भारतीय राजनीति
एक उम्मीदवार एक निर्वाचन क्षेत्र
- 13 Jun 2022
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प्रिलिम्स के लिये:एक उम्मीदवार एक निर्वाचन क्षेत्र, चुनाव आयोग, जनप्रतिनिधित्व अधिनियम। मेन्स के लिये:दो निर्वाचन क्षेत्रों हेतु एक उम्मीदवार के चुनाव लड़ने से संबंधित मुद्दा। |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में मुख्य चुनाव आयुक्त ने कानून और न्याय मंत्रालय से एक उम्मीदवार के एक ही सीट से चुनाव लड़ने संबंधी प्रावधान के लिये कहा हैै।
- इसने एग्जिट पोल और ओपिनियन पोल पर प्रतिबंध लगाने की भी सिफारिश की थी और कहा कि चुनाव की पहली अधिसूचना के दिन से लेकर उसके सभी चरणों में चुनाव पूरा होने तक ओपिनियन पोल के परिणामों के संचालन और प्रसार पर कुछ प्रतिबंध होना चाहिये।
प्रमुख बिंदु
पृष्ठभूमि:
- जन प्रतिनिधित्व अधिनियम (RPA), 1951 की धारा 33 (7) के अनुसार, एक उम्मीदवार अधिकतम दो निर्वाचन क्षेत्रों से चुनाव लड़ सकता है।
- वर्ष 1996 तक अधिक निर्वाचन क्षेत्रों की अनुमति दी गई थी जब दो निर्वाचन क्षेत्रों में अधिकतम सीमा निर्धारित करने हेतु आरपीए में संशोधन किया गया था।
- वर्ष 1951 के बाद से कई राजनेतिक पार्टियों द्वारा एक से अधिक सीटों पर चुनाव लड़ने के लिये इस कारक का उपयोग कभी-कभी प्रतिद्वंद्वी के वोट को विभाजित करने हेतु, कभी देश भर में अपनी पार्टी की शक्ति का दावा प्रस्तुत करने के लिये, कभी निर्वाचन क्षेत्रों के आस-पास के क्षेत्र में अपनी पार्टी का प्रभाव स्थापित करने हेतु किया गया। उम्मीदवार की पार्टी और सभी दलों ने धारा 33(7) का दुरुपयोग किया है।
मुद्दा:
- अधिनियम मे विभिन्न धाराओं मे द्वंद:
- चूंँकि कोई भी उम्मीदवार दो निर्वाचन क्षेत्रों का प्रतिनिधित्व नहीं कर सकता है, इसलिये इस प्रणाली का विचार अतार्किक और विडंबनापूर्ण प्रतीत होता है।
- आरपीए की धारा 33 (7) के पीछे विडंबना यह है कि यह एक ऐसी स्थिति की ओर ले जाता है जहांँ इसे उसी अधिनियम की एक अन्य धारा – विशेष रूप से, धारा 70 से द्वंद की स्थिति पैदा करता हैा
- जहाँ 33 (7) उम्मीदवारों को दो सीटों से चुनाव लड़ने की अनुमति देता है, धारा 70 उम्मीदवारों को लोकसभा / राज्य विधानसभा में दो निर्वाचन क्षेत्रों का प्रतिनिधित्व करने से रोकता है।
- उपचुनाव सरकारी वित्तीयन पर अतिरिक्त बोझ:
- एक निर्वाचन क्षेत्र का त्याग करने के बाद, आम चुनाव के तुरंत बाद एक उपचुनाव स्वतः शुरू हो जाता है।
- उदाहरण के लिये, वर्ष 2014 में, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा वडोदरा और वाराणसी दोनों सीटें जीतने के बाद, उन्होंने वडोदरा में अपनी सीट खाली कर दी, जिससे वहांँ उपचुनाव कराना पड़ा।
- एक उपचुनाव के कारण लाखों करदाताओं के धन को खर्च करने की आवश्यकता पड़ती है, जिसे आसानी से टाला जा सकता था।
- वर्ष 1994 से पहले, जब उम्मीदवार तीन सीटों से भी चुनाव लड़ सकते थे, तो वित्तीय बोझ और भी भारी था।
- एक निर्वाचन क्षेत्र का त्याग करने के बाद, आम चुनाव के तुरंत बाद एक उपचुनाव स्वतः शुरू हो जाता है।
- मतदाता रुचि खो देते हैं:
- बार-बार चुनाव न केवल अनावश्यक और महंगे हैं, बल्कि इससे मतदाताओं की चुनावी प्रक्रिया में रुचि भी कम होगी।
- निरपवाद रूप से, उप-चुनाव में सबसे अधिक संभावना है कि कुछ दिन पहले के पहले चुनाव की तुलना में कम मतदाता मतदान करेंगे।
दो सीटों पर चुनाव लड़ने के पक्ष में तर्क:
- एक उम्मीदवार, दो निर्वाचन क्षेत्र प्रणाली "राजनीति के साथ-साथ उम्मीदवारों के लिये व्यापक विकल्प" प्रदान करती है।
- इस प्रावधान को खत्म करने से चुनाव लड़ने वाले उम्मीदवारों के अधिकारों का उल्लंघन होगा है , साथ ही राजनीति में उम्मीदवारों की कमी हो सकती है।
चुनाव आयोग की सिफारिशें :
- चुनाव आयोग ने धारा 33 (7) में संशोधन करने की सिफारिश की ताकि एक उम्मीदवार को केवल एक सीट से चुनाव लड़ने की अनुमति मिल सके।
- इसने वर्ष 2004, 2010, 2016 और वर्ष 2018 में ऐसा किया।
- एक ऐसी प्रणाली विकसित की जानी चाहिये जिसमें यदि कोई उम्मीदवार दो निर्वाचन क्षेत्रों से चुनाव लड़ता है और दोनों में जीत हासिल करता है, तो उसे किसी एक निर्वाचन क्षेत्र में बाद के उपचुनाव कराने का वित्तीय भार वहन करना होगा।
- यह राशि विधानसभा चुनाव के लिये 5 लाख रुपए और लोकसभा चुनाव के लिये 10 लाख रुपए होगी।
एग्जिट एंड ओपिनियन पोल:
- एक ओपिनियन पोल चुनाव से संबंधित कई मुद्दों पर मतदाताओं के विचारों को इकट्ठा करने के लिये एक चुनाव पूर्व सर्वेक्षण है।
- वहीं दूसरी ओर, एक्जिट पोल लोगों द्वारा मतदान करने के तुरंत बाद आयोजित किया जाता है और राजनीतिक दलों और उनके उम्मीदवारों के समर्थन का आकलन करता है।
चुनाव आयोग का तर्क:
- दोनों प्रकार के चुनाव विवादास्पद हो सकते हैं यदि उन्हें संचालित करने वाली एजेंसी को पक्षपाती माना जाता है।
- इन सर्वेक्षणों के अनुमान प्रश्नों की पसंद, शब्दों, समय और तैयार किये गए नमूने की प्रकृति से प्रभावित हो सकते हैं।
- राजनीतिक दल अक्सर आरोप लगाते हैं कि कई राय और एग्जिट पोल उनके प्रतिद्वंद्वियों द्वारा प्रेरित और प्रायोजित होती हैं,और एक चुनाव में मतदाताओं द्वारा चुने गए विकल्पों पर विकृत प्रभाव डाल सकते हैं एवं केवल सार्वजनिक भावना या विचारों को प्रतिबिंबित करने से रोक सकते हैं।
आगे की राह:
- "एक व्यक्ति, एक वोट" वह कहावत है जो भारतीय लोकतंत्र का संस्थापक सिद्धांत रहा है। शायद यह उस सिद्धांत को संशोधित और विस्तारित करने का समय है।
विगत वर्षों के प्रश्न:निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये:
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (a) केवल 1 उत्तर: (d) व्याख्या:
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