डेली न्यूज़ (07 Jun, 2023)



प्रतिकूल कब्ज़ा

प्रिलिम्स के लिये:

भारतीय विधि आयोग, प्रतिकूल कब्ज़ा, परिसीमन अधिनियम, 1963, सर्वोच्च न्यायालय, हम्मूराबी संहिता

मेन्स के लिये:

परिसीमन अधिनियम, 1963 के प्रमुख प्रावधान, ऐतिहासिक विकास और प्रतिकूल कब्ज़े का कानूनी ढाँचा

चर्चा में क्यों?

22वें विधि आयोग की हालिया रिपोर्ट में प्रतिकूल कब्ज़े और संपत्ति कानून में इसके प्रभाव की गहन जाँच की गई है तथा सिफारिश की गई है कि परिसीमन अधिनियम, 1963 के तहत मौजूदा प्रावधानों में बदलाव करने की आवश्यकता नहीं है।

  • प्रतिकूल कब्ज़े की अवधारणा इस विचार से उत्पन्न होती है कि भूमि को खाली नहीं छोड़ा जाना चाहिये बल्कि इसका विवेकपूर्ण उपयोग किया जाना चाहिये।

प्रतिकूल कब्ज़ा:

  • परिचय:  
    • प्रतिकूल कब्ज़ा शत्रुतापूर्ण, निरंतर, निर्बाध और शांतिपूर्ण कब्ज़े के माध्यम से संपत्ति के अधिग्रहण को संदर्भित करता है।
    • इस अवधारणा का उद्देश्य भूमि के स्वामित्व को लेकर लंबे समय से चली आ रही शंकाओं को रोकना है और किसी भू-मालिक द्वारा छोड़ी गई बेकार भूमि का उपयोग करने की अनुमति देकर समाज को लाभान्वित करना है।
      • यह उन व्यक्तियों को भी सुरक्षा प्रदान करता है जिन्होंने कब्ज़ा करने वाले को संपत्ति का वास्तविक स्वामी माना है।
  • ऐतिहासिक विकास और कानूनी ढाँचा: 
    • ऐतिहासिक आधार: "प्रतिकूल कब्ज़ा पद” (Title by Adverse Possession) की अवधारणा 2000 ईसा पूर्व में हम्मूराबी संहिता से चली आ रही है।
      • संपत्ति परिसीमन अधिनियम, 1874 इंग्लैंड में सीमाओं के कानून के रूप में इसके विकास में एक महत्त्वपूर्ण मोड़ था।
    • भारत का परिचय: सीमा कानून भारत में 1859 के अधिनियम XIV के माध्यम से पेश किया गया था और वर्ष 1963 में सीमा अधिनियम के अधिनियमन के साथ महत्त्वपूर्ण परिवर्तन हुए।
  • सीमा अधिनियम, 1963 के प्रमुख प्रावधान:
    • बर्डन ऑफ प्रूफ: 1963 के अधिनियम ने प्रतिकूल कब्ज़े के बर्डन ऑफ प्रूफ को दावेदार पर स्थानांतरित कर दिया, जिससे वास्तविक मालिक की स्थिति मज़बूत हो गई। 
    • स्वामित्व का अधिग्रहण: लिमिटेशन एक्ट, 1963 के तहत कोई भी व्यक्ति जिसके पास 12 वर्ष से अधिक समय से निजी ज़मीन या 30 वर्ष से अधिक समय से सरकारी ज़मीन है, वह उस संपत्ति का मालिक बन सकता है।
      • प्रतिकूल कब्ज़े का दावा करने हेतु कब्ज़े को आवश्यक वैधानिक अवधि के लिये खुला, निरंतर और वास्तविक मालिक के अधिकारों के प्रतिकूल होना चाहिये।
  • प्रतिकूल कब्ज़े की मुख्य सामग्री:
    • सर्वोच्च न्यायालय ने वर्ष 2004 के कर्नाटक बोर्ड ऑफ वक्फ बनाम भारत सरकार के मामले में प्रतिकूल कब्ज़े को साबित करने के लिये आवश्यक तत्त्वों को रेखांकित किया।
      • दावेदारों को कब्ज़े की तारीख, कब्ज़े की प्रकृति, वास्तविक मालिक द्वारा कब्ज़े के बारे में जागरूकता, कब्ज़े की निरंतरता और यह कि कब्ज़ा पारदर्शी या खुला तथा अबाधित था, स्थापित करना चाहिये।
      • वर्ष 1981 में क्षितिज चंद्र बोस बनाम रांची के आयुक्त के फैसले में शीर्ष अदालत ने खुलेपन और निरंतरता की आवश्यकताओं को रेखांकित किया।
  • आलोचना और सिफारिशें: 
    • वर्तमान कानून की आलोचना: हेमाजी वाघाजी जाट बनाम भीखाभाई खेंगरभाई हरिजन और अन्य के वर्ष 2008 के मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने प्रतिकूल कब्ज़े की आलोचना करते हुए कहा कि यह वास्तविक मालिक पर अनुचित रूप से कठोर है और बेईमान अपराधियों को लाभ पहुँचाता है।
      • न्यायालय ने प्रतिकूल कब्ज़े पर एक नए दृष्टिकोण की आवश्यकता को जानते हुए सरकार से कानून पर पुनर्विचार और इसमें संशोधन करने का आग्रह किया।
    • विधि आयोग का संदर्भ: न्यायालय की सिफारिश के जवाब में कानून तथा न्याय मंत्रालय ने वर्ष 2008 में इस मामले को जाँच और बाद की रिपोर्ट के लिये विधि आयोग को भेज दिया था। 

प्रतिकूल कब्ज़े के विरुद्ध तर्क:  

  • झूठे दावों को बढ़ावा देता है: प्रतिकूल कब्ज़ा झूठे दावों को बढ़ावा देता है और न्यायिक प्रणाली पर परिहार्य मुकदमेबाज़ी का बोझ डालता है।
  • सहमति का अभाव: प्रतिकूल कब्ज़ा किसी को वास्तविक मालिक की सहमति या जानकारी के बिना संपत्ति अर्जित करने की अनुमति देता है।
    • इसे अनुचित और अनैतिक माना जाता है क्योंकि यह मालिक के अधिकारों की अवहेलना करता है तथा उन्हें अपनी संपत्ति के बारे में निर्णय लेने के अवसर से वंचित करता है।
  • असमान परिणाम: प्रतिकूल कब्ज़े के अन्यायपूर्ण परिणाम हो सकते हैं, विशेषकर जब वास्तविक मालिक प्रतिकूल कब्ज़े के मालिक से अनजान हो। 
    • वास्तविक मालिक को अचानक पता चल सकता है कि उनकी संपत्ति किसी ऐसे व्यक्ति द्वारा ले ली गई जिसका उस पर कोई अधिकार नहीं था। इसके परिणामस्वरूप संपत्ति का नुकसान और सामान्यतः भावनात्मक संकट उत्पन्न होता है।

भारत का विधि आयोग: 

  • भारत का विधि आयोग एक गैर-सांविधिक निकाय है जिसे भारत सरकार द्वारा समय-समय पर कानूनी शोध करने के स्पष्ट जनादेश के साथ स्थापित किया जाता है।
    • यह विधि और न्याय मंत्रालय के सलाहकार निकाय के रूप में कार्य करता है।
    • स्वतंत्र भारत का पहला विधि आयोग वर्ष 1955 में तीन वर्ष के कार्यकाल के लिये स्थापित किया गया था।
  • भारत के विधि आयोग ने नागरिक कानून, आपराधिक कानून, संवैधानिक कानून, परिवार कानून, व्यक्तिगत कानून, पर्यावरण कानून, मानवाधिकार कानून आदि से लेकर विभिन्न विषयों पर अब तक 277 रिपोर्ट जारी की हैं।
  • यह आयोग वर्तमान में अपने 22वें कार्यकाल में है और इसके अध्यक्ष न्यायमूर्ति ऋतुराज अवस्थी (कर्नाटक उच्च न्यायालय के पूर्व मुख्य न्यायाधीश) हैं।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


बाह्य अंतरिक्ष हेतु एक नई संधि का आह्वान

प्रिलिम्स के लिये:

संयुक्त राष्ट्र, बाह्य अंतरिक्ष, बाह्य अंतरिक्ष संधि 1967

मेन्स के लिये:

बाह्य अंतरिक्ष हेतु एक नई संधि का आह्वान

चर्चा में क्यों? 

संयुक्त राष्ट्र (UN) ने हाल ही में "फॉर ऑल ह्यूमैनिटी- द फ्यूचर ऑफ आउटर स्पेस गवर्नेंस" शीर्षक से एक संक्षिप्त नीति जारी की है, जिसमें शांति, सुरक्षा और बाह्य अंतरिक्ष में हथियारों की होड़ की रोकथाम सुनिश्चित करने के लिये एक नई संधि की सिफारिश की गई है।

  • यह सिफारिश सितंबर 2024 में न्यूयॉर्क में होने वाले UN समिट ऑफ द फ्यूचर से पहले की गई है। शिखर सम्मेलन का उद्देश्य बहुपक्षीय समाधानों को सुविधाजनक बनाना और भविष्य की चुनौतियों का समाधान करने के लिये वैश्विक शासन को मज़बूत करना है।

प्रमुख बिंदु 

  • उपग्रह प्रक्षेपण में वृद्धि:
    • पिछले दशक में उपग्रह प्रक्षेपणों में तेज़ी से वृद्धि हुई है, जो सरकार और निजी क्षेत्र दोनों की भागीदारी से प्रेरित है।
      • वर्ष 2013 में 210 नए उपग्रह लॉन्च हुए,  जिनकी संख्या वर्ष 2019 में बढ़कर 600 और वर्ष 2020 में 1,200 तथा वर्ष 2022 में 2,470 हो गई।
    • संयुक्त राज्य अमेरिका, चीन, भारत और जापान जैसे देश अंतरिक्ष गतिविधियों में अग्रणी हैं, जिनमें मानव मिशन, चंद्र अन्वेषण तथा संसाधन दोहन शामिल हैं।
      • राष्ट्रीय वैमानिकी एवं अंतरिक्ष प्रशासन (NASA) अपने आर्टेमिस मिशन के माध्यम से प्रथम महिला और द्वितीय पुरुष को चंद्रमा पर उतारने की योजना बना रहा है।
      • चंद्रमा पर खनिज (हीलियम 3 का समृद्ध भंडार है, जो पृथ्वी पर दुर्लभ है), क्षुद्रग्रह (प्लैटिनम, निकल और कोबाल्ट सहित मूल्यवान धातुओं का प्रचुर भंडार) और ग्रह के लिये आकर्षण का केंद्र हो सकते हैं।
  • अंतर्राष्ट्रीय ढाँचे का अभाव:
    • अंतरिक्ष संसाधन अन्वेषण, दोहन और उपयोग पर एक सहमत अंतर्राष्ट्रीय ढाँचे का अभाव है।
    • पर्यावरण प्रदूषण के लिये क्षेत्राधिकार, नियंत्रण, दायित्व और ज़िम्मेदारी के मुद्दों को संबोधित करते हुए अंतरिक्ष संसाधन गतिविधियों के कार्यान्वयन के समर्थन हेतु संक्षिप्त नीति के निर्माण पर बल देता है।
  • समन्वय और अंतरिक्ष यातायात प्रबंधन:
    • वर्तमान में अंतरिक्ष यातायात का समन्वय का अभाव है जिसमें विभिन्न राष्ट्रीय और क्षेत्रीय संस्थाएँ अलग-अलग मानकों और प्रथाओं को नियोजित करती हैं।
    • समन्वय की कमी सीमित अंतरिक्ष क्षमता वाले देशों के लिये चुनौतियाँ पेश करती है।
  • अंतरिक्ष मलबा और पर्यावरण संबंधी चिंताएँ: 
    • अंतरिक्ष मलबे के प्रसार को एक महत्त्वपूर्ण मुद्दे के रूप में रेखांकित किया जाता है जिसमें हज़ारों वस्तुएँ अंतरिक्ष में संचालित यानों के लिये खतरा उत्पन्न करती हैं।
    • संयुक्त राष्ट्र अंतरिक्ष मलबे के कारण होने वाले पर्यावरण प्रदूषण के लिये क्षेत्राधिकार, नियंत्रण, उत्तरदायित्व और ज़िम्मेदारी से संबंधित कानून की मांग करता है। अंतरिक्ष से मलबा हटाने की तकनीक विकसित की जा रही है लेकिन कानूनी पहलुओं पर भी ध्यान देने की ज़रूरत है।

सिफारिशें:

  • शांति और सुरक्षा के लिये नई संधि:
    • संयुक्त राष्ट्र ने शांति, सुरक्षा तथा बाह्य अंतरिक्ष में हथियारों की होड़ को प्रतिबंधित करने के लिये संवाद और एक नई संधि के विकास की सिफारिश की है।
    • यह संधि उभरते खतरों को दूर करने और उत्तरदायी अंतरिक्ष गतिविधियों को बढ़ावा देने के लिये अंतर्राष्ट्रीय मानदंड, नियम और सिद्धांत की स्थापना करेगी।
  • समन्वित अंतरिक्ष स्थितिजन्य जागरूकता:  
    • सदस्य देशों से आग्रह किया गया है कि वे अंतरिक्ष स्थितिजन्य जागरूकता और अंतरिक्ष घटनाओं के समन्वय के लिये एक प्रभावी ढाँचे की स्थापना करें। यह समन्वय अंतरिक्ष संचालन की सुरक्षा और संरक्षा में वृद्धि करेगा।
  • अंतरिक्ष मलबे को हटाने हेतु रूपरेखा:  
    • संयुक्त राष्ट्र ने विधिक और वैज्ञानिक दोनों पहलुओं पर विचार करते हुए अंतरिक्ष मलबे को हटाने के लिये मानदंडों एवं सिद्धांतों के विकास की मांग की है।
    • इसके तहत विशेष रूप से चंद्रमा और अन्य खगोलीय पिंडों पर अंतरिक्ष संसाधनों के सतत् अन्वेषण, दोहन एवं उपयोग के लिये एक प्रभावी रूपरेखा की सिफारिश की गई है।

बाह्य अंतरिक्ष:

  • परिचय: 
    • बाह्य अंतरिक्ष, जिसे अंतरिक्ष अथवा आकाशीय अंतरिक्ष के रूप में भी जाना जाता है, पृथ्वी के वायुमंडल से परे और आकाशीय पिंडों के बीच विशाल विस्तार को संदर्भित करता है। यह एक निर्वात है जो पृथ्वी के वायुमंडल से परे मौजूद है तथा पूरे ब्रह्मांड में अनिश्चित काल तक के लिये फैला हुआ है। बेहद कम घनत्त्व और दबाव के साथ-साथ वायु एवं अन्य वायुमंडलीय तत्त्वों की अनुपस्थिति बाह्य अंतरिक्ष की विशेषता है।
  • संयुक्त राष्ट्र संधियाँ: 
    • इन संधियों को आमतौर पर "बाह्य अंतरिक्ष पर पाँच संयुक्त राष्ट्र संधियाँ" के रूप में संदर्भित किया जाता है:
    • बाह्य अंतरिक्ष संधि 1967: चंद्रमा और अन्य खगोलीय पिंडों सहित बाह्य अंतरिक्ष की खोज और उपयोग में देशों की गतिविधियों को नियंत्रित करने वाले सिद्धांतों पर संधि।
    • बचाव समझौता 1968: अंतरिक्ष यात्रियों के बचाव, अंतरिक्ष यात्रियों की वापसी और बाह्य अंतरिक्ष में प्रक्षेपित वस्तुओं की वापसी पर समझौता।
    • दायित्व अभिसमय 1972: अंतरिक्ष वस्तुओं के कारण होने वाली क्षति हेतु अन्तर्राष्ट्रीय उत्तरदायित्व पर अभिसमय।
    • पंजीकरण अभिसमय 1976: बाह्य अंतरिक्ष में लॉन्च की गई वस्तुओं के पंजीकरण पर अभिसमय।
    • द मून एग्रीमेंट 1979: चंद्रमा और अन्य खगोलीय पिंडों पर देशों की गतिविधियों को नियंत्रित करने वाला समझौता।
    • भारत इन सभी पाँच संधियों का हस्ताक्षरकर्त्ता है, लेकिन उसने केवल चार का अनुसमर्थन किया है। भारत ने मून एग्रीमेंट की पुष्टि नहीं की है।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रश्न. अंतर्राष्ट्रीय नागरिक उड्डयन कानून सभी देशों को उनके क्षेत्र के ऊपर हवाई क्षेत्र पर पूर्ण और अनन्य संप्रभुता प्रदान करते हैं। 'हवाई क्षेत्र' से आप क्या समझते हैं? इस हवाई क्षेत्र के ऊपर अंतरिक्ष पर इन कानूनों के क्या प्रभाव हैं? इससे उत्पन्न चुनौतियों पर चर्चा कीजिये और खतरे को नियंत्रित करने के उपाय सुझाइये। (मुख्य परीक्षा, 2014)

स्रोत: डाउन टू अर्थ 


भारत-अमेरिका संबंध

प्रिलिम्स के लिये:

जनरल इलेक्ट्रिक GE-414 जेट्स, समुद्री डोमेन जागरूकता, INDUS-X पहल, हिंद-प्रशांत, IPEF

मेन्स के लिये:

भारत-अमेरिका संबंध

चर्चा में क्यों?

भारत और संयुक्त राज्य अमेरिका 'आपूर्ति की सुरक्षा' (Security of Supply- SoS) व्यवस्था तथा 'पारस्परिक रक्षा खरीद' (Reciprocal Defence Procurement- RDP) समझौते हेतु बातचीत शुरू करने पर सहमत हुए हैं, जिसका लक्ष्य दीर्घकालिक आपूर्ति शृंखला स्थिरता को बढ़ावा देना, साथ ही दोनों देशों के बीच सुरक्षा एवं रक्षा सहयोग को बढ़ाना है।

  • SoS समझौता विशेष रूप से रक्षा और सुरक्षा के क्षेत्र में महत्त्वपूर्ण आपूर्ति की उपलब्धता एवं स्थिरता सुनिश्चित करने के उद्देश्य से देशों के बीच द्विपक्षीय या बहुपक्षीय समझौता है।
  • RDP समझौता रक्षा खरीद के क्षेत्र में देशों के बीच द्विपक्षीय समझौता है। इसे रक्षा मदों की पारस्परिक खरीद की सुविधा एवं रक्षा उपकरणों के अनुसंधान, विकास तथा उत्पादन में सहयोग को बढ़ावा देने हेतु डिज़ाइन किया गया है। 

प्रमुख बिंदु 

  • भारत में इलेक्ट्रिक जेट असेंबल करना: 
  • रक्षा औद्योगिक सहयोग: 
    • भारत और अमेरिका के बीच अगले कुछ वर्षों के लिये उनकी नीतिगत दिशा का मार्गदर्शन करने हेतु 'रक्षा औद्योगिक सहयोग' का रोडमैप तैयार किया गया है।
    • दोनों देश रक्षा स्टार्ट-अप पारिस्थितिक तंत्र के बीच सहयोग को बढ़ावा देने, नई प्रौद्योगिकियों के सह-विकास और मौजूदा तथा नई प्रणालियों के सह-उत्पादन के अवसरों की पहचान करेंगे।
  • क्षमता निर्माण और बुनियादी ढाँचा विकास:
    • समुद्री डोमेन जागरूकता (MDA) और सामरिक आधारभूत संरचना विकास सहित क्षमता निर्माण।
    • एयर इंडिया के साथ मेगा-सिविल विमान सौदे के तहत भारत से अमेरिकी कंपनियों द्वारा विशेष रूप से बोइंग विमानों की सोर्सिंग में वृद्धि करना।
      • भारतीय सशस्त्र बलों के उपयोग में आने वाले उपकरणों के लिये भारत में अमेरिकी कंपनियों द्वारा रखरखाव, मरम्मत और ओवरहाल (MRO) सुविधाओं की स्थापना।
  • US-इंडिया डिफेंस एक्सेलेरेशन इकोसिस्टम (INDUS-X):
    • US-इंडिया बिज़नेस काउंसिल यूएस और भारतीय कंपनियों, निवेशकों, स्टार्ट-अप त्वरक तथा शैक्षणिक अनुसंधान संस्थानों के बीच अत्याधुनिक प्रौद्योगिकी सहयोग को आगे बढ़ाने के लिये INDUS-X पहल शुरू करेगी।

अमेरिका के साथ भारत के संबंध: 

  • परिचय: 
    • अमेरिका-भारत रणनीतिक साझेदारी लोकतंत्र के प्रति प्रतिबद्धता और नियम-आधारित अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था को बनाए रखने सहित साझा मूल्यों पर आधारित है।
    • संयुक्त राज्य अमेरिका और भारत के व्यापार, निवेश एवं कनेक्टिविटी के माध्यम से वैश्विक सुरक्षा, स्थिरता तथा आर्थिक समृद्धि को बढ़ावा देने में साझा हित हैं।
  • आर्थिक संबंध: 
    • दोनों देशों के बीच बढ़ते आर्थिक संबंधों के परिणामस्वरूप वर्ष 2022-23 में अमेरिका भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार बनकर उभरा है।
    • भारत और अमेरिका के बीच द्विपक्षीय व्यापार वर्ष 2022-23 में 7.65% बढ़कर 128.55 अमेरिकी डॉलर हो गया, जबकि वर्ष 2021-22 में यह 119.5 बिलियन अमेरिकी डॉलर था।
      • वर्ष 2022-23 में अमेरिका के साथ निर्यात 2.81% बढ़कर 78.31 बिलियन अमेरिकी डॉलर हो गया है, जबकि वर्ष 2021-22 में यह 76.18 बिलियन अमेरिकी डॉलर था तथा आयात लगभग 16% बढ़कर 50.24 बिलियन अमेरिकी डॉलर हो गया।
  • अंतर्राष्ट्रीय सहयोग:
    • संयुक्त राष्ट्र, G-20, दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों के संगठन (आसियान), क्षेत्रीय फोरम, अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष, विश्व बैंक और विश्व व्यापार संगठन सहित बहुपक्षीय संगठनों में भारत एवं संयुक्त राज्य अमेरिका दोनों देश मज़बूत सहयोगी हैं। 
    • संयुक्त राज्य अमेरिका ने वर्ष 2021 में दो साल के कार्यकाल के लिये भारत को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में शामिल करने का स्वागत किया। इसके अतिरिक्त संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में सुधार का समर्थन किया जिसमें भारत एक स्थायी सदस्य के रूप में शामिल है।
    • संयुक्त राज्य अमेरिका और भारत ने एक मुक्त तथा स्वतंत्र भारत-प्रशांत सहयोग को बढ़ावा देने एवं क्षेत्र को उचित लाभ प्रदान करने के लिये ऑस्ट्रेलिया और जापान के साथ क्वाड समूह का गठन किया है। 
    • भारत, समृद्धि के लिये हिंद-प्रशांत आर्थिक ढाँचा (Indo-Pacific Economic Framework for Prosperity- IPEF) पर संयुक्त राज्य अमेरिका के साथ साझेदारी करने वाले बारह देशों में से एक है।
    • भारत इंडियन ओशन रिम एसोसिएशन (IORA) का सदस्य है, जिसमें संयुक्त राज्य अमेरिका एक संवाद भागीदार है।
    • संयुक्त राज्य अमेरिका वर्ष 2021 में अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन में शामिल हो गया, जिसका मुख्यालय भारत में है और यह वर्ष 2022 में यूनाइटेड स्टेट्स एजेंसी फॉर इंटरनेशनल डेवलपमेंट (USAID) भी शामिल हुआ।

आगे की राह 

  • मुक्त, खुले और विनियमित हिंद-प्रशांत क्षेत्र सुनिश्चित करने के लिये दोनों देशों के बीच साझेदारी होना महत्त्वपूर्ण है।
  • अद्वितीय जनसांख्यिकीय लाभांश अमेरिकी और भारतीय फर्मों के लिये तकनीकी हस्तांतरण, निर्माण, व्यापार एवं निवेश हेतु बड़े अवसर प्रदान करता है।
  • भारत एक अंतर्राष्ट्रीय प्रणाली में अग्रणी अभिकर्त्ता के रूप में उभरने के साथ ही एक अभूतपूर्व परिवर्तन के दौर से गुज़र रहा है। भारत अपनी वर्तमान स्थिति का उपयोग करते हुए आगे बढ़ने के अवसरों का पता लगाने का प्रयास करेगा।

स्रोत: द हिंदू


डीपफेक से निपटना

प्रिलिम्स के लिए:

डीपफेक टेक्नोलॉजी, डीप सिंथेसिस टेक्नोलॉजी, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस टेक्नोलॉजी, ब्लॉकचेन टेक्नोलॉजी

मेन्स के लिये:

डीपफेक टेक्नोलॉजी का प्रभाव, डीपफेक से निपटने हेतु भारत का रुख, डीपफेक से जुड़ी नैतिक चिंताएँ

चर्चा में क्यों?  

हाल ही में विभिन्न समाचार स्रोतों ने डीपफेक को लेकर बढ़ती चिंता पर ध्यान केंद्रित किया है, जो डीप लर्निंग तकनीक का उपयोग करके निर्मित किये जाते हैं। 

  • जबकि डीपफेक में वास्तविकता को विकृत करने और सार्वजनिक धारणा में हेर-फेर करने की क्षमता होती है, वे विभिन्न क्षेत्रों में भी संभावना रखते हैं। इस तकनीक का उपयोग और प्रबंधन तथा समाज पर पड़ने वाला प्रभाव प्रमुख चुनौतियाँ हैं।

डीपफेक टेक्नोलॉजी: 

  • परिचय:
    • डीपफेक तकनीक शक्तिशाली कंप्यूटर और शिक्षा का उपयोग करके वीडियो, छवियों, ऑडियो में हेर-फेर करने की एक विधि है। डीप लर्निंग डीप सिंथेसिस का हिस्सा है।
      • डीप सिंथेसिस को आभासी दृश्य बनाने के लिये चित्र, ऑडियो और वीडियो उत्पन्न करने के लिये शिक्षा एवं संवर्द्धित वास्तविकता सहित प्रौद्योगिकियों के उपयोग के रूप में परिभाषित किया गया है।
    • इसका उपयोग फर्जी खबरें उत्पन्न करने और अन्य अवैध कामों के बीच वित्तीय धोखाधड़ी करने के लिये किया जाता है।
    • यह पहले से मौजूद वीडियो, चित्र या ऑडियो पर एक डिजिटल सम्मिश्रण द्वारा साइबर अपराधी इसकें लिये कृत्रिम बुद्धिमत्ता तकनीक का इस्तेमाल करते हैं।
    • डीपफेक मशीन लर्निंग एल्गोरिदम का लाभ उठाकर पारंपरिक फोटो एडिटिंग तकनीकों पर हावी हो जाता है।
    • डीपफेक का उपयोग मनगढ़ंत या हेर-फेर कर सामग्री बनाने के लिये किया जाता है जैसे कि राजनीतिक हस्तियों के नकली वीडियो और झूठे आपदा चित्र बनाना
  • डीप लर्निंग एप्लीकेशन का उपयोग: 
    • डीप लर्निंग ने तकनीकी प्रगति को सकारात्मक रूप से सक्षम किया है जैसे कि खोई हुई आवाज़ों को बहाल करना और ऐतिहासिक कृतियों का पुनः निर्माण करना।
    • ALS एसोसिएशन की आवाज़ प्रतिरूपण (वॉइस क्लोनिंग) पहल तथा कलाकारों एवं मशहूर हस्तियों के चित्रों का पुनः निर्माण डीप लर्निंग के संभावित लाभ हैं।
    • कलात्मक अभिव्यक्ति को बढ़ाने के लिये कॉमेडी, सिनेमा, संगीत और गेमिंग में डीप लर्निंग तकनीकों को लागू किया गया है।
  • अस्थिर परिणाम और नैतिक चिंताएँ:   
    • डीपफेक को दुर्भावनापूर्ण उद्देश्यों के लिये नियोजित किया गया है जिसमें अश्लील चित्र बनाना और फेशियल रिकग्निशन प्रणाली को हैक करना शामिल हैं।
    • यह मीडिया के प्रति भरोसे को कम करता हैऔर तथ्य एवं कल्पना के बीच के अंतर को अस्पष्ट करता है।
    • डीपफेक द्वारा गलत तरीके से प्रचारित सूचना को सच माना जा सकता है जिससे सामाजिक अशांति उत्पन्न हो सकती है।

डीपफेक से निपटने हेतु भारत का रुख:

  • भारत में डीपफेक तकनीक के उपयोग को प्रतिबंधित या विनियमित करने वाला विशिष्ट कानून या नियम नहीं हैं।
  • सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम (2000) की धारा 67 और 67A जैसे मौजूदा कानूनों में ऐसे प्रावधान हैं जो डीपफेक के कुछ पहलुओं पर लागू हो सकते हैं, जैसे- मानहानि और स्पष्ट सामग्री का प्रकाशन
  • भारतीय दंड संहिता (1860) की धारा 500 मानहानि के लिये सज़ा का प्रावधान करती है।
  • यदि व्यक्तिगत डेटा संरक्षण विधेयक (2022) पारित हो जाता है, तो इससे व्यक्तिगत डेटा के दुरुपयोग के खिलाफ कुछ सुरक्षा प्राप्त हो सकती है लेकिन इससे डीपफेक को स्पष्ट रूप से नियंत्रित नहीं किया जा सकता है।
  • निजता, सामाजिक स्थिरता, राष्ट्रीय सुरक्षा और लोकतंत्र के लिये संभावित निहितार्थों पर विचार करते हुए भारत को विशेष रूप से डीपफेक को लक्षित करने के लिये एक व्यापक कानूनी ढाँचा विकसित करने की आवश्यकता है। 

डीपफेक से निपटने के लिये अन्य देशों द्वारा किये जा रहे प्रयास:

  • यूरोपियन संघ: 
    • वर्ष 2022 में यूरोपीय संघ ने डीपफेक के माध्यम से गलत सूचना के प्रसार को रोकने के लिये वर्ष 2018 में शुरू की गई गलत सूचना पर अभ्यास संहिता को अद्यतित किया है।
  • संयुक्त राज्य अमेरिका: 
    • डीपफेक तकनीक का सामना करने के लिये डिपार्टमेंट ऑफ होमलैंड सिक्योरिटी (DHS) की सहायता के लिये अमेरिका ने द्विदलीय डीपफेक टास्क फोर्स एक्ट पेश किया।
  • चीन: 
    • डीपफेक से निपटने के लिये चीन ने जनवरी 2023 से प्रभावी व्यापक विनियमन पेश किया। गलत सूचना के प्रसार को रोकने के उद्देश्य वाले इस विनियमन में स्पष्ट लेबलिंग और इस प्रकार की सामग्री का पता लगाने की क्षमता का होना आवश्यक है। इसके तहत व्यक्तियों की सहमति एवं कानूनों तथा सार्वजनिक नैतिकता का पालन अनिवार्य है। इसके लिये सेवा प्रदाताओं द्वारा समीक्षा तंत्र की स्थापना करना व अधिकारियों के साथ सहयोग करने की भी आवश्यकता है।

 आगे की राह 

  • AI-पावर्ड सोशल मीडिया फैक्ट चेकिंग: सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म को AI-संचालित एल्गोरिदम और उपकरणों में निवेश करने के लिये प्रोत्साहित करना ताकि सूचनाओं के विषय में स्वचालित रूप से पता लगाया जा सके और संभावित हेरफेर अथवा डीपफेक सामग्री को चिह्नित किया जा सके।
  • तथ्यों की जाँच करने वाले संगठनों के साथ सहयोग करना चाहिये और डीपफेक के माध्यम से झूठी सूचना के प्रसार के खिलाफ तुरंत कार्रवाई करने के लिये सार्वजनिक भागीदारी की शक्ति का उपयोग किये जाने की आवश्यकता है।
  • ब्लॉकचेन-आधारित डीपफेक सत्यापन: ब्लॉकचेन तकनीक का उपयोग करके अपरिवर्तनीय रिकॉर्ड बना सकते हैं कि किसने डिजिटल विषयवस्तु तैयार की, साथ ही इसकी वैधता को सत्यापित करने में पारदर्शिता सुनिश्चित करना।
    • यह विकेंद्रीकृत दृष्टिकोण व्यक्तियों को दुर्भावनापूर्ण डीपफेक के निर्माण और प्रसार को हतोत्साहित करते हुए मीडिया की उत्पत्ति एवं संशोधन इतिहास का पता लगाने की अनुमति प्रदान करता है।
  • डीपफेक प्रभाव शमन नीति: डीपफेक से प्रभावित व्यक्तियों और संगठनों की मदद हेतु फंड स्थापित करना।
  • डीपफेक जवाबदेही अधिनियम (Deepfake Accountability Act- DAA): डीपफेक से उत्पन्न चुनौतियों का समाधान करने और उनके निर्माण, वितरण एवं नियंत्रण में जवाबदेही सुनिश्चित करने के उद्देश्य से DAA पेश किया जा सकता है।
  • सज़ा और जन जागरूकता अभियान: कानूनों को दोषी लोगों को दंडित करना चाहिये और लोगों को उनके ऑनलाइन निजता के दुरुपयोग से बचाना चाहिये।
  • डीपफेक के प्रसार से निपटने हेतु वैज्ञानिक और डिजिटल डोमेन में जन जागरूकता तथा साक्षरता महत्त्वपूर्ण है।

स्रोत: द हिंदू


प्रीपेड भुगतान साधन

प्रिलिम्स के लिये:

प्रीपेड भुगतान साधन/प्रीपेड पेमेंट इंस्ट्रूमेंट, भारतीय रिज़र्व बैंक, DICGC, प्रेषण, इंश्योरेंस फंड, रेगुलेटेड एंटिटीज़

मेन्स के लिये:

प्रीपेड भुगतान उपकरणों के लिये DICGC का कवरेज

चर्चा में क्यों? 

RBI (भारतीय रिज़र्व बैंक) विनियमित संस्थाओं के लिये ग्राहक सेवा मानकों की समीक्षा करने वाली एक समिति ने धोखाधड़ी और अनधिकृत लेन-देन से सुरक्षा प्रदान करने के लिये जमा बीमा और क्रेडिट गारंटी निगम (Deposit Insurance and Credit Guarantee Corporation- DICGC) को प्रीपेड पेमेंट इंस्ट्रूमेंट (PPI) तक विस्तारित करने की सिफारिश की है।

  • इस समिति ने सिफारिश की है कि RBI को बैंक PPI और फिर गैर-बैंक PPI सहित PPI क्षेत्र में DICGC कवर का विस्तार करने की संभावना के बारे में पता लगाना चाहिये।
  • RBI को ग्राहक सेवा में सुधार करने और समग्र ग्राहक सुरक्षा प्रयासों को मज़बूत करने के लिये विनियमित संस्थाओं को प्रोत्साहित करना चाहिये।

प्रीपेड भुगतान साधन: 

  • परिचय: 
    • ये वस्तुओं और सेवाओं की खरीद की सुविधा प्रदान करने वाले साधन हैं, ये वित्तीय सेवाओं का संचालन करते हैं और उनमें संग्रहीत धन पर प्रेषण सुविधाएँ सक्षम करते हैं। 
    • PPI को कार्ड या वॉलेट के रूप में जारी किया जा सकता है।
    • PPI दो प्रकार के होते हैं:
      • छोटे PPI और पूर्ण-KYC (अपने ग्राहक को जानें) PPI। इसके अलावा छोटे PPI को 10,000 रुपए तक के PPI (कैश लोडिंग सुविधा के साथ) तथा 10,000 रुपए तक के PPI (बिना कैश लोडिंग सुविधा के) के रूप में वर्गीकृत किया गया है।
    • PPI को नकद, बैंक खाते से डेबिट या क्रेडिट और डेबिट कार्ड द्वारा लोड/रीलोड किया जा सकता है।
      • PPI की कैश लोडिंग प्रतिमाह 50,000 रुपए तक सीमित है, जो PPI की समग्र सीमा के अधीन है।
  • जारी करना/निर्गमन: 
    • PPI को RBI से अनुमोदन प्राप्त करने के बाद बैंकों और गैर-बैंकों द्वारा जारी किया जा सकता है।
      • नवंबर 2022 तक 58 से अधिक बैंकों को प्रीपेड भुगतान उपकरण जारी करने और संचालित करने की अनुमति दी गई है।
      • मई 2023 तक 33 गैर-बैंक PPI जारीकर्त्ता हैं।

DICGC: 

  • परिचय: 
    • DICGC, RBI की पूर्ण स्वामित्व वाली सहायक कंपनी है और जमा बीमा सुविधा प्रदान करती है।
      • जमा बीमा प्रणाली वित्तीय प्रणाली की स्थिरता को बनाए रखने में विशेष रूप से छोटे जमाकर्त्ताओं को बैंक की विफलता की स्थिति में उनकी जमा राशि की सुरक्षा का आश्वासन देकर महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
    • DICGC द्वारा विस्तारित जमा बीमा में स्थानीय क्षेत्रीय बैंक (LAB), भुगतान बैंक (PB), लघु वित्त बैंक (SFB), क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक (RRB) और सहकारी बैंक सहित वे सभी वाणिज्यिक बैंक शामिल हैं, जिन्हें RBI द्वारा लाइसेंस प्राप्त है।
  • कवरेज: 
    • DICGC अर्जित ब्याज सहित बचत, सावधि, चालू और आवर्ती जैसी सभी जमाओं का बीमा करता है।
    • बैंक में प्रत्येक जमाकर्त्ता का बैंक के परिसमापन या विफलता की तिथि के अनुसार मूलधन और ब्याज राशि दोनों के लिये अधिकतम 5 लाख रुपए तक का बीमा किया जाता है।
      • DICGC द्वारा प्रदान किया गया पहले का बीमा कवर 1 लाख रुपए था। हालाँकि बीमाकृत बैंकों में जमाकर्त्ताओं के लिये बीमा कवर की सीमा 2020 में बढ़ाकर 5 लाख रुपए कर दी गई थी।
    • DICGC कवर नहीं करता है: 
      • विदेशी सरकारों की जमाराशि।
      • केंद्र/राज्य सरकारों की जमाराशियाँ।
      • अंतर-बैंक जमाराशि।
      • राज्य सहकारी बैंकों में राज्य भूमि विकास बैंकों की जमाराशियाँ।
      • भारत के बाहर प्राप्त किसी भी जमा के कारण कोई भी राशि।
      • कोई भी राशि जिसे RBI के पूर्व अनुमोदन से निगम द्वारा विशेष रूप से छूट दी गई है।
  • कोष: 
    • निगम निम्नलिखित निधियों का रखरखाव करता है:
      • जमा बीमा कोष
      • क्रेडिट गारंटी फंड
      • सामान्य कोष
    • पहले दो को क्रमशः बीमा प्रीमियम और प्राप्त गारंटी शुल्क द्वारा वित्तपोषित किया जाता है तथा संबंधित दावों के निपटान के लिये भी उपयोग किया जाता है। 
    • सामान्य कोष का उपयोग निगम की स्थापना और प्रशासनिक खर्चों को पूरा करने हेतु किया जाता है। 

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


महामारी संधि मसौदे में AMR को संबोधित करना

प्रिलिम्स के लिये:

विश्व स्वास्थ्य सभा, रोगाणुरोधी प्रतिरोध (AMR), "शून्य मसौदा", विश्व स्वास्थ्य संगठन, महामारी, वैक्सीन, कोविड-19 महामारी

मेन्स के लिये:

रोगाणुरोधी प्रतिरोध (AMR) को संबोधित करना, स्वास्थ्य क्षेत्र हेतु जोखिम उत्पन्न करने वाली चुनौतियाँ

चर्चा में क्यों?

महामारी संधि मसौदे को "शून्य मसौदा" के रूप में भी जाना जाता है, जिस पर वर्तमान में विश्व स्वास्थ्य सभा में शामिल सदस्य देशों द्वारा चर्चा की जा रही है।

  • हालाँकि इस बात की चिंता बढ़ रही है कि रोगाणुरोधी प्रतिरोध (Antimicrobial Resistance- AMR) को संबोधित करने वाले प्रावधानों को अंतिम रूप से हटाए जाने का खतरा है।
  • नागरिक समाज और अनुसंधान संगठनों ने AMR को संबोधित करने हेतु विश्लेषण एवं सिफारिशें प्रदान कीं।
  • जर्नल ऑफ मेडिसिन, लॉ एंड एथिक्स के एक विशेष संस्करण ने संधि में AMR को शामिल करने के महत्त्व पर ज़ोर दिया। 

महामारी संधि मसौदा:

  • परिचय: 
    • महामारी संधि मसौदा महामारी और वैश्विक स्वास्थ्य आपात स्थितियों को रोकने, तैयारी एवं प्रतिक्रिया देने हेतु प्रस्तावित एक अंतर्राष्ट्रीय समझौता है।
    • इस पर विश्व स्वास्थ्य संगठन (World Health Organization- WHO) और सदस्य देशों द्वारा बातचीत की जा रही है।
    • इस संधि का उद्देश्य स्वास्थ्य खतरों को दूर करने में वैश्विक सहयोग और एकजुटता को मज़बूत करना है।
    • इसमें निगरानी, पहचान, अधिसूचना, स्वास्थ्य प्रौद्योगिकियों तक पहुँच, सहयोग और जवाबदेही जैसे पहलू शामिल हैं।
    • यह संधि मानवाधिकारों, समानता और एकजुटता के सिद्धांतों पर आधारित है, साथ ही यह प्रत्येक राज्य की स्वास्थ्य नीतियों को निर्धारित करने के संप्रभु अधिकार का सम्मान करती है।
    • यह वैश्विक स्वास्थ्य जोखिम परिषद, वैश्विक स्वास्थ्य जोखिम कोष एवं स्वतंत्र समीक्षा और मूल्यांकन तंत्र स्थापित करता है।
    • महामारी संधि मसौदा कोविड-19 महामारी के प्रभावस्वरूप एक प्रतिक्रिया है।
  • मसौदे के प्रमुख घटक: 
    • वैश्विक सहयोग: 
      • यह महामारी और अन्य वैश्विक स्वास्थ्य आपात स्थितियों की तैयारी व प्रतिक्रिया में वैश्विक समन्वय तथा सहयोग बढ़ाने का आह्वान करता है।
      • स्वास्थ्य प्रणालियों का सुदृढ़ीकरण:
      • यह सभी देशों में विशेष रूप से निम्न और मध्यम आय वाले देशों में स्वास्थ्य प्रणालियों को मज़बूत करने की आवश्यकता पर बल देता है, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि वे महामारी एवं अन्य वैश्विक स्वास्थ्य आपात स्थितियों से निपटने के लिये बेहतर तरीके से तैयार हैं।
    • अनुसंधान और विकास में निवेश:
      • यह महामारी और अन्य वैश्विक स्वास्थ्य आपात स्थितियों के दौरान टीके, निदान तथा उपचार जैसी आवश्यक स्वास्थ्य तकनीकों तक बेहतर पहुँच का आह्वान करता है।
      • यह स्वास्थ्य प्रौद्योगिकियों के अनुसंधान और विकास में निवेश बढ़ाने का आह्वान करता है, विशेष रूप से उन बीमारियों के लिये जो वैश्विक स्वास्थ्य के लिये गंभीर खतरा पैदा करती हैं।
    • सूचना साझा करने में पारदर्शिता:
      • यह महामारी और अन्य वैश्विक स्वास्थ्य आपात स्थितियों के बारे में अधिक पारदर्शिता एवं जानकारी साझा करने का आह्वान करता है, जिसमें बीमारियों के प्रसार तथा हस्तक्षेपों की प्रभावशीलता पर डेटा शामिल है।
    • पैथोजन एक्सेस और बेनिफिट-शेयरिंग सिस्टम (PABS):
      • WHO के तहत PABS का गठन किया गया है, जिससे महामारी की क्षमता वाले सभी रोगजनकों के जीनोमिक अनुक्रम को सिस्टम में "समान स्तर" पर साझा किया जा सके।
        • PABS प्रणाली नई दवाओं और टीकों के अनुसंधान एवं विकास में रोगजनकों तथा उनके आनुवंशिक संसाधनों के ज़िम्मेदार और न्यायसंगत उपयोग को सुनिश्चित करने के लिये एक महत्त्वपूर्ण उपकरण है, जबकि इन संसाधनों को प्रदान करने वाले देशों तथा समुदायों के अधिकारों और हितों की भी पहचान करता है।
    • लैंगिक असमानताओं को संबोधित करना:
      • हेल्थकेयर वर्कफोर्स में लैंगिक असमानताओं को संबोधित करने में मसौदे का उद्देश्य समान वेतन पर ज़ोर देकर और नेतृत्व की भूमिका निभाने में महिलाओं के लिये विशिष्ट बाधाओं को दूर करके "सभी श्रमिकों का स्वास्थ्य एवं देखभाल, सार्थक प्रतिनिधित्व, जुड़ाव, भागीदारी और सशक्तीकरण सुनिश्चित करना" है।

महामारी संधि में AMR का महत्त्व: 

  • AMR को शामिल करने का कारण: 
    • AMR वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा रोगाणुओं के कारण होने वाले संक्रमण इनके उपचार के लिये विकसित दवाओं के लिये प्रतिरोधी बन जाते हैं।
      • सूक्ष्मजीवों में बैक्टीरिया, कवक, वायरस और परजीवी शामिल हैं। 
      •  जीवाणु संक्रमण वैश्विक स्तर पर आठ मौतों में से एक का कारण बनता है।
    • सभी महामारियाँ वायरस के कारण नहीं होती हैं तथा पिछली महामारियाँ बैक्टीरिया से होने वाली बीमारियों के कारण हुई हैं।
    • AMR दवा-प्रतिरोधी तपेदिक, निमोनिया और दवा-प्रतिरोधी स्टैफ संक्रमण (स्टैफिलोकोकस (staphylococcus) नामक बैक्टीरिया के कारण) जैसे मेथिसिलिन-प्रतिरोधी स्टैफिलोकोकस ऑरियस (methicillin-Resistant Staphylococcus Aureus- MRSA) सहित दवा-प्रतिरोधी संक्रमणों के उदय को बढ़ावा दे रहा है।
    • विषाणुजनित महामारी के दौरान द्वितीयक जीवाणु/फंगल संक्रमण एक गंभीर चिंता का विषय है जिसके लिये प्रभावी एंटीबायोटिक दवाओं की आवश्यकता होती है।
      • नॉर्थवेस्टर्न यूनिवर्सिटी के शोध से पता चलता है कि अस्पताल में भर्ती कोविड-19 रोगियों में से कई मौतें निमोनिया से जुड़ी थीं। इसका संबंध द्वितीयक जीवाणु संक्रमण से है जिसका एंटीबायोटिक दवाओं के साथ इलाज किया जाना चाहिये।
      • ब्लैक फंगस म्यूकोरेल्स फंगी (Mucorales fungi) के कारण होने वाला एक फंगल संक्रमण है जो मुख्य रूप से कोविड-19 या मधुमेह जैसी स्थितियों में कमज़ोर प्रतिरक्षा वाले व्यक्तियों को प्रभावित करता है।  
  • AMR उपायों को अस्वीकार करने का प्रभाव:
    • AMR से संबंधित उपायों को हटाने से लोगों को भविष्य की महामारियों से बचाने के प्रयासों में बाधा आएगी।
    • AMR को हटाने के जोखिम में स्वच्छ पेयजल तक पहुँच, संक्रमण की रोकथाम, निगरानी और रोगाणुरोधी प्रबंधन शामिल हैं।
      • रोगाणुरोधी प्रबंधन यह मापने और सुधारने का प्रयास करता है कि कैसे एंटीबायोटिक दवाओं को चिकित्सकों द्वारा निर्धारित किया जाता है तथा रोगियों द्वारा उपयोग किया जाता है। इसका उद्देश्य चिकित्सा परिणामों में सुधार करना और एंटीबायोटिक प्रतिरोध के विकास सहित एंटीबायोटिक उपयोग से संबंधित प्रतिकूल घटनाओं को कम करना है।
    • संधि की शर्तों को कमज़ोर करने से देशों को निवारक कार्यवाहियों से बाहर निकलने (ऑप्ट-आउट) की अनुमति मिल सकती है।
  • महामारी संधि में AMR को संबोधित करने की तात्कालिकता:
    • प्रभाव को कम करने के लिये AMR को वैश्विक राजनीतिक कार्यवाही और सहयोग की आवश्यकता है।
    • महामारी के प्रति प्रतिक्रिया और तैयारियों के लिये रोगाणुरोधी संरक्षण महत्त्वपूर्ण है।
    • महामारी संधि भविष्य की स्वास्थ्य आपात स्थितियों से बचाव करने वाले देशों और समुदायों के व्यापक उद्देश्यों को खतरे में डाल सकती है यदि इसमें AMR की समस्या का निपटान नहीं किया जाता है।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. निम्नलिखित में से कौन-से भारत में सूक्ष्मजैविक रोगजनकों में बहु-औषध प्रतिरोध के होने के कारण हैं? (2019)

  1. कुछ व्यक्तियों में आनुवंशिक पूर्ववृत्ति (जेनेटिक प्रीडिस्पोजीशन)
  2. रोगों के उपचार के लिये  प्रतिजैविकों (एंटीबायोटिक) की गलत खुराक लेना
  3. पशुधन फार्मिंग में प्रतिजैविकों का इस्तेमाल
  4. कुछ व्यक्तियों में चिरकालिक रोगों की बहुलता होना

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 1, 3 और 4
(d) केवल 2, 3 और 4 

उत्तर: (b) 

मेन्स:

प्रश्न. वैक्सीन विकास का आधारभूत सिद्धांत क्या है? वैक्सीन कैसे कार्य करती हैं? कोविड-19 टीकों के निर्माण हेतु वैक्सीन निर्माताओं ने क्या-क्या पद्धतियाँ अपनाई हैं?

स्रोत: द हिंदू