भारतीय राजनीति
COVID-19 के प्रबंधन पर रिपोर्ट
- 23 Dec 2020
- 8 min read
चर्चा में क्यों?
देश में कोरोना वायरस महामारी के प्रबंधन को लेकर गृह मामलों की संसदीय स्थायी समिति ने हाल ही में अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की है।
प्रमुख बिंदु
- समिति ने अपनी रिपोर्ट में कुल चार पहलुओं का विस्तृत मूल्यांकन किया है:
- तत्परता
- स्वास्थ्य अवसंरचना
- सामाजिक प्रभाव
- आर्थिक प्रभाव
तत्परता
- समस्या
- समय रहते ज़िला स्तर पर भोजन, आश्रय और अन्य सुविधाओं से संबंधित दिशा-निर्देशों तथा सूचनाओं की कमी के कारण प्रवासी मज़दूरों के बीच चिंता और अनिश्चितता का माहौल पैदा हो गया, जिससे वे अपने गृह राज्य की ओर पुनः प्रवासन करने लगे और इसी पूरी प्रकिया में प्रवासी मज़दूर, कारखाना मज़दूर एवं दिहाड़ी मज़दूर सबसे अधिक प्रभावित हुए।
- समाधान
- आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005 और महामारी रोग अधिनियम, 1897 के तहत महामारी रोकथाम के लिये एक राष्ट्रीय योजना और दिशा-निर्देश तैयार किये जाने की आवश्यकता है।
- राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (NDMA) के तहत एक विशिष्ट विंग का गठन किया जाना चाहिये, जिसके पास महामारी से निपटने में विशेषज्ञता हो और जो सार्वजनिक क्षेत्र, कॉरपोरेट्स, गैर-सरकारी संगठनों तथा अन्य हितधारकों के साथ सरकार की साझेदारी के निर्माण में अग्रणी भूमिका अदा करेगी।
- भविष्य में इस तरह के संकट के प्रति त्वरित प्रतिक्रिया के लिये केंद्र, राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों के बीच समन्वय हेतु एक प्रभावी संस्थागत तंत्र की आवश्यकता है।
स्वास्थ्य अवसंरचना
- समस्या
- निजी और सार्वजनिक अस्पतालों में ICU बेड्स की असंगतता एक बड़ी समस्या है।
- जिन निजी अस्पतालों में बेड उपलब्ध हैं, वे या तो भौगोलिक रूप से आम लोगों की पहुँच से बाहर हैं या फिर अपेक्षाकृत काफी महँगे हैं।
- कई निजी अस्पतालों में ओवरचार्जिंग यानी अधिक शुल्क लेने, कैशलेस सुविधा न प्रदान करने, उपभोग की वस्तुओं जैसे- पीपीई किट और मास्क आदि के लिये अलग से शुल्क वसूलने आदि समस्याएँ देखी गईं।
- समाधान
- समिति ने सुझाव दिया है कि इस समस्या से निपटने के लिये राष्ट्रीय स्तर पर एक व्यापक सार्वजानिक स्वास्थ्य अधिनियम बनाया जाना चाहिये, जो कि
- निजी अस्पतालों की जाँच और उन पर नियंत्रण में सरकार के प्रयासों का समर्थन कर सके।
- दवाओं की कालाबाज़ारी पर लगाम लगा सके और उत्पाद मानकीकरण सुनिश्चित कर सके।
- समिति का सुझाव है कि बीमा दावों को लेकर देश भर के सभी अस्पतालों के नियामक पर्यवेक्षण कराए जाने की आवश्यकता है।
- इसके तहत बीमा कवरेज वाले सभी लोगों के लिये COVID-19 उपचार को कैशलेस बनाने का लक्ष्य होना चाहिये।
- समिति ने सुझाव दिया है कि इस समस्या से निपटने के लिये राष्ट्रीय स्तर पर एक व्यापक सार्वजानिक स्वास्थ्य अधिनियम बनाया जाना चाहिये, जो कि
सामाजिक प्रभाव
- समस्या
- समिति ने अपनी रिपोर्ट में अंतर-राज्य प्रवासी कामगार (रोज़गार का विनियमन और सेवा शर्तें) अधिनियम,1979 के अप्रभावी क्रियान्वयन को एक बड़ी समस्या बताया है।
- देशव्यापी लॉकडाउन के दौरान प्रवासी श्रमिकों के निवास स्थानों की पहचान करने और उन तक राहत पहुँचाना एक बड़ी समस्या थी, क्योंकि केंद्र अथवा राज्य सरकार के पास प्रवासी श्रमिकों से संबंधित कोई आँकड़े उपलब्ध नहीं थे।
- समाधान
- नीति निर्माताओं को जल्द-से-जल्द प्रवासी श्रमिकों से संबंधित एक राष्ट्रीय डेटाबेस लॉन्च करना चाहिये, ताकि महामारी और लॉकडाउन से प्रभावित लोगों को अतिशीघ्र राहत प्रदान की जा सके।
- इस डेटाबेस के तहत ‘प्रवासी मज़दूरों के स्रोत और गंतव्य, उनके रोज़गार तथा कौशल की प्रकृति आदि से संबंधित विवरण शामिल किया जा सकता है।
- यह भविष्य में महामारी जैसी समान आपातकालिक परिस्थितियों में प्रवासी श्रमिकों के लिये नीति निर्माण में मदद करेगा।
- समिति के मुताबिक, जब तक सभी राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों में 'एक देश-एक राशन कार्ड' योजना पूरी तरह से लागू नहीं हो जाती है, तब तक राशन कार्डों के अंतर-राज्य संचालन की अनुमति दी जानी चाहिये।
- ‘मिड-डे मील’ योजना को शुरू किया जाना चाहिये।
- जब तक स्कूल न खुल जाएँ तब तक यह सुनिश्चित किया जाना चाहिये कि स्थानीय प्रशासन समय पर राशन/भत्ता उपलब्ध कराए।
आर्थिक प्रभाव
- समस्या
- सरकारी योजनाओं का खराब क्रियान्वयन।
- ऋण वितरण में विलंब।
- लॉकडाउन के कारण रोज़गार का नुकसान और आय में भारी गिरावट के चलते निजी खपत में काफी कमी।
- सुझाव
- अर्थव्यवस्था को पुनः पटरी पर लाने और महामारी से प्रभावित क्षेत्रों विशेष रूप से MSMEs का आर्थिक पुनरुद्धार सुनिश्चित करने के लिये और अधिक सरकारी योजनाओं एवं हस्तक्षेप की आवश्यकता है।
संसदीय समितियाँ
- संसद के विभिन्न कार्यों को प्रभावी ढंग से संपन्न करने के लिये संसदीय समितियों को एक माध्यम के तौर पर प्रयोग किया जाता है। इन समितियों में विभिन्न दलों के सांसदों के छोटे-छोटे समूह होते हैं, जिन्हें उनकी व्यक्तिगत रुचि और विशेषता के आधार पर बाँटा जाता है।
- स्थायी समितियाँ
- अस्थायी समितियाँ या तदर्थ समितियाँ
- आमतौर पर संसदीय समितियाँ दो प्रकार की होती हैं:
- स्थायी समितियाँ: ये अनवरत प्रकृति की होती हैं अर्थात् इनका कार्य सामान्यतः निरंतर चलता रहता है। इसे निम्नलिखित समूहों में वर्गीकृत किया जा सकता है:
- वित्तीय समितियाँ
- विभागीय स्थायी समितियाँ (24)
- सदन के दिन-प्रतिदिन के कार्यों से संबंधित गतिविधियाँ
- अस्थायी समितियाँ या तदर्थ समितियाँ: तदर्थ समितियाँ अस्थायी प्रकृति की होती हैं और उन्हें सौंपे गए विशिष्ट कार्य की समाप्ति के बाद इन समितियों को भी समाप्त कर दिया जाता है।