शासन व्यवस्था
कार्बी एंगलोंग समझौता
प्रिलिम्स के लिये:कार्बी एंगलोंग समझौता, कार्बी, डिमासा, बोडो, कुकी मेन्स के लिये:कार्बी एंगलोंग समझौता एवं इसकी प्रासंगिकता |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में असम के पाँच विद्रोही समूहों, केंद्र और राज्य सरकार के बीच एक त्रिपक्षीय समझौते पर हस्ताक्षर किये गए थे।
- यह समझौता उग्रवाद मुक्त समृद्ध उत्तर-पूर्व के दृष्टिकोण के साथ समन्वित है, जिसमें पूर्वोत्तर के सर्वांगीण विकास, शांति और समृद्धि की परिकल्पना की गई है।
प्रमुख बिंदु
- कार्बी एंगलोंग संकट:
- मध्य असम में स्थित, कार्बी एंगलोंग राज्य का सबसे बड़ा ज़िला है और नृजातीय तथा आदिवासी समूहों - कार्बी, डिमासा, बोडो, कुकी, हमार, तिवा, गारो, मान (ताई बोलने वाले), रेंगमा नागा संस्कृतियों का मिलन बिंदु है। इसकी विविधता ने विभिन्न संगठनों को भी जन्म दिया और उग्रवाद को बढ़ावा दिया जिसने इस क्षेत्र को विकसित नहीं होने दिया।
- कार्बी असम का एक प्रमुख जातीय समूह है, जो कई गुटों और इनके भागों से घिरा हुआ है। कार्बी समूह का इतिहास 1980 के दशक के उत्तरार्द्ध से हत्याओं, जातीय हिंसा, अपहरण और कराधान से युक्त रहा है।
- कार्बी एंगलोंग ज़िले के विद्रोही समूह जैसे पीपुल्स डेमोक्रेटिक काउंसिल ऑफ कार्बी लोंगरी (पीडीसीके), कार्बी लोंगरी एनसी हिल्स लिबरेशन फ्रंट (केएलएनएलएफ) आदि एक अलग राज्य बनाने की मुख्य मांग से उत्पन्न हुए।
- उग्रवादी समूहों की कुछ अन्य मांगें इस प्रकार हैं:
- कार्बी आंगलोंग स्वायत्त परिषद (KAAC) में कुछ क्षेत्रों को शामिल करना।
- अनुसूचित जनजातियों के लिये सीटों का आरक्षण।
- परिषद को अधिक अधिकार।
- आठवीं अनुसूची में कार्बी भाषा को शामिल करना।
- 1,500 करोड़ रुपए का वित्तीय पैकेज।
नोट:
- कार्बी आंगलोंग स्वायत्त परिषद (KAAC) एक स्वायत्त ज़िला परिषद है, जो भारतीय संविधान की छठी अनुसूची के तहत संरक्षित है।
- कार्बी-आंगलोंग शांति समझौते की मुख्य विशेषताएँ:
- कार्बी संगठनों ने आत्मसमर्पण किया: 5 उग्रवादी संगठनों (KLNLF, PDCK, UPLA, KPLT और KLF) ने हथियार डाल दिये और उनके 1000 से अधिक सशस्त्र कैडरों ने हिंसा छोड़ दी तथा समाज की मुख्यधारा में शामिल हो गए।
- विशेष विकास पैकेज: कार्बी क्षेत्रों के विकास के लिये विशेष परियोजनाएँ शुरू करने हेतु केंद्र सरकार और असम सरकार द्वारा पाँच वर्षों में 1000 करोड़ रुपए का विशेष विकास पैकेज आवंटित किया जाएगा।
- KAAC को अधिक स्वायत्तता: यह समझौता असम की क्षेत्रीय और प्रशासनिक अखंडता को प्रभावित किये बिना कार्बी आंगलोंग स्वायत्त परिषद को अपने अधिकारों का प्रयोग करने हेतु यथासंभव स्वायत्तता हस्तांतरित करेगा।
- कुल मिलाकर वर्तमान समझौते में KAAC को अधिक विधायी, कार्यकारी, प्रशासनिक और वित्तीय शक्तियांँ देने का प्रस्ताव है।
- पुनर्वासः इस समझौते में सशस्त्र समूहों के कैडरों के पुनर्वास का प्रावधान किया गया है।
- स्थानीय लोगों का विकास: असम सरकार KAAC क्षेत्र के बाहर रहने वाले कार्बी लोगों के विकास पर ध्यान केंद्रित करने हेतु एक कार्बी कल्याण परिषद (Karbi Welfare Council) की स्थापना करेगी।
- यह समझौता कार्बी लोगों की संस्कृति, पहचान, भाषा आदि की सुरक्षा और क्षेत्र के सर्वांगीण विकास को भी सुनिश्चित करने में सहायक होगा।
- KAAC को संसाधनों की आपूर्ति करने हेतु राज्य की संचित निधि में संशोधन किया जाएगा।
- पूर्वोत्तर के अन्य हालिया शांति समझौते:
- NLFT त्रिपुरा समझौता, 2019: ‘नेशनल लिबरेशन फ्रंट ऑफ त्रिपुरा’ (NLFT) को वर्ष 1997 से गैरकानूनी गतिविधियाँ (रोकथाम) अधिनियम, 1967 के तहत प्रतिबंधित कर दिया गया है और यह अंतर्राष्ट्रीय सीमा पर अपने शिविरों के माध्यम से हिंसा फैलाने के लिये उत्तरदायी है।
- NLFT ने 10 अगस्त, 2019 को भारत सरकार और त्रिपुरा के साथ समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किये।
- इसके तहत भारत सरकार द्वारा पाँच वर्ष की अवधि के लिये 100 करोड़ रुपए के ‘विशेष आर्थिक विकास पैकेज’ (SEDP) की पेशकश की गई है।
- ब्रू समझौता, 2020 : ब्रू या रेयांग (Bru or Reang) पूर्वोत्तर भारत का एक जनजातीय समुदाय है, ये लोग मुख्यतः त्रिपुरा, मिज़ोरम तथा असम में रहते हैं। त्रिपुरा में इन्हें विशेष रूप से कमज़ोर जनजातीय समूह के रूप में मान्यता प्राप्त है।
- मिज़ोरम में इन्हें उन समूहों द्वारा निशाना बनाया गया है जो उन्हें राज्य के लिये स्वदेशी नहीं मानते हैं।
- 1997 में जातीय संघर्षों के बाद लगभग 37,000 ब्रू मिज़ोरम से भाग गए तथा उन्हें त्रिपुरा में राहत शिविरों में ठहराया गया।
- ब्रू समझौते के तहत त्रिपुरा में 6959 ब्रू परिवारों के लिये वित्तीय पैकेज सहित स्थायी बंदोबस्त पर भारत सरकार, त्रिपुरा और मिज़ोरम के बीच ब्रू प्रवासियों के प्रतिनिधियों के साथ सहमति बनी है।
- बोडो शांति समझौता: असम में अधिसूचित अनुसूचित जनजातियों में बोडो सबसे बड़ा समुदाय है। वे 1967-68 से बोडो राज्य की मांग कर रहे हैं।
- NLFT त्रिपुरा समझौता, 2019: ‘नेशनल लिबरेशन फ्रंट ऑफ त्रिपुरा’ (NLFT) को वर्ष 1997 से गैरकानूनी गतिविधियाँ (रोकथाम) अधिनियम, 1967 के तहत प्रतिबंधित कर दिया गया है और यह अंतर्राष्ट्रीय सीमा पर अपने शिविरों के माध्यम से हिंसा फैलाने के लिये उत्तरदायी है।
स्रोत: पीआईबी
सामाजिक न्याय
तपेदिक
प्रिलिम्स के लियेतपेदिक, बेसिल कैलमेट-गुएरिन (BCG) वैक्सीन मेन्स के लियेतपेदिक रोग और उसकी रोकथाम से संबंधित वैश्विक प्रयास |
चर्चा में क्यों?
बेसिल कैलमेट-गुएरिन (BCG) वैक्सीन ने अपने 100 वर्ष पूरे कर लिये हैं और यह वर्तमान में ‘तपेदिक’ (TB) की रोकथाम के लिये उपलब्ध एकमात्र वैक्सीन है।
प्रमुख बिंदु
- ‘तपेदिक’ (TB)
- टीबी या क्षय रोग ‘माइकोबैक्टीरियम ट्यूबरकुलोसिस’ नामक जीवाणु के कारण होता है, जो कि लगभग 200 सदस्यों वाले ‘माइकोबैक्टीरियासी परिवार’ से संबंधित है।
- कुछ माइकोबैक्टीरिया मनुष्यों में टीबी और कुष्ठ रोग का कारण बनते हैं तथा अन्य काफी व्यापक स्तर पर जानवरों को संक्रमित करते हैं।
- टीबी, मनुष्यों में सबसे अधिक फेफड़ों (पल्मोनरी टीबी) को प्रभावित करता है, लेकिन यह अन्य अंगों (एक्स्ट्रा-पल्मोनरी टीबी) को भी प्रभावित कर सकता है।
- टीबी एक बहुत ही प्राचीन रोग है और मिस्र में तकरीबन 3000 ईसा पूर्व में इसके अस्तित्व में होने का दस्तावेज़ीकरण किया गया था।
- वर्तमान में टीबी एक इलाज योग्य रोग है।
- टीबी या क्षय रोग ‘माइकोबैक्टीरियम ट्यूबरकुलोसिस’ नामक जीवाणु के कारण होता है, जो कि लगभग 200 सदस्यों वाले ‘माइकोबैक्टीरियासी परिवार’ से संबंधित है।
- ट्रांसमिशन
- टीबी रोग हवा के माध्यम से एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में फैलता है। जब ‘पल्मोनरी टीबी’ से पीड़ित कोई व्यक्ति खाँसता, छींकता या थूकता है, तो वह टीबी के कीटाणुओं को हवा में फैला देता है।
- लक्षण
- ‘पल्मोनरी टीबी’ के सामान्य लक्षणों में बलगम के साथ खाँसी और कई बार खून आना, सीने में दर्द, कमज़ोरी, वज़न कम होना, बुखार और रात को पसीना आना शामिल है।
- टीबी का वैश्विक प्रभाव:
- वर्ष 2019 में टीबी के 87% नए मामले केवल 30 उच्च संक्रमण वाले देशों में देखने को मिले थे।
- टीबी के नए मामलों में से दो-तिहाई मामलों में केवल आठ देशों का योगदान है:
- इनमें भारत, इंडोनेशिया, चीन, फिलीपींस, पाकिस्तान, नाइजीरिया, बांग्लादेश और दक्षिण अफ्रीका शामिल हैं।
- भारत में जनवरी और दिसंबर 2020 के बीच 1.8 मिलियन टीबी के मामले दर्ज किये गए, जबकि एक वर्ष पूर्व यह संख्या 2.4 मिलियन थी।
- वर्ष 2019 में मल्टी-ड्रग रेसिस्टेंट-टीबी (MDR-TB) एक सार्वजनिक स्वास्थ्य संकट और स्वास्थ्य सुरक्षा के लिये एक गंभीर खतरा बना रहा।
- ‘मल्टी-ड्रग रेसिस्टेंट ट्यूबरकुलोसिस’ (MDR-TB) टीबी का एक प्रकार है, जिसका इलाज दो सबसे शक्तिशाली एंटी-टीबी दवाओं के साथ नहीं किया जा सकता है। ‘एक्स्टेंसिव ड्रग रेसिस्टेंट ट्यूबरकुलोसिस’ (XDR-TB) टीबी का वह रूप है, जो ऐसे बैक्टीरिया के कारण होता है जो कई सबसे प्रभावी एंटी-टीबी दवाओं के प्रतिरोधी होते हैं।
- बीसीजी (BCG) वैक्सीन :
- बीसीजी वैक्सीन को दो फ्राँसीसी वैज्ञानिकों अल्बर्ट कैलमेट (Albert Calmett) और केमिली गुएरिन (Camille Guerin) द्वारा माइकोबैक्टीरियम बोविस [Mycobacterium bovis (जो मवेशियों में टीबी का कारण बनता है)] के एक स्ट्रेन में परिवर्तन करके विकसित किया गया था, जिसे पहली बार वर्ष 1921 में मनुष्यों में प्रयोग किया गया था।
- भारत में बीसीजी का चयन पहली बार वर्ष 1948 में सीमित पैमाने पर किया गया था तथा यह वर्ष 1962 में राष्ट्रीय टीबी नियंत्रण कार्यक्रम का एक हिस्सा बन गया।
- एक टीके के रूप में इसका प्राथमिक उपयोग टीबी के खिलाफ किया जाता है तथा इसके अतिरिक्त यह नवजात शिशुओं के श्वसन और जीवाणु संक्रमण, कुष्ठ एवं बुरुली अल्सर (Buruli Ulcer) जैसे अन्य माइकोबैक्टीरियल रोगों से भी बचाता है।
- मूत्राशय के कैंसर और घातक मेलेनोमा बीमारी में एक इम्यूनोथेरेपी एजेंट के रूप में भी इसका उपयोग किया जाता है।
- बीसीजी के बारे में सबसे रोचक तथ्य है कि यह कुछ भौगोलिक स्थानों पर अच्छा काम करता है, जबकि कुछ जगहों पर इतना प्रभावी नहीं होता है। आमतौर पर भूमध्य रेखा से दूरी बढ़ने के साथ-साथ ‘बीसीजी वैक्सीन’ की प्रभावकारिता भी बढ़ती जाती है।
- यूके, नॉर्वे, स्वीडन और डेनमार्क में इसकी प्रभावकारिता काफी अधिक है तथा भारत, केन्या एवं मलावी जैसे भूमध्य रेखा पर या उसके आस-पास स्थित देशों में, जहाँ क्षय रोग का भार अधिक है, वहाँ इसकी प्रभावकारिता बहुत कम या कोई प्रभाव नहीं दिखाई देता है।
- संबंधित पहल :
- वैश्विक प्रयास :
- विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने ग्लोबल फंड और स्टॉप टीबी पार्टनरशिप के साथ एक संयुक्त पहल "शोध. उपचार. सर्व. #EndTB" (Find. Treat. All. #EndTB") शुरू की है।
- विश्व स्वास्थ्य संगठन, विश्व तपेदिक रिपोर्ट (Global Tuberculosis Report) भी जारी करता है।
- भारत के प्रयास :
- क्षय रोग उन्मूलन वर्ष 2017-2025 हेतु राष्ट्रीय रणनीतिक योजना (NSP), निक्षय इकोसिस्टम (राष्ट्रीय टीबी सूचना प्रणाली), निक्षय पोषण योजना (NPY द्वारा वित्तीय सहायता), टीबी हारेगा देश जीतेगा अभियान।
- वर्तमान में नैदानिक परीक्षण के तीसरे चरण के अंतर्गत टीबी के लिये दो टीके विकसित किये गए हैं - वैक्सीन प्रोजेक्ट मैनेजमेंट 1002 (VPM1002) तथा माइकोबैक्टीरियम इंडिकस प्राणी' (MIP)।
- वैश्विक प्रयास :
स्रोत : द हिंदू
जैव विविधता और पर्यावरण
शिकारी पक्षियों की प्रजाति पर संकट
प्रिलिम्स के लिये:अंतर्राष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ, गिद्ध कार्ययोजना 2020-25, रैप्टर प्रजाति मेन्स के लिये:शिकारी/रैप्टर प्रजातियों के संकट में होने का कारण एवं इनके संरक्षण हेतु प्रयास |
चर्चा में क्यों?
हाल के शोध के अनुसार, वैश्विक स्तर पर 557 शिकारी प्रजातियों में से लगभग 30% के विलुप्त होने का खतरा है।
- यह विश्लेषण अंतर्राष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ (IUCN) और बर्डलाइफ इंटरनेशनल (संरक्षण संगठनों की एक वैश्विक साझेदारी) द्वारा किया गया है।
प्रमुख बिंदु
- रैप्टर प्रजातियाँ:
- रैप्टर प्रजातियों के बारे में: रैप्टर शिकार करने वाले पक्षी हैं। ये मांसाहारी होते हैं तथा स्तनधारियों, सरीसृपों, उभयचरों, कीटों के साथ-साथ अन्य पक्षियों को भी मारकर खाते हैं।
- सभी रैप्टर/शिकारी पक्षी मुड़ी हुई चोंच, नुकीले पंजे वाले मज़बूत पैर, तीव्र दृष्टि के साथ ही मांसाहारी होते हैं।
- महत्त्व:
- रैप्टर या शिकारी प्रजाति के पक्षी कशेरुकियों (Vertebrates) की एक विस्तृत शृंखला का शिकार करते हैं और साथ ही ये लंबी दूरी तक बीजों को फैलाने का कार्य करते हैं जो अप्रत्यक्ष रूप से बीज उत्पादन और कीट नियंत्रण को बढ़ावा देता है।
- रैप्टर पक्षी खाद्य शृंखला के शीर्ष पर स्थित शिकारी पक्षी होते हैं। कीटनाशकों, निवास स्थान की क्षति और जलवायु परिवर्तन जैसे खतरों का इन पर सबसे अधिक नाटकीय प्रभाव पड़ता है, इसलिये इन्हें संकेतक प्रजाति भी कहा जाता है।
- जनसंख्या: इंडोनेशिया में सबसे अधिक रैप्टर प्रजातियांँ पाई जाती हैं, इसके बाद कोलंबिया, इक्वाडोर और पेरू का स्थान है।
- उदाहरण: उल्लू, गिद्ध, बाज, फाॅल्कन, चील, काइट्स, ब्यूटियो, एक्सीपिटर्स, हैरियर और ओस्प्रे।
- रैप्टर प्रजातियों के बारे में: रैप्टर शिकार करने वाले पक्षी हैं। ये मांसाहारी होते हैं तथा स्तनधारियों, सरीसृपों, उभयचरों, कीटों के साथ-साथ अन्य पक्षियों को भी मारकर खाते हैं।
- संकट का कारण::
- डाइक्लोफेनाक का उपयोग: डाइक्लोफेनाक (Diclofenac) के व्यापक उपयोग के कारण भारत जैसे एशियाई देशों में कुछ गिद्धों की आबादी में 95% से अधिक की गिरावट आई है।
- डाइक्लोफेनाक एक गैर-स्टेरॉइडल विरोधी उत्तेजक दवा है।
- वनों की कटाई: व्यापक स्तर पर वनों की कटाई के कारण पिछले दशकों में विश्व में ईगल की सबसे बड़ी किस्म फिलीपीन ईगल की आबादी में तेज़ी से कमी आई है।
- फिलीपीन ईगल IUCN रेड लिस्ट के तहत गंभीर रूप से संकटग्रस्त है।
- शिकार करना और विष देना: अफ्रीका में पिछले 30 वर्षों में ग्रामीण क्षेत्रों में गिद्धों की आबादी में औसतन 95% की कमी आई है, जिसका कारण डाइक्लोफेनाक से उपचारित पशुओं के शवों को खाना, गोली मारना और ज़हर देना है।
- पर्यावास हानि और क्षरण: एनोबोन स्कॉप्स-उल्लू (Annobon Scops-0wl) पश्चिम अफ्रीका के एनोबोन द्वीप तक सीमित है, जिसे हाल ही में तेज़ी से निवास स्थान के नुकसान और गिरावट के कारण IUCN रेड लिस्ट के तहत 'गंभीर रूप से लुप्तप्राय' की श्रेणी में वर्गीकृत किया गया था।
- डाइक्लोफेनाक का उपयोग: डाइक्लोफेनाक (Diclofenac) के व्यापक उपयोग के कारण भारत जैसे एशियाई देशों में कुछ गिद्धों की आबादी में 95% से अधिक की गिरावट आई है।
- संरक्षण के प्रयास:
- रैप्टर्स MoU (वैश्विक): इस समझौते को ‘रैप्टर समझौता-ज्ञापन (Raptor MOU)’ के नाम से भी जाना जाता है। यह समझौता अफ्रीका और यूरेशिया क्षेत्र में प्रवासी पक्षियों के शिकार पर प्रतिबंध और उनके संरक्षण को बढ़ावा देता है।
- CMS संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम के तहत एक अंतर्राष्ट्रीय संधि है। इसे बाॅन कन्वेंशन के नाम से भी जाना जाता है। CMS का उद्देश्य स्थलीय, समुद्री तथा उड़ने वाले अप्रवासी जीव जंतुओं का संरक्षण करना है। यह कन्वेंशन अप्रवासी वन्यजीवों तथा उनके प्राकृतिक आवास पर विचार-विमर्श के लिये एक वैश्विक मंच प्रदान करता है।
- यह कानूनी रूप से बाध्यकारी नहीं है।
- भारत के संरक्षण प्रयास:
- भारत रैप्टर्स MoU का हस्ताक्षरकर्त्ता है।
- गिद्धों के संरक्षण के लिये भारत ने गिद्ध कार्ययोजना 2020-25 शुरू की है।
- भारत SAVE (Saving Asia’s Vultures from Extinction) संघ का भी हिस्सा है।
- पिंजौर (हरियाणा) में जटायु संरक्षण प्रजनन केंद्र (Jatayu Conservation Breeding Centre) भारतीय गिद्ध प्रजातियों के प्रजनन और संरक्षण के लिये राज्य के बीर शिकारगाह वन्यजीव अभयारण्य के भीतर विश्व की सबसे बड़ी अनुकूल जगह है।
- रैप्टर्स MoU (वैश्विक): इस समझौते को ‘रैप्टर समझौता-ज्ञापन (Raptor MOU)’ के नाम से भी जाना जाता है। यह समझौता अफ्रीका और यूरेशिया क्षेत्र में प्रवासी पक्षियों के शिकार पर प्रतिबंध और उनके संरक्षण को बढ़ावा देता है।
स्रोत: डाउन टू अर्थ
भूगोल
अल नीनो और ला नीना पर जलवायु परिवर्तन का प्रभाव
प्रिलिम्स के लिये:अल नीनो, ला नीना, अल नीनो-दक्षिणी दोलन मेन्स के लिये:अल नीनो और ला नीना घटना पर जलवायु परिवर्तन का प्रभाव एवं इसके वैश्विक प्रभाव |
चर्चा में क्यों?
एक हालिया शोध के अनुसार, जलवायु परिवर्तन अत्यधिक बार अल नीनो और ला नीना घटनाओं की बारंबारता का कारण बन सकता है।
- यह निष्कर्ष दक्षिण कोरिया के सबसे तेज़ सुपर कंप्यूटरों में से एक ‘एलेफ’ का उपयोग करके प्राप्त किया गया है।
प्रमुख बिंदु
- हालिया शोध के निष्कर्ष:
- वायुमंडलीय कार्बन डाइऑक्साइड में वृद्धि से भविष्य में अल नीनो-दक्षिणी दोलन’ (ENSO) समुद्र की सतह के तापमान विसंगति के कमज़ोर होने का कारण बन सकता है।
- जलवाष्प के वाष्पीकरण के कारण भविष्य में अल नीनो की घटनाएँ वातावरण में ऊष्मा को और अधिक तेज़ी से समाप्त करेंगी। इसके अलावा भविष्य में पूर्वी और पश्चिमी उष्णकटिबंधीय प्रशांत के बीच तापमान में अंतर कम होगा, जिससे ENSO चक्र के दौरान चरम तापमान सीमा के विकास में बाधा उत्पन्न होगी।
- भविष्य में ‘ट्रॉपिकल इंस्टैबिलिटी वेव्स’ (TIWs) का कमज़ोर होना ला नीना घटना के विघटन का कारण बन सकता है।
- TIWs भूमध्यरेखीय प्रशांत महासागर और अटलांटिक महासागर में मासिक परिवर्तनशीलता की एक प्रमुख विशेषता है।
- ENSO:
- अल नीनो-दक्षिणी दोलन, जिसे ENSO के रूप में भी जाना जाता है, समुद्र की सतह के तापमान (अल नीनो) और भूमध्यरेखीय प्रशांत महासागर के ऊपर के वातावरण (दक्षिणी दोलन) के वायु दाब में एक आवधिक उतार-चढ़ाव है।
- अल नीनो और ला नीना भूमध्यरेखीय प्रशांत क्षेत्र में समुद्र के तापमान में बदलाव के परिणामस्वरूप उत्पन्न होने वाले जटिल मौसम पैटर्न हैं। वे ENSO चक्र के विपरीत चरण हैं।
- अल नीनो और ला नीना घटनाएँ आमतौर पर 9 से 12 महीने तक चलती हैं, लेकिन कुछ लंबी घटनाएँ वर्षों तक जारी रह सकती हैं।
- अल नीनो :
- परिचय :
- अल नीनो एक जलवायु पैटर्न है जो पूर्वी उष्णकटिबंधीय प्रशांत महासागर में सतही जल के असामान्य रूप से तापन की स्थिति को दर्शाता है।
- यह अल नीनो-दक्षिणी दोलन (ENSO) घटना की "उष्ण अवस्था" है।
- यह घटना ला नीना की तुलना में अधिक बार होती है।
- अल नीनो एक जलवायु पैटर्न है जो पूर्वी उष्णकटिबंधीय प्रशांत महासागर में सतही जल के असामान्य रूप से तापन की स्थिति को दर्शाता है।
- प्रभाव :
- गर्म जल प्रशांत ज़ेट स्ट्रीम को अपनी तटस्थ स्थिति से दक्षिण की ओर ले जाने का कारण बनता है। इस परिवर्तन के सापेक्ष, उत्तरी अमेरिका और कनाडा के क्षेत्र सामान्य से अधिक शुष्क और उष्ण हो गए हैं। लेकिन अमेरिका के खाड़ी तट एवं दक्षिण-पूर्व में यह अवधि सामान्य से अधिक नमीयुक्त होती है जिसके परिणामस्वरूप बाढ़ में वृद्धि होती है।
- अल नीनो के कारण दक्षिण अमेरिका में बारिश अधिक होती है, वहीं इंडोनेशिया एवं ऑस्ट्रेलिया में इसके कारण सूखे की स्थिति उत्पन्न होती है।
- अल नीनो का गहरा प्रभाव प्रशांत तट से दूर स्थित समुद्री जीवन पर भी पड़ता है।
- सामान्य परिस्थितियों में अपवेलिंग (Upwelling) के कारण समुद्र की गहराई से ठंडा पोषक तत्त्वों से युक्त जल ऊपरी सतह पर आ जाता है।
- अल नीनो के दौरान अपवेलिंग प्रक्रिया कमज़ोर पड़ जाती है या पूरी तरह से रुक जाती है जिसके परिणामस्वरूप गहराई में मौज़ूद पोषक तत्त्वों के सतह पर न आ पाने के कारण तट पर स्थित फाइटोप्लैंकटन (Phytoplankton) जंतुओं की संख्या में कमी आती है। यह उन मछलियों को प्रभावित करती है जिनका भोजन फाइटोप्लैंकटन है, साथ ही यह मछली खाने वाले प्रत्येक जीव को प्रभावित करती है।
- गर्म जल उष्णकटिबंधीय प्रजातियों को भी सतह पर ला सकता है, जैसे- येलोटेल और एल्बाकोर टूना मछली, ये सामान्यत: सर्वाधिक ठंडे क्षेत्रों में पाए जाते हैं।
- परिचय :
- ला नीना:
- परिचय
- ला नीना, ENSO की ‘शीत अवस्था’ होती है, यह पैटर्न पूर्वी उष्णकटिबंधीय प्रशांत महासागरीय क्षेत्र के असामान्य शीतलन को दर्शाता है।
- अल नीनो की घटना जो कि आमतौर पर एक वर्ष से अधिक समय तक नहीं रहती है, के विपरीत ला नीना की घटनाएँ एक वर्ष से तीन वर्ष तक बनी रह सकती हैं।
- दोनों घटनाएँ उत्तरी गोलार्द्ध में सर्दियों के दौरान चरम पर होती हैं।
- ला नीना, ENSO की ‘शीत अवस्था’ होती है, यह पैटर्न पूर्वी उष्णकटिबंधीय प्रशांत महासागरीय क्षेत्र के असामान्य शीतलन को दर्शाता है।
- प्रभाव
- अमेरिका के पश्चिमी तट के पास ‘अपवेलिंग’ बढ़ जाती है, जिससे पोषक तत्त्वों से भरपूर ठंडा पानी सतह पर आ जाता है।
- दक्षिण अमेरिका के मत्स्य पालन उद्योग पर प्रायः इसका सकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
- यह अधिक गंभीर ‘हरिकेन’ को भी बढ़ावा दे सकता है।
- यह जेट स्ट्रीम को उत्तर की ओर ले जाने का भी कारण बनता है, जो कि पूर्वी प्रशांत क्षेत्र में पहुँचकर कमज़ोर हो जाता है।
- यह पेरू और इक्वाडोर जैसे दक्षिण अमेरिकी देशों में सूखे का भी कारण बनता है।
- पश्चिमी प्रशांत, हिंद महासागर और सोमालियाई तट के पास तापमान में वृद्धि के कारण ऑस्ट्रेलिया में भी भारी बाढ़ आती है।
- परिचय
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
भारतीय अर्थव्यवस्था
अकाउंट एग्रीगेटर सिस्टम
प्रिलिम्स के लियेअकाउंट एग्रीगेटर सिस्टम मेन्स के लियेअकाउंट एग्रीगेटर सिस्टम का महत्त्व |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में आठ प्रमुख बैंक ‘अकाउंट एग्रीगेटर’ (AA) नेटवर्क में शामिल हुए हैं, जो ग्राहकों को अपने वित्तीय डेटा को आसानी से एक्सेस करने और साझा करने में सक्षम बनाएगा।
प्रमुख बिंदु
- ‘अकाउंट एग्रीगेटर’ (AA)
- ‘अकाउंट एग्रीगेटर’ (AA) का आशय एक ऐसे फ्रेमवर्क से है, जो विनियमित संस्थाओं (बैंकों और NBFCs) के बीच वास्तविक समय और ‘डेटा-ब्लाइंड’ (इसके माध्यम से प्रवाहित डेटा पूर्णतः एन्क्रिप्टेड होता है) के माध्यम से वित्तीय जानकारी साझा करने की सुविधा प्रदान करता है।
- ‘भारतीय रिज़र्व बैंक’ ने वर्ष 2016 में ‘अकाउंट एग्रीगेटर’ को ‘गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों’ (NBFCs) के एक नए वर्ग के रूप में मंज़ूरी दी थी, जिसकी प्राथमिक ज़िम्मेदारी उपयोगकर्त्ता के वित्तीय डेटा को उसकी स्पष्ट सहमति से स्थानांतरित करने की सुविधा प्रदान करना है।
- यह वित्तीय सूचना प्रदाताओं (FIPs) और वित्तीय सूचना उपयोगकर्त्ताओं (FIUs) के बीच डेटा के प्रवाह को सक्षम बनाता है।
- ‘अकाउंट एग्रीगेटर’ (AA) की संरचना ‘डेटा एंपावरमेंट एंड प्रोटेक्शन आर्किटेक्चर’ (DEPA) फ्रेमवर्क पर आधारित है।
- DEPA एक ऐसा आर्किटेक्चर है, जो उपयोगकर्त्ताओं को सुरक्षित रूप से अपने डेटा तक पहुँच प्रदान करता है और इसे तीसरे पक्ष के साथ साझा करने की सुविधा देता है।
- महत्त्व:
- उपभोक्ताओं के लिये:
- AA फ्रेमवर्क ग्राहकों को सहमति पद्धति के आधार पर एकल पोर्टल पर प्रदाताओं को एक मेज़बान के माध्यम से विभिन्न वित्तीय सेवाओं का लाभ उठाने की अनुमति देता है, जिसके तहत उपभोक्ता यह चुनाव कर सकते हैं कि कौन सा वित्तीय डेटा साझा करना है और किस इकाई के साथ।
- यह उपयोगकर्त्ताओं को यह नियंत्रित करने की अनुमति देता है कि कौन उनके डेटा तक पहुँच प्राप्त कर सकता है, इसकी गति को ट्रैक और लॉग कर सकता है तथा पारगमन में रिसाव के संभावित जोखिम को कम कर सकता है।
- बैंकों हेतु:
- भारत के डिजिटल बुनियादी ढाँचे के अतिरिक्त यह सहमति वाले डेटा प्रवाह और सत्यापित डेटा तक बैंकों को पहुँचने की अनुमति देगा। इससे बैंकों को लेन-देन की लागत कम करने में मदद मिलेगी, जिससे वे अपने ग्राहकों को कम आकार के ऋण और अधिक अनुरूप उत्पादों एवं सेवाओं की पेशकश करने में सक्षम होंगे।
- धोखाधड़ी में कमी:
- AA फ्रेमवर्क डेटा साझा करने के लिये सुरक्षित डिजिटल हस्ताक्षर और एंड-टू-एंड एन्क्रिप्शन शुरू करके भौतिक डेटा से जुड़ी धोखाधड़ी को कम करता है।
- उपभोक्ताओं के लिये:
आगे की राह
- आगे चलकर बड़ी संख्या में लघु एवं मध्यम उद्यमों (SME) तक बिना भौतिक शाखाओं के पहुँचा जा सकेगा और यह क्रेडिट पैठ को बदल देगा। जैसे-जैसे हम ओपन बैंकिंग कार्य प्रणाली की गहराई में जाते हैं तो ज्ञात होता है कि आश्चर्यजनक रूप से भारत क्रेडिट तथा अन्य वित्तीय उत्पादों की बात करता है। जागरूकता व पारिस्थितिकी तंत्र स्तर को अपनाने से इसे एक बड़ा धक्का लगेगा।
- अकाउंट एग्रीगेटर (AA) फ्रेमवर्क को अन्य डोमेन से भी डेटा को संभालने के लिये बढ़ाया जा सकता है, जैसे- स्वास्थ्य देखभाल और दूरसंचार से संबंधित डेटा। हालाँकि अगर गैर-लाइसेंस प्राप्त संस्थाओं को अनुमति दी जानी है, तो डेटा का फ्रेमवर्क गोपनीय होना महत्त्वपूर्ण है क्योंकि RBI वर्तमान में अपने जनादेश के भीतर केवल वित्तीय डेटा की सुरक्षा करता है।