भारतीय राजनीति
निर्वाचन पैनल की स्वतंत्रता की रक्षा
- 21 Aug 2023
- 17 min read
यह एडिटोरियल 17/08/2023 को ‘हिंदुस्तान टाइम्स’ में प्रकाशित ‘‘Safeguard the election panel’s independence’’ लेख पर आधारित है। इसमें निर्वाचन आयुक्तों की नियुक्ति में हाल के बदलावों और निर्वाचन पैनल की स्वतंत्रता की रक्षा करने की आवश्यकता के बारे में चर्चा की गई है।
प्रिलिम्स के लिये:मुख्य निर्वाचन आयुक्त, मुख्य निर्वाचन आयुक्त (CEC) और अन्य निर्वाचन आयुक्तों का चयन, सर्वोच्च न्यायालय, अनुच्छेद 324। मेन्स के लिये:मुख्य निर्वाचन आयुक्त का चयन, इसका महत्त्व एवं संबंधित चिंताएँ, निर्वाचन आयोग की स्वतंत्रता। |
केंद्र सरकार द्वारा हाल ही में संपन्न हुए संसद के मानसून सत्र में मुख्य निर्वाचन आयुक्त और अन्य निर्वाचन आयुक्त (नियुक्ति, सेवा की शर्तें और पदावधि) विधेयक, 2023 पेश किया गया, जिस पर विवाद छिड़ गया है। जारी चर्चा का एक बड़ा भाग इस तथ्य पर केंद्रित है कि यह विधेयक मुख्य निर्वाचन आयुक्त (CEC) के चयन के लिये स्थापित उस तंत्र को प्रतिस्थापित करता है जिसे सर्वोच्च न्यायालय ने अनूप बरनवाल बनाम भारत संघ (2023) मामले में अभी कुछ माह पूर्व ही निर्धारित किया था।
अनूप बरनवाल मामले में सर्वोच्च न्यायालय का दृष्टिकोण:
- इस मामले में जारी आदेश में सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि मुख्य निर्वाचन आयुक्त का चयन एक तीन-सदस्यीय समिति द्वारा किया जाना चाहिये जिसमें शामिल होंगे:
हालाँकि सर्वोच्च न्यायालय ने स्वयं कहा था कि यह अस्थायी व्यवस्था होगी, जब तक कि संसद इस संबंध में कोई कानून पारित नहीं कर देती।
इस संबंध में संविधान में उल्लिखित प्रावधान:
अनुच्छेद 324 का खंड 2 मुख्य निर्वाचन आयुक्त (CEC) और अन्य निर्वाचन आयुक्तों (ECs) की नियुक्ति की शक्ति राष्ट्रपति में निहित करता है, जो संसद द्वारा बनाए गए किसी भी कानून के अधीन है।
- हालाँकि संसद ने ऐसा कोई कानून पारित नहीं किया है जो CEC और ECs की नियुक्ति के लिये राष्ट्रपति की (यानी कार्यपालिका की) शक्तियों को प्रभावी ढंग से स्थायी बनाता हो।
- सर्वोच्च न्यायालय ने उपरोक्त मामले में पाया कि कार्यकारी को CEC की नियुक्ति करने की शक्ति सौंपना वस्तुतः भारत निर्वाचन आयोग (ECI) की स्वतंत्रता के साथ असंगत था।
- इसका कारण स्पष्ट है: संसदीय प्रणाली में कार्यपालिका सत्तारूढ़ दल से आकार ग्रहण करती है और इसलिये यह चुनावी खेल में एक खिलाड़ी की हैसियत रखती है।
- इसलिये कार्यपालिका को CEC की नियुक्ति की शक्ति सौंपना एक खिलाड़ी को रेफरी की नियुक्ति करने की शक्ति सौंप देने के समान है।
निर्वाचन आयुक्त विधेयक से संबद्ध मुद्दे:
- कार्यकारी सर्वोच्चता प्रदान करना: निर्वाचन आयुक्त विधेयक में भारत के मुख्य न्यायाधीश के स्थान पर प्रधानमंत्री द्वारा नामित कैबिनेट मंत्री को रखने का प्रस्ताव किया गया है जो फिर कार्यपालिका को निर्वाचन आयुक्तों की नियुक्ति के विषय में स्पष्ट बहुमत और इस प्रकार निर्णायक अधिकार प्रदान करती है।
- इस विधेयक के अनुसार चयन समिति में शामिल होंगे:
- प्रधानमंत्री (अध्यक्ष)
- लोकसभा में विपक्ष के नेता (सदस्य)
- प्रधानमंत्री द्वारा नामित एक केंद्रीय कैबिनेट मंत्री (सदस्य)
- इस विधेयक के अनुसार चयन समिति में शामिल होंगे:
- संविधान निर्माताओं की इच्छा के विरुद्ध:
- संविधान निर्माताओं की मंशा ECI की स्वतंत्रता को सुरक्षित और गारंटीकृत करने की थी। यही कारण था कि उन्होंने राष्ट्रपति (कार्यकारी) को एक तदर्थ व्यवस्था (stop-gap arrangement) के रूप में ECs की नियुक्ति करने की शक्ति प्रदान की थी, जहाँ उम्मीद की गई थी कि संसद एक ऐसा कानून बनाएगी जो ECI की स्वतंत्रता को सुरक्षित और गारंटीकृत करेगी।
- यह विधेयक कार्यपालिका को अधिक शक्ति प्रदान करता है और इस प्रकार संविधान निर्माताओं द्वारा परिकल्पित एक स्वतंत्र ECI के विचार को बाधित करता है।
- संविधान निर्माताओं की मंशा ECI की स्वतंत्रता को सुरक्षित और गारंटीकृत करने की थी। यही कारण था कि उन्होंने राष्ट्रपति (कार्यकारी) को एक तदर्थ व्यवस्था (stop-gap arrangement) के रूप में ECs की नियुक्ति करने की शक्ति प्रदान की थी, जहाँ उम्मीद की गई थी कि संसद एक ऐसा कानून बनाएगी जो ECI की स्वतंत्रता को सुरक्षित और गारंटीकृत करेगी।
- एक अंपायर जो टीम कैप्टन के अधीनस्थ है: एक पूर्व मुख्य निर्वाचन आयुक्त ने कहा है कि नए विधान का सबसे चिंताजनक पहलू यह है कि निर्वाचन आयुक्तों के साथ-साथ मुख्य निर्वाचन आयुक्त की स्थिति को सर्वोच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों के समकक्ष होने से घटाकर कैबिनेट सचिव के स्तर का कर दिया गया है।
- उन्होंने यह भी कहा कि कैबिनेट सचिव प्रत्यक्षतः सरकार के अधीन होता है। इसलिये निर्वाचन आयोग जैसी संवैधानिक संस्था, जिससे अपेक्षा है कि आवश्यकता पड़ने पर वह प्रधानमंत्री और मंत्रिपरिषद के सदस्यों से भी अनुशासन की मांग कर सकता है, उसे कैबिनेट सचिव के स्तर का कैसे बनाया जा सकता जो स्पष्ट रूप से सरकार के अधीन होता है?
भारत में निर्वाचन आयुक्त की स्वतंत्रता की आवश्यकता:
- निष्पक्षता और न्याय: निर्वाचन आयुक्त संपूर्ण चुनावी प्रक्रिया की देखरेख के लिये ज़िम्मेदार होता है, जिसमें चुनाव का आयोजन, निर्वाचन क्षेत्रों का परिसीमन, मतदाता पंजीकरण जैसे विभिन्न कार्य शामिल हैं। यह महत्त्वपूर्ण है कि यह पद निष्पक्ष और राजनीतिक प्रभाव से मुक्त रहे ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि सभी राजनीतिक दलों और उम्मीदवारों को चुनावी प्रक्रिया में भाग लेने का समान एवं निष्पक्ष अवसर प्राप्त हो।
- जैसा कि पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने कहा था, ‘‘मत देने का अधिकार पवित्र अधिकार है। इसी के माध्यम से हम अपने नेताओं को चुनते हैं और अपना भाग्य निर्धारित करते हैं।’’ इसलिये, लोकतंत्र में निष्पक्ष और न्यायपूर्ण चुनाव अत्यंत महत्त्वपूर्ण हैं।
- हेरफेर की रोकथाम: एक स्वतंत्र निर्वाचन आयुक्त चुनावी प्रक्रिया में किसी भी हेरफेर या पूर्वाग्रह को रोकने में मदद करता है। यदि यह सत्तारूढ़ दल या किसी अन्य राजनीतिक इकाई से प्रभावित होगा तो इससे चुनावी कदाचार की स्थिति बन सकती है, जैसे मतदाता का दमन, चुनाव-क्षेत्र के सीमा परिवर्तन (gerrymanderin) या चुनाव परिणामों के साथ छेड़छाड़।
- उदाहरण के लिये वर्ष 2018 में पाकिस्तान के निर्वाचन आयोग को धाँधली और सैन्य प्रतिष्ठान के हस्तक्षेप को स्वीकार करने के आरोपों का सामना करना पड़ा, जिससे चुनाव परिणामों की वैधता पर संदेह उत्पन्न हुआ।
- लोगों का विश्वास: एक स्वतंत्र निर्वाचन आयुक्त चुनावी प्रक्रिया में जनता के विश्वास का निर्माण करने और इसे बनाए रखने में मदद करता है। जब लोग मानते हैं कि चुनाव निष्पक्ष और पारदर्शी तरीके से आयोजित किये जा रहे हैं तो उनकी भागीदारी की और परिणामों को स्वीकार करने की संभावना बढ़ जाती है, भले ही उनका पसंदीदा उम्मीदवार या दल न जीते।
- उदाहरण के लिये वर्ष 2007 में केन्या में एक विवादित राष्ट्रपति चुनाव के बाद (जिसमें व्यापक धाँधली और अनियमितता देखी गई थी) हिंसा भड़क गई, जिसमें 1000 से अधिक लोग मारे गए और 6,00,000 से अधिक लोग विस्थापित हुए।
- विधि का शासन: निर्वाचन आयुक्त की स्वतंत्रता विधि के शासन के सिद्धांत को कायम रखती है। यह सुनिश्चित करती है कि चुनावी प्रक्रियाएँ मनमाने निर्णयों या राजनीतिक दबाव के अधीन होने के बजाय स्थापित विधियों और विनियमों के अनुसार संपन्न की जा रही हैं।
- नियंत्रण और संतुलन: लोकतंत्र में शक्तियों का पृथक्करण और ‘नियंत्रण एवं संतुलन’ की उपस्थिति आवश्यक है। एक स्वतंत्र निर्वाचन आयुक्त सरकार की कार्यकारी और विधायी शाखाओं की शक्तियों पर एक नियंत्रण के रूप में कार्य करता है, जहाँ सुनिश्चित होता है कि राजनीतिक लाभ के लिये चुनावों में हेरफेर नहीं की जा रही है।
- दीर्घकालिक स्थिरता: एक स्वतंत्र निर्वाचन आयुक्त, चुनावी प्रक्रिया की दीर्घकालिक स्थिरता सुनिश्चित करने में मदद कर सकता है। यदि यह पद बार-बार परिवर्तन या राजनीतिक हस्तक्षेप के अधीन होगा तो यह चुनावों की विश्वसनीयता को कमज़ोर कर सकता है और अस्थिरता उत्पन्न कर सकता है।
- उदाहरण के लिये टीएन शेषन—जिन्होंने वर्ष 1990 से 1996 तक भारत के मुख्य निर्वाचन आयुक्त के रूप में कार्य किया था, को भारत में चुनाव सुधारों का आरंभ करने का व्यापक रूप से श्रेय दिया जाता है जिसने भारतीय चुनावों का चेहरा बदल दिया।
- उन्होंने संविधान में निर्धारित शक्तियों के अनुरूप निर्वाचन आयोग की अधिकारिता स्थापित की और चुनावों के दौरान प्रचलित 150 कदाचारों की एक सूची पेश की, जैसे शराब का वितरण, मतदाताओं को रिश्वत देना, दीवार-लिखाई से चुनाव प्रचार, चुनावी भाषणों में धर्म का उपयोग आदि।
- उन्होंने निर्वाचन संबंधी नियमों का उल्लंघन करने वाले राजनीतिक दलों एवं उम्मीदवारों को भी चुनौती दी और उनके विरुद्ध सख्त कार्रवाई की।
- एक स्वतंत्र और निडर निर्वाचन आयुक्त के रूप में उनकी विरासत ने कई अन्य लोगों को उनके पदचिह्न पर चलने तथा भारत में चुनावी प्रक्रिया की अखंडता एवं स्थिरता को बनाए रखने के लिये प्रेरित किया है।
- उदाहरण के लिये टीएन शेषन—जिन्होंने वर्ष 1990 से 1996 तक भारत के मुख्य निर्वाचन आयुक्त के रूप में कार्य किया था, को भारत में चुनाव सुधारों का आरंभ करने का व्यापक रूप से श्रेय दिया जाता है जिसने भारतीय चुनावों का चेहरा बदल दिया।
- अंतर्राष्ट्रीय मानक: एक स्वतंत्र निर्वाचन आयोग की अवधारणा को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर सर्वोत्तम अभ्यास के रूप में बरकरार रखा गया है। कई लोकतांत्रिक देशों ने चुनावों की निगरानी के लिये स्वतंत्र निकाय स्थापित किये हैं और भारत निर्वाचन आयोग भी इन वैश्विक मानकों के साथ तालमेल रखने पर लक्षित है।
आगे की राह:
- सरकार को चयन समिति की संरचना की समीक्षा करनी चाहिये और इसे अधिक संतुलित बनाने पर विचार करना चाहिये। इसमें निष्पक्ष निर्णय लेने की प्रक्रिया सुनिश्चित करने के लिये विपक्ष को अधिक संतुलित शक्ति सौंपना शामिल हो सकता है।
- उदाहरण के लिये, विपक्ष को चयन समिति में समान सीटें, वीटो शक्ति या रोटेशनल अध्यक्षता सौंपी जा सकती है। इससे यह सुनिश्चित होगा कि चयन प्रक्रिया पक्षपातपूर्ण या सत्तारूढ़ दल से प्रभावित नहीं होगी।
- चयन प्रक्रिया की विश्वसनीयता बढ़ाने के लिये सरकार को स्वतंत्र विशेषज्ञों, न्यायविदों और नागरिक समाज के प्रतिनिधियों को खोज समिति (search committee) में या चयन समिति में पर्यवेक्षकों के रूप में शामिल करना चाहिये। उनकी उपस्थिति प्रक्रिया की अखंडता बनाए रखने में मदद कर सकती है।
- सरकार इन हितधारकों को शामिल कर चयन प्रक्रिया में पारदर्शिता, जवाबदेही और सार्वजनिक विश्वास की वृद्धि कर सकती है। वे उम्मीदवारों की गुणवत्ता और उपयुक्तता में सुधार के लिये मूल्यवान अंतर्दृष्टि, प्रतिक्रिया और अनुशंसाएँ भी प्रदान कर सकते हैं।
- नवीन विधेयक को अंतिम रूप देने से पहले सरकार को विपक्षी दलों, विधि विशेषज्ञों और हितधारकों के साथ गहन परामर्श करना चाहिये ताकि विभिन्न दृष्टिकोणों को शामिल किया जा सके और निहित चिंताओं को उपयुक्त रूप से हल किया जा सके।
अभ्यास प्रश्न: निर्वाचन आयुक्त की स्वतंत्रता के महत्त्व पर प्रकाश डालते हुए हाल ही में प्रस्तुत किये गए ‘मुख्य निर्वाचन आयुक्त और अन्य निर्वाचन आयुक्त (नियुक्ति, सेवा की शर्तें और पदावधि) विधेयक, 2023’ से संबंधित मुद्दों की चर्चा कीजिये।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2017)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (a) केवल 1 और 2 उत्तर: (d) |