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शासन व्यवस्था

मुख्य चुनाव आयुक्त और अन्य चुनाव आयुक्त (नियुक्ति, सेवा शर्तें और पद की अवधि) विधेयक, 2023

  • 12 Aug 2023
  • 13 min read

प्रिलिम्स के लिये:

मुख्य चुनाव आयुक्त (CEC) और चुनाव आयुक्तों के चयन के लिये प्रस्तावित विधेयक, सर्वोच्च न्यायालय (SC), जनहित याचिका (PIL), अनुच्छेद 324, आदर्श आचार संहिता

मेन्स के लिये:

मुख्य चुनाव आयुक्त के चयन के लिये प्रस्तावित विधेयक, इसका महत्त्व और संबंधित चिंताएँ

चर्चा में क्यों?

हाल ही में सरकार ने मुख्य चुनाव आयुक्त (CEC) एवं चुनाव आयुक्तों (EC) की नियुक्ति की प्रक्रिया में बदलाव करने के उद्देश्य से राज्यसभा में एक विधेयक प्रस्तुत किया है।

  • इस कदम ने प्रवर समिति की संरचना और प्रक्रिया की स्वतंत्रता के लिये इसके निहितार्थों के बारे में चर्चा प्रारंभ कर दी है।

पृष्ठभूमि:

  • मार्च 2023 में सर्वोच्च न्यायालय (SC) ने निर्णय दिया कि CEC और EC की नियुक्ति भारत के राष्ट्रपति द्वारा प्रधानमंत्री तथा लोकसभा में विपक्ष के नेता एवं भारत के मुख्य न्यायाधीश की एक समिति की सलाह पर की जाएगी। उनकी नियुक्तियों पर संसद द्वारा एक कानून बनाया जाता है।
  • यह निर्णय नियुक्ति प्रक्रिया को चुनौती देने वाली वर्ष 2015 की जनहित याचिका (PIL) से सामने आई थी।

नोट: यह निर्णय न्यायमूर्ति के.एम जोसेफ की अध्यक्षता वाली पीठ ने वर्ष 2015 में एक जनहित याचिका के जवाब में दिया था, जिसमें केंद्र द्वारा चुने गए चुनाव आयोग के सदस्यों की संवैधानिकता पर सवाल उठाया गया था। वर्ष 2018 में दो जजों की सर्वोच्च न्यायालय बेंच की स्थापना की गई थी, इस मामले को एक बड़ी पीठ के पास भेज दिया गया क्योंकि इसके लिये अनुच्छेद 324 की बारीकी से जाँच की आवश्यकता थी।

संविधान.

  • अनुच्छेद 324(2) के अनुसार: मुख्य चुनाव आयुक्त और कोई अतिरिक्त चुनाव आयुक्त यदि कोई हो, तो चुनाव आयोग के सदस्य होंगे। राष्ट्रपति मुख्य चुनाव आयुक्त या किसी अतिरिक्त चुनाव आयुक्त की नियुक्ति करता है, जो संसद द्वारा इस संबंध में पारित किसी भी कानून के प्रावधानों के अधीन है।
  • चूँकि संविधान के अनुच्छेद 324 द्वारा कोई संसदीय कानून लागू नहीं किया गया था, इसलिये न्यायालय ने "संवैधानिक शून्यता" को संबोधित करने के लिये यह कदम उठाया है।
    • विधेयक अब इस रिक्तता को दूर करने और निर्वाचन आयोग में नियुक्तियाँ करने के लिये एक विधायी प्रक्रिया स्थापित करने का प्रयास करता है।

वर्तमान में मुख्य निर्वाचन आयुक्त और निर्वाचन आयुक्त की नियुक्ति:

  • वर्तमान में मुख्य निर्वाचन आयुक्त एवं निर्वाचन आयुक्त की नियुक्ति के लिये संविधान में कोई विशिष्ट विधायी प्रक्रिया परिभाषित नहीं है। संविधान के भाग XV (निर्वाचन) में केवल पाँच अनुच्छेद (324-329) हैं।
  • संविधान का अनुच्छेद 324 के अनुसार, "चुनाव का अधीक्षण, निर्देशन और नियंत्रण चुनाव आयोग में निहित है जिसमें मुख्य निर्वाचन आयुक्त एवं समय-समय पर राष्ट्रपति द्वारा निर्धारित अन्य निर्वाचन आयुक्त शामिल होते हैं।
  • मार्च 2023 के सर्वोच्च न्यायालय के फैसले से पूर्व मुख्य निर्वाचन आयुक्त और निर्वाचन आयुक्त की नियुक्ति सरकार की सिफारिश पर राष्ट्रपति द्वारा की जाती थी।

विधेयक की मुख्य विशेषताएँ:

  • चयन समिति की संरचना:
    • चयन समिति में शामिल होंगे:
      • अध्यक्ष के रूप में प्रधानमंत्री।
      • सदस्य के रूप में लोकसभा में विपक्ष का नेता।
        • यदि लोकसभा में विपक्ष के नेता को मान्यता नहीं दी गई है, तो लोकसभा में सबसे बड़े विपक्षी दल का नेता यह भूमिका निभाएगा।
      • प्रधानमंत्री द्वारा सदस्य के रूप में नामित एक केंद्रीय कैबिनेट मंत्री।
  • खोज समिति:
    • विधेयक में CEC और EC के पदों पर विचार करने के लिये पाँच व्यक्तियों का एक पैनल तैयार करने हेतु एक खोज समिति (Search Committee) की स्थापना का प्रस्ताव है।
    • खोज समिति की अध्यक्षता कैबिनेट सचिव करेंगे और इसमें सचिव के पद से नीचे के दो सदस्य भी शामिल होंगे जिनके पास चुनाव से संबंधित मामलों का ज्ञान और अनुभव होगा।
  • रिक्ति के कारण अमान्य नहीं किया जा सकता:
    • चयन समिति के संविधान में किसी रिक्ति या दोष के कारण CEC और अन्य EC की नियुक्ति अमान्य नहीं होगी।
  • पिछले अधिनियम को निरस्त करना:
    • प्रस्तावित विधेयक चुनाव आयोग (चुनाव आयुक्तों की सेवा की शर्तें और व्यवसाय का संचालन) अधिनियम, 1991 को निरस्त करता है।
    • नए अधिनियम के पारित होने के बाद चुनाव आयोग का कामकाज़ उसके द्वारा नियंत्रित होगा।
    • 1991 के अधिनियम में प्रावधान है कि EC का वेतन सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश के बराबर होगा।
    • विधेयक में प्रावधान है कि CEC और अन्य EC का वेतन, भत्ता और सेवा शर्तें कैबिनेट सचिव के समान होंगी।
  • सर्वसम्मति और बहुमत का निर्णय:
    • विधेयक इस प्रावधान को बनाए रखता है कि चुनाव आयोग का कामकाज़ जब भी संभव हो सर्वसम्मति से किया जाना चाहिये। मतभेद की स्थिति में बहुमत का दृष्टिकोण मान्य होगा।

चिंताएँ:

  • शक्ति का संतुलन:
    • तीन सदस्यीय समिति में प्रधानमंत्री और एक कैबिनेट मंत्री (प्रधानमंत्री द्वारा नामित) शामिल होते हैं, विपक्ष के नेता के पास प्रक्रिया शुरू होने से पहले ही अल्पमत रह जाता है।
    • इससे समिति के भीतर शक्ति संतुलन पर सवाल उठता है और क्या चयन प्रक्रिया वास्तव में स्वतंत्रता सुनिश्चित करती है या कार्यपालिका के पक्ष में झुकी रहती है।
  • निर्वाचित शासन पर प्रभाव:
    • प्रस्तावित परिवर्तनों का ECI की स्वायत्तता और कार्यप्रणाली पर प्रभाव पड़ सकता है।
    • निर्वाचन के संचालन में निष्पक्षता और सत्यनिष्ठा सुनिश्चित करने के लिये निर्वाचन आयोग की स्वतंत्रता महत्त्वपूर्ण है। प्रवर प्रक्रिया में कार्यपालिका का कोई भी कथित प्रभाव बिना पक्षपात के अपनी ज़िम्मेदारियाँ निभाने की निर्वाचन आयोग की क्षमता के बारे में चिंताएँ उत्पन्न कर सकता है।
  • निर्माताओं के उद्देश्यों के साथ संरेखण:
    • सर्वोच्च न्यायालय ने अपने पिछले निर्णय में इस बात पर ज़ोर दिया था कि संविधान निर्माताओं का उद्देश्य चुनावों की निगरानी के लिये एक स्वतंत्र निकाय से था।
    • प्रस्तावित विधेयक के आलोचक इस बात पर सवाल उठाते हैं कि क्या प्रवर समिति की नई संरचना निर्वाचन के लिये ज़िम्मेदार एक निष्पक्ष और स्वतंत्र निकाय बनाने के निर्माताओं के उद्देश्य के अनुरूप है।

भारत में स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव सुनिश्चित करने में चुनाव आयुक्तों की भूमिका:

  • भारत निर्वाचन आयोग:
    • भारत में स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव सुनिश्चित करने के लिये वर्ष 1950 में भारतीय चुनाव आयोग की स्थापना की गई थी।
    • चुनाव आयोग में एक मुख्य चुनाव आयुक्त होता है जो निर्वाचन आयोग का अध्यक्ष होता है और अन्य चुनाव आयुक्त होते हैं।
    • चुनाव आयोग के अन्य सदस्यों की संख्या राष्ट्रपति द्वारा निर्धारित की जाती है।
  • निष्पक्ष एवं स्वतंत्र चुनाव:
    • चुनाव आयोजित करना: संविधान के अनुच्छेद 324 में प्रावधान है कि संसद, राज्य विधानसभाओं, भारत के राष्ट्रपति के कार्यालय और भारत के उपराष्ट्रपति के कार्यालय के चुनावों के अधीक्षण, निर्देशन तथा नियंत्रण की शक्ति निर्वाचन आयोग में निहित होगी।
    • आदर्श आचार संहिता: ECI यह सुनिश्चित करता है कि निर्वाचन के दौरान सभी राजनीतिक दलों और उम्मीदवारों को समान अवसर मिले।
      • इसके लिये यह आदर्श आचार संहिता का उपयोग करता है, जो चुनाव के दौरान राजनीतिक दलों और उम्मीदवारों के लिये पालन करने हेतु दिशा-निर्देश निर्धारित करता है।
    • राजनीतिक दलों के संबंध में इसकी भूमिका: इसका कार्य राजनीतिक दलों को मान्यता प्रदान करना और उन्हें चुनाव चिह्न आवंटित करना है।
    • यह राजनीतिक दलों को मान्यता प्रदान करने और उन्हें चुनाव चिह्न आवंटित करने से संबंधित विवादों के निपटारे के लिये न्यायालय के रूप में कार्य करता है।
    • मतदाता शिक्षण कार्य: भारत निर्वाचन आयोग मतदाताओं को उनके अधिकारों और ज़िम्मेदारियों के बारे में जागरूक करने के लिये मतदाता शिक्षा कार्यक्रम का आयोजन करता है।
    • इसके तहत उन्हें मतदान के महत्त्व और वोट डालने के तरीके के बारे में शिक्षित करने का कार्य किया जाता है।
    • चुनाव खर्च की निगरानी: यह आयोग चुनाव के दौरान राजनीतिक दलों और उम्मीदवारों के खर्च की निगरानी करता है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि वह कानून द्वारा निर्धारित सीमा से अधिक न हो।
    • चुनावी कदाचार का समाधान करना: यह आयोग बूथ कैप्चरिंग, फर्ज़ी मतदान और मतदाताओं को डराने-धमकाने जैसी चुनावी कदाचार के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करता है।

आगे की राह

  • सरकार को चयन समिति की संरचना की समीक्षा करनी चाहिये और इसे और अधिक संतुलित बनाने पर विचार करना चाहिये। इसमें निष्पक्ष निर्णय लेने की प्रक्रिया सुनिश्चित करने हेतु विपक्ष को एक मज़बूत प्रतिनिधित्व प्रदान करना शामिल हो सकता है।
  • चयन प्रक्रिया की विश्वसनीयता में वृद्धि करने के लिये सरकार को स्वतंत्र विशेषज्ञों, न्यायविदों और नागरिक समाज के प्रतिनिधियों को खोज समिति में अथवा चयन समिति में पर्यवेक्षकों के रूप में शामिल किया जाना चाहिये।
  • विधेयक को अंतिम रूप देने से पहले सरकार को विभिन्न दृष्टिकोणों पर विचार करने और यह सुनिश्चित करने के लिये विपक्षी दलों, कानूनी विशेषज्ञों और हितधारकों के साथ गहन परामर्श करना चाहिये ताकि संबद्ध मुद्दे पर पर्याप्त विचार-विमर्श हो।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

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