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विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

डीपफेक टेक्नोलॉजी

  • 20 Dec 2022
  • 8 min read

प्रिलिम्स के लिये:

डीप फेक टेक्नोलॉजी, डीप सिंथेसिस टेक्नोलॉजी, कृत्रिम बुद्धिमत्ता तकनीक।

मेन्स के लिये:

भारत की सुरक्षा पर डीप फेक तकनीक का प्रभाव।

चर्चा में क्यों?

चीन का साइबरस्पेस प्रशासन साइबर स्पेस वाच्डॉग, डीप सिंथेसिस टेक्नोलॉजी के उपयोग को प्रतिबंधित करने और गलत सूचना पर अंकुश लगाने के लिये नए नियम बना रहा है।

  • नीति के लिये डीप सिंथेसिस सेवा प्रदाताओं और उपयोगकर्त्ताओं को यह सुनिश्चित करने की आवश्यकता है कि किसी भी छेड़छाड़ की गई सामग्री को स्पष्ट रूप से पहचान और उसके स्रोत का पता लगाया जा सके।

डीप सिंथेसिस

  • डीप सिंथेसिस को आभासी दृश्य बनाने के लिये पाठ, चित्र, ऑडियो और वीडियो उत्पन्न करने के लिये शिक्षा एवं संवर्द्धित वास्तविकता सहित प्रौद्योगिकियों के उपयोग के रूप में परिभाषित किया गया है।
    • प्रौद्योगिकी के सबसे खतरनाक अनुप्रयोगों में से एक डीप फेक है, जहाँ सिंथेटिक मीडिया का उपयोग एक व्यक्ति के चेहरे या आवाज़ को दूसरे व्यक्ति के लिये स्वैप/बदलने के लिये किया जाता है।
    • प्रौद्योगिकी की प्रगति के साथ डीप फेक का पता लगाना कठिन होता जा रहा है।

डीप फेक टेक्नोलॉजी

  • परिचय:
    • डीप फेक तकनीक शक्तिशाली कंप्यूटर और शिक्षा का उपयोग करके वीडियो, छवियों, ऑडियो में हेरफेर करने की एक विधि है।
    • इसका उपयोग फर्जी खबरें उत्पन्न करने और अन्य अवैध कामों के बीच वित्तीय धोखाधड़ी करने के लिये किया जाता है।
    • यह पहले से मौजूद वीडियो, चित्र या ऑडियो पर एक डिजिटल सम्मिश्रण द्वारा आवरित करता है; साइबर अपराधी इसक लिये कृत्रिम बुद्धिमत्ता तकनीक का इस्तेमाल करते हैं।
  • शब्द की उत्पत्ति:
    • डीप फेक शब्द की शुरुआत वर्ष 2017 में हुई थी, जब एक अनाम Reddit उपयोगकर्त्ता ने खुद को "डीप फेक" कहा था।
    • इस उपयोगकर्त्ता ने अश्लील वीडियो बनाने और पोस्ट करने के लिये गूगल की ओपन-सोर्स, डीप-लर्निंग तकनीक में हेरफेर किया।
  • दुरुपयोग:
    • डीप फेक (Deep Fake) तकनीक का उपयोग अब घोटालों और झाँसे, सेलिब्रिटी पोर्नोग्राफी, चुनाव में हेर-फेर, सोशल इंजीनियरिंग, स्वचालित दुष्प्रचार हमले, पहचान की चोरी और वित्तीय धोखाधड़ी आदि जैसे नापाक उद्देश्यों के लिये किया जा रहा है।
      • डीप फेक तकनीक का उपयोग पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा और डोनाल्ड ट्रंप, भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आदि जैसे उल्लेखनीय व्यक्तित्वों को प्रतिरूपित करने के लिये किया गया है।

डीप फेक से निपटने के लिये अन्य देश का योगदान

  • यूरोपीय संघ:
    • यूरोपीय संघ के पास डीप फेक के माध्यम से दुष्प्रचार के प्रसार को रोकने के लिये एक अद्यतन आचार संहिता है।
    • संशोधित कोड में गूगल, मेटा और ट्विटर सहित तकनीकी कंपनियों को अपने प्लेटफॉर्म पर डीप फेक और फर्जी खाते का मुकाबला करने के उपाय करने की आवश्यकता है।
    • संहिता पर हस्ताक्षर करने के बाद उनके पास अपने उपायों को लागू करने के लिये छह महीने का समय होता है।
    • अद्यतन संहिता के अनुसार, यदि अनुपालन नहीं किया जाता है, तो इन कंपनियों को अपने वार्षिक वैश्विक कारोबार के 6% तक के जुर्माने का सामना करना पड़ सकता है।
    • वर्ष 2018 में पेश की गई, गलत सूचना (Disinformation) पर प्रैक्टिस कोड पहली बार दुनिया भर के उद्योग जगत के प्लेयर्स को गलत सूचना का मुकाबला करने के लिये एकीकृत करता है।
  • संयुक्त राज्य अमेरिका:
    • डीप फेक तकनीक का मुकाबला करने के लिये डिपार्टमेंट ऑफ होमलैंड सिक्योरिटी (Department of Homeland Security-DHS) की सहायता हेतु अमेरिका ने बाईपार्टीसन डीपफेक टास्क फोर्स एक्ट (Deepfake Task Force Act) पेश किया।
    • यह उपाय DHS को डीप फेक का वार्षिक अध्ययन करने, उपयोग की गई तकनीक का आकलन करने, विदेशी और घरेलू संस्थाओं द्वारा इसके उपयोग को ट्रैक करने और इससे निपटने के लिये उपलब्ध प्रतिउपायों के साथ आने का निर्देश देता है।
      • कैलिफोर्निया और टेक्सास ने ऐसे कानून पारित किये हैं जो किसी चुनाव के परिणाम को प्रभावित करने वाले डीप फेक वीडियो के प्रकाशन और वितरण को अपराध मानते हैं। वर्जीनिया में कानून गैर-सहमति वाले डीप फेक पोर्नोग्राफी के वितरण पर आपराधिक दंड है।
  • भारत:
    • हालाँकि भारत में डीप फेक तकनीक के इस्तेमाल के खिलाफ कोई कानूनी नियम नहीं हैं।
      • हालाँकि इस तकनीक के दुरुपयोग के संबंध में विशिष्ट कानूनों की मांग की जा सकती है, जिसमें कॉपीराइट उल्लंघन, मानहानि और साइबर अपराध आदि शामिल हों।

आगे की राह:

  • मीडिया उपभोक्ताओं के रूप में हमें मिलने वाली जानकारी की व्याख्या, समझ और उपयोग करने में सक्षम होना चाहिये।
  • इस समस्या से निपटने का सबसे अच्छा तरीका कृत्रिम बुद्धिमत्ता द्वारा समर्थित तकनीकी समाधान है जो डीप फेक की पहचान कर सकता और उन्हें ब्लॉक कर सकता है।
  • डीप फेक से जुड़े मुद्दों को हल करने से पहले मीडिया साक्षरता में सुधार करने की आवश्यकता।
  • डीप फेक का पता लगाने, मीडिया को प्रमाणित करने और आधिकारिक स्रोतों को बढ़ाने के लिये उपयोग में आसान और सुलभ प्रौद्योगिकी समाधानों की भी आवश्यकता है।
  • समाज के स्तर पर, डीप फेक के खतरे का मुकाबला करने के लिये, इंटरनेट पर मीडिया के एक महत्त्वपूर्ण उपभोक्ता होने की ज़िम्मेदारी लेने की आवश्यकता है, सोशल मीडिया पर साझा करने से पहले सोचने और समझने, एवं समाधान का हिस्सा बंनने का प्रयास करना चाहिये।

स्रोत: द हिंदू

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