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डेली न्यूज़

  • 05 Dec, 2023
  • 54 min read
सामाजिक न्याय

विश्व मलेरिया रिपोर्ट 2023

प्रिलिम्स के लिये:

मलेरिया, विश्व स्वास्थ्य संगठन, विश्व स्वास्थ्य सभा, वेक्टर-जनित रोग

मेन्स के लिये:

स्वास्थ्य, मलेरिया और इसका उन्मूलन, भारत में रोग का बोझ, अच्छे स्वास्थ्य परिणाम सुनिश्चित करने के उपाय, सरकारी पहल

स्रोत: द हिंदू

चर्चा में क्यों?

विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) द्वारा हाल ही में जारी की गई विश्व मलेरिया रिपोर्ट 2023, भारत और विश्व स्तर पर मलेरिया की खतरनाक स्थिति पर प्रकाश डालती है।

रिपोर्ट की मुख्य विशेषताएँ क्या हैं?

  • वैश्विक मलेरिया अवलोकन:
    • विश्व मलेरिया रिपोर्ट 2023 के अनुसार, वर्ष 2022 में अनुमानित 249 मिलियन मामलों के साथ वैश्विक वृद्धि हुई है जो महामारी से पहले के स्तर को पार कर जाएगी।
    • वैश्विक स्तर पर मलेरिया के 95% मामले 29 देशों में हैं।
      • चार देश- नाइजीरिया (27%), कांगो लोकतांत्रिक गणराज्य (12%), युगांडा (5%), और मोज़ाम्बिक (4%) वैश्विक स्तर पर मलेरिया के लगभग आधे मामलों के लिये ज़िम्मेदार हैं।
  • भारत में मलेरिया परिदृश्य:
    • वर्ष 2022 में WHO के दक्षिण-पूर्व एशिया क्षेत्र में मलेरिया के आश्चर्यजनक 66% मामले भारत में थे।
      • प्लाज़्मोडियम विवैक्स, एक प्रोटोज़ोआ परजीवी ने इस क्षेत्र में लगभग 46% मामलों में योगदान दिया।
    • 2015 के बाद से मामलों में 55% की कमी के बावजूद भारत वैश्विक मलेरिया बोझ में एक महत्त्वपूर्ण योगदानकर्त्ता बना हुआ है।
      • भारत को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है, जिसमें वर्ष 2023 में बेमौसम बारिश से जुड़े मामलों में वृद्धि भी शामिल है।
    • WHO के दक्षिण-पूर्व एशिया क्षेत्र में मलेरिया से होने वाली कुल मौतों में से लगभग 94% मौतें भारत और इंडोनेशिया में होती हैं।
  • क्षेत्रीय प्रभाव:
    • अफ्रीका पर मलेरिया का असर सबसे ज़्यादा है, वर्ष 2022 में वैश्विक मलेरिया के 94% मामले और इससे होने वाली 95% मौतें अफ्रीका में देखी गईं।
    • भारत सहित WHO दक्षिण-पूर्व एशिया क्षेत्र में पिछले दो दशकों में मलेरिया पर काबू पाने में कामयाब रहा है, जिसमें वर्ष 2000 के बाद से रोग के मामलों और इससे हुई मौतों में 77% की कमी आई है।
  • जलवायु परिवर्तन और मलेरिया:
    • जलवायु परिवर्तन एक प्रमुख कारक के रूप में उभरा है, जो मलेरिया संचरण और समग्र बोझ को प्रभावित कर रहा है।
      • बदलती जलवायु परिस्थितियाँ मलेरिया रोगज़नक और रोग संचरण/वेक्टर की संवेदनशीलता को बढ़ाती हैं, जिससे इसके प्रसार में आसानी होती है।
    • WHO इस बात पर बल देता है कि जलवायु परिवर्तन मलेरिया के बढ़ने का जोखिम उत्पन्न कर रहा है, जिसके लिये संधारणीय और आघातसह प्रतिक्रियाओं की आवश्यकता है।
  • वैश्विक उन्मूलन लक्ष्य:
    • WHO का लक्ष्य वर्ष 2025 में मलेरिया की घटनाओं और मृत्यु दर को 75% और वर्ष 2030 में 90% तक कम करना है।
      • वर्ष 2025 तक मलेरिया की घटनाओं में 55% तक कमी लाने और मृत्यु दर में 53% तक कमी लाने के लक्ष्य की दिशा में वैश्विक प्रयास पर्याप्त नहीं हैं।
  • मलेरिया उन्मूलन को लेकर चुनौतियाँ:
    • मलेरिया नियंत्रण के लिये फंडिंग अंतर वर्ष 2018 में 2.3 बिलियन अमेरिकी डॉलर से बढ़कर 2022 में 3.7 बिलियन अमेरिकी डॉलर हो गया।
    • अनुसंधान और विकास निधि 15 वर्ष के निचले स्तर 603 मिलियन अमेरिकी डॉलर पर पहुँच गई, जिससे नवाचार और प्रगति के बारे में चिंताएँ बढ़ गई हैं।
  • मलेरिया वैक्सीन का प्रभाव और उपलब्धियाँ:
    • रिपोर्ट अफ्रीकी देशों में WHO-अनुशंसित मलेरिया वैक्सीन, RTS,S/AS01 की चरणबद्ध शुरुआत के माध्यम से मलेरिया की रोकथाम में उल्लेखनीय प्रगति पर बल देती है।
      • घाना, केन्या और मलावी में प्रभावी मूल्यांकन के चलते गंभीर मलेरिया की स्थिति में उल्लेखनीय कमी और बच्चों में होने वाली मौतों में 13% की कमी का पता चलता है, जो टीके की प्रभावशीलता की पुष्टि करता है।
      • यह उपलब्धि बिस्तर जाल और इनडोर छिड़काव जैसे मौजूदा हस्तक्षेपों के साथ मिलकर एक व्यापक रणनीति बनाती है, जिससे इन क्षेत्रों में समग्र परिणामों में सुधार हुआ है।
    • अक्तूबर 2023 में WHO ने दूसरी सुरक्षित और प्रभावी मलेरिया वैक्सीन, R21/Matrix-M की अनुशंसा की।
      • मलेरिया के दो टीकों की उपलब्धता के चलते आपूर्ति बढ़ने के परिणामस्वरूप पूरे अफ्रीकी क्षेत्र में व्यापक पैमाने पर इसकी उपलब्धता सुनिश्चित होने की उम्मीद है।
  • कॉल फॉर एक्शन:
    • WHO मलेरिया के विरुद्ध लड़ाई में एक महत्त्वपूर्ण धुरी/केंद्रबिंदु की आवश्यकता पर ज़ोर देता है तथा संसाधनों में वृद्धि, दृढ़ राजनीतिक प्रतिबद्धता, डेटा-संचालित रणनीतियों एवं नवीन उपकरणों की मांग करता है।
    • जलवायु परिवर्तन शमन प्रयासों के साथ संरेखित सतत् तथा लचीली मलेरिया प्रतिक्रियाएँ प्रगति के लिये आवश्यक मानी जाती हैं।

मलेरिया क्या है?

  • मलेरिया एक जानलेवा मच्छर जनित रक्त रोग है जो प्लाज़्मोडियम परजीवियों के कारण होता है।
    • 5 प्लाज़्मोडियम परजीवी प्रजातियाँ हैं जो मनुष्यों में मलेरिया का कारण बनती हैं तथा इनमें से 2 प्रजातियाँ- पी. फाल्सीपेरम व पी. विवैक्स सबसे बड़ा खतरा पैदा करती हैं।
  • मलेरिया मुख्य रूप से अफ्रीका, दक्षिण अमेरिका और एशिया के उष्णकटिबंधीय एवं उपोष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में पाया जाता है।
  • मलेरिया संक्रमित मादा एनोफिलीज़ मच्छर के काटने से फैलता है।
    • किसी संक्रमित व्यक्ति को काटने के बाद मच्छर संक्रमित हो जाता है। इसके बाद मच्छर जिस अगले व्यक्ति को काटता है, मलेरिया परजीवी उस व्यक्ति के रक्तप्रवाह में प्रवेश कर जाते हैं। परजीवी यकृत तक पहुँचकर परिपक्व होते हैं तथा फिर लाल रक्त कोशिकाओं को संक्रमित करते हैं।
  • मलेरिया के लक्षणों में बुखार तथा फ्लू जैसी व्याधियाँ शामिल हैं, जिसमें ठंड लगने के साथ कंपकंपी, सिरदर्द, मांसपेशियों में दर्द एवं थकान शामिल है। विशेष रूप से मलेरिया रोकथाम तथा उपचार योग्य दोनों है।

मलेरिया की रोकथाम से संबंधित पहलें क्या हैं?

  • वैश्विक पहल:
    • WHO का वैश्विक मलेरिया कार्यक्रम (GMP):
      • WHO का GMP मलेरिया को नियंत्रित तथा खत्म करने के लिये WHO के वैश्विक प्रयासों के समन्वय के लिये उत्तदायी है।
      • इसका कार्यान्वयन मई 2015 में विश्व स्वास्थ्य सभा द्वारा अपनाई गई तथा वर्ष 2021 में अद्यतन की गई "मलेरिया की रोकथाम के लिये वैश्विक तकनीकी रणनीति 2016-2030" द्वारा निर्देशित है।
        • इस रणनीति में वर्ष 2030 तक वैश्विक मलेरिया की घटनाओं तथा मृत्यु दर को कम-से-कम 90% तक कम करने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है।
    • मलेरिया उन्मूलन पहल:
      • बिल एंड मेलिंडा गेट्स फाउंडेशन के नेतृत्व में यह पहल उपचार तक पहुँच, मच्छरों की आबादी में कमी लाने और प्रौद्योगिकी विकास जैसी विभिन्न रणनीतियों के माध्यम से मलेरिया उन्मूलन पर केंद्रित है।
    • E-2025 पहल:
      • WHO ने वर्ष 2021 में E-2025 पहल शुरू की। इस पहल का लक्ष्य वर्ष 2025 तक 25 देशों में मलेरिया के संचरण को रोकना है।
      • WHO ने वर्ष 2025 तक मलेरिया उन्मूलन की क्षमता वाले ऐसे 25 देशों की पहचान की है।
  • भारत:
    • मलेरिया उन्मूलन के लिये राष्ट्रीय ढाँचा 2016-2030:
      • WHO की रणनीति के अनुरूप इस ढाँचे का लक्ष्य वर्ष 2030 तक पूरे भारत में मलेरिया का उन्मूलन करना एवं मलेरिया मुक्त क्षेत्रों को बनाए रखना है।
    • राष्ट्रीय वेक्टर-जनित रोग नियंत्रण कार्यक्रम:
      • यह कार्यक्रम रोकथाम और नियंत्रण उपायों के माध्यम से मलेरिया सहित विभिन्न वेक्टर जनित बीमारियों के समाधान पर केंद्रित है।
    • राष्ट्रीय मलेरिया नियंत्रण कार्यक्रम (NMCP):
      • NMCP की शुरुआत वर्ष 1953 में तीन प्रमुख गतिविधियों के आधार पर मलेरिया के विनाशकारी प्रभावों से निपटने के लिये की गई थी, ये हैं- DDT वाले कीटनाशक अवशिष्ट का छिड़काव (Insecticidal Residual Spray- IRS); मलेरिया संबंधी मामलों की निगरानी और निरीक्षण; एवं मरीज़ों का उपचार।
    • हाई बर्डन टू हाई इम्पैक्ट (HBHI) पहल:
      • इसकी शुरुआत वर्ष 2019 में चार राज्यों (पश्चिम बंगाल, झारखंड, छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश) में की गई थी, यह कीटनाशक वितरण के माध्यम से मलेरिया में कमी लाने पर केंद्रित था।
    • मलेरिया उन्मूलन अनुसंधान गठबंधन-भारत (MERA-India):

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. क्लोरोक्वीन जैसी दवाओं के प्रति मलेरिया परजीवी के व्यापक प्रतिरोध ने मलेरिया से निपटने के लिये मलेरिया का टीका विकसित करने के प्रयासों को प्रेरित किया है। मलेरिया का प्रभावी टीका विकसित करना क्यों कठिन है? (2010)

(a) प्लाज़्मोडियम की कई प्रजातियों के कारण मलेरिया होता है।
(b) प्राकृतिक संक्रमण के दौरान मनुष्य में मलेरिया के प्रति प्रतिरोधक क्षमता विकसित नहीं होती है।
(c) इसके टीके केवल बैक्टीरिया के विरुद्ध विकसित किये जा सकते हैं।
(d) मनुष्य केवल एक मध्यवर्ती मेज़बान है, न कि निश्चित मेज़बान।

उत्तर: (b)


भारतीय अर्थव्यवस्था

GDP में वृद्धि

प्रिलिम्स के लिये:

सकल घरेलू उत्पाद (GDP), उत्पादन आधारित प्रोत्साहन योजना, राष्ट्रीय अवसंरचना पाइपलाइन, सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय (MoSPI)

मेन्स के लिये:

भारत की GDP वृद्धि, भारत में GDP गणना के तरीके, सकारात्मक कारक जो भारत को मंदी से उबरने में मदद कर सकते हैं।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

चर्चा में क्यों?

सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय (MoSPI) के नवीनतम आँकड़ों के अनुसार, जुलाई से सितंबर माह को कवर करते हुए वर्ष 2023-24 की दूसरी तिमाही (Q2) में भारत का सकल घरेलू उत्पाद (GDP) 7.6% बढ़ गया।

  • दूसरी तिमाही (Q2) में भारत की अर्थव्यवस्था में कृषि में गिरावट, विनिर्माण में वृद्धि तथा सेवा क्षेत्रों में मंदी देखी गई।

डेटा वृद्धि का क्या महत्त्व है?

  • यह न केवल आर्थिक वृद्धि का काफी प्रभावशाली स्तर है अपितु यह बाज़ार के सभी पूर्वानुमानों को भी मात देता है।
    • हालिया तिमाही GDP वृद्धि ने संपूर्ण वित्तीय वर्ष के लिये GDP पूर्वानुमान में बढ़ोतरी कर दी है।
  • ऐसा प्रतीत होता है कि भारत के केंद्रीय बैंक ने वित्तीय वर्ष के लिये देश की GDP वृद्धि दर का सटीक पूर्वानुमान व्यक्त किया है।
    • वर्तमान में बैंकों ने 6.5% के GDP वृद्धि का पूर्वानुमान लगाया है, ऐसे में कई विशेषज्ञों ने अपने अनुमानों में बदलाव करना आरंभ कर दिया है। भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा प्रस्तुत पूर्वानुमान एक सटीक आकलन प्रस्तुत करता है।
  • इसका आशय यह भी है कि आने वाले कुछ समय तक भारतीय रिज़र्व बैंक ब्याज दरों में कटौती नहीं करेगा। अगर विकास दर बाज़ार की उम्मीदों से कम होती, तो दर में कटौती की संभावना अधिक हो जाती है।
  • यह उल्लेखनीय है कि तीन वर्ष पूर्व MoSPI ने वर्ष 2020-21 के दूसरे तिमाही GDP डेटा की घोषणा की कि भारत तकनीकी मंदी के दौर से गुज़र रहा था। वर्तमान विकास दर में उछाल से उम्मीद है कि भारत में आर्थिक सुधारों की गति अब बढ़ने लगी है।

आर्थिक विकास को मापने की विभिन्न विधियाँ क्या हैं?

  • आर्थिक विकास को मापने की दो विधियाँ हैं
    • GDP:
      • इसमें लोगों के खर्च करने के तरीके (व्यय पक्ष) का आकलन करना शामिल है। सकल मूल्य वर्द्धित (GVA) का उपयोग सरकारी सब्सिडी में कटौती और अप्रत्यक्ष करों को शामिल कर सकल घरेलू उत्पाद (GDP) की गणना के लिये किया जा सकता है।
    • GVA:
      • यह अर्थव्यवस्था के आय पक्ष पर केंद्रित है। भारतीय रिज़र्व बैंक के अनुसार, GVA किसी क्षेत्र के आउटपुट मूल्य से उसके मध्यस्थ इनपुट घटाने के पश्चात् प्राप्त मूल्य है। यह "वर्द्धित मूल्य" उत्पादन के प्राथमिक कारकों- श्रम एवं पूंजी के बीच वितरित किया जाता है।
  • दो तरीकों के बीच असमानता:
    • इन दोनों तरीकों के बीच असमानता को विसंगति कहते हैं और इन्हें लेकर विवाद होते रहे हैं, विशेष रूप से पहली तिमाही का GDP डेटा जारी करने के दौरान।
    • त्रैमासिक आर्थिक रुझानों के सूक्ष्म विश्लेषण के लिये GVA मान को अक्सर अधिक विश्वसनीय माना जाता है, जबकि वार्षिक रुझानों का आकलन करने के लिये GDP (व्यय डेटा) को प्राथमिकता दी जाती है।

भारत की विकास दर को और अधिक मज़बूत बनाने के लिये क्या करने की आवश्यकता है?

  • निवेश और उपभोग को बढ़ावा: ये घरेलू मांग के दो मुख्य घटक हैं, जो भारत की जीडीपी का लगभग 70% हिस्सा है।
    • निवेश बढ़ाने के लिये सरकार उन सुधारों को लागू करना जारी रख सकती है जो नीतिगत अनिश्चितता, नियामक बाधाओं, ब्याज दरों और बुरे ऋणों को कम करते हैं।
    • उपभोग बढ़ाने के लिये सरकार आय वृद्धि, मुद्रास्फीति नियंत्रण, ग्रामीण विकास, रोज़गार सृजन और ऋण उपलब्धता का समर्थन कर सकती है।
  • विनिर्माण और निर्यात बढ़ाना: यह मूल्य वर्द्धन, रोज़गार और बाहरी मांग का प्रमुख स्रोत है, जो भारत को अपनी अर्थव्यवस्था में विविधता लाने तथा वैश्विक बाज़ार के साथ एकीकृत करने में मदद कर सकता है।
  • मानव पूंजी और सामाजिक सेवाओं में निवेश: यह भारत की बड़ी और युवा आबादी के जीवन स्तर तथा उत्पादकता में सुधार के लिये आवश्यक कारक है।
    • मानव पूंजी और सामाजिक सेवाओं में निवेश करने के लिये सरकार, शिक्षा, स्वास्थ्य, कौशल, पोषण, जल, स्वच्छता, ऊर्जा, आवास और स्वास्थ्य देखभाल को बढ़ावा देने वाले कार्यक्रमों को लागू करना जारी रख सकती है।
  • व्यापक आर्थिक स्थिरता और लचीलापन बनाए रखना: आर्थिक विकास को बनाए रखने और विभिन्न झटकों एवं अनिश्चितताओं से निपटने के लिये ये आवश्यक शर्तें हैं।
    • व्यापक आर्थिक स्थिरता और आघातसह स्थिति बनाए रखने के लिये सरकार विवेकपूर्ण राजकोषीय एवं मौद्रिक नीतियों को आगे बढ़ाना जारी रख सकती है जो विकास तथा मुद्रास्फीति के उद्देश्यों को संतुलित करती हैं।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. निरपेक्ष तथा प्रति व्यक्ति वास्तविक GNP की वृद्धि आर्थिक विकास की ऊँची दर का संकेत नहीं करती, यदि: (2018)

(a) औद्योगिक उत्पादन कृषि उत्पादन के साथ-साथ बढ़ने में विफल रह जाता है।
(b) कृषि उत्पादन औद्योगिक उत्पादन के साथ-साथ बढ़ने में विफल रह जाता है।
(c) निर्धनता और बेरोज़गारी में वृद्धि होती है।
(d) निर्यातों की अपेक्षा आयात तेज़ी से बढ़ते हैं।

उत्तर: (c)


प्रश्न. किसी दिये गए वर्ष में भारत में कुछ राज्यों में आधिकारिक गरीबी रेखाएँ अन्य राज्यों की तुलना में उच्चतर हैं, क्योंकि: (2019)

(a) गरीबी की दर अलग-अलग राज्य में अलग-अलग होती है।
(b) कीमत दर अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग होती है।
(c) सकल राज्य उत्पाद अलग-अलग राज्य में अलग-अलग होता है।
(d) सार्वजनिक वितरण की गुणवत्ता अलग-अलग राज्य में अलग-अलग होती है।

उत्तर: (b)


भारतीय राजव्यवस्था

अखिल भारतीय न्यायिक सेवा

प्रिलिम्स के लिये:

अखिल भारतीय न्यायिक सेवा (AIJS), संघ लोक सेवा आयोग

मेन्स के लिये:

भारत में न्यायपालिका से संबंधित पहलें, भारतीय न्यायिक प्रणाली से संबंधित चुनौतियाँ

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

चर्चा में क्यों?

हाल ही में भारत के राष्ट्रपति ने न्यायपालिका की विविधता में वृद्धि करने हेतु उपेक्षित सामाजिक समूहों की भागीदारी को बढ़ाने के लिये अखिल भारतीय न्यायिक सेवा (All India Judicial Service- AIJS) की वकालत की।

अखिल भारतीय न्यायिक सेवा (AIJS) क्या है?

  • परिचय:
    • यह सभी राज्यों में अतिरिक्त ज़िला न्यायाधीशों एवं ज़िला न्यायाधीशों के स्तर पर न्यायाधीशों के लिये एक प्रस्तावित केंद्रीकृत भर्ती प्रणाली है।
    • इसका लक्ष्य संघ लोक सेवा आयोग (UPSC) मॉडल के समान न्यायाधीशों की भर्ती को केंद्रीकृत करना तथा सफल उम्मीदवारों को राज्यों का कार्यभार सौंपना है।
      • वर्ष 1958 और 1978 की विधि आयोग की रिपोर्टों की सिफारिशों के अनुसार, AIJS का उद्देश्य अलग-अलग वेतन, रिक्तियों पर भर्ती और मानकीकृत राष्ट्रव्यापी प्रशिक्षण जैसे संरचनात्मक मुद्दों का समाधान करना है।
    • संसदीय स्थायी समिति ने वर्ष 2006 में अखिल भारतीय न्यायिक सेवा के समर्थन पर पुनर्विचार किया।
    • संवैधानिक आधार:
    • संविधान का अनुच्छेद 312 केंद्रीय सिविल सेवाओं के समान ही राज्यसभा के कम-से-कम दो-तिहाई सदस्यों द्वारा समर्थित एक प्रस्ताव पर AIJS की स्थापना का प्रावधान करता है।
    • हालाँकि अनुच्छेद 312 (2) में कहा गया है कि AIJS में ज़िला न्यायाधीश (अनुच्छेद 236 में परिभाषित) से नीचे स्तर के किसी भी पद को शामिल नहीं किया जा सकता है।
      • अनुच्छेद 236 के अनुसार, एक ज़िला न्यायाधीश के अंतर्गत नगर सिविल न्यायालय का न्यायाधीश, अपर ज़िला न्यायाधीश, संयुक्त ज़िला न्यायाधीश, सहायक ज़िला न्यायाधीश, लघुवाद न्यायालय का मुख्य न्यायाधीश, मुख्य प्रेसीडेंसी मजिस्ट्रेट, अपर मुख्य प्रेसीडेंसी मजिस्ट्रेट, सेशन न्यायाधीश, अपर सेशन न्यायाधीश और सहायक सेशन न्यायाधीश हैं।
  • आवश्यकता:
    • AIJS न्यायाधीशों के चयन और प्रशिक्षण का एक समान और उच्च मानक सुनिश्चित करेगा, जिससे न्यायपालिका की गुणवत्ता एवं दक्षता में वृद्धि होगी।
    • AIJS निचली अदालतों में न्यायाधीशों की रिक्तियों को भरेगा, वर्तमान में देश भर में निचली न्यायपालिका में लगभग 5,400 पद रिक्त हैं और मुख्य रूप से राज्यों द्वारा नियमित परीक्षा आयोजित करने में अत्यधिक देरी के कारण निचली न्यायपालिका में 2.78 करोड़ मामले लंबित हैं।
    • AIJS देश की सामाजिक संरचना को दर्शाते हुए विभिन्न क्षेत्रों, लिंग, जातियों और समुदायों के न्यायाधीशों के प्रतिनिधित्व एवं विविधता को बढ़ाएगा।
    • AIJS न्यायपालिका संबंधी नियुक्तियों में न्यायिक या कार्यकारी हस्तक्षेप की गुंज़ाइश को कम करेगा, जिससे न्यायाधीशों की स्वतंत्रता और जवाबदेही सुनिश्चित होगी।
    • AIJS प्रतिभाशाली और अनुभवी न्यायाधीशों का एक समूह तैयार करेगा जिन्हें उच्च न्यायपालिका में नियुक्त किया जा सकता है, जिससे न्यायाधीशों की भविष्य की संभावनाओं और उनकी गतिशीलता में सुधार होगा।
  • वर्तमान स्थिति:
    • प्रमुख हितधारकों की इस संबंध में अलग-अलग राय के कारण वर्ष 2023 तक AIJS पर कोई आम सहमति नहीं है।
    • यह AIJS की स्थापना के प्रस्ताव पर आम सहमति प्राप्त करने में आने वाली चुनौतियों को उज़ागर करता है।

वर्तमान में ज़िला न्यायाधीशों की भर्ती कैसे की जाती है?

  • वर्तमान प्रणाली में अनुच्छेद 233 और 234 शामिल हैं जो राज्यों को ज़िला न्यायाधीशों की नियुक्ति का अधिकार देते हैं, जिसका प्रबंधन राज्य लोक सेवा आयोगों और उच्च न्यायालयों के माध्यम से किया जाता है, क्योंकि उच्च न्यायालय राज्य में अधीनस्थ न्यायपालिका पर अधिकार क्षेत्र का प्रयोग करता है।
    • उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों का पैनल परीक्षा के बाद उम्मीदवारों का साक्षात्कार लेता है और नियुक्ति के लिये उनका चयन करता है।
  • निचली न्यायपालिका के ज़िला न्यायाधीश स्तर तक के सभी न्यायाधीशों का चयन प्रांतीय सिविल सेवा (न्यायिक) परीक्षा के माध्यम से किया जाता है। PCS (J) को आमतौर पर न्यायिक सेवा परीक्षा के रूप में जाना जाता है।
    • अनुच्छेद 233 ज़िला न्यायाधीशों की नियुक्ति से संबंधित है। किसी भी राज्य में ज़िला न्यायाधीशों की नियुक्ति, पोस्टिंग और पदोन्नति राज्य के राज्यपाल द्वारा ऐसे राज्य पर अधिकार क्षेत्र का उपयोग करने वाले उच्च न्यायालय के परामर्श से की जाएगी।
    • अनुच्छेद 234 न्यायिक सेवा में ज़िला न्यायाधीशों के अलावा अन्य व्यक्तियों की भर्ती से संबंधित है।

AIJS के संबंध में क्या चिंताएँ हैं?

  • यह संघीय ढाँचे और राज्यों व उच्च न्यायालयों की स्वायत्तता का उल्लंघन होगा, जिनके पास अधीनस्थ न्यायपालिका को प्रशासित करने का संवैधानिक अधिकार एवं दायित्व है।
  • इससे हितों का टकराव और न्यायाधीशों पर दोहरे नियंत्रण की स्थिति उत्पन्न होगी, जो केंद्र तथा राज्य सरकार दोनों के प्रति जवाबदेह होंगे।
  • यह विभिन्न राज्यों की स्थानीय विधियों, भाषाओं और रीति-रिवाज़ों की अवहेलना करेगा, जो न्यायपालिका के प्रभावी कामकाज के लिये आवश्यक हैं।
  • इसका असर मौजूदा न्यायिक अधिकारियों के मनोबल और प्रेरणा पर पड़ेगा, जो अपने कॅरियर में उन्नति के अवसरों तथा प्रोत्साहन से वंचित रह जाएंगे।

आगे की राह

  • चिंताओं को दूर करने और AIJS के लिये समर्थन जुटाने हेतु राज्यों, उच्च न्यायालयों और कानूनी विशेषज्ञों के साथ संवाद एवं परामर्श की सुविधा प्रदान की जानी चाहिये।
  • इसके प्रभाव का आकलन करने और धीरे-धीरे चिंताओं को दूर करने के लिये चुनिंदा राज्यों में पायलट आधार पर AIJS को लागू करने पर विचार करना चाहिये।
  • AIJS को लचीले तंत्र के साथ डिज़ाइन करना जो स्थानीय विधियों, भाषाओं तथा रीति-रिवाज़ों के अनुकूलन की अनुमति देता हो, क्षेत्रीय बारीकियों की उपेक्षा किये बिना प्रभावी कार्य पद्धति सुनिश्चित करना।
  • एक पूर्णतः स्पष्ट परिभाषित संक्रमण अवधि का प्रस्ताव करना जिसके दौरान मौजूदा न्यायिक अधिकारी व्यवधानों को कम करते हुए नई प्रणाली को सहजता से अपना सकें।
  • संघीय ढाँचे, स्वायत्तता तथा न्यायपालिका की प्रभावी कार्यप्रणाली पर AIJS के प्रभाव का आकलन करने तथा आवश्यकतानुसार आवश्यक समायोजन के लिये एक आवधिक समीक्षा तंत्र स्थापित करने की आवश्यकता है।
  • AIJS के अंतर्गत एक प्रोत्साहन संरचना विकसित करना जो कॅरियर में उन्नति से संबंधित चिंताओं का समाधान करते हुए मौजूदा न्यायिक अधिकारियों के योगदान को प्रेरित करे और मान्यता दे।

विधिक दृष्टिकोण

अखिल भारतीय न्यायिक सेवाओं के बारे में विस्तार से पढ़ें

www.drishtijudiciary.com

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. भारतीय न्यायपालिका के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2021)

  1. भारत के राष्ट्रपति की पूर्वानुमति से भारत के मुख्य न्यायमूर्ति द्वारा उच्चतम न्यायालय से सेवानिवृत्त किसी न्यायाधीश को उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश के पद पर बैठने और कार्य करने हेतु बुलाया जा सकता है।
  2. भारत में किसी भी उच्च न्यायालय को अपने निर्णय के पुनर्विलोकन की शक्ति प्राप्त है, जैसा कि उच्चतम न्यायालय के पास है।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1
(b) केवल 2
(c) 1 और 2 दोनों
(d) न तो 1 और न ही 2

उत्तर: (c)

मेन्स:

प्रश्न. भारत में उच्चतर न्यायपालिका के न्यायाधीशों की नियुक्ति के संदर्भ में 'राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग अधिनियम, 2014' पर सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय का समालोचनात्मक परीक्षण कीजिये। 150 शब्द (2017)


अंतर्राष्ट्रीय संबंध

विदेश नीति का गुजराल सिद्धांत

प्रिलिम्स के लिये:

गुजराल सिद्धांत, व्यापक परमाणु परीक्षण प्रतिबंध संधि (CTBT), दक्षिण एशियाई देश, द्विपक्षीय वार्ता, दक्षिण-पूर्व एशिया, जल-बँटवारा संधि, 1977, महाकाली नदी

मेन्स के लिये:

भारत की विदेश नीति पर गुजराल सिद्धांत का प्रभाव

स्रोत: इकोनॉमिक टाइम्स

चर्चा में क्यों?

30 नवंबर को गुजराल सिद्धांत के अग्रदूत, भारत के 12वें प्रधानमंत्री आई.के. गुजराल की 11वीं पुण्य तिथि मनाई गई है।

वह एकमात्र प्रधानमंत्री थे जिनके पास विदेश नीति का गुजराल सिद्धांत दृष्टिकोण था, जिसे उनके नाम से जाना जाता है।

इंद्र कुमार गुजराल कौन थे? `

  • इंद्र कुमार गुजराल ने भारत के 12वें प्रधानमंत्री के रूप में अप्रैल 1997 से मई 1998 तक कार्यभार संभाला।
    • आई.के. गुजराल को भारतीय विदेश नीति में दो महत्त्वपूर्ण योगदानों के लिये याद किया जा सकता है:
    • 1996 से 1997 तक केंद्रीय विदेश मंत्री रहते हुए उन्होंने 'गुजराल सिद्धांत' का प्रतिपादन किया।
    • अंतर्राष्ट्रीय दबाव के बावजूद गुजराल ने अक्तूबर 1996 में व्यापक परमाणु परीक्षण प्रतिबंध संधि (CTBT) पर हस्ताक्षर करने से इनकार कर दिया।

गुजराल सिद्धांत क्या है?

  • गुजराल सिद्धांत ने भारत के पड़ोसियों के प्रति अपने दृष्टिकोण को व्यक्त किया, जिसे बाद में गुजराल सिद्धांत के रूप में जाना गया। इसमें पाँच बुनियादी सिद्धांत शामिल थे। इसकी रूपरेखा सितंबर 1996 में लंदन के चैथम हाउस में एक भाषण में व्यक्त की गई थी।
  • गुजराल सिद्धांत के पाँच बुनियादी सिद्धांत:
    • भारत को अपने पड़ोसी देशों नेपाल, बांग्लादेश, भूटान, मालदीव और श्रीलंका के साथ विश्वसनीय संबंध स्थापित करने होंगे, उनके साथ विवादों को बातचीत से सुलझाना होगा तथा उन्हें दी गई किसी मदद के बदले में तुरंत कुछ हासिल करने की अपेक्षा नहीं करनी चाहिये।
    • दक्षिण एशियाई देश क्षेत्र में किसी अन्य देश के हितों को नुकसान पहुँचाने के लिये अपने क्षेत्र का उपयोग बर्दाश्त नहीं करेंगे।
    • कोई भी देश किसी अन्य देश के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप नहीं करेगा।
    • सभी दक्षिण एशियाई देशों को एक-दूसरे की क्षेत्रीय अखंडता और संप्रभुता का सम्मान करना चाहिये।
    • राष्ट्र अपने सभी विवादों को शांतिपूर्ण द्विपक्षीय वार्ता के माध्यम से सुलझाएंगे।
    • गुजराल सिद्धांत का मानना था कि भारत का वृहत आकार और जनसंख्या स्वाभाविक रूप से इसे दक्षिण-पूर्व एशिया में एक प्रमुख राष्ट्र के रूप में स्थापित करती है।
  • अपनी स्थिति और प्रतिष्ठा को बढ़ाने के लिये सिद्धांत में छोटे पड़ोसी देशों के प्रति एक गैर-प्रमुख दृष्टिकोण अपनाने का समर्थन किया गया। इस प्रकार यह पड़ोसियों के साथ मैत्रीपूर्ण, सौहार्दपूर्ण संबंधों के सर्वोच्च महत्त्व को प्रदर्शित करता है।
  • इसने चल रही वार्ता को बनाए रखने और अन्य देशों के आंतरिक मामलों पर टिप्पणी करने जैसे अनावश्यक उकसावे के प्रयास से बचने के महत्त्व पर भी बल दिया।

गुजराल सिद्धांत कितना सफल रहा?

  • विदेश नीति के प्रति गुजराल के दृष्टिकोण ने भारत के पड़ोसी देशों के प्रति विश्वास और सहयोग की भावना को मज़बूत करने में मदद की।
  • भारत और बांग्लादेश के बीच जल-साझा संधि-1977 वर्ष 1988 में समाप्त हो गई, दोनों पक्षों की अस्पष्टता/अनम्यता के कारण इस पर वार्ता विफल हो गई। बांग्लादेश के साथ जल-साझा विवाद का समाधान वर्ष 1996-97 में केवल तीन महीने में कर लिया गया।
  • भारत ने गंगा में जल प्रवाह बढ़ाने के लिये एक नहर परियोजना हेतु भूटान से मंज़ूरी प्राप्त की।
  • यह नेपाल के साथ जल विद्युत् उत्पादन के लिये महाकाली नदी को नियंत्रित करने की संधि के साथ मेल खाता है।
  • इसके उपरांत विकास सहयोग बढ़ाने के लिये श्रीलंका के साथ समझौते किये गए।
  • इसके अतिरिक्त इससे पाकिस्तान के साथ समग्र वार्ता की शुरुआत हुई।
    • समग्र वार्ता इस सिद्धांत पर आधारित थी कि संबंधो के संपूर्ण पहलू गंभीर समस्या-समाधान संवाद के अंतर्गत आते हैं।
    • सहमत क्षेत्रों (व्यापार, यात्रा, संस्कृति आदि) में सहमत शर्तों पर सहयोग शुरू होना चाहिये, भले ही कुछ विवाद अनसुलझे हों।

गुजराल सिद्धांत की क्या आलोचनाएँ हैं?

  • पाकिस्तान के प्रति उदार दृष्टिकोण: पाकिस्तान के प्रति नरम रुख अपनाने तथा भारत को भविष्य के आतंकी हमलों के खतरों के प्रति असुरक्षित छोड़ने के लिये गुजराल सिद्धांत की आलोचना की गई थी।
  • सुरक्षा संबंधी चिंताएँ: कुछ लोगों का मानना था कि यह अत्यधिक आदर्शवादी है तथा भारत की सुरक्षा चिंताओं की उपेक्षा करता है। आलोचकों ने तर्क दिया कि यह सिद्धांत भारत के कुछ पड़ोसियों द्वारा उत्पन्न सुरक्षा चुनौतियों, विशेष रूप से ऐतिहासिक संघर्षों एवं चल रहे भू-राजनीतिक मुद्दों के संदर्भ में पर्याप्त समाधान नहीं प्रदान करता है।
  • द्विपक्षीय मुद्दों का समाधान करने में विफलता: गुजराल सिद्धांत ने भारत तथा उसके पड़ोसियों के बीच लंबे समय से चले आ रहे द्विपक्षीय मुद्दों का प्रभावी ढंग से समाधान नहीं किया। उदाहरण के लिये कुछ आलोचकों के अनुसार, क्षेत्रीय विवाद एवं सीमा पार आतंकवाद जैसे मुद्दों पर पर्याप्त ध्यान नहीं दिया गया।
  • घरेलू स्तर पर विरोध: कुछ लोगों ने तर्क दिया कि सद्भावना तथा गैर-पारस्परिकता पर ज़ोर देना कमज़ोरी के रूप में माना जा सकता है एवं विरोधियों द्वारा इसका फायदा उठाया जा सकता है।

आगे की राह

  • आदर्श और यथार्थ स्थितियों के बीच संतुलन बनाना:
    • आगामी विदेश नीतियाँ को आदर्शवादी सिद्धांतों और सुरक्षा चुनौतियों के यथार्थवादी आकलन का संतुलित रूप होना चाहिये। राष्ट्रीय सुरक्षा सुनिश्चित करना सर्वोपरि विचार होना चाहिये।
  • विस्तृत संघर्ष समाधान:
    • पड़ोसी देशों के साथ अनसुलझे द्विपक्षीय मुद्दों के समाधान के लिये एक व्यापक और सक्रिय दृष्टिकोण अपनाने की आवश्यकता है। परस्पर संवाद के अंतर्गत क्षेत्रीय विवाद तथा सुरक्षा संबंधी चिंताओं को शामिल किया जाना चाहिये।
  • उभरते खतरों के प्रति अनुकूलन:
    • सुरक्षा संबंधी खतरों की उभरती प्रकृति की पहचान करते हुए भविष्योन्मुखी सिद्धांतों में आतंकवाद का मुकाबला करने तथा राष्ट्र की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिये आवश्यक रणनीतियों को शामिल किया जाना चाहिये।
  • क्षेत्रीय गठबंधनों को मज़बूत करना:
    • गुजराल सिद्धांत के सकारात्मक पहलुओं के आधार पर भारत को पारस्परिक लाभ के लिये क्षेत्रीय गठबंधन तथा सहयोग को मज़बूत बनाए रखना चाहिये।
  • सार्वजनिक कूटनीति और घरेलू सहमति:
    • विदेशी नीतियों के निर्माण में घरेलू सहमति को बढ़ावा देना एक अहम कदम हो सकता है। सार्वजनिक कूटनीति के प्रयास संभावित घरेलू विरोध को कम करते हुए राजनयिक निर्णयों के तर्कों को स्पष्ट करने में मदद कर सकते हैं।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

मेन्स:

प्रश्न. अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अधिकांश राष्ट्रों के बीच द्विपक्षीय संबंध, अन्य राष्ट्रों के हितों का सम्मान किये बिना स्वयं के राष्ट्रीय हित की प्रोन्नति की नीति द्वारा संचालित होते हैं। इससे राष्ट्रों के बीच द्वंद्व और तनाव उत्पन्न होते हैं। ऐसे तनावों के समाधान में नैतिक विचार किस प्रकार सहायक हो सकते हैं? विशिष्ट उदाहरणों के साथ चर्चा कीजिये। (2015)

प्रश्न. भारत-श्रीलंका के संबंधों के संदर्भ में विवेचना कीजिये कि किस प्रकार आतंरिक (देशीय) कारक विदेश नीति को प्रभावित करते हैं। (2013)

प्रश्न. ‘उभरती हुई वैश्विक व्यवस्था में भारत द्वारा प्राप्त नव-भूमिका के कारण उत्पीड़ित एवं उपेक्षित राष्ट्रों के मुखिया के रूप में दीर्घकाल से संपोषित भारत की पहचान लुप्त हो गई है’। विस्तार से समझाइये। (2019)


भारतीय राजव्यवस्था

एग्जिट पोल

प्रिलिम्स के लिये:

एग्जिट पोल, लोकसभा चुनाव,  विकासशील समाज अध्ययन पीठ (CSDS), निर्वाचन आयोग, संविधान का अनुच्छेद 324

मेन्स के लिये:

चुनाव के नतीजों पर एग्जिट पोल का प्रभाव

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस 

चर्चा में क्यों?

हाल ही में पाँच राज्यों मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़, तेलंगाना तथा मिज़ोरम के एग्जिट पोल के नतीजे जारी किये गए।

  • हाल के कई चुनावों में एग्जिट पोल अविश्वसनीय रहे हैं, जिससे विरोधाभासी परिणाम सामने आए हैं।

एग्जिट पोल क्या हैं?

  • एग्जिट पोल मतदाताओं के साथ किया जाने वाला सर्वेक्षण है, जब वे निर्वाचन के दौरान मतदान केंद्र से बाहर निकलते हैं।
  • इसका उद्देश्य लोगों ने कैसे मतदान किया तथा उनकी जनसांख्यिकीय विशेषताओं के बारे में जानकारी एकत्रित करना है।
  • ये सर्वेक्षण आधिकारिक परिणाम घोषित होने से पूर्व चुनाव परिणामों के प्रारंभिक पूर्वानुमान प्रदान करते हैं।
  • वर्ष 1957 में दूसरे लोकसभा चुनाव के दौरान इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ पब्लिक ओपिनियन द्वारा एक एग्जिट पोल आयोजित किया गया था।

एग्जिट पोल की सटीकता का आकलन कैसे किया जा सकता है?

  • सैंपलिंग के तरीके: एग्जिट पोल आयोजित करने में प्रयोग किये जाने वाले सैंपलिंग तरीकों की विश्वसनीयता महत्त्वपूर्ण है। एक स्पष्ट रूप से तैयार किया गया तथा प्रतिनिधियों की प्रतिदर्श संख्या से सटीक परिणाम प्राप्त होने की अधिक संभावना है।
    • एक अच्छे अथवा सटीक, जनमत सर्वेक्षण के लिये कुछ सामान्य मानदंड आवश्यक हैं जिसमें एक बड़ा और विविध नमूना तथा बिना किसी पूर्वाग्रह के स्पष्ट रूप से निर्मित प्रश्नावली शामिल है।
  • संरचित प्रश्नावली: सर्वेक्षण, एग्जिट पोल की तरह, फोन पर अथवा व्यक्तिगत रूप से संरचित प्रश्नावली का उपयोग कर कई उत्तरदाताओं का साक्षात्कार करके डेटा एकत्र करते हैं।
    • सेंटर फॉर द स्टडी ऑफ डेवलपिंग सोसाइटीज़ के अनुसार, "एक संरचित प्रश्नावली के बिना, डेटा को न तो सुसंगत रूप से एकत्र किया जा सकता है तथा न ही वोट शेयर अनुमान पर पहुँचने के लिये व्यवस्थित रूप से विश्लेषण किया जा सकता है।"
  • जनसांख्यिकीय प्रतिनिधित्व: यह सुनिश्चित करना आवश्यक है कि सर्वेक्षण की गई आबादी जनसांख्यिकी रूप से समग्र मतदान आबादी का प्रतिनिधित्व करती है। यदि कुछ समूहों का प्रतिनिधित्व अधिक या कम है, तो यह भविष्यवाणियों की सटीकता को प्रभावित कर सकता है।
    • एक बड़ा प्रतिदर्श आकार महत्त्वपूर्ण है, लेकिन जो सबसे ज्यादा मायने रखता है वह यह है कि प्रतिदर्श कितनी अच्छी तरह से प्रतिदर्श के आकार के बजाय बड़ी आबादी का प्रतिनिधित्व करता है।

एग्जिट पोल की क्या आलोचनाएँ की जाती हैं?

  • एग्जिट पोल को संचालित करने वाली एजेंसी यदि पक्षपाती है तो निष्कर्ष विवादास्पद हो सकते हैं।
  • ये सर्वेक्षण प्रश्नों के चयन, शब्दों और समय तथा प्रतिदर्श की प्रकृति से प्रभावित हो सकते हैं।
  • आलोचकों ने तर्क दिया कि कई ओपिनियन और एग्जिट पोल उनके प्रतिद्वंद्वियों द्वारा प्रेरित एवं प्रायोजित होते हैं तथा जनता की भावनाओं या विचारों को प्रतिबिंबित करने के बजाय चुनाव में मतदाताओं द्वारा चुने गए विकल्पों पर विकृत प्रभाव डाल सकते हैं।

भारत में एग्जिट पोल का नियमन कैसे होता है?

  • लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 126ए उसमें उल्लिखित अवधि के दौरान प्रिंट या इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के माध्यम से एग्जिट पोल के संचालन और उनके परिणामों के प्रसार पर रोक लगाती है, यानी पहले चरण में मतदान शुरू होने के निर्धारित घंटे और आधे घंटे के बीच। सभी राज्यों में अंतिम चरण के लिये मतदान समाप्ति के निर्धारित समय के बाद।
  • एग्जिट पोल के उपयोग को विनियमित करने के लिये चुनाव आयोग ज़िम्मेदार है। चुनाव आयोग के मुताबिक, एग्जिट पोल केवल एक निश्चित अवधि के दौरान ही आयोजित किये जा सकते हैं। यह अवधि मतदान केंद्र बंद होने के समय से शुरू होती है और अंतिम बूथ बंद होने के 30 मिनट बाद समाप्त होती है।
  • मतदान अवधि के दौरान अथवा मतदान के दिन एग्जिट पोल आयोजित नहीं किये जा सकते।
  • संविधान के अनुच्छेद 324 के तहत निर्वाचन आयोग द्वारा दिशा-निर्देश समाचार पत्रों और समाचार चैनलों को चुनाव पूर्व सर्वेक्षणों एवं एग्जिट पोल के नतीजे प्रकाशित करने पर प्रतिबंध लगाता है।
  • निर्वाचन आयोग समाचार पत्रों और चैनलों को एग्जिट एवं ओपिनियन पोल के नतीजों को प्रसारित करने के अतिरिक्त मतदाताओं की प्रतिदर्श संख्या, मतदान प्रक्रिया का विवरण, त्रुटि की संभावना तथा मतदान एजेंसी की पृष्ठभूमि के बारे में बताना अनिवार्य करता है।
  • आखिरी चरण का मतदान पूरा होने तक एग्जिट पोल के प्रकाशन पर प्रतिबंध रहेगा।
  • एग्जिट पोल के प्रकाशन पर प्रतिबंध के अतिरिक्त निर्वाचन आयोग एग्जिट पोल आयोजित करने वाले सभी मीडिया आउटलेट का आयोग के साथ पंजीकृत होना अनिवार्य करता है।

आगे की राह

  • पारदर्शिता और ठोस मतदान प्रणाली:
    • एग्जिट पोल आयोजित करने की पद्धति में पारदर्शिता के महत्त्व पर बल दिया जाना चाहिये।
    • मतदान एजेंसियों को मतदाताओं की प्रतिदर्श संख्या के आकलन के तरीके, प्रश्नावली संरचना और प्रतिवादी चयन के मानदंड जैसे विवरणों का खुलासा करना चाहिये।
  • नियामक सुधार:
    • उभरती चुनौतियों का समाधान करने और एग्जिट पोल परिणामों की रिपोर्टिंग में निष्पक्षता एवं सटीकता सुनिश्चित करने के लिये निर्वाचन अधिकारियों, मीडिया और मतदान एजेंसियों के बीच सहयोगात्मक प्रयासों से परिष्कृत दिशा-निर्देश तैयार किये जा सकते हैं।
  • निर्वाचन प्राधिकारियों के साथ सहयोग:
    • मतदान एजेंसियों और निर्वाचन अधिकारियों के बीच सहयोग को बढ़ावा दिया जाना चाहिये। इसके लिये निर्वाचन आयोग चुनावी प्रक्रिया के विषय में मूल्यवान अंतर्दृष्टि प्रदान कर सकता है, मतदाता जनसांख्यिकी पर डेटा साझा कर सकता है तथा एग्जिट पोल के कारण होने वाले संभावित व्यवधानों को कम करने के उपाय प्रस्तुत कर सकता है।

 UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न 

प्रिलिम्स:

प्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2017)

  1. भारत का निर्वाचन आयोग पाँच-सदस्यीय निकाय है।
  2. संघ का गृह मंत्रालय, आम चुनाव और उप-चुनाव दोनों के लिये चुनाव कार्यक्रम तय करता है।
  3. निर्वाचन आयोग मान्यता-प्राप्त राजनीतिक दलों के विभाजन/विलय से संबंधित विवाद निपटाता है।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 2
(c) केवल 2 और 3
(d) केवल 3

उत्तर: (d)

  • भारतीय संविधान के अनुच्छेद 324 के अनुसार, भारत का निर्वाचन आयोग एक स्वायत्त संवैधानिक प्राधिकरण है जो भारत में संघ और राज्य चुनाव प्रक्रियाओं के प्रशासन के लिये ज़िम्मेदार है।
  • यह निकाय भारत में लोकसभा, राज्यसभा, राज्य विधानसभाओं और देश में राष्ट्रपति एवं उपराष्ट्रपति के पदों के लिये चुनावों का संचालन करता है।
  • मूल रूप से आयोग में केवल एक मुख्य चुनाव आयुक्त था। इसमें वर्तमान में एक मुख्य चुनाव आयुक्त और दो चुनाव आयुक्त शामिल हैं। अतः कथन 1 सही नहीं है।
  • आयोग को मान्यता प्राप्त राजनीतिक दलों के विभाजन/विलय से संबंधित विवादों को निपटाने की अर्द्ध-न्यायिक शक्ति प्राप्त है। अतः कथन 3 सही है।
  • यह चुनावों के संचालन के लिये चुनाव कार्यक्रम तय करता है, चाहे आम चुनाव हों या उप-चुनाव। अतः कथन 2 सही नहीं है। अतः विकल्प (d) सही उत्तर है।

मेन्स:

प्रश्न. इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों (ई.वी.एम.) के इस्तेमाल के संबंधी हाल के विवाद के आलोक में भारत में चुनावों की विश्वस्यता सुनिश्चित करने के लिये भारत के निर्वाचन आयोग के समक्ष क्या-क्या चुनौतियाँ हैं? (2018)

प्रश्न. भारत में लोकतंत्र की गुणता बढ़ाने के लिये भारत के चुनाव आयोग ने 2016 में चुनावी सुधारों का प्रस्ताव दिया है। सुझाए गए सुधार क्या हैं और लोकतंत्र को सफल बनाने में वे किस सीमा तक महत्त्वपूर्ण हैं? (2017)


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