संसद (भाग-2)
संसद (भाग-l)
संसद में नेता (Leaders in Parliament)
- सदन का नेता (Leader of the House): लोकसभा के नियमों के अनुसार, 'सदन के नेता' से तात्पर्य प्रधान मंत्री (या प्रधान मंत्री द्वारा सदन के नेता के रूप में कार्य करने के लिये नामित कोई अन्य मंत्री जो लोकसभा का सदस्य है) से है।
- राज्य सभा में भी 'सदन का नेता' होता है जो एक मंत्री और राज्य सभा का सदस्य होता है और इस तरह कार्य करने के लिये प्रधान मंत्री द्वारा इन्हें नामित किया जाता है।
- वह कार्य संचालन पर सीधा प्रभाव डालता/डालती है।
- सदन के नेता के पद का उल्लेख संविधान में नहीं बल्कि सदन के नियमों में है।
- विपक्ष के नेता/नेता प्रतिपक्ष (Leader of the Opposition): ऐसे सबसे बड़े विपक्षी दल के नेता को सदन में विपक्ष के नेता/नेता प्रतिपक्ष के रूप में मान्यता दी जाती है जिसने सदन की कुल सीटों का कम से कम दसवें हिस्से पर विजय हासिल की हो।
- वह सरकार की नीतियों की रचनात्मक आलोचना करता है और एक वैकल्पिक सरकार प्रदान करता है।
- दोनों सदनों में विपक्ष के नेता को वर्ष 1977 में वैधानिक मान्यता दी गई थी और वे कैबिनेट मंत्री के बराबर वेतन, भत्ते और अन्य सुविधाओं के हकदार हैं।
- विपक्ष के नेता के पद का उल्लेख संविधान में नहीं बल्कि संसदीय संविधि में है।
- सचेतक (Whip): प्रत्येक राजनीतिक दल, चाहे वह सत्ताधारी हो या विपक्ष, का संसद में अपना स्वयं का व्हिप अथवा सचेतक होता है।
- उसे राजनीतिक दल द्वारा एक सहायक पटल नेता के रूप में काम करने के लिये नियुक्त किया जाता है, जिस पर बड़ी संख्या में अपनी पार्टी के सदस्यों की उपस्थिति सुनिश्चित करने और किसी विशेष मुद्दे के पक्ष में या उसके खिलाफ उनका समर्थन हासिल करने की ज़िम्मेदारी होती है।
- वह संसद में उनके व्यवहार को नियंत्रित करता है और उसकी निगरानी करता है तथा सदस्यों से यह अपेक्षा की जाती है कि वे व्हिप अथवा सचेतक द्वारा दिये गए निर्देशों का पालन करें।
- 'व्हिप' के पद का उल्लेख न तो भारतीय संविधान में और न ही ऊपर वर्णित अन्य दो संविधियों में है। यह संसदीय सरकार की परिपाटियों पर आधारित है।
संसद के सत्र (Sessions of Parliament)
- आमंत्रण पत्र भेजना (Summoning):
- इसमें संसद के सभी सदस्यों को सदन की बैठक हेतु समवेत होने के लिये आमंत्रण पत्र भेजा जाता है।
- संसद को आहूत करना संविधान के अनुच्छेद 85 में निर्दिष्ट है।
- राष्ट्रपति समय-समय पर संसद के प्रत्येक सदन को आहूत करते हैं।
- हालाँकि, संसद के दो सत्रों के बीच अधिकतम अंतराल छह महीने से अधिक नहीं हो सकता है।
- सत्र (Sessions):
- भारत का कोई निश्चित संसदीय कैलेंडर नहीं है। परंपरा के अनुसार, संसद की एक वर्ष में तीन बैठकें होती हैं।
- बजट सत्र: सबसे लंबा सत्र जनवरी के अंत में शुरू होता है और अप्रैल के अंत तक समाप्त होता है।
- मानसून सत्र: दूसरा सत्र प्रायः जुलाई में शुरू होता है और अगस्त में समाप्त होता है।
- शीतकालीन सत्र: तीसरा सत्र नवंबर से दिसंबर तक चलता है।
- भारत का कोई निश्चित संसदीय कैलेंडर नहीं है। परंपरा के अनुसार, संसद की एक वर्ष में तीन बैठकें होती हैं।
- स्थगन (Adjournment):
- स्थगन एक निश्चित समय के लिये बैठक में कामकाज को निलंबित कर देता है। स्थगन कुछ घंटे, दिन या सप्ताह के लिये हो सकता है।
- जब बैठक अगली बैठक के लिये नियत किसी निश्चित समय/तिथि के बिना समाप्त हो जाती है तो इसे अनिश्चित काल के लिये स्थगन कहा जाता है।
- स्थगन और अनिश्चित काल के लिये स्थगन की शक्ति सदन के पीठासीन अधिकारी (अध्यक्ष या सभापति) के पास होती है।
- सत्रावसान (Prorogation):
- स्थगन के विपरीत, सत्रावसान बैठक के साथ-साथ सदन के सत्र को भी समाप्त करता है।
- यह भारत के राष्ट्रपति द्वारा किया जाता है।
- सत्रावसान (लोकसभा के) विघटन से अलग है।
- गणपूर्ति (Quorum):
- गणपूर्ति से तात्पर्य सदन की बैठक आयोजित करने के लिये उपस्थित होने के लिये आवश्यक सदस्यों की न्यूनतम संख्या से है।
- संविधान ने निर्धारित किया है कि लोकसभा और राज्य सभा दोनों के लिये गणपूर्ति प्रत्येक सदन के कुल सदस्यों के दस प्रतिशत सदस्यों से होगी।
- संसद का संयुक्त सत्र (Joint Session of Parliament):
- भारत का संविधान, अनुच्छेद 108 के तहत दोनों के बीच किसी भी गतिरोध को तोड़ने के लिये लोकसभा और राज्यसभा की संयुक्त बैठक का प्रावधान करता है।
- संयुक्त बैठक राष्ट्रपति द्वारा बुलाई जाती है और इसकी अध्यक्षता लोकसभा अध्यक्ष करते हैं।
- अध्यक्ष की अनुपस्थिति में लोकसभा के उपाध्यक्ष बैठक की अध्यक्षता करते हैं।
- दोनों की अनुपस्थिति में, इसकी अध्यक्षता राज्य सभा के उपसभापति करते हैं।
- लुंज-पुंज सत्र (Lame Duck Session): इससे तात्पर्य एक नई लोकसभा के निर्वाचित होने के बाद मौजूदा लोकसभा के अंतिम सत्र से है।
- मौजूदा लोकसभा के ऐसे सदस्य जो नई लोकसभा के लिये फिर से निर्वाचित नहीं हो सके, उन्हें लुंज-पुंज कहा जाता है।
संसदीय कार्यवाही की युक्ति
(Devices of Parliamentary Proceedings)
- प्रश्नकाल (Question Hour):
- प्रत्येक संसदीय बैठक के पहले घंटे को प्रश्नकाल कहा जाता है। इसका उल्लेख सदन की प्रक्रिया संबंधी नियमों में किया जाता है।
- इस दौरान सदस्य प्रश्न पूछते हैं और मंत्री आमतौर पर उत्तर देते हैं। प्रश्न तीन प्रकार के होते हैं:
- तारांकित प्रश्न (Starred questions): ये तारक से पहचाने जाते हैं और इनके लिये मौखिक उत्तर देने की आवश्यकता होती है इसलिये पूरक प्रश्न पूछे जा सकते हैं।
- इन प्रश्नों की सूची हरे रंग के कागज पर छपी होती है।
- अतारांकित प्रश्न (Unstarred questions): इसके लिये एक लिखित उत्तर की आवश्यकता होती है और इसलिये पूरक प्रश्न नहीं पूछे जाते हैं।
- सूचीबद्ध प्रश्न सफेद रंग में मुद्रित होते है।
- अल्प सूचना प्रश्न (Short notice questions): इस प्रकार के प्रश्नों के अंतर्गत सार्वजनिक महत्व और अत्यावश्यक प्रकृति के मामलों पर विचार किया जाता है।
- ये दस दिनों से कम समय का नोटिस देकर पूछे जाते हैं और इनका मौखिक रूप से उत्तर दिया जाता हैं।
- इन्हें हल्के गुलाबी रंग के कागज पर मुद्रित किया जाता है।
- तारांकित प्रश्न (Starred questions): ये तारक से पहचाने जाते हैं और इनके लिये मौखिक उत्तर देने की आवश्यकता होती है इसलिये पूरक प्रश्न पूछे जा सकते हैं।
- शून्यकाल (Zero Hour):
- शून्यकाल भारतीय संसदीय नवाचार है। संसदीय नियम पुस्तिका में इसका उल्लेख नहीं है।
- इसके तहत, संसद सदस्य (सांसद) बिना किसी पूर्व सूचना के मामले उठा सकते हैं।
- शून्यकाल, प्रश्नकाल के तुरंत बाद शुरू होता है और तब तक रहता है जब तक कि दिन की कार्यावली (सदन का नियमित कार्य) शुरू नहीं हो जाती।
- दूसरे शब्दों में, प्रश्नकाल और कार्यावली के बीच के समय के अंतराल को शून्य काल के रूप में जाना जाता है।
- शून्यकाल भारतीय संसदीय नवाचार है। संसदीय नियम पुस्तिका में इसका उल्लेख नहीं है।
- आधे घंटे की चर्चा (Half-an-Hour Discussion):
- यह पर्याप्त सार्वजनिक महत्त्व के मामले पर चर्चा करने के लिये होती है, जिस पर बहुत बहस होती है और जिसके उत्तर में तथ्य पर स्पष्टीकरण की आवश्यकता है।
- अध्यक्ष ऐसी चर्चा के लिये सप्ताह में तीन दिन आवंटित कर सकते हैं। सदन के समक्ष कोई औपचारिक प्रस्ताव या मतदान नहीं होता है।
- अल्पकालिक चर्चा (Short Duration Discussion):
- इसे दो घंटे की चर्चा के रूप में भी जाना जाता है क्योंकि इस तरह की चर्चा के लिये आवंटित समय दो घंटे से अधिक नहीं होना चाहिये।
- संसद के सदस्य अत्यावश्यक सार्वजनिक महत्त्व के मामले पर ऐसी चर्चा कर सकते हैं।
- अध्यक्ष ऐसी चर्चा के लिये सप्ताह में दो दिन आवंटित कर सकते हैं। सदन के समक्ष न तो कोई औपचारिक प्रस्ताव होता है और न ही मतदान।
- यह युक्ति वर्ष 1953 से अस्तित्व में है।
भारतीय संसद में प्रस्ताव (Motions in Indian Parliament) |
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विशेषाधिकार हनन प्रस्ताव |
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निन्दा प्रस्ताव (Censure Motion) |
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ध्यानाकर्षण प्रस्ताव (Calling-Attention Motion) |
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स्थगन प्रस्ताव (Adjournment Motion) |
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अनियत-दिन-वाले प्रस्ताव (No-Day-Yet-Named Motion) |
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अविश्वास प्रस्ताव (No Confidence Motion) |
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धन्यवाद प्रस्ताव (Motion of Thanks) |
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कटौती प्रस्ताव (Cut Motions) |
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समापन प्रस्ताव (Closure Motion) |
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व्यवस्था का प्रश्न (Point of Order) |
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विशेष उल्लेख (Special Mention) |
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