जम्मू-कश्मीर तथा लेह-कारगिल में वक्फ बोर्ड
चर्चा में क्यों?
हाल ही में जम्मू-कश्मीर और लेह-कारगिल में वक्फ बोर्ड के गठन की प्रक्रिया शुरू की गई।
प्रमुख बिंदु:
- जम्मू-कश्मीर और लेह-कारगिल में वक्फ संपत्ति की संख्या हज़ारों में है और वक्फ की इन संपत्तियों का पंजीकरण करने की प्रक्रिया शुरू की जा चुकी है।
- इन वक्फ बोर्ड संपत्तियों के डिजिटलीकरण और जिओ टैगिंग/जीपीएस मैपिंग का कार्य भी शुरू हो चुका है।
- केंद्र सरकार ‘प्रधानमंत्री जन विकास कार्यक्रम’ (Pradhan Mantri Jan Vikas Karyakram- PMJVK) के अंतर्गत जम्मू-कश्मीर व लेह-कारगिल में सामाजिक-आर्थिक और शैक्षणिक गतिविधियों के लिये वक्फ बोर्ड की संपत्ति पर आधारभूत अवसंरचना तैयार करने हेतु पर्याप्त आर्थिक सहायता उपलब्ध कराएगी।
- प्रधानमंत्री जन विकास कार्यक्रम (PMJVK) का उद्देश्य अल्पसंख्यक समुदायों को बेहतर सामाजिक-आर्थिक अवसंरचना (विशेष रूप से शिक्षा, स्वास्थ्य और कौशल विकास के क्षेत्र में) उपलब्ध कराना है ताकि पिछड़ेपन के मापदंडों के संदर्भ में राष्ट्रीय औसत और अल्पसंख्यक समुदायों के बीच के अंतर को कम किया जा सके।
- पूर्ववर्ती बहु-क्षेत्रीय विकास कार्यक्रम (Multi-Sectoral Development Programme- MSDP) को प्रभावी कार्यान्वयन हेतु वर्ष 2018 से प्रधानमंत्री जन विकास कार्यकम के रूप में पुनर्गठित तथा पुनर्नामित किया गया है।
- प्रधानमंत्री जन विकास कार्यक्रम (PMJVK) का उद्देश्य अल्पसंख्यक समुदायों को बेहतर सामाजिक-आर्थिक अवसंरचना (विशेष रूप से शिक्षा, स्वास्थ्य और कौशल विकास के क्षेत्र में) उपलब्ध कराना है ताकि पिछड़ेपन के मापदंडों के संदर्भ में राष्ट्रीय औसत और अल्पसंख्यक समुदायों के बीच के अंतर को कम किया जा सके।
केंद्रीय वक्फ परिषद (Central Waqf Council)
- केंद्रीय वक्फ परिषद एक सांविधिक निकाय है तथा अल्पसंख्यक मामलों के मंत्रालय के प्रशासनिक नियंत्रण में कार्य करता है। इसकी स्थापना वर्ष 1964 में ‘वक्फ अधिनियम, 1954’ में किये गए प्रावधानों के तहत की गई थी।
- यह एक सलाहकारी निकाय है जो वक्फ बोर्डों और औकाफ (Auqaf) के नियत प्रशासन से संबंधित मामलों पर केंद्र सरकार को सलाह देता है।
- औकाफ (Awkaf/Auqaf), अरबी भाषा का शब्द है जिसका अर्थ है संपत्ति।
- परिषद में एक अध्यक्ष (जो वक्फ का प्रभारी केंद्रीय मंत्री भी होता है) तथा अधिकतम 20 सदस्य होते हैं, जिन्हें भारत सरकार द्वारा नियुक्त किया जा सकता है।
- प्रत्येक राज्य में एक वक्फ बोर्ड होता है, जिसमें एक अध्यक्ष, राज्य सरकार द्वारा मनोनीत एक या दो व्यक्ति, मुस्लिम विधायक और सांसद, राज्य बार काउंसिल के मुस्लिम सदस्य, इस्लामी धर्मशास्त्र तथा मुतवली (Mutawalis) के मान्यता प्राप्त विद्वान शामिल होते हैं।
स्रोत: पी.आई.बी.
बांग्लादेश के पृथक द्वीप पर रोहिंग्या
चर्चा में क्यों?
हाल ही में बांग्लादेश के शरणार्थी शिविरों में रह रहे 15 हज़ार से अधिक रोहिंग्या शरणार्थियों को बंगाल की खाड़ी में स्थित ‘भासन/भाषण चार’ (Bhasan Char) द्वीप पर भेजा गया।
मुख्य बिंदु
पृष्ठभूमि:
- इंडो-आर्यन जातीय समूह के रोहिंग्या लोग राज्य-रहित स्थिति में म्याँमार के रखाइन प्रांत में रहते हैं।
- म्याँमार में 2016-17 के संकट से पहले लगभग 1 मिलियन रोहिंग्या रह रहे थे। एक अनुमान के अनुसार, अगस्त 2017 तक लगभग 625,000 रोहिंग्या शरणार्थी बांग्लादेश की सीमा में प्रवेश कर गए थे। इनमें अधिकांश मुस्लिम हैं, जबकि कुछ अल्पसंख्यक हिंदू भी हैं।
- संयुक्त राष्ट्र (United Nations) द्वारा इन्हें दुनिया के सबसे अधिक सताए गए अल्पसंख्यकों में से एक के रूप में वर्णित किया गया है।
- म्याँमार ने म्याँमार राष्ट्रीयता कानून, 1982 के तहत रोहिंग्या आबादी को नागरिकता देने से इनकार कर दिया।
- यद्यपि इस क्षेत्र में रोहिंग्या का इतिहास 8वीं शताब्दी से पाया जाता है फिर भी म्याँमार का कानून उनको आठ राष्ट्रीय स्वदेशी अल्पसंख्यकों की श्रेणियों में से एक के रूप में मान्यता नहीं देता है।
- म्याँमार से रोहिंग्या लोगों का बहिर्गमन 2017 में तेज़ी से शुरू हो गया और बांग्लादेश का तटीय शहर कॉक्स बाज़ार (Cox’s Bazar) शरणार्थी बस्ती के रूप में बदल गया।
- जून 2015 में बांग्लादेश सरकार ने अपनी आश्रय परियोजना के तहत रोहिंग्या शरणार्थियों को भासन/भाषण चार द्वीप पर पुनः बसाने का फैसला किया था।
हाल की पहल:
- बांग्लादेश सरकार इन शरणार्थियों को एक अलग द्वीप में ले जा रही है जिसे भासन/भाषण चार द्वीप के नाम से जाना जाता है जो मुख्य भूमि से 21 मील (34 किलोमीटर) दूर स्थित है।
- भासन/भाषण चार:
- भासन/भाषण चार द्वीप का निर्माण लगभग दो दशक पहले मेघना नदी के मुहाने पर गाद द्वारा निर्मित द्वीप के रूप में बंगाल की खाड़ी में हुआ था।
- यह निर्जन द्वीप दक्षिण-पूर्व बांग्लादेश में स्थित ‘हटिया’ द्वीप से 30 किलोमीटर की दूरी पर पूर्व में स्थित है।
- भासन/भाषण चार द्वीप बाढ़, कटाव और चक्रवात से प्रभावित क्षेत्र है, इसलिये बांग्लादेश सरकार यहाँ लगभग तीन मीटर ऊँचे तटबंध का निर्माण कर रही है।
चिंता:
- चूँकि भासन/भाषण चार द्वीप बाढ़, कटाव और चक्रवात के कारण पारिस्थितिक रूप से नाजुक क्षेत्र है, इसलिये इसे मानव बस्तियों के लिये सुरक्षित नहीं माना जाता है।
- संयुक्त राष्ट्र और विभिन्न मानवाधिकार एजेंसियाँ इस पुनर्वास के खिलाफ हैं क्योंकि उनका मानना है कि रोहिंग्या शरणार्थियों को द्वीप पर स्थानांतरित होने के बारे में प्रासंगिक, सटीक और अद्यतन जानकारी के आधार पर स्वतंत्र निर्णय लेने में सक्षम होना चाहिये।
- एमनेस्टी इंटरनेशनल (Amnesty International) ने इस साल की शुरुआत में ही इस द्वीप पर रहने वाले रोहिंग्या की स्थिति के बारे में एक बहुत ही चिंतनीय रिपोर्ट जारी की है।
- इस रिपोर्ट में निवास की सीमित और अस्वच्छ स्थिति, भोजन तथा स्वास्थ्य सुविधाओं तक सीमित पहुँच, संचार सुविधा की कमी के साथ-साथ नौसेना एवं स्थानीय मज़दूरों द्वारा ज़बरन वसूली व यौन उत्पीड़न के मामले शामिल थे।
भारत का रुख:
- रोहिंग्या लोग भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा के लिये खतरा हैं और अंतर्राष्ट्रीय आतंकी समूहों के साथ उनके संबंध हैं।
- भारत ने रोहिंग्याओं को वापस बुलाने और उन्हें म्याँमार की नागरिकता देने के लिये म्याँमार पर किसी भी प्रकार का दबाव डालने से इनकार किया है।
रोहिंग्याओं के अधिकारों की रक्षा के लिये अंतर्राष्ट्रीय प्रावधान:
- संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी संधि,1951 एवं शरणार्थियों की स्थिति पर प्रोटोकॉल, 1967
(The Refugee Convention, 1951 and its Protocol, 1967)- इस संधि (1951) एवं प्रोटोकॉल (1967) पर कुल 145 देशों ने हस्ताक्षर किये हैं, साथ ही यह संधि संयुक्त राष्ट्र के तत्त्वावधान में की गई है।
- द्वितीय विश्वयुद्ध के पश्चात् उपजे शरणार्थी संकट का समाधान तलाशने के क्रम में इस संधि को अंजाम दिया गया। इसमें शरणार्थी की परिभाषा, उनके अधिकार तथा हस्ताक्षरकर्त्ता देश की शरणार्थियों के प्रति ज़िम्मेदारियों का भी प्रावधान किया गया है।
- यह संधि जाति, धर्म, राष्ट्रीयता, किसी विशेष सामाजिक समूह से संबद्धता या पृथक राजनीतिक विचारों के कारण उत्पीड़न तथा अपना देश छोड़ने को मज़बूर लोगों के अधिकारों को संरक्षण प्रदान करती है। किंतु ऐसे लोग जो युद्ध अपराध से संबंधित हैं अथवा आतंकवाद से प्रत्यक्ष रूप से जुड़े हैं, उन्हें शरणार्थी के रूप में मान्यता नहीं देती है।
- यह संधि वर्ष 1948 की मानवाधिकारों पर सार्वभौम घोषणा (UDHR) के अनुच्छेद 14 से प्रेरित है। UDHR किसी अन्य देश में पीड़ित व्यक्ति को शरण मांगने का अधिकार प्रदान करती है।
- वर्ष 1967 का प्रोटोकॉल सभी देशों के शरणार्थियों को शामिल करता है, इससे पूर्व वर्ष 1951 में की गई संधि सिर्फ यूरोप के शरणार्थियों को ही शामिल करती थी। वर्तमान में यह संधि एवं प्रोटोकॉल शरणार्थियों के अधिकारों के संरक्षण के लिये प्रमुख भूमिका निभाते हैं। इनके प्रावधान मौजूदा समय में भी उतने ही प्रासंगिक है जितने इनके गठन के वक्त थे।
आगे की राह
- अंततः म्याँमार पर रोहिंग्याओं को वापस बुलाने के लिये दबाव डालते हुए बांग्लादेश और अन्य बाहरी साझीदारों को मिलकर रोहिंग्या के लिये कुछ ज़रूरी अल्पकालिक योजनाओं जैसे- सुरक्षित आवासों का निर्माण, शरणार्थियों के शैक्षिक और आजीविका के अवसरों में सुधार आदि को पूरा करना चाहिये। बांग्लादेश को भी भासन/भाषण चार द्वीप पर रोहिंग्याओं को भेजने का निर्णय वापस लेना चाहिये।
- म्याँमार को भी स्वयं को लोकतांत्रिक व्यवस्था में बदलकर मानवाधिकारों पर ध्यान देने में देरी नहीं करनी चाहिये, ताकि मानवाधिकारों के संरक्षण, भेदभाव के मुद्दों का समाधान, पीड़ित-केंद्रित न्याय तंत्र को लागू करने के साथ ही मानवाधिकारों का उल्लंघन करने वालों को जवाबदेह बनाया जा सके और इससे विश्व में म्याँमार की छवि बेहतर होगी।
स्रोत: बिज़नेस स्टैण्डर्ड
64वाँ महापरिनिर्वाण दिवस
चर्चा में क्यों?
डॉ. भीमराव अंबेडकर की पुण्यतिथि 6 दिसंबर को प्रत्येक वर्ष महापरिनिर्वाण दिवस (Mahaparinirvan Diwas) के रूप में मनाया जाता है।
- परिनिर्वाण जिसे बौद्ध धर्म के लक्ष्यों के साथ-साथ एक प्रमुख सिद्धांत भी माना जाता है, यह एक संस्कृत का शब्द है जिसका अर्थ है मृत्यु के बाद मुक्ति अथवा मोक्ष। बौद्ध ग्रंथ महापरिनिब्बाण सुत्त (Mahaparinibbana Sutta) के अनुसार, 80 वर्ष की आयु में हुई भगवान बुद्ध की मृत्यु को मूल महापरिनिर्वाण माना जाता है।
- बौद्ध नेता के रूप में डॉ. अंबेडकर की सामाजिक स्थिति के कारण उनकी पुण्यतिथि को महापरिनिर्वाण दिवस के रूप में जाना जाता है।
प्रमुख बिंदु
- जन्म: 14 अप्रैल, 1891 को मध्य प्रांत (अब मध्य प्रदेश) के महू में।
- संक्षिप्त परिचय:
- डॉ. अंबेडकर एक समाज सुधारक, न्यायविद, अर्थशास्त्री, लेखक, बहु-भाषाविद और तुलनात्मक धर्म दर्शन के विद्वान थे।
- वर्ष 1916 में उन्होंने कोलंबिया विश्वविद्यालय से डॉक्टरेट की उपाधि प्राप्त की और यह उपलब्धि हासिल करने वाले पहले भारतीय बने।
- उन्हें भारतीय संविधान के जनक (Father of the Indian Constitution) के रूप में जाना जाता है। वह स्वतंत्र भारत के प्रथम कानून/विधि मंत्री थे।
- डॉ. अंबेडकर एक समाज सुधारक, न्यायविद, अर्थशास्त्री, लेखक, बहु-भाषाविद और तुलनात्मक धर्म दर्शन के विद्वान थे।
- संबंधित जानकारी:
- वर्ष 1920 में उन्होंने एक पाक्षिक (15 दिन की अवधि में छपने वाला) समाचार पत्र ‘मूकनायक’ (Mooknayak) की शुरुआत की जिसने एक मुखर और संगठित दलित राजनीति की नींव रखी।
- उन्होंने बहिष्कृत हितकारिणी सभा (1923) की स्थापना की, जो दलितों के बीच शिक्षा और संस्कृति के प्रचार-प्रसार हेतु समर्पित थी।
- वर्ष 1925 में बॉम्बे प्रेसीडेंसी समिति द्वारा उन्हें साइमन कमीशन में काम करने के लिये नियुक्त किया गया था।
- हिंदुओं के प्रतिगामी रिवाज़ों को चुनौती देने के लिये मार्च 1927 में उन्होंने महाड़ सत्याग्रह (Mahad Satyagraha) का नेतृत्त्व किया।
- वर्ष 1930 के कालाराम मंदिर आंदोलन में अंबेडकर ने कालाराम मंदिर के बाहर विरोध प्रदर्शन किया, क्योंकि दलितों को इस मंदिर परिसर में प्रवेश नहीं करने दिया जाता था। इसने भारत में दलित आंदोलन शुरू करने में एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।
- उन्होंने तीनों गोलमेज सम्मेलनों (Round-Table Conferences) में भाग लिया।
- वर्ष 1932 में उन्होंने महात्मा गांधी के साथ पूना समझौते (Poona Pact) पर हस्ताक्षर किये, जिसके परिणामस्वरूप वंचित वर्गों के लिये अलग निर्वाचक मंडल (सांप्रदायिक पंचाट) के विचार को त्याग दिया गया।
- हालाँकि दलित वर्गों के लिये आरक्षित सीटों की संख्या प्रांतीय विधानमंडलों में 71 से बढ़ाकर 147 तथा केंद्रीय विधानमंडल में कुल सीटों का 18% कर दी गई।
- वर्ष 1936 में वह बॉम्बे विधानसभा के विधायक (MLA) चुने गए।
- 29 अगस्त, 1947 को उन्हें संविधान निर्मात्री समिति का अध्यक्ष नियुक्त किया गया।
- उन्होंने स्वतंत्र भारत के पहले मंत्रिमंडल में कानून मंत्री बनने के प्रधानमंत्री नेहरू के आमंत्रण को स्वीकार किया।
- उन्होंने हिंदू कोड बिल (जिसका उद्देश्य हिंदू समाज में सुधार लाना था) पर मतभेदों के चलते वर्ष 1951 में मंत्रिमंडल से त्याग-पत्र दे दिया।
- वर्ष 1956 में उन्होंने बौद्ध धर्म को अपनाया।
- 6 दिसंबर, 1956 को उनका निधन हो गया।
- वर्ष 1990 में उन्हें मरणोपरांत भारत रत्न से सम्मानित किया गया।
- चैत्य भूमि भीमराव अंबेडकर का एक स्मारक है जो मुंबई के दादर में स्थित है।
- महत्त्वपूर्ण कृतियाँ: समाचार पत्र मूकनायक (1920), एनिहिलेशन ऑफ कास्ट (1936), द अनटचेबल्स (1948), बुद्धा ऑर कार्ल मार्क्स (1956), बुद्धा एंड हिज़ धम्म (1956) इत्यादि।
- उद्धरण:
- “लोकतंत्र केवल सरकार का एक रूप नहीं है। यह मुख्य रूप से जुड़े रहने का एक तरीका है, संयुग्मित संचार अनुभव का। यह अनिवार्य रूप से साथी पुरुषों के प्रति सम्मान और श्रद्धा का दृष्टिकोण है।”
- “मैं एक समुदाय की प्रगति को उस प्रगति डिग्री से मापता हूँ जो महिलाओं ने हासिल की है।”
- “मनुष्य नश्वर है। उसी तरह विचार भी नश्वर हैं। एक विचार को प्रचार-प्रसार की ज़रूरत होती है जैसे एक पौधे को पानी की ज़रूरत होती है। अन्यथा दोनों मुरझा जाएंगे और मर जाएंगे।”
स्रोत: पी.आई.बी.
संयुक्त राष्ट्र निवेश संवर्द्धन पुरस्कार 2020
चर्चा में क्यों?
हाल ही में व्यापार एवं विकास पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन (UNCTAD) ने इन्वेस्ट इंडिया (Invest India) को संयुक्त राष्ट्र निवेश संवर्द्धन पुरस्कार 2020 का विजेता घोषित किया है।
प्रमुख बिंदु
- संयुक्त राष्ट्र निवेश संवर्द्धन पुरस्कार
- यह पुरस्कार विश्व की निवेश संवर्द्धन संस्थाओं (IPAs) की उत्कृष्ट उपलब्धियों को रेखांकित करता है और उन्हें मान्यता प्रदान करता है। व्यापार एवं विकास पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन (UNCTAD) द्वारा यह पुरस्कार वर्ष 2002 से प्रतिवर्ष प्रदान किया जाता है।
- साथ ही यह पुरस्कार सतत् विकास में निजी क्षेत्र के निवेश को बढ़ाने और सतत् विकास लक्ष्यों (SDGs) को प्राप्त करने में निवेश संवर्द्धन संस्थाओं (IPAs) के योगदान को भी उजागर करता है।
- ध्यातव्य है कि अलग-अलग देशों की निवेश संवर्द्धन संस्थाओं (IPAs) द्वारा कोरोना वायरस महामारी के विरुद्ध अपनाए गए उपायों को इस वर्ष के पुरस्कार के लिये एक आधार के रूप में प्रयोग किया गया है।
- भारत से पूर्व जर्मनी, दक्षिण कोरिया और सिंगापुर आदि देश भी यह पुरस्कार जीत चुके हैं।
- इन्वेस्ट इंडिया
- यह भारत की राष्ट्रीय निवेश संवर्द्धन संस्था है, जो कि भारत में निवेश के इच्छुक निवेशकों के लिये देश में निवेश करना और अधिक सुविधाजनक बनाती है।
- इसका गठन वर्ष 2009 में उद्योग एवं आंतरिक व्यापार संवर्द्धन विभाग (DPIIT) के अधीन एक गैर-लाभकारी उपक्रम के रूप में किया गया था।
- पुरस्कार की घोषणा करते हुए UNCTAD ने अपने प्रकाशन में इन्वेस्ट इंडिया की बेहतरीन गतिविधियों जैसे कि बिज़नेस इम्युनिटी प्लेटफॉर्म, एक्सक्लूसिव इन्वेस्टमेंट फोरम वेबिनार सिरीज़, सोशल मीडिया पर सक्रियता और कोविड महामारी से निपटने के लिये गठित समूहों (जैसे कि व्यापार पुनर्निर्माण, स्टैकहोल्डर आउटरीच और सप्लायर आउटरीच आदि ) को रेखांकित किया।
- निवेश संवर्द्धन संबंधी सरकार के प्रयास
- एक महत्त्वपूर्ण प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) गंतव्य के रूप में बीते कुछ वर्षों में भारत की स्थिति काफी मज़बूत हुई है। आँकड़ों की मानें तो वर्ष 2019 में भारत विदेशी निवेश प्राप्त करने वाले शीर्ष 10 देशों में से एक था और भारत ने प्रौद्योगिकी, आईटी तथा दूरसंचार एवं निर्माण समेत विभिन्न क्षेत्रों में अरबों डॉलर का विदेशी निवेश प्राप्त किया था।
- वर्ष 2020 में भी कोरोना वायरस महामारी से निपटने में तीव्र प्रक्रिया, अनुकूल जनसांख्यिकी, मोबाइल और इंटरनेट के उपयोगकर्त्ताओं की बढ़ती संख्या, व्यापक खपत और तकनीक में उन्नति जैसे कारकों ने विदेशी प्रत्यक्ष निवेश को आकर्षित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा की है।
- इसके अलावा सरकार ने निवेश आकर्षित करने के लिये विभिन्न योजनाओं जैसे- राष्ट्रीय तकनीकी वस्त्र मिशन, उत्पादन लिंक्ड प्रोत्साहन योजना, प्रधानमंत्री किसान संपदा योजना, आदि का शुभारंभ भी किया है।
- सरकार द्वारा अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रों में निवेश को प्रोत्साहित करने हेतु ’आत्मनिर्भर भारत’ जैसी पहलों पर ज़ोर दिया जा रहा है।
- घरेलू विनिर्माण को बढ़ावा देने की अपनी ‘मेक इन इंडिया’ पहल के तहत भारत सरकार ने पिछले कुछ वर्षों में कई क्षेत्रों के लिये FDI संबंधी नियमों में ढील प्रदान की है।
- भारत सरकार द्वारा लगातार देश में ईज़ ऑफ डूइंग बिज़नेस में सुधार के प्रयास किये जा रहे हैं। विश्व बैंक द्वारा जारी ईज़ ऑफ डूइंग बिज़नेस रिपोर्ट, 2020 में भारत को 190 देशों में 63वाँ स्थान प्राप्त हुआ था।
व्यापार एवं विकास पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन (UNCTAD)
- यह वर्ष 1964 में संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा स्थापित एक स्थायी अंतर-सरकारी निकाय है। इसका मुख्यालय जिनेवा, स्विट्ज़रलैंड में है।
- इसका गठन मुख्य तौर पर वैश्विक अर्थव्यवस्था में विकासशील देशों के विकास-अनुकूल एकीकरण को बढ़ावा देने हेतु किया गया था।
- यह एक केंद्रीय एजेंसी है जो निवेश संवर्द्धन संस्थाओं (IPAs) के प्रदर्शन की निगरानी करती है और वैश्विक स्तर पर सर्वोत्तम प्रथाओं को मान्यता प्रदान करती है।
- इसके द्वारा प्रकाशित कुछ रिपोर्ट हैं:
- व्यापार और विकास रिपोर्ट (Trade and Development Report)
- विश्व निवेश रिपोर्ट (World Investment Report)
- ग्लोबल इन्वेस्टमेंट ट्रेंड मॉनीटर रिपोर्ट (Global Investment Trend Monitor Report)
- न्यूनतम विकसित देश रिपोर्ट (The Least Developed Countries Report)
- सूचना एवं अर्थव्यवस्था रिपोर्ट (Information and Economy Report)
- प्रौद्योगिकी एवं नवाचार रिपोर्ट (Technology and Innovation Report)
- वस्तु तथा विकास रिपोर्ट (Commodities and Development Report)
स्रोत: पी.आई.बी.
पूर्वोत्तर में कोयला खनन
चर्चा में क्यों?
मेघालय के पूर्वी जयंतिया हिल्स ज़िले में मूलमिलिआंग (Moolamylliang) गाँव ने रैट-होल खनन से प्रभावित होने के बावजूद पर्यावरणीय नुकसान को कम करने की दिशा में महत्त्वपूर्ण प्रगति की है।
प्रमुख बिंदु
- पृष्ठभूमि
- जयंतिया कोल माइनर्स एंड डीलर्स एसोसिएशन का दावा है कि पूर्वी जयंतिया हिल्स ज़िले के 360 गाँवों में लगभग 60,000 कोयला खदानें हैं।
- ध्यातव्य है कि मूलमिलिआंग भी वर्ष 2014 तक ऐसे गाँवों में से एक हुआ करता था, किंतु वर्ष 2014 में राष्ट्रीय हरित अधिकरण (NGT) ने जयंतिया हिल्स ज़िले में रैट-होल खनन पर रोक लगा दी थी और उस समय तक खनन किये गए कोयले के परिवहन के लिये भी एक समयसीमा निर्धारित कर दी थी।
- यद्यपि राष्ट्रीय हरित अधिकरण द्वारा लगाए प्रतिबंध इस क्षेत्र में अवैध खनन को रोकने में असमर्थ रहे, किंतु इसकी वजह से मूलमिलिआंग गाँव ने सुधार की दिशा में महत्त्वपूर्ण प्रगति की।
- पूर्वोत्तर में कोयला खनन
- पूर्वोत्तर भारत में कोयला खनन, प्राकृतिक संसाधनों के ह्रास के बड़े ट्रेंड का हिस्सा है।
- उदाहरण के लिये मेघालय के गारो और खासी हिल्स में बड़े पैमाने पर वनों की कटाई की जा रही है, इसके अलावा जयंतिया हिल्स ज़िले में चूना पत्थर खनन भी एक महत्त्वपूर्ण मुद्दा है।
- ध्यातव्य है कि असम पहले ही अपने वन कवरेज क्षेत्र का व्यापक हिस्सा खो चुका है, इसके बावजूद असम के दीमा हसाओ ज़िले में अवैध शिकार, असम के ऊपरी हिस्सों में कोयला खनन और नदी तल में रेत.बालू का खनन अनवरत जारी है।
- जयंतिया हिल्स और मेघालय के अन्य स्थानों पर कोयला खनन के मुख्यतः तीन लक्षण दिखाई देते हैं:
- एक आदिवासी राज्य होने के नाते इस क्षेत्र में संविधान की छठी अनुसूची लागू होती है और संपूर्ण भूमि निजी स्वामित्व के अधीन है, इसलिये कोयला खनन पूर्णतः आम लोगों द्वारा ही किया जाता है। छठी अनुसूची में स्पष्ट तौर पर खनन का उल्लेख नहीं किया गया है।
- मेघालय का अधिकांश कोयला भंडार (मुख्यतः जयंतिया हिल्स ज़िले में) पहाड़ी इलाकों में ज़मीन से केवल कुछ फीट नीचे मौजूद है, जिसके कारण इस क्षेत्र में ओपन कास्ट खनन के बजाय रैट-होल खनन को अधिक पसंद किया जाता है।
- रैट-होल खनन में संलग्न अधिकांश श्रमिक (जिसमें बच्चे भी शामिल हैं) असम के गरीब इलाकों और नेपाल तथा बांग्लादेश के गरीब इलाकों से आते हैं। चूँकि मेघालय में गरीब आदिवासी और गैर-आदिवासी लोगों को दोयम दर्जे का नागरिक माना जाता है, इसलिये उनकी सुरक्षा के प्रति अधिक ध्यान नहीं दिया जाता है।
- पूर्वोत्तर भारत में कोयला खनन, प्राकृतिक संसाधनों के ह्रास के बड़े ट्रेंड का हिस्सा है।
रैट-होल खनन
- इस प्रकार की खनन प्रक्रिया में बहुत छोटी सुरंगों की खुदाई की जाती है, जो आमतौर पर केवल 4-5 फीट ऊँची होती हैं जिसमें प्रवेश कर श्रमिक (अक्सर बच्चे भी) कोयला निष्कर्षण का कार्य करते हैं, इसलिये रैट-होल खनन को सबसे मुश्किल और खतरनाक खनन तकनीक के रूप में जाना जाता है।
ओपन कास्ट खनन
- यह पृथ्वी से चट्टान या खनिज निकालने की एक सतही खनन तकनीक है, जो कि तुलनात्मक रूप से कम जोखिमपूर्ण होती है।
चिंताएँ
- पारिस्थितिकी संबंधी मुद्दे: पहाड़ी क्षेत्रों में निरंतर अरक्षणीय खनन के कारण कृषि योग्य क्षेत्र और आस-पास की नदियाँ दूषित होती हैं, जिससे उस क्षेत्र की जैव विविधता और स्थानीय विरासत को नुकसान पहुँचता है।
- स्वास्थ्य संबंधी मुद्दे: खनन गतिविधियों के कारण उस क्षेत्र के श्रमिक विभिन्न गंभीर रोगों जैसे- फाइब्रोसिस, न्यूमोकोनिओसिस और सिलिकोसिस आदि के प्रति संवेदनशील हो जाते हैं।
- बाल श्रम और तस्करी: रैट-होल खनन में अधिकांशतः बच्चों को शामिल किया जाता है, क्योंकि वे छोटी सुरंगों में आसानी से प्रवेश कर सकते हैं। यही कारण है कि रैट-होल खनन ने बाल श्रम और तस्करी की गतिविधियों को बढ़ावा दिया है।
- भ्रष्टाचार: प्रायः पुलिस अधिकारी खदान मालिकों के साथ साँठगाँठ कर लेते हैं, जिससे श्रमिकों के शोषण और अवैध गतिविधियों को बढ़ावा मिलता है।
उपाय
- उपरोक्त चुनौतियों से निपटने के लिये जयंतिया हिल्स ज़िला प्रशासन ने आसपास की कोक फैक्ट्रियों और सीमेंट प्लांटों को कॉर्पोरेट सोशल रिस्पांसबिलिटी (CSR) के तहत पर्यावरणीय नुकसान को कम करने से संबंधित कार्यक्रमों में योगदान देने के लिये प्रेरित किया।
- इस क्षेत्र में शुरू की गई परियोजनाओं में कम लागत वाली वर्षा जल संचयन परियोजना भी शामिल है, जिसका उद्देश्य कोयला खनन के कारण सूख चुके इस संपूर्ण क्षेत्र को पुनः जल प्रदान करना है।
- पूर्वी जयंतिया हिल्स ज़िले के कुछ हिस्सों में खनन के प्रभाव से बची हुईं गुफाओं, घाटियों और झरनों को देखने के लिये आने वाले पर्यटकों हेतु मूलमिलिआंग गाँव को एक ‘बेस कैंप’ के रूप में विकसित किया गया है, जिससे इस क्षेत्र के कारण स्थानीय राजस्व में बढ़ोतरी होगी।
- चूँकि संविधान की छठी अनुसूची में स्पष्ट तौर पर खनन का कोई उल्लेख नहीं है, इसलिये यहाँ के पर्यावरण कार्यकर्त्ता स्थानीय कोयला व्यापार को केंद्रीय खनन और पर्यावरण कानूनों के तहत विनियमित करने की मांग कर रहे हैं।
खनन से संबंधित सरकार के प्रयास
- वर्ष 2018 में कोयला मंत्रालय ने कोयले की गुणवत्ता की निगरानी के लिये उत्तम (UTTAM- अनलॉकिंग ट्रांसपेरेसी बाई थर्ड पार्टी असेसमेंट ऑफ माइंड कोल) एप लॉन्च किया था।
- सरकार ने राष्ट्रीय खनिज नीति (NMP) को 2019 में मंज़ूरी दी थी, जिसमें स्थायी खनन, अन्वेषण को बढ़ावा देने, अत्याधुनिक प्रौद्योगिकी के उपयोग को प्रोत्साहित करने और कौशल विकास जैसे विषयों पर ज़ोर दिया गया है।
- वर्ष 2019 में सरकार ने कोयले की बिक्री और कोयले के खनन से संबंधित गतिविधियों में स्वचालित मार्ग के तहत 100 प्रतिशत FDI की अनुमति थी।
- जनवरी 2020 में संसद ने खनिज कानून (संशोधन) विधेयक, 2020 पारित किया था।
- यह विधेयक खान और खनिज (विकास एवं विनियम) अधिनियम 1957 तथा कोयला खान (विशेष प्रावधान) अधिनियम, 2015 में संशोधन का प्रावधान करता है।
- खान और खनिज (विकास एवं विनियम) अधिनियम 1957 भारत में खनन क्षेत्र को नियंत्रित करता है और खनन कार्यों के लिये खनन लीज़ प्राप्त करने और जारी करने संबंधी नियमों का निर्धारण करता है।
- कोयला खान (विशेष प्रावधान) अधिनियम, 2015 का उद्देश्य कोयला खनन कार्यों में निरंतरता सुनिश्चित करने और कोयला संसाधनों के इष्टतम उपयोग को बढ़ावा देने के लिये प्रतिस्पर्द्धी बोली (Bidding) के आधार पर कोयला खानों का आवंटित करने के लिये सरकार को सशक्त बनाना है।
- यह विधेयक बिना किसी अंतिम-उपयोग संबंधी प्रतिबंध के स्थानीय और वैश्विक फर्मों को वाणिज्यिक कोयला खनन की अनुमति देता है।
- यह विधेयक खान और खनिज (विकास एवं विनियम) अधिनियम 1957 तथा कोयला खान (विशेष प्रावधान) अधिनियम, 2015 में संशोधन का प्रावधान करता है।
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
थारू जनजाति
चर्चा में क्यों?
हाल ही में उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा वन विभाग की एक ‘होम स्टे’ (घर पर ठहरने) योजना के माध्यम से नेपाल से सटे प्रदेश के चार ज़िलों बलरामपुर, बहराइच, लखीमपुर और पीलीभीत के थारू गाँवों को जोड़ने के लिये कार्य किया जा रहा है।
- इसका उद्देश्य पर्यटकों को थारू जनजाति के प्राकृतिक निवास स्थान (जैसे- जंगलों से एकत्रित घास से बनी पारंपरिक झोपड़ियों आदि) में रहने का अनुभव प्रदान करना है।
- इस योजना के माध्यम से जनजातीय आबादी के लिये रोज़गार सृजन और आर्थिक स्वतंत्रता प्रदान करने का प्रयास किया जाएगा।
प्रमुख बिंदु:
- थारू का शाब्दिक अर्थ: ऐसा माना जाता है कि ‘थारू’ शब्द की उत्पत्ति ‘स्थविर’ (Sthavir) से हुई है जिसका अर्थ होता है बौद्ध धर्म की थेरवाद शाखा/परंपरा को मानने वाला।
- निवास स्थान: थारू समुदाय शिवालिक या निम्न हिमालय की पर्वत शृंखला के बीच तराई क्षेत्र से संबंधित है।
- तराई उत्तरी भारत और नेपाल के बीच हिमालय की निचली श्रेणियों के सामानांतर स्थित क्षेत्र है।
- थारू समुदाय के लोग भारत और नेपाल दोनों देशों में पाए जाते हैं, भारतीय तराई क्षेत्र में ये अधिकाशंतः उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश और बिहार में रहते हैं।
- अनुसूचित जनजाति: थारू समुदाय को उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश और बिहार राज्यों में एक अनुसूचित जनजाति के रूप में चिह्नित किया गया है।
- आजीविका: इस समुदाय के अधिकांश लोग अपनी आजीविका के लिये वनों पर आश्रित रहते हैं हालाँकि समुदाय के कुछ लोग कृषि भी करते हैं।
- संस्कृति:
- इस समुदाय के लोग थारू भाषा (हिंद-आर्य उपसमूह की एक भाषा) की अलग-अलग बोलियाँ और हिंदी, उर्दू तथा अवधी भाषा के भिन्न रूपों/संस्करणों का प्रयोग बोलचाल के लिये करते हैं।
- थारू समुदाय के लोग भगवान शिव को महादेव के रूप में पूजते हैं और वे अपने उपनाम के रूप में ‘नारायण’ शब्द का प्रयोग करते हैं, उनकी मान्यता है कि नारायण धूप, बारिश और फसल के प्रदाता हैं।
- उत्तर भारत के हिंदू रीति-रिवाजों की अपेक्षा थारू समुदाय की महिलाओं को संपत्ति में ज़्यादा मज़बूत अधिकार प्राप्त हैं।
- थारू समुदाय के मानक पकवानों में दो प्रमुख ‘बगिया या ढिकरी’ तथा घोंघी हैं। बगिया (ढिकरी) चावल के आटे का उबला हुआ एक पकवान है, जिसे चटनी या सालन के साथ खाया जाता है। वहीं घोंघी एक खाद्य घोंघा है, जिसे धनिया, मिर्च, लहसुन और प्याज से बने सालन में पकाया जाता है।
थेरवाद बौद्ध परंपरा:
- बौद्ध धर्म की यह शाखा श्रीलंका, कंबोडिया, थाईलैंड, लाओस और म्याँमार में अधिक प्रचलित है। कई बार इसे ‘दक्षिणी बौद्ध धर्म’ के नाम से भी संबोधित किया जाता है।
- इसका शाब्दिक अर्थ है ‘बड़ों/बुज़ुर्गों का सिद्धांत’ जहाँ बुज़ुर्गों से आशय वरिष्ठ बौद्ध भिक्षुओं से है।
- बौद्ध धर्म की इस परंपरा के लोगों का मानना है कि यह परंपरा बुद्ध की मूल शिक्षाओं के सबसे करीब है। हालाँकि इसके तहत कट्टरपंथी तरीके से इन शिक्षाओं की मान्यता पर अधिक ज़ोर नहीं दिया जाता है, इन्हें अपनी श्रेष्ठता या योग्यता के लिये नहीं बल्कि लोगों को सत्य की पहचान करने में सहायता हेतु एक माध्यम/उपकरण के रूप में देखा जाता है ।
- इस परंपरा में अपने स्वयं के प्रयासों से ‘आत्म-मुक्ति’ प्राप्त करने पर ज़ोर दिया जाता है। इसके अनुयायियों से ‘सभी प्रकार की बुराइयों से दूर रहने, जो भी अच्छा है उसे संचित करने और अपने मन को शुद्ध करने’ की अपेक्षा की जाती है।
- थेरवाद बौद्ध धर्म का आदर्श वह अर्हत या सिद्ध संत है, जो अपने प्रयासों के परिणामस्वरूप आत्मज्ञान को प्राप्त करता है।
- थेरवाद बौद्ध धर्म के अनुयायियों के लिये स्वयं में बदलाव लाने के लिये ‘ध्यान’ को एक प्रमुख माध्यम माना जाता है और इसलिये एक भिक्षु अपना बहुत समय ध्यान में ही बिता देता है।
अनुसूचित जनजाति:
- संविधान के अनुच्छेद 366 (25) में अनुसूचित जनजाति को उन समुदायों के रूप में संदर्भित किया गया है जिन्हें संविधान के अनुच्छेद 342 के तहत सूचीबद्ध किया गया है।
- अनुच्छेद 342 के अनुसार, अनुसूचित जनजातियाँ वे समुदाय हैं जिन्हें राष्ट्रपति द्वारा एक सार्वजनिक अधिसूचना या संसद द्वारा संबंधित अधिनियम में संशोधन के पश्चात् इस प्रकार घोषित किया गया है।
- अनुसूचित जनजातियों की सूची राज्य/केंद्रशासित प्रदेश से संबंधित होती है, ऐसे में एक राज्य में अनुसूचित जनजाति के रूप में घोषित एक समुदाय को दूसरे राज्य में भी यह दर्जा प्राप्त होना अनिवार्य नहीं है।
- भारतीय संविधान में एक अनुसूचित जनजाति के रूप में चिह्नित किसी समुदाय की विशिष्टता के बारे में कोई विशेष जानकारी नहीं दी गई है। आदिमता, भौगोलिक अलगाव और सामाजिक, शैक्षणिक तथा आर्थिक पिछड़ापन ऐसे लक्षण हैं जो अनुसूचित जनजाति के समुदायों को अन्य समुदायों से अलग करते हैं।
- देश में कुछ ऐसी जनजातियाँ [ विशेष रूप से कमज़ोर जनजातीय समूहों (Particularly Vulnerable Tribal Groups -PVTG) के रूप में ज्ञात 75 ] हैं, जिन्हें (i)प्रौद्योगिकी के पूर्व-कृषि स्तर, (ii) स्थिर या घटती जनसंख्या, (iii) अत्यंत कम साक्षरता और (iv) आर्थिक निर्वाह स्तर के आधार पर वर्गीकृत किया जाता है।
- सरकार के प्रयास: अनुसूचित जनजाति एवं अन्य पारंपरिक वनवासी (वन अधिकारों की मान्यता) अधिनियम, 2006’ या ‘वन अधिकार अधिनियम’ (Forest Rights Act- FRA), ‘पंचायत के प्रावधान (अनुसूचित क्षेत्रों पर विस्तार) अधिनियम, 1996’, अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम एवं जनजातीय उप-योजना रणनीति आदि जनजातीय समुदायों के सामाजिक-आर्थिक सशक्तीकरण पर केंद्रित हैं।
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
नर्मदा प्राकृतिक सौंदर्य पुनर्स्थापना परियोजना
चर्चा में क्यों?
राष्ट्रीय ताप विद्युत निगम (National Thermal Power Corporation-NTPC) लिमिटेड ने नर्मदा प्राकृतिक सौंदर्य पुनर्स्थापना परियोजना (Narmada Landscape Restoration Project- NLRP) को लागू करने के लिये भारतीय वन प्रबंधन संस्थान (Indian Institute of Forest Management- IIFM), भोपाल के साथ एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किये हैं।
- NTPC लिमिटेड विद्युत मंत्रालय के तहत एक केंद्रीय सार्वजनिक क्षेत्र का उपक्रम (PSU) है। मई 2010 में इसे महारत्न कंपनी का दर्जा दिया गया था।
प्रमुख बिंदु
नर्मदा प्राकृतिक सौंदर्य पुनर्स्थापना परियोजना
- यह एक सहयोगी और सहभागी दृष्टिकोण है जो नदी के संसाधनों की निरंतरता और जल संसाधनों पर वन और कृषि प्रथाओं का प्रबंधन करेगा।
- इस परियोजना का मुख्य उद्देश्य एक प्रोत्साहन प्रणाली स्थापित करना है जो नर्मदा नदी घाटी के सहायक वन और कृषि समुदायों के स्थायी परिदृश्य को बनाए रखने में सहायक हो।
- परिदृश्य/प्राकृतिक सौंदर्य प्रबंधन (Landscape management) का तात्पर्य सामाजिक, आर्थिक एवं पर्यावरणीय प्रक्रियाओं के कारण हुए परिवर्तनों का नेतृत्त्व करने और इनके बीच सामंजस्य स्थापित करने के साथ ही सतत् विकास के दृष्टिकोण से किसी परिदृश्य/प्राकृतिक सौंदर्य का नियमित रख-रखाव सुनिश्चित करना है।
निधियन प्रणाली:
- यह कार्यक्रम NTPC लिमिटेड (कॉर्पोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व पहल के तहत) और यूनाइटेड स्टेट्स एजेंसी फॉर इंटरनेशनल डेवलपमेंट (USAID) से समान अनुपात में प्राप्त अनुदान सहायता के साथ साझेदारी में शुरू किया गया है।
- USAID विश्व की प्रमुख अंतर्राष्ट्रीय विकास एजेंसी है जो विकास परिणामों में तेज़ी लाने का कार्य करती है।
- USAID का कार्य अमेरिका की राष्ट्रीय सुरक्षा और आर्थिक समृद्धि को प्रकट करना है, जो अमेरिकी उदारता को प्रदर्शित करती है और प्राप्तकर्त्ता के लिये आत्मनिर्भरता और लचीलेपन/अनुकूलता/परिवर्तन का मार्ग प्रशस्त करती है।
कार्यान्वयन
- 4 वर्ष की अवधि वाली यह परियोजना मध्य प्रदेश के खरगोन ज़िले में ओंकारेश्वर और महेश्वर बाँधों के बीच नर्मदा नदी की चयनित सहायक नदियों के जलग्रहण क्षेत्र में लागू की जाएगी।
- ओंकारेश्वर बाँध (Omkareshwar Dam):
- ओंकारेश्वर बाँध इंदिरा सागर परियोजना के प्रमुख अनुप्रवाह (Downstream) बाँधों में से एक है, जो नर्मदा और कावेरी के तटों पर स्थित है।
- इंदिरा सागर एक बहुउद्देशीय परियोजना है जिसमें नर्मदा नदी पर विभिन्न बाँधों का निर्माण करना शामिल हैं।
- ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग, जो 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है, नर्मदा और कावेरी नदी के संगम पर स्थित है।
- महेश्वर बाँध (Maheshwar Dam):
- महेश्वर, 400 मेगावाट विद्युत उपलब्ध कराने के उद्देश्य से नर्मदा घाटी पर योजनाबद्ध तरीके से बनाए गए बड़े बाँधों में से एक है।
कार्यान्वयन एजेंसियाँ:
- भारतीय वन प्रबंधन संस्थान (IIFM), भोपाल जो पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (MoEF&CC) के तहत सरकार से सहायता प्राप्त एक स्वायत्त संस्थान है, ग्लोबल ग्रीन ग्रोथ इंस्टीट्यूट (GGGI) के साथ संयुक्त रूप से इस परियोजना को लागू करेगा।
परियोजना के लाभ:
- यह परियोजना पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं (Ecosystem Services) को बढ़ाने के लिये प्रकृति-आधारित समाधानों का विस्तार करेगी।
- यह भूमि, जल और वायु से संबंधित स्वच्छ और टिकाऊ वातावरण के निर्माण में योगदान देगी।
- इससे जल की गुणवत्ता और मात्रा में सुधार होगा।
ग्लोबल ग्रीन ग्रोथ इंस्टीट्यूट (GGGI)
- GGGI की स्थापना वर्ष 2012 में सतत् विकास पर रियो + 20 संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन (Rio+20 United Nations Conference on Sustainable Development) के दौरान एक अंतर्राष्ट्रीय अंतर-सरकारी संगठन के रूप में की गई थी।
- इसका ध्येय एक मज़बूत, समावेशी और टिकाऊ विकास तथा निम्न-कार्बन वाले लचीले विश्व का निर्माण करना तथा मिशन के सदस्य देशों को उनकी अर्थव्यवस्थाओं को हरित विकास के आर्थिक मॉडल में बदलने में सहायता करना है।
- भारत इसका सदस्य नहीं है, बल्कि एक भागीदार देश है।
- मुख्यालय: सियोल, दक्षिण कोरिया।
नर्मदा नदी
- नर्मदा प्रायद्वीपीय क्षेत्र में पश्चिम की ओर बहने वाली सबसे लंबी नदी है। यह उत्तर में विंध्य श्रेणी तथा दक्षिण में सतपुड़ा श्रेणी के मध्य भ्रंश घाटी से होकर बहती है।
- इसका उद्गम मध्य प्रदेश में अमरकंटक के निकट मैकाल श्रेणी से होता है।
- इसके अपवाह क्षेत्र का एक बड़ा हिस्सा मध्य प्रदेश में तथा इसके अलावा महाराष्ट्र और गुजरात में है।
- जबलपुर (मध्य प्रदेश) के निकट यह नदी ‘धुँआधार प्रपात' का निर्माण करती है।
- नर्मदा नदी के मुहाने में कई द्वीप हैं जिनमें से अलियाबेट सबसे बड़ा है।
- प्रमुख सहायक नदियाँ: हिरन, ओरसंग, बरना तथा कोलार आदि।
- इंदिरा सागर, सरदार सरोवर आदि इस नदी के बेसिन में स्थित में प्रमुख जल-विद्युत परियोजनाएँ हैं।
- नर्मदा बचाओ आंदोलन (NBA):
- यह नर्मदा नदी पर विभिन्न बड़ी बाँध परियोजनाओं के खिलाफ स्थानिक जनजातियों (आदिवासियों), किसानों, पर्यावरणविदों, मानवाधिकार कार्यकर्त्ताओं द्वारा चलाया गया सामाजिक आंदोलन है।
- गुजरात का सरदार सरोवर बाँध इस नदी पर निर्मित सबसे बड़े बाँधों में से एक है और यह आंदोलन के शुरुआती केंद्र बिंदुओं में से एक था।
स्रोत: पी.आई.बी.
ओडिशा में हाथी गलियारे
चर्चा में क्यों
हाल ही में राष्ट्रीय हरित अधिकरण (National Green Tribunal) ने ओडिशा सरकार को 14 चिह्नित हाथी गलियारों के लिये एक कार्ययोजना तैयार करने का निर्देश दिया है।
प्रमुख बिंदु
पृष्ठभूमि:
- वर्ष 2017 में NGT का आदेश:
- NGT ने एक निषेधात्मक आदेश जारी कर अत्यधिक पर्यावरण संवेदी क्षेत्रों (Eco Sensitive Zone) में की जाने वाली सभी प्रकार की गतिविधियों को प्रतिबंधित कर दिया था।
- NGT ने प्राधिकारियों को एक निश्चित समय सीमा के भीतर गलियारों के सीमांकन में तेज़ी लाने का भी निर्देश दिया था।
- ओडिशा सरकार का रुख:
- ओडिशा सरकार ने 870.61 वर्ग किमी के कुल क्षेत्र में व्याप्त 14 गलियारों जिनकी कुल लंबाई 420.8 किमी है, का विस्तार करने का प्रस्ताव किया था। कई वर्षों के बाद भी सरकार के प्रस्ताव पर कोई ठोस प्रगति नहीं हुई।
हाथी गलियारे:
- ये संकीर्ण भू-पट्टियाँ है जो हाथियों के दो बड़े आवासों को जोड़ने का कार्य करती हैं।
- दुर्घटनाओं और अन्य कारणों से जानवरों की मृत्यु को कम करने की दृष्टि से ये महत्त्वपूर्ण हैं।
- वनों का विखंडन प्रवासी गलियारों के संरक्षण को और अधिक महत्त्वपूर्ण बनाता है।
- हाथियों का इस प्रकार का गमनागमन प्रजातियों के अस्तित्व को सुरक्षित रखने और जन्म दर को बढ़ाने में मदद करता है।
- राष्ट्रीय हाथी कॉरिडोर परियोजना के अंतर्गत भारत के वन्यजीव ट्रस्ट द्वारा 88 हाथी गलियारों की पहचान की गई है।
- चिंता: मानव बस्तियों, सड़कों, रेलवे लाइनों, विद्युत लाइनों, नहरों और खनन जैसे चौतरफा विकास इन गलियारों के विखंडन के प्रमुख कारण हैं।
- गलियारों की सुरक्षा के कारण:
- हाथियों की आवाजाही यह सुनिश्चित करने के लिये आवश्यक है कि उनकी आबादी आनुवंशिक रूप से व्यवहार्य हो। यह जंगलों को पुनर्जीवित करने में भी मदद करता है, जिस पर बाघ सहित अन्य प्रजातियाँ भी निर्भर हैं।
- लगभग 40% हाथी अभयारण्य सुभेद्य (Vulnerable) हैं, क्योंकि वे संरक्षित उद्यानों और अभयारण्यों के अंतर्गत नहीं आते। माइग्रेशन कॉरिडोर को भी कोई विशिष्ट कानूनी संरक्षण प्राप्त नहीं है।
- वनों के कृषि-भूमि और अनियंत्रित पर्यटन में रूपांतरण के कारण जानवरों का मार्ग बाधित हो जाता है। इस प्रकार जानवर वैकल्पिक मार्गों की तलाश के लिये मज़बूर होते हैं जिसके परिणामस्वरूप हाथी-मानव संघर्षों में वृद्धि होती है।
- इकोटूरिज्म का कमज़ोर नियमन महत्त्वपूर्ण आवासों को गंभीर तरीके से प्रभावित कर रहा है। यह उन जानवरों को विशेष रूप से प्रभावित करता है जिनके आवास क्षेत्र (Home Ranges) हाथियों की तरह बड़े होते हैं।
हाथी
- हाथी एक कीस्टोन प्रजाति है।
- एशियाई हाथी की तीन उप-प्रजातियाँ हैं- भारतीय, सुमात्रन और श्रीलंकाई।
- महाद्वीप पर शेष बचे हाथियों की तुलना में भारतीय हाथियों की संख्या और रेंज व्यापक है।
- भारतीय हाथियों की संरक्षण स्थिति:
- वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972: अनुसूची-I
- IUCN रेड लिस्ट: लुप्तप्राय (Endangered)
- CITES: परिशिष्ट-I
- एशियाई हाथियों की लगभग 50% आबादी भारत में पाई जाती है, हाथी जनगणना 2017 के अनुसार, देश में हाथियों की कुल संख्या 27,312 जोकि वर्ष 2012 में हाथियों की संख्या से लगभग 3,000 कम है।
- हाथियों के संरक्षण के लिये भारत की पहल:
- गज यात्रा: यह हाथियों की रक्षा के लिये शुरू किया गया एक राष्ट्रव्यापी अभियान है जिसकी शुरुआत वर्ष 2017 में विश्व हाथी दिवस के अवसर पर की गई थी।
- प्रोज़ेक्ट एलीफेंट: यह एक केंद्र प्रायोजित योजना है जिसे वर्ष 1992 में शुरू किया गया था।
- उद्देश्य:
- हाथियों, उनके आवासों और गलियारों की सुरक्षा करना
- मानव-पशु संघर्ष के मुद्दों को हल करना
- बंदी/कैद हाथियों का कल्याण करना
- अंतर्राष्ट्रीय पहल:
- हाथियों की अवैध हत्या की निगरानी (Monitoring of Illegal Killing of Elephants- MIKE) कार्यक्रम: इसे CITES के पक्षकारों का सम्मेलन (Conference Of Parties- COP) द्वारा अज्ञापित किया गया है। इसकी शुरुआत दक्षिण एशिया में (वर्ष 2003) निम्नलिखित उद्देश्य के साथ की गई थी:
- हाथियों के अवैध शिकार के स्तर और प्रवृत्ति को मापना।
- इन प्रवृत्तियों में समय के साथ हुए परिवर्तन का निर्धारण करना।
- इन परिवर्तनों या इनसे जुड़े कारकों को निर्धारित करना और विशेष रूप से इस बात का आकलन करना कि CITES के COP द्वारा लिये गए किसी भी निर्णय का इन प्रवृत्तियों पर क्या प्रभाव पड़ा है।
- हाथियों की अवैध हत्या की निगरानी (Monitoring of Illegal Killing of Elephants- MIKE) कार्यक्रम: इसे CITES के पक्षकारों का सम्मेलन (Conference Of Parties- COP) द्वारा अज्ञापित किया गया है। इसकी शुरुआत दक्षिण एशिया में (वर्ष 2003) निम्नलिखित उद्देश्य के साथ की गई थी:
आगे की राह
- निजी निधियों के उपयोग द्वारा भूमि का अधिग्रहण कर और सरकार को उसके हस्तांतरण द्वारा देश के भीतर सफल मॉडल का उपयोग कर हाथी गलियारों के विस्तार का प्रयास किया जाना चाहिये। हाथियों के मार्गों में मानवीय हस्तक्षेप को समाप्त करना अत्यधिक आवश्यक है।
- अवैध शिकार और अवैध व्यापार को रोकने के लिये बड़े पैमाने पर लोगों में संवेदनशीलता और जागरूकता का आवश्यक है।
- बेहतर निगरानी के लिये सभी गलियारों में ड्रोन और सैटेलाइट जैसी तकनीकों का इस्तेमाल किया जा सकता है।