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महत्त्वपूर्ण संस्थान/संगठन


शासन व्यवस्था

अधिकरण

  • 06 Jun 2020
  • 23 min read

 Last Updated: July 2022 

अधिकरण या ट्रिब्यूनल एक अर्द्ध-न्यायिक संस्था (Quasi-Judicial Institution) है जिसे प्रशासनिक या कर-संबंधी विवादों को हल करने के लिये स्थापित किया जाता है। यह विवादों के अधिनिर्णयन, संघर्षरत पक्षों के बीच अधिकारों के निर्धारण, प्रशासनिक निर्णयन, किसी विद्यमान प्रशासनिक निर्णय की समीक्षा जैसे विभिन्न कार्यों का निष्पादन करती है।

  • 'ट्रिब्यूनल' (Tribunal) शब्द 'ट्रिब्यून' (Tribunes) शब्द से व्युत्पन्न हुआ है जो रोमन राजशाही और गणराज्य के अंतर्गत एक अधिकारी था जो कुलीन मजिस्ट्रेटों की मनमानी कार्रवाई से नागरिकों की सुरक्षा करता था।
  • सामान्य रूप से ट्रिब्यूनल का आशय ऐसे व्यक्ति या संस्था से है जिसके पास दावों व विवादों पर निर्णयन, अधिनिर्णयन या निर्धारण का प्राधिकार होता है, भले इसके नामकरण में ट्रिब्यूनल शब्द शामिल हो या नहीं। 

अधिकरण की आवश्यकता क्यों?

  • विभिन्न न्यायालयों में लंबित मामलों की बड़ी संख्या से निपटने के लिये विभिन्न विधानों के तहत घरेलू अधिकरणों और अन्य अधिकरणों की स्थापना की जाती है।
  • न्यायालयों के कार्यभार को कम करने, निर्णयन में तेज़ी लाने और एक ऐसे मंच का निर्माण करने हेतु जहाँ अधिवक्ताओं और विशेषज्ञों की सेवाओं का लाभ उठाया जा सके।      
  • अधिकरण न्याय तंत्र में एक महत्त्वपूर्ण और विशिष्ट भूमिका निभाते हैं। वे लंबित मामलों के बोझ से दबे न्यायालयों के बोझ को कम करने हेतु पर्यावरण, सशस्त्र बलों, कराधान और प्रशासनिक मुद्दों से संबंधित विवादों की सुनवाई करते हैं।

संवैधानिक प्रावधान

Metropolitan-Level

  • अधिकरण संबंधी प्रावधान मूल संविधान में नहीं थे; इन्हें भारतीय संविधान में 42वें संशोधन अधिनियम, 1976 द्वारा शामिल किया गया।      
    • अनुच्छेद 323A प्रशासनिक अधिकरणों से संबंधित है।      
    • अनुच्छेद 323B अन्य मामलों के लिये अधिकरणों से संबंधित है।      
  • अनुच्छेद 323B केतहत संसद और राज्य विधानमंडल निम्नलिखित विषयों से संबंधित विवादों के अधिनिर्णयन के लिये अधिकरणों की स्थापना कर सकते हैं:      
    • कराधान      
    • विदेशी मुद्रा, आयात व निर्यात      
    • औद्योगिक एवं श्रम विवाद      
    • भूमि सुधार      
    • नगर संपत्ति की अधिकतम सीमा      
    • संसद और राज्य विधानमंडलों के लिये निर्वाचन      
    • खाद्य सामग्री      
    • किराया और किराएदारी अधिकार      
  • अनुच्छेद 323A और 323B निम्नलिखित तीन पहलुओं में एक-दूसरे से भिन्न हैं:
    • 323A केवल लोक सेवाओं से संबंधित विषयों में अधिकरणों की स्थापना का उपबंध करता है, जबकि अनुच्छेद 323B कुछ अन्य विषयों के संबंध में अधिकरणों की स्थापना का उपबंध करता है।
    • अनुच्छेद 323A के अंतर्गत केवल संसद द्वारा अधिकरणों की स्थापना की जा सकती है जबकि अनुच्छेद 323B के अंतर्गत शामिल अधिकरण संसद और राज्य विधानमंडलों, दोनों द्वारा उनकी विधायी क्षमता के दायरे में शामिल विषयों के संबंध में स्थापित किये जा सकते हैं।  
    • अनुच्छेद 323A के अंतर्गत केंद्र के लिये और प्रत्येक राज्य के लिये या दो या दो अधिक राज्यों के केवल एक अधिकरण की स्थापना की जा सकती है। यहाँ अधिकरणों के पदानुक्रम (Hierarchy) की कोई स्थिति नहीं बनती, जबकि अनुच्छेद 323B के अंतर्गत अधिकरणों के एक पदानुक्रम का सृजन किया जा सकता है।    
  • अनुच्छेद 262: राज्य/क्षेत्रीय सरकारों के बीच अंतर-राज्य नदियों के जल संबंधी विवादों के संबंध में अधिनिर्णयन के लिये भारतीय संविधान के केंद्र सरकार की एक भूमिका तय कर रखी है।

भारत में अधिकरण

प्रशासनिक अधिकरण (Administrative Tribunals)

  • प्रशासनिक अधिकरण की स्थापना संसद के एक अधिनियम प्रशासनिक अधिकरण अधिनियम, 1985 (Administrative Tribunals Act, 1985) द्वारा की गई थी। इसकी उत्पत्ति संविधान के अनुच्छेद 323A से हुई है । 
    • यह संघ और राज्यों के विषयों के संबंध में लोक सेवाओं और सार्वजनिक पदों पर नियुक्त व्यक्तियों की सेवा की भर्ती और सेवा शर्तों से संबंधित विवादों और शिकायतों का अधिनिर्णयन करता है। 
  • प्रशासनिक अधिकरण अधिनियम, 1985 तीन प्रकार के अधिकरणों का प्रावधान करता है: 
    • केंद्र सरकार एक प्रशासनिक अधिकरण स्थापित करती है जिसे केंद्रीय प्रशासनिक अधिकरण (Central Administrative Tribunal- CAT) कहा जाता है। 
    • केंद्र सरकार किसी राज्य सरकार के अनुरोध पर उस राज्य के कार्मिकों के लिये एक प्रशासनिक अधिकरण की स्थापना कर सकती है। 
    • दो या दो से अधिक राज्य एक संयुक्त अधिकरण की माँग कर सकते हैं, जिसे संयुक्त प्रशासनिक अधिकरण (Joint Administrative Tribunal- JAT) कहा जाता है, जो इन राज्यों के लिये प्रशासनिक अधिकरणों की शक्तियों का उपयोग करता है। 
  • विभिन्न प्रशासनिक और कर-संबंधी विवादों के समाधान के लिये कई अधिकरण गठित किये गए हैं जिनमें केंद्रीय प्रशासनिक अधिकरण (CAT), आयकर अपीलीय अधिकरण (ITAT), सीमा शुल्क, उत्पाद शुल्क एवं सेवा कर अपीलीय अधिकरण (CESTAT), राष्ट्रीय हरित अधिकरण (NGT), प्रतिस्पर्द्धा अपीलीय अधिकरण (COMPAT), प्रतिभूति अपीलीय अधिकरण (SAT) आदि शामिल हैं।

केंद्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकरण

(Central Administrative Tribunal-CAT)

  • इसके क्षेत्राधिकार में केंद्र सरकार या केंद्र शासित प्रदेश या भारत सरकार के अंतर्गत किसी स्थानीय या अन्य सरकार या केंद्र के स्वामित्व व नियंत्रण वाले निगमों के कार्मिकों के सेवा संबंधी मामले आते है।
    • CAT की स्थापना 1 नवंबर, 1985 को की गई।
    • इसकी 17 नियमित पीठें (Benches) हैं, जिनमें से 15 उच्च न्यायालयों की मुख्य पीठों से और शेष दो जयपुर और लखनऊ से संचालित होती हैं
    • ये पीठें उच्च न्यायालयों की अन्य सीटों पर भी सर्किट बैठक (Circuit Sittings) का आयोजन करती हैं। अधिकरण में अध्यक्ष, उपाध्यक्ष और अन्य सदस्य शामिल होते हैं।
  • सदस्यों को न्यायिक और प्रशासनिक दोनों क्षेत्रों से चुना जाता है ताकि दोनों क्षेत्रों की विशेषज्ञताओं का लाभ मिल सके।      
  • प्रशासनिक अधिकरण के आदेशों के विरुद्ध अपील संबद्ध उच्च न्यायालय की खंडपीठ या डिविज़न बेंच के समक्ष की जा सकती है।      

राज्य प्रशासनिक अधिकरण

(State Administrative Tribunal)

  • अनुच्छेद 323B राज्य विधानमंडलों को किसी कर के उद्ग्रहण, निर्धारण, संग्रहण एवं प्रवर्तन तथा अनुच्छेद 31A के दायरे में शामिल भूमि सुधारों से संबंधित विषयों में अधिकरण स्थापित करने का अधिकार देता है।

जल विवाद अधिकरण (Water Disputes Tribunal)

  • अंतर-राज्यीय नदियों और नदी घाटियों के जल से संबंधित विवादों पर अधिनिर्णयन के लिये अंतर-राज्यीय नदी जल विवाद  (Inter-State River Water Disputes-ISRWD) अधिनियम, 1956 अधिनियमित किया गया था जिसके उपबंधों के तहत विभिन्न जल विवाद अधिकरणों के गठन होते रहे हैं।      
    • एकल ट्रिब्यूनल (Standalone Tribunal): ISRWD अधिनियम, 1956 में संशोधन के लिये अंतर-राज्यीय नदी जल विवाद (संशोधन) विधेयक, 2019 पारित किया गया है जो प्रत्येक जल विवाद के लिये पृथक अधिकरण स्थापित करने की लंबी प्रक्रिया की समाप्ति कर सभी जल विवादों के लिये एक स्टैंडअलोन ट्रिब्यूनल के गठन का प्रावधान करता है।

सशस्त्र बल अधिकरण (Armed Forces Tribunal- AFT)

  • यह भारत का एक सैन्य अधिकरण है। इसकी स्थापना सशस्त्र बल अधिकरण अधिनियम, 2007 के तहत की गई थी।
  • यह सेना अधिनियम 1950, नौसेना अधिनियम 1957 और वायु सेना अधिनियम 1950 के अध्यधीन व्यक्तियों के बारे में कमीशन, नियुक्तियों, अभ्यावेशनों और सेवा की शर्तों के संबंध में विवादों और शिकायतों का अधिनिर्णयन या सुनवाई एक सशस्त्र बल अधिकरण द्वारा किये जाने का उपबंध करता है।
  • नई दिल्ली में प्रधान न्यायपीठ के अलावा चंडीगढ़, लखनऊ , कोलकाता, गुवाहाटी , चेन्नई, कोच्चि, मुंबई और जयपुर में AFT की क्षेत्रीय पीठें भी कार्यरत हैं।
    • प्रत्येक पीठ या बेंच में एक न्यायिक सदस्य और एक प्रशासनिक सदस्य शामिल होते हैं।
  • न्यायिक सदस्य के रूप में उच्च न्यायालय के सेवानिवृत न्यायाधीश और प्रशासनिक सदस्य के रूप में मेजर जनरल/समकक्ष या इससे ऊपर रैंक के सेवानिवृत सैन्य बल अधिकारी शामिल होते हैं।
  • जज एडवोकेट जनरल (JAG), जो सेना का विधिक व न्यायिक प्रमुख होता है, भी प्रशासनिक सदस्य के रूप में नियुक्त किया जा सकता है। 

राष्ट्रीय हरित अधिकरण (National Green Tribunal- NGT)

  • राष्ट्रीय पर्यावरण अधिकरण अधिनियम, 1995 और राष्ट्रीय पर्यावरण अपीलीय प्राधिकरण अधिनियम, 1997 अपर्याप्त सिद्ध हुए और एक ऐसे संस्थान की आवश्यकता थी जो पर्यावरणीय विषयों पर अधिक कुशल और प्रभावी तरीके से कार्रवाई कर सके। 
  • विधि आयोग ने अपनी 186वीं रिपोर्ट में आस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड में संचालित पर्यावरण न्यायालयों का संदर्भ देते हुए न्यायिक और तकनीकी जानकारी से संपन्न बहुआयामी न्यायालय स्थापित करने का सुझाव दिया । 
  • परिणामस्वरूप NGT का गठन एक विशेष फास्ट-ट्रैक, अर्द्ध-न्यायिक निकाय के रूप में किया गया जिसमें मामलों के शीघ्र निपटान के लिये न्यायाधीशों के साथ ही पर्यावरण विशेषज्ञों को भी शामिल किया जाता हैं। 
  • पर्यावरण संरक्षण और वनों एवं अन्य प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण से संबंधित मामलों के प्रभावी और शीघ्र निपटान के लिये राष्ट्रीय हरित अधिकरण की स्थापना वर्ष 2010 में राष्ट्रीय हरित अधिकरण अधिनियम, 2010 के तहत एक सांविधिक निकाय के रूप में की गई थी। 
  • यह पर्यावरण से संबंधित किसी कानूनी अधिकार के प्रवर्तन को भी सुनिश्चित करता है और व्यक्तियों एवं संपत्ति को पहुँची क्षति के लिये राहत और क्षतिपूर्ति प्रदान कराता है। 
  • अधिकरण को आवेदन या अपील प्राप्त करने के 6 माह के अंदर मामले की सुनवाई पूरी कर लेने का अधिदेश सौंपा गया है। 
  • NGT की मुख्य पीठ नई दिल्ली में है जबकि भोपाल, पुणे, कोलकाता और चेन्नई में इसकी चार क्षेत्रीय पीठे स्थापित की गई है। 

आयकर अपीलीय अधिकरण

(Income Tax Appellate Tribunal)

  • आयकर अधिनियम, 1961 की धारा 252 में यह प्रावधान किया गया है कि केंद्र सरकार अधिनियम में प्रदत्त शक्‍तियों का प्रयोग करने और कृत्‍यों का निर्वहन करने के लिये उतने न्‍यायिक सदस्‍यों और लेखा सदस्‍यों से, जितना वह ठीक समझे, एक अपीलीय अधिकरण का गठन करेगी। 

प्रशासनिक अधिकरणों की विशेषताएँ

  • प्रशासनिक अधिकरण किसी विधि के अंतर्गत गठित सांविधिक संस्थाएँ हैं। 
  • प्रशासनिक अधिकरण में राज्य की न्यायिक शक्ति निहित होती है और इस प्रकार शुद्ध प्रशासनिक कार्यों से अलग यह अर्द्ध-न्यायिक कार्य करते हैं। 
  • प्रशासनिक अधिकरण औचित्य एवं और प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों पर कार्य करते है। 
  • इनसे न्यायसंगत, पारदर्शी और निष्पक्ष रूप से कार्य करने की अपेक्षा की जाती है। 
  • प्रशासनिक अधिकरण नागरिक प्रक्रिया न्यायालय द्वारा निर्धारित प्रक्रिया व साक्ष्य के कठोर नियमों का पालन करने हेतु बाध्य नहीं होते है। 

अधिकरणों का विलय 

  • वित्त अधिनियम, 2017 द्वारा कार्यात्मक समानता के अनुसार आठ अधिकरणों का विलय किया गया है। जिन अधिकरणों का विलय किया गया है, उनकी सूची नीचे दी गई है: 
    • कर्मचारी भविष्य निधि अपीलीय अधिकरण का औद्योगिक अधिकरण के साथ विलय। 
    • कॉपीराइट बोर्ड का बौद्धिक संपदा अपीलीय बोर्ड के साथ विलय। 
    • रेलवे रेट्स अधिकरण का रेलवे दावा अधिकरण के साथ विलय। 
    • विदेशी मुद्रा के लिये अपीलीय अधिकरण का विलय अपीलीय अधिकरण [स्मगलर एंड फॉरेन एक्सचेंज मैनिपुलेटर्स (संपत्ति का जब्ती)] अधिनियम, 1976 के साथ। 
    • राष्ट्रीय राजमार्ग अधिकरण का एयरपोर्ट्स अपीलीय अधिकरण के साथ विलय। 
    • साइबर अपीलीय अधिकरण और एयरपोर्ट्स इकोनॉमिक रेगुलेटरी अथॉरिटी अपीलीय अधिकरण का विलय दूरसंचार विवाद निपटान और अपीलीय ट्रिब्यूनल (TDSAT) के साथ। 
    • प्रतिस्पर्द्धा अपीलीय प्राधिकरण का राष्ट्रीय कंपनी कानून अपीलीय अधिकरण के साथ विलय।
  • वर्ष 2021 में भारत के सर्वोच्च न्यायालय (SC) ने सरकार को चुनौती दी कि वह अधिकरण सुधार विधेयक, 2021 को पेश करने के कारणों को प्रदर्शित करने वाले तथ्यों को उजागर करें।

अधिकरण एवं न्यायालय के बीच अंतर

  • प्रशासनिक अधिकरण और साधारण न्यायालय दोनों दो पक्षों के बीच विवादों से निपटते हैं जो संबद्ध व्यक्तियों के अधिकारों को प्रभावित करते हैं।
  • किंतु प्रशासनिक अधिकरण न्यायालय नहीं है। एक न्यायालय और प्रशासनिक अधिकरण के बीच कुछ प्रमुख अंतर इस प्रकार हैं-   

क्रम

न्यायालय

अधिकरण

1.

न्यायालय (कोर्ट ऑफ लॉ) पारंपरिक न्यायिक प्रणाली का अंग है जिसके तहत न्यायिक शक्तियाँ राज्य से प्राप्त होती हैं।

प्रशासनिक अधिकरण एक अभिकरण या एजेंसी है जिसका निर्माण विधि द्वारा किया जाता है और इसे न्यायिक शक्ति सौंपी जाती है।

2.

नागरिक न्यायालयों के पास नागरिक प्रकृति के सभी मुकदमों का परीक्षण करने की न्यायिक शक्ति है जब तक कि संज्ञान स्पष्ट या निहित रूप से वर्जित नहीं है।

अधिकरण को अर्द्ध-न्यायिक निकाय के रूप में भी जाना जाता है। अधिकरण में विशेष मामलों के परीक्षण की शक्ति होती है, जो मामले उन्हें विधि द्वारा प्रदत्त किये जाते हैं

3.

सामान्य न्यायालयों के न्यायाधीश अपने कार्यकाल, सेवा के नियम व शर्तों आदि के संदर्भ में कार्यपालिका से स्वतंत्र होते हैं। न्यायपालिका कार्यपालिका से स्वतंत्र होती है।

प्रशासनिक अधिकरण के सदस्यों के कार्यकाल, सेवाओं के नियम व शर्तें पूर्णतः कार्यपालिका (सरकार) के हाथों में होती है

4.

न्यायालय का पीठासीन अधिकारी विधिशास्त्र में प्रशिक्षित होता है।

अधिकरण का अध्यक्ष या सदस्य का विधि में प्रशिक्षित होना अनिवार्य नहीं। वह प्रशासनिक मामलों के क्षेत्र का विशेषज्ञ भी हो सकता है।

5.

न्यायालय के न्यायाधीश का निष्पक्ष होना आवश्यक है जो प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से मामले में दिलचस्पी नहीं रखता हो।

प्रशासनिक अधिकरण उस विवाद का एक पक्षकार हो सकता है जिस पर उसके द्वारा निर्णय लिया जाना है।

6.

न्यायालय साक्ष्य और प्रक्रिया के सभी नियमों का पालन करने हेतु बाध्य है।

प्रशासनिक अधिकरण नियमों के बंधन में नहीं है बल्कि प्राकृतिक न्याय के सिद्धांत पर कार्य करते है

7.

न्यायालय को रिकॉर्ड पर रखे गए साक्ष्य और सामग्री के आधार पर सभी प्रश्नों पर वस्तुपरक (Objective) रूप से विचार करना होता है।

प्रशासनिक अधिकरण विभागीय नीति को ध्यान में रखकर प्रश्नों पर विचार कर सकता है; उसका निर्णय वस्तुपरक के बजाय व्यक्तिपरक (Subjective) हो सकता है।

8.

न्यायालय किसी विधान की शक्तियों (Vires of a legislation) पर निर्णय ले सकता है।

प्रशासनिक अधिकरण ऐसा नहीं कर सकता।

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