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डेली न्यूज़

  • 07 Mar, 2025
  • 36 min read
शासन व्यवस्था

PMMVY के कार्यान्वयन संबंधी चिंताएँ

प्रिलिम्स के लिये:

प्रधानमंत्री मातृ वंदना योजना, अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन, जननी सुरक्षा योजना, पोषण अभियान

मेन्स के लिये:

राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम, 2013, भारत में महिलाओं के लिये सामाजिक सुरक्षा एवं मातृ स्वास्थ्य।

स्रोत: द हिंदू

चर्चा में क्यों? 

राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम (NFSA), 2013 के तहत मातृत्व लाभ एक विधिक अधिकार होने के बावजूद, प्रधानमंत्री मातृ वंदना योजना (PMMVY) के कार्यान्वयन में चुनौतियाँ बनी हुई हैं, जिससे लाखों गर्भवती महिलाओं को उचित सहायता नहीं मिल पा रही है। 

PMMVY और इससे संबंधित चिंताएँ क्या हैं?

  • PMMVY: यह महिला एवं बाल विकास मंत्रालय के तहत वर्ष 2017 में शुरू की गई केंद्र प्रायोजित योजना है, जिसके तहत पात्र गर्भवती एवं स्तनपान कराने वाली महिलाओं को मातृत्व लाभ प्रदान किया जाता है। 
  • हालाँकि, सरकारी कर्मचारी और इस तरह का लाभ प्राप्त करने वाली महिलाएँ इसकी पात्र नहीं हैं।
  • उद्देश्य: यह मातृ पोषण सुनिश्चित करने, संस्थागत प्रसव को बढ़ावा देने, वित्तीय स्थिरता का समर्थन करने तथा बालिकाओं के जन्म को प्रोत्साहित करने पर केंद्रित है।
  • मुख्य विशेषताएँ: इसके तहत मातृ स्वास्थ्य एवं पोषण को समर्थन देने के क्रम में वित्तीय सहायता प्रदान किया जाना शामिल है।
    • इसके अंतर्गत पहले बच्चे के लिये 5,000 रुपए प्रदान किये जाते हैं तथा जननी सुरक्षा योजना (JSY) के अंतर्गत अतिरिक्त लाभ के तहत महिलाओं को कुल मिलाकर लगभग 6,000 रुपए प्राप्त होते हैं।
    • दूसरा बच्चा (केवल लड़की होने पर): लैंगिक समानता को बढ़ावा देने और कन्या भ्रूण हत्या को हतोत्साहित करने के लिये 6,000 रुपए दिये जाते हैं।
  • चिंताएँ:
    • सीमित कवरेज: यह योजना NFSA, 2013 का उल्लंघन है, जो सार्वभौमिक मातृत्व लाभ को अनिवार्य बनाता है, क्योंकि इसमें लाभ केवल पहले दो बच्चों तक सीमित है, तथा दूसरे बच्चे को केवल तभी शामिल किया जाता यदि वह लड़की हो।
    • बजट में कटौती: वर्ष 2023-24 में, केंद्र सरकार ने इस योजना के लिये केवल 870 करोड़ रुपए आवंटित किये, जो 2019-20 में आवंटित राशि का केवल एक तिहाई है।
      • 90% जन्मों को 6,000 रुपए प्रति जन्म का लाभ प्रदान करने हेतु कम-से-कम 12,000 करोड़ रुपए की आवश्यकता होगी।
    • अनुपयुक्त कार्यान्वयन: योजना का प्रभावी कवरेज वर्ष 2019-20 में 36% से घटकर वर्ष 2023-24 में केवल 9% रह गया।
    • नौकरशाही और डिजिटल बाधाएँ: यह योजना आधार-आधारित सत्यापन मुद्दों, जटिल आवेदन प्रक्रियाओं और लगातार सॉफ्टवेयर विफलताओं से ग्रस्त है, जिससे गरीब और डिजिटल रूप से निरक्षर महिलाओं के लिये लाभ प्राप्त करना मुश्किल हो रहा है।

नोट: राज्य-विशिष्ट योजनाओं के परिणाम PMMVY से बेहतर होते हैं। तमिलनाडु (84%) और ओडिशा (64%) ने PMMVY (<10%) की तुलना में अधिक कवरेज हासिल किया है। वे क्रमशः प्रति बालक 18,000 रुपए और 10,000 रुपए का लाभ प्रदान करते हैं, जो PMMVY की अक्षमता को उजागर करता है।

NFSA के अंतर्गत मातृत्व लाभ के प्रावधान क्या हैं?

  • NFSA 2013: इसका उद्देश्य भारत की आबादी के एक बड़े हिस्से के लिये संवहनीय खाद्यान्न तक पहुँच सुनिश्चित कर खाद्य और पोषण सुरक्षा प्रदान करना है।
    • यह अधिनियम कल्याण-आधारित से अधिकार-आधारित खाद्य सुरक्षा की ओर बदलाव का प्रतीक है, जिससे सार्वजनिक वितरण प्रणाली (PDS) अधिक संरचित और विधिक रूप से बाध्यकारी बन गई है।
  • NFSA, 2013 के अंतर्गत मातृत्व लाभ: सभी गर्भवती महिलाएँ (औपचारिक क्षेत्र की महिलाओं को छोड़कर) मातृत्व लाभ के रूप में प्रति बच्चा 6,000 रुपए पाने की हकदार हैं।
    • मातृत्व लाभ गर्भवती महिलाओं के लिये उचित पोषण, स्वास्थ्य देखभाल और आराम सुनिश्चित करने में मदद करते हैं, जो मातृ एवं शिशु स्वास्थ्य के लिये महत्त्वपूर्ण है।

नोट: मातृत्व लाभ (संशोधन) अधिनियम, 2017 के अनुसार,  भारत में औपचारिक क्षेत्र में महिलाओं को 26 सप्ताह का सवेतन मातृत्व अवकाश मिलता है।

  • विश्व स्तर पर, 51% देश कम-से-कम 14 सप्ताह का मातृत्व अवकाश प्रदान करते हैं, जो कि अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) मातृत्व संरक्षण सम्मेलन, 2000 द्वारा निर्धारित मानक है।

आगे की राह:

  • ज़मीनी स्तर पर कार्यान्वयन: पात्र लाभार्थियों की पहचान करने और उनकी सहायता करने के लिये मान्यता प्राप्त सामाजिक स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं, आँगनवाड़ी कार्यकर्त्ताओं और पंचायती राज संस्थाओं को शामिल करना।
    • अनौपचारिक अर्थव्यवस्था में कम आय वाले श्रमिकों को लाभ प्रदान करना, क्योंकि उनमें से कई भुगतान मातृत्व अवकाश के दायरे से बाहर हैं।
    • NFSA के अनुसार सभी गर्भवती महिलाओं को लाभ प्रदान करना, न कि इसे केवल पहले और दूसरे बच्चे तक सीमित रखना।
  • समग्र दृष्टिकोण: व्यापक मातृ देखभाल प्रदान करने के लिये JSY, पोषण अभियान और राज्य मातृत्व योजनाओं (तमिलनाडु और ओडिशा जैसे राज्य मॉडल) के साथ बेहतर संबंध सुनिश्चित करना।
  • बेहतर मातृ एवं शिशु स्वास्थ्य परिणामों के लिये नकद हस्तांतरण को निःशुल्क पोषण किट, प्रसवपूर्व देखभाल और प्रसवोत्तर सहायता के साथ संयोजित करना।
  • निगरानी: निधि उपयोग और लाभार्थी पहुँच का मूल्यांकन करने के लिये नियमित स्वतंत्र रूप से ऑडिट आयोजित करना। 
  • डिजिटल बाधाएँ दूर करना: आधार से संबंधित मुद्दों के कारण बहिष्कार को रोकने के लिये वैकल्पिक पहचान सत्यापन शुरू करना।
    • जन धन खातों के साथ एकीकरण करके तथा अनावश्यक नौकरशाही अनुमोदन को हटाकर, बिना किसी देरी के भुगतान जमा किया जाना सुनिश्चित करना।

दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न:

प्रश्न: प्रधानमंत्री मातृ वंदना योजना राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम, 2013 के प्रावधानों से किस प्रकार विरोधाभासी है? इस योजना को NFSA के साथ संरेखित करने के उपाय सुझाएँ।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)  

प्रश्न: सामाजिक विकास की संभावनाओं को बढ़ाने के लिये, विशेष रूप से वृद्धावस्था और मातृ स्वास्थ्य देखभाल के क्षेत्र में ठोस और पर्याप्त स्वास्थ्य देखभाल नीतियों की आवश्यकता है। चर्चा कीजिये। (2020)


आपदा प्रबंधन

हिमस्खलन का बढ़ता जोखिम

प्रिलिम्स के लिये:

हिमस्खलन, भूकंप, हिमालय, हिमस्खलन परिवीक्षण रडार

मेन्स के लिये:

हिमस्खलन के कारण और इसके जोखिमों का शमन करने के उपाय

स्रोत: हिंदुस्तान टाइम्स 

चर्चा में क्यों?

उत्तराखंड के चमोली ज़िले में भीषण हिमस्खलन हुआ, जिससे व्यक्ति और संपत्तियाँ बर्फ और मलबे के नीचे दब गए।

  • अपेक्षाकृत अधिक तापमान, अधिक वर्षा और कम हिमपात के कारण हिम की स्थिति में बदलाव आ रहा है, जिससे हिमालय में हिमस्खलन बढ़ रहा है।

हिमस्खलन क्या है?

  • परिचय: हिमस्खलन अथवा हिमधाव (Avalanche) का आशय किसी पर्वतीय ढाल से तुहिन, हिम और मलबे के द्रुत प्रवाह से है। इसके साथ प्रायः मृदा, चट्टानें और मलबा आता है, जिससे विनाश होता है।
    • भीषण शीतकालीन हिमपात (हिम संचयन) और वसंत हिमद्रवण (हिम परतों का विगलन होना) के कारण हिमस्खलन का खतरा दिसंबर से अप्रैल माह की अवधि में चरम पर होता है।

Avalanche

  • प्रकार:
    • अदृढ़ हिम अवधाव: यह एक एकल बिंदु से शुरू होता है जहाँ हिम का आबंध सुदृढ़ नहीं होता, हिम के कणों के गिरने के साथ इसमें प्रतिलोमित V आकार में विस्तार होता है तथा अपेक्षाकृत कम मात्रा और गति के कारण यह कम संकटपूर्ण होता है।
    • स्लैब हिमस्खलन: किसी संसक्त हिम पट्ट का अंतर्निहित परतों से टूटकर अलग होना स्लैब हिमस्खलन कहलाता है, जिसकी गति प्रायः 50 से 100 किमी/घंटा तक होती है और यह भीषण विनाश का कारण बनता है।
    • ग्लाइडिंग हिमस्खलन: इसमें हिम पुंज का घास अथवा चट्टान जैसी समान सतह से नीचे की ओर फिसलन होता है जिससे इसमें विभंजन होता है और यह स्थिर हिम खंड  से अलग हो जाता है।
    • आर्द्र-हिम अवधाव: आर्द्र-हिम हिमस्खलन स्वाभाविक रूप से तापमान या वर्षा में बढ़ोतरी के कारण होता है, क्योंकि विगलित हिम के जल से हिम परत का आबंध कमज़ोर हो जाता है।

हिमस्खलन के कारण क्या हैं?

प्राकृतिक:

  • हिम का जमाव: लगातार या अत्यधिक हिमपात से हिम पुंज का भार बढ़ जाता है, जिससे अस्थिरता की स्थिति उत्पन्न होती है। उदाहरण के लिये, जनवरी 2020 में हिमाचल प्रदेश में हुआ हिमस्खलन।
    • ऐसे ढाल जिनपर हाल में हिम संचयन हुआ हो, तीव्र पवनों से उनकी अस्थिरता बढ़ सकती है।
  • अदृढ़ हिम परतें: तापमान में परिवर्तन से हिम की परतें कमज़ोर हो जाती हैं, उदाहरण के लिये, अदृढ़ आधार पर हाल में हुए हिम संचयन से हिमस्खलन हो सकता है।
    • तापमान में सहसा वृद्धि से हिम पुंज कमज़ोर हो जाता है, जिससे आर्द्र-हिम अवधाव की संभावना बढ़ जाती है।
  • भूकंप: भूकंपीय गतिविधि बर्फ की परतों में असंतुलन उत्पन्न कर सकती है। उदाहरण के लिये वर्ष 2015 में नेपाल में आए भूकंप के कारण नेपाल की लांगटांग घाटी में हिमस्खलन हुआ था।

मानव-प्रेरित:

  • वनों की कटाई: पेड़ों की जड़ें ढलानों को स्थिर रखने में मदद करती हैं, वनों की कटाई से भूस्खलन और हिमस्खलन का खतरा बढ़ जाता है, जैसा कि हिमालय में सड़क परियोजनाओं में देखा गया है।
  • साहसिक पर्यटन: स्कीइंग, स्नोबोर्डिंग और पर्वतारोहण बर्फ के ढेर को हिलाकर हिमस्खलन को ट्रिगर कर सकते हैं । उदाहरण के लिये, फरवरी 2024 में गुलमर्ग में स्कीयर ने गैर-स्की क्षेत्र  में स्कीइंग करके हिमस्खलन को ट्रिगर किया ।
  • एडवेंचर टूरिज्म: पर्वतारोहण, स्नोबोर्डिंग और स्कीइंग से हिमस्खलन हो सकता है। उदाहरण के लिये, फरवरी 2024 में गुलमर्ग में स्कीयरों गैर-स्की क्षेत्र में गए, जो हिमस्खलन का कारण बना।
  • ग्लोबल वार्मिंग: वैश्विक तापमान में वृद्धि के कारण हिम के पिघलने से हिमस्खलन का खतरा बढ़ जाता है।

हिमस्खलन और भूस्खलन में क्या अंतर है?

आधार

हिमस्खलन

भूस्खलन

परिभाषा

एक प्रकार का भूस्खलन जो बर्फीले क्षेत्रों में होता है, जिसमें बर्फ और हवा की गति शामिल होती है।

सामूहिक छति एक रूप जिसमें भूमि का एक बड़ा क्षेत्र में गुरुत्वाकर्षण बल के कारण हलचल उत्पन्न होती है।

कारण

भारी बर्फबारी, अस्थिर बर्फ़ का ढेर, बर्फ के गोले, ढलानों पर बर्फ जमा करने वाली तेज़ हवाएँ, तापमान में उतार-चढ़ाव

भूकंप, ज्वालामुखी विस्फोट, भारी बारिश और बाढ़, वनों की कटाई, वनाग्नि

पदार्थ

बर्फ और वायु .

मिट्टी, चट्टानों या कीचड़ आदि

घटना

यह बर्फीले क्षेत्रों में होता है जहाँ बर्फ की परतें कमज़ोर रूप से बर्फ के ढेरों पर टिकी होती हैं।

खड़ी ढलान वाली भूमि पर देखने को मिलता है।

गति

बहुत तेज़ (अत्यधिक मामलों में 250 मील प्रति घंटे तक)

हिमस्खलन की तरह तीव्र हो सकता है या समय के साथ धीमी गति से आगे बढ़ सकता है

हिमालय में हिमस्खलन का खतरा अधिक क्यों है?

  • बढ़ता तापमान: हिमालय औसत से अधिक तेज़ी से गर्म हो रहा है, जिसके कारण ग्लेशियर पिघल रहे हैं तथा हिमस्खलन का खतरा बढ़ रहा है।
    • वर्ष 1970 के दशक से पश्चिमी हिमालय में हिमस्खलन में काफी वृद्धि हुई है।
  • आर्द्र बर्फ: अधिक तापमान के कारण बर्फ की परत आर्द्र और अस्थिर हो जाती है, और बर्फबारी के बजाय वर्षा होती है।
    • वर्षा के पानी का बर्फ के ढेर से रिसने के कारण इनकी संरचना कमज़ोर हो जाती है, बर्फ की परतों के बीच घर्षण कम हो जाता है तथा हिमस्खलन का खतरा बढ़ जाता है।
  • पर्माफ्रॉस्ट पिघलना: पर्माफ्रॉस्ट के पिघलने से उनके आधार पर पानी जमा हो जाता है, जिससे हिमस्खलन का खतरा बढ़ जाता है।
  • वायु की गति में वृद्धि: बढ़ते तापमान के कारण वायु की गति में वृद्धि हो रही है, जिससे बर्फ का परिवहन बढ़ जाता है तथा नवीन बर्फ की परतें अधिक अस्थिर हो जाती हैं।
  • खड़ी ढलानें: हिमालय की खड़ी और ऊबड़-खाबड़ भूमि पर गुरुत्वाकर्षण के कारण हिमस्खलन आसान हो जाता है।
  • भूकंप: हिमालय, भूकंपीय दृष्टि से सक्रिय क्षेत्र में स्थित है और इस भूकंप से हिमस्खलन को बढ़ावा मिल सकता है। 

काराकोरम विसंगति

  • काराकोरम विसंगति का तात्पर्य काराकोरम रेंज में ग्लेशियरों के असामान्य व्यवहार से है जहाँ वे या तो स्थिर रहे हैं या उनके द्रव्यमान में मामूली वृद्धि हुई है, जो जलवायु परिवर्तन के कारण वैश्विक स्तर पर ग्लेशियर में आने वाली कमी की प्रवृत्ति के विपरीत है।
    • काराकोरम रेंज एक पर्वतीय क्षेत्र है जो पाकिस्तान, भारत, अफगानिस्तान, ताजिकिस्तान तथा चीन तक विस्तृत है।

हिमस्खलन जोखिम को किस प्रकार कम किया जाए?

  • पूर्व चेतावनी प्रणाली (EWS): EWS से बर्फ की स्थिति की निगरानी (सेंसर और उपग्रहों का उपयोग करके), अलर्ट जारी करने (कमज़ोर बर्फ की परतें) और बचाव प्रयासों में सहायता करने (समय पर निवारक कार्रवाई) से हिमस्खलन के जोखिम को कम किया जा सकता है।
    • उदाहरण के लिये, वर्ष 2022 में भारत का पहला हिमस्खलन निगरानी रडार सिक्किम में स्थापित किया गया था जो ट्रिगर होने के 3 सेकंड के अंदर हिमस्खलन का पता लगा सकता है। 
  • बर्फ परीक्षण: बर्फ की स्थिरता का आकलन करने और हिमस्खलन के जोखिम की भविष्यवाणी करने के लिये नियमित रूप से बर्फ का परीक्षण किया जा सकता है। 
  • सुरक्षात्मक अवसंरचनाएँ: वाहनों को बर्फ के प्रभाव से बचाने के क्रम में परिवहन मार्गों पर बर्फ शेड का निर्माण किया जा सकता है।
    • दीवार और विभाजन संरचनाओं को मज़बूत करने से इमारतों से हिमस्खलन को दूर करने में मदद मिल सकती है। 
  • दोहरे उद्देश्य वाली अवसंरचना: बर्फ पिघलने से बाढ़ और मलबे के प्रवाह से सुरक्षा के क्रम में बाँधों का निर्माण करना चाहिये, जिससे वर्ष भर आपदा न्यूनीकरण सुनिश्चित हो सके।
  • कृत्रिम हिमस्खलन ट्रिगरिंग: नियंत्रित विस्फोटों के द्वारा बड़े हिमस्खलन को रोकने के क्रम में छोटे हिमस्खलन को ट्रिगर किया जाता है जिससे सड़कें, बस्तियाँ और ढलान सुरक्षित रहें।
  • वनरोपण: वनों की वृद्धि को प्रोत्साहित करने से समय के साथ प्राकृतिक हिमस्खलन नियंत्रण में मदद मिल सकती है।

निष्कर्ष

ग्लोबल वार्मिंग और जलवायु परिवर्तन से हिमालय में हिमस्खलन की तीव्रता में वृद्धि हो रही है, जिससे बर्फ की स्थिरता में बदलाव आ रहा है, वर्षा में वृद्धि हो रही है और ग्लेशियर पिघल रहे हैं। इस क्षेत्र की खड़ी ढलान और भूकंपीय गतिविधियों के आलोक में जोखिमों को कम करने तथा समुदायों की सुरक्षा के क्रम में प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली, सुरक्षात्मक बुनियादी ढाँचा तथा नियंत्रित हिमस्खलन ट्रिगरिंग जैसे सक्रिय उपाय आवश्यक हैं।

दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न:

प्रश्न: चर्चा कीजिये कि जलवायु परिवर्तन से किस प्रकार हिमालय में हिमस्खलन का खतरा बढ़ रहा है। इसके शमन हेतु रणनीतियाँ बताइये।

  यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)  

मेन्स

प्रश्न: हिमालय के सिकुड़ते ग्लेशियरों एवं भारतीय उपमहाद्वीप में जलवायु परिवर्तन के लक्षणों के बीच संबंधों पर प्रकाश डालिये। (2014)


भारतीय अर्थव्यवस्था

CPSE की बजटीय निर्भरता

प्रिलिम्स के लिये:

केंद्रीय सार्वजनिक क्षेत्र उद्यम, पूंजीगत व्यय, भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण, विदेशी मुद्रा भंडार

मेन्स के लिये:

आर्थिक विकास में CPSE की भूमिका, सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यम: संबंधित मुद्दे और चुनौतियाँ

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

चर्चा में क्यों? 

यह चिंतनीय है कि केंद्रीय सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यम (CPSE) अपनी पूंजीगत व्यय (capex) रणनीति में बदलाव कर रहे हैं तथा स्व-वित्तपोषण या निजी निवेश की तुलना में बजटीय सहायता पर अधिक निर्भर हो रहे हैं।

  • इस बदलाव से CPSE की दीर्घकालिक वित्तीय स्थिरता और स्वायत्तता पर विमर्श को बढ़ावा मिला है।

CPSE के संबंध में क्या चिंताएँ हैं? 

  • बजटीय सहायता पर अत्यधिक निर्भरता: CPSE अपने स्वयं के आंतरिक एवं अतिरिक्त बजटीय संसाधनों (IEBR) के बजाय बजटीय सहायता (सरकार से इक्विटी और ऋण) पर अधिक निर्भर हो रहे हैं।
    • CPSE के लिये बजटीय सहायता पाँच वर्षों में 150% से अधिक बढ़ी है जो वित्त वर्ष 20 के 2.1 लाख करोड़ रुपए से बढ़कर वित्त वर्ष 25 में 5.48 लाख करोड़ रुपए (संशोधित अनुमान) हो गई है।
    • IEBR (जिसका उपयोग CPSE अपने स्वयं के पूंजीगत व्यय के वित्तपोषण के लिये करते हैं) वित्त वर्ष 2020 के 6.42 लाख करोड़ रुपए से घटकर वित्त वर्ष 23 में 3.63 लाख करोड़ रुपए हो गया है एवं वित्त वर्ष 25 में इसके 3.82 लाख करोड़ रुपए रहने का अनुमान है।
      • IEBR में गिरावट से CPSE का वित्तीय लचीलापन सीमित होने के साथ सरकारी वित्तपोषण पर निर्भरता बढ़ जाती है।
  • निजी क्षेत्र की भागीदारी में कमी: बजटीय सहायता पर CPSE की निर्भरता से निजी निवेश बाधित हुआ है। 
    • भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (NHAI) से अपेक्षा की गई थी कि वह अपने वित्तपोषण का 38% निजी पूंजी से जुटाएगा, लेकिन बढ़ते कर्ज (वर्ष 2022 में 3.48 लाख करोड़ रुपए) और नीतिगत अस्थिरता के कारण वित्त वर्ष 23 से वित्त वर्ष 24 में इसका IEBR शून्य हो गया और निजी निवेश हतोत्साहित हुआ।
    • उच्च ऋण के कारण CPSE की स्वतंत्र रूप से पूँजी जुटाने की क्षमता सीमित हो जाती है तथा उनकी वित्तीय स्थिति कमज़ोर हो जाती है।
  • नीतिगत चिंताएँ: परिवहन संबंधी स्थायी समिति (वित्त वर्ष 22) के अनुसार केवल उच्च बजटीय समर्थन से CPSE निवेश की आवश्यकताएँ पूरी नहीं हो सकतीं, इसलिये निजी क्षेत्र की भागीदारी का आग्रह किया गया।
    • यदि CPSE सरकारी सहायता पर निर्भर रहना जारी रखते हैं, तो इससे राजकोषीय संसाधनों पर दबाव पड़ेगा, तथा सामाजिक और विकासात्मक कार्यक्रमों के लिये उपलब्ध धनराशि कम हो जाएगी।
  • उच्च लाभांश का भुगतान: पुनर्निवेश की तुलना में लाभांश भुगतान को प्राथमिकता देने के लिये CPSE पर सरकार का दबाव से उनके विस्तार, आधुनिकीकरण और स्वतंत्र दीर्घकालिक विकास निर्णय लेने की उनकी क्षमता सीमित होती है।
  • सीमित वित्तीय स्वायत्तता: निजी फर्मों के विपरीत, CPSE में बाज़ार में होने वाले परिवर्तनों के अनुरूप लचीलेपन का अभाव होता है, जिसके कारण निर्णय लेने की प्रक्रिया धीमी हो जाती है।
    • विगत विलयों और अधिग्रहणों (जैसे, ऑयल एंड नेचुरल गैस कॉरपोरेशन (ONGC) द्वारा हिंदुस्तान पेट्रोलियम कॉरपोरेशन लिमिटेड (HPCL) का अधिग्रहण) से CPSE की आरक्षित नकदी निधि कम हुई, जिससे पूंजीगत व्यय क्षमताएँ और अधिक सीमित हो गईं।

CPSE से संबंधित मुख्य तथ्य क्या हैं?

  • परिचय: CPSE वे कंपनियाँ हैं जिनमें केंद्र सरकार अथवा अन्य CPSE की कम-से-कम 51% हिस्सेदारी होती है।
    • सार्वजनिक उद्यम विभाग (Department of Public Enterprises- DPE) विभिन्न मंत्रालयों के अंतर्गत CPSE के प्रदर्शन, वित्त और नीतियों की देखरेख करता है।
    • स्वतंत्रता के बाद, भारत के समाजवादी मॉडल से भारी उद्योग, बैंकिंग, तेल और गैस, इस्पात और विद्युत क्षेत्र में CPSE की उत्पत्ति हुई। 1991 के आर्थिक सुधारों में निगमीकरण, बढ़ती प्रतिस्पर्द्धा और CPSE में लाभप्रदता और दक्षता पर अधिक ध्यान केंद्रित किया गया।
  • महत्त्व: CPSE भारत के आर्थिक विकास, बुनियादी ढाँचे के निर्माण, रोज़गार सृजन और औद्योगिक विकास में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
  • वर्गीकरण: CPSE को आकार, वित्तीय निष्पादन और रणनीतिक महत्त्व के आधार पर मिनीरत्न, नवरत्न और महारत्न में वर्गीकृत किया जाता है।

CPSE का वर्गीकरण 

श्रेणी

        लॉन्च 

      मानदंड

    उदाहरण

महारत्न

  • मई, 2010 में CPSE के लिये महारत्न योजना शुरू की गई थी ताकि बड़े CPSE को अपने परिचालन का विस्तार करने और वैश्विक दिग्गज के रूप में उभरने में सक्षम बनाया जा सके।
  • नवरत्न का दर्जा प्राप्त हो।
  •  भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (SEBI) के नियमों के तहत न्यूनतम निर्धारित सार्वजनिक शेयरधारिता के साथ भारतीय स्टॉक एक्सचेंज में सूचीबद्ध हो।
  • पिछले 3 वर्षों के दौरान 25,000 करोड़ रुपए से अधिक का औसत वार्षिक कारोबार हो।
  •  पिछले 3 वर्षों के दौरान 15,000 करोड़ रुपए से अधिक की औसत वार्षिक निवल परिसंपत्ति हो।
  • पिछले 3 वर्षों के दौरान 5,000 करोड़ रुपए से अधिक का कर के बाद औसत वार्षिक निवल लाभ हो।
  • महत्त्वपूर्ण वैश्विक उपस्थिति/अंतर्राष्ट्रीय परिचालन होना चाहिये।
  • भारत हेवी इलेक्ट्रिकल्स लिमिटेड, भारत पेट्रोलियम कॉर्पोरेशन लिमिटेड, कोल इंडिया लिमिटेड, गेल (इंडिया) लिमिटेड, आदि।

नवरत्न

  • नवरत्न योजना वर्ष 1997 में शुरू की गई थी ताकि उन CPSE की पहचान की जा सके जो अपने संबंधित क्षेत्रों में तुलनात्मक लाभ का आनंद लेते हैं और वैश्विक भागीदार बनने के उनके अभियान में उनका समर्थन करते हैं।
  • मिनीरत्न श्रेणी-I और अनुसूची 'A' CPSE, जिन्होंने पिछले पाँच वर्षों में से तीन वर्षों में समझौता ज्ञापन प्रणाली के तहत 'उत्कृष्ट' या 'बहुत अच्छा' रेटिंग प्राप्त की है तथा छह चयनित प्रदर्शन मापदंडों में 60 या उससे अधिक का समग्र स्कोर है, अर्थात्,
    • निवल लाभ से निवल मूल्य।
    • उत्पादन/सेवाओं की कुल लागत में जनशक्ति लागत।
    • नियोजित पूंजी में मूल्यह्रास, ब्याज और करों से पहले लाभ।
    • टर्नओवर में ब्याज और करों से पहले लाभ।
    • प्रति शेयर आय।
    • अंतर-क्षेत्रीय प्रदर्शन।
  • भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड, हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड, आदि।

मिनिरत्न

  • मिनिरत्न योजना वर्ष 1997 में नीति के अनुसरण में शुरू की गई थी जिसका उद्देश्य सार्वजनिक क्षेत्र को अधिक कुशल और प्रतिस्पर्धी बनाना तथा लाभ कमाने वाले सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों को अधिक स्वायत्तता और शक्तियाँ सौंपना था।
  • मिनीरत्न श्रेणी-I: जिन CPSE ने पिछले तीन वर्षों में लगातार लाभ कमाया है, कम से कम तीन वर्षों में से एक वर्ष में कर-पूर्व लाभ 30 करोड़ रुपए या उससे अधिक है और जिनकी निवल परिसंपत्ति सकारात्मक है, उन्हें मिनीरत्न-I का दर्जा दिये जाने पर विचार किया जा सकता है। 
  • मिनीरत्न श्रेणी-II: जिन CPSE ने पिछले तीन वर्षों में लगातार लाभ कमाया है और जिनकी निवल परिसंपत्ति सकारात्मक है, उन्हें मिनीरत्न-II का दर्जा दिये जाने पर विचार किया जा सकता है। 
  • मिनीरत्न CPSE को सरकार को देय किसी भी ऋण पर ऋण/ब्याज भुगतान के पुनर्भुगतान में चूक नहीं करनी चाहिये। 
  • मिनीरत्न CPSE बजटीय सहायता या सरकारी गारंटी पर निर्भर नहीं होंगे।
  • श्रेणी-I: एयरपोर्ट्स अथॉरिटी ऑफ इंडिया, एंट्रिक्स कॉर्पोरेशन लिमिटेड, आदि। 
  • श्रेणी-II: कृत्रिम अंग निर्माण कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया, भारत पंप्स एंड कंप्रेसर्स लिमिटेड, आदि।
  • फरवरी 2025 में भारतीय रेलवे खानपान एवं पर्यटन निगम (IRCTC) और भारतीय रेलवे वित्त निगम (IRFC) क्रमशः देश की 25वीं और 26वीं नवरत्न कंपनियाँ हैं।
  • CPSE की वर्तमान स्थिति: लोक उद्यम सर्वेक्षण 2023-24 के अनुसार, मार्च 2024 तक, भारत में 448 CPSE हैं (वित्त वर्ष 24 में केवल 272 परिचालनरत)। 
  • CPSE का वित्तीय प्रदर्शन: वित्त वर्ष 24 में परिचालनरत CPSE का सकल राजस्व 4.7% घटकर 36.08 लाख करोड़ रुपए रहा।
  • अर्थव्यवस्था में योगदान: CPSE ने वित्त वर्ष 2023-24 में केंद्रीय राजकोष में योगदान (करों, शुल्कों और लाभांश के माध्यम से) में 4.85 लाख करोड़ रुपए का योगदान दिया, जो वित्त वर्ष 2022-23 में 4.58 लाख करोड़ रुपए से 5.96% की वृद्धि को दर्शाता है।
    • वित्त वर्ष 2023-24 में, सभी CSR पात्र CPSE ने CSR गतिविधियों पर लगभग 4,900 करोड़ रुपए खर्च किये, जो वित्त वर्ष 2022-23 से 19.08% की वृद्धि दर्शाता है।
    • वित्त वर्ष 2023-24 में CPSE ने 1.43 लाख करोड़ रुपए का विदेशी मुद्रा भंडार अर्जित किया, जिससे भारत के व्यापार संतुलन और वैश्विक व्यापार जुड़ाव में योगदान मिला।

नोट: अन्य प्रकार के सार्वजनिक उद्यमों में सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक (PSB) शामिल हैं, जहाँ केंद्र/राज्य सरकार या अन्य PSB की हिस्सेदारी कम से कम 51% है, और राज्य स्तरीय सार्वजनिक उद्यम (SLPE) शामिल हैं, जहां राज्य सरकार या अन्य SLPE की हिस्सेदारी कम से कम 51% है।

CPSE की चिंताओं को दूर करने के लिये क्या उपाय किये जा सकते हैं?

  • विनिवेश: निवेश और सार्वजनिक संपत्ति प्रबंधन विभाग (DIPAM) और नई सार्वजनिक क्षेत्र उद्यम नीति, 2021 के तहत निजी निवेश को आकर्षित करने और राजकोषीय बोझ को कम करने के लिये गैर-रणनीतिक CPSE को निजीकरण के लिये प्राथमिकता दी जा सकती है।
    • निजी निवेशकों के लिये विनियामक बाधाओं और वित्तीय जोखिमों को कम करने के लिये नीतिगत सुधारों को लागू करना।
  • स्वतंत्र रूप से पूंजी जुटाना: CPSE को बॉण्ड, बाह्य वाणिज्यिक उधार (ECB) और निजी अभिकर्त्ताओं के साथ साझेदारी के माध्यम से IEBR वित्तपोषण को पुनर्जीवित करने के लिये प्रोत्साहित करना और बजटीय सहायता पर उनकी निर्भरता कम करना।
  • डिजिटल परिवर्तन: CPSE डिजिटल अपनाने में निजी कंपनियों से पीछे हैं, जिससे परिचालन दक्षता प्रभावित हो रही है। रेलवे, विद्युत् और दूरसंचार जैसे क्षेत्रों में उन्नत डिजिटल बुनियादी ढाँचे और स्वचालन को एकीकृत करने से परिचालन लागत कम हो सकती है।
  • उच्च लाभांश भुगतान को सीमित करना: जैसा कि 15 वें वित्त आयोग (2020-21) द्वारा अनुशंसित किया गया है, CPSE को बुनियादी ढाँचे के विस्तार में पुनर्निवेश के साथ अपने लाभांश भुगतान को संतुलित करना चाहिये।
  • CPSE निष्पादन समीक्षा: वर्ष 2005 की सेनगुप्ता समिति ने बेहतर दक्षता के लिये CPSE निष्पादन समीक्षा को वर्ष में दो बार तक सीमित करने की सिफारिश की थी।

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्रश्न: CPSE के बढ़ते ऋण भार पर ध्यान केंद्रित करते हुए उनकी वित्तीय स्थिति का आलोचनात्मक मूल्यांकन कीजिये। राजकोषीय स्थिरता सुनिश्चित करने के लिये क्या कदम उठाए जाने चाहिये?


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