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डेली न्यूज़

  • 05 Nov, 2022
  • 40 min read
शासन व्यवस्था

UDISE प्लस रिपोर्ट

प्रिलिम्स के लिये:

UDISE प्लस रिपोर्ट, 2021-22, नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP), 2020, सर्व शिक्षा अभियान, मध्याह्न भोजन योजना

मेन्स के लिये:

भारत में शिक्षा प्रणाली और संबंधित मुद्दे, सरकारी नीतियाँ एवं हस्तक्षेप

चर्चा में क्यों?

हाल ही में केंद्रीय शिक्षा मंत्री ने स्कूली शिक्षा पर संयुक्त ज़िला शिक्षा सूचना प्रणाली प्लस (UDISE Plus) रिपोर्ट, 2021-22 जारी की है।

  • शिक्षा मंत्रालय ने वर्ष 2020-21 के लिये प्रदर्शन श्रेणी सूचकांक (PGI) भी जारी किया है।

UDISE Plus रिपोर्ट:

  • यह स्कूली छात्रों के नामांकन और स्कूल छोड़ने की दर, स्कूलों में शिक्षकों की संख्या एवं शौचालय, भवन तथा बिजली जैसी अन्य बुनियादी सुविधाओं के बारे में जानकारी प्रदान करने वाला एक समग्र अध्ययन है।
  • इसे वर्ष 2018-2019 में डेटा प्रविष्टि में तेज़ी लाने, त्रुटियों को कम करने, डेटा गुणवत्ता में सुधार करने और डेटा सत्यापन को आसान बनाने हेतु शुरु किया गया था।
  • यह स्कूल और उसके संसाधनों से संबंधित कारकों के विषय में विवरण एकत्र करने संबंधी एक एप्लीकेशन है।
  • यह UDISE का एक अद्यतित और उन्नत संस्करण है, जिसे शिक्षा मंत्रालय द्वारा वर्ष 2012-13 में शुरू किया गया था।

UDISE Plus रिपोर्ट, 2021-22 के निष्कर्ष:

  • नामांकन में गिरावट:
    • प्री-प्राइमरी स्तर पर:
      • वर्ष 2021-2022 में कुल 94.95 लाख छात्रों ने प्री-प्राइमरी कक्षाओं में प्रवेश लिया, जो पिछले वर्ष की तुलना में 10% की गिरावट को दर्शाता है (जब इन कक्षाओं में 1.06 करोड़ बच्चों ने प्रवेश लिया था)।
      • हालाँकि वर्ष 2020-2021 में प्री-प्राइमरी कक्षाओं में इससे पूर्व (1.35 करोड़) की तुलना में 21% की गिरावट दर्ज की गई थी क्योंकि महामारी व लॉकडाउन के परिणामस्वरूप स्कूल बंद हो गए थे तथा कक्षाएँ ऑनलाइन चल रही थीं।
    • प्राथमिक और उच्च माध्यमिक स्तर:
      • प्राथमिक कक्षाओं (कक्षा 1 से 5) में नामांकन में भी पहली बार गिरावट दर्ज की गई है, जो वर्ष 2020-2021 के 12.20 लाख से गिरकर वर्ष 2021-2022 में 12.18 लाख पर पहुँच गया है।
      • हालाँकि प्राथमिक से उच्च माध्यमिक स्तर पर छात्रों की कुल संख्या 19 लाख बढ़कर 25.57 करोड़ हो गई है।
  • स्कूलों की संख्या में गिरावट:
    • वर्ष 2020-21 के 15.09 लाख की तुलना में वर्ष 2021-22 में स्कूलों की कुल संख्या 14.89 लाख दर्ज की गई।
      • यह गिरावट मुख्य रूप से निजी और अन्य प्रबंधन स्कूलों के बंद होने तथा विभिन्न राज्यों द्वारा स्कूलों के समूह/क्लस्टरिंग के कारण दर्ज की गई।
    • वर्ष 2020-2021 में शिक्षकों की संख्या 96.96 लाख थी जो वर्ष 2021-2022 में 1.89 लाख की कमी के साथ 95.07 लाख दर्ज की गई गई।
  • कंप्यूटर सुविधाएँ और इंटरनेट तक पहुँच:
    • इसके अनुसार 44.75% स्कूलों में कंप्यूटर की सुविधा उपलब्ध होने के साथ केवल 33.9% स्कूलों की ही इंटरनेट तक पहुँच थी।
    • हालाँकि, पूर्व-कोविड की तुलना में इसमें सुधार दर्ज किया गया, जब केवल 38.5% स्कूलों में कंप्यूटर थे और 22.3% स्कूलों में इंटरनेट की सुविधा थी।
  • सकल नामांकन अनुपात (GER):
    • यह शिक्षा के विशिष्ट स्तर में नामांकन की तुलना संबंधित आयु वर्ग की आबादी से करता ह1ै।
      • समग्र सुधार:
        • प्राथमिक कक्षाओं के लिये GER, वर्ष 2018-2019 के 101.3% से बढ़कर वर्ष 2021-2022 में 104.8% हो गया है।
        • यह माध्यमिक कक्षाओं के लिये वर्ष 2021-22 में 79.6%, वर्ष 2018-19 में 76.9% और उच्च माध्यमिक स्तर के लिये 50.14% से बढ़कर 57.6% हो गया है।
      • श्रेणी-वार सुधार:
        • वर्ष 2020-21 में 4.78 करोड़ की तुलना में वर्ष 2021-22 में अनुसूचित जाति नामांकन की कुल संख्या बढ़कर 4.82 करोड़ हो गई।
        • वर्ष 2020-21 के 2.49 करोड़ से वर्ष 2021-22 में कुल अनुसूचित जनजाति नामांकन बढ़कर 2.51 करोड़ हो गया।
        • कुल अन्य पिछड़े छात्र भी वर्ष 2021-22 में बढ़कर 11.48 करोड़ हो गए, जो वर्ष 2020-21 में 11.35 करोड़ थे।
        • वर्ष 2020-21 के 21.91 लाख की तुलना में वर्ष 2021-22 में विशेष आवश्यकता वाले बच्चों (CWSN) का कुल नामांकन 22.67 लाख है।
  • लैंगिक समानता सूचकांक (GPI):
    • वर्ष 2021-22 में 12.29 करोड़ से अधिक लड़कियों ने प्राथमिक से उच्च माध्यमिक में दाखिला लिया है, जो वर्ष 2020-21 में लड़कियों के नामांकन की तुलना में 8.19 लाख की वृद्धि दर्शाता है।
      • GER का लिंग समानता सूचकांक (GPI) स्कूल में लड़कियों के प्रतिनिधित्व को उनकी जनसंख्या के संबंध में संबंधित आयु वर्ग में दर्शाता है।

प्रदर्शन श्रेणी सूचकांक (Performance Grading Index):

  • परिचय:
    • यह राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में स्कूली शिक्षा प्रणाली का साक्ष्य-आधारित व्यापक विश्लेषण प्रदान करता है।
    • यह सूचकांक राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों को कुल 1,000 अंकों में से उनके स्कोर के आधार पर 10 ग्रेड्स में वर्गीकृत करता है।
      • उच्चतम प्राप्त करने योग्य ग्रेड स्तर 1 है, जो कुल 1000 अंकों में से 950 से अधिक अंक प्राप्त करने वाले राज्य/संघ राज्य क्षेत्र के लिये है।
      • निम्नतम ग्रेड स्तर 10 है जो 551 से नीचे के स्कोर के लिये है।
    • उनके प्रदर्शन का मूल्यांकन पाँच डोमेन में कुल 70 संकेतकों पर किया जाता है।
      • पाँच डोमेन- लर्निंग आउटकम, पहुँच, बुनियादी ढाँचे और सुविधाएँ, इक्विटी एवं शासन प्रक्रिया हैं।
    • यह सूचकांक कई डेटा स्रोतों से लिये गए डेटा पर आधारित है, जिसमें यूनिफाइड डिस्ट्रिक्ट इंफॉर्मेशन सिस्टम फॉर एजुकेशन प्लस (UDISE+) 2020-21, राष्ट्रीय उपलब्धि सर्वेक्षण (NAS)-2017, और मिड डे मील पोर्टल शामिल हैं।
  • उद्देश्य:
    • साक्ष्य-आधारित नीति निर्माण को बढ़ावा देना और सभी के लिये उच्च गुणवत्ता वाली शिक्षा उपलब्ध कराने हेतु पाठ्यक्रम में सुधार पर ज़ोर देना PGI के मुख्य लक्ष्य हैं।
    • आशा की जाती है कि PGI राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों को उनकी कमियों को दूर करने में मदद करेगा एवं तदानुसार हस्तक्षेप के लिये क्षेत्रों को प्राथमिकता देगा ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि स्कूली शिक्षा प्रणाली हर स्तर पर मज़बूत हो।

प्रदर्शन ग्रेडिंग सूचकांक के जाँच-परिणाम:

  • लेवल 2 प्राप्त करने वाले राज्य:
    • कुल 7 राज्यों और केंद्रशासित प्रदेश जिनमे केरल, पंजाब, चंडीगढ़, महाराष्ट्र, गुजरात, राजस्थान व आंध्र प्रदेश शामिल हैं, ने वर्ष 2020-21 में लेवल II (स्कोर 901-950) हासिल किया है। जबकि वर्ष 2017-18 में ऐसे राज्यों की संख्या नगण्य थी और वर्ष 2019-20 में 4 ही ऐसे राज्य थे।
      • गुजरात, राजस्थान और आंध्र प्रदेश अब तक किसी भी राज्य द्वारा उच्चतम स्तर की श्रेणी में प्रवेश करने वाले राज्यों में नए हैं।
  • लेवल 3 प्राप्त करने वाले राज्य:
    • दिल्ली, तमिलनाडु, कर्नाटक और ओडिशा सहित कुल 12 राज्यों एवं केंद्रशासित प्रदेशों ने 851-900 के बीच स्कोर के साथ स्तर 3 प्राप्त किया।
  • सबसे बड़ी उपलब्धि:
    • लद्दाख में वर्ष 2019-2020 के लेवल 10 से वर्ष 2020-2021 में लेवल 4 तक पहुँचने के रूप में सबसे बड़ा सुधार देखा गया है।

भारतीय शिक्षा प्रणाली की स्थिति:

 यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्ष के प्रश्न: 

प्रश्न. भारत में उच्च शिक्षा की गुणवत्ता को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रतियोगी बनाने के लिये उसमें भारी सुधारों की आवश्यकता है। क्या आपके विचार में विदेशी शैक्षिक संस्थाओं का प्रवेश देश में उच्च और तकनीकी शिक्षा की गुणवत्ता की प्रोन्नति में सहायक होगा? चर्चा कीजिये। (2015)

प्रश्न. स्कूली शिक्षा के महत्व के बारे में जागरूकता उत्पन्न किये बिना बच्चों की शिक्षा में प्रेरणा-आधारित पद्धति के संवर्द्धन में निःशुल्क और अनिवार्य बाल शिक्षा का अधिकार अधिनियम, 2009 अपर्याप्त है। विश्लेषण कीजिये। (2022)

स्रोत: द हिंदू


शासन व्यवस्था

बाल कल्याण पुलिस अधिकारियों की होगी नियुक्ति

प्रिलिम्स के लिये:

बाल कल्याण पुलिस अधिकारी (CWPO), राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (NCPCR), यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण (POCSO) अधिनियम, 2012, किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल और संरक्षण) अधिनियम, 2015, बाल यौन शोषण।

मेन्स के लिये:

बाल यौन शोषण से संबंधित मुद्दे और कदम उठाए जाने की ज़रूरत , बच्चों से संबंधित मुद्दे।

चर्चा में क्यों?

गृह मंत्रालय ने राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों से कहा है कि राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (NCPCR) द्वारा जारी परामर्श के अनुसार, विशेषकर पीड़ित या अपराधी बच्चों की समस्या से निपटने के लिये प्रत्येक पुलिस थाने में एक बाल कल्याण पुलिस अधिकारी (CWPO) नियुक्त करें।

NCPCR द्वारा जारी परामर्श:

  • किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल और संरक्षण) अधिनियम, 2015 के प्रावधानों के अनुसार, कम-से- कम एक अधिकारी, जो सहायक उप-निरीक्षक के पद से नीचे का न हो, को प्रत्येक पुलिस स्टेशन में CWPO के रूप में नामित किया जाना चाहिये।
  • प्रत्येक ज़िले और शहर में एक विशेष किशोर पुलिस इकाई की स्थापना की जानी चाहिये, जिसका प्रमुख एक अधिकारी होगा जो पुलिस उपाधीक्षक के पद से नीचे का न हो।
    • इस इकाई में बाल कल्याण के क्षेत्र में काम करने का अनुभव रखने वाले CWPO और दो सामाजिक कार्यकर्त्ता शामिल होंगे, जिनमें से एक महिला होगी, जो बच्चों के संबंध में पुलिस के सभी कार्यों का समन्वय करेगी।
  • जनता से संपर्क करने के लिये CWPO के संपर्क विवरण सभी पुलिस थानों में प्रदर्शित किये जाने चाहिये।

भारत में बच्चों के खिलाफ अपराधों की स्थिति:

  • राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) द्वारा प्रकाशित आँकड़ों के अनुसार, बच्चों के खिलाफ अपराधों की कुल संख्या वर्ष 2020 के 1,28,531 से बढ़कर वर्ष 2021 में 1,49,404 हो गई।
    • जबकि मध्य प्रदेश 19,173 मामलों के साथ देश में सबसे ऊपर है, उत्तर प्रदेश 16,838 मामलों के साथ दूसरे स्थान पर है।
  • देश भर में दर्ज किये गए 1,279 मामलों में कुल 1,402 बच्चों की हत्या की गई।
  • वर्ष 2021 में 1,18,549 बच्चों के अपहरण और व्यपहरण (Abduction) के 1,15,414 मामले दर्ज किये गए।
    • इन मामलों में उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश शीर्ष पर हैं।

राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (NCPCR):

  • NCPCR का गठन मार्च 2007 में ‘कमीशंस फॉर प्रोटेक्शन ऑफ चाइल्ड राइट्स’ (Commissions for Protection of Child Rights- CPCR) अधिनियम, 2005 के तहत एक वैधानिक निकाय के रूप में किया गया ।
  • यह महिला एवं बाल विकास मंत्रालय के प्रशासनिक नियंत्रण में कार्यरत है।
  • आयोग का अधिदेश (mandate) यह सुनिश्चित करता है कि सभी कानून, नीतियाँ, कार्यक्रम और प्रशासनिक तंत्र भारत के संविधान में निहित बाल अधिकार के प्रावधानों के साथ-साथ संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन के बाल अधिकारों के अनुरूप भी हों।
  • यह शिक्षा का अधिकार अधिनियम, 2009 (Right to Education Act, 2009) के तहत एक बच्चे की मुफ्त एवं अनिवार्य शिक्षा के अधिकार से संबंधित शिकायतों की जाँच करता है।
  • यह लैंगिक अपराधों से बच्चों के संरक्षण अधिनियम, 2012 [Protection of Children from Sexual Offences(POCSO) Act, 2012] के कार्यान्वयन की निगरानी करता है।

किशोर न्याय (बालकों की देख-रेख और संरक्षण) अधिनियम, 2015:

  • यह किशोर अपराध कानून एवं किशोर न्याय (बालकों की देखभाल और संरक्षण) अधिनियम, 2000 को स्थानांतरित करता है।
  • यह अधिनियम जघन्य अपराधों में संलिप्त 16-18 वर्ष की आयु के बीच के किशोरों (जुवेनाइल) के ऊपर बालिगों के समान मुकदमा चलाने की अनुमति देता है।
  • इस अधिनियम में गोद लेने की प्रक्रिया को शामिल किया गया है। इस अधिनियम द्वारा हिंदू दत्तक ग्रहण व रख-रखाव अधिनियम (1956) और वार्ड के संरक्षक अधिनियम (1890) को अधिक सार्वभौमिक दत्तक कानून द्वारा स्थानांतरित किया गया है।
  • यह अधिनियम गोद लेने से संबंधित मामलों की देख-रेख के लिये केंद्रीय दत्तक ग्रहण संसाधन प्राधिकरण (Central Adoption Resource Authority-CARA) नामक वैधानिक निकाय को प्रमुख बनाने के साथ अनाथ बच्चों के पालन-पोषण, देखभाल एवं उन्हें गोद देने की प्रणाली को और बेहतर बनाना सुनिश्चित करता है।

यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण अधिनियम, 2012:

  • यह बच्चों के हितों की रक्षा और भलाई के लिये बच्चों को यौन उत्पीड़न, दुर्व्याव्हार एवं अश्लील साहित्य के अपराधों से बचाने के लिये अधिनियमित किया गया था।
  • यह अठारह वर्ष से कम उम्र के किसी भी व्यक्ति को बच्चे के रूप में परिभाषित करता है और बच्चे के स्वस्थ शारीरिक, भावनात्मक, बौद्धिक एवं सामाजिक विकास को सुनिश्चित करने के लिये हर स्तर पर बच्चे के सर्वोत्तम हित तथा कल्याण को सर्वोपरि मानता है।
  • यह यौन शोषण के विभिन्न रूपों को परिभाषित करता है, जिसमें सक्रिय और निष्क्रिय यौन शोषण के साथ ही अश्लीलता जैसे मामले शामिल हैं।
  • कुछ परिस्थितियों में यौन शोषण बढ़ जाते हैं, जैसे कि जब शोषण का सामना करने वाला बच्चा मानसिक रूप से बीमार होता है अथवा जब शोषण परिवार के किसी सदस्य, पुलिस अधिकारी, शिक्षक या डॉक्टर जैसे विश्वसनीय लोगों द्वारा किया जाता है।
  • यह जाँच प्रक्रिया के दौरान पुलिस को बाल संरक्षक की भूमिका भी प्रदान करता है।
  • अधिनियम में कहा गया है कि बाल यौन शोषण के मामले का निपटारा अपराध की रिपोर्ट की तारीख से एक वर्ष के भीतर किया जाना चाहिये।
  • बच्चों के खिलाफ यौन अपराधों के लिये मृत्युदंड सहित कठोर सज़ा देने के लिये इसमें अगस्त 2019 में संशोधन किया गया था।

आगे की राह

  • समग्र ढाँचा: यह रिपोर्ट बच्चों के लिये सुरक्षित ऑनलाइन वातावरण बनाने तथा बच्चों को सुरक्षित रखने की भूमिका हेतु एक साथ काम करने के अलावा दुर्व्यवहार के खिलाफ रोकथाम गतिविधियों को प्राथमिकता देने का आह्वान करती है।
  • बहु हितधारक दृष्टिकोण: कानूनी ढाँचे, नीतियों, राष्ट्रीय रणनीतियों और मानकों के बेहतर कार्यान्वयन को सुनिश्चित करने के लिये माता-पिता, स्कूलों, समुदायों, NGO भागीदारों तथा स्थानीय सरकारों के साथ-साथ पुलिस व वकीलों को शामिल करने हेतु एक व्यापक आउटरीच प्रणाली विकसित किये जाने की आवश्यकता है।

 UPSC सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्ष के प्रश्न: 

प्रश्न. बाल अधिकारों पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन के संदर्भ में निम्नलिखित पर विचार कीजिये: (2010)

  1. विकास का अधिकार
  2. अभिव्यक्ति का अधिकार
  3. मनोरंजन का अधिकार

उपर्युक्त में से कौन-सा/से बच्चे का/के अधिकार है/हैं?

(a) केवल 1
(b) केवल 1 और 3
(c) केवल 2 और 3
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (d)

व्याख्या:

  • संयुक्त राष्ट्र (यूएन) ने 1946 में संयुक्त राष्ट्र अंतर्राष्ट्रीय बाल आपातकालीन कोष (यूनिसेफ) की स्थापना करके बाल अधिकारों के महत्त्व को घोषित करने की दिशा में अपना पहला कदम उठाया। वर्ष 1948 में संयुक्त राष्ट्र महासभा ने मानवाधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा को अपनाया, जिससे यह बच्चों की सुरक्षा की आवश्यकता को पहचानने वाला पहला संयुक्त राष्ट्र दस्तावेज़ बन गया।
  • बाल अधिकारों पर विशेष रूप से केंद्रित संयुक्त राष्ट्र का पहला दस्तावेज़ बाल अधिकारों की घोषणा था, लेकिन कानूनी रूप से बाध्यकारी दस्तावेज़ होने के बजाय यह सरकारों के लिये आचरण के नैतिक मार्गदर्शक की तरह था। वर्ष 1989 तक वैश्विक समुदाय द्वारा बाल अधिकारों पर इस तरह के कन्वेंशन को नहीं अपनाया गया, जिससे यह बाल अधिकारों से संबंधित पहला अंतर्राष्ट्रीय कानूनी रूप से बाध्यकारी दस्तावेज़ बन गया।
  • 2 सितंबर 1990 को लागू हुये इस कन्वेंशन में जीवन के अधिकार, विकास का अधिकार, खेल और मनोरंजक गतिविधियों में संलग्न होने का अधिकार, सुरक्षा का अधिकार, भागीदारी का अधिकार, अभिव्यक्ति सहित बाल अधिकारों की विभिन्न श्रेणियों को शामिल करते हुए 54 अनुच्छेद शामिल हैं। अत: 1, 2 और 3 सही हैं।

अतः विकल्प (d) सही है।

स्रोत: द हिंदू


सामाजिक न्याय

स्व-रोज़गार महिला संघ (SEWA)

प्रिलिम्स के लिये:

SEWA, पद्म भूषण, मैग्सेसे अवार्ड, महात्मा गांधी, ILO, पीएम-स्वनिधि योजना

मेन्स के लिये:

महिला सशक्तीकरण से संबंधित मुद्दा

चर्चा में क्यों?

हाल ही में स्व-रोज़गार महिला संघ (SEWA) की संस्थापक इलाबेन भट्ट का निधन हो गया।

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इलाबेन भट्ट:

  • वह एक प्रसिद्ध गांधीवादी, सशक्त अग्रणी महिला कार्यकर्त्ता थीं।
  • इलाबेन को उनके काम के लिये कई सम्मान मिले, उन्हें पद्म भूषण, मैग्सेसे पुरस्कार और इंदिरा गांधी सद्भावना पुरस्कार सहित कई राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कारों से सम्मानित किया गया।
  • वह संसद सदस्य और भारत सरकार के योजना आयोग की सदस्य थीं।
  • उन्होंने इन सभी अवसरों का उपयोग भारतीय महिलाओं की स्थिति में संरचनात्मक सुधार लाने के लिये किया।
  • वह वर्ष 1955 में टेक्सटाइल लेबर एसोसिएशन में शामिल हुईं, यह एक ऐसा संघ था जो वर्षं 1918 में महात्मा गांधी के नेतृत्व में कपड़ा हड़ताल के बाद प्रसिद्ध हुआ।
  • यूनियन की महिला विंग में उनके काम और कपड़ा क्षेत्र में महिला प्रवासियों के साथ लगातार बातचीत ने उन्हें स्वयं सहायता समूह की अवधारणा के लिये प्रेरित किया।

स्व-नियोजित महिला संघ (SEWA):

  • SEWA का उद्भव वर्ष 1920 में अनसूया साराभाई और महात्मा गांधी द्वारा स्थापित टेक्सटाइल लेबर एसोसिएशन (TLA) से हुआ था, लेकिन वर्ष 1972 तक यह ट्रेड यूनियन के रूप में पंजीकृत नहीं हो सका क्योंकि इसके सदस्यों के पास कोई "नियोक्ता" नहीं था और ऐसे में उन्हें श्रमिकों के रूप में नहीं देखा जाता था।
    • वर्ष 1981 में आरक्षण विरोधी दंगों के बाद जिसमें चिकित्सा शिक्षा में दलित वर्ग के लिये आरक्षण का समर्थन करने के लिये भट्ट समुदाय के लोगों को निशाना बनाया गया था, TLA और SEWA अलग हो गए।
  • वर्ष 1974 की शुरुआत में गरीब महिलाओं को छोटे ऋण प्रदान करने के लिये सेवा बैंक की स्थापना की गई थी।
  • यह एक पहल है जिसे अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन द्वारा माइक्रोफाइनेंस आंदोलन के रूप में मान्यता दी गई थी।
  • मात्र 10 रुपए के वार्षिक सदस्यता शुल्क के साथ, कोई भी स्व-नियोजित व्यक्ति इसका सदस्य बन सकता है।
  • इसका नेटवर्क भारत के 18 राज्यों, दक्षिण एशिया के अन्य देशों, दक्षिण अफ्रीका और लैटिन अमेरिका में फैला हुआ है।
  • इसने महिलाओं को कौशल और प्रशिक्षण के माध्यम से सशक्त बनाकर व्यक्तिगत एवं राजनीतिक, सामाजिक संकटों के समय उनका पुनर्वास करने में मदद की है।
  • इसने बड़ी संख्या में महिलाओं को रोज़गार प्रदान किया और वस्त्रों के सहकारी उत्पादन, उपभोग तथा विपणन को बढ़ावा दिया जो भारत के औद्योगीकरण का मूल था।
  • इसने भारत में ट्रेड यूनियनवाद और श्रमिक आंदोलन की दिशा को भी निर्णायक रूप से प्रभावित किया।

SEWA की उपलब्धियाँ:

  • असंगठित श्रमिक सामाजिक सुरक्षा अधिनियम (2008), राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन (2011), और स्ट्रीट वेंडर्स अधिनियम, (2014) को SEWA के संघर्ष की सफलता के रूप में देखा जाता है।
  • पीएम स्ट्रीट वेंडर्स आत्मनिर्भर निधि (पीएम-स्वनिधि) योजना को SEWA के माइक्रोफाइनेंस मॉडल से प्रेरित माना जा रहा है।
  • महामारी के दौरान SEWA ने विक्रेताओं को खरीदारों से जोड़ने के लिये एक ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म, अनुबंध लॉन्च किया, ताकि लॉकडाउन के दौरान खान-पान संबंधी समस्या न हो।

 UPSC सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्ष के प्रश्न: 

प्रश्न. सूक्ष्म-वित्त एक गरीबी-रोधी टीका है जो भारत में ग्रामीण दरिद्र की परिसंपत्ति के निर्माण और आय सुरक्षा के लिये लक्षित है। स्वयं सहायता समूहों की भूमिका का मूल्यांकन ग्रामीण भारत में महिलाओं के सशक्तीकरण के साथ-साथ उपरोक्त दोहरे उद्देश्यों के लिये कीजिये। (2020)

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


जैव विविधता और पर्यावरण

अडैप्टेशन गैप रिपोर्ट, 2022

प्रिलिम्स के लिये:

संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (UNEP), जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन (UNFCCC), COP 26, COP 27

मेन्स के लिये:

अडैप्टेशन गैप रिपोर्ट, 2022 के निष्कर्ष, रिपोर्ट द्वारा सुझाए गए कदम, जलवायु वित्त के संबंध में भारत की पहल।

चर्चा में क्यों?

संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (UNEP) की अडैप्टेशन गैप रिपोर्ट, 2022 के अनुसार, अनुकूलन योजना, वित्तपोषण और कार्यान्वयन की दिशा में किये जा रहे वैश्विक प्रयास दुनिया भर में कमजोर समुदायों को जलवायु परिवर्तन के प्रभावों के बढ़ते जोखिमों के अनुकूलन हेतु सक्षम करने के लिये पर्याप्त नहीं हैं।

  • इस रिपोर्ट के अनुसार राष्ट्रीय स्तर पर सरकारों की ओर से अनुकूलन योजनाओं पर कुछ प्रगति की गई है लेकिन यह वित्त द्वारा समर्थित नहीं है।

रिपोर्ट के निष्कर्ष:

  • जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन (UNFCCC) के 197 सदस्यों में से केवल एक- तिहाई ने अनुकूलन से संबंधित मात्रात्मक और समयबद्ध लक्ष्यों को अपनाया है और इनमें से 90% ने लैंगिक आधार के साथ वंचित समूहों को भी शामिल किया है।
  • अंतर्राष्ट्रीय अनुकूलन वित्त प्रवाह आवश्यकता से 5 से 10 गुना तक कम है और यह अंतर लगातार बढ़ता जा रहा है। वर्ष 2020 में अनुकूलन हेतु वित्त, वर्ष 2019 की तुलना में 4% की वृद्धि के साथ बढ़कर 29 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुँच गया।
    • ऐसा तब है जब विकासशील देशों की अनुमानित वार्षिक अनुकूलन आवश्यकताएँ वर्ष 2030 तक बढ़कर 160 से 340 बिलियन अमेरिकी डॉलर और वर्ष 2050 तक 315 से 565 बिलियन अमेरिकी डॉलर होना अनुमानित हैं।

रिपोर्ट में सुझाए गए उपाय:

  • प्रकृति-आधारित दृष्टिकोण: रिपोर्ट में इस बात पर प्रकाश डाला गया है कि योजना, वित्तपोषण और कार्यान्वयन के संदर्भ में शमन व अनुकूलन कार्यों को जोड़ने से सह-लाभ प्राप्त होंगे।
  • इसका एक उदाहरण प्रकृति आधारित समाधान हो सकता है।
  • जलवायु अनुकूलन: देशों को COP27 से शुरू होने वाले अनुकूलन निवेश और परिणामों को बढ़ाने के लिये मज़बूत कार्रवाई के साथ ग्लासगो जलवायु संधि का समर्थन करने की आवश्यकता है।
  • अन्य रणनीतियाँ: अनुकूलन अंतर का समाधान चार महत्त्वपूर्ण तरीकों से किया जाना चाहिये:
    • अनुकूलन के लिये वित्तपोषण बढ़ाना: विकसित देशों को अनुकूलन हेतु ग्लासगो में COP 26 में निर्धारित वित्त को दोगुना करने (40 बिलियन अमेरिकी डॉलर) के अपने वादे के लिये एक स्पष्ट रोडमैप तैयार करने की आवश्यकता है।
    • नया व्यवसाय मॉडल अपनाना: अनुकूलन प्राथमिकताओं को निवेश योग्य परियोजनाओं में रूपांतरित करने हेतु विश्व को तत्काल एक नए व्यवसाय मॉडल की आवश्यकता है क्योंकि सरकार जो प्रस्ताव करती है और जिसे फाइनेंसर निवेश योग्य मानते हैं, उनके बीच तालमेल नहीं रहता है।  
    • डेटा कार्यान्वयन की आवश्यकता: कई विकासशील देशों में अनुकूलन योजना के लिये जलवायु जोखिम डेटा और सूचना की उपलब्धता एक मुद्दा बना रहता है।
    • संशोधित चेतावनी प्रणाली: चरम मौसमी घटनाओं और समुद्र के जल स्तर में वृद्धि जैसे परिवर्तनों के संदर्भ में पूर्व चेतावनी प्रणालियों का कार्यान्वयन एवं संचालन सुनिश्चित करना।

जलवायु वित्त के संबंध में भारत की पहलें:

  • राष्ट्रीय जलवायु परिवर्तन अनुकूलन कोष (NAFCC):
    • जलवायु परिवर्तन के प्रतिकूल प्रभावों के प्रति संवेदनशील राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों हेतु जलवायु परिवर्तन अनुकूलन की लागत को पूरा करने के लिये वर्ष 2015 में इस कोष की स्थापना की गई थी।
  • राष्ट्रीय स्वच्छ ऊर्जा कोष (NCEF):
    • उद्योगों द्वारा कोयले के उपयोग पर प्रारंभिक कार्बन टैक्स के माध्यम से वित्तपोषित स्वच्छ ऊर्जा को बढ़ावा देने के लिये इस कोष का निर्माण किया गया था।
    • यह वित्त सचिव (अध्यक्ष के रूप में) के साथ एक अंतर-मंत्रालयी समूह (Inter-Ministerial Group) द्वारा शासित किया जाएगा।
    • इसका प्रमुख उद्देश्य जीवाश्म और गैर-जीवाश्म ईंधन आधारित क्षेत्रों में नवीन स्वच्छ ऊर्जा प्रौद्योगिकी के अनुसंधान एवं विकास के लिये कोष प्रदान करना है।
  • राष्ट्रीय अनुकूलन कोष (NAF):
    • इस कोष की स्थापना वर्ष 2014 में 100 करोड़ रुपए की धनराशि के साथ की गई थी, इसका उद्देश्य आवश्यकता और उपलब्ध धन के बीच के अंतराल की पूर्ति करना था।
    • यह कोष पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (MoEF&CC) के तहत संचालित है।

संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (UNEP):

  • 05 जून, 1972 को स्थापित संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (UNEP) एक प्रमुख वैश्विक पर्यावरण प्राधिकरण है।
  • कार्य: इसका प्राथमिक कार्य वैश्विक पर्यावरण एजेंडा को निर्धारित करना, संयुक्त राष्ट्र प्रणाली के भीतर सतत् विकास को बढ़ावा देना और वैश्विक पर्यावरण संरक्षण के लिये एक आधिकारिक अधिवक्ता के रूप में कार्य करना है।
  • प्रमुख रिपोर्ट्स: उत्सर्जन गैप रिपोर्ट, वैश्विक पर्यावरण आउटलुक, फ्रंटियर्स, इन्वेस्ट इनटू हेल्थी प्लेनेट रिपोर्ट।
  • प्रमुख अभियान: ‘बीट पॉल्यूशन’, ‘UN75’, विश्व पर्यावरण दिवस, वाइल्ड फॉर लाइफ।
  • मुख्यालय: नैरोबी (केन्या)।

जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन (UNFCCC):

  • वर्ष 1992 में पर्यावरण और विकास पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन में ‘संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन फ्रेमवर्क सम्मेलन' पर हस्ताक्षर किये गए, जिसे पृथ्वी शिखर सम्मेलन (Earth Summit), रियो शिखर सम्मेलन या रियो सम्मेलन के रूप में भी जाना जाता है।
  • UNFCCC 21 मार्च, 1994 से  लागू हुआ और 197 देशों द्वारा इसकी पुष्टि की गई।
  • यह वर्ष 2015 के पेरिस समझौते की मूल संधि (Parent Treaty) है। UNFCCC वर्ष 1997 के क्योटो प्रोटोकॉल (Kyoto Protocol) की मूल संधि भी है।
  • UNFCCC सचिवालय (यूएन क्लाइमेट चेंज) संयुक्त राष्ट्र की एक इकाई है जो जलवायु परिवर्तन के खतरे पर वैश्विक प्रतिक्रिया का समर्थन करती है। यह बॉन (जर्मनी) में स्थित है।
  • वातावरण में ग्रीनहाउस गैसों की सांद्रता को एक स्तर पर स्थिर करना जिससे एक समय-सीमा के भीतर खतरनाक नतीजों को रोका जा सके ताकि पारिस्थितिक तंत्र को स्वाभाविक रूप से अनुकूलित कर सतत् विकास के लक्ष्यों को प्राप्त किया जा सके।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रश्न: ‘मोमेंटम फॉर चेंज: क्लाइमेट न्यूट्रल नाउ” किसके द्वारा शुरू की गई एक पहल है? (2018)

(a) जलवायु परिवर्तन पर अंतर-सरकारी पैनल
(b) यूएनईपी सचिवालय
(c) यूएनएफसीसीसी सचिवालय
(d) विश्व मौसम विज्ञान संगठन

उत्तर: (c)

व्याख्या:

  • "मोमेंटम फॉर चेंज: क्लाइमेट न्यूट्रल नाउ", UNFCCC सचिवालय द्वारा वर्ष 2015 में शुरू की गई एक पहल है।
  • यह पहल मोमेंटम फॉर चेंज के तहत एक स्तंभ है जिसका उद्देश्य जलवायु तटस्थता हासिल करना है।
  • जलवायु तटस्थता तीन-चरणीय प्रक्रिया है, जिसके लिये व्यक्तियों, कंपनियों और सरकारों को कार्बन पदचिह्न को मापना, जितना संभव हो उतना उत्सर्जन कम करना और उत्सर्जन को ऑफसेट करना  जो संयुक्त राष्ट्र द्वारा प्रमाणित उत्सर्जन कटौती के अनुरूप न हो।

अतः विकल्प (c) सही है।


प्रश्न. जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन (UNFCCC) एक अंतर्राष्ट्रीय संधि है यह किसके द्वारा तैयार की गई है? (2010))

(a) मानव पर्यावरण पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन, स्टॉकहोम, 1972
(b) पर्यावरण और विकास पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन, रियो डी जनेरियो, 1992
(c) सतत् विकास पर विश्व शिखर सम्मेलन, जोहान्सबर्ग, 2002
(d) संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन सम्मेलन, कोपेनहेगन, 2009

उत्तर: (b)


प्रश्न. जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन (UNFCCC) के पक्षकारों के सम्मेलन (COP) के 26वें सत्र के प्रमुख परिणामों का वर्णन कीजिये। इस सम्मेलन में भारत ने क्या प्रतिबद्धताएँ की हैं? (मुख्य परीक्षा, 2021)

प्रश्न. ग्लोबल वार्मिंग पर चर्चा कीजिये और वैश्विक जलवायु पर इसके प्रभावों का उल्लेख कीजिये। क्योटो प्रोटोकॉल, 1997 के आलोक में ग्लोबल वार्मिंग का कारण बनने वाली ग्रीनहाउस गैसों के स्तर को कम करने के लिये नियंत्रण उपायों की व्याख्या कीजिये। (मुख्य परीक्षा, 2022)

स्रोत: डाउन टू अर्थ


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