डेली न्यूज़ (09 Jun, 2021)



आई-फैमिलिया (I-Familia) : लापता व्यक्तियों की पहचान के लिये वैश्विक डेटाबेस

प्रिलिम्स के लिये 

आई-फैमिलिया (I-Familia) इंटरपोल, केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो, नेशनल सेंट्रल ब्यूरो, डीएनए

मेन्स के लिये 

आई-फैमिलिया (I-Familia) का संक्षिप्त परिचय, इसकी कार्यप्रणाली एवं महत्त्व, इंटरपोल का महत्त्व

चर्चा में क्यों?

हाल ही में इंटरपोल ने परिवार के डीएनए के माध्यम से लापता व्यक्तियों की पहचान करने और सदस्य देशों के जटिल मामलों को सुलझाने में पुलिस की मदद करने के लिये आई-फैमिलिया (I-Familia) नामक एक नया वैश्विक डेटाबेस लॉन्च किया है।

प्रमुख बिंदु 

I-Familia के बारे में :

  • I-Familia अंतर्राष्ट्रीय डीएनए (डीऑक्सीराइबोन्यूक्लिक एसिड) नातेदारी संबंधों  के आधार पर लापता व्यक्तियों की पहचान करने के लिये इस प्रकार का पहला वैश्विक डेटाबेस है।
  • डेटाबेस लापता व्यक्तियों या अज्ञात मानव अवशेषों को परिवार के सदस्यों के डीएनए नमूनों का उपयोग करके पहचान करता है , जबकि इसकी प्रत्यक्ष तुलना संभव नहीं है।
    • परिवार के सदस्यों को  अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर खोज के लिये अपने डेटा का उपयोग करने हेतु सहमति देनी होगी।
  • यह प्रयत्क्ष डीएनए मैचिंग में इंटरपोल की लंबे समय से किये जा रहे सफलतम प्रयास का परिणाम है।

कार्यकारी:

  • I-Familia के तीन घटक हैं: 
    • रिश्तेदारों द्वारा प्रदान किये गए डीएनए प्रोफाइल की पहचान करने के लिये एक समर्पित वैश्विक डेटाबेस है, जिसे किसी भी आपराधिक डेटा से अलग रखा गया है।
    • डीएनए मैचिंग सॉफ्टवेयर को बोनापार्ट (Bonaparte) कहा जाता है।
    • संभावित मैचिंग की रिपोर्ट और कुशलतापूर्वक पहचान करने के लिये इंटरपोल द्वारा व्याख्या दिशा-निर्देश जारी किये गए हैं।
  • मैचिंग की स्थिति के दौरान उन देशों को सूचनाएँ भेजी जाती हैं, जिन्होंने क्रमशः अज्ञात शरीर और परिवार से डीएनए प्रोफाइल को उपलब्ध कराया है।

महत्त्व :

  • बढ़ती अंतर्राष्ट्रीय यात्राएँ, संगठित अपराध और मानव तस्करी की व्यापकता, वैश्विक प्रवास में वृद्धि, संघर्ष तथा प्राकृतिक आपदाओं के कारण दुनिया भर में लापता व्यक्तियों और अज्ञात पीड़ितों की संख्या में वृद्धि से अंतर्राष्ट्रीय चिंताएँ बढ़ रही हैं।
  • सभी देशों में अनसुलझे (Unsolved) लापता व्यक्तियों के मामलों के साथ-साथ मानव अवशेष को भी जाँचा जाता हैं क्योंकि इन्हें अकेले उनकी राष्ट्रीय प्रणालियों का उपयोग करके पहचाना नहीं जा सकता है।

प्रत्यक्ष डीएनए मैचिंग बनाम नातेदारी डीएनए मैचिंग :

  • लापता व्यक्ति से एक प्रत्यक्ष डीएनए नमूना लिया जाता है, उदाहरणस्वरूप एक पूर्व चिकित्सा नमूना या एक व्यक्तिगत वस्तु जैसे टूथब्रश की तुलना किसी अज्ञात शरीर या मानव अवशेषों के डीएनए से की जा सकती है, इसका उपयोग एक मैचिंग विवरण प्राप्त करने के लिये किया जा सकता है। इस प्रकार की पहचान  वर्ष 2004 से इंटरपोल डीएनए डेटाबेस के माध्यम से की जा रही है।
  • जैविक रिश्तेदार अपने संबंधों के आधार पर अपने डीएनए का एक प्रतिशत साझा करते हैं। यदि प्रत्यक्ष मैचिंग के लिये लापता व्यक्ति से डीएनए नमूना प्राप्त नहीं किया जा सकता है, तो परिवार के करीबी सदस्यों (माता-पिता, बच्चों, भाई-बहनों) के डीएनए की भी तुलना की जा सकती है। यही वह प्रणाली  है जहाँ I-Familia एक अंतर स्थापित करती है।

इंटरपोल (Interpol)

  • अंतर्राष्ट्रीय आपराधिक पुलिस संगठन (इंटरपोल) एक अंतर-सरकारी संगठन है जो 194 सदस्य देशों के पुलिस बल के समन्वय में मदद करता है।
  • प्रत्येक सदस्य देश द्वारा एक इंटरपोल नेशनल सेंट्रल ब्यूरो (NCB) की मेज़बानी की जाती है। यह उनके राष्ट्रीय कानून प्रवर्तन को अन्य देशों और सामान्य सचिवालय से जोड़ता है।
  • इसका मुख्यालय फ्राँस के ल्यों (Lyon) में है।
  • इंटरपोल द्वारा जारी किया जाने वाला नोटिस सदस्य देशों में पुलिस को अपराध से संबंधित महत्त्वपूर्ण जानकारी साझा करने में सहयोग या अलर्ट (Alert) के लिये अंतर्राष्ट्रीय अनुरोध होता है।

Interpol-Notices

स्रोत: द हिंदू


तुर्की में 'सी स्‍नॉट' का प्रकोप

प्रिलिम्स के लिये 

सी ऑफ मरमारा, काला सागर, एजियन सागर, सी स्‍नॉट, विश्व महासागर दिवस

मेन्स के लिये

समुद्री प्रदूषण और इसका पारिस्थितिकी तंत्र पर प्रभाव

चर्चा में क्यों?

हाल ही में तुर्की के सी ऑफ मरमारा (Sea of Marmara), जो काला सागर (Black Sea) को एजियन सागर (Aegean Sea) से जोड़ता है, में 'सी स्‍नॉट' (Sea Snot) का सबसे बड़ा प्रकोप देखा गया है।

  • इस देश में पहली बार वर्ष 2007 में 'सी स्‍नॉट' का प्रकोप दर्ज किया गया था।

Istanbul

प्रमुख बिंदु

सी स्‍नॉट और उसका गठन:

  • यह समुद्री श्लेष्म (Marine Mucilage) है जो शैवालों में पोषक तत्त्वों की अति-प्रचुरता हो जाने पर निर्मित होती है।
  • शैवालों में पोषक तत्त्वों की अति-प्रचुरता ग्लोबल वार्मिंग, जल प्रदूषण आदि के कारण गर्म मौसम होने पर होती है।
  • यह एक चिपचिपा, भूरा और झागदार पदार्थ जैसा दिखता है।

चिंताएँ:

  • समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र के लिये खतरा:
    • इससे बड़े पैमाने पर जलीय जीवों जैसे- मछली, कोरल, स्पंज आदि की मृत्यु हुई है।
    • यह अब समुद्र की सतह के साथ-साथ सतह से 80-100 फीट नीचे भी फैल गया है जो और भी नीचे तक पहुँच सकता है तथा समुद्र तल को ढक सकता है।
  • मछुआरों की आजीविका प्रभावित:
    • मछुआरों के जाल में यह कीचड़ जमा हो जाता है, जिससे इनके जाल भारी होकर  टूट जाते हैं।
    • इसके अलावा कीचड़ वाला जाल मछलियों को दिखाई देता है जिससे वे दूर भागा जाती हैं।
  • पानी से जन्म लेने वाली बीमारियाँ:
    • यह इस्तांबुल जैसे शहरों में हैजा जैसी जल जनित बीमारियों के प्रकोप का कारण बन सकता है।

उठाए जा रहे कदम:

  • संपूर्ण मरमारा सागर को संरक्षित क्षेत्र में बदल दिया जाएगा।
  • इसके अलावा तटीय शहरों और जहाज़ों से होने वाले प्रदूषण को कम करने तथा अपशिष्ट जल-उपचार में सुधार हेतु कदम उठाए जा रहे हैं।
  • तुर्की का सबसे बड़ा समुद्री सफाई अभियान शुरू किया जा रहा है और स्थानीय निवासियों, कलाकारों तथा गैर-सरकारी संगठनों से इस अभियान में शामिल होने के लिये कहा गया है।

पोषक तत्त्व प्रदूषण

पोषक तत्त्व प्रदूषण के विषय में: 

  • यह वह प्रक्रिया है जिसमें बहुत सारे पोषक तत्त्व, मुख्य रूप से नाइट्रोजन और फास्फोरस, पानी के स्रोत में मिल जाते हैं, जिससे शैवालों की अत्यधिक वृद्धि होने लगती है।
  • इस प्रक्रिया को यूट्रोफिकेशन (Eutrophication) भी कहा जाता है।

पोषक तत्त्वों के स्रोत:

  • इनका जलसंभर में प्रमुख स्रोत चट्टानों और मिट्टी का अपक्षय है परंतु ये जल धाराओं के मिश्रण के कारण समुद्र से भी आ सकते हैं।
  • हमारे तटीय जल में अपशिष्ट जल उपचार सुविधाओं, वर्षा के दौरान शहरी क्षेत्रों में भूमि से अपवाह और खेती से अधिक पोषक तत्त्व प्रवेश कर रहे हैं।

प्रभाव:

  • शैवालों की अत्यधिक वृद्धि उस प्रकाश को अवरुद्ध कर देती है जो समुद्री घास जैसे- पौधों आदि के विकास के लिये आवश्यक होता है।
  • शैवाल और समुद्री घास मरने के बाद सड़ने लगते  हैं और इस प्रक्रिया में पानी में घुलित ऑक्सीजन का उपयोग किया जाता है जिससे पानी में घुलित ऑक्सीजन का स्तर कम होने लगता है। अतः कम ऑक्सीजन से मछली, कस्तूरी एवं अन्य जलीय जंतु मरने लगते हैं।

विश्व महासागर दिवस

  • 8 जून को पूरी दुनिया में विश्व महासागर दिवस (World Ocean Day) के रूप में मनाया गया। यह दिवस महासागरों के प्रति जागरूकता फैलाने के लिये मनाया जाता है।
    • इस दिवस को वर्ष 2008 में संयुक्त राष्ट्र महासभा (United Nations General Assembly) द्वारा नामित किया गया था।
    • महासागरों को पृथ्वी का फेफड़ा माना जाता है, जो जीवमंडल का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा है और भोजन तथा दवा का एक प्रमुख स्रोत है।
    • विश्व महासागर दिवस, 2021 की थीम 'द ओशन: लाइफ एंड लाइवलीहुड' (The Ocean: Life and Livelihood) है।
  • यह सतत् विकास के लिये महासागर विज्ञान का संयुक्त राष्ट्र दशक (UN Decade of Ocean Science for Sustainable Development) की अगुवाई में विशेष रूप से प्रासंगिक है, जो वर्ष 2021 से वर्ष 2030 तक चलेगा।
  • इस दशक का उद्देश्य वैज्ञानिक अनुसंधान और नवीन प्रौद्योगिकियों को विकसित करने के लिये अंतर्राष्ट्रीय सहयोग को मज़बूत करना है जो आधुनिक समाज की जरूरतों के साथ महासागर विज्ञान को जोड़ने में सक्षम हैं।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


स्वच्छ भारत मिशन ग्रामीण चरण- II

चर्चा में क्यों?

स्वच्छ भारत मिशन (ग्रामीण) [SBM (G)] चरण- II कोविड-19 महामारी की वजह से उत्पन्न चुनौतियों के बीच लगातार प्रगति कर रहा है, जिसमें 1249 गाँवों को ODF (खुले में शौच मुक्त) प्लस घोषित किया गया है।

  • SBM (G) चरण- II को फरवरी 2020 में जल शक्ति मंत्रालय द्वारा अनुमोदित किया गया था।

प्रमुख बिंदु

SBM (G) चरण- II के बारे में:

  • यह चरण I के तहत प्राप्त की गई उपलब्धियों की स्थिरता और ग्रामीण भारत में ठोस/तरल और प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन (SLWM) के लिये पर्याप्त सुविधाएँ प्रदान करने पर ज़ोर देता है।
  • कार्यान्वयन: स्वच्छ भारत मिशन (ग्रामीण) चरण- II को वर्ष 2020-21 से 2024-25 तक की अवधि के लिये 1,40,881 करोड़ रुपए के कुल परिव्यय के साथ एक मिशन के रूप में कार्यान्वित किया जाएगा।
  • फंडिंग पैटर्न और मानदंड: केंद्र और राज्यों के बीच सभी घटकों के लिये फंड शेयरिंग का अनुपात पूर्वोत्तर राज्यों, हिमालयी राज्यों और जम्मू एवं कश्मीर केंद्रशासित प्रदेश के लिये 90:10, अन्य राज्यों के लिये 60:40 और अन्य केंद्रशासित प्रदेशों के लिये 100 होगा।
    • SLWM के लिये निधिकरण मानदंडों को युक्तिसंगत बनाया गया है और परिवारों की संख्या के स्थान पर प्रति व्यक्ति आधार पर परिवर्तित किया गया है।
  • ठोस एवं तरल अपशिष्ट प्रबंधन की निगरानी निम्नलिखित चार संकेतकों के आधार पर की जाएगी-
    • प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन
    • जैव अपघटित ठोस अपशिष्ट प्रबंधन (जिसमें पशु अपशिष्ट प्रबंधन शामिल है)
    • धूसर जल प्रबंधन
    • मलयुक्त कीचड़ प्रबंधन
  • महत्त्व:
    • ठोस एवं तरल अपशिष्ट प्रबंधन के तहत बुनियादी ढाँचों जैसे कि खाद के गड्ढे, सोखने वाले गड्ढे, अपशिष्ट स्थिरीकरण तालाब, शोधन संयंत्र आदि का भी निर्माण किया जाएगा। स्वच्छ भारत मिशन (ग्रामीण) के इस चरण में घरेलू शौचालय एवं सामुदायिक शौचालयों के निर्माण के माध्यम से रोज़गार सृजन और ग्रामीण अर्थव्यवस्था को प्रोत्साहन प्रदान करना जारी रहेगा।
    • यह ग्रामीण भारत को ठोस और तरल अपशिष्ट प्रबंधन की चुनौती से प्रभावी ढंग से निपटने में मदद करेगा और देश में ग्रामीणों के स्वास्थ्य में पर्याप्त सुधार में मदद करेगा।

स्वच्छ भारत मिशन (जी) चरण- I:

  • भारत में 2 अक्तूबर, 2014 को स्वच्छ भारत मिशन (ग्रामीण) की शुरुआत के समय ग्रामीण स्वच्छता कवरेज 38.7 प्रतिशत दर्ज की गई थी।
  • इस मिशन के अंतर्गत 10 करोड़ से ज़्यादा व्यक्तिगत शौचालयों का निर्माण किया गया जिसके परिमाणस्वरूप सभी राज्यों के ग्रामीण क्षेत्रों ने स्वयं को 2 अक्तूबर, 2019 को ODF घोषित कर दिया।

SBM के हिस्से के रूप में अन्य योजनाएँ:

  • गोबर-धन (Galvanizing Organic Bio-Agro Resources Dhan- GOBAR-DHAN) योजना: इसे वर्ष 2018 में जल शक्ति मंत्रालय द्वारा लॉन्च किया गया था।
    • इस योजना का उद्देश्य गाँवों को स्वच्छ रखना, ग्रामीण घरों की आय बढ़ाना और मवेशियों द्वारा उत्पन्न कचरे से ऊर्जा का उत्पादन करना है।
  • व्यक्तिगत घरेलू शौचालय (IHHL): SBM के तहत लोगों को शौचालय निर्माण के लिये लगभग 15 हज़ार रुपए मिलते हैं।
  • स्वच्छ विद्यालय अभियान: शिक्षा मंत्रालय ने एक वर्ष के भीतर सभी सरकारी स्कूलों में लड़कों और लड़कियों के लिये अलग-अलग शौचालय उपलब्ध कराने के उद्देश्य से स्वच्छ भारत मिशन के तहत स्वच्छ विद्यालय कार्यक्रम शुरू किया।

आगे की राह

  • महामारी ने बड़े पैमाने पर इस देश के लोगों को व्यक्तिगत स्वास्थ्य और स्वच्छता के प्रति संवेदनशील बनाया है। स्वच्छ भारत मिशन के तहत लक्ष्यों को आगे बढ़ाने के लिये जागरूकता का प्रसार किया जाना चाहिये।
  • 15वें वित्त आयोग द्वारा जल और स्वच्छता क्षेत्रों के लिये किये गए वर्ष 2021-25 में 1.42 लाख करोड़ रुपए के ऐतिहासिक आवंटन को ग्राम पंचायतों के लिये गेम चेंजर कहा गया है।
  • 15वें वित्त आयोग द्वारा जल और स्वच्छता क्षेत्र के लिये वर्ष 2021-25 की समयावधि में 1.42 लाख करोड़ रुपए के ऐतिहासिक आवंटन की प्रशंसा की गई और इसे ग्राम पंचायतों के लिये गेम चेंजर बताया गया। 

स्रोत: पीआईबी


रक्षा क्षेत्र में हालिया सुधार

प्रिलिम्स के लिये:

चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ, रक्षा अधिग्रहण प्रक्रिया 2020, मेक इन इंडिया, रक्षा उपकरण निर्यातक देशों की सूची, राफेल लड़ाकू विमान, रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन, सीमा सड़क संगठन, अटल सुरंग, राष्ट्रीय कैडेट कॉर्प्स, वंदे भारत मिशन, INS ऐरावत, भारतीय तटरक्षक

मेन्स के लिये:

रक्षा क्षेत्र से संबंधित सुधार तथा उनका महत्त्व

चर्चा में क्यों?

हाल ही में रक्षा मंत्री ने ‘2020 में 20 सुधार’ (20 Reforms in 2020) नामक ई-पुस्तिका का विमोचन किया, जिसमें रक्षा मंत्रालय द्वारा वर्ष 2020 में किये गए प्रमुख सुधारों को रेखांकित किया गया है। 

प्रमुख बिंदु

चीफ ऑफ डिफेंस स्टॉफ और सैन्य मामलों का विभाग:

  • भारत के पहले चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ (CDS) की नियुक्ति और सैन्य मामलों के विभाग (Department of Military Affairs- DMA) का निर्माण सरकार द्वारा लिये गए बड़े फैसलों में शामिल थे। 
    • जनरल बिपिन रावत को पहला CDS नियुक्त किया गया जो DMA के सचिव की ज़िम्मेदारियों को भी पूरा करते हैं।
  • CDS के पद का सृजन सशस्त्र बलों के बीच दक्षता एवं समन्वय को बढ़ाने और दोहराव को कम करने के लिये किया गया था, जबकि DMA की स्थापना बेहतर नागरिक-सैन्य एकीकरण सुनिश्चित करने के उद्देश्य से की गई थी।

रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भरता:

  • रक्षा क्षेत्र में 'मेक इन इंडिया' को बढ़ावा देने के लिये अगस्त 2020 में 101 रक्षा मदों की सूची अधिसूचित की गई थी, जबकि सितंबर 2020 में रक्षा अधिग्रहण प्रक्रिया 2020 का अनावरण किया गया था।
  • 2020-21 में स्वदेश निर्मित रक्षा उपकरणों के लिये 52,000 करोड़ रुपए का बजट निर्धारित किया गया था। 

रक्षा निर्यात में वृद्धि

  • निजी क्षेत्र के साथ साझेदारी बढ़ने से रक्षा निर्यात में काफी वृद्धि हुई है। 
  • कुल रक्षा निर्यात का मूल्य वर्ष 2014-15 के 1,941 करोड़ रुपए से बढ़कर वर्ष 2019-20 में 9,116 करोड़ रुपए हो गया। इसके अलावा पहली बार भारत रक्षा उपकरण निर्यातक देशों की सूची में शामिल हुआ क्योंकि इसका रक्षा निर्यात 84 से अधिक देशों में विस्तारित हुआ है।

रक्षा अधिग्रहण

  • जुलाई 2020 में पहले पाँच राफेल लड़ाकू विमान भारत पहुँचे तथा इसके बाद कई और आए जिन्होंने भारतीय वायु सेना के शस्त्रागार की मारक क्षमता में बढ़ोतरी की।

रक्षा अनुसंधान एवं विकास में सुधार

  • युवाओं द्वारा नवाचार को बढ़ावा देने के लिये वर्ष 2020 में रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (Defence Research and Development Organisation- DRDO) की पाँच युवा वैज्ञानिक प्रयोगशालाओं को शुरू किया गया।
  • DRDO ने डिज़ाइन एवं विकास में निजी क्षेत्र के साथ हाथ मिलाया है और उद्योग के लिये डिज़ाइन, विकास तथा निर्माण हेतु 108 प्रणालियों/उपप्रणालियों की पहचान की है।

डिजिटल रूपांतरण

सीमा पर बुनियादी ढाँचे को मज़बूत करना

  • सीमा सड़क संगठन (Border Roads Organisation- BRO) के भीतर प्रक्रियाओं और कार्य प्रवाहों में सुधार से कुछ मामलों में निर्धारित समय से पहले लक्ष्य प्राप्त किया जा सका। 
  • लेह-मनाली राजमार्ग पर रोहतांग में 10,000 फीट से अधिक ऊँचाई पर विश्व की सबसे लंबी सुरंग ‘अटल सुरंग’ का उद्घाटन किया गया। 

सशस्त्र बलों में स्त्री शक्ति

  • भारतीय सेना के दस शाखाओं में शॉर्ट सर्विस कमीशन (Short Service Commission- SSC) महिला अधिकारियों को स्थायी कमीशन प्रदान कर दिया गया, जबकि भारतीय नौसेना में पहली बार महिला पायलटों की शुरुआत की गई। 
  • शैक्षणिक सत्र 2020-21 से सभी सैनिक स्कूल छात्राओं के लिये खोल दिये गए।

राष्ट्रीय कैडेट कॉर्प्स (NCC) में सुधार

कोविड-19 के दौरान नागरिक प्रशासन को सहायता

  • रक्षा मंत्रालय और सशस्त्र बलों ने कोविड-19 के खिलाफ लड़ाई में नागरिक प्रशासन की सहायता के लिये संसाधन जुटाए हैं। 
  • DRDO ने राज्यों में कोविड रोगियों के इलाज के लिये कई अस्पतालों की स्थापना की है, निजी क्षेत्र को बड़े पैमाने पर वेंटिलेटर, ऑक्सीजन संयंत्र, दवाएँ, परीक्षण किट और पीपीई किट के निर्माण के लिये प्रौद्योगिकी संबंधी अनुभव प्रदान किया है।

सीमाओं से परे मदद

  • सशस्त्र बलों ने संकट में पड़ने वाले देशों को मदद का हाथ बढ़ाया। भारतीय नौसेना ने 2020-21 के दौरान आठ राहत मिशन शुरू किये। 
  • वंदे भारत मिशन (Vande Bharat Mission) के तहत ईरान, श्रीलंका और मालदीव से फंसे भारतीयों को निकालने के अलावा भारतीय नौसेना के जहाज़ों ने पाँच देशों को दवाओं और डॉक्टरों सहित सहित 19 चिकित्सा राहत प्रदान की। 
  • INS ऐरावत ने प्राकृतिक आपदाओं से सूडान, जिबूती और इरिट्रिया को 270 मीट्रिक टन भोजन संबंधी सहायता प्रदान की। 
  • भारतीय तटरक्षक (Indian Coast Guard- ICG) ने श्रीलंका के तट को बड़े तेल रिसाव से बचाने के लिये बचाव अभियान का नेतृत्व किया।

स्रोत: पी.आई.बी.


विश्व खाद्य सुरक्षा दिवस

चर्चा में क्यों?

केंद्रीय स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्री ने भारतीय खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण (FSSAI) द्वारा आयोजित विश्व खाद्य सुरक्षा दिवस (7 जून) समारोह में वर्चुअल माध्यम से भाग लिया।

प्रमुख बिंदु:

  • विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) और संयुक्त राष्ट्र का खाद्य और कृषि संगठन (FAO) संयुक्त रूप से सदस्य राज्यों और अन्य संबंधित संगठनों के सहयोग से विश्व खाद्य सुरक्षा दिवस के पालन की सुविधा प्रदान करते हैं।
  • यह पहली बार वर्ष 2019 में "द फ्यूचर ऑफ फूड सेफ्टी" के तहत अदीस अबाबा सम्मेलन और जिनेवा फोरम द्वारा 2019 में की गई खाद्य सुरक्षा को बढ़ाने की प्रतिबद्धता को मज़बूत करने के लिये मनाया गया था।

लक्ष्य:

  • खाद्य सुरक्षा, मानव स्वास्थ्य, आर्थिक समृद्धि, कृषि, बाज़ार पहुँच, पर्यटन और सतत् विकास में योगदान करने, खाद्य जनित जोखिमों को रोकने, पता लगाने तथा प्रबंधित करने में मदद हेतु ध्यान आकर्षित करने और कार्रवाई को प्रेरित करने हेतु।

2021 की थीम:

  • स्वस्थ कल के लिये सुरक्षित भोजन।

खाद्य सुरक्षा का महत्त्व:

  • पर्याप्त मात्रा में सुरक्षित भोजन तक पहुँच जीवन को बनाए रखने और अच्छे स्वास्थ्य को बढ़ावा देने की कुंजी है।
    • खाद्य जनित बीमारियाँ आमतौर पर प्रकृति में संक्रामक या विषाक्त होती हैं और अक्सर साधारणतः आँखों से अदृश्य होती हैं, जो दूषित भोजन या पानी के माध्यम से शरीर में प्रवेश करने वाले बैक्टीरिया, वायरस, परजीवी या रासायनिक पदार्थों के कारण होती हैं।
    • दुनिया भर में अनुमानित 4,20,000 लोग हर साल दूषित भोजन खाने से मर जाते हैं और 5 साल से कम उम्र के बच्चे खाद्य जनित बीमारी के बोझ का 40% वहन करते हैं, जिससे हर वर्ष 1,25, 000 मौतें होती हैं।
  • खाद्य सुरक्षा की यह सुनिश्चित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका है कि खाद्य शृंखला के हर चरण में उत्पादन से लेकर कटाई, प्रसंस्करण, भंडारण, वितरण, तैयारी और उपभोग तक सभी तरह से भोजन सुरक्षित रहता है।
    • ग्लोबल वार्मिंग में योगदान करने वाले वैश्विक ग्रीनहाउस-गैस उत्सर्जन के 30% तक के लिये खाद्य उत्पादन ज़िम्मेदार है।
    • वैश्विक खाद्य अपशिष्ट वैश्विक ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन का 6.7% है, जो सीधे तौर पर जलवायु परिवर्तन का कारण बनता है।

संबंधित वैश्विक पहल:

  • कोडेक्स एलिमेंटेरियस, या "फूड कोड" कोडेक्स एलिमेंटेरियस कमीशन द्वारा अपनाए गए मानकों, दिशा-निर्देशों और अभ्यास के कोड का एक संग्रह है।
  • कोडेक्स एलिमेंटेरियस कमीशन खाद्य और कृषि संगठन और विश्व स्वास्थ्य संगठन का एक संयुक्त अंतर-सरकारी निकाय है।
    • वर्तमान में इसके 189 सदस्य हैं और भारत इसका सदस्य है।

खाद्य सुरक्षा के लिये भारतीय पहल:

  • राज्य खाद्य सुरक्षा सूचकांक:
    • FSSAI ने खाद्य सुरक्षा के पाँच मापदंडों पर राज्यों के प्रदर्शन को मापने के लिये राज्य खाद्य सुरक्षा सूचकांक (SFSI) विकसित किया है।
    • मापदंडों में मानव संसाधन और संस्थागत व्यवस्था, अनुपालन, खाद्य परीक्षण- बुनियादी ढाँचे और निगरानी, ​​​​प्रशिक्षण तथा क्षमता निर्माण एवं उपभोक्ता अधिकारिता शामिल हैं।
  • ‘ईट राइट इंडिया’ मूवमेंट:
    • यह सभी भारतीयों के लिये सुरक्षित, स्वस्थ और टिकाऊ भोजन सुनिश्चित करने हेतु देश की खाद्य प्रणाली को बदलने के लिये भारत सरकार और FSSAI की एक पहल है।
    • ईट राइट इंडिया राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति 2017 से जुड़ा हुआ है, जिसमें आयुष्मान भारत, पोषण अभियान, एनीमिया मुक्त भारत और स्वच्छ भारत मिशन जैसे प्रमुख कार्यक्रमों पर ध्यान केंद्रित किया गया है।
  • ईट राइट अवार्ड्स:
    • FSSAI ने नागरिकों को सुरक्षित और स्वस्थ भोजन विकल्प चुनने के लिये खाद्य कंपनियों तथा व्यक्तियों के योगदान को मान्यता देने हेतु 'ईट राइट अवार्ड्स' की स्थापना की है, जो उनके स्वास्थ्य और कल्याण को बेहतर बनाने में मदद करेगा।
  • ईट राइट मेला:
    • FSSAI द्वारा आयोजित यह नागरिकों को सही खाने हेतु प्रेरित करने के लिये एक आउटरीच गतिविधि है। यह विभिन्न प्रकार के भोजन के स्वास्थ्य और पोषण लाभों के बारे में नागरिकों को जागरूक करने के लिये आयोजित किया जाता है।

भारतीय खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण:

परिचय

  • FSSAI खाद्य सुरक्षा और मानक अधिनियम, 2006 (FSS अधिनियम) के तहत स्थापित एक स्वायत्त वैधानिक निकाय है।
  • इसका मुख्यालय दिल्ली में है तथा इसका प्रशासनिक मंत्रालय स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय है।

कार्य:

  • खाद्य सुरक्षा के मानकों और दिशा-निर्देशों को निर्धारित करने हेतु नियम-कानून बनाना।
  • खाद्य व्यवसायों के लिये FSSAI खाद्य सुरक्षा लाइसेंस और प्रमाणन प्रदान करना।
  • खाद्य व्यवसायों में प्रयोगशालाओं के लिये प्रक्रिया और दिशा-निर्देश निर्धारित करना।
  • नीतियाँ बनाने में सरकार को सुझाव देना।
  • खाद्य उत्पादों में संदूषकों के संबंध में डेटा एकत्र करना, उभरते जोखिमों की पहचान करना और एक त्वरित चेतावनी प्रणाली की शुरूआत करना।
  • खाद्य सुरक्षा के बारे में देश भर में एक सूचना नेटवर्क बनाना।

स्रोत-पीआईबी


‘वैश्विक न्यूनतम कॉर्पोरेट कर दर’ व्यवस्था

प्रिलिम्स के लिये

G7, G20, ‘वैश्विक न्यूनतम कॉर्पोरेट कर दर’ समझौता

मेन्स के लिये

‘वैश्विक न्यूनतम कॉर्पोरेट कर दर’ व्यवस्था की आवश्यकता और इससे संबंधित चुनौतियाँ, इस संबंध में भारत का पक्ष

चर्चा में क्यों?

हाल ही में सात (G7) देशों के समूह के वित्त मंत्रियों ने ‘वैश्विक न्यूनतम कॉर्पोरेट कर दर’ (GMCTR) की स्थापना करते हुए एक ऐतिहासिक समझौते को अंतिम रूप दिया है।

  • यह समझौता भविष्य में एक विश्वव्यापी सौदे का आधार बन सकता है। जुलाई 2020 में G20 देशों के वित्त मंत्रियों और केंद्रीय बैंक के गवर्नरों की बैठक में समझौते पर विस्तार से चर्चा की जाएगी।
  • इसके अलावा G7 देशों ने विभिन्न कंपनियों को अपने पर्यावरणीय प्रभाव को अधिक मानकीकृत तरीके से घोषित करने की दिशा में आगे बढ़ने हेतु भी सहमति व्यक्त की, ताकि निवेशक आसानी से निर्णय ले सकें कि किस कंपनी को फंड प्रदान करना है।

ग्रुप ऑफ सेवन (G7)

  • यह एक अंतर-सरकारी संगठन है, जिसका गठन वर्ष 1975 में किया गया था।
  • वैश्विक आर्थिक शासन, अंतर्राष्ट्रीय सुरक्षा और ऊर्जा नीति जैसे सामान्य हित के मुद्दों पर चर्चा करने के लिये प्रतिवर्ष G7 ब्लॉक की बैठक आयोजित की जाती है।
  • G7 देशों में ब्रिटेन, कनाडा, फ्रांँस, जर्मनी, इटली, जापान और अमेरिका शामिल हैं।
    • सभी G7 देश और भारत G20 का हिस्सा हैं।
  • G7 का कोई औपचारिक संविधान या कोई निश्चित मुख्यालय नहीं है। वार्षिक शिखर सम्मेलन के दौरान प्रतिनिधियों द्वारा लिये गए निर्णय गैर-बाध्यकारी होते हैं।

प्रमुख बिंदु

वैश्विक न्यूनतम कॉर्पोरेट कर दर

  • परिचय
    • समझौते के मुताबिक, G7 देश कम-से-कम 15 प्रतिशत की वैश्विक न्यूनतम कॉर्पोरेट कर दर का समर्थन करेंगे और उन देशों में करों का भुगतान सुनिश्चित करने के लिये उपाय किये जाएंगे, जहाँ व्यवसाय संचालित होते हैं।
      • कॉर्पोरेट कर अथवा निगम कर उस शुद्ध आय या लाभ पर लगाया जाने वाला प्रत्यक्ष कर है, जो उद्यम अपने व्यवसायों से लाभ कमाते हैं।
  • प्रयोज्यता
    • यह कंपनियों के विदेशी लाभ पर लागू होगा। ऐसे में यदि सभी देश वैश्विक न्यूनतम कॉर्पोरेट कर पर सहमत होते हैं, तब भी सरकारों द्वारा स्थानीय कॉर्पोरेट कर की दर स्वयं ही निर्धारित की जाएगी।
    • किंतु यदि कंपनियाँ किसी विशिष्ट देश में कम दरों का भुगतान करती हैं, तो उनकी घरेलू सरकारें अपने करों को सहमत न्यूनतम दर पर ला सकती हैं, जिससे लाभ को टैक्स हेवन में स्थानांतरित करने का लाभ समाप्त हो जाता है।
      • ‘टैक्स हेवन’ का आशय आमतौर पर एक ऐसे देश से होता है, जो राजनीतिक और आर्थिक रूप से स्थिर वातावरण में विदेशी व्यक्तियों तथा व्यवसायों को बहुत कम या न्यूनतम कर देयता प्रदान करता है।

‘वैश्विक न्यूनतम कॉर्पोरेट कर दर’ की आवश्यकता

  • कर नुकसान की कमी
    • कई देशों में अमूर्त स्रोतों जैसे कि दवा पेटेंट, सॉफ्टवेयर और बौद्धिक संपदा पर रॉयल्टी से प्राप्त आय लगातार ‘टैक्स हेवन’ की ओर हस्तांतरित हो रही है, जिससे कंपनियों को अपने पारंपरिक घरेलू देशों में उच्च करों का भुगतान नहीं करना पड़ता है।
    • ये कंपनियाँ प्रायः प्रमुख बाज़ारों से कम कर वाले देशों जैसे आयरलैंड या कैरेबियाई देशों जैसे ब्रिटिश वर्जिन द्वीप समूह या बहामा अथवा पनामा जैसे मध्य अमेरिकी देशों में अपने लाभ को बढ़ाने के लिये सहायक कंपनियों के जटिल वेब पर निर्भर रहती हैं।
    • कॉरपोरेट कर के दुरुपयोग के कारण भारत को प्रतिवर्ष 10 बिलियन अमेरिकी डॉलर का नुकसान होता है।
  • कर एकरूपता
    • ‘वैश्विक न्यूनतम कॉर्पोरेट कर दर’ दशकों से चली आ रही प्रतिस्पर्द्धा को समाप्त  कर देगा, जिसके तहत विभिन्न देशों द्वारा बड़ी कॉरपोरेट कंपनियों को कर दरों में छूट देकर आकर्षित करने की प्रतिस्पर्द्धा की जा रही है।

चुनौतियाँ

  • विभिन्न देशों को एकजुट करना
    • इस व्यवस्था के समक्ष सबसे बड़ी चुनौती प्रमुख राष्ट्रों को एक साथ एक ही मंच पर लाना है, क्योंकि ‘वैश्विक न्यूनतम कॉर्पोरेट कर दर’ किसी राष्ट्र की कर नीति तय करने के लिये उसके संप्रभु अधिकार को प्रभावित करती है।
  • नीतिगत मुद्दे
    • विभिन्न देशों द्वारा कॉर्पोरेट कर का उपयोग अपनी नीतियों को प्रोत्साहित करने के लिये एक उपकरण के तौर पर किया जाता है और ‘वैश्विक न्यूनतम कॉर्पोरेट कर’ व्यवस्था के कारण यह उपकरण समाप्त हो जाएगा।
    • कम कर दर का उपयोग एक उपकरण के तौर पर वैकल्पिक रूप से आर्थिक गतिविधि को आगे बढ़ाने हेतु किया जाता है। साथ ही वैश्विक न्यूनतम कर दर व्यवस्था, कर चोरी से निपटने में सक्षम नहीं होगी।

अन्य अंतर्राष्ट्रीय प्रयास:

  • आर्थिक सहयोग एवं विकास संगठन (OECD) सीमा पार डिजिटल सेवाओं पर कर लगाने और वैश्विक कॉर्पोरेट न्यूनतम कर सहित कर आधार क्षरण (Base Erosion) को रोकने के नियमों पर 140 देशों के बीच कर वार्ता का समन्वयन कर रहा है।

भारत का पक्ष

  • यद्यपि कराधान अंततः एक संप्रभु गतिविधि है और राष्ट्र की आवश्यकताओं और परिस्थितियों पर निर्भर करती है, किंतु भारत सरकार कॉर्पोरेट कर संरचना को लेकर विश्व स्तर पर हो रही वार्ताओं में हिस्सा लेने पर सहमत है।
  • भारत को वैश्विक न्यूनतम 15 प्रतिशत कॉर्पोरेट कर दर समझौते से लाभ होने की संभावना है, क्योंकि भारत की प्रभावी घरेलू कर दर, 15 प्रतिशत की न्यूनतम सीमा से अधिक है, और इस तरह भारत अधिक निवेश आकर्षित करता रहेगा।
    • सितंबर 2019 में सरकार ने कंपनियों के लिये कॉर्पोरेट कर की दर को घटाकर 22 प्रतिशत कर दिया था। इसके अलावा नई विनिर्माण फर्मों के लिये 15 प्रतिशत की दर की पेशकश की गई थी।
    • भारतीय घरेलू कंपनियों के लिये प्रभावी कर दर, अधिभार और उपकर सहित, लगभग 25.17 प्रतिशत है। 

आगे की राह

  • जुलाई 2021 में वेनिस में होने वाली G20 बैठक में G7 समझौते पर दुनिया के सबसे बड़े विकसित और विकासशील देशों के बीच व्यापक चर्चा की जाएगी।
  • अभी भी बहुत कुछ तय करने की आवश्यकता है, जिसमें वह मेट्रिक्स भी शामिल है जो यह निर्धारित करेगा कि कर कैसे और किन बहुराष्ट्रीय कंपनियों पर लागू किया जाएगा।
  • इस व्यवस्था में डिजिटल सेवा कर सहित विभिन्न नए अंतर्राष्ट्रीय कर नियमों को लागू करने के बीच उचित समन्वय स्थापित किया जाना चाहिये। किसी भी अंतिम समझौते का कम कर वाले देशों और टैक्स हेवन पर बहुत अधिक प्रभाव होगा।

स्रोत: द हिंदू


मॉडल पंचायत नागरिक घोषणापत्र

प्रिलिम्स के लिये:

नागरिक घोषणापत्र, ई-ग्रामस्वराज, राष्ट्रीय ग्राम स्वराज अभियान, सबकी योजना सबका विकास

मेन्स के लिये:

नागरिक घोषणापत्र इसके लाभ और भारत में चुनौतियाँ, पंचायती राज संस्थाओं (PRIs) के लिये की गई पहलें

चर्चा में क्यों?

हाल ही में केंद्रीय पंचायती राज मंत्री ने एक मॉडल पंचायत नागरिक घोषणापत्र (Model Panchayat Citizens Charter) जारी किया।

प्रमुख बिंदु:

इसके संदर्भ में:

  • इसे पंचायती राज मंत्रालय (MoPR) द्वारा राष्ट्रीय ग्रामीण विकास और पंचायती राज संस्थान (National Institute of Rural Development & Panchayati Raj- NIRDPR) के सहयोग से तैयार किया गया है।
    • NIRDPR, केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्रालय के तहत एक स्वायत्त संगठन है।
  • इसे सतत् विकास लक्ष्यों (SDGs) के साथ कार्यों को संरेखित करते हुए, 29 क्षेत्रों में सेवाओं के वितरण के हेतु विकसित किया गया है। 
  • यह आशा है कि पंचायतें इस रूपरेखा का उपयोग करते हुए और ग्राम सभा के यथोचित अनुमोदन से एक नागरिक घोषणापत्र बनाएंगी जिसमें पंचायत द्वारा नागिरकों को प्रदान की जाने वाली सेवाओं की विभिन्न श्रेणियों, ऐसी सेवाओं के लिये शर्तों और ऐसी सेवाओं की समय-सीमा का विस्तृत ब्यौरा होगा।
  • यह घोषणापत्र जहाँ एक ओर नागरिकों को उनके अधिकारों के बारे में जागरूक करेगा वहीं दूसरी ओर पंचायतों एवं उनके चुने हुए प्रतिनिधियों को लोगों के प्रति सीधे जवाबदेह बनाएगा। 

लाभ:

  • पंचायती राज संस्थान, ग्रामीण क्षेत्रों में सरकार का तीसरा स्तर है और भारतीय जनता के 60 प्रतिशत से अधिक के लिये सरकार के साथ संपर्क का प्रथम स्तर है।
  • पंचायतें भारतीय संविधान के अनुच्छेद 243(G) में यथा विहित बुनियादी सेवाओं विशेषकर स्वास्थ्य एवं स्वच्छता, शिक्षा, पोषण, पेयजल की सुपुर्दगी के लिये उत्तरदायी हैं।

पंचायती राज संस्थाओं (PRIs) के लिये अन्य पहलें:

  • ई-ग्रामस्वराज (eGramSwaraj):
    • यह यूजर फ्रेंडली वेब-आधारित पोर्टल है जो ग्राम पंचायतों के नियोजन, लेखा और निगरानी कार्यों को एकीकृत करता है।
  • राष्ट्रीय ग्राम स्वराज अभियान (Rashtriya Gram Swaraj Abhiyan- RGSA):
    • वर्ष 2018 में शुरू की गई, यह केंद्र प्रायोजित योजना "सबका साथ, सबका गाँव, सबका विकास" को प्राप्त करने की दिशा में एक प्रयास है।
  • जन योजना अभियान (PPC)- सबकी योजना सबका विकास (People’s Plan Campaign: PPC- Sabki Yojana Sabka Vikas):
    • इसका उद्देश्य देश में ग्राम पंचायत विकास योजनाएँ (GPDPs) तैयार करना और उन्हें एक वेबसाइट पर बनाए रखना है जहाँ कोई भी व्यक्ति सरकार की विभिन्न प्रमुख योजनाओं की स्थिति से अवगत हो सकता है।

 नागरिक घोषणापत्र (Citizen’s Charter):

इसके संदर्भ में:

  • यह एक स्वैच्छिक और लिखित दस्तावेज़ है जो सेवा प्रदाता के नागरिकों/ग्राहकों की ज़रूरतों को पूरा करने की प्रतिबद्धता पर ध्यान केंद्रित करने के लिये किये गए प्रयासों को संदर्भित करता है। 
    • यह सेवा प्रदाता और नागरिकों/उपयोगकर्त्ताओं के बीच विश्वास को बरकरार रखता है।
    • इसमें वह सामग्री शामिल है जिसके लिये नागरिक, किसी सेवा प्रदाता से आशा कर सकते हैं।
    • इसमें यह प्रक्रिया भी शामिल है कि नागरिक किसी भी शिकायत का निवारण कैसे कर सकते हैं।
  • इस अवधारणा को पहली बार वर्ष 1991 में यूनाइटेड किंगडम में जॉन मेजर की कंजर्वेटिव सरकार द्वारा एक राष्ट्रीय कार्यक्रम के रूप में व्यक्त और कार्यान्वित किया गया था।
  • नागरिक घोषणा-पत्र कानूनी रूप से लागू करने योग्य दस्तावेज़ नहीं हैं। ये केवल नागरिकों को सेवा वितरण बढ़ाने के लिये दिशा-निर्देश देते  हैं।

इसके अनुसार घोषणापत्र में निम्नलिखित बिंदु सम्मिलित होने चाहिये::

  • गुणवत्ता- सेवाओं की गुणवत्ता में सुधार
  • विकल्प- जहाँ भी संभव हो उपयोगकर्त्ताओं के लिये
  • मानक- यह निर्दिष्ट करना कि एक समय सीमा के भीतर क्या उम्मीद की जाए
  • मूल्य- करदाताओं के धन के लिये
  • जवाबदेही- सेवा प्रदाताओं (व्यक्ति के साथ-साथ संगठन) के लिये
  • पारदर्शिता- नियमों, प्रक्रियाओं, योजनाओं और शिकायत निवारण में होनी चाहिये

भारतीय पहल:

  • भारत में नागरिक घोषणा-पत्र की अवधारणा को पहली बार मई 1997 में आयोजित 'विभिन्न राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों के मुख्यमंत्रियों के सम्मेलन' में अपनाया गया था।
    • सम्मेलन का एक प्रमुख परिणाम केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा नागरिक घोषणा-पत्र तैयार करने का निर्णय था, जिसकी शुरुआत रेलवे, दूरसंचार, पोस्ट, सार्वजनिक वितरण प्रणाली आदि जैसे बड़े सार्वजनिक इंटरफेस वाले क्षेत्रों से हुई थी।
    • नागरिक घोषणा-पत्र के समन्वय, निर्माण और संचालन का कार्य प्रशासनिक सुधार और लोक शिकायत विभाग (Department of Administrative Reforms and Public Grievances- DARPG) द्वारा किया गया था।
  • वस्तुओं एवं सेवाओं के समयबद्ध वितरण और उनकी शिकायतों के निवारण के लिये नागरिकों का अधिकार विधेयक, 2011 (नागरिक घोषणा-पत्र) दिसंबर 2011 में लोकसभा में पेश किया गया था।
    • परंतु वर्ष 2014 में लोकसभा भंग होने के कारण यह समाप्त हो गया।

आवश्यकता:

  • प्रशासन को जवाबदेह और नागरिक हितैषी बनाने के लिये।
  • पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिये।
  • ग्राहक सेवा में सुधार के उपाय करने के लिये।
  • हितधारक दृष्टिकोण अपनाने के लिये।
  • प्रशासन और नागरिक दोनों के लिये समय बचाने के लिये।

भारत में चुनौतियाँ:

  • अधिकांश मामलों में इसे अत्याधुनिक कर्मचारियों के परामर्श प्रक्रिया के अभाव में तैयार किया गया जो अंततः इसे लागू करेंगे।
  • इसमें सार्थक और संक्षिप्त नागरिक घोषणा-पत्र तथा महत्त्वपूर्ण जानकारी का अभाव है।
  • केवल कुछ प्रतिशत अंतिम उपयोगकर्त्ता ही नागरिक घोषणा-पत्र में की गई प्रतिबद्धताओं से अवगत हैं।
  • सेवा वितरण के मापने योग्य मानकों को शायद ही कभी परिभाषित किया जाता है जिससे यह आकलन करना मुश्किल हो जाता है कि वांछित स्तर की सेवा हासिल की गई है या नहीं।
  • संगठनों द्वारा अपने नागरिक घोषणा-पत्र का पालन करने में बहुत कम दिलचस्पी दिखाई गई क्योंकि संगठन के चूक करने पर नागरिक को क्षतिपूर्ति करने के लिये कोई नागरिक अनुकूल तंत्र नहीं है।
  • नागरिक घोषणा-पत्र को अभी भी सभी मंत्रालयों/विभागों द्वारा नहीं अपनाया गया है। इसके अलावा इसमें स्थानीय मुद्दों की अनदेखी की जाती है।

आगे की राह:

  • एक नागरिक घोषणा-पत्र अपने आप में एक अंत नहीं हो सकता है, बल्कि यह एक अंत का एक साधन है - यह सुनिश्चित करने के लिये एक उपकरण है कि नागरिक किसी भी सेवा संबंधी वितरण तंत्र के केंद्र में हमेशा रहता है।
  • सर्वोत्तम अभ्यास मॉडल जैसे कि सेवोत्तम मॉडल (एक सेवा वितरण उत्कृष्टता मॉडल) से आकर्षित होकर CC को अधिक नागरिक केंद्रित बनने में मदद मिल सकती है।

स्रोत: पी.आई.बी.