डेली न्यूज़ (07 Jul, 2023)



रोगाणुरोधी प्रतिरोध और वन हेल्थ

प्रिलिम्स के लिये:

संयुक्त राष्ट्र खाद्य एवं कृषि संगठन (FAO), संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (UNEP), विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO), विश्व पशु स्वास्थ्य संगठन (WOAH), वन हेल्थ दृष्टिकोण, रोगाणुरोधी प्रतिरोध, बहुऔषध-प्रतिरोधक तपेदिक, राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति 2017, AMR पर राष्ट्रीय कार्ययोजना

मेन्स के लिये:

रोगाणुरोधी प्रतिरोध के कारण, वन हेल्थ दृष्टिकोण, रोगाणुरोधी प्रतिरोध से निपटने के उपाय

चर्चा में क्यों?  

हाल ही में चार प्रमुख एजेंसियों- खाद्य एवं कृषि संगठन (FAO), संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (UNEP), विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) और विश्व पशु स्वास्थ्य संगठन (WOAH) ने रोगाणुरोधी प्रतिरोध (AMR) के गंभीर मुद्दे को संबोधित करने के लिये एक प्राथमिकता अनुसंधान एजेंडा शुरू करने की घोषणा की है। 

अनुसंधान एजेंडा के प्रमुख क्षेत्र: 

  • मुख्य उद्देश्य:  
    • विभिन्न क्षेत्रों और पर्यावरण में AMR संचरण के कारकों और उनके माध्यमों का पता लगाना। 
    • स्वास्थ्य, अर्थव्यवस्था एवं समाज के विभिन्न पहलुओं पर AMR के प्रभाव का आकलन और मूल्यांकन करना। 
    • प्रतिरोधी सूक्ष्मजीवों के कारण होने वाले संक्रमण से निपटने के लिये नए या बेहतर निदान, उपचार या टीकों के नवाचार और विकास पर ध्यान केंद्रित करना
  • क्रॉस-कटिंग थीम:  
    • अनुसंधान एजेंडा 3 क्रॉस-कटिंग थीम की पहचान करता है जिसके तहत वन हेल्थ AMR अनुसंधान, लिंग, कमज़ोर आबादी और स्थिरता पर विचार करने की आवश्यकता है।
      • लिंग संदर्भित करता है कि लोग रोगाणुरोधी (Antimicrobial) दवाओं तक कैसे पहुँचते हैं और उनका उपयोग कैसे करते हैं, वे AMR के संपर्क में कैसे आते हैं तथा उनसे कैसे प्रभावित होते हैं, वे AMR अनुसंधान में कैसे भाग लेते हैं और उससे लाभ उठाते हैं।
      • कमज़ोर आबादी उन लोगों के समूह को संदर्भित करती है जो उम्र, गरीबी, कुपोषण, विस्थापन, हाशिये पर रहने या गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य देखभाल तक पहुँच की कमी जैसे विभिन्न कारकों के कारण प्रतिरोधी सूक्ष्मजीवों के संपर्क या संक्रमण के उच्च जोखिम में हैं।
      • स्थिरता का तात्पर्य मानव अधिकारों और कल्याण को सुनिश्चित करते हुए विकास के पर्यावरणीय, आर्थिक एवं सामाजिक आयामों को संतुलित करना है।
        • इसमें AMR की अंतर-पीढ़ीगत समानता और न्याय संबंधी निहितार्थों को भी ध्यान में रखना आवश्यक है।

रोगाणुरोधी प्रतिरोध (AMR):

रोगाणुरोधी प्रतिरोध को संबोधित करने के लिये उपाय:

  • उन्नत निगरानी और नियंत्रण: प्रतिरोधी जीवों के उद्भव एवं प्रसार की निगरानी और नियंत्रण के लिये मज़बूत प्रणाली स्थापित करना। 
    • इसमें प्रतिरोध के पैटर्न पर नज़र रखना, एंटीबायोटिक के उपयोग पर डेटा एकत्र करना और हॉटस्पॉट की पहचान कर समय पर कार्रवाई करने के लिये अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर जानकारी साझा करना शामिल है।
  • एंटीबायोटिक दवाओं का उचित उपयोग: मानव और पशु स्वास्थ्य में एंटीबायोटिक दवाओं के उचित उपयोग को बढ़ावा देना, यह सुनिश्चित करना कि केवल आवश्यक होने पर ही उनका उपयोग किया जाए।
    • स्वास्थ्य सेवा प्रदाताओं को एंटीबायोटिक दवाओं  के लिये उचित दिशा-निर्देशों का पालन करने हेतु प्रोत्साहित करना, साथ ही जनता को अनावश्यक एंटीबायोटिक उपयोग के जोखिमों के बारे में शिक्षित किया जाना चाहिये।
  • संक्रमण की रोकथाम और नियंत्रण: स्वास्थ्य देखभाल परिस्थितियों में प्रभावी संक्रमण की रोकथाम और नियंत्रण प्रथाओं को लागू करना (हाथों की स्वच्छता, उचित साफ-सफाई और मानक सावधानियों को सुनिश्चित करना)।
    • संक्रमण को रोकने से एंटीबायोटिक दवाओं की आवश्यकता कम हो जाती है, परिणामस्वरूप AMR को रोका जा सकता है।
  • टीकाकरण कार्यक्रम: संक्रामक रोगों को रोकने और एंटीबायोटिक उपचार की आवश्यकता को कम करने के लिये टीकाकरण कार्यक्रमों को मज़बूत करना चाहिये।

'वन हेल्थ' दृष्टिकोण: 

  • परिचय:  
    • 'वन हेल्थ' लोगों, पशुओं के स्वास्थ्य, साथ ही पर्यावरण को संतुलित और अनुकूलित करने के लिये एक एकीकृत दृष्टिकोण है।
      • वैश्विक स्वास्थ्य खतरों को रोकना, भविष्यवाणी करना, इन खतरों का पता लगाना और प्रतिक्रिया देना विशेष रूप से महत्त्वपूर्ण है।
    • वन हेल्थ दृष्टिकोण विशेष रूप से भोजन और जल की सुरक्षा, पोषण, ज़ूनोटिक के नियंत्रण (बीमारियाँ जो पशुओं और मनुष्यों के बीच फैल सकती हैं, जैसे- फ्लू, रेबीज़ और रिफ्ट-वैली बुखार), प्रदूषण प्रबंधन तथा रोगाणुरोधी प्रतिरोध से प्रतिरक्षा करने के लिये प्रासंगिक है
  • पहचान:  
    • मई 2021 में वन हेल्थ के मुद्दों पर FAO, UNEP, WHO और WOAH को सलाह देने के लिये वन हेल्थ हाई-लेवल एक्सपर्ट पैनल (OHHLEP) का गठन किया गया था।
    • इसमें उभरती बीमारियों के खतरों पर शोध और H5N1 एवियन इन्फ्लूएंज़ा, ज़ीका और इबोला जैसी बीमारियों के प्रकोप को रोकने के लिये दीर्घकालिक वैश्विक कार्ययोजना के विकास की सिफारिशें शामिल हैं।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. निम्नलिखित में से कौन-से, भारत में सूक्ष्मजैविक रोगजनकों में बहु-औषध प्रतिरोध के होने के कारण हैं? (2019)

  1. कुछ व्यक्तियों में आनुवंशिक पूर्ववृत्ति (जेनेटिक प्रीडिस्पोज़ीशन) का होना।
  2. रोगों के उपचार के लिये वैज्ञानिकों (एंटिबॉयोटिक्स) की गलत खुराकें लेना।
  3. पशुधन फार्मिंग प्रतिजैविकों का इस्तेमाल करना।
  4. कुछ व्यक्तियों में चिरकालिक रोगों की बहुलता होना।

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: 

(a) केवल 1 और 2 
(b) केवल 2 और 3  
(c) केवल 1, 3 और 4  
(d) केवल 2, 3 और 4 

उत्तर: (b) 


मेन्स: 

प्रश्न. क्या एंटीबायोटिकों का अति-उपयोग और डॉक्टरी नुस्खे के बिना मुक्त उपलब्धता, भारत में औषधि-प्रतिरोधी रोगों के अंशदाता हो सकते हैं? अनुवीक्षण और नियंत्रण की क्या क्रियाविधियाँ उपलब्ध हैं? इस संबंध में विभिन्न मुद्दों पर समालोचनात्मक चर्चा कीजिये। (2014) 

स्रोत: डाउन टू अर्थ


पैंगोंग त्सो के आसपास बुनियादी ढाँचे का विकास

प्रिलिम्स के लिये:

भारत-चीन गतिरोध, पैंगोंग त्सो झील, वास्तविक नियंत्रण रेखा

मेन्स के लिये:

भारत-चीन सीमा पर बुनियादी ढाँचे का विकास, भारत-चीन गतिरोध की पृष्ठभूमि

चर्चा में क्यों?  

गलवान में भारतीय और चीनी सेनाओं के बीच हिंसक झड़प के तीन वर्ष बाद भारत-चीन सीमा क्षेत्र में महत्त्वपूर्ण बुनियादी ढाँचे का विकास हो रहा है।

  • गतिरोध के बाद से दोनों पक्षों द्वारा बुनियादी ढाँचे का विकास किया जा रहा है, जबकि दोनों कोर कमांडर स्तर की वार्ता के 19वें दौर का इंतजार कर रहे हैं ताकि क्षेत्र में उनके बीच विवाद का समाधान निकाला जा सके।

सीमा क्षेत्र के आसपास बुनियादी ढाँचे का विकास: 

  • चीन द्वारा बुनियादी ढाँचे के प्रयास: 
    • उत्तर और दक्षिण तट को जोड़ने वाले पैंगोंग त्सो पर एक पुल का निर्माण प्रगति पर है।
    • चीनी पक्ष में शेडोंग गाँव की ओर सड़क संपर्क सहित बड़े पैमाने पर निर्माण गतिविधियाँ देखी गई हैं।
    • G-0177 एक्सप्रेस-वे के साथ 22 किमी. लंबी सुरंग का निर्माण किया जा रहा है, जिसे  तिब्बत में महत्त्वपूर्ण G-216 राजमार्ग से जोड़ा जाएगा।
  • भारत की बुनियादी ढाँचा परियोजनाएँ: 
    • भारत पैंगोंग त्सो के उत्तरी तट पर फिंगर 4 की ओर एक ब्लैक-टॉप सड़क का निर्माण कर रहा है।
    • सीमा सड़क संगठन (BRO) सेला, नेचिपु और सेला-छबरेला सुरंगों जैसी प्रमुख बुनियादी ढाँचा परियोजनाओं को पूरा करने के निकट है, जिससे LAC के साथ हर मौसम में कनेक्टिविटी सुनिश्चित होगी।
    • भारतीय सुरक्षा बलों की गतिशीलता और सीमावर्ती क्षेत्रों की कनेक्टिविटी में सुधार के लिये भारत-चीन सीमा सड़क (ICBR) योजना भी शुरू की गई थी। इसके तीन चरण हैं: ICBR-I (73 सड़कें), ICBR-II (104 सड़कें) और ICBR-III (37 सड़कें)।
      • BRO, जो कि ICBR का अधिकांश कार्य करता है, का  पूंजीगत बजट वर्ष 2023-24 में 43% बढ़कर 5,000 करोड़ रुपए हो गया है
      • ICBR-III के अंतर्गत इनमें से लगभग 70% सड़कें अरुणाचल प्रदेश में बनाई जाएंगी।
        • सेला सुरंग सड़क परियोजना अरुणाचल प्रदेश को सड़कों के नेटवर्क के माध्यम से जोड़ने वाली सबसे प्रमुख परियोजना है। यह 13,000 फीट से अधिक ऊँचाई पर स्थित विश्व की सबसे लंबी द्वि-लेन सुरंग होगी।
    • केंद्रीय बजट वर्ष 2022-23 में केंद्र प्रायोजित योजना वाइब्रेंट विलेज प्रोग्राम की घोषणा की गई थी। 
      • इसका उद्देश्य चीन के साथ लगी सीमा पर गाँवों का व्यापक स्तर पर विकास करना, साथ ही चिह्नित सीमावर्ती गाँवों में रहने वाले लोगों के जीवन की गुणवत्ता में सुधार करना है।
      • यह कार्यक्रम हिमाचल प्रदेश और अरुणाचल प्रदेश जैसे राज्यों में बुनियादी ढाँचे में सुधार करेगा, साथ ही इसके अंर्तगत आवासीय एवं पर्यटन केंद्रों का निर्माण किया जाएगा।

इन बुनियादी ढाँचा विकास परियोजनाओं का निहितार्थ:

  • सकारात्मक: 
    • उन्नत सीमा अवसंरचना से भारत की रक्षा क्षमताओं को मज़बूत करने के साथ ही सीमा पर गश्त और सुरक्षा क्षमता में सुधार होगा।
    • बेहतर कनेक्टिविटी से स्थानीय समुदायों को लाभ होता है, क्षेत्रीय विकास को बढ़ावा मिलता है तथा नए आर्थिक अवसर उत्पन्न होते हैं।
    • बेहतर बुनियादी ढाँचा भारत को क्षेत्र में एक मज़बूत रणनीतिक स्थिति बनाए रखने की अनुमति देता है, जिससे संभावित रूप से चीन के किसी भी आक्रामक कदम को रोका जा सकता है।
  • नकारात्मक: 
    • बुनियादी ढाँचे का विकास मौजूदा सीमा विवादों में योगदान दे सकता है और तनाव बढ़ा सकता है।
    • अन्य देशों के क्षेत्र में बेहतर कनेक्टिविटी और रक्षा क्षमताओं के चलते भारत और चीन दोनों के लिये चिंता उत्पन्न कर सकता है।
    • भारत (या चीन) की दृढ़ता की धारणा द्विपक्षीय वार्ताओं और संबंधों को प्रभावित कर सकती है

पैंगोंग त्सो झील: 

  • विशेषता: 
    • पैंगोंग त्सो समुद्र तल से 14,000 फीट यानी 4350 मीटर से अधिक की ऊंँचाई पर स्थित 135 किलोमीटर लंबी और चारों ओर से स्थलों से घिरी एक झील है। 
    • यह झील हिमनद के पिघलने से बनी है, इसमें चांग चेनमो शृंखला का पर्वतीय विस्तार है, जिन्हें फिंगर्स कहा जाता है।
      • यह लवणीय जल से भरी विश्व की सबसे अधिक ऊँचाई पर स्थित झीलों में से एक है।
        • खारे जल की झील होने के बावजूद पैंगोंग त्सो पूरी तरह से जम जाती है। 
      • इस क्षेत्र के खारे जल में सूक्ष्म वनस्पति काफी कम है।
      • सर्दियों के दौरान क्रस्टेशियंस को छोड़कर यहाँ कोई भी जलीय जीवन अथवा मछली नहीं पाई जाती है।
    • पैंगोंग त्सो की लोकप्रियता का प्रमुख कारण इसका बदलता रंग है; इसका रंग नीले से हरे और लाल रंग में बदलता रहता है। 
  • पैंगोंग त्सो के फिंगर्स: 
    • पैंगोंग त्सो पूर्वी लद्दाख में स्थित बूमरैंग आकार की अनोखी झील है, यह लगभग 135 किलोमीटर तक फैली हुई है।
    • इस झील की विशेषता यहाँ के जल में कई पहाड़ी उभार हैं, जिन्हें "फिंगर्स" के नाम से जाना जाता है।
    • पैंगोंग त्सो की फिंगर्स की संख्या 1 से 8 तक है, फिंगर 1 झील के पूर्वी छोर के सबसे करीब है और फिंगर 8 सबसे दूर है।
    • भारत और चीन की वास्तविक नियंत्रण रेखा (दोनों देशों के बीच वास्तविक सीमा के रूप में कार्य करती है) के बारे में अलग-अलग धारणाएँ हैं

  • भारत और चीन का हिस्सा:  
    • पैंगोंग त्सो झील का लगभग एक-तिहाई तथा दो-तिहाई हिस्सा भारत और चीन के पास है।
    • पैंगोंग त्सो का लगभग 45 किलोमीटर हिस्सा भारत के नियंत्रण में है। पैंगोंग त्सो का पूर्वी छोर तिब्बत में स्थित है।
  • पैंगोंग त्सो को लेकर सीमा विवाद: 
    • भारत फिंगर 4 तक झील पर नियंत्रण का दावा करता है लेकिन उसका मानना है कि इसका क्षेत्र फिंगर 8 तक फैला हुआ है। 
      • उत्तरी तट दोनों देशों के बीच झड़प और तनाव का केंद्र रहा है जहाँ फिंगर्स स्थित हैं।
    • भारतीय सैनिक फिंगर 3 के पास तैनात हैं, जबकि चीनी सैनिक फिंगर 8 के पूर्वी बेस पर तैनात हैं जो फिंगर 2 तक के क्षेत्र पर दावा करते हैं। 

स्रोत: द हिंदू


ई-मेल सेवा संचालन के लिये सरकार ने लिया निजी क्षेत्र का सहारा

प्रिलिम्स के लिये:

निकनेट (NICNET) सेवाएँ, राष्ट्रीय सूचना विज्ञान केंद्र (NIC)

मेन्स के लिये:

सरकारी संचार प्रणालियों के आधुनिकीकरण में डिजिटल परिवर्तन की भूमिका

चर्चा में क्यों?  

हाल ही में इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय (Ministry of Electronics and Information Technology- MeitY) ने सरकार के लिये ई-मेल क्लाउड समाधान प्रदान करने हेतु मास्टर सिस्टम इंटीग्रेटर (MSI) के चयन के लिये मार्च 2023 में जारी एक RFP (प्रस्ताव के लिये अनुरोध) के जवाब में छह कंपनियों की बोलियों (Bids) को मंज़ूरी दी है। ये छह कंपनियाँ लार्सन एंड टुब्रो, इंफोसिस, सॉफ्टलाइन, ज़ोहो, रेलटेल और रेडिफमेल हैं।

  • सरकार इन वैकल्पिक ई-मेल प्रदाताओं की प्रभावकारिता का परीक्षण करने के लिये पायलट परियोजना संचालित कर रही है।

NICNET सेवाएँ: 

  • NICNET (एक प्रकार का वाइड एरिया नेटवर्क) उपग्रह-आधारित राष्ट्रव्यापी कंप्यूटर-संचार नेटवर्क है।
  • इसका संचालन राष्ट्रीय सूचना विज्ञान केंद्र (NIC) द्वारा किया जाता है, जो MeitY का एक हिस्सा है।
  • NICNET का केंद्र सरकार के सभी मंत्रालयों/विभागों, राज्य सरकारों, केंद्रशासित प्रदेशों और देश के ज़िला प्रशासनों के साथ संस्थागत संबंध है।
  • वर्तमान NICNET ई-मेल सेवा, @nic.in और @gov.in से समाप्त होने वाले सरकारी ई-मेल पते होस्ट करती है, जिन्हें फिर विभिन्न NIC केंद्रों पर स्थित कई मेल सर्वरों में वितरित किया जाता है। 

वैकल्पिक ईमेल प्रदाताओं की प्रभावशीलता के परीक्षण के लिये पायलट परियोजनाएँ:

  • माइक्रोसॉफ्ट ऑफिस 365: माइक्रोसॉफ्ट रेलवे में 7,036 ईमेल उपयोगकर्त्ताओं पर अपनी ई-मेल परीक्षण सेवाओं का संचालन कर रहा है।
  • ज़ोहो: क्लाउड-आधारित सॉफ्टवेयर कंपनी ज़ोहो, MeitY, प्रौद्योगिकी विभाग और NIC जैसे मंत्रालयों में 6,825 ई-मेल उपयोगकर्त्ताओं पर परीक्षण कर रही है। 

डिजिटल इंडिया कॉरपोरेशन द्वारा जारी RFP: 

  • यह एक मज़बूत क्लाउड-आधारित ई-मेल समाधान के लिये आवश्यकताओं और विशिष्टताओं की रूपरेखा तैयार करता है।
    • क्लाउड-आधारित ईमेल समाधान दूरस्थ सर्वर पर ई-मेल होस्टिंग और प्रबंधन प्रदान करता है जो इंटरनेट के माध्यम से एक्सेस किये जाते हैं। क्लाउड-आधारित ई-मेल समाधान व्यवसायों और व्यक्तियों के लिये एक लचीला, स्केलेबल और लागत प्रभावी विकल्प प्रदान करते हैं।
  • RFP डेटा सुरक्षा, गोपनीयता और उन्नत प्रौद्योगिकियों के उपयोग पर केंद्रित है।
  • यह सरकारी ईमेल सेवाओं के प्रबंधन में निजी क्षेत्र को शामिल करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है। 
  • RFP यह सुनिश्चित करता है कि डेटा संप्रभुता और सुरक्षा के लिये ईमेल समाधान भारत की सीमाओं के अंदर होस्ट किया गया है।
  • यह साइबर हमलों में फिशिंग (Phishing) और त्वरित अधिसूचना का पता लगाने के लिये कृत्रिम बुद्धिमत्ता मॉडल के उपयोग पर ज़ोर देता है।
  • RFP सरकार की संचार प्रणालियों को बढ़ाने और डिजिटल परिवर्तन की सुविधा प्रदान करने की पहल का हिस्सा है। 

नोट: डिजिटल इंडिया कॉरपोरेशन भारत सरकार के इलेक्ट्रॉनिकी और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय (Ministry of Electronics and Information Technology- MeitY) द्वारा कंपनी अधिनियम, 2013 की धारा 8 के तहत स्थापित एक गैर-लाभकारी कंपनी है।

सरकारी ई-मेल सेवाओं में निजी क्षेत्र की भागीदारी के लाभ: 

  • उन्नत विशेषज्ञता और संसाधन:  
    • सरकार ने संचार प्रणालियों को प्रभावी ढंग से प्रबंधित करने में निजी क्षेत्र द्वारा दी जाने वाली विशेषज्ञता और संसाधनों को मान्यता दी।
  • बेहतर दक्षता और उत्पादकता:  
    • सरकार का लक्ष्य एक मज़बूत साइबर सुरक्षा तंत्र एवं क्लाउड सुरक्षा सुनिश्चित करते हुए निजी कंपनियों को शामिल करके अपनी आंतरिक संचार प्रक्रियाओं की दक्षता और उत्पादकता को बढ़ाना है।
  • डिजिटल परिवर्तन:  
    • यह कदम सरकार के डिजिटल परिवर्तन और संचार प्रणालियों के आधुनिकीकरण के एजेंडे के अनुरूप है। 
      • इस परियोजना का लक्ष्य NIC पर पंजीकृत लगभग 3.3 मिलियन सरकारी कर्मचारियों को एक सिक्योर क्लाउड पर होस्ट की गई ई-मेल सेवा में स्थानांतरित करना है, जो उन्हें कार्यालय उत्पादकता उपकरण, सहयोग सुविधाओं और वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग एवं चैट जैसी सेवाओं की एक शृंखला प्रदान करता है। 
  • व्यापकता और लचीलापन:  
    • निजी कंपनियों के साथ साझेदारी सरकार को समाधानों का व्यापक लाभ उठाने की अनुमति प्रदान करती है जो उसके बड़े कार्यबल और बढ़ती ज़रूरतों को पूरा कर सकते हैं।
  • डिजिटल संप्रभुता और सुरक्षा:  
    • सरकार डेटा संप्रभुता और सुरक्षा के लिये भारत की सीमाओं के अंदर ईमेल सेवाओं की मेज़बानी पर बल देती है। AI मॉडल का उपयोग तथा साइबर हमलों की त्वरित सूचना सुरक्षा उपायों को सुदृढ़ करने में योगदान देती है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


प्रारंभिक ब्रह्मांड में काल-विस्तारण

प्रिलिम्स के लिये:

क्वासर, बिग बैंग, आइंस्टीन का सापेक्षता का सिद्धांत

मेन्स के लिये:

प्रारंभिक ब्रह्मांड में काल-विस्तारण

चर्चा में क्यों? 

एक हालिया अध्ययन में प्रारंभिक ब्रह्मांड में काल-विस्तारण को प्रदर्शित करने के लिये क्वासर के तीव्र ब्लैक होल के अवलोकन का उपयोग किया गया है।

  • शोधकर्त्ताओं ने पूरे ब्रह्मांड में 190 क्वासरों की चमक की जाँच की जो लगभग बिग बैंग के 1.5 अरब वर्ष बाद के हैं। इन प्राचीन क्वासरों की चमक की तुलना मौजूद क्वासरों से करके शोधकर्त्ताओं ने पाया कि वर्तमान में एक विशिष्ट अवधि में होने वाले कुछ उतार-चढ़ाव शुरुआती क्वासरों में पाँच गुना अधिक धीरे होते थे।

अध्ययन के मुख्य बिंदु:

  • अतीत में काल की धीमी गति: 
    • ब्रह्मांड का निरंतर विस्तार वर्तमान की तुलना में अतीत में काल की धीमी गति का कारण है।
    • अतीत का समय वर्तमान की तुलना में लगभग पाँच गुना तेज़ी से बीत गया। ये अवलोकन लगभग 12.3 अरब वर्ष पहले के हैं, जब ब्रह्मांड अपनी वर्तमान आयु का लगभग दसवाँ भाग ही था।
      • आइंस्टीन के सापेक्षता के सिद्धांत के अनुसार, समय और स्थान आपस में जुड़े हुए हैं तथा बिग-बैंग विस्फोट के बाद से ब्रह्मांड सभी दिशाओं में विस्तार कर रहा है
  • पूर्व के अवलोकन: 
    • वैज्ञानिकों ने पहले सुपरनोवा, तारकीय विस्फोटों के अवलोकन के आधार पर लगभग 7 अरब वर्ष पुराने समय के विस्तार का दस्तावेज़ीकरण किया था।
    • अतीत के इन विस्फोटों का अध्ययन करके उन्होंने पाया कि हमारे वर्तमान समय के परिप्रेक्ष्य से घटनाएँ अधिक धीमी गति से प्रदर्शित हुई, क्योंकि आज के सुपरनोवा को चमकने और फीका पड़ने में निश्चित समय लगता है।

अध्ययन का महत्त्व: 

यह शोध समय की जटिल प्रकृति और ब्रह्मांड के विस्तार के साथ इसके अंतर्संबंध पर प्रकाश डालता है। 

  • दूर की वस्तुओं और घटनाओं का पता लगाना जारी रखने से वैज्ञानिकों को समय की अवधारणा के साथ इसके संभावित प्रभावों की समझने में मदद मिलने की आशा है, जिसमें समय यात्रा और वार्प ड्राइव जैसी उन्नत प्रणोदन प्रणाली की संभावना भी शामिल है।

क्वासर क्या हैं:

  • परिचय: 
    • क्वासर, अविश्वसनीय रूप से चमकीली वस्तुएँ हैं, जिन्होंने अध्ययन की अवधि में "घड़ी" के रूप में कार्य किया। वे अत्यधिक विशाल ब्लैक होल हैं, जो आकाशगंगाओं के केंद्र में स्थित हैं तथा सूर्य से लाखों-करोड़ों गुना विशाल हैं। 
    • ये ब्लैक होल मज़बूत गुरुत्वाकर्षण बलों के माध्यम से पदार्थ को अपनी ओर आकर्षित करते हैं, जबकि वे पदार्थ की एक चमकदार डिस्क से घिरे होने के साथ शक्तिशाली विकिरण और उच्च-ऊर्जा कण जेट (विकिरण) उत्सर्जित करते है।

  • समय के विस्तार की जाँच में क्वासर का महत्त्व: 
    • क्वासर, एकाकी रूप से तारकीय विस्फोटों की तुलना में लाभ प्रदान करते हैं क्योंकि उनकी चमक ब्रह्मांड के प्रारंभिक चरण से ही देखी जा सकती है। क्वासर की चमक में उतार-चढ़ाव से सांख्यिकीय गुणों के साथ समय के पैमाने का पता चलता है जिसका उपयोग बीते समय को मापने के लिये किया जा सकता है।

काल-विस्तारण 

  • काल-विस्तारण भौतिकी की एक घटना है जो सापेक्ष गति या गुरुत्वाकर्षण क्षेत्र में अंतर के कारण घटित होती है। यह आइंस्टीन के सापेक्षता के सिद्धांत- सापेक्षता के विशेष सिद्धांत और सापेक्षता के सामान्य सिद्धांत दोनों का परिणाम है।
  • सापेक्षता के विशेष सिद्धांत में काल-विस्तारण तब होता है जब दो पर्यवेक्षक एक-दूसरे के सापेक्ष गति करते हैं।
  • इस सिद्धांत के अनुसार, समय निरपेक्ष नहीं है बल्कि प्रेक्षक के संदर्भ तंत्र के सापेक्ष है।
  • जब वस्तुएँ प्रकाश की गति के समान गति से एक-दूसरे के सापेक्ष चलती हैं, तो स्थिर वस्तु की तुलना में परिचालित वस्तु के लिये समय अधिक धीरे-धीरे व्यतीत होता हुआ प्रतीत होता है।
  • इसका अर्थ यह है कि स्थिर पर्यवेक्षक के दृष्टिकोण से चलित वस्तु के लिये समय विस्तारित या फैला हुआ है।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रश्न. निम्नलिखित परिघटनाओं पर विचार कीजिये: (2018)

  1. प्रकाश ,गुरुत्व द्वारा प्रभावित होता है।
  2. ब्रह्मांड लगातार फैल  रहा है।
  3. पदार्थ अपने चारों ओर के दिक्काल को विकुंचित (वार्प) करता है।

उपर्युक्त में से एल्बर्ट आइंस्टीन के आपेक्षिकता के सामान्य सिद्धांत का/के भविष्य कथन कौन सा/से  है/हैं, जिसकी/जिनकी प्रायः समाचार माध्यमों में  विवेचना  होती है?

(a) केवल 1 और 2 
(b) केवल 3
(c) केवल 1 और 3 
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (D)

स्रोत: द हिंदु


हरित हाइड्रोजन पर अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन (ICGH-2023)

प्रिलिम्स के लिये:

हरित हाइड्रोजन, हरित बॉण्ड, नवीकरणीय ऊर्जा, राष्ट्रीय हरित हाइड्रोजन मिशन, शुद्ध शून्य उत्सर्जन लक्ष्य 

मेन्स के लिये:

भारत में हरित हाइड्रोजन की स्थिति, हरित हाइड्रोजन से जुड़ी चुनौतियाँ

चर्चा में क्यों?  

भारत सरकार द्वारा नई दिल्ली में हरित हाइड्रोजन पर तीन दिवसीय अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन (ICGH-2023) का आयोजन किया जा रहा है।

  • इस सम्मेलन का उद्देश्य हरित हाइड्रोजन पारिस्थितिकी तंत्र स्थापित करना और वैश्विक डीकार्बोनाइज़ेशन लक्ष्यों के लिये एक प्रणालीगत दृष्टिकोण को बढ़ावा देना है।

प्रमुख बिंदु: 

  • हाइड्रोजन उत्पादन प्रौद्योगिकियाँ: यह हरित हाइड्रोजन के उत्पादन के विभिन्न तरीकों जैसे- इलेक्ट्रोलिसिस, थर्मोकेमिकल, जैविक, फोटोकैटलिसिस आदि पर केंद्रित होगा।
    • इसमें इन प्रौद्योगिकियों को विकसित करने और उनकी लागत कम करने की चुनौतियों और अवसरों पर भी चर्चा की जाएगी।
  • हाइड्रोजन भंडारण और वितरण: यह विषय हरित हाइड्रोजन के भंडारण और परिवहन से संबंधित मुद्दों जैसे- संपीड़न, द्रवीकरण, धातु हाइड्राइड, अमोनिया का निपटान करेगा।
    • यह हाइड्रोजन पाइपलाइनों, ईंधन भरने वाले स्टेशनों आदि की क्षमता की भी जानकारी एकत्रित करेगा।
  • हाइड्रोजन अनुप्रयोग: यह थीम गतिशीलता, उद्योग, विद्युत उत्पादन आदि जैसे विभिन्न क्षेत्रों में हरित हाइड्रोजन के विभिन्न अनुप्रयोगों पर केंद्रित होगी।
    • इसमें ईंधन अथवा फीडस्टॉक के रूप में हरित हाइड्रोजन के उपयोग के लाभों और चुनौतियों पर भी प्रकाश डाला जाएगा।
  • हरित वित्तपोषण: यह थीम हरित हाइड्रोजन परियोजनाओं के वित्तपोषण के लिये कई तरीकों और संसाधनों की जाँच करेगी, जिनमें हरित बॉण्ड, कार्बन क्रेडिट, सब्सिडी आदि शामिल हैं।
    • इसमें हरित हाइड्रोजन पहल के समर्थन में सार्वजनिक-निजी भागीदारी, बहुपक्षीय एजेंसियों आदि की भूमिका पर भी चर्चा की जाएगी। 
  • मानव संसाधन विकास: यह थीम हरित हाइड्रोजन क्षेत्रों जैसे- इंजीनियरों, तकनीशियनों, शोधकर्त्ताओं, उद्यमियों आदि के लिये कुशल जनशक्ति विकसित करने की आवश्यकता पर केंद्रित होगी।
    • इसमें कार्यबल के कौशल को बढ़ाने और मौजूदा कार्यबल को पुनः कुशल बनाने तथा हितधारकों के बीच जागरूकता पैदा करने की रणनीतियों पर भी चर्चा की जाएगी।
  • स्टार्टअप इकोसिस्टम: यह थीम हरित हाइड्रोजन क्षेत्र में नवाचार करने और उसे बाधित करने में स्टार्टअप्स की भूमिका पर प्रकाश डालेगी।
    • यह इस डोमेन में कुछ सफल स्टार्टअप और उनके उत्पादों या सेवाओं को भी प्रदर्शित करेगा।

हरित हाइड्रोजन: 

  • परिचय:  
    • हरित हाइड्रोजन नवीकरणीय ऊर्जा का एक रूप है जिसे सौर, पवन, हाइड्रो या बायोमास जैसे नवीकरणीय स्रोतों से विद्युत का उपयोग करके जल के अणुओं को हाइड्रोजन और ऑक्सीजन में विभाजित करके उत्पादित किया जाता है।
  • महत्त्व:  
    • यह हाइड्रोजन का एकमात्र प्रकार है जिसका उत्पादन जलवायु-तटस्थ तरीके से होता है, जिससे वर्ष 2050 तक शुद्ध शून्य उत्सर्जन तक पहुँचना महत्त्वपूर्ण हो जाता है।
    • इसमें परिवहन, उद्योग, विद्युत एवं इमारतों जैसे विभिन्न क्षेत्रों को डीकार्बोनाइज़ करने और जलवायु परिवर्तन को कम करने के वैश्विक प्रयासों में योगदान करने की क्षमता है। 
    • यह अतिरिक्त विद्युत का भंडारण और ज़रूरत पड़ने पर इसे जारी करके नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों की आंतरायिकता को संतुलित करने में भी सहायता कर सकता है।
    • इसे अन्य प्रकार के ऊर्जा वाहक जैसे- अमोनिया, मेथनॉल या सिंथेटिक ईंधन में भी परिवर्तित किया जा सकता है, जिसका उपयोग विभिन्न अनुप्रयोगों के लिये किया जाता है।
  • भारत में हरित हाइड्रोजन की स्थिति:
    • देश ने 3.5 मिलियन टन हरित हाइड्रोजन विनिर्माण क्षमता स्थापित करने हेतु कार्य  शुरू कर दिया है और वर्ष 2030 तक प्रतिवर्ष न्यूनतम 5 मिलियन मीट्रिक टन हरित हाइड्रोजन का उत्पादन करने का लक्ष्य है।
    • देश में नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता स्थापित करने की कम लागत के कारण भारत में हरित हाइड्रोजन की लागत विश्व स्तर पर सबसे कम होने की उम्मीद है।
    • भारत ने हरित हाइड्रोजन प्रौद्योगिकियों को आगे बढ़ाने में महत्त्वपूर्ण प्रगति की है और विभिन्न क्षेत्रों में हरित हाइड्रोजन के अनुसंधान, विकास एवं परिनियोजन को बढ़ावा देने के लिये राष्ट्रीय हरित हाइड्रोजन मिशन लागू किया है।

हरित हाइड्रोजन से जुड़ी प्रमुख चुनौतियाँ:

  • उच्च उत्पादन लागत: हरित हाइड्रोजन उत्पादन में नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों का उपयोग करके जल का इलेक्ट्रोलिसिस करना शामिल होता है। हालाँकि नवीकरणीय ऊर्जा अवसंरचना और इलेक्ट्रोलाइज़र की लागत अपेक्षाकृत अधिक बनी हुई है, जिससे जीवाश्म ईंधन-आधारित विकल्पों की तुलना में हरित हाइड्रोजन का उत्पादन महँगा हो गया है।
  • सीमित नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता: सौर और पवन ऊर्जा की अनिश्चित प्रकृति के कारण इलेक्ट्रोलिसिस के लिये निर्बाध विद्युत आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिये ऊर्जा भंडारण बुनियादी ढाँचे में पर्याप्त निवेश की आवश्यकता होती है।
  • बुनियादी ढाँचे की बाधाएँ: भारत में मज़बूत हाइड्रोजन बुनियादी ढाँचे का निर्माण एक महत्त्वपूर्ण चुनौती है क्योंकि पारंपरिक हाइड्रोजन के लिये वर्तमान बुनियादी ढांँचा और आपूर्ति शृंखला हरित हाइड्रोजन के लिये पर्याप्त या अनुकूल नहीं है। 
  • जल उपलब्धता: हरित हाइड्रोजन के उत्पादन में इलेक्ट्रोलिसिस प्रक्रिया के लिये अत्यधिक मात्रा में जल की आवश्यकता होती है। सीमित जल संसाधनों वाले या जल की कमी का सामना करने वाले क्षेत्रों में बड़े पैमाने पर हरित हाइड्रोजन उत्पादन के लिये स्थायी जल आपूर्ति सुनिश्चित करना चुनौतीपूर्ण हो सकता है।

आगे की राह  

  • अनुसंधान एवं विकास को प्राथमिकता देना: हरित हाइड्रोजन उत्पादन, भंडारण और उपयोग प्रौद्योगिकियों में नवाचार को बढ़ावा देने के लिये अनुसंधान तथा विकास प्रयासों को प्राथमिकता देने की आवश्यकता है।
  • नीति और विनियामक समर्थन: स्पष्ट दिशा-निर्देश, सब्सिडी एवं टैक्स छूट कंपनियों को इस क्षेत्र में निवेश कराने तथा अनुकूल बाज़ार माहौल बनाने के लिये प्रोत्साहित कर सकते हैं।
  • बुनियादी ढाँचा विकास: भारत को विभिन्न क्षेत्रों में हरित हाइड्रोजन को व्यापक रूप से अपनाने में सक्षम बनाने के लिये हाइड्रोजन ईंधन स्टेशन, पाइपलाइन और भंडारण सुविधाओं का निर्माण करने की आवश्यकता है। 
  • निजी निवेश को आकर्षित करना: व्यापक स्तर पर परियोजनाएँ शुरू करने की आवश्यकता है जो विभिन्न क्षेत्रों में हरित हाइड्रोजन की व्यवहार्यता एवं लाभों को प्रदर्शित करें।
    • ये परियोजनाएँ निजी क्षेत्र के निवेश को आकर्षित कर सकती हैं तथा भविष्य की पहल के लिये एक मॉडल के रूप में काम कर सकती हैं।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रश्न. हाइड्रोजन फ्यूल सेल आधारित वाहन "निकास" के रूप में निम्नलिखित में से एक का उत्पादन करता है? (2010) 

(a) NH3 
(b) CH4 
(c) H2
(d) H2O2 

उत्तर: (c) 

स्रोत: पी.आई.बी.