सामाजिक न्याय
झारखंड में ICDS सर्वेक्षण
प्रिलिम्स के लियेराष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन, मध्याह्न भोजन योजना, राष्ट्रीय पोषण रणनीति, सतत् विकास लक्ष्य, आँगनवाड़ी सेवा योजना, नीति आयोग, एकीकृत बाल विकास योजना, प्रधानमंत्री मातृ वंदना योजना, पोषण अभियान, बाल संरक्षण योजना, राष्ट्रीय शिशु गृह योजना मेन्स के लियेबच्चों, गर्भवती महिलाओं और स्तनपान कराने वाली माताओं के स्वास्थ्य से संबंधित चिंताएँ तथा इस दिशा में किये जा रहे सरकारी प्रयास |
चर्चा में क्यों?
हाल के एक सर्वेक्षण के अनुसार, झारखंड में एकीकृत बाल विकास योजना (Integrated Child Development Scheme- ICDS) के अंतर्गत वर्ष 2021 के पहले छः महीनों में एक बार भी 55% से अधिक को पूरक पोषण नहीं मिला।
प्रमुख बिंदु
झारखंड की भेद्यता:
- इस राज्य में राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (National Family Health Survey)-4 के आँकड़ों के अनुसार, प्रत्येक दूसरा बच्चा अविकसित और कम वज़न का है तथा प्रत्येक तीसरा बच्चा कम वृद्धि (Stunting) से प्रभावित है एवं प्रत्येक 10वाँ बच्चा गंभीर रूप से कृशता (Wasting) से प्रभावित है व लगभग 70% बच्चे रक्तहीनता (Anemic) से पीड़ित हैं।
एकीकृत बाल विकास योजना:
एकीकृत बाल विकास योजना के विषय में:
- यह योजना महिला एवं बाल विकास मंत्रालय (Ministry of Women and Child Development) द्वारा कार्यान्वित एक केंद्र प्रायोजित योजना है। इसे वर्ष 1975 में लॉन्च किया गया था।
आईसीडीएस के अंतर्गत छह योजनाएँ:
- आँगनवाड़ी सेवा योजना:
- यह बचपन की देखभाल और विकास के लिये एक अनूठा कार्यक्रम है।
- इस योजना के लाभार्थी 0-6 वर्ष के आयु वर्ग के बच्चे, गर्भवती महिलाएँ और स्तनपान कराने वाली माताएँ हैं।
- यह छः सेवाओं का एक पैकेज प्रदान करता है जैसे- पूरक पोषण, स्कूल पूर्व अनौपचारिक शिक्षा, पोषण और स्वास्थ्य शिक्षा, टीकाकरण, स्वास्थ्य जाँच तथा संप्रेषण सेवाएँ।
- पूरक पोषण में टेक होम राशन (Take Home Ration), गर्म पका हुआ भोजन और सुबह का नाश्ता शामिल है। अतः यह योजना गरीब परिवारों के लिये अत्यधिक लाभदायक है क्योंकि यह बच्चों के पोषण संबंधी परिणाम को प्रभावित करता है।
- प्रधानमंत्री मातृ वंदना योजना:
- इस योजना के अंतर्गत मातृत्व और बाल स्वास्थ्य से संबंधित विशिष्ट शर्तों को पूरा करने वाले परिवारों के पहले जीवित बच्चे के जनन पर गर्भवती महिलाओं तथा स्तनपान कराने वाली माताओं के बैंक/पोस्ट ऑफिस खाते में 5,000 रुपए की नकद प्रोत्साहन राशि प्रदान की जाती है।
- राष्ट्रीय शिशु गृह योजना:
- इस योजना का उद्देश्य कामकाजी महिलाओं/माताओं के बच्चों (6 महीने से 6 वर्ष तक की आयु) को दिन में देखभाल की सुविधा प्रदान करना है।
- यह सुविधा एक माह में 26 दिन (प्रतिदिन साढ़े सात घंटे) दी जाती है।
- बच्चों को पूरक पोषण, प्रारंभिक शिशु देखभाल शिक्षा एवं स्वास्थ्य तथा बच्चों को सुलाने की सुविधा प्रदान की जाती है।
- किशोरियों के लिये योजना:
- इसका उद्देश्य 11-14 आयु वर्ग में स्कूल के अतिरिक्त किशोरियों को पोषण, जीवन कौशल एवं घरेलू कौशल प्रदान कर उनकी सामाजिक स्थिति को सशक्त बनाना और सुधारना है।
- इस योजना में पोषक और गैर-पोषक तत्त्व शामिल हैं जो इस प्रकार हैं; लौह और फोलिक एसिड पूरकता; स्वास्थ्य जाँच और रेफरल सेवा; स्वास्थ्य, स्वच्छता, पोषण के बारे में जागरूकता को बढ़ावा देना, स्कूल के अलावा अन्य बाह्य किशारियों को औपचारिक/अनौपचारिक शिक्षा में शामिल करना तथा विद्यमान सरकारी सेवाओं के बारे में सूचना/मार्गदर्शन प्रदान करना है।
- बाल संरक्षण योजना:
- इसका उद्देश्य कठिन परिस्थितियों में बच्चों के सुधार और कल्याण हेतु योगदान देना है, साथ ही बच्चों के दुरुपयोग, उपेक्षा, शोषण, परित्याग तथा परिवार आदि से अलगाव का मार्ग प्रशस्त करने वाली कार्यवाहियों को रोकना।
- पोषण अभियान:
- इसका उद्देश्य छोटे बच्चों में कुपोषण/अल्पपोषण, एनीमिया को कम करके, किशोर लड़कियों, गर्भवती महिलाओं और स्तनपान कराने वाली माताओं पर ध्यान केंद्रित करके स्टंटिंग, अल्पपोषण, एनीमिया की रोकथाम के साथ जन्म के समय कम वज़न वाले बच्चों के स्तर में सुधार करना है।
ICDS का उद्देश्य :
- 0-6 वर्ष आयु वर्ग के बच्चों के पोषण और स्वास्थ्य की स्थिति में सुधार करना।
- बच्चे के उचित मनोवैज्ञानिक, शारीरिक और सामाजिक विकास की नींव रखना।
- मृत्यु दर, रुग्णता, कुपोषण और स्कूल छोड़ने की घटनाओं को कम करना।
- बाल विकास को बढ़ावा देने हेतु विभिन्न विभागों के बीच नीति और कार्यान्वयन का प्रभावी समन्वय स्थापित करना।
- माता में उचित पोषण और स्वास्थ्य शिक्षा के माध्यम से बच्चों के सामान्य स्वास्थ्य और पोषण संबंधी आवश्यकताओं की देखभाल करने की क्षमता बढ़ाना।
- किशोर लड़कियों (AGs) को सुविधा प्रदान करना, उन्हें शिक्षित और सशक्त बनाना ताकि वे आत्मनिर्भर और जागरूक नागरिक बन सकें।
अन्य समान सरकारी योजनाएँ
राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन (NHM):
- राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन (NHM) को वर्ष 2013 में शुरू किया गया था, जिसके उप-मिशन के रूप में राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन और राष्ट्रीय शहरी स्वास्थ्य मिशन को सम्मिलित किया गया था।
- इसे स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय द्वारा कार्यान्वित किया जा रहा है।
- कार्यक्रम के मुख्य घटकों में प्रजनन-मातृ-नवजात-बाल एवं किशोर स्वास्थ्य (RMNCH+A) और संचारी व गैर-संचारी रोगों के लिये ग्रामीण तथा शहरी क्षेत्रों में स्वास्थ्य प्रणाली को मज़बूत करना शामिल है।
- मध्याह्न भोजन योजना एक केंद्र प्रायोजित योजना है जो वर्ष 1995 में शुरू की गई थी।
- इस कार्यक्रम के तहत विद्यालय में नामांकित I से VIII तक की कक्षाओं में अध्ययन करने वाले छह से चौदह वर्ष की आयु के हर बच्चे को पका हुआ भोजन प्रदान किया जाता है।
- यह शिक्षा मंत्रालय के स्कूली शिक्षा और साक्षरता विभाग के अंतर्गत आता है।
- इस रणनीति का उद्देश्य सबसे कमज़ोर और महत्त्वपूर्ण आयु समूहों पर ध्यान केंद्रित करते हुए वर्ष 2030 तक सभी प्रकार के कुपोषण को कम करना है।
- इसका उद्देश्य पोषण और स्वास्थ्य से संबंधित सतत् विकास लक्ष्यों के हिस्से के रूप में पहचाने गए लक्ष्यों को प्राप्त करने में सहायता करना भी है।
- इसे नीति आयोग द्वारा जारी किया जाता है।
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
भारतीय अर्थव्यवस्था
जीआई प्रमाणित भालिया गेहूँ: गुजरात
प्रिलिम्स के लियेभालिया गेहूँ, भौगोलिक संकेत (GI) प्रमाणीकरण मेन्स के लियेभौगोलिक संकेत प्रमाणीकरण का महत्त्व |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में भौगोलिक संकेत (GI) प्रमाणित भालिया किस्म के गेहूँ की पहली खेप गुजरात से केन्या और श्रीलंका को निर्यात की गई है।
प्रमुख बिंदु
गेहूँ की भालिया किस्म
- गेहूँ की भालिया किस्म को जुलाई 2011 में भौगोलिक संकेत (GI) प्रमाणीकरण प्राप्त हुआ था।
- गेहूँ की इस किस्म में प्रोटीन की मात्रा अधिक होती है और यह स्वाद में मीठा होता है।
- यह फसल मुख्य तौर पर गुजरात के भाल क्षेत्र में उगाई जाती है जिसमें अहमदाबाद, आनंद, खेड़ा, भावनगर, सुरेंद्रनगर, भरूच ज़िले शामिल हैं।
- यह किस्म बिना सिंचाई के रेनशेड परिस्थितियों में उगाई जाती है।
गुजरात के अन्य GI उत्पाद हैं
- इस श्रेणी में नवीनतम उत्पाद पेठापुर की लकड़ी के प्रिंटिंग ब्लॉक शामिल हैं, वहीं अन्य उत्पादों में सांखेड़ा में बने फर्नीचर, खंभात से एगेट, कच्छ की कढ़ाई, सूरत से ज़री शिल्प, पाटन से पटोला साड़ी, जामनगर से बंधनी और गिर से केसर आम शामिल हैं।
भौगोलिक संकेत
- भौगोलिक संकेत (GI) एक प्रकार का विशिष्ट संकेतक है जिसका उपयोग एक निश्चित भौगोलिक क्षेत्र से उत्पन्न किसी विशिष्ट विशेषताओं वाले सामानों की पहचान करने हेतु किया जाता है।
- इसका उपयोग कृषि, प्राकृतिक और विनिर्मित वस्तुओं के लिये किया जाता है।
- ‘माल का भौगोलिक संकेतक (पंजीकरण और संरक्षण) अधिनियम, 1999’ भारत में माल से संबंधित भौगोलिक संकेतों के पंजीकरण और बेहतर सुरक्षा प्रदान करने का प्रयास करता है।
- अधिनियम का संचालन पेटेंट, डिज़ाइन और ट्रेडमार्क महानियंत्रक द्वारा किया जाता है, जो कि भौगोलिक संकेतकों का रजिस्ट्रार है।
- भौगोलिक संकेत रजिस्ट्री का मुख्यालय चेन्नई में स्थित है।
- भौगोलिक संकेत का पंजीकरण 10 वर्षों की अवधि के लिये वैध होता है, हालाँकि इसे समय-समय पर 10-10 वर्षों की अतिरिक्त अवधि के लिये नवीनीकृत किया जा सकता है।
- यह विश्व व्यापार संगठन के बौद्धिक संपदा अधिकारों के व्यापार-संबंधी पहलुओं (TRIPS) का भी एक हिस्सा है।
- हाल के उदाहरण: झारखंड की सोहराई खोवर पेंटिंग, तेलंगाना की तेलिया रुमाल, तिरूर वेटिला (केरल), डिंडीगुल लॉक और कंडांगी साड़ी (तमिलनाडु), ओडिशा रसगुल्ला, शाही लीची (बिहार) आदि।
- कृषि और प्रसंस्कृत खाद्य उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण (APEDA) वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय) का ध्यान GI उत्पादों के निर्यात को बढ़ावा देने पर है।
- हाल ही में महाराष्ट्र के पालघर ज़िले से दहानु घोलवड़ सपोटा की एक खेप का निर्यात किया गया था।
गेहूँ:
- यह रबी की फसल है जो अक्तूबर-दिसंबर में बोई जाती है और अप्रैल-जून में काटी जाती है।
- तापमान: तेज़ धूप के साथ 10-15 डिग्री सेल्सियस (बुवाई के समय) और 21-26 डिग्री सेल्सियस (पकने और कटाई के समय) के बीच।
- वर्षा: लगभग 75-100 सेमी।
- मृदा का प्रकार: अच्छी तरह से सूखी उपजाऊ दोमट और चिकनी दोमट (गंगा-सतलुज मैदान तथा दक्कन का काली मिट्टी क्षेत्र)।
- भारत में प्रमुख गेहूँ उत्पादक राज्य उत्तर प्रदेश, पंजाब, हरियाणा, मध्य प्रदेश, राजस्थान, बिहार और गुजरात हैं।
- चीन के बाद भारत दूसरा सबसे बड़ा गेहूँ उत्पादक है।
- हरित क्रांति की सफलता ने रबी फसलों विशेषकर गेहूँ के विकास में योगदान दिया।
- कृषि हेतु मैक्रो प्रबंधन मोड, राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन और राष्ट्रीय कृषि विकास योजना गेहूँ की खेती का समर्थन करने के लिये कुछ सरकारी पहलें हैं।
- वित्त वर्ष 2020-21 में भारत से गेहूँ के निर्यात मूल्य में 808% की उल्लेखनीय वृद्धि देखी गई।
- भारत ने वर्ष 2020-21 के दौरान सात नए देशों - यमन, इंडोनेशिया, भूटान, फिलीपींस, ईरान, कंबोडिया और म्याँमार को पर्याप्त मात्रा में अनाज का निर्यात किया।
स्रोत: पी.आई.बी.
भारतीय अर्थव्यवस्था
अधिकृत आर्थिक ऑपरेटर कार्यक्रम
प्रिलिम्स के लियेकेंद्रीय अप्रत्यक्ष कर और सीमा शुल्क बोर्ड, विश्व सीमा शुल्क संगठन, सेफ फ्रेमवर्क, अधिकृत आर्थिक ऑपरेटर कार्यक्रम मेन्स के लिये‘अधिकृत आर्थिक ऑपरेटर’ कार्यक्रम का महत्त्व |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में केंद्रीय अप्रत्यक्ष कर और सीमा शुल्क बोर्ड (Central Board of Indirect Taxes & Customs- CBIC) ने अधिकृत आर्थिक ऑपरेटरों (Authorised Economic Operators- AEO) के आवेदनों की ऑनलाइन फाइलिंग की व्यवस्था शुरु की है।
- इस वेब एप्लीकेशन को समय-समय पर निगरानी एवं लाभ प्राप्त करने के उद्देश्य से वास्तविक समय में भौतिक रूप से दायर AEO एप्लीकेशंस की निरंतरता और डिजिटल निगरानी सुनिश्चित करने हेतु डिज़ाइन किया गया है।
प्रमुख बिंदु:
- AEO विश्व सीमा शुल्क संगठन (World Customs Organization- WCO) के तत्त्वावधान में एक कार्यक्रम (वर्ष 2007) है, जो वैश्विक व्यापार को सुरक्षित और सुविधाजनक बनाने हेतु मानकों का एक सुरक्षित ढाँचा प्रदान करता है।
- इसका उद्देश्य अंतर्राष्ट्रीय आपूर्ति शृंखला की सुरक्षा को बढ़ाना और माल की आवाजाही को सुविधाजनक बनाना है।
- इसके तहत अंतर्राष्ट्रीय व्यापार में लगी एक इकाई को WCO द्वारा आपूर्ति शृंखला सुरक्षा मानकों के अनुपालन के रूप में अनुमोदित किया जाता है और AEO का दर्जा प्रदान किया जाता है।
- AEO का दर्जा प्राप्त इकाई को 'सुरक्षित' और एक विश्वसनीय व्यापारिक भागीदार माना जाता है।
- AEO की स्थिति प्राप्त होने पर व्यापारिक इकाई को निम्नलिखित लाभ प्राप्त होते हैं जिनमें शीघ्र निकासी, कम निरीक्षण , बेहतर सुरक्षा और आपूर्ति शृंखला भागीदारों के मध्य संचार शामिल हैं।
भारतीय AEO कार्यक्रम:
- AEO कार्यक्रम को वर्ष 2011 में एक पायलट परियोजना के रूप में पेश किया गया था।
- WCO SAFE फ्रेमवर्क में विस्तृत सुरक्षा मानक भारतीय AEO कार्यक्रम के आधार हैं।
- निर्यातकों और आयातकों के लिये तीन स्तरीय AEO स्थिति है। तीन स्तर AEO T1, AEO T2, AEO T3 हैं, जहाँ AEO T3 मान्यता का उच्चतम स्तर है।
भारतीय AEO कार्यक्रम का उद्देश्य:
- व्यावसायिक संस्थाओं को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मान्यता प्राप्त प्रमाणन प्रदान करना।
- व्यावसायिक संस्थाओं को "सुरक्षित और विश्वसनीय" व्यापारिक भागीदारों के रूप में मान्यता देना।
- परिभाषित लाभों के माध्यम से व्यावसायिक संस्थाओं को प्रोत्साहित करना जिससे समय और लागत की बचत होती है।
- निर्यात के स्थान से आयात होने के स्थान तक सुरक्षित आपूर्ति शृंखला।
- बढ़ी हुई सीमा निकासी।
- आवास के समय और संबंधित लागतों में कमी।
- सीमा शुल्क सलाह/सहायता यदि व्यापार देशों के सीमा शुल्क के साथ अप्रत्याशित मुद्दों का सामना करता है।
लाभ:
- सुरक्षित और अनुपालनकारी व्यवसाय के रूप में पहचान: इसके माध्यम से भारतीय व्यवसायों को अंतर्राष्ट्रीय व्यापार में सुरक्षित एवं अनुपालनकारी व्यापार भागीदारों के रूप में विश्वव्यापी मान्यता प्राप्त करने में आसानी होगी।
- पारस्परिक मान्यता: इससे भारत को ऐसे देशों से व्यापार सुविधा प्राप्त होती है जिनके साथ भारत ने ‘पारस्परिक मान्यता समझौते (MRA) किये हैं।
- ‘पारस्परिक मान्यता समझौता (MRA) एक अंतर्राष्ट्रीय समझौता है जिसके द्वारा दो या दो से अधिक देश एक-दूसरे के अनुरूपता मूल्यांकन परिणामों (उदाहरण के लिये प्रमाणन या परीक्षण परिणाम) को मान्यता देने हेतु सहमत होते हैं।
- कार्गो सुरक्षा का सुव्यवस्थीकरण: यह भारतीय सीमा शुल्क विभाग को अंतर्राष्ट्रीय आपूर्ति शृंखला के प्रमुख हितधारकों जैसे- आयातक, निर्यातक, रसद प्रदाता, संरक्षक या टर्मिनल ऑपरेटर, कस्टम ब्रोकर और वेयरहाउस ऑपरेटर आदि के साथ बेहतर सहयोग के माध्यम से कार्गो सुरक्षा को बढ़ाने एवं सुव्यवस्थित करने में सक्षम बनाता है।
- ‘ईज़ ऑफ डूइंग बिज़नेस’ को प्रोत्साहन: उदारीकृत, सरलीकृत और युक्तियुक्त AEO प्रत्यायन प्रक्रिया में ‘ईज़ ऑफ डूइंग बिज़नेस’ को बढ़ावा देने तथा वैश्विक सर्वोत्तम प्रथाओं का अनुकरण करने की क्षमता है।
- आयात कंटेनरों की प्रत्यक्ष पोर्ट डिलीवरी और/या निर्यात कंटेनरों की सीधी पोर्ट एंट्री की सुविधा।
- यह रिफंड और अधिनिर्णयन की प्रक्रिया को भी तेज़ करता है।
- ऐसे में भारतीय ‘अधिकृत आर्थिक ऑपरेटर’ (AEO) कार्यक्रम को काफी महत्त्वपूर्ण माना जा सकता है। यह न केवल 'मेक इन इंडिया' के लक्ष्य को प्राप्त करने में मदद करेगा, बल्कि भारत को एक विनिर्माण और निर्यात केंद्र के रूप में विकसित करने में भी सहायता करेगा।
विश्व सीमा शुल्क संगठन
- इस संगठन की स्थापना वर्ष 1952 में सीमा शुल्क सहयोग परिषद (Customs Co-operation Council- CCC) के रूप में की गई। यह एक स्वतंत्र अंतर-सरकारी निकाय है, जिसका उद्देश्य सीमा शुल्क प्रशासन की प्रभावशीलता और दक्षता को बढ़ाना है।
- वर्तमान में यह पूरे विश्व के 183 सीमा शुल्क प्रशासनों का प्रतिनिधित्व करता है, जिनके द्वारा विश्व में सामूहिक रूप से लगभग 98% व्यापार किया जाता है।
- भारत को दो वर्ष की अवधि के लिये (जून 2020 तक) इसके एशिया प्रशांत क्षेत्र का उपाध्यक्ष (क्षेत्रीय प्रमुख) बनाया गया था।
- यह सीमा शुल्क मामलों को देखने में सक्षम एकमात्र अंतर्राष्ट्रीय संगठन है, इसलिये इसे अंतर्राष्ट्रीय सीमा शुल्क समुदाय की आवाज़ कहा जा सकता है।
- इसका मुख्यालय ब्रसेल्स, बेल्जियम में है।
सेफ फ्रेमवर्क
- WCO परिषद ने जून 2005 में वैश्विक व्यापार को सुरक्षित और सुगम बनाने के लिये सेफ फ्रेमवर्क (SAFE Framework) को अपनाया, जो अंतर्राष्ट्रीय आतंकवाद के निवारक, राजस्व संग्रह को सुरक्षित करने और पूरे विश्व में व्यापार सुविधा को बढ़ावा देने के रूप में कार्य करेगा।
- यह फ्रेमवर्क वैश्विक सीमा शुल्क समुदाय की आपूर्ति शृंखला के खतरों के प्रति ठोस प्रतिक्रिया के रूप में उभरा है और समान रूप से वैध तथा सुरक्षित व्यवसायों की सुविधा का समर्थन करता है।
- यह आधारभूत मानकों को निर्धारित करता है, जिनका परीक्षण किया गया है और पूरे विश्व में अच्छी तरह से काम कर रहे हैं।
स्रोत: पी. आई. बी.
भारतीय राजनीति
केंद्रीय सूचना आयोग (CIC)
प्रिलिम्स के लिये:केंद्रीय सूचना आयोग, सूचना का अधिकार मेन्स के लिये:महत्त्वपूर्ण नहीं |
चर्चा में क्यों?
सर्वोच्च न्यायालय ने भारत संघ और सभी राज्यों को केंद्रीय सूचना आयोग (CIC) एवं राज्य सूचना आयोगों (SIC) में रिक्तियों तथा पेंडेंसी के संबंध में नवीनतम घटनाओं पर स्थिति रिपोर्ट दाखिल करने का निर्देश दिया है।
प्रमुख बिंदु:
केंद्रीय सूचना आयोग (CIC) के संदर्भ में:
- स्थापना: CIC की स्थापना सूचना का अधिकार अधिनियम (2005) के प्रावधानों के तहत वर्ष 2005 में केंद्र सरकार द्वारा की गई थी। यह संवैधानिक निकाय नहीं है।
- सदस्य: इसमें एक मुख्य सूचना आयुक्त होता है और दस से अधिक सूचना आयुक्त नहीं हो सकते हैं।
- नियुक्ति: उन्हें राष्ट्रपति द्वारा एक समिति की सिफारिश पर नियुक्त किया जाता है जिसमें अध्यक्ष के रूप में प्रधानमंत्री, लोकसभा में विपक्ष के नेता और प्रधानमंत्री द्वारा नामित केंद्रीय कैबिनेट मंत्री शामिल होते हैं।
- क्षेत्राधिकार: आयोग का अधिकार क्षेत्र सभी केंद्रीय लोक प्राधिकरणों तक है।
- कार्यकाल: मुख्य सूचना आयुक्त और एक सूचना आयुक्त केंद्र सरकार द्वारा निर्धारित अवधि या 65 वर्ष की आयु तक (जो भी पहले हो) पद पर रह सकता है।
- वे पुनर्नियुक्ति के पात्र नहीं हैं।
- CIC की शक्तियाँ और कार्य:
- आयोग का कर्तव्य है कि वह सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 के तहत किसी विषय पर प्राप्त शिकायतों के मामले में संबंधित व्यक्ति से पूछताछ करे।
- आयोग उचित आधार होने पर किसी भी मामले में स्वतः संज्ञान (Suo-Moto Power) लेते हुए जाँच का आदेश दे सकता है।
- आयोग के पास पूछताछ करने हेतु सम्मन भेजने, दस्तावेज़ों की आवश्यकता आदि के संबंध में सिविल कोर्ट की शक्तियाँ होती हैं।
राज्य सूचना आयोग:
- इसका गठन राज्य सरकार द्वारा किया जाता है।
- इसमें एक राज्य मुख्य सूचना आयुक्त (State Chief Information Commissioner- SCIC) तथा मुख्यमंत्री की अध्यक्षता वाली नियुक्ति समिति की सिफारिश पर राज्यपाल द्वारा नियुक्त किये जाने वाले अधिकतम 10 राज्य सूचना आयुक्त (State Information Commissioners- SIC) शामिल होते हैं।
मुद्दे:
- देरी और बैकलॉग:
- CIC को आयोग के समक्ष दायर की गई अपील/शिकायत के निपटान में औसतन 388 दिन (एक वर्ष से अधिक) लगते हैं।
- पिछले वर्ष जारी एक रिपोर्ट बताती है कि केंद्र और राज्य सूचना आयोगों (IC) में सूचना के अधिकार के अब तक 2.2 लाख से अधिक मामले लंबित हैं।
- दंड का कोई प्रावधान नहीं:
- रिपोर्ट में पाया गया कि कानून के उल्लंघन के लिये सरकारी अधिकारियों को शायद ही किसी सज़ा का सामना करना पड़ता है।
- पिछले विश्लेषण में लगभग 59% उल्लंघनों के बावजूद केवल 2.2% मामलों में जूर्माना लगाया गया था, जो कि जूर्माना लगाना चाहिये।
- रिक्तियाँ:
- न्यायालय के बार-बार निर्देश के बावजूद CIC में अभी भी तीन रिक्तियाँ हैं।
- पारदर्शिता की कमी:
- चयन के मानदंड आदि का भी रिकॉर्ड नहीं रखा गया है।
सूचना का अधिकार अधिनियम:
- श्री कुलवाल बनाम जयपुर नगर निगम मामले में सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय के माध्यम से वर्ष 1986 में आरटीआई कानून की उत्पत्ति हुई, जिसमें यह निर्देश दिया गया कि संविधान के अनुच्छेद 19 के तहत प्रदान की गई भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता स्पष्ट रूप से सूचना का अधिकार है, जैसा कि सूचना वाक् और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का नागरिकों द्वारा पूरी तरह से उपयोग नहीं किया जा सकता है
- इसका उद्देश्य भारतीय नागरिकों को व्यावहारिक रूप से सरकार और विभिन्न सार्वजनिक उपयोगिता सेवा प्रदाताओं से कुछ प्रासंगिक प्रश्न पूछने के अपने अधिकारों का प्रयोग करने में सक्षम बनाना है।
- सूचना की स्वतंत्रता अधिनियम 2002 को आरटीआई अधिनियम में बदल दिया गया।
- इस अधिनियम का उद्देश्य नागरिकों को सरकारी एजेंसियों की त्वरित सेवाओं का लाभ उठाने में मदद करना था क्योंकि यह अधिनियम उन्हें यह सवाल पूछने में सक्षम बनाता है कि किसी विशेष आवेदन या आधिकारिक कार्यवाही में देरी क्यों होती है।
- इस अधिनियम का मुख्य उद्देश्य भ्रष्टाचार मुक्त भारत के सपने को साकार करना है।
मांगी जा सकने वाली जानकारी
- कोई भी भारतीय नागरिक किसी सरकारी प्राधिकरण से विलंबित आईटी रिफंड, ड्राइविंग लाइसेंस या पासपोर्ट के लिये आवेदन करने या बुनियादी ढाँचा परियोजना के पूर्ण होने या मौजूदा विवरण की प्राप्ति के लिये आवेदन करने हेतु स्वतंत्र है।
- मांगी गई जानकारी देश में विभिन्न प्रकार के राहत कोषों के तहत आवंटित राशि से भी संबंधित हो सकती है।
- यह अधिनियम छात्रों को इस अधिनियम के तहत विश्वविद्यालयों से उत्तर पुस्तिकाओं की प्रतियाँ प्राप्त करने में सक्षम बनाता है।
आगे की राह
- लोकतंत्र जनता द्वारा, जनता के लिये, जनता का शासन है। तीसरे प्रतिमान को प्राप्त करने हेतु राज्य को जागरूक जनता के महत्त्व और एक राष्ट्र के रूप में देश के विकास में उसकी भूमिका को स्वीकार करना करना होगा। इस संदर्भ में RTI अधिनियम से संबंधित अंतर्निहित मुद्दों को हल किया जाना चाहिये, ताकि यह समाज की सूचना आवश्यकताओं की पूर्ति कर सके।
- विशेष रूप से कोविड -19 के दौरान सूचना आयोगों की भूमिका सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि लोग स्वास्थ्य सुविधाओं, सामाजिक सुरक्षा कार्यक्रमों एवं संकट के समय लोगों हेतु आवश्यक वस्तुओं और सेवाओं के वितरण के बारे में जानकारी प्राप्त कर सकें।
- 2019 के आदेश में शीर्ष अदालत ने केंद्र और राज्य सरकारों को पारदर्शी व समयबद्ध तरीके से केंद्रीय एवं राज्य सूचना आयोगों में रिक्त पदों को भरने के लिये कई निर्देश जारी किये थे।
- अभिलेखों का त्वरित रूप से डिजिटलीकरण और उचित रिकॉर्ड प्रबंधन महत्त्वपूर्ण है क्योंकि लॉकडाउन में अभिलेखों तक दूरस्थ पहुँच (Remote Access) की कमी को व्यापक रूप से आयोगों द्वारा अपीलों तथा शिकायतों की सुनवाई करने में बाधक होने का कारण बताया गया है।
स्रोत: द हिंदू
अंतर्राष्ट्रीय संबंध
कृषि पर भारत-यूरोपीय संघ की बैठक
प्रिलिम्स के लिये:नैनो-यूरिया, जैविक खेती मेन्स के लिये:भारत-यूरोपीय संघ के मध्य संबंध, सतत् कृषि विकास हेतु यूरोपीय संघ की विभिन्न पहलें |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में भारतीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री और यूरोपीय आयोग (European Commission) के कृषि सदस्य के बीच एक आभासी बैठक आयोजित की गई।
- इस बैठक के दौरान जुलाई 2020 में आयोजित भारत-यूरोपीय संघ शिखर सम्मेलन के बाद से भारत-यूरोपीय संघ (EU) के संबंधों में आई मज़बूती को रेखांकित किया गया।
- इससे पूर्व भारतीय प्रधानमंत्री ने भारत-यूरोपीय संघ के नेताओं की बैठक में हिस्सा लिया था।
प्रमुख बिंदु
बैठक संबंधी मुख्य बिंदु
- यूरोपीय यूनियन कॉमन एग्रीकल्चरल पाॅॅलिसी (CAP):
- वर्ष 1962 में लॉन्च की गई यह नीति कृषि एवं समाज तथा यूरोप तथा उसके किसानों के बीच एक साझेदारी के रूप में कार्य करती है।
- यह यूरोपीय संघ के सभी देशों के लिये एक समान नीति है और इसे यूरोपीय संघ के बजटीय प्रावधानों के माध्यम से यूरोपीय स्तर पर प्रबंधित और वित्त पोषित किया जाता है।
- इसका उद्देश्य किसानों का समर्थन करना, कृषि उत्पादकता में सुधार करना, किफायती भोजन की स्थायी आपूर्ति सुनिश्चित करना, यूरोपीय संघ के किसानों की सुरक्षा करना, जलवायु परिवर्तन से निपटना और प्राकृतिक संसाधनों का स्थायी प्रबंधन आदि सुनिश्चित करना है।
- यूरोपीय संघ ‘फार्म टू फोर्क’ रणनीति:
- यह रणनीति ‘यूरोपीय ग्रीन डील’ का एक प्रमुख हिस्सा है और इसका उद्देश्य खाद्य प्रणालियों को निष्पक्ष, स्वस्थ एवं पर्यावरण के अनुकूल बनाना है। साथ ही यह स्थायी एवं सतत् खाद्य प्रणाली में ट्रांज़िशन में तेज़ी लाने की दिशा में भी कार्य करता है।
- यूरोपीय संघ द्वारा ‘कॉमन एग्रीकल्चरल पाॅॅलिसी’ (CAP) के साथ-साथ ‘फार्म टू फोर्क’ रणनीति में सुधार किया गया है, ताकि कृषि को अधिक स्थायी और सतत् बनाया जा सके।
- यूरोपीय संघ ने वर्ष 2030 तक यूरोपीय संघ के 25 प्रतिशत क्षेत्र को जैविक कृषि के तहत लाने का भी लक्ष्य रखा है।
- G20 कृषि मंत्रियों की बैठक 2021:
- यह ‘G20 लीडर्स समिट 2021’ के हिस्से के रूप में आयोजित मंत्रिस्तरीय बैठकों में से एक है, जिसकी मेज़बानी अक्तूबर 2021 में इटली द्वारा की जाएगी।
- यह मुख्यतः तीन व्यापक एवं परस्पर संबद्ध स्तंभों पर ध्यान केंद्रित करेगी- आम लोग, पृथ्वी और समृद्धि।
- भारत और यूरोपीय संघ दोनों द्वारा इस शिखर सम्मेलन में द्विपक्षीय सहयोग की उम्मीद की जा रही है।
- संयुक्त राष्ट्र खाद्य प्रणाली शिखर सम्मेलन 2021
- संयुक्त राष्ट्र (UN) के महासचिव ने सतत् विकास के लिये वर्ष 2030 एजेंडा के दृष्टिकोण को साकार करने और दुनिया में कृषि-खाद्य प्रणालियों में सकारात्मक बदलाव हेतु रणनीति विकसित करने के लिये पहले संयुक्त राष्ट्र खाद्य प्रणाली शिखर सम्मेलन के आयोजन का आह्वान किया है, जिसे सितंबर 2021 में आयोजित किया जाएगा।
- यूरोपीय संघ और भारत इस सम्मेलन के दौरान भी अपने सहयोग को मज़बूत करने का प्रयास करेंगे।
भारत का रुख:
- छोटे किसानों का दबदबा:
- इसके 70% ग्रामीण परिवार अभी भी अपनी आजीविका हेतु मुख्य रूप से कृषि पर निर्भर हैं, 82% किसान छोटे और सीमांत हैं।
- किसानों की आय बढ़ाने हेतु हाल में किये गए प्रयासों पर चर्चा :
- ग्रामीण क्षेत्रों में फार्म गेट (Farm Gate) और कृषि विपणन बुनियादी ढाँचे (Agriculture Marketing Infrastructure) के विकास के लिये एक लाख करोड़ रुपए के कोष के साथ कृषि अवसंरचना कोष की स्थापना।
- कृषि उपज के विपणन में छोटे और सीमांत किसानों की सहायता हेतु 10000 किसान उत्पादक संगठनों (Farmer Produce Organizations (FPOs) के गठन की योजना।
- कृषि को टिकाऊ और पर्यावरण अनुकूल बनाने हेतु पहलों पर चर्चा:
- नैनो-यूरिया (Nano-urea ) के प्रयोग को प्रोत्साहन।
- परंपरागत कृषि विकास योजना के तहत जैविक खेती (Organic Farming)।
- ट्राईसाइक्लाज़ोल की अधिकतम अवशिष्ट सीमा (MRL):
- चावल की फसल में इस्तेमाल होने वाले ट्राईसाइक्लाज़ोल की अधिकतम अवशिष्ट सीमा ( Maximum Residual Limit- MRL) तय करने का मुद्दा उठाया गया जो भारत के लिये चिंता का विषय रहा है और यूरोपीय संघ को होने वाले भारत के बासमती चावल के निर्यात को प्रभावित कर रहा है।
- MRL अच्छी कृषि पद्धतियों (Good Agricultural Practices- GAP) के अनुसार, कीटनाशकों के उपयोग के परिणामस्वरूप फसल या खाद्य वस्तुओं पर कीटनाशक हेतु अधिकतम सांद्रता है, जिसे पीपीएम (ppm) में व्यक्त किया जाता है।
- ट्राईसाइक्लाज़ोल (Tricyclazole) एक कवकनाशी है जिसका उपयोग राइस ब्लास्ट (Rice Blast) को नियंत्रण करने हेतु किया जाता है लेकिन इसे यूरोपीय संघ में उपयोग के लिये अनुमोदित नहीं किया गया है।
- चावल की फसल में इस्तेमाल होने वाले ट्राईसाइक्लाज़ोल की अधिकतम अवशिष्ट सीमा ( Maximum Residual Limit- MRL) तय करने का मुद्दा उठाया गया जो भारत के लिये चिंता का विषय रहा है और यूरोपीय संघ को होने वाले भारत के बासमती चावल के निर्यात को प्रभावित कर रहा है।
यूरोपीय आयोग
यूरोपीय आयोग के विषय में:
- यह यूरोपीय संघ (European Union) का एक कार्यकारी निकाय है। यह विधायी प्रक्रियाओं के प्रति उत्तरदायी है। यह विधानों को प्रस्तावित करने, निर्णयों को लागू करने, यूरोपीय संघ की संधियों को बरकरार रखने और यूरोपीय संघ के दिन-प्रतिदिन के कार्यों के प्रबंधन के लिये ज़िम्मेदार है।
- यूरोपीय संघ 27 देशों का एक समूह है जो एक समेकित आर्थिक और राजनीतिक ब्लॉक के रूप में कार्य करता है।
- इस आयोग को महानिदेशालय (Directorates General) के रूप में विभाजित किया गया है, जिसकी तुलना एक महानिदेशक के नेतृत्व वाले विभागों या मंत्रालयों से की जा सकती है।
संरचना:
- आयोग 28 सदस्य देशों के साथ एक कैबिनेट सरकार के रूप में कार्य करता है। प्रति सदस्य देश से एक सदस्य आयोग में शामिल होता है। इन सदस्यों का प्रस्ताव सदस्य देशों द्वारा ही दिया जाता है जिसे यूरोपीय संसद द्वारा अंतिम स्वीकृति दी जाती है।
- 28 सदस्य देशों में से एक को यूरोपीय परिषद द्वारा अध्यक्ष पद हेतु प्रस्तावित और यूरोपीय संसद द्वारा निर्वाचित किया जाता है।
आगे की राह
- भारत सुरक्षा नज़रिये से नहीं तो भू-आर्थिक रूप से इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में संलग्न होने के लिये यूरोपीय संघ के देशों को प्रोत्साहित कर सकता है।
- यह क्षेत्रीय बुनियादी ढाँचे के सतत् विकास के लिये बड़े पैमाने पर आर्थिक संसाधन जुटा सकता है, राजनीतिक प्रभाव को नियंत्रित कर सकता है और भारत-प्रशांत वार्ता को आकार देने हेतु अपनी महत्त्वपूर्ण सॉफ्ट पावर का लाभ उठा सकता है।
- भारत और यूरोपीय संघ एक मुक्त व्यापार सौदे पर बातचीत कर रहे हैं, जो कि वर्ष 2007 से लंबित है।
- अतः भारत और यूरोपीय संघ के बीच घनिष्ठ भागीदारी के लिये दोनों को व्यापार समझौते को जल्द-से-जल्द अंतिम रूप देना चाहिये।