एथिक्स
बौद्ध और जैन धर्म में नैतिकता
- 19 Sep 2019
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बौद्ध धर्म में नैतिकता (Ethics in Buddhism) -
- बौद्ध नैतिकता में मनुष्य द्वारा मनमाने ढंग से स्वयं के उपयोगितावादी उद्देश्य के लिये बनाए गए मानक नहीं हैं।
- मानव निर्मित कानून और सामाजिक रीति-रिवाज बौद्ध नैतिकता का आधार नहीं है।
- बौद्ध नैतिकता की नींव बदलते सामाजिक रीति-रिवाजों पर नहीं, बल्कि प्रकृति के अपरिवर्तनीय कानूनों पर रखी गई है।
बौद्ध धर्म में धर्माचरण
- बौद्ध नैतिकता किसी कार्रवाई की अच्छाई या बुराई का आकलन उस इरादे या प्रेरणा के आधार पर करती है जिससे यह उत्पन्न होता है।
- लालच, घृणा या स्वार्थ से प्रेरित क्रिया-कलापों को बुरा माना जाता है तथा इन्हें अकुसल कम्मा कहा जाता है।
- जो कार्य उदारता, प्रेम और ज्ञान के गुणों से प्रेरित होते हैं वे अच्छे हैं तथा उन्हें कुसला कम्मा कहा जाता है।
जीवन के लिये तीन आवश्यक बातें
- बौद्ध धर्म मानता है - बुद्धि (प्रज्ञा), नैतिक आचरण (शील) और एकाग्रता (समाधि) जीवन के लिये तीन अनिवार्य बातें हैं।
- बुद्धि सही दृष्टिकोण से आती है तथा यह सही इरादे की ओर ले जाती है।
- सही दृष्टिकोण और इरादे नैतिक आचरण के मार्गदर्शक हैं तथा इनसे मानव सही बातचीत, सही कार्रवाई, सही आजीविका और सही प्रयास की ओर उन्मुख होता है।
- जब ज्ञान, नैतिकता और एकाग्रता जीवन का तरीका बन जाते हैं तब एक व्यक्ति को आत्मज्ञान की प्राप्ति होती है।
पंचशील(Pancasila)
बौद्ध धर्म आपसी विश्वास और सम्मान के साथ समाज में रहने के लिये स्वेच्छा से पांच उपदेशों को अपनाने हेतु आमंत्रित करता है। ये हैं:
- हत्या न करना
- चोरी न करना
- झूठ न बोलना
- यौन दुराचार न करना
- नशा न करना
दस विधर्मी कर्म
लोगों को सलाह दी जाती है कि वे लालच, घृणा, और कपट से दूर रहें क्योंकि इससे दूसरों को पीड़ा पहुँचेगी।
इन दस कामों को तीन सेटों में बाँटा गया है:
1. शारीरिक क्रियाएँ : शारीरिक क्रिया जैसे- जीवित प्राणियों की हत्या, चोरी करना और अनैतिक संभोग।
2. मौखिक क्रियाएँ: झूठ बोलना, निंदा करना, कठोर भाषण, और व्यर्थ की बातें करना।
3. मानसिक क्रियाएँ: लोभ या इच्छा, विशेष रूप से दूसरों से संबंधित चीजों की, वैमनस्य , गलत विचार।
जैन धर्म में नैतिकता (Ethics in Jainism)
मोक्ष की प्राप्ति के लिये जैन धर्म त्रिरत्न (तीन रत्नों) के रूप में जाना जाने वाला मार्ग प्रदान करता है :
- सही विश्वास (सम्यक दर्शन),
- सही ज्ञान (सम्यक ज्ञान),
- सही आचरण (सम्यक चरित्र)
इस प्रकार मोक्ष की प्रक्रिया इन तीनों तत्त्वों के समन्वय पर टिकी हुई है
पंच-महाव्रत (Pancha-mahavratas)
सामान्य तौर पर जैन नैतिकता में पंच-महाव्रतों का पालन करना आवश्यक होता है जो कि सही आचरण के तत्त्व हैं।
अहिंसा - इसका अर्थ है- मन, वचन, कर्म से किसी को भी कष्ट न पहुँचाना।
- जैन धर्म सभी के जीवन को समान मानने पर ज़ोर देता है, इसलिये एक जीवित प्राणी को मारना हिंसा है।
- अपनी बातों के माध्यम से जान-बूझकर दूसरों का अपमान करना और भावनात्मक रूप से पीड़ित करके परेशान करना भी हिंसा है।
- चूँकि एक गृहस्थ हिंसा के बिना जीवन नहीं जी सकता है, इसलिये उसे दूसरों को न्यूनतम चोट के साथ ही अपनी सांसारिक ज़िम्मेदारियों का निर्वहन करना चाहिये।
- लेकिन खाने के लिये जानवरों को मारना सख्त मना है।
सत्य - असत्य से संयम अर्थात मन, वचन, कर्म से असत्य का त्याग कर देना।
यदि जीवन खतरे में हो तो भी व्यक्ति को सच बताने में संकोच नहीं करना चाहिये।
लेकिन यदि सत्य का परिणाम दूसरों को नुकसान पहुँचाता है, तो ऐसे मामले में झूठ बोला जा सकता है।
अस्तेय - चोरी करने से संयम।
चोरी के विभिन्न आयाम हैं जैसे - दूसरों की संपत्ति चुराना, दूसरों को चोरी करने के लिये निर्देशित करना, चोरी की संपत्ति प्राप्त करना।
ब्रह्मचर्य - कामुक और आकस्मिक सुखों से संयम।
- एक व्यक्ति को महिलाओं को बुरी नियत से नहीं देखना चाहिये।
- विपरीत लिंगियों के साथ सम्मान से पेश आना चाहिये।
अपरिग्रह - इसका अर्थ है किसी भी प्रकार के साधनों का संग्रह न करना।
- प्रत्येक गृहस्थ को एक सभ्य जीवन व्यतीत करने के लिये धन की आवश्यकता होती है, लेकिन धन के अनुचित संचय से दुख की प्राप्ति होती है।
- इसलिये, व्यक्ति की आवश्यकताएँ सीमित होनी चाहिये और उसे संतुष्ट रहना सीखना चाहिये।