंत्रिपरिषद): मंत्रियों द्वारा राष्ट्रपति को दी गई सलाह की किसी भी अदालत में जाँच नहीं की जाएगी।
    • राष्ट्रपति को पुनर्विचार करने के लिये मंत्रिपरिषद की आवश्यकता हो सकती है और राष्ट्रपति पुनर्विचार के बाद दी गई सलाह के अनुसार कार्य करेगा।
  • अनुच्छेद 75 (मंत्रियों के रूप में अन्य प्रावधान): प्रधानमंत्री की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा की जाएगी और अन्य मंत्रियों की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा प्रधानमंत्री की सलाह पर की जाएगी।
    • मंत्रिपरिषद में प्रधानमंत्री सहित मंत्रियों की कुल संख्या लोकसभा की कुल संख्या के 15% से अधिक नहीं होनी चाहिये।
      • यह प्रावधान वर्ष 2003 के 91वें संविधान संशोधन अधिनियम द्वारा जोड़ा गया था।
    • मंत्रियों के लिये यह ज़रूरी है कि वे संसद के सदस्य हों, यदि संबंधित व्यक्ति संसद की सदस्यता के बिना मंत्री बनता है तो उसे छः महीने के भीतर संसद का सदस्य होना पड़ेगा, ऐसा न हो पाने की स्थिति में उसे अपना मंत्री पद छोड़ना पड़ेगा।
  • अनुच्छेद 77 (भारत सरकार के कार्यों का संचालन): राष्ट्रपति भारत सरकार के व्यवसाय को अधिक सुविधाजनक और मंत्रियों के बीच उक्त व्यवसाय के आवंटन के लिये नियम बनाएगा।
  • अनुच्छेद 78 (प्रधानमंत्री के कर्तव्य): मंत्रिपरिषद द्वारा लिये गए संघ के प्रशासन और कानून के प्रस्तावों से संबंधित सभी निर्णयों को राष्ट्रपति को सूचित करना।
  • अनुच्छेद 88 (सदनों के संबंध में मंत्रियों के अधिकार): प्रत्येक मंत्री को किसी भी सदन की कार्यवाही, सदनों की किसी भी संयुक्त बैठक और संसद की किसी भी समिति, जिसका वह सदस्य नामित किया जा सकता है, की कार्यवाही में बोलने तथा भाग लेने का अधिकार होगा लेकिन उसे वोट देने का अधिकार नहीं होगा।

मंत्रियों के उत्तरदायित्व:

  • सामूहिक उत्तरदायित्व:
    • अनुच्छेद 75 में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि मंत्रिपरिषद सामूहिक रूप से लोकसभा के प्रति उत्तरदायी है। इसका तात्पर्य यह है कि सभी मंत्री अपने सभी भूल और कार्यों के लिये लोकसभा के प्रति संयुक्त रुप से ज़िम्मेदार हैं।
  •  व्यक्तिगत उत्तरदायित्व:
    • अनुच्छेद 75 में व्यक्तिगत उत्तरदायित्व का सिद्धांत भी शामिल है। इसमें कहा गया है कि मंत्री राष्ट्रपति के प्रसादपर्यंत पद धारण करते हैं, जिसका अर्थ है कि राष्ट्रपति किसी मंत्री को ऐसे समय में भी हटा सकता है जब मंत्रिपरिषद को लोकसभा का विश्वास प्राप्त हो।
    • हालाँकि राष्ट्रपति किसी भी मंत्री को प्रधानमंत्री की सलाह पर ही हटाता है।

राज्यों में मंत्रिपरिषद:

  • अनुच्छेद 163 केंद्र में मंत्रिपरिषद के समान राज्यों में मंत्रिपरिषद के गठन और कार्यों का प्रावधान करता है (अनुच्छेद 163: राज्यपाल की सहायता और उसे सलाह देने के लिये COM) और अनुच्छेद 164: मंत्रियों के रूप में अन्य प्रावधान)।

स्रोत: द हिंदू


शनि ग्रह के चंद्रमाओं पर मीथेन

प्रिलिम्स के लिये:

शनि, मेथेनोजेन, मीथेन 

मेन्स के लिये: 

महत्त्वपूर्ण नहीं

चर्चा में क्यों?

राष्ट्रीय वैमानिकी एवं अंतरिक्ष प्रशासन (National Aeronautics and Space Administration- NASA) के कैसिनी अंतरिक्षयान द्वारा शनि ग्रह के चंद्रमाओं (टाइटन और एनसीलाडस) के पल्म से उड़ान के दौरान कार्बन डाइऑक्साइड एवं डाइहाइड्रोजन के साथ असामान्य रूप से मीथेन की उच्च सांद्रता की उपस्थिति दर्ज की गई।

  • यह पाया गया कि शनि (Titan) के वायुमंडल में मीथेन विद्यमान है और एनसीलाडस (Enceladus) के पास एक तरल महासागर है जिसमें गैस व पानी का प्रस्फुटन होता है।
  • एक अंतर्राष्ट्रीय शोध दल ने इस बात को समझने हेतु नए सांख्यिकीय तरीकों का इस्तेमाल किया है कि क्या सूक्ष्मजीवों द्वारा मीथेनोजेनेसिस या मीथेन उत्पादन (Methanogenesis or Methane Production) आणविक हाइड्रोजन और मीथेन की व्याख्या कर सकता है।

प्रमुख बिंदु:

शोध के परिणाम:

  • कैसिनी के प्लम (Plumes) पर बर्फ के कण, लवण, हाइड्रोजन और कार्बनिक अणु पाए गए, जो  एक महासागर की पुष्टि के अस्थायी संकेत है तथा जो संरचना में पृथ्वी के महासागरों के समान है।
  • एनसीलाडस के समुद्री तल पर क्षारीय हाइड्रोथर्मल छिद्रों (Alkaline Hydrothermal Vents) के साक्ष्य भी प्राप्त हुए हैं, जो पृथ्वी के महासागरों में मेथेनोजेन (Methanogens) के समान हैं।

मेथेनोजेन के विषय में:

  • ज्ञात हो कि पृथ्वी पर मौजूद अधिकांश मीथेन मूलतः जैविक रूप से उत्पन्न हुई है। मेथेनोजेन नामक सूक्ष्मजीव एक चयापचय उपोत्पाद के रूप में मीथेन उत्पन्न करने में सक्षम होते हैं।
  • इन्हें जीवित रहने के लिये ऑक्सीजन की आवश्यकता नहीं होती है और ये प्रकृति में व्यापक रूप से वितरित होते हैं।
  • ये दलदल, मृत कार्बनिक पदार्थों और यहाँ तक कि मानव आँत में भी पाए जाते हैं।
  • इन्हें उच्च तापमान में भी जीवित रहने के लिये जाना जाता है, कई अध्ययनों से यह पता चला है कि ये मंगल ग्रह की विशिष्ट परिस्थितियों में भी जीवित रह सकते हैं।
  • ग्लोबल वार्मिंग में मेथेनोजेन के योगदान को समझने के लिये भी इनका व्यापक अध्ययन किया गया है।

एनसीलाडस पर मेथेनोजेन की संभावना  :

  •  एनसीलाडस के कोर में मौजूद कार्बनिक पदार्थों के रासायनिक के टूटने से मीथेन का निर्माण हो सकता है।
  • हाइड्रोथर्मल प्रक्रियाएँ कार्बन डाइऑक्साइड और मीथेन के निर्माण में मदद कर सकती हैं। 
  • एनसीलाडस के हाइड्रोथर्मल वेंट पृथ्वी जैसे सूक्ष्मजीवों (मेथेनोजेन) के रहने योग्य हो सकते हैं।

शनि ग्रह 

  • शनि सूर्य से छठे स्थान पर स्थित ग्रह है तथा सौरमंडल का दूसरा सबसे बड़ा ग्रह है।
  • अन्य ग्रहों की तुलना में हज़ारों सुंदर छल्लों/रिंग से सुशोभित शनि अद्वितीय है। यह एकमात्र ऐसा ग्रह नहीं है जिसके छल्ले हैं जो बर्फ और चट्टान के टुकड़ों से बने हैं लेकिन कोई भी इतना आकर्षक या इतना जटिल नहीं है जितना कि शनि के रिंग हैं।
  •  गैस से बने विशाल बृहस्पति की तरह, शनि एक वृहद् गेंद के समान है जो ज़्यादातर हाइड्रोजन और हीलियम से बना है।
  • कुछ मिशनों ने शनि का दौरा किया है: पायनियर 11 ( Pioneer 11) तथा वोयाजर्स 1 तथा 2 (Voyagers 1 and 2) ने उड़ान भरी; लेकिन कैसिनी (Cassini) ने 2004 से 2017 तक 294 बार शनि की परिक्रमा की।

टाइटन

  • टाइटन (Titan) शनि का सबसे बड़ा उपग्रह है और हमारे सौरमंडल का दूसरा सबसे बड़ा उपग्रह है।
    • बृहस्पति का उपग्रह गैनीमेड (Ganymede) इससे बस थोड़ा बड़ा है।
  • इसकी सतह पर नदियाँ, झीलें और समुद्र हैं (हालाँकि इनमें पानी की जगह मीथेन तथा ईथेन जैसे हाइड्रोकार्बन होते हैं)।
  • टाइटन का वायुमंडल पृथ्वी की तरह ज़्यादातर नाइट्रोजन से बना है, लेकिन यह इससे चार गुना अधिक सघन है।
  • पृथ्वी के विपरीत इसमें बादल और मीथेन की वर्षा होती है।
  • चूँकि यह सूर्य से बहुत दूर है, इसलिये इसकी सतह का तापमान (-179 डिग्री सेल्सियस) है।

एनसीलाडस

  • एनसीलाडस (Enceladus) एक छोटा सा उपग्रह है जिसके बर्फीले भू-पटल के नीचे द्रव जल का महासागर है, जिसमें हाइड्रोजन अणुओं की प्रचुरता है। इसमें 98% गैस, जल के रूप में और 1% हाइड्रोजन तथा शेष कार्बन डाइऑक्साइड, मीथेन एवं अमोनिया के अणुओं के मिश्रण के रूप में पाई गई।
  • एनसीलाडस पर मौजूद अंडरवाटर वेंट (Vent) पृथ्वी के समुद्र तल पर मौजूद वेंट से मिलते- जुलते हैं, जहाँ रोगाणु और अन्य समुद्री जीवन होते हैं।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस